♡ एक नया संसार ♡
अपडेट……..《 40 》
अब तक,,,,,,,,
“ओह दीदी सचमुच।” पवन ने कहा__”ये तो मैं भूल ही गया था। तो आप उसकी सेफ्टी के लिए क्या करेंगी दीदी?”
“वो तुम मुझ पर छोंड़ दो भाई।” रितू ने कहा___”मेरे रहते मेरे भाई को कोई छू भी नहीं सकेगा।”
रितू के चेहरे पर एकाएक ही कठोरता आ गई थी। पलक झपकते ही शेरनी की भाॅति ज़लज़ला नज़र आने लगा था उसके चेहरे पर। पवन सिंह एक बार को तो काॅप ही गया था उसे इस रूप में देख कर।
रितू के मन में यही सब फिल्म की तरह चल रहा था। उसकी जिप्सी ऑधी तूफान बनी हवेली की तरफ दौड़ी जा रही थी। उसे पता था कि उसका बाप विराज को खोजने के लिए अपने आदमियों को लगाया हुआ है। संभव है कि अजय सिंह ने अपने आदमियों को गाॅव हल्दीपुर और शहर गुनगुन में भी फैला रखा हो। रितू के मन में सिर्फ एक ही विचार था कि विराज को किसी भी हालत में अपने बाप और उसके आदमियों की नज़र में नहीं आने देना है। ये उसकी जिम्मेदारी थी कि विराज पर किसी तरह का कोई संकट न आ पाए। क्योंकि वास्तविकता तो यही थी न कि विराज को उसने ही पवन सिंह के द्वारा बुलवाया है।
रितू की जिप्सी हवेली के गेट से अंदर दाखिल होते हुए पोर्च में जाकर रुकी। जिप्सी से उतर कर वह अंदर की तरफ बढ़ गई।
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अब आगे,,,,,,,,
पवन से फोन पर बात करने के बाद मैं थोड़ी देर के लिए गहरी सोच में डूब गया था। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि पवन ने आख़िर किस वजह से मुझे गाॅव आने के लिए कहा था? पूछने पर भी उसने कुछ नहीं बताया था। काफी देर तक इस बारे में सोचने के बाद भी जब मुझे कुछ समझ न आया तो मैने अपने दिमाग़ से इस बात को झटक कर बाइक स्टार्ट की और घर की तरफ चल दिया।
रास्ते में मैं ये सोच रहा था कि गाॅव जाने के लिए माॅ से कैसे अनुमति मिलेगी मुझे? क्योंकि मेरे गाॅव जाने का सुन कर ही उनके होश उड़ जाना है और ये भी निश्चित था कि वो मुझे गाॅव जाने की इजाज़त किसी भी हाल में नहीं देंगी। लेकिन मेरा गाॅव जाना तो अब ज़रूरी हो गया था।
घर पहुॅच कर मैने बाइक को गैराज में लगाया और मुख्य दरवाजे के पास आ गया। डोर बेल पर उॅगली से पुश किया। अंदर बेल की आवाज़ गई। कुछ ही पलों में दरवाजा खुला। मेरी माॅ मेरे सामने दरवाजा खोल कर खड़ी थी। मुझ पर नज़र पड़ते ही उनके गुलाबी होंठो पर मुस्कान फैल गई।
“आ गया मेरा बेटा।” माॅ ने मेरे सिर से लेकर चेहरे तक अपना हाॅथ फेरते हुए कहा__”चल आजा हम सब तेरे आने का ही इन्तज़ार कर रहे थे।”
मैं के साथ चलते हुए ड्राइंग रूम में पहुॅचा। वहाॅ पर रखे सोफों पर जगदीश अंकल और अभय चाचा बैठे हुए थे। निधि शायद अपने कमरे में थी।
“तो कैसा रहा हमारे राज का काॅलेज में पहला दिन?” जगदीश अंकल ने मुस्कुरा कर कहा___”आई होप, बहुत ही बेहतर रहा होगा।”
“आपने सही कहा अंकल।” मैने एक सोफे पर बैठते हुए कहा___”और आपको पता है आज पहले ही दिन मेरी दोस्ती कुछ खास लोगों से हो गई है।”
“ओह ये तो बहुत अच्छी बात है बेटे।” अंईल ने कहा___”वैसे मैने सुना है कि काॅलेजों में रैगिंग वगैरा होती है। जिसमें सीनियर स्टूडेन्ट्स अपने जूनियर्स को कई तरह से परेशान करते हैं। सो तुम्हें तो किसी सीनियर ने परेशान नहीं किया न?”
“नहीं अंकल ऐसा कुछ नहीं था और थोड़ा बहुत तो चलता है।” मैने कहा।
“वैसे राज क्या नीलम से भी तुम्हारी मुलाक़ात हुई क्या?” अभय चाचा ने पूछा।
“हाॅ चाचा जी।” मैने कहा___”लेकिन बस हमने एक दूसरे को देखा ही है। कोई बात चीत न मैने की उससे और ना ही उसने।”
“तुम्हें वहाॅ पर देख कर हैरान तो बहुत हुई होगी वो।” चाचा ने कहा___”और अब वो ज़रूर फोन करके बड़े भइया को बताएगी कि तुम भी उसी काॅलेज में पढ़ रहे हो। उसके बाद भगवान ही जाने कि क्या होगा?”
“कुछ नहीं होगा भाई साहब।” सहसा जगदीश अंकल ने कहा___”ये मुम्बई है मुम्बई। यहाॅ पर आपके बड़े भाई साहब का राज नहीं चलेगा। यहाॅ अगर उन्होंने राज को छूने की भी कोशिश की तो पल भर में उनको नेस्तनाबूत कर दिया जाएगा।”
जगदीश अंकल की बात सुन कर अभय चाचा कुछ न बोले। कदाचित वो समझ गए थे कि जगदीश अंकल सच कह रहे थे। आज के वक्त में मैं कोई मामूली इंसान नहीं था। बल्कि मुम्बई शहर के टाॅप धन कुबेरों में मेरा नाम दर्ज़ हो चुका था।
ख़ैर, इन सब बातों के बीच मैं ये सोच रहा था कि गाॅव जाने की बात माॅ से कैसे कहूॅ? मेरे पास वैसे भी ज्यादा समय नहीं रह गया था। मैं अपनी जगह से उठ कर माॅ के पास उनके सोफे पर बैठ गया। मुझे अपने पास बैठते देख माॅ ने प्यार से एक बार फिर मेरे सिर पर हाॅथ फेरा। मेरे चेहरे की तरफ कुछ पल देखने के बाद कहा___”क्या बात है राज? कुछ कहना है क्या तुझे?”
“वो माॅ वो…मुझे न..वो मुझे।” मेरी आवाज़ अटक सी रही थी___”मुझे न आज और इसी समय गाॅव जाना होगा। बहुत ज़रूरी है।”
“क्या?????” माॅ मेरी बात सुन कर उछल ही पड़ी थी, बोली__”ये तू क्या कह रहा है? नहीं हर्गिज़ नहीं। तू गाॅव नहीं जाएगा। तेरे मन में गाॅव जाने का ख़याल आया कैसे?”
