♡ एक नया संसार ♡
अपडेट………《 36 》
अब तक,,,,,,,,,
रितू हरिया काका की बात पर मुस्कुराती हुई तहखाने से बाहर निकल गई। जबकि रितू के जाते ही काका ने तहखाने का गेट बंद किया और फिर अपने दोनो हाॅथ मलते हुए रोहित मेहरा के पास पहुॅचा।
“का रे मादरचोद।” काका ने कहा___”तोरे केतनी अम्मा है अउर केतने बाप हैं?”
“तमीज़ से बात करो ओके।” रोहित डर तो गया था लेकिन फितरत के चलते बोल ही गया था।
“तोरी माॅ की चूत मारूॅ ससुरे के।” काका के हाॅथ में जो मोटा सा लट्ठ था उसने घुमा कर रोहित की टाॅग में ज़ोर से धमक दिया। रोहित दर्द से बुरी तरह चीखने चिल्लाने लगा। काका तो बहुत देर से सब्र किये बैठा था। उसे इस बात का बेहद गुस्सा भी था कि इन लोगों ने रितू उल्टा सीधा भी बोला था।
हरिया काका उन चारों पर पिल पड़ा। फिर तो तहखाने में बस रोने और चीखने की आवाज़ें ही आ रही थी। हरिया काका तब तक उन सबकी धुनाई करता रहा जब तक कि उसका पेट न भर गया था। धुनाई करने के बाद वह उन चारों को अधमरी हालत में छोंड़ कर तहखाने से बाहर चला गया और बाहर से तहखाने को लाॅक कर दिया।
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अब आगे,,,,,,,,,
फ्लैशबैक अब आगे______
गौरी अभी ये सब बता ही रही थी कि सहसा डोर बेल की आवाज़ से सबका ध्यान भंग हो गया। डोर बेल की आवाज़ से ही उन सबको ये एहसास हुआ कि समय कितना हो चुका था। वरना ड्राइंगरूम में रखे सोफों पर बैठे हुए उन्हें समय का आभास ही न हुआ था। वो सब तो गौरी के द्वारा सुनाए जा रहे अतीत के किस्सों में ही डूबे हुए थे।
“लगता है कि जगदीश भाई साहब आ गए हैं।” गौरी ने गहरी साॅस लेते हुए कहा__”जा गुड़िया दरवाज़ा खोल दे।”
“जी माॅ।” निधी ने भी गहरी साॅस लेकर कहा और सोफे से उठ कर मुख्य द्वार की तरफ बढ़ गई।
“रात के नौ बज गए हैं।” गौरी ने सामने दीवार पर लगी घड़ी पर देखते हुए कहा___”इस कहानी के चक्कर में रात का खाना बनाना भी रह गया अभय। चलो ये कहानी अब कल बताऊॅगी। अभी खाना बना लूॅ फटाफट। जगदीश भाई साहब को दस बजे तक खाना खाकर सो जाने की आदत है।”
“ठीक है भाभी आप जाइए।” अभय ने गंभीर भाव से कहा था। वो अभी भी उन अतीत के दृष्यों में खोया हुआ लगा। उसके ऐसा कहने पर गौरी उठ कर किचेन की तरफ बढ़ गई।
तभी ड्राइंगरूम में जगदीश ओबराय दाखिल हुआ। उसके पीछे पीछे ही निधी भी आ गई। जगदीश ओबराय की नज़र अभय सिंह पर पड़ी तो उसने बगल से रखे सोफे पर बैठे विराज की तरफ देखा।
“ये मेरे अभय चाचा जी हैं अंकल।” विराज ने जगदीश का आशय समझ कर कहा___”आज सुबह करीब ग्यारह बजे के आस पास आए हैं।”
“ओह ये तो बहुत अच्छी बात है।” जगदीश ओबराय के चेहरे पर खुशी के भाव नुमायां हुए, फिर उसने अभय की तरफ देखते हुए कहा___”कैसे हैं भाई साहब?”
अभय ने हल्की मुस्कान के साथ पहले उसे नमस्ते किया फिर बोला___”जी मैं ठीक हूॅ आप सुनाइये।”
“मैं तो बहुत ज्यादा ठीक हूॅ भाई साहब।” जगदीश ने हॅस कर कहा___”जब से ये बच्चे और गौरी बहन यहाॅ आए हैं तब से ज़िंदगी खुशहाल लगने लगी है। वर्ना इतने बड़े बॅगले में नौकर चाकर रहने के बाद भी अकेलापन ही महसूस होता था।”
“ऐसा क्यों कहते हैं आप?” अभय सिंह चौंका था___”इसके पहले अकेलापन क्यों महसूस होता था आपको?”
