राजू की जिंदगी बड़े अच्छे तरीके से चल रही थी,,,,, वह जिस उम्र के दौर से गुजर रहा था इस उम्र के लड़के केवल बुर और औरत के अंगों की मात्र कल्पना ही करके अपने हाथ का सहारा लेकर अपनी गर्मी को शांत करने की कोशिश करने में लगे रहते थे लेकिन राजू अपने हम उम्र के लड़कों से कहीं आगे था,,, इस उम्र में वह रोज नई-नई बुर का स्वाद चख रहा था,,,,,, जिसमें अब उसकी खुद की मां भी शामिल हो चुकी थी,,, और राजू तो अपनी मां की खूबसूरत मखमली बुर पाकर और ज्यादा बलवान होता चला जा रहा था,,,,,,,,।
जमीदार विक्रम सिंह के नाम का खौफ वह लाला के चेहरे पर अच्छी तरह से देख चुका था वह कई बार अपने मन में सोचा कि इस बारे में वह लाला से बात करके देखे लेकिन वह पूछ नहीं पाया ना जाने क्या मामला था,,,, जोकि लाला विक्रम के सामने नजरे झुकाए खड़ा था और तुरंत उसे लेकर अपनी हवेली पर चला गया था,,,। राजू अपने मन में ही सोचता था कि खैर जो भी हो उसका काम तो अच्छी तरह से चल रहा था,,, गोदाम का सारा देखभाल उसके ही सिर पर था जब से विक्रम सिंह आकर वापस गया था तब से तो लाला गोदाम का सारा कारभार राजू के ही हाथों में सौंप दिया था और राजू भी अपने इस फर्ज को बखूबी निभा रहा था,,,, देखते ही देखते मजदूरों में राजू की इज्जत बढ़ने लगी थी राजू को उनमें से कई लोग साहब कहकर ही बुलाते थे,,,,,,,, राजू भी मजदूरों का बहुत ख्याल रखता था इसलिए मजदूरों में राजू पूरी तरह से लोकप्रिय हो गया था उसकी एक आवाज पर सब लोग खड़े हो जाते थे,,, लाला से सभी मजदूर डरते थे लेकिन राजू से प्यार करते थे,,,, क्योंकि राजू आए दिन उनकी मजदूरी में से कुछ ज्यादा पैसे देकर उनकी मदद भी करता था,,,,,,, जिस तरह से राजू ने गोदाम के काम को बड़ी होशियारी से और अपनी इमानदारी से संभाला था उसे देखते हुए लाला भी राजू से बहुत खुश रहता था,,,,,,।
ऐसे ही 1 दिन राजू गोदाम पर काम कर रहा था,,,, और लकड़ी के बने छोटे-छोटे बक्सों में आम भरवा रहा था जो कि शहर जाना था,,,,, यही देखने के लिए लाला गोदाम पर आया हुआ था और साथ में सोनी भी आई हुई थी,,,,,, सोनी की नजर राजू पर पडते ही सोनी शर्मा कर अपनी नजरों को नीचे झुका दे क्योंकि जिस दिन से राजू ने अपनी आंखों के सामने उसे अपने भाई से ही चुदवाते हुए देखा था तब से सोनी की हिम्मत नहीं होती थी राजू से नजर मिलाने की राजू को दोनों भाई-बहन के बीच के रिश्ते से कोई भी गलतफहमी बिल्कुल भी नहीं थी,, रिश्तो के बीच में हु इस तरह के संबंध को वह व्यवहारिक रुप से सही मानने लगा था क्योंकि उसका खुद का संबंध अपनी ही बुआ और अपनी मां के साथ साथ अपनी सभी शादीशुदा बहन के साथ भी था जिसके पेट में उसका ही बच्चा पल रहा था,,,,,
सोनी को देखते ही राजू लाला के सामने हाथ जोड़कर अभिवादन करने के बाद सोने की तरफ मुखातिब होता हुआ बोला,,,
