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मेरी माँ बहने और उनका परिवार - Family Sex Story

मेरी माँ बहने और उनका परिवार – Update 30

मेरी माँ बहने और उनका परिवार – Update 30

श्वेता हमारे साथ एक दिन और रही। उसका कॉलेज भी था वो चली गई। शुरू में तो घर एकदम काटने को दौड़ता था फिर मैंने भी खुद को व्यस्त कर लिया। मेरे भी फाइनल ईयर के एग्जाम सर पर थे। साथ ही एम् बीए में एडमिशन के प्रोसेस भी शुरू हो गए थे ।

उधर विक्की और सोनी ने भी सोनी के रेडीमेड गारमेंट की फैक्ट्री के लिए जगह देखनी शुरू कर दी थी। साथ ही विक्की ने एक माल में एक शॉप भी देख लिया था। मौसा और मैं दोनों पैसे के जुगाड़ में लगे थे। नई कंपनी के लिए पेपर वर्क भी शुरू कर दिया था।

सुधा दी भी धीरे धीरे सेटल होने लगीं थी। मैं बीच बीच में उनके यहाँ चला जाता। मेरा बच्चा मुझे देख कर खुश हो जाता था। उसने जीजा को पापा कहना शुरू कर दिया था।

एक दिन मैं ऐसे कॉलेज में बैठे बैठे सोच रहा था कि समय कैसे बीतता है पता ही नहीं चलता। दिन, महीने और साल कैसे बीत जाते हैं , कहाँ तीन चार साल पहले तक मैं एक बुद्धु लड़का था जिसे लड़कियों से दोस्ती तो छोड़िये बात करना भी नहीं आता था। और कहाँ बीते समय में मेरे पास चूतों की लाइन सी लग गई थी। मेरा एक बेटा भी है जो अब बोलने लगा है। बीते दिनों कितने मौसम आये और चले गए। इसी चक्र में अब अगले महीने होली भी आने वाली थी। पर ये होली शायद अकेले ही बीतेगी। सुधा दी का आना मुश्किल था। सरला दी के प्रेग्नेंसी का भी लास्ट टाइम चल रहा था। मैं इसी सोच में डूबा हुआ था की मेरे पास एक अनजान नंबर से फ़ोन आया।

उधर से एक लेडी की आवाज आई – और हीरो कैसा है ?

मैं – मैं ठीक हूँ आप कौन?

लेडी – भूल गया बहनचोद। उस दिन पार्क में मेरे मुम्मो पर माल निकला था।

मुझे उस लेडी की याद आ गई। बड़े बड़े मुम्मे वाली उसी औरत का फ़ोन था जो अपने भाई के साथ पार्क में आई थी।

मैं – ओह्ह , आप। बड़े दिनों बाद याद किया आप तो अगले हफ्ते ही बुलाने वाली थीं। और ये कौन सा नंबर है ?

लेडी – मत पूछो जानेमन। मैंने उसबार बहुत बहाने बनाये की फंक्शन में ना जाऊं पर कोई माना नहीं सो जाना पड़ा। नंबर बदल गया है।

मैं – हम्म्म। और बताइये कैसी हैं ? अभी कैसे याद किया ?

लेडी – आजकल अकेली हूँ।

मैं – आपके ससुराल वाले ?

लेडी – सास ससुर गाँव गए हैं और आज ही मेरे हस्बैंड एक हफ्ते के लिए ऑफिस के टूर पर गए हैं।

मैं – तो अकेलेपन में निचे खुजली हो रही है।

लेडी – खुजली तो भोसड़ीवाले मेरा मरद करके गया है। दो हफ्ते के लिए जा रहा था तो प्यार में नुनी लेकर घुस गया पर नामर्द एक ही मिनट में फारिग हो गया।

मैं हँसते हुए – तो छोटा कहा है ?

लेडी – वो तो साला इनके जाते ही मेरे पेटीकोट में घुस गया। पर जो काम लौड़ा कर सकता है वो जीभ और ऊँगली कितना करेगी।

मैं – हम्म , कल दोपहर आता हूँ फिर मैं।

लेडी – आज ही आजा।

मैं – आज ?

लेडी – हाँ। आज ख़ास वजह है।

मैं – ऐसा ख़ास क्या है ?

लेडी – आज ही मेरा मर्द चोद कर गया है। अभी मेरा सबसे फर्टाइल पीरियड चल रहा है। तू चोद कर माँ बना दे। मेरे मर्द के बस का नहीं है। माँ बन गई तो खुश हो जायेगा।

मैं – पर आपको देख कर लगा नहीं की आपके बच्चे नहीं होंगे।

लेडी थोड़ी उदास हो गई। उसने दुखी लहजे में कहा – यार, दो बार मिसकैरेज हो चूका है। ससुराल वाले सब समझते हैं मुझमे कमी है पर मेरी डॉक्टर का कहना है पति के स्पर्म में दम नहीं है।

मैं – पर ये बड़ा निर्णय है। आप मुझसे मिली ही एक बार हैं वो भी कुछ देर के लिए।

लेडी – मैंने ये निर्णय जल्दीबाजी में नहीं लिया है। पर हर बात फ़ोन पर नहीं कर सकती। रेडी हो तो आ जाओ।

मैं – मुझे माँ से बात करनी पड़ेगी।

लेडी – मादरचोद है क्या ? गर्लफ्रेंड से पूछने के बजाय माँ से पूछेगा ?

मैं हँसते हुए – सही समझा है। मैं बात करके बताता हूँ।

लेडी – मैं तेरा इंतजार करुँगी। और अपना एड्रेस और लोकेशन भेज रही हूँ ।

मैं – कोशिश करता हूँ।

मैंने माँ को फ़ोन करके सारी बात बताई। पूरी कहानी सुनने के बाद माँ ने कहा – जा करदे मदद। हुमच के पेलना और हाँ मेरे दूध की लाज रखना और उसके गर्भ में बच्चा देकर ही आना।

मैं कुछ देर बाद उस महिला के दिए पते पर पहुँच गया। वहां मेरे पहुँचते ही दरवाजा उसके भाई ने खोला।

मुझे देखते ही वो गले लगकर बोला – धन्यवाद भाई। अब दीदी को असली मजा आएगा।

मैंने मन ही मन सोचा की कैसा चूतिया मर्द है , अपनी बहन को किसी और मर्द से चुदवायेगा और उस बात पर खुश भी हो रहा है। खैर मुझे क्या।

अंदर पहुंचा तो वो लेडी एक सुन्दर सी पिंक साडी पहने हुए मेरा इंतजार कर रही थी। उसने मेरे लिए कोल्ड ड्रिंक और कुछ स्नैक्स पहले से तैयार रखा हुआ था। पिंक साडी में वो बहुत ही सुन्दर लग रही थी। उसने साडी ऐसी पहनी हुई थी जिससे उसके स्तन पूरी तरह से ढके हुए थे। मैंने कोल्ड ड्रिंक पीते हुए कहा – क्या हो गया ? मुझे इतनी जल्दी में क्यों बुलाया ? और ये आप फ़ोन पर क्या क्या बता रही थी ?

लेडी – तुम्हारे बारे में बहुत दिनों से सोच रही थी मैं। उस हफ्ते मुझे भी जाना पड़ गया। पर अभी सही है। एक हफ्ते के लिए घर खाली है।

मैं – मैं यहाँ शिफ्ट होने नहीं आया हूँ। आप अपनी सुनाओ। क्या कह रही थी आप फ़ोन पर सब नहीं बता सकती। अब सामने हूँ बता दो।

लेडी – लगता है किस्से सुनने में बहुत मजा आता है।

मैं – हाँ। आता तो है।

लेडी तो फिर सुनो मेरी कहानी

———————————————अर्चना की कहानी उसकी जुबानी [फ्लैशबैक] ——————————————————–

मेरा नाम अर्चना है। मेरे भाई जतिन से तुम मिल ही चुके हो। मेरे पापा सरकारी नौकरी में थे। अच्छी कमाई थी। उस पर से हमारी पहले से ही एक पुश्तैनी जमीन और मकान बना हुआ था। कहते हैं ना जब गलत तरीके से पैसा आता है तो बर्बादी भी लाता है। मैं जब पैदा हुई तो पापा नाखुश हो गए। उन्हें लड़का चाहिए था पर मैं हुई लड़की। उसके बाद से उन्होंने शराब पीना शुरू कर दिया था। साथ ही कभी कभी जुआ भी खेल लेते थे। शराब पीकर वो माँ को बहुत पीटते थे। माँ भी बीमार रहने लगी थी। जब मैं लगभग चार साल की हुई तो मेरा भाई पैदा हुआ। लगा की लड़का पाकर शायद वो खुश हो जाएँ और बुरी आदतें ख़त्म हो जाएँ पर लत कहाँ छुटती है। हुआ ये की जब मैं लगभग पंद्रह साल की हुई माँ अचानक से बीमार पड़ गई। पापा ने शुरू में तो इलाज करवाया फिर लापरवाही करने लगे। पापा उसका दोष भी मुझे ही देने लगे थे। अब वो माँ के साथ साथ मुझे भी पीटने लगे थे। माँ की बिमारी बढ़ने लगी और वो साल भर के अंदर ही ख़त्म हो गईं।

उनके जाने के वक़्त मैं जवाई की दहलीज पर कदम रख चुकी थी। मेरी उम्र सत्रह से ऊपर थी और जतिन लगभग बारह का हो चूका था। पापा ने मेरी पढाई छुड़वा दी। माँ के जाने के बाद से तो शराब पीना और भी बढ़ गया। और उतना ही नहीं अब वो रंडीबाजी भी करने लगे थे। अब या तो अक्सर देर रात को आते। कई रात तो घर ही नहीं आते थे आते तो नशे में धुत्त। खाना कभी खाते कभी नहीं। मुझे देखते ही ना जाने क्यों किसने शुरू कर देते , भद्दी भद्दी गालिया और अक्सर मारना शुरू कर देते थे। जतिन तो डर के मारे उनके सामने जाता ही नहीं था।

उन्होंने अभी तक मेरे शरीर के साथ गलत नहीं किया था।

अब या तो माहौल का असर था या फिर वातावरण या फिर नैचुरली मेरे हार्मोन ही ऐसे थे की मेरा शरीर तेजी से भरने लगा। अठारह की होते होते मेरा पूरा बदन भर चूका था। मेरे मुम्मे बड़े हो गए थे , जंघाएँ मोटी हो गईं थी और गांड भी चौड़ी हो गई थी। पिता के डर से जतिन अब भी मेरे पास ही सोता था। हम दोनों भाई बहन एक ही बिस्तर पर सोते थे। होश में रहने पर पापा घर के खर्चे के लिए पैसे दे दिया करते थे। अक्सर ज्यादा ही देते थे। उस समय हम दोनों से वो कम ही बात करते थे। शायद उन्हें भी गिल्ट था। पर ऐसा कम ही होता था। पर हमें पैसे की दिक्कत नहीं आती थी।

एक बार देर रात जब वो नशे में घर लौटे तो काफी लड़खड़ा रहे थे। वैसे जतिन ही उनको सहारा देकर उनके कमरे में ले जाता पर उस दिन वो थका हुआ था तो सो गया था। मैंने दरवाजा खोला तो वो लड़खड़ा कर मेरे ऊपर ही गिर पड़े। मैंने किसी तरह दरवाजा बंद किया और उनको उनके कमरे की तरफ ले चली। उनका हाथ मैंने अपने कंधे पर रखा हुआ था जो की मेरे स्तनों से टकरा रहा था। मेरा दूसरा स्तन भी उनसे काफी सटा हुआ था। पापा नशे में थे पर उनको मेरे शरीर का अंदाजा हुआ तो थोड़ा बहकने लगे थे। जब मैं उनको बिस्तर पर लेटाने लगी तो वो लेटने के बजाय बैठ गए और उन्होंने मेरा हाथ पकड़ लिया और मुझे अपने तरफ खींच कर अपने गोद में बिठा लिया। मुझे नहीं मालूम उनके दिमाग में क्या चल रहा था और वो मुझे क्या समझ रहे थे। पर मैं थोड़ा सहम गई।

पापा – बैठो। थोड़ा मेरे पास बैठो।

मैं – पापा , क्या कर रहे हैं , मुझे जाने दीजिये। मैं अर्चना हूँ , आपकी बेटी।

पापा – चुप , बैठ मेरे पास। हल्ला मत मचा वार्ना मार कर तेरी हालत ख़राब कर दूंगा। बेटी है तो मेरी। मेरी ही संपत्ति है। ये सब रूपया पैसा तुझे ही तो देता हूँ। बैठ मेरे पास।

मैं डर के मारे कुछ नहीं बोली। पापा ने मेरे बदन से खेलना शुरू कर दिया। मैंने सलवार कुरता पहना हुआ था। वो मेरे कुर्ते के ऊपर से ही मेरे मुम्मे दबाने लगे थे। उन्होंने मेरे दोनों मुम्मे जोर जोर से दबाने शुरू कर दिए। मेरे स्तनों पर पहली बार किसी मर्द का हाथ पड़ा था। मैं तकलीफ में थी। मैंने कुछ देर तो बर्दास्त किया फिर उनको धक्का देकर भाग आई। कमरे में आते ही मैंने पापना दरवाजा बंद कर लिया और फूट फूट कर रोने लगी। मेरी आवाज सुनकर जतिन भी जग गया था।

उसने पुछा – क्या हुआ दीदी ?

मैं क्या जवाब देती की मेरा बाप ही मुझसे जबरदस्ती कर रहा है।

मैंने कुछ यही कहा और उसके बगल में लेट गई। उसने मुझे जकड लिया और मैंने भी उसे। हम दोनों भाई बहन एक दुसरे के बाहों में रोते रोते सो गए। अगले दिन पापा ने ऐसे बिहैव किया जैसे कुछ हुआ ही न हो। मैंने भी शांति रखने में ही भलाई समझी।

उस रात पापा फिर नशे में देर से आये। पर लगता है नशा कम किया था। जतिन उन्हें सहारा देकर कमरे में ले जाने लगा तो उन्होंने उसे मना कर दिया और मुझे अपने कमरे में बुला लिया। मैं डर गई थी। पर मज़बूरी थी। मैं कमरे में घुसी तो उन्होंने कहा – दरवाजा बंद कर दे।

मैंने डरते डरते दरवाजा बंद कर दिया। उन्होंने मुझे अपने पास बुलाया और फिर से पिछले रात की तरह गोद में बिठा लिया और मेरे बदन से खेलने लगे। इसका मरतलब उन्हें पिछले रात का सब याद था।

उन्होंने मेरे स्तन दबाते हुए कहा – किसी यार से दबवाती है क्या ? कितने बड़े हो रखे हैं ? इतने तो तेरी माँ के भी नहीं थे।

मेरे आँखों से आंसू गिरने लगे। उन्होंने मेरे बदन को दबाना जारी रखा।

पापा – बता न , किसने दबा कर इतने बड़े कर दिए ? कहीं साली अपने भाई से ही तो नहीं सेट हो गई ?

मैं सुबकते हुए – पापा , कैसी बात करते हो। प्लीज छोड़ दो। मैं आपकी बेटी हूँ।

पापा – मेरी है न। मेरी प्रॉपर्टी है तू। मुझे पता ही नहीं था इतना बढ़िया प्रॉपर्टी बनाई है मैंने।

उनके दबाने और सहलाने से मैं भी गरम होने लगी थी। उन्होंने मेरे कपडे उतारने की कोशिश की तो मैंने कल की तरह उन्हें धक्का दिया और रोते हुए कमरे से भाग गई। वहां जाकर मैंने जतिन से गले लग कर रोना शुरू कर दिया। उस रात भी हम दोनों भाई बहन वैसे ही लिपट कर रोते हुए सो गए।

अब पापा का ये अक्सर का हो गया। जिस दिन वो रंडीबाजी करके आते , जाकर सीधे सो जाते। वरना मेरे बदन से खेलते। शुरू में मैं रोती थी पर बाद में मैंने ये स्वीकार कर लिया। मुझे लगता था इसी बहाने पापा बाहर रंडीबाजी बंद कर देंगे। उन्होंने रंडीबाजी कम तो की पर बंद नहीं की। पर उनकी इन हरकतों से मेरे शरीर में हलचल होने लगी थी। अब मैं उनके पास से आकर अपने कमरे के बाथरूम में चली जाती थी और वहां खुद को सैटिस्फाई कर लेती थी। जतिन को भी धीरे धीरे सब समझ आने लगा था। अब मैं रोती नहीं थी।

एक दिन पापा ने मेरे कपडे उतारने की फिर से कोशिश की तो मैंने कहा – जो भी करना है ऊपर से करिय। मैं आपकी बेटी हूँ, इस बात का तो ख्याल रखिये। अब पापा मुझे गोद में बिठा कर मेरे लंड को मेरे गांड के फांको के बीच सेट कर देते और मेरे कमर को आगे पीछे करने लगते थे। शुरू के एक दो दिन तो मुझे समझ नहीं आया , फिर मैं समझ गई। अब वो मेरे ऊपर ऐसे ही अपना माल निकाल देते थे।

पापा ने एक दो बार मुझे चूमने की कोशिश भी की, वो भी मेरे मुँह पर तो मैंने मना कर दिया। मैंने कहा – बदबू आती है। मुझे ये पसंद नहीं।

उसके बाद एक रात पापा पुरे होश में आये। उन्होंने शराब नहीं पी थी। उस रात हम दोनों भाई बहन बहुत आश्चर्य में थे। उस रात उन्होंने घर पर ही खाना खाया। खाना खाने के बाद उन्होंने हम दोनों से कुछ देर बात की फिर जतिन से कहा – जा बेटा तू पढाई कर।

जतिन समझ गया। वो अपने कमरे में चला गया। पापा ने मुझसे कहा – कमरे में आ जाना।

मैं कुछ देर बाद उनके कमरे में पहुंची। उन्होंने मुझे अपने पास बुलाया और एक पैकेट देकर कहा – ये तुम्हारे लिए है।

अंदर एक सुन्दर सी साडी थी। मैं खुश हो गई।

पापा ने कहा – पहन कर दिखाओ।

मैंने पहले तो संकोच में थी। फिर उठ कर बाथरूम की तरफ जाने लगी।

पापा ने कहा – यहीं बदल लो।

मैंने कहा – नहीं प्लीज। जाने दीजिये।

पापा होश में थे। कहा – ठीक है।

मैंने अंदर पहुँच कर देखा तो पूरा सेट था। ब्लॉउज भी पूरा मेरे नाप का था। मैं सोच में थी की मेरे नाप का अंदाजा उनको कैसे हुआ। सब कुछ लगभग परफेक्ट। फिर मुझे खुद पर हंसी आ गई। इतने दिनों से तो पापा मेरे नाप ले ही रहे थे। ऊपर से ही सही पूरा बदन नाप तो लिया ही था। इधर कुछ महीनो से पीते भी कम ही थे तो अंदाजा याद होगा।

मैंने अपने कपडे उतारे और साडी पहन ली और शर्माते हुए अंदर पहुंची।

पापा मुझे देखते ही खड़े हो गए। उन्होंने कहा – कितनी सुन्दर लग रही है तू। सब फिट आ गया ना ?

मैंने हाँ में गर्दन हिलाई। उन्होंने कहा – तनु वैसे तो रंडी है पर कमाल का सिलाई करती है। तेरु ब्लॉउज उसने ही सिला है।

मुझे अब समझ आया। एक औरत से ही पापा ये सब सिल्वा सकते थे वो भी अंदाजा बता कर। मुझे अजीब सी सिहरन हुई। क्या उन्होंने उस तनु नाम की रंडी से मेरे बारे में भी बता दिया है ?

पापा – क्या सोच रही है ? उसकी माँ और वो दोनों खिलाड़ी है। एक बीवी बनकर चुदती है और ये मेरी बेटी बनकर।

मुझे गुस्सा आ गया। मैंने कहा – जब ये सब कर ही लेते हैं तो मेरे लिए ये सब क्यों ? और जाइये उन दोनों माँ बेटी को ही चोदिये। रंडीबाजी ही सही है आपके लिए।

मैं जाने लगी तो उन्होंने मेरा हाथ पकड़ कर मुझे अपने तरफ खींच लिया और मेरे होठों पर अपने होठ रख दिए। उनके मुँह से कोई बदबू नहीं थी। आज उनका चूमना मुझे अच्छा लगा। कुछ देर की आनाकानी के बाद मैं भी मान गई। हम दोनों एक दुसरे के बाहों में समां गए।

पापा – वो दोनों रंडी ही है। तू मेरी बेटी है। तुझ पर हक़ है। बेटी का मजा अलग ही है।

कुछ देर चूमने के बाद पापा मेरी साडी उतरने लगे।

मैं – जब उतारना ही था तो पहनाया क्यों ?

पापा – मैं देखना चाहता था की मेरी बेटी एक औरत की तरह कैसी दिखती है। वरना मेरा बस चले तो तुझे नंगे ही घुमाऊं।

मैं – अच्छा , और कैसी लगी आपकी बेटी एक औरत की तरह।

पापा – एकदम खूबसूरत। अपनी माँ से भी बढ़कर।

माँ की याद आते ही मेरे आँखों में आंसू आ गए। मैं – इसी लिए अब तक माँ को और हमें तड़पाया।

पापा – मुझे माफ़ कर दो। अब नहीं होगा।

मैं – पता नहीं। आप आज ऐसे हो। फिर कल क्या करो ?

पापा – ये तो सही कह रही हो। लत ही ऐसी लगी है। मजबूर हो गया हूँ। पर कोशिश करूँगा बदलने की।

पापा ने फिर मुझे बिस्तर पर लिटा दिया और मेरे ब्लॉउज को खोल कर मेरे स्तनों से खेलने लगे। पहली बार मैंने उन्हें इस हद तक इजाजत दी थी। पापा मेरे स्तनों से खेलते रहे। उन्होंने मेरे निप्पल को खूब खींचा और फिर आखिर में चूसने लगे।

पापा – तेर माँ के इतने बड़े नहीं थे। तेरे मस्त बड़े हैं।

मैं – उफ्फ्फ पापा क्या करते हैं। आराम से पीजिये। महीनो से आप दबा रहे हैं। पहले से बड़े थे और आपने खींच खींच कर और बड़ा कर दिया है। आह उफ़।

पापा ने मेरे पेटीकोट को उतार कर मुझे चोदना चाहा पर मैंने मना कर दिया। मैंने कहा – पापा आप उन दोनों को पेल लीजियेगा। मेरे साथ बस इतना ही

पापा – पर।

मैं पेट के बल लेट गई और कहा – आप मेरे ऊपर लेट जाइए और फारिग कर लीजिये खुद को।

पापा मेरे ऊपर लेट गए। उन्होंने मेरे चौड़े गांड के फांको में अपना लंड फंसाया और मेरे ऊपर खुद को ऐसे आगे पीछे करने लगे जाइए मुझे चोद रहे हो।

पापा – उफ़ क्या मस्त गांड है तेरी। चूत न सही गांड ही दे दे।

मैं – इस्सस पापा आराम से। अभी जो मिल रहा है वही सही। जिस दिन आप अपने सारी बुरी आदत छोड़ देंगे तब सोचूंगी।

पापा – उफ़ , आह आह। अब तो करना पड़ेगा।

पापा कुछ ही देर में मेरे पेटीकोट पर अपना माल उड़ेल कर खाली हो गए। उसके बाद मेरे बगल में पलट कर लेट गए। मैं कुछ देर बाद उठी और बाथरूम में जाकर अपने कपडे बदल लिए। मैं कमरे से जाने लगी तो पापा बोले – गलास में थोड़ी बर्फ दे जा।

मैंने गुस्से में कहा – आप अब यहाँ लेंगे ?

पापा – मुझे अब पीना होगा वरना नींद नहीं आएगी। चूत दे तो अभी छोड़ दू

मैंने गुस्से में कहा – आप दारू ही पीलो मुझे भूल जाओ।

मैं जैसे ही कमरे से बाहर निकली देखा तो जतिन वही बाहर नंगा खड़ा था। उसका पेंट निकला हुआ था और माल निचे निकला हुआ था।

मैं गुस्से में चीखने वाली ही थी की उसने अपने कान पकड़ लिए और कहा – पापा मारेंगे।

उसकी हालत देख मुझे हंसी आ गई। मैंने कहा – पेंट पहन और भाग वरना मैं मरूंगी।

मैं किचन से एक जग में ठंढा पानी और एक बाउल में बर्फ लेकर पापा के कमरे में गई। उन्होंने बोतल खोल राखी थी। मैं उनके कमरे से निकल अपने कमरे में आ गई।

जतिन बिस्तर पर लेता हुआ था। मैंने कहा – तू कब से वहां ताका झांकी कर रहा था ?

जतिन – शुरू से ही ?

मैंने सर पकड़ लिया – ये कबसे कर रहा है ?

जतिन – जिस दिन पापा ने तुमसे पहली बार जबरदस्ती करि थी।

मैं – तबसे ?

जतिन – हाँ। पहले तो समझ नहीं आया था। पर अब मैं भी बड़ा हो गया हूँ। सब समझ आने लगा है।

मैं हँसते हुए उसके लंड पर हाथ रखते हुए बोली – साले , तेरी नुन्नी तो इतनी सी है और कहता है बड़ा हो गया है।

जतिन ने रोना सा मुँह बनाते हुए कहा – दीदी , आप मेरा मजाक मत उड़ाओ।

मैंने उसे सीने से लगा लिया और कहा – मेरे छोटा भाई , गुस्सा हो गया। उले ले।

वो भी मेरे सीने से चिपकता हुआ बोला – आपको अच्छा लगने लगा है न ?

मैं – बीस से ऊपर की हो गईं हूँ। साथ की कितनी तो माँ बन गईं। और पापा भी बदलने लगे हैं। अगर ऐसा करके वो बदल जाते है तो सही है न।

जतिन – हम्म्म।

मैं – पर ये सब किसी को कहना मत मेरे भाई।

जतिन – ठीक है पर इसमें मेरा क्या फायदा ?

मैंने अपने मुम्मे उसके मुँह पर लगा दिया और कहा – तेरा ख्याल तो मैंने बचपन से रखा है। माँ जैसे। तू मेरे बेटे जैसा है।

जतिन ने मेरे कुर्ते को ऊपर किया और मेरे स्तनों पर मुँह लगाता हुआ बोला – माँ।

मैंने उसे सीने से लगा लिया और कहा – बेटा।।

——————————————————–वर्तमान —————————————————–

अर्चना की गरमा गरम कहानी सुनकर मेरा लंड खड़ा हो चूका था। सोफे पर मैं उसके एक तरफ था तो दूसरी तरफ जतिन।

मैंने कहा – आपकी कहानी सुनकर तो मैं गरम हो चूका हूँ। अब ठंढा करो।

जतिन – मैं भी।

अर्चना सोफे से उठ कर निचे बैठ गई। उसने मेरा पेंट उतार दिया। जतिन ने अपना पैंट खुद बा खुद उतार दिया। अर्चना ने मेरा लौड़ा देखते ही कहा – कितना बड़ा है रे। तेरी माँ से मिलना पड़ेगा। क्या दूध पिलाया होगा जो इतना बड़ा लौड़े है तेरा ।

मैं – मिल लेना पहले मेरे लौड़े को तो शांत करो।

अर्चना ने मेरे लंड को एप हाथ में लिया और मुठ मारने लगी।

जतिन – मेरे भी करो न दीदी।

अर्चना – हाथ लगाते ही झाड़ जायेगा। जरा रुक पहले इसके हथियार से खेल लू। पर तू खुद पर काबू रख।

वो बड़ी सफाई से मेरे लंड से खेलने लगी। कभी हाथों से कभी मुँह में लेकर।

जतिन फिर से बोला – प्लीज

उसने उसका लंड भी दुसरे हाथ में लिया अब वो हम दोनों का मुठ मार रही थी। मेरा तो इतनी जल्दी होने वाला नहीं था। जतिन कुछ देर में खलास हो गया। उसके बाद अर्चना का पूरा फोकस मुझे पर था।

मैंने कहा – आगे की कहानी सुनाओ डार्लिंग। मेरे में बहुत स्टेमिना है।

अर्चना – पता है , तू शेर है इतनी जल्दी नहीं झड़ेगा । सुन आगे की कहानी भी सुन।

———————————————————अर्चना की कहानी उसकी जुबानी ———————————————————-

उस दिन के बाद से ये दोनों बाप बेटे मेरे शरीर से खेलने लगे। पापा को ये पता नहीं था की जतिन भी मेरे शरीर के मजे ले रहा है। पर ये सब ऊपर ऊपर से ही होता था। न जतिन , न ही पापा किसी को भी मैंने अपनी चूत में ऊँगली तक नहीं करने दी थी। पापा को तो दर्शन भी नहीं हुए थे पर ऊपर ही ऊपर उन्होंने बहुत सहलाया था। पापा को चूत न देने की वजह थी मेरे अंदर का डर। उन्होंने बहुत रंडीबाजी की थी। मुझे डर था कोई बिमारी ना लेकर बैठे हों। मुझमे ये डर अंदर तक समाया था। पापा ने भी सब्र रखा हुआ था। पर आदत से मजबूर थी। रंडीबाजी और दारूबाजी बंद नहीं हुई थी।

पापा को उनके कहने पर मैं मुठिया जरूर देती थी। उन्होंने कई बार लंड को मुँह में लेने को कहा पर डर से मैंने लिया नहीं। मैं हर बार यही कहती थी उसके लिए वो दोनों रंडी हैं ना। वो ये सु नाराज भी होते, एक आध बार मुझे मार भी देते पर जोर जबरदस्ती नहीं करते। एक लेवल की अंडरस्टैंडिंग बन गई थी। पर उन्हें मेरे गांड पर चढ़ कर माल निकलना पसंद आने लगा था। कभी लेटे लेटे तो कभी कुतिया बना कर वि मेरे गांड के फैंको के बीच अपना माल निकाल लेटे थी।

पर मेरे इस प्यारे छोटे भाई के साथ सम्बन्ध आगे बढ़ चुके थी। हम दोनों एक दुसरे के सामने नंगे रह लेते। मैं इसकी लुल्ली चूसने लगी थी और ये मेरा चूत चाटने लगा था। कभी कभी इससे चूत में ऊँगली करवा लेती थी। पापा ने कई बार मुझे चोदने की कोशिश की और मेरा मन करता भी था पर हर बार मैं मना कर देती। इस चक्कर में वो मुझसे मार पीट भी करते और जब ऐसा होता उनका दारू पीना बढ़ जाता।

आखिर में हुआ वही तो जिसका डर था पापा एक दिन शराब पीकर आ रहे थे और उनका एक्सीडेंट हो गया। एक्सीडेंट इतना भयंकर था की उनकी ऑन स्पॉट मौत हो गई।

मेरे ससुर पापा के ऑफिस में ही काम करते थे। उन लोगों से थोड़ी पहचान पहले भी थी। उन्हें हमारे घर के अंदुरुनी मसलों का पता तो नहीं था पर पापा की बुरी आदतों का पता था। उन्हें मुझ पर थोड़ा तरस आया और अपने लड़के से मेरी शादी करने का प्रस्ताव रख दिया। उन्होंने वादा किया जैसे सी जतिन का कॉलेज पूरा होगा पापा की जगह नौकरी लगवा देंगे। मुझे ये लोग अच्छे लगे तो मैं भी हाँ कर दी।

———————————————————————वर्तमान —————————————————————-

पर मुझे पता नहीं था की मेरे पति के लौड़े में दम नहीं है। साला जोर लगा कर चोदता तो है पर रिजल्ट कुछ नहीं है। पर ये लोग अपनी कमी नहीं मानते हैं। मैंने भी कंप्लेंट नहीं किया क्योंकि मुझे लगा जतिन ही कुछ कर लेगा पर इस साले में भी कोई दम नहीं है। मुझे बच्चा चाहिए , अब ये दोनों नहीं तो कोई और सही। तू लंबा चौड़ा है , तेरे में दम है। मुझे यकीन है तू मेरे अंदर जो बीज डालेगा उसका फल तगड़ा आएगा।

ये सब सुनाते सुनाते अर्चना मेरे बगल में वापस बैठ गई थी। मेरा लंड अब भी फुफकारे मार रहा था और अर्चना उसके साथ खेल रही थी।

मैं – कब तक इससे खेलती रहोगी। इसे अपने घर का दरवाजा भी दिखाओ।

अर्चना – यही तो मेरे पापा भी चाहते थे। पर कर नहीं पाई। पापा को फिर ऐसे ही मुठियाना पसंद था।

मैं उसका खेल अब धीरे धीरे समझने लगा था। उसके अंदर की वासना अपने पिता के लिए थी जो कभी पूरी नहीं हो पाई थी। शायद वो अब मुझे पापा बना कर करना चाहती थी।

मैं – ऐसा करना पापा को पसंद था ये मेरी बिटिया को भी।

मेरे मुँह से बिटिया शब्द सुनते ही वो मुझसे लिपट पड़ी – मैं आपसे बहुत प्यार करती हूँ पापा। ये सब मुझे बहुत ही पसंद है।

मैं – मुझे भी पसंद है। पर मुझे और भी कुछ पसंद है।

तभी बगल में बैठा अर्चना का भाई बोला – पसंद तो मुझे भी है पापा।

उसके मुँह से पापा शब्द सुन मैं बोल पड़ा – बहनचोद , तू अब भी तक यही बैठा है। तुझे पढाई नहीं करनी है। भाग यहाँ से।

अर्चना – पापा आप इसे मत डांटा करो।

मैं – तू भी पिटेगी मेरे से। जतिन तू अभी तक यहीं है भाग यहाँ से।

जतिन ने मेरा चेहरा देखा और धीरे से चला गया। वो जाकर कोने में एक कुर्सी लेकर बैठ गया। वो देखना चाह रहा था कि मैं क्या करता हूँ।

