ममता- सब होगा। तुम दोनों का रिश्ता हम स्वीकार किये ना। ये भी तो असंभव था। लेकिन हुआ ना! तुम दोनों के बीच भी बहन का रिश्ता प्रेमी प्रेमिका का हो गया। हुआ ना! और हम दोनों माँ बेटे से पति पत्नी हो गए। हुआ ना! तुम दोनों वो सब हमपर छोड़ दो। “
कविता और जय आश्चर्य में थे।
उस रात जय अकेले ही सोया। और अगले दिन तीनों घर देखने गए। वो किसी सरदार का घर था। जय ने कविता को अपनी बीवी और ममता को कविता की बड़ी बहन बताया। उसे जल्द ही पैसों की जरूरत थी। वो तीन बी एच के था, आगे और पीछे दोनों तरफ लॉन था। टेरेस भी काफी बड़ा था। वो घर सड़क से लगभग 100 मी अंदर था। चारो तरफ लंबे लंबे पेड़ लगे हुए था। घर के आसपास अभी कोई दूसरा घर नहीं था। छत से सड़क दिखती थी। तीनों की अय्याशी के लिए ये घर एक दम परफेक्ट था। जय ने तो मन मे सोच लिया था कि किसको कहां कैसे कैसे चोदेगा। ममता और कविता भी मुस्कुरा रही थी, शायद वो दोनों भी नटखटी बातें सोच रही थी। फिर वो लोग वहां से चले आये, रजिस्ट्री का दिन तय हो गया आठवें दिन। जय फिर उन दोनों को मंदिर ले गया, वहां उन्होंने ने दर्शन किये। फिर मंदिर के अंदर पुजारी जी से शादी का दिन निकलवाया। पुजारीजी ने पूर्णिमा का दिन शुभ बताया, जो कि रजिस्ट्री के दो दिन बाद कि थी। वहां पंडितजी को एडवांस पैसे देकर शादी वाले दिन आने को कहा गया। पंडितजी ने हामी भर दी।
शाम के तीन बजे उन दोनों को जय सत्यप्रकाश के यहां छोड़ने गया। पर उसका चेहरा उदास था, क्योंकि अब उसको दसवें दिन ही, अपनी बीवियां नसीब होंगी।
जय वहां कुछ देर रुका और फिर निकल गया। सत्यप्रकाश को पता थी कि दोनों आ रहे हैं, इसलिए उसने चाभी पड़ोस में दे रखी थी।
उधर जय घर पहुंचा, तो उसे घर काटने को दौड़ा। उसे बिल्कुल अच्छा नहीं लग रहा था। जय ने कविता को फोन लगाया, पर वो फोन नहीं उठाई शायद काम मे बिजी रही होगी। उसकी आंख कब लगी उसको पता ही नहीं चला।
शाम सात बजे, कविता ने फोन किया, तो उसकी आंख खुली।
कविता- हेलो जानू।
जय- अरे दीदी, कहां थी तुम? कितना फ़ोन किये, तुमको।
कविता- काम कर रही थी। नाराज़ हो?
जय- नाराज़ नहीं, उदास हैं। तुम्हारी याद आ रही है।
कविता- हमारा हाल भी, वैसा ही है। मन कर रहा है कि कब तुम्हारे पास आ जाये। लेकिन इतने दिन दूर रहेंगे तो, शादी वाले दिन का मज़ा डबल हो जाएगा।
जय- ये दस दिन, कैसे काटेंगे। तुमलोगों के बगैर।
कविता- काटने तो पड़ेंगे। आज के बाद शायद हम फोन नहीं कर पाएंगे। माँ ने हमारा और अपना फोन शादी तक स्विच ऑफ करने बोला है। आई लव यू जान। उम्म्म्म्मममः
और फोन कट गया।
जय खुद को बिजी रखने लगा। सत्यप्रकाश भी अगले दिन जय के साथ घर घूम और उसने अपनी मुहर लगा दी। जय घर की खरीददारी, और अपने लिए शादी की मार्केटिंग करने लगा। ममता और कविता उधर अपनी मार्केटिंग खुद कर रहे थे। किसी तरह दिन निकले और रजिस्ट्री का दिन आ गया। चुकी रजिस्ट्री, कविता और ममता के नाम थी तो सत्य के साथ, वो दोनों सीधे रजिस्ट्री ऑफिस पहुंचे। जय और सरदारजी पहले से इंतज़ार कर रहे थे। जय ने जब दोनों को देखा तो मुँह से निकला,” उफ़्फ़फ़”।
