Update 10.
होटल के बेल बजने की आवाज सुनकर मेरी नींद खुली । मैंने देखा श्वेता दी मुझसे लिपट कर सोई हुई थी । वो करवट के बल सोई थी । उसकी चुची मेरे सीने से धंसी हुई थी । मेरे पांव उसके माशल जांघों के उपर थी । मेरा लन्ड खड़ा हो कर उसके जांघों से दबा हुआ था ।वो बेसुध गहरी नींद में थी । मुझे उसे देखकर बड़ा ही प्यार आया । उसके होंठों को देख कर चूमने का मन किया ।मैंने उसके निचले होंठ को अपने होंठों से दबा लिया और हल्के हल्के चुसने लगा । उसने अपनी पलकें खोली । मेरी आंखों में देखते हुए मुस्कराई और अपनी लबों का मर्दन करवाती रही । तभी फिर बेल बजी । वो हड़बड़ा कर उठी ।
” कौन है ।” उसने धीरे से कहा ।
” पता नहीं ।”
मैं भी उठ कर बैठ गया । हम दोनों के शरीर पर कोई भी वस्त्र नहीं था । उसे अपनी स्थिति का आभास हुआ तो वो जल्दी से अपने और मेरे कपड़े समेटते हुए बाथरूम की तरफ भागी ।
बाथरूम के अन्दर जाने से पहले पलटी और बोली -” देखो कौन है ।”
मैंने घड़ी की तरफ निगाह डाली सुबह के नौ बजे थे । मैंने थोड़ा ऊंचे स्वर में बोला -” कौन है ?”
” मैं उर्वशी ।”
” एक मिनट आता हूं ।”
मैंने जल्दी से बैग खोला और पैजामा पहना । और जाकर दरवाजा खोला । मेरा उपर का शरीर नंगा था ।
वो इस वक्त गहरे लाल रंग की साड़ी पहने हुए थी । चेहरे पर हल्की सी मेकअप और ताजगी । उसकी खूबसूरती साड़ी में और भी निखर गई थी । वो मुझे देखते ही बोली ।
” मैं कब से बेल बजा रही हूं “- उसने मुझे कमर से ऊपर नंगे बदन देखते ही बोली -” तुम लोग अभी तक तैयार नहीं हुए हो ।”
” नींद जरा देर से खुली । आओ अन्दर आओ ।”
वो अन्दर आईं ।
” श्वेता कहा है ।”
” बाथरूम में ।”
उसने बाथरूम की तरफ देखा । बाथरूम से पानी चलने की आवाज आ रही थी । फिर कमरे के चारों तरफ सरसरी निगाह से देखी ।
मैं जा कर बिस्तर पर बैठ गया । वो मेरे पास आई और खड़े खड़े ही बोली ।
” तुम लोग अभी सो कर उठे हो । रात में नींद नहीं आई । ”
” आई लेकिन थोड़ी ही देर से सोए थे इसलिए नींद नहीं टुटी ।”
” देर से सोए थे । क्या कर रहे थे अच्छा हां याद आया संजय बोल रहे थे तुम उनसे ताश ले आए थे । ”
और तभी उसकी नज़र फर्श पर पड़ी । फर्श पर पलंग से सटकर श्वेता दी की कछी पड़ी हुई थी और थोड़ी दूर मेरी जांघिया पड़ी थी । श्वेता दी ने बाथरूम जाते समय सारे कपड़े तो ले ली थी लेकिन अपनी पैंटी और मेरी जांघिया ले जाना भुल गयी थी । बिस्तर और फर्श पर ताश के पत्ते बिखरे पड़े थे । कुछेक ताश बुरी तरह मुड़े और कुचले हुए थे ।
वो संदिग्ध भाव से मुझे देखी । मैं समझ गया वो वो जान चुकी है कि रात में मेरे और श्वेता दी के बीच में क्या हुआ था । मैं नीचे झुक कर अपना जांघिया और श्वेता दी की कछी को उठाया और साईड में रख दिया ।
” लगता है जबर्दस्त गेम हुआ था । कौन जीता ।”- वो कुटिल मुस्कान भरी ।
” कोई नहीं जीता । बराबरी पर गेम खतम हुआ ।” मैंने मुस्कराते हुए कहा ।
वो पलंग पर बैठते हुए बुरी तरह मुड़े हुए ताश के एक पत्ते को उठाते हुए बोली -” एक ही राउंड गेम चला या और भी कई राउंड हुए ।”
” एक ही राउंड में चार बज गए और फिर शाम के वाइन के नशे का भी असर था तो फिर पड़े पड़े कब सो गए पता ही नहीं चला ।”