मेरी बात से माॅ तो उछली ही थी किन्तु उनके साथ ही साथ जगदीश अंकल और अभय चाचा भी बुरी तरह चौंके थे।
“ये तुम क्या कह रहे हो राज?” जगदीश अंकल ने हैरानी से कहा___”तुम्हें गाॅव किस लिए जाना है? आख़िर ऐसा क्या ज़रूरी काम आ गया?”
“वो पवन का फोन आया था मुझे काॅलेज से आते समय।” मैने कहा___”पवन मेरा बचपन का बहुत ही गहरा दोस्त है। उसी का फोन आया था। उसने मुझे अर्जेटली गाॅव बुलाया है। मैने उससे वजह पूछी मगर उसने बस इयना ही कहा कि तू बस आजा।”
मैने उन सबको पवन से हुई सारी बात बता दी। मेरी बातें सुनने के बाद ड्राइंगरूम में सन्नाटा सा छा गया।
“किसी का भी फोन हो और चाहे जितना भी ज़रूरी हो।” माॅ ने सन्नाटे को चीरते हुए कहा___”तू गाॅव नहीं जाएगा बस। मैं तुझे मौत के मुह में जाने की हर्गिज़ भी इजाज़त नहीं दूॅगी।”
“लेकिन तुम्हारे दोस्त को कोई वजह तो बताना ही चाहिये था राज।” जगदीश अंकल ने कहा___”भला ये क्या बात हुई कि फोन घुमा दिया और कह दिया कि तुम्हें यहाॅ आना है बस?”
“कहीं ऐसा तो नहीं भाई साहब कि राज का दोस्त अजय भइया के हाथ लग गया हो और ये सब बातें उसने उनके ही कहने पर की हों?” अभय चाचा ने कुछ सोचते हुए कहा___”यकीनन ऐसा हो सकता है। उन्होंने कहीं से पता कर लिया होगा कि गाॅव में राज का कोई दोस्त है जो अक्सर राज से फोन पर बातें करता रहता है। इस लिए उन्होंने उसे पकड़ लिया होगा और डरा धमका कर फोन करवाया होगा।”
“आपकी बातों में यकीनन वजन है भाई साहब।” जगदीश अंकल ने कहा___”यकीनन ऐसा हुआ होगा। उन्होंने राज के दोस्त को मजबूर किया होगा इस सबके लिए।”
“उसने जब मुझसे फोन पर बात की थी तब ऐसा बिलकुल भी नहीं लग रहा था कि वो किसी के द्वारा मजबूर किया गया है।” मैने कहा___”वो बिलकुल नार्मली ही बातें कर रहा था। हाॅ थोड़ा थोड़ा दुखी और उदास सा ज़रूर समझ में आ रहा था।”
“ये सब बातें छोंड़िये आप लोग।” सहसा माॅ ने कहा___”राज कहीं नहीं जाएगा बस। ये मेरा आख़िरी फ़ैसला है।”
“लेकिन बहन।” जगदीश अंकल ने कहा___”पता तो चलना ही चाहिए कि बात क्या है? मान लो कि सचमुच कोई ऐसी बात हो जिससे राज का वहाॅ पर जाना बहुत ज़रूरी ही हो तब क्या? ये सब संभावनाएॅ हैं। हमें सच्चाई जानना ज़रूरी है। एक काम करो राज तुम अभी अपने दोस्त को फोन लगाओ और उससे बात करो। हम सब सुनेंगे कि बात क्या है।”
मुझे जगदीश अंकल की बात सही लगी इस लिए मैने फोन निकाल कर तुरंत पवन को फोन लगा कर स्पीकल ऑन कर दिया। कुछ देर फोन की रिंग जाने की आवाज़ आती रही।
“हाॅ भाई चल दिया क्या वहाॅ से?” उधर से पवन का स्वर उभरा।
“यार मेरी समझ में ये नहीं आ रहा कि आख़िर ऐसा क्या ज़रूरी काम है जिसकी वजह से तूने मुझे वहाॅ अर्जेंट बुलाया है?” मैने कहा।
“मेरे भाई मैं तुझे फोन पर नहीं बता सकता। तू बस आजा और खुद अपनी ऑखों से देख सुन ले।” उधर से पवन अधीर भाव से कह रहा था___”मुझे पता है भाई कि तेरा यहाॅ पर आना खतरे से खाली नहीं है। मैं खुद भी तुझे किसी ऐसे खतरे में डालने का सोच भी नहीं सकता। लेकिन भाई बात ही ऐसी है कि तुझे बुलाना पड़ रहा है यहाॅ। भाई तुझे हमारी दोस्ती की कसम है, तू आजा भाई। चाहे दो पल के लिए ही आजा लेकन आजा भाई। मैं तेरे हाॅथ जोड़ता हूॅ, तू आजा मेरे यार।”
“अच्छा ये बता कि तू किसी के दबाव में या किसी के द्वारा मजबूर हो कर तो नहीं बुला रहा न मुझे?” मैने बाॅकी सबकी तरफ नज़रें घुमा कर देखते हुए कहा था।
“ये तू क्या कह रहा है राज?” पवन के स्वर में हैरानी थी, बोला___”भाई तू सोच भी कैसे सकता है कि मैं किसी के द्वारा मजबूर होकर तुझे खतरे में डाल दूॅगा? मैं मर जाऊॅगा भाई लेकिन ऐसा कभी नहीं कर सकता।”
“चल ठीक है भाई मैं आने की कोशिश करूॅगा।” मैने कहा।
“कोशिश नहीं भाई।” पवन ने कहा__”तुझे ज़रूर आना है। कल मैं तुझे बस स्टैण्ड पर ही मिलूॅगा। तेरे बड़े पापा के आदमी काफी समय से यहाॅ आस पास नहीं दिखे हैं। शायद उन्हें यकीन हो गया है कि अब तू गाॅव नहीं आएगा। किसी को कानो कान खबर नहीं होगी तेरे आने की। तू फिक्र मत ईर भाई। तू बस आजा।”
“चल ठीक है।” मैने कहा और फोन काट दिया।
“तुम्हारे दोस्त की बातचीत से तो साफ पता चलता है कि वो ये सब किसी के द्वारा मजबूर होकर नहीं बल्कि अपनी स्वेच्छा से कह रहा है।” जगदीश अंकल ने कहा___”लेकिन अब सवाल यही है कि आख़िर किस अर्जेन्ट काम के लिए उसने तुम्हें गाॅव आने के लिए कहा हो सकता है? उसने इस बारे में कुछ भी नहीं बताया। बस यही कहा कि तुम खुद अपनी ऑखों से देख सुन लो। भला ऐसी क्या बात हो सकती है जिसे अपनी ऑखों और कानों से देखने सुनने की बात की उसने?”
