अपडेट………《 13 》
अब तक,,,,,,
“भइया आप मुझे सिखा दीजियेगा कि कैसे चलाते हैं??” निधि ने रास्ते में कहा।
“ठीक है गुड़िया।” विराज ने कहा__”चल अभी किताबें भी लेना है।”
“वैसे आपका काॅलेग कब से शुरू होगा?” निधि ने पूॅछा।
“एक हप्ते बाद।” विराज ने कहा।
“भइया मुझे भी आपके साथ इसी काॅलेज में पढ़ना है।” निधि ने कहा।
“अगले साल से तू भी इसी कालेज में आ जाना।” विराज ने कहा।
ऐसी ही बातें करते हुए दोनो बहन भाई बाइक से घर पहुॅच गए। विराज अपने मन पसंद कालेज में पढ़ने से बेहद खुश था। मगर वह नहीं जानता था कि अब आगे क्या होने वाला था??????
अब आगे,,,,,,,
उस वक्त रात के एक बज रहे थे। अजय सिंह अपने कमरे में अपनी बीवी प्रतिमा के साथ घमासान सेक्स करने में ब्यस्त था। दोनो ही मादरजात नंगे थे। इस वक्त अजय सिंह प्रतिमा को पिछवाड़े से ठोंके जा रहा था।
“ले मेरी जान और ले।” अजय सिंह प्रतिमा को घोड़ी बनाकर तथा एक हाॅथ से उसके सिर के बाल पकड़े उसके पिछवाड़े में दनादन पेलते हुए बोला__”अपने पिछवाड़े को और टाइट कर मेरी रंडी साली।”
“आहहहहह ऐसे ही आआआहहहह और जोर से अंदर तक घुसा न भड़वे साले।” प्रतिमा मजे में बोलती जा रही थी__”आआहहह हाॅ ऐसे ही..हुमच हुमच के बजा मेरी गाॅड को वर्ना तेरे लंड को काट कर फेंक दूॅगी आआआहहहहह।”
“साली मेरा लंड काट कर फेंक देगी तो फिर किससे अपनी चूॅत और गाॅड मरवाएगी बोल मादरचोद साली रंडी?”अजय सिंह ने प्रतिमा के गोरे गोरे किन्तु गद्देदार गाॅड पर जोर से थप्पड़ मारते हुए कहा।
“आआआहहहह उसकी चिंता तू मत कर अजय सिंह।” प्रतिमा ने कहा__”दुनियाॅ बहुत बड़ी है, जिसको भी अपनी चूत और गाॅड दिखाऊॅगी वो साला कुत्ते की तरह अपनी लार टपकाते हुए दौड़ा चला आएगा।”
“अच्छा….मतलब तू सारी दुनिया से अपनी चूत और गाॅड मरवा लेगी?” अजय सिंह ने फिर से उसके पिछवाड़े पर जोर से थप्पड़ मारते हुए कहा__”और किस किस से मरवाएगी साली?”
“आआआहहहह और जोर से पेल न भड़वे की औलाद साले दम नहीं है क्या?” प्रतिमा ने अपने सिर को उठा पीछे अजय सिंह की तरफ देख कर कहा__”मैं तो विजय से भी अपनी चूत और गाॅड मरवाना चाहती थी और इसके लिए मैंने कितनी कोशिश की, मगर वो हरामी साला हरिश्चंद्र था न। उसने हर बार मुझे इज्जत मर्यादा का पाठ पढ़ा कर दुत्कार दिया। मेरे जैसी खूबसूरत सेक्सी औरत को दुत्कार दिया था उस हिंजड़े ने। आआहहहह तभी तो मर गया हरामी।”
“अरे सही सही बोल कुतिया।” अजय सिंह ने प्रतिमा की गाॅड से अपने हथियार को निकाल कर उसे पलटा कर बिस्तर पर सीधा लेटाया और फिर उसकी दोनो टाॅगों को उठा कर प्रतिमा के सिर के दोनो तरफ झुका दिया जिससे उसका पिछवाड़ा अच्छे से उठकर पोजीशन में आ गया। अजय सिंह ने फिर से उसकी गाॅड में लंड डाल कर पेलना शुरू कर दिया।
“आआहहहह हाॅ सही से ही तो बोल रही हूॅ आआआहहह।” प्रतिमा ने मजे में आहें भरकर कहा।
“सही सही कहाॅ बोल रही है साली?” अजय सिंह अपने एक हाॅथ से प्रतिमा की एक चूॅची को जोर से मसल कर कहा__”मेरा भाई क्या ऐसे ही मर गया था??”