वो ताश के पत्ते को मेरे आंखों के सामने लाते हुए पूर्व वत मुस्कराते हुए बोली -”
” कम से कम इन बेचारे पतों पर तो रहम कर दिया होता । देखो इसकी क्या हालत कर दी है । ”
मैंने देखा कार्ड के उपर हम दोनों का कामरस लगा हुआ था जो अब सुख गया था लेकिन उसके दाग स्पष्ट दिख रहे थे । लगता है ये कार्ड हमारे संभोग के दौरान कमर के नीचे हमारे संधि स्थल से के पास ही थे ।
” ये दो खिलाड़ियों के बीच में आ गया था इसलिए मैंने मशीनगन से इस पर गोलियों की बौछार कर दी । और हो सकता है कि श्वेता दी को भी पसंद नहीं आया हो और उसने भी अपनी कूआं के पानी से इसे डुबो देना चाहा हो ।”
” सच में तुम ना एक नम्बर के हरामी हो । ”
” शुक्रिया ।” कहकर मैंने उसे दबोच कर पलंग पर गिरा दिया और उसके मुंह से अपनी मुंह सटा दिया और उसके गुलाबी होठों को चूसने लगा । उसने मुझे कसकर अपनी बाहों में कस लिया । हमारी चुम्बन काफी wild होने लगी । मैंने उसे पलट कर पीठ के बल लिटा दिया और उसके होंठों को चूसने लगा । वो होंठ चुसाते हुए अपनी जीभ निकाल कर मेरे मुंह में ठूंस दी । मैं उसकी जीभ मेरे अपने मुंह में दबा कर चूसने लगा ।
हमारे saliva ( लार ) एक दूसरे के मुंह में जा रहे थे । मैं उसकी बड़ी-बड़ी चूचियों को ब्लाउज के ऊपर से जोर जोर से दबाने लगा ।
तभी बाथरूम में कुछ हलचल हुई । वो मुझे परे धकेल दी और अपने कपड़े दुरूस्त करने लगी । मैं भी उठकर उसके बगल में बैठ गया ।
हम अपनी सांसें दुरूस्त कर ही रहे थे कि श्वेता दी बाथरूम से फ्रेश होकर बाहर निकली । वो उस वक्त एक टावल लपेटे हुए थी जो उसके घुटनों से ऊपर थी । सीने का उपरी हिस्सा खुला हुआ था । टावल में उसके बड़े-बड़े वक्ष काफी मनमोहक एवं सेक्सी लग रहे थे ।
” अरे ! तु कब आई ।” श्वेता दी ने उर्वशी को को देख कर चौंकते हुए कहा । और जल्दी से अपने कपड़े बैग में से निकालने लगी । और मुझे देखते हुए बोली -” तुम क्या कर रहे हो । जाओ जल्दी से रेडी हो जाओ ।
मैंने उसकी पैंटी और अपनी जांघिया को अपने हाथों में दबा कर अपने कपड़े लिया और बाथरूम में घुस गया ।
” अभी आई । और बता रात में नींद कैसी आई ।” -” उर्वशी ने मुस्कुराते हुए कहा ।
” अच्छी आई । ताश खेलते खेलते देरी हो गई इसलिए नींद जल्दी टुटी नहीं ।” श्वेता दी अपने कपड़े पहनते हुए बोली ।
मैंने बस इतना ही बात बाथरूम में प्रवेश करते हुए सुनी । करीब आधे घंटे बाद जब मैं बाहर निकला तो उर्वशी और श्वेता दी को धीरे धीरे बातें करते हुए सुना । दोनों काफी प्रसन्न चित्त मुद्रा में मुस्करा मुस्करा कर बातें कर रही थी । श्वेता दी तैयार हो चुकी थी । वो हरे रंग की साड़ी पहनी थी । दोनों औरतें काफी खूबसूरत और सेक्सी दिख रही थी । मैं कंघी करते हुए आईना से उनकी खुबसूरती निहार रहा था कि संजय जी कमरे में प्रवेश किए ।
” तुम यहां बैठी हो और मैं तुम्हें कहां कहां खोज लिया ।” संजय जी कमरे के अंदर आते हुए बोले ।
” क्या हुआ ।” उर्वशी ने कहा ।
श्वेता दी और मैंने उन्हें गुड मार्निंग वीश किया । वो हमें गुड मार्निंग वीश करते हुए बोले -” चलना नहीं है क्या ? मां डैड और तुम्हारे पैरेंट्स सभी को दिल्ली निकले हुए एक घंटा हो गया ।”
” और मधुलिका ?”
