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एक नया संसार - Erotic Incest Sex Story

एक नया संसार – Update 52 | Incest Story

♡ एक नया संसार ♡

अपडेट………《 52 》

अब तक,,,,,,,,

मेरी बात सुन कर नीलम कुछ बोल न सकी, बस एकटक मेरी तरफ देखती रही। मैं समझ सकता था कि वो इन सब बातों के चलते अपने दिलो दिमाग़ को विचारों भॅवर में डुबा रही है। कुछ और हमारे बीच ऐसी ही बातें होती रहीं। उसके बाद मैने उसे सो जाने का कह दिया। हलाॅकि मैं जानता था कि अब उसे सारी रात नींद नहीं आने वाली थी। वो रात भर इन्हीं बातों को सोचती रहेगी कि आख़िर ऐसी कौन सी सच्चाई है जिसकी मैं बात कर रहा हूॅ और जिस सच्चाई को जान कर उसकी अपनी दीदी अपने ही माॅम डैड के खिलाफ़ हो गई है?

नीलम को ऊपर के बर्थ पर लिटाने के बाद मैं भी अपने नीचे वाले बर्थ पर लेट गया और नीलम के साथ हुई बातों के बारे में सोचने लगा। आख़िर क्या करेगी नीलम जब उसे अपने माॅ बाप और भाई की असलियत का पता चलेगा? वो कैसा रिऐक्ट करेगी जब उसे पता चलेगा कि उसके माॅ बाप ने किस तरह इस हॅसते खेलते परिवार को बरबाद किया था? सब कुछ जानने के बाद क्या नीलम भी अपनी बड़ी बहन की तरह अपने माॅ बाप के खिलाफ़ हो जाएगी? मैं इन्ही सब बातों के बारे में सोच रहा था। तभी सहसा मुझे अजय सिंह का ख़याल आया। मैने परसों आने से पहले ही जगदीश अंकल को फोन करके अजय सिंह के साथ एक धाॅसू खेल खेलने का कह दिया था। ये उसी का परिणाम था कि इस वक्त अजय सिंह सीबीआई की गिरफ्त में था। मगर अब जबकि मैं कल दोपहर तक हल्दीपुर रितू दीदी के फार्महाउस पहुॅच जाऊॅगा तो अजय सिंह को भी सीबीआई की गिरफ्त से आज़ाद कर देने का समय आ जाएगा।

अजय सिंह जब सीबीआई की गिरफ्त से निकल कर अपनी हवेली पहुॅचेगा तब वो प्रतिमा को जो कुछ बताएगा उसे सुन कर सबके पैरों के नीचे से ज़मीन गायब हो जाएगी। अजय सिंह का दिमाग़ उस सबके बारे में सोचते सोचते फटने को आ जाएगा मगर उसे कुछ समझ नहीं आएगा। वो इस तरह किंकर्तब्यविमूढ़ सी स्थित में बैठा रह जाएगा जैसे कोई मौत के मुह से अचानक बचने के बाद शून्य में खोया हुआ सा रह जाता है।

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अब आगे,,,,,,,,,

उधर रितू मंत्री दिवाकर चौधरी से फोन पर बातें करने के बाद अपने फार्महाउस पहुॅची। उसने जिप्सी को तेज़ रफ्तार से दौड़ाया था और पाॅच मिनट में ही फार्महाउस पहुॅच गई थी। उसे मंत्री की बातों पर ज़रा सा भी ऐतबार नहीं था। हलाॅकि उसने धमकी के रूप में मंत्री को तगड़ी डोज दी थी। मगर इसके बावजूद वो इस बात से संतुष्ट नहीं हो पाई थी कि मंत्री की वजह से विधी के माॅ बाप अब सुरक्षित हैं। उसे पता था कि मौजूदा वक्त में भले ही मंत्री ने उससे वादा कर लिया था कि विधी के माॅ बाप को कुछ नहीं कहेगा मगर वो अपने इस वादे पर ज्यादा देर तक कायम नहीं रह सकता था। क्योंकि वो मंत्री था, वो ये बरदास्त नहीं कर पाएगा कि कोई ऐरा ग़ैरा उसे किसी चीज़ के लिए बिवश करे।

फार्महाउस पर पहुॅच कर रितू तेज़ क़दमों से चलती हुई अपने कमरे में पहुॅची। कमरे में पहुॅच कर सबसे पहले उसने अपनी पाॅकेट से उस मोबाइल की निकाल कर आलमारी में रखा जिस नये मोबाइल से उसने मंत्री से बात की थी। उसके बाद उसने अपने आईफोन को स्विच ऑन किया। फोन के स्विच ऑन होते ही उसने पुलिस कमिश्नर को काल लगाया और मोबाइल कान से सटा लिया।

“यस ऑफिसर।” उधर से कमिश्नर का प्रभावशाली स्वर उभरा___”क्या प्रोग्रेस चल रही है तुम्हारे ऑपरेशन की?”

“ऑपरेशन तो अभी सफलता पूर्वक चल ही रहा है सर।” रितू ने सहसा गंभीर भाव से कहा___”मगर इस बीच एक प्रोब्लेम आ गई है।”

“व्हाट??” उधर से कमिश्नर का चौंकता हुआ स्वर उभरा___”कैसी प्रोब्लेम आ गई है? इवरीथिंग ओके न?”

“यस सर।” रितू ने कहा___”बट प्रोब्लेम ये है कि मंत्री दिवाकर चौधरी के साथ जो कुछ मौजूदा समय में हो रहा है उसके वजह का उसने अपने तरीके से पता लगाया है। मेरा मतलब है कि वो ये समझता है कि उसकी इस बरबादी के पीछे विधी के घरवालों का हाॅथ है। उसे लगता है कि उसके बच्चों को विधी के बाप ने किडनैप किया है।”

“ऐसा तो उसे लगेगा ही ऑफीसर।” कमिश्नर का स्वर उभरा___” मऐसे मामले में कोई भी ब्यक्ति सर्व प्रथम विधी के घर वालों पर ही शक करेगा, क्योंकि मंत्री के साथ ये सब करने की वजह सिर्फ विधी के घर वालो के पास ही है। इस लिए अगर मंत्री सारी बातों पर विचार करके ये नतीजा निकाला है कि ये सब उस रेप पीड़िता लड़की के घर वाले ही कर रहें हैं तो उसका सोचना ग़लत नहीं है। ख़ैर, तुम बताओ कि अब तुम क्या चाहती हो?”

“ज़ाहिर सी बात है सर।” रितू ने कहा___”कि मंत्री के इस नतीजे के बाद अब विधी के माॅ बाप पर मंत्री का खतरा हो गया है। आप जानते हैं कि इस मामले में उन बेचारों का दूर दूर तक कोई हाॅथ नहीं है। वो तो बेकार में ही इस मौत रूपी खतरे में फॅस पड़े हैं। इस लिए मैं चाहती हूॅ सर कि विधी के माॅ बाप को जल्द से जल्द सुरक्षा मुहय्या कराएॅ आप।”

“ऐसा करना सही नहीं होगा ऑफिसर।” कमिश्नर ने समझाने वाले भाव से कहा___”क्योंकि अगर हम विधी के माॅ बाप को पुलिस प्रोटेक्शन देंगे तो मंत्री के सामने सारी बातें ओपेन हो जाएॅगी। उस सूरत में उनके ऊपर ख़तरा और भी बढ़ जाएगा। ये ऑपरेशन चूॅकि सीक्रेट है इस लिए इसकी सारी चीज़ें सीक्रेट ही रहें तो बेहतर होगा।”

“मगर सर।” रितू ने कहा___”विधी के घर वालों को सुरक्षित तो ईरना ही होगा हमें। वरना उनके ऊपर मंत्री का क़हर कभी भी टूट पड़ेगा।”

“एक काम करो तुम।” कमिश्नर ने कहा___”विधी के माॅ बाप को भी अपने पास ही रखो।”

“लेकिन सर।” रितू ने कहा___”उन्हें मैं अपने पास लेकर कैसे आऊॅगी? संभव है कि मंत्री ने अपने आदमी उनके आस पास निगरानी में लगा दिये हों। उस सूरत में जब वो देखेंगे कि मिस्टर एण्ड मिसेस चौहान किसी के द्वार ले जाए जा रहे हैं तो वो ज़रूर उस बात की सूचना मंत्री को दे देंगे और हमारा पीछा भी कर सकते हैं।”

“रिस्क तो लेना ही पड़ेगा ऑफिसर।” कमिश्नर का गंभीर स्वर___”तुम चौहान को फोन करके कहो कि वो तुम्हें किसी ख़ास जगह पर आकर मिलें उसके बाद उस खास जगह पर हमारे पुलिस के आदमी सादे कपड़ों में उन्हें वहाॅ से रिसीव कर लेंगे। पुलिस के वो आदमी चौहान और उनकी पत्नी को किसी खास जगह पर ही लेकर आ जाएॅगे जहाॅ से तुम उन्हें रिसीव कर अपने साथ ले जाना।”

“दैट्स ए गुड आइडिया सर।” रितू ने कहा___”हलाॅकि रिस्की तो ये भी है किन्तु जैसा कि आपने कहा रिस्क तो लेना ही पड़ेगा। इस लिए ऐसा ही करते हैं सर।”

“ठीक है।” कमिश्नर ने कहा___”तुम ऐसा ही करो। मगर होशियारी और सतर्कता से।”

“यस सर।” रितू ने कहा।

इसके साथ ही काल कट गई। रितू के चेहरे पर इसके पहले जहाॅ चिंता व परेशानी के भाव थे वहीं अब राहत के भाव झलकने लगे थे। यद्यपि उसे पता था कि ऐसा करना भी रिस्की ही था। क्योंकि मंत्री ने अगर अपने आदमियों को विधी के माॅ बाप की निगरानी में लगा दिया होगा तो यकीनन वो लोग जान जाएॅगे और पीछा करेंगे। मगर ये भी सच था कि विधी के माॅ बाप को सुरक्षित करना ज़रूरी था। अतः रितू ने मोबाइल में विधी के पापा का नंबर खोज कर काल लगा दिया।

“हैलो अंकल मैं रितू बोल रही हूॅ।” उधर से काल रिसीव किये जाते ही रितू ने कहा था।

“ओह हाॅ रितू बेटा।” उधर से मिस्टर चौहान का तनिक चौंका हुआ स्वर उभरा___”कैसी हो तुम? उस दिन के बाद से फिर आई नहीं तुम। क्या विधी के जाने से सारे रिश्ते खत्म हो गए? मेरा दामाद तो अपनी मरहूम पत्नी की अस्थियाॅ तक लेने नहीं आया। ऐसी उम्मीद तो न थी मुझे उससे।”

“राज की जगह उसके नाम से अस्थियाॅ लेने मैं ही तो आई थी अंकल।” रितू ने कहा___”आप से बताया तो था हालातों के बारे में।”

“ओह हाॅ हाॅ बताया था तुमने बेटा।” उधर से चौहान का स्वर उभरा___”क्या करूॅ बेटी कुछ याद ही नहीं रहता। जब से बेटी हमें छोंड़ कर गई है तब से एकदम अकेले हो गए हैं हम दोनो। सच कहें तो कुछ भी अच्छा नहीं लगता। ये ज़िंदगी तो बस बोझ सी लगने लगी है।”

“ऐसा मत कहिए अंकल।” रितू ने दुखी भाव से कहा___”विधी के चले से आप दुखी मत होइये। मैं भी तो आपकी बेटी ही हूॅ। आप मुझे अपनी विधी ही समझिये अंकल। मैने तो उसी दिन आप सबसे रिश्ता बना लिया था जिस दिन विधी को मैने अपनी छोटी बहन बनाया था। उसके जाने का हम सबको बेहद दुख है मगर ये भी सच है कि इस दुख को लेकर बैठा तो नहीं रहा जा सकता न। आप बिलकुल भी दुखी मत होइये और ना ही ये समझिए कि आप अब अकेले हो गए हैं। हम सब आपके ही तो हैं। आपका हम पर वैसा ही हक़ है जैसा कि विधी पर था आपका।”

“ओह शुक्रिया बेटी।” चौहान का लरज़ता हुआ स्वर उभरा___”तुमने ये कह कर सच में मुझे अकेलेपन के एहसास से मुक्त करवा दिया। मेरे दिल में जीने की चाह जाग उठी है। ख़ैर, ये बताओ बेटी कि अब कैसे हालात हैं वहाॅ पर?”

“हालात तो अभी काबू में ही हैं अंकल।” रितू ने कहा___”मगर एक गंभीर समस्या पैदा हो गई है।”

“क कैसी समस्या बेटा?” चौहान के स्वर में एकाएक चिंता के भाव आ गए थे___”सब ठीक तो है न?”

रितू ने संक्षेप में चौहान को मंत्री से संबंधित सारी बातें बता दी। चौहान ये जान कर चकित था हो गया था कि उसकी बेटी के साथ कुकर्म करने वालों को रितू खुद सज़ा दे रही है। इस बात से चौहान को बड़ी खुशी भी हुई। किन्तु रितू ने मौजूदा हालातों के बारे में जो कुछ भी उसे बताया उससे वो चिंतित भी हो उठा था।

“इस लिए अंकल।” सारी बातें बताने के बाद फिर रितू ने कहा___”मैं चाहती हूॅ कि आप और ऑटी जितना जल्दी हो सके तो घर से निकल कर मेरे पास आने की कोशिश कीजिए।”

“लेकिन बेटा।” उधर से चौहान ने कहा___”उस मंत्री ने हमारे आस पास निगरानी के लिए अपने आदमियों को लगाया होगा तो उस सुरत में हम भला कैसे निकल पाएॅगे यहाॅ से?”

