ये कहकर आशा ने अपने ऊपर से चद्दर हटा दिया। जगदीश राय देखता ही रह गया।
आशा ने ऊपर सिर्फ एक स्लीवलेस बनियान स्टाइल टॉप पहनी थी। उसमे से उसकी ब्रा की स्ट्राप दिख रहा थी, जो लाइट ब्लू कलर का था। टॉप सिर्फ नाभि के होल के ऊपर तक था। टॉप काफी टाइट था, उसमे से उसके चूचे उभर कर निकल रहे थे। जगदीश राय ने देखा चुच्ची बहुत बड़ी भी नहीं है, पर शेप में थी। चूचो का शेप देखकर कोई भी कह सकता था की बहुत मज़ेदार शेप है उनकी।
नाभी के छेद से लेकर कमर तक का पूरा बदन खुला था। आशा थोड़ी सांवली थी। जगदीश राय ने ये जाना की भले ही आशा बहुत गोरी नहीं थी पर उसका फिगर क़ातिलाना था।
कमर के निचे उसने एक लाल रंग की पेंटी पहनी थी। जगदीश राय ने ऐसी पेंटी पहले नहीं देखि थी। उसने देखा सिर्फ बीच के भाग पर कपडा लगा हुआ है, साइड पे सिर्फ रस्सी के शेप की डोर लगी है।
आशा खड़ी हो गयी और अपना हाथ ऊपर उठा कर बाल को बाँधने लगी। आशा को कोई शर्म नहीं आ रही थी अपने पापा के सामने ऐसा रहने से। जगदीश राय, एक छोटे बच्चे की तरह उसे देखे जा रहा था। उसका मुह सुख चूका था।
आशा: मेरी शॉर्ट्स कहाँ है। यहाँ पड़ी हुई थी। शायद निशा दीदी ने कप्बोर्ड में रखी होगी।
और ये कहकर आशा पलटी। जगदीश का मुह खुला रह गया। आशा की गांड पूरी नंगी थी। पेंटी की डोर गांड की दरार से चिरकर निकल रही थी, गाण्ड पर कोई कपडा नहीं था। और जहाँ वह डोर जाके मिल रहा था, वहां एक हार्ट शेप का प्लास्टिक लगा हुआ था, और उसमे लिखा था “लव यु”
जगदीश राय ने अपने आप को सम्भाला। वह जल्दी से मुड गया और जोर से कहा।
पापा: ठीक है। जल्दी से निचे आओ और उस सशा को भी उठा देना।
आशा: जो आज्ञा जहाँपनाह।
और फिर जगदीश राय बाहर आ गया। बाहर आते ही उसने चैन की सास ली। दिल ज़ोर से धड़क रहा था। वह कंफ्यूज सा हो गया की क्यों वह इतना बेचैन हुआ है। ऐसा तो नहीं की उसने आशा को पहले कभी नहीं देखा कम कपडो में, पर तब वह छोटी थी। तो अब कौन सी बहुत बड़ी है। उसे लगा की शायद उसे उनके रूम में नहीं आना चाहीए था। लड़किया अब बड़ी नहीं पर छोटी भी नहीं है। ये सब सोचकर वह सीडियों से निचे उतर रहा था, तब बेल बजा। उसने जा के दरवाज़ा खोला।
निशा: अरे पापा आप कब आए। मैं अभी चाय बनाती हूँ।
पापा: नहीं बेटी, मैं ऑफिस से पीके आया हूँ। बस अब नहाने जा रहा हूँ।।
निशा फ्रेश होकर अपने कमरे में गयी। ऊपर के तीन कमरो में, उसका एक छोटा सा कमरा था, जो वह किसी के साथ शेयर नहीं करती थी। पापा का कमरा बीच में था।
उसने अलमारी से एक वाइट टैंक-टॉप टीशर्ट पहन लिया और स्कर्ट उठा लिया। टैंक टोप पुरानी थी इसलिए छोटी थी। स्कर्ट कोई घुटनो तक का था। वह शॉर्ट्स पहनना चाहती थी पर पापा के होते हुये वह शॉर्ट्स में कम्फर्टेबले फील नहीं करती थी। मुह हाथ धोकर वह नीचे आ गई तो देखा पापा सर पर तेल मल रहे है।
जगदीश राय एक वाइट टीशर्ट और ढिला पायजामा शॉर्ट्स पहना हुआ था। निशा की माँ थी तो वो पापा के सर और शरीर पर तेल लगा दिया करती थी, और अब पापा बेचारे खुद ही कर रहे है। निशा ने ठान लिया था की पापा को माँ की कमी कभी महसूस नहीं होने दूंग़ी।