आईए छोटी मालकिन,,, धूप में क्यों खड़ी है अंदर आ जाइए,,,(और इतना कहने के साथ ही राजू एक कुर्सी खींचकर सोनी की तरफ कर दिया और सोनी बिना कुछ बोले उस पर बैठ गई थी,,,,,, राजू ने तुरंत लाला और उसकी छोटी बहन सोनी के लिए मिठाई और पानी का बंदोबस्त किया,,,, सोनी बार-बार तिरछी नजरों से राजू की तरफ देख ले रही थी और राजू भी सोनी को देख कर मुस्कुरा दे रहा था,,,, राजू के खुशमिजाज व्यवहार को देखते हुए सोनी को लगने लगा था कि राजू उससे नाराज नहीं हैं,,, कटोरी में रखी हुई मिठाई खाए बिना पानी का गिलास उठा कर पीना चाही तभी राजू बीच में टोकते हुए बोला,,,।
अरे अरे छोटी मालकिन है क्या कर रही है मिठाई तो खाइए,,, खास करके आपके लिए ही मंगवाया,,,
(राजू की बात सुनकर लाला का भी इस और ध्यान गया तो हम भी राजू के सुर में सुर मिलाता हुआ बोला,,)
अरे हां सोना मिठाई तो खाओ,,,,, खाली पेट पानी पियोगी तो पेट में दर्द होने लगेगा,,,
जी भैया,,,(इतना कहकर सोनी छोटे से मिठाई के टुकड़े को लेकर खाने लगी और फिर पानी पीने लगी ,,, यह देखकर राजू अपने मन में सोचने लगा कि घर के चारदीवारी के बाहर यह दोनों सच में समाज के लिए एक भाई बहन हैं लेकिन चारदीवारी के अंदर एक मर्द और औरत बन कर कैसे एक दूसरे की आंखों से खेलते हुए अपनी प्यास बुझाते हैं जैसा कि वह खुद अपने ही घर में करता रहा था,,,,दूसरी तरफ लाला अपनी जगह से खडा हो गया और राजू से बोला,,,)
राजू आमों को शहर में भेजने का क्या इंतजाम किए हो,,,
सब कुछ हो गया सर जी बस उसे लकड़ी के बक्सों में भरा जा रहा है,,, चलिए चल कर देख लीजिए,,,,
तुम यहीं बैठो सोनी,,,, मैं इंतजामत देख कर आता हूं,,,
(इतना कहने के साथ ही लाला राजू के साथ गोदाम के अंदर वाले हिस्से में चला गया जहां पर पके हुए आम को लकड़ी के बक्से में रखा जा रहा था लाला यह देखकर बहुत खुश हुआ कि मजदूर बड़ी लगन से काम कर रहे थे और राजू हमसे अच्छा काम निकलवा रहा था,,,,)
बहुत अच्छे राजू मुझे तुमसे यही उम्मीद थी तुम मेरे काम को बढ़िया अच्छे से संभाल लिए हो,,,,
जी शेठ जी,,, मैं आपका काम अपना ही काम समझकर करता हूं,,,,
तुमसे मैं बहुत खुश हूं तभी तो इतने बड़े गोदाम का कार्यभार मैंने तुम्हें सौंप दिया है,,,।
(लाला बहुत खुश नजर आ रहा था और उसे इस तरह से खुश होता देखकर राजू के मन में आया कि विक्रम सिंह के बारे में पूछे लेकिन फिर कुछ सोच कर वह कुछ बोला नहीं,,, लाला और राजू दोनों वहीं बैठे रह गए और गोदाम के बाहर वाले इस समय सोनी बैठ कर इंतजार कर रही थी देखते ही देखते शाम ढलने लगी थी अंधेरा होने की शुरुआत हो रही थी,,,,)
अब मुझे चलना चाहिए राजू,,, 2 दिनों में तो आम लकड़ी के बक्सों में एक हो जाएगा ना,,,
अरे नहीं नहीं मालिक अभी कुछ घंटों में ही सारा का सारा हम लकड़ी के बक्सों में धरती आ जाएगा और सुबह होते ही मैं इन्हें बैलगाड़ी में भरवा कर स्टेशन तक पहुंचा दूंगा,,,
क्या आज पूरा हो जाएगा,,(क्यों नहीं शेठ,,)
मजदूर देर तक काम करेंगे,,,,
हां जरूर करेंगे कैसे काम करवाना है मुझे अच्छी तरह से आता है,,,
तब तो यह बड़ी अच्छी बात है राजू,,,, तुम पर विश्वास करके मैंने कोई गलत काम नहीं किया है,, अच्छा अब मैं जा रहा हूं तुम सारा काम करवा कर गोदाम मैं ताला लगा देना,,,
