अपडेट………….《 20 》
अब तक…….
“बात तो तुम्हारी ठीक है।” जगदीश हॅस पड़ा__”संभावनाओं पर कुछ नहीं होता, कानून को तो सबूत चाहिए। और सबूत कोई है नहीं। वाह….ये तो कमाल हो गया बेटे।”
“अभी तो दिमाग़ से ही उनकी हालत खराब कर रखी है अंकल।” विराज ने कहा__”जबकि मैदान में खुल कर आना अभी बाॅकी है। जिस दिन आमने सामने का खेल होगा न उस दिन से अजय सिंह हर पल रोएगा, गिड़गिड़ाएगा, रहम की भीख माॅगेगा मुझसे और मेरी माॅ से।”
“उसके साथ यही होना चाहिए राज बेटे।” जगदीश ने कहा__”जो अपने माॅ बाप और भाई का न हुआ बल्कि उनके साथ इतना घिनौना कर्म किया ऐसे गंदे इंसान के साथ किसी भी कीमत पर रहम नहीं होना चाहिए।”
“उनके लिए रहम शब्द मैंने अपनी डिक्शनरी से निकाल कर फेंक दिया है अंकल।” विराज ने एकाएक ठंडे स्वर में कहा__”एक एक चीज़ का हिसाब लूॅगा मैं।”
“मैं तो उस कमीने शिवा को अपने हाथों से कुत्ते की तरह मारूॅगी।” सहसा निधि ने तपाक से कहा__”मुझे उसकी शकल से भी नफरत है। हाॅ नहीं तो।”
निधि के इस तकिया कलाम को सुन कर सब मुस्कुरा कर रह गए।
अब आगे……
ऐसे ही कुछ दिन गुज़र गए। अजय सिंह अब अपनी हालत पर काबू पा चुका था। बल्कि ये कहिये कि हर बात से काफी हद तक बेफिक्र हो चुका था। उसकी बेटी रितू द्वारा उसे पता चल चुका था कि तहखाने में बाॅकी कुछ नहीं मिला था। हलाॅकि रितू को इस बात के पता होने का सवाल ही नहीं था कि उसका बाप गैर कानूनी काम करता है। उसने तो फाॅरेंसिक रिपोर्ट को देखकर यही बताया था कि फैक्टरी में आग टाइम बम्ब के द्वारा ही लगी थी। अब उसकी तहकीकात सिर्फ इसी तरफ थी कि फैक्टरी के अंदर जाकर तहखाने में टाइम बम्ब किसने लगाया था??
रितू को एक सवाल ये भी परेशान कर रहा था कि इस केस की बारीकी से जाॅच पड़ताल कराने के पीछे होम मिनिस्टर का क्या मकसद था?? उसने तो सिर्फ केस को रिओपेन करने की अप्लीकेशन बस दी थी। उसका मकसद तो सिर्फ ये पता करना था कि इस केस में पुलिस ने इस प्रकार की रिपोर्ट क्यों बनाई थी?? दूसरी बात ये थी कि उसे लगता था कि फैक्टरी में लगी आग महज कोई इत्तेफाक़ की बात नहीं थी। बल्कि उसके पिता के किसी दुश्मन द्वारा लगाई गई थी। इस लिए वह इस सबका पता करके उस ब्यक्ति द्वारा अपने पिता के हुए भारी नुकसान की भरपाई करना चाहती थी। उसे तो इस बात से भी हैरानी थी कि रातों रात इस शहर के सारे पुलिस डिपार्टमेंट का तबादला क्यों कर दिया गया था??? इसके पीछे क्या सिर्फ ये वजह थी कि इस केस की पुलिस ने अपनी पूरी ईमानदारी के साथ छानबीन नहीं की, बल्कि किसी के कहने पर ऐसी रिपोर्ट तैयार की?? क्या सिर्फ यही वजह थी या फिर इसके पीछे भी कोई ऐसा कारण है जो फिलहाल अभी उसकी समझ से बाहर नज़र आ रहा है??
अजय सिंह बेफिक्र ज़रूर हो गया था किन्तु इस बात का उसे एहसास था कि एक तलवार अभी भी उसकी गर्दन पर लटकी हुई है, जो कभी भी उसका गला रेत सकती है। वह पक्के तौर पर समझ चुका था कि तहखाने से वह सब चीज़ें तहखाने में टाइम बम्ब लगाने वाले ने ही गायब की हैं। वह नहीं जानता था कि ये सब किसने किया है लेकिन इतना अवश्य जानता था कि देर सवेर उस ब्यक्ति का इस संबंध में कोई न कोई मैसेज ज़रूर आएगा। अजय सिंह उसी मैसेज के इन्तज़ार में था। दूसरी बात अपने बिजनेस को फिर से खड़ा करने के लिए वह कार्यरत भी हो गया था। फैक्टरी भले ही जल गई थी उसकी लेकिन उसके पास पैसों की कमी नहीं थी। गैर कानूनी धंधे में उसने बड़ी धन दौलत इकट्ठी कर ली थी। उसने फैक्टरी को फिर से शुरू करने के लिए उसकी मरम्मत का काम शुरू करवा दिया था। इस समय वह रात दिन इसी में ब्यस्त रहता था। उसकी छोटी बेटी नीलम वापस मुम्बई जा चुकी थी। अजय सिंह फैक्टरी को फिर से शुरू करने के लिए कार्यरत था, इस बात से अंजान कि उसके पीछे उसका बेटा शिवा अपने आचरण से क्या हंगामा खड़ा करने जा रहा था???
