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Sagar - An Erotic Incest Story

Sagar – An Erotic Incest Story – Update 6

Update 6.

अगली सुबह जब मैं हाल में पहुंचा तब नाश्ते की तैयारी हो रही थी । मेरे कुर्सी पर बैठने के बाद माॅम ने नाश्ता लगाया ।

” तुम्हारी चाची आईं थी । श्वेता को गाजियाबाद छोड़ने को बोल रही थी ” माॅम थाली में परांठे डालती बोली ।

” इतनी जल्दी ! अभी तो उसे आये हुए दो हफ्ते भी नहीं हुए ” में खाते हुए बोला ।

” बोल रही थी राजीव जी ने बुलाया है ”

” कब जाना है ”

” आज ही । और जाना कितने बजे हैं ये नहीं बतायी ”

” ठीक है । मैं फोन करने पुछ लेता हूं ”

नाश्ते के बाद रीतु कालेज चली गई । मैंने डैड से अपनी बाइक के बदले कार exchange किया । डैड के जाने के पश्चात मैं अपने रूम जा कर श्वेता दी को फोन लगाया ।

” हैलो ! ” उधर और श्वेता दी को आवाज आई ।

” हैलो ! गुले गुलजार , कैसी हो ”

” मस्त , तु अपनी सुना ”

” मैं भी मस्त ”

” तो चल रहे हो न ”

” क्या श्वेता दी । इतनी जल्दी क्यों जा रही है ” – मैंने शिकायत भरें और में कहा ।

” मैं नहीं जाना चाहती थी लेकिन क्या करूं उनकी तबीयत कुछ ठीक नहीं है ”

” क्या हुआ ”

” सीजनल बुखार , सर्दी खांसी ”

” निकलना कब तक है ”

” अभी साढ़े नौ बजे हैं , तुम एक घंटे में आ जाओ ”

” ओके एक घंटे बाद आ रहा हूं ” कहकर फोन काट दिया और मैं जाने के लिए तैयार होने लगा ।

तैयार हो कर आईने के सामने कंघी करने लगा तभी अचानक मुझे कुछ याद आया और मैं उन स्पेशल किताबों को एक बार फिर से चेक करने लगा । आज भी सेम वही रिजल्ट । गायब हुई किताब मौजूद थी लेकिन एक दुसरी किताब गायब थी ।

मैं सोचने लगा कौन है जो रोज एक किताब पढ़ कर उसे वापस रख जाता है और फिर दुसरी किताब ले जाता है । जो भी हो , है तो कोई घर का मेम्बर ही । घर में मेरी फेमिली के अलावा श्वेता दी और उनका परिवार ही है जो बेखटक मेरे कमरे में आ सकता है । सिर्फ डैड और चाचा को छोड़कर । कैसे पता करूं । सभी का कमरा भी तभी चेक कर सकता हूं जब वो घर में नहीं रहे । माॅम , चाची , श्वेता दी , रीतु सभी एक से बढ़कर एक थी । चारों की चारों मेरी fantasy थी ।

लेकिन मैं इतना तो श्योर था कि इन चारों में से कोई एक है जो ये अश्लील कहानियां पढ़ रहा है और यदि पढ़ रहा है तो इस का मतलब उस औरत या लड़की की फैंटेसी भी वही है जो कि मेरी है । मतलब नाजायज संबंध ।

मैं बाद में इसकी पड़ताल करने की सोच कर माॅम को बाय बोल कर श्वेता दी के पास कार लेकर चला गया ।

श्वेता दी ने दरवाजा खोला ।

” नमस्ते ..नुरे नज़र ” मैं बोला – ” तैयार हो ” ।

” नहीं ” – वह मुस्कराते हुए बोली – ” आओ ” ।

मेरे घर में प्रवेश करने के बाद उसने दरवाजा बंद कर लिया । चाचा ड्यूटी गये थे । राहुल स्कूल में था ।