कविता और ममता की फिटनेस काफी इम्प्रूव हो गयी थी। ममता ने भी वजन कम किया था। कविता जीन्स और टॉप में थी, उसके उभार बहुत सही लग रहे थे। ममता ने रेड कलर की सारी पहनी थी। उसे समझ नही आ रहा था, की किसको देखे। उसने पहले ममता को निहारा, ममता के पेट की चर्बी में कमी आयी थी। चेहरे पर भी सुधार था। वो गोगल लगाए हुए थी। उसके चेहरा देखने से साफ पता चल रहा था, की ब्यूटी पार्लर से आ रही है। एक दम ग्लोइंग चेहरा शायद उसने फेसिअल वगैरह कराया था। बाल भी डिज़ाइनर स्टाइल में कटे हुए थे। भौएँ भी बनी हुई थी। होंठों पर लाल लिपस्टिक, पैरों में सैंडल। उसने कभी ममता को इस रूप में नहीं देखा था। उसकी माँ शायद ही उसके सामने ब्यूटी पार्लर गयी थी। उसे उम्मीद नहीं थी कि ममता एक हफ्ते में इतनी खूबसूरत लगने लगेगी। दूसरी तरफ उसकी बहन कविता थी, जिसको शायद ही उसने कभी जीन्स में देखा था। वो तो हमेशा शलवार सूट में रहती थी। उसने अपने गॉगल्स सर पर टिकाए थे। होंठों पर पिंक लिपस्टिक, आंखों में गहरा काला काजल। वो भी ब्यूटी पार्लर से सीधे रैंप पर मॉडल की तरह आ रही थी। पैरों में काली सैंडल थी। कानो में बड़े मैटेलिक रंग के गोल झुमके। दोनों की केमिस्ट्री भी पहले से अलग थी। ऐसा लग रहा था जैसे दोनों सहेलियां हो। दोनों बिल्कुल मस्त लग रही थी।
“भाईसाहब, चले। सरदारजी ने जय को कंधे से हिलाकर कहा। मुझे और भी काम हैगा।”
दोनों मुस्कुराई और फिर सब अंदर चले गए। रजिस्ट्री होते होते चार घंटे लग गए। फिर भी अभी एक अंतिम प्रक्रिया बाकी थी। दोनों मा बेटी एक दूसरे से बात कर रहे थे। जय उनको देख रहा था। तभी सत्य उसके पास आया और बोला,” क्या बात है, जीजाजी सब चीज़ ठीक जा रहा है, आपके लिए तो, दो बीवियां ये घर। क्या किस्मत है आपकी।”
जय- अरे नहीं ये सब तो…. एक..एक मिनट आपने हमको जीजाजी बोला। आप क्या बोल रहे हैं?
सत्य- अरे जीजाजी, आपका साला हैं हम, हमको सब पता है, कविता के साथ ममता दीदी को खजुराहो में … ऐं… ऐं. ऐं। और हसने लगा।
तभी उन लोगों को अंदर बुलाने लगे।
सत्य- शादी वाले दिन सब पता चल जाएगा।
जय और वो अंदर गए। सारी प्रक्रिया पूरी हुई। जय के दिमाग मे सत्यप्रकाश की बातें कौंध रही थी। दोनों माँ बेटी ने जय से नार्मल बातें ही की। फिर वो सब वहां से चली गयी।
फिर शादी का दिन आ गया। और जय को उसके घर से लेने सत्यप्रकाश नई गाड़ी लेकर आये। गाड़ी फूलों से सजी थी। ये जय का इस घर मे आखरी दिन था। सत्य ने जय को फूलों का गुलदस्ता दिया और बोला,” आइए दामादजी, चलिए।” जय गाड़ी में बैठा और उत्सुकता से अपनी बारात जो वो खुद ही था लेकर निकल गया। कुछ 45 मिनट लगे वहां पहुंचने में। जय को तो ये सदियों सा लग रहा था। जब गाड़ी गेट पर खड़ी हुई तो, सत्य गाड़ी से निकला। जय ने देखा कि वहां माया खड़ी थी। माया भी सजी धजी थी। उसने जय की आरती उतारी। उसको तिलक लगाया। फिर सत्यप्रकाश उसको गोद मे उठाकर अंदर घर में ले गया। वहां बस माया और सत्यप्रकाश नज़र आ रहे थे। ममता कहीं दिख नहीं रही थी। जय आश्चर्यचकित था, की माया मौसी को भी सब पता चल गया है। तभी पंडितजी आ गए। जय और सबने उनके पैर छुए। शादी शुरू हुई। जय अब तक मंडप में अकेला बैठा था। तब पंडितजी ने बोला,” कन्या को बुलाइए।