“ये तो वहाॅ जाकर ही पता चलेगा अंकल।” मैने कहा___”मेरा ये दोस्त ऐसा है कि मेरे बारे में कभी भी अहित नहीं सोच सकता। यही वो दोस्त है जिसने अब तक मुझे हवेली में रहने वाले लोगों की पल पल की ख़बर दी। चाचा जी जब आप यहाॅ आ रहे थे तब भी इसी ने फोन करके मुझे बताया था कि आप यहाॅ आ रहे हैं। हवेली में कुछ बात हो गई थी जिसकी वजह से हवेली में उस समय तनाव हो गया था।”
“कोई भी वजह हो तू गाॅव नहीं जाएगा मेरे बच्चे।” माॅ की ऑखों में ऑसू आ गए__”मैं तुझे नहीं जाने दूॅगी। तू यहीं मेरी नज़रों के सामने ही रहेगा।”
“आपकी इजाज़त के बिना तो मैं वैसे भी कहीं नहीं जाऊॅगा माॅ।” मैने माॅ की ऑखों से ऑसू पोंछते हुए कहा___”लेकिन ये तो आपको भी पता है न कि जो खेल शुरू हो चुका है उसको अंजाम तक ले जाना मेरा संकल्प है और फर्ज़ भी। आपका बेटा न पहले कायर और बुजदिल था और ना ही अब है। उन्होंने धोखे से हम पर वार किया था जबकि मैं सामने से उनके सीने पर वार करूॅगा।”
“ऐसा ही होगा राज बेटे।” अभय चाचा ने कहा___”मुझे सारी सच्चाई का भाभी से पता चल चुका है। इस लिए अब इस लड़ाई में मैं भी तुम्हारे साथ हूॅ। बस चिंता एक ही बात की है कि तेरी चाची और तेरे भाई बहन भले ही तेरे मामा जी के यहाॅ हैं लेकिन वो सुरक्षित नहीं हैं वहाॅ। काश! मुझे पता होता तो उन्हें भी अपने साथ ही ले आता यहाॅ।”
“अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा है भाई साहब।” जगदीश अंकल ने कहा___”करूणा बहन और उसके बच्चों को सुरक्षित यहाॅ बुलाया जा सकता है।”
“वो कैसे भाई साहब?” चाचा जी के माथे पर बल पड़ता चला गया।
“गौरी बहन।” जगदीश अंकल ने माॅ की तरफ देखते हुए कहा___”तुम राज की ज़रा भी फिक्र मत करो। राज यहाॅ से गाॅव ज़रूर जाएगा लेकिन अकेला नहीं। मैं राज के साथ एक ऐसे शख्स को भेजूॅगा जो हर पल राज के साथ उसका सुरक्षा कवच बन कर रहेगा। अभय भाई साहब अपने ससुराल में फोन कर देंगे, और समझा देंगे कि कैसे उन लोगों को वहाॅ से यहाॅ आना है।”
“भइया आप भी??” माॅ ने फिक्रमंदी से कहा___”आप भी इसे भेजने की ही बात कर रहे हैं?”
“मेरी बहन मैने कहा न तुम राज की बिलकुल भी चिंता न करो।” जगदीश अंकल ने कहा___”राज अगर तुम्हारा बेटा है और तुम्हारे प्राण उस पर बसते हैं तो ये समझ लो कि मेरे प्राण भी राज पर ही बसते हैं। मैं राज के ऊपर लेश मात्र का भी खतरा नहीं चाह सकता। मगर मैं ये भी जानता हूॅ कि राज के सामने प्यार और ममता की दीवार खड़ी करके उसे उसके कर्तब्य पथ पर जाने से रोंकना भी उचित नहीं है। खतरा तो इंसान के जीवन का एक हिस्सा है बहन। इंसान का हर दिन एक नया जन्म होता है और हर दिन एक मृत्यु होती है। सुबह की पहली किरण के साथ ही इंसान के नये जीवन की शुरूआत हो जाती है और फिर जब इंसान रात में सो जाता है तो वह एक तरह से मृत समान ही हो जाता है। ख़ैर, मैं ये कह रहा हूॅ कि तुम अपने इस भाई पर यकीन रखो। मैं राज पर किसी भी तरह का संकट नहीं आने दूॅगा।”
जगदीश अंकल की बात सुन कर माॅ कुछ न बोली। बस ऑखों में नीर भरे देखती रही उन्हें।
“राज तुम जाने की तैयारी करो।” जगदीश अंकल ने कहा___”तब तक मैं भी उस शख्स को फोन कर के बुला लेता हूॅ और तुम दोनो के लिए ट्रेन की टिकट का भी इंतजाम कर देता हूॅ।”
जगदीश अंकल की बात सुन कर मैने माॅ की तरफ देखा। माॅ ने अपने सिर को हल्का सा हिला कर मुझे जाने की इजाज़त दे दी। मैं तुरंत ही उठ कर अपने कमरे की तरफ तेज़ी से बढ़ गया। लगभग पन्द्रह मिनट बाद मैं तैयार होकर तथा एक छोटे से पिट्ठू बैग में कुछ कपड़े व कुछ ज़रूरी चीज़ें डाल कर कमरे से बाहर आ गया।
कमरे से बाहर आकर मुझे निधि का ख़याल आया। मैं उसके कमरे की तरफ बढ़ गया। दरवाजे को बाहर से नाॅक कर उसे आवाज़ दी मगर अंदर से कोई प्रतिक्रिया न हुई। मैंने दरवाजे को अंदर की तरफ धकेला तो वो खुलता चला गया। कमरे के अंदर दाखिल होकर मैने देखा कि निधि बेड पर करवॅट लिए सो रही थी। सोते हुए वो बिलकुल मासूम सी बच्ची लग रही थी। मुझे उस पर बड़ा प्यार आया। मैने झुक कर उसके माथे पर हल्के से चूॅमा और फिर झुके हुए ही कहा___”अपना ख़याल रखना गुड़िया। मैं गाॅव जा रहा हूॅ अभी। जल्द ही वापस आऊॅगा।”
इतना कह कर मैंने एक बार फिर से उसके माथे को चूमा फिर पलट कर कमरे से बाहर आ गया। इस बात से अंजान कि मेरे बाहर आते ही निधि ने अपनी ऑखें खोल दी थी। उन समंदर सी गहरी ऑखों में ऑसू तैर रहे थे।
ड्राइंगरूम में जब मैं पहुॅचा तो देखा एक अंजान ब्यक्ति एक तरफ सोफे पर बैठा था। दिखने में हट्टा कट्टा था। ऊम्र यही कोई तीस या पैंतीस के बीच रही होगी उसकी। चेहरे पर पत्थर जैसी कठोरता विद्यमान थी। जबड़े कसे हुए लग रहे थे।
“राज बेटा इनसे मिलो।” मुझे देखते ही जगदीश अंकल ने उस ब्यक्ति की तरफ इशारा करते हुए कहा___”ये हैं आदित्य चोपड़ा। ये काफी अच्छे मार्शल आर्टिस्ट हैं। ये सबको सिक्योरिटी प्रोवाइड करते हैं। मैने इन्हें सबकुछ समझा दिया है। अब से ये हर पल तुम्हारे साथ तुम्हारा साया बन कर रहेंगे।”
“ओह हैलो।” मैने कहने के साथ ही उसकी तरफ हैण्ड शेक करने के लिए हाथ बढ़ाया। उसने भी हैलो करते हुए मुझसे हाथ मिलाया। उसके हाॅथ मिलाने से ही मुझे महसूस हो गया कि ये बंदा काफी ठोस व मजबूत है।