“उसका भी इंतजाम कर दिया है मैने।” रितू ने कहा___”आप बस वो करते जाइये जो मैं कहूॅ।”

“ठीक है बेटा।” चौहान ने कहा___”बताओ क्या करना है हमें?”

“आप अपना ज़रूरी सामान लेकर इसी वक्त तैयार हो जाइये।” रितू ने कहा___”थोड़ी ही देर में मेरे पुलिस डिपार्टमेन्ट के आदमी सादे कपड़ों में आपको लेने आएॅगे। आप उनके साथ चले आइयेगा। उसके बाद का काम मेरे पुलिस के वो आदमी और मैं सम्हाल लेंगे।”

“ठीक है बेटा।” उधर से चौहान ने कहा___”जैसा तुम कहो।”

“ओके फिर आप जल्दी से तैयारी कर लीजिए।” रितू ने कहा___”मैं अपने आदमियों को भेजती हूॅ आपके पास।”

इसके साथ ही रितू ने काल कट कर दी। कुछ पल रुकने के बाद उसने फिर से किसी को फोन लगाया और थोड़ी देर तक किसी से कुछ बातें की। उसके बाद काल कट करके बेड पर आराम से लेट गई। अभी वह लेटी ही थी कि उसका फोन बज उठा। उसने मोबाइल फोन उठाकर स्क्रीन पर फ्लैश कर रहे नाम को देखा तो सहसा उसके चेहरे पर सोचो के भाव उभरे।

“कहो प्रकाश क्या ख़बर है?” रितू ने सोचने वाले भाव से काल रिसीव करते ही पूछा।

“………..। उधर से कुछ कहा गया।

“ओह तो ये बात है।” रितू ने कुछ सोचते हुए कहा__”वैसे कितने आदमी होंगे वो लोग?”

“………..।” उधर से प्रकाश नाम के आदमी ने फिर कुछ कहा।

“चलो अच्छी बात है।” रितू ने कहा___”और कुछ?”

“………..। उधर से फिर कुछ कहा गया।

“क्या???” रितू चौंकी___”डाक्टर भला किस लिए आया था वहाॅ?”

“………..।” उधर से पुनः कुछ कहा गया।

“ओह आई सी।” रितू ने कहा___”लेकिन माॅम को चक्कर कैसे आ गया था? क्या तुमने पता नहीं किया?”

“……….।” उधर से प्रकाश ने कुछ बताया।

“ओह तो ये बात है।” रितू चौंकने के साथ मुस्कुराई भी___”चलो ठीक है प्रकाश। बहुत अच्छी ख़बर दी है तुमने। ऐसी ही अंदर की ख़बर देते रहना और हाॅ ज़रा होशियार और सतर्क रहना।”

ये कह कर रितू ने फोन काट दिया। उसके चेहरे पर इस वक्त कई तरह के भावों का आवागमन चालू हो गया था। ख़ैर उसके बाद रितू अपने डिपार्टमेन्ट के पुलिस वालों के फोन काल का इन्तज़ार करने लगी। लगभग बीस मिनट बाद रितू का आईफोन बजा। रितू ने तुरंत काल को रिसीव किया। काल पुलिस के आदमियों का ही था। उन्होंने बताया कि वो लोग मिस्टर एण्ड मिसेस चौहान को लेकर चल दिये हैं और बताई हुई जगह पर आ रहे हैं। उन्होंने ये भी बताया कि आस पास ऐसा कोई आदमी नहीं दिखा जिस पर किसी तरह का ज़रा सा भी संदेह किया जा सके।

पुलिस के उस आदमी से बात करने के बाद रितू भी बेड से उठी और जिप्सी की चाभी लेकर कमरे से बाहर की तरफ निकल पड़ी। सीढ़ियों से उतर कर जब वो नीचे आई तो ड्राइंगरूम में रखे सोफों पर नैना और कुरुणा का भाई बैठा दिखा उसे। रितू नीचे आते देख नैना ने उससे कहा___”रितू बेटा, तुम्हारे ये मामा जी कह रहे हैं कि इन्हें अब अपने घर वापस जाना है। कह रहे हैं बहुत काम बाॅकी है घर में।”

“क्यों मामा जी इतना जल्दी?” रितू ने कहा___”अभी तो हमने आपसे ठीक से बातें भी नहीं की है और आप जाने की बात करने लगे।”

“बातें तो हो ही गई हैं रितू बेटा।” हेमराज ने कहा__”अब मुझे जाने दो। बहुत काम है। तुम्हें तो पता है दूसरे की नौकरी में अपनी मनमर्ज़ी तो नहीं चलती न।”

“ठीक है मामा जी।” रितू ने कहा___”जैसा आपको अच्छा लगे। तो कब जा रहे हैं आप?”

“मैं तो तैयार ही बैठा हूॅ बेटा।” हेमराज ने कहा___”बस तुम्हारे आने का ही इन्तज़ार कर रहा था।”

“ओह।” रितू ने कहा___”चलिए फिर। मैं भी उधर ही जा रही हूॅ। सो आपको भी छोंड़ दूॅगी।”

रितू के कहने पर हेमराज सोफे से उठा और बगल से ही रखे एक छोटे से बैग को पीठ पर लाद कर बाहर की तरफ चल दिया। उसके पीछे रितू भी चल दी। थोड़ी ही देर में वो दोनो जिप्सी में सवार सड़क पर चल रहे थे। दोनो के बीच थोड़ी बहुत बात चीत होती रही और फिर वो नहर वाली जगह के पास बने पुल के इसी तरफ रुक गए।

लगभग बीस मिनट बाद सामने से एक टोयटा आती दिखी। रितू को पहचानने में ज़रा भी देरी न हुई कि उस गाड़ी में उसके पुलिस के ही आदमी हैं। कुछ ही देर में वो गाड़ी रितू के पास आकर रुकी। गाड़ी के आगे पीछे के दरवाजे खुले। अगले दरवाजे से पुलिस का एक आदमी उतरा जबकि पीछे के दरवाजे से विधी के माॅ बाप उतरे।

रितू उनके पास जाकर उन्हें नमस्ते किया और उन्हें अपने साथ ला कर अपनी जिप्सी की पिछली शीट पर बैठने का इशारा किया। उन दोनो के बैठने के बाद रितू ने पुलिस वालों से कहा कि वो हेमराज को हरीपुर छोंड़ आएॅ जो यहाॅ से लगभग तीस किलो मीटर की दूरी पर था। रितू के कहने पर वो पुलिस वाले हेमराज की अपनी गाड़ी में बैठा कर वहाॅ से चले गए। उनके जाने के बाद रितू भी अपनी जिप्सी को स्टार्ट कर वापस फार्महाउस की तरफ चल दी।

विधी के माता पिता की सुरक्षित करके रितू अब बेफिक्र हो चुकी थी। अब वो बेफिक्री से कोई भी काम कर सकती थी। रास्ते में रितू ने विधी के माॅ बाप को विराज के बारे में भी बता दिया कि वो कल दोपहर तक मुम्बई से वापस आ जाएगा। ऐसे ही बातें करते हुए ये लोग कुछ ही समय में फार्महाउस पहुॅच गए। जिप्सी से उतर कर रितू विधी के माता पिता को अंदर ले गई। जहाॅ पर नैना बुआ बैठी थी। रितू ने नैना को विधी के माॅ बाप का परिचय दिया और कहा कि इनके रहने के लिए एक कमरा साफ सुथरा करवा दें। थोड़ी देर ड्राइंग रूम में उन सबसे बातचीत करने के बाद रितू अपने कमरे में चली गई।

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अजीब संयोग था।

जैसा कि रितू को पहले से ही अंदेशा था कि मंत्री अपनी हरकतों से बाज नहीं आएगा। कहने का मतलब ये कि जैसे ही मिस्टर एण्ड मिसेस चौहान रितू के फार्महाउस पहुॅचे थे वैसे ही मंत्री ने अपने आदमियों को गुप्त तरीके से विधी के घर के आस पास निगरानी के लिए लगा दिया था।  किन्तु मुश्किल से आधे घंटे बाद ही मंत्री के आदमी ने मंत्री को फोन करके बताया कि जिस ब्यक्ति की निगरानी में हम लोग यहाॅ आए थे उसके घर में तो ताला लगा हुआ है। कुछ लोगों ने बताया कि एक सफेद रंग की गाॅड़ी आई थी जिसमे चौहान अपनी बीवी को लिए बैठ गया था। उसके हाॅथ में एक बड़ा सा बैग भी था। उन दोनों के बैठते ही वो सफेद रंग की गाड़ी चली गई थी।

फोन पर अपने आदमी की ये ख़बर सुन कर मंत्री भौचक्का सा रह गया था। वो समझ गया कि भले ही उसने अपने बच्चों के किडनैपर से वादा किया था इसके बाद भी किडनैपर को उसके वादे पर ऐतबार न हुआ था। शायद यही वजह थी कि किडनैपर ने वक्त रहते अपनी सुरक्षा के मद्दे नज़र अपने घर में ताला लगा कर कहीं ऐसी जगह नया ठिकाना बना लिया था जिस जगह के बारे मंत्री को पता तक न चल सके। फोन पर अपने आदमी की ख़बर सुनने के बाद इस वक्त मंत्री अपने उन्हीं तीनों साथियों के साथ ड्राइंगरूम में गंभीर मुद्रा में बैठा हुआ था।

“शिकार हमारे हाॅथ से बहुत ही आसानी से निकल गया चौधरी साहब।” अवधेश श्रीवास्तव ने कहा___”उसे आपके वादे के बावजूद पता था कि आप ऐसा कोई क़दम उठाएॅगे। इसी लिए तो उसने फौरन ही अपनी सुरक्षा का इंतजाम कर लिया। सबसे बड़ी बात ये कि आपको ऐसे वक्त में ऐसा कोई क़दम उठाना ही नहीं चाहिए था। क्योंकि संभव है कि इससे हमें भारी खामियाजा भुगतना पड़ जाए। दूसरी बात जब आपको पता चल ही गया था तो उस बात को फोन पर उस किडनैपर को बताना ही नहीं चाहिए था बल्कि आपको जो करना था वो उस किडनैपर की जानकारी में आए बग़ैर ही करना चाहिए था।”

“ग़लती तो हमसे यकीनन हो गई है अवधेश।” दिवाकर चौधरी ने अफसोस भरे भाव से कहा___”हमें लगा कि जब हम उसे बताएॅगे कि उसकी असलियत हम जान गए हैं तो उसके होश उड़ जाएॅगे और अपने बुरे अंजाम का सोच कर वो सब कुछ हमारे हवाले कर देगा जिसके बलबूते पर वो इतना उछल रहा है। इतना ही नहीं वो हमारे बच्चों को भी सही सलामत हमारे पास भेज देगा। इसके बाद वो हमसे अपने उस अपराध की माफ़ी माॅगेगा। मगर ऐसा हुआ नहीं बल्कि वो तो हम पर और भी ज्यादा हावी हो गया था।”

“अब जो होना था वो तो हो ही गया चौधरी साहब।” सहसा अशोक मेहरा ने कहा___”और इस पर अब बहस करने का कोई फायदा नहीं है। इस लिए हमें अब ये सोचना चाहिए कि अब आगे हमें क्या करना है? वैसे उस चौहान के अचानक अपने घर से गायब हो जाने से एक बात तो साफ हो गई है कि वो अकेला इस काम में नहीं है। बल्कि कोई और भी है जो उसकी मदद कर रहा है।”

“ये तुम कैसे कह सकते हो?” दिवाकर चौधरी के माथे पर बल पड़ा___”और भला कौन ऐसे मामले में उसकी मदद कर सकता है? जबकि सब जानते हैं कि ये मामला हमसे संबंधित है। भला हमसे दुश्मनी मोल लेने का दुस्साहस दूसरा कौंन कर सकता है?”

“कोई तो होगा ही चौधरी साहब।” अशोक मेहरा ने सोचने वाले अंदाज़ से कहा___”मैने भी अपने तरीके से उस लड़की के बारे में पता लगाया है।”

“क्या मतलब?” चौधरी के साथ साथ सुनीता व अवधेश भी चौंके थे, जबकि अवधेश ने ही पूछा___”क्या पता लगाया है उस लड़की के बारे में?”