शिवा का ज्यादातर समय अपने आवारा दोस्तों के साथ मस्ती करने और गाॅव की किसी न किसी लड़की को पटा कर उनके साथ अपने अंदर की हवस मिटाने में जाता था। माॅ बाप की तरह वो भी अपने ही घर की औरतों व लड़कियों को गंदी नज़रों से देखता था और रात दिन अपनी ही माॅ बहनों तथा चाची को अपने नीचे लेटाने की सोचता रहता था।
ऐसे ही एक दिन उसकी हरकतों की वजह से हंगामा हो गया। अपने बाप की तरह ही उसकी नीयय अपनी चाची करुणा पर बिगड़ी हुई थी। करुणा की बेटी दिव्या भी जवान हो रही थी, हलाॅकि अभी वह स्कूल में पढ़ती थी किन्तु आज की जनरेशन ज़रा एडवाॅस होती है, ये अपनी ऊम्र से पहले ही जवान हो जाते हैं। खेला खाया शिवा चाची की बेटी दिव्या को भी हवस भरी नज़रों से देखता था। चाची के गदराए व खूबसूरत जिस्म का वह शुरू से ही दिवाना था। किन्तु कुछ कर नहीं सकता था क्योंकि वह अपने चाचा अभय के गुस्सैल स्वभाव के चलते डरता था, दूसरी बात उसकी चाची करुणा भी ऐसी वैसी औरत नहीं थी जिससे वह अपने इरादों में कामयाब हो पाता। उससे जितनी हो सकती थी उतनी कोशिश वह फिर भी किया करता था। मतलब चाची के पास उठना बैठना तथा उनके द्वारा दिये गए हर काम को खुशी खुशी करना। उनसे हॅसना बोलना, बातों के बीच यदा कदा मज़ाक भी कर लेना। करुणा ज्यादातर दिन में अकेली ही होती थी, उसके साथ उसका बारह साल का दिमाग़ से डिस्टर्ब बेटा शगुन रहता था। उसका पति और बेटी दिव्या सुबह स्कूल चले जाते थे, फिर शाम चार बजे के आस पास ही आते थे। सुबह दस बजे से चार बजे तक करुणा अकेली ही घर में रहती थी। हलाॅकि दिन भर वह कोई न कोई काम करती ही रहती थी ताकि उसका समय पास हो जाए।
एक दिन की बात है, उस दिन गुरूवार था। अभय व दिव्या रोज़ की तरह स्कूल गए हुए थे। शिवा की आदत थी कि वह करुणा के घर तभी जाता था जब उसका चाचा और चाचा चाची की बेटी स्कूल चले जाते थे। उसे अपनी चाची करुणा की दिनचर्या का बखूबी पता था। वह जानता था कि चाचा और दिव्या के स्कूल जाने के बाद ही करुणा नहाने जाती थी बाॅथरूम में। बाहर मेन गेट बंद रहता था किन्तु अंदर से कुंडी नहीं लगी होती थी। करुणा कुंडी नहीं लगाती क्योंकि उसे पता होता था कि शिवा आएगा। ख़ैर, रोज़ की तरह ही शिवा उस दिन भी अपने निर्धारित समय पर पहुॅचा। दरवाजे को हल्के से खोल कर वह अंदर दाखिल हो गया। अपनी चाची के नहाने के समय पर वह इसी लिए आता था कि वह किसी तरह अपनी चाची को बाथरूम में नहाते हुए देख सके। हलाॅकि ऐसा कभी हुआ नहीं था बल्कि वह हमेशा अपने मनसूबों में नाकामयाब रहा था। यानी उसकी चाची कमरे से अटैच बाथरूम में जाने से पहले अपने उस कमरे का दरवाजा बंद करके अंदर से कुंडी लगा देती थी। शिवा को अपनी चाची को नहाते देखने के लिए पहले चाची के कमरे में जाना पड़ता फिर बाथरूम में। जबकि दरवाजा ही बंद रहता था इस लिए वह कुछ कर ही नहीं सकता था। वह अपनी चाची से कह भी नहीं सकता था कि आप अपने कमरे का दरवाजा अंदर से बंद मत किया कीजिए।
मगर कहते हैं न कि होनी अटल होती है। यानी जिस वक्त जो होना होता है वो होकर ही रहता है। कहने का मतलब ये कि करुणा बाथरूम में नहाने जाने से पहले आज अपने कमरे का दरवाजा अंदर से बंद करना भूल गई, या यूॅ कहिए कि नियति के चलते उससे ये भूल हो गई।
शिवा जब भी आता था तो सबसे पहले ये ज़रूर चेक करता था कि उसकी चाची ने दरवाजा अंदर से बंद किया है या नहीं। हलाकि वह जानता था कि चाची दरवाजा खुला रखने की ग़लती कभी नहीं करती हैं, फिर भी वह अपनी तसल्ली के लिए एक बार ज़रूर चेक करता था। आज भी उसने ऐसा ही किया, और दरजाजा जब उसकी उम्मीद के विपरीत उसके द्वारा दिए गए हल्के से दबाव में बेआवाज़ तथा बिना किसी विरोध के खुलता चला गया तो वह पहले तो हैरान हुआ मगर जल्द ही उसका मन मयूर खूशी से नाचने भी लगा। वह दबे पाॅव कमरे में दाखिल हुआ। उसकी धड़कने एकाएक बढ़ गई थीं जिसके धक धक करने की हर थाप उसे अपनी कनपटियों में बजती महसूस हो रही थी।
