You dont have javascript enabled! Please enable it! Sagar - An Erotic Incest Story – Update 26A - KamKatha
Sagar - An Erotic Incest Story

Sagar – An Erotic Incest Story – Update 26A

Update 26 A.

” क्या तुम इस खंजर को पहचानते हो ?”- इंस्पेक्टर कोठारी ने मुझे गौर से खंजर को निहारते हुए देख पुछा ।

” हां “- बड़ी मुश्किल से मैंने कहा ।

अभी वो कुछ कहता कि पुलिस का डाक्टर वहां पहुंच गया और वो उससे बातें करने में मशगूल हो गया । मैं मौका देख कर तुरंत फ्लैट से बाहर निकल कर गलियारे में आ गया और श्वेता दी को फोन लगाया ।

उनके ‘ हैलो’ कहते ही मैंने कहा -” श्वेता दी , आपके पास एक जापानी एनटिक खंजर थी ना ?”

” हां “- उन्होंने कहा ।

” कहां है अभी ? क्या वो खंजर अभी आप के पास है ?”

” सागर , वो खंजर तीन चार दिनों से मिल नहीं रहा है । पता नहीं चोरी हो गया है या कहीं मैंने गिरा दिया है ।”

मुझे ऐसा ही अंदेशा था ।

” खंजर के बारे में क्यों पुछ रहे हो ? “- श्वेता दी ने पूछा ।

” आप के पड़ोसी वकील साहब मनीष जैन का किसी ने खून कर दिया है और उन्हें उसी तरह के खंजर से मारा गया है जैसा खंजर आप के पास था ।”

” क्या ?”- वो चौंकते हुए बोली -” मनीष जी का खून हो गया ? कब ? कैसे ?”

” आज सुबह ही उनकी लाश अपने फ्लैट में पाई गई है और पुलिस अभी छानबीन कर रही है ।”

” लेकिन तुम्हें कैसे पता ?”

” मुझे एक पुलिस वाले ने ही बताया और मैं भी वहीं उनके फ्लैट पर ही हूं ।”

” उनको जिस खंजर से मारा गया क्या वो खंजर मेरा वाला है ?”- वो परेशान होते हुए बोली ।

” लगता तो हुबहू वैसा ही है । वैसे ये खंजर आप ने किस से खरीदी थी ?”

” रीतु की फ्रेंड काजल के डैड के दुकान से ।”

काजल के डैड अरविंद शर्मा की एंटीक चीजों की दुकान थी , ये मैं जानता था ।

” तुम फोन रखो , मैं थोड़ी देर में दुबारा काॅल करता हूं ।”

मैंने काजल को फोन लगाया ।

” हैलो “- काजल की चहकती हुई आवाज आई ।

” काजल तुम्हारे डैड कहां है , एक जरूरी बात करनी है ।”

” क्या हुआ ?”

” बताऊंगा लेकिन पहले अपने डैड से मेरी बात करवा ।”

” दो मिनट वेट करो ।”

थोड़ी देर बाद उसके डैड की आवाज आई -” क्या बात है सागर बेटा ?”

” अंकल आप को याद है कि आप के दुकान पे जापानी एनटिक खंजर सेल के लिए रखा था ।”

” हां । मुझे पुरा याद है ।”

” क्या वो खंजर अभी तक आप के पास है ?”

” नहीं । वो तो करीब डेढ़ साल पहले ही बिक चुका है ।”

” वैसे खंजर कितने पीस थे ?”

” तीन पीस ही था जिसे मैंने अन्य सामानों के साथ बाहर से मंगवाया था । एक तो मेरे घर पर है और बाकी दो बेच दिया था ।”

” आप को याद है आप ने किसे बेचा था ?”

” बात क्या है ? उस खंजर के लिए इतना इन्क्वायरी क्यों ?”

” जैसा खंजर आप के पास था ठीक वैसे ही खंजर से एक आदमी का खून हो गया है ।”

” ओह “- वो चौंकते हुए बोले -” ये तो बहुत बुरा हुआ । जरूर उन दो लोगों में से किसी के पास वाले खंजर से कतल हुआ होगा ।”

” वो दो लोग कौन थे जिसे आप ने खंजर बेचा था ?”

” अब नाम और चेहरा तो याद नहीं है लेकिन सेल बुक से मालूम हो जायेगा कि वो दोनों कौन थे ।”

” थैंक्यू अंकल ।”

मैंने दोबारा श्वेता दी को फोन किया ।

उनके फोन उठाते ही मैंने कहा -” श्वेता दी , देर सबेर पुलिस को खंजर के बारे में पता चल ही जाएगा इसलिए यदि पुलिस आप से खंजर के बारे में इन्क्वायरी करे तो आप यही कहना कि खंजर अभी भी आप के पास मौजूद है । कोई चोरी या गिरने की बात मत करना ।”

” जब पुलिस मुझसे खंजर मांगेगी तो क्या करूंगी ?”

” उनसे सिर्फ यही बोलना की खंजर मेरे पास है ।”

” लेकिन तुम्हारे पास कहां से आ गई ? क्या खंजर तुम्हारे पास है ?”

” नहीं । लेकिन जैसा मैंने कहा है वैसे ही पुलिस को कहना ।”

मैं वापस फ्लैट के अन्दर दाखिल हुआ । मुझे देखते ही कोठारी ने मेरे बांह को पकड़ कर ड्राइंगरुम के कोने में ले गया ।

” अब बताओ खंजर के बारे में तुम क्या जानते हो ?”