जी सेठ जी,,,,।
(इतना कहने के साथ ही दोनों गोदाम के आगे वाले हिस्से पर आ गए,,, तभी सोनी अपनी जगह से खड़ी होते हुए बोली)
क्या भैया कितनी देर लगा दीए,,,,
सोनी वो क्या है ना कि आम को सही समय पर शहर भेजना है वरना सड जाएंगे,,,,
(लाला का इतना कहना था कि तभी एक आदमी आया और बोला)
नमस्ते लाला जी,,, आपके परम मित्र ने आपके लिए निमंत्रण भिजवाया है,,
निमंत्रण कैसा निमंत्रण,,,,
आज उनके घर जश्ने है और आपको उस जश्न में शामिल होने के लिए बुलावा भेजा है,,,
अभी,,,
जी जमीदार साहब,,,
(अपने परम मित्र के द्वारा भेजे गए इस निमंत्रण के मतलब को हलाला अच्छी तरह से समझता था मांस मदिरा और शबाब का पूरा इंतजाम था इसलिए जमीदार ना भी नहीं बोल पा रहा था लेकिन उसे एक चिंता थी कि सोनी को घर भी पहुंचाना था वह सोच में पड़ गया था और बोला)
अभी चलना है,,,
जी मालिक,,,,
लेकिन सोनी को घर भी पहुंचाना जरूरी है मुझे घर जाकर वापस जाना होगा,,,,
आप बिल्कुल भी चिंता मत करो सेठ जी,,,,,, मैं छोटी मालकिन को हवेली तक पहुंचा दूंगा,,,
तुम पहुंचा दोगे राजू,,,
जी मालिक मैं पहुंचा दूंगा सही सलामत,,,
अरे वाह तब तो यह बहुत अच्छा हुआ,,, लेकिन रुको,,,
(इतना कहने के साथ ही लाला घोड़ा गाड़ी के करीब गया और घोड़ा गाड़ी में रखी हुई अपनी दो नाली वाली बंदूक को बाहर निकाला और राजू को थमा ते हुए बोला,,)
यह लो राजू रात का समय है तुम दोनों की सुरक्षा के लिए,,,
(राजू उस बंदूक को पकड़ते हैं एकदम उत्साहित हो गया उसके चेहरे पर प्रसन्नता के भाव नजर आने लगे वह बंदूक अपने हाथों में पकड़ कर इधर-उधर देखते हुए बोला,,)
क्यों सच में मालिक मैं रख लु इसे,,,
हां राजू अब इसकी तुम्हें जरूरत है क्योंकि तुम्हारा भी नाम आस-पास के गांव में प्रख्यात होने लगा है और अब तो व्यापारी भी तुम्हारा नाम जानने लगे हैं इसलिए तुम्हारी सुरक्षा और तुम्हारे ओहदे के सम्मान के लिए तुम्हारा बंदूक रखना जरूरी हो चुका है,,,,।
(राजू बहुत खुश नजर आ रहा था ,, उसने अब तक बंदूक को दूर से देखा बता लेकिन आज से अपनी हाथ में लेकर वह बहुत उत्साहित नजार आ रहा था यह देखकर लाला बोला)
इसे चलाने भर की हिम्मत तो है ना,,,
सेठ जी हिम्मत की बात कर रहे हो मेरी हिम्मत आप अच्छी तरह से देख चुके हो,,,
(राजू की बात सुनते ही लाना को उस दिन की सारी घटना याद आ गई और वह कुछ बोल नहीं पाया राजू ने भले ही पहली बार बंदूक हाथ में लिया था लेकिन इसे कैसे चलाना है इसका अंदाजा उसे अच्छी तरह से था,,,,)
ठीक है राजू मैं चलता हूं तुम थोड़ी देर में निकल जाना,,,
ठीक है मालिक आप चाहिए वैसे भी हवेली ज्यादा दूर नहीं है अच्छे से पहुंच जाएंगे,,,,।
(थोड़ी देर में लाला घोड़ा गाड़ी में बैठकर उस आदमी के साथ चला गया,,, और सोनी का दिल जोरो से धड़कने लगा क्योंकि वह काफी दिनों बाद राजू के साथ अकेली थी राजू सोनी से बोला,,,)
तुम यहीं रुको मैं अभी आता हूं,,,