कमरे में पहुॅचते ही उसने देखा कि बेड पर उसकी चाची के वो कपड़े रखे हैं जिन्हें उसकी चाची नहाने के बाद पहनने वाली थी। शिवा ने आगे बढ़ कर उन कपड़ों को ग़ौर से देखा। साड़ी ब्लाउज पेटीकोट व ब्रा पैन्टी सब बड़े सलीके से रखे हुए थे। शिवा की नज़र ब्रा और पैन्टी पर पड़ी। उसने बिना कुछ सोचे समझे तथा बिना एक पल गवाॅए अपना हाॅथ बढ़ा कर बेड से चाची की लाल रंग की ब्रा को उठा लिया। ब्रा अच्छी क्वालिटी की थी, उसके कप देख कर शिवा की आॅखों में अजीब सी चमक आ गई। उसने ब्रा को अच्छी तरह से उलटा पलटा कर देखा। 36D पर नज़र पड़ते ही वह अजीब तरह से मुस्कुराया और फिर उस ब्रा को अपनी नाॅक के पास लाकर उसे सूॅघने लगा। ब्रा की सुगंध ने अपना असर दिखाया और शिवा की आॅखें एक अजीब सी खुमारी से बंद होती चली गई। उसका रोम रोम रोमाॅच से भरता चला गया। कुछ देर इसी तरह वह ब्रा को सूॅघता रहा फिर उसने अपनी आॅखें खोली और ब्रा से नज़र हटा कर उसने बेट पर पड़ी चाची की पैन्टी की तरफ देखा। तुरंत ही उसने पैन्टी को उठा लिया और उसे भी उलट पलट कर देखने लगा 38 साइज पर नज़र पड़ी तो एक बार फिर वह अजीब तरह से मुस्कुराया और फिर सीघ्र ही पैन्टी के उस भाग को अपनी नाॅक के पास लाकर सूॅघने लगा जिस भाग में उसकी चाची का योनि भाग होता है। पैन्टी के योनि भाग को सूॅघते ही उसकी आॅखें पुनः बंद होती चली गई। वह अपनी नाॅक से ज़ोर ज़ोर से साॅसे खींचने लगा। तभी वह किसी आहट से बुरी तरह चौंका, उसने तुरंत अपनी आॅखें खोल कर इधर उधर देखा किन्तु कहीं कोई नहीं था, बस कानों में कमरे से अटैच बाथरूम में पानी गिरने की आवाज़ सुनाई दे रही थी।
शिवा को सहसा ख़याल आया कि चाची तो अंदर बाॅथरूम में है। जिसे नहाते हुए देखने के लिए वह न जाने कब से तड़प रहा था। आज उसे ये सुनहरा मौका मिला है तो उसे ये मौका किसी भी कीमत पर गवाॅना नहीं चाहिए। ये सोचते ही उसने अपने हाॅथ में ली हुई ब्रा पैन्टी को बेड पर उसी तरह सलीके से रख दिया और फिर पलट कर दबे पाॅव बाथरूम के दरवाजे की तरफ बढ़ा।
बाथरूम के दरवाजे के पास पहुॅच कर उसने देखा कि बाथरूम का दरवाजा बंद तो था किन्तु अंदर से कुंडी नहीं लगी थी। बल्कि हल्का सा खुला ही नज़र आ रहा था। करुणा ने शायद इस लिए बाथरूम की कुंडी अंदर से नहीं लगाई थी कि उसकी समझ में कमरे का दरवाजा अंदर से बंद है, इस लिए किसी के अंदर आने का कोई सवाल ही नहीं है। जबकि इधर शिवा ये देख कर हैरानी के साथ साथ खुश हो गया कि उसकी चाची ने आज हर तरफ से उसका रास्ता खुला रखा है।
शिवा ने अपने ज़ोर ज़ोर से धड़क रहे दिल के साथ बाथरूम के दरबाजे में बाहर इस तरफ लगे हैण्डल को आहिस्ता से पकड़ कर दरवाजे को बाथरूम की तरफ हल्के से ढकेला। परिणामस्वरूप दरवाजा बेआवाज़ खुलता चला गया किन्तु शिवा ने दरवाजे को ज्यादा खोलना मुनासिब न समझा बल्कि उतना ही खोला जितने में वह अंदर नहाती हुई अपनी चाची को आराम से देख सके। शिवा ने धाड़ धाड़ बजती हुई अपने दिल की धड़कनों के साथ बाथरूम के अंदर की तरफ देखा….और यहीं पर दो चीज़ें एक साथ हुईं। इधर शिवा ने अंदर नहाती हुई अपनी चाची के बेपर्दा जिस्म को देखा और उधर बाहर से कमरे में दाखिल होकर अभय ने बाथरूम में अंदर की तरफ झाॅकते अपने भतीजे शिवा को देखा। और….और…..