“अरे भाई अब मेरे सिवा मेरा कोई था ही नहीं तो अकेलापन महसूस तो होगा ही।” जगदीश ने कहा___”नसीब और भाग्य बहुत अजीब होते हैं। अच्छा खासा परिवार हुआ करता था मेरा। मगर फिर सब कुछ खत्म हो गया। धन दौलत तो नसीब से बहुत मिली हमें लेकिन उस दौलत को भोगने वालों को नसीब ने छीन लिया हमसे। जी जान से प्यार करने वाली बीवी थी, वो भी हमें छोंड़ कर इस फानी दुनियाॅ को अलविदा कह दिया। एक बेटा और बहू थे तो वो भी चले गए हमें छोंड़ कर। बस तब से अकेले ही थे। मगर फिर शायद भगवान को हमारे अकेलेपन पर तरस आ गया और उसने हमारे उजड़े हुए गुलशन में फिर से बहार लाने के लिए इन सबको भेज दिया। अब लगता है कि अपना भी कोई है।”
अभय सिंह जगदीश ओबराय की बातें सुन कर हैरान था। उसे याद आया कि विराज ने उससे कहा था कि ये सब अब अपना ही है। तो इसका मतलब वो सही कह रहा था। यानी मेरा भतीजा अब करोड़ों की सम्पत्ति का मालिक है? अभय सिंह को यकीन नहीं हो रहा था मगर हक़ीक़त तो उसके सामने ही थी इस लिए यकीन करना ही पड़ा उसे। वह सोचने लगा कि उसका बड़ा भाई यानी अजय सिंह तो अक्सर यही कहता था कि विराज किसी होटल या ढाबे में कप प्लेट धोता होगा। मगर भला वो भी कैसे ये कल्पना कर सकता था कि विराज आज के समय में कितना बड़ा आदमी बन चुका था। वह चाहे तो चुटकियों में उसे और उसकी पूरी प्रापर्टी को खरीद सकता था।
“ये सब भगवान की अजब लीला ही है भाई साहब।” फिर अभय सिंह ने गहरी साॅस लेकर कहा___”वो जो कुछ भी करता है बहुत सोच समझ कर करता है। किस इंसान कब कहाॅ और किस चीज़ की ज़रूरत होती है वो उसे उस जगह पहुॅचा ही देता है। हम नासमझ होते हैं जो ये समझ बैठते हैं कि भगवान ने हमें दिया ही क्या है?”
“हाॅ ये बात तो है।” जगदीश ने कहा___”और सच पूछो तो भगवान की इस लीला से मैं खुश हूॅ भाई साहब। पहले ज़रूर उससे शिकायतें थी कि उसने मेरा सब कुछ छीन लिया मगर आज कोई शिकायत नहीं है। ये सब मुझे अपना समझते हैं। मुझे वैसे ही चाहते हैं जैसे कोई सगा अपनों को चाहता है। यूॅ तो इस दुनियाॅ में अपने भी अपनों के लिए नहीं होते। मगर कोई अजनबी भी ऐसा मिल जाता है जो अपनों से कम नहीं होता। चार दिन का जीवन है, इसे सबके साथ खुशी खुशी जी लो तो आत्मा तृप्त हो जाती है। क्या लेकर हम इस दुनियाॅ में थे और क्या लेकर जाएॅगे? ये धन दौलत तो सब यहीं रह जाएगी मगर हमारे कर्म ज़रूर हमारे साथ जाएॅगे।”
“आप ठीक कहते हैं भाई साहब।” अभय ने कहा___”आप तो वैसे भी किसी फरिश्ते से कम नहीं हैं वरना कौन ऐसा है जो किसी ग़ैर को अपना सब कुछ दे दे?”
“अगर मैने अपना सब कुछ विराज बेटे को दे दिया है तो उससे मुझे मिला भी तो बहुत कुछ है भाई साहब।” जगदीश ने कहा___”मुझे वो मिला है जिसके लिए मैं वर्षों से तड़प रहा था। मैं किसी अपने के लिए तड़प रहा था, तथा अपनों के बीच रह कर जो खुशी मिलती है मैं उसके लिए तरस रहा था। आज मेरे पास ये सब खुशियाॅ है भाई साहब और ये सब मुझे किसी रिश्वत के चलते नहीं मिला है। बल्कि मेरे नसीब से मिला है। मैं तो विराज को बहुत पहले से अपनी सारी प्रापर्टी का वारिस बनाना चाहता था मगर ये ही मना कर रहा था। एक अच्छे व खुद्दार इंसान का बेटा जो था। किसी की ऐसी मेहरबानी को कबूल कैसे कर सकता था ये? मगर मैं चाहता था कि विराज ही मेरा वारिस बने। क्योंकि इसके चेहरे पर ही मुझे अपने बेटे की झलक दिखती थी। अगर ये मेरी बात नहीं मानता तो मैं इसके सामने अपनी झोली फैला कर भीख भी माॅग लेता भाई साहब।”
अभय सिंह जगदीश की ये सब बातें सुन कर चकित रह गया। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि दुनियाॅ कोई इंसान ऐसा भी हो सकता है। ख़ैर इन दोनों के बीच ऐसी ही बातें होती रहीं। कुछ समय बाद ही गौरी ने सबको खाने का कहा। सब डायनिंग हाल में आ गए और कुर्सियों में बैठ गए। गौरी ने सबको खाना सर्व किया। सबके खाने के बाद गौरी ने भी खाना खाया और फिर सब अपने अपने कमरे में सोने के लिए चल दिये। रास्ते में चलते समय विराज से गौरी ने पूछा___”तेरा काॅलेज कब से शुरू हो रहा है??”