” वो हमारे साथ चलेगी । ” संजय जी ने मुझे देखते हुए कहा -” आप लोग अभी रुकोगे या हमारे साथ ही निकलोगे ।”
” रुकना किसलिए है । हम भी साथ ही निकलते हैं ।” मैं अपने बैग को रेडी करते हुए बोला ।
” मैं भी अपना बैग पैक कर लेती हूं ।” श्वेता दी ने उर्वशी से कहा । और वो वहां से उठ गई ।
मैं संजय जी के पास गया और बोला -” एक बार थाने में पता कर लेते हैं कल वाली वारदात में कुछ प्रोग्रेस है कि नहीं ।”
” सही बोल रहे हो । ये बात मुझे सुझी नहीं थी । चलो । थाने चलते हैं ।”
हम दोनों श्वेता दी और उर्वशी को आधे घंटे में आने के लिए कहकर थाने की तरफ निकल गये । उनके पास BMW कार थी । मैं उनके बगल में बैठ गया । पुलिस स्टेशन में वही अधिकारी था जो होटल में छानबीन करने आया था । उसने बड़े गर्म जोशी से स्वागत किया । कांस्टेबल को काफी लाने को बोलकर अपनी केस से सम्बंधित सारी बातें बताई ।
उसके बातों से यही पता चला कि गोली चलाने वाले शख्स की बाइक एक सुनसान जगह पर खड़ी मिली थी और वो बाइक चोरी की हुई आगरा की ही थी जिसकी जिसकी रपट उसी दिन दोपहर को लिखाई गई थी । दिवाल में धंसी हुई गोली 36 कैलेवर के रिवाल्वर की थी ।
थोड़ी देर बाद हम वहां से निकल गये । रास्ते में एक अच्छे दुकान से पेठा खरिदा और होटल की तरफ रवाना हो गए ।
होटल से निकलते निकलते बारह बज गए । जाने के लिए व्यवस्था ये था कि मैं , श्वेता दी और उर्वशी राजीव जीजू के कार में थे जबकि संजय जी और मधुमिता अपने कार में थे । और प्लान था कि गाजियाबाद में श्वेता दी को उनके फ्लैट पर उतार कर उनकी कार वहीं छोड़ दुंगा और मैं संजय जी के साथ उनके कार में दिल्ली चला जाऊंगा ।
श्वेता दी और उर्वशी दी कार के पिछले सीट पर बैठ गई । मैंने कार स्टार्ट की और भीड़ भाड़ एरिया से धीरे धीरे बाहर की ओर मेन रोड पर लाकर स्पीड बढ़ा दी । दोनों सहेलियां कार में बेठते ही खुसुर फुसुर शुरू कर दी । संजय जी की BMW हमसे आगे तेजी से बढ़ी जा रही थी ।
तभी मेरा मोबाइल बजा । मैंने देखा काजल का फोन है ।
मोबाइल उठाते हुए कहा -” बोलो काजल ।”
काजल बोली -” भैया आप ने ले ली है ना ।”
” कहां ली है “- मै मुस्कराते हुए कहा -” जब दोगी तब ना लुंगा ।”
” अरे भैया मैं पेठा की बात कह रही हूं ।”
” अच्छा वो । हां हां ले लिया है ।”
” आप किसकी बात कर रहे थे ?”
