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एक नया संसार - Erotic Incest Sex Story

एक नया संसार – Update 15 | Incest Story

अपडेट………《 15 》

अब तक……

“देखते हैं क्या होता है?” जगदीश ने कहने के साथ ही पहलू बदला__”वैसे अब आगे का क्या करने का विचार है?”

“अभी और कुछ नहीं करना है।” सहसा गौरी ने हस्ताक्षेप किया__”अपनी पढ़ाई पर भी ध्यान देना कुछ, ये काम तो होता ही रहेगा।”

“गौरी बहन सही कह रही है राज।” जगदीश ने अपनेपन से कहा__”कुछ दिन में तुम्हारा काॅलेज भी शुरू हो जाएगा इस लिए अपने मन को थोड़ा शान्त भी रखो।”

“मैं भी यही सोच रहा हूॅ।” विराज ने मुस्कुरा कर कहा__”कुछ दिन अजय सिंह को भी अपनी हालत पर काबू पा लेना चाहिए। वर्ना कहीं ऐसा न हो कि हादसे पर हादसे देख कर वह हार्ट अटैक से ही मर जाए। फिर किससे मैं अपने तरीके से इंतकाम ले सकूॅगा?”

“एक के मर जाने से क्या होता है भइया?” निधि ने कहा__”सब उसके जैसे ही तो हैं, उनका भी वही हाल करना, हाॅ नहीं तो।”

निधि की बात पर सब मुस्कुरा कर रह गए।

अब आगे…….

अजय सिंह की हवेली में इस वक्त बड़ा ही अजीब सा माहौल था। ड्राइंगरूम में रखे सोफों पर इस वक्त परिवार के लगभग सभी सदस्य बैठे हुए थे। अजय सिंह, प्रतिमा, शिवा, अभय सिंह, करुणा, दिव्या तथा अभय व करुणा का दिमाग़ से डिस्टर्ब बेटा शगुन। शगुन अपनी माॅ करुणा के साथ की इस वक्त शान्त बैठा था कदाचित सब कोई खामोश व गुमसुम बैठे हुए थे इस लिए उन सबको देखकर वह भी चुपचाप बैठा था वर्ना आम तौर पर वह कोई न कोई विचित्र सी हरकतें करता ही रहता था। इन लोगों के बीच परिवार के दो सदस्य अभी अनुपस्थित थे, और वो थीं अजय सिंह व प्रतिमा की दोनों बेटियाॅ। अजय की छोटी बेटी नीलम मुम्बई में है, हलाॅकि उसे फैक्टरी में लगी आग की वजह से हुए भारी नुकसान की सूचना दे दी गई थी और वह मुम्बई से निकल भी चुकी थी यहाॅ आने के लिए। जबकि अजय सिंह की बड़ी बेटी रितू सुबह पुलिस स्टेशन चली गई थी, क्योंकि आज उसे चार्ज सम्हालना था। रितू को अपने पिता के साथ हुए हादसे का दुख तो था लेकिन वो कर भी क्या सकती थी? हाॅ ये ज़रूर उसके दिमाग़ में था कि इस केस की छान बीन वो बारीकी से खुद करेगी तथा इसके साथ ही यह पता भी लगाएगी कि ये सब कैसे हुआ??

(आप सबको बताने की ज़रूरत नहीं है कि ये सब लोग इस तरह गुमसुम से क्यों बैठे हुए थे। फिर भी बताना तो हर लेखक का फर्ज़ होता है कि वो हर बात को विस्तार से अपने पाठकों को बताए भी और समझाए भी।)

“क्या कुछ पता चला भैया कि फैक्टरी में किस वजह से आग लगी थी?” सहसा वहाॅ पर फैले इस सन्नाटे को अभय सिंह ने अपने कथन से चीरते हुए कहा__”आपने तो कहा था न कि पुलिस और फाॅरेंसिक डिपार्टमेंट के लोग इसकी बारीकी से छान बीन कर रहे थे?”