“आआआहहहह और जोर जोर से मसल न साले भड़वे।” प्रतिमा ने अपने एक हाॅथ को नीचे से बढ़ा कर अपनी चूॅत के दाने को मसलते हुए मजे में कहा__”आआआहहहह हाॅ ऐसे ही…हाय इस मज़े के लिए तो मैं सबकी रंडी बनने को तैयार हूॅ अजय। मेरी वो ख्वाहिश कब पूरी करोगे तुम??”
“कर दूॅगा मेरी जान।” अजय सिंह झुक कर प्रतिमा के होठों पर एक जोरदार चुंबन लिया फिर बोला__”मुझे याद है….तेरी ख्वाहिश…कि तू तीन तीन लंड से एक साथ मज़े करना चाहती है…अपने सभी छेंद पर एक साथ लंड डलवाना चाहती है। रुक जा कुछ दिन करता हूॅ कुछ। मगर पहले ये तो बता कि कैसे मेरा भाई मर गया था?”
“आआआहहहहहह मरना ही था उस कमीने को..आआहहह मेरी बात मान लेता तो आज ज़िंदा होता और ऐस भी करता। मगर सत्यवादी बने रह कर मर जाना ही नियति में लिखा लिया था उसने….आआआहहह मगर एक बात है उसका लंड तुमसे भी बड़ा था..पूरा का पूरा साॅड था वो।”
“तुमने कब देखा उसके लंड को?” अजय सिंह ने एक पल रुक कर पूछा और फिर से धक्के लगाने लगा।
“आआआहहह एक दिन दोपहर में खेत पर गई थी अपनी गरमा गरम चूत लेकर।” प्रतिमा ने कहा__”सोच लिया था कि आज इस कमीने से अपनी चूत और गाॅड दोनो मरवा कर ही जाऊॅगी। उस समय खेत मे कोई नहीं था। खेत के मकान के एक कमरे में वो विजय कमीना दोपहर को आराम फरमा रहा था। मैं चुपके से अंदर कमरे मे पहुॅची…आआआहहहह….देखा तो वो गहरी नींद में सोया हुआ नज़र आया। बदन में ऊपर एक बनियान तथा नीचे लुंगी लगा रखी थी उसने। मुझे लगा इससे बढ़िया सुनहरा मौका इससे चुदने का फिर नहीं मिलेगा। ये सोचकर मैंने जल्दी से अपने बदन से सारे कपड़े उतार कर नंगी हो गई और चुपके से विजय की तरफ बढ़ी जो पास ही चारपाई पर सोया हुआ था।”
“क्या हुआ रुक क्यों गई?” अजय सिंह प्रतिमा के एकाएक चुप हो जाने पर कहा__”आगे क्या हुआ था फिर??”