मैंने अर्चना को कहा – इतनी दूर क्यों है ? जरा गोद में आकर बैठ।

अर्चना उठकर मेरे गोद में मेरी तरफ पीठ करके बैठ गई

अर्चना – पापा आप इसे मत डांटा करो।

मैं – तू भी पिटेगी मेरे से। जतिन तू अभी तक यहीं है भाग यहाँ से।

अर्चना उठकर मेरे गोद में मेरी तरफ पीठ करके बैठ गई। मैंने उसके कंधे पर किस किया , उसके पूरा बदन सिहर उठा। अर्चना एकदम गाडरी हुई औरत थी जिसका पूरा बदन भरा हुआ था। मैंने फिर उसका आँचल उसके कंधे से हटा दिया और अपने हाथ उसके बड़े मुम्मो पर रख दिए। उसके शता बहुत ही भारी थे। मेरे हाथों के स्पर्श से उसके निप्पल भी एकदम टाइट और और इतने इरेक्ट हो चुके थे की ब्रा होने के वावजूद एकदम नुकीले हो चुके थे। मैंने उसके मुम्मो को दबाते हुए उसके निप्पल को छेड़ना भी शुरू कर दिया।

अर्चना – उफ्फ्फ पापा।

मैं – लगता है इस जतिन ने खून चूसा हैं इन्हे।

अर्चना – हां पापा , उसे तो इन्हे चूसे बिना नींद नहीं आती है। खींच खींच कर खजूर जैसे लम्बा कर दिया है।

मैं – अब तो देखना पड़ेगा। तुम्हारे खजूर चखने का मन तो मेरा भी कर रहा है।

अर्चना – तो चख लीजिये।

उसके ब्लॉउज में पीछे की तरफ हुक था। मैंने एक हुक खोला , फिर ना जाने मेरे मन में क्या आया कि मैंने उसके ब्लॉउज को दोनों हाथो से पकड़ कर फाड़ना शुरू कर दिया।

अर्चना – अरे पापा , क्या कर रहे हैं। कपडे क्यों ख़राब कर रहे हैं।

मैं – चुप , मेरी मर्जी है। दोबारा दिला दूंगा।

बलौद को फाड़ कर मैंने अलग तो किया ही साथ ही साडी भी पूरी तरह से अलग कर दी। फिर उसे अपने तरफ घुमा लिया। इस चक्कर में उसका पेटीकोट कमर तक ऊपर आ गया। मैं अपने दोनों हाथ पीछे ले गया और हाथो से उसके भारी चौड़े चूतड़ों को सहलाने लगा। मैं उसे सामने से चूम भी रहा था। ऐसा लग रहा था की अर्चना को जबरदस्ती पसंद थी। उसे अपने पापा से प्यार तो था वो भी उसके वॉयलेंट रूप से। मैंने होठ चूमते हुए उसके पिछवाड़े को अपने हाथो से भींचना शुरू कर दिया। कुछ देर बाद मैंने हाथ ऊपर करके उसके ब्रा का हुक खोल दिया। उसके दोनों स्तन मेरे सामने थे। गजब का माल अपने सीने से लगाए घूम रही थी वो। उसके स्तन सुधा दी और माँ के बराबर थे। शिखर पर गोल गहरा भूरे रंग का गोला और उस पर से तने हुए बड़े खजूर जैसे निप्पल। जैसे आमंत्रण दे रहे हों मुझे चूस लो। उसके मुम्मे बड़े थे पर एकदम टाइट थे। इतना चुसवाने के बाद भी उसने मेंटेन किया हुआ था। ये कमाल उसके ब्रा की वजह से था। उसने बढ़िया क्वालिटी का ब्रा पहना हुआ था जो उसके भारी स्तनों को अच्छे से संभाले हुए थे।

मैंने उसके स्तनों से खेलना शुरू कर दिया। मुझे उसके निप्पल उमेठने में मजा आ रहा था। और मेरी इस हरकत पर वो सिसकारियां ले रही थी। हम दोनों एक दुसरे से लिपटे हुए थे। मेरा लंड उसके चूत के फैंको के बीच फंसा हुआ था। तभी उसने अपनी जीभ निकाली और मेरे चेहरे को चाटने लगी। उसका ये व्यवहार अप्रत्यशित था। मैंने सरला दी और दीप्ति मैम को ऐसे करते हुए देखा था पर अर्चना का तरीका एकदम अलग था। उसने मेरे पुरे चेहरे को गिला कर दिया था। उसके रुकने के बाद मैंने भी वैसे भी वैसा ही करना शुरू कर दिया था। तभी उसने अपना मुँह खोला और कहा – पापा मुँह चोदो न , जैसे पहले करते थे।

मैंने अपना जीभ गोल सा बनाया और उसके मुँह में डाल दिया फिर उसने अपने सर को आगे पीछे करना शुरू कर दिया। उसका कमर और सर इस अंदाज में हिल रहे थे जैसे मेरा लंड उसके चूत के फांको से मालिश करवा रहा हो और वो मेरे जीभ से चुद रही हो।

हम दोनों अपने आप में बीजी थे और ना जाने कब जतिन आकर हमारे पैरों के बीच बैठ गया था। वो अर्चना के चिकने गांड को चाट रहा था। लगता था अर्चना को अपने शरीर को चटवाने में मजा आता था। अब मेरे लंड को चूत रानी के अंदर जाना था। बहुत देर से बेचारा बाहर ही टहल रहा था। मैंने अर्चना से कहा – उठ मुझे मेरे लौड़े को अब अपने चूत की सैर करा। वो बड़ी अदा से मेरे ऊपर से उठ जाती है और मेरे तरफ पीठ करके अपने पेटीकोट का नाडा खोल कर नंगी हो जाती है। उसकी चिकनी गांड देख मेरा मन मचल गया। मैंने उसके गांड पर दो तीन थप्पड़ जड़ दिए।

अर्चना – आह पापा , कितने बेदर्द हो। इतने जोर से क्यों मार रहे हो।

मैंने उसे उसके कमर से पकड़ कर अपने ऊपर खींच लिया। वो लड़खड़ा कर मेरे लंड के ऊपर गिरी और फिर तुरंत चिहुंक कर खड़ी हो गई। शायद मेरा लंड उसके गांड में घुसने वाला था। उसके खड़े होते ही मुझे गुस्सा आ गया। मैं भी खड़ा हो गया और उसके बाल खींच कर उसके पिछवाड़े पर एक थप्पड़ और मारा। मैंने कहा – पापा से जबान लड़ाती है। अभी बताता हूँ।

मैंने फिर उसे सोफे पर गिरा दिया। वो सोफे पर लड़खड़ा कर पीठ के बल गिर पड़ी। उसने हाथ जोड़ते हुए कहा – पापा , मुझे माफ़ कर दो। मुझसे गलती हो गई।

मैंने अपना लंड उसके मुँह की तरफ किया और कहा – इसे चूम इससे माफ़ी मांगो।

उसने मेरे लंड के सुपाडे को चूम कर कहा – माफ़ कर दो। देखो मेरी चूत भी आंसू बहा रही है।

मैं – तेरी चूत के आंसू तो मेरा लंड पोछेगा।

मैंने अपना लंड उसके चूत में डाल दिया और उसे चोदने लगा। मेरे हर धक्के से मेरा लंड उसके चूत के एकदम अंदर तक जा रहा था। उसको एक टांग मैंने अपने कंधे पर रख रखी थी और दूसरा निचे जमीन छू रहा था।

अर्चना – उफ्फ्फ पापा। डाल दो अंदर तक। बहुत दिनों से मन था की चुदुँगी आज मेरी इच्छा पूरी कर दो। पेल के मेरी चूत को अपना बना लो।

मैं – मुझे पता नहीं था तू इतनी चुदासी है वार्ना पहले ही तेरी चूत फाड़ देता। पर कोई बात नहीं।

कुछ देर वैसे ही लिटा कर पेलने के बाद मैंने अपना लंड निकाल लिया। मैं उस अवस्था में उसे ढंग से चोद नहीं पा रहा था।

मेरे लंड के निकलते ही वो बोली – क्या हुआ पापा ?

मैंने उसका हाथ पकड़ा और कहा – चल कुतिया बन। तुझे कुतिया बना कर पेलुँगा।

वो बड़ी अदा से उठी और सोफे पर हाथ लगा कर झुक गई । उसने झटके देते हुए अपने गांड को लहराया लहराया। मैंने उसके गांड पर थप्पड़ मारते हुए कहा – एक दिन ये भी मरूंगा मेरी जान पार आज तुझे चोद कर माँ बना दूँ पहले।

अर्चना – हाँ पापा मुझे अपने भाई की माँ बनाना है। मेरे कोख से मेरा भाई निकलेगा। पेल कर माँ बना दो मुझे।

मैंने उसकी बातें सुनकर अपना लंड पीछे से उसके चूत में डाल दिया और उसे धकधक पेलने लगा , मैंने उसके बाल पीछे से पकड़ लिए । मैं उसे आपसे पेल रहा था जैसे घोड़े की सवारी करते हों।

अर्चना – आह इस्सस , मजा आ रहा है पापा। पहले पता होता तो मैं कब का चुद चुकी होती। आह उह्ह

अब मेरा एंड जवाब देने लगा था। किसी भी पल वो अपना माल छोड़ सकता था। मुझे माँ ki बात याद आ गई। मैंने अर्चना को खींच कर जमीन पर सीधा लिटा दिया और अब उसे मिशनरी अंदाज में पेलने लगा। मैं हर धक्का इतनी तेज लगा रहा था जिससे मेरा लंड एकदम अंदर तक जाए। आखिरकार मेरे लंड ने अपना माल उसके चूत में उलट दिया। मैं थक कर उसके ऊपर ही सो गया , वो अपने चूत को इस तरह से सिकोड़ रही थी जैसे उसे चूस रही हो। उसने मुझे अपने दोनों पैरों को मेरे कमर पर लपेट लिया था। उसने पूरा माल अपने अंदर में लिया। और मुझे तब तक नहीं छोड़ा जब तक मेरे वीर्य का एक एक बूँद अंदर न निचोड़ लिया ।

पूरा माल निकल जाने पर उसने मुझे अपने पैरों के जकड से मुक्त किया , जिससे मैं उसके बगल में लुढ़क गया। 

अर्चना – मजा आ गया आज तो।  तुमने मेरी बरसों की तम्मन्ना पूरी कर दी।  

अब जतिन भी आकर अर्चना के दुसरे साइड में लेट गया था और उसके मुम्मे को चूसने लगा था।  अर्चना उसके बालों को सहला रही थी। 

मैंने कहा  – लगता है तुम्हारी और भी तमन्नाएँ हैं अपने पिता को लेकर।  कहो तो वो भी पूरा कर दूँ। 

अर्चना – सही कह रहे हो। पूरा हफ्ता है हमारे पास। सब पूरा करवाउंगी। 

मैं कुछ और बोलता तभी मेरा फ़ोन बज उठा।  माँ का फ़ोन था।  कहानी के चक्कर में कितनी देर हो गई थी पता ही नहीं चला। 

माँ – तेरा काम हो गया तो घर भी आजा।  या आज रात वहीँ रुकने का इरादा है ?

मैं – नहीं माँ आ रहा हूँ। खाना बना कर रखना। 

मैंने अर्चना से कहा – बहुत देर हो गई।  घर पर माँ अकेली हैं।  निकलता हूँ।  फिर आऊंगा। 

अर्चना – हमें भी माँ से मिलवाओ। 

मैंने कहा – ठीक है।  पूछता हूँ फिर बताऊंगा। 

अर्चना – माँ को जब यहाँ का पता है तो मुझसे मिलने के लिए  भी मना नहीं करेंगी।   

मैं उसके आत्मविश्वास पर हैरान था।  खैर मैंने तुरंत कपडे पहने और घर जा पहुंचा। घर पहुँचते ही माँ ने मुझे गले लगा लिया और कहा – हो गया काम ? भर दी उसकी कोख ?

मैं शर्मा गया ।  माँ ने कहा  – एक बेटे का बाप बन चूका है और घर की लगभग हर औरतों को चोद चूका है और शर्मा ऐसे रहा है जैसे पहली बार किसी को पेला हो। 

मैं – क्या माँ।  तुम भी मेरी टांग खिंचाई करती रहती हो। 

माँ – मैं तो तेरी हर टांग खींचूंगी।  मेरे कोख से पैदा हुआ है।  मेरा तुझ पर हक़ है।  पर ये बता उसने तेरी तीसरी टांग खींची या नहीं। 

माँ और उनकी हक़ की बात सुनकर मैंने कहा – माँ जानती हो उसकी भी एक कहानी है। 

माँ ने कहा – चल पहले नहा ले , फिर कहानी सुनाना। 

मने कहा – तुम भी चलो न।  

माँ ने ना जाने क्या सोच कर कहा – चल आज मैं तुझे नहलाती हूँ। 

मैं एकदम खुश हो गया।  श्वेता के जाने के बाद से मैं काफी बीजी हो गया था।  माँ के साथ भी सेक्स किये काफी दिन हो गए थे।  शायद माँ ने मेरे और अर्चना के सेक्स के बारे में सोचा होगा इस लिए गरम हो गई होंगी।  मैं और माँ उनके कमरे की तरफ चल पड़े।  माँ ने कमरे में पहुँच कर मेरे सारे कपडे उतार दिए।  सिर्फ अंडरवियर रहने दिया।  उन्होंने साडी पहन रखी थी , जिसे उतार दिया।  उन्होंने फिर अपना ब्लॉउज भी उतार दिया।  मैंने उनके स्तनों पर हाथ लगाना चाहा तो उन्होंने रोक दिया और कहा – अभी रहने दे।  फिर उन्होंने अपने पेटीकोट का नाडा खोलना शुरू किया मुझे लगा माँ पूरी नंगी हो जाएँगी।  पर उन्होंने नाडा खोल कर अपने पेटीकोट को अपने सीने पर लेजाकर स्तनी के ऊपर बाँध लिया।  अब उनके स्तन और कमर के निचे का हिस्सा दोनों ढक गए थे। माँ ऐसा नहाते वक़्त करती थी।  नहाने जाते वक़्त और नाहाकर निकलते वक़्त उनका यही ड्रेस कोड रहता था। 

माँ ने पहले से ही लगता है तैयारी कर रखी थी।  उन्होंने बाथ टब में हल्का गुनगुना पानी भर रखा था।  मुझे उन्होंने बाथटब में बिठा दिया और 

खुद उसके किनारे बैठ गईं।  उन्होंने मेरे पीठ पर साबुन लगाते हुए कहा – अब बता क्या कह रहा था उसके बारे में ? कैसी है वो ? श्वेता ने तो बड़ी तारीफ की थी उसकी। कह रही थी तेरे पसंद के हिसाब से ही गदराई बदन वाली है वो। 

मैं – हाँ माँ।  एकदम गदराई बदन वाली।  भरा पूरा शरीर , बड़े बड़े स्तन और चौड़ी गांड।  पता है उसके निप्पल खजूर से भी बड़े हैं ?

माँ – मतलब सुधा और मेरे से भी बड़े ?

मैं – अगर बड़े नहीं तो बराबर होंगे ही।  पर तुम जैसी खूबसूरत नहीं है।  

माँ – मतलब माल है। 

मैं – हाँ एकदम चुदास माल।  उसके पापा जवानी में शादी से पहले ही गुजर गए। 

फिर मैंने माँ को अर्चना की सारी कहानी बतानी शुरू की। कुछ ही देर में माँ भी मेरे साथ टब में थी। अब टब के बीचो बीच बैठी थी और मैं उनके पीछे।  कहानी सुनाते सुनाते मैं उनके शरीर पर साबुन लगा रहा था। साबुन क्या लगा रहा था मैं उसके शरीर से खेल रहा था।  कभी उसके कंधे को चूमता हुआ मुम्मे दबाता तो कभी कान के लबों को चाटता हुआ पेट रगड़ता।  माँ भी कभी अपने शरीर को आगे कर लेती तो कभी शरीर को पीछे करके मुझसे चिपका लेती।  एकदम जबरदस्त रगड़ाई चल रही थी।  

माँ ने बीच में मुझसे कहा – सामने आ जा।  बहुत रगड़ लिया।  अब मेरी चूत को शांत कर। 

मैंने कहा – गोद में आ जाओ। 

माँ – जैसे अर्चना अपने बाप से चुदती थी ?

मैं – हाँ। तुम भी तो नाना से ऐसे ही चुदती रही होगी ?

मां – बापू को सिर्फ तूने ह मात दिया है और कुछ हद तक तेरे पापा ने।  वार्ना बापू ने कहाँ कहाँ नहीं चोदा है मुझे।  जितने आसन लगाए हैं उनके साथ बस तूने ही किया है वैसा।  और कुछ तो गाओं वाली बातें तो तू कर ही नहीं पाया। 

मैं आगे हो गया और माँ से लिपट कर बोला – फिर चलो न गाओं कभी।  चाची से मिले भी काफी दिन हो गया है। 

माँ – सोच रही हूँ।  या तो अपने गाँव या फिर नाना के यहाँ चलते हैं।  वैसे भी होली आने वाली है।  एकबार गाओं की होली खेलते हैं। 

मैंने अपना लंड पकड़ कर हिलाते हुए कहा – मैं अपनी इसी पिचकारी से सबको रंग लगाऊंगा। 

माँ ने भी मेरा लंड पकड़ लिया और कहा – तेरी पिचकारी पुरे गाओं भर में बड़ी होगी। 

चल अब जरा इसी पिचकारी से मेरे अंदर रंग भर दे। इतने  देर से पानी में हैं ठंढ लग रही है। 

मैं माँ से चिपकता हुआ अपने लंड को उनके चूत में घुसा कर बोला – अभी पानी में आग लगाते हैं। 

मां मेरे ऊपर चढ़ चुकी थी।  हम दोनों के कमर ने एक लय पकड़ लिया था। एक साथ पीछे होते फिर एक साथ आगे।  माँ ने कंधे से मुझे पकड़ रखा था।  हम दोनों के हिलने से पानी में लहरे चलने लगीं थी।  लग रहा था जैसे कोई ज्वार भाता सा आया हुआ हो।  आग तो लग ही चुकी थी।  पानी में हम दोनों की ये कुश्ती करीब पांच मिनट तक चली।  हारने को कोई तैयार था ही नहीं ।  पर कब तक ऐसे चलता।  आखिर में हम दोनों एक साथ धराशाही हुए।  मेरा माल माँ के चूत में एकदम अंदर तक जा रहा था।  कुछ देर वैसे लिपटे रहने के बाद माँ ने कहा – मजा आ गया।  चल अब ठीक से नहाते हैं और खाना खाते है। 

हम दोनों टब से निकल कर शावर के नीचे आ गए और गरम पानी से नहाकर फटाफट खाने के टेबल पर पहुँच गए।  

खाना खाते खाते माँ ने कहा – ये बता , अपनी इस गदराई बिटिया से कब मिला रहा है ?

मैंने माँ का चेहरा देखते हुए कहा – वो भी मिलना चाह रही थी।  मैं ही थोड़ा डर रहा था। कितना ही जानता हूँ उसे।  दो बार ही तो मिला हूँ। 

माँ ने हँसते हुए कहा – पहली बार में लंड मुँह में दिया और दूसरी बार में चोद  लिया वो भी उसके घर में और कहता है सिर्फ दो बार मिला हूँ। 

मैं हँसते हुए बोला – क्या माँ तुम भी ?

माँ – बेटीचोद शर्मा ऐसे रहा है जैसे चूत देखि ही ना हो।  

मैंने – अच्छा रुको उसको कॉल करता हूँ। 

माँ – लगा। 

मैंने फ़ोन लगा दिया।  मुश्किल से दो रिंग गई होगी की फ़ोन उठ गया।  लगा जैसे फ़ोन लेकर बैठी हो। मैंने फ़ोन स्पीकर पर कर रखा था। 

फ़ोन उठाते ही उसने कहा – हाय पापा , घर पहुँच गए। 

मैं – हाँ।  

अर्चना – और माँ चोद ली या आज रहने दिया ?

मैं कुछ बोलता उससे पहले माँ बोल पड़ी – हाँ चोद ली।  माँ और बहन चोदने का रिकॉर्ड तो बना रखा था अब माँ और बेटी चोदने का भी रिकॉर्ड बनाएगा। 

हँसते हुए अर्चना बोली – नमस्ते माँ जी।  ऐसा बाप मिले तो हर लौंडिया चूत थाली में लेकर घूमेगी। 

माँ – नमस्ते।  फिर कब आ रही हो यहाँ ?

अर्चना – आपसे मिलने का बड़ा मन है। मेरा बस चले तो आज ही चली आऊं।  पर लेट हो गया है।  आप कहें तो कल आते हैं। 

माँ – आजा कल लंच यहीं करना।  अपने भाई को भी लेकर आना। 

अर्चना – पर आपको माँ के रूप में ही देखूंगी ?

माँ – ठीक है। 

अर्चना – नमस्ते माँ।  कल मिलते हैं। 

मैने माँ से कहा – क्या करना चाहती हो तुम?

माँ – मैं नाह तू करेगा।  दारू पीकर हम दोनों से जबरजस्ती। 

मैं – माँ , मुझसे नहीं होगा।  वैसे भी आज उसको दो तीन बार मारा था। 

माँ – मैं रेप करने को थोड़े ही कह रही हूँ।  बस डोमिनेटिंग तरीके से प्यार कर।  थोड़े थप्पड़ में मजा आता है। 

मैं – पर। 

माँ – कल की कल देख्नेगे।  तेरा मन नहीं करेगा मत करना। 

हम दोनों ने खाना ख़त्म किया और जाकर रजाई में घुस गए। 

अगले दिन मेरी नींद खुली तो देखा माँ पहले से उठ चुकी थी।  देखा तो वो किचन में काम कर रही थी।  उन्होंने वूलेन शाल ओढ़ रखी थी और निचे वूलेन लेग्गिंग।  जाड़े में अक्सर वो कुर्ते सलवार पहनती थी और ऊपर से शाल। मैं उनके पास गया और पीछे से जकड लिया।  मेरे पैजामे से बाहर आता लंड उनके टाइट वूलेन लेग्गिंग से चिपक गया। मैंने जैसे ही हाथ साल के अंदर डाला।  समझ में आया की माँ ने निचे कुछ नहीं पहना है।  माँ पुरे मूड में थीं लगता है।  

मैंने अपना हाथ उनके मुम्मे पर रखा तो उन्होंने कहा – उम्म्म।  जरा गरम कर दे उन्हें।  ठंढ लग रही है।  देख ठण्ड से मेरे निप्पल एकदम अकड़ गए हैं। 

मैंने उनके निप्पल को अपनी उंगलियों में फंसाया और कहा – सबसे पहले इन्हे ही गरम करता हूँ। 

माँ – उम्मम।  रगड़ दे जरा।  एकदम बेचैन कर रखा है। 

मैं – माँ , इतनी बेचैनी थी तो उठ क्यों गई।  एक बार मेरे रोड से गरम होकर ही निकलती। 

माँ – तेरी बिटिया आने वाली है।  अब कुछ तो तैयारी करनी पड़ेगी न। 

मैं – मेरी प्यारी अम्मा को लगता है बिटिया से मिलने की ज्यादा जल्दी है। 

माँ ने अपने गांड को पीछे धकेलते हुए कहा – उफ्फ्फ्फ़ , सही कह रहा है।  सुधा के जाने के बाद से गदराया बदन नहीं मिला है।  

मैं – श्वेता को पता चलेगा तो क्या सोचेगी। 

माँ – श्वेता की सुबह सुबह ही फ़ोन आया था।  कह रही थी , अगर कॉलेज का काम नहीं होता तो वो भी आती।  

मैं – हम्म्म 

माँ – तू नाराज तो नहीं है न ? श्वेता भी प्यारी बच्ची है।  उसके अलग मजे हैं। गोद में बिठा कर उसेदूध पिलाने का मन करता है।  वैसे भी शादी के बाद वो भी गदरा जाएगी। 

मैं – माँ सफाई मत दो।  आपको एक कामुक औरत के साथ ज्यादा मजा आता है  मुझे पता है। 

माँ –  तेरे पापा भी मुझे पूरा समझते थे और तू भी । 

मैं माँ के लेग्गिंग को उतारने लगा तो माँ ने कहा – रहने दे फटाफट से तैयार हो जा अर्चना और उसके भाई भी आते होंगे। 

मैं – ये क्या माँ।  एकदम गरम करके क्यों चोट करती हो ?

माँ ने मेरे। गाल को किस किया और कहा – मैं खुद को और तुझे एकदम गरम रखना चाहती हूँ।  

मैं – ऐसा क्यों माँ ?

माँ – ताकि उन दोनों के सामने अगर कुछ लाज शर्म आये तो अंदर की गर्मी से वो सब पीकहल कर बह जाए। 

मैं माँ के इस जवाब को सुन कर कुछ नहीं बोला।  मैं वापस जाने लगा तो माँ ने मेरा हाथ पकड़ लिया और एक ग्लास ड्राई फ्रूट से भरा मिल्क शेक देते हुए कहा। – क्या सोचा कल रात जो मैंने कहा था ?

मैंने कहा – किस बारे में ?

माँ – वही थोड़ा जोर लगा दे ? 

मैं – माँ क्या कह रही हो ? 

माँ – आज मेरा भी मन है। कुछ मेरे ऊपर और कुछ उसके ऊपर।  आज तक सबने प्यार ही दिया है।  बिना मांगे दिया है।  आज कुछ जोर लगा कर ले ले। 

मैं – माँ ये सब क्या बोल रही हो। 

माँ – देख अगर होश में नहीं कर सकता तो उसके पापा जैसा थोड़ा नशा ही कर लेना।  बियर रखी है। श्वेता के टाइम की कुछ ड्रिंक्स बची हुई हैं।    

मैं माँ के तरफ हैरानी से देखने लगा। माँ ने नजरे झुका ली फिर धीरे से कहा – रहने दे। 

उनको ऐसे देख कर मुझे शरारत सूझी मैंने उनके हाथ पकड़ कर पीछे घुमाया और लेग्गिंग में चिपके उभरे और चौड़े गांड पर थप्पड़ मारते हुए कहा – ऐसे कपडे पहनना जो फट भी जाए तो बुरा न लगे और अपनी नई बेटी को भी बोल देना।  

माँ – उफ्फ्फ।  आप भी ना। 

मैंने एक थप्पड़ और लगाया और कमरे में जाकर तैयार होने लगा।  मैं यही सोच रहा था की पापा के जाने के बाद माँ ने ही सब संभाला है।  उन्होंने ही बहनो की और मेरी देखभाल की।  एक माँ की तरह भी और एक पिता की तरह भी।  सिर्फ नाना ने ही घर की औरतों को डोमिनेट किया पर उनसे भी ज्यादा नानी ने।  हो सकता है माँ के अंदर भी ये दबी हुई इच्छा हो कि उनको भी कोई डोमिनेट करे।  कब तकघर संभालेंगी।  कोई मर्द जैसा उनको अपने काबू में रखे।  वैसे तो आजकल इसका उलट हो रहा है।  पर कुछ फंतासी सबकी होती है।  कुछ दबी इच्छाएं सबकी होती हैं।  मैं शरीर से लम्बा चौड़ा था, उम्र में भी बड़ा था।  बड़े लंड का मालिक था पर व्यवहार से अब भी अपने को छोटा ही मानता था।  कुछ ही महीनो में मैं ग्रेजुएट  हो जाऊंगा, वो भी अपने साथ वालो से देर से।  अपनी कंपनी खड़ा करने वाला हूँ।  अब तो मुझे बड़ा होना ही पड़ेगा।  और तो औरएक बच्चे का बाप भी हूँ।  शायद माँ ये संकेत भी देना चाह रही हों की अब मुझे चीजें अपने कण्ट्रोल में लेना चाहिए। यही सब सोचता हुआ मैं तैयार होने लगा। पर मैं औरतों के साथ कभी भी जोर जबरजस्ती नहीं कर सकता था।  आजतक जितनो को भी चोदा सब खुद ही मेरे नीचे आई हैं।  मैंने सोचा माँ की बात ही मान लेता हूँ।  मैंने सोचा कुछ तो करना पड़ेगा।  मेरे दिमाग में एक आइडिआ आया। 

मैंने तैयार होकर माँ से कहा – मैं जरा एक दो घंटे में आता हूँ। 

माँ – कहाँ जा रहा है।  अर्चना और उसके भाई आने वाले होंगे।  मैं उन्हें पहचानती भी नहीं हूँ। 

मैंने माँ को उसकी फोटो दिखाई और कहा – पहचान लो।  अगर मेरे आने से पहले आ गए तो मुझे फ़ोन कर देना। 

माँ – पर~~~

मैं कड़क आवाज में बोला – अभी तो इतना लेक्चर दे रही थी।  अब क्या हुआ ? 

माँ कुछ नहीं बोली।  मैं फिर घर से निकल गया। घर से दूर एक ठेका था वहां जाकर बैठ गया।  सुबह सुबह ठेके पर एक्का दुक्का लोग ही थे।  मैंने एक बियर मंगवा ली और फ़ोन पर सुधा दी से बात करने लगा। सुधा दी ने साड़ी बात सुनी तो कहा – आज दिखा दे की तू भी एक मर्द है। 

मैं – तुम्हारे गोद में इसी मर्द का बच्चा है।  जोर जबरजस्ती करना मर्दानगी थोड़े ही है। 

दीदी – तेरे मन में अब भी एक डर है।  तू इतना अच्छा इंसान है तभी सब तुझसे इतना प्यार करते हैं।  इतना मत सोच।  थोड़ी फंतासी है।  कुछ दबी हुई इच्छाएं है।  पूरी कर दे।  माँ भी खुश और अर्चना भी। 

मैं – देखता हूँ दीदी। 

दीदी से फिर और भी बातें होने लगीं। तभी माँ का फ़ोन आने लगा।  मैं समझ गया की अर्चना घर आ गई है।  मैंने दीदी को कहा – लगता है अर्चना आ गई।  चलता हूँ 

दीदी – सुन टेंशन ना ले कोई बुरा नहीं मानेगा।  बिंदास मर्दानगी दिखा। 

मैं – हम्म

फिर मैंने फटाफट बियर ख़त्म की और घर की तरफ निकल पड़ा।  

घर पहुंचा तो माँ ने दरवाजा खोला।  उन्होंने एक साडी पहनी हुई थी और ऊपर से शाल डाला हुआ था।  

माँ ने मुझे देखते ही कहा – इतनी देर कहाँ लगा दी।  आपकी लाड़ली अर्चना आई हुई है। 

मैं – मैं कहीं भी रहूँ, कुछ भी करूँ तुमसे क्या ? चलो हटो रास्ते से। मैंने माँ को धक्का सा दिया।  अंदर सोफे पर पहुंचा तो देखा एक तरफ अर्चना और एक तरफ जतिन बैठे थे। अर्चना ने एक लम्बा सा घाघरा और ब्लॉउज डाला हुआ था।  ऊपर से शाल ओढ़ी हुई थी। 

 मैंने सोफे पर बैठते हुआ कहा – कैसी है ? उतनी दूर क्यों बैठी है पास आ। 

अर्चना उठ कर मेरे बगल में बैठने लगी तो मैंने उसे खींच कर अपने गोद में बिठा  लिया। माँ ने ये देखा तो कहा – क्या  कर रहे हैं ? आपकी बेटी अब बड़ी हो गई है। 

मैं – वही तो देख रहा हूँ कितनी बड़ी हुई है।  तुम जरा जाकर कुछ पीने को पीकर आओ। 

अर्चना – पापा , आपने तो पहले से ही पी रखी है और फिर पीयेंगे ?

मैंने उसे गोद से खड़ा किया और गहरे के ऊपर से ही उसके गांड पर थप्पड़ मारते हुए बोला – ज्यादा बोलेगी तो पिटेगी।  चुप होकर बैठ। 

मैंने फिर उसे अपने गोद में बिठा लिया।  माँ मेरे तरफ आई और सामने आकर बोली – शर्म नहीं आती जवान लड़का बैठा है उसके सामने लड़की को मारते और ऐसी हरकत करते हुए ?

मैंने माँ का हाथ पकड़ कर अपने बगल में बिठा लिया और उसके गाल पर एक हलके से चांटा मारा और कहा – रंडी साली चुप नहीं होगी।  पातर पातर करती रहती है। 

माँ ने नजरे नीची कर लीं।  अब रोल प्ले करने में मजा आ रहा था।  माँ उठ कर जाने लगी तो मैंने उनका शाल कहीं लिया और कहा – ये सब क्या पहन रखा है।  उतार। 

माँ बोली – शर्म नहीं आती , जवान लड़का है। 

मैं – अभी उसके सामने नंगा करके चोद दूंगा।  चुप चाप जो कहता हूँ करो।  

फिर मैंने जतिन से कहा – क्यों बे गांडू देख क्या रहा है।  जा फ्रिज में देख बियर रखी हो तो एक दे मुझे।  

जतिन बेचारा किचन में उठ कर जाने लगा।  माँ भी उसके पीछे पीछे चली गईं।  मैंने अर्चना के शाल के अंदर हाथ करके उसके मुम्मे दबाने शुरू कर दिए। 

अर्चना – उफ़ पापा क्या कर रहे हैं ?

मैं – देख रहा हूँ बिटिया कितनी बड़ी हो गई है। 

अर्चना – हाय रे। अब तो पता चल गया होगा।  छोड़िये मुझे आपके मुँह से बदबू आ रही है। 

मैं – चुप बैठ वार्ना यहीं पटक कर चोद दूंगा। 

अर्चना चुप हो गई।  मैं उसके मुम्मे दबा रहा था।  उसने एक कॉटन का टी शर्ट टाइप ब्लॉउस पहन रखा था। और निचे ब्रा भी थी।  

माँ और जतिन आ गए थे।  माँ ने टेबल पर बियर रख दिया और कुछ खाने का भी।  

मैं – और जतिन, माँ से मिल लिया ? कैसा लगा माँ से मिलकर ? माँ मस्त है या बहन ?

जतिन  कुछ बोल नहीं पाया।  उसे उम्मीद नहीं थी की मैं इतनी जल्दी रोल प्ले में आ जाऊंगा।  मैंने उसके साथ उसके घर में जो दुर्दशा की थी उस बात से वो थोड़ा डरा हुआ लग रहा था। 

मैंने कहा – अच्छा ये बता माँ ने कुछ खिलाया पिलाया है या नहीं ?

