जय कविता के कमरे में घुस गया। वहाँ उसने कविता की अलमारी खोली। वो कविता की कच्छीयाँ ढूँढने लगा। उसे वहाँ कविता की 3 4 कच्छीयाँ मिली। तभी उसको ध्यान आया की आज उसकी माँ ममता भी नही है। कविता की कच्छीयाँ लेकर वो ममता के कमरे में गया वहाँ उसको अपनी माँ की ब्रा और पैंटी मिल गयी। उन दोनों की ब्रा और पैंटी लेकर वो हॉल में आ गया, और खुद पूरा नंगा हो गया। उसके बाद उसने वहीँ इन्सेस्ट ब्लू फिल्म लगाई। और अपनी माँ बहन की ब्रा पैंटी के साथ खेलने लगा। वो सोच रहा था कि मैं कहाँ इन ब्लू फिल्मों में सुकून ढूंढता रहता था, जो मज़ा मेरी घर की औरतों की अंडरगारमेंट्स में हैं वो कहीं और कहां मिलेगी। मेरी माँ ममता क्या माल है, और मेरी बहन वो तो माँ की परछाई है। कल रात मुझे अपने जन्मदिन का बेहतरीन गिफ्ट मिला, अपनी सगी बड़ी बहन को चोदना सबको नसीब नहीं होता। अगर खुद की माँ और बहन के बारे में सोचके मेरा इतना बुरा हाल हो जाता है, तो बाहर के मर्द तो उनके बारे में क्या क्या घिनौनी बातें सोचते होंगे।
तभी उसका मोबाइल बजने लगा। उसने इग्नोर कर दिया क्योंकि कोई अनजान नंबर था। वो फिर ममता और कविता के खयालों में खोने लगा, की मोबाइल फिर से बजने लगा।
उसने मोबाइल उठाया- हेलो?
दूसरी तरफ से- जय बोल रहे हो?
जय- हाँ जी, आप कौन?
मैं आरिफ एसोसिएट्स से बोल रहा हूँ, तुम्हारी बहन यहाँ बेहोश हो गयी है, मैन डॉक्टर को दिखा दिया है, घबराने की कोई बात नहीं है, इसे यहां से ले जाओ।
जय- जी मैं अभी आया, तुरंत।
जय ने फुर्ती से उठकर कपड़े पहने और भागता हुआ बाहर पहुंचा। वहां उसने ऑटो ली और करीब 15 मिनट में वो वहां पहुंच गया।
जय- क्या हुआ दीदी को?
आरिफ़- अरे कुछ नहीं ज़रा सा चक्कर आया है, डॉक्टर ने बताया कि स्ट्रेस की वजह से ऐसा हुआ है। बैठ जाओ। मैंने इसे एक हफ़्ते की छुट्टी दे दी है। कविता को आराम की ज़रूरत है।
जय- कोई डरने वाली बात नहीं है ना?
आरिफ- अरे नहीं यार, रिलैक्स डॉक्टर ने कहा है कि कुछ भी घबराने की ज़रूरत नहीं है, बस थोड़ा आराम चाहिए, वैसे तो मैं किसीको इतनी छुट्टी नहीं देता, बट कविता ने कभी भी इन 8 सालों में इतनी लंबी छुट्टी नहीं ली है। इसलिए छुट्टी पर भेज रहा हूँ। ये लो प्रेस्क्रिप्शन, और दवाइयां। मैंने एक हफ्ते की ले दी हैं।
जय- थैंक यू सर।
आरिफ- ठीक है, इसे ले जाओ।
जय अंदर गया जहाँ कविता लेटी हुई थी। जय ने कविता को गोद मे उठाया और और बाहर आके ऑटो में बिठाया, कविता का पर्स और छाता वो फिर ले आया। और ऑटो में बैठ गया। कविता होश में थी, पर थोड़ी कमज़ोरी थी।
जय ने ऑटोवाले को कहा भैया आराम से ले चलो।
थोड़ी देर में वो अपने घर पहुंच गए। कविता अब तक संभल चुकी थी, और ऑटो से उतर के घर की ओर जाने लगी। जय ने ऑटोवाले को पैसे दिए। जैसे ही वो मुड़ा की कविता लड़खड़ा रही थी, हल्की कमज़ोरी से। उसने कविता की बांह को अपने गर्दन में डाला और उसे गेट तक ले गया। दरवाज़ा खोलके, उसको उसके कमरे तक वैसे ही ले गया। कविता लेट गयी।
जय ने उसे वैसे ही छोड़ दिया और वहीं बैठ गया।
शाम को करीब पांच बजे कविता की नींद खुली, अब वो पूरी तरह ठीक हो चुकी थी। उसे सारी घटना विधिवत याद थी। उसने देखा जय वहीं पलंग से लगके बैठकर सो रहा था। उसने उसको देखा तो उसे उठाया,
कविता- जय….जय… उठो।
जय- अऊ.. आय दीदी तुम ठीक हो? कब उठी ?