“तुम रुक गए तो मैं भी रुक गई।” प्रतिमा ने कहा__”तुम मेरी कुटाई करते रहो…तभी तो मजे में बताऊगी न।”
“ओह हाॅ।” अजय सिंह चौंका और फिर से धक्के लगाते हुए बोला__”अब बताओ।”
“आआहहहहह हाॅ ऐसे ही आआआहहह जोर जोर से चोदो मुझे।” प्रतिमा ने मजे से आंखें बंद करते हुए कहा__”विजय चारपाई पर चूॅकि गहरी नींद में सोया हुआ था इस लिए उसे ये पता नहीं चला कि उसके कमरे में कौन क्या करने आया है? मैं उसके हट्टे कट्टे शरीर को देख कर आहें भरने लगी थी। चारपाई के पास पहुॅच कर मैंने दोनों हाॅथों से विजय की लुंगी को उसके छोरों से पकड़ कर आहिस्ता से इधर और उधर किया। जिससे विजय के नीचे वाला हिस्सा नग्न हो गया। लुंगी के अंदर उसने कुछ नहीं पहन रखा था। मैंने देखा गहरी नींद में उसका घोंड़े जैसा लंड भी गहरी नींद में सोया पड़ा था। लेकिन उस हालत में भी वह लम्बा चौड़ा नज़र आ रहा था। उसका लंड काला या साॅवला बिलकुल नहीं था बल्कि गोरा था बिलकुल अंग्रेजों के लंड जैसा गोरा। कसम से अजय उसे देख कर मेरे मुॅह में पानी आ गया था। मैंने बड़ी सावधानी से उसे अपने दाहिने हाॅथ से पकड़ा। उसको इधर उधर से अच्छी तरह देखा। वो बिलकुल किसी मासूम से छोटे बच्चे जैसा सुंदर और प्यारा लगा मुझे। मैंने उसे मुट्ठी में पकड़ कर ऊपर नीचे किया तो उसका बड़ा सा सुपाड़ा जो हल्का सिंदूरी रंग का था चमकने लगा और साथ ही उसमें कुछ हलचल सी महसूस हुई मुझे। मैंने ये महसूस करते ही नज़र ऊपर की तरफ करके गहरी नींद में सोये पड़े विजय की तरफ देखा। वो पहले की तरह ही गहरी नींद में सोया हुआ लगा। मैंने चैन की साॅस ली और फिर से अपनी नज़रें उसके लंड पर केंद्रित कर दी। मेरे हाॅथ के स्पर्श से तथा लंड को मुट्ठी में लिए ऊपर नीचे करने से लंड का आकार धीरे धीरे बढ़ने लगा था। ये देख कर मुझमें अजीब सा नशा भी चढ़ता जा रहा था, मेरी साॅसें तेज़ होने लगी थी। मैंने देखा कि कुछ ही पलों में विजय का लंड किसी घोड़े के लंड जैसा बड़ा होकर हिनहिनाने लगा था। मुझे लगा कहीं ऐसा तो नहीं कि विजय जाग रहा हो और ये देखने की कोशिश कर रहा हो कि उसके साथ आगे क्या क्या होता है? मगर मुझे ये भी पता था कि अगर विजय जाग रहा होता तो इतना कुछ होने ही न पाता क्योंकि वह उच्च विचारों तथा मान मर्यादा का पालन करने वाला इंसान था। वो कभी किसी को ग़लत नज़र से नहीं देखता था, ऐसा सोचना भी वो पाप समझता था। मेरे बारे में वो जान चुका था कि मैं क्या चाहती हूॅ उससे इस लिए वो हवेली में अब कम ही रहता था। दिन भर खेत में ही मजदूरों के साथ वक्त गुज़ार देता था और देर रात हवेली में आता तथा खाना पीना खा कर अपने कमरे में गौरी के साथ सो जाता था। वह मुझसे दूर ही रहता था। इस लिए ये सोचना ही ग़लत था कि इस वक्त वह जाग रहा होगा। मैंने देखा कि उसका लंड मेरी मुट्ठी में नहीं आ रहा था तथा गरम लोहे जैसा प्रतीत हो रहा था। अब तक मेरी हालत उसे देख कर खराब हो चुकी थी। मुझे