♡ एक नया संसार ♡
अपडेट………《 42 》
अब तक,,,,,,,,
“ओह यार ये तो काफी लम्बा चक्कर लग रहा है।” आदित्य बोला___”वैसे गुनगुन स्टेशन से क्या हम किसी टैक्सी द्वारा तुम्हारे गाॅव तक नहीं जा सकते?”
आदित्य की बात सुनकर मेरे दिमाग़ की बत्ती जली। टैक्सी से जाने में काफी सुरक्षा वाली बात रहेगी। क्योंकि एक पल के लिए अगर ये मान लिया जाए कि मेरे बड़े पापा अपने आदमियों को यहाॅ लगा रखा होगा तो वो सब मुझे बस में ही खोजेंगे और टैक्सी में मेरे मौजूद होने की वो कल्पना भी न करेंगे। मुझे आदित्य की ये बात बहुत जॅची।
“क्या हुआ यार?” मुझे सोचों में गुम देख कर आदित्य कह उठा___”कहाॅ खो गए तुम?”
“मैं ये सोच रहा हूॅ कि हम गुनगुन स्टेशन पर ट्रेन से उतर कर किसी टैक्सी के द्वारा ही हल्दीपुर चलें।” मैने कहा___”तुम्हारी इस बात से मुझे भी यही लग रहा है कि टैक्सी में हम ज्यादा सेफ रहेंगे।”
“अगर ऐसा है तो हम टैक्सी में ही चलेंगे तुम्हारे गाॅव।” आदित्य ने कहा___”हर जगह वाहन बदलने का चक्कर भी नहीं रहेगा।”
“सही कहा तुमने।” मैने कहा___”मैं पवन को भी बता देता हूॅ कि मैं टैक्सी से डायरेक्ट हल्दीपुर आऊॅगा।”
मैने अपना फोन निकाल कर पवन को सब बता दिया। उसके बाद मैं और आदित्य समय गुज़ारने के लिए फिर से किसी न किसी चीज़ के बारे में बातें करने लगे। उधर ट्रेन अपनी रफ्तार से दौड़ी जा रही थी। मुझे नहीं पता था कि आने वाला समय मुझे क्या दिखाने वाला था या फिर किस तरह का झटका देने वाला था?
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अब आगे,,,,,,,,
“आप एक बार फिर से इस बारे में अच्छी तरह सोच लीजिए चौधरी साहब।” अवधेश श्रीवास्तव ने समझाने वाले अंदाज़ में कह रहा था___”आपका इस मामले में पुलिस को सूचित करना कतई ठीक नहीं रहेगा। संभव है कि आपके द्वारा इस मामले को पुलिस को सूचित कर देने से वो ब्लैकमेलर हमारे लिए कोई गंभीर मुसीबत खड़ी कर दे। ये बात तो वो भी अच्छी तरह जानता और समझता ही होगा कि आप पुलिस को उसके बारे में बताने की सोचेंगे जो कि निहायत ही ग़लत होगा। उस सूरत में वो हमारे खिलाफ़ कुछ भी कर सकता है और हम उसका कुछ भी नहीं बिगाड़ पाएॅगे। क्योंकि अभी तक हम यही नहीं जानते हैं कि हमें ऐसी वीडियोज़ भेजने वाला वो शख्स आख़िर है कौन? उसने अब तक कोई फोन या मैसेज नहीं किया लेकिन उसके न करने से भी वो हमें यही समझा रहा है कि इस मामले में पुलिस को सूचित करने की मूर्खता हम लोग हर्गिज़ भी न करें।”
“तो आख़िर हम क्या करें अवधेश?” चौधरी ने खीझते हुए कहा___”आज दो दिन हो गए मगर उसकी तरफ से हमारे पास कोई मैसेज तक नहीं आया। हम तो चाहते हैं कि वो हमसे संबंध बनाए और बताए कि आख़िर वो ये सब करके हमसे चाहता क्या है? साला दो दिन से हमारे सुख चैन की माॅ बहन करके रखा हुआ है।”
“आप ज़रा धीरज से काम लीजिए चौधरी साहब।” अशोक मेहरा ने कहा___”आपकी तरह हम सब भी इस बात से बहुत परेशान और बेचैन हैं। हमारी जान भी हलक में अटक पड़ी है। मगर जैसा कि अवधेश भाई ने कहा कि इस बारे में पुलिस को सूचित करना ठीक नहीं है तो बात हमारे हित में ही है। आप तो जानते हैं कि साले पुलिस वाले बाल की खाल निकालने वाले होते हैं। संभव है कि वो हमसे ऐसे सवाल करने लगें जिन सवालों के जवाब देना हमारे लिए ख़तरे से खाली नहीं होगा। ऐसे में हम खुद ही उल्टा फॅस जाएॅगे। रही बात उस ब्लैकमेलर की कि उसने अब तक हमसे कांटैक्ट नहीं किया तो ये कोई समस्या नहीं है। कहने का मतलब ये कि वो देर सवेर ही सही मगर हमसे कांटैक्ट ज़रूर करेगा, क्योंकि इन वीडियोज़ को हमारे पास भेजने का कोई न कोई मकसद उसका ज़रूर होगा। अपने उस मकसद को पूरा करने के लिए वो हमसे कांटैक्ट ज़रूर करेगा। बस आप धैर्य रखें चौधरी साहब।”
“बस एक बार।” दिवाकर चौधरी गुस्से से दाॅत किटकिटाते हुए बोला___”सिर्फ एक वो हरामज़ादा हमारे हाॅथ लग जाए उसके बाद हम बताएॅगे उसे कि हमारे साथ ऐसी वाहियात हरकत करने का क्या अंजाम होता है। उस हराम के पिल्ले को ऐसी मौत मारेंगे कि उसे अपने पैदा होने पर अफसोस होगा।”
“इसका उल्टा भी तो हो सकता है चौधरी साहब।” सहसा इस बीच सहमी सी बैठी सुनीता ने अजीब भाव से कहा___”आप ये क्यों नहीं सोचते हैं कि जिसने भी आपके या हमारे साथ ऐसे दुस्साहस से भरे काम को अंजाम दिया है वो कोई ऐरा गैरा ब्यक्ति नहीं हो सकता? ये बात तो वो भी जानता होगा कि आप क्या चीज़ हैं, इसके बावजूद उसने ऐसा किया। इसका मतलब साफ है कि वो हमसे ज़रा भी ख़ौफ नहीं खाता है बल्कि अपने किसी मकसद को पूरा करने के लिए वो मौत के मुह में ही आ पहुॅचा है। दूसरी बात उसे हमसे डरने की ज़रूरत भी कहाॅ है जबकि उसके पास हमारे ख़िलाफ ऐसा सामान मौजूद है जिसके बल पर वो जब चाहे हमें बीच चौराहे पर नंगा दौड़ा सकता है। इस लिए ये बात तो आप भूल ही जाइये कि आप उसे ऐसी कोई मौत देंगे जिससे उसे अपने पैदा होने पर अफसोस होगा।”
“साली रंडी की दुम हमें डरा रही है?” चौधरी खिसियानी बिल्ली की तरह सुनीता पर चढ़ दौड़ा था, बोला___”तुझे पता नहीं है कि हम क्या चीज़ हैं। हम चाहें तो यहाॅ बैठे बैठे दिल्ली तक को हिला कर रख दें। वो हराम का जना साला तभी तक सलामत है जब तक वो हमसे दूर कहीं छुपा बैठा है। जिस दिन हमारे हाथ लग गया न उस दिन हम बताएॅगे कि दिवाकर चौधरी के साथ ऐसी हिमाकत करने का हस्र क्या होता है?”
