You dont have javascript enabled! Please enable it! तीन सगी बेटियां – Update 18 | Incest Sex Story - KamKatha
तीन सगी बेटियां - Incest Sex Story

तीन सगी बेटियां – Update 18 | Incest Sex Story

फिर निशा और जगदीश राय धीरे धीरे बस से उतरने लगे।

कडक्टर: अरे क्या अंकल।। कब से चिल्ला रहा हूँ यूनिवर्सिटी यूनिवर्सिटी…

जगदीश राय और निशा बस से उतर कर एक दूसरे को 5 सेकण्ड तक घूरते रहे। उन 5 सेकड़ो में वह एक दूसरे के विचार, खुशी, निराशा, शर्म सभी जानने का प्रयास कर रहे थे।

निशा की गाल, गोरी होने के कारण, गरम होने से , लाल हो गयी थी।

निशा (सर झुका कर शरमाती हुए): मैं रेस्टरूम जाना चाहती हूँ पहले।

जगदीश राय: हाँ हाँ… हम्म…यही होगा…।।बल्की मुझे भी जाना है।

निशा अपने पापा के इस बात पर हँस दी और पापा की तरफ देखा। जगदीश राय ने भी मुस्कुरा दिया।

रेस्टरूम के अंदर जाने से पहले, जगदीश राय ने निशा से कहा।

जगदीश राय: बाहर आकर यही वेट करना, कहीं जाना मत।

निशा: जी अच्छा बाहर आकर यहि वेट करूंग़ी। आप भी यही रहिये…।मुझे थोड़ा वक़्त लग सकता है।

और निशा शरारत भरी मुस्कान के साथ अंदर चलि जाती है।

जगदीश राय बिना रुके मेंस रेस्टरूम में घूस गया। आज उसे भी वक़्त लगने वाला था…।

रेस्टरूम से निशा बाहर आ गयी। उसके चेहरे पर एक सुकून था। टॉयलेट गन्दा होने के बावजूद उसने अपना पैर उठाकर , ऊँगली करके अपना सारी गर्मी निकाल दी थी।
वह बाहर आकर अपने पापा का इंतज़ार कर रही थी।
जगदीश राय कुछ देर बाद मेंस रेस्टरूम से बाहर आ गए।

निशा (शरारती अन्दाज़ में): क्यों पापा इतनी देर लगा दी?

जगदीश राय शर्माके मुस्कुरा दिया। निशा भी मुस्कुरायी।

तभी निशा की एक सहेली केतकी का आवाज़ सुनाई दिया।

केतकी: निशा तू यहाँ। फीस भरने आयी है?

निशा: हा।

केतकी: तो चल, हम सब साथ है। यहाँ से बाद में कॉलेज चलेंगे।

निशा: ओके ठीक है। पापा , मैं अपनी सहेली के साथ जा रही हूँ। आप यहाँ से ऑफिस जा सकेंगे ?

जगदीश राय: हाँ बेटी कोई बात नही। तुम लोग चलो। मैं यहाँ से घर जाऊंगा और फिर ऑफ्फिस।

निशा अपने सहेलीयों के साथ बातें कर चल दी।

जगदीश राय घर की बस की राह देखने लगा।

निशा,ने अपनी एग्जाम की फीस भरके, घर जाने का फैसला किया। अब इतनी देर लगने के बाद उसे कॉलेज जाने का मन नहीं था।

उसे अपने पापा को बीच रास्ते दग़ा देना अच्छा नहीं लग रहा था, पर वह करती भी क्या, सहेलीयों से क्या कहती?

निशा , जब घर पहुंची तो चौक गयी।पापा, सोफे पर पड़े थे। उन्होंने एक लुंगी पहनी थी, जो घुटनो तक चढा हुआ था। पापा ने शर्ट नहीं पहना था।

निशा: अरे पापा, आप यहा, ऑफिस नहीं गये।

जगदीश राय: अरे बेटी, तुम? अरे हाँ… वह एक एक्सीडेंट हो गया…। मैं बस से गिर पड़ा…।

निशा: क्या…ओ गॉड…। यह आपके घुटने पर चोट लगी है…।मुझे फ़ोन क्यों नहीं किया…?

जगदीश राय: अरे कुछ नहीं हुआ… थोड़ी सी चोट लगी है…पास के गुप्ता जी मुझे क्लिनिक ले गये। अब मैं ठीक हु…।

निशा: क्या पापा आप भी।

फिर निशा जगदीश राय के पास आयी और उन्हें पकड़कर सोफ़े पर ठीक से बिठाया। घुटने पर बहुत चोट लगी थी।

निशा: क्या कहाँ डॉक्टर ने।

जगदीश राय: बस यही की एक वीक तक ऑफिस नहीं जाना। और सहारे के साथ चलना। एक छड़ी भी दी है। और यह ओइंमेंट दिया है। और एन्टिबायटिक। और कहाँ की हाथ और पैर की गरम तेल से मालिश करना। ज्यादातर लेटे रहने को कहा है।

निशा: ठीक। यह अच्छा हुआ। अब आप ज्यादा काम तो नहीं करेंगे।

जगदीश राय: अरे कुछ नही, मैं 2 दिन में ठीक हो जाऊँगा। डॉक्टर सब ऐसे ही बोलते है…

निशा: चुपचाप लेटे रहिये। अब आप अगले मंडे ही ऑफिस जाएंगे।

उस दिन जगदीश राय का देखभाल निशा ने किया, शाम को आशा सशा ने भी उसका थोड़ा हेल्प किया।

कल दिन जगदीश राय के घुटनो का दर्द काफी कम हो गया था।

जगदीश राय: अरे बेटी, तू एक काम कर, खाना टेबल पर रख दे। मैं खा लूंगा। किचन तक मुझसे चला नहीं जाएगा।

निशा: खाना किचन में ही रहेगा। और मैं आपको खिलाऊँगी।

जगदीश राय: अरे तुझे तो कॉलेज जाना है न?

निशा: नही। आप जब तक ठीक नहीं हो जाते मैं कॉलेज नहीं जाने वाली। न आप मेरे साथ यूनिवर्सिटी आते न आप बस से गिरते…।

जगदीश राय: अरे…बेटी…छोड़ यह सब।। कॉलेज जा तू…।

निशा: पापा…। चुपचाप सोईये…कहाँ न मैंने…।

और निशा ने अपने पापा को जोर से पकड़ लिया और सोफे पर ढकेल दिया। निशा की बूब्स पापा के पेट से दब गयी। जगदीश राय को बेहत आनन्द मिला निशा को भी।

थोड़ी देर में आशा और सशा दोनों स्कूल चले गए…

दोपहर हो चली थी। जगदीश राय अब काफी आराम महसूस कर रहा था।

निशा: उफ़…।कितनी गर्मी हो गयी है। मार्च का महीना शुरू हुआ नहीं… की गर्मी इतनी…देखो मेरा पूरा टीशर्ट भीग गया …

जगदीश राय निशा की टी शर्ट देखता रह गया। वाइट टाइट टीशर्ट शरीर से चिपका हुआ था। निशा की ब्लैक ब्रा टीशर्ट से साफ़ दिख रही थी। और ब्लैक ब्रा में कैद निशा के बड़े बड़े चूचो का आकर निखर रहा था।

जगदीश राय: हाँ…।बेटी…। बहुत गर्मी तो है…।

निशा: मैं चेंज करके आती हूँ।

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