“यही कि वो लड़की हमारे बच्चों के ही कालेज में पढ़ती थी।” अशोक मेहरा कह रहा था___”और हमारे बच्चों की फ्रैण्ड ही थी। किन्तु उसके बारे में एक बात ये भी पता चली कि वो लड़की किसी दूसरे लड़के को चाहती थी और फिर एक दिन अविश्वसनीय तरीके से उस लड़के से प्रेम संबंध तोड़ लिया था। उस लड़के से अलग होने के बाद ही वो सूरज के क़रीब आई थी। सूरज के ही एक दूसरे दोस्त ने इस बारे में बताया कि विधी नाम की वो लड़की उस लड़के से संबंध ज़रूर तोड़ लिया था कि किन्तु अकेले में अक्सर वो उस लड़के की याद में ही रोती रहती थी।”

“लेकिन इस मैटर से उस बात का कहाॅ संबंध है अशोक भाई जिसकी बात तुम कर रहे हो कि चौहान की मदद कोई दूसरा भी कर रहा है?” अवधेश ने कहा था।

“संबंध क्यों नहीं हो सकता भाई?” अशोक मेहरा ने कहा___”खुद सोचो कि जो लड़की अपने प्रेमी से अलग होकर उसकी याद में इस तरह रोती थी तो क्या ऐसा नहीं हो सकता कि वो फिर से अपने प्रेमी से मिलने की चाह कर बैठे और मिल ही जाए? दूसरी ग़ौर करने वाली बात ये भी है कि इश्क़ मुश्क कभी दुनियाॅ से नहीं छुपता। संभव है कि विधी और उसके प्रेमी के उन प्रेम संबंधों की ख़बर दोनो के घर वालों को भी रही हो। लेकिन किसी कारणवश मिल न पाएॅ हों वो दोनो या फिर मिलने वाले रहे हों। मगर तभी लड़की के साथ रेप सीन हो गया। लड़की के साथ हुए हादसे का पता विधी के प्रेमी को लगा होगा और उसने अपनी प्रेमिका के साथ हुए इस जघन्य अपराध का बदला लेने के लिए उतारू हो गया हो। जिसका नतीजा आज इस रूप में हमारे सामने है।”

“तम्हारी बातों में वजन तो है अशोक।” अवधेश श्रीवास्तव ने कहा___”मगर ये महज तुम्हारी संभावनाएॅ हैं जो कि ग़लत भी हो सकती हैं। फिर भी अगर तुम्हारी बातों को मान भी लिया जाए तो इसका मतलब ये हुआ कि हमारे बच्चों को किडनैप करने वाला चौहान नहीं बल्कि उस लड़की का प्रेमी है।”

“बिलकुल।” अशोक ने कहा___”एक पल के लिए ये सोचा जा सकता है कि लड़की के बाप ने अपनी बेटी के साथ हुए उस कुकर्म का बदला ये सोच कर न लिया कि बदला लेने से वो सब तो वापस मिलने से रहा जो इज्ज़त के रूप में लुट चुका है। या फिर ये भी सोच लिया होगा कि कानूनन भी वो हमारा कुछ नहीं कर पाएगा। मगर लड़की का प्रेमी बदला लेने के सिवा कुछ और सोचेगा ही नहीं और वही वो कर रहा है।”

अशोक मेहरा की इस बात से ड्राइंग रूम में कुछ देर के लिए ब्लेड की धार की मानिंद सन्नाटा छा गया। सभी के चेहरों पर गहन सोचों के भाव नुमायाॅ हो उठे थे।

“मुझे लगता है कि अशोक भाई साहब का ये सोचना एकदम सही है।” सहसा इस बीच पहवी बार सुनीता ने गहरी साॅस लेते हुए कहा___”क्योंकि जिस प्रकार से उसने इतने कम समय में हमारे बच्चों को और हमारी रचना बेटी को किडनैप किया है उस तरह से वो चौहान तो कम से कम कर ही नहीं सकता। वो लड़का जवान है और गरम खून है। रेप केस होने के दूसरे दिन ही जिस तरह से उसने हमारे बच्चों को हमारे ही फार्महाउस से किडनैप किया और इतना ही नहीं बल्कि हमारे खिलाफ़ ऐसा खतरनाक सबूत वहाॅ से प्राप्त किया वो चौहान के बस का तो हर्गिज़ नहीं था। आज जब उसे चौधरी साहब से ये पता चला कि मंत्री महोदय उसकी ये असलियत जान गए हैं कि वो दरअसल चौहान ही है तो उसे चौहान की फिक्र हुई इसी लिए उसने वक्त रहते चौहान को सुरक्षित कर दिया और हमारी पहुॅच से शायद दूर भी कर दिया है।”

“अरे वाह।” दिवाकर चौधरी ने हैरत से ऑखें फैलाते हुए कहा___”क्या खूब दिमाग़ लगाया है मेरी राॅड ने। असलियत भले ही कुछ और ही हो मगर जिस तरह से अशोक और सुनीता ने अपनी बातें रखीं उससे यही लगता है कि ये सब लड़की के उस प्रेमी का ही किया धरा है। ख़ैर, अब सवाल ये है कि लड़की का वह प्रेमी कौन है जिसके पिछवाड़े में इतनी ज्यादा मिर्ची लग गई कि वो अपनी जाने बहार के साथ हुए उस काण्ड का बदला लेने लगा है। आख़िर पता तो चले कि वो किस खेत की पैदाईश है जिसने हम पर हाॅथ डालने का दुस्साहस किया है।”

“मैने उस लड़के का पता भी करवाया है चौधरी साहब।” अशोक मेहरा ने कहा___”वो लड़का हल्दीपुर का है। बड़े घर परिवार से ताल्लुक रखता है किन्तु।”

“किन्तु क्या अशोक?” चौधरी के माथे पर शिकन पैदा हुई।

“पता चला है कि लड़के के ताऊ ने उसे और उसकी माॅ बहन को हर चीज़ से बेदखल कर रखा है।” अशोक मेहरा ने कहा___”लड़के के ताऊ का नाम ठाकुर अजय सिंह है। हल्दीपुर में बड़ी भारी किन्तु शानदार हवेली है तथा अच्छी खासी ज़मीन जायदाद भी है। खुद अजय सिंह एक बड़ा कारोबारी इंसान है। परिवार की आपसी कलह की वजह से उसने अपने मॅझले किन्तु स्वर्गवाशी भाई विजय सिंह के उस लड़के को और लड़के की माॅ बहन को हवेली से बेदखल कर दिया है।”

“ओह बड़ी अजीब बात है ये तो।” चौधरी ने सोचने वाले भाव से कहा___”फिर तो वो लड़का दर दर का भिखारी ही है। ऐसी हालत में वो ये सब हमारे साथ कैसे रहा पा रहा है? ये तो हैरत की बात है।”

“हैरत वैरत की कोई बात नहीं है चौधरी साहब।” अशोक मेहरा ने कहा___”ताऊ के द्वारा हवेली से बेदखल होने के बाद वो लड़का आजकल मुम्बई में रहता है अपनी विधवा माॅ और बहन के साथ।”

“अच्छा।” चौधरी ने कहा___”तो क्या वो मुम्बई में रहते हुए ये सब कर रहा है?”

“इस बारे में पक्के तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता मगर।” अशोक मेहरा ने कहा___”मगर संभव है कि उसे अपनी प्रेमिका के साथ हुए काण्ड का पता चला हो और वो मुम्बई से यहाॅ आया हो। उसके बाद उसने ये सब शुरू किया हो।”

“ओह।” चौधरी को जैसे बात समझ आ गई___”संभव है ऐसा ही हो। ख़ैर उस लड़के के परिवार में और कौन कौन लोग हैं?”

“लड़के का बाप तीन भाई थे।” अशोक ने कहा___”सबसे बड़ा अजय सिंह, फिर लड़के का बाप विजय सिंह और उसके बाद अभय सिंह। अजय सिंह के दो बेटियाॅ और एक लड़का है। उसकी बड़ी बेटी हल्दीपुर थाने में थानेदार है।”

“क क्या????” चौधरी ही नहीं बल्कि सभी बुरी तरह चौंके थे, फिर चौधरी ने ही कहा___”उस ठाकुर की बेटी थानेदार है। मतलब की पुलिस वाली है वो?”

“हाॅ मगर आप ये हर्गिज़ भी न सोचें कि।” अशोक मेहरा ने कहा____”कि उसका इस मामले में कोई हाथ है।”

“अरे, क्यों नहीं हो सकता ऐसा?” चौधरी से पहले अवधेश बोल पड़ा था___”वो अपने चचेरे भाई की मदद तो यकीनन कर सकती है भाई।”

“ऐसा नहीं है अवधेश भाई।” अशोक ने कहा___”क्योंकि अजय सिंह ही नहीं बल्कि उसकी औलादें भी उस लड़के और उसकी माॅ बहन से नफ़रत करती हैं।”

“एक मिनट अशोक भाई।” सहसा अवधेश श्रीवास्तव ने कुछ सोचते हुए कहा___”एक मिनट। हमारे बच्चों ने उस लड़की के साथ रेप सीन को अंजाम दिया उसके बाद वो चिमनी में बने अपने फार्महाउस पर चले गए। जहाॅ से उन्हें किडनैप कर लिया गया। चिमनी हल्दीपुर के बाद ही पड़ता है। ख़ैर रेप की वारदात हल्दीपुर के आस पास के ही क्षेत्र में हुई या फिर ऐसा होगा कि हमारे बच्चों ने अपने फार्महाउस पर ही उस लड़की से सामूहिक रेप किया और उसके बाद उसे हल्दीपुर की सीमा के अंदर ले जा कर छोंड़ आए होंगे। ये सब मैं इस लिए कह रहा हूॅ कि वो रेप सीन उस समय काफी फैल गया था उस क्षेत्र में। ख़ैर अब सोचने वाली बात ये है कि अगर रेप पीड़िता लड़की हल्दीपुर की सीमा में पाई गई तो क्या हल्दीपुर के थाने में मौजूद वो थानेदारनी चुप बैठी रही होगी? उसने शुरुआती ऐक्शन तो लिया ही होगा।”

“तुम आख़िर कहना क्या चाहते हो?” अशोक मेहरा ने पूछा___”इस मामले में अचानक तुम इस एंगिल से क्यों सोचने लगे?”

“दरअसल मैं भी तुम्हारी तरह संभावनाएॅ ही ब्यक्त कर रहा हूॅ भाई।” अवधेश ने कहा___”मामला काफी पेचीदा है। मगर मैं इधर उधर की कड़ियाॅ समेटने की कोशिश कर रहा हूॅ।”

“साफ साफ बोलो क्या कहना चाहते हो तुम?” सहसा चौधरी कर उठा___”यूॅ बातों को घुमाने का क्या मतलब है?”

“जैसा कि अशोक भाई ने कहा।” अवधेश श्रीवास्तव ने कहा___”कि थानेदारनी अपने भाई की मदद नहीं कर सकती क्योंकि वो भी अपने माॅ बाप की तरह ही उससे नफ़रत करती है। मगर सवाल ये है कि थानेदारनी के क्षेत्र में रिप पीड़िता पाई गई तो क्या थानेदारनी ने इस पर कोई ऐक्शन नहीं लिया होगा?”

“अगर उसने कोई ऐक्शन लिया होता तो उसका पता हमें ज़रूर चलता।” दिवाकर चौधरी ने कहा___”ये तो सच है कि वो रेप स्कैण्डल एक पुलिस केस ही था मगर उस स्कैण्डल का कोई पुलिस केस नहीं बना। इस बात खुलासा कमिश्नर खुद कर चुका है।”

“या फिर ऐसा हुआ होगा कि उस थानेदारनी ने केस बनाने की कोशिश की होगी।” अशोक ने कहा___”मगर कमिश्नर ने उसे केस बनाने या उस वारदात पर कोई ऐक्शन लेने से मना कर दिया होगा। थानेदारनी भला अपने आला अफसर के खिलाफ़ कैसे कोई क़दम उठाती? “

“हाॅ ऐसा भी हो सकता है।” चौधरी ने कहा___”और आम जनता ने इस पर हो हल्ला इस लिए नहीं किया क्योंकि उसे भी पता है कि मामला सीधा मंत्री के बेटे और उसके बेटे के दोस्तों का था। यानी कि हमारे डर की वजह से जनता ख़ामोश रह गई।”

“तो इन बातों का निष्कर्स ये निकला।” सहसा सुनीता ने गहरी साॅस लेने के बाद कहा___”कि वो लड़का जिसे कि उसके ताऊ ने उसकी माॅ बहन के साथ घर से दर बदर किया वही इस सबके पीछे है। यानी वो अपनी प्रेमिका के साथ हुए उस रेप का बदला ले रहा है।”

“बिलकुल।” अशोक ने पुरज़ोर लहजे में कहा__”विधी के माॅ बाप के अलावा वही एक ऐसा है जो ये सब कर सकता है। यानी ये सब करने की वजह उसके पास भी है।”

“अगर ये वाकई सच है।” अवधेश ने कहा___”तो अब हमें उस लड़के का पता लगाना होगा। मगर इस बार पहले जैसी ग़लती हर्गिज़ भी नहीं होनी चाहिए। वरना इस बार इसका खामियाजा हमें भारी कीमत पर चुकाना पड़ सकता है।”

“बड़ी हैरत की बात है।” दिवाकर चौधरी के लहजे में कठोरता थी, बोला___”एक पिद्दी से इंसान ने हमें इस तरह अपने शिकंजे में कसा हुआ है कि हम आज़ाद होते हुए भी आज़ाद व बेफिक्र नहीं हैं। वो जब चाहे हम सबको बीच चौराहे पर नंगा दौड़ा सकता है और हम कुछ कर नहीं सकते। सारे प्रदेश में हमारी एकछत्र हुकूमत है। हमारी इजाज़त के बिना इस प्रदेश में कहीं का कोई पत्ता भी नहीं हिल सकता। मगर कमाल देखो कि हम सब जो खुद को सबसे बड़ा सूरमा समझ रहे हैं आज उस हरामज़ादे की मुट्ठी में कैद हो कर रह गए हैं। लानत है हम पर और हमारे सूरमा होने पर।”

“आप चिंता मत कीजिए चौधरी साहब।” अशोक मेहरा ने कहा___”बकरे की अम्मा कब तक ख़ैर मनाएगी? आज भले ही उस कमीने का पलड़ा हम पर भारी है मगर किसी दिन तो उससे भी कोई चूक होगी जिसके तहत वो हमारे हत्थे चढ़ेगा। उसके बाद हम बताएॅगे कि हमारे साथ इतना बड़ा दुस्साहस करने का कितना खूबसूरत अंजाम होता है।”

“बकवास मत करो अशोक।” चौधरी ने बिफरे हुए से लहजे में लगभग चीखते हुए कहा___”तुम्हारा ये डायलाग हम इसके पहले भी जाने कितनी बार सुन चुके हैं मगर अब तक ऐसा कोई पल नहीं आया जिससे हमें लगे कि हाॅ अब हालात हमारे हक़ में हैं। मादरचोद ने अपाहिज बना के रख दिया है हमे। किसी से ठीक से मिल नहीं सकते। किसी समारोह में नहीं जा सकते। साला हर पल डर लगा रहता है कि ऐसी किसी जगह पर वो हरामज़ादा कोई ऐसी वैसी हरकत न कर दे कि सबके सामने हमारी इज्ज़त का कचरा हो जाए।”

“बुरा मत मानिएगा चौधरी साहब।” अशोक ने कहा___”मगर हमें इतना बेबस बना देने में सबसे बड़ा हाॅथ आपके बेटे सूरज का है।”

“क्या मतलब है तुम्हारा?” चौधरी एक झटके से अशोक की तरफ घूमते हुए कहा था।

“आप खुद सोचिए।” अशोक ने कहा___”हमारे सभी बच्चों का लीडर कौन है___आपका बेटा ही न?”