माँ – कैसी बात कर रहे हो।  तुम्हारे आने से पहले चाय नाश्ता करा दिया था। 

मैं – अरे भाई दूध का शौक़ीन है , चाय नाश्ता से क्या होगा ? बता किसका दूध पियेगा ? बहन की तो पीता ही है , माँ के पिए बहुत दिन हो गए होंगे , पियेगा ?

माँ – क्या कह रहे हो ? इतना बड़ा लड़का है।  ये सब सही नहीं है।  दारू पीकर होश खो देते हो।  कुछ भी बकना चालू हो जाता है। 

मैं चिल्ला कर बोला  – चुप साली , अपना मुँह बंद कर। नहीं तो मुँह में लौड़ा डाल कर बंद कर दूंगा।  जो कह रहा हूँ वो सुन।  और जो कहूं वो भी करना पड़ेगा। 

माँ कुछ नहीं बोली। उन्होंने चुप चाप अपनी नजरें झुका लीं।  इधर अब तक मैं अर्चना के ब्लॉउज खोल चूका था और ब्रा के ऊपर से ही उसके स्तनों को मसल रहा था। मैं साथ ही बीच बीच में बियर की बोतल उठा कर सिप भी ले रहा था।  नशा भी मुझ पर हावी हो रहा था।  

माँ ने मुझे पीते देखा तो फिर बोली – कितना पिएंगे।  बच्चे भी हैं कुछ तो शर्म कीजिये। 

मैं – तू अपना मुँह बंद नहीं करेगी।  तेरे मुँह में कुछ डालना ही पड़ेगा।  चल इधर आ मेरी रंडी। 

माँ चौंक गई फिर उठ कर मेरे पास आई।  मैंने अर्चना से कहा – उठ। 

अर्चना उठने लगी तो मैंने उसका शाल खींच लिया।  अब वो सिर्फ ब्रा और घाघरे में थी।  ठंढ का मौसम था पर माँ ने पहले से कमरे में ब्लोअर लगा रखा था।  तो उतनी गरमी नहीं थी।  माँ मेरे नजदीक आई तो मैं खड़ा हो गया और उनके सीने पर हाथ रखते हुए कहा – देख तेरी बेटी सिर्फ ब्रा में है और तूने पुरे कपडे पहन रखे हैं।  ये ठीक नहीं है। 

माँ कुछ बोल पाती उससे पहले ही मैंने उनके ब्लॉउज को दोनों हाथो से पकड़ा और जोर से खींच दिया।  उनका ब्लॉउज चररर की आवाज के साथ  फट गया।  मैंने उनके ब्लॉउज को उतार फेंका। माँ अभी समझ पाती मैंने उनका कन्धा पकड़ा और उनको बिठाते हुए कहा – बहुत बोलती है न। चल ले मेरा लंड अपने मुँह में  , न मुँह खली रहेगा ना ही बोलेगी। 

मेरा लंड पहले से ही पेंट से बाहर था।  मैंने अपना पेंट पूरा उतारा और अपना लंड माँ के मुँह में डाल दिया।  जतिन की हालत ख़राब थी।  मैंने उससे कहा – भोसड़ी के सब यहाँ नंगे हो रखे हैं तू कपडे में क्यों है।  उतार और नंगा हो जा। 

अर्चना बोली – ठंढ है पापा।  बीमार हो जायेगा।  

मैंने अर्चना के गाल पर एक थप्पड़ मारा और कहा – साली माँ का मुँह बंद हुआ तो बहनचोद तू बोलने लगी।  जा जाकर भाई का लौड़ा चूस।  साले का पेंट ख़राब हो रखा होगा।  और बैठ के एकदम कुतिया की तरह लौड़ा चूसेगी।  

अर्चना अपने गाल को सहलाते हुए जतिन के पास पहुंची।  जतिन ने पहले से ही अपने पेंट को उतार दिया था।  अर्चना झुक कर कुतिया बन गई और उसके लौड़े को मुँह में लेकर चूसने लगी।  क्या नजारा था।  दो दो गदराई औरतें लंड चूस रही थी।  दोनों ने सिर्फ ब्रा पहना हुआ था पर निचे से कवर थी। अर्चना बड़े बेमन से जतिन का लंड चूस रही थी।  उसका मन मेरे लंड को चूसने का था।  पर खेल जैसे चल रहा था वैसे ही चलने देने में भलाई थी।  मैंने कुछ देर बाद माँ को उठाया और और उसे चूमते हुए बोला – देखो अपने भाई का लौड़ा कैसे चूस रही है।  मस्त माल है न माँ।  देखो उसकी गांड कितनी चौड़ी है। 

ये बात मेरे और माँ के बीच हो रही थी।  माँ ने भी ललचाई नजरों से अर्चना की तरफ देखा और कहा – क्या चाहती हो , चूत चटवाओगी या चाटोगी ?

माँ ने धीरे से कहा – पहले उसके बदन को देख तो लू।  अभी उसे टच तक नहीं किया है। 

मैंने कहा – जरा डांट लगाओ और बुलाओ अपने पास। 

माँ मुश्कुरै फिर चेहरा सीरियस करते हुए बोली – अर्चना , तुम्हे शर्म नहीं आती।  तेरा बाप तो नशे में धुत्त है।  तू तो होश में है।  अपने ही भाई का लौड़ा माँ बाप के सामने चूस रही है।  कुछ तो शर्म कर। 

अर्चना पलट कर देखने लगी।  उसके मुँह से लार टपक रही थी।  थूक और जतिन के प्री कम की वजह से उसका होठ और ठुड्ढी पूरी तरह से गिला था। 

वो कुछ बोलती तभी मैंने माँ को पीछे किया और उसके गांड पर थप्पड़ मारते हुए कहा – जैसी माँ वैसी बेटी।  लंड चूसने में एकदम एक्सपर्ट। 

जतिन के साथ तो खेल हो चूका था।  मैंने अर्चना से कहा – सुना नहीं तेरी माँ ने क्या कहा ।   इधर आ।  

अर्चना उठने वाली थी।  मैंने कहा – खड़ी होकर नहीं मेरी कुतिया वैसे ही चार पाँव पर चल कर आ। 

अर्चना गांड मटकाते हुए मेरे पैरों के पास आ गई।  अब वो ललचाई नजरो से मेरे तने हुए लौड़े को देख रही थी।  

मैंने माँ को कहा – देखो तेरी बेटी कैसे मेरे लौड़े की तरफ नजरे गड़ाए हुए है। 

माँ – शर्म कर अर्चना।  उठ जा। 

मैं कुछ नहीं बोला।  अर्चना उठ कर खडी हो गई।  अब हम तीनो एकदम अगल बगल में खड़े थे।  

मैंने अर्चना से कहा – लौड़ा तो नहीं मिला पर लौड़े का जूस लेना है तो माँ के होठों से पी ले।  

अर्चना कुछ समझ पाती उससे पहले मैंने माँ और उसका चेहरा एक दुसरे के सामने कर दिया और उनके होठ भिड़ा दिए।  मुझे तो चिंगारी लगाने की देर थी। 

दोनों एक दूसरे से लिपट गई।  दोनों एक दुसरे के होठों को ऐसे चूस रही थी जैसे लग लग रहा था काट कर खा जाएँगी। मैं अर्चना के पीछे जाकर खड़ा हो गया और उनके गांड से अपना लंड  भिड़ा कर खड़ा हो गया।  

मैंने जतिन से कहा – क्यों बे गांडू।  पारिवारिक मिलान में आएगा नहीं।  आजा , माँ से मिल ले। 

वो भाग कर माँ के पीचेर खड़ा हो गया।  दोनों औरतें हम दोनों के बीच में थी।  हम चारों एक दुसरे के शरीर से अपना शरीर रगड़ रहे थे।  एकदम गरमागरम महल था।  इस शर्दी के दिन में भी हम सब पसीने पसीने हो गए थे। मैंने हाथ आगे करके अर्चना के घाघरे का नाडा खोल दिया। अर्चना ने माँ के ेटिकट की तरफ हाथ बढ़ाया तो माँ ने रोक दिया।  मैंने अर्चना को अपने तरफ कर लिया।  अब अर्चना की गांड माँ की तरफ थी। माँ ने हाथ बढ़ा कर अर्चना के चुके पकड़ लिए। 

अर्चना – पापा आपने पहले ऐसे प्यार क्यों नहीं किया।  उफ़ आप दोनों का प्यार पाकर एकदम मजा आ गया। 

उधर माँ अर्चनाके मुम्मे से खेलते हुए बोली – उफ़ , सच में बहुत बड़े हैं रे।  मेरे साइज़ के ही होंगे लगभग।  

मैं और माँ दोनों अर्चना के शरीर को रगड़े जा रहे थे।  मेरा लंड उसके चूत के पास था।  

कुछ देर की रगड़ाई के बाद अर्चना  माँ के तरफ घूमी और उनको किस ककरने के बाद उन्हें जतिन की तरफ कर कर दिया।  जतिन में मा को सामने देखा तो होश खो बैठा उसने मी को किस कर लिया। वो उनके भरे भरे होठों को काट रहा था।  अर्चना ने माँ के ब्रा को खोल दिया और उनके मुम्मे से खेलने लगी।  जतिन बड़ी बेसब्री से माँ के होठ चूस रहा था। 

तभी माँ ने बोला – सुना है मेरे लाडले को पेटीकोट में छुपने में बड़ा माजा आता है। 

अर्चना माँ के मुम्मे दबाते हुए बोली – हाँ माँ आपका ये लाडला बिगड़ा हुआ है।  साला जब देखो तब पेटीकोट में घुस जाता है। 

माँ – और तू ? तुझे घुसने का मन नहीं करता। 

अर्चना – माँ मिली नहीं थी न मुझे। 

माँ – अब तो मिली हूँ।  आजा माँ का आशीर्वाद ले ले।

जतिन के साथ फिर खेल हो गया था।  माँ ने अर्चना का हाथ पकड़ा और सोफे पर जाकर बैठ गईं।  अर्चना एकदम अच्छी बच्ची की तरह उनके सामने बैठ कर उनके पेटीकोट में घुस कर उनके चूत चाटने लगी।  माँ ने शायद पैंटी नहीं पहनी थी।  मैं खड़ा खड़ा उन दोनों को देख रहा था।  

अर्चा एकदम मस्त कुतिया की तरह माँ के चूत को चाटने में लगी थी।  माँ ने मस्ती में आँखे बंद कर रही थी। अर्चना के मस्त नंगे गांड को देख कर मन कर रहा था की उसकी गांड मार लूँ पर मैं माँ की मस्ती ख़त्म नहीं करना चाह रहा था। 

मैंने जतिन से धीरे से कहा – चुटिया है क्या बे ? जा उन मस्त चुचों से अपना हक़ ले ले। 

जतिन मेरा इशारा पाते ही माँ के बगल में जाकर बॉथ गया और उनके लटकते मुम्मे को मुँह में भर लिया।  पहले माँ को लगा मैं हूँ पर उन्होंने जाटों को देखा तो पहले संकोच किया फिर मेरा इशारा पाकर बोली – पी जा मेरे लाल ।  पी जा पाने माँ का दूध पी जा।  

जतिन – माआआआ तुम कितनी शानदार हो। 

मैं खड़े खड़े देख रहा था।  मैं माँ को आनंद महसूस कर रहा था।  मैंने फिर की बोतल उठा ली और पीने लगा। मई दुसरे सोफे पर बैठ गया और बियर पीने लगा।  मेरा लंड मुझे गरिया रहा था।  उसके सामने दो दो चूत थी पर उसे एक भी नहीं मिल रही थी। माहौल होते हुए भी मैंने खुद पर काबू किया हुआ था।  मैं माँ को देख रहा था।  मस्ती में तड़पते हिलते उनके बदन को देख रहा था।  अर्चना को उन्होंने पेटीकोट उतरने नहीं दिया था पर दोनों भाई बहन ने मिलकर उनका पेटीकोट उनके कमर तक समेट दिया था।  उसका होना ना होना बराबर था।  

माँ अपने कमर को आगे पीछे करने लगी थी।  

माँ – उफ्फ्फ , लग नहीं रहा है पहली बार चूस रही हो।  इस्सस , जरा मेरे क्लीट को चुसो।  आह  हां  खा जाओ उसे।  तेजी से उफ्फ्फ इस्सस आह आह आह मेरी बेटी क्या चूस रही हो।  देख रहे हो जी एक्सपर्ट बेटी है आपकी। 

मैं – रंडी वो तेरी बेटी है तो एक्सपर्ट होगी ही। खा जा अर्चना अपने माँ के लौड़े को।  चूस के पानी बहा दे। 

अब माँ झड़ने वाली थी।  उनका शरीर बुरी तरह से हिल रहा था।  उन्होंने अर्चना के सर को पकड़ लिया और अपने पैरो के बीच जकड़ते हुए अपने कमर को आगे पीछे करने लगी। उनका ये रूप मुझे बहुत अच्छा लगता था।  बल्कि कोई भी औरत जब झड़ती है और उस समय जो उसके बदन में कंपन होती है उसे देखने में सच में मजा आता है।  माँ ऐसे समय में मेरे कंधो पर अपने पैर रख कर अपने कमर से मुझे बाँध लेती थी। 

माँ के चूत ने अपना पानी छोड़ना शुरू कर दिया था।  जतिन उनके बगल में बैठा उन्हें निहार रहा था।  माँ एकदम पसीने पसीने हो राखी थो।  उनका पूरा शरीर छटपटा रहा था। पूरा पानी छोड़ने के बाद माँ स्थिर हुई  पर अर्चना ने उन्हें यही छोड़ा था।  वो उनके चूत से निकलते एक एक बूँद को चाटने में लगी थी। 

सब चट करने के बाद अर्चना ने चेहरा ऊपर किया और कहा – माँ बहुत स्वाद है तुममे।  

मैंने हँसते हुए कहा – स्वाद या नशा।  और असली नशा तो तुमने लिया ही नहीं। 

वो मेरी तरफ देखने लगी।  

माँ ने उसके कंधे पर हाथ रखा और उसे उठाते हुए बोली – तू बड़ी मस्त लड़की है।  पहले मिली होती तो मजा आता। 

माँ ने  उसे अपने तरफ किया और किस करते हुए बोली – जा अपने पापा के साथ अपने अरमान पूरा कर ले। 

अर्चना वैसे ही चौपाया बनते हुए आई और मेरे लंड को मुँह में लेने लगी।  मेरे लंड को तो मुँह नहीं चूत चाहिए थी।  

मैंने अर्चना से कहा – चूसना फिर बाद में अब ऊपर आ जाओ।  

अर्चना उठी और मेरे तरफ पीठ करके खडी हो गई।  वो थोड़ा आएगी की और झुकी और एकदम रंडियों की तरह अपने गांड को हिलाने लगी।  मैं समझ गया उसे क्या चाहिए था ।  मैंने उसके दोनों गांड पर एक एक थप्पड़ मारा और कहा – ये तेरा गांड नहीं तबला है। 

अर्चना – फिर बजाओ न पापा।  अच्छे से बजाओ।  जोर जोर से थाप मार मार कर बजाओ। 

मैंने कहा – चोट लगेगी। 

अर्चना – उसका अलग ही मजा है। 

मैं उसके गांड पर दोनों हाथों से ऐसे थाप देना लगा जैसे सच में तबला बजा रहा हूँ। मेरे हर थाप से उसके भारी गांड हिलने लगते।  

मुझसे बर्दास्त नहीं हो रहा था।  मैंने कहा – अब आकर चूत में लौड़ा ले ले वार्ना गांड मार लूंगा। 

अर्चना ने कहा – उफ़।  इतना बड़ा लौड़ा है  गांड फाड़ देगा।  रहने दो पापा। 

वो पीछे हो गई और मेरे तरफ पीठ किये हुए ही मेरे लंड को पकड़ लिया और अपने चूत पर सेट करते हुए बैठने लगी।    

अर्चना – पापा कितना बड़ा लंड है तुम्हारा , मेरी चूत ना फाड़ दे। 

मैं  – कल लिया था तो बड़ा नहीं लगा था। 

अर्चना – कल तो जोश में थी , होश ही नहीं नहीं था।  आज एक एक अंग में चुदाई का मजा महसूस हो रहा है। 

वो मेरे लंड पर उछलने लगी।  मैंने हाथ आगे करके उसमे स्तन पकड़ लिए और उन्हें दबाने लगा। उधर मी ने जतिन का लंड अपने हाथ में ले लिया था और उसकी मुठ मारने लगी थी।  जतिन उन्हें चोदना चाह रहा था पर माँ सबको अपना शरीर नहीं देती थी।  जतिन माँ के हाथों से ही खुश हो गया था।  उसकी आँखें बंद हो गई थी। 

अर्चना – माँ कैसे चुदती हो तुम पापा से ।  इतना बड़ा लंड तो लग रहा है मेरे बच्चेदानी तक जा रहा है। 

माँ – जाने दे न , तुझे बच्चा ही तो चाहिए।  ले ले जितना अंदर तक ले सकती हो। 

अर्चना – उफ़ आह।  

वो कभी मेरे ऊपर उछलती तो कभी कमर आगे पीछे करके एक ले में हिलाती।  चुदाई में एक्सपर्ट थी वो।  उसका मर्द तभी उसके पीछे पड़ा था।   जतिन के लंड ने कुछ ही देर में अपना पानी माँ के हाथों में छोड़ दिया।  

माँ ने उसकी तरफ देखा और उसके बालों को सहलाते हुए कहा – तुझे अपने बाप से अपने पर काबू करना सीखना पड़ेगा।  देख अभी तक एक बार भी नहीं झड़े। 

माँ ने अपनी नजर वापस अर्चना की तरफ की।  माँ उसके शरीर को देख कर फिर ललचाने लगी थी।  उसके पेट और चूत के हिस्से को देख कर माँ के मुँह में पानी आने लगा था। माँ उठ खडी हुई।  वो हमारे पास आकर निचे बैठ गई।  उन्होंने अर्चना के पेट पर जीभ फेरा और उसके चूत के ऊपर हाथ फेरने लगी।  माँ के हाथ लगते ही अर्चना रुक गई।  

माँ ने फिर अर्चना के चूत पर जीभ लगा दिया। उन्होंने एक हाथ से मेरे दोनों बॉल्स सहलाने शुरू कर दिए  और दुसरे से अर्चना के क्लीट को चाटने लगी।  अर्चना ने अब अपने कमर को आगे पीछे करना शुरू कर दिया।  मुझे वापस मजा आने लगा था। 

अर्चना – आह माँ , मजा आ रहा है।  जरा मेरे क्लीट को प्यार करो ना।  उफ्फ्फ हाँ।  उँगलियों से आह आह।  

माँ ने चेहरा हटा लिया था और अपनी उँगलियों से उसके क्लीट पर हरकत शुरू करनी शुरू कर दी थी।  अब अर्चना अपने चरम की तरफ पहुँचने वाली थी।  वो जब बैठती तो मेरे लंड पर पूरा जोर देते हुए एकदम अंदर तक लेती।  माँ के हाथ का जादू और मेरे तगड़े लंड का कमाल था कुछ ही देर में वो झड़ने लगी।  उसके चूत ने पानी छोड़ना शुरू कर दिया।  वो एक आखिरी बार उठी और धप्प से मेरे लँड़पर बैठ गई।  उसने अपने पैर सिकोड़ लिए और माँ के क्लीट पर जमे हाथों को अपने हाथो से पकड़ कर कांपने लगी।  उसने अपना शारीर आगे की तरफ झुका लिया और माँ के कंधे पर सर रख दिया।  वो तो झाड़ गई थी पर मुझे कुछ और धक्को की जरूरत थी।  मैं उसके आनंद को बिगाड़ना नहीं चाहता था।  उसके सँभालते ही कुछ देर बाद मैंने पीछे से धक्का लगाने की कोशिश की।  इस चक्कर में वो माँ के ऊपर ही गिर पड़ी। 

अब माँ निचे और वो उनके ऊपर लेती पड़ी थी। अब मुझसे बर्दास्त नहीं हो रहा था ।  मैं सोफे से उतरा और घुटने के बल होते हुए उसी स्थिति में पीछे से उसके चूत में लंड घुसा दिया। वो भी घुटनो के बल हो गई।  अब मैं उसे उसी पोज में चोदे जा रहा था।  उसका पिछले हिस्सा उठा हुआ था तो आगे का हिस्सा माँ के शरीर से सत्ता हुआ था ।  मेरे हर धक्के से उन दोनों का ऊपरी हिस्सा रगड़ खा रहा था।  माँ को मजा आने लगा था।  उन्होंने उसके होठो को अपने होठो से लगा लिया। 

कमरे में उनके चूमने चाटने की और मेरे थप थप की आवाज  गूँज रही थी।  माँ भी मस्त चुदाई के मूड में थी।  माँ भी अब अपने कमर को ऊपर उठा कर अर्चना के कमर पर मारने लगी थी जैसे उसे चोद रही हो।  माँ की इस हरकत को देख कर मुझे आश्चर्य हुआ।  वो ऐसे कम ही करती थी।  ऐसा शायद इस लिए था की अब तक उनके सम्बन्ध परिवार में ही बने थे और वहां कुछ हद तक संकोच था और हवस के साथ प्रेम भी था।  पर यहाँ उनके ऊपर हवस पूरी तरह से हावी था।  लग रहा था जैसे अर्चना को भोगने की इच्छा मुझसे ज्यादा उन्हें थी। 

हम तीनो की हालत देख जतिन का लौड़ा फिर से खड़ा हो गया था और वो बेचारा खुद ही मुठ मार रहा था। मुझे पता था की कुछ ही देर में उसका लंड पानी छोड़ देगा। पानी छोड़ने को तो मेरा लंड भी तैयार था।  अर्चना को समझ आ गया था।  उसने कहा  – एकदम अंदर तक पेल दो।  एक एक बूँद आदर तक जाना चाहिए।  आह और अंदर।  जोर से तेज और तेज। 

कुछ ही देर में हम दोनों एक साथ स्खलित होने लगे। अर्चना माँ के ऊपर लेट गई थी और मैं बैठे बैठे अपने माल को उसके चूत में आराम से निकलने दे रहा था। हम दोनों के कमर एक दुसरे से चिपके हुए था।  माँ भी झड़ चुकी थी। ताहि मैंने कुछ गरम गरम महसूस किया।  अर्चना भी चौंक गई और उठने लगी तो माँ ने उसे पकड़ लिया।  वो समझ गई।  कुछ पल में मैंने महसूस किया अर्चना ने भी अपनी गरम धार छोड़ दी थी।  मेरा लंड बाहर आ गया था तो मैं पीछे होकर सोफे पर पीठ टीका लिया।  माँ और अर्चना एक दुसरे को भिगो रही थी।  

अर्चना – माँ तुम सच में बड़ी चुदअक्कड़ हो।  इतनी गरम माल मैंने नहीं देखा अब तक। 

माँ – मैंने भी तुझसे नहीं देखा।  एकदम रंडी है तू। तुझे देख कर हवस ख़त्म ही नहीं होती। 

अर्चना – तभी तो इतना चोदू लौंडा पैदा किया है। 

वो माँ के ऊपर से उठती हुई बोलीं – पर एक अच्छा इंसान भी है।  मुझे लगा था पापा बन कर मेरा रेप करेगा आज पर जोर जबरजस्ती तो की पर लिमिट में। 

माँ – मैं भी चाहती थी आज ये साड़ी हदें पार कर दे पर बेचारा शरीफ है। थप्पड़ों पर रह गया बस। 

मैं – इतने से भी मजा नहीं आया तुम दोनों को। 

अर्चना ने मुझे किस किया और कहा – बहुत मजा आया पापा ।  तुम्हे क्या कहूं अब मैं।  बयान नहीं कर सकती। 

मैं – अब पापा कहना बंद करो।  अजीब लग रहा है। 

अर्चना हसंते हुए मेरे गले लग गई और बोली – भाई बोलूं बहनचोद।  तू बहाने पहले से चोद चूका है इस लिए बेटी बानी बेटीचोद। 

मैं – तुम्हे हमारे बारे में सब पता है। 

जतिन जो इतने देर से चुप था बोला – भाई , तुम्हारे आने से पहले ये दोनों कमरे में यही सब खुसुर पुसुर कर रही थी। 

माँ – तू सब सुन रहा था। 

जतिन ने चेहरा झुका लिया और कहा – क्या फायदा।  आज का दिन तो राज का ही है। 

माँ ने कहा – बेटा मुझे माफ़ कर दे।  मेरी चूत सबको नसीब नहीं होती।  पर तुझे दूध तो दिया न। 

जतिन ने कहा – कोई बात नहीं।  माँ की तरह बस दूध पिलाती रहो। 

अब हम सबको ठंढ लगने लगी थी।  मैंने कहा – सब बीमार पड़ जायेंगे।  

माँ ने अर्चना से कहा – जा नहा ले और कपडे पहन ले।  मैं जरा सब साफ़ कर देती हूँ । 

अर्चना – आप रहने दो मैं करती हूँ 

माँ- मेरा किया धरा है मैं ही साफ़ करुँगी। 

अर्चना – किया आपका और धरा मेरा। 

हम सब हंसने लगे।  मैं और जतिन कमरे में चले गए।  वो दोनों सफाई में लग गईं।  हम दोनों लौट कर आये तो देखा ड्राइंग रूम साफ़ हो चूका था।  कमरे में थोड़ी बहुत महक थी तो मैंने रूम फ्रेशनर ऑन कर दिया।  मैंने जतिन से कहा – रम पियेगा या फिर ब्रांडी। 

माँ कमरे से निकलते हुए बोली – ब्रांडी निकलना।  रम नहीं।  तुम पहले भी बहुत पी चुके हो।  अब मुझे भी चाहिए।  मैं खाने का बंदोबस्त करती हूँ। 

उसके बाद हम सबने खाना खाया और खाने के साथ ड्रिंक्स भी चला और उसका नतीजा ये हुआ कि शाम तक मैं और जतिन पूरी तरह से नशे में चूर होकर अपने कमरे में सो गए और माँ अर्चना उनके कमरे में चले गए।  रात करीब दो या तीन बजे होंगे मेरी नींद खुल गई।  मुझे जोर कि शुशु आई थी और मेरा लंड एकदम कड़क हो चूका था।  मैंने देखा जतिन मेरे बगल में बेसुध सोया हुआ था।  मैं किसी तरह से उठकर बाथरूम में गया। ड्रिंक्स के वजह से मैं काफी देर तक मूतता रहा।  मूतने के बाद मेरा लंड रिलैक्स होकर लाटकक गया।  लौटकर आया तो प्यास लग आई।  देखा कमरे में पानी नहीं था।  मैं कमरे से निकल कर किचन की तरफ गया।  कमरे से बाहर निकलते ही मुझे सिकियों की आवाज आने लगी।  मैं जब किचन के तरफ देखा मेरी ही नहीं मरे लंड की भी नींद खुल गई।  मेरे साथ साथ वो भी चौकन्ना हो गया। 

माजरा ये था कि माँ किचन के स्लैब से लग कर खड़ी थीं।  उनका चेहरा मेरे तरफ था। अर्चना निचे नंगी उनके पैरों के पास बैठी थी।  अर्चना उनके चूत को इस तरह चाट रही थी जैसे एक बिल्ली मलाई की कटोरी से मलाई चाटे जा रही हो।  माँ की आँखे बंद थी।  वो आनंद के सागर में गोते लगा रही थी।  उनकी सांस तेज चल रही थी जिस वजह से उनके स्तन ऊपर निचे हो रहे थे।  उन्होंने अपने दोनों हाथो से अर्चना के सर को पकड़ रखा था।  अर्चना घुटनो के बल आधे खड़ी आधी बैठी अवस्था में थी।  उसका हाथ माँ के जांघों पर था और उसका गांड थोड़ा निकला हुआ था।  मेरा मन कर रहा था पीछे से जाकर उसकी गांड मार लूँ।  पर माँ की स्थिति देख मुझे उन दोनों को डिस्टर्ब करने का मन नहीं कर रहा था।  मैं वहीँ चुपचाप खड़ा रहा।  कुछ देर बाद माँ के शरीर में कंपन शुरू हो गया।  उनका शरीर अकड़ने लगा।  मैं समझ गया वो बस झड़ने वाली हैं।  उन्होंने अर्चना के सर को अपने चूत पर दबा दिया और जोर से धक्का देते हुए झड़ने लगीं।  अर्चना भी बिना घबराये उनके एक एक बूँद को चाटने लगीं।  मैं माँ को चरम पर पहुँचता देख मंत्रमुग्ध सा हो गया था।  तभी माँ ने आँखे खोल दी और मुझे सामने देखते ही चौंक पड़ी।  

माँ – तू कब से खड़ा है ?

माँ की आवाज सुनका अर्चना भी पीछे मुड़ गई। 

मैंने कहा – कुछ देर से आप दोनों का ये अनोखा प्रेम देख रहा हूँ।  

माँ – ये इतना चटोर है पूछ मत।  इतना तो तेरी किसी बहन ने नहीं चाटा आज तक ?

मैं – हम्म।  मुझे लगा था इसका इंटेरेस्ट मुझमे है और इसे मुझसे बच्चा चाहिए।  पर तो ये तो आपकी चूत की गहराइयों में ही खो गई है। 

अर्चना हँसते हुए – नहीं हीरो।  तेरा लौड़ा तो मस्त है पर उतनी ही मस्त माँ की चूत भी।  मुझे मेरी माँ की तो नहीं मिली।  पर इस माँ की मिल रही है तो मैं लालच छोड़ नहीं पाई। 

मैं अब उन दोनों के पास पहुँच गया था।  मैंने फ्रिज से बोतल बाहर निकला और पानी पीते हुए बोला – अब तुम दोनों को इस स्थिति में देख कर जो मेरा लौड़ा खड़ा हुआ है उसको कौन शांत करेगा। 

अर्चना – ये बताओ किसको देख कर खड़ा हुआ है ये औजार ?

मैं माँ के पास पहुंचा और उनको चूम कर बोला – इतनी सेक्सी माँ ने जब तुम्हे मजबूर कर दिया तो सोचो मेरे जैसे का क्या होगा ?

अर्चना निचे ही बैठी थी उसने मेरे लौड़े को हाथ में लिया और बोली – तो ये मादरचोद अपने माँ का ही दीवाना है। 

मैं – हाँ डार्लिंग।  मुझे माफ़ करो पर मेरी माँ जब सामनेहोती है तो पहले उन्ही को चोदने का मन करता है। 

अर्चना – तो चोद लो।  उनकी चूत आज कुछ ज्यादा ही बेचैन हो रखी है।  शांत कर दो उसे , वार्ना मैं फिर से भीड़ जाउंगी।

मेरी बात सुनकर माँ के चेहरा गर्व से भर गया था। उन्हें नाज हो रहा था की एक जवान औरत के होते बुए भी मैं उन पर लट्टू हो रखा हूँ।  और ये सच बात है।  मैं सबसे ज्यादा अगर प्यार करता था तो माँ को ही।  मैं माँ की चूत में दिन भर घुसा रह सकता था।  अर्चना की ललकार सुनकर मैंने माँ को कमर से पकड़ कर स्लैब पर  बिठा दिया और अपना लौड़ा उनके चूत के ठीक सामने करके बोला – तैयार हो , अपने बेटे से चुदाई के लिए।  कहीं अर्चना से चुसवा कर संतुष्ट तो नहीं हो गई हो ?

माँ –  तेरे लौड़े से चुदने को तो हमेशा तैयार रहती हूँ।  आ चोद ले।  देख मेरी चूत तेरे  लौड़े को देख कर फिर से रोने लगी है। 

मैं माँ के सामने खड़ा हो गया और उनके चूत लंड डालते हुए बोला  – चिंता मत करो मेरा लंड हैं न उसके आंसू पोछने को। 

माँ – बस पेल दे मुझे।  

मैं माँ की चूत में धक्के लगाने लगा।  मेरे हर धक्के से माँ स्लैब पर पीछे जाती पर वो भी पक्का चुदास हो रखी थी।  मेरे गर्दन से बाहें डाले हुए और अपने पैरों से मेरे कमर को जकड कर वो भी उतने ही जोर अपने कमर को आगे कर लेती।  हम दोनों एक लय में एक दुसरे में समाये जा रहे थे।  पूरी रसोई एक अलग से गंध से भर चुकी थी और फच फच की आवाज गूँज रही थी।  अर्चना शुरू में तो निचे बैठे बैठे मेरे बॉल्स सहला रही थी पर बाद में वो भी स्लैब पर जगह बनाकर बैठ  गई।  बीच बीच में वो कभी माँ को चूमती तो कभी मुझे।  माँ की जबरजस्त चुदाई हो रही थी।  कुछ ही देर में मुझे महसूस हुआ माँ अब झड़ने वाली है।  उनका बदन अकड़ने लगा था और उन्होंने पैरों से मुझे जकड लिया था।  कुछ ही देर में उनका शरीर कांपने लगा और उनकी चूत के पानी से मेरा लंड नहाने लगा।  पर मेरा तो लंड जैसे अभी स्टार्ट ही हुआ था।  

माँ ने कहा – बस मेरा हो गया।  रुक जा मेरे लाल। 

मैंने कहा – माँ , अभी मेरे लंड ने तो शुरुआत ही की है।  अभी से ये हाल है ?

