You dont have javascript enabled! Please enable it! Sagar - An Erotic Incest Story – Update 27B - KamKatha
Sagar - An Erotic Incest Story

Sagar – An Erotic Incest Story – Update 27B

Update 27. B

” अरे! ये बातों में तुम्हें फंसा रहा है ” – जानकी देवी जोर से बोली -” खतम करो इसे ।”

” उसने मेरी तरफ रिवाल्वर ताना । मैंने अपनी आंखें बंद कर ली ।

रिवाल्वर देखकर मेरे छक्के छुट गये थे । ऐसी बात नहीं थी कि उसके पास रिवाल्वर होने का अनुमान नहीं था लेकिन हर वक्त उसके पास रिवाल्वर होने का अंदेशा नहीं था । मैं भले ही शारीरिक रूप से उससे ताकतवर था लेकिन एकाएक जब सामने वाला रिवाल्वर तान दे तो कोई भी क्या कर सकता है ।

” यहां इसका कतल करना मुनासिब नहीं होगा ” – रमाकांत बोला -” इसकी लाश यहां से बरामद होना हम दोनों के लिए कोई मुसीबत खड़ा कर देगा ।”

” तो ?”

” यह खुद अपने कदमों से चलकर वहां तक जाएगा जहां से लाश बरामद होने पर हम में से किसी पर कोई आंच नहीं आएगी ।”

” कहां ?”

” इसके जीजा के फ्लैट पर ।”

” इसने कहना न माना तो ?”

” तो मैं इसे यहीं शूट कर दुंगा । जैसे अमर को मारकर इसके जीजा के फ्लैट में रख आया वैसे ही इसे भी रख दुंगा ।”

” लेकिन याद रखना ” – मैं बड़ी कठिनाई से कह पाया -” तस्वीर अभी भी मेरे कब्जे में है ।”

” कोई बात नहीं । तस्वीर जब सामने आएगी तब की तब देखेंगे ।”

” जनाब ! ” – मैंने अपने होंठों पर जुबान फेरी -” मेरा सवाल तो बीच में ही रह गया ।”

” कैसा सवाल ?”

” मनीष जैन की हत्या आपने की है ?”

” हां , उसका भी खून मैंने ही किया है । ”

” क्यों ?”

” जिस दिन अमर का खून मैंने किया था उस दिन उसने मुझे तुम्हारे जीजा के फ्लैट के बाहर दरवाजे पर खड़े देख लिया था । उस वक्त मैं अमर को तुम्हारे जीजा के फ्लैट में रखकर बाहर निकल कर दरवाजे को बंद कर रहा था । उसने मुझसे पूछा कि मैं क्या कर रहा हूं तो मैंने उस वक्त बहाना बना कर उसे आश्वस्त कर दिया था । फिर जिस दिन तुम्हारे जीजा और बहन यहां से शिफ्ट हो रहे थे उसी दिन मैंने श्वेता का खंजर चुरा लिया था और ये साला कमीना मनीष का बच्चा मुझे खंजर चोरी करते हुए भी देख लिया था । उस वक्त उसने कुछ नहीं कहा । फिर उसी दिन शाम को उसकी पत्नी अपने मायके चली गई । दो दिन तक वो अपने काम में व्यस्त था लेकिन जिस दिन मैंने उसका खून किया उस दिन , रात में शराब पी कर आया और मुझसे खंजर के बारे में पुछने लगा । मैंने बताया कि मुझे खंजर बहुत अच्छा लगा इसलिए लोभ में पड़कर चोरी कर लिया । मैंने उससे कहा कि ये मेरी बड़ी गलती थी । ऐसा मुझे नहीं नहीं करना चाहिए था । मगर वो ये मानने को तैयार नहीं था । वो वकील था । श्वेता के फ्लैट में कतल वाले दिन मुझे दरवाजे के पास देखा था और फिर खंजर चोरी करते हुए देखा । उसे इसमें कोई साजिश दिखाई दे रही थी । मैंने उसे बार बार समझाया कि इसमें कोई साजिश नहीं है । मगर वो मानने को तैयार नहीं था । लेकिन जब वो ये बोला कि अमर को कतल वाले दिन उसने अपने कमरे से नीचे मेन गेट से फ्लैट की तरफ आते हुए देखा था तो मेरे कान खड़े हो गए । वो अमर को तुम्हारे साथ श्वेता के फ्लैट आते हुए पहले भी कई बार देखा था तो पहले तो वो यही समझा था कि वो श्वेता के घर आया था लेकिन इन दो घटनाओं से वो मुझ पर शक करने लगा था । क्योंकि उसे बाद में याद आ गया था कि श्वेता अपने मायके गई हुई है और राजीव अपने काम पर निकल चुका होता है । तो फिर अमर किसके पास आया था ? यदि श्वेता के फ्लैट में नहीं तो फिर किसके फ्लैट में गया हो सकता है ? वो मुझ पर साफ साफ आरोप लगाने लगा कि उस दिन अमर मेरे फ्लैट में आया था । मैं समझ गया कि ये बहुत कुछ जान गया है इसलिए इसका जिन्दा रहना मेरे लिए घातक होगा ।”

” लेकिन खंजर से ही क्यों मारा ? आप के पास तो रिवाल्वर भी थी ।”

” मैं नहीं चाहता था कि रिवाल्वर की गोलियों से फोरेंसिक जांच में अमर के कत्ल के साथ कोई रिश्ता जुड़े ।”

” क्या आगरा में मुझ पर हमला आपने ही करवाया था ?”