“शिवाऽऽऽऽऽऽऽऽ।” अभय ने शेर की तरह दहाड़ते हुए आकर शिवा को पीछे से उसके शर्ट की कालर से पकड़ कर अपनी तरफ एक झटके से खींचा, और खींचते हुए ही कमरे से बाहर बड़े से ड्राइंगरूम में ले गया। और इसके बाद शुरू हुई शिवा की लात घूॅसों से धुनाई।
“तेरी हिम्मत कैसे हुई हरामखोर अपनी चाची को बाथरूम में इस तरह नहाते हुए देखने की??” अभय ने गुस्से से कहने के साथ ही शिवा को उठा कर पक्के फर्स पर पटक दिया। शिवा की दर्द भरी चीख पूरे घर में गूॅज गई।
“बोल हरामजादे बोल।” फर्स पर दर्द से कराहते शिवा के पेट में अभय ने ज़ोर से लात जमाते हुए कहा__”तेरी हिम्मत कैसे हुई ये नीच काम करने की?? बोल वर्ना यहीं पर ज़िदा दफन कर दूॅगा।”
“मु मुझे माफ आहहहह कर दीऽऽजिए चाचा जी।” लात घूॅसों के निरंतर पड़ने से कराहते हुए शिवा ने अपने हाॅथ जोड़ने का प्रयास करते हुए कहा__”मुझे माफ कर दीजिए, मुझसे ग़लती हो गई। आहहहहह माफ कर दीजिए चाचा जी…अब दुबारा ऐसा कभी नहीं करूॅगा चाचा जी। आहहहहह एक बार माफ कर दीजिए आहहहह।”
“तुझे माफ कर दूॅ कुत्ते???” शिवा को कालर से पकड़ कर उठाते हुए अभय ने गुर्राते हुए कहा__”नहीं हर्गिज़ नहीं। तू माफी के लायक नहीं है। तूने जो नीच काम करने का दुस्साहस किया है उसके लिए तो तुझे जिदा मार देना चाहिए।”
इधर अभय लात घूॅसों से शिवा की कुटाई किये जा रहा था उधर करुणा की हालत भी खराब हो गई थी। दरअसल अभय जब पहली बार कमरे में आकर शिवा को बाथरूम में झाॅकते देख दहाड़ा था तभी करुणा उछल पड़ी थी। अभय के मुख से शिवा का नाम सुनते ही वह समझ गई थी कि क्या माज़रा है? उसे इस ख़याल ने ही बुरी तरह हिला कर रख दिया था कि उसकी जेठानी का लड़का शिवा जो खुद भी उसके बेटे के समान ही है वो उसे नंगी हालत में नहाते हुए बाहर से छिप कर देख रहा था। इतना ही नहीं वह अभय के द्वारा ये नीच काम करते हुए रॅगे हाथों पकड़ा भी गया था।
करुणा मारे शर्म के तथा इस हादसे से बाथरूम के फर्स में उसी तरह नंगी हालत में बैठी तथा अपने दोनो घुटनों के बीच मुॅह छुपाए बुरी तरह रोए जा रही थी। उसकी मारे शर्म और अभय के डर से हिम्मत ही नहीं हो रही थी कि वह यहाॅ से बाहर कमरे में जाए। उसे जैसे खुद का होश ही नहीं रहा था कि वह इस वक्त किस हालत में है। उसके कानों में बाहर से आती आवाज़ें साफ सुनाई दे रही थी। जिन आवाज़ों में शिवा की दर्द भरी चीखें और अभय का शेर की तरह गरजना शामिल था।
इधर अभय सिंह शिवा को लात घूॅसों से मारते मारते अधमरा कर दिया। शिवा इतनी कुटाई के बाद बेहोश हो चुका। उसके जिस्म में कई जगह नीले निशान पड़ चुके थे। आॅख नाॅक मुॅह सब फूल गए थे, तथा नाॅक व होंठ फट गए थे जहाॅ से खून बह रहा था। शिवा के बेहोश होने के बाद भी अभय सिंह का गुस्सा शान्त नहीं हुआ था। उसने शिवा को उठा कर अपने कंधे में डाला और घर से बाहर निकल गया।
घर से बाहर आकर अभय अपने बड़े भाई अजय सिंह के घर की तरफ बढ़ता चला जा रहा था। कछ ही देर में वह अजय सिंह के घर के अंदर ड्राइंगरूम में पहुॅच गया। ड्राइंग रूम में इस वक्त कोई नज़र न आया।
“भाभीऽऽऽऽ।” अपने कंधे पर शिवा को उसी तरह लिए हुए अभय ड्राइंग रूम में खड़े होकर पूरी शक्ति से चिल्लाया था।
उसके इस तरह चिल्लाने का असर ये हुआ कि दो पल में ही कमरे से बाहर लगभग दौड़ती हुई प्रतिमा ड्राइंगरूम में दाखिल होती नज़र आई।
“क् क्या हुआ अभय???” प्रतिमा ने आते ही अभय से पूछा__”क्या बात है तुम इस तरह चिल्लाए क्यों???”