माँ- मुझे पता है इस समाया तेरे सामने अगर घर की साड़ी औरतें खड़ी कर दू तो तू सबको छोड़ सकता है।  

मैंने माँ को स्लैब से उतार दिया और उन्हें उस पर झुका कर घोड़ी जैसा बना दिया और कहा – पर मेरा मन तो अभी तुम्हे ही चोदने का है।  अगर चूत नहीं तो गांड ही सही। 

माँ – गांड नहीं।  अभी तो बिलकुल नहीं।  एक बार और चूत मार ले। 

मैं – ठीक है।  

मैंने पीछे से माँ के चूत में लौड़ा डाल दिया और उन्हें फिर से चोदने लगा।  अबकी अर्चना सल्ब पर बैठे बैठे माँ के एकदम सामने आ गई और उसने माँ को अपने ऊपर ले लिया।  अब माँ का शरीर उसके ऊपर झूल रहा था।  अर्चना उन्हें चूम रही थी।  उसके हाथ माँ के मुम्मो को दबा रहे थे।  माँ की मस्ती बढ़ गई थी।  

माँ – उह्ह , उफ़।  घोड़े जैसा लंड है तेरा।  मेरी चूत का कबाड़ा कर दिया। 

मैं – अभी तो तुम्हारी चूत को मेरे लंड से आंसू पूछवाने थे अब कबाड़ा हो गया। 

माँ – तेरे सामने एक और गदराया माल है और तू मेरे पीछे पड़ा है। 

मैं – वो तो साली रंडी है।  लौड़ा छोड़ चूत के पीछे पड़ी थी।  अब उसे क्यों चोदे ?

अर्चना – भोसड़ी के, मादरचोद तुझे माँ अच्छी लगती है ये कह ना।  मुझे क्यों दोष दे रहा है। 

मैं – रंडी साली छिनाल तेरा दोष नहीं है।  पर तूने लंड नहीं लिया तो मैं जबरजस्ती क्यों दू ?

माँ – इस्सस उफ़। मुझे रहने दो बस।  इसी को चोद।  अपना माल मुझ बुढ़िया पर मत बर्बाद करो । 

मैं – माँ तुमको बुढ़िया बोलने वाला नल्ला होगा।  बाहर निकलती हो तो लौंडे तक अपना लौड़ा एडजस्ट करने लगते हैं।  झुकती हो तो बूढ़े तक तुम्हारे ब्लॉउज में झाँक कर मुम्मे देखने की कोशिश करते हैं।  बुढ़िया तो तुम्हारी माँ भी नहीं होती। 

माँ – मेरी माँ की याद मत दिलाओ।  अगर वो होती तो सच में तुझसे चुद रही होती। उफ़ बस कर कितना चोदेगा। 

मैंने माँ के मुम्मे पकड़ लिया और उन्हें लगभग खड़े पोजीशन में कर दिया और जबरजस्त तरीके से चोदने लगा।  अर्चना भी खुल कर माँ को चूमे जा रही थी।  कुछ देर चूमने के बाद वो निचे उतर कर बैठ गई और उनके चूत को चाटने लगी।  अब माँ का बुरा हाल हो गया वो फिर से झड़ने लगीं।  इस बार उनका शरीर पूरा काँप रहा था।  उनसे खड़ा नहीं होया जा रहा था।  वो झड़ने के बाद लड़खड़ा कर गिरने लगीं तो मैं अपना लंड निकाल लिया और उन्हें बैठने दिया।  अर्चना ने मेरे भीगे लंड को मुँह में लपक कर ले लिया।  उसकी इस हरकत पर मैंने चटाक से उसके गाल पर झापड़ मारा और कहाँ – बहन की लौड़ी।  मेरे लड़को मुँह नहीं तेरी चूत चाहिए।  चल आजा , मेरे माल को चूत में ले।  

मैंने उसके बाल पकड़ कर उसे खड़ा कर दिया और उसे स्लैब पर झुका दिया।  मैंने उसके गांड पर भी एक थप्पड़ मारा और कहा – क्यों, बेरहम बाप से चुदना चाह रही थी न।  मन तो करता है तेरी गांड मार लू पर तुझे अपने बाप का बच्चा चाहिए।  

अर्चना – हाँ पापा।  मुझे अपनी बीवी बना लो।  भर दो मेरी कोख।  बना दो मुझे माँ।  मेरी सुनी कोख भर दो। 

मैं – पहले तेरी चूत का भोसड़ा बना दूँ। 

अर्चना – तुम्हारा जो मन करे बना दो पर बच्चा दे दो। 

मैं – साली बच्चा चाहिए या चुदाई  के मजे ?

अर्चना – दोनों। 

मैंने उसे और झुका दिया और उसके बालो को खींचे हुए कहा – पहले मुझे मजा दे।  

मैं तेजी से उसे चोद  रहा था।  माँ को समझ आने लगा की मैं शायद अब अपने चरम पर आ सकता हूँ। 

माँ बोली – इसे बिस्तर पर लेजा।  ढंग से चोद। 

मैं – चुप साली रंडी सलाह मत दे वर्ण तुझे फिर से छोड़ दूंगा। 

अर्चना ने मुहसे कहा – पीछे से मजा नहीं आ रहा है पापा ।  मुझे आपका लंड अंदर तक महसूस करना हैं।  चलो अंदर।  

मैं उसे उसी अंदाज में छोड़ता हुआ बोला – चल मेरी घोड़ी ऐसे ही चोदते हुए ले चलूँगा । 

मैंने उसे वैसे ही चोदते हुए धीरे धीरे लेकर किचन से निकल आया।  पर मुझे लगा की अब मैं जयदा देर तक नहीं टिक पाउँगा तो  मैंने उसे वहीँ सोफे पर पटक दिया।  मैं सोफे पर ही उसकी टांग उठा कर चोदने लगा। 

अर्चना – हाँ ऐसे ही चोदो मुझे।  और अंदर तक।  बस ।  उफ़ आह।  उसने मेरे कमर के दोनों तरफ से अपना पर लपेट लिया। मैं भी स्खलन पर पहुँच गया था।  मन अब हर धक्के से उसके अंदर तक घुस रहा था।  कुछ ही देर में मेरा लंड पिचकारी छोड़ने लगा।  उसने अपने चूत ो सिकोड़ कर मेरे लंड को एकदम से जकड लिया।  मैं उसके ऊपर लेट गया।  अर्चना ने मुझे पैरों और बाँहों दोनों से बाँध सा लिया था ।  उसकी चूत मेरे लंड को चूस रही थी। मेरे और उसके कमर के बीच हवा पास करने की भी जगह नहीं थी। उसने मुझे वैसे तब तक रखा जब तक मेरे लंड ने एक एक बूँद उसके चूत में नहीं उतार दिया।  बल्कि ये कहना चाहिए की उसके चूत ने मेरे लंड को  तब तक नहीं छोड़ा जब तक मेरे पानी का एक एक बूँद उसके बच्चे दानी तक नहीं पहुंचा। लगभग पांच मिनट तक जकड़े रहने के बाद उसने मुझे आजाद किया।  उसके चेहरे पर पूरा इत्मीनान था।  

उसने कहा – थैंक यू।  मुझे पक्का यकीन है , इस बार की चुदाई से मैं माँ बन जाउंगी। 

मैं उठकर उसके पैरों की तरफ बैठ गया था।  उसने अपने दोनों पेअर मेरे जांघो पर रख दिया था।  माँ किचन से ठंढी बियर लेकर आई। 

माँ ने मुझे बियर की बोतल थमाई और अर्चना से कहा – फिर तो अब तुझे चुदाई नहीं चाहिए। 

अर्चना – ही ही ही।  चुदाई से मन कहाँ भरता है।  ख़ास कर ऐसा चोदू जब सामने हो तो। 

वो लेटे लेटे ही बियर के सिप लगा रही थी।  माँ मेरे गोद में आकर बैठ गई थी।  माँ को किसी भी बाहरी से इतना खुलते मैंने कम ही देखा था।  वो भी इतना जल्दी।  जरूर अर्चना के साथ किसी जन्म का कोई तो सम्बन्ध रहा होगा। हम तीनो वहीँ बैठे रहे।  मैं माँ के स्तनों से खेलता रहा और बियर भी पीता रहा। अर्चना उठ नहीं रही थी।  वो मेरे वीर्य को अपने अंदर तक जाने देना चाहती थी।  

मेरा और माँ का बियर ख़त्म हो गया था पर हलके शुरूर ने फिर से कमाल करना शुरू कर दिया था। माँ सोफे पर मेरी तरफ मुँह करके गोद में बैठ गईं और हम दोनों एक दुसरे के शरीर के साथ खेलने लगे।  उन्होंने अपने स्तनों को पहले तो मेरे सीने पर धकेलना शुरू किया लग रह था जैसे मेरे छोटे छूटे चुचकों से अपने निप्पल को टच कराने की कोशिश  कर रही हो।  फिर मुझे धक्का देखा सोफे के बैक रेस्ट पर लिटा सा दिया और फिर मेरे चेहरे , फिर गर्दन और सीने को चाटने लगीं।  उनकी इस हरकत से मेरा लंड फिर से पुरे शबाब पर आ गया था। पता नहीं उन्हें कैसा नशा हो गया था।  उनका मन भर ही नहीं रहा था।  उन्होंने मेरे लंड को चूत की पंखुड़ियों के बीच में फंसा लिया था और कमर को आगे पीछे कर रही थी।  अर्चना ने हम दोनों को देखा तो बोली – गजब की आग आप दोनों में है।  मैं जा रही हूँ।  अब ठंढ लग रही है। 

माँ – मेरे अंदर तो आग लगी हुई है। 

मैं – अर्चना , तुमने कोई दवा तो नहीं दे दिया है इन्हे ?

माँ ने अपने कमर को हिलाते हुए कहा – मुझे चुदने के लिए कोई दवा नहीं चाहिए होती है।  माँ बाप के खून का असर है।  कभी कभी ऐसा होता है की चिंगारी अगर भड़क जाती है तो शांत नहीं होती। 

मैं – पापा का तो बुरा हाल हो जाता होगा। 

माँ – उफ़ मत पूछो।  पर संभाल लेते थे। 

मैं – मैं भी संभाल लूंगा। 

माँ – मुझे पता है। 

माँ ने अब मेरे लंड को चूत में निगल लिया और मुझे पर उछलने लगीं थी।  मुझे पता था मेरा लंड इस बार देर से झड़ेगा।  माँ सोफे पर मेरे ऊपर बैठे बैठे ही मुझे चोद रही थी।  उन्होंने अपने स्तन उठा कर मुझे कहा – चूस ले।  पी जा।  

माँ पाना स्तन मर्दन भी करवाना चाह रही थी।  पर ये सिर्फ माँ के दिमाग का फितूर था।  हवस की आग मन के अंदर ही थी।  कुछ ही देर में माँ झाड़ गईं।  मुझे पता था इस बार मेरा लंड कुछ नहीं कर पायेगा।  माँ मेरे ऊपर ही लेटी रही और बोली – माफ़ कर दे।  

मैं – अरे माँ।  माफ़ी क्यों मांग रही हो। 

माँ – पता नहीं कैसी हवस चढ़ गई है।  पर तू इस बार फारिग नहीं हो पायेगा। मेरी चूत में अब जलन हो रही है। 

मैं – तुम ही तो उस पर अत्याचार कर रही हो।  बेचारी को इतना चटवा दिया और फिर उसकी कुटाई भी करवा दी। 

माँ – पर मन को ना जाने क्या हो गया है।  

माँ मेरे गोद में बैठी थी।  मैंने उनके पीठ को सहला रहा था।  कुछ देर बाद मैंने देखा माँ मेरे गोद में सो गई थी।  मुझे उन पर बहुत प्यार आ रहा था।  मैंने उन्हें गोद में उठाया।  वो गहरी नींद में थीं।  मैं गोद में लिए लिए उनके बैडरूम में ले गया और धीरे से बिस्तर पर लिटा दिया।  बिस्तर पर अर्चना पीठ के बल बेसुध सोइ थी।  उसके हर सांस से उसके बड़े बड़े स्तन ऊपर निचे हो रहे थे।   मैंने माँ को उसके बगल में सुला दिया।  बिस्तर पर पड़ते ही माँ ने करवट लिया और अपने पैरों को अर्चना के ऊपर रख दिया।  नींद में अर्चना ने भी अब करवट लिया।  दोनों एक दुसरे के बाहों में सो गईं।  मैंने अपने लंड को देख कर कहा  – भाई अब तुझे खुद से शांत होना पड़ेगा।  

मैं वापस किचन में आया। चार बज चुके थे।  अबकी मैंने एक जग ठंढा पानी पिया फिर कमरे में जाकर लेट  गया।  

अर्चना के आने से घर में एकदम रंडीखाने जैसा माहौल हो रखा था।  उसने माँ के अंदर की आग जगा दी थी।  बिस्तर पर पड़ते ही मुझे भी नींद आ गई। 

अगले दिन , मैं और जतिन सोये हुए थे की अर्चना कमरे में आई और जगाते हुए बोली – उठो , कितनी देर तक सोना है ? दोपहर होने को आ गया। 

जतिन – सोने दो न दी। 

अर्चना – उठ हरामखोर कितना सोयेगा।  अपना घर नहीं है।  उठ घर भी चलना है।  तेरे जीजा का दो बार फ़ोन आ गया। 

जतिन आँख मलते मलते उठ गया।  आवाज सुनका मैंने भी आँख खोला।  देखा अर्चना सलवार सूट में थी।  लगभग तैयार। मेरा सर घूम रहा था।  अर्चना ने कहा – उठो भाई।  

मैं – भाई ये है।  मैं बाप हूँ। 

अर्चना हँसते हुए बोली – ठीक है पापा जी उठ जाइये ।  आपकी घरवाली नाश्ता तैयार कर चुकी है। 

मैं –  ओह्हो।  वो भी थकती नहीं हैं।  चार बजे तक चुदी हैं तब भी। 

ये सुनकर जतिन चौंक गया – भाई मेरे सोने के बाद भी तुम लोगों का खेल चला है क्या ?

अर्चना हंसती हुई बोली – तू जगा भी रहता तो क्या उखाड़ लेता।  चल अब उठ , घर चलना है।  घर बिखरा पड़ा होगा। 

मैं – अरे जाने की तैयारी ? 

अर्चना – हाँ , नाश्ता करके निकल जायेंगे।  पर चिंता मत करो।  अभी दो तीन दिन और हैं।  इसके जीजा को आने में टाइम है।  आज नहीं पर कल अब तुम माँ को लेकर वहीँ आना।  बचा खेल वहीँ खेलेंगे। 

मैं भी मन मसोस कर उठ गया।  कुछ देर बाद जतिन और अर्चना ने नाश्ता किया और अपने घर चले गए।  नाश्ता करके मैं फिर सो गया।  

माँ भी कुछ देर बाद मेरे बगल में सो गईं।  हमारी नींद विक्की के फ़ोन से खुली। कुछ देर इधर उधर की बात हुई फिर उसने बताया की उन्होंने सोनी के लिए फैक्ट्री देखि हैं जहाँ वो अपने सिलाई के कारखाने का सेटअप कर सकती है।  विक्की चाहता था मैं आकर देख लूँ।  मेरे हाँ के बाद ही वो फाइनल करना चाहते थे।  मैंने उसे एक हफ्ते का टाइम दिया और कहा एक हफ्ते बाद आऊंगा।  

अगले एक हफ्ते मैंने अर्चना की जबरजस्त चुदाई की।  कभी उनके घर तो कभी मेरे घर।  घर पर माँ मुझे अच्छी पौष्टिक चीजें खिलाती रहती थी।  उनका कहना था अर्चना के पेट में स्वस्थ बच्चा हो।  उन्होंने मुझसे सम्बन्ध बनाना छोड़ दिया था।  एक हफ्ते बाद अर्चना के पति वापस आ गए और हमारा मिलन भी बंद हो गया।  इधर बीच विक्की का कई बार फ़ोन आया था।  मैंने उसे दो दिन बाद आने का बोल दिया था। 

मैंने माँ से कहा कि वो भी हमारे साथ चलें पर उन्होंने मना कर दिया।  मैंने उनसे ज्यादा जबरजस्ती नहीं कि। 

मैंने विक्की को पहले ही बता दिया था कि मैं आ रहा हूँ।  वो बहुत खुश था।  उसने पीने सीने के बारे में पुछा तो मैंने कह दिया जैसा मन करे।  मैंने बता दिया कि जल्दी ही लौटूंगा क्योंकि माँ अकेली हैं और फिर मेरे फाइनल एक्साम्स भी है। 

 मैं शाम तक मौसा के घर पहुँच गया।  सोनी और मौसा अभी ऑफिस से नहीं लौटे थे।  घर में सिर्फ मौसी और विक्की थे।  विक्की ने मुझे देखते ही गले लगा लिया।  मैंने मौसी के पैर छुए तो उन्होंने मुझे गले लगा लिया। 

कुछ देर बाद मौसा और सोनी भी घर आ गए।  काफी देर तक बात चीत चलती रही।  विक्की ने ड्रिंक्स की बात की तो सोनी ने कहा – टाइम से सो जाओ , कल सुबह फैक्ट्री देखने चलने है।  उसका ये ऐटिटूड मुझे सही लगता था।  

रात मैं और विक्की उसके कमरे में सोने गए तो मैंने विक्की से पुछा – और भाई , अब तो सोनी के साथ मजे कर रहा है न। 

विक्की – यार मैं उसके साथ नहीं वो मेरे साथ मजे करती है।  साली बहनचोद जब उसका मन करता है तो पूरी तरफ से निचोड़ लेती है पर अगर उसका मूड नहीं है तो मैं कुछ भी नहीं कर सकता। 

मैं – यार लड़कियां अपने आप दे तभी सही है।  जोर जबरजस्ती गलत है। वैसे मौसी तो तेरा ख्याल रखती ही हैं।  

विक्की – हाँ , वो तो है 

मैं – और उस गदराई लौंडिया के साथ कुछ बना।  क्या नाम था उसका , अन्वी ना 

विक्की – हाँ , अन्वी।  नहीं यार।  साली वो तो एक नंबर की छिनाल है।  बस देख कर मजे लेती है।  हाथ नहीं लगाने देती। 

मैं – मौसा के क्या हाल हैं ? उन्हें तो अन्वी और उसकी माँ दोनों देती हैं। 

विक्की – हाँ यार।  पापा के मजे हैं।  वैसे उनका नेचर ऐसा है की कोई भी उनके निचे चला आये।  पता नहीं क्या जादू करते हैं।  

मैं – हाँ।  वो तो है।  नेचर भी अच्छा है और सबकी मदद भी तो करते हैं।  उनके पटाने का तरीका अलग ही है।  उनसे सीखना पड़ेगा। 

विक्की – मादरचोद , तू क्या सीखेगा।  तू तो उनका भी बाप है।  क्या जादू करता है सब निचे बिछ जाती हैं। और ये नया माल अर्चना कौन है ? जरा उसके बारे में बता। 

मैंने फिर उसे अर्चना के किस्से सुनाये और युहीं बात करते करते हम सो गए। 

सुबह सोनी ने जल्दी उठा दिया।  हम करीब नौ बजे निकल पड़े।  आज हमारे साथ मौसा भी थे।  रास्ते से हमने अन्वी को भी पिक किया।  जगह अच्छी पसंद की थी।  एक पुरानी बनी बनाई फैक्ट्री थी।  मालिक को पैसों की जरुरत थी तो सस्ते में बेच रहा था। कुछ इंटीरियर का काम करना था वार्ना सब कुछ था वहां पर।  जगह मुझे भी पसंद आई। फैक्ट्री  देख कर हम   जब वापस आने लगे तो अन्वी ने सबसे उसके घर चलने को कहा।  मौसा को ऑफिस जाना था पर उसके जिद्द के आगे झुक गए।  मैं और विक्की तो ये सुन खुश हो गए।  हमें उसकी माँ या फिर ये कहें की मौसा के माल को भी देखना था। 

सोनी ने हम दोनों से कहा – जीभ पर कण्ट्रोल रखना  कुत्ते की तरह लार मत टपकाने लगना। 

खैर हम उसके यहाँ पहुंचे तो  एक भरे हुए बदन वाली गोरी सी औरत ने हमारा स्वागत किया।  उन्हें देख लग ही नहीं रहा था की अन्वी की माँ होंगी।  एकदम उसकी कॉपी जैसे उसकी बड़ी बहन हों।  उन्होंने हम सबके लिए मिठाई और पानी का इंतजाम पहले से कर रखा था।  मौसा की तरफ विशेष ध्यान था।  मैं तो मैं विक्की भी पहली बार उनसे मिल रहा था।  सोनी की नजरें हम दोनों पर ही थी और उसकी वजह से हम सही ढंग से उन्हें ताड़ भी नहीं पा रहे थे।  वैसे गजब का माल थी।  मौसा को चौड़ी गांड वाली पसंद थी और इनका पिछवाड़ा भी मस्त था।  कुछ देर बात चीत करने के बाद हम सब वहां से निकल पड़े।  मौसा अपने ऑफिस चले गए और हम चारों सोनी के ऑफिस।  वहां लड़कियों ने जब सुना फैक्ट्री फ़ाइनल है तो सब खुश हो गईं।  सोनी ने उन सबके लिए मिठाई माँगा रखी थी। 

मिठाई खाते समय एक लड़की ने कहा – दीदी , वहां भी स्पेशल कमरा बनेगा न। 

सोनी ने उसे आँख दिखाई।  वो चुप हो गई।  लेकिन विक्की बोल पड़ा – कैसा स्पेशल कमरा ?

तन्वी – कुछ नहीं।  लड़कियों का मसला है। 

मैं – हम्म। 

फिर हम सोनी के ऑफिस में बैठ गए।  

विक्की के मन में बात बैठ गई थी।  उसने कहा  – सोनी कैसा स्पेशल कमरा बनवा रही हो ? यहाँ भी ऐसा कुछ है क्या ?

सोनी ने अन्वी की तरफ देखा फिर दोनों मुश्कुरा उठीं।  

अन्वी – बता दे यार  बिजनेस पार्टनर हैं।  पता तो चलना चाहिए। 

सोनी – पर यार ये लड़कियों की प्राइवेसी का मामला है। 

मैं – रहने दो फिर।  ये तुम्हारा अपना मसला है।  हमें ज्यादा अंदर नहीं घुसना है। 

अन्वी – बहनचोद , चूत में घुस चूका है और कह रहा है अंदर नहीं घुसना है। 

मैंने आश्चर्य से उसकी तरफ देखा तो वो बोली – ऐसे मत घूरो।  मुझे सब पता है।  जैसे तुम्हे मेरा और माँ का अंकल के साथ का पता है वैसे मुझे तुम सबका पता है। 

सोनी – मुझमे और अन्वी में कोई परदा नहीं है। 

विक्की – बहनचोद कोई पर्दा नहीं है तो छुपा क्यों रही है। 

अन्वी – रुको मैं आती हूँ फिर बात करते हैं। 

अन्वी फिर बाहर चली गई।  कुछ देर बाद आई ौरसोंई से कहा – लड़कियों को कोई ऐतराज नहीं है।  कह रही हैं घर के लड़के हैं। अंकल ने देखा ही हुआ है अब इनसे कुअछुण्णा।  दिखा दो उनको स्पेशल कमरा।   

सोनी हमें लेकर बाहर आई।  उसके वर्कशॉप में एक कोने में एक दरवाजा था।  वो खोल कर हमें वहां ले गई।  उस कमरे में भी सिलाई वगैरह के सामान थे।  बस थोड़ा कलरफुल था। 

विक्की ने कहा – ख़ास क्या है ?

अन्वी ने कमरे के एक कोने में रखे अलमीरा को खोल दिया।  अलमारी देखते ही हमारी आँखें फटी की फटी रह गईं।  उसमे अलग अलग तरह के सेक्स टॉयज थे। लुब्रिवेन्ट्स, मैगज़ीन , और कुछ सीडी थे।  ये सब देख मुझे समझ आ गया।  

अन्वी ने कहा – ये न्यूड रूम है।  जब लड़कियाँ को गर्मी चढ़ती है तो यहाँ काम करती हैं।  काम करते करते मजे भी।  मर्दों से चुदने से अच्छा है यहाँ खिलोने से मजे ले ले। 

सोनी – और आपस में भी। 

मैं – ये आईडीया किसका था ?

सोनी – लड़कियों का ही था।  बताउंगी तुम्हे शाम को। 

विक्की ने एक वाइब्रेटर लिया और अन्वी को दिखते हुए कहा – तुम कौन सा इस्तेमाल करती हो ?

अन्वी हँसते हुए – तेरी बहन की जीभ से बढ़िया वाइब्रेटर नहीं मिलेगा।  फिर तेरे पापा का असली वाला है न। 

विक्की – असली वाला तो मेरे पास भी है।  हमसे भी सेवा ले लिया करो। 

अन्वी – तू अपनी माँ और बहन चोद। 

विक्की – तू भी तो मेरी बहन जैसी है। 

अन्वी – कम बोल, वार्ना जो तेरे हाथ में है तेरे गांड में डाल दूंगी। 

ये सुन विक्की ने मुँह बना लिया।  मैं और सोनी हंस पड़े। सोनी ने उसके गाल पर एक किस देते हुए कहा – सब समय पर होता है भाई।  जब कोई अपने मन से दे तभी लेना। अभी अन्वी तैयार नहीं है।  तू सुधा दी के ससुराल के चक्कर काट आ।  वहां तेरा इंतजार करती अपनी डार्लिंग का तो सोचो। 

विक्की ने कुछ नहीं कहा।  हम सब उस कमरे से बाहर निकले तो लड़कियां हमें देख मुश्कुरा रही थी।  उसमे से एक दुबली लड़की बोली – भैया , वहां इससे अच्छा कमरा चाहिए।  थोड़ा बड़ा। 

सोनी – भइआ का ही बहुत बड़ा है।  लेगी क्या ?

लड़की – तुम इजाजत दो तो ले लुंगी। 

बाकी लड़कियां भी खिलखिला उठी।  अन्वी ने उसे तरेर कर देखा तो वो लड़की चुप चाप अपना काम करने लगी।  कुछ देर वहां रहने के बाद मैं और विक्की वहां से निकल पड़े।  हम दोनों खामोश थे।  दोनों के दिमाग में यही चल रहा था की लड़कियां जब खुलती हैं तो लड़कों को पीछे छोड़ देती हैं।  सोनी भी कमाल की थी।  सबका ख्याल रखती थी। 

विक्की कुछ देर बाद बोला – गजब माहौल है भाई। 

मैं – ज्यादा मत सोच।  तेरे लिए कोई जुगाड़ नहीं है। 

विक्की – पर ये सब हुआ कैसे होगा ?

मैं – आज दारू पर सोनी ही बताएगी या फिर मौसा। 

फिर हम घर की तरफ चल पड़े।  आज रात फिर एक राज खुलने को था।  और ये राज कमाल का था।  सोनी और मौसा के चरित्र का एक और पहलु सामने आने वाला था 

शाम को जब सब खाने पर बैठे तो विक्की और मैं बार बार सोनी की तरफ देख रहे थे।  सोनी से आखिरकार रहा नहीं गया।  वो बोली – पूछ क्या पूछना है ?

मौसी – क्या पूछना है इन दोनों को ? फैक्ट्री पसंद नहीं आई क्या ?

मैं – अरे नहीं मौसी , फैक्ट्री तो पसंद है। 

मौसा – और मैंने कुछ और एडवांस दे दिया है।  बस एक आध महीने में पुरे पैसे का जुगाड़ हो जायेगा तो कागजी कार्रवाई भी करवा लेंगे । 

मैं – पैसे की चिंता मत करिये।  मैंने भी इंतजाम किया है। 

मौसी – ये तो बढ़िया खबर है।  फिर इनका मुँह क्यों लटका है ?

सोनी – इनको सीक्रेट रूम के बारे में जानना है। 

मौसी – ये सीक्रेट रूम की क्या कहानी है ?

विक्की – वही तो हम भी जानना चाहते हैं। 

मौसा को मुस्कुराता देख मौसी बोल पड़ी – आपको पता है ?

मौसा – हाँ। सोनी की साड़ी बातें मुझे पता है।  वो मुझसे  कभी कुछ नहीं छुपाती है।  

मौसी – अन्वी  या  उसकी  माँ  के अलावा  भी तुम  दोनों के राज हैं क्या ?

सोनी – हाँ।  बताती हूँ।  खाना तो खा लो । 

मैंने और विक्की ने खाने में ऐसी रेस लगाई की मौसी को ही कहना पड़ा – अरे आराम से खा लो।  ये कहीं भागी नहीं जा रही। 

खैर खाना खाने के बाद महफ़िल फिर से मौसा के आंगन में शुरू हुई।  इस बार वापस से सोनी मौसा के साथ झूले  पर बैठने जा रही थी की मैं बोल पड़ा – आजा , सिर्फ मौसा से ही झूला झुलेगी क्या ? मेरे पास भी है झुलाने के लिए । 

सोनी ये सुनकर मेरे पास आई और मेरे गोद में बैठ गई।  उसने एक छोटी सी स्लिप पहनी हुई थी और निचे एक पैंटी।  ऊपर ब्रा नहीं पहना हुआ था।  वो एकदम से मेरे लंड पर ही बैठी थी। अब मौसी और मौसा झूले पर थे।  बेचारा विक्की ये देख मुँह बना लेता है।  उसके लटके  चेहरे को देख मौसा बोले –  तू यहाँ आजा।  

मौसा उठ कर दुसरे चेयर पर बैठ गए।  विक्की झूले में मौसी के गोद में सर रख कर लेट गया। 

अब सोनी ने उस रूम की कहानी शुरू की। 

 ————————————————सीक्रेट रूम की कहानी सोनी की जुबानी ————————————–

ये तब की बात है जब मैंने अपनी बुटीक शुरू ही की थी।  मेरे पास दो तीन लड़कियां ही थी।  पापा ने एक छोटी सी दूकान दिलाई थी।  दूकान से सट्टे हुए दो तीन दूकान और थी।  बुटीक में सिर्फ एक कूलर हुआ करता था।  लड़कियों में तन्वी भी थी और उसी ने अपने कुछ और दोस्तों को बुला लिया था। हमारा काम चल पड़ा था।  धीरे धीरे हम करीब दस लड़कियां हो गेन थी।  मैंने अंदर से कनेक्टेड एक और दूकान ले लिया था  दुसरे को अपना ऑफिस और नाप लेने वाली जगह बना ली थी।  हमारी ग्राहक अब कम्फर्टेबली नपाई दे सकती थी।  ये आल गर्ल्स शॉप थी  तो सिलाई का काम देने वाली बिलकुल बिंदास आती थी।  धीरे धीरे स्टाफ लड़कियां भी आपस में खुल गईं थी।  मेरी शख्त हिदायत थी की लड़कियां किसी लड़के को कभी अंदर नहीं लाएंगी।  उनके रिश्ते उन्हें बाहर ही रखने थे।  

सब सही चल रहा था। मैंने सभी का ड्रेस कोड भी बना दिया था।  मैं नहीं चाहती थी की लड़के हमारे दूकान के आगे पीछे  चक्कर  काटें।  पर लड़कियों ने मुझसे शिकायत शुरू कर दी।  उनका कहना था बाहर से अंदर तक आने के लिए ड्रेस कोड तो ठीक है पर अंदर गर्मी रहती है।  उन्हें कुछ फ्रीडम मिलनी चाहिए।  आखिर मैंने उनसे कह दिया की वो अपने हिसाब से कुछ कपडे ला सकती हैं और पहन सकती हैं। नतीजा ये हुआ की लड़कियां हाफ पेंट , टी शर्ट , स्लीव्स इत्यादि लेकर आ गईं और उसे पहनने लगीं। फ्री वाली लड़कियां अंदर के रूम इ रहती थी।  पर जैसा कि होता है , लड़कियां हर तरह की थीं।  कुछ को ये गलत भी लगा। मैंने उन्हें किसी तरह मना लिया।   मैंने तब जाकर सबके लिए कॉन्ट्रैक्ट बनाया।  उसमे सबको साफ़ साफ़ मानना था की अंदर की बात बाहर नहीं जाएगी।   कोई कैमरा या मोबाइल से फोटो नहीं लेगा।  अपनी हरकतों की खुद वो जिम्मेदार होंगी इत्यादि इत्यादि।  मेरा मकसद खुद को सेफ रखना था और लड़कियों की बदनामी भी नहीं होने देनी थी।  

पर एक दिन हद हो गई । गर्मी ज्यादा थी तो एक लड़की ने अपना टी शर्ट भी उतार दिया।  वो सिर्फ ब्रा और पैंटी में थी।  वो लड़की और कोई नहीं तन्वी थी।  उसकी इस हरकत पर सब सकते में आ गए।  पहले तो कुछ लड़कियां हंसने लगीं।  कुछ ने चेहरा निचे कर लिया पर थोड़ी देर बाद मैंने देखा कुछ और लड़कियों ने वैसा किया।  मुझे ये देख बहुत गुस्सा आया।  मैं अंदर पहुंची और उनसे बोलने लगी की ये हरकत सही नहीं है।  वो आजादी का नाजायज फायदा उठा रही हैं।

उस पर तन्वी बोल पड़ी – कभी लड़को के टेलर शॉप में गई है ? कई तो सिर्फ बनियान में रहते हैं।  हमें गर्मी लगे तो हम क्यों सहें। 

मैं – उनसे क्या तुलना ? अगर किसी ने देख लिया तो ? बदनामी होगी। 

तन्वी – इतना कमा रहे हैं।  तीसरा कमरा भी ले लो।  उसमे जिन लड़कियों को एकदम फ्री रहना हो रह लेंगी। 

मैं – उसके बदले मैं एसी लगवा रही हूँ।  

तन्वी – बात गर्मी की ही नहीं है।  हमें अपने हिसाब से रहने दो न । 

मैं – आज तुम फ्री रहने को बोल रही हो।  कल एक दुसरे के साथ लेस्बियन रिलेशन को भी बोलोगी , परसों सेक्स टॉय की बात करोगी। 

ये सुन उनमे से एक लड़की बोल पड़ी – ये सब पहले से हो रहा है। 

अब चौंकाने की बारी मेरी थी।  मैंने कहा – क्या ?