लग रहा था कि जल्दी से उछल कर इसको अपनी चूत के अंदर पूरा का पूरा घुसेड़ लूॅ। किन्तु जल्दबाजी में सारा खेल बिगड़ जाता इस लिए अपने पर नियंत्रण रखा और उसके सुंदर मगर बिकराल लंड को मुट्ठी में लिए आहिस्ता आहिस्ता सहलाती रही। उसको अपने मुह में भर कर चूसने के लिए मैं पागल हुई जा रही थी, जिसका सबूत ये था कि मैं अपने एक हाथ से कभी अपनी बड़ी बड़ी चूचियों को मसलने लगती तो कभी अपनी चूॅत को। मेरे अंदर वासना अपने चरम पर पहुॅच चुकी थी। मुझसे बरदास्त न हुआ और मैंने एक झटके से नीचे झुक कर विजय के लंड को अपने मुह में भर लिया….और यही मुझसे ग़लती हो गई। मैंने ये सब अपने आपे से बाहर हो कर किया था। विजय का लंड जितना बड़ा था उतना ही मोटा भी था। मैंने जैसे ही उसे झटके से अपने मुह में लिया तो मेरे ऊपर के दाॅत तेज़ी से लंड में गड़ते चले गए और विजय के मुख से चीख निकल गई साथ ही वह हड़बड़ा कर तेज़ी से चारपाई पर उठ कर बैठ गया। अपने लंड को मेरे मुख में देख वह भौचक्का सा रह गया किन्तु तुरंत ही वह मेरे मुह से अपना लंड निकाल कर तथा चारपाई से उतरकर दूर खड़ा हो गया। उसका चेहरा एक दम गुस्से और घ्रणा से भर गया। ये सब इतना जल्दी हुआ कि कुछ देर तो मुझे कुछ समझ ही न आया कि ये क्या और कैसे हो गया। होश तो तब आया जब विजय की गुस्से से भरी आवाज़ मेरे कानों से टकराई।
“ये क्या बेहूदगी है?” विजय लुंगी को सही करके तथा गुस्से से दहाड़ते हुए कह रहा था__”अपनी हवस में तुम इतनी अंधी हो चुकी हो कि तुम्हें ये भी ख़याल नहीं रहा कि तुम किसके साथ ये नीच काम कर रही हो? अपने ही देवर से मुह काला कर रही हो तुम। अरे देवर तो बेटे के समान होता है ये ख़याल नहीं आया तुम्हें?”
मैं चूॅकि रॅगे हाॅथों ऐसा करते हुए पकड़ी गई थी उस दिन इस लिए मेरी ज़ुबान में जैसे ताला सा लग गया था। उस दिन विजय का गुस्से से भरा वह खतरनाक रूप मैंने पहली बार देखा था। वह गुस्से में जाने क्या क्या कहे जा रहा था मगर मैं सिर झुकाए वहीं चारपाई के नीचे बैठी रही उसी तरह मादरजात नंगी हालत में। मुझे ख़याल ही नहीं रह गया था कि मैं नंगी ही बैठी हूॅ। जबकि,,,
“आज तुमने ये सब करके बहुत बड़ा पाप किया है।” विजय कहे जा रहा था__”और मुझे भी पाप का भागीदार बना दिया। क्या समझता था मैं तुम्हें और तुम क्या निकली? एक ऐसी नीच और कुलटा औरत जो अपनी हवस में अंधी होकर अपने ही देवर से मुह काला करने लगी। तुम्हारी नीयत का तो पहले से ही आभास हो गया था मुझे इसी लिए तुमसे दूर रहा। मगर ये नहीं सोचा था कि तुम अपनी नीचता और हवस में इस हद तक भी गिर जाओगी। तुममें और बाज़ार की रंडियों में कोई फर्क नहीं रह गया अब। चली जाओ यहाॅ से…और दुबारा मुझे अपनी ये गंदी शकल मत दिखाना वर्ना मैं भूल जाऊॅगा कि तुम मेरे बड़े भाई की बीवी हो। आज से मेरा और तुम्हारा कोई रिश्ता नहीं…अब जा यहाॅ से कुलटा औरत…देखो तो कैसे बेशर्मों की तरह नंगी बैठी है?”
