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तीन सगी बेटियां - Incest Sex Story

तीन सगी बेटियां – Update 42 | Incest Sex Story

जगदीश राय यह सुनकर खुश हो गया। आशा , पहले से विचित्र थी, पर आदर्श वादी थी यह आज उसे पता चला।

जगदीश राय , आशा की हाथ में पूच को देख। पुंछ का अंदर का भाग के 2 इंच का बॉल का आकार का था। उस पर आशा की गांड का भूरा रस और मलाई लगा हुआ था।

आशा ने उसे ज़मीन पर रख दिया।

जगदीश राय ने लंड के चमड़ी को निचे सरकाकर के हाथ से ज़ोर से थामे रखा एंड बेड के किनारे लेट गया। वह जानता था की गांड मारने के लिए लंड कड़क रहना बहुत ज़रूरी है।

आशा, पीछे मुड कर खड़ी हो गयी और अपने पापा की ऑंखों के सामने स्कर्ट को ऊपर खीच लिया। और जगदीश राय के सामने दो गोलदार गांड उभरकर आ गई।

जगदीश राय, बेड के उपर बैठे होने के कारण, आशा का गांड का छेद दिखाई नहीं दे रहा था। वह बेड पर लेट गया और सर को उठाकर देखने लगा।

आशा : रेडी ।।पापा…धीरे से ओके…मेरा भी पहली बार है…और आपका तो बहुत मोटा है…

जगदीश राय ने हामी में सर हिला दिया। दोनों की धड़कन तेज़ी से चल रही थी। और बाहर दाहिकला के लोंगो का शोर।

ओर जगदीश राय के ऑखों के सामने , उसकी बेटी अपने गोलदार सुन्दर गांड के गालो को हाथो से फैलाकार, उसके 3 इंच मोटे और 9 इंच लंबे लंड पर गांड को उतार रही थी।

आशा ने गांड के छेद को पापा के लंड के बहोत पास ले गयी। और एक १ इंच के दूरी पर आकर रुक गयी।

जगदीश राय , तेज़ी से सासे लेते हुयी, आंखे फाड़कर देखता रहा।

आशा: पापा, बोलो घुसा दूँ।

जगदीश राय : हाँ हाँ…रुक क्यों गई…अब संभला नहीं जाता।घुसा दे…अपनी गांड…मेरी प्यारी बच्ची…..

आशा: पर एक शर्त है…

जगदीश राय : सब मंज़ूर है

आशा: एक मूवी, एक अच्छी ड्रेस और…।

जगदीश राय : मंज़ूर,, मंज़ूर…। बेटी…अब सब्र नहीं हो रहा…
आशा:…और…जहाँ मैं चाहु…जब चाहु…मेरी गांड मारनी पड़ेगी…।

जगदीश राय : ज़रूर बेटी…जब कहोगी तब …।

ये सुनते ही, आशा ने अपना गांड पापा के कठोर लंड पर रख दिया। गाण्ड और लंड का स्पर्श इतना सुन्हरा था की जैसे मानो दोनों कई जन्मों से एक दूसरे का इंतज़ार कर रहे हो

और गांड में लंड चीरते हुए चला जा रहा था।

आशा: आह….ओह

जगदीश राय : ओह्ह…।मम…आआह…घुसा दे बेटी…।और घुसा…

आश: नहीं पापा…इससे ज्यादा और नहीं…पुंछ की गहरायी से कही ज्यादा ले चुकी…और आपका तो बहोत मोटा है और निचे…।नही…ऐसे ही करती हु…

जगदीश राय , निशा के चुदाई से समझ गया था की उतावला पन ठीक नहीं है।

जगदीश राय : ठीक है बेटी…तुम्हे जैसा लगे वैसा करो…।

और आशा , फिर धीरे धीरे ऊपर निचे होने लगी…

आशा: कैसा लग रहा है पापा।।

जगदीश राय : बहुत अच्छा मेरी बेटी…करती रहो…अह्ह्ह्ह

आशा: दाहिकाला के मटके से दही निकलने के पहले…आपके मटकी से दही निकालूँगी…

और आशा ने लंड पर कुदती हुई पापा के दोनों टट्टो को ज़ोर से दबा दिया।

जगदीश राय , के मुह से सिसकी निकल गई।

जगदीश राय :ओह …आअह्ह्ह…।

आशा: हे हे

आशा, पापा के दरद, पर हँस पडी। और ज़ोर ज़ोर से लंड पर कुदने लगी। लण्ड अभी तक सिर्फ 6 इंच जा चूका था।