“कल से माॅ।” विराज ने कहा___”कल सुबह मुझे थोड़ा जल्दी उठा दीजिएगा। ऐसा न हो कि पहले दिन ही मैं लेट हो जाऊॅ।”
“चल ठीक है।” गौरी ने कहा___”मैं तुझे भोर के समय पर ही उठा दूॅगी। अब जा आराम से सो जाना।”
गौरी के कहने पर विराज अपने कमरे की तरफ बढ़ गया। उधर गौरी भी पलट कर अपने कमरे की तरफ चली गई।
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वर्तमान अब आगे______
हरिया काका को उन चारों की खातिरदारी करने का कह कर रितू तहखाने से बाहर आकर सीधा अपने कमरे में चली गई थी। थोड़ी ही देर में हरिया काका की बीवी बिंदिया रितू के कमरे में खाना खाने को पूछने आई तो रितू ने मना कर दिया। बिंदिया के जाने के बाद रितू ने दरवाजा बंद किया और बेड पर जाकर लेट गई। काफी देर तक वह इस सबके बारे में सोचती रही। फिर जाने कब उसकी ऑख लग गई।
सुबह उसकी ऑख उसके मोबाइल फोन के बजने पर खुली। उसने अलसाए हुए से मोबाइल की स्क्रीन पर फ्लैश कर रहे नम्बर को देखा तो उसका सारा आलस पल भर में ही दूर हो गया। साथ ही उसके होठों पर एक मुस्कान तैर गई।
“हैलो।” फिर उसने काल रिसीव करते ही कहा।
“……………..” उधर से कुछ कहा गया।
“वैरी गुड।” रितू ने कहा___”सारी डिटेल मुझे सेन्ड कर दो। एण्ड थैंक्स।”
रितू ने इतना कह कर काल कट कर दी। उसके चेहरे पर एक मुस्कान थी। वह तुरंत ही बेड से उठ कर बाथरूम की तरफ चली गई। करीब आधे घंटे बाद रितू ड्राइंगरूम में सोफे पर बैठी काॅफी पी रही थी। बिंदिया ने हल्का फुल्का नास्ता बना दिया था उसके लिए। रितू नास्ता और काफी पीकर कर के बाहर निकल गई। लोहे वाले गूट के पास शंकर और हरिया काका बंदूख लिए मिल गए उसे।
“क्या हाल समाचार है काका?” रितू ने हरिया काका की तरफ देख कर कहा___”उन लोगों की खातिरदारी में कोई कमी तो नहीं की न आपने?”
“अइसन होई सकत है का बिटिया?” हरिया काका ने मुस्कुरा कर कहा___”हम ता ऊ ससुरन अइसन पेलेन है कि उन सबकी अम्मा चुद गई है।”
“काका कभी कभी आप बहुत गंदा बोल जाते हैं।” रितू ने बुरा सा मुह बनाया___”आप ये भी नहीं देखते हैं कि मैं आपकी बेटी जैसी हूॅ और आप भी तो मुझे अपनी बेटी जैसी ही मानते हैं न? फिर भला आप कैसे मेरे सामने ऐसे गंदे शब्द बोल सकते हैं?”
“हमका माफ कर दो बिटिया।” हरिया ने तुरंत ही दोनो हाॅथ जोड़ लिये___”ई ससुरी जबान हमरे काबू न रह पावत है। अउर हमहु सरवा जोश जोश मा बोल ही जात हैं। बस अबकी बारी माफ कर दो बिटिया। अगली बारी से अइसन गलती ना होई। हमार कसम।”
“कोई बात नहीं काका।” रितू ने कहा__”अब बताओ उन लोगों का हाल कैसा है अब?”