दिवाकर चौधरी का तमतमाया हुआ चेहरा देख कर और उसकी खतरनाक बातें सुनकर सुनीता की सिट्टी पिट्टी गुम हो गई। ड्राइंगरूम पिन ड्राप सन्नाटा छा गया था। किसी की बोलने की हिम्मत न पड़ी। मगर तभी इस सन्नाटे को तोड़ने की हिमाकत खुद दिवाकर चौधरी के मोबाइल फोन की घंटी ने कर दी। दो पल के लिए तो दिवाकर चौधरी हड़बड़ाहट में ही रहा। फिर जल्दी से खादी के कुर्ते की जेब से मोबाइल फोन निकाल कर उसने स्क्रीन पर फ्लैश कर रहे नंबर को देखा। स्क्रीन पर वही नंबर फ्लैश हो रहा था जिस नंबर से चौधरी के इसी फोन पर वो वीडियोज़ भेजा था उस ब्लैकमेलर ने।
“क्या हुआ चौधरी साहब?” अवधेश श्रीवास्तव ने शशंक भाव से कहा___”क्या देख रहे हैं? काल को रिसीव कीजिए।”
“ये तो वही नंबर है अवधेश।” चौधरी ने बड़े उत्साहित भाव से कहा___”जिस नंबर से हमारे फोन पर वो वीडियो भेजे गए थे।”
“तो फिर जल्दी से काल को रिसीव कीजिए चौधरी साहब।” अशोह मेहरा कह उठा__”और फोन का स्पीकर भी ऑन कर दीजिए। हम सब भी सुनेंगे कि वो क्या कहता है?”
चौधरी ने काल रिसीव करके मोबाइल का स्पीकर ऑन कर दिया।
“कहो चौधरी कैसे हो?” उधर से मर्दाना स्वर में आवाज़ उभरी___”काल रिसीव करने में इतना टाइम कैसे लगा दिया तुमने? ओह शायद मेरा काल देख कर तुम्हें समझ में ही न आया होगा कि क्या करें और क्या न करें? होता है चौधरी, ऐसा तो यकीनन होता है। और हाॅ ये बहुत अच्छा किया जो अपने फोन का स्पीकर ऑन कर दिया तुमने। आख़िर तुम्हारे उन साथियों को भी तो मेरी मधुर आवाज़ सुनने का हक़ है।”
“हमसे ऐसे लहजे में बात करने का अंजाम नहीं जानते हो तुम।” चौधरी ने दाॅत पीसते हुए कठोर भाव से कहा___”अगर जानते तो ऐसी हिमाकत नहीं करते। और अब हमारी बात कान खोल कर सुनो तुम। ये जो कुछ तुमने किया है न उसकी सज़ा तो तुम्हें ज़रूर मिलेगी। ये मत समझना कि वोडियो भेज कर तुमने हमे चूहा बना दिया होगा।”
“ये गीदड़ भभकियाॅ किसी और को देना चौधरी।” उधर से ठंडे लहजे में कहा गया___”मैं तुम्हारी किसी बात से बाल बराबर भी डरने वाला नहीं हूॅ। मैं चाहूॅ तो पल भर में तुम्हारी ताकत और तुम्हारी शान को मिट्टी में मिला दूॅ। इस लिए बेहतर होगा कि मुझसे ज्यादा उड़ने की कोशिश मत करना और ना ही मुझ पर अपना रौब झाड़ना।”
“क्या चाहते हो तुम?” चौधरी को समझ आ गया था कि सामने वाला उससे डरने वाला नहीं है इस लिए मुद्दे की बात करना ही चित समझा उसने, बोला___”अगर तुमने ये सब हमसे रुपया पैसा ऐंठने के लिए किया है तो मुह फाड़ो अपना और बताओ कि कितना रुपया चाहिए तुम्हें? मगर ख़बरदार, डील सिर्फ एक ही बार होगी। तुम्हें जितना भी रुपया चाहिए वो बोल दो, हम तुम्हें मुहमागा रुपया दे देंगे मगर बदले में तुम हमें वो सारे वीडियोज़ लौटा दोगे।”
“ये तुमने कैसे सोच लिया चौधरी कि ये सब मैने तुमसे पैसे ऐंठने के लिए किया है?” उधर से हॅस कर कहा गया___”अरे बुड़बक, पैसा तो मेरे पास इतना है कि मैं खड़े खड़े तुम्हें और तुम्हारे पूरे खानदान को ख़रीद लूॅ। ख़ैर, तुम जैसे दो कौड़ी के भड़वों को खरीदेगा भी कौन? मैने तो ये सब सिर्फ इस लिए किया कि तुम्हें बता सकूॅ अब तुम्हारा और तुम्हारे साथियों का खेल खत्म हो चुका है। अब यहाॅ से तुम लोगों के बुरे कर्मों का हिसाब शुरू होगा।”
“हरामज़ादे तू है कौन साले?” चौधरी बुरी तरह गुस्से में चीख पड़ा था___”एक बार हमारे सामने आ फिर हम बताएॅगे कि हमसे ऐसी ज़ुर्रत करने का क्या अंजाम होता है?”