” सर ऐसा ही खंजर मेरी सिस्टर श्वेता के पास था जो फिलहाल मेरे पास है ” – मैंने बड़ी सावधानी से कहा ।

कोठारी मुझे एक टक कुछ देर तक घुरता रहा फिर पुछा -” अभी भी तुम्हारे पास है ?”

” यहां नहीं घर पर है ।”

” शाम तक खंजर थाने में ले आकर मिलो “- उसने हुक्म सुना दिया ।

” जी ।”

” तुम्हें कतल की खबर कैसे हुई ?”

मैंने इमानदारी से रमणीक लाल के बारे में बता दिया ।

” सर आपको क्या लगता है कहीं इसका भी सम्बन्ध अमर के कतल से तो नहीं है ?”

” तुम्हें ऐसा क्यों लगता है ?” – कोठारी ने कहा ।

” सामने वाले फ्लैट में करीब एक महीना पहले अमर का खून हुआ और अब यहां मनीष जी का तो हो सकता है दोनों कतल का आपस में कोई लिंक हो ।”

इंस्पेक्टर कुछ नहीं बोला ।

” सर कतल के बारे में कुछ बताइए और उनकी पत्नी अनुपमा जी कहां है ?”

” ये खबर अनुपमा जी ने ही पुलिस को दी थी । वो अपने मायके जयपुर से आज सुबह वापस आई थी । उन्हें फ्लैट का मेन दरवाजा खुला पाया मिला था । जब वो अंदर गई तो उन्होंने अपने हसबैंड को ड्राइंगरुम में मरा पाया। ”

जब रविवार को श्वेता दी और जीजू अपने फ्लैट से दिल्ली आने के लिए तैयारी कर रहे थे तब अनुपमा जी से मुलाकात हुई थी । आज गुरुवार है । इसका मतलब रविवार के बाद ही किसी दिन वो जयपुर चली गई थी । और दो तीन दिन रहकर आज वापस आई थी ।

” अभी कहां है वो ?” – मैंने कहा ।

” बगल वाले फ्लैट में । रमाकांत जी के यहां ।”

” खून कब हुआ होगा ?”

” डाक्टर का अंदाजा है इसे मरे हुए पांच छः घंटे हो चुका है । बाकी रिपोर्ट तो पोस्ट मार्टम के बाद ही मिलेगा ।”

कोठारी फिर से अपने काम में व्यस्त हो गया । मैं उससे इजाजत लेकर फ्लैट से बाहर निकल गया । सोचा एक बार अनुपमा जी से मुलाकात कर लूं । रमाकांत जी का फ्लैट का दरवाजा खुला हुआ था । मैं उनके फ्लैट में दाखिल हुआ । अनुपमा जी उनके कमरे में चार पांच औरतों से घिरी हुई बैठी थी । उनकी आंखें रो रो कर सूज गई थी । उन्होंने मुझे एक नजर देखा फिर अपनी नजरें झुका ली । जानकी आंटी भी वहीं बैठी हुई थी । मैं उनसे भी अनुष्का और वीणा के उनके रिश्ते के बारे में बात करना चाहता था लेकिन अभी इन सब बातों के लिए मुझे मुनासिब वक़्त नहीं लगा । रमाकांत जी मुझे नजर नहीं आए ।

मैं घर निकल गया ।

घर पहुंच कर माॅम की हालचाल पूछा फिर अपने कमरे में चला गया । पैंट शर्ट उतार कर हाथ मुंह धोया और बिस्तर पर जाकर लेट गया ।

मुझे समझ नहीं आ रहा था कि आखिर चक्कर क्या है । किसने मनीष जैन को मारा । वो वकील था । उसके कई दुश्मन हो सकते हैं । क्या उन्हीं में से किसी ने उसे मारा या उसने मारा जिसने अमर का खून किया था । लेकिन क्यों ?

अमर और मनीष जैन का क्या लिंक हो सकता है ? क्या वजह हो सकती है इन दोनों की हत्याओं की ? और मुझ पर भी तो आगरा में अटैक हुआ था – लेकिन क्यों ? मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था ।

खंजर की क्या कहानी हो सकती है ? श्वेता दी की खंजर किस ने चुराई ? क्या खंजर मनीष जैन को मारने के लिए चुराया गया था ? लेकिन खंजर ही क्यों ?

खंजर….. मैं सहसा खड़ा हुआ । पैंट शर्ट पहना और बाइक लेकर अमर के घर चला गया जहां श्वेता दी रह रही थी ।

श्वेता दी ने दरवाजा खोला । वो कुछ कहती इससे पहले मैंने कहा-” आप अपने रूम में चलो… मैं थोड़ी देर में आ रहा हूं ।”

उन्होंने सहमति में सिर हिलाया और ऊपर तल्ले अपने कमरे में चली गई ।

मैंने अमर के कमरे का दरवाजा खोला . खंजर उसी जगह पर था ।

मैंने खंजर को मूठ से पकड़ा और फल से बाहर की ओर खिंचने लगा । थोड़ी सी कोशिश के बाद मूठ फल से बाहर निकल गया । मूठ एक तसबीर से लिपटी हुई थी ।

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