” मैं समझा तुम मुझे कुछ देने वाली थी जो शायद मैं भुल गया हूं ।”
” मैं क्या आप को देने वाली थी । मैंने तो पहले आप को कुछ देने के लिए नहीं कहा था ।”
” ओह शायद मुझे ही गलतफहमी हो गई है । कोई बात नहीं मैंने पेठा ले लिया है और कल किसी वक्त तुम्हारे घर दे जाऊंगा ।”
” ठीक है भैया।” वो कुछ देर चुप रही फिर बोली -” वैसे भैया यदि आपको आम अच्छा लगता है तो वो मैं आपको दे सकती हूं । मेरे घर के पीछे जो बगीचा है ना वहां काफी अच्छे-अच्छे आम हुए हैं ।”
” अच्छा ! ये तो बहुत अच्छी बात है । मुझे आम बहुत पसंद हैं । मैं जरुर खाऊंगा ।”
” तब जब आप कल आना तो मुझे पहले से खबर कर देना ।”
” श्योर । वैसे कौन कौन से आम के पेड़ लगे हैं ।
” अब इतना तो मुझे पहचान नहीं है भैया बस ये जानती हूं कि उसे हम चुस कर खाते हैं ।”
” वाह । यही आम मुझे भी पसंद है । चुस चुस कर खाने वाले ।”
” ठीक है भैया तो कल मिलते हैं । बाॅय ।” बोलकर उसने फोन काट दी ।
मुझे कुछ कुछ संभावनाएं दिखने लगी । मैंने प्रसन्नचित मुद्रा से कार के साइड मिरर से पिछले सीट पर बैठे हुए सहेलियों को देखा । वो गप्पे लड़ाने में व्यस्त थी । उन्हें तो जैसे मेरी मौजूदगी का अहसास ही नहीं था । मैंने उन्हें उन के हाल पर छोड़ा और मैं ड्राइव पर ध्यान देने लगा ।
काफी समय हो गया था कार चलाते । रास्ते में कहीं रुकना था नहीं क्योंकि निकलने से पहले होटल में ही हैबी नाश्ता कर लिया था । गाजियाबाद आधे घंटे में पहुंचने वाले थे । मैंने एक बार फिर पिछे की तरफ नजर फिराई । वो दोनों अभी भी बातों में मसगुल थी ।
दाता । कितनी बातें करती है ये औरतें । इनका मुंह भी नहीं दुखता । इन्हें रोका नहीं जाय तो ये non stop बिना रुके दो चार दिनों तक बातें करती रह जाएगी । आगरा से शुरू हुई है और अब थोड़ी देर में गाजियाबाद पहुंचने वाले हैं लेकिन अभी तक इनकी खुसुर फुसुर बन्द नहीं हुई है । शायद यही कारण है कि हर समाचार चैनल वालों ने लड़कियों को ही समाचार सुनाने के लिए रख रखा है ।
कुछ देर बाद फिर मैंने ग्लास से पिछे की तरफ देखा तो सौभाग्य से इस बार उर्वशी को अपनी तरफ देखते हुए पाया । हमारी नजरें मिली । वो मुस्कुराती हुई बोली -”
” क्या बात है बोर हो रहे हो ।”
” नहीं खुशी से झूम रहा हूं , उछल रहा हूं । यहां मैं इतनी देर से बिना पलक झपकाए , चुपचाप कार ड्राइव कर रहा हूं और तुम दोनों अपने में ही व्यस्त हो । ऐसा नहीं कि एक बार पुछ लें भाई थक गया है , भुख लगी है , थोड़ा रेस्ट कर लो ।” मैंने भुनभुनाते हुए कहा ।
” अच्छा थक गया है , भुख भी लगी है , क्या खायेगा , क्या पियेगा , दुध पियेगा ।” उसकी मुस्कान शरारत से भरी हुई थी । अब श्वेता दी की नजर भी मिरर के द्वारा मेरे चेहरे पर थी ।
” बड़ी मेहरबानी होगी ।”
” किससे पियेगा भाई । अपनी श्वेता दी से या अपनी उर्वशी दी से ।”
” मैं तो दोनों का ही पीना चाहता हूं अब ये तो आप दोनों पर निर्भर करता है ।
” अभी तो तुम अपनी श्वेता दी की पियो बाद में मेरी पी लेना । मैंने तो पहले कई बार पिलाया है लेकिन श्वेता ने अभी तक सिर्फ एक बार ही पिलाया है ।” बोलकर मेरे आंखों में देखते हुए श्वेता दी की एक चुची को साड़ी के ऊपर से ही दबा दिया । मेरी नजर श्वेता दी पर पड़ी वो मुझे देख कर मन्द मन्द मुस्करा रही थी । मेरा लन्ड पैन्ट के अन्दर फुफकारा ।
” अगर ऐसा है तो मैं कार खड़ी करता हूं ।”