“हरामज़ादा किसे बोलता है रे मादरचोद साले रंडी की औलाद।” उधर से मानो शेर की गुर्राहट उभरी___”चिंता मत कर साले बहुत जल्द तेरी हेकड़ी निकालूॅगा मैं। साले बकरे की तरह मिमियाएगा मेरे सामने।”
“ज़ुबान सम्हाल कर बात कर हमसे।” चौधरी चीखा तो ज़रूर मगर उसने खुद महसूस किया कि उसके स्वर में कोई दम नहीं था, फिर भी बोला___”हम तुम्हारे इस अपराध को माफ़ कर देंगे। बस तुम हमें वो सब वीडियोज़ लौटा दो।”
“भीख माॅगता है क्या रे चौधरी?” उधर से ठहाके की आवाज़ आई___”अच्छा है माॅगना शुरू ही कर दे अब। ख़ैर जाने दे, मैं ये कह रहा हूॅ कि बहुत जल्द तुझे ऐसा मंज़र देखने को मिलेगा कि तू उसे देख नहीं पाएगा और तेरे ही साथ बस क्यों तेरे सभी साथियों के साथ भी वही सब होगा। अपनी बरबादी को रोंक सकता है तो रोंक ले तू।”
अभी चौधरी कुछ कहना ही चाहता था कि उधर से फोन कट गया। चौधरी ने जल्दी से उसी नंबर पर काल किया मगर नंबर स्विच ऑफ बताने लगा था। पल भर में चौधरी की हालत किसी लुटे हुए जुआॅरी जैसी नज़र आने लगी थी। चौधरी जैसा हाल बाॅकी उन सबका भी था जो वहाॅ पर बैठे फोन की हर बात सुन रहे थे। सुनीता की हालत तो ऐसी हो गई थी जैसे उसे लकवा मार गया हो। बड़े से ड्राइंगरूम में गहन सन्नाटे के सिवा कुछ न रह गया था।
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उधर हवेली में।
गहरी सोच में डूबी हुई नैना रितू के कमरे में पहुॅची। कमरे में पहुॅच कर उसने देखा कि रितू पुलिस की वर्दी पहने आईने के सामने खड़ी होकर सिर पर पीकैप को ठीक से लगाते हुए खुद को देख रही थी।
“क्या बात है रितू तूने मुझे इस तरह रहस्यमय तरीके से किस लिए बुलाया है?” नैना ने रितू की तरफ देखते हुए कहा था। उसकी बात सुन कर रितू आईने की तरफ से पलट कर अपनी नैना बुआ की तरफ देखा।
“क्या आपने अपना सब सामान ले लिया है बुआ जी?” रितू ने पूछा।
“आख़िर बात क्या है मेरी बच्ची?” नैना हैरान परेशान सी बोली___”मुझे अपना सारा सामान लेने के लिए क्यों कह रही है तू? क्या तू मुझे कहीं लेकर जा रही है?”
“हाॅ बुआ।” रितू ने तनिक गंभीरता से कहा___”लेकिन इस वक्त आप मुझसे ये न पूछिए कि ऐसा मैं क्यों कह रही हूॅ। बस आप वो कीजिए जो मैं कह रही हूॅ। यकीन मानिये बुआ मैं आपको आपके सभी सवालों का जवाब दूॅगी मगर अभी नहीं। अभी आप वही कीजिए जो मैने कहा है प्लीज़।”
“ठीक है रितू।” नैना ने बेचैनी से कहा__”पर मैं भइया भाभी से क्या कहूॅगी कि अपना सामान लेकर मैं कहा जा रही हूॅ?”
“उनको बता दीजिएगा कि आप वापस अपने ससुराल जा रही हैं क्योंकि आपके पास आपके ससुराल से फोन आया था जो आपको आने के लिए कह रहे थे।।” रितू ने जैसे तरीका बताया।
“वो तो ठीक है।” नैना ने कहा___”लेकिन अगर भइया ने मेरी ससुराल में फोन करके इस बारे में पूछा तो क्या होगा? उन्हें तो पता चल ही जाएगा कि मैं उनसे झूॅठ बोल रही हूॅ।”
“वो ऐसा कुछ नहीं करेंगे बुआ।” रितू ने कहा___”आप बस जल्दी से सामान लेकर हवेली से बाहर आइये। मैं आपको बाहर ही मिलूॅगी।”
“अरे नास्ता तो कर ले।” नैना ने कहा___”भाभी डायनिंग टेबल में तेरा इन्तज़ार कर रही हैं।”
“नहीं बुआ मुझे ज़रा भी भूॅख नहीं है।” रितू ने कहा___”और आप भी मत खाइयेगा। क्योंकि उससे हमें जाने में देर हो जाएगी।”
“बड़ी हैरानी की बात है रितू।” नैना ने चकित भाव से कहा___”ख़ैर, तू चल मैं आती हूॅ।”
“ठीक है बुआ।” रितू दरवाजे की तरफ बढ़ते हुए बोली___”जल्दी आइयेगा।”
कहने के साथ ही रितू लम्बे लम्बे डग भरते हुए दरवाजे के बाहर निकल गई। उसके पीछे पीछे ही नैना भी चल दी। ये अलग बात है कि इस वक्त उसके मन में गहन विचारों का आवागमन शुरू था।
“रितू बेटा, बड़ी देर कर दी आने में।” प्रतिमा ने रितू को देखते ही कहा__”चल आजा, नास्ता ठंडा हो रहा है।”
“नहीं माॅम, मुझे अर्जेंट थाने पहुॅचना है।” रितू ने एक एक नज़र वहीं कुर्सियों पर बैठे अपने भाई शिवा और अपने पिता अजय सिंह पर डालते हुए कहा___”मैं बाहर ही नास्ता कर लूॅगी।”
“उफ्फ तेरी ये नौकरी भी न।” प्रतिमा ने बुरा सा मुह बनाते हुए कहा___”चैन से तुझे नास्ता भी नहीं करने देती है। छोंड़ दे न ये नौकरी बेटा। आख़िर क्या कमी है हमारे पास और क्या कमी की है हमने तेरी इच्छाओं को पूरा करने में?”
“बात किसी भी चीज़ की कमी की नहीं है माॅम।” रितू ने कहा___”बात है शौक की और ये पुलिस की नौकरी मेरा शौक ही है। पाप और ज़ुर्म को खत्म करना मेरा शुरू से सिद्धांत रहा है। ख़ैर, आप नहीं समझेंगी मेरी भावनाओं को।”
“माॅम ठीक ही तो कह रही हैं दीदी।” सहसा शिवा ने कहा___”आपको पुलिस की नौकरी करने की क्या ज़रूरत है? इस तरह का शौक रखना निहायत ही बेकार की बात है।”
“तू अपना मुह बंद ही रख समझे।” रितू ने कठोर भाव से कहा___”मेरा शौक तेरे शौक से कहीं ज्यादा ऊॅचा और पाक़ है। पढ़ लिख कर अपने पैरों पर खड़ी हो गई हूॅ और खुद कमा कर खा सकती हूॅ। तेरी तरह डैड के पैसों पर ऐश करना मुझे हर्गिज़ पसंद नहीं है।”
“आप ज़रूरत से ज्यादा ही भाषण दे रही हैं दीदी।” शिवा ने कहा___”बेहतर होगा कि आप अपना ये भाषण किसी और को सुनाएॅ।”
“सच कहा तूने।” रितू ने कड़वा ज़हर मानो खुद ही निगलते हुए कहा___”ये भाषण तुझे रास नहीं आ सकता। ये भाषण तो उसे ही रास आएगा जो इसके लायक होगा।”
“ये क्या बेहूदा बातें कर रही हो बेटी?” सहसा अजय सिंह कह उठा___”अपने इकलौते भाई से इस तरह रुखाई से कौन बहन बात करती है? तुमने अपनी मर्ज़ी से पुलिस की नौकरी कर ली हमें कोई प्राब्लेम नहीं हुई। मगर इस बात का भी ख़याल रखना बच्चों का फर्ज़ है कि वो अपने माता पिता के अरमानों के बारे में सोचें।”