“किसी को कोई सुराग़ नहीं मिला छोटे।” अजय सिंह ने गंभीरता से कहा__”सबका यही कहना है कि शार्ट सर्किट की वजह से फैक्टरी में आग लगी थी। उस दिन क्योंकि अवकाश था इस लिए फैक्टरी में काम करने वाले वर्कर्स नहीं थे। फैक्टरी के अंदर कोई नहीं था और जो वहाॅ पर गार्ड्स वगैरा थे वो सब तो बाहर ही रहते हैं इस लिए किसी को पता ही नहीं चला कि फैक्टरी के अंदर कब क्या हुआ? जब तक पता चला तब तक फैक्टरी के अंदर भरे कपड़ों के स्टाक में आग पकड़ चुकी थी। फैक्टरी का इन्ट्री गेट बाहर से लाॅक था जिसकी चाभी मैनेजर के पास थी उस रात। मैनेजर किसी काम से बाहर था, तो आनन फानन में लाॅक तोड़ने की कोशिश की गई। लाक ऐसा था कि दरवाजे के अंदर से कनेक्टेड था जिसे खोल पाना आसान न था इस लोहे के दरवाजे को फिर किसी तरह ट्रक द्वारा तोड़ना पड़ा। इस काम में समय लग गया जिस वजह से आग ने उग्र रूप धारण कर लिया। फिर फायर ब्रिगेड वालों को सूचित किया गया। जब तक दमकल की गाड़ियाॅ वहाॅ पहुॅची तब तक फैक्टरी के अंदर लगी आग बेकाबू हो चुकी थी और फिर सब कुछ खाक़ हो गया।”

(आप लोग समझ ही गए होंगे कि अजय सिंह ये सब बातें अपने से बना कर ही अभय से कही थी। भला वो और क्या बताता उन लोगों से?)

“मैं इस बात को नहीं मानती डैड।” सहसा तभी ड्राइंगरूप में इंस्पेक्टर की वर्दी पहने हुए अजय सिंह की बेटी इंस्पेक्टर रितू ने दाखिल होते हुए कहा।

पुलिस इंस्पेक्टर की वर्दी में बला की खूबसूरत लग रही थी रितू। ऐसा लगता था जैसे ये पुलिस की वर्दी जन्म जन्मांतर से बनी ही उसके लिए थी। उसे इस रूप में देखकर वहाॅ बैठे सब लोगों की आॅखें फटी की फटी रह गईं। एकटक, अपलक देखते ही रह गए थे सब लोग उसे। वर्दी की टाइट फिटिंग में उसके बदन के वो सब उभार स्पष्ट नज़र आ रहे थे जिससे उसके भरपूर जवान हो जाने का पता चल रहा था। अजय सिंह तथा शिवा की आंखें कुछ अलग ही नज़ारा कर रही थी। ये बात किसी ने महसूस की हो या न की हो किन्तु उन बाप बेटों की फितरत से बाखूबी परिचित प्रतिमा ने साफ तौर पर महसूस किया। और अभय व करुणा की मौजूदगी को ध्यान में रखते हुए उसने तुरंत ही उन बाप बेटों को उनकी वास्तविक स्थित में ले आने की गरज से किन्तु सावधानी से कहा__”वाह मेरी बेटी पुलिस की वर्दी में कितनी सुन्दर लग रही है, कहीं किसी की नज़र न लग जाए तुझे। चल मैं तेरे कान के नीचे नज़र का काला टीका लगा देती हूॅ।”

“इसकी कोई ज़रूरत नहीं है माॅम।” रितु ने हॅस कर कहा__”यहाॅ पर सब अपने ही तो बैठे हैं। भला अपनों की भी कहीं नज़र लगती है क्या?”

“क्या पता?” प्रतिमा ने एक सरसरी सी नज़र अपने पति व बेटे पर डाली फिर बोली__”लग भी सकती है।”

अजय सिंह और शिवा दोनो ही प्रतिमा की इस बात पर चौंके और सम्हल कर बैठ गए। ये देख प्रतिमा मन ही मन मुस्कुराई थी।

“बहुत बहुत बॅधाई हो रितू।” करूणा ने मुस्कुराकर कहा__”आज से तुम पुलिस वाली बन गई हो।”

“धन्यवाद चाची जी।” रितू ने कहा तथा एक हाॅथ में पकड़े हुए पुलिस रुल को अपने दूसरे हाॅथ की हॅथेली पर हल्के से मारते हुए कहा__”मैं आपकी इस बात को नहीं मानती डैड कि आपकी फैक्टरी में लगी आग किसी शार्ट सर्किट की वजह से लगी है।”

“ये तुम क्या कह रही हो बेटी?” अजय सिंह मन ही मन उसकी इस बात से चौंका था किन्तु चेहरे पर उन भावों को उजागर न करते हुए प्रत्यक्ष में कहा __”अगर आग शार्ट सर्किट की वजह से नहीं लगी है तो फिर किस वजह से लगी है? जबकि पुलिस और फाॅरेंसिक डिपार्टमेंट के लोग अपनी छान बीन में इसी बात की पुष्टि करके गए थे?”