“हाॅ तो।” चौधरी चकराया।

“आप ये बताइये कि फार्महाउस पर हमारे ऐसे संबंधों की वीडियो क्लिप बनाने की क्या ज़रूरत थी उसे?” अशोक ने कहा___”क्या उसे इतना भी एहसास नहीं था कि ऐसे वीडियो किसी डायनामाइट से कम नहीं होते। हम जैसे लोगों के हज़ारो प्रतिद्वंदी होते हैं जिन्हें हमारी ऐसी ही किसी कमज़ोरी की तलाश रहती है। आज उन्हीं वीडियोज की वजह से हम इतना बेबस व लाचार बने बैठे हैं। अगर वो वीडियोज बने ही न होते तो आज किसी की हिम्मत ही न होती हमें इतना मजबूर करने की।”

“हाॅ हम जानते हैं कि हमारे बेटे ने ऐसे वीडियोज बना कर बहुत बड़ी ग़लती की है।” चौधरी ने खेद भरे भाव से कहा___”मगर अब जो हो गया उसका कोई कर भी क्या सकता है? हमें तो सारे बच्चों की फिक्र है। जाने उनके साथ कैसा सुलूक कर रहा होगा वो हरामज़ादा?”

“हम खुद तो कुछ कर नहीं सकते हैं।” अवधेश ने कहा___”मगर किसी और को इस काम में ज़रूर लगा सकते हैं।”

“क्या मतलब??” अशोक के माथे पर शिकन उभरी।

“मुझे लगता है कि हमें इस काम के लिए किसी क़ाबिल व बहादुर डिटेक्टिव को हायर करना चाहिए।” अवधेश ने कहा___”जासूस लोग गुप्त तरीके से काम करने में काफी माहिर होते हैं। वो अपने और अपनी गतिविधियों के बारे में किसी को तब तक पता नहीं चलने देते जब तक कि वो खुद न चाहें। अगर यही काम हम अपने आदमियों से कराएॅगे तो हमारी किसी गतिविधी का उस लड़के को पता चलने में देर नहीं लगेगी। अब तक के उसके क्रिया कलाप से ये ज़ाहिर हो चुका है कि वो अपने हर काम में बेहद होशियारी और सतर्कता रखता है और हमारी पल पल की ख़बर रखता है। इस लिए हमें किसी डिटेक्टिव को हायर करना चाहिए।”

“आइडिया बुरा नहीं है।” अशोक ने कहा___”मैं तुम्हारी इस सलाह से सहमत हूॅ। यकीनन इस काम में एक डिटेक्टिव ही कुछ कर सकता है। वो उस लड़के की सारी जन्मकुण्डली भी निकाल लेगा और हमारे बच्चों का पता भी लगा लेगा।”

“तो फिर देर किस बात की है?” चौधरी ने कहा___”अगर तुम दोनों को लगता है कि कोई डिटेक्टिव इस काम को बखूबी सफलतापूर्वक कर सकता है तो फिर ऐसे किसी डिटेक्टिव को फौरन हायर करो।”

“मेरी जानकारी में ऐसा एक डिटेक्टिव है।” अवधेश ने कहा___”मैं आज ही उससे फोन पर बात करता हूॅ और उसे जल्द से जल्द यहाॅ बुलाता हूॅ।”

“अच्छी बात है।” चौधरी ने कहा___”उसे बोलो फौरन हमारे सामने हाज़िर हो जाए। उसको उसके काम की मुहमाॅगी फीस के रूप में रकम मिलेगी।”

अवधेश ने चौधरी की बात सुनकर अपने कोट की पाॅकेट से मोबाइल निकाला और उसमें से किसी को फोन लगाया। थोड़ी देर बात करने के बाद उसने मोबाइल वापस अपनी पाॅकेट में डाल लिया।

“चौधरी साहब।” फिर उसने मंत्री की तरफ देखते हुए कहा___”मैने डिटेक्टिव से बात कर ली है। वो कल तक हमारे पास पहुॅच जाएगा। अब आप किसी बात की फिक्र मत करें। बहुत जल्द हमारा दुश्मन हमारे कब्जे में होगा और हमारे बच्चे हमारे पास होंगे।”

“अच्छी बात है अवधेश।” चौधरी ने कहा___”अब तो हमें तुम्हारे उस डिटेक्टिव पर ही भरोसा करना है। इसके सिवा दूसरा कोई चारा भी नहीं है।”

“आप निश्चिंत हो जाइये चौधरी साहब।” अवधेश ने कहा___”डिटेक्टिव बहुत ही क़ाबिल ब्यक्ति है। मुझे यकीन है कि बिना कोई नुकसान हुए हमारा हर काम हो जाएगा।”

“इससे ज्यादा हमें और चाहिए भी क्या?” चौधरी ने कहने के साथ ही सहसा सुनीता की तरफ देखा___”इतने दिनों में आज पहली बार एक नई उम्मीद पैदा हुई है। इस लिए हम चाहते हैं कि आज तबीयत खुश कर दो तुम।”

“हाय।” सुनीता ने दाॅतों तले अपने होंठ दबा कर आह सी भरते हुए कहा___”कितनी सुंदर बात कही है मेरे बलम ने। मैं तो कब से इसके लिए तड़प रही हूॅ। अब जब मूड बन ही गया है तो चलिए कमरे में और तबीयत हरी कर लीजिए।”

सुनीता की इस बात से चौधरी तो मुस्कुराया ही उसके साथ अशोक व अवधेश भी मुस्कुरा पड़े। इसके बाद चारो ही सोफों से उठ कर कमरे की तरफ बढ़ गए।

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सुबह हुई और एक नये जीवन के नये सफ़ की शुरुआत हुई। ट्रेन की शीट पर सोते हुए मुझे ऐसा लगा जैसे मेरे ऊपर कोई झुका हुआ है। मुजे मेरे चेहरे पर गरम गरम हवा लगती हुई प्रतीत हो रही थी साथ ही किसी औरत के बदन पर लगे परफ्यूम की खुशबू भीमेरे नथुनों में समा रही थी। मेरी नींद टूटने की यही वजह थी। मैने पट से अपनी ऑखें खोल दी और अगले ही पल मैं ये देख कर बुरी तरह चौंका कि नीलम मेरे चेहरे के पास झुकी हुई थी।

उधर यही हाल नीलम का भी हुआ था। उसे कदाचित उम्मीद नहीं थी कि मैं इस तरह झटके से ऑखें खोल दूॅगा और फिर जैसे ही मैने पट से अपनी ऑखें खोली तो वो एकदम से हड़बड़ा गई थी। मगर हैरत की बात ये हुई कि उसने पलक झपकते ही खुद को सम्हाल भी लिया था।

“गुड माॅर्निंग राज।” फिर उसने मुस्कुराते हुए बड़ी नज़ाक़त से कहा___”सोते हुए कितने मासूम लगते हो तुम। मैं काफी देर से यही देख रही थी कि मेरा भाई सोते वक्त किसी छोटे से बच्चे की तरह मासम व क्यूट सा दिखता है। पहले मैने सोचा कि तुम्हें जगाऊॅ मगर फिर जब मैने देखा कि तुम गहरी नीद में हो और एकदम से मासूम दिख रहे हो तो मैने तुम्हें जगाना उचित नहीं समझा। बल्कि एकटक तुम्हें देखने लगी थी।”

“अच्छा तो मैं तुम्हें।” मैने उठते हुए किन्तु शरारत से कहा___”छोटा सा बच्चा नज़र आ रहा था सोते वक्त?”

“हाॅ बिलकुल।” नीलम ने मुस्कुराई___”तभी तो उस छोटे से बच्चे की मासूमियत को एकटक निहारे जा रही थी मैं।”

“पर मैने जब तुम्हें देखा रात में।” मैने पुनः शरारत से ही कहा___”तो तुम सोते वक्त ऐसी दिख रही थी जैसे कोई अस्सी साल की बुढ़िया सो रही हो। मैं तो टोटली कन्फ्यूज हो गया था उस वक्त।”

“क्या कहा???” नीलम एकदम से राशन पानी लेकर चढ़ दौड़ी___”मैं तुम्हें बुढ़िया नज़र आ रही थी। रुको अभी बताती हूॅ तुम्हें?”

“अरे नहीं यार।” मैंने एकदम से हड़बड़ाते हुए कहा__”मैं तो मज़ाक कर रहा था। तुम बुढ़िया तो किसी एंगिल से नहीं लगती हो मगर…।”

“मगर क्या???” नीलम ने ऑखें दिखाई।

“मगर दादी माॅ ज़रूर लगती हो।” मैने हॅसते हुए कह दिया।

“क्या बोला???” नीलम एकदम से मेरे ऊपर चढ़ कर मेरे पेट पर बैठ गई, और फिर मेरे सीने में मुक्के मारते हुए बोली___”मैं दादी माॅ लगती हूॅ। रुक बेटा बताती हूॅ अब तुझे मैं।”

नीलम मेरे सीने में मुक्के मारे जा रही थी। मैं भी उससे बचने का कोई खास प्रयास नहीं कर रहा था। मैने तो उसे छेंड़ा ही इस लिए था कि वो ये सब करे। दरअसल इन्हीं सब चीज़ों के लिए तो मैं तरसा था। अब तक तो रितू और नीलम ने कभी मुझे अपना भाई समझा ही नहीं था। भाई बहन के बीच कैसी कैसी शरारतें होती हैं उस सबका मैने कभी स्वाद ही नहीं चखा था। मगर आज और इस वक्त वही सब मेरे और नीलम के बीच हो रहा था। सच कहूॅ तो मुझे इस सबसे बेहद खुशी हो रही थी। दिल में भड़कते हुए जज़्बात जाने क्यों मुझे रुलाने पर उतारू हो रहे थे। मेरा दिल कर रहा था कि इस वक्त भावनाओं में बहते हुए मैं नीलम से लिपट कर खूब रोऊॅ मगर मैं ऐसा नहीं करना चाहता था। क्योंकि उससे माहौल दुखी सा हो जाता जबकि मैं इस पल को जी भर के जीना चाहता था।

उधर हम दोनो बहन भाई की इस धमा चौकड़ी से आस पास बैठे ट्रेन के सब लोग आश्चर्य से ऑख व मुह फाड़े एकटक देखे जा रहे थे। हम दोनो को भी जैसे उन सबसे कोई मतलब नहीं था और ना ही कोई परवाह थी। नीलम ज़ोर ज़ोर से जाने क्या क्या बोले जा रही थी और मेरे ऊपर चढ़ी हुई मुझ पर मुक्कों की बरसात किये जा रही थी। उसकी इस आवाज़ और मेरे तेज़ हॅसी को सुन कर पीछे साइड ऊपर नीचे बर्थ पर सो रहे सोनम और आदित्य को भी जगा दिया। वो दोनो फौरन ही भाग कर हमारे पास आ गए और इधर का नज़ारा देख कर हैरान रह गए।

“ये तुम दोनो क्या ऊधम मचा रखे हो?” सहसा सोनम ने लगभग ऊॅची आवाज़ में कहा___”तुम दोनो को कुछ होश भी है कि इस वक्त कहाॅ हो तुम दोनो और तुम दोनो की इस हरकत से आस पास वाले कितना डिस्टर्ब हो रहे हैं।”

“दीदी इसने मुझे दादी माॅ बोला।” नीलम ने मुक्के मारना बंद करके शिकायत भरे लहजे मे कहा___”पहले कह रहा था कि मैं बुढ़िया लगती हूॅ फिर बात बदल कर बोला कि मैं दादी माॅ लगती हूॅ।”

“हाॅ तो क्या हो गया?” सोनम दीदी ने हाॅथ नचाते हुए कहा___”उसके ऐसा कहने से क्या तुम सच में दादी माॅ लगने लगी? देखो तो अभी उसके ऊपर बैठी हुई है बेशरम। चल उतर राज के ऊपर से वरना दो चार लगाऊॅगी अभी।”

“नहीं उतरूॅगी।” नीलम ने दो टूक भाव से कहा___”इसने मुझे दादी माॅ क्यों कहा? इससे पहले बोलिए कि ये मुझे बोले कि मैं हूर की परी लगती हूॅ। वरना आप भी देखिये कि कैसे मैं इसे मार मार के इसका भुर्ता बनाती हूॅ?”