कविता- अभी अभी। कविता ने उसे बिस्तर पर बैठने का इशारा किया।
जय- दीदी आखिर, कैसे हुआ ये?
कविता नज़रें झुकाये हुए-हम कल रात की बातें सोच रहे थे, और पता नही कब हम बेहोश हो गए।
जय कविता के करीब आया, और बोला- दीदी तुम भी ना, कुछ गलत नहीं हुआ है। हम दोनों ही वयस्क हैं, और ये हो जाता है। क्या हम नहीं समझते हैं कि तुमको सेक्स की ज़रूरत है। 26 साल की लड़की अगर सेक्स नहीं चाहेगी तो क्या बुढ़िया होकर सोचेगी। ये तो ज़रूरत है शरीर की, किसी और के साथ करोगी बाहर में तो, ख़तरा होगा। हमलोग अगर घर में ही एक दूसरे को खुश रखें, तो इसमें बुराई क्या है। तुम भी ब्लू फिल्में देखती हो और हम भी एक दूसरे से छुपाकर। पर जानते हैं कि दूसरा देख रहा है। हमारी तरफ देखो ना। कविता उसकी आँखों मे भोले बच्चे की तरह देखने लगी।
कविता- पर हम भाई बहन होकर चुदाई कैसे कर सकते हैं, जय? क्या हमने अपने रिश्ते को कलंकित नहीं किया है??
जय- तुमको क्या लगता है खाली हमने तुमने ऐसा किया है, अरे आदिकाल से ऐसा हो रहा है समाज में। रति ने अपने बेटे के साथ, यमी बहन होकर अपने भाई के साथ संभोग करना चाहती थी। अर्जुन से स्वर्ग की अप्सरा जो कि उसकी माँ थी वो भी उससे संभोग करना चाहती थी। तुम मुस्लिमों में ले लो चाचा, फूफा की बेटी के साथ शादी हो जाती है। ये रिश्ते नाते सब अपनी जगह हैं, अगर तुम बाहर जाके ये सब करोगी तो दुनिया तुमको बदचलन, रंडी, और ना जाने क्या क्या बोलेगी। जो हम या माँ तो बिल्कुल नही चाहेंगे। अरे, तुम्हारे साथ कुछ गलत नही होने देंगे हम। राखी का वचन है। जहाँ तक रही हमारी बात तो , हम अब तुमको एक बात कह देना चाहते हैं, आई लव यू, कविता। भले ही तुम हमारी दीदी हो, पर अब सच्चाई यही है। और हम तुमको आज से नहीं बहुत पहले से प्रेमी की तरह चाहते हैं। बस कह नहीं पाते थे, की तुम क्या सोचोगी? पर आज साला निकल ही गया। अगर हमारा बस चले तो तुमसे ही शादी करेंगे।
जय उठके जाने लगा। तभी कविता ने उसका हाथ पकड़ लिया। कविता बिस्तर से उठी और जय की आंखों में देखा,” इतना प्यार करते हो हमसे। हम कभी सोचे नहीं थे कि कोई हमको इतना चाहेगा। पता है आज दिन भर हम क्या सोच रहे थे। कि हम कितनी घटिया लड़की हैं जो अपने ही भाई के साथ, अपने बिस्तर पर चुदाई की। हमको तुमसे ज़्यादा खुदसे घिन्न हो रही थी। हमको तो आज मन कर रहा था कि सुसाइड कर लें। छोटे हो हमसे तुम पर बड़ी बात सिखा दिया तुमने। आखिर प्यार कोई रिश्ते देखकर थोड़े ही होता है। हम भाई बहन हैं भी तो इस समाज के लिए, पर समाज से पहले हम दोनों को प्रकृति ने औरत और मर्द बनाया है, और ये रिश्ता समाज के रिश्ते से कहीं ऊपर है। मैं इन रिश्तों के बंधनो को तोड़कर आज तुमसे प्रेमिका का रिश्ता जोड़ती हूँ। अब चाहे जो हो, ये कविता आज से तुम्हारी है। इसके बाद तुमसे समाज का बंधन ज़रूर जोरूँगी, पति- पत्नी का।
जय- कविता दीदी, आई लव यू।
कविता- सिर्फ कविता कहो। आई लव यू टू जय। तुम हमको अकेले मत छोड़ना, हमारा साथ निभाना।
जय ने कविता को अपनी बाहों में भर लिया और उसको किस करने लगा। अबकी बार कविता उसे एक अलग ही तरह से चूम रही थी।
कविता अपने छोटे भाई के सीने पर अपनी चुचियाँ को गड़ा दिया और उसके सर के आजु बाजू अपना सर डाल दिया और उसको खूब ज़ोर से चुम्मा लेने लगी। कविता अपनी जीभ से जय के मुंह को टटोल रही थी। कविता को इस तरह चूमता देख जय ने कविता को कमर से पकड़ लिया और वो भी उसे उसी तरह पैशनेट चुम्मा लेने लगा। करीब 5 मिनट बाद दोनों सांसें उखड़ जाने की वजह से रुके, वरना वो अलग नहीं होते। कविता जय की आंखों में देख रही थी, पर इस बार शर्म की जगह मोहब्बत ने ले ली थी।
जय- कविता दीदी तुम तो बहुत ही मस्त किस करती हो।
कविता- हहम्म, मज़ा आया की नही।
जय- बहुत मज़ा आया दीदी, आज हम कितने खुशनसीब है कि हमको अपनी दीदी में ही एक बहन और औरत दोनों का प्यार मिल रहा है।
कविता- क्या मतलब? तुम ये भाई बहन का रिश्ता अभी कायम रखोगे?