“यही तो हैरानी की बात है डैड।” रितू ने चहलकदमी करते हुए कहा__”वो लोग उस बात की पुष्टि कर गए जिसका कहीं कोई वजूद ही नहीं था, जबकि उस तरफ उन लोगों ने ज़रा भी ग़ौर नहीं किया जिस तरफ किसी बात के प्रमाण मिल जाने के किसी हद तक चान्सेस थे।”

“क्या मतलब है तुम्हारा?” अजय सिंह इस बार लाख कोशिशों के बाद भी अपने चेहरे पर बुरी तरह चौंकने के भाव न छिपा सका। वह तो चकित भी हो गया था कि उसकी बेटी जो अब तक साधारण सी थी वो अब इस रूप में ऐसी बातें भी करने लगी थी। उसे समझ न आया कि उसकी बेटी के अंदर कौन सा जासूसी कीड़ा समा गया है?

“मेरा मतलब तो स्वीमिंगपुल में भरे पानी की तरह साफ ही है डैड।” उधर रितू अजीब से अंदाज़ में अपने ही बाप की धड़कने बढ़ाते हुए कह रही थी__”मुझे तो ऐसा लगता है जैसे फैक्टरी में छान बीन करने आए पुलिस तथा फाॅरेंसिक डिपार्टमेंट के लोग छान बीन की महज औपचारिकता निभा कर चले गए हैं। वर्ना इतने भीषण काण्ड की इतनी मामूली सी वजह बता कर नहीं चले जाते बल्कि कुछ और ही पता करते।”

अजय सिंह अपनी पुलिस की वर्दी पहने बेटी को मुॅह बाए देखता रह गया। कानों में कहीं दूर से हथौड़े की चोंट का एहसास करने लगा था वो। फिर सहसा जैसे उसे वस्तुस्थित का ख़याल आया तो बोला__”मतलब क्या है बेटी? क्या तुम ये कहना चाहती हो कि तुम्हारे ही पुलिस डिपार्टमेंट के लोगों ने अपनी छान बीन में ग़लत रिपोर्ट दी है? जबकि तुम्हारे अनुसार उनकी इस रिपोर्ट के उलट कुछ और ही रिपोर्ट निकल सकती थी? इससे तो यही ज़ाहिर होता है कि तुम्हें अपने ही पुलिस डिपार्टमेंट की इस छान बीन के फलस्वरूप बनाई गई रिपोर्ट पर शक है?”

“मैंने ये कब कहा डैड कि मुझे अपने डिपार्टमेंट द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट पर शक है?” रितू ने कहा__”मैंने तो सिर्फ अपनी बात रखी है इस सिलसिले में कि अगर औपचारिकता की बजाय ठीक तरह से छान बीन की जाती तो शायद निष्कर्श कुछ और ही निकलता।”

“तुम्हारे कहने का मतलब तो वही हुआ बेटी।” अजय सिंह जाने क्या सोच कर पल भर को मुस्कुराया था, फिर बोला__”तुम्हें लगता है कि तुम्हारे डिपार्टमेंट वालों ने अपनी छान बीन में महज अपनी औपचारिकता निभाई है। इसका मतलब तो यही हुआ कि उन्होंने तुम्हारी नज़र में गंभीरता से छानबीन ही नहीं की।”

“बिलकुल।” रितू ने कहा__”पर ये उन पर मेरा कोई आरोप नहीं है डैड। क्योंकि मुझे पता है सबका अपना अपना दिमाग़ होता है, और सब अपने उसी दिमाग़ की वजह से किसी भी चीज़ का रिजल्ट निकालते हैं। जिसका जितना दिमाग़ चलता है वो उतना ही बता पाता है, मगर ज़रूरी नहीं होता कि कोई सच उतने ही दिमाग़ से निकलने वाला सच कहलाए। ख़ैर जाने दीजिए…मैं आपको ये खुशख़बरी सुनाने आई हूॅ कि इस केस को मैंने रिओपेन किया है जिसके लिए मैंने कमिश्नर से बड़ी मिन्नते की थी। मुझे अंदेशा है कि मेरे डिपार्टमेंट ने ठीक तरह से छान बीन नहीं की। इस लिए अब ये केस मैंने खुद अपने हाॅथ में लिया है और अब मैं खुद इसकी छानबीन करूॅगी।”

“क क्या????” अजय सिंह उछल पड़ा, चहरे पर पसीने की बूॅदे झिलमिला उठीं। फिर जल्दी ही उसने खुद को सम्हालते हुए कहा__”भला इसकी क्या ज़रूरत थी बेटी? मेरा मतलब है कि मान लो ये पता लग भी जाए कि फैक्टरी में आग वास्तव में किस वजह से लगी थी तो भी क्या होगा? क्या इससे वो सब वापस मिल जाएगा जो जल कर खाक़ मे मिल चुका है?”