“वाह डैड।” रितू की ऑखों में ऑसू आ गए___”इस वक्त कौन सही है कौन ग़लत ये तो आपने बिलकुल ही नज़रअंदाज़ कर दिया। मुझे याद नहीं कि मैने कब अपने माॅम डैड की इज्ज़त या सम्मान को चोंट पहुॅचाई है। बल्कि बचपन से लेकर अब तक वहीं किया जो आपने कहा। आज की दुनियाॅ में अगर बेटियाॅ अपने पैरों पर खड़े होकर कामयाबी का कोई आसमान छूती हैं तो माॅ बाप को अपनी उस बेटी पर गर्व होता है मगर मेरे माॅम डैड को मेरी पुलिस की नौकरी करना ज़रा भी पसंद नहीं आया। ख़ैर, जाने दीजिए डैड। अगर आप नहीं चाहते हैं कि मैं ये पुलिस की नौकरी करूॅ तो ठीक है छोंड़ दूॅगी इसे।”
“तुम बेवजह बातों का पतंगड़ बना रही हो रितू बेटा।” प्रतिमा ने कहा___”अपने डैड से इस लहजे में बात करना तुम्हें ज़रा भी शोभा नहीं देता।”
“साॅरी माॅम।” रितू ने अपने अंदर के जज़्बातों को बड़ी मुश्किल से दबाते हुए कहा___”साॅरी डैड, एण्ड साॅरी भाई।”
रितू ने कहा और झटके से बाहर की तरफ निकल गई। दिल एकदम से छलनी सा हो गया था उसका। कहना तो बहुत कुछ चाहती थी वो मगर ये समय सही नहीं था। अपने अंदर के सुलगते हुए जज़्बातों को शख्ती से दबा लिया था उसने। दिल में अपने माॅ बाप और भाई के लिए उसकी नफ़रत में जैसे और भी इज़ाफा हो गया था।
हवेली के बाहर आकर वह एक तरफ खड़ी अपनी पुलिस जिप्सी की तरफ बढ़ती चली गई। जिप्सी में बैठ कर उसने उसे स्टार्ट किया और आगे बढ़ा कर मुख्य दरवाजे तक आ कर रुक गई। कदाचित नैना बुआ के आने का इन्तज़ार करने लगी थी वह। लगभग पन्द्रह मिनट के इन्तज़ार के बाद नैना बाहर आती दिखी उसे। नैना के बाएॅ हाथ में उसका बैग देख कर रितू ने मन ही मन राहत की मीलों लम्बी साॅस ली। जिप्सी के पास आकर नैना ने पिछली सीट पर बैग रखा और फिर घूम कर रितू के बगल वाली सीट पर आकर बैठ गई। नैना के बैठते ही रितू ने जिप्सी को झटके से आगे बढ़ा दिया।
“हवेली से बाहर आने में काफी देर लगा दी आपने।” मेन सड़क पर पहुॅचते ही रितू ने कहा नैना से।
“हाॅ वो भइया भाभी पूछने लगे थे न कि मैं अपना ये सामान लेकर कहाॅ जा रही हूॅ?” नैना ने बताया___”बड़ी मुश्किल से उन्हें कन्विंस किया तब जाकर बाहर आ पाई मैं। लेकिन मुझे ये समझ में नहीं आ रहा कि तुम मुझे इस तरह कहाॅ लेकर जा रही हो?”
“बस ये समझ लीजिए बुआ कि मैं आपको ऐसी जगह लेकर जा रही हूॅ।” रितू ने अजीब भाव से कहा___”जहाॅ पर आप पूरी तरह सुरक्षित रहेंगी।”
“क्या मतलब??” नैना बुरी तरह चौंकी थी।
“मतलब किसी स्वीमिंग पुल में भरे पानी की तरह साफ है बुआ।” रितू ने कहा___”बस समझने की बात है।”
“देख तू मुझसे ऐसे पुलिसिये लहजे में बात मत किया कर।” नैना ने कहा___”मुझे बिलकुल समझ में नहीं आता कि तू क्या बोल रही है?”
“अच्छा ये बताइये।” रितू ने कहा__”कि डैड ने आपके ससुराल वालों को फोन तो नहीं किया न वो सब पूछने के लिए?”
“नहीं फोन तो नहीं किया।” नैना ने कहा__”बस यही कहा कि ये अच्छी बात है अगर मेरी ससुराल वाले मुझे फिर से बुला रहे हैं तो। मगर, ऐसा भी तो हो सकता है रितू कि वो मेरे यहाॅ आने के बाद मेरी ससुराल में फोन लगाएॅ। ये जानने के लिए कि मैं वहाॅ पर समय पर और ठीक से पहुॅच गई हूॅ कि नहीं और जब उन्हें ये पता चलेगा कि मैं वहाॅ गई ही नहीं तो क्या सोचेंगे वो मेरे बारे में?”
“अब उनके कुछ भी सोचने से कोई फर्क नहीं पड़ने वाला बुआ।” रितू ने कहा__”क्यों कि अब आप हवेली से बाहर आ चुकी हैं। मैं तो बस आपको उस हवेली से बाहर निकालना चाहती थी।”
“क्या मतलब है तेरा?” नैना बुरी तरह उछल पड़ी। हैरत से उसकी ऑखें फैल गईं थी।
“अभी नहीं बुआ।” रितू ने कहा___”बाद में आपको सब कुछ बताऊॅगी और तसल्ली से बताऊॅगी।”
“पता नहीं क्या अनाप शनाप बोले जा रही है तू?” नैना का दिमाग़ मानो चकरघिन्नी बन गया था, बोली___”मुझे तो कुछ पल्ले ही नहीं पड़ रही तेरी बातें।”
नैना की इस बात पर रितू कुछ न बोली। बल्कि जिप्सी को टाॅप गियर में डाल कर उसे तूफान की तरह भगाती हुई वह नियत समय से बहुत कम समय में अपने फार्महाउस पहुॅच गई। फार्महाउस के अंदर दाखिल होकर रितू ने पोर्च के नीचे जाकर जिप्सी को रोंक दिया।
“ये कौन सी जगह है रितू?” नैना ने हैरानी से इधर उधर देखते हुए कहा___”ये तू कहाॅ ले आई है मुझे?”
“अपने एक अलग घर में बुआ।” रितू ने कहा___”जहाॅ पर अपना अलग एक नया संसार बसता है।”
“एक नया संसार?” नैना चकरा सी गई, बोली___”इसका क्या मतलब हुआ भला?”
“आईये अंदर चलते हैं।” जिप्सी से उतरते हुए रितू ने कहा___”अब से आप यहीं रहेंगी।”
“ये तुम क्या कह रही हो बेटा?” नैना चकित स्वर में बोली___”मैं यहीं रहूॅगी? मगर क्यों रितू? ऐसा क्या हो गया है जिसकी वजह से तुम मुझे यहाॅ लेकर आई हो। आख़िर बात क्या है? क्या छुपा रही है तू मुझसे? देख रितू मुझे सारी बात सच सच बता, मेरा दिल बहुत घबरा रहा है।”
“अब आपको किसी भी बात के लिए घबराने की ज़रूरत नहीं है बुआ।” रितू ने पिछली सीट से नैना का बैग निकालते हुए कहा__”ये अपना ही घर है। यहाॅ पर आपको किसी बात का कोई ख़तरा नहीं है।”
“खतरा???” नैना का दिमाग़ मानो कुंद सा पड़ता चला गया, बोली___”आख़िर तू किस खतरे की बात कर रही है रितू? मुझे भला किससे खतरा है और किस बात का खतरा है? मुझे बता बेटा, वरना तेरी इन बातों से मैं पागल हो जाऊॅगी।”
“सब बताऊॅगी बुआ।” रितू ने कहा__”अंदर तो चलिए।”
रितू की इस बात से हैरान परेशान नैना किसी यंत्र चालित सी होकर रितू के पीछे पीछे अंदर की तरफ चल पड़ी।
अंदर पहुॅचते ही उन्हें हरिया काका की बीवी बिंदिया मिल गई।
“अरे बिटिया आ गई तुम?” बिंदिया ने बड़े प्यार और सम्मान से कहा___”और ये तुम्हारे साथ में बीवी जी कौन हैं?”