विजय की बातों से ही मुझे ख़याल आया कि मैं तो अभी नंगी ही बैठी हुई हूॅ तब से। मैंने सीघ्रता से अपनी नग्नता को ढॅकने के लिए अपने कपड़ों की तरफ नज़रें घुमाई। पास में ही मेरे कपड़े पड़े थे। मैंने जल्दी से अपनी साड़ी ब्लाउज पेटीकोट तथा ब्रा पैन्टी को समेटा किन्तु फिर मेरे मन में जाने क्या आया कि मैं वहीं पर रुक गई।
विजय की बातों ने मेरे अंदर ज़हर सा घोल दिया था। जो हमेशा मुझे इज्ज़त और सम्मान देता था आज वही मुझे आप की जगह तुम और तुम के बाद तू कहते हुए मेरी इज्ज़त की धज्जियाॅ उड़ाए जा रहा था। मुझे बाजार की रंडी तक कह रहा था। मेरे दिल में आग सी धधकने लगी थी। मुझे ये डर नहीं था कि विजय ये सब किसी से बता देगा तो मेरा क्या होगा। बल्कि अब तो सब कुछ खुल ही गया था इस लिए मैंने भी अब पीछे हटने का ख़याल छोंड़ दिया था।
मैने उसी हालत में खिसक कर विजय के पैर पकड़ लिए और फिर बोली__”तुम्हारे लिए मैं कुछ भी बनने को तैयार हूॅ विजय। मुझे इस तरह अब मत दुत्कारो। मैं तुम्हारी शरण में हूॅ, मुझे अपना लो विजय। मुझे अपनी दासी बना लो, मैं वही करूॅगी जो तुम कहोगे। मगर इस तरह मुझे मत दुत्कारो…देख लो मैंने ये सब तुम्हारा प्रेम पाने के लिए किया है। माना कि मैंने ग़लत तरीके से तुम्हारे प्रेम को पाने की कोशिश की लेकिन मैं क्या करती विजय? मुझे और कुछ सूझ ही नहीं रहा था। पहले भी मैंने तुम्हें ये सब जताने की कोशिश की थी लेकिन तुमने समझा ही नहीं इस लिए मैंने वही किया जो मुझे समझ में आया। अब तो सब कुछ जाहिर ही हो गया है,अब तो मुझे अपना लो विजय…मुझे तुम्हारा प्यार चाहिए।”
“बंद करो अपनी ये बकवास।” विजय ने अपने पैरों को मेरे चंगुल से एक झटके में छुड़ा कर तथा दहाड़ते हुए कहा__”तुझ जैसी गिरी हुई औरत के मैं मुह नहीं लगना चाहता। मुझे हैरत है कि बड़े भइया ने तुझ जैसी नीच और हवस की अंधी औरत से शादी कैसे की? ज़रूर तूने ही मेरे भाई को अपने जाल में फसाया होगा।”
“जो मर्ज़ी कह लो विजय।” मैंने सहसा आखों में आॅसू लाते हुए कहा__”मगर मुझे अपने से दूर न करो। दिन रात तुम्हारी सेवा करूॅगी। मैं तुम्हें उस गौरी से भी ज्यादा प्यार करूॅगी विजय।”
“ख़ामोशशशश।” विजय इस तरह दहाड़ा था कि कमरे की दीवारें तक हिल गईं__”अपनी गंदी ज़ुबान से मेरी गौरी का नाम भी मत लेना वर्ना हलक से ज़ुबान खींचकर हाॅथ में दे दूॅगा। तू है क्या बदजात औरत…तेरी औकात आज पता चल गई है मुझे। तेरे जैसी रंडियाॅ कौड़ी के भाव में ऐरों गैरों को अपना जिस्म बेंचती हैं गली चौराहे में। और तू गौरी की बात करती है…अरे वो देवी है देवी…जिसकी मैं इबादत करता हूॅ। तू उसके पैरों की धूल भी नहीं है समझी?? अब जा यहाॅ से वर्ना धक्के मार कर इसी हालत में तुझे यहाॅ से बाहर फेंक दूॅगा।”