ख़ैर सबसे आशीर्वाद लेकर मैं बाहर की तरफ चल दिया। मेरे साथ ही बाॅकी सब भी बाहर आ गए। कार की तरफ जाने से पहले माॅ ने मुझे अपने सीने से लगा कर प्यार दिया। आदित्य ने कार की ड्राइविंग शीट सम्हाली। जबकि मैं और जगदीश अंकल कार की पिछली शीट पर बैठ गए। उसके बाद कार रेलवे स्टेशन की तरफ तेज़ी से बढ़ चली। जगदीश अंकल मेरे साथ इस लिए थे ताकि वापसी में वो स्टेशन से कार वापस ला सकें।
रेलवे स्टेशन पहुॅच कर मैने जगदीश अंकल को वापस घर जाने का कह दिया। उन्होंने मुझे कुछ हिदायतें दी और शुभकामनाएॅ भी। उनके जाने के बाद मैं और आदित्य प्लेटफार्म की तरफ बढ़ गए। प्लेटफार्म में जब हम पहुॅचे तो ट्रेन जाने ही वाली थी। इस लिए हम दोनो एसी फर्स्ट क्लास की तरफ दौड़ चले। कुछ ही देर में हम दोनो अपनी अपनी शीटों पर आ गए थे।
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काॅलेज में हुई घटना से नीलम मानसिक रूप से काफी दुखी हो गई थी और जिस तरह से विराज ने वहाॅ पर आकर उसकी इज्ज़त को तार तार होने से बचाया था वो उसके लिए निहायत ही अविश्वसनीय था। उसने तो कल्पना भी न की थी कि उसके चाचा का लड़का यानी कि उसका भाई जो उमर में उससे मात्र दस दिन बड़ा था वो यहाॅ पर आएगा और इस तरह से उसकी इज्ज़त को मिट्टी में मिल जाने से बचाएगा।
उसने तो माॅम डैड के मुख से अक्सर यही सुना था कि विराज मुम्बई में किसी होटेल या ढाबे में कप प्लेट धोता होगा। मगर मुम्बई के इतने बड़े काॅलेज में जहाॅ पर एडमीशन लेने के लिए हाई पर्शेन्टेज मार्क्स का होना और अच्छे खासे पैसे का होना अनिवार्य था उस काॅलेज में विराज को एक स्टूडेंट के रूप में देख कर नीलम के आश्चर्य की कोई सीमा न रही थी।
विराज को अपने इस काॅलेज में देख कर नीलम को ये तो समझ में आ गया था कि उसके माॅम डैड विराज के बारे में जो सोच और विचार रखे हुए हैं वो सिरे से ही ग़लत है। आज काॅलेज में हुई घटना के बाद नीलम जैसे पत्थर की मूर्ति में परिवर्तित हो गई थी। उसने देखा था कि कैसे विराज ने उन लड़कों को दो मिनट में धूल चटाया था उसके बाद उसने उसका दुपट्टा उसे लौटाया था। किन्तु जब उसने देखा कि जिसे वह दुपट्टा दे रहा था वो उसी की चचेरी बहन थी तो उसने तुरंत उससे मुह फेर लिया था और उसके पास से चला गया था।
नीलम को तो काफी देर तक कुछ समझ न आया था कि वह क्या करे? वो तो बुत बन गई थी। अपने भाई के सामने उसकी स्थित दो कौड़ी की न रह गई थी। उस भाई के सामने जिसे उसके माॅम डैड दो कौड़ी का भी नहीं समझते थे और वो खुद भी कभी उसे अपने भाई का दर्जा नहीं देती थी।
काफी देर बाद जब नीलम की तंद्रा टूटी तो वह बदहवास सी होकर कंटीन की तरफ खिंची चली गई थी। मगर कंटीन में जो नज़ारा उसे देखने को मिला उसने उसे और भी ज्यादा हैरान कर दिया। जिस विराज को वो आज तक एक सीधा सादा और दो कौड़ी का भी नहीं समझती थी वो आज इतना खतरनाक दिख रहा था कि आशू राना के हट्टे कट्टे भाई को अधमरा कर दिया था। उसकी ऑखों के सामने उसने भूषण को पहले तो अधमरा किया और फिर उसे खुद ही आशू के साथ हास्पिटल भी ले गया।
काॅलेज में पहले दिन ही इस तरह की घटना से सनसनी सी फैल गई थी। वो खुद भी मानसिक रूप से ब्यथित थी इस लिए वह काॅलेज से सीधा अपनी बड़ी मौसी पूनम के घर चली गई थी। इस वक्त वह अपने कमरे में बेड पर पड़ी हुई थी। उसकी ऑखें ऊपर छत पर घूम रहे पंखे को अपलक देखे जा रही थी।
नीलम की ऑखों के सामने बार बार वही मंज़र आ रहा था। उसे अभी भी यकीन नहीं हो रहा था कि वो विराज ही था। उसे ऐसा लग रहा था जैसे उसने खुली ऑखों से कोई ख्वाब देखा था। मगर हकीक़त उसे अच्छी तरह पता थी। काॅलेज से जल्दी आ जाने पर उसकी मौसी ने पूछा था कि इतना जल्दी काॅलेज से कैसे आ गई वह? मगर उसने गोल मोल जवाब दे दिया था और सीधा अपने कमरे में बेड पर लेट गई थी।
वह विराज से नफ़रत तो नहीं करती थी किन्तु हाॅ उसे वह अपना भाई भी नहीं मानती थी और ना ही उसकी नज़र में उसकी कोई अहमियत थी। उसके माॅम डैड बचपन से ही ये हिदायत देते थे कि विराज, निधि और उसके माॅ बाप अच्छे लोग नहीं हैं। इनसे न कभी बात करना और ना ही कभी इनके पास जाना। ये हमारे कुछ नहीं लगते हैं। बचपन से एक ही पाठ पढ़ाया गया था इन्हें। समय के साथ साथ उसी तरह की सोच भी बन गई थी इनकी। हालात ऐसे बनाए गए थे कि इन लोगों ने कभी ये सोचा ही नहीं कि हम जिनके बारे में ऐसी धारणा बनाए बैठे हैं वो वास्तव में वैसे हैं भी या नहीं? समय गुज़रा और फिर वो सब हादसे हुए जिनसे इनकी सोच में और भी ज्यादा वो सब बातें बैठ गईं।
मगर आज के हादसे ने नीलम के अस्तित्व को हिला कर रख दिया था। उसे उस सोच और धारणा के महासागर से बाहर निकाल दिया जिस महासागर में आज तक वो डूबी हुई गोते लगा रही थी। कहते हैं कि समय हमेशा एक जैसा नहीं रहता। समय बदलता रहता है और बदलते हुए समय के साथ ही साथ इंसान की सोच भी बदलती रहती है। कुछ लोग ऐसे होते हैं जो एक ही बात को गाॅठ बाॅध कर जीवन भर ढोते रहते हैं। उन्हें किसी की बात सही नहीं लगती। वो हमेशा अपनी ही सोच को यथार्थ और हकीक़त मान कर जीते हैं। उन्हें अपनी सोच और धारणा के ग़लत होने का तब पता चलता है जब वक्त खुद उन्हें आईना दिखाता है या एहसास कराता है।