प्रतिमा की बात सुन कर अभय सिंह ने अपने कंधे से शिवा को उतार कर सामने रखे सोफे के पास जाकर सोफे पर शिवा को लगभग पटक दिया। प्रतिमा की नज़र जैसे ही अपने बेटे की अधमरी हालत पर पड़ी तो उसके हलक से चीख निकल गई।
“ये ये क्या हो गया मेरे बेटे को?” प्रतिमा दौड़ कर शिवा के चेहरे को अपने हाॅथों में लेकर रोते हुए बोली__”किसने की मेरे बेटे की ऐसी हालत??? अभय इसे कहाॅ से लेकर आए हो तुम?? प्लीज बताओ क्या हुआ है इसे?? किसने किया ये सब??”
“मैंने की है इसकी ये दुर्दसा।” अभय ने बर्फ की मानिंद ठंडे स्वर में कहा__”और जी तो चाहता है कि इसे अभी जान से मार दूॅ।”
“अभऽऽऽय।” प्रतिमा एक झटके में खड़ी होकर चिल्लाते हुए कहा__”तुम होश में तो हो? ये क्या बोल रहे हो तुम??”
“शुकर मनाइए भाभी कि मैंने अपना होश नहीं खोया था।” अभय ने पहली बार अपनी भाभी की आॅखों में आॅखें डाल कर तथा गुर्राते हुए कहा__”वर्ना जिस बेटे को बेटा कहते हुए आपकी ज़ुबान नहीं थकती न उसे आज ज़िन्दा ही ज़मीन के अंदर दफन कर दिया होता।”
“तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मुझसे इस लहजे में बात करने की?” प्रतिमा ने चीखते हुए कहा__”तुम भूल गए हो कि तुम किससे बात कर रहे हो? अपने से बड़ों की तमीज़ भूल गए हो तुम? और…..और मेरे बेटे के बारे में ऐसा बोलने की हिम्मत कैसे हुई तुम्हारी??”
“मुझे तमीज़ और संस्कार न बताइए भाभी।” अभय ने कठोर भाव से कहा__”बल्कि इसकी सबसे ज़्यादा ज़रूरत आपके बेटे को है, इस हरामज़ादे को सिखाइए तमीज़ और संस्कार। आज इसने जो नीच हरकत की है, इसकी जगह कोई और होता तो अब तक मेरे हाॅथों जान से मार दिया गया होता। आपका और बड़े भइया का ख़याल कर लिया इस लिए इसे ज़िन्दा छोंड़ दिया है मैंने। मगर आइंदा अगर इसने मेरे घर की तरफ देखने की भी ज़ुर्रत की तो इसके लिए अच्छा नहीं होगा।”
प्रतिमा को एकाएक झटका सा लगा। सारा गुस्सा सारा चीखना चिल्लाना साबुन के झाग की तरह डण्डा पड़ता चला गया। अभय की इस बात ने उसे अंदर ही अंदर बुरी तरह चौंका दिया कि उसके बेटे ने कोई नीच हरकत की है। अपने पति व बेटे की रॅग रॅग से वाकिफ प्रतिमा समझ गई कि उसके बेटे ने कोई ग़लत हरकत की है, मगर क्या??
“आख़िर ऐसा क्या किया है मेरे बेटे ने अभय??” प्रतिमा ने तनिक हल्के लहजे से कहा__”जो तुम इसे जान से मार देने की बात कर रहे हो?”
“क्या बताऊॅ आपको?” अभय ने अजीब भाव से कहा__”मुझे तो आपसे बताने में भी शर्म आती है लेकिन इस हरामज़ादे को उस नीच काम करने में ज़रा भी शर्म नहीं आई।”
“अभय प्लीज, बताओ मुझे कि क्या किया है इसने??” प्रतिमा का दिल बुरी तरह धड़कने लगा था किसी आशंकावश।
“ये करुणा को उसके बाथरूम में छिप कर नहाते हुए देख रहा था।” अभय ने गुर्राते हुए कहा__”आज स्कूल में एक मास्टर की मृत्यु हो गई थी इस लिए स्कूल में सभी बच्चों की छुट्टी कर दी गई। मैं भी घर लौट आया, मगर मुझे क्या पता था कि घर आते ही मुझे इसकी गंदी करतूत देखने को मिलेगी? जैसे ही मैं कमरे में दाखिल हुआ तो मेरी नज़र बाथरूम के दरवाजे से छिप कर बाथरूम में देखते आपके इस नीच बेटे पर पड़ी। ये करुणा को नहाते हुए जाने कब से देख रहा था। इसे इस बात का भी ख़याल नहीं रहा कि करुणा इसकी चाची है जो खुद इसके माॅ के ही समान है उसे यह इस नीचता से कैसे देख सकता है??”