“काकी ये मेरी छोटी बुआ हैं।” रितू ने कहा___”और आज से ये यहीं रहेंगी। इनका हर तरह से ख़याल रखना।”
“इसमें कहने वाली कौन सी बात है बिटिया?” बिंदिया ने कहा___”मेरे लिए तो ये भी तुम्हारी तरह ही हैं।”
“इनके लिए मेरे बगल वाले कमरे को अच्छी तरह साफ कर दीजिए।” रितू ने कहा__”तब तक मैं इन्हें अपने कमरे में लिये जा रही हूॅ। और हाॅ जल्दी से गरमा गरम नास्ता भी तैयार कर दीजिए।”
“सब हो जाएगा बिटिया।” बिंदिया ने कहा___”तुम बस कुछ देर का समय दो मुझे।”
“ठीक है काकी।” रितू ने कहने के साथ ही नैना की तरफ देख कर कहा___”आइये बुआ ऊपर कमरे में चलते हैं।”
रितू ने कहा तो नैना उसके पीछे चुपचाप चल दी। उसके मन में हज़ारों सवाल और हज़ारों ख़याल पैदा हो चुके थे। कमरे में पहुॅच कर रितू ने नैना को बेड पर बैठाया और खुद भी उसके बगल में बैठ गई।
“अब तो बता बेटा कि बात क्या है?” नैना ने ब्याकुलता से पूछा___”इस तरह तू मुझे यहाॅ लेकर क्यों आई है?”
“मुझे समझ नहीं आ रहा बुआ।” रितू ने सहसा गंभीर होकर कहा___”कि आपको वो सब बातें कैसे बताऊॅ और कहाॅ से बताऊॅ?”
“देख रितू तू अब कोई बच्ची नहीं रही।” नैना ने कहा___”बल्कि तू अब बड़ी हो गई है। जो भी बात है तू मुझे बेझिझक बता सकती है। मुझे तू अपनी दोस्त या राज़दार समझ सकती है। मैं जातनी हूॅ कि तू कभी कोई ग़लत काम नहीं कर सकती है। मुझे तुझ पर हमेशा से गर्व रहा है। ख़ैर, तू बेझिझक बता कि ऐसी क्या बात है जिसकी वजह से तू मुझे इस तरह यहाॅ लेकर आई है?”
“मुझे किसी बात की भूमिका बनाना नहीं आता बुआ।” रितू ने गंभीरता से कहा__”मैं तो साफ साफ कहना जानती हूॅ। आप जानना चाहती हैं न कि मैं आपको इस तरह यहाॅ क्यों लेकर आई हूॅ यो सुनिए___हवेली में रहने वाले आपके भइया भाभी और आपका भतीजा ये तीनो ही वासना और हवस के चलते इस क़दर अंधे हो चुके हैं कि इन्हें अब ये भी नहीं दिखता कि ये लोग जिनके साथ कुकर्म करने का मंसूबा बनाए हुए हैं वो रिश्ते में इनके क्या लगते हैं।”
“ये तू क्या कह रही है रितू?” नैना की ऑखें हैरत से फैल गईं, बोली___”तुझे कुछ होश भी है कि तू किनके बारे में क्या बोल रही है?”
“होश तो अब आया है बुआ।” रितू ने भारी लहजे में कहा___”बचपन से लेकर अब तक तो मैं बेहोश ही थी। अपने उन माता पिता को देवता समझती रही जिनके हाॅथ अपने ही घर के लोगों के खून से सने हुए हैं। आपको नहीं पता बुआ, आपका भाई और मेरा बाप अपने ही भाई विजय सिंह का क़ातिल है। आज तक हम सब यही जानते रहे हैं कि विजय चाचा की मौत सर्प के काटने से हुई थी जब वो खेत में पानी लगा रहे थे। जबकि ये बात सरासर झूॅठ है बुआ। सच्चाई ये है कि मेरे बाप ने उनकी जानबूझ कर जान ली थी।”
“ये ये क्या कह रही है तू?” नैना के पैरों तले से ज़मीन गायब हो गई___”नहीं नहीं अजय भइया ऐसा नहीं कर सकते हैं। ये सब झूठ है रितू, कह दे कि ये सब झूठ है।”
“कैसे कह दूॅ बुआ?” रितू की ऑखें छलक पड़ी____”मैंने अपनी ऑखों से देखा है और कानों से सुना है।”
“कब देखा सुना तुमने?” नैना कह उठी।
“कल रात को।” रितू ने कहा___”और ये अच्छा ही हुआ बुआ कि मुझे अपने माता पिता की ये सच्चाई खुद उनके ही मुख से सुनने को मिल गई। कल रात मुझे नींद नहीं आ रही थी। अपने बेड पर पड़ी मैं करवॅटें बदल रही थी। फिर मुझे प्यास लगी तो मैं अपने कमरे से निकल कर नीचे किचेन में पानी पीने के लिए आई। पानी पीकर जब मैं वापस अपने कमरे की तरफ जाने लगी तो देखा कि गौरी चाची की तरफ जाने वाला पार्टीशन का दरवाजा खुला हुआ था। मैने सोचा ये खुला हुआ क्यों है आज। बस यही पता करने के लिए मैं उस तरफ चली गई। मगर मुझे क्या पता था कि उस तरफ मुझे कुछ ऐसा देखने सुनने को मिलेगा जिसे देख सुन कर मेरे पैरों तले से धरती गायब हो जाएगी।”
“ऐसा क्या देखा सुना तुमने?” नैना बेयकीनी भरे भाव से पूछा था। उसकी बात सुन कर रितू उसे वो सब कुछ बताती चली गई जो कुछ उसने उस तरफ कमरे के अंदर देखा और सुना था। उसने एक एक बात नैना को बताई। सारी बातें सुनने के बाद नैना की हालत काटो तो खून नहीं जैसी हो गई थी। फिर जैसे उसे खुद ही होश आया। उसका चेहरा पलक झपकते ही दुख और पीड़ा में डूबता चला गया। ऑखों से झर झर करके ऑसू बहने लगे।
“इतना बड़ा पाप।” फिर वह बिलखते हुए बोली___”और इतना बड़ा गुनाह किया इन लोगों ने मेरे देवता जैसे भाई के साथ। अरे उसके साथ ही क्यों रे, इन लोगों ने तो किसी को भी नहीं बक्शा। अपने पाप और गुनाह को छुपाने के लिए मेरे भाई की सर्प से कटवा कर जान ले ली। मेरी देवी समान भाभी गौरी पर इतने संगीन इल्ज़ाम लगाए और उन्हें हवेली से निकाल दिया। इन लोगों ने तो हवेली को नर्क बना कर रख दिया है रितू। अच्छा हुआ तू मुझे यहाॅ ले आई। वरना इन लोगों का कोई भरोसा नहीं था कि ये लोग कब मेरी या तुम्हारी इज्ज़त के साथ अपनी हवस की भूख को शान्त करते।”
“मुझे नफ़रत हो गई है बुआ अपने माॅ बाप और भाई से।” रितू ने कहा___”मैं तो कल ही अपने रिवाल्वर से इन तीनो को जान से मार देना चाहती थी मगर मेरे ज़मीर ने रोंक दिया मुझे। ये कह कर कि इनको जान से मारने का अधिकार मुझको नहीं बल्कि उसे है जिनके साथ इन लोगों ने ग़लत किया है। कसम से बुआ, मुझे ऐसे माॅ बाप और भाई के मर जाने का लेश मात्र भी दुख नहीं होगा।”