नीलम के पास आज वही वक्त आईना दिखाने आया था और आईना दिखा कर उसने उसे एहसास करा दिया था कि अब तक वो कितना ग़लत थी जो अपने माता पिता के द्वारा मिली सीख और निर्देशों पर चल रही थी। वक्त ने आकर उसे आईना दिखाया, एहसास कराया और उससे एक सवाल भी कर गया कि ‘अगर ये इतना ही बुरा होता तो आज किसी काॅलेज में किसी लड़की की इज्ज़त बचाने के लिए इतनी भीड़ में से अकेला नहीं आता। ये तो उसे बाद में पता चला कि वो लड़की कोई और नहीं बल्कि उसकी बहन ही थी। अपनी जान को खतरे में डाल कर आज के युग में कौन किसी के लिए ऐसा करता है? ये तो वही कर सकता है जो सच्चा होता है और जो किसी बेकसूर व मजलूम पर अत्याचार होते नहीं देख सकता। बल्कि अत्याचार करने वाले से भिड़ जाता है फिर चाहे भले ही खुद उसकी जान ही क्यों न चली जाए।
नीलम की ऑखों के सामने बचपन से लेकर अब तक की सारी यादें किसी फिल्म की तरह चलने लगी। उसे याद आया कि एक बार हवेली में उससे एक कीमती मूर्ति गिर कर टूट गई थी, उस वक्त नीलम और शिवा ही थे। आवाज़ सुन कर विराज भी आ गया था। वो मूर्ति के टुकड़ों को पास से जाकर देखने लगा था। उसी वक्त विजय चाचा और नैना बुआ भी आ गई थी। विजय चाचा ने मूर्ति को टूट कर बिखरी हुई देख कर पूछा था कि ये किसने तोड़ा तो शिवा जो कि छोटा ही था उस वक्त उसने भोलेपन में डर की वजह से तुरंत नीलम की तरफ उॅगली कर दिया था। मगर तभी विराज ने कहा था कि उससे ही गिर कर टूट गई थी वो मूर्ति। उसकी बात सुनकर विजय चाचा ने विराज की काफी ज्यादा पिटाई कर दी थी। विराज पिटता रहा मगर मुख से ये न बताया था कि मूर्ति असल में नीलम से टूटी थी।
ज़ोरदार पिटाई के चलते विराज की हालत ख़राब हो गई थी, जबकि वो और उसके भाई बहन उसके पिट जाने पर बहुत खुश थे। एक बार अजय सिंह की जेब से शिवा ने पैसे चुरा लिए थे और चुराकर शिवा ने कमरे में सो रहे विराज की शर्ट की जेब में वो पैसा डाल दिया था। ये सब सिर्फ इस लिए मिली भगत द्वारा किया गया था ताकि विराज की फिर से पिटाई हो और वही हुआ भी। शिवा नीलम को लेकर अपने बाप के पास गया और उससे बोला कि डैड विराज ने आपकी जेब से पैसा चुराया है जिसे उसने अपनी ऑखों से देखा है। बस फिर क्या था अजय सिंह को तो बहाना चाहिए होता था विजय सिंह और उसके बच्चों को उल्टा सीधा बोलने के लिए। तलाशी में वो पैसा विराज की शर्ट की जेब में मिल ही गया। उसके बाद विजय सिंह ने सोते हुए विराज की पिटाई शुरू कर दी। बेचारे को समझ ही न आया था कि वो किस बात पर मार खा रहा था। जबकि उसकी पिटाई से नीलम शिवा और रितू ये तीनों बड़ा खुश हो रहे थे।
ऐसी बहुत सी बातें थी जो इस वक्त नीलम की ऑखों के सामने घूम रही थी। विराज में एक खासियत ये थी कि वो अपनी सफाई में कभी कुछ नहीं बोलता था। मार खाने के बाद और इतना ज्यादा जलील होने के बाद भी वह इन लोगों के साथ खेलने के लिए आ जाता था। ये अलग बात थी कि ये लोग उसे दुत्कार कर भगा देते थे।
नीलम को पता ही नहीं चला कि कब उसकी ऑखों में ऑसू भर आए थे। पता तो तब चला जब वो ऑसू दोनो ऑखों की कोरों से बहते हुए कानों गिरे। एक हूक सी उठी दिलो दिमाग़ में उसके। मनो मस्तिष्क झनझना कर रह गया। भावनाओ और जज़्बातों का एकाएक ही तीब्र तूफान उठ खड़ा हुआ। हृदय का जब परिवर्तन होता है तो एक नये युग का प्रारंभ हो जाता है। परिवर्तन अगर नफ़रत के लिए होता है तो बहुत जल्द एक बड़े अनिष्ट की नियति बन जाती है और अगर प्रेम के लिए होता है तो एक नया संसार बनने लगता है।
“मुझे माफ़ कर दे भाई।” भावना या जज़्बात जब प्रबल हो जाते हैं तो कोई धैर्य कोई संयम नहीं हो सकता। बल्कि हर दरो दीवार को तोड़ते हुए हृदय में ताण्डव करते हुए जज़्बात ऑखों के रास्ते से ऑसू बन कर बहने लग जाते हैं_____”माफ़ कर दे मुझे। कितना ग़लत सोचती थी आज तक मैं तेरे बारे में। मगर तू तो पहले भी हीरा था भाई और आज भी हीरा है। बचपन से लेकर आज तक हमेशा तुझे जलील किया अपमानित किया और न जाने कैसे कैसे इल्ज़ाम लगा कर तुझे तेरे ही पिता जी से पिटवाया। कोई इतना बुरा कैसे हो सकता है भाई? और तू इतना अच्छा कैसे हो सकता है? आज जिस तरह से तूने मुझे अनदेखा कर के अजनबीपन दिखाया उसने मुझे समझा दिया है भाई कि मेरी औकात तेरे सामने कुछ भी नहीं है।”
नीलम खुद से ही बड़बड़ाये जा रही थी और ऑसू बहाए जा रही थी। अभी वह रो ही रही थी कि सहसा किसी ने उसके कंधे पर हाॅथ रखा। वह बुरी तरह उछल पड़ी। पलट कर देखा तो बगल से ही उसकी मौसी की दूसरी बेटी सोनम उसकी तरफ झुकी हुई खड़ी थी।
दोस्तो यहाॅ पर मैं नीलम की मौसी और उसके परिवार का संक्षिप्त परिचय देना चाहूॅगा,,,,,,,,,
●पूनम सिंह, ये नीलम की माॅ यानी प्रतिमा की बड़ी बहन है। इस नाते ये नीलम की मौसी लगती है। ऊम्र पचास के आसपास। प्रतिमा की तरह ही दिखने में बेहद सुंदर है।
●महेश सिंह, ये नीलम के मौसा और पूनम के पति हैं। ऊम्र पचपन के आसपास। पेशे से डाॅक्टर हैं।
● अंजली सिंह, ये नीलम की मौसी की बड़ी बेटी है। ऊम्र पच्चीस के आसपास। दिखने में बहुत ही खूबसूरत है। पेशे से ये भी डाॅक्टर है। अभी शादी नहीं हुई है इसकी।
●सोनम सिंह, ये नीलम के मौसी की दूसरी बेटी है। ऊम्र बाईस साल है। अपनी बहन की ही तरह खूबसूरत है। ये काॅलेज में साइंस से एम एस सी कर रही है।
● विकास सिंह, ये नीलम की मौसी का इकलौता व सबसे छोटा बेटा है। ऊम्र उन्नीस के आसपास। अपने बाप महेश की तरह ही ये भी डाॅक्टर बनना चाहता है।
दोस्तो ये था नीलम की मौसी का संक्षिप्त परिचय। अब कहानी की तरफ चलते हैं,,,,,,,
“दीदी आप।” सोनम पर नज़र पड़ते ही नीलम लगभग हड़बड़ा गई थी।
“हूॅ तो मैं ही।” सोनम ने मुस्कुराते हुए कहा___”मगर तू चाहे तो कुछ और भी समझ सकती है। ख़ैर, ये बता कि कौन है वो?”
