You dont have javascript enabled! Please enable it! नेहा का परिवार – Update 173 | Erotic Family Saga - KamKatha
नेहा का परिवार - Pariwarik Chudai Ki Kahani

नेहा का परिवार – Update 173 | Erotic Family Saga

मैं नानू को उनके सुइट की ओर जाता छोड़ कर सुशी बुआ को चोरी छुपे देखने चल पड़ी। दादू दादी का मेहमान सुइट भी नानू जैसा था। अब मैं छुपे गलियारे में घुस गयी और मुझे तुरंत अपनी शैतानी भरी जस्सोस्सि का इनाम मिल गया। कमरे में दादू बिलकुल नंगे थे। उनका नानू जैसा ऊंचा पहलवानी घने बालों से भरा शरीर उनकी तोंद से और भी बलशाली लग रहा था।
सुशी बुआ नीचे बैठी अपने पिता के विकराल लंड को चूस रहीं थीं। दादू का शरीर तेल से लिसा हुआ था। वैसे ही सुशी बुआ का शरीर भी। लगता था की दादू ने भी अपनी बेटी की मालिश भी करी थी।
“सुशी बेटा अब हमें अपनी बेटी की चूत दुबारा चाहिए,” दादू ने कहते हुए बुआ को उठा कर बिस्तर पे निहुरा दिया और दानवीय आकार का अपना मोटा अत्यंत लम्बा लंड बिना दया दिखाए अपनी बेटी की चूत में ठूंस दिया। सुशी बुआ चीखीं पर दर्द के बावजूद अपने पापा को उसत्साहित करने लगीं, “पापा और ज़ोर से चोदिये अपनी बेटी की चूत। भर दीजिये अपनी बेटी का गर्भाशय अपने वीर्य से। ”
कमरे में बुआ की सिसकारियां और दादू के लंड और बुआ की चूत के संसर्ग से उपजीं फचक फचक की अव्वाज़ें गूंज उठीं।
दादू ने दिल भर कर अपनी बेटी की चूत मारी। आधे घंटे में बुआ का झड़ झड़ के बुरा हाल हो गया। दादू ने पानी बेटी को गुड़िया की तरह उठा कर चित बिस्तर पे लिटा कर बुआ की गदरायी जांघें हवा में उठा कर चौड़ी फैला दीं।
अब बुआ की घने घुंगराले गीली झांटों से ढकी खुली का पूरा नज़ारा मेरी आँखों के सामने था। दादू ने बिना देर लगाए अपनी बिलखती सिसकती बेटी की चूत एक बार फिर से भर दी अपने महा लंड से। बुआ सिसक सिसक कर गुहार लगा रहीं थी ,”पापा चोदिये अपनी बेटी को। आह और ज़ोर से उन्। .. उन्। …. मार डाला पापा आपने। झड़ गयी मैं फिर से। ”
दादू बेदर्दी से अपनी बेटी की चूचियां मसल रहे थे। ऐसा लगता था कि जैसे दादू बुआ के विशाल भारी चूचियों को उनकी छाती से उखाड़ने का प्रयास कर रहे थे। बुआ की सिसकियाँ उनके पापा की बेदर्दी से और ऊँची हो गयीं।
दादू ने तीस चालीस मिनटों के बाद हुंकार कर अपनी बेटी की चूत में अपने वीर्य की बारिश कर दी। बुआ हलकी चीख के साथ फिर से झड़ गयीं। मुझे लग रहा था कि यह चुदाई सुबह से चल रही थी और बुआ का थकान बहुत गहरी थी। मेरा अंदाज़ा ठीक निकला दादू ने अपनी इंद्रप्रस्थ की परी जैसी सुंदर बेटी की गदरायी काया को अपनी बाहों में भरकर बिस्तर पे कुछ देर आराम करने के लिए लेट गए।
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मैं चुपचाप वहां से निकल गयी और अपने कमरे में जा आकर दौड़ने के कपड़े पहन कर बाहर निकल पड़ी। अब मैं दादू की टी शर्ट के नीचे सिर्फ ट्रैक -सूट के पैंट पहने थी। मैंने धीरे धीरे अपनी गति बड़ा दी। हालाँकि वसंत के आने की तैयारी में थी पर तब भी हवा में ठंडापन था। पर नुझे शीघ्र ही पसीना आने लगा। पांच किलोमीटर दौड़ कर मैं वापस मुड़ चली घर की ओर।