(इतना कहने के साथ ही राजू अंदर के और मजदूरों को सारा काम समझा कर उन्हें गोदाम की चाबी देकर वापस आ गया और वहीं पर टंगी हुई लालटेन को अपने हाथ में ले लिया और बंदूक को अपने कंधे पर टांग लीया बंदूक को अपने कंधे पर टांग लेने के बाद कैसा लग रहा था उसकी हिम्मत और ज्यादा बढ़ गई थी,,, सोनी और राजू दोनों हवेली की तरफ निकल गए थे पैदल ही जाना था उस पैदल का सफर राजू को बहुत अच्छा लग रहा था चारों तरफ अंधेरा छाया हुआ था हाथ में लालटेन लिए उसकी रोशनी ने राजू आगे बढ़ रहा था साथ में सोने भी धीरे धीरे चल रही थी दोनों के बीच किसी भी प्रकार की वार्तालाप नहीं हो रही थी सोनी अभी भी शर्मिंदा थी इसलिए वह कुछ बोल नहीं पा रही थी बात की शुरुआत करते हुए राजू बोला,,,।)
तुम कुछ बोल क्यों नहीं रही हो,,,
राजू जो कुछ भी तुमने उस दिन देखा उसके लिए मैं बहुत शर्मिंदा हूं,,,
अरे तो क्या हुआ सोनी मुझे कोई दिक्कत नहीं है मैं जानता हूं तुम्हारी मजबूरी को और तुम्हारी बड़े भैया के जरूरत को,,, इसलिए उस दिन के लिए मुझसे शर्मिंदा होने की कोई जरूरत नहीं है,,,,
ओहहहह राजू तुम बहुत अच्छे हो मुझे तो लगा था कि तुम मुझे माफ ही नहीं करोगे,,,,
नहीं सोनी इसमें तुम्हारी कोई भी गलती नहीं है मैं अच्छी तरह जानता हूं बल्कि उस दिन जो कुछ भी मैंने अपनी आंखों से देखा उससे मुझे फायदा ही हुआ है,,,
फायदा कैसा फायदा,,,,
अरे देख नहीं रही हो तुम्हारे भैया ने सारे गोदाम का कार्यभार मुझे सौंप दिया है और साथ ही यह बंदूक भी दे दिए हैं और तो और मेरा सारा कर्जा उतर गया है अब तुम ही सोचो उस दिन की बात के लिए मेरे मन में कोई मलाल रहेगा क्या,,,,,,
सही कह रहे हो लेकिन मुझे इसी बात का डर था कि तुम इस तरह के रिश्ते को कैसे देखोगे जो कि सब कुछ अपनी आंखों से देख चुके थे मुझे इस बात का भी डर था कि कहीं तुम ने सबको बता दिया तो मेरा तो जीना दूभर हो जाएगा,,,
नहीं मैं मरते दम तक यह राज किसी को नहीं बताऊंगा क्योंकि लाला का तो पता नहीं लेकिन तुम मेरे लिए बहुत खास हो,,,
(राजू के मुंह से अपने लिए यह बात सुनकर सोनी का दिल गदगद हुए जा रहा था वह इस बात से खुश थी कि राजू उसके राज को राज ही रखा हुआ था ,,,,,चारों तरफ बड़े-बड़े पेड़ तेज हवा के झोंकों से लहलहा रहे थे ऊंची नीची कच्ची सड़क से दोनों चले जा रहे थे इस तरह के एकांत में सोनी का दिल जोरों से धड़क रहा था,,,, राजू लालटेन की रोशनी में सोनी के गोल गोल पिछवाड़े को देखकर उत्तेजित हो जा रहा था उससे रहा नहीं गया तो वह चलते हुए ही सोनी की गांड पर हाथ रखते हुए बोला,,,,)
तुम्हारे भैया तो निमंत्रण में गए हैं आज की रात तुम्हारे कमरे में,,,
नहीं नहीं राजू भैया ने दो दरबान दरवाजे पर रखे हुए हैं जो दिन-रात पहरा भरते हैं,,, अगर तुम मेरे साथ भैया की गैर हाजिरी ने आओगे और कुछ देर बाद जाओगे तो हो सकता है उन लोगों को शक हो जाए और ऐसा में बिल्कुल भी नहीं चाहती,,,
इसका मतलब हैरानी कि हमें यही करना होगा,,,
नहीं अब तो यहां भी नहीं कर सकते ,,,
क्यों,,,?