“क क्या मतलब??” नीलम बुरी तरह चौंकी थी।
“मतलब कि वो कौन है जिसकी याद में तू ऑसू बहा रही है?” सोनम कहने के साथ ही बेड पर बैठ गई____”तू मुझे बता सकती है नीलम। मैं तेरी बड़ी बहन से कहीं ज्यादा तेरी दोस्त की तरह हूॅ। अब चल बता कि कौन है वो जिसने मेरी प्यारी सी दोस्त की ऑखों को रुलाया है?”
“ऐसा कुछ नहीं है दीदी।” नीलम ने कहा__”ये ऑसू तो पश्चाताप के हैं। आज तक जिसे अजनबी समझकर उसे जलील और दुत्कारती रही थी उसी ने आज मेरी इज्ज़त बचाई दीदी।”
“क्या???” सोनम उछल पड़ी___”ये तू क्या कह रही है नीलम? क्या हुआ था आज काॅलेज में तेरे साथ? सच सच बता मुझे।”
नीलम ने उसे सब कुछ बता दिया कि कैसे आशू राना नाम का लड़का अपने कुछ दोस्तों के साथ उसकी रैगिंग कर रहा था। उसने उसे कहा था कि वो उसके साथ साथ उसके दोस्तों के होठों को भी चूमे। उसकी इस बात पर उसने आशू राना को थप्पड़ मार दिया था। जिससे आशू राना ने सबके सामने उसकी इज्ज़त लूटने की कोशिश की। तभी उस भीड़ से निकल कर कोई आया और उसने आशू राना के साथ साथ उसके सभी दोस्तों की खूब पिटाई कर उसकी इज्ज़त को लटने से बचाया था। नीलम ने सारी बात सोनम को बता दी। नीलम की सारी बातें सुनकर सोनम हैरान रह गई थी।
“तो वो लड़का तेरा चचेरा भाई है?” सोनम ने कहा___”जिसे आज तक तू भाई नहीं मानती थी। बात कुछ समझ में नहीं आई नीलम। भला ऐसा तू कैसे कर सकती है?”
“वही तो दीदी।” नीलम की ऑखें छलक पड़ीं___”अपने फरिश्ता जैसे भाई के साथ मैने आज तक वो सब कैसे किया? आज की उस घटना ने मुझे एहसास करा दिया दीदी कि कितनी बुरी हूॅ मैं। जिसकी ऑखों में अपने लिए हमेशा प्यार और सम्मान देखा था आज उसी ऑखों में अपने लिए हिकारत के भाव देखा है मैने। वो ऐसे मुह फेर कर चला गया था जैसे उससे मेरा कोई दूर दूर नाता नहीं है। उस वक्त मुझे पहली बार लगा दीदी कि मैं उसकी नज़र में क्या रह गई हूॅ। सच ही तो है, आख़िर उसकी नज़र में मेरी कोई औकात हो भी कैसे सकती है? मैने और मेरे माॅ बाप ने हमेशा उसे और उसके माॅ बाप को तुच्छ समझा था।”
“ये तू क्या कह रही है नीलम?” सोनम बुरी तरह हैरान थी, बोली___”ये तू कैसी बातें कर रही है? आख़िर बात क्या है?”
“सारी बातें तो मुझे भी नहीं पता दीदी लेकिन इतना समझ गई हूॅ कि बचपन से मेरे माॅम डैड ने जिनके बारे में ऐसा करने की सीख दी थी वो ग़लत था।” नीलम ने कहा___”किसी के बारे में खुद भी तो जाॅचा परखा जाता है न? ऐसा तो नहीं होना चाहिए न कि हमें किसी ने जो कुछ बता दिया उसे ही सच मान लें और फिर सारी ऊम्र उसी को लिए बैठे रहें। कीचड़ अगर इतना ही गंदा होता तो उसमें कमल जैसा फूल कभी नहीं खिलता। गंदगी तो वहाॅ भी होती है दीदी जिस जगह को लोग पाक़ समझते हैं।”
“मेरी तो कुछ समझ में नहीं आ रहा नीलम कि तू ये सब क्या कहे जा रही है?” सोनम ने उलझनपूर्ण भाव से कहा था।
“बताऊॅगी दीदी।” नीलम ने कहा___”सब कुछ बताऊॅगी आपको। लेकिन इस वक्त नहीं। इस वक्त मुझे अकेला छोंड़ दीजिए। मुझे अकेला छोंड़ दीजिए दीदी।”
कहने के साथ ही नीलम फूट फूट कर रोने लगी थी। सोनम ने उसे खींच कर अपने से छुपका लिया था।
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उथर हवेली में।
रितू जब हवेली पहुॅची तो शाम हो चुकी थी। अजय सिंह हवेली में नहीं था बल्कि फैक्टरी में था। फैक्टरी का काम लगभग पूरा ही हो गया था। बस कुछ ही दिनों में फैक्टरी चालू हो जानी थी। रितू अंदर आते ही अपने कमरे की तरफ बढ़ गई। किचेन में प्रतिमा और नैना डिनर तैयार कर रही थी।
कमरे में पहुॅच कर रितू ने अपने कपड़े बदले और फिर बाथरूम की तरफ बढ़ गई। बीस मिनट बाद जब वह बाथरूम से बाहर आई तो उसकी नज़र बेड पर पड़े आई फोन पर पड़ी। आई फोन पर किसी का काॅल आ रहा था। फोन साइलेन्ट मोड पर था।
रितू टाॅवेल को अपने संगमरमरी बदन पर लपेट कर तेज़ी से बेड के पास पहुॅची और फोन को उठा कर स्क्रीन पर फ्लैश कर रहा नंबर को देखा। नंबर को देख कर उसके होठों पर हल्की सी मुस्कान उभ आई।
“हैलो।” फिर उसने काॅल रिसीव करते ही कहा।
“………….. ।” उधर से कुछ कहा गया।
“क्या सच कह रहे हो तुम?” रितू के चेहरे पर खुशी के भाव उभर आए थे।
“………….।” उधर से फिर कुछ कहा गया।
“ठीक है भाई।” रितू ने धीमे स्वर में कहा___”तुम उसे रिसीव कर लेना और अपने साथ ही पहले घर ले जाना। उसके बाद मैं तुम्हें फोन करूॅगी और बताऊॅगी कि अब तुम उसे अपने साथ वहाॅ पर ले आओ।”
“…………..।” उधर से फिर कुछ कहा गया।
“डोन्ट वरी भाई।” रितू ने कहा___”मैं सब देख लूॅगी। चलो अब रखती हूॅ फोन।”
रितू ने कहा और फोन कट कर दिया। फिर मन ही मन कहा___”आजा मेरे भाई। तेरी विधी तुझे बस एक बार देखने के लिए ही ज़िदा है। अपने आपको सम्हालना मेरे भाई। मैं जानती हूॅ कि वो लम्हाॅ तेरे लिए बेहद दर्दनाक होगा। मगर खुद को सम्हालना भाई। काश! ये सब न हुआ होता। हे भगवान ये तूने मेरे भाई के साथ क्या कर दिया है। कितना दुख दर्द देगा तू उसे? नहीं नहीं, मैं अपने भाई को कोई दुख दर्द सहने नहीं दूॅगी। उसको अपने सीने से लगा कर खूब प्यार दूॅगी मैं। अब तक तो मैने उसे नफ़रत ही दी थी लेकिन अब बेइंतेहां प्यार दूॅगी उसे। हाॅ हाॅ खूब प्यार दूॅगी उसे।”