कडे हुए लंड पर हर झटके से आशा की कसी हुई गांड के अंदर लंड और थोड़ा घुसे जा रहा था।

आशा को पहली बार अपना गांड इतना फैला हुआ महसूस हो रहा था। मानो किसीने एक बड़ा सा सरिया घूसा दिया हो।

आशा अपना हाथ पीछे ले जाकर बचे हुए लंड को हाथो से नापने लगी।

जगदीश राय: बस बेटी…और थोड़ा…सिर्फ 3 इंच बची हुई है…

आशा ने ज़ोर देकर लंड पर गांड दबाना चालु रखा।

कसी हुई गांड की जकड , जगदीश राय के लंड पर भी भारी पड़ रहा था। पूरा लंड लाल हो चूका था।

बाहर दही कला का शोर चल रहा था। और आवाज़ो से महसूस हो रहा था जैसे एक और कोशिश हो रही है , हुण्डी को तोड़ने की।

जगदीश राय का उतेजना भी लोगों से कम नहीं था और वह भी स्खलित होने के कगार पर पहुँच चुके थे।

दोनो आशा और जगदीश राय पसीने से लथपथ हो चुके थे। सासे जोरो से चल रही थी।

जगदीश राय: बेटी…और मारो बेटी…ज़ोर ज़ोर से कूदो…।मारवाओ गांड अपनी…।

आशा: आहहाआअह…आह्ह्ह्हह्ह्

जगदीश राय के लंड के ऊपर आशा तेजी से कूद रही थी।उसकी गाण्ड में 9 इंच लंड पूरा घुस चूका था।जगदीश राय को बहुत मज़ा आ रहा था।वह भी निचे से अपनी बेटी के गांड में धक्का देने लगा।

अचानक आशा ने महसूस किया उसके पापा का लंड गांड के अंदर फूल रहा है।

जगदीश राय ने तुरंत आशा को कमर से पकड़ लिया और तेज़ी से अपना लंड उसके गांड में मारने लगा।

हर झटके के साथ्, बाहर से लोगों का प्रोत्साहित करने वाली पुकार सुनायी दे रही थी।

लोगों बहार से: हाँ …और ऊपर…अंदर से…।घूस जा।।।

तभी लैंड गांड के छोटे छेद को चीरते हुए एक ही झटके में पूरा अंदर तक घूस गया।

आशा: पापा…।आहः

आशा ज़ोर से चीख पड़ी ।

उसी वक़्त बाहर से “गोविन्दा गोविन्दा हुर्रियिय” का पुकार सुनाई दिया और मटकी फोड़ने की आवाज़ सुनाई दी।

गुब्बारे फूटने लगे। पटाके उडने लगे।

ओर तभी, अंदर, लंड का टोपा पूरा फूल गया और आशा को अपने गांड के अंदर एक सैलाब महसूस हुआ।

जगदीश राइ: ओह।।।।।।।

लण्ड ज़ोर ज़ोर से तेज़ी से झड रहा था। और ढेर सारा गरम वीर्य उगलने लगा।

जगदीश राय कम से कम 4 दिन बाद झड रहा था। उसका पूरा शरीर कांप रहा था।

आशा की गांड के अंदर 9 इंच लम्बा और 3 इंच मोटा लंड लिए ऐसे ही बैठी रही और लंड से निकलने वाले वीर्य के हर धार के प्रभाव , आंखें मूंद कर महसूस कर रही थी।

कम से काम 5 मिनट बाद, बाहर और अंदर सन्नटा छा गया।

आशा धीरे धीरे अपने पापा के लंड से उठने लगी।

आशा: हम…आहः

और गांड की चमड़ी पूरी बाहर के तरफ खीच गयी। जब लंड पूरा बाहर निकल गया तभी , गांड के अंदर से ढेर सारा वीर्य लंड के ऊपर उगलकर गिर पडा।

आशा लंड और वीर्य को देख कर मुस्कुरायी।

जगदीश राय: बेटी…बहुत अच्छा लगा…तुमने तो अपना वादा निभाया।।पर दही कला शायद ख़तम हो गयी…तुमने मटकी फोड़नी मिस कर दी

आशा: न न पापा मैंने तो असली मटकी फोड़ी है…और ढेर सारा मलाई भी निकाली है…बाहर के लोग यह नज़ारा मिस कर गये।।हे हे।