“मैं मानती हूॅ डैड कि अब वो सब कुछ नहीं मिल सकता जो जल कर खाक़ हो गया है।” रितु ने कहा__”लेकिन छान बीन से हकीक़त का पता भी तो चलना चाहिए। आखिर पता तो चलना ही चाहिए कि फैक्टरी में आग खुद लगी थी या किसी के द्वारा लगाई गई थी?”

“किसी के द्वारा?” सहसा इस बीच अभय ने कहा__”इसका क्या मतलब हुआ रितू बेटी?”

“मतलब साफ है चाचा जी।” रितू ने अभय से मुखातिब होकर कहा__”फैक्टरी में आग अगर खुद नहीं लगी रही होगी तो ज़ाहिर है किसी के द्वारा आग लगाई गई थी। उस सूरत में सवाल यही उठता है कि किसने और किस वजह से फैक्टरी में आग लगाई? आप ही बताइए क्या ये जानना ज़रूरी नहीं है कि हम ऐसे इंसान का पता लगाएं जिसने हमारी फैक्टरी को आग लगा कर हमारा सब कुछ बरबाद कर दिया?”

“बिलकुल बेटा।” अभय ने कहा__”अगर छानबीन में यही सच सामने आता है तो इसका पता तो चलना ही चाहिए कि किसने ये सब किया और क्यों किया?”

अजय सिंह के काॅनों में सीटियाॅ सी बजने लगी थी। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि अब वह ऐसा क्या करे कि उसकी बेटी फैक्टरी की दुबारा छानबीन न करे? क्योंकि उसे पता था कि अगर रितू ने दुबारा छानबीन शुरू की तो वो सच्चाई भी सामने आ जाएगी जिसको वह किसी भी कीमत पर सामने नहीं लाना चाहता। पहले जो छानबीन हुई थी उसमें अजय सिंह ने ऊपर ऊपर से ही फैक्टरी की छानबीन करवाई थी वो भी सिर्फ औपचारिकता के लिए। सब उसके ही आदमी थे, पुलिस भी और फाॅरेंसिक डिपार्टमेंट के लोग भी। किन्तु अब ये केस फिर से रिओपेन हो गया, वो भी उसकी अपनी ही बेटी के द्वारा। उसे समझ नहीं आ रहा था कि अपनी बेटी को दुबारा से छानबीन करने से कैसे रोंके?

“रितू दीदी ठीक ही कह रही हैं डैड।” सहसा इस बीच काफी देर से चुपचाप बैठा शिवा भी अपने अंदाज़ में कह उठा__”फैक्टरी की दुबारा से छानबीन तो होनी ही चाहिए। कम से कम असलियत तो सामने आ ही जाए कि किसने ये सब किया है? कसम से डैड…जिसने भी ये किया होगा उसको छोड़ूॅगा नहीं मैं। कुत्ते से भी बदतर मौत मारूॅगा उसे।”

“खामोशशशशश।” अजय सिंह लगभग चीखते हुए कहा था__”चुपचाप बैठो, नहीं तो कमरे में जाओ अपने। तुम्हें बीच में बोलने की कोई ज़रूरत नहीं है समझे??”

“पर डैड मैंने ऐसा क्या ग़लत कह दिया?” शिवा ने बुरा सा मुॅह बनाते हुए कहा__”जिसकी वजह से आप मुझे इस तरह डाॅटकर चुप करा रहे हैं।”

अजय सिंह का जी चाहा कि वह अपने इस नालायक बेटे को गोली मार दे, किन्तु फिर बड़ी मुश्किल से अपने गुस्से को काबू में किया उसने।

“मैं तो कहता हूॅ बेटी कि बेवजह ही तुम इसके लिए परेशान हो रही हो।” अजय सिंह ने बात को किसी तरह सम्हालने की गरज से कहा__”क्योंकि अगर ये पता चल भी गया कि फैक्टरी में आग खुद नहीं लगी थी बल्कि किसी के द्वारा लगाई गई थी तो तब भी ये कैसे पता लगाओगी कि किसने ये सब किया? वो जो कोई भी रहा होगा वो इतना बेवकूफ नहीं रहा होगा कि इतना बड़ा काण्ड करने बाद अपने पीछे अपने ही खिलाफ कोई सबूत या कोई सुराग़ छोंड़ गया होगा। क्योकि ये तो उसे भी भली भाॅति पता होगा कि इतना कुछ करने के बाद अगर वह पकड़ा जाएगा तो उसके लिए अच्छा नहीं होगा, बल्कि पकड़े जाने पर जेल की सलाखों के पीछे पहुॅचा दिया जाएगा।”

