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Sagar - An Erotic Incest Story

Sagar – An Erotic Incest Story – Update 3

Update 3.

अलार्म की आवाज सुनकर मैं उठा । उस वक्त 7 बज रहे थे । मैं अपने कमरे से बाहर निकल बाथरूम में चला गया ।

Fresh हो कर और थोड़ी बहुत exercise करने के बाद जब मैं नीचे हाल में पहुंचा तब तक 9 बज चुके थे । डैड टीबी में news देख रहे थे । माॅम और रीतु किचन में थी । मैं जा कर डैड के बगल में बैठ गया ।

” डैड, आज आप मेरी बाईक से आफिस चले जाइए, आप की कार चाहिए श्वेता दी का कुछ सामान लेने जाना है ।”

” ठीक है । वैसे कराटे वाली क्लब कब join करनी है ।”

” कल शाम से । 6 से 8 तक ही training देनी है ।”

” अच्छा ।” कह कर वापस टीबी की तरफ ध्यान कर लिए ।

फिर वही रोज वाली दिनचर्या । माॅम ने नाश्ता लाया । सभी एक साथ नाश्ता किये । डैड 9.30 बजे आफिस चले गए । और मैं अपने कमरे में जाकर गाजियाबाद जाने की तैयारी करने लगा । हमारा घर रोहिणी में था और गाजियाबाद जाने में कार से करीब एक सवा घंटा लग ही जाता है । मैंने सोचा एक बार राजीव जीजु को फोन कर दूं । मैंने जैसे ही मोबाइल में उनका नम्बर लगाया तभी मोबाइल पर मैसेज आने लगा कि आपका recharge balance शेष हो गया है ।

मैंने कपड़े पहनते हुए सोचा रास्ते से recharge करवा लेंगे । तैयार हो कर फ्लेट की चाबी लिया । श्वेता दी कल शाम जब घर आयो थी उसी समय उन्होंने अपने फ्लैट की चाबी दे दी थी । तैयार हो कर रुम से बाहर निकला तो देखा कि अचानक आकाश में काले बादल मंडराने लगे हैं ।
” लगता है जोर से बारिश आने वाली है ।” मैं सोचता हुआ नीचे हाल में पहुंचा और माॅम को आवाज लगाई ।

” माॅम मैं निकल रहा हूं ।” माॅम और रीतु दोनों को देखते हुए कहा ।

” कब तक वापस आ जाओगे ।” माॅम ने कहा ।

” अभी 10 बजे हैं । इसका मतलब डेढ़ दो बजे तक ।”

ओके । सम्भल कर जाना ।”

” ठीक है माॅम ।” कहकर मैंने माॅम और रीतु को हग किया और निकलते निकलते माॅम से बचा कर रीतु के पिछवाड़े में हल्का सा चांटा जड़ दिया और जल्दी से निकल गया । दरवाजे के पास पहुंच कर पिछे देखा तो रीतु को अपनी तरफ आंखें तरेरते हुए पाया । मैं उसे देख कर मुस्कुराया और बाहर निकल गया ।

मैं कार में बैठा और गाजियाबाद की तरफ निकल पड़ा ।
थोड़ी देर बाद बारिश भी शुरू हो गई थी । रास्ते में काफी जाम था । आगे कहीं कोई पेड़ गिर गया था । कहीं भी मोबाइल रिचार्ज करने का मौका नहीं मिला । सफर पौने दो घंटे का हो गया था । जब मैं गाजियाबाद के सेक्टर नम्बर 7 फ्लेट नम्बर 131 में जो कि जीजू का फ्लेट था पहुंचा तब पौने बारह बज रहे थे ।

फ्लेट के ताले को खोलने के लिए चाबी निकाल ही रहा था कि मेरी नज़र दरवाजे पर पड़ी । दरवाजा खुला हुआ था । लगता है जीजू घर पर ही है , सोचा ।

तभी दरवाज़ा खुला । दरवाजे पर एक कटे बालों वाली रूपवती युवती प्रगट हुई, मेरे पर निगाह पड़ते ही उसने बड़े आतंकित भाव से मुझे देखा ।

उसके खुबसूरत चेहरे से मेरी निगाह फिसली तो उसकी पोशाक पर पड़ी । वो एक विदेशी जींस और शर्ट पहनी थी । उसके पोशाक उसके अत्याधुनिक होने की अपने आप में दस्तावेज थी ।

” कौन हो तुम ! ” उसने घबड़ाए हुए कहा ।

” मैं राजीव जी का साला हूं पर आप कौन हैं ।”

” म..म.मै राजीव की कजन हूं ।”

” कजन ? लेकिन उनके तो कोई रिश्तेदार नहीं है ।” मैं आश्चर्यचकित सा बोला ।

” वो मैं उनके मामा के तरफ से हूं ।”

” जीजा फ्लेट में है क्या ।”

” ह.. ह… हां ।” वह फंसे स्वर में बोली ।

” ठीक है । मैं देखता हूं ।” कह कर मैं उसके बगल से फ्लेट के अन्दर प्रवेश कर गया । अन्दर विशाल ड्राइंगरुम था । वहां कोई नहीं था । फिर बेडरूम में गया । बेडरूम में बेतरतीबी का बोलबाला था । कपड़े बिखरे हुए, दराज खूले थे । वार्डरोब के दरवाजे भी खूले थे । फर्श पर कुछ कपड़े बिखरे हुए थे ।

मैं हैरान हुआ । फिर मेरी तवज्जो बाथरूम से आती हुई पानी की आवाज की तरफ गई । मैंने बाथरूम का दरवाज़ा खोला ।

भीतर निगाह पड़ते ही मैं सन्नाटे में आ गया । बाथरूम में दीवार के साथ लगे विशाल खाली बाथ-टब में एक आदमी पड़ा था । वह पैन्ट शर्ट पहने था । मैंने थोड़ा आगे बढ़ कर उसे देखा तो मैं जैसे भौंचक्का सा जडवत हो गया ।

वो अजय था । मेरा अजीज, मेरा हमनिवाला, मेरा प्यारा दोस्त । मेरी पलकें भीग गई । आंखों से आंसू निकलने लगे । थोड़ी देर बाद मैंने अपने को सम्हाला और उसके ऊपर सरसरी तौर पर निगाह डाली ।

उसकी आंखें पथराई हुईं थी । उसकी छाती में गोली का सुराख था । अचानक से मुझे कुछ याद आया और मैं बाहर की तरफ भागा ।

लड़की भाग चुकी थी ।

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