You dont have javascript enabled! Please enable it! तीन सगी बेटियां – Update 40 | Incest Sex Story - KamKatha
तीन सगी बेटियां - Incest Sex Story

तीन सगी बेटियां – Update 40 | Incest Sex Story

जगदीश राय: तुम्हारी उस ब्यॉफ्रेंड लड़के को भी पता है…उससे कोई प्रॉब्लम नहीं है इसमें…

आशा (हँस्ती हुए): प्रॉब्लम…हा ह।।वह तो मरा पडा रहता है।।टेल को देखने के लिए…एक बार अपनी गांड दिखा दूँ तो पागल हो जाता है। कभी कभी उससे खेलने देति हूँ उसे।

आशा की यह बेशरमी बात सुनकर अब जगदीश राय कुछ गरम होने लगा था और लंड पर प्रभाव पड रहा था।

आशा , अपने पापा को बोतल में उतार चुकी थी।

जगदीश राय (गरम होकर): ठीक है…वैसे मुझे यह सब पसंद नही।।बंद कर दो यह सब…अच्छा नहीं है यह…

आशा: क्या अच्छा नहीं है…आपने कहाँ देखा मेरे टेल को…देखेंगे?

जगदीश राय: अब…।नही…।हा…ठीक है…।दिखाओ…अगर।।तुम…

इसके पहले जगदीश राय अपनी बात ख़तम करता आशा पापा के सामने खड़ी हो गयी। और पीछे मुडी

और अपने गाण्ड पर से शॉर्ट्स निचे सरका दिया।

ईद के चाँद की तरह, अपने पापा के सामने आशा की गोलदार गांड खिलकर आ गई।

आशा: यह देखिये…

गांड के बिचो बीच, गालो को चिरते हुई, ख़रगोश के पूँछ के जैसे एक पूँछ , निकल कर बाहर आ रहा था।

इतनी चिपककर घूसा हुआ था की गांड का छेद दिखाई नहीं दे रहा था।

जगदीश राय का लंड पुरे कगार में खड़ा हुआ था।

आशा , बड़ी ही नज़ाकत से चेहरा घूमाकर, अपने पापा के ऑंखों में देखी। उसे पापा के पेंट में से खड़ा लंड साफ़ दिखाई दे रहा था।

निशा को चोदते हुए पापा का लंड वो कई बार देख चुकी थी। और वह उसका आकर जानती थी।

आशा: कैसी है …पापा…कुछ बोलो तो…बस यूही ताक़ते रहोगे।।?

जगदीश राय , अपने गले से थूक निगलती हुयी।

जगदीश राय: अच्छी है…।ठीक है…

आशा: आप चाहे हो पूँछ को छु सकते हो।

काँपते हाथो से जगदीश राय, आशा के गांड के तरफ ले गया।

जगदीश राय (मन में): नहीं जगदीश…क्या।।कर रहा है तू…नहीं…रुक ज।।आशा नासमझ है…

पर लंड के सामने न दिल न दिमाग की बात न सुनी।

आशा को तुरंत अपने गाण्ड पर प्रभाव महसूस हुआ। और वह समझ गई की पापा अपने हाथो से उसके पूँछ को सहला रहे है।

जगदीश राय , को आश्चर्य हुआ की , पूँछ कितनी टाइट गांड में फँसी है। क्युकी बिच में, उसने पूँछ को धीरे से खीचा पर , पूँछ अपनी जगह से हिली भी नही।

आशा: बाहर नहीं निकलेगी।।ऐसे…अंदर 2 इंच का मोटा गोलदार भाग उसे अंदर ही रखता है।

आशा की गांड इतनी मादक और कोमल लग रही थी, की जगदीश राय से रहा नहीं जा रहा था। और उस मादक गांड से निकलती हुई पूँछ , उसे और मादक बना रही थी।

जगदीश राय ने तुरंत अपना हाथ पूँछ से निकालकर गांड पर रख दिया , और गाण्ड को दबा दिया।

आशा ने तुरंत , अपनी शॉर्ट्स ऊपर कर ली।

आशा (लंड की तरफ इशारा करते हुए): पापा…अब आप नॉटी बॉय बन रहे है…निशा दीदी की बहुत याद आ रही है क्या…हे हे।

जगदीश राय अपने इस करतूत से थोड़ा शर्माया ।

जगदीश राय: सोर्री।।।वह बस…नहीं…ठीक है तूम पढाई करो…मैं…

आशा: अरे सॉरी क्यों…मैं जानती हूँ।।ऐसे टेल से सजा हुआ गांड तो किसी को भी पागल कर सकता है।

जगदीश राय, अपने लंड को हाथो से सम्भालते हुये, मुस्कुराते हुये, रूम से निकल जाता है।

कमरे से निकल कर , अपने रूम में घूसने से पहले ही जगदीश राय अपना लंड हाथ में लिए हिलाना शुरू कर दिया।

दिमाग पर आशा की गांड और उसमे घूसि हुई पूँछ
और निशा की यादें, लंड को झडने से रोकने वाले नहीं थे।

निशा की चूत और आशा की गांड दोनों सोच सोचकर, जगदीश राय ने ऐसा जोरदार मुठ निकाला की झरते वक़्त वह चीख़ पडा।

कुछ 2 घन्टे बाद जब जगदीश राय निचे हॉल में आया, आशा वही किचन में चाय बना रही थी।

उसने अपने कपडे चेंज कर लिए थे। एक टाइटस और सलवार पहनी थी।

जगदीश राय की नज़र उसकी गांड पर गयी, और आंखें ख़रगोश वाली पूँछ को ढून्ढने लगी।

आशा: क्या देख रहो हो पापा।।

जगदीश राय: नही।।कही।।बाहर जा रही हो।।

आशा: हाँ यही बुकशॉप तक…कुछ बुक्स लेने हैं…पैसे चाहिये होंगे…यह लिजीये चाय…

जगदीश राय और आशा दोनों एक दूसरे के सामने बैठकर चाय पीने लगे।

कमरे में एक अजीब सा सन्नाटा छा गया था।

जगदीश राय , दोपहर की घटनाओ के बारे में सोच रहा था। और खास कर आशा की पूँछ और गांड के बारे में।

आशा के चेहरे पर कोई भाव नज़र नहीं आ रहा था। वह बस एक ही भाव से अपने पापा को देखे जा रही थी।

आशा की यह दिल चीरने वाली नज़र से जगदीश राय सोफे में करवटें लेने लगा।

जगदीश राय( मन में): क्या वह अभी भी गांड में घुसायी रखी होगी…नही।।देखो कितनी आराम से बैठी है…आराम से कोई ऐसे बैठ सकता है…गांड में लिये।

पर वह आशा से पुछने की हिम्मत नहीं जूटा पा रहा था।

 

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