जगदीश राय , अपने कमरे को ठीक करने में लगा था।

उसकी उत्साह कोई छोटे बच्चे से कम नहीं था।

आज रात आशा ने कहा था की वह आएगी।

दही कला के दिन गांड मरवाने के बाद, हर रात 11-12 बजे रात को आशा छुपके से , अपने पापा के कमरे में घूस जाती।

और कम से कम 1 घन्टे तक , उछल उछल कर गांड मरवाती।

जगदीश राय , जो पहले कभी गांड नहीं मारा था, आज कल खुद को किसी एक्सपर्ट से कम नहीं समझ रहा था।

जगदीश राय को कभी कभार आशा की बेशरमी और पागलपन पर चीढ़ भी आ जाता।

कभी कभार वह अपने पापा के लंड को काट देती और पापा के दर्द पर मुस्कराती।

कभी कभार जान बुझकर गांड में कोई तेल या क्रीम न लगाकर, लंड पर ज़ोर से बैठ जाती।
और लंड के दर्द से हंस पडती, भले ही उसे भी दर्द हो रहा हो।

और पिछले 2 रातो से, जान बुझकर वादा करके , मुकर जाती।

जगदीश राय , मन ही मन, उम्मीद कर रहा था की कल रात की हालत उसकी न हो, जब आशा कमरे में आकर, गांड न देते हुए, उसके लंड को हिलाने लगी, और ओर्गास्म के चरम सीमा पर आकर, “मुझे नींद आ रही है” कहकर चल दी।

आशा , न लंड ज्यादा देर मुँह में लेती । न ही चूत में ऊँगली डालने देती। सिर्फ गांड मरवाती।

जगदीश राय , उससे निशा से तुलना कर रहा था। एक जगह पर निशा थी जो अपने पापा के ख़ुशी के लिए कुछ भी कर जाती और दूसरे ओर यह पगली आशा जो उसे अपनी उँगलियों पे नचा रही थी।

हालाँकी जगदीश राय, बहुत बार ठान लिया था की आशा को भाव न देकर रास्ते पर लाये, पर हर वक़्त आशा की गांड और उसमें से निकल रही सुन्दर पूँछ के सामने , उसका लंड जबाब दे देता।

निशा 2 दिन में वापस आने वाली थी, और जगदीश राय सोच पड़ा की वह आशा से कैसे सम्बन्ध रख पायेगा।

तभी आशा कमरे में घूस गयी। वह सिर्फ एक शर्ट पहनी थी।, जिसमें बहुत मादक लग रही थी।

जगदीश राय (बड़े मुश्किल से झूठा ग़ुस्सा दिखाते हुए): बहुत देर लगा दी…पर आयी तो सही महारानी…

आशा: हाँ…सशा सो ही नहीं रही थी…।अभी भी उससे यह बोल के आयी हु…की बाथरूम जा रही हु…

जगदीश राय : ओह…तो अब…मैं आज रोक नहीं सकता…कल तुमने अच्छा नहीं किया आशा…

जगदीश राय किसी बच्चे की तरह उससे शिकायत कर रहा था.

और कहीं उसके अवचेतन मन में उससे अपने खुद के बरताव पर भी काफी शर्म आ रहा था।

आशा: वह सब छोड़ो…आज सिर्फ 4-5 मिनट है आपके पास…नहीं तो मैं चली…

जगदीश राय: अरे नहीं…पहले कपडे तो निकालो।

आशा (बात काटते हुयी, सीधे भाव से): वह सब पॉसिबल नहीं है…यह लो…घुसा लो…

आशा तुरंत अपना गांड पापा की तरफ कर दिया, और दिवार से टेककर खड़ी हो गयी। उसने अपना दोनों हाथ से शर्ट को उतना ही ऊपर किया जितना उसकी गांड दिखाई दे सके।

जगदीश राय : ऐसे खड़े खड़े…पर इसमे तो पूँछ लगी है…बेटा।

आशा: अरे तो निकाल लेना खीचकर गांड से पापा…क्रीम लगा कर सॉफ्ट करके आयी हुँ…

जगदीश राय , उतावले कापते हाथो से पूछ की मुलायम रेश्मी बालो को पकड़ कर गांड से खीच लेता है।

खिचते वक़्त उससे पता चलता है की आशा की गांड कितनी टाइट है। इतनी गांड मारने के बाद भी आशा की गांड बहुत टाइट थी।

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