“सचमुच अभय।” प्रतिमा ने सारी बात सुनते ही दुखी भाव से कहा__”इसने बहुत बड़ा पाप किया है। इसे ऐसा करने की तो बात दूर बल्कि ऐसा करने की सोचना भी नहीं चाहिए था। अच्छा किया तुमने जो इसे इसकी नीचता की सज़ा दे दी। ये माफी के लायक नहीं है अभय….मगर मैं तुमसे हाॅथ जोड़ कर माफी माॅगती हूॅ इसकी तरफ से। आइंदा ये ऐसा कुछ नहीं करेगा।”
“जिसके मन में इस तरह के नीच और बुरे विचार एक बार पैदा हो जाते हैं वो इतना जल्दी ज़हन से नहीं जाते।” अभय ने कहा__”इस लिए इससे मेरा भरोसा अब उठ चुका है, और अब अगर ये मेरे घर के आस पास भी नज़र आया तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा?”
“अब ये कुछ भी ऐसा वैसा नहीं करेगा अभय।” प्रतिमा ने कहा__”मैं इस बात का वचन देती हूॅ तुम्हें। मैं बहुत शर्मिंदा हूॅ कि मेरे बेटे ने ऐसी नीच व घटिया हरकत की।”
“ये सब आप और बड़े भइया के लाड़ प्यार का नतीजा है भाभी।” अभय ने कहा__”आप लोगों ने हमेशा इसकी ग़लतियों पर पर्दा डाला है, वर्ना ये ऐसा न बनता। मुझे इसकी करतूतों के बारे में सब पता है, ये गाॅव की हर लड़की और औरत पर गंदी नज़र रखता है। लेकिन मुझे ये नहीं पता था कि इसकी गंदी नज़र अपनी ही माॅ समान चाची पर भी हैं, और क्या पता इसकी ये गंदी नज़रें परिवार की किन किन लड़कियों और औरतों पर हैं??? जिसे अपनी हवस के आगे रिश्तों का कोई ख़याल ही न हो वो परिवार की किसी भी औरत के बारे में कुछ भी सोच और कर सकता है।”
“ऐसा नहीं है अभय।” प्रतिमा की ये सोच कर अब हालत ख़राब होने लगी थी कि अभय उसके बेटे की करतूतों को जानता है और उसके बारे में अब ऐसा बोल रहा है। वो तो जानती ही थी कि उसका बेटा अपने बाप की तरह ही परिवार की हर लड़की व औरत को अपने नीचे लेटाना चाहता है। उसका बस चले तो वो अपनी माॅ को भी अपने नीचे लेटाने में एक पल भी जाया न करे। आज उसी बेटे की करतूतों से सारा बना बनाया खेल बिगड़ गया था। अभय के सामने ये सब हो गया इस लिए हालातों को सम्हालने की गरज़ से उसने कहा__”मेरा बेटा इतना नीच और गिरा हुआ नहीं है कि वो परिवार की औरतों के बारे में ऐसा सोचे। मैं मानती हूॅ कि उसने ग़लती की है, और इस उमर में ऐसा हो जाता है, लेकिन ये सच है कि उसे अपनी माॅ समान चाची को ऐसे छिप कर नहाते हुए नहीं देखना चाहिए था। मैं समझाऊॅगी उसे कि ऐसा सोचना भी पाप है। तुम प्लीज ये सब बातें अजय से मत कहना वो इस सबके लिए इसे माफ नहीं करेंगे, बल्कि इसे मार मार कर घर से निकाल देंगे।”
“आप अब भी इसे बचाने के बारे में सोच रही हैं?” अभय ने एकाएक आवेशयुक्त लहजे से कहा__”इसकी ऐसी नीच हरकतों को बड़े भइया से छुपाने की बात कर रही हैं आप? नहीं भाभी नहीं…इसने जो किया है उसका पता बड़े भइया को भी चलना चाहिए। उन्हें भी तो पता चले कि उनका सपूत कितने बड़े बड़े काम करता है, ताकि उनका सिर गर्व से उठ जाए।”
प्रतिमा उससे क्या कहती??? उससे क्या कहती कि जिन बातों को वह अपने बड़े भाई से बताने की बात कर रहा है, उन सब बातों का उसके भाई को पहले से ही सब पता है। बल्कि अगर ये कहा जाए तो ज़रा भी ग़लत न होगा कि इस सबका असली कर्ता धर्ता ही वही है। मगर प्रतिमा ये सब अभय से कह नहीं सकती थी बल्कि उसने तो प्रत्यक्ष में बस यही कहा__”मैं तुम्हारे आगे हाॅथ जोड़ती हूॅ अभय, प्लीज इस सबके बारे में तुम अजय से कुछ मत कहना। वो इसे घर से निकाल देंगे। मैं मानती हूॅ कि इसने जो किया है वो माफी के काबिल नहीं है लेकिन प्लीज अभय इसे इसकी पहली और आख़िरी ग़लती समझ कर माफ़ कर दो, और इस सबको भूल जाओ। मैं तुमसे वादा करती हूॅ कि अब से ये तुम्हारे घर की तरफ कभी देखेगा भी नहीं।”