“हूर की परी और तू???” मैंने सहसा नीलम की खिल्ली उड़ाने वाले अंदाज़ से कहा___”कभी आईने में अपनी शक्ल देखी है तूने? दादी माॅ तो मैने ऐसे ही कह दिया था तुझे, वरना तो तू बिलकुल बंदरिया लगती है। यकीन न हो तो पूछ ले सोनम दीदी से।”

मेरी इस बात से जहाॅ सोनम दीदी ने अपना सिर पीट लिया वहीं नीलम की त्यौरियाॅ चढ़ गईं। वह एकदम से तमतमाए हुए बोली___”क्या कहा बंदरिया लगती हूॅ? रुक अब तो तुझे सच में नहीं छोंड़ूॅगी। दीदी आप हमारे बीच में मत पड़ना। इसे तो मैं आज छोंडूॅगी नहीं।”

सोनम दीदी चिल्लाती रह गईं जबकि नीलम ने फिर से मुझ पर मुक्कों की बरसात कर दी। मैं महसूस कर रहा था कि वो मुझे मार ज़रूर रही थी मगर बस हल्के हल्के। कदाचित उसे भी इस सबमें मज़ा आ रहा था। किन्तु वो यही ज़ाहिर कर रही थी कि वो मेरी बातों से बेहद गुस्सा हो गई है।

“सोनम दीदी इससे कहिए कि ज्यादा झाॅसी की रानी न बने।” मैने हॅसते हुए कहा___”वरना अगर मैं महाराणा प्रताप बन गया तो फिर ये रोने के सिवा कुछ न कर पाएगी, बंदरिया कहीं की।”

“ओये तू महाराणा प्रताप बन के तो दिखा।” नीलम ने ऑखें निकाली___”मैं भी झाॅसी की रानी से माॅ दुर्गा न बन जाऊॅ तो कहना। बड़ा आया महाराणा प्रताप बनने, बंदर कहीं का।”

“ओये बंदर कौन??” मैने सहसा उसके दोनो हाॅथ पकड़ते हुए कहा___”ठीक से देख आई एम विराज दि ग्रेट।”

“विराज दि ग्रेट माई फुट।” नीलम ने मेरे हाॅथ से अपना हाथ छुड़ाने की कोशिश करते हुए कहा___”छोंड़ मेरे हाथ वरना नीलम परी को गुस्सा आ जाएगा और फिर विराज दि ग्रेट को मुर्गा बना देगी समझा?”

“मैं क्यों तेरे हाथ छोंड़ूॅ??” मैने कहा___”तू खुद ही छुड़ा ले न। मैं भी तो देखूॅ कि इस बंदरिया में कितना दम है।”

“ओये तू न दम की बात न कर।” नीलम ने कहा___”मैं चाहूॅ तो दो पल में अपने हाथ छुड़ा लूॅ समझा।”

“अच्छा छुड़ा के तो दिखा।” मैने ताव दिया उसे।

“रहने दे रहने दे।” नीलम ने कहा___”वरना बाद में सब तुझ पर ही हॅसेंगे कि खुद को महाराणा प्रताप कहने वाला एक मासूम सी लड़की से हार गया।”

“कोई बात नहीं।” मैने कहा___”तुझसे हारना मंजूर है। आख़िर तू मेरी प्यारी सी बहन है न।”

“अब ये मस्का क्यों लगा रहा है?” नीलम ने चौंकते हुए कहा___”क्या नीलम परी से डर गया है?”

“डरता तो मैं उस परवर दिगार से भी नहीं।” मैने नीलम का हाथ छोंड़ कर अपने हाथ की उॅगली को ऊपर की तरफ करते हुए कहा___”मगर मुझे लगता है कि अब बाॅकी सबको बक्श देना चाहिए जो बेचारे हमारी वजह से शायद डिस्टर्ब हो रहे हैं। दूसरी बात सोनम दीदी ने डंडा उठा लिया तो फिर हम दोनो की ख़ैर नहीं रहेगी। कुछ समझ में आया नीलम परी जी?”

“अगर ऐसी बात है।” नीलम ने इस तरह कहा जैसे अहसान कर रही हो___”तो चल बक्श ही देती हूॅ तुझे भी और बाॅकी सबको भी। मगर आइंदा नीलम परी से टकराने की सोचना भी मत वरना खांमाखां बेइज्जती हो जाएगी तेरी।”

“ओये अब ज्यादा उड़ मत समझी।” मैने उसका हाथ पकड़ कर उसे अपने ऊपर से उठाते हुए कहा___”चल अब उतर नीचे।”

मेरे ऐसा कहने पर नीलम मुस्कुराते हुए मेरे ऊपर से उतर गई मगर अंदाज़ ऐसा था उसका जैसे अभी भी जता रही हो कि आइंदा याद रखना। मुझे उसके इस अंदाज़ पर बड़ी ज़ोर की हॅसी आई मगर मैने खुद को रोंक लिया। उधर सोनम दीदी और आदित्य भी ये सब देख कर मुस्कुरा रहे थे। ख़ैर कुछ ही पलों में मैं और नीलम शीट पर आराम से बैठ गए। आदित्य और सोनम भी हमारी ही शीट पर बैठ गए। आस पास बैठे सब लोग अभी भी हमें हैरानी से देख रहे थे। मैने देखा कि नीलम का चेहरा अब एकदम से खिला खिला लग रहा था। उसके होठों पर बहुत ही हल्की सी मुस्कान थी। वो बार बार मेरी तरफ देखने लगती थी। पता नहीं क्या चल रहा था उसके मन में?

“चलो सुबह तो हो गई है।” सोनम दीदी ने मानो बातों का सिलसिला शुरू किया___”इस वक्त अगर गरमा गरम चाय या काॅफी मिल जाती तो कितना अच्छा होता।”

“हाॅ दीदी।” नीलम ने कहा___”मगर यहाॅ पर अभी ये सब कैसे मिल सकता है भला?”

“चिंता मत करो।” मैने कहा___”अगले स्टाप पर जब ट्रेन रुकेगी तो चाय या काॅफी का बंदोबस्त करने की कोशिश करूॅगा मैं।”

“विराज भाई।” सहसा आदित्य ने कहा___”मैं ज़रा फ्रेश होकर आता हूॅ।”

“ओके भाई तुम जाओ।” मैने कहा___”उसके बाद मुजे भी फ्रेश होना है।”

“और हम भी तो फ्रेश होंगे।” नीलम बोल पड़ी___”इस लिए इनके बाद सबसे पहले मैं जाऊॅगी।”

“हर्गिज़ नहीं।” मैने कहा___”आदि के बाद मैं ही जाऊॅगा।”

“तू जा के दिखाना भला।” नीलम ने मानो धमकी सी दी मुझे।

“ऐ अब तुम दोनो फिर से न शुरू हो जाओ।” सोनम दीदी ने कहा था।

“पर दीदी सेकण्ड नंबर पर मैं ही जाऊॅगी।” नीलम ने बुरा सा मुह बनाया___”इसे कह दीजिए कि ये मेरे बाद चला जाएगा।”

आदित्य हम दोनो की इस बात से मुस्कुराता हुआ उठ कर फ्रेश होने चला गया। जबकि मैने सोनम दीदी के कुछ बोलने से पहले ही कहा___”हाॅ ठीक है तुम ही चली जाना। वैसे भी मुझे इतनी जल्दी नहीं है तेरे जैसे। पहले बता देती तो आदित्य को रोंक देता।”

“ओये अब तू बकवास न कर समझे।” नीलम ने ऑखे दिखाते हुए कहा___”मुझे भी इतनी जल्दी नहीं है।”

“उफ्फ।” सोनम दीदी कह उठी___”तुम दोनो फिर से शुरू हो गए। ओके फाइन अगर तुम दोनो को इतनी जल्दी नहीं है तो मैं चली जाऊॅगी एण्ड दिस इज क्लियर।”

“ये सही कहा दीदी आपने।” मैने हॅसते हुए कहा___”अब आप ही जाना फ्रेश होने। सबसे लास्ट में यही जाएगी।”

“नहींऽऽ।” नीलम एकदम से हड़बड़ा गई___”आदि भैया के बाद मैं ही जाऊॅगी।”

“क्यों अब क्या हुआ तुझे?” सोनम दीदी ने मुस्कुराते हुए कहा___”अभी तो कह रही थी न कि तुझे कोई जल्दी नहीं है तो अब क्या हुआ?”

“मैं कुछ नहीं जानती।” नीलम ने मानो फैंसला सुना दिया___”आदि भैया के बाद मैं ही जाऊॅगी और अगर आपने दोनो ने मुझे नहीं जाने दिया तो मैं यहीं पर हड़ताल कर दूॅगी।”

“उसे हड़ताल नहीं।” मैने हॅसते हुए कहा___”पोट्टी कर देना कहते हैं पगली।”

“ओये चुप कर तू।” नीलम पहले तो सकपकाई फिर घुड़की सी दी मुझे___”ज्यादा चपड़ चपड़ मत कर वरना ट्रेन के नीचे फेंक दूॅगी तुझे।”

” वैसे बात तो राज ने सही कही है।” सोनम दीदी ने मुस्कुराते हुए कहा___”उसे हड़ताल करना थोड़ी न कहते हैं।”

सोनम दीदी की इस बात से मेरी हॅसी छूट गई और मेरे साथ ही साथ सोनम दीदी भी हॅसने लगी थी। हम दोनो के हॅसने से नीलम का चेहरा देखने लायक हो गया। ऐसा लगा जैसे वो अभी रो देगी। सामने की शीट पर बैठे लोग भी मुस्कुरा उठे थे। मैने जब देखा कि नीलम कहीं सच में ही न रो दे तो मैने अपनी हॅसी रोंक कर झट से उसे खींच कर खुद से छुपका लिया।

“तुम दोनो बहुत गंदे हो।” नीलम मुझसे अलग होने की कोशिश करते हुए किन्तु रूठे हुए भाव से बोली___”जाओ मुझे तुम दोनो से अब कोई बात नहीं करनी।”

“अरे ऐसा मत करना तू।” मैने उसे मजबूती से छुपकाए हुए कहा___”हड़ताल भले ही यहीं पर कर देना।”

मेरी इस बात से इस बार सोनम दीदी की भी ज़ोरदार हॅसी छूट गई। जबकि मैं नहीं हॅसा क्योंकि मुझे पता था कि मेरे इस बार हॅसने से नीलम की हालत ख़राब हो जाएगी। मैं नहीं चाहता था कि उसका दिल दुख जाए। मुद्दतों बाद तो वो मुझे ऐसे मिली थी। नीलम ने थोड़ी देर मुझसे नाराज़गीवश अलग होने की कोशिश की फिर वो खुद ही मुझसे छुपक कर मुझे कस के पकड़ लिया। वो कुछ बोल नहीं रही थी बल्कि उसने अपनी ऑखें बंद कर ली थी।

ऐसे ही हॅसी मज़ाक करते हुए हम चारो ही बारी बारी से फ्रेश हो गए। अगले स्टाप पर ट्रेन रुकी तो मैं और आदित्य ट्रेन से उतर कर उन दोनो के लिए चाय ले आए। हम चारों ने चाय पी और फिर से बातों में मशगूल हो गए। ट्रेन अपनी गति से चलती रही। बातों बातों में समय का पता ही नहीं चला और सुबह से दोपहर होने को आ गई।

हम गुनगुन स्टेशन के पास पहुॅचने वाले थे। इस बीच नीलम फिर से गंभीर हो गई थी। मैने उसे समझा दिया कि वो सोनम दीदी को लेकर आराम से गाॅव जाए। मैने उसे खासकर ये कहा कि सारी बातों पता वो खुद ही लगाए तो बेहतर होगा। नीलम और सोनम दीदी ने मुझे अपना अपना मोबाइल नंबर दिया और मुझसे भी लिया।

गुनगुन स्टेशन पहुॅच कर ट्रेन रुकी तो हम सब ट्रेन से नीचे उतरने के लिए गेट की तरफ आए। मैने आस पास का मुआयना किया और आदित्य के साथ नीचे उतर आया। हम दोनो के उतरने के बाद नीलम भी सोनम दीदी के साथ उतर आई। मैने नीलम को बता दिया था कि यहाॅ से अब हम साथ नहीं रह सकते क्योंकि यहाॅ से मेरे लिए ख़तरा शुरू था। ख़ैर, उसके बाद मैं और आदित्य बड़ी सावधानी व सतर्कता से स्टेशन से बाहर की तरफ बढ़ चले। जबकि नीलम व सोनम दीदी हमारे काफी पीछे पीछे आ रही थी।

बाहर आकर मैने आस पास का मुआयना किया तो मुझे एक आदमी हमारी तरफ ही आता दिखा। उसकी निगाह हमारी तरफ ही थी। मैं उसे अपनी तरफ आते देख पहले तो हड़बड़ा सा गया, किन्तु जैसे ही वो कुछ पास आया तो मैं उसे पहचान गया। वो रितू दीदी के पुलिस डिपार्टमेन्ट का आदमी था। पास आते ही उसने मुझे अपने पीछे आने का इशारा किया। मैं और आदित्य उसके पीछे चल दिये। मैं आस पास भी नज़रें घुमा रहा था कि कहीं कोई ऐसा आदमी तो यहाॅ मौजूद नहीं है जो अजय सिंह से संबंध रखता हो। मगर मुझे ऐसा कोई नज़र न आया।

उस पुलिस वाले के पीछे चलते हुए हम एक टीयटा कार के पास पहुॅचे। उस आदमी ने हमें कार की पिछली शीट पर बैठने का इशारा किया। उसके इशारे पर हम दोनो कार का पिछला दरवाजा खोल कर अंदर बैठ गए। इस बीच वो पुलिस वाला भी ड्राइविंग शीट पर बैठ चुका था। कुछ ही पल में कार मंज़िल की तरफ बढ़ चली। कार के अंदर बैठ कर मैने एक बार पीछे मुड़ कर देखा मगर नीलम व सोनम दीदी कहीं नज़र न आईं मुझे। मैं उन दोनों के लिए चिंतित भी था कि वो गाॅव तक कैसे जाएॅगी? हलाॅकि मुझे पता था कि उन्हें लेने कोई न कोई बड़े पापा का आदमी आया ही होगा। मगर मैं एक बार पता कर लेना चाहता था। इस लिए मैने मोबाइल निकाल कर नीलम को फोन लगाया। दूसरी रिंग पर ही नीलम ने फोन उठा लिया। मैने उससे पूछा कि वो कहाॅ है अभी तो उसने बताया कि उसके डैड का एक आदमी जीप लेकर आया है और अब वो उसमें बैठ कर गाॅव जाने वाली है। नीलम की ये बात सुन कर मैं बेफिक्र हो गया और फिर काल कट कर दी।