अब मैं पसीने से तराबोर थी और पसीने की बूंदे मेरी नाक की नोक के ऊपर मोतियों की तरह रुक कर नीचे गिर पड़तीं। मुझे ज्ञात नहीं था पर दादू की पुरानी टी शर्त इतनी झीनी थी कि मेरे पसीने से भीग कर वह बिलकुल पारदर्शक हो गयी थी।
मैं हाँफते हाँफते घर के बाहर टेनिस कोर्ट के पास पहुँच कर गोल रास्ते के ऊपर च पड़ी। इसे गोल रास्ता इसलिए कहते थे क्योंकि इस रास्ते पर घर में काम करने वालों के मकान थे। जिससे किसीको यह महसूनना हो की उनका घर किसी और के घर से दूर था।
मुझे एक घर से दर्द से सिसकने की आवाज़ें सुनाई पड़ी। मैं नादानी में उस तरफ मुड़ पड़ी। खुली खिड़की से मुझे तुरंत अपनी गलती का आभास हो गया। यह घर हमारे सुरक्षा-अधिकारी का था। राजमनोहर सिंह, जग राज चाचा, चालीस साल के अत्यंत बलिष्ठ फ़ौज से रिटायर्ड थे। उनकी एक साल छोटी पत्नी रत्ना थीं। मनोहर बहुत चौड़े बलशाली काळा भुजंग पुरुष थे। बहुत लम्बे तो नहीं फिर भी पांच फुट आठ नौ इंच लम्बे दानवीय आकार के मालिक थे ।उनका चेहरा सुंदर तो नहीं पर मर्दाने आकर्षण से परिपूर्ण था। रत्ना चाची पांच फुट की गठीली गहरे रंग के शरीर की मलिका थीं।
कमरे में रत्ना बिलकुल नग्न थीं और उनके सामने एक और उनके जैसे ही काया की मालकिन पर बहुत युवा लगने वाली कन्या निहुरी हुई थी। राजू चाचा उस कन्या के गदराये चूतड़ों को फैला कर पीछे से उसकी चूत और गांड चाट रहे थे।
उस कन्या की सिसकियाँ निकल रहीं थीं ,”पापा हाय कितनी याद आती है आपकी कैसे चूसते है प्यार से अपनी बेटी की चूत। ”
मैं तुरंत समझ गयी की वह कन्या कोई और नहीं राजू चाचा और रत्ना चाची की लाड़ली सुकन्या थी। सुकन्या, जिसको सब प्यार से सुकि कहते थे , का विवाह एक सम्पन परिवार में करवाया था नानू ने दो साल पहले। सुकि दीदी मुझे समय तीन साल बड़ी थीं।
“सुकि और पापा का लंड याद नहीं तुझे। कितने वर्षों से तेरी सेवा की है तेरे पापा के लंड ने। अब शादी के बाद क्या दामाद का लंड इतना भा गया है तुझे ,”रत्ना चाची ने प्यार मारा सुकि दीदी के ऊपर।
“मम्मी तेरे दामाद का लंड बहुत लम्बा तगड़ा है पापा के जैसा पर किसी भी बेटी के लिए उसके पापा के लंड अच्छा भला कौनसा लंड हो सकता है। कैसे भूल जाऊंगीं सात साल पहले की रात जब पापा ने मेरा कौमार्य भंग किया था। उस प्यार भरी रात मुझे अब तक आतें हैं। आह पापा ऐसे ही घुसा दीजिये मेरी गांड जीभ। मम्मी भूरा कहाँ है , बेचारे का ध्यान भी तो रखिये ,” सुकि दीदी सिसकते हुए बोलीं।
भूरा राजू चाचू का वफादार ग्रेट डेन और सेंट बर्नार्ड का मिश्रण था। भूरे के कुदरती प्यारी प्रकृति और वफ़ादारी से वोह सबका चहेता था।