” आगरा में तुम पर हमला किया था , ये तो मुझे पता ही नहीं था ” – वो अपने कंधे उचकाते हुए कहा ।

” अरे ! क्यों बेकार की बातों में वक्त जाया कर रहे हो ” – जानकी देवी बेसब्री से बोली -” जल्दी से इसका काम तमाम करो ।”

” जनाब ! ” मैंने कहा -” आपने दो खून किया है , आप बच नहीं सकते ।”

” दो क्यों , बल्कि तीन ।”

” मेरा स्कोर आपने पहले से ही जोड़ लिया ।”

” अभी नहीं जोड़ा । उसे मिलाकर चारों ।”

” जी !”

” हिमाचल में साला रमाकांत कौन सा अपनी आई मौत मरा था । एक नम्बर का कंजूस था वो हरामी का पिल्ला । अपनी बीवी को एक पैसा तक नहीं देता था । तब मैंने जानकी के कहने पर उसका कत्ल कर के उसकी लाश गायब कर दी थी और उसकी जगह खुद ले ली थी ।”

” कमाल है । एक कत्ल का तजुर्बा होने के वावजूद आप अमर के हाथों ब्लैकमेल होते रहे ।”

” हर काम के लिए मुनासिब वक़्त का इंतजार करना पड़ता है , बरखुदार । देख लो , मुनासिब वक़्त आया तो मैंने उसका शिकार कर लिया । और अब तुम्हारा शिकार करने जा रहा हूं ।”

” आप की जानकी जी से कैसे पहचान हुई ?”

” यह खामखाह बातों में वक्त जाया कर रहा है ” – जानकी देवी बिफर कर बोली -” और तुम इसकी चाल में फंस रहे हो ।”

” चलो ” – रमाकांत सख्ती से बोला ।

” कहां ?” – मैं जानबूझ कर अनजान बनता हुआ बोला ।

” यहां से बाहर । तुम्हारे जीजा के फ्लैट में ।”

” मैं न चलूं तो ?”

” छोकरे , बदतमीजी दिखाने से तेरी मौत टलने वाली नहीं । अब हिलता है या मैं गोली चलाऊं ।”

” हिलता हूं ।” – मैं बोला और मन मन के कदम उठाता हुआ दरवाजे के सामने पहुंचा । मेरा दिल धाड़ धाड़ कर मेरी पसलियों से बज रहा था और मुझे लग रहा था कि पीछे से गोली चलीं की चली ।

” वाह ! क्या संजोग है ।” – रमाकांत मंत्रमुग्ध होते हुए बोला -” अमर की मौत मेरे फ्लैट में , मनीष की मौत उसके फ्लैट में और तुम्हारी मौत तुम्हारे बहन की फ्लैट में । वाह ! वाह !”

वो दोनों ठीक मेरे पीछे पीछे आ रहे थे ।

” दरवाजा खोल ।”

मैंने दरवाजा पुरा खोला । सोच रहा था कि काश कोई गलियारे में दिख जाए ताकि इसका ध्यान भटके ।

” बाहर ।”

मैंने चौखट से बाहर कदम डाला ।

तभी एक पहलू से किसी ने मुझे जोर से धक्का दिया । मैं भरभरा कर औंधे मुंह फर्श पर गिरा ।

” खबरदार ।” – कोई गला फाड़कर चिल्लाया ।

साथ ही एक फायर हुआ ।

आतंकित मैं कांखता कराहता हुआ सीधा हुआ और उसी मुद्रा में मैंने सामने निगाह डाली ।

इंस्पेक्टर कोठारी खड़ा था । अपने दोनों हाथों में उसने अपनी सर्विस रिवाल्वर पकड़ी हुई थी जिसकी नाल से धुआं निकल रहा था ।

रमाकांत चौखट से जरा भीतर कमरे में मरा पड़ा था । पिस्तौल उसके हाथ से निकल कर जानकी देवी के पैरों के करीब जाकर गिरी थी लेकिन पता नहीं अपने सकते की सी हालत की वजह से या इंस्पेक्टर कोठारी के हाथ में थमी पहले ही आग उगल चुकी रिवाल्वर के खौफ से वह पिस्तौल उठाने के लिए नीचे नहीं झुक रही थी ।

मैं उठ कर अपने पैरों पर खड़ा हुआ और अपने कांपते हाथों से एक सिगरेट सुलगाने लगा ।

Please complete the required fields.




Leave a Comment

Scroll to Top