टोयटा कार तेज़ रफ्तार से मंज़िल की तरफ दौड़ी जा रही थी। मैने रितू दीदी को फोन करके बताया कि मैं उनके द्वारा भेजे गए आदमी के साथ आ रहा हूॅ। रितू दीदी मेरी ये बात सुन कर खुश हो गईं और कहने लगी कि मैं जल्दी आ जाऊॅ। मैने उन्हें नीलम व सोनम दीदी के बारे में भी बताया और ट्रेन में हुई सारी बातों के बारे में भी बताया। सारी बातें सुन कर वो पहले तो ख़ामोश रहीं फिर बोली चलो जो हुआ अच्छा ही हुआ। रितू दीदी से बात करने के बाद मैने जगदीश अंकल से थोड़ी देर बात की। उन्होंने बताया कि उन्होंने अपना वो काम कर दिया है जिसके लिए मैने उन्हें कहा था। जगदीश अंकल से बात करने के बाद मैं आराम से शीट की पिछली पुश्त से पीठ टिका कर तथा ऑखें बंद कर लगभग लेट सा गया। मेरे दिमाग़ में आने वाले समय की कई सारी बातें चल रही थीं।

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उस वक्त दोपहर के एक या डेढ़ बज रहे थे जब अजय सिंह टैक्सी के द्वारा अपनी हवेली पहुॅचा था। उसका दिलो दिमाग़ बुरी तरह भन्नाया हुआ था। उसके अंदर इतना ज्यादा गुस्सा भरा हुआ था कि अगर उसका बस चले तो सारी दुनियाॅ को आग लगा दे मगर अफसोस वह ऐसा कुछ भी नहीं कर सकता था। कुछ करे तो तब जब उसे पता हो कि करना किसके साथ है? और जिसके साथ करना भी है तो वो है कहाॅ???

नीलम और सोनम तो बारह बजे ही हवेली पहुॅच गई थीं। प्रतिमा अपनी बड़ी बहन की बेटी को आज पहली बार ऑखों के सामने देख कर बेहद खुश भी हुई थी और थोड़ा दुखी भी। सोनम अपनी मौसी से इस तरह मिली थी जैसे वह उससे पहली बार नहीं बल्कि पहले भी मिल चुकी हो। शिवा तो अपनी मौसी की बेटी सोनम की खूबसूरती और उसके साॅचे में ढले जिस्म को देख कर आहें भरने लगा था। उसे अपनी मौसी की लड़की पहली नज़र में ही भा गई थी। उसका मन कर रहा था कि जाए और उसे अपनी बाहों में उठा कर सीधी बेड पर पटक कर उसके ऊपर चढ़ बैठे मगर ऐसा संभव नहीं था। प्रतिमा अपने बेटे की मनोदशा को तुरंत ही ताड़ गई थी, इस लिए उसे अकेले में ले जाकर समझाया था कि वो ऐसी कोई भी हरकत न करे जिससे उसके साथ साथ हम सबको बाद में पछताना पड़े। प्रतिमा के समझाने पर शिवा समझ तो गया था मगर ये तो वही जानता था कि बहुत देर तक वो प्रतिमा के समझाने पर रह नहीं पाएगा।

सफ़र की थकान के कारण नीलम व सोनम ने नहा धो कर थोड़ा बहुत खाना खाया और नीलम के कमरे में दोनों एक ही बेड पर सो गईं थी। उधर अजय सिंह टैक्सी से उतर कर टैक्सी वाले को उसका भाड़ा किराया दिया। यद्दपि उसके पास पैसे के नाम पर चवन्नी भी नहीं थी मगर जहाॅ से उसे छोंड़ा गया था वहाॅ से उसे इतना तो रुपया दे ही दिया गया था कि वो आराम से अपने घर पहुॅच जाए। उसका मोबाइल फोन भी उसे वापस लौटा दिया गया था। ये अलग बात थी कि उसके फोन से सिम कार्ड निकाल लिया गया था और फोन के कैन्टैक्ट लिस्ट से सारे फोन नंबर्स डिलीट कर दिये गए थे। कहने का मतलब ये कि उसका मोबाइल फोन फिलहाल महज एक डमी बन कर रह गया था। ना तो वो किसी को फोन कर सकता था और ना ही उसके पास किसी का फोन आ सकता था। यही वजह थी कि अजय सिंह का दिमाग़ बुरी तरह भन्नाया हुआ था।

टैक्सी से जब अजय सिंह उतरा तो हवेली में तैनात उसके आदमी हैरान रह गए। भाग कर उसके पास आए और हाल अहवाल पूछने लगे। मगर भन्नाए हुए अजय सिंह ने सबको डाॅट डपट कर अपने पास से भगा दिया और पैर पटकते हुए मुख्य दरवाजे के पहुॅचा। दरवाजे को ज़ोर से लात मारी उसने। दरवाजा कदाचित अंदर से बंद नहीं था इसी लिए लात का ज़ोरदार प्रहार पड़ते ही उसके दोनो पल्ले खुलते चले गए। दरवाजे के खुलते ही अजय सिंह ज़मीन को रौंदते हुए अंदर की तरफ बढ़ गया।

उधर ड्राइंगरूम में बैठी प्रतिमा बाहर ज़ोर की आवाज़ सुनकर चौंक पड़ी थी। अभी वह ये देखने के लिए सोफे से उठने ही वाली थी सहसा उसे ठिठक जाना पड़ा। सामने से आते अजय सिंह पर नज़र पड़ते ही वह हैरत से बुत सी बन गई। जबकि अजय सिंह आते ही सोफे पर धम्म से लगभग गिर सा पड़ा। धम्म की आवाज़ से ही प्रतिमा की तंद्रा टूटी और वह फिरकिनी की मानिंद अपनी एड़ियों पर घूमी। सोफे पर पसरे अपने पति को अस्त ब्यस्त हालत में देख कर एक बार वो पुनः हैरान हुई फिर जैसे उसने खुद को सम्हाला और एकदम से मानो बदहवाश सी होकर अजय सिंह की तरफ तेज़ी से बढ़ी।

“अ…अजय।” अजय सिंह के पास पहुॅचते ही वह लरजते हुए स्वर में बोल पड़ी___”तु..तुम अ आ गए???”

प्रतिमा के इस तरह पूछने पर अजय सिंह कुछ न बोला बल्कि अपनी ऑखें बंद किये सोफे की पिछली पुश्त से पीठ टिकाए अधलेटा सा पसरा रहा। उसके कुछ न बोलने पर प्रतिमा बुरी तरह घबरा गई। वो झट से अजय सिंह के बगल से बैठी और अजय सिंह के कंधे पर अपना एक हाॅथ रखते हुए बोली___”तुम कुछ बोलते क्यों नहीं अजय? तुम ठीक तो हो न? और…और इस तरह अचानक तुम वहाॅ से कैसे आ गए?”

प्रतिमा के दूबारा पूछने पर भी अजय सिंह कुछ न बोला। उसकी ये ख़ामोशी प्रतिमा की मानो जान लिए जा रही थी। उसका गला भर आया। आवाज़ भारी हो गई तथा ऑखों में ऑसू उमड़ आए।

“अजऽऽऽय।” फिर उसने रुॅधे हुए गले से किन्तु अजय सिंह को झकझोरते हुए लगभग चीख ही पड़ी___”क्या हो गया है तुम्हें? कुछ तो बोलो। तुम इस तरह यहाॅ कैसे आ गए? तुम तो सीबीआई की गिरफ्त में थे न फिर तुम यहाॅ कैसे? कहीं….कहीं तुम उनकी गिरफ्त से भाग कर तो नहीं आ गए हो? अगर ऐसा है तो ये तुमने ठीक नहीं किया अजय। कानून तुम्हें इसके लिए मुआफ़ नहीं करेगा। बल्कि इस तरह भाग कर आने से तुम्हें शख्त से शख्त सज़ा देगा।”

“मैं कहीं से भाग कर नहीं आया हूॅ प्रतिमा।” अजय सिंह ने सहसा खीझते हुए कहा___”बल्कि मुझे उन लोगों ने खुद ही छोंड़ दिया है।”

“क..क..क्या????” प्रतिमा बुरी तरह उछल पड़ी___”उन लोगों ने तुम्हें खद ही छोंड़ दिया? ऐसा कैसे हो सकता है? सीबीआई के वो लोग तुम्हें ऐसे कैसे छोंड़ सकते हैं? बात कुछ समझ में नहीं आई अजय। आख़िर ये क्या माज़रा है? क्या चक्कर है ये?”

“सच कहा प्रतिमा।” अजय सिंह अजीब भाव से कह उठा___”ये चक्कर ही तो है।”

“क्या मतलब??” प्रतिमा चौंकी।

“सच्चाई सुनोगी तो तुम्हारे पैरों तले से ये ज़मीन गायब हो जाएगी।” अजय सिंह ने कहा___”ये सीबीआई का जो मामला हुआ है न ये सब महज एक चाल थी मुझे किसी मकसद के तहत इस सबसे दूर करके कैद करने की।”

“ये क्या कह रहे तुम अजय?” प्रतिमा की के चेहरे पर आश्चर्य मानो ताण्डव करने लगा था___”ये सब एक चाल थी? पता नहीं क्या अनाप शनाप बोल रहे हो तुम।”

“मैं अनाप शनाप नहीं बोल रहा प्रतिमा।” अजय सिंह ने सहसा आवेश में आकर कहा___”यही सच है। जो सीबीआई वाले मुझे गिरफ्तार करने आए थे वो सब नकली थे। उनका सीबीआई से कोई ताल्लुक नहीं था। जबकि मैं और तुम सब यही समझे थे कि वो सब सीबीआई के ऑफिसर थे।”

“हे भगवान।” प्रतिमा ने मुख से बेशाख्ता निकल गया___”इतना बड़ा धोखा। अगर वो सीबीआई के लोग नहीं थे तो फिर कौन थे वो? और वो लोग तुम्हें यहाॅ से पकड़ कर क्यों ले गए थे और कहाॅ ले गए थे? आख़िर ये सब करने के पीछे उनका क्या मकसद था? कहीं ये सब हमारी बेटी रितू ने तो नहीं करवाया?”

“नहीं प्रतिमा।” अजय सिंह ने कहा___”ये काम रितू का नहीं है बल्कि ये सब उस हरामज़ादे विराज किया धरा था।”

“ये क्या कह रहे हो तुम?” प्रतिमा बुरी तरह चौंकी थी, बोली___”भला वो ये सब कैसे कर सकता है?”

“क्यों नहीं कर सकता?” अजय सिंह उल्टा प्रतिमा पर ही हवाल लेकर चढ़ बैठा___”तुम्हीं तो कहा करती थी न कि इस सबके पीछे अगर कोई हो सकता है तो वो है विराज। वही है जो हमारा अहित करना चाहता है क्योंकि हमने उसके साथ अत्याचार किया है?”

“हाॅ मगर।” प्रतिमा गड़बड़ा सी गई___”ये सब भी कर सकता है वो ये तो नामुमकिन सी बात है अजय।”

“ये सब उसी ने करवाया है प्रतिमा।” अजय सिंह ने कहा___”क्योंकि जिस जगह मुझे रखा गया था वो सब उसी का ज़िक्र कर रहे थे। मैं ये सोच सोच कर आश्चर्यचकित था कि उस नामुराद के ऐसे लोगों से संबंध कैसे हो सकते हैं। आख़िर वो कमीना इतने कम समय में ऐसा कौन सा सूरमा बन गया है जिसके इशारे पर उसका हर काम हो जाए?”

“तुम क्या कह रहे हो अजय मुझे कुछ भी समझ में नहीं आ रहा।” प्रतिमा ने अपने बाल नोंच लेने वाले अंदाज़ से कहा था।

“कमाल की बात है।” अजय सिंह ने कहा___”अपने आपको दिमाग़ की जादूगरनी समझने वाली को आज मेरी ये बातें समझ में ही नहीं आ रहीं। ख़ैर, बात ये है ये जो कुछ भी हुआ है उसमें सिर्फ और सिर्फ उस गौरी के पिल्ले का ही हाॅथ है। मुझे ये नहीं समझ में आ रहा कि उस कमीने ने आख़िर किस मकसद के तहत मुझे दो दिन के लिए सीबीआई के नकली जाल में फॅसा कर कैद में रखा और फिर आज छोंड़ भी दिया।”

“ये तो सचमुच बड़े आश्चर्य की बात है अजय।” प्रतिमा ने चकित भाव से कहा___”सचमुच ये सोचने वाली बात है कि उसने किस वजह से ऐसा किया होगा? हलाॅकि वो चाहता तो बड़ी आसानी अपना बदला तुम्हारी जान लेकर ले सकता था और तुम यकीनन कुछ नहीं कर सकते थे। मगर उसने ऐसा कुछ भी नहीं किया बल्कि उल्टा तुम्हें बिना कोई नुकसान पहुॅचाए छोंड़ भी दिया। ये ऐसी बात है अजय जो आसानी से हजम नहीं हो सकती। हम जिस चीज़ को बेतुकी और ना क़ाबिले ग़ौर बात समझ रहे हैं उसमें कुछ तो पेंच ज़रूर है। बेवजह तो औसने ये सब नहीं किया होगा। ज़रूर ये सब करके उसने अपना कोई अहम कार्य सिद्ध किया होगा। कोई ऐसा कार्य जो फिलहाल हमारी सोच क्या कल्पना से भी कोसों दूर है।”

“यकीनन तुम्हारी बात में सच्चाई है।” अजय सिंह ने कहा___”इस सबसे एक बात ये भी ज़ाहिर होती है कि वो अब भी यहीं है और शायद इस वक्त रितू के साथ ही है।”

“अच्छा ये बताओ।” प्रतिमा ने पहलू बदला___”कि जो सीबीआई के लोग बन कर आए थे वो लोग तुम्हें लेकर कहाॅ गए थे?”