मैं समझ चुकी थी कि मेरी किसी भी बात का विजय पर अब कोई प्रभाव पड़ने वाला नहीं था। उल्टा उसकी बातों ने मुझे और मेरे अंतर्मन को बुरी तरह शोलों के हवाले कर दिया था। उसने जिस तरीके से मुझे दुत्कार कर मेरा अपमान किया था उससे मेरे अंदर भीषण आग लग चुकी थी और मैंने मन ही मन एक फैंसला कर लिया था उसके और उसके परिवार के लिए।
“ठीक है विजय सिंह।” फिर मैंने अपने कपड़े समेटते हुए ठण्डे स्वर में कहा था__”मैं तो जा रही हूं यहाॅ से मगर जिस तरह से तुमने मुझे दुत्कार कर मेरा अपमान किया है उसका परिणाम तुम्हारे लिए कतई अच्छा नहीं होगा। ईश्वर देखेगा कि एक औरत जब इस तरह अपमानित होकर रुष्ट होती है तो भविष्य में उसका क्या परिणाम निकलता है??”
इतना कह कर मैं वहाॅ से कपड़े वगैरा पहन कर चली आई थी। फिर उसके बाद क्या हुआ ये तो तुम्हें पता ही है अजय।
“हाॅ मेरी जान।” अजय सिंह जो जाने कब से रुका हुआ था अब फिर से प्रतिमा की गाॅड में लंड डाल कर धक्के लगाने लगा था, बोला__”मेरे कहने पर तुमने इस सबकी कोशिश तो बहुत की मगर वो बेवकूफ का बेवकूफ ही रहा। सोचा था कि मिल बाॅट कर सब खाएंगे पियेंगे मगर उसकी किस्मत में मरना ही लिखा था तो मर गया।”
“आआआआहहहह अब जरा मेरी चूॅत का भी कुछ ख़याल करो।” प्रतिमा ने सहसा सिसकते हुए कहा__”इसके साथ भी इंसाफ करो न आआआहहहह।”
अजय ने प्रतिमा के पिछवाड़े से लंड निकाल कर उसकी चूॅत में एक ही झटके से पेल दिया और दनादन धक्के लगाने लगा।
“आआआहहहहह अअअअजजजयययय ऐसे ही जोर से करते रहो।” प्रतिमा ने आनंद में सिसकते हुए कहा__”आआहह बहुत मज़ा आ रहा है।”
“ले मेरी रंडी और ले।” अजय के धक्कों की रफ्तार बढ़ती जा रही थी__”करुणा की चूॅत और गाॅड कब दिलाओगी यार। अब इंतज़ार नहीं होता मुझसे।”
“आआआआहहह कोशिश तो कर ही रही हूॅ मैं।” प्रतिमा ने कहा__”कल भी गई थी उसके पास। पहले तो कुछ समय के लिए मुझे लगा कि वह शीशे में उतर गई है लेकिन जल्द ही मेरी सारी कोशिशों पर पानी भी फिर गया।”
“मुझे लगता है तुम्हारी सारी कोशिशें यू ही बेकार जाती रहेंगी।” अजय ने जोर का शाॅट मारते हुए कहा__”जबकि मैं अब और इंतज़ार नहीं कर सकता। कसम से जब भी उसे देखता हूॅ तो लगता है कि अभी उसे जबरजस्ती अपने नीचे लेटा कर उसकी चूॅत और गाॅठ की ठोंकाई शुरू कर दूॅ।”
“आआआआहहहहह थोड़ा और जोर से धक्के मारो।” प्रतिमा ने कहा__”ऐसा सोचना भी मत अजय। वो ऐसी वैसी औरत नहीं है। जबरजस्ती करने से मुसीबत भी हो सकती है। अभय को ज़रा भी पता चला तो अंजाम अच्छा नहीं होगा।”
“तो फिर क्या करूॅ मैं?” अजय ने आवेश में कहने के साथ ही पूरी रफ्तार से धक्के लगाने लगा था__”तुमसे तो कुछ हो ही नहीं रहा।”
“आआआआहहहहहह मेरे पपपपास एएएक प्लललान है अजय।” प्रतिमा धक्कों की वजह से बुरी तरह पड़ी पड़ी हिल रही थी__”उससे शायद तुम्हाहाहारा काम होहोहो सकता है।”
“अरे तो जल्दी बताओ न डियर।” अजय सिंह अपने चरम पर पहुॅचते हुए बोला__”क्या प्लान है तुम्हारे पास?”