” चाची नहीं दिख रही है ”

” यहीं पड़ोस में है , अभी आ जाएगी ”

” मुझे बहुत खराब लग रहा है , अभी तो हमने मस्ती भी नहीं की , न ही कोई पिक्चर देखी और ना ही पार्क में हाथों में हाथ डाल कर घुमने गये और तुम अपने मियां के पास जा रही हो ”

” बड़े आये हाथों में हाथ डाल कर घुमाने वाले । मैं कोई तुम्हारी बीवी नहीं हूं । अपनी बीवी को घुमाना ”

” अभी शादी ही नहीं हुई है तो बीबी कहा से आयेगी । गर्लफ्रेंड को तो घूमा सकता हूं ”

” मैं तुम्हारी गर्लफ्रेंड हूं ”

” बहन कम गर्लफ्रेंड । तुम बोलो क्या नहीं है ”

” अच्छा , अच्छा । अब चुपचाप वहां बैठो उधर ” – मुस्कराते हुए बोली ।

मैं जाकर सोफे पर बैठ गया ।

” मैं कपड़े बदल कर आती हूं ” – वह बोली ।

” मुझे भी मदद करने दो ना ”

” किस काम में ”

” कपड़े बदलने में ”

” शट अप ‘

” ब्लाउज के बटन खुद कैसे बंद करोगी ”

” मैं ब्लाउज पहनुगी ही नहीं ”

” वाह । यह अच्छी बात है ”

” मेरा मतलब है मैं शर्ट पहनुगी ”

” ओह ! ”

” अब हिलना मत यहां से ”

मैंने यूं सहमति में सिर हिलाया जैसे मेरा कलेजा फटा जा रहा हो ।

वह चली गई । मैंने क्लासिक का पैकेट निकाला और एक सिगरेट सुलगा लिया । मेरी नजर सामने कैबिनेट पर रखे एक खंजर पर पड़ी । मैंने उसे उठा लिया और देखने लगा । वो एक एंटीक जापानी खंजर मालूम पड़ती थी ।

” जापानी है ” –

मैंने सिर उठाया ।

वह कपड़े बदल कर आ चुकी थी । वह एक बेहद टाइट जींस और मर्दाना कमीज पहनी थी और उस लिबास में निहायत ही हसीन और कमसिन लग रहा थी ।

” जबाव नहीं कारीगरी और खुबसूरती का ”

” खंजर की ”

” तुम्हारी ”

” शट अप । मैं जापानी खंजर की बात कर रही थी ”

” और मैं उस गुडिया की बात कर रहा हूं जो इस वक्त मेरे सामने खड़ी है ”

” गुड़िया ! कहां है गुड़िया ”

” मेरे सामने तो खड़ी है । साक्षात ”

” ओफफ ! छोड़ो कुछ पियोगे ”

” तुम कुछ पिलाओगी तो क्यों नहीं पीऊंगा मैं ” – उसके बड़े बड़े बूब्स को देखते हुए कहा ।

” मैं तो हो सकता है जहर पिला दूं ” – मेरे नज़रों का पीछा करते हुए बोली ।

” मुझे वो भी कबूल होगा ”

” तुम न बातें काफी दिलचस्प करते हो ”

” करामातें भी काफी अच्छी करता हूं ”

” करामातें ! कैसी करामातें ”

” इजाजत हो तो पेश करूं एकाध ”

” हां हां ”

मैं उसकी तरफ बढ़ा तो वो फ़ौरन समझ गई और वहां से से हट गई ।
” बदमाश । एक नम्बर के कमीने हो ”

” शुक्रिया ” – मैं उसके सामने सिर झुकाते हुए कहा ।

” चलो । देर हो रही है ” – कहते हुए मेरे पीठ पर एक हल्का सा धक्का दिया ।

हम कार में सवार हो कर गाजियाबाद के लिए निकल पड़े ।

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