“इस बारे में मुझे कुछ भी नहीं पता चल सका।” अजय सिंह ने हताश भाव से कहा था।

“क्या मतलब??” प्रतिमा पुनः बुरी तरह चौंकी थी।

“उन लोगों ने सब कुछ पहले से प्लान किया हुआ था प्रतिमा।” अजय सिंह ने गहरी साॅस ली___”जब वो लोग मुझे यहाॅ से अपनी कार में बैठा कर ले जा रहे थे तभी किसी ने पीछे से मुझे बेहोश कर दिया था और फिर जब मेरी ऑख खुली तो मुझे कुछ भी समझ में नहीं आया कि मैं किस जगह आ गया हूॅ? वहाॅ जिस जगह पर मैं था वहाॅ एक कमरा था जो कि किसी फाइव स्टार होटल के कमरे से हर्गिज़ भी कम न था। कमरे में दूसरा कोई नहीं था। ऐसा नहीं था कि मैं वहाॅ पर कहीं आ जा नहीं सकता था। बल्कि कहीं भी आ जा सकता था मगर उस जगह से बाहर की दुनियाॅ में जाने का जैसे कोई रास्ता ही नहीं था। कमरे से बाहर जहाॅ भी गया हर तरफ ब्लैक कलर की वर्दी में नकाबपोश अपने हाथों में गन लिए तैनात थे। वो किसी से कोई बात नहीं करते थे। जो सीबीआई के ऑफिसर बन कर आए थे उनका कहीं पता ही नहीं था। मैं उन गनधारी नकाबपोशों से चीख चीख कर पूछता रहा कि मुझे यहाॅ किस लिए लाया गया है मगर कोई कुछ बोलता ही नहीं था। उस दिन तो सारा दिन और रात मैं पागलों की तरह ही उन सबके सामने चीखता चिल्लाता रहा। फिर जब मुझे लगा कि यहाॅ पर मेरे चीखने चिल्लाने का कोई असर नहीं होने वाला तो मैं ख़ामोश हो गया। इतना तो मुझे भी पता था कि वजह कोई भी हो वो मेरे सामने ज़रूर आएगी। इस लिए ये सोच कर मैं वापस कमरे में चला गया और अपने वहाॅ होने की वजह जानने का इन्तज़ार करने लगा। वहाॅ पर जब भी मुझे किसी चीज़ की ज़रूरत होती वो मुझे मिल जाती थी। मैं आज़ाद तो था मगर फिर भी कैद ही था वहाॅ। मेरा मोबाइल फोन मेरे पास से गायब था। अतः मैं किसी अपने से कोई काॅटैक्ट भी नहीं कर सकता था।”

“ओह तो फिर आज तुम्हें उन लोगों ने कैसे छोंड़ दिया?” प्रतिमा ने पूछा___”क्या तुम्हें पता चला कि उन लोगों ने तुम्हें क्यों पकड़ा था? और सबसे बड़ी बात ये कि तुम्हें ये कैसे पता चला कि वो सब विराज का किया धरा था?”

“आज ही पता चला।” अजय सिंह ने कहा___”मैं वहाॅ पर कमरे में रखे अलीशान बेड पर लेटा हुआ था कि तभी कमरे में दो गनधारी नकाबपोश आए और मैने पहली बार उनके मुख से उनकी आवाज़ सुनी। उनमें से एक ने कहा कि मैं बाहर आऊ। मुझसे मिलने उनके कुछ साहब लोग आए हैं। मैं उस गनधारी नकाबपोश की ये बात सुनकर जल्दी से बेड पर उठ बैठा। अड़तालीस घंटे में ये पहला अवसर था जब मुझे किसी से ये जानने का अवसर मिलने वाला था कि मुझे यहाॅ क्यों लाया गया है? अतः मैं उन दोनो गनधारियों के साथ कमरे से बाहर आ गया। बाहर लंबे चौड़े हाल के बीचो बीच एक मध्यम साइज़ की टेबल रखी थी तथा उसके चारो तरफ कुर्सियाॅ रखी हुई थी। मैने टेबल और कुर्सियाॅ उस हाल में पहली बार ही देखा था। टेबल के एक तरफ की चारों कुर्सियों पर एक एक कोटधारी आदमी बैठा था। मैं जब उनके पास पहुॅचा तो उनमें से एक ने मुझे अपने सामने बैठने का इशारा किया। ये वही लोग थे जो मुझे यहाॅ से सीबीआई ऑफिसर बन कर ले गए थे। सच कहूॅ तो उस वक्त उन चाओं को देख कर मुझे बेहद गुस्सा आया मगर मैंने फिर खुद पर बड़ी मुश्किल से काबू किया।

“कहो अजय सिंह।” उन चार में से एक ने बड़ी जानदार मुस्कान के साथ मुझसे कहा___”यहाॅ किसी प्रकार की कोई परेशानी तो नहीं हुई न तुम्हें?”

“मेरी परेशानी की अगर इतनी ही फिक्र होती तुम लोगों को।” मैने आवेशयुक्त भाव से कहा___”तो मुझे इस तरह धोखे से पकड़ कर नहीं लाते यहाॅ।”

“ओह आई सी।” उसने खेद प्रकट करते हुए कहा__”माफ़ करना अजय सिंह। हमें तुम्हारे साथ धोखे के रूप में वो वैसी ज्यादती करनी पड़ी। मगर इसमें भी हमारी कोई ग़लती नहीं थी डियर। दरअसल हमारे विराज सर का ही आदेश था हम तुम्हें इस प्रकार हवेली से गिरफ्तार करके यहाॅ ले आएॅ।”

“वि..विराज..सर???” मैं उसकी ये बात सुन कर एकदम से भौचक्का सा रह गया था।

“अरे तुम हमारे विराज सर को नहीं जानते क्या?” एक अन्य ने मुस्कुराते हुए कहा___”कमाल है अजय सिंह। तुम अपने भतीजे को ही नहीं जातने। ये तो बड़ी हैरत की बात है। जबकि हमारे विराज सर तुमसे इतना स्नेह व लगाव रखते हैं कि वो तुम्हें यहाॅ पर किसी भी तरह की तक़लीफ़ नहीं देना चाहते थे। उनका शख्त आदेश था कि तुम्हें यहाॅ पर किसी भी तरह की कोई परेशानी न होने पाए। तभी तो हमने उनके कहने पर तुम्हारे लिए यहाॅ फाइव स्टार होटल से भी बेहतर सुविधाएॅ मुहैया कराई थी।”

“तो तुम्हारा मतलब है कि ये सब तुमने विराज के आदेश पर किया है?” मैं मन ही मन हैरान था, किन्तु प्रत्यक्ष में कठोर भाव से पूछ रहा था___”मगर क्यों?”

“तुम्हारे इस क्यों का जवाब तो हमारे पास है ही नहीं अजय सिंह।” उस आदमी ने कहा___”हमने तो बस उतना ही किया है जितना कि विराज सर ने हमें करने के लिए कहा था। इसके पीछे उनकी क्या मंशा थी ये तो वहीं बेहतर तरीके से बता सकते हैं तुम्हें।”

“अच्छा।” मैने कहा___”तो फिर बुलाओ उसे। मैं उससे पूछना चाहता हूॅ कि उसने क्या सोच कर ये सब किया है?”

“उन्हें यहाॅ बुलाने की हिम्मत तो हममें नहीं है।” एक अन्य ने कहा___”हाॅ मगर एक आदेश और आया है उनका हमारे लिए। वो ये कि तुम्हें बाइज्ज़त यहाॅ से आज़ाद कर दिया जाए। इस लिए अब हम वही करने वाले हैं। यानी कि अब तुम्हें आज़ाद कर दिया जाएगा। मगर क्योंकि हम अपना हर काम सीक्रेट तरीके से करते हैं इस लिए तुम्हें पुनः बेहोश करना पड़ेगा हमें।”

मैं उसकी ये बात सुनकर बुरी तरह हैरान रह गया। तभी किसी ने पीछे से मेरी नाॅक में कुछ लगा दिया। जैसे ही मैने नाॅक से साॅस ली उसके कुछ ही पलों बाद मैं बेहोशी के समंदर में डूबता चला गया। जब मेरी ऑख खुली तो मैं अब किसी दूसरी जगह पर खुद को मौजूद पाया। मेरे आस पास बड़े बड़े पेड़ पौधे लगे हुए थे। मैं ये देख कर पहले तो चौंका फिर उठ कर आस पास का जायजा लेने लगा। मैं ये देख कर उछल पड़ा कि मैं किसी जंगल के हिस्से पर पड़ा था। बाएॅ तरफ लगभग पचास या साठ गज की दूरी पर ही एक सड़क नज़र आ रही थी।

अस्त ब्यस्त हालत में मैं कुछ देर वहीं पर बैठा अपने साथ घटी पिछली सभी बातों के बारे में सोचता रहा। उसके बाद मैं किसी तरह उठा और कुछ दूरी पर नज़र आ रही सड़क की तरफ चल दिया। मैं ये समझ चुका था कि उन लोगों ने मुझे आज़ाद कर दिया था। मुझे बेहोश इस लिए किया गया था ताकि मैं उस जगह के बारे में कतई न जान सकूॅ कि उन लोगों ने मुझे कहाॅ पर रखा था। मैं ये भी समझ चुका था कि मैं चाह कर भी अब उन लोगों तक नहीं पहुॅच सकता जो लोग नकली सीबीआई के ऑफिसर बन कर हवेली से मुझे गिरफ्तार करके ले गए थे।

सड़क पर आकर मैं किनारे पर ही खड़ा हो गया और सड़क के दोनो तरफ देखने लगा। मुझा अपने मोबाइल का ख़याल आया तो अनायास ही मेरे दोनो हाथ मेरी पैंट के दोनो पाॅकेट पर रेंग गए। मैं ये जान कर चौंका तथा हैरान हुआ कि मोबाइल मेरी बाई पाॅकेट में मौजूद है। मैने जल्दी से उसे निकाला और स्विच ऑन किया। मगर मैं ये देख कर भौचक्का रह गया कि मोबाईल में मौजूद दोनो सिम कार्ड गायब थे। उसमे नेटवर्क होने का सवाल ही नहीं था। मैने फोन में काॅटैक्ट लिस्ट देखा तो मेरे होश उड़ गए। क्योंकि उसमे से सारे नंबर टिलीट कर दिये गए थे। कहने का मतलब ये कि मैं मौजूदा हालत में किसी को ना तो फोन कर सकता था और ना ही मेरे मोबाइल फोन पर किसी का फोन आ सकता था। ये देख कर मेरा खून खौल गया। उन लोगों पर मुझे भयानक गुस्सा आ गया। ऊपर से साले ऐसी जगह मुझे फेंक दिया था जहाॅ से किसी वाहन का आना जाना भी लगभग न के बराबर था।

सड़क पर मैं घंटों खड़ा रहा किसी वाहन के इन्तज़ार में मगर कोई भी वाहन आता जाता नज़र न आया। प्रतिपल उस हालत में मेरे अंदर गुस्सा बढ़ता ही जा रहा था। आख़िर डेढ़ घंटे इन्तज़ार करने के बाद एक टैक्सी आती हुई नज़र आई। उसे देख कर मुझे थोड़ी राहत तो हुई मगर अगले ही पल ये सोच कर मैं मायूस हो गया कि इस वक्त किसी वाहन में जाने के लिए मेरे पास फूटी कौड़ी भी नहीं है। इसके बावजूद मैने अपनी सभी पाॅकेट पर हाॅथ फेरा और अगले ही पल मैं चौंका। पैन्ट की पिछली जेब में मुझे कुछ महसूस हुआ। मैने फौरन ही उस चीज़ को निकाला तो मुझे एक पाॅच सौ का नोट नज़र आया।

पाॅच सौ का नोट उस वक्त मैं इस तरह देख रहा था जैसे मैने कभी उसे देखा ही न हो और सोचने लखा था कि इस प्रकार का ये काग़ज आख़िर है क्या चीज़? ख़ैर, वो टैक्सी जब मेरे क़रीब पहुॅचने को हुई तो मैने उसे रुकने के लिए हाॅथ से इशारा किया। मेरे इशारे पर वो टैक्सी मेरे पास पहुॅच कर रुक गई। मैने देखा कि उसमें जो ड्राइवर था वो कोई पैंतीस के आस पास का काला सा आदमी था। टैक्सी को रुकते ही उसने विंडो से अपना सिर बाहर की तरफ निकाल कर मुझसे पूछा कहाॅ जाना है? मैने उसे पता बताया तो उसने अंदर बैठने का इशारा किया। लेकिन उससे पहले ये बताना न भूला था कि भाड़ा पाॅच सौ रुपये लगेगा। मैं उसके भाड़े का सुन कर मन ही मन चौंका। मगर बोला यही कि ठीक है भाई ले लेना मगर मुझे बताए गए पते पर पहुॅचा दो। बस ये कहानी थी।”