ऑखों से छलक आए ऑसुओं को पोंछा रितू ने और फिर आलमारी की तरफ बढ़ गई। आलमारी से रात में पहनने वाले कपड़े निकाल कर उसने उन्हें पहना और फिर कमरे से बाहर आ गई।
रात में सबने एक साथ डिनर किया। रितू ने देखा कि उसका भाई शिवा भी आ गया था। वह उससे बड़े प्यार व चापलूसी के से अंदाज़ में मिला था। रितू को उसे और उसके इस अंदाज़ पर आज पहली बार नफ़रत सी हुई थी। हलाॅकि वो जैसा भी था उसका सगा भाई ही था। अजय सिंह भी फैक्ट्री से आ गया था। सबने डिनर किया और इसी बीच थोड़ी बहुत बातें भी हुईं। उसके बाद सब अपने अपने कमरों में सोने के लिए चले गए।
उस वक्त रात के बारह बजे के आस पास का वक्त था। हवेली में हर तरफ सन्नाटा छाया हुआ था। हवेली के अंदर अॅधेरा तो था मगर पूरी तरह नहीं क्योंकि खिड़कियों से चाॅद की रोशनी और अंदर लगे नाइट बल्ब की धीमी रोशनी थी। विराज के आने की खुशी में रितू को नींद नहीं आ रही थी। उसके मन में तरह तरह के ख़याल बन रहे थे। कभी उसका चेहरा खुशी से चमकने लगता तो कभी एकदम से उदास सा हो जाता। बेड पर इधर से उधर करवॅट बदलते हुए पल पल गुज़रता जा रहा था। मगर उसे ऐसा प्रतीत हो रहा जैसे रात का ये वक्त तो जैसे एक जगह ठहर ही गया था। रितू को लग रहा था कि ये रात कितना जल्दी गुज़र जाए और सुबह हो जाए। ऐसे ही बारह बज गए थे।
उसे प्यास लगी तो वह बेड से उठ कर दरवाजे की तरफ बढ़ी। दरवाजे को खोल कर वह बाहर आ गई। गैलरी से चलते हुए उसे नैना बुआ का कमरा दिखा। उसके बाद नीचे जाने के लिए सीड़ियाॅ। सीढ़ियों से उतरते हुए वह किचेन की तरफ बढ़ गई। किचेन में रखे फ्रिज़ को खोलकर उसने ठंडे पानी का एक बाॅटल निकाला और उसका ढक्कन खोल कर उसे मुख से लगा लिया।
पानी पीकर वह वापस किचेन से बाहर आ गई। बाएॅ साइड पर ड्राइंगरूम था। उसने सोचा कि नींद तो आ नहीं रही इस लिए थोड़ी देर ड्राइंगरूम में ही बैठ जाती हूॅ, मगर फिर जाने क्या सोच कर उसने अपना ये इरादा बदल दिया। वह वापस दाहिने साइड सीढ़ियों की तरफ बढ़ी ही थी कि सहसा रुक गई। सीढ़ियों की तरफ से बाएं साइड पर पार्टीशन की दीवार पर लगे दरवाजे की तरफ देखा उसने। दरवाजा पूरी तरह तो नहीं मगर खुला हुआ स्पष्ट नज़र आया उसे।
पार्टीशन की दीवार पर लगे दरवाजे को इस तरह खुला देख कर रितू के पुलिसिया मन में सवाल उभरा कि आज ये दरवाजा इस वक्त खुला क्यों है? आम तौर पर वह बंद ही रहता था। उस तरफ का हिस्सा विजय चाचा का था। पुलिसिया दिमाग़ में जब कोई सवाल उभरता है तो वह उस सवाल का जवाब तुरंत ही खोजने लग जाता है।
रिते सीढ़ियों की तरफ से पलट कर पार्टीशन के उस खुले हुए दरवाजे की तरफ बढ़ चली। कुछ ही पल में वह दरवाजे के पास पहुॅच गई। कुछ पल दरवाजे के पास खड़े होकर उसने उस जगह का मुआयना किया फिर अपना हाॅथ बढ़ा कर उसने दरवाजे का दाहिने साइड वाला पल्ला पकड़ कर आगे की तरफ पुश किया। दरवाजे का वो पल्ला बेआवाज़ खुलता चला गया। अब एक पल्ले में ही इतना स्पेस बन गया था कि एक आदमी आराम से इधर से उस तरफ जा सकता था। रितू ने वही किया। वो उस स्पेस से उस तरफ दाखिल हो गई।
उस तरफ जाकर उसने बारीकी से हर तरफ का मुआयना किया और फिर आगे की तरफ बढ़ गई। मेरे पाठकों को पता है कि ये हवेली किस तरह बनाई गई थी। दो मंजिला इमारत के अलग अलग तीन हिस्सों को आपस में जोड़ दिया गया था। तीनों हिस्सों में एक जैसा ही डिजाइन था।
आगे बढ़ते हुए रितू ड्राइंगरूम की तरफ आ गई। यहाॅ पर भी नाइट बल्ब का प्रकाश था। यहाॅ पर भी सन्नाटा फैला हुआ था। ड्राइंगरूम में आकर रितू खड़ी हो गई। उसे समझ नहीं आ रहा था यहाॅ पर कौन आया होगा इस वक्त और किस लिए? जबकि इस तरफ आने का कोई सवाल ही नहीं था। ड्राइंगरूम के उस तरफ ऊपर जाने के लिए वैसी ही सीढ़ियाॅ बनी हुई थी जैसी इस तरफ बनी हुई थी। ड्राइंगरूम के के पीछे साइड एक तरफ किचेन था और एक साइड की तरफ वो कमरा था जिसमें दादा दादी रहते थे। रितू की निगाह जब किचेन से होते हुए जब दूसरी साइड दादा दादी के कमरे की तरफ गई तो वह चौंक गई।
दादा दादी के कमरे में इस वक्त बल्ब की पर्याप्त रोशनी हो रखी थी जोकि ऊपर छत के पास ही बने रोशनदान से समझ में आ रही थी। कमरे के दरवाजा बंद था। रितू ये देख कर हैरान थी कि इतनी रात को वहाॅ उस कमरे के अंदर कौन हो सकता है? जबकि उसे जहाॅ तक पता था इस तरफ के हिस्से पर कोई नहीं आता था। विजय सिंह के बीवी बच्चों को हवेली से निकालने के बाद ये हिस्सा पूरी तरह बंद ही रहता था। फिर आज इस वक्त यहाॅ पर कौन हो सकता है? ये सवाल ऐसा था जो रितू के मस्तिष्क में कत्थक सा करने लगा था।