“मुझे तो अभी भी यकीन नहीं हो रहा रितू कि ये सब इन लोगों ने किया है।” नैना ने दुखी भाव से कहा___”पता नहीं मेरी देवी समान गौरी भाभी और उनके दोनो बच्चे किस हाल में होंगे? जिस तरह से इन लोगों उन पर अत्याचार किया है न उसकी इन्हें सज़ा ज़रूर मिलेगी। ईश्वर के पास सबका हिसाब है। उसका क़हर जब इन पर बरपेगा न तो इनके जिस्मों पर कीड़े पड़ जाएॅगे।”
“वो लोग मुम्बई में जहाॅ भी होंगे यहाॅ से बहुत अच्छे होंगे बुआ।” रितू ने कहा___”और आपको पता है आज मेरा वो भाई आ रहा है जिसे मैने कभी अपना भाई नहीं समझा था। लेकिन वो पगला हमेशा मुझे इज्ज़त से दीदी ही कहा करता था। मेरा सच्चा भाई आ रहा है बुआ। मेरा राज आ रहा है मुम्बई से।”
“क्या?????” नैना उछल पड़ी___”मगर तुझे कैसे पता?”
“पता तो होगा ही बुआ।” रितू ने फीकी सी मुस्कान के साथ कहा___”आख़िर बुलवाया तो मैने ही है उसे।”
“ये क्या कह रही है तू?” नैना ने बुरी तरह चौंकते हुए कहा___”तूने उसे बुलवाया है? ये जानते हुए भी कि तुम्हारे बाप से उसकी जान को खतरा है?”
“उसे कुछ नहीं होगा बुआ।” रितू ने दृढ़ता से कहा___”उसकी तरफ आने वाली हर बाधा हर मौत को सबसे पहले मुझसे मिलना होगा। कसम से बुआ अगर खुद मेरा बाप उसकी मौत बन उसके पास आया तो मौत रूपी उस बाप को भी मैं जीवित नहीं छोंड़ूॅगी।”
“लेकिन तूने उसे बुलवाया किस लिए है रितू?” नैना ने कहा___”आख़िर बात क्या है?”
“उसकी भी अजब कहानी है बुआ।” रितू ने अजीब भाव से कहा___”पगले का नसीब तो देखो। कहीं पर भी उसे प्यार और खुशियाॅ नसीब नहीं हुईं। दुख दर्द ने तो जैसे उसका दामन ही थाम रखा है।”
“क्या कह रही तू?” नैना ने ना समझने वाले भाव से कहा___”साफ साफ बता कि बात क्या है?”
“बुआ, मेरा भाई विराज एक खूबसूरत लड़की से प्यार करता था।” रितू दुखी लहजे में बोली___”मगर बाद में उस लड़की ने उसे छोंड़ दिया। और अब वहीं लड़की उसे अंतिम बार देखना चाहती है।”
“अंतिम बार???” नैना का दिमाग़ चकरा गया___”इसका क्या मतलब हुआ?”
रितू ने नैना को सारी बातें बताई। ये भी बताया कि उस लड़की का कुछ दिनों पहले गैंग रेप हो चुका है। रितू ने बताया कि कैसे उस लड़की ने विराज को छोंड़ा था और अब लास्ट स्टेज के कैंसर से अंतिम साॅसें ले रही है। वो चाहती है कि अंत समय में वो अपने महबूब को देख ले और उसी की बाहों में उसका दम निकले। सारी बातें सुनने के बाद नैना एकदम अवाक् रह गई। उसकी ऑखों में फिर से ऑसुओं का सैलाब सा आ गया।
“हे भगवान ये सब क्या कर रहा है तू?” नैना ने ऊपर की तरफ देख कर दुखी भाव से कहा___”मेरे बच्चे को कितना दुख संताप देगा तू। रितू, वो विधी को उस हाल में देख नहीं पाएगा। भगवान ही जाने क्या गुज़रेगी उस वक्त उसके दिल पर। ये प्यार मोहब्बत होती ही ऐसी चीज़ है बेटा कि इंसान को कमज़ोर दिल का बना देती है। खुद पर चाहे हज़ार चोंट खा ले इंसान मगर अपने प्रियतम के लिए वो छोटी से छोटी चोंट भी बरदास्त नहीं कर पाता। तू उसके पास ही रहना बेटा। नहीं तो तू मुझे ले चल उसके पास। मैं अपने भतीजे को उस वक्त सम्हालूॅगी। मैं उसे किसी भी कीमत पर बिखरने नहीं दूॅगी रे।”
“बस ईश्वर से दुवा कीजिए बुआ कि सब ठीक ही रहे।” रितू ने भारी स्वर में कहा__”मैं अपने भाई के पास ही रहूॅगी। मैं उसे अपने सीने से लगा लूॅगी बुआ लेकिन उसे बिखरने नहीं दूॅगी।”
“मुझे तुझ पर पूरा भरोसा है रितू।” नैना ने रितू के चेहरे को अपनी दोनो हथेलियों के बीच लेकर कहा____”आज तुझे अपने उस भाई के लिए इतना प्यार और इतनी तड़प देख कर मुझे खुशी हुई, जिस भाई को तूने कभी अपना नहीं समझा था।”
“वो मेरी सबसे बड़ी भूल थी और नादानी थी बुआ।” रितू की ऑखों में ऑसू भर आए, बोली___”जो मैने अपने पारस जैसे भाई को कभी अपना नहीं समझा था। लेकिन इसमें भी मेरा कोई कसूर नहीं है बुआ। ये सब तो मेरे उन्हीं माॅ बाप की वजह से हुआ है जिन्होंने बचपन से हम बहन भाई को यही सिखाते रहे कि ये हमारे अपने नहीं हैं बल्कि ये बुरे लोग हैं। मगर कहते हैं न बुआ कि सच्चाई हमेशा के लिए पर्दे के पीछे छुपी नहीं रह सकती। वो एक दिन उस पर्दे से निकल कर हमारे सामने आ ही जाती है। आज मुझे पता चल चुका है कि अच्छा कौन है और बुरा कौन है? जीवन भर दूसरों को बुरा बताने वाला आज खुद मेरे सामने कितना बुरा और पापी निकला जिसकी कोई सीमा नहीं है। जो बाप अपनी ही बेटी बहू और बहन को अपने नीचे सुलाने की बात करे वो अच्छा कैसे हो सकता है बुआ। वो तो सबसे ऊॅचे दर्ज़े का पापी है, कुकर्मी है। ऐसे लोगों को इस धरती पर जीने का कोई अधिकार नहीं है।”
“बड़े बड़े पापी और कुकर्मियों का इस धरती से सर्वनाश हुआ है बेटी।” नैना ने कहा__”फिर ये कैसे जीवित बच जाएॅगे। इनका भी वही हस्र होगा जो कंस और रावण का हुआ था। ख़ैर, तू ये बता कि विराज कब पहुॅच रहा है यहाॅ? और तूने उसकी सुरक्षा के लिए क्या इंतजाम किया है?”