बातों ही बातों में पता नहीं चला वह देखो हवेली का दरवाजा नजर आने लगा है और वहां खड़े दोनों दरबार जहां की हरकत के बारे में जरा भी आभास होगा तो दौड़ते हुए यहां तक आ जाएंगे,,,
ऐसा कुछ भी नहीं होगा मेरी जान,,,
(और इतना कहने के साथ ही राजू अपने कंधे पर लटका ली हुई बंदूक को उतारकर पेड़ के सहारे खड़ा कर दिया और लालटेन की लौ को एकदम धीमा करके उसे भी पेड़ के पीछे रख दिया ताकि उसकी रोशनी दूर तक नजर ना आए सोनी राजू के मतलब को अच्छी तरह से समझ रही थी इसलिए उसके तन बदन में आग लगने लगी थी उसकी दोनों टांगों के बीच की गुलाबी छेद में काम रस इकट्ठा होने लगा था और देखते ही देखते राजू ने उसे अपनी तरफ खींच कर उसे अपनी बाहों में भर लिया और उसके लाल-लाल होठों पर अपने होंठ रख कर उसका चुंबन करने लगा रात के अंधेरे में दूर-दूर तक यहां देखने वाला कोई नहीं था हवेली के दरवाजे पर खड़े दो दरबान भी अंधेरे में यहां तक नहीं देख पा रहे थे,,, राजू सोनी को अपनी आगोश में लेकर ब्लाउज के ऊपर से उसकी चूची को दबाना शुरू कर दिया था पल भर में ही सोनी की बुर से काम रस टपक ना शुरू कर दिया,,,।
ओहहहह राजू बहुत दिन हो गए तुम्हारे बिना मुझे भी चैन नहीं आता,,,
मैं भी तुमसे दूर रहकर बहुत तड़पता हूं सोनी आज मौका मिला है,,,(इतना कहने के साथ ही राजू सोनी के कंधों को पकड़कर दूसरी तरफ घुमा दिया और उसे पेड़ की तरफ झुका नहीं लगा सोनी खेली खाई औरत थी उसे अच्छी तरह से मालूम था कि उसे क्या करना है वो खुद अपने हाथों से पेड़ का सहारा लेकर झुकते हुए एक हादसे अपनी साड़ी को कमर तक उठा दी और अपनी बड़ी बड़ी नंगी गांड को राजू के सामने परोस दी,,,, सोनी की गांड ईतनी गोरी थी कि अंधेरे में भी एकदम चमक रही थी जिसे देखकर राजू के मुंह में पानी आने लगा होगा तुरंत अपने पजामे को नीचे करके अपने टनटनाए हुए लंड को बाहर निकाल लिया और अंधेरे में ही अपनी उंगली से सोनी की बुर को टटोलते हुए अपने लंड के सुपाडे को उस क्षेंद से सटा दिया बुर पूरी तरह से कामराज छोड़ रही थी इसलिए उसके गीले पन का सहारा लेते ही एक ही झटके में राजू ने अपना आधा लंड सोनी की बुर में डाल दिया बहुत दिनों बाद सोनी राजू के लंड को अपनी बुर में ले रही थी इसलिए थोड़ा दर्द महसूस हो रहा था लेकिन आनंद की पराकाष्ठा क्या होती है यह भी उसे महसूस हो रहा था वो एकदम से गदगद हो गई थी राजू तुरंत अंधेरे में सोने की कमर थाम कर एक और झटका मारा और पूरा का पूरा लंड सोनी की बुर में समा गया,,, लाला सोने की रखवाली उसकी खासियत करने के लिए राजू को उसके साथ भेजा था लेकिन ऐसा भला हो सकता है कि दूध मलाई से भरी हुई कटोरी की रखवाली खुद बिल्ली कर रही हो,,,, राजू इस मौके का पूरी तरह से फायदा उठाते हुए सोने की हवेली के ठीक सामने ही