जैसे ही उसका नाम लिया तो भूरा तुरंत कमरे में तूफ़ान की तरह आ गया। रत्ना चाची ने प्यार से उसे अपनी चूत सूंघने दी। भूरा का लंड बाहर निकल पड़ा। लाल रंग का लम्बा मोटा लंड। थरथरा रहा था आने वाले आनंद के विचार से। भूरे ने अपनी लम्बी जिव्हा से रत्ना चाची के मूंग को छाता और जब उसकी जीभ उनकी नासिका में घुस जाती तो रत्ना चाची खिलखिला कर हंस पड़ती।
“सुकि बेटी तेरे जाने इन दोनों मर्दों मुझ अकेली जान ही पड़ गयी है। तुझे दोनों कभी भी नहीं भरता ,” रत्ना चाची ने कोमल हाथों से भूरे के लंड को सहलाया।
“पापा माँ शिकायत कर रही या मुझे चिड़ा रही है ,” सुकि ने सिसकते हुए कहा , “मम्मी अब मैं पापा के लंड अपनी चूत में लिए बिना नहीं रह सकती। पापा से चुदने के बाद भूरे की बारी है। तब तक तू इसको अपनी रसीली चूत दे दे। ”
राजू चाचू ने बिना एक क्षण बर्बाद किये अपने लम्बे मोटे लंड को अपनी बेटी की चूत के ऊपर टिका दिया। उधर रत्ना चाची भी निहुर कर घोड़ी बन गयीं थीं ,” आका भूरा बेटा।आ बेटा और भर दे अपनी मम्मी की चूत अपने लंड से। ”
भूरा जैसे सारी बातें समझता था। उसने लपक आकर अपनी दोनों आगे की टांगें रत्ना चाची के सीने दोनों ओर बिस्तर पे टिका कर अपने पिछवाड़े को हिला हिला कर अपनी मम्मी की चूत ढूंढ़ने लगा। फिर एक क्षण में कमरे में दो चीखें गूँज उठीं। राजू चाचू का लंड और भूरे का लंड सुकि दीदी और रत्ना चाची की चूत में जड़ तक ठूंस गए।
भूरे ने शुरू से ही बिजली की तेज़ी से अपनी मम्मी की मारनी शुरू की तो रुकने का नाम ही नहीं लिया। रत्ना चाची की चीखें और सिसकियाँ उबलने लगीं, “हाय मेरे लाल मेरे बेटे मार ऐसे ही अपनी माँ की चूत। ”
“पापा धीरे धीरे दर्द होता है आपका मूसल लेने में ,”सुकि दीदी बिलबिलायीं।
परना तो राजू चाचू धीमे हुए औरना ही भूरा। सुकि दीदी और रत्ना चाची की सिसकियाँ कमरे में संगीत से स्वर छेड़ने लगीं। दोनों निरंतर झड़ रहीं थीं।अहदे घंटे के बाद भूरे ने एक भीषण धक्का लगाया और रत्ना चाची की वास्तविक दर्दभरी चीख उबाल पड़ी, “हाय बेटा अपनी गाँठ मत डाल अपनी माँ के अंदर। ” पर तब तक देर हो चुकी थी और भूरे ने अपनी मोती गाँठ रत्न चाची की चूत में ठूंस दी थी। अब चाचीअपने बेटे के साथ बांध चुकी थीं।
उधर राजू चाचू ने अपनी थकती बेटी को पीठ के ऊपर पलट कर बिस्तर पे फैन दिया और फिर बौराये सांड की तरह उसके ऊपर फिर से चढ़ाई कर दी। चाचू का लंड की हर दस इन्चें अपनी बेटी की चूत का निर्मम प्यारा मर्दन कर रहीं थीं। चाचू का लंड मेरे घर के पुरुर्षों से भले ही कम लम्बा और मोटा था पर उनकी चुदाई की खासियत बिलकुल जानलेवा थी। उनकी बेटी का बार बार झड़ कर बुरा हाल होने लगा था। तीस मिनटों के बाद चाचू ने भरभरा कर अपनी बेटी की चूत को अपने वीर्य से सींच दिया। सुकि दीदी सिसकते अपने पापा के गरम वीर्य की बौछार को सँभालते हुए फिर से झाड़ गयी। राजू चाचू अपनी बेटी के ऊपर हफ्ते हुए निढाल हो गए।

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