” नहीं । अभी नहीं । हम पहुंचने वाले हैं । अभी ड्राइव करो ।” उर्वशी ने कहा ।
” वही तो कब से कर रहा हूं । तुम दोनों ने तो आज मुझे सच का ही ड्राइवर बना दिया ।”
” वो तो हो ही । मेरे तो बहुत पहले से हो अब श्वेता के भी ड्राइवर हो गये हो । ”
मैं उसे देख कर सिर्फ मुस्करा दिया ।मैं सावधानी से कार ड्राइव करते हुए उन दोनों को शीशे से देख रहा था । तभी उर्वशी आगे झुक कर मेरे मुंह के पास आई और बोली –
” तुम हम दोनों की गाड़ी पर सवारी कर चुके हो तो सच सच बताना कि तुम्हें ज्यादा मजा किसमें आया । मेरी में ना अपनी श्वेता दीदी की गाड़ी सवारी करने में । ”
मेरा लन्ड उसकी बातें सुनकर ज्यादा ही उथल पुथल मचाने लगा । मैंने उसे पैंट के ऊपर से ही एडजस्ट किया ।
” तुम एक्सीडेंट करवा कर मानोगी । ” मैंने उसकी तरफ पलटते हुए कहा तो उसने जल्दी से मेरे होंठों पर अपने होंठ रख कर एक चुम्बन ले लिया ।
” क्या कर रही हो । मैं पक्का एक्सीडेंट कर बैठुंगा ।”
वो पिछे घसक गई और श्वेता दी के साथ सट कर बैठ गई ।
” लेकिन तुम ने मेरी बात का जबाव नहीं दिया ।” – उर्वशी फिर पुछी ।
” तो तुम भी तो दो घोड़ों पर सवार हो चुकी हो । तुम्हे किसका घोड़ा अच्छा लगा ।” मैंने कहा ।
” हाय मुझे तो तुम्हारे घोड़े पर सवार होकर ज्यादा मजा आता है ।”उर्वशी ने अपने होंठों पर जीभ फेरते हुए कहा ।
” लेकिन मुझे तुम दोनों की सवारी करने में मजा आता है । ”
” ये तो डिप्लोमेटिक जवाब हुआ । कुछ तो अंतर होगा ।”
” अब मैं क्या कहूं ” मैंने पलट कर उन्हें देखा और उनके साड़ियों का कलर देखते हुए कहा -“एक हरी मिर्च की तरह है तो दुसरी लाल मिर्च की तरह ।”
तभी श्वेता दी प्रथम बार हस्तक्षेप करते हुए बोली -” हम दोनों में हरी और लाल मिर्च कौन है ।”
मैंने श्वेता दी की तरफ देखा । वो मुस्कुराती हुई मुझे देख रही थी । मैंने कहा -” तुम हरी मिर्च हो और उर्वशी दी लाल मिर्च है ।”
” अच्छा ! ऐसी बात है तो याद रखना एक दिन ये लाल और हरी मिर्च एक साथ तुम्हारे मुंह में ढुकेगी तब तुम्हें इसके असल तीखेपन का पता चलेगा ।”- उर्वशी ने श्वेता दी को अपने बाहों में भर कर कहा ।
उसके बातों का मतलब समझते ही मेरे धड़कने बढ़ गई और लन्ड अन्दर से बाहर निकलने के लिए व्याकुल हो उठा । ये थ्रीसम की बात कर रही थी ।तभी सामने रोड के किनारे संजय जी की BMW खड़ी दिखाई दिया । मैंने अपनी कार उनके बगल में रोक दी । उन्होंने मुझे आगे आगे चलने को कहा । हम गाजियाबाद प्रवेश कर गये थे लेकिन उन्हें श्वेता दी के फ्लैट का एड्रेस मालूम नहीं था । मैंने अपनी कार उनके कार से आगे बढाया ।
थोड़ी देर में हम श्वेता दी के फ्लैट के नीचे थे । श्वेता दी के आग्रह पर सभी उनके फ्लैट के अन्दर गये । राजीव जीजू घर में ही थे । वहां हल्के फुल्के नाश्ता और चाय सिगरेट पीने के बाद आधे घंटे में निकल गये ।
BMW में मैं पीछे बैठा । मधुमिता संजय जी के साथ आगे बैठी थी । वहां से दिल्ली तक के सफर में दोनों से हल्की फुल्की औपचारिक बातें होती रही । संजय जी के रहते मधुमिता से ज्यादा बातें नहीं हूई ।
जब मैं घर पहुंचा तब सात बज गए थे । मैंने संजय जी को घर चलने के लिए कहा तो उन्होंने विनय पूर्वक मना कर दिया यह कहकर हफ्ते भर के अन्दर वो हमारे घर आयेंगे । उन्होंने मुझसे हाथ मिलाया और ‘ गुड नाईट ‘ बोलकर अपने घर की तरफ रवाना हो गए । मैंने अपने घर की बेल बजाईं । माॅम ने दरवाजा खोला और मैं घर के अन्दर प्रवेश किया ।