“मैने उसकी सुरक्षा के लिए इंतजाम कर दिया है बुआ।” रितू ने कहा___”रेलवे स्टेशन पर सिविल वेश में पुलिस के आदमी मौजूद हैं। मुझे पवन ने फोन पर बताया था कि वो ट्रेन से उतरने के बाद किसी टैक्सी में हल्दीपुर आएगा।उसने ऐसा शायद इस लिए किया है कि डैड के आदमी अगर वहाॅ कहीं हों भी तो वो सब उसे बस में ढूॅढ़ेंगे, जबकि उसके टैक्सी से आने की वो लोग उम्मीद भी न करेंगे।”
“मेरा भतीजा होशियार है।” नैना ने खुश होकर कहा___”बहुत अच्छा सोचा है उसने। ख़ैर, अब तू क्या करने वाली है?”
“मैं पवन के फोन का इन्तज़ार करूॅगी।” रितू ने कहा___”क्योंकि विराज सीधा पवन के घर ही जाएगा। इधर मैं हास्पिटल विधी के पास जाऊॅगी। उधर से सब कुछ ठीक करने बाद मैं पवन को फोन कर दूॅगी कि अब वो विराज को लेकर हास्पिटल आ जाए। मैने हास्पिटल के चारो तरफ भी सिविल ड्रेस में पुलिस वालों को मौजूद रहने के लिए कह दिया है।”
“ये बहुत अच्छा किया तुमने।” नैना ने कहा___”और मुझे यकीन है कि तेरे रहते विराज को कुछ नहीं होगा।”
“मैं अपनी जान दे दूॅगी बुआ।” रितू ने दृढ़ता से कहा___”मगर अपने भाई को खरोंच तक आने नहीं दूॅगी।”
“क्या इतना प्यार करती है तू अपने उस भाई से?” नैना की ऑखें भर आईं थी।
“ऐसे भाई को तो सिर्फ प्यार ही किया जाता है न बुआ?” रितू के जज़्बात बेकाबू से हो गए, खुद को बड़ी मुश्किल से सम्हाल कर कहा उसने___”अगर कहीं भगवान मिले मुझे तो उससे यही कहूॅगी कि मुझे हर जन्म में विराज जैसा ही भाई दे और शिवा के जैसा भाई किसी बैरी को भी न दे।”
नैना ने तड़प कर रितू को अपने सीने से लगा लिया। दोनो की ऑखों से ऑसुओं के वो बाॅध फूट पड़े जो भावनाओं और जज़्बातों के मचल उठने से बेकाबू से हो गए थे। अभी ये दोनो एक दूसरे के गले ही लगे थे कि तभी कमरे में बिंदिया ने प्रवेश किया।
“बिटिया, नास्ता तैयार कर दिया है मैने चलो नास्ता कर लो।” बिंदिया ने कहा___”और हाॅ इनका कमरा भी साफ कर दिया है मैने।”
बिंदिया की बात सुन कर दोनो अलग हुईं और बड़ी सफाई से अपनी अपनी ऑखों से दोनो ने ऑसुओं को साफ कर लिया।
“आप चलिए काकी।” रितू ने कहा___”हम बस दो मिनट में आते हैं।”
“ठीक है बिटिया।” बिंदिया ने कहा और दरवाजे से वापस पलट गई।
बिंदिया के जाने के बाद नैना और रितू दोनो ही बाथरूम की तरफ बढ़ गईं। बाथरूम में पानी से अपने अपने चेहरों को धोने के बाद वो दोनो वापस कमरे में आईं और हुलिया सही करने के बाद नास्ते के लिए कमरे से बाहर चली गईं।
“काकी, आज काका कहीं दिखाई नहीं दिये अब तक।” नास्ते की टेबल पर बैठी रितू ने बिंदिया से कहा___”बाहर गेट पर सिर्फ शंकर काका ही दिखे थे।”
“अरे बिटिया अब क्या बताऊॅ तुमसे।” बिंदिया ने बुरा सा मुह बनाते हुए कहा__”वो तो जब देखो उन चारों की खातिरदारी में ही लगा रहता है। तुमने काम जो सौंपा हुआ है उसे।”
“कौन चारो?” नैना को समझ न आया था इस लिए पूछ बैठी थी, बोली___”और किनकी खातिरदारी?”
“उन्हीं चारों की बुआ जिन्होंने विधी के साथ कुकर्म किया था।” रितू ने कहा___”वो सब बड़े बाप की बिगड़ी हुई औलादें हैं। जैसे कुकर्मी बाप वैसे ही कुकर्मी बेटे हैं। विधी के साथ इन लोगों जो कुकर्म किया उसके लिए उन चारों को कानूनी तौर पर मैं कोई सज़ा नहीं दिला सकती थी, क्योंकि वो सब अपने बाप की ऊॅची पहुॅच और ताकत के बल पर बड़ी आसानी से कानून की गिरफ्त से निकल जाते। ऐसे में विधी के साथ इंसाफ नहीं हो पाता बुआ इस लिए कानून की रखवाली करने वाली आपकी इस बेटी ने कानून को अपने हाॅथ में लेकर खुद उन चारों को सज़ा देने का फैंसला किया। ये इसी फैंसले का नतीजा है कि वो चारो आज यहाॅ पिछले कई दिनों से रोज़ाना सज़ा के रूप में यातनाएॅ झेल रहे हैं। और मज़े की बात ये है बुआ कि किसी को इस बात की भनक तक नहीं है कि यहाॅ पर किसी को ऐसी सज़ा दी जा रही है। इनके बाप लोगों को यही लगता है कि उनके बेटे कहीं बाहर गए हुए हैं और मज़े में होंगे।”
“ये तो तुमने बहुत अच्छा काम किया है रितू।” नैना ने कहा___”लेकिन अगर इन लोगों के बापों को पता चल गया कि उनके बेटों के साथ तुम यहाॅ क्या कर रही हो तब क्या होगा?”