जय- हाँ, दीदी ये तो हमारी पहली सच्चाई है, पर दूसरी सच्चाई ये है कि हम तुम्हें अपनी गर्लफ्रैंड बनाना चाहते हैं। जय ने उसके बालों को सवारते हुए कहा।
कविता- तो तुम सबके सामने हमको दीदी बनाये रखोगे और अकेले में हम दीदी से बीवी बन जाएंगे। ये बोलकर कविता और जय दोनों ठहाके मारकर हँसे।
जय- वो तो तुम्हे एक दिन बनना है, जानू।
जय ने बोला कि चलो में तुम्हे कहीं बाहर घुमा के लाता हूँ।
कविता- पर तेरे पास पैसे कहा से आये?
जय- कल मामाजी ने दिए थे, 5000।
कविता- अच्छा, पर तुम्हे उनसे पैसे नहीं लेने चाहिए थे। हमको अच्छा नहीं लगता कि कोई हम पर दया करके पैसे दे। उन्हें लगता है कि हम तंगी में जीते हैं।
जय- अरे कविता तुम कहाँ से कहाँ पहुंच गई, चलो ना।
कविता- जय हमको मामाजी की आंखों में हमेशा दया दिखती है, हमारे लिए जो हमको अच्छा नहीं लगता। यही सोचके उन्होंने पैसे दिए होंगे।
जय- उन्होंने कोई गिफ्ट नहीं लाया था मेरे जन्मदिन पर इसीलिए रुपये दिए। ताकि अपने हिसाब से कुछ ले लूँ। तुम आओ मेरे साथ।
कविता- ओह…. अच्छा ठीक है। हम फ्रेश हों लेते हैं।
जय -ठीक है, हम भी कपड़े बदल लेते हैं।
थोड़ी देर बाद कविता बाहर आ गयी।
कविता इस वक़्त काली कलर की लेग्गिंग्स और लाल कुर्ती में थी। जय टी शर्ट और जीन्स में था।
जय ने उसे देखा तो बोल पड़ा, क्या हॉट लग रही हो कविता। कविता मुस्कुराई, तुम भी बहुत हैंडसम लग रहे हो। जय कविता के साथ बाहर आया। और ऑटो ले ली। उसमे बैठके दोनों PVR मॉल को निकल पड़े।
बाहर गर्मी थी, तो कविता और जय दोनों को पसीने आ रहे थे। कविता की कुर्ती से उसकी चुचियों की दरार साफ दिख रही थी। जिसमे उसके गले का लॉकेट फंसा था। पसीने की वजह से चुचियाँ का हिस्सा जो दिख रहा था, बिल्कुल चमक रहा था। कविता इस बात से बेखबर थी कि जय उसकी चुचियों को निहार रहा है। जय ने एक शरारत की उसने पहले कविता को अपनी दायीं बांह से खुद से चिपका लिया। कविता मुस्कुराते हुए उसके करीब आ गयी। उसने फिर कविता की लेग्गिंग्स में अपना हाथ पीछे से घुसा दिया।
कविता चौंक उठी- आंखों से इशारा करके बोली निकालने के लिए। पर जय कहाँ मानने वाला था। वो मुस्कुराके उसकी पैंटी में हाथ घुसा दिया, और कविता की गाँड़ की दरार में उंगलिया फेरने लगा। कविता धीरे से बोली, जय यहां नहीं प्लीज।
जय ज़ोर से बोला- क्या , यहां नहीं जानू। कविता को ये छेड़ छाड़ पसंद आ रही थी, वो झूठा गुस्सा भरा चेहरा बनाके उसे डराना चाही, पर जय ने उसे चूम लिया। कविता की हंसी छूट गयी। जय बोला हँसी तो फंसी।
तब तक वो पहुंच चुके थे , जय ने ऑटोवाले को पैसे दिए और वो चला गया। तब जय ने अपने हाथों को सूँघा जिससे उसने कविता की गाँड़ को टटोला था, कविता ये सब देख रही थी। वो मुस्कुराई और बोली जल्दी चलो। जय ने सोचा, कविता को ये घिनौना नही लगा, की मैं उसकी गाँड़ को टटोलकर सूंघ रहा हूँ, कोई और होती तो शायद घृणा करती ।