“कल रात ता खातिरदारी करे रहे हम उनकी ऊके बाद हम अभी तक ना गए हैं।” हरिया ने कहा___”पर ई ता पक्का है बिटिया कि ऊ ससुरन के हाल बेहाल होईगा होई अब तक।”
“चलिए चल कर देखते हैं एक बार।” रितू ने कहा और पलट वापस अंदर की तरफ जाने लगी। हरिया भी उसके पीछे पीछे चल दिया। थोड़ी देर बाद ही वो दोनो तहखाने का दरवाजा खोल कर अंदर पहुॅचे। अंदर पहुॅचते ही रितू और हरिया की नाॅक में बदबू भरती चली गई।
दोनो ने जल्दी से अपने मुह पर रुमाल लगा ली। अंदर का दृश्य बड़ा ही अजीब था। एक तरफ की दीवार पर चारो लड़के बॅधे हुए बेहोशी की हालत में सिर नीचे झुलाए खुद भी झूल से रहे थे। दूसरी तरफ की दीवार में दो बंदूखधारी थे जो सूरज के फार्महाउस पर गार्ड थे।
“काका इन लोगो ने तो यहाॅ गंध फैला रखी है?” रितू ने कहा___”क्या इतनी ज्यादा खातिरदारी की है आपने इन सबकी?”
“अरे ना बिटिया।” हरिया कह उठा__”इनकी खातिरदारी ता हिसाबै से भई रही।”
“तो फिर ये गंध क्यों है यहाॅ?” रितू ने कहा___”ऐसा लगता है जैसे इन लोगों का टट्टी पेशाब सब छूट गया है।”
“वा ता छुटबै करी बिटिया।” हरिया ने कहा___”खुद सोचौ ई ससुरे कल से ईहाॅ बॅधे हैं। अब जब ई ससुरन का टट्टी पेशाब लागी ता का करिहैं ई लोग? कब तक ई सारे ऊ का दबा के रखिहैं? ई चीज़ ता अइसन है बिटिया जे सरकार भी ना रोक पाइहैं, ई ससुरे ता अभी नवा नवा लौंडा हैं।”
“ओह ये तो बिलकुल सही कहा आपने काका।” रितू ने कहा___”लेकिन इन लोगों की इस गंदगी को भी तो दूर करना पड़ेगा वरना ये सब इसी से मर जाएॅगे और मैं इन्हें इतना जल्दी मरने नहीं दे सकती। इस लिए आप यहाॅ की इस गंदगी को हटाने का तुरंत काम शुरू करो।”
“ठीक है बिटिया।” हरिया ने कहा___”पाईप ता लगा ही है। बस मोटरवा का चालू करै का है। ई ता दुई मिनट मा होई जाई बिटिया।”
“ठीक है काका।” रितू ने कहा___”आप ये सब साफ करवा दीजिए मैं पाॅच मिनट में आती हूॅ।”
रितू ये कह कर बाहर निकल गई। उन लोगों की ये दुर्दशा देख कर उसके मन को बड़ी खुशी मिल रही थी। उसने सोचा कि ऐसे हरामियों के साथ ऐसा ही होना चाहिए। पर अभी तो ये शुरूआत है। कुछ देर बाद ही हरिया काका रितू को बुलाने आया। रितू उसके साथ पुनः तहखाने में पहुॅची। इस बार का दृश्य काफी अलग था। तहखाने में जो गंध फैली हुई थी वो अब नहीं थी। काका ने मोटे पाइप से जो पानी का प्रेसर निकलता था उससे तहखाने का पूरा फर्स और दीवारें साफ कर दिया था। फर्स की दीवारों के चारो तरफ किनारे किनारे बड़े बड़े छेंद बने हुए थे। उसमें ही पानी के साथ सारी गंदगी को निकाल दिया था काका ने। उसके बाद तहखाने में रूम फ्रशनर कर दिया था ताकि गंध दूर हो जाए या समझ में न आए।
दीवारों पर रस्सी से बॅधे चारो लड़के और वो दोनो गार्ड्स अब होश में आ चुके थे। रितू ये देख कर चौंकी थी कि उन सभी के जिस्मों पर नीचे कमर से एक लॅगोट टाइप का कपड़ा बाॅध दिया था काका ने बाॅकी पूरा जिस्म नंगा था। ऐसा शायद इस लिए था क्यों कि उन सभी के कपड़े गंदे हो चुके थे और बदबू फैला रहे थे।