अपने मन उठे इस सवाल और खुद की उत्सुकता को मिटाने के लिए रितू उस कमरे की तरफ बहुत ही संतुलित कदमों से बढ़ गई। कुछ ही पलों में वह उस कमरे के दरवाजे के पास पहुॅच गई। उसका दिल अनायास ही ज़ोरों से धड़कने लगा था। तभी उसके कानों में कमरे के अंदर मौजूद ब्यक्ति की आवाज़ पड़ी। उस आवाज़ को सुन कर रितू बुरी तरह चौंकी। ये आवाज़ उसकी अपनी माॅ प्रतिमा की थी। रितू ने दरवाजे से अपने कान लगा दिये।
“आहहहहह ऐसे ही मेरे बेटे।” अंदर से प्रतिमा की मादकता से भरी हुई आवाज़ उभरी____”ऐसे ही आहहहह हचक हचक के चोद मुझे। आज बहुत दिनों बाद दो दो लंड का मज़ा मिला है मुझे। ओहे भड़वे हरामी साले नीचे से पेल न मेरी गाॅड में अपना लौड़ा। आहहहहह हाय बड़ा मज़ा आ रहा है रे।”
“ये लो माॅम आज डैड के साथ साथ अपने इस बेटे का भी लंड लो अपनी चूत में।” शिवा की आवाज़ आई___”आज मेरी वर्षों की वो ख्वाहिश पूरी हो रही है। थैंक्स डैड जो आपने मुझे शहर से बुला लिया और आज मुझे अपनी माॅम को चोदने का सौभाग्य दिया।”
“थैंक्स की कोई बात नहीं है बेटे।” अजय सिंह की आवाज़ उभरी___”ये तो तेरे माॅम की ही इच्छा थी कि तू भी इसे रगड़ कर चोदे।”
“अब बातें मत करो तुम दोनो।” प्रतिमा की आवाज़ आई___”मुझे रगड़ रगड़ कर चोदना शुरू करो वरना तुम दोनो के लंड को काट कर फैंक दूॅगी।”
“ओके माॅम।” शिवा ने कहा___”तो फिर ये लो।”
“आहहहहहह शशशशशश हाय ऐसे ही चोदो मुझे।” प्रतिमा की आहें और सिसकारियाॅ गूजने लगी अंदर___”पूरी रात मुझे आगे पीछे से चोदो। फाड़ कर रख दो मेरी चूत और गाॅड को। हाय रे कितना मज़ा आ रहा है। काश! एक और लंड होता तो उसे अपने मुह में भर लेती मैं।”
दरवाजे पर कान लगाए खड़ी रितू के पैरों तले दूर दूर तक ज़मीन का नामो निशान न था। दिलो दिमाग़ में जैसे सारा आसमान भर भरा कर गिर पड़ा था। मनो मस्तिष्क सुन्न सा पड़ता चला गया। उसे लगा कि उसके पैरों में कोई जान ही न बची हो। उसे चक्कर सा आने लगा था। बड़ी मुश्किल से उसने खुद को सम्हाला। ऑखों ने ऑसुओं की बाढ़ सी कर दी। कमरे के अंदर इतना बड़ा पाप हो रहा था। एक माॅ अपने ही बेटे से नाजायज संबंध बना रही थी वो भी अपने पति की सहमति से। रितू को यकीन नहीं हो रहा था कि ये उसके माॅ बाप और भाई थे।
अंदर से आती मादक सिसकारियों की आवाज़ें उसके कानों को छलनी करती जा रही थीं। हवस और वासना का इतना भयावह चेहरा उसने आज अपने ही पैदा करने वालों के द्वारा देखा था। सहसा उसके मन में ये विचार उठा कि नहीं नहीं ये मेरे माॅम डैड और भाई नहीं हो सकते बल्कि ये कोई और ही हैं। कोई छलावा है या फिर कोई ख्वाब है।
पल भर में पगलाई सी रितू ने अपने हाथ से बहुत ही धीमे और संतुलित अंदाज़ से दरवाजे को अंदर की तरफ धकेला। दरवाजा बेआवाज़ कुलता चला गया। दरवाजे पर बस थोड़ी सी ही झिरी बनाकर रितू ने अंदर की तरफ देखा। मगर उस झिरी में उसे कुछ नज़र न आया बल्कि ये ज़रूर हुआ कि अंदर से आती हुई आवाजें ज़रा तेज़ हो गई थी।
रितू ने दरवाजे को थोड़ा और अंदर की तरफ धकेला। अपने सिर को दरवाजे के अंदर की तरफ ले जाकर उसने अंदर आवाज़ की दिशा में देखा तो उसके होश उड़ गए। आश्चर्य और अविश्वास से उसकी ऑखें फटी की फटी रह गई थी। अंदर बेड पर उसके माॅम डैड व भाई पूरी तरह नंगी हालत में थे। सबसे नीचे उसके डैड थे फिर उसकी माॅम उनके ऊपर पीठ के बल लेटी हुई थी। उसकी दोनो टाॅगें शिवा के दोनो हाॅथों के सहारे ऊपर उठी हुई थी। शिवा उसके ऊपर था जो कि माॅम की दोनो टाॅगों को पकड़े तेज़ तेज़ धक्के लगा रहा था। नीचे से उसके डैड अपने दोनो हाथों से प्रतिमा की कमर को थामे धक्का लगे रहे थे। ये हैरतअंगेज नज़ारा देख कर रितू पत्थर बन गई थी। होश तब आया जब उसकी माॅम की ज़ोरदार आह की आवाज़ उसके कानों में पड़ी। रितू ने तुरंत ही अपना सिर अंदर से बाहर कर लिया। दरवाजे को उसी तरह बंद कर वह पलटी और ऑसुओं से तर चेहरा लिए वह दरवाजे से हट गई।
कुछ ही देर में वह अपने कमरे मे पहुॅच गई। वह यहाॅ तक कैसे आई थी ये वही जानती थी। उसके पैर इतने भारी हो गए थे कि उससे उठाए नहीं जा रहे थे। बेड पर औंधे मुह गिर कर वह ज़ार ज़ार रोये जा रही थी। उसे लग रहा था कि वो क्या कर डाले। उसके दिलो दिमाग़ में अपने माता पिता और भाई के लिए नफ़रत व घृणा भर गई थी। वह एक बहादुर लड़की थी। उसने अपने आपको सम्हाला और तुरंत बेड से उठ बैठी। चेहरा पत्थर की तरह कठोर हो गया उसका। बेड से उतर कर वह आलमारी की तरफ बढ़ी। आलमारी खोल कर उसने अपना सर्विस रिवाल्वर निकाला। लाॅक खोल कर उसने चैम्बर को देखा तो खाली था। उसने तुरंत ही अंदर लाॅकर से गोलियाॅ निकाली और उसमें पूरी छहो गोलियाॅ भर दी। उसके बाद वह चेहरे पर ज़लज़ला लिए दरवाजे की तरफ बढ़ी ही थी कि किसी की आवाज़ सुन कर चौंक पड़ी।
दोस्तो समय निकाल कर इतना ही अपडेट तैयार कर पाया हूॅ। परिवार में मेरी बहन की शादी है इस लिए उसमें उलझा हुआ हूॅ। आशा करता हूॅ कि आप मेरी मजबूरियों को समझेंगे।
इस सबसे फुर्सत होकर जब वापस लौटूॅगा तो दोनो कहानियों के अपडेट कान्टीन्यू करूॅगा। तब तक के लिए मुझे क्षमा करें दोस्तो। अपना प्यार और सहयोग बनाए रखियेगा।