तब जय की नज़र दरवाज़े पर गयी तो, कविता दुल्हन के जोड़े में बिल्कुल गुड़िया सी लग रही थी। लाल रंग का लहंगा, और बैकलेस चोली थी। माथे, में टीका, नाक में नथिया, कानों में झुमके, हाथों में कंगन, पैरों में पायल, हाथों में मेहन्दी, पैरों में भी मेहन्दी लगी थी, चेहरे पर पूरा ब्राइडल मेक अप था। मुस्कुराते हुए, वो मंडप में पहुंची तो, जय ने अपना हाथ बढ़ाया, कविता उसकी ओर देख मुस्कुराई और उसका हाथ थाम लिया। जय ने उसे अपने बगल में बिठा लिया।
पंडितजी सत्यप्रकाश की ओर देख कर बोले,” उनको भी साथ में बुला लीजिए। एक साथ हो जाएगा।”
सत्य- पंडितजी, पहले ये वाला कीजिये, फिर वो होगा। आपको पैसे तो दे ही रहे हैं। है कि नहीं।”
पंडितजी मुस्कुराए बोले ठीक है, जैसा आप कहे।”
जय को उनकी बातें समझ नहीं आ रही थी। पता नही कोई और शादी कर रहा है क्या?
पंडितजी, फिर मंत्र पढ़ने लगे। और शादी आगे बढ़ने लगी। इसी क्रम में जय ने कविता की मांग भड़ी, उसके साथ फेरे लिए। सत्यप्रकाश ने कविता का कन्यादान भी किया। जाय आश्चर्य में था कि आखिर ममता है, कहाँ?
और शादी भी सम्पन्न हो गयी। जय और कविता उठकर मंडप से जाने लगे, तो पंडित ने जय को रोक लिया,” अरे आप कहाँ चले। आपको तो अभी 2 घंटे और बैठना है। “
जय को कुछ समझ नहीं आया। उसका शून्य चेहरा देख पंडितजी, बोले,” अरे ऐसे क्यों देख रहे हैं। सत्यप्रकाशजी ने बताया था कि, आप दोनों बहनों से शादी कर रहे हैं।”
सत्यप्रकाश- इन्हें इस बात की जानकारी नहीं है पंडितजी।
जय- किस बात की जानकारी?
पंडितजी- इस बात की। और एक तरफ हाथों से इशारा किया। वो वही कमरा था, जिस कमरे से कविता आई थी। जय ने पलट कर देखा, तो माया ममता को पकड़े आ रही थी। ममता भी शादी के जोड़े में थी। जय की आंखें खुली की खुली रह गयी।
जिस तरह सुबह होने पर धरती दुल्हन की तरह सजती है, जिस तरह रात होने पर चांद और सितारे धरती का चांदनी से श्रृंगार करते हैं ठीक उसी तरह ममता का श्रृंगार और आवरण उसको धरती की ही तरह सुंदर बना रहा था। उस अधेड़ उम्र में भी वो, किसी नवयौवना सी लग रही थी। आंखें बिल्कुल हिरणी सी काजल से सजी थी। होंठ गुलाब की पंखुड़ियों से थे। उसने भी पूरा ब्राइडल मेक अप किया था। दोनों माँ बेटी ने एक सा जोड़ा पहना था। वही आभूषण कानों, नाक, हाथ, पैर, सब वही था। कमर में दोनों माँ बेटी ने कमरबंद पहना हुआ था। गले में सोने का हार भी था, जो कि बेहद खूबसूरत लग रहा था। ममता धीरे धीरे अपने मोतियों से दांत मुस्कुराते हुए बिखेड़ रही थी। जय उसमे इतना खो गया था कि, उसे होश ही नहीं था।
पंडितजी- जजमान, कहाँ खो गए? आपकी ही होनेवाली है ये भी। बहुत कम लोग हैं, जो आप जितने भाग्यशाली होते हैं। एक साथ दो लड़कियों से शादी सबकी नहीं होती।