इस वक्त वो सभी होश में थे। पाइप के पानी से वो सब नहाए हुए थे। मगर कल से न कुछ खाया था न ही कुछ पिया था उन लोगों ने इस लिए उन सबकी हालत खराब थी।
“हमें छोंड़ दो इंस्पेक्टर।” रोहित ने रोते हुए कहा___”हम तुम्हारे पैर पकड़ते हैं। हमें जाने दो यहाॅ से। हम कसम खाते हैं कि कभी भी किसी लड़की के साथ ऐसा वैसा कुछ नहीं करेंगे।”
“हाॅ हाॅ हम कुछ नहीं करेंगे।” अलोक ने बुरी तरह गिड़गिड़ाते हुए कहा___”हमें इस नर्क से निकाल दो इंस्पेक्टर। यहाॅ हमारा दम घुटा जा रहा है। कल से हम यहाॅ वैसे के वैसे ही बॅधे हुए हैं। न हमारे पैरों में जान है ना ही हाॅथों में ताकत। हमसे अब और नहीं खड़ा हुआ जा रहा इंस्पेक्टर। प्लीज हमें छोंड़ दो।”
“अभी तो ये शुरूआत है।” रितू ने कठोर भाव से कहा___”मैं तुम लोगों का वो हाल करूॅगी जिसके बारे में किसी ने सोचा भी नहीं होगा आज तक। तुम लोगों ने जो कुकर्म किया है उसके लिए कानून तुम्हारा कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता क्योंकि तुम लोगों के हरामी बाप बड़ी आसानी से तुम लोगों को कानून की गिरफ्त से निकाल लेते। इस लिए मैंने सोचा कि तुम लोगों को कानूनन सज़ा दिलाने से कोई फायदा नहीं होगा बल्कि तुम लोगों को कानून के बाहर आकर ही सज़ा दी जा सकती है। वही मैने किया है। तुम्हारे बाप दादाओं को पता ही नहीं चलेगा कभी कि उनके बच्चे कहाॅ गए हैं?”
“नहीं नहीं ऐसा मत करो।” किशन रो पड़ा___”हम मानते हैं कि हमने अपराध किया है मगर एक बार माफ़ कर दो। एक बार तो सब कोई माफ़ कर देता है इंस्पेक्टर।”
“अगर तम लोगों ने अपने जीवन में सिर्फ एक ही अपराध किया होता तो ज़रूर तुम लोगों को माफ़ कर देती।” रितू ने कहा___”मगर तुम लोगों ने तो एक के बाद एक संगीन अपराध किये हैं। दूसरों की बहन बेटियों की इज्जत खराब कर उनकी ज़िदगी बरबाद की है तुम लोगों ने। मेरे पास तुम सबका काला चिट्ठा मौजूद है। इतना ही नहीं तुम लोगों के बाप का भी। मेरे पास ऐसे ऐसे सबूत हैं कि तुम लोगों के बापों को मैं सबके सामने नंगा दौड़ा सकती हूॅ।”
रितू की ये बातें सुन कर उन सबकी रूह काॅप गई। उन्हें अपनी स्थित और अपने बापों की स्थित का अंदाज़ा अब हुआ था। उनके बाप तो जानते भी नहीं थे कि उनके बच्चे उनकी ही अश्लील वीडियो बनाए हुए हैं। खुफिया कैमरे से वीडियो बनाई गई थी और इन सबका मास्टर माइंड सूरज चौधरी था।
“काका इन सबको आज का भोजन दे दो।” रितू ने हरिया से कहा___”मगर भोजन भी वही देना जो हम कुत्तों को देते हैं। छलनी में आटा छालने से जो छलनी में बचता है ना उसी की मोटी रोटिया बनवाना और इन चारों को सिर्फ एक एक सूखी रोटी देना। जबकि इन दोनों गार्ड्स को ठीक ठाक भोजन दे देना। क्योंकि इन लोगों इन हरामियों के जैसा कोई अपराध नहीं किया है। ये तो बस गेहूॅ के साथ घुन की तरह यहाॅ पिसने आ गए हैं। इन्हें छोंड़ा नहीं जा सकता वरना ये दोनो उस चौधरी को यहाॅ की सारी बातें बता देंगे।”