वो कविता के पीछे हो लिया। वहां टिकट की लाइन में भीड़ थी। लेडीज की लाइन में तीन चार ही लोग थे। कविता ने बोला कि टिकेट मैं ले लेती हूँ। और टिकट की लाइन में लग गयी। जय ने देखा कि कविता एक दम मस्त माल लग रही है। ब्राह्मण होने की वजह से रंग तो पूरा गोरा था। कविता की चुचियाँ क्या मस्त तनी हुई थी और गाँड़ का उभार तो उसकी खूबसूरती में चार चांद लगा रहा था। उसका भोला सा चेहरा। उसकी गोल बड़ी बड़ी आंखें , हाई चीक बोन्स की वजह से उसका चेहरा और निखर रहा था। उसने अपने बाल क्लचर में बांध रखे थे। कानों में से लटकता झुमका मैटेलिक रंग का था। जिसमे दो गोलाकार बॉल लगे हुए थे, उसे और आकर्षक बना रहे थे। होंठो पर हल्की लाल लिपस्टिक, आंखों में गहरा काजल वो बिल्कुल बॉलीवुड की हीरोइन लग रही थी।
तभी कविता ने जय को टोका- जय ये लो, टिकेट।
जय लगभग सपने से जागते हिये बोला – अरे तुमने हमको क्यों नही बोला? पैसे थे ना।
कविता- जब तक हम हैं तब तक तुमको पैसे खर्च नही करने हैं। जब तुम IAS बन जाओगे तब करना।
जय- तब तुमको हम बीवी बनाके रखेंगे, और इस साल ये होके रहेगा।
कविता- अच्छा है पर, माँ को कैसे मनाओगे?
जय- उन्हें समझाऊंगा की हम दोनों प्यार करते हैं।
कविता- वो बोलेंगी की ये गलत है, तब ?
जय- उनको समझायेंगे,…… क्योंकि…… ये गलत नहीं है?
तभी एंट्री शुरू हो गयी। कविता और जय ने जाकर कार्नर की सीट ले ली। जय ने पूछा कि ये कार्नर की सीट कैसे मिली। कविता ने आंख मारी की मैंने माँग ली थी। जय ने कविता की ओर देखा और बोला , क्या बात है, जानू??
पिक्चर शुरू हो गयी, पर जय का ध्यान कविता के ऊपर था। उसने कविता के बाजू में अपना हाथ रख लिया। कविता खुद खिसक कर जय के करीब आ गयी। थोड़ी देर पिक्चर चलने के बाद फ़िल्म में एक सीन था जिसमे हीरो जॉन अब्राहम दरवाज़ा तोड़के हीरोइन बिपाशा बासु के पास आके उसे किस करने लगता है और फिर सेक्स सीन होता है।
जय ने कविता से पूछा कि दीदी, मुझे तुम से कुछ पूछना है?
कविता ने कहा- हाँ पूछो।
जय – कल की रात तुम जानती थी कि तुम नंगी हो फिर भी तुमने दरवाज़ा क्यों खोला, ये जानते हुए की हम तुम्हारे साथ क्या करेंगे? हाल के अंधेरे में जय ने हिम्मत जुटाकर ये सवाल किया, ये सोचकर कि शायद अंधेरे में कविता उसका चेहरा नहीं देख पाएगी।
कविता- उस वक़्त हमारी समझ में नहीं आ रहा था कि हम क्या करें। तुम हमको नंगी देख चुके थे। और शायद हमको वासना की तलब थी। ब्लू फिल्म देखकर हम जोश में भी थे। कोई मर्द ही उस समय हमको शांत कर सकता था, दिमाग ने दिल से कहा। और उस समय तुम ही दिखे।