“उसका भी पुख्ता इंतजाम कर रखा है मैने।” रितू ने कहा___”बहुत जल्द इन लोगों के बापों को भी ऐसी ही सज़ा देने वाली हूॅ मैं। किसी को पता भी नहीं चलेगा कि इन नामों के लोगों के साथ किसने क्या किया है।”
नैना, रितू के चेहरे को देखती रह गई अचरज भरी नज़रों से। से यकीन ही नहीं हो रहा था कि उसकी फूल जैसी नाज़ुक सी भतीजी ऐसे खतरनाक काम भी करती है। ख़ैर, नास्ता करने के बाद रितू ने नैना से जाने की इजाज़त ली और बाहर की तरफ निकल गई जबकि नैना मन ही मन ईश्वर को याद कर रितू और विराज की सलामती की दुवाएं करने लगी थी।
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उधर ट्रेन अपने निर्धारित समय पर ही गुनगुन स्टेशन पर पहुॅची थी। ट्रेन से उतरने से पहले मैने अपने चेहरे को रुमाल से ढॅक लिया था। मेरे साथ मेरा नया दोस्त आदित्य था। उसको अपना चेहरा ढॅकने की कोई ज़रूरत नहीं थी। क्योंकि उसे यहाॅ पर कोई पहचानता ही नहीं था। हम दोनो ट्रेन से उतर कर स्टेशन से बाहर की तरफ बढ़ चले।
प्लेटफार्म पर इधर उधर मैने सरसरी तौर पर अपनी नज़रें दौड़ाई तो सहसा एक ऐसे चेहरे पर मेरी नज़र पड़ी जो यकीनन बड़े पापा का आदमी था। वो एग्जिट गेट के दाएॅ तरफ खड़ा हर आने वालों को बड़े ध्यान से देख रहा था। मैने उसकी तरफ से अपनी निगाह हटा ली और बेफिक्र होकर एग्जिट गेट की तरफ बढ़ चला। एग्जिट गेट के पास जब मैं और आदित्य पहुॅचे तो सहसा टीटी ने हमें रोंक लिया और हमसे टिकट दिखाने को कहने लगा। मैने जल्दी से अपने पाॅकेट से अपना पर्स निकाला और उससे टिकट निकाल कर टीटी को पकड़ा दिया। मैने पल भर के लिए दाएॅ तरफ कुछ ही दूरी पर खड़े बड़े पापा के उस आदमी की तरफ देखा। वो आने वाले आदमियों की तरफ बड़े ध्यान से देख रहा था। मैं ये नहीं जानता कि उसने मेरी तरफ देखा था या नहीं मगर इस वक्त उसकी नज़र सामने से आने वाले अन्य यात्रियों की तरफ ही थी। इधर टीटी ने मेरी टिकट चेक करने बाद मुझे वापस लौटा दी तो मेरे पीछे आदित्य ने भी टीटी को अपनी टिकट थमा दी। टीटी आदित्य की टिकट देखने बाद आदित्य को वापस कर दिया। मैने इशारे से आदित्य को चलने का इशारा किया। तभी उस ब्यक्ति की नज़र मुझ पर पड़ी। वो मुझे ध्यान से देखने लगा। मैं उसके देखने पर एकदम से घबरा सा गया मगर फिर जल्द ही मैने खुद को सम्हाला और आदित्य को लेकर बाहर की तरफ बढ़ गया। मैं पीछे नहीं देखना चाहता क्योंकि मुझे अंदेशा था कि वो शायद मुझे ही देख रहा होगा और गर मैने पलट कर उसकी तरफ देखा तो उसे ज़रूर मुझ पर शक हो सकता है।
बाहर आकर मैं और आदित्य टैक्सी की तरफ तेज़ी से बढ़ चले। हलाॅकि वहाॅ पर बहुत से लोगों की भीड़ थी इस लिए मुझे यकीन था कि वो आदमी इतना जल्दी मुझे ढूॅढ़ नहीं पाएगा। टैक्सी के पास पहुॅचा ही था एक आदमी हमारे पास आया और हमसे टैक्सी का पूॅछा तो हमने तुरंत उस आदमी को हाॅ कह दिया। आदमी हमारी हाॅ सुनते ही हमे लेकर अपनी टैक्सी के पास पहुॅचा और टैक्सी का गेट खोल कर हमें अंदर बैठने का इशारा किया। हम दोनो उसमे बैठ गए तो वो टैक्सी ड्राइवर भी स्टेयरिंग सीट पर बैठ गया।
“कहाॅ चलना है साहब?” ड्राइवर ने टैक्सी को स्टार्ट करते हुए पूछा।
“हल्दीपुर।” मैने कहा तो ड्राइवर ने टैक्सी को आगे बढ़ा दिया। मैने पलट कर स्टेशन की तरफ देखा तो मुझे बड़े पापा का वो आदमी कहीं नज़र न आया। अभी मैं ये सब देख ही रहा था कि तभी मेरा मोबाइल फोन बज उठा। मैने हड़बड़ा कर मोबाइल को निकाल कर स्क्रीन पर फ्लैश कर रहे नाम को देखा। पवन का फोन था। मैने काल रिसीव की तो वो मुझसे पूछने लगा कि मैं इस वक्त कहाॅ हूॅ तो मैने उसे बता दिया कि टैक्सी में बैठ कर हल्दीपुर के लिए निकल लिया हूॅ। मेरी बात सुन कर उसने कहा कि ठीक है वो मुझे हल्दीपुर के बस स्टैण्ड पर मिलेगा जहाॅ पर उसकी दुकान है। उसके बाद मैने काल कट कर दी।
“यहाॅ से कितना समय लगेगा तुम्हारे गाॅव पहुॅचने में?” आदित्य ने मुझसे पूछा।
“ज्यादा से ज्यादा आधे घंटे का समय लगेगा।” मैने कहा___”हल्दीपुर के बस स्टैण्ड से पवन को साथ में लेकर ही उसके घर चलेंगे।”
मेरी बात सुन कर आदित्य कुछ न बोला। मैने एक बार पीछे मुड़ कर टैक्सी के पिछले शीशे के उस पार देखा। एक जीप हमारी इस टैक्सी के पीछे आ रही थी। मैने सोचा होगा कोई। मगर मुझे कोई उम्मीद नहीं थी कि इस तरह कोई जीप वाला एक रिदम पर टैक्सी के पीछे चल रहा था। मैने कई बार नोट की वो जीप हमादे पीछे उतनी ही रफ्तार से चलती हुई आ रही थी। मुझे समझ न आया कि ऐसा कौन हो सकता है उस जीप में जो हमारे पीछे पीछे उतनी ही गति से आ रहा था जितनी गति से हमारी टेक्सी सड़क पर दौड़ी जा रही थी। मेरा माथा ठनका कि कौन हो सकता है उस जीप में?????
दोस्तो, आपके सामने अपडेट हाज़िर कर दिया हूॅ,,,,,,,
अगले अपडेट में आगे का विवरण होगा, जो शायद कुछ ज्यादा इमोशनल होगा,,,,,,,,,,