“हम किसी से कुछ नहीं कहेंगे बेटी।” एक गार्ड शालीनता से बोला___”हम इन सबके बारे में सबकुछ जानते हैं। ये लोग सचमुच बहुत ही गंदे लोग हैं। हम तो ग़रीब आदमी हैं। दो पैसों के लिए इनके यहाॅ गार्ड की नौकरी कर रहे थे। ये लोग और इन लोगों के बाप जब भी फार्महाउस आते थे तो उन लोगों के साथ हर बार कोई दूसरी लड़कियाॅ होती थी। रात भर ये लोग अंदर अय्याशियाॅ करते। कुछ लड़कियों को ये लोग जबरदस्ती उठा लाते थे और उनकी इज्जत को तार तार करते थे। ये सब बड़े लोग हैं बेटी। पैसों की गरमी ने इन्हें शैतान बना दिया है।”
“साले हरामजादे हमारा नमक खाता है और हमारे ही बारे में ऐसी बातें करता है?” सूरज गुस्से में चीखा था।
“मेरे हाॅथ बॅधे हैं छोरे।” गार्ड ने कहा___”वरना तुझे बताता कि मुझे हरामजादा कहने का क्या अंजाम होता। नमक खाता था तो मुफ्त का नहीं खाता था समझे। बीस बीस घंटे चौकीदारी करता था तब तेरे बाप का नमक खाता था मैं। बात करता है साला रंडी की औलाद।”
“अपनी जुबान को लगाम दे कुत्ते।” सूरज पूरी शक्ति से चीखा था।
“कुत्ता तो तू है साले गस्ती की औलाद।” गार्ड ने भी ताव खाते हुए बोला___”इसी लिए तेरे लिए ऐसी रोटी बनने वाली है।”
सूरज खून के ऑसू पीकर रह गया। उसकी ऑखों में ज्वाला धधकने लगी थी। रितू उन दोनो की बाते सुन रही थी और सोच भी रही थी कि गार्ड तो बेचारे बेकसूर ही हैं। पर वो उन्हें छोंड़ कर कोई रिश्क नहीं लेना चाहती थी। क्योंकि ये भी हो सकता था कि वो दोनो अच्छा बनने का नाटक कर रहे हों। यानी सूरज ने उन लोगों को सिखाया पढ़ाया हो कि उसके आते ही हमें आपस में कैसी बातें करनी है। ताकि रितू यही समझे कि गार्ड्स बेकसूर हैं और वो उन्हें छोंड़ देने का विचार करे। और अगर वो छोंड़ देगी तो फिर वो यहाॅ से जाकर सीधा चौधरी को सारी बात बता देंगे। उसके बाद चौधरी रितू का हिसाब किताब कर लेता।
“काका, अभी भी इसमें गरमी बाॅकी है ” रितू ने कहा___”इस लिए खिला पिला कर ज़रा अच्छे से फिर खातिरदारी करना। भोजन में कुत्ते वाली सिर्फ एक रोटी ही देना इन्हें। इसके बाद कल ही इन्हें खाना देना। अब चलती हूॅ मैं।”
“ठीक बिटिया।” हरिया खातिरदारी का सुन कर खुश हो गया था।
रितू पलट कर तहखाने के दरवाजे से बाहर निकल गई। उसके जाते ही हरिया ने तहखाने का दरवाजा बंद किया। एक कोने में रखे मोटे डंडे को उठाया और उन चारों की तरफ बढ़ा। हरिया को अपने करीब आते देख उन चारों की रूह काॅप गई।
“का रे मादरचोद।” हरिया ने सूरज की टाॅग में मोटा डंडा घुमा कर जड़ दिया___”बहुतै गरमी चढ़ रखी है न तोही। हम लोगन की गरमी को बहुतै अच्छे से उतारता हूॅ।”
“माफ कर दो काका।” सूरज ने सहसा हरिया से रिश्तेदारी जोड़ते हुए कह उठा___”ग़लती हो गई। अब कुछ नहीं कहूॅगा। प्लीज़ माफ़ कर दो न।”
“माफ़ी ता हम दे दूॅगा बछुवा।” हरिया ने डंडे को सूरज के पिछवाड़े पर हौले हौले सहलाते हुए कहा___”पर एखर कीमत दे का पड़ी। बोल दे सकत है तू कीमत?”
“कैसे कीमत काका?” सूरज ने नासमझने वाले भाव से कहा।
“ऊ का है ना बछुवा।” हरिया ने कहा___”हमका अपने जीवन मा एक बार ता जरूर केहू के गाॅड मारै का मन रहा। जब हमरी तोहरे काकी से शादी हुई ता हम बड़ा खुश हुए। सुहागरात मा हम तोहरे काकी से बोल दिये कि हमका तोर गाॅड मारै का है। पर ऊ ससुरी हमरी ई बात पर बिगड़ गै। फेर ता अइसनै चलत रहा बछुवा अउर हम आज तक केहू केर गाॅड मारै का ना पायन। एसे हम कहत हैं कि कीमत मा तोही आपन गाॅड हमसे मरावै का पड़ी।”