तन्वी हँसते हुए कोने में बैठी दो लड़कियों की तरफ देखते हुए बोली – वो जिन्हे तुम सीता और गीता की जोड़ी कहती , वो बहनें नहीं हैं लव बर्ड्स हैं।  बाकी तुम शीला का ड्रावर खोलो , उसमे वाइब्रेटर मिल जायेगा।  

मैंने माथा पकड़ लिया।  मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था।  मेरी हालत देख सबने कहा – दीदी,  अगर तुम चाहती हो तो हम ये सब बंद कर देंगे। हमें अपनी नौकरी प्यारी है।  आपका काम नहीं छोड़ना है। 

मैं बिना पूरी बात सुने अपने केबिन में चली आई।  तन्वी ने इशारा किया तो एक लड़की ने दूकान का शटर बंद कर दिया।  तन्वी मेरे केबिन में ब्रा और पैंटी में आई और उसने केबिन का दरवाजा बंद कर दिया।  

वो मेरे चेयर के पास आई और मेरे हाथ को अपने हाथ में लेकर बोली – अगर तुम्हे ये सब पसंद नहीं है तो हम सब वापस अपने पुराने रूप में चले आएंगे।  पर ये मत भूलो की यहाँ काम करने की आजादी की वजह से ही लड़कियां बिना किसी शिकायत के कम पैसों में भी काम करने को तैयार हैं। 

मैं तन्वी की बातें सुनते हुए उसके शरीर को देख रही थी।  उसका गदराया शरीर मुझे अपनी तरफ आकर्षित कर रहा था।  मैं घर के खुले माहौल में शामिल नहीं होना चाहती थी पर बाहर इस तरह के मजे लेने की चाहत जागने लगी थी।  मुझे  माँ , विक्की और पापा के सेक्स की बातें पता थी।  कई बार उन्हें करते देखा था पर मुझे वो सब अजीब लगता था।  मैं उसके लिए तैयार नहीं थी।   पापा से कोई शिकायत नहीं थी।  और आज अजीब लग रहा था।  

जब तन्वी ने देखा मैं उसकी बातें नहीं सुन रही बल्कि उसके शरीर में कहीं खोई हुई हूँ तो उसने झुक कर मुझे किस कर लिया।  उसने जैसे ही मुझे किस किया मेरे तन बदन में आग सी लग गई।  मैंने उसे अपने गोद में खींच लिया।  हम दोनों एक दुसरे में खो गए।  कुछ ही देर में मेरे बदन से भी सारे कायदे उतर गए।  तन्वी तो पहले से तू पीस में थी।  मेरे कपडे उतारते ही तन्वी मेरी चेयर के पास बैठ गई और उसने मेरे चूत पर मुँह लगा दिया।  मैं जवान थी , अपने चूत में खुद से उँगलियाँ तो कई बार की थी पर अभी तक किसी और ने मेरे शरीर पर हाथ नहीं लगाया  था।  तन्वी के जीभ में जादू था।  उसके चूत चाटने की कला की कायल तो मैं कुछ ही देर में हो गई।  अब मुझे समझ आ रहा था माँ विक्की को पेटीकोट में क्यों घुसा लिया करती थी।  माबीना अपनी चूत चटवाये विक्की से चुदती नहीं थी ।  ऐसा क्यों था आज मुझे समझ आया।  मेरे सारे बदन में चींटिया सी रेंग रही थी।  तन्वी मेरे चूत से खेल ही रही थी की कमरे में शीला ने एंट्री की।  उसने भी कुछ नहीं पहना हुआ था।  वो मेरे चेयर के पास आकर मेरे स्तनों से खेलने लगी।  अब मेरे ऊपर दो तरफा वार हो रहे थे।  शीला ने ना सिर्फ चेयर के पास आकर मेरे स्तनों को दबाना शुरू किया बल्कि अपने स्तन मेरे मुँह में ठूंस दिए।  

अब तन्वी ने अपनी एक ऊँगली मेरे चूत में डाल दी थी और होठों से मेरे क्लीट को चूस रही थी।  मैं पता नहीं किस दुनिया में पहुँच गई थी।  कुछ देर की चूत चुसाई के बाद मेरा बदन अकड़ने लगा था।  पुरे शरीर में कंपन होने लगा था।  मैं समझ गई अब मैं ओर्गास्म पाने वाली थी।  और सच में कुछ देर में मेरी चूत में बाढ़ सी आ गई।  मेरा पूरा शरीर काँप रहा था जिसे शीला ने संभाल रखा था।  जब मैं स्थिर हुई तो देखा की तन्वी का पूरा होठ गीला था।  मेरी आँख अपने आप बंद होने लगी।  कक ही पल में चूमने की आवाज से मैंने आँखें खोली तो देखा शीला और तन्वी आपस में भिड़े हुए थे।  शीला तन्वी के मुँह में लगे मेरे रस को चाट रही थी। 

अपना आनंद और उन दोनों को उस हालत में देख मैंने कहा – अब बस करो।  ये सब बाद के लिए। 

शीला – वाह मेरी जान , अपना होते ही हमें बीच में छोड़ दिया ?

मैं – मैंने ये सब शुरू करने को नहीं कहा था। 

तन्वी – ये सब छोडो।  ये बताओ मजा आया की नहीं ? 

मैं – तुमसे झूठ नहीं बोलूंगी।  सच में पहली बार इतना मजा आया है।  

तन्वी – फिर क्या सोचा लड़कियों के डिमांड के बारे में। 

मैं – अगर तुम सबको कोई दिक्कत नहीं तो मुझे भी कोई दिक्कत नहीं।  मैं तीसरा कमरा भी लेने की कोशिश करती हूँ।  वो छोटा है और वहां जिसे जो करना है कर सकता है।  बाकी बाहर वाले कमरे में कोई शरारत नहीं। 

ये सुन दोनों ने मुझे चूम लिया। 

मैंने शीला से कहा – जाकर सबको बता दो।  शीला के बाहर जाते ही मैंने तन्वी को अपने टेबल पर पटक दिया और उसके चूत पर भीड़ गई।  मुझे भी उसके चूत को चाट कर बहुत मजा आया। 

कुछ महीनो बाद वो सीक्रेट कमरा भी बन गया।  उसमे लड़कियां अधिकांश या तो नंगी होकर काम करती हैं या फिर सिर्फ ब्रा पैंटी में।  आपस के अलावा वहां सेक्स टॉयज भी रखे होते हैं जिससे वो मजे ले लेती हैं।  

——————————————–वर्तमान समय – —————————————

सोनी के कहानी सुनाते सुनाते में हम सबका कार्यक्रम चालू हो चूका था।  सोनी की पैंटी उतर चुकी थी और मेरा लंड उसके चूत में था।  पर सोनी उसके कण्ट्रोल में थी।  वो बड़े आहिस्ता आहिस्ता कहानी सुनाते सुनाते मेरे लंड से अपने चूत को मथ रही थी।  उधर मौसी की चुदाई चालू थी और विक्की खलास होने वाला था। पर संयम तो मौसा में था।  वो बड़े मजे से व्हिस्की का सिप लेते हुए हमारी चुदाई देख रहे थे। 

सोनी को चोदते चोदते मैंने कहा – यार पर मौसा , तन्वी और उसकी माँ की कहानी कब शुरू हुई ?

सोनी – उसके बाद ही। 

मैं – कैसे ?

सोनी – वो कल खुद तन्वी और उसकी माँ से सुन लेना।  कल उन्होंने तुम दोनों को बुलाया है।  

मौसी – बहनचोद , ये दोनों वहां नहीं जायेंगे।  उन दोनों को यहाँ बुला।  जो होगा मेरे सामने होगा।  वैसे भी उस तन्वी मादरचोद और उसकी माँ से मिले काफी दिन हुए।  साली ने मेरे मर्द को ले लिया।  अब मैं उन दोनों की लुंगी।  

सोनी – ठीक है।  भड़क क्यों रही हो।  मैं बोल दूंगी।  यहीं आ जाएँगी वो दोनों।  

मौसा – कल सोच रहा हूँ मैं भी छुट्टी कर लू। 

मौसी – हम्म , बेटीचोद तुम तो जरूर छुट्टी ले लेना।  

विक्की अब तक खलास हो चूका था।  मौसी संतुष्ट नहीं हुई थी।  मौसा उठ कर उनके पास पहुंचे और उनके बदन से खेलने लगे।  विक्की थक कर अंदर मूतने चला गया था।  सोनी अब मेरे लंड पर तेजी से कूद रही थी।  मेरा लंड अपना माल छोड़ने के लिए बेकरार था।  

पर उससे ज्यादा बेकरार कल के लिए था।  कल तन्वी और उसकी माँ मिलने वालीं थी।  दो नई चूतें मेरे लंड के नसीब थी।  कल का दिन रंगीन होने वाला था। 

अगले दिन सुबह सोनी ने अन्वी  के यहाँ फ़ोन किया।  अन्वी  ने अपनी माँ से बात की।  पर उन्होंने मना कर दिया।  उनके विचार से परदे के पीछे से जो हो रहा है वो भी गलत है।  इस खुल्लम खुल्ला सेक्स और मस्ती तो बिलकुल ही गलत होगा। ये सब सुनकर सबका  मुँह उतर गया।  तब मौसी ने अन्वी  से कहा – जरा उसकी माँ को फ़ोन लगा।  मैं बात करती हूँ। 

मौसी ने फिर तन्वी की माँ से अलग जाकर बात की।  ना जाने क्या बात हुई पर मौसी ने कहा – वो दोनों आने के लिए तैयार हो गई हैं। 

सबके चेहरे पर ख़ुशी की लहर दौड़ पड़ी।  सोनी ने भी अपनी माँ का लोहा मान लिया।  अब मुझे भी समझ आने लगा था सोनी के इतना आगे बढ़ने में माँ बाप दोनों के जींस का हाथ था। सोनी तैयार होकर ऑफिस चली गई।  उसने कहा था की लंच तक आ जाएगी। मौसा ने पहले हो छुट्टी ले ली थी। मौसी किचन में खाने में लग गई थी। उन सबको खाने के टाइम ही आना था।  प्लान था की अन्वी  और सोनी दोनों लंच तक आ जाएँगी और तन्वी की माँ को लेते हुए घर आएगी।  मैं , मौसा और विक्की तब तक आपस में बैठ कर बिजनेस प्लानिंग करने लगे।  हमें फैक्ट्री के दाम के हिसाब से पैसों का जुगाड़ भी करना था।  माँ ने पहले ही बता दिया था की पिताजी की काफी सेविंग है जो खर्च नहीं हुई है।  उसे मैं लगा सकता था।  पर मैं सब खर्च नहीं करना चाहता था।  पर मौसा ने भी काफी बचा रखा था।  चूँकि इस इन्वेस्मेंट से विक्की और सोनी दोनों सेट हो जाते , इस लिए वि सब कुछ दांव पर लगाने को तैयार थे।  मौसी ने उन्हें दोनों बच्चों की शादी का याद दिलाया तो वो बोले , उसके लिए अलग से रेकरिंग कर राखी है। मौसा काफी समझदार थे।  वैसे भी विक्की का मामला सेट था तो ज्यादा खर्च नहीं होने वाले थे।  सुधा दी के ससुराल वालों ने भी पैसा जोड़ रखा था। सोनी का पता नहीं था। 

खैर ये सब करते करते दोपहर हो गई।  मौसी ने खाना बना कर नहा लिया था।  हम सब भी बीच बीच में नहा धोकर आ चुके थे। 

दोपहर में सोनी, तन्वी और उसकी माँ आ गई। अन्वी  ने एक टाइट पेंट और टी शर्ट पहना हुआ था।  उसके पेंट के अंदर से पैंटी लाइन क्लियर दिख रही थी।  सोनी तो बिजनेस अटायर में थी।  फॉर्मल शर्ट , पेंट। उसका पेंट भी टाइट था।  उसके शर्ट में आगे बटन लगे थे जिसमे से ऊपर के कुछ खोल रखे थे जिससे उसके चूचियों की नालियां साफ़ साफ़ दिख रही थी। अन्वी  की माँ ने एक सुन्दर सी गुलाबी साडी पहनी हुई थी। साडी थोड़ी ट्रांसपेरेंट थी। 

मौसी और मौसा ने अन्वी और उसी माँ का स्वागत किया।  कुछ देर हम सब ड्राइंग रूम में बैठे थे।  मौसी ने कुछ चाय , माश्ता करवाया।  पुरे समय मैं और विक्की सिर्फ अन्वी और उसकी माँ को ही देखते रहे। विक्की की ज्यादा नजर तो अन्वी पर थी।  वो उसे कई महीनों या कहें सालों से चोदने के फिराक में थे।  मस्त माल थी वो।  पर मेरी नजर तो उसकी माँ पर टिकी थी।  वो अन्वी की बड़ी बहन से ज्यादा नहीं लग रही थी।  शरीर एकदम मैंटेन कर रखा था।  उनका पिछवाड़ा और मुम्मे अन्वी से कुछ बड़े थे।  मौसा ने हमेशा की तरह पूरा संयम रखा था।  मौसी से उन दोनों की मुलाकात कम ही थी।  पर आज वो भी पुरे नजर से उन दोनों को देख रही थी।  उन्हें एहसास हो गया था की मौसा की दिल इन दोनों पर ख़ास कर अन्वी की माँ पर क्यों फिसला था।  वैसे मौसी भी कम नहीं थी पर अन्वी की माँ के आगे थोड़ी कम ही थी।  इन दोनों माल के चक्कर में सोनी थोड़ा अजीब फील कर रही थी।  जहाँ मौसा और मौसी एक सोफे पर थे वहीँ अन्वी और उसकी माँ दुसरे सोफे पर।  सोनी , मैं और विक्की ने चेयर खींच लिया था।  

नाश्ते के टाइम पर थोड़ी बहुत बात चीत हो रही थी।  अन्वी की माँ थोड़ा संकोच कर रही थी।  

तो बात आगे बढ़ाते हुए मौसी ने ही उनसे पुछा – आपने फैक्ट्री देखि क्या ?

अन्वी की माँ – अभी नहीं।  आपने? 

मौसी – हाँ , देखि है। 

अन्वी की माँ – अब फैक्ट्री हो जाएगी तो सोनी बेटी का काम आगे बढ़ जायेगा। 

मौसा – सोनी की ही क्यों अन्वी भी उसमे आगे बढ़ेगी। 

सोनी – हाँ , मुझमे और अन्वी में अंतर थोड़े ही है।  जैसी मैं इनकी बेटी वैसे अन्वी भी। 

तभी विक्की बोल पड़ा – तुझसे पहले पापा की बेटी अन्वी बनी है।  तू पीछे रह गई। 

ये बात ज्यादा किसी को समझ में नहीं आई पर मैं , मौसा और सोनी समझ गए। 

सोनी – साले मुँह बंद रखा कर वरना यहीं सबके सामने तोड़ दूंगी। 

विक्की – मुँह तोड़ेगी तो चटवायेगी कैसे। 

ये सुनकर सब हंस पड़े।  ऐसे ही हंसी मजाक से माहौल थोड़ा खुल सा गया। मौसा ने फिर विक्की से कहा – यार वैसे तू हमेशा दारु की बात करता है पर आज माहौल है तो ना जाने कहाँ खो गया है। 

मैं – मौसा जब इतना सारा नशा सामने हो तो दारु किसे याद रहेगा।  देखिये तो ये अन्वी के आँखों में ही डूब गया है। 

विक्की ने भी मजे लेते हुए बोला – और तू उसकी अम्मा में। 

मैं – बात तो सही है।  दोनों में भरपूर नशा है पर आंटी की बात अलग है।  क्यों मौसा ?

मौसा – सो तो है।  नशे की तो यहाँ चार चार बोतलें हैं।  पर इन बोतलों को खोलने के लिए असली वाली भी चाहिए।  समझा कर। 

सब समझ गए की मौसा क्या कहना चाहते हैं।  बिना नशे के मौसी और सोनी तो सबके सामने चुद जाएँ, शायद अन्वी भी तैयार हो जाये पर उसकी माँ संकोच करती। मौसा की बात समझ कर हम मैं और विक्की फटाफट भाग कर बियर की बोतलें ले आएं।  सोनी और मौसा ने सिगरेट भी जला लिया। एक बोतल अंदर जाने के बाद मौसी बोलीं – मैं खाना तैयार करती हूँ।  पूड़ियाँ टालनी बची है। 

अन्वी की मां भी उठ गईं और बोली – चलिए मैं भी थोड़ी मदद करती हूँ। 

दोनों औरतें किचन में चली गईं।  विक्की तो अन्वी के चक्कर में था।  अब सोफे पर वो अकेली थी तो वो उठ कर वहां चला गया।  ऐसे ही सोनी मौसा के पास।  आज चुदाई का कार्यक्रम था तो अन्वी को भी कोई ऐतराज नहीं था।  उसे पता था वो आज चुद कर रहेगी और सबसे पहले उसका शिकार विक्की ही करेगा।  उसे अंदाजा था की मेरी नजर उसकी माँ पर है। मैं कुछ देर बाद उठ कर किचन में चला गया।  मौसी और अन्वी की माँ पूड़ियाँ बनाने में लगी थी।  एक बेल रही थी और एक तल रही थी। 

मैंने किचन में जाकर कहा – कुछ मैं भी मदद कर दूँ क्या ?

मौसी – तू मदद करेगा या काम बिगाड़ेगा।  जा यहाँ से।  अन्वी के पास जा। 

मैं – अरे अन्वी के पास तो विक्की है।  मुझे तो आप लोगों के पास ही अच्छा लगता है।  मैं कुछ मदद कर देता हूँ। 

मौसी – मानेगा तो है नहीं।  चल सलाद काट दे। 

मैंने फ्रिज खोला वहां गाजर , खीरा और मूली पड़े थे।  मुझे मस्ती सूझी।  मैंने अन्वी की माँ से पुछा – आंटी आपको मोटे  पसंद हैं या लम्बे ?

अन्वी की माँ – क्या मतलब ?

मौसी भी पलट कर हँसते हुए देखने लगीं। 

मैं – अरे मेरे कहने का मतलब है गाजर, खीरा , मूली में से मोटे लूँ या लम्बे ?

मौसी हँसते हुए – लम्बे तो सबको अच्छे लगते हैं।  वैसे तेरे हाथ में लम्बे ही सही लगते हैं।  

आंटी – पर मोटे वाले तगड़े और थोड़े तीखे होंगे। 

मैं – आंटी यहाँ तो सब मोटे ही हैं।  वैसे तीखेपन हटाने के लिए उन्हें नमकीन कर लेते हैं।  मौसी जरा इस खीरे पर नमकीन पानी तो लगाओ। 

मौसी हलके शरूर में थी।  उन्होंने छिला हुआ खीरा लिया और अपनी साडी उठा कर उसे चूत में घुसा लिया।  कुछ देर अंदर बाहर करने के बाद उन्होंने खीरा दिया और कहा – देख अब सही है ?

मैंने वो खीरे साबुत हो चूस लिया और कहा – हाँ अब ये मस्त हो गया है ।  

मैंने फिर एक मूली उठाई और उसे भी साफ़ करके मौसी की तरफ बढ़ाया।  मौसी ने कहा – जरा आंटी से भी कुछ सेवा ले ले।  अभी थोड़ी देर पहले बड़ा नशा नशा कर रहा था।  क्या पता तेरे सलाद से ही सबको चढ़ जाए।  

मैंने मूली आंटी की तरफ बढ़ाया।  वो शरमा गईं।  मौसी – अरे अभी इनडाइरेक्ट कह रहे हैं , कुछ देर में डाइरेक्ट नशा देंगी।  वैसे आपके नमकीन पानी की तारीफ उसके मौसा बहुत करते हैं।  कह रहे थे एक दिन कॉकटेल पिएंगे। 

मैं – आंटी कॉक तो मेरा खड़ा हो गया है।  पर पहले इस मूली को स्वादिष्ट करिये।  

आंटी ने भी आखिर कार मूली ले ली और मौसी की तरह ही अपने चूत में डाल कर दो तीन बार अंदर बाहर किया फिर मुझे थमा दिया।  अब मैं सलाद काटने में फिर लग गया।  मुझे पता था की जल्दी ही कॉकटेल मिलेगा।  

मौसी – कुछ टमाटर भी ले ले। 

मैं – गोल गोल बड़े टमाटर सही कटते हैं। 

मौसी – हाँ अंदर हैं।  उनमे रस भी है।  अरे देख अंदर निम्बू भी होगा। 

मैं – मौसी अब यहाँ निम्बू किसके पास है।  वैसे फ्रूट सलाद काटना हो तो खरबूजा काट दूँ। 

मौसी हँसते हुए – निम्बू है अंदर। खरबूजा तो ले आना पड़ेगा। 

आंटी का चेहरा लाल हो रहा था।  मैं और मौसी पुरे दुअर्थी शब्दों से मजे ले रहे थे ? 

मौसी – दबा के देख लेना रस है या नहीं। 

मैं – लग रहा है रस तो बहुत है  , दबाने में बहुत मजा आएगा। क्यों आंटी ?

आंटी ने भी अब शर्म छोड़ दी और कहा – अब तो दबाने वाला ही बता पायेगा की रस है या नहीं। 

मैं – कहिये तो दबा कर देख लूँ ?

आंटी – देख लो। 

मैं टमाटर लेकर उनके पीछे खड़ा हो गया।  निम्बू उनके हाथ में देते हुए बोला – आप निम्बू चेक करिए मैं खरबूजा चेक करता हूँ। मैं उनके पीछे से चिपक गया और अपने हाथ उनके मुम्मो पर रख दिया।  सच में मस्त माल थीं।  एकदम रसभरी।  मुलायम मुलायम मुम्मे दबाने में मुझे मजा आ रहा था।  

तभी मौसी ने कहा – देख जरा मेरे चेहरे पर पसीना आ गया है। जरा पोछ भी दे। 

मैंने उन्हें अपने पास खींचा और उनके चेहरे को अपने जीभ से चाट कर बोला – अब इतना स्वादिष्ट पानी तो पीना बनता है। 

मौसी ने भी अपना चेहरा घुमा घुमा कर पूरा चटवाया और बोली – तू ऐसे करता है तो पुरे बदन से पानी बहने लगता है। 

मैं – मुझे पानी पीने में ही तो मजा आता है।  आंटी आके चेहरे पर भी पसीना आ रहा है।  कहिये तो साफ़ कर दूँ। 

आंटी के ऊपर खुमारी चढ़ चुकी थी।  उन्होंने कहा – मैं मन कर दूंगी तो मान जाओगे क्या ?

मैं – नहीं आंटी , आपको देख कर कण्ट्रोल ही नहीं होता।  

मैं उनके गाल भी चाटने और चूसने लगा।  मेरा लौड़ा पुरे शबाब पर था और उनके गांड में घुसा जा रहा था।  मेरे हाथ उनके मुम्मो पर थे।  

आंटी ने मेरे लौड़े को पकड़ लिया और बोली – ये तो लग रहा है अब तुम कण्ट्रोल से बाहर हो। 

मैं – आंटी वो आपका नमकीन पानी पीना है। 

आंटी अब मदहोश हो चुकी थी। वो कुछ कहती उससे पहले ही मैं निचे बैठ कर उनकी साडी में घुस गया। उनकी पैंटी सच में गीली हो चुकी थी।  मैंने पैंटी के ऊपर से ही मुँह लगा दिया।  मेरे मुँह लगाते ही उनके मुँह से सिसकारी निकल गयी पर तुरंत वो दब गई।  लगता है मौसी ने उन्हें किस कर लिया था। क्योंकि मुझे लग रहा था मैं दो शरीर के बीच में हूँ।  मैंने अपने आपको थोड़ा एडजस्ट किया। दोनों औरतें एक दुसरे को किस कर रही थी और मैं नीचे से आंटी के चूत को चाट रहा था।  आंटी पहले से पनिया चुकी थी और फिर गरमा गरम बातों का असर था , उन्होंने अपने कमर को मेरे मुँह पर ही रगड़ना शुरू कर दिया। कुछ ही देर की चुसाई के बाद वो धराशाही हो गईं।  पर मैं उठा नहीं बस मैंने साडी बदल ली।  अब मैं आंटी की जगह मौसी की साडी के अंदर था।  कुछ देर बाद जब बाहर आया तो मेरा पूरा चेहरा ख़ास कर होठ और नाक पूरी तरह से गीले थे।  मैं खड़ा होकर बोला – अब कुछ नशा चढ़ा।  मजा आ गया।  ेरी हालत देख कर आंटी तो हंस पड़ी पर मौसी कमिनी मेरे चेहरे को चाटने लगीं।  उन्होंने ने मुझे पूरी तरह से चाट कर अपना और आंटी के चूत का रस खुद ले लिया।  अब दोनों औरतें फिर से काम में लग गईं।  

मौसी ने मुझसे कहा – जाकर देख उधर क्या हो रहा है।  खाना तैयार होने को है। 

मैंने भी प्लेट और कटोरियाँ ले लीन और डाइनिंग टेबल की तरफ चल पड़ा।  वहां का नजारा अलग ही था।  मौसा ने सोनी के शर्ट के बटन खोल लिए थे और उसके स्तनों को दबा रहे थे और उधर अन्वी निचे बैठ कर विक्की के लौड़े को चूस रही थी। विक्की की आँखें बंद थी।  मुझे पता था वो कुछ ही पल में अपना माल उसके मुँह में छोड़ देगा। 

मुझे देख कर अन्वी मुस्कुराई और मौसा के गोद से उठ खड़ी हुई। मैं डाइनिंग टेबल के पास था तो उसने मुझे वहीँ रुकने का इशारा किया और मुझे एक चेयर पर बिठा कर मेरे पेंट को उतार दिया।  अब मेरा लौड़ा उसके मुँह में था।  

उधर विक्की के लंड से जूस निकाल कर अन्वी मौसा के खड़े लंड पर भीड़ गई।  विक्की बेचारा झड़ने के बाद उठा और एक बियर की बोतल और उठा लिया।  अब दोनों जवान लौंडिया लंड चूसने में व्यस्त हो गईं।  कुछ ही देर में है दोनों भी खलास हो गए। 

अब हालत ये थी की सोनी ने अपना शर्ट उतार दिया था और टॉपलेस थी। मैं और मौसा बिना पेंट के थे।  विक्की ने भी अपना पेंट उतार दिया था।  मौसी और आंटी ने खाना लगाना शुरू कर दिया था। अब मौसा ने अन्वी के कपडे उतार दिए और उसे सोफे के सहारे खड़ा कर दिया।  वो एक कुतिया की तरह हो गई थी।  

उन्हें चोदने वाले मूड में देख कर मौसी बोली – अरे खाना तो खा लेते। 

मौसा – अब मूड बना है तो पहले ये काम कर लें।  

अन्वी – हाँ।  मैं भी चुदास हो चुकीं हूँ।  अब चोद दो मुझे। 

मौसा – चिंता मत कर मैं तेरी चूत की प्यास बुझाने के लिए ही तैयार हूँ।  

उन्होंने ने पीछे से अपना लंड उसके चूत में घुसा दिया।  किसी को उम्मीद नहीं थी की चुदाई की शुरुवात अन्वी और मौसा करेंगे।  उनको चुदाई करता देख अन्वी ने अपना पेंट उतार दिया और मुझसे बोली – राज मुझे चोद दो।  मेरी चूत भी बहुत प्यासी है।  मैंने उसे गोद में उठा और डाइनिंग टेबल पर लिटा दिया।  मैंने उसके दोनों पैर उठा कर अपने कंधो पर किया और उसके चूत पर अपना लंड लगा कर एक ही झटके में उसे पेल दिया।  अब मैं सोनी की चुदाई करने में लगा था।  दोनों लौंडिया मस्त चुद रही थी।  और ये देख कर विक्की , मौसी और आंटी गरम हो रहे थे। 

माहौल इतना गरम हो चूका था पर विक्की मेरी और मौसा की ही चुदाई देखने में व्यस्त था । तभी अन्वी की माँ ने मौसी से कहा – कैसा मादरचोद बेटा पैदा किया है।  साला इतनी चुदाई देखने के बाद भी लौड़ा ताने खड़ा है। 

मौसी ने ये सुना तो विक्की की तरफ देखते हुए कहा – जब तुम्हारी गांड फाड़ेगा तो समझ आएगा। 

विक्की ने उन दोनों की बात सुनी तो उनके पास आकर कहा – माँ , कहो तो पहले इसकी छूट का भोसड़ा बना दूँ। 

मौसी ने आंटी की साडी कमर में हाथ डाल कर एक हो बार में निकाल दिया और कहा – चूत का भोसड़ा तो पहले ही तेरा बाप बना चूका होगा।  तू इसके गांड का फाटक बना आज। 

विक्की ने आंटी को डाइनिंग टेबल पर हाथो के सहारे झुका दिया। और उनके पेटीकोट को उठाने लगा।  पेटीकोट उठा कर उसने सीधा अपना लंड आंटी के गांड में ठेल दिया। 

आंटी – हरामी साले , आराम से कर। 

मौसी – क्यों बे रंडी।  तूने ही तो ललकारा है।  अब आराम वराम भूल जा। 

इधर मैं सोनी को सीधे लेता कर चोद रहा था और उसका मुँह आंटी के ठीक सामने था।  आंटी ने झुक कर सोनी को चूम लिया।  कमरे में सिसकारियां गूँज रही थीं।  मौसम ठंढ का था पर माहौल एकदम गरमा चूका था।  मौसा अब तक खलास हो चुके थे और वो हम दोनों को बड़े आराम से देख रहे थे।  उन्हें पता था कि विक्की को उनकी मदद कि जरूरत पड़ेगी।  मौसी अब सोफे पर जाकर अन्वी और मौसा के बगल में आराम से बैठ गईं थी।  विक्की जैसे ही आने को हुआ , मौसा तपाक से उठे और विक्की को हटा कर उन्होंने अपना लौड़ा आंटी के गांड में ठेल दिया और कहा – रांड साली मेरे बेटे के बारे में क्या बोल रही थी।  तेरी गांड फाड़ दूंगा अगर तूने मेरे बेटे के बारे में कुछ भी कहा तो।  

आंटी – तुम तो फाड़ ही दोगे।  मुझे पता है।  

विक्की के लंड के साथ धोखा हुआ था।  पर मौसा ने सही ही किआ था।  उसे रोकना जरूरी था वर्ना आंटी को सनतुष्ट किये बिना ही वो झाड़ जाता।  विक्की कुछ देर तक देखता तहा फिर सोफे पर मौसी और अन्वी के पास जाकर बैठ गया।  अन्वी जो थकी हुई थी, उसने विक्की का उतरा हुआ चेहरा देखा तो बोली – भाई , निराश ना हो।  माँ को तगड़ी वाली चुदाई चाहिए होती है।  अंकल ही लेंगे उनकी। मैं तेरी गरमी निकाल देती हूँ। 

ये कहकर वो झुकी और विक्की के लंड को अपने  मुँह में ले लिया और उसे केले कि तरह चूसने लगी।  

अब मैं भी खलास हो चूका था पर मौसा आंटी कि गांड से लंड निकाल कर उनकी चूत का भोसड़ा बना रहे थे। कमरे में सब चुद रहे थे सिवाय मौसी के। मौसी पुरे कपडे में थीं।  कुछ ही देर में अन्वी ने विक्की का लंड चूस कर उसका माल निकाल दिया।  उधर मौसा भी खलास हो चुके थे।  मौसी ने देखा कि खेल बंद है तो कहा – अब कुछ खाना पीना भी हो जाए ?