अभय गुस्से से भरी आॅखों से प्रतिमा की तरफ देखता रहा। कुछ बोला नहीं उसने जबकि उसके इस प्रकार गुस्से से देखने पर प्रतिमा ने कहा__”अभय, शान्त हो जाओ प्लीज। तुम चाहो तो इसके कुकर्म की मुझे जो चाहे सज़ा दे दो। इसने तुम्हारी पत्नी व अपनी चाची को जिस नीचता से छिप कर नहाते हुए देखा है उसके लिए तुम जो चाहे मुझे सज़ा दे दो। तुम्हारी हर सज़ा को मैं बिना कुछ बोले स्वीकार कर लूॅगी। मगर इस सबको भूल कर इसे माफ कर दो प्लीज।”
“भगवान जानता है कि मैंने कभी अपने परिवार के बारे में ग़लत नहीं सोचा, बल्कि हमेशा सबको अपना मान कर उन्हें यथोचित सम्मान दिया है।” अभय कह रहा था__”विजय भइया की मौत तथा माॅ बाबू जी के कोमा में चले जाने के बाद इस हवेली में रहने वालों की सोच को न जाने क्या हो गया है?? मुझे नहीं पता कि गौरी भाभी, तथा उनके बच्चों ने ऐसा क्या कर दिया था कि उन्हें उसकी कीमत इस हवेली से तथा सबसे रिश्ता तोड़ कर चुकानी पड़ी। मुझे यकीन नहीं होता कि विजय भइया और गौरी भाभी ने कभी कोई ग़लत कदम उठाया रहा होगा। बल्कि वो तो ऐसे थे कि उन्हें अगर देवी देवता की तरह पूजा भी जाता तो ग़लत न होता। विजय भइया की मौत के बाद ऐसा क्या हो गया था कि गौरी भाभी को उनके बच्चों सहित इस हवेली से बाहर हमारे खेत में बने मकान के सिर्फ एक ही कमरे में रह कर अपना जीवन यापन करना पड़ा। बात यहीं पर खत्म नहीं हो जाती बल्कि सोचने वाली बात ये भी है उन लोगों ने इस सबके बाद भी ऐसा क्या कर दिया था कि उन्हें खेत के उस कमरे को भी छोंड़ कर जाना पड़ा??? जहाॅ तक मुझे पता है विराज आया था अपनी माॅ और बहन से मिलने। सुबह शिवा के साथ उसकी मार पीट हुई थी। शायद यही वजह रही होगी कि वो लोग इस डर से वहाॅ से भी पलायन कर गए कि शिवा के साथ मार पीट करने से अजय भइया उन पर गुस्सा करेंगे। मैं सोचता था कि विराज ने शिवा के साथ मार पीट क्यों की थी?? मगर अब समझ गया हूॅ कि शिवा को मार मार कर अधमरा कर देने की वजह इसकी ही कोई नीच हरकत रही होगी। इस नीच की गंदी नज़र गौरी भाभी या निधि बिटिया पर भी रही होगी। गौरी भाभी ने अपने बेटे को इसकी इन नीच हरकतों के बारे में बताया होगा और कहा होगा कि बेटा हमें यहाॅ से ले चल। यकीनन यही सब बातें हुई रही होंगी।”
अभय सिंह क्या क्या बोले जा रहा था ये सब अब प्रतिमा के सिर के ऊपर से जाने लगा था। उसके पैरों तले से ज़मीन कब की निकल चुकी थी। दिलो दिमाग़ में भयंकर विस्फोट हो रहे थे। दिल की धड़कनें रुक रुक कर इस तरह चल रही थीं जैसे उसे ज़िंदा रखने के लिए उस पर कोई एहसान कर रही हों। आॅखों के सामने अॅधेरा छाने लगा था। ज़हन में एक ही ख़याल कत्थक कर रहा था कि ‘सब कुछ खत्म’।
“आज इसने ये सब करके मुझे इस सबके बारे में सोचने पर मजबूर कर दिया है भाभी।” अभय सिंह नाॅनस्टाप कहे जा रहा था__”और अब मैं खुद पता करूॅगा कि सच्चाई क्या है? मैं गौरी भाभी और उनके बच्चों को खोजूॅगा, और उनसे पूॅछूॅगा कि उन्होंने ऐसा क्या किया था कि उन लोगों को अपने ही घर से सब कुछ छोंड़ कर जाना पड़ा?? अब से मेरे पास सिर्फ यही एक काम होगा भाभी, मैं हर कीमत पर इस सच्चाई का पता लगाऊॅगा।”
इतना कह कर अभय सिंह वहाॅ से चला गया अपने घर की तरफ, इस बात से अंजान कि घर में कौन सी आफत उसका इन्तज़ार कर रही है?? जबकि उसकी इन बातों से प्रतिमा को लगा कि उसे चक्कर आ जाएगा। उसने बड़ी मुश्किल से खुद को सम्हाला और असहाय अवस्था में धम्म से सोफे पर लगभग गिर सी पड़ी।