“नहीं नहीं।” सूरज हरिया की ये बात सुन कर अंदर तक काॅप गया।
“देख बछुवा ई ता तोही करै का पड़ी।” हरिया ने कठोरता से कहा__”ई हमरे खुशी का बात है। सरवा आज तक केहू केर गाॅड मारै का ना पायन हम। पर आज ता हम तोर गाॅड मार के रहब बछुवा। अब ई तै सोच ले कि तू ई सब खुशी मा करिहे या रोई रोई के। हीहीहीहीही।”
हरिया ज़ोर ज़ोर से हॅसे जा रहा था। उसकी हॅसी ने तहखाने में बड़ा ही भयानक वातावरण पैदा कर दिया था। उन चारी की अंतरआत्मा तक काॅप गई। सूरज तो हरिया को इस तरह देखने लगा था जैसे वह उसका काल हो।
“हमरे बिटिया केर बात ता तू लोग सुन ही लिये हो ना।” हरिया कह रहा था___”तू सब अब इहैं रहने वाले हो। अउर हम अब तू ससुरन के रोज बारी बारी से गाॅड मारब।”
“ऐसा मत करो काका हम तुम्हारे हाथ जोड़ते हैं प्लीज।” रोहित सहमे हुए से बोला।
“हाॅथ जोड़ै का कौनव फायदा ना होई बछुवा।” हरिया ने कहा___”काहे से के ई हमरे ख्वा….अरे ऊ का कहत हैं…ख्वाहिश…हाॅ ईहैं…हाॅ ता ई हमरे ख्वाहिश का बात है। गाॅड मारै का हमरा बहुतै ख्वाहिश है बछुवा। अब ई बात मा हम कौनव केर बात ना मानब। चल रे पहिले तोरै गाॅड का उद्घाटन हम करब हीहीही।”
सूरज की गाॅड में हरिया ने ज़ोर से मोटा डंडा जड़ दिया। सूरज दर्द के मारे पूरी शक्ति से चीखने लगा था। जबकि हरिया ने सूरज की कमर में बॅधे कपड़े को खोल कर एक तरफ उछाल दिया। सूरज बुरी तरह इधर उधर हो रहा था। मगर दोनो हाथ ऊपर बॅधे थे और दोनो पैर फैलाए हुए चारों के पैरों से बॅधे हुए थे।
“ई का रे रंडी केर दुम।” हरिया सूरज की लुल्ली को देख कर कहा___”ई ता बच्चन जइसन है रे। मादरचोद नामरद है का रे?”
“आहहहहह।” अपनी लुल्ली पर डंडे की हल्की मार पड़ते ही सूरज बिलबिला उठा था।
इधर हरिया ने ऊपर खूॅटी से रस्सी की गाॅठ खोल कर सूरज के ऊपर उठे हुए हाॅथों को नीचे की तरफ कर दिया। सूरज का बाजू बुरी तरह अकड़ गया था। कल से एक ही पोजीशन में बॅधा था वह। इस वक्त वह जन्मजात नंगा था। वह बुरी तरह हिल रहा था और हरिया से अपनी गाॅड न मारने के लिए विनती कर रहा था। मगर हरिया मानने वालों में से नहीं था।
“हमने कहा ना बछुवा।” हरिया ने सूरज की मुंडी पकड़ कर आगे की तरफ झुका दिया, फिर बोला___”हम कौनव बात ना मानब। ई हमरे ख्वाहिश केर बात है। एसे हम तोर गाॅड ता मरबै करब।”
हरिया ने अपनी सफेद धोती की गाॅठ छोरी और धोती को खोल कर ऊपर खूॅटी पर टाॅग दिया। सूरज थर थर काॅप रहा था। उसके हाॅथ आपस में अभी भी बॅधे हुए थे इस लिए वह ज्यादा कुछ कर नहीं सकता था। इस वक्त वह हरिया से ये सब न करने के लिए गिड़गिड़ाए जा रहा था।
“काहे बछुवा।” हरिया ने सूरज की नंगी गाॅड में ज़ोर से एक थप्पड़ लगाया, बोला___”अब काहे गिड़गिड़ाय रहा है। कछू याद है? अइसनै ऊ लड़कियन लोग भी तोहरे सामने गिड़गिड़ाती रही होंगी। मगर तू उन मा से केहू केर बात न माने रहे होई है ना? ता मादरजोद फेर हमसे कइसन या उम्मीद करत है कि हम तोर बात मान जाब रे वैश्या के जने सारे?”
