जगदीश राय के समझ में नहीं आ रहा था, क्या बोले। लड़किया बड़ी भी हो गयी थी और ओपन भी। इन्हे एक औरत ही संभाल सकती थी। हलाकी निशा उनमें से बड़ी थी , पर सिर्फ 3 साल। उसके रिश्तेदारों ने कहा की , दूसरी शादी की सोच ले। पर वह इस उम्र में दूसरी बीवी नहीं लाना चाहता था।
पापा: (बौखला के)। हाँ हाँ क्यों नही।
दोनो वहां से चली गयी। जगदीश राय ने देखा की अनजाने में उसमे एक अजीब सी लहर आ गयी थी। और ये देखकर चौक गया की उसका लंड खड़ा था। उसने जल्द से अपने पायजामा के ऊपर से लंड को ठीक कर दिया। उसे समझ में नहीं आया की ऐसा क्यों हुआ।
पापा को लंड के ऊपर से हाथ फेरकर ठीक करते हुये निशा ने देख लिया। उसने तुरंत अपना मुह दूसरी ओर घुमा दिया और किचन में चली गयी।
लंच तैयार करके निशा कॉलेज को रवाना हो गई। शाम के 5 बजे जगदीश राय घर आया तो देखा की खाने के सभी प्लेट्स हॉल में फैला हुआ है। वह जानता था की यह हरकत आशा और सशा की है। उसने चील्लाकर उन्हें बुलाया पर कोई जवाब नहीं आया। फिर वह ऊपर उनके रूम में, देखने चला गया की यह दोनों कर क्या रहे है।
रूम का दरवाज़ा थोड़ा सा खुला हुआ था। उसने धीरे से उसे खोला तो देखा की दोनों सो रही है। दोनों के गर्दन तक चद्दर चढा हुआ था सर हाथ भी अंदर थे।सशा हर वक्त की तरह अँगूठा मुह में ले कर सोयी थी।
जगदीश राय ने सोचा की उनको जगा देंना चाहिये और अंदर आ गया। पहले आशा के पास गया।
पापा: आशा उठ जा। होमवर्क नहीं करनी है। चल सशा बेटी तू भी उठ ज। मुह हाथ धो लो।
पापा की आवाज़ सुनकर सशा थोड़ी सी हिली और फिर करवट बदलकर चद्दर से लिपटकर सो गयी। अंगूठा नींद में चूसने लगी।
आशा: क्या पापा, सोने दो न।
जगदीश राय जानता था की तीनो बेटियां में सबसे झगड़ालू और बदतमीज़ आशा है।
पापा: उठती हो या पानी मारु।
आशा: ठीक है बाबा। उठती हूँ।
यह कहकर उसने अपना पैर चद्दर से बाहर निकाल लिया। पैर देखकर जगदिश राय चौक गया। पैर कमर से लेकर पूरा नंगा था।
पापा: यह क्या। तुम्हारा पायजामा कहाँ है।
आशा: अरे हा, उसमे दाल गिर गया तो मैंने उसे धोने को डाल दिया।
पापा: तो क्या कुछ भी नहीं पहनी।
आशा: पहनी हु न। पेंटी पहनी हूँ।