मौसा – हाँ।  खाना खाते हैं।  उसके बाद दूसरा राउंड।  पर तुमने कपडे क्यों पहने हुए हैं।  सबके तो उतर चुके हैं।  क्यों राज , तू मौसी का ख्याल ऐसे रखेगा।  घर पर तो भाभी को नंगा घुमाता है और यहाँ माँ कि बहन को छोड़ दिया। 

मौसी – रहने दो।  आज घर में नया माल है।  उसका ख्याल रखो पहले। 

हमें लग गया था कि मौसी थोड़ी नाराज हैं।  सोनी और अन्वी ने ये भांप लिया था।  

सोनी बोली – अरे हम खाना लगाते हैं  तब तक तुम सब माँ का ख्याल रखो। 

अन्वी भी उठ गई।  दोनों पहले सफाई में जुट गईं।  चारो तरफ बिखरे कपडे को समेटने में जुट गईं।  इधर विक्की जो उनके बगल में बैठा था उसने मौसी की साडी हटा कर उनके ब्लॉउज खोलने में जुट गया।  मैं भी मौसी के दुसरे तरफ आकर बैठ गया और उनको चूम कर बोला – मौसी , आपको तो सबसे ज्यादा मजे देंगे।  वैसे आप माँ हो तो थोड़ा दूध पिलाओ ताकत आएगी। 

मौसी ने मेरे किस का जवाब दिया और बोली – ले ले।  इन थानों में जब दूध था तब भी तूने पिया है। अब भी चूस ले। 

मैं और विक्की उनके दोनों मुम्मो को चूसने लगे।  मौसी आनंद के सागर में गोते लगाने लगीं।  तभी मौसा भी उनके पास आ गए और उन्होंने मौसी की साडी पेटीकोट से निकाल कर पेटीकोट की डोरी भी खोल दी।  मौसी ने अपना गांड धीरे से उठा दिया और मौसा ने उनके पेटीकोट को भी उतार दिया।  अब मौसा उनके चूत पर भीड़ गए।  अब मौसी पर चौतरफा आक्रमण हो रहा था।  कहाँ वो अन्वी की माँ की चूत फड़वाने की बात कर रही थी कहा अब कुछ ही देर में उनकी चूत का कबाड़ा होने वाला था।  खैर ये ठीक ही था।  उन्हें गर्व हो रहा होगा कि उनके घर में अब भी उनका राज है।  उनको संतुष्ट करने में कोई भी सदस्य कोर कसार नहीं छोड़ेगा।  हुआ भी वही।  कुछ देर में मैं सोफे पर लेटा हुआ था।  मौसी मेरे ऊपर थी।  उनके चूत में मेरा लंड और मौसा का लंड पीछे से उनके गांड में।  विक्की ने अपना लंड उनके मुँह में डाला हुआ था।  उनके हर छेद में लौड़ा था।  उनकी जबरजस्त चुदाई शुरू हो चुकी थी। मौसी कि हालत देखते ही बनती थी। सोफे लग रहा था आज टूट जायेगा।  पर सभी जोश में थे।  आखिर में जीत मौसी कि ही हुई।  जबरजस्त चुदाई के बाद हम सबने फिर खाना खाया।

उस रात अन्वी और उसकी माँ हमारे यहाँ ही रुकीं।  रात को बिस्तर पर उनकी मौसी वाली हालत हुई।  उनके भी हर छेद को हम तीनो ने भर दिया।  अन्वी को भरपूर चोदने का मौका मुझे नहीं मिला।  पर पता था अब तो सिग्नल हो गया है।  जब चाहूंगा उनके प्लेटफार्म पर अपनी गाडी दौड़ा दूंगा।  मुझसे ज्यादा ये हरी झंडी विक्की के लिए जरूरी थी।  वो बेचारा अन्वी के लिए कब से मारा जा रहा था। 

अगले दिन मैं भी वापस आ गया।  माँ को ज्यादा दिन अकेले नहीं छोड़ सकता था।  फिर ये भी तय हो गया था कि सब होली एक जगह मनाएंगे वो भी नाना के यहाँ।  नाना के यहाँ कि होली में ज्यादा मस्ती और खुलापन होना था।  होली में सभी मौसी लोगों और उनके बच्चों का आना फिक्स हुआ था। 

पर होली से पहले फैक्ट्री के लिए मेरा यहाँ आना तय था।  डील फाइनल करनी थी।  मौसा चाहते थे कि फैक्ट्री पर हम तीनो भाई बहनो का नाम चढ़े।  इन्वेस्टमेंट हम तीनो का ही था। विक्की और सोनी काफी खुश थे।  आखिर दोनों पूरी तरह से सेटल हो रहे थे। 

मौसी के यहाँ से लौटने के बाद मैं काफी व्यस्त हो गया था। परीक्षा की तैयारी भी करनी थी। इधर बीच श्वेता एक आध बार ही घर आई। हम दोनों तैयारी अच्छे से कर लेना चाहते थे क्योंकि होली में सबको इक्कठा होना था। करीब हफ्ता भर खराब हो जाता इस लिए अभी ही पढाई पूरी करनी थी। मुझे बाकी सभी विषयों में पूरा कॉन्फिडेंस था पर फिलोसफि समझ नहीं आ रही थी। एक दिन सरला दी का फ़ोन आया तो जब मैंने बताया की मुझे ये विषय समझ नहीं आ रहा तो उन्होंने कहा – अरे दीप्ति मैम से पढ़ ले। उनका सब्जेक्ट है। नोट्स भी दे देंगी।

मैं – अरे यार , मैं तो भूल ही गया था। उन्होंने कहा भी था कि डाउट होने पर पूछ लेना।

दीदी – ही ही , तुझे वो फिलोसोफि से ज्यादा सक्सोलोग्य कि टीचर जो लगती हैं।

मैं – हाँ , और अब तो तारा भी तैयार हो चुकी है।

दीदी – एक और कुँवारी चूत।

मैं – तुम भी ना। बात कहाँ थी कहा ले गई। अब क्या ख़ाक ही पढ़ पाउँगा।

दीदी – हाँ , पता चला फिलोसोफी तो समझ में आया नहीं , बाकी सब भी भूल जायगा। रहने दे।

पर दीदी ने दिमाग में खलल डाल दी थी। वैसे भी आखिरी बार दोनों माँ बेटी तैयार थी पर मैं सामने परोसी हुई थाली छोड़ आया था। पर उनसे बात करने का मतलब था वाकई पढाई नहीं होगी। उनके सेक्सी शरीर के सामने क्या ही पढाई होगी। मेरे मन में उधेड़ बन चल ही रही थी। निचे वाले भाई साहब भी मुँह उठा कर बार बार मुझे उकसा रहे थे। लंड और दिमाग में जंग चल रहा था। पर आखिर में जीत लंड महाराज कि ही हुई। मैंने फ़ोन घुमा ही लिया।

दीप्ति मैम – हेलो राज , कैसे हो? बड़े दिनों बाद हमारी याद आई ?

मैं – हेलो मैम। सॉरी , मैं थोड़ा बीजी हो गया था। आपसे बात नहीं कर पाया।

मैम – हाँ भाई , जिसके लिए लड़कियों कि लाइन लगी हो उसको क्या ही फ़िक्र होगी। श्वेता भी कह रही थी आजकल मौसी के यहाँ के बहुत चक्कर लग रहे हैं। तुम्हारे पास तो उसके लिए भी समय नहीं है।

मैं – अरे मैम , ऐसा नहीं है। श्वेता से तो अभिमुलाकत हुई थी। और उसने तो खुद ही ऐसी शर्त लगा रखी है। आप तो सब जानती हैं।

मैम – हम्म , अरे मैं तो ऐसे ही मजाक कर रही थी। बहुत अच्छी लड़की है वो। पढ़ लिख कर कुछ बन जाओ तो फिर मौज के लिए तो जिंदगी पड़ी है।

मैं – हाँ मैम , मौसी के यहां भी बिजनेस के चक्कर में ही जाना पड़ रहा है।

मैम – मुझे पता है। और सुनाओ कैसे याद किया इस बुढ़िया मैडम को।

मैं – मैम आप फिर शुरू हो गईं। आपके सामने तो जवान भी फेल हैं।

मैम – तारीफ रहने दो। असली बात बताओ।

मैं – मैम वो दरअसल परीक्षा नजदीक है और मुझे आपका सब्जेट समझ नहीं आ रहा है।

मैम – कौन सा सब्जेक्ट समझ नहीं आ रहा है ? तुम तो एक्सपर्ट हो उसमे

मैं – ही ही ही। वो सब्जेक्ट तो क्लियर है। उसमे आप जब चाहो एग्जाम ले लो। फिलोसोफी नहीं समझ आ रही है।

मैम – आ जाओ घर पर। चार पांच दिन आओ। सब समझा दूंगी। नोट्स भी रखे हैं। दे दूंगी।

मैं – वही सोच रहा था। पर आप और तारा दोनों होंगी तो दुसरे सब्जेक्ट कि ही पढाई होगी।

मैम – हम्म। बात तो सही यही।

फिर कुछ सोच कर बोलीं – तुम आओ। मैं कुछ होने नहीं दूंगी।

मैं – आपके कहने से क्या होगा।

मैम – तुम आओ तो सही।

मैंने माँ को बताया तो वो बोलीं – देख लो। पढ़ना तुम्हे है। वहां पढाई हो तो चले जाओ।

माँ से परमिशन मिलने के बाद तय हुआ कि मैं रोज दोपहर में मैम के यहाँ चला जाया करूँगा और रात को लौटूंगा। उन्होंने बाकी सब्जेक्ट के भी नोटस माँगा लेने का वाद किया था।

मैं अगले दिन दोपहर को मैम के यहाँ पहुँच गया। दरवाजा तारा ने खोला। उसने सलवार कुरता पहना हुआ था।ऊपर से स्वेटर। उसके कपडे एकदम संस्कारी बच्चों वाले थे। वैसे भी सर्दी आ चुकी थी। उसने मुझे गले लगाया। शिकायतों के नोक झोंक के साथ हम ड्राइंग रूम में बैठे ही थे कि अंदर से मैम निकली। वो भी सलवार सूट में थी और ऊपर से शाल डाला हुआ था। कुछ देर चाय पानी के बाद मैम ने तारा को अपने कमरे में जाने को कहा। उसकी भी परीक्षाएं थी। मेरा मन था कुछ देर वो साथ रहे। बहुत दिनों बाद मिल रहा था। पर मैम ने स्ट्रिक्टली मन कर दिया। बोलीं ब्रेक में तुम लोग बातें कर लेना। फिर मैम मुझे अपने कमरे में लेकर गईं। उनके कमरे में भी एक टेबल कुर्सी लगी हुई थी। कमरे में हीटर चलने कि वजह से अच्छी खासी गर्मी थी। 

मैम ने मुझे स्टडी टेबल के पास बैठा कर पूछा – बताओ क्या क्या समझ नहीं आ रहा है ?

मैं – आपको देख कर तो कुछ भी समझ नहीं आ रहा है।

मैम – देखो , पढाई करनी है तो बोलो वरना अपने घर जाओ।

मैं मैम के इस रूप को देख कर थोड़ा चकित था। खैर सही ही कह रही थी। मैंने किताबें निकाल ली। उनको अपने प्रॉब्लम वाले एरिया बताये। मैम ने पहले वो चैप्टर समझाया फिर नोट्स दिए।

नोट्स समझाने के बाद उन्होंने कहा – अब ये रट जाओ। इसमें इम्पोर्टेन्ट पॉइंट्स लिखे हैं उसे याद करो तब तक मैं तारा को देख कर आती हूँ। मुझे आने में थोड़ा टाइम लगेगा। उसे भी समझाना है। पर तुम बिना डिस्ट्रक्शन के याद करो, मैं आकर पूछूँगी।

मैं एक आज्ञाकारी बच्चे कि तरह याद करने लगा। वो फिर चली गईं। उन्होंने इतने अच्छे से समझाया था कि याद करने में कोई दिक्कत नहीं आ रही थी।

करीब चालीस मिनट बाद मैम हाथ में चाय का प्याला लेकर आईं। मैम ने मुझे चाय थमाई और फिर मुझसे नोट्स लेकर क्वेश्चन करने लगीं। मुझे सब याद हो गया था। मैं सवालों का जवाब देता चला गया। सब सुनने के बाद मैम बोलीं – तुम्हे सब आता तो है। क्यों परेशान थे ?

मैं – आपके समझाने से समझ आया है और आपके नोट्स इतने बढ़िया हैं कि सब जल्दी से याद हो गया।

मैम हंसने लगीं और बोलीं – चलो अब थोड़ा ब्रेक ले लो। फिर दूसरा चैप्टर भी पढ़ा दूंगी।

मैम सोफे पर थी। मैं उठकर उनके पास पहुंचा और बोला – ब्रेक में क्या करू ?

मैम कि धड़कन तेज हो गई। उन्होंने शव और दुपट्टा उतार रखा था। मैंने उनके गालों को चूम लिया और कहा – आपको पता है, पढाई के बाद जब मुझे स्ट्रेस काम करना होता है तो मैं क्या करता हूँ ?

मैम – क्या करते हो ?

मैं – माँ के गोद में सर रख कर लेट जाता हूँ और उनके दूध पीता हूँ , उनके दूध पीने और दबाने से मेरा सारा स्ट्रेस निकल जाता है।

तभी कमरे में तारा आई और बोली – मुझे लगा था कि पढाई हो रही होगी पर यहाँ तो आशिकी हो रही है। माँ ये तो चीटिंग हैं।

मैं – मैं तो स्ट्रेस हल्का कर रहा था। मैम ने ब्रेक दिया है।

तारा – ब्रेक तो मुझे भी चाहिए थे और ऐसे स्ट्रेस काम होता है या बढ़ता है। अपने पेंट के निचे देखो। कितना स्ट्रेस है।

मैं – अब तुम जैसी सुन्दर लड़की सामने होगी तो ये स्ट्रेस में आएगा ही।

तारा हँसते हुए – देख रही हो माँ। ये साला अभी तुम्हारे बाँहों में था अब मुझे देख मुझे लाइन मार रहा है।

मैं – अरे आप दोनों लोग एकदम माल हो।

मैम – रहने दे अपने बहाने। तू अपना स्ट्रेस कम कर ले।

मैं उनके मुम्मो पर हाथ लगाते हुए बोला – सच में ?

मैम – हम्म।

मैं मैम के मुम्मे दबाने लगा और उन्हें चूमने चाटने लगा। कुछ देर तो तारा हमर देखती रही फिर बोली – हम्म्म्म मैं चलती हूँ।

मैंने उसका हाथ पकड़ लिया और खींच कर अपने गोद में बिठा लिया। मैंने कहा – लाओ तुम्हारा स्ट्रेस भी काम कर दूँ ,

तारा ने नखड़े दिखाते हुए कहा – मुझे कोई स्ट्रेस नहीं है।

मैंने उसके छोटे सेब पकड़ लिए और कहा – तुम्हारे ये टाइट से निप्पल तो पुरे स्ट्रेस में हैं।

तारा ने मेरा हाथ हटाते हुए कहा – अब ऐसी हरकत देख कर इनका ये हाल नहीं होगा तो क्या होगा।

मैंने उसके बूब्स दबाने शुरू कर दिए। वो सिसकने लगी थी। उधर मैम भी गरम हो चुकीं थी। पर उन्हें पता था कि समय खराब करने से पढाई डिस्टर्ब होगी।

उन्होंने हमें कुछ देर मस्ती करने दिया और फिर कहा – अब ब्रेक ख़त्म , तारा तुम अपने कमरे में जाओ। राज चलो अगला चैप्टर।

मैं – मैम , प्लीज।

मैम – नो। आज का टारगेट पूरा करो तो तुम दोनों को रिलैक्स कर दूंगी। पर अभी नही। तारा , तुम अपना अगला चैप्टर तैयार करो।

हम दोनों के साथ खेल हो गया। पर मैम एकदम स्ट्रिक्ट बानी हुई थी। मैम ने मुझे अगला चैप्टर समझाया , उसके नोट्स याद करने को दिए और कहा – मैं खाना बनाने जा रही हूँ। तब तक ये याद कर लो।

मैम ने माँ को कहा था कि खाना यहीं होगा। मैम रोकना चाह रही थी पर माँ ने मना कर दिया। पढाई के बाद रात में मुझे वापस जाना था। मेरा फोकस वापस आ गया था। मैं समझने और याद करने में जुट गया।

करीब एक घंटे बाद मैम वापस आईं। उनके हाथ में गरमा गरम सूप था। वो मुझसे सवाल पूछने लगीं। मैं जवाब देता गया। वो मेरे आंसर से बेहद खुश थी। उन्होंने मुझे कुछ करेक्शन करने को कहा और बोली – ये दो तीन पॉइंट दोबारा याद कर लो फिर खाना खाते हैं।

मैं – मैम खाना बाद मे। पहले आपने जो वादा किया था वो।

मैम – पहले ये याद करो। मैं आधे घंटे में वापस आती हूँ फिर देखते हैं।

मैं फिर पढाई में जुट गया। कुछ देर बाद कमरे में मैम वापस आईं। इस बार तारा भी उनके साथ थी। उसने कपडे बदल लिए थे और एक मिनी पहनी हुई थी। मिनी के ऊपर से एक गरम लबादा ओढ़ा हुआ था। कमरे में आकर वो भी उतार दिया। उसे देखते ही मेरे मुँह से सिटी निकल गई। एकदम सेक्सी लग रही थी। उसने अंदर ब्रा भी नहीं पहनी थी और शायद पैंटी भी।

मैम – सब याद हो गया ?

मैं – हाँ।

मैम – गुड। खाना खाना है ?

मैं – अभी नहीं। आपने जो वादा किया था वो पूरा कीजिये।

मैम – हम्म्म। मानोगे नहीं।

मैं – अब कैसे मान सकता हूँ।

मैम – फिर खाने के बाद रुक कर अपने दुसरे सब्जेक्ट के भी एक चैप्टर को तैयार करना होगा।

मैं – मुझे कोई दिक्कत नहीं है।

मैम – ठीक है। मैं ज़रा बाथरूम से आती हूँ।

मैं अब सोफे पर तारा के बगल में बैठ गया था। तारा शर्मा रही थी। मैंने उसे अपने गोद में बिठाना चाहा तो उसने मन कर दिया।

मैं – पिछली बार तो हर चीज के लिए तैयार थी पर अब क्या हुआ ?

तारा – मैं बेशरम लड़की नहीं हूँ। कुछ तो शर्म करो।

मैं – अभी मैम से चूत चटवाओगी तो शर्म कहाँ जाएगी ?

तारा – मैं ऐसा वैसा कुछ नहीं कावाने वाली।

मैं – अच्छा , तो इस ड्रेस में क्यों हो ?

तारा – ये मेरा रोज का है। मेरा घर है मेरी मर्जी।

मैं उसके नंगे जांघो को सहला रहा था जिसमे उसे कोई अप्पति नहीं थी। उसके रोयें खड़े हो गए थे और मेरा लंड। हम दोनों एकदम गरम हो चुके थे। कुछ ही पल में हम दोनों एक दुसरे के बाहों में थे। इतनी ठंढ में भी हम दोनों एकदम गरम हो चुके थे।

तभी मैम कि आवाज आई – तुम दोनों आपस में ही रिलैक्स हो लोगे या मेरी जरूरत है भी। देखा तो मैम सिर्फ एक ब्रा और पैंटी में थी।

तारा शर्माते हुए बोली – माँ।

मैम बिस्तर पर लेट गईं और बोलीं – आ भी जाओ। राज , अपने कपडे उतार देना।

मैं फटाफट से अपने कपडे उतारने लगा। तब तक तारा बिस्तर पर अपनी माँ के बाँहों में थी। मैं भी वहां पहुँच गया। अब मैं मैम के एक तरफ था और दूसरी तरफ तारा। तारा एक तरफ मैम के नंगे पेट और नाभि को चूम रही थी तो मैं उनके चेहरे के बाद मुम्मो पर अटैक कर चूका था। कुछ देर कि चुम्मा चाटी के बाद मैम ने कहा – ऐसे करोगे तो घंटो बीत जायेंगे। टाइम नहीं है। राज तुम लेट जाओ।

मैं सीधा होकर लेट गया। मैम ने मेरा अंडरवियर उतार दिया। मेरा लंड एकदम शानदार तरीके से लहरा रहा था। मेरे लंड को देखते ही तारा बोली – माँ ये तो गधे के लंड से भी बड़ा लग रह है।

मैम – तभी कह रही हूँ इसके चक्कर में मत पड़। एग्जाम दे ले फिर तुझे ये दिलवाऊंगी। अभी तू बस अपनी चटवा। जा।

तारा एक आज्ञाकारी लड़की की तरह मेरे चेहरे की तरफ आई और पलंग का सिरहाना पकड़ कर इस तरह हो गई जैसे उसकी चूत मेरी मुँह पर आ गई। मैं उसकी चिकिनी कुँवारी चूत को देखते ही उस पर लपक पड़ा। मेरे जीभ के लगते ही वो सिसक पड़ी। इधर मैम ने मेरे लौड़े को अपने मुँह में भर कर चूसना शुरू कर दिया था।

तारा – आह , तुम तो चाटने में एक्सपर्ट हो। मजा आ गया , उफ्फ्फ , थोड़ा अंदर। हाँ। तेज और तेज। चाटो , चाट ार खा जाओ।

मैं लपालप उसके चूत को चाट रहा था और मैम गपागप मेरे लंड का स्वाद लिए जा रही थी। तारा तो कुछ ही देर मेरे मुँह पर खूब सारा पानी उड़ेल कर फ्री हो गई। पर मैम को पता था मैं इतनी आसानी से हार नहीं मानुगा। मैम ने ने अपनी ब्रा और पैंटी उतार दी और मेरे ऊपर चढ़ कर मेरा लंड अपनी चूत में दाल लीं।

मैम – बस अब जल्दी से चोद और फ्री हो जा।

मैं – मैम आप चढ़ी है , आप चप्पू चलाइये।

मैम ने अपनी कमर हिलानी शुरू कर दी। मैंने उनके स्तन पकड़ लिए और दबाते हुए कहा – आह मस्त चुदास औरत हो आप। बस चले तो आपकी चूत में ही घुसा रहूं।

मैम – मादरचोद , अपनी माँ और बहन की चूत से फुर्सत मिले तो ना मेरे पास आएगा। भोसड़ी के अपनी मौसी और मौसेरी बहन तक की चूत मार आया पर यहाँ हम दोनों माँ बेटी तरस रही हैं

मैं – आपको इशारा करना था मैम , आपकी चूत की फाटक बना देता। तारा के अंदर का भी डर निकल जाता।

मैम – साली इसने जब से तेरे लंड के कारनामे सुने हैं जिद्द मारे बैठी है चढ़ेगी तो तुझ पर ही। पर मुझे पता है अभी चुदवाया तो एग्जाम नहीं दे पायेगी। तुम सब पास हो जाओ फिर इसकी चूत भी दिला दूंगी।

मैं – हम्म उफ़ क्या मस्त चुचे हैं आपके। मन करता है दबाते रहूं।

मैम – दबा न।

अब मैं मैम के चुचे बेरहमी से दबा रहा था और मैम भी उतनी ही तेजी से मेरे ऊपर उछल उछल कर चुद रही थी। तारा बेचारी आँखे फाड़े हमें देख रही थी।

कुछ ही देर में मैम और मैं दोनों एक साथ आना पानी छोड़ दिए। पानी छोड़ते ही मैम मेरे बगल में लेट गईं। उनके लेटते ही तारा ने पहले मेरे लंड को साफ़ किया और फिर अपनी माँ की चूत को।

हम तीनो के फारिग होते ही मैम ने कहा – चलो फटाफट खाना खाते हैं फिर एक एक चैप्टर और ख़त्म करना है।

मैं – मैम , ऐसे पढ़ाओगी तो मैं क्लास में टॉप कर जाऊंगा।

तारा – टॉप पर तो माँ ही  रहेंगी।

ये सुन हम सब हंस पड़े।

उस रात घर लौटते समय मैम ने कहा – घर जाकर भी पढ़ना है। कल फिर दोपहर में मिलेंगे।

इस तरह कुछ हफ्ते में ही मेरा कोर्स मैम ने चुदाई के साथ ख़त्म करवाया। मुझे तारा की चूत रिजल्ट के बाद मिलनी थी। पर इतने दिनों में अब आलम ये हो गया था की कमरे में हीटर चला कर हम सब नंगे ही रहने लगे थे और नंगे ही पढाई के साथ चुदाई होती थी।

एक दिन ऐसे ही रात को मैं दीप्ति मैम के यहाँ से लौट रहा था कि श्वेता का फ़ोन मेरे पास आया। 

मैं – आज मेरी याद कैसे आ गई ?

श्वेता – तेरी याद मेरे जेहन से कभी गई ही नहीं।  बल्कि तू चुतों के समंदर में गोते लगा रहा है। 

मैं – तुमने ही तो शर्त रख दी थी 

श्वेता – रखी तो थी पर तुम तो शर्त रखने वाले को ही भूल गए। 

मैं ये सुनकर थोड़ा इमोशनल हो गया।  मुझे लग गया था कि श्वेता वास्तव में मुझे मिस कर रही थी।  क्या उसे अपने शर्त पर पछतावा हो रहा था या फिर बस ऐसे ही थोड़ी उदासी थी ?

मैंने उससे पुछा – तुम कहो तो आज ही सब छोड़ छाड़ कर तुम्हारे साथ भाग चलूँ। 

श्वेता ने हँसते हुए कहा – रहने दो।  बस तुम मुझे आज घर ले चलो। 

मैं – जो हुकुम मेरे सरकार।  

मैंने गाडी उसके हॉस्टल की तरफ मोड़ लिया।  वहां गेट पर वो पहले से मेरा इंतजार कर रही थी।  ठंढ में उसके गाल सेव जैसे एकदम लाल हो रखे थे।  मैंने उसके गाल पकड़ का रखीँच लिए तो उसने चिढ़ते हुए कहा – क्या कर रहे हो ?

मैंने कहा – एकदम सेव लग रही हो।  काट कर खा जाने का मन कर रहा है।  

श्वेता – क्यों अभी जिस बागान से आ रहे हो , वहां सेव नहीं थे क्या ?

मैं – कुछ जलने जैसा क्यों लग रहा है ?

श्वेता – मैं क्यों जलूँगी भाई ?

मैं – हम्म।  मुझे कुछ कुछ ऐसा ही लग रहा है। 

श्वेता – घर चलो ठंढ लग रही है। 

मैंने गाडी घर की तरफ कर ली।  श्वेता को देखते ही माँ एकदम से खुश हो गईं।  उन्होंने उसे गले लगाया और फिर उसके माथे और गाल पर चूमते हुए कहा – हमें भूल गई थी हमारी बिटिया। 

श्वेता – नहीं माँ , भूली नहीं थी।  बस एग्जाम की तैयारी में बीजी थी। 

माँ – ये जनाब भी तैयारी में हैं।  रोज अपनी मैडम के यहाँ चले जाते हैं।  भगवान् जाने दोनों माँ बेटी क्या पढ़ाते हैं इसे। 

माँ के अंदर से भी उनका दर्द बाहर आ रहा था।  मुझे लग गया आज ये दोनों मुझे बहुत ताने मारेंगी।  मैं चुप चाप अपने कमरे में चला गया।  श्वेता ड्राइंग रूम में बैठ गई और माँ किचन में हमारे लिए कॉफ़ी बनाने लगीं।  

मैं जब आया तो श्वेता फिर से बोल पड़ी – और बताओ पढाई कैसी चल रही है ?

मैं – तू सरकास्टिक बोल रही है या सच में पूछ रही है ?

श्वेता – सच में बता दो भाई। 

मैं – पढाई सही चल रही है।  मैडम ने लगभग लगभग कोर्स ख़त्म करा दिया है।  गजब पढ़ाती हैं वो। 

किचन से माँ बोली – हाँ गजब तो पढ़ाती होंगी।  पढ़ाने के बाद तो इंटरकोर्स भी करती होंगी।  कोर्स तो ख़त्म होगा ही। 

श्वेता ये सुनकर जोर जोर से हंसने लगी।  मुझे तो पहले खीज आई फिर मुझे भी हंसी आ गई। 

मैंने हँसते हुए कहा – माँ , इंटरकोर्स तो आपके साथ ही होता है।  श्वेता ने मना  कर रखा है।  अब क्या ही कर सकता हूँ।  

श्वेता – और बता , अब तक तो तारा की चूत तो दरवाजा हो गई होगी। 

मन – नहीं यार।  अभी नहीं।  उसकी लेने का मौका ही नहीं मिला।  एग्जाम के बाद शायद मिले। 

श्वेता – उम्म्म्म , बच्चे को कितना दुःख है।  देख रही हो माँ।  बेचारे के सामने थाली राखी रहती है पर खा नहीं पा रहा। 

माँ – हाँ , उसकी अम्मा पहले इसे छोड़े तब न। 

मैं – यार तुम दोनों को मेरी खिंचाई करनी है तो मैं जा रहा हूँ। 

श्वेता – यार बैठो भी।  अब इतने दोनों बाद मिले हैं कुछ तो मजे कर लेने दो। 

हम तीनो ने कॉफी पी।  उसके बाद दोनों किचन में काम करने लग गईं।  मैंने भी थोड़ी बहुत  मदद की।  काफी दिनों बाद मिलने की वजह से मेरी नजर श्वेता के चेहरे से हट ही नहीं रही थी।  उसका चेहरा बहुत सुन्दर लग रहा था।  मैं बीच बीच में उसे किस कर लेता था।  माँ भी उसे बहुत प्यार भरी नजरों से देख रही थी। खाना खाने के बाद हम ड्राइंग रूम में ही टीवी देखने लगे।  माँ एक कोने में शॉल ओढ़े बैठी थी।  कमरे में हीटर चल रहा था फिर भी श्वेता एक कम्बल ओढ़े माँ के गोद में सर रख कर लेती थी।  मैं भी उसी सोफे में घुसने की कोशिश कर रहा था पर उसने मुझे भगा दिया।  मजबूरन मुझे दुसरे पर कम्बल ओढ़ कर बैठना पड़ा।  माँ प्यार से कभी श्वेता के गाल सहलाती तो कभी उसके गालों को चूम लेती। कुछ ही देर में दोनों मस्ती में आ गईं।  मैंने देखा की माँ का हाथ अब कम्बल के अंदर से ही श्वेता के कुर्ती के अंदर जा चूका था और वो उसके मुम्मे हलके से दबा रही थी।  श्वेता उन्हें मना नहीं कर रही थी बल्कि उसका हाथ अपने चूत पर पहुँच गया था।  उसने चूत में ऊँगली करनी शुरू कर दी थी। 

मुझसे भी रहा नहीं गया मैं उसके पैरों के पास जाकर बैठ गया और कम्बल में घुस गया।  मैं चाहता था की मैं खुद ही ऊँगली करूँ।  उसने पहले तो मुझे भगाने की कोशिश की पर अंत में उसने हार मान लिया।  उसने मेरे जांघो पर पेअर रख दिया।  मैं इस तरह से खिसक गया जिससे मैं उसके पैरों के बीच में आ गया।  मैंने हाथ बढ़ा कर उसके सलवार उतारने की कोशिश की तो उसने रोक दिया।  मैं जबजस्ती करके उसका मूड खराब नहीं करना चाहता था तो मैंने सीधे सलवार के अंदर हाथ डालकर उसके पैंटी के ऊपर से उसके चूत को अपने पंजे के कब्जे में कर लेता हूँ।  मेरे ऐसा करते ही उसने जोर से सिसकारी  ली और अपने दोनों पैरों को सिकोड़ लिया। उधर माँ ने अपने शाल के अंदर से अपना कुर्ती ऊपर कर लिया और श्वेता के मुँह में अपने मुम्मे डाल दिए।  अब श्वेता आराम से उनके  स्तनों को चूसने लगी।  माँ ने भी उसके कुर्ते को ऊपर तक कर दिया था और उसके स्तनों को दबा रही थी।  इस सर्दी में भी कमरे के अंदर का माहौल गरम हो चूका था।  

मैंने कुछ देर बाद श्वेता की पैंटी के अंदर हाथ डाल दिया और धीरे धीरे से उसके चूत को सहलाने लगा। 

श्वेता कुछ मिनटों बाद मेरी तरफ देख कर बोली – क्लीट को मसलो।  

मैंने उसके क्लीट को अपने दो उँगलियों के बीच में दबा लिया और उँगलियों को रगड़ने लगा।  इस तरह से उन उंगलियों  के बीच में फंसे उसके  क्लीट की मालिश होने लगी।  

श्वेता – उफ्फ्फ।  हाँ।  इस्सस।  माँ तुमने कितना बढ़िया सिखाया है इसे।  उफ्फ्फ 

उसके बदन में हलचल होने लगी थी।  उसने सलवार और पैंटी पहनी हुई थी तो मुझे थोड़ी दिक्कत हो रही थी।  उसे इस बात का अंदाजा लग गया था।  उसे भी मजा नहीं आ रहा था।  उसने आखिर खुद ही अपना सलवार और पैंटी हाथ डाल कर घुटने तक कर दिया।  मैंने फिर उसे पूरी तरह से निकाल ही दिया।  अब मेरे हाथो को कोई दिक्कत नहीं हो रही थी।  मैंने एक हाथ की उँगलियों से उसके क्लीट को सहलाना शुरू किया और दुसरे हाथ की उँगलियों को उसके चूत में डाल दिया।  अब मेरे दोनों हाथ हरकत कर रहे थे।  उसने अब माँ के स्तन पीना छोड़ दिया बल्कि  उनके हाथो को अपने स्तनों पर रख दिया और माँ को झुकाकर उन्हें चूमने लगी ।  माँ ने भी इशारा समझ लिया।  माँ ने उसके कुर्ते को ब्रा सहित  उतार दिया और उसके स्तनों को मसलते हुए उसे चूमने लगीं।  कम्बल के अंदर श्वेता पुरी तरह से नंगी थी और हम माँ बेटे उसके शरीर को आनंद दे रहे थे। कुछ ही देर में उसका शरीर अकड़ने लगा।  उसने वहीँ छटपटाना शुरू कर दिया था।  मुझे समझ आ गया था उसकी चूत पानी छोड़ने वाली है। 

उसने भी उत्तेजना में बोलना शुरू कर दिया था – तेज , और तेज करो।  मसल डालो।  आह आह।  बहुत दिनों से प्यासी थी मैं। 

तुमने मुझे प्यासा ही रख रखा था और दूसरी लड़कियों के चक्कर में पड़ गए।  मेरी चूत कितना शिकायत कर रही थी।  उफ़ आह आह आह।  माआआ संभाल लो मुझे , मैं गई।  माआआ 

उसका शरीर काँप रहा था।  उसने मेरे हाथ को जोर से पकड़ लिया और अपने जांघों के बीच फंसा लिया।  मेरी उँगलियाँ उसके चूत में ही थी।  उसका शरीर काँप रहा था।  मैं और माँ उसे स्खलित होता देख रहे थे। उसने माँ को झुकाकर एकदम से जकड लिया था।  पूरी तरह से ओर्गास्म का आनंद लेने के बाद उसे जब होश आया तो वो शर्मा गई। 

मेरा हाथ अभी उसके चूत के ऊपर था।  मैं मन्त्रमुघ्ध होकर उसके संतुष्ट से सुन्दर चेहरे को देख रहा था। 

उसने शर्माते हुए कहा – ऊँगली बाहर निकालो।  मेरा हो गया।  

मैं – हम्म , ओह्ह।  तुम कितनी खूबसूरत लग रही हो।

श्वेता – पहले नहीं थी क्या ?

मैं – तुम हमेशा से थी।  पर तुमने मुझे खुद से दूर कर दिया है। 

पता नहीं ये बिजलकार मैं इमोशनल हो गया और मेरे आँखों में आंसू आ गए।  मेरी हालत देख वो उठ कर बैठ गई और मुझे गले लगाते हेउ बोली – मैंने कभी तुम्हे खुद से दूर नहीं किया।  ना ही तुम मेरे दिल से दूर गए हो।  बस मज़बूरी है। 

मैंने उसे गले लगा लिया।  माँ ने उसे पीछे से कम्बल ओढ़ा दिया और उठ कर किचन में चली गईं।

मैं – ये कैसी मज़बूरी है जो अपने ही प्यार को दूर करता है। 

श्वेता – तुम कितना भी दूर जाओ।  अंत में मेरे पास ही आओगे।  बोलो मुझे छोड़ कर तो नहीं चले जाओगे ?