सूरज के बगल से बॅधे बाॅकी तीनों ये सब डरे सहमे से देख रहे थे। उनकी हालत बहुत खराब थी। वो ये सोच सोच कर मरे जा रहे थे कि सूरज के बाद उनके साथ भी यही सब होगा। कभी स्वप्न में भी उन लोगों ने ये नहीं सोचा था कभी ऐसा भी वक्त उनके जीवन में आएगा।
“आआआहहहहह।” सूरज के मुख से दर्द भरी कराह निकल गई। हरिया उसके सामने आकर सूरज के सिर के बाल पकड़ कर उठाया था, बोला___”ले देख मादरचोद कि लौड़ा केही कहत हैं। देख न रंडी के पूत। हम चाहू ता अपने ई लौड़े से तुम सबकी एकै बार मा गाॅड फाड़ दूॅ मगर फाड़ूॅगा नहीं। हम ता एक एक करके अउर तसल्ली से तुम चारोन की गाॅड मारब ससुरे लोग।”
हरिया नीचे से नंगा हो चुका था और इस वक्त अपने मोटे तगड़े लौड़े को सूरज के चेहरे के बेहद पास सहला रहा था। सूरज झुका हुआ था क्योकि हरिया ने एक हाॅ से उसके सिर के बाल पकड़ कर उसे नीचे झुकाया हुआ था।
देखते ही देखते हरिया का लौड़ा अकड़ कर खड़ा हो गया। बाॅकी तीनों आश्चर्य से हरिया के लौड़े की तरफ देखे जा रहे थे। उन लोगों की ये सोच कर नानी मर गई कि यही लौड़ा उन लोगों की भी गाॅड मारेगा। हरिया सूरज के पीछे आ गया। अपने पीछे जाते देख सूरज फिर से बुरी तरह हिलने लगा। वह बार बार हरिया से मिन्नतें करने लगता था।
“चिन्ता ना कर बछुवा।” हरिया ने सूरज की गाॅड को फैलाते हुए कहा___”बस एकै बार तीनौ लोकन के दर्शन होई हैं ऊखे बाद ता मजा मिली। अउर हाॅ गाॅड का अपने ढीलै रखिहे नाहीं ता ससुरे फाट जाई ता हमरा दोष ना दीहे।”
सूरज बुरी तरह छटपटाए जा रहा था। मगर हट्टे कट्टे हरिया का एक हाॅथ सूरज के सिर पर था जिसे वह सूरज को नीचे झुके रहने के लिए मजबूर किये हुए था। जबकि दूसरे हाॅथ से वह ढेर सारा थूॅक लेकर उसे अपने लौड़े पर लगाया और फिर लौड़े पकड़ कर सूरज की गाॅड में सेट किया।
तहखाने में मौजूद बाॅकी तीनो वो लड़के और वो दोनो गार्ड्स फटी ऑखों से ये दृश्य देखे जा रहे थे। हरिया ने लौड़ा सेट कर गाॅड की तरब दबाव बढ़ाया।
“आआआहहहहह।” सूरज को दर्द होने लगा। उसकी गाॅड बेहद टाइट थी। जबकि हरिया का लौड़ा मोटा तगड़ा था। हर पल के साथ सूरज की हालत हलाल होते बकरे जैसी होती जा रही थी। वह बुरी तरह छटपटा रहा मगर हरिया की मजबूत पकड़ से वह छूट नहीं पा रहा था। बड़ी मुश्किल से हरिया के लौड़े का टोपा सूरज की गाॅड में घुसा। इतने में ही सूरज गला फाड़े चिल्लाने लगा था।
“सबर कर बछुवा।” हरिया ने कहा___”गला फाड़ने से का होई? ऊ ता हिम्मत रखै से होई। अउर ई ता अबे शुरूआतै हुआ है। अबे ता मंजिल बहुत बाॅकी है बछुवा।”
“आआहहहहहह मममममम्मी रेरेएएएएएए।” हरिया ने ज़ोर का झटका दिया। सूरज की गाॅड को चीरता हुआ हरिया का लौड़ा लगभग आधा घुस गया था। सूरज के मुख से बड़ी भयंकर चीख निकली थी। उसकी ऑखों के सामने अॅधेरा छा गया। सूरज बेहोश हो चुका था। उसकी हालत देख कर बाकी सब के होश उड़ गए। सूरज के दोस्त थर थर काॅपने लगे। वो अनायास ही ज़ोर ज़ोर से पागलों की तरह रोने चिल्लाने लगे।
“अबे चुप करा मादरचोदो वरना ई लौड़ा इसकी गाॅड से निकाल के तुम्हरी गाॅड में घुसेड़ दूॅगा हम।” हरिया गुर्राया तो वो डर के मारे एक दम से चुप हो गए। उनके चुप हो जाने के बाद हरिया ने सूरज की गाॅड में थप्पड़ मारते हुए बोला___”का बे मादरचोद। ससुरे इतने से ही टाॅय बोल गया रे। अभी ता हम पूरा लौड़ा डाला भी नहीं हूॅ।”
हरिया सूरज की गाॅड में धक्के लगाना शुरू कर दिया। हर धक्के के साथ वह थोड़ा बहुत लौड़े को सूरज की गाॅड में घुसेड़ता ही रहा था। सूरज बेहोशी की हालत में भी कराह रहा था। हरिया एक बार तेज़े से धक्का लगाया तो एच ज़ोरदार चीख के साथ सूरज होश में आ गया। होश में आते ही वह बुरी तरह रोने बिलखने लगा। रहम की भीख माॅगने लगा वह। मगर हरिया को तो अब जैसे न रुकना था और नाही रुका वह। तहखाने में सूरज का रोना और चिल्लाना ज़ारी रहा।
अपडेट हाज़िर है दोस्तो,,,,,,,,,