“आआआआआहहहहह अजय और जोर से करो मैं छूटने वाली हूॅ आआआहह।” प्रतिमा ने कहने के साथ ही जबरदस्त झटका खाया। उसकी कमर कमान की तरह झटके खाते हुए तनी हुई थी और कुछ ही पल में वह शान्त पड़ गई।
“आआआहहह प्रतिमा मैं भी आया।” अजय सिंह भी झड़ते हुए प्रतिमा के ऊपर पसर गया।
अभी ये दोनो अपनी अपनी साॅसें बहाल ही कर रहें थे कि बेड के एक तरफ टेबल पर रखे लैण्डलाइन फोन की घण्टी घनघना उठी। फोन की घण्टी से दोनों ही चौंके।
“इतनी रात को भला किसका फोन हो सकता है?” दोनो के मन में एक ही सवाल उभरा।
“उठ कर देखो न किसका फोन है?” अजय के नीचे दबी प्रतिमा ने कसमसाते हुए कहा।
अजय सिंह किसी तरह उठ कर केड्रिल से रिसीवर को उठाकर काॅन से लगाने के साथ ही कहा__”ह हैलो।”
“…………………………”
“क क्या???” उधर से कुछ कहा गया जिसे सुन कर अजय बुरी तरह उछल पड़ा था।
“…………………………”
“ये तुम क्या कह रहे हो?” अजय का चेहरा सफेद फक्क पड़ता चला गया__”और और कैसे हुआ ये सब?”
“…………………………”
“ओके ओके हम आ रहे हैं।” कहने के साथ ही अजय ने रिसीवर को वापस केड्रिल पर पटका और तुरंत ही उठ कर बाथरूम की तरफ बढ़ गया।
कुछ देर बाद अजय सिंह बाथरूम से हाॅथ मुॅह धोकर निकला और आनन फानन में अपने कपड़े पहने उसने।
“अरे क्या बात है अजय?” प्रतिमा बुरी तरह चौंकते हुए बेड पर उठकर बैठते हुए बोली__”इतनी रात को कहाॅ जा रहे हो तुम? और और अभी किसका फोन आया था?”
“अभी कुछ बताने का समय नहीं है।” अजय सिंह कार की चाभी अपने एक हाॅथ में थामते हुए बोला__”अभी मुझे यहाॅ से फौरन ही निकलना होगा, मेरा इंतज़ार मत करना।”
कहने के साथ ही अजय सिंह कमरे से बाहर निकल गया जबकि प्रतिमा नंगी हालत में ही भाड़ की तरह अपनी आॅखें और मुॅह फाड़े दरवाजे की तरफ देखती रह गई इस बात से बेख़बर की दो आॅखें निरंतर उसके नंगे जिस्म को देखे जा रही हैं।
दोस्तो अपडेट हाज़िर है……….
आप सबकी प्रतिक्रिया का इन्तज़ार रहेगा,,,,,,,