इधर करुणा अब अपने कपड़े वगैरा पहन चुकी थी। तथा बेड पर गुमसुम सी बैठी थी। उसके पास ही उसकी बेटी दिव्या बैठी थी। दिव्या उमर में छोटी भले ही थी किन्तु हमेशा शान्त रहने वाली ये लड़की सब बातों को समझती थी। उसे अपने बड़े पापा व बड़ी माॅ का ये बेटा शिवा कभी पसंद नहीं आया था। वह इतनी नासमझ नहीं थी कि शिवा की हरकतों तथा उसकी आॅखों में गिजबिजाते हवस के कीड़ों को पहचान न पाती। उसने हज़ारों बार अपनी आॅखों से देखा था कि शिवा हमेशा उसकी माॅ और खुद उसे भी कभी कभी गंदी नज़र से देखता था। वह उसकी हवस से भरी नज़रों को हमेशा अपने सीने पर मौजूद छोटे छोटे उभारों पर महसूस करती थी। किन्तु डर व संकोच की वजह से वह कभी इस सबके बारे में अपनी माॅ से नहीं बताती थी।
अभय और दिव्या दोनो साथ ही स्कूल से घर आए थे। और आते ही जो हंगामा हुआ था उस सबको दिव्या ने अपनी डरी सहमी आॅखों से देखा था। वह समझ गई थी कि उसका बाप शिवा को किस बात पर इतनी बुरी तरह मार रहा था। उसने चुपके से अपनी माॅ के कमरे में जा कर बाथरूम में देखा था। बाथरूम में उसकी माॅ नग्न अवस्था में फर्स पर अपने दोनो घुटनों के बीच मुह छुपाए बैठी रो रही थी। अपनी माॅ को नग्न अवस्था में बैठे इस तरह रोते देख वह हैरान रह गई थी। पहली बार अपनी ही माॅ को नंगी हालत में देखा था उसने। जबकि खुद के जिस्म को अपने सामने भी देखने का कभी उसे ख़याल ही नहीं आया था।
डरी सहमी हालत में वह कुछ देर अपनी माॅ को देखती रही फिर हिम्मत करके वह पलटी और बेड से अपनी माॅ के सारे कपड़े उठा कर उसने बाथरूम के बाहर से ही करुणा की तरफ उछाल दिया। अपने नंगे बदन पर अचानक कपड़ों के पड़ने से करुणा बुरी तरह हड़बड़ा गई। उसकी नज़र पहले खुद के ऊपर गिरे हुए कपड़ों पर पड़ी फिर बाथरूम के गेट पर डरी सहमी खड़ी अपनी बेटी पर। दिव्या पर नज़र पड़ते ही वह चौंकी। एकाएक ही उसे अपनी नग्नता का एहसास हुआ। उसने हड़बड़ाकर अपने नंगे बदन को छिपाने के लिए उन कपड़ों से अपने बदन के गुप्तांगों को ढॅका। जबकि बाथरूम के गेट पर खड़ी दिव्या सीघ्र ही अपनी नज़रें अपनी माॅ पर से हटा कर वापस पलट गई। बाहर शिवा की धुनाई और उसकी दर्द में डूबी हुई चीखें चालू थी। कुछ देर बाद करुणा अपने कपड़े पहन कर बाथरूम से बाहर निकली और बेड पर बैठी अपनी बेटी दिव्या को देख कर उसके जिस्म में एक अजीब सी झुरझुरी महसूस होती चली गई। चेहरे पर लाज और शर्म की लाली फैल गई और उसका सिर झुक गया। अपनी ही बेटी से नज़र मिलाने की हिम्मत न हुई उसमें।
“मम्मी।” दिव्या बेड से उठकर तथा दौड़ते हुए आकर अपनी माॅ से लिपट गई। उसकी आॅखों से आॅसू बहने लगे थे। करुणा को समझ न आया कि वह अपने सीने से लिपटी तथा आॅसू बहाती बेटी से क्या कहे?? उसके दिलो दिमाग़ में अंधड़ सा मचा हुआ था। कमरे के बाहर से अब कोई आवाज़ नहीं आ रही थी। शायद अभय शिवा को लेकर जा चुका था।
करुणा कुछ पल बुत बनी खड़ी रही फिर जाने क्या सोच कर उसने अपने सीने से दिव्या को अलग करके कहा__”जाओ अपने कमरे में और अपनी इस स्कूली ड्रेस को चेंज कर लो।”
दिव्या ने अजीब भाव से अपनी माॅ के चेहरे की तरफ देखा, और फिर पलट कर कमरे से बाहर निकल गई। इधर दिव्या के जाते ही करुणा के चेहरे पर एकाएक पत्थर जैसी कठोरता आ कर ठहर गई। ऐसा लगा जैसे उसने किसी बात का बहुत बड़ा फैंसला कर लिया हो।
अपडेट हाज़िर है दोस्तो……
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