मैंने उसके आँखों को किस किस किया और कहा – तुम कहो तो आज ही शादी कर लें और मैं फिर किसी के पास नही जाऊंगा। 

श्वेता – पहले दोनों अपने पैरों पर खड़े हो जाएँ फिर देखते हैं।  तब तक तुम्हे आजादी है। 

मैं – मैं आजादी नहीं चाहता हूँ।  बस तुम्हारा प्यार चाहिए। 

श्वेता – मेरा प्यार सिर्फ तुम्हारे लिए ही है। 

मैं – मेरा भी।  सच कहूं तो जब भी किसी के नजदीक जाता हूँ तो शरीर भले वहां रहता है पर मन में तुम ही रहती हो।  मैं यही कल्पना करता रहता हूँ की मैं तुम्हारे साथ हूँ। 

तभी माँ ने गुनगुने गरम पानी के ग्लास टेबल पर रख दिया।  उन्होंने हमारे बालों पर हाथ फेरा और जाने लगीं तो श्वेता ने उनका हाथ पकड़ लिया और बोली – मत जाओ न प्लीज। 

उसके प्यार भरी बात सुनकर माँ भी अचानक से रोने लगीं।  पुरे कमरे का माहौल इमोशनल सा हो गया।  माँ श्वेता से चिपक कर बैठ गईं।  श्वेता हम दोनों के सहारे थी।  कुछ देर हम सब चुप बैठे थे।  शांत से कमरे में तीन धड़कने सुनाई पड़ रही थी।  आज मैंने श्वेता को  प्यार दिया था पर आश्चर्य की बात थी मेरा लंड एकदम शांत था। आज के प्यार में हवस नहीं था।।  सिर्फ प्यार था। 

पर कहते हैं न जब दो बदन मिलते हैं वो भी जन्मजात नग्न अवस्था में तो हवस हावी होने ही लगता है और यहाँ तो तीन बदन थे। श्वेता ने माँ के कंधे पर सर रखा हुआ था और उसके एक हाथ माँ के दुसरे कंधे पर लगा हुआ था।  एक तरह से वो माँ के ऊपर बिना कपडे के थी पर ऊपर से कम्बल ओढ़ा हुआ था।  मैं भी उसी कम्बल में था।  श्वेता की छूट सहलाते सहलाते मैंने अपना पैजामा उतार दिया था। कम्बल में मेरे और श्वेता के पैर आपस में उलझे हुए थे।  श्वेता का हाथ अब माँ के स्तनों पर आ चूका ठौर वो धीरे धीरे उसे दबा रही थी। माँ फिर से गरम होने लगीं थी। उनकी धड़कन तेज हो चुकी थी।  श्वेता को समझ आ गया था अब माँ को भी ख़ुशी चाहिए। 

उसने धीरे से कहा – माँ , मैं तो पूरी तरह से नंगी हूँ।  आपके बहनचोद बेटे ने भी अपना पैजामा उतार रखा है पर आप पुरे कपडे में हैं। 

माँ – हम्म , ठंढ है न। 

श्वेता – माँ ठंढ तो जा चुकी है।  कमरे में हीटर है और उसके ऊपर से बदन की गर्मी।  

माँ – सही कह रही है।  अब मेरे बदन में गर्मी बढ़ रही है। 

माँ ने ये कहकर अपना कुरता उतार दिया। माँ अंदर ब्रा नहीं पहनी हुई थी तो कुर्ती उतारते ही उनके मुम्मे बाहर आ गए।  जसे लपक कर श्वेता ने मुह में भर लिया।  अब माँ ने सोफे के साइड का सहारा लिया और सोफे पर लेटने वाली अवस्था में हो गईं।  श्वेता उनके ऊपर हो गई और उनके स्तनों को दाने चूसने लग गई। 

मेरे लिए सोफे पर जगह बची ही नहीं।  मुझे उतरना पड़ा। मुझे उतरता देख माँ बोली – बेटा अब अपना गरम गरम रॉड दे दे मेरे मुँह मे।  तेरी भी गर्मी उतर जाएगी।  

मैं ये सुनकर एकदम खुश हो गया।  उन्होंने मेरी समस्या ही दूर कर दी थी।  मैं लपक कर उनके पास पहुंचा और उनके सर के पास खड़ा हो गया।  उनका सर सोफे के हेडरेस्ट से टिका हुआ था उन्होंने मेरा लैंड अपने मुँह में डाल लिय।  मैं अब अपने कमर को धीरे धीरे आगे पीछे करने लगा।  मैंने थोड़ा झुक कर उनके एक मुम्मे को पकड़ लिया।  श्वेता ने जब मेरी स्थिति देखि तो वो फिर निचे सरक कर माँ के छूट के तरफ चली गई।  उसने माँ के सलवार और पैंटी को उतार दिया और उनके चूत को चाटने लगी। 

माँ ने मेरा लैंड छोड़ दिया और बोली – उफ्फ्फ , हाँ ऐसे ही। चाट ऊपर से निचे तक चाट। मेरी मुनिया को भी चूसते रहना। 

माँ का आदेश पाकर श्वेता उनके हिसाब से चूत चाटने लगी और माँ ने मेरा लैंड फिर मुँह में ले लिया और मैं उनके मुह चोदने लगा। कुछ देर की चुसाई के बाद माँ से रहा नहीं गया।  उन्होंने कहा – अब तू मुझे और मत तड़पा चोद दे मुझे।  बहुत हुआ।  आजा अब घुसा दे अपना लौड़ा माँ की चूत में। 

माँ का आदेश पाते ही मैंने उनके कमर की तरफ रुख किया।  माँ सोफे से उतर गेन और सोफे का हेडरेस्ट पकड़ कर झुक कर कड़ी हो गईं।  मैं उनके पीछे पहुँच गया।  उनके उभरे हुए गांड को देख कर मुझसे रहा नहीं गया।  मैंने उनके गांड पर एक थप्पड़ मारा और कहा – मन तो कर रहा है गांड ही मार लूँ। 

माँ – मादरचोद , मारता क्यों है ? पहले चूत की खुड़जलि मिटा। 

मैंने मजाक में एक थप्पड़ और मारा और कहा – गांड भी दोगी न?

माँ – भोसड़ी के , अबकी हाथ लगा तो श्वेता से चटवा के झड़ लुंगी और तेरे लौड़े को कभी नहीं लुंगी। 

उनके गुस्से भरे अंदाज से मुझे समझ आ गया था की उनके चूत में भयंकर खुजली मची है।  चुदे बिना मानेंगी नहीं। मैंने अपना लैंड उनके चूत पर सेट किया और एक ही झटके में अंदर तक घुसा दिया।  

उधर श्वेता उनके हाथों के बीच में उनके नीचे आ गई थी।  उसका मुँह माँ के एकदम सामने था।  उसने माँ को किस करते हुए कहा – चल राज चोद माँ को। 

अब मेरी फटफटी चल पड़ी।  मैं माँ के पीठ को सहला भी रहा था और उन्हें चोदे जा रहा था।  श्वेता उनके स्तनों से खेलने लग गई थी।  बीच बीच में वो उन्हें किस भी कर ले रही थी। 

माँ – उह्ह्हह्ह ,चोद जोर से चोद।  पेल दे अपनी माँ को बहनचोद। 

मैं – एकदम कुतिया लग रही हो माँ।  इतनी बार चोदा है फिर भी तुम्हारी चूत हर बार नै सी लगती है 

माँ – भोसड़ी वाले , ये चूत जब नई लग रही है तो श्वेता की मारेगा तो कैसा लगेगा।  उसकी कुंवारी चूत में तो बैगन तक नहीं गया है। 

श्वेता का नाम सुनकर मैंने उसकी तरफ देखा तो वो बोल पड़ी – मेरे बारे में सोचना भी मत।  तुम्हारा ये बांस जैसा लंडदेख कर तो मेरी चूत और सिकुड़ जाती है।  पता नहीं क्या होगा मेरा। 

माँ – इस्सस , चिंता नकार बेटी , मैं और तेरी माँ दोनों सुहागरात के दिन साथ में ही रहेंगे।  एकदम दर्द नहीं होने देंगे। 

श्वेता – पूरा खानदान बुला लेना माँ। 

माँ – हिही ही , बस चले तो आ ही जाएँ। 

श्वेता – भोसड़ी के तू क्या देख रहा है ? चल चोद अपनी माँ को।  सुहागरात तो इन्ही के साथ मनाना। 

मैं – चिंता न करो रानी , सुहागरात में तुम्हे और तुम्हारी माँ दोनों को चोद दूंगा। 

श्वेता – वो तो एक नंबर की छिनाल है , वो सबसे पहले चुदेगी। 

मस्ती भरी बातें और ख़ास कर चाची की गुदाज शरीर को याद करके मेरे धक्कों की स्पीड और तेज हो गई। 

श्वेता ने अब अपना एक हाथ निचे से ही माँ के चूत पर लगा दिया था।  एक तरफ मेरा लंड उनके चूत में हाहाकार मचा रहा था तो दूसरी तरफ श्वेता की उँगलियाँ माँ के क्लीट को रगड़ रही थी। माँ का शरीर अब दो तरफ से मिलने वाले आनंद के सागर में गोते लगाने लगा था।  उनकी चूत अब कभी भी पानी छोड़ सकती थी।  लगभग यही हाल मेरा भी था।  कुछ ही देर में माँ का पूरा शरीर कांपने लगा और उनके पैर थरथराने लगे।  उनकी चूत ने पानी छोड़ना शुरू कर दिया था।  मेरे लंड ने भी उसी समय जवाब दे दिया और पुरे वेग से अपना माल उनके चूत में छोड़ने लगा।  मैंने माँ को थामना चाहा और सोचा की अपना माल हमेशा की तरह उनके चूत में पूरा उड़ेल दूँ।  पर माँ अपने चरम पर बहुत तेजी से गईं थी और धम्म से वहीँ बैठ गईं।  मेरा लंड अब भी पिचकारी छोड़ रहा था जो की माँ के ऊपर ही गिरने लगा।  तभी ना जाने क्या हुआ श्वेता आगे बढ़ी और मेरे लंड को अपने मु में भर ली।  उसने मेरे लंड से निकलते माल को चाटना शुरू कर दिया।  मेरा लंड मेरे रस के साथ साथ माँ के चूत के रस से भी भींगा हुआ था और श्वेता मजे से उसे चाटे जा रही थी।  मुझे लगा था की मेरा लंड माल निकालने के बाद शांत होगा पर श्वेता के होठों ने उसे शांत नहीं होने दिया।  मैंने सोचा की श्वेता की चूत ना सही उसके मुँह को ही चोद दूँ।  पर उसने मेरे अरमानो पर पानी फेर दिया।  पूरा माल चाट जाने के बाद उसने मुझसे कहा – मस्त माल है भाई।  मजा आ गया। 

मैं – चोदने दे ना। 

श्वेता – यही बहुत है।  शादी से पहले ऊपर से ही जो मिले उसके मजे ले लो। 

मैं बेचारा क्या क्या करता वहीँ माँ के बगल में बैठ गया।  मैं और माँ दोनों एक दुसरे से लिपटे सोफे के पास बिछे कार्पेट पर बैठ गए। उस रात खाने के बाद माँ और श्वेता ने फिर से एक दुसरे के चूत को चाटा।  मैं थक गया था तो अपने कमरे में जाकर सो गया ।  दीप्ति मैम के यहाँ चुदाई फिर यहाँ माँ की चुदाई, मुझे तुरंत नींद आ गई थी।  पर माँ और श्वेता लगता हो पागल सी हो गईं थी।  पूरी रात एक दुसरे के बदन के साथ खेलती रहीं। 

अगले दिन मैं उनके कमरे में जगाने गया तो माँ ने कहा – अभी सोने दे।  सुबह पांच बजे तो सोये हैं। 

मैनें दोनों को सोने दिया।  दोपहर बारह बजे दोनों उठीं।  मैंने दोनों को चाय भी पिलाया और नाश्ता भी कराया।  श्वेता और माँ दोनों के चेहरे पर अजीब सी संतुष्टि थी। 

मैंने उन्हें कहा – लगता है आप दोनों बहुत दिनों से प्यासी थी। 

माँ – हां, तू इधर बीच बीजी हो गया था।  

श्वेता – हमारे लिए इसके पास टाइम ही कहाँ है। 

मैं अभी जवाब देने ही वाला था कि सोनी का फ़ोन आ गया।  श्वेता ने सोनी का नाम देख कर कहा – देखा , इसकी प्रेमिकाओं कि कमी नहीं है। 

मैंने फ़ोन उठा लिया।  अगले हफ्ते फैक्ट्री के कागज़ पर साइन करने थे।  मेरा मन नहीं था पर मज़बूरी थी।  कुछ देर काम कि बात करने के बाद होली कि प्लानिंग होने लगी। तय यही हुआ कि सब नाना के यहाँ चलेंगे।  होली का असली मजा वहीँ आने वाला था।  बड़ी मौसी, लीला दी और विकास और सुरभि भी वहां आने के लिए तैयार थे। 

सोनी ने श्वेता के बारे में पुछा तो मैंनेउसे कहा – खुद ही पूछ लो। 

सोनी और श्वेता कि बात होने लगी।  कुछ देर औपचारिकता के बाद जब सोनी ने श्वेता को नाना के यहाँ होली पर आने को कहा तो श्वेता शायद हाँ कहने वाली थी कि माँ ने उसे ना का इशारा किया।  ये देख श्वेता ने कहा – देखती हूँ। मेरे एग्जाम भी होंगे। 

कुछ देर सोनी ने और बात कि फिर फ़ोन रख दिया। 

मैंने माँ से पुछा – आपने श्वेता को जाने से मना  क्यों किया ?

माँ – साले तेरे सुहागरात से पहले ही इसकी चूत का भोसड़ा बन जाना है वहां। 

मैं – क्या मतलब ?

माँ  – तेरे नाना के यहाँ होली पर कोई नियम नहीं है।  जिसका मन करे किसी को चोद सकता है।  लौंडिया मन नहीं कर सकती। 

श्वेता – ये अजीब नियम नहीं है ?

माँ – जिसके लिए अजीब है वो नहीं जाता।  जो जा रहा है मतलब वो चुदने को तैयार है। 

मैं – इसका मतलब विकास और सुरभि। 

माँ – तू भोला है।  तेरी मेरी चुदाई तो बहुत बाद में शुरू हुई।  विकास तो अपनी माँ कि कबसे ले रहा है। 

आश्चर्य से मेरा मुँह खुला का खुला रह गया।  

माँ – तुझे क्या लगता है जिस घर में लीला जैसी लड़की हो वहा कैसा माहौल होगा।  लीला को देख कर भी तुझे समझ नहीं आया। 

श्वेता – पर माँ , सुरभि ?

माँ – वो लीला से कम नहीं है ।  उसके पापा ने ही सबसे पहले उसकी सील तोड़ी थी । 

मैं और श्वेता दोनों खामोश थे।  माँ ने कहा – कभी उनकी कहानी सुनाऊँगी। 

मैं – अभी बताओ न।  सुरभि कि सील कैसे टूटी ? नाना ने भी उसे पेला है क्या ? विक्की और मौसा के तो मजे हैं।  तीन तीन चूत। 

माँ – चल खाना बनाने दे।  दोपहर में सुनाऊँगी उनकी बात। 

श्वेता – मजा आएगा।  आज दोपहर में। 

मैं – बस सुन कर मजे लेगी।  देख तेरे बराबर कि लौंडिया चूत का भोसड़ा बना चुकी है और तू मुझसे शर्त शर्त खेल रही है। 

श्वेता – सबकी अपनी मर्जी होती है।  मेरी मर्जी है कि पति से सुहागरात को ही सील खुलवाउंगी। 

मैं – यार पति सामने खड़ा है।  चल अभी शादी करते हैं। 

श्वेता – अपना मुँह देखा है।  पहले शादी के लायक बनो।  अपने पैर पर खड़े हो जाओ।  फिर सोचूंगी। 

मैं – शादी के लायक जिसे होना है वो हो चूका है।  और अपने दोनों पैरों के बल पर खड़ा हूँ।  तीसरे के बल पर तुझे खड़ा कर दूंगा। 

श्वेता – ही ही ही , मजाक अच्छा है।  

मैं – मजाक लग रहा है।  माँ बता इसे मेरे पैरों के बारे में। 

माँ – लड़कर क्या फायदा।  आज नहीं तो कल इसकी चूत मिल ही जाएगी।  तब तक तू अपने हथियार कि धार को बाकी चुतों से रगड़ रगड़ कर तेज करो। 

ये सुनकर मैं और श्वेता हंस पड़े।  माँ किचन में  लग गईं।  मैं और श्वेता पढाई में जुट गए।  आज दोपहर फिर एक कहानी माँ सुनाने वाली थी।  

खाना पीना खाने के बाद हम तीनो माँ के कमरे में रजाई के अंदर घुस गए। कमरे में हीटर चल रहा था और बदन में गर्मी भी थी पर जाड़े में रजाई में बदन से बदन सटा कर लेटने का अलग ही मजा है।  

मैंने माँ से कहा – तुम विकास भाई और सुरभि की कहानी सुनाओ ना। 

माँ – तू मानेगा तो है नहीं। चल सुन। 

——————————————–सुरभि और विकास के बर्थडे के कहानी माँ कि जुबानी (फ्लैशबैक) —————————-

तेरी बड़ी मौसी सुशीला नानी और नाना की तरह ही एक नंबर की चुदास हैं।  मौसा भी वैसे ही बिंदास।  दोनों ने मान लिया था कि इस घर में चुदाई का खुला माहौल था और आगे भी बना रहेगा।  लीला जब बड़ी हुई तो उसकी सील तेरे नाना ने तोडा।  इस बात का अफ़सोस तेरे बड़े मौसा को बहुत ज्यादा था।  उन्होंने तभी मौसी और नाना से वादा ले लिया था कि अगर दूसरी लड़की हुई और वो इस घर के माहौल में सेट हो जाती है तो उसकी सील मौसा ही तोड़ेंगे।  मौसी के लिए तो ये मान्य था कि लड़का हुआ तो उसका लौड़ा मौसी के चूत में सबसे पहले जाएगा।  

तेरी बहनो ने तो कभी भी नाना और मौसा लोगों को चोदने का मौका नहीं दिया। 

वैसे ही तेरी छोटी मौसी कि लड़की सोनी ने कहीं किसी लौड़े से चुदाई नहीं करवाई।  उसके कड़े रुख कि वजह से तेरी छोटी मौसी , मौसा और विक्की तो उसके सामने ज्यादा कुछ नहीं करते थे।  वो तो तू जब गया तो उनके यहाँ माहौल खुला और अब सब सामने है।  

पर बड़ी मौसी के यहाँ ऐसा नहीं था।  उनके यहाँ पूरी नंगई थी। सिर्फ वही नहीं था , चुदाई करते समय खुल कर गालियां देना , कपडे फाड़ना , सबके सामने सामान दबा देना सब चलता था।  लीला कि जब उम्र हुई तो वो नाना से चुदने लगी थी। 

तुझे तो पता ही है लीला के चार साल के होने के बाद विकास और सुरभि पैदा हुए थे और दोनों जुड़वाँ हैं।  दोनों जो भी करते एक जैसा करते और एक साथ करते।  जब सुरभि को पहला पीरियड आया तो उसी समय विकास का लौड़ा भी पहली बार पानी छोड़ा।  दोनों आपस में खुले हुए थे।  स्कूल कि बातें आदि सब शेयर करते।  लीला तो रंगीन थी ही।  उसके कॉलेज में कई दोस्त थे तो सुरभि के स्कूल में भी दोस्त बन चुके थे।  पर तेरी मौसी ने शख्त हिदायत दे रखी थी कि चुम्मा छाती और ऊपर से दबवाने और सहलाने कि इजाजत तो है पर सील तो बाप ही तोड़ेगा। सुरभि बहुत स्मार्ट थी।  वो लौंडो को टहलाती तो थी पर हाथ नहीं लगाने देती थी।  पर किसी को पता नहीं था कि सुरभि और विकास अपनी जवानी को एक्स्प्लोर करना शुरू कर चुके थे। विकास भी अपनी माँ और बड़ी बहन लीला के साथ खेलने लगा था।  जब उसका लंड अपने उबाल पर आता तो वो अपनी बड़ी बहन या माँ के पिछवाड़े से जा चिपकता और उनकी गांड में अपना लंड फंसा कर चिपक जाता ये उसका फेवरेट काम था।  सोते समय उनके ऊपर सोना , आते जाते उनके मुम्मे दबा देना।  ये सब उनके घर में आम था।  वैसे ही सुरभि भी अपने पापा या भाई के गोद में बैठ लेती। । कभी पीठ उनके पेट से सटा कर या कभी उनके तरफ अपना चेहरा करके।  जब उसकी चूत में ज्यादा खुजली होती तो माँ या बहन से चटवा लेती।  चटवाने और रगड़ने तक की छूट उसे मिली हुई थी।  जैसे जैसे दोनों बालिग होने की तरफ बढ़ने लगे , सत्रह पूरा होने को आया , दोनों मस्त सपनो की दुनिया में खो जाते।  दोनों के अंदर ये चुल्ल थी की कैसे जवानी का मजा चखा जाए। 

जब उनके अठारहवें जन्मदिन मनाने की बात हुई तो मौसा और मौसी ने बड़ी पार्टी रखने को सोची।  पर दोनों ने तो अलग ही प्लान कर रखा था। उन दोनों ने कहा कि जन्मदिन बिलकुल प्राइवेट में होगा जिसमे सिर्फ वो चार लोग होंगे। दोस्तों रिश्तेदारों के साथ अलग पार्टी बाद में होगी। 

उनकी ये बात सुनकर पहले तो मौसा ने कहा – लाइफ एन्जॉय करो , दोस्तों के साथ मस्ती करो , सेक्स वेक्स होता रहेगा। 

पर दोनों ने कहा – उन्हें घर के माहौल में खुलकर एन्जॉय करना है।  दोस्तों के साथ एजॉय तभी कर पाएंगे जब उनको एन्जॉयमेंट करने तरीका पता हो। 

आखिर सबको मानना पड़ा।  उनके उन्नीसवें साल के पहले दिन एक जबरजस्त पार्टी का अरेंजमेंट किया गया।  दो बड़े केक , बियर, ड्रिंक्स , खाने का अच्छी व्यवस्था , म्यूजिक सब घर में अर्रेंज हुआ ।  लीला तेरे नाना और मामा मामी को भी बुलाना चाहती थी पर सुरभि उन्हें नहीं बुलाने के जिद्द पर अड़ी थी।  

उस पर लीला ने कहा  – तुम दोनों भाई बहन तो अपना उद्घाटन करवा लोगे पर मेरा क्या ? तुम लोग अपनी पार्ट मनाओ मैं जा रही हूँ। 

लीला के जिद्द के आगे सबको झुकना पड़ा।  बात भी सही थी।  

सुरभि ने कहा – सिर्फ नाना और कोई नहीं।  और कल नाना ने मुझे बिना मर्जी के छुआ तो उनका लैंड काट दूंगी। 

सब ये सुनकर हंसने लगे।  शाम को नाना भी उनके घर पहुँच गए।  वो साथ में शैम्पेन का बोतल लेकर आये थे। 

ये देख कर विकास और सुरभि दोनों खुश हो गए।  नाना ने दोनों के लिए बहुत गिफ्ट भी लिए थे।  नया फ़ोन, घडी।  अभी पार्टी शुरू होनी थी कि बाहर घंटी बजी।  विकास दरवाजे पर गया तो दो लोग खड़े थे।  पीछे से तेरे मौसा भी पहुँच गए।  उन्होंने सुरभि को आवाज दिया।  

सब बाहर निकले तो देख कर एकदम खुश हो गए।  दोनों बन्दे हौंडा से आये थे।  मौसा ने विकास के लिए बाइक और सुरभि के लिए स्कूटी खरीदी थी।  सुरभि ने स्कूटी देखा तो एकदम से पापा से लिपट गई और उनके चेहरे को बेतहाशा चुमने लगी।  एक तरफ विकास अपनी बाइक देखने में मगन था पर सुरभि तो पापा से लिपटी हुई थी।  खैर चाभी और बाकी फॉर्मेलिटी करने के बाद उन दोनों बन्दों को भेज दिया गया और सब घर में आ गए।  नाना ने कहा – भाई इस ख़ुशी में शेम्पेन भी खोला जाए। 

मौसी – क्या बाउजी , आप भी ना।  पहले केक कटेगा फिर कुछ और। 

टेबल पर दोनों केक सजा दिए गए सुरभि और विकास ने केक काटा।  सुरभी ने पहले अपने पापा को खिलाया और विकास ने माँ को।  तभी लीला को ना जाने क्या चुहल सूजी , उसने एक बड़ा टुकड़ा केक का उठाया और सुरभि के चेहरे पर पोत दिया।  पहले तो सुरभि बहुत गुस्सा हुई पर सभी उसको देख कर हंसने लगे।  ये देख सुरभि ने भी केक का टुकड़ा लिया और लीला के चेहरे पर लगा दिया। फिर क्या था केक का खेल शुरू हो गया।  विकास ने एक टुकड़ा उठाया और अपनी माँ के चेहरे पर लगा दिया। सिवाय नाना और तेरे मौसा के सबके चेहरे पर केक पुता हुआ था।  सुरभि ने कहा – धूल कर आती हूँ।  

उसके पापा बोले – ला मैं साफ़ कर दूँ। 

सुरभि – रहने दो मैं धूल कर आती हूँ। 

तब तक तेरे मौसा ने उसे अपने गोद में खींच लिया और उसके चेहरे पर लगे केक को जीभ से चाटने लगे। 

सुरभि और तेरे मौसा के देखा देखि लेना ने नाना से कहा – आप मेरी सफाई कर दो।  

नाना – तू कहे तो तुझे तो चाट कर पूरा साफ़ कर दूँ।  

लीला  उनके गोद में बैठ गई। 

मौसी ने देखा कि खेल शुरू हो गया है तो उन्होंने विकास कि तरफ इशारा किया।  विकास जैसे ही उनके पास पहुंचा तेरी मौसी ने उसे चाटना शुरू कर दिया। चूँकि तेरी मौसी के चेहरे पर भी केक लगा था विकास उनके चेहरे को चाटने लगा।  दोनों खड़े खड़े एक दुसरे के चेहरे को चाटने लगे।  लीला और सुरभि सोफे पर अपने अपने आशिक के गोद में बैठ कर चेहरा साफ़ करवा रही थी। चुम्मा छाती का ये कार्यक्रम चल रहा था।  तेरे मौसा ने सुरभि के टॉप को उतारना चाहा तो सुरभि बोल पड़ी – अभी नहीं। 

उसके ना बोलते ही तेरे मौसा रुक गए।  सुरभि ने भी अपने आपको कन्ट्रोल किया और बाथरूम कि तरफ चली गई।  उसके हटते ही मौसी और  विकास भी चेहरा साफ़ करने चले गए।  पर लीला वहीँ तेरे नाना और मौसा के साथ चिपक कर बैठ गई।  उसे पता था अभी तो चुसाई और चटाई का खेल चलने वाला है। 

——————————————————————-वर्तनाम में ——————————————————————–

माँ कि बात सुनकर मैंने कहा – माँ तुहे याद है तुमने और दीदी ने कैसे ऐसे ही मुझे फ्रूट्स खिलाये थे। 

माँ – वो तो कुछ भी नहीं था।  तेरे मौसा के यहाँ उस रात तो बहुत कुछ हुआ। 

श्वेता – आगे सुनाओ ना। 

माँ – रुक जरा शुशु आई है। 

श्वेता – रुको मैं भी ऑटो हूँ।

मैं – मैं भी। 

बाथरूम में हम तीनो नंगे ही घुस गए।  

———————————————————-वर्तनाम में —————————————————-

माँ कि बात सुनकर मैंने कहा – माँ तुहे याद है तुमने और दीदी ने कैसे ऐसे ही मुझे फ्रूट्स खिलाये थे। 

माँ – वो तो कुछ भी नहीं था।  तेरे मौसा के यहाँ उस रात तो बहुत कुछ हुआ। 

श्वेता – आगे सुनाओ ना। 

माँ – रुक जरा शुशु आई है। 

श्वेता – रुको मैं भी आती  हूँ।

मैं – मैं भी। 

बाथरूम में हम तीनो नंगे ही घुस गए।  माँ ने एक कोने में निचे ही मूतना शुरू कर दिया था और श्वेता कमोड पर जाकर बैठ गई।  दोनों ने जब सीटियों के साथ मूतना शुरू किया तो मेरे लंड ने सब भूल सलामी देना शुरू कर दिया।  मैं बस उन दोनों के छूट की म्यूजिक सुन रहा था।  

श्वेता हँसते हुए बोली – क्या हुआ मेरे राजा ?

मैं – अरे तुम दोनों उठो तो मैं करूँ। 

दोनों उठ गई।  माँ – खड़ा करके रखेगा तो मुतेगा कैसे?  

मैं  – तुम दोनों की चूत का संगीत और तुम्हारी मस्त गांड देख कर ये सलामी देने लगा। 

माँ – कर ले अगर आगे की कहानी सुननी है तो।  वैसे भी ये कहानी सुनकर खड़ा ही रहने वाला है।  

दोनों ने मुझे उसी हालत में छोड़ दिया।  बड़ी मुश्किल से लंड पर पानी डाल कर मैंने उसे तैयार किया। कमरे में वापस पहुंचा तो श्वेता नही थी। कुछ ही देर में वो पानी की बोतल लेकर अंदर आई।  हम सब वापस रजाई में घुस गए।  माँ बीच में और हम दोनों उनके दोनों तरफ उनके शरीर को मींजने लगे।  माँ ने आगे की कहानी शुरू की। 

———————————–सुरभि और विकास के बर्थडे के कहानी माँ कि जुबानी (फ्लैशबैक) ————————

हाथ मुँह धोकर सब वापस आये तो नाना ने कहा – अब तो शेम्पेन खोल लिया जाए। 

तेरी मौसी – अभी केक खा लीजिये बाबूजी।  कुछ नाश्ता कर लें।  एक बार शेम्पेन खुला तो फिर सब उसी पर भीड़ जायेंगे। 

केक और नाश्ता खाने के बाद विकास ने बोतल उठा लिया और उसे जोर से हिलाते हुए खोल दिया।  शेम्पेन झाग के साथ तेजी से निकलने लगा।  चुहलबाजी में उसने उसकी धार उसने तेरी मौसी की तरफ कर दी। मौसी शेम्पेन से भींगने लगीं।  ये देख सब हंसने लगें।  

तेरे नाना बोले – अरे शेम्पेन क्यों बर्बाद कर रहा है ? 

तेरी मौसी  गुस्से में – आपको ये नहीं दिख रहा है मैं भींग रही हूँ ?

विकास – मेरे ऊपर केक लगाते समय तो सब मजे ले रहे थे। 

सुरभि ने बोतल विकास के हाथ से ले लिया और अपने पापा के पास जाकर बैठ गई।  विकास हँसते हुए अपनी माँ को देख रहा था।  

और लीला को ना जाने क्या सुझा उठी और अपनी माँ के चेहरे और स्तनों पर से टपकता हुआ शेम्पेन चाट कर बोली – जैसे केक साफ़ किया था वैसे ये भी साफ़ कर दे। 

अब विकास भी अपनी माँ के ऊपर टूट पड़ा।  तेरे नाना भी उठ कर मौसी के पास गए।  मौसी के शरीर और कपड़ों को तीनो चाटने लगे।  लीला उनके कपडे भी उतारने लगी।  कुक ही देर में मौसी सिर्फ पैंटी में खड़ी थी और तीनो उनके शरीर के अंग अंग को चाट रहे थे।  लीला ने तो एक बीयर की बोतल उठा ली और उसे अपनी माँ के दोनों स्तनों पर धीरे धीरे करके उडेलनी लगी।  लग रहा था तेरी मौसी के स्तनों से दूध की नहीं शराब की धार निकल रही हो और विकास के साथ साथ तेरे नाना दोनों स्तनों से उस धार को पी रहे थे।  तेरी मौसी सिसकारियां ले रही थी। 

कुछ देर में लीला अपनी माँ के पैरों के बीच में बैठ गई और चूत को पैंटी के ऊपर से ही चाटने लगी। विकास उनके सामने खड़ा उनके चेहरे, गर्दन और मुम्मे चाटने में लगा था।  नाना अपनी बिटिया के पीछे जा पहुंचे थे और उनके गोर गोर पीठ के को चूमते हुए उनके गांड मसल रहे थे। 

लीला ने विकास के पैंट और अंडरवियर को भी उतार दिया।  विकास का लंड पुरे उफान पार था। लीला का जीभ अपनी माँ के लंड पर था और हाथ भाई के लंड की लम्बाई नाप रहा था। 

उधर सुरभि अपने पिता के गोद में थी।  तेरे मौसा उसके छोटे मद्धम अकार के मुम्मो को मसल रहे थे। और सुरभि उनके ऊपर बैठी अपने कमर को आगे पीछे कर रही थी।  तेरे मौसा खिलाड़ी थे।  उन्हें पता था जल्दीबाजी में कोई मजा नहीं है।  वो तो बस उसको हर तरह से प्यार कर रहे थे।  कभी उसके गर्दन को चूमते तो कभी उसके कान के लबों को।  उनका एक हाथ उसके स्तनों के अकार को नाप रहा था तो एक हाथ नाभि की गहराइयों और पेट की चिकनाई महसूस कर रहा था।  

जैसे ही विकास का लंड सामने आया , सुरभि बोल पड़ी – पापा , इसका भी बड़ा है। 

तेरे मौसा – आखिर बेटा और नाती किसका है। 

सुरभि अब घूम गई और अपने पापा की तरफ मुँह करके बैठ गई।  उसकी चुस्त लेग्गिंग आगे से गीली हो रखी थी।  मौसा का लंड भी अपने आकार में आ चूका था।  सुरभि ने पैंट की जिप खोल कर उसे अंडरवियर के छेद से बाहर कर दिया था। हाथ में बाप का लौड़ा लेकर बोली – पापा लगता है ये अब मानेगा नहीं। 

सुरभि के पापा – मानेगा तो नहीं।  पर जल्दी क्या है ?