“जुर्म चाहे जितनी होशियारी या सफाई से किया जाए डैड।” रितु ने कहा__”वह कहीं न कहीं किसी न किसी रूप में ऐसा सबूत या सुराग़ ज़रूर छोंड़ जाता है जिसकी बिना पर जुर्म करने वाले को कानून के हाॅथों पकड़ कर जेल की सलाखों के पीछे पहुॅचा दिया जा सके। मुझे पूरा यकींन है डैड…जिसने भी ये सब किया है वो अपने पीछे अपने ही खिलाफ सबूत या सुराग़ ज़रूर छोंड़ कर गया होगा। आप खुद सरकारी वकील रह चुके हैं इस लिए ये बात आप भी अच्छी तरह जानते हैं कि मुजरिम के खिलाफ जब कोई एक सबूत या सुराग़ कानून के हाॅथ लग जाता है तो फिर ज्यादा समय नहीं लगता उस मुजरिम को पकड़ कर जेल की सलाखों के पीछे डाल देने में।”

अजय सिंह हैरान भी था और परेशान भी। हैरान इस लिए कि उसकी बेटी के मुख से जिस तरह के डायलाॅग निकल रहे थे उसकी उसने कल्पना तक न की थी और परेशान इस लिए कि अपनी ही बेटी द्वारा इस छानबीन को करने से वह किसी भी तरीके से रोंक नहीं पा रहा था। अपनी बेटी द्वारा छानबीन करने की उसकी ज़िद को देख उसका दिल बैठा जा रहा था। हलाॅकि वह चाहता तो बेटी को ठेस लहजे में कह कर इसके लिए मना कर देता किन्तु तब हालात और बात दोनो ही बिगड़ जाते। उसकी बेटी के मन में ये बिचार ज़रूर उठता कि उसका बाप उसके द्वारा इस छानबीन को न करने पर इतना ज़ोर क्यों दे रहा है? बेटी क्योंकि अब पुलिस वाली बन चुकी थी इस लिए अब उसके सोचने का नज़रिया बदल चुका था। उसे तो अब हर आदमी में एक मुजरिम नज़र आने लगा था जिससे उसकी निगाह अब सबको शक की दृष्टि से देखने लगी थी। इस लिए अजय सिंह अब ये किसी कीमत पर भी नहीं चाह सकता था कि किसी भी वजह से उसके प्रति उसकी बेटी के सोचने का नज़रिया बदल जाए।

“चलती हूॅ डैड।” सहसा रितू ने अपनी खूबसूरत कलाई पर बॅधी एक कीमती घड़ी पर नज़रें डालते हुए कहा__”मैं आपका पुलिस स्टेशन में इंतज़ार करूॅगी।” फिर उसने अभय की तरफ भी देख कर कहा__”चाचा जी आपका भी।”

इतना कहने के बाद ही वह खूबसूरत बला पलटी और लम्बे लम्बे डग भरती हुई ड्राइंगरूम से बाहर निकल गई। किन्तु उसके जाते ही वहाॅ पर ब्लेड की धार जैसा पैना सन्नाटा भी खिंच गया। 

अजय सिंह का दिल जैसे धड़कना भूल गया था। उसे अपनी आंखों के सामने अॅधेरा सा नज़र आने लगा। जाने क्या सोचकर वह तनिक चौंका तथा साथ ही घबरा भी गया। फिर एक ठंडी साॅस खींचते हुए, तथा अपनी आॅखों को मूॅद कर सोफे की पिछली पुश्त से अपना पीठ व सिर टिका दिया। आॅख बंद करते ही उसे फैक्टरी के बेसमेंट मे बने उस कारखाने का मंज़र दिख गया जहां पर सिर्फ और सिर्फ ग़ैर कानूनी चीज़ें मौजूद थी। ये सब नज़र आते ही अजय सिंह ने पट से अपनी आंखें खोल दी तथा एक झटके से सोफे पर से उठा और अपने कमरे की तरफ भारी कदमों से बढ़ गया।

अपडेट हाज़िर है दोस्तो,,,,,,

आप सबकी प्रतिक्रिया का इंतज़ार रहेगा……

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