“बड़ी हैरत व बड़ी अजीब कहानी है।” प्रतिमा ने सोचने वाले भाव से कहा___”इसका मतलब उन लोगों ने तुमें ऐसी जगह छोंड़ा था जहाॅ से अगर कोई वाहन मिलता भी तो वो तुमसे भाड़े के रूप पाॅच सौ रुपये ही माॅगता और इसी लिए उन लोगों ने तुम्हारी जेब में पाॅच सौ रुपये डाल दिये थे ताकि तुम आराम से यहाॅ तक पहुॅच सको। ये तो कमाल ही हो गया अजय।”

“कमाल तो हो ही गया।” अजय सिंह ने सोचने वाले अंदाज़ में कहा___”मगर मुझे ऐसा लगता है जैसे वो टैक्सी वाला भी साला उन्हीं का आदमी था। क्योंकि जिस रास्ते पर वो मिला था उस रास्ते पर डेढ़ घंटे इन्तज़ार करने के बाद ही उस टैक्सी के रूप में वाहन मिला था। टैक्सी पर कोई दूसरी सवारी नहीं थी बल्कि ड्राइवर के अलावा सारी टैक्सी खाली ही थी।”

“बिलकुल ऐसा हो सकता है अजय।” प्रतिमा के मस्तिष्क में जैसे झनाका सा हुआ था, बोली___”यकीनन वो टैक्सी और वो टैक्सी ड्राइवर उन लोगों का ही आदमी था। अगर ऐसा है तो इसका मतलब ये भी हुआ कि पाॅच सौ रुपया जहाॅ से आया था तुम्हारे पास वो वापस वहीं लौट भी गया। क्या कमाल का गेम खेला है उन लोगों ने।”

“उन लोगों ने नहीं प्रतिमा।” अजय सिंह ने कहा___”बल्कि उस हरामज़ादे विराज ने। मुझे तो अब तक यकीन नहीं हो रहा कि वो सब विराज के आदमी हैं और विराज के ही हुकुम पर उन लोगों ने ये संगीन कारनामा अंजाम दिया था। तुम ही बताओ प्रतिमा क्या तुम सोच सकती हो कि कल का छोकरा कहीं पर बैठे बैठे ऐसा कोई कारनामा कर सकता है?”

“बेशक नहीं सोच सकती अजय।” प्रतिमा ने गंभीरता से कहा___”मगर शुरू से लेकर अब तक की उसकी सारी गतिविधियाॅ ऐसी रही हैं कि अब अगर वो कुछ भी अविश्वसनीय करे तो सोचा जा सकता है। इससे एक बात ये भी साबित होती है कि वो कोई मामूली चीज़ नहीं रह गया है। या तो उसे किसी पहुॅचे हुए ब्यक्ति का आशीर्वाद प्राप्त है या फिर सच में वो इतना क़ाबिल हो गया है कि वो आज के समय में हर चीज़ अफोर्ड कर सकता है।”

“यही तो हजम नहीं हो रहा प्रतिमा।” अजय ने झुंझलाहट के मारे कहा___”इतने कम समय में आख़िर उसने ऐसा क्या पा लिया है जिसके बलबूते पर वो कुछ भी कर सकने की क्षमता रखता है? आज के समय में सच्चाई और नेकी कक राह पर चलते हुए इतनी बड़ी चीज़ अथवा कामयाबी नहीं पाई जा सकती। ज़रूर वो कोई ग़लत काम कर रहा है। हाॅ प्रतिमा, ग़लत कामों के द्वारा ही कम समय में बड़ी बड़ी चीज़ें हाॅसिल होती हैं, फिर भले ही चाहे उन बड़ी बड़ी चीज़ों की ऊम्र छोटी ही क्यों न हो।”

“यकीनन अजय।” प्रतिमा ने कहा___”ऐसा ही लगता है। मगर सबसे बड़े सवाल का जवाब तो अभी तक नहीं मिला न।”

“कौन सा सवाल?” अजय सिंह चौंका।

“यही कि उसने तुम्हारे साथ।” प्रतिमा ने कहा___”मेरा मतलब है कि उसने तुम्हें नकली सीबीआई वालों के द्वारा गिरफ्तार करवा के दो दिन तक किसी गुप्त कैद में रखा तो इसमें उसका क्या मकसद छिपा था? आख़िर उसने तुम्हें कैद करवा के अपना कौन सा उल्लू सीधा किया हो सकता है? हमारे लिए ये जानना बेहद ज़रूरी है अजय। आख़िर पता तो चलना ही चाहिए इस सबका।”

“पता चलना तो चाहिए।” अजय सिंह ने कहा___”मगर कैसे पता चलेगा? हमारे पास ऐसा कोई छोटा से भी छोटा सबूत या क्लू नहीं है जिसके आधार पर हम कुछ जान सकें।”

“एक सवाल और भी है अजय।” प्रतिमा ने कुछ सोचते हुए कहा___”जो कि कुछ दिनों से मेरे दिमाग़ में चुभ सा रहा है।”

“ऐसा कौन सा सवाल है भला?” अजय सिंह के माथे पर शिकन उभरी।

“यही कि हमारी बेटी रितू।” प्रतिमा ने कहा___”जब से हमसे खिलाफ़ हुई है तब से वो घर वापस नहीं आई। तो सवाल ये है कि वो रहती कहाॅ है? मुझे लगता है कोई ऐसी जगह ज़रूर है जहाॅ पर वो नैना और विराज के साथ रह रही है। ऐसी कौन सी जगह हो सकती है?”

प्रतिमा की इस बात से अजय सिंह उसे इस तरह देखता रह गया था मानो प्रतिमा के सिर पर अचानक ही दिल्ली का लाल किला आकर खड़ा हो गया हो। फिर जैसा उसे होश आया।

“सवाल तो यकीनन वजनदार है।” फिर अजय सिंह ने कहा___”मगर संभव है कि वो यहीं कहीं आस पास ही किसी के घर में कमरा किराये पर लिया हो और हमारे पास रह कर ही वो हमारी हर गतिविधी पर बारीकी से नज़र रख रही हो।”

“हो सकता है।” प्रतिमा ने कहा___”मगर हमारे इतने क़रीब रहने की बेवकूफी वो हर्गिज़ भी नहीं कर सकती जबकि उसे बखूबी अंदाज़ा हो कि पकड़े जाने पर उसके साथ साथ नैना और विराज का क्या हस्र हो सकता है। इस लिए इस गाॅव में वो किसी के घर में पनाह नहीं ले सकती।”

“इस गाॅव में न सही।” अजय सिंह बोला___”किसी ऐसे गाॅव में तो पनाह ले ही सकती है जो हमारे इस हल्दीपुर गाॅव के करीब भी हो और वो बड़ी आसानी से हमारी हर मूवमेन्ट को कवरप कर सके।”

“हाॅ ये हो सकता है।” प्रतिमा ने कहा___”किसी दूसरे गाॅव में वो यकीनन रह रही है और हम पर बारीकी से नज़र रखे हुए है। ख़ैर छोंड़ो ये सब बातें, मैं ये कह रही हूॅ कि आज तुम्हारे ससुर जी आ रहे हैं।”

“क क्या???” अजय सिंह उरी तरह चौंका___”स ससुर जी? मतलब कि तुम्हारे पिता जगमोहन सिंह जी??”

“हाॅ डियर।” प्रतिमा ने सहसा खुश होते हुए कहा___”आज वर्षों बाद मैं अपने पिता जी से मिलूॅगी। मगर अजय मुझे अंदर से ऐसा लग रहा है जैसे मैं उनके सामने जा ही नहीं पाऊॅगी। तुम तो जानते हो कि मैने तुमसे शादी उनकी मर्ज़ी के खिलाफ़ जाकर तथा उनसे हर रिश्ता तोड़ कर की थी। इतने वर्षों के बीच कभी भी मैने उनसे न मिलने की कोशिश की और ना ही कभी उनसे फोन पर बात करने की। ये एक अपराध बोझ है अजय जिसके चलते मुझमें हिम्मत नहीं है कि मैं अपने पिता का सामना कर सकूॅ।”

“पर मैं इस बात से हैरान हूॅ।” अजय सिंह ने चकित भाव से कहा___”कि इतने वर्षों बाद उन्हें अपनी बेटी की याद कैसे आई और यहाॅ आने का विचार कैसे आया उनके मन में?”

“ये सब मेरी वजह से ही हुआ है अजय।” प्रतिमा ने कहा___”दरअसल जब तुम्हें सीबीआई के वो लोग गिरफ्तार करके ले गए थे तब मैं बहुत परेशान व घबरा गई थी। मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि कैसे मैं तुम्हें सीबीआई की कैद से आज़ाद कराऊॅ? तब पहली बार मुझे अपने पिता का ख़याल आया। हाॅ अजय, तुम तो जातने हो कि मेरे पिता जी बहुत बड़े वकील हैं। कैसा भी केस हो उनके अंडर में आने के बाद उनका मुवक्किल बाइज्ज़त बरी ही होता है। इस लिए मैने सोचा कि तुम्हें कानून की उस गिरफ्त से छुड़ाने के लिए मुझे अपने पिता से ही मदद लेनी चाहिए। मगर चूॅकि मैने उनसे अपने हारे संबंध वर्षों पहले ही तोड़ लिये इस लिए हिम्मत नहीं हो रही थी उनसे बात करने की।”

“ओह।” अजय सिंह हैरत से बोला___”फिर क्या हुआ?”

अजय सिंह के पूछने पर प्रतिमा ने सारा किस्सा बता दिया उसे। ये भी कि कैसे उसके चक्कर खा कर गिरने पर शिवा ने रिऐक्ट किया जिसके तहत उसके पिता जी भी घबरा गए और फिर उन्होंने तुरंत यहाॅ आने के लिए कहा। उनके पूछने पर ही शिवा ने उन्हें यहाॅ का पता भी बताया था। सारी बातें सुन कर अजय सिंह अजीब सी हालत में सोफे पर बैठा रह गया।

“ये तुमने अच्छा नहीं किया प्रतिमा।” फिर अजय सिंह मानो गंभीरता की प्रतिमूर्ति बना बोला___”मैं इस बात से दुखी नहीं हुआ हूॅ कि मेरे सुसर और तुम्हारे यहाॅ आ रहे हैं बल्कि दुखी इस बात पर हुआ हूॅ कि ऐसे हालात में उनका आगमन हो रहा है। तुमें तो सब पता ही है डियर हमारे हालातों के बारे में। तुम्हारे पिता एक तेज़ तर्रार व क़ाबिल वकील हैं तथा उनका दिमाग़ तेज़ गति से काम करता है। इस लिए अगर इस हालातों के संबंध में कोई एक बात शुरू हुई तो समझ लो कि फिर उस बात से और भी बहुत सी बातें शुरू हो जाएॅगी। उस सूरत में हमारी हालत और भी ख़राब हो सकती है। हम भला ये कैसे चाह सकते हैं कि हमारी असलियत उनके सामने फ़ाश हो जाए?”

“तुम सच कह रहे हो अजय।” प्रतिमा को भी जैसे वस्तु- स्थिति का एहसास हुआ___”इस बारे में तो मैने सोचा ही नहीं था। सोचने का ख़याल ही नहीं आया अजय। हालात ही ऐसे थे कि मुझे मजबूर हो कर अपने पिता डी से बात करनी पड़ी और उन्होंने यहाॅ आने का भी कह दिया। दूसरी बात मुझे तो ये ख्वाब में भी उम्मीद नहीं थी कि तुम आज वापस इस तरह आ जाओगे। वरना मैं अपने पिता को फोन ही नहीं करती।”

“इसमें तुम्हारी कोई ग़लती नहीं है डियर।” अजय सिंह ने गहरी साॅस ली___”तुमने जो कुछ भी किया उसमें सिर्फ तुमहारी अपने पति के प्रति चिंता व फिक्र थी। ख़ैर अब जो हो गया सो हो गया मगर अब हमें बड़ी ही होशियारी और सतर्कता से काम लेना होगा। तुम उन्हें ये नहीं बताओगी कि कल तुमने उन्हें किस वजह हे फोन किया था बल्कि यही कहोगी कि तुम्हें उनकी बहुत याद आ रही थी। दूसरी बात शिवा को भी समझा दो कि वो उनके सामने ऐसी कोई भी बात न करे जिससे किसी भी तरह की बात खुलने का चाॅस बन जाए।”

“हमारी दूसरी बेटी नीलम भी तो आज आ गई है मुम्बई से।” प्रतिमा ने कहा___”इतना ही नहीं उसके साथ में मेरी बहन की बेटी सोनम भी है।”

“क्या????” अजय सिंह चौंका।

“हाॅ अजय।” प्रतिमा ने बेचैनी से कहा___”वो दोनो ऊपर कमरे में इस वक्त सो रही हैं।”

“अरे तो तुम उनके पास जाओ।” अजय सिंह एकदम से फिक्रमंद हो उठा था, बोला___”और उन दोनो को अच्छी तरह समझा दो कि वो दोनो अपने नाना जी के सामने हालातों के संबंध में किसी भी तरह की कोई बात नहीं करेंगी।”

“ठीक है।” प्रतिमा ने सोफे से उठते हुए कहा___”मैं अभी जाती हूॅ उनके पास और सब कुछ समझाती हूॅ उन्हें।”

ये कह कर प्रतिमा तेज़ तेज़ क़दमों के साथ ऊपर के कमरे में जाने के लिए सीढ़ियों की तरफ बढ़ गई। जबकि उसके जाने के बाद अजय सिंह एक बाथ पुनः असहाय सा सोफे की पिछली पुश्त से पीठ टिका कर पसर गया था। चेहरे पर चिंता व परेशानी के भाव गर्दिश करते हुए नज़र आ रहे थे।

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