सुरभि – आपका यही अंदाज तो कातिल है। 

दोनों फिर से एक दुसरे को चूमने लगे।  तेरे मौसा उसकी पीठ सहलाते सहलाते उसके कुर्ती को ऊपर करने लगे।  उसने कोई विरोध नहीं किया।  अब वो टॉपलेस थी।  सिर्फ लेग्गिंग में।  तेरे मौसा उसके स्तनों को दबा रहे थे और वो उन्हें चूम रही थी। 

उधर तेरे नाना नानी को चोदने का मूड बना चुके थे।  उन्होंने अपने कपडे उतार दिए थे।  मौसी को जैसे ही लगा कि बाउजी अब छोड़ेंगे नहीं तो वो अलग हो गईं।  उन्होंने विकास का हाथ पकड़ा और लड़खड़ाते हुए डाइनिंग टेबल कि तरफ बढ़ते हुए बोली  –  आज नहीं बाउजी।  लीला है न।  आज मैं अपने बेटे की हूँ।

ये सुनते ही विकास एकदम से खुश हो गया।  उसने मौसी को बेतहाशा चूमना शुरू कर दिया।  कुछ ही पल में मौसी डाइनिंग टेबल पर लेटी हुई थी और विकार उनके ऊपर लेटी हुई अवस्था में उनके शरीर को चूम और चाट रहा था। 

तेरे नाना अपनी ही बेटी की इस हरकत को देख कर नाराज से हो गए।  बोले – रंडी , अपने बाप को मना करती है।  देख तेरी बेटी की क्या हालत करता हूँ। 

मौसी ने भी जवाब दिया – वो आपकी रखैल बन चुकी है।  साली को बस गहराई तक खुदाई चाहिए।  उसका चूत तो पहले से भोसड़ा बना हुआ है।  आपने पेल पेल के फाड़ दिया है। 

लीला – चुप साली बहनचोद।  तूने ही तो सब सिखाया है।  अपने मर्द से पहले बाप से चुदी।  और खुद तो जवान लौंडे का मजा ले रही है।  लौड़ा मिला तो बाप को छोड़ दिया।  मैं कम से कम वफादार तो हूँ। 

मौसी – तो दिखा न वफादारी। चढ़ा ले मेरे बाप को।  

लीला – चढ़ा लुंगी तेरे बाप को भी , अपने बाप को भी।  और अभी जो लंड मिला है वो भी एक दिन मेरे चूत में आएगा। 

नाना ने लीला कप वहीँ माँ के बगल में डाइनिंग टेबल पर कुटिया बना कर खड़ा कर दिया और पीछे से उसके चूत में अपना लंड दाल कर चोदने लगे। 

लीला – आह नाना , चोद दो मुझे।   मुझे ये स्वीकार करने में कोई आपत्ति नहीं है की मैं तुम्हारी पर्सनल रखैल हूँ।  आह इस्सस। और तेज। 

अब तक विकास भी अपनी माँ की चूत में घुस चूका था।  उसने मुठ तो बहुत बार मारी थी।  ऊपर ऊपर से अपनी माँ और बहन के ऊपर रगड़ा मार के माल भी गिराया था।  पर उसका लंड चूत की सर पहली बार कर रहा था।  चूँकि पहले से काफी एक्साइटेड थे तो कुछ ही धक्कों में उसने माल गिरा दिया।  माल निकलते ही उसका लंड सिकुड़ गया। अपनी स्थिति का एहसास होते ही उसका मन रुनवासा हो गया। 

तेरी मौसी अनुभवी थी।  पर जोश में जल्दी कर गईं थी।  

वो उठ कर बैठ गई और उससे बोली – होता है।  पहली बार था।  तेरे पापा का भी पहली बार झट से निकल गया था।  देख अब कितने अनुभव से सुरभि को प्यार कर रहे हैं। 

विकास ने उधर देखा तो सुरभि सोफे पर नंगी बैठी हुई थी और उसके पापा उसके जांघों में मुँह घुसाए हुए उसकी चूत चाटने में लगे हुए थे। उन्हें कोई जल्दी नहीं थी। सुरभि भी तड़पते हुए अपने बदन को इधर उधर कर रही थी। पसीने में भींगा उसका बदन बता रहा था कि उसकी चूत कई बार बाह चुकी है।  और वो एक बार और झड़ने कि कगार पर है। 

उधर उसके नाना कुत्ते की तरह लीला को चोद रहे थे। 

तेरी मौसी ने विकास का हाथ पकड़ा और बोली – चल जरा अब मुझे साफ़ कर दे।  तुम सबके थूक और शराब की गंध से पूरा शरीर अजीब लग रहा है। 

वो उसे बाथरूम में लेकर चली गईं।  बाथरूम में पहुँच कर उन्होने कहा – रुक जरा शुशु कर लूँ।  

विकास ने उन्हें पकड़ लिया और कहा – मुझे भी शुशु आई है। 

मौसी हँसते हुए – एक साथ करते हैं।  उन्होंने विकास को पीछे से बाहों में भर लिया और उसके लंड को पकड़ कर बोली – स्स्सस्स्स्स 

विकास के लंड से धार निकलने लगी।  विकास को तभी महसूस हुआ की उसके पीछे से भी एक गरम धार भिंगो रही है।  मौसी ने भी मूतना शुरू कर दिया था।  उनके पेशाब की धार विकास के गांड और पैरों को भिंगो रही थी। 

विकास – माँआआ। 

मौसी – सससससस , चुप।। 

मौसी ने विकास के मूत से अपने हाथों को गीला कर लिया था और खुद उसके ऊपर मूत रही थी।  बाथरूम में उस वक़्त धड़कन की आवाज के अलावा सीटी बज रही थी।  माहौल गरमा रहा था। पर इस बार मौसी ने सोच रखा था गलती नहीं होने देंगी। मूत लेने के बाद उन्होंने विकास का हाथ पकडा और शावर ऑन करके उसके नीचे हो गईं।  शावर के अलावा उन्होंने मग लिया और विकास के कमर के अगले हिस्से पर ठंढा पानी गिराने लगीं।  उन्होंने उसके लंड को एकदम से शांत कर दिया। 

लंड की चमड़ी को हटा कर अंदर से सफाई करते हुए उन्होंने कहा – दिमाग और शरीर दोनों को ठंढा रख।  चुदाई भूल कर चोदेगा तो तेरा लंड कमाल करेगा। चल अब बिना गरम हुए मेरे शरीर पर साबुन लगा। 

विकास – माँ , तुम इतनी गरम हो कि शांत कैसे रहूँ।  तुम्हारे मुम्मे इतने रसभरे है। मन करता है चूसता रहूं। 

मौसी – जानता है  तुझे बचपन में मैं ज्यादा दूध नहीं पीला पाई।  तूने मेरे मुम्मे बहुत कम पिए हैं।  बल्कि तूने अपनी छोटी मौसी सरोज के दूध बहुत पिए है। 

विकास उनके पीठ पर साबू लगा रहा था।  ये सुनते ही उसके हाथ रुक गए।  बोला – क्या ? पर क्यों ?

मौसी – सुरभि बचपन में बहुत कमजोर थी।  उसे मेरी ज्यादा जरूरत थी।  डॉक्टर ने भी उसका ख्याल रखने को ज्यादा कहा था। इस लिए। 

विकास माँ से चिपक गया।  मौसी – चिंता मत कर अब मैं तुझे पूरा प्यार दूंगी।  तू जो मांगेगा सब दूंगी। 

विकास ने अपनी माँ को चूम लिया और बोला – तेरा प्यार ही सब कुछ है मेरे लिए।  

दोनों कि आँखें भर आई थी।  दोनों ने फटाफट अपने अपने शरीर को अच्छे से धोया और साफ़ किया। और कपडे पहन कर बाहर चल पड़े। 

बाहर का नजारा अलग ही था।  लीला और नाना थके मांदे पड़े हुए थे।  पर तेरे मौसा शांत बैठे हुए थे।  सुरभि चुदी नहीं थी। उसने अपने पापा के लंड को चूस कर उनका माल निकाल दिया था। तेरे नाना का लंड और वहसी अंदाज ने उसे डरा दिया था। 

मौसी ने ये सब देखते ही कहा – लगता है सुरभि आज कुँवारी ही रहेगी।  कोई बात नहीं।  चलो नाहा धोकर आ जाओ।  खाना खाते हैं। 

सुरभि अपने माँ के गले लग गई और बोली – माँ पापा बहुत अच्छे हैं।  मुझे डर लग रहा था। 

मौसी – कब तक डरेगी मेरी बिटिया।  एक बार तो दर्द झेलना पड़ेगा। 

मौसा – तुम्हारे बिना काम नहीं होगा सुशीला।  

मौसी – ठीक है।  तैयार होकर सब आ जाओ।  खाना खाते हैं। 

लीला उठकर बाथरूम में चली गई।  नाना को वहीँ नंग धडंग हालत में देख मौसी बोली – बाउजी , कुछ तो शर्म कीजिये।  उठिये साफ़ सफाई करके कपडे पहनिए।  

मौसा कि तरफ देख कर बोली – आप भी उठिये। 

सब उठ कर बाथरूम में चले गए।  मौसी और विकास किचन में खाने कि तैयारी में। 

विकास अपनी माँ को प्यार भरी नजरो से देख रहा था।  कुछ ही देर में सब खाने के टेबल पर थे। 

———————————————————-वर्तनाम में —————————————————-

मैं – तो सुरभि कि चुदाई नहीं हुई ?

माँ – हुई न।  सुरभि भी चुदी और विकास ने संयम से अपनी माँ भी चोदी। 

मैं – माँ , सच में विकास ने आपका दूध पिया है ?

माँ – हाँ , उस समय सुरभि कि हलर बहुत ख़राब थी।  विकास का वजन तो ठीक ठाक था पर सुरभि बहुत कमजोर थी।  सबका ध्यान उसी कि तरफ था। तुम और विकास लगभग एक उम्र के हो तो मेरा दूध आता था।  तेरे साथ साथ वो भी मेरा दूध पी लिया करता था। 

मैं – ओह्ह।  तुमने ये बात कभी बताई नहीं। 

माँ – इतनी बड़ी बात नहीं थी।  हमारे जमाने में परिवार में मायें एक दुसरे कि बच्चो को दूध दे दिया करती थी।  

मैं – फिर भी। 

माँ – बोला न इतनी बड़ी बात नहीं थी।  एक साल के अंदर अंदर सुरभि का स्वास्थ सही हो गया और विकास भी तब तक बाहर के दूध पर आ गया था।  उसने जल्दी ही ऊपर का खाना पीना शुरू कर दिया था।  और फिर तुम भी तो थे। 

मैं – मैंने तो किसी का दूध नहीं पिया ना ?

माँ – तूने भी सबका दूध पिया है।  मौसियों का भी और चाची का भी। 

श्वेता – ये बहनचोद तो आज भी पी रहा है।  अपनी बहनो का। 

माँ ये सुनकर हंस पड़ी।  

मैं – तेरा भी पियूँगा।  कहे तो आज ही चोद दूँ नौ महीने बाद तैयार हो जाएगी। 

श्वेता – चुप मादरचोद।  माँ को चोद।  और मेरा दूध अपने बच्चे के लिए होगा।  उसका ख्याल भी रखना है।  उसे कमजोर थोड़े ही करुँगी। 

मां – हाँ।  मेरे बेटे का बेटा होगा।  उसका ख्याल रखेगी तो वो तेरा ख्याल रखेगा।  क्या पता उसका लौड़ा घर में सबसे बड़ा हो।  राज के बाद वही राज करे सब पर। 

श्वेता सरमाते हुए – क्या माँ ? आप भी न कुछ भी बोलती हो।  बेटा होगा  मेरा। 

माँ – ये भी तो बेटा है।  

मैं – माँ।  बाप बेटे दोनों मिलकर इसको खुश रखेंगे। 

श्वेता – चुप रहो।  पहले अपनी माँ को खुश करो।  चूत गीली हो रखी है। 

माँ – बड़ी समझदार है।  खुद तो चादर में पोछे जा रही है। रजाई पूरी गीली हो रखी है । 

श्वेता – अब आप इतनी गरमा गरम कहानी सुनाओगी तो गीली होगी न। 

मैं माँ के ऊपर चढ़ गया और उनके चूत में लंड डाल कर बोला – तरसने दे इसे माँ।  तू आगे कि कहानी सुना ना। 

माँ – उफ़ , आराम से।  धीरे धीरे करना।  प्यार से।

मैं – कहो तो बस डाल कर लेटा रहूँ। 

माँ – हाँ , बस धीरे धीरे आराम से मजे लेकर चोद। 

मैंने अपने हाथो पर अपना वजन लिया और उनके स्तनों को चूसते हुए कहा – आगे सुनाओ न। 

———————————–सुरभि और विकास के बर्थडे के कहानी माँ कि जुबानी (फ्लैशबैक) ————————

खाने के साथ थोड़ी बहुत चुहलबाजी भी चल रही थी।  ड्रिंक्स भी टेबल पर था।  तेरी मौसी ने उस पर भी अपनी चाल चल दी थी।  उसका असर भी दिख रहा था।  खाना ख़त्म होते होते तक तेरा नाना और लीला नींद कि चपेट में थे। जैसे ही खाना ख़त्म हुआ दोनों एक कमरे में चले गए।  वो दोनों भूल गए थे कि चुदाई अभी शुरू भी नहीं हुई है।  पर मौसी ने चालाकी से दोनों को किनारे कर दिया था।  खाना ख़त्म होने के बाद मौसी ने कहा – आइक्रीम राखी है खाना है ?

सुरभि – अरे पहले बताना था।  नाना और लीला दी भी ले लेते। रुको जगा कर लाती हूँ। 

मौसा – तू अपने को बहुत स्याना समझती है।  तेरी माँ डेढ़ सयानी हैं।  दोनों गए सोने।  जाने दे। 

सुरभि को अब समझ में आया।  उसने कहा – माँ तुम बहुत बदमाश हो।  अपनी ही बेटी और बाप के साथ ऐसा किया ?

तेरी मौसी – मेरी लाडो, वो जागे रहते तो तू चुद थोड़े ही पाती।  उनकी चिंता मत कर।  बस थोड़ा सा डोज है और बाकी नशा। वैसे भी दोनों एक दुसरे में मगन रहने वाले जीव हैं। आज तुम्हारा और विकास का दिन है। 

विकास – और तुम्हारा और पापा का भी। 

तेरे मौसा – हम सबका। सुशीला , आइसक्रीम ले आओ। 

सुशीला जिज्जी किचन में चली गईं और बाकी तीनो सोफे पर बैठ गए।   जिज्जी ने एक पतली नाइटी पहनी हुई थी।  विकास सिर्फ एक बनियान और हाफ पैंट में था।  तेरे मौसा सिर्फ लुंगी में।  सुरभि ने एक शार्ट और छोटी सी टी शर्ट पहनी हुई थी।  अंदर कुछ भी नहीं था।  टी शर्ट भी नाभि के पास तक लटक रही थी। खैर आपस में पर्दा तो पहले हु उठ चूका था।  

सुरभि ने विकास से कहा – तूने तो माँ को दो दो बार चोद लिया आज ?

विकास – दो बार कब ? बस एक बार वो भी जल्दी झाड़ गया। 

सुरभि – बाथरूम में ?

विकास – नहीं , माँ ने सब्र रखने को कहा।  वहां कुछ नहीं। 

तेरे मौसा – हाँ भाई।  सब्र जरूरी है।  चुदाई में जल्दीबाजी नहीं।  फोरप्ले का अलग ही मजा है। 

विकास – आपने तो सुरभि को बहुत मजे दिए।  कितनी बार आई तू ?

सुरभि ने अपने पापा को किस किया और कहा – मत पूछ।  आज तो पापा ने बस निचे से नदी बहा दी थी।  लगता है पूरा जूस निकल गया। 

तेरी मौसी ट्रे हाथ में लेकर आती हैं और कहती हैं – ये ले।  आइसक्रीम खा। और गरमा गरम गुलाब जामुन भी। 

तेरी मौसी ने अपने हाथो से गुलाबजामुन का प्लेट मौसा कि तरफ बढ़ाया तो मौसा ने कहा – मीठा कम होगा।  थोड़ा मीठा डालो न। 

मौसी – आप भी ना। 

मौसा – आज तो दिन है। 

मौसी ने फिर एक गुलाब जामुन लिया और खुद खा गई।  पर उन्होंने उसे चबाया या घोंटा नहीं।  कुछ देर मुँह में रखने के बाद मौसा के ऊपर झुनक गई।  मौसा ने मुँह खोल लिया।  मौसी ने अपने मुँह से पूरा का पूरा गुलाब जामुन मौसा के मुँह में डाल दिया। 

तेरे मौसा अभी खा पाते कि सुरभि बोल पड़ी – ये चीटिंग है।  पहला हिस्सा मेरा होना था। 

मौसा  ने उसका मुँह पकड़ा और खोल दिया।  उनके मुँह से गुलाबजामुन निकल सुरभि के मुँह में था। 

विकास बोला – मैं तो सबसे छूटा हूँ।  मेरा जन्म तुझसे तीस सेकंड पहले हुआ था।  

ये कह कर उसने मुँह खोल दिया।  सुरभि ने अपने मुँह से गुलाबजामुन उसके मुँह में डाल दिया।  

विकास ने उसे चबाते हुए कहा – उम्म्म , बहुत मस्त स्वाद है। 

इतने में दूसरा जामुन सुरभि के मुँह में वैसे ही पहुँच गया था।  मौसा और मौसी एक ही गुलाब जामुन एक दुसरे के मुँह से मुँह सटा कर खा रहे थे।  कुछ हिस्सा तेरे मौसा के मुँह में था तो कुछ मौसी के।  दोनों बिना हाथ लगाए एक दुसरे को दे भी रहे थे।  

तभी सुरभि बोली – अरे आइसक्रीम गल जाएगी। 

विकास  –  पापा इसकी मिठास कैसे बढ़ाएंगे ? 

तेरे मौसा – इसकी मिठास नहीं बढ़ाएंगे।  इसे खट्टा मीठा करेंगे। 

मौसी – रहने दो अब।  

मौसा – ऐसे कैसे।  सुन मुझे नहीं पता तूने अपनी बहन के साथ क्या क्या किया है ? पर आज मैं उसकी चूत बहुत चाट चूका हूँ।  अब तेरी बारी है। 

अभी विकास यही सोच रहा था कि आइसक्रीम के बीच में चूत कहाँ से आ गया कि तेरे मौसा जिज्जी कि नीति उतार चुके थे।  उन्होंने तेरी मौसी को सोफे पर लिटा दिया और आइक्रीम कि प्लेट उठा ली।  विकास के लिए ये इशारा काफी था। उसने सुरभि के शार्ट को उतार दिया।  अब ले सोफे पर मौसी नंगी थी और दुसरे पर सुरभि बॉटमलेस्।  विकास ने भी अपने पापा कि तरह सुरभि के कुंवारे चूत पर आईसक्रीम  चुपड़ दिया।  तब तक तेरे मौसा ने एक गुलाबजामुन को आइसक्रीम की कटोरी में लपेटा और उसे चूत पर सजा दिया।  विकास ने भी वैसा ही किया।  अब मौसा और विकास चूत और जांघो पर गलते फैलते आइसक्रीम को चाटना शुरू किया।  

तेरे मौसा ने कहा  – विकास , वो चम्मच पर निम्बू रख कर दौड़ने वाला खेल खेला है न ? अब बिना जामुन गिराए इन दोनों को झड़ाना है।  गुलाबजामुन की मिठास के साथ इनके चूत  की नमकीन चासनी भी पीनी है।  समझा ?

तेरी मौसी – क्यों तड़पा रहे हो ? 

तेरे मौसा – इसी तड़प में तो मजा है मेरी जान। 

विकास ने सुरभि को कई बार नंगी हालत में देखा था।  दोनों एक दुसरे के सामने कपडे बदल लिया करते थे।  एक साथ मास्टरबेशन भी किया था।  पर सुरभि ने कभी नजदीक से दर्शन नहीं कराये थे।  दोनों ने कई बार नंगी फोटो और वीडियो एक साथ देखा था। पर हर चूत अलग होती है।  सुरभि ने अपने बाल चिकने कर रखे थे।  बस ऊपर कम बालों में एक चाँद सी शक्ल बनवा रखी थी।  सपाट पेट , गहरी नाभि।  गोरी गोरी जांघें।  विकास तो मुग्ध हो गया था।  उसने और आइसक्रीम ली और सुरभि के पेट और जांघो पर डाल दिया और फिर उसे चाटने लगा।  पर कहते हैं ना अनुभव की कमी थी।  उसमे और सुरभि दोनों में।  उसके इस हरकत से सुरभि पूरी तरह उत्तेजित हो चुकी थी।  उसकी चूत में हलचल होने लगी थी।  उसका शरीर कांपने लगा था।  विकास ने इस चक्कर में उसके चूत के आस पास गिरती आइसक्रीम चाटनी शुरू की।  आइसक्रीम सच में खट्टी मीठी हो चुकी थी।  पर यही गलती थी।  सुरभि ने उसका सर पकड़ा और अपने चूत पर जोर से दबा दिया।  गुलाब जामुन तो साइड से निचे गिर चूका था।  सुरभि की चूत फवारे छोड़ रही थी और विकास उसमे भींग रहा था।  उधर तेरे मौसा मौसी को कई बार झड़ा चुके थे।  पर आईस क्रीम जस का तस था।  जब सुरभि झड़ कर शांत हुई तो विकास उसे देखता रह गया।  

मौसा ने कहा –  जामुन भी खा ले।

विकास ने रोबोट की तरह निचे गिरे गुलाबजामुन को मुँह में डाल लिया।  अजीब सा स्वाद था पर मजेदार था। 

मौसी उठ कर बैठ गईं और बोली – मैं तेल लेकर आती हूँ।  अब सही समय है।  पेल दो बेटी को।  

मौसा – तुम रुको।  इस लौंडे को भी तो कुछ सिखाना है।  विकास, उठ।  मन को शांत कर।  किचन से एक ठंढा बोतल पानी और तेल की कटोरी लेकर आ। और सुन फ्रिज से आइसपैक भी लेकर आना। 

उधर विकास किचन में गया, इधर मौसी सुरभि के पास पहुंची और उसे गोद में बिठा कर चूमते हुए बोली – मजा आया मेरी लाडो ?

सुरभि – माँ , आज तो मैं हवा में उड़ रही हूँ। 

मौसी – अभी कहा बेटा।  अभी तो तुझे इस घोड़े की सवारी करते हुए हवा से बातें करनी है। 

सुरभि – माँ , ये घोडा बिगड़ैल लग रहा है।  मुझे लग रहा है गिरा देगा , चोट लगेगी। 

मौसी – मैं हूँ न तुझे सँभालने के लिए।  और कण्ट्रोल तू अपने हाथ में रखेगी तो गिरेगी नहीं।  इसी लिए सवारी तू कर। 

विकास आ चूका था।  मौसा सोफे पर बैठे थे।  मौसी ने विकास के हाथ से तेल की कटोरी उठाई और खूब सारा तेल लेकर मौसा के लंड पर लगा दिया।  साथ में वो उस पर थूक भी रही रही थी।  थूक और तेल से तेरे मौसा का लंड चमक रहा था।  नब्बे डिग्री पर उनका लंड एकदम एक मीनार की तरह खड़ा था। विकास भी ये देख कर हैरान था।  

तभी तेरी मौसी ने उससे कहा – जा जाकर तू भी अपना लंड धो कर आजा।  हाथ मत लगाना बस ऊपर से पानी डाल कर आजा। 

विकास वही रुक कर आगे की कार्यवाही देखना चाहता था।  पर मौसी ने कहा – जा ना।  तू अपनी सवारी करवाते वक़्त देख लेना।  अभ जा धोकर आ। 

तेरी मौसी ने उसके लंड को शांत करने के लिए भेजा था।  अब मौसी ने सुरभि से कहा – आ बैठ घड़ा तैयार है।  सीधे सवारी नहीं करि है।  पहले घोड़े को रेस के लिए तैयार करना है। 

सुरभि अपने बाप के ऊपर बैठ गई पर लंड को चूत में नहीं डाला।  जैसा की उसकी मां ने कहा वो बस अपने चूत के होठो के बीच में अपना पापा का लंड फंसा कर आगे पीछे कर रही थी। तेरे मौसा उसके मुम्मो को मिस रहे थे और तेरी मौसी पीछे से उसके पीठ को सहला रही थी।  जब सुरभि की सिसकारियां तेज हो गई तो मौसी ने उसके गांड पर हाथ रखा और कहा – अब सवारी का वक़्त हो गया है।  धीरे धीरे रेस लेना। 

सुरभि ने अपना कमर उठाया और तेरी मौसी ने अपने पति का लंड पकड़ कर सीधा किया।  सुरभि ने अपने हाथो से चूत को फैलाया और उस पर धीरे धीरे बैठने लगी।  थोड़ा अंदर जाते ही उसके मुँह से चीख निकल गई – माआ , रहने दो।  मुझे नहीं लेना मजा। 

जिज्जी – इस्सस , बस मेरी लाडो हो गया।  थोड़ा ऊपर हो जा और फिर कोशिश कर। 

सुरभि ने लंड बाहर निकाला और फिर उस पर बैठने लगी।  तेरे मौसा उसके निप्पल को चुटकियों में मसल रहे थे।  उसे गरम करने के लिए ये भी जरूरी था।  विकास लौट चूका था और अपनी माँ की फैली गांड देख कर उत्तेजित हो रखा था।  पर उसका ध्यान सुरभि की चीख से भटक रहा था।  सुरभि ने एक दो बार और ऊपर निचे किया और अब उसे मजा आने लगा था।  तेरे मौसा का लंड और अंदर तक जा चूका था।  किसी भी धक्के से उसकी सील टूट जानी थी।  पर ना मौसा को जल्दी थी ना मौसी को।  उन्ह दोनों को पता था सुरभि खुद ही स्पीड बढ़ाएगी और काम हो जायेगा।  मौसी ने पीछे मूड कर देखा तो विकास का लंड एकदम तन्नाया हुआ था। 

मौसी ने कहा – तुझे भी सवारी करनी है?

विकास ने हाँ में गर्दन हिला दी।  मौसी वहीँ निचे ही सोफे पर झुक गईं।  विकास समझ गया।  वो वहीँ बैठ गया।  उसने पीछे से अपनी माँ की गांड से लंड सटा दिया। 

जिज्जी – बेटा आज ही गांड भी लेगा क्या ? चूत में डाल। 

विकास – ओह्ह।  

जिज्जी ने झुक निचे से ही उसका लंड पकड़ा और अपने चूत पर सेट कर दिया।  बोली – चल चोद अपनी माँ को एक बार फिर से।  बन जा पूरा मादरचोद। 

विकास ने धक्के लगाने शुरू कर दिए।  उधर सुरभि पूरी तरह से गरम हो रखी थी। उसकी चीखें कमरे में गूंज रही थी। 

सुरभि – आह पापा , मजा आ रहा है। इस दिन का मुझे कब से इन्तजार था।  देखो तुम्हारा लंड मेरे चूत में खलबली मचा रहा है।  आह।  माँआ मस्त लौड़ा है पापा का।  तुम नाना के पास क्यों भागी रहती हो ?

जिज्जी – जैसे तुझे तेरे बाप से चुदने में मजा आता है वैसे ही मुझे भी आता है।  पर अब तो मेरा बेटा जवान हो गया है।  उफ़ लाल धक्के आराम से  लगा।  इस बार जल्दी नहीं आना।  वरना फिर तुझे माँ की चूत ना मिलने की। हिलाते रहियो। 

सुरभि ने कब मौसा के लंड को पूरा लील कर अपनी सील तुड़वा ली थी उसे पता भी नहीं था।  उस समय तो आनंद के सागर में गोते लगा रही थी पर तेरी मौसी जानती थी कि एक बार लंड बाहर आया तो बस दर्द का सैलाब आएगा।  ये बात मौसा भी जानते थे।  इस लिए उन्हें कोई जल्दी नहीं थी। दोनों अनुभवी पति पत्नी ने आसन बदल लिया थे।  अब विकास सोफे पर बैठा था और मौसी उसकी सवारी कर रही थी।  इस तरह से वो विकास को कण्ट्रोल कर सकती थी और तेरे मौसा ने  सुरभि को कुतीया बनाकर पीछे से लंड घुसा लिया था।  चुदाई के इस घमसाान का अंत तो होना ही था।  तेरे मौसा मौसी में गजब का सामंजस्य था। आँखों आक्न्हो में इशारा हुआ और दोनों ने गति बढ़ा दी।  अब मौसा सुरभि को बेरहमी से चोद रहे थे और मौसी अपने कमर के झटके तेज कर चूँकि थी।  कुछ ही देर मेंचारो एक साथ आपने आपने कामरास को चोद दिए।  

सुरभि वहीँ निढाल थी।  मौसा का लंड अभी भी उसके अंदर था।  मौसी उठकर गईं और होट पैक लेकर आईं।  उनका इशारा हुआ और मौसा ने लंड बाहर खींच लिया। 

सुरभि – माआआ , बचाओ।  आह आह।  फाड़ डालाआ रे।  फैट गई मेरी चूत। 

उसके चीखने से लीला और नाना भी जग गए और भाग कर आ गए।  मौसी ने तुरंत सुरभि के चूत को पुछा और फिर उसकी सिंकाई करने लगी। मौसा ने तब तक पेन किलर निकाल लिया था।  मौसी ने सुरभि को पेन किलर दिया और बोली – हो गया मेरी बच्ची।  बस हो गया।  

नाना – बधाई हो जमाई राजा।  आखिर दूसरी कि सील तोड़ ही दी। 

तेरे मौसा – एक का तो मौका आपने दिया नहीं।  अब ये भी नहीं मिलती तो ~~~~

लीला  ने अपने पापा को गले लगा लिया और बोली  – आप बोलते तो सही पापा। 

तेरे मौसा ने उसके सर पर हाथ फेरते हुए कहा – हमारे पुरे खानदान में चुदाई पर कोई बंधन नहीं है।  पर कोई किसी से जबरजस्ती भी नहीं करता।  जिसकी जिससे मर्जी और जब मर्जी हो तभी चुदाई। 

जिज्जी – – बस तेरे नाना को हवस पर कण्ट्रोल नहीं है।  पर जबरजस्ती तो उन्होंने भी ना के बराबर ही की है। 

सुरभि पर दवा और दर्द दोनों का असर था।  वो लगभग बेहोश थी।  उसे उठा कर मौसा अपने कमरे में चले गए।  उनके पीछे पीछे मौसी भी गरम पानी और हॉटपैक लेकर चल पड़ी। 

लीला ने अपने अपने भाई को हग किया और बोली – मादरचोद बनने की बधाई हो।  मूड हो तो बोल आज ही बहनचोद बना दूँ। 

विकास – नहीं दीदी।  सुरभि के साथ ही पहली बार।  आपका तो दूध पियूँगा। बड़े बड़े मुम्मे लहराती हो तो मजा आ जाता है। 

लीला – आज ही पी ले। 

विकास – नहीं।  दूध आएगा तब। 

नाना ने लीला को बाहिं में भरते हुए कहा – चिंता मत कर लाल।  अब इसकी शादी जल्दी करूँगा।  लड़का देख लिया है।  तू अपने मामा का मामा बनेगा।  फिर हम दोनों एक साथ इसका दूध पिएंगे। 

लीला – क्या नाना।  

नाना – सच में।  तेरी उम्र हो गई है। लड़का ऐसा जो मेरे कण्ट्रोल में रहेगा। 

लीला – मुझे कोई दिक्कत नहीं है। 

विकास अपने माँ बाप के कमरे में चला गया और लीला वापस नाना के साथ। 

———————————————————-वर्तनाम में —————————————————-

मैं – माँ ये लीला दी और नाना बड़े कमीने हैं। 

माँ – चूत ऐसी चीज है।  सबको कमीना बना देती है। 

मैं – तो नाना ने सुधा दी की शादी एक नपुंसक से इस लिए करवा दी की दीदी ने उन्हें चूत नहीं दी।  और लीला की दुसरे नपुंसक से ताकि लीला दी की चूत वो ले सकें।  बहुत हरामी है तुम्हारा बाप। 

माँ – अब अपनी माँ चोद ले।  और मेरे बाप को गाली मत दे।  जब तक तेरी नानी थी सब कण्ट्रोल में था।  तेरी बड़ी और छोटी नानी दोनों भाइयों को काबू में रखती थी।  पर उनके जाने के बाद नाना बेकाबू हो गए हैं।  वैसे इतने बुरे भी नहीं हैं। 

मैं माँ को चोदते हुए बोला  – तुम्हारे बाप हैं, रख लो शॉट स्पॉट पर मेरी बहन के साथ अन्याय किया है तो मैं माफ़ नहीं करूँगा। 

श्वेता – इस लिए तो हम सब इतना प्यार करते हैं तुम्हे। 

मैं माँ के चूत में माल उड़ेलता हुआ बोला – तब भी अपनी चूत नहीं दे रही है। 

श्वेता – चुप करो।  अब बहुत हुआ।  

हम तीनो एक बार फिर से बाथरूम गए और फॉर सो गए। 

उस रात के बाद श्वेता हमारे साथ कुछ दिन तक रही। परीक्षा से पहले होली थी।  होली में उसे नहीं आना था।  वो चाची के पास जा रही थी।  सुधा दी ने आने से मना कर दिया था।  सरला दी का कुछ पक्का नहीं था।  बाकी दोनों मौसी के यहाँ से सभी आ रहे थे।  होली की धमाल कम से कम दो तीन दिन होनी थी। मैं श्वेता और सुधा दी को मिस तो करता पर वैसे एक्साइटेड था।  खैर नाना के यहाँ से सुधा दी के घर की दुरी ज्यादा नहीं थी ।  मैंने और विक्की ने प्लान कर रखा था। होली में अन्वी और उसकी माँ भी आने वाली थी।  उनका कोई और तो था नहीं। विक्की और मैं एक दुसरे का टेस्ट जानते थे।  और माँ से कहानी सुनकर ये तो पता चल गया था की विकास भी हमसे अलग नहीं है। मुझे उम्मीद थी हम तीनो भाइयों की खूब जमेगी।  नाना को परेशान करना था।  उनके सामने उनका घमंड तोडना था।  मुझे उसकी भी प्लानिंग करनी थी।

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