अंधेरे का फायदा उठाते हुए उसे चोदना शुरू कर दिया था सोनी के मुंह से गरमा गरम सिसकारी फूट रही थी,,, राजू के लंड को अपनी बुर में महसूस करके वह पूरी तरह से गदगद हुए जा रही थी और राजू उसकी उत्तेजना को और ज्यादा बढ़ाते हुए तुरंत अपना दोनों हाथ आगे ले गया और अंधेरे में ही अंगुलियों से टटोल टटोलकर उसके ब्लाउज का सारा बटन खोल दिया और उसकी नंगी चूचियों को जोर जोर से दबाना शुरू कर दिया,,,
सोनी को इस बात का एहसास अच्छी तरह से ताकि राजू से अच्छा उसे चर्मसुख कोई नहीं प्राप्त कर आ सकता था इसीलिए तो राजू की बाहों में वह पूरी तरह से समर्पित हो जाती थी,,, राजू भी सोनी के समर्पण भाव को देखते हुए पूरा दम लगा देता था उसका रस निचोड़ने में,,, राजू की कमर लगातार आगे पीछे हो रही थी राजू का मोटा तगड़ा लंड बुर की अंदरूनी दीवारों पर रगड़ता हुआ अंदर बाहर हो रहा था जिससे सोनी के तन बदन में आग लग रही थी वह पूरी तरह से मस्त हुए जा रही थी,,,।
बड़े से पेड़ का सहारा लेकर अंधेरे का फायदा उठाते हुए अपनी गांड हवा में लहराते हुए छुपकर खड़ी थी और उसकी गांड को दोनों हाथों से थाने राजू उसकी चुदाई कर रहा था साथ ही उसकी चूची को भी जोर जोर से दबा रहा था इस तरह की चुदाई के लिए वह तड़प उठती थी और राजू से मिलते ही उसकी बुर हमेशा पानी छोड़ने लगती थी,,,, सोनी की बुर का कसाव अपने लंड की गोलाई पर महसूस करके राजू की उत्तेजना और बढ़ती चली जा रही थी देखते ही देखते रह चुके धक्के तेज होते जा रहे थे और साथ ही सोने की सांसे भी बड़ी तेजी से चल रही थी सोने का बदन अकड़ने लगा था वह किसी भी वक्त चरमसुख के करीब पहुंचने वाली थी और इसी को देखते हुए राजू अपने धक्कों की रफ्तार को तेज कर दिया था,,, फच फच की आवाज से पूरा वातावरण गूंज रहा था जांघों से जांघ टकराने की ठप ठप की आवाज दोनों के बदन में और ज्यादा उत्तेजना फैला रहा था देखते ही देखते दोनों एक साथ झड़ना शुरु हो गए,,,,।
थोड़ी ही देर में सोनी अपनी साड़ी को नीचे करके अपने ब्लाउज के बटन बंद करने लगी और राजू कि अपने पजामे को ऊपर करने लगा और बोला,,,
लालाजी मुझसे ज्यादा मजा देते हैं क्या,,,
तुम तो देखे हो राजू तुम्हारे से आधा ही है तो ज्यादा मजा का तो सवाल ही नहीं उठता बस मजबूरी है,,,,
चलो कोई बात नहीं मैं तो हूं ना,,,।
(और इसके बाद राजू फिर से बंदूक को अपने कंधे पर रखकर और लालटेन की लौ बढ़ाकर सोनी को हवेली के दरवाजे तक छोड़ दिया और फिर वहां से अपने घर की ओर चला गया वह घर पर पहुंचकर बंदूक को घर के लकड़ी के बने छत के ऊपर जहां घास फूस रखी जाती है उसी में छुपा दिया वह जानता था कि अगर उसकी मां बंदूक देखेगी तो घबरा जाएगी इसीलिए वह किसी को कुछ बताए बिना वह अपने कमरे में आकर सो गया क्योंकि रात काफी हो चुकी थी,,,)