जय और ममता अब मंडप में बैठ गए और एक दूसरे का हाथ थामे हुए थे। कविता भी वहीं बैठ रश्मो रिवाज़ में मदद कर रही थी। सत्यप्रकाश ने फिर ममता का कन्यादान किया। ममता की मांग भरी और फिर उसके साथ सात फेरे लिए। जय और ममता के आंखों में खजुराहो का दृश्य जाग उठा। दोनों अपनी पहली शादी, के तर्ज पर एक दूसरे का हाथ थाम, फेरे ले रहे थे। आखिरकार विवाह संपन्न हुआ। जय की आज दो दो शादी थी। पंडितजी को लेट हो रहा था, वो बोले,” जजमान, बहुत विलंभ हो रहा है, मुझे रवाना करें। भोजन हम करेंगे नहीं, हमारी दक्षिणा दे दे।”
तीनों जय, ममता और कविता ने एक साथ पंडितजी के पैर छुवे। पंडितजी ने आशीर्वाद दिया,” अखण्ड सौभाग्यवती भव:। पुत्र रत्न प्राप्ति भव:। आप दोनों जल्द से जल्द इनके बच्चों की माँ बने और कुशल गृहणी का कर्तव्य निभाये।” पति के पैर छुइये और खुदको समर्पित कीजिये।”
ममता और कविता ने जय के क़दमों में बैठकर उसके पैर छुए, और होंठों से चूम लिया। जय ने दोनों को उठाया और गले से लगा लिया।”
उधर सत्यप्रकाश ने पंडितजी, को दक्षिणा दी और विदा किया। फिर माया ममता और कविता को अलग की और जय को देख बोली,” जीजाजी, कैसे पटा लिया, हमारी दीदी और उनकी बेटी को। आप तो कमाल कर दिये। एक औरत और उसकी बेटी दोनों को अपना लिए। और ज़रा देखिए ना, इन दोनों के चेहरे की खुशी। आज से पहले कोई भी औरत, सौतन बनने पर खुश नही होती थी। आपने दोनों पर जादू कर दिया है। वैसे इतनी आसानी से नहीं मिलेगी दोनों, क्योंकि हम आपकी साली हैं, कुछ लेंगे तभी इनको आपसे मिलवाएंगे।”
जय- क्या मौसी, आपको यहां देख हम पहले ही चौंके हुए हैं। आप हमारी टांग खिंचाई कर रही हैं। अब जब सब आपको पता ही है, तो ये लीजिए 10000 रु।
माया- ये हुई ना बात, पर अभी हम मौसी नहीं, आपकी साली हैं। और हम इतने में एक बीवी देंगे। चलेगा आपको?
जय- ये लीजिए और 10000 रु अब तो ये दोनों हमारी हुई।
माया- हाँ, अब हुई ना बात। अब आप चाहे तो मौसी के आशीर्वाद ले सकते हैं।
जय ने उसके पैर छुवे और कविता ने भी। माया ने दोनों का माथा चूमा और आशीर्वाद दिया। फिर सत्यप्रकाश ने भी उनको आशीर्वाद दिया। रात के 11 बज चुके थे। सत्यप्रकाश ने कहा,” चलिए विदाई का समय हो गया है। आइए”
सत्यप्रकाश गाड़ी ले आया और जय भी पीछे गाड़ी में बैठ गया। माया दोनों को लेकर पीछे से आ रही थी। जय उनका बेसब्री से इंतज़ार कर रहा था। इतिहास में शायद पहली बार हो रहा था कि माँ और बेटी एक साथ एक ही पति की बीवियाँ बनकर उसके साथ खुशी खुशी जा रही थी, और वो उनका अपना सगा बेटा और भाई था। माया और ममता की आंखों में आंसू थे, ठीक वैसे ही जब अमरकांत उसको दुल्हन बनाके ले जा रहा था, और आज उसी का बेटा फिर से उसे दुल्हन बनाके ले जा रहा था। कविता भी ये देख रो रही थी। तीनों एक दूसरे से लिपटी थी। फिर आखिकार कविता और ममता कार में जय के अगल बगल बैठ गयी। फिर सत्यप्रकाश उनको वहां से नए घर की ओर ले चला। तीनों पीछे की सीट पर बैठे थे। कोई 1 घंटे में वे नए घर पर पहुंच गए। घर तो जैसे दीवाली की रात जैसे सजा था। सत्यप्रकाश कार से उतरा और घर का दरवाजा खोला। अंदर जाकर उसने, रीति रिवाज की तैयारी जो कि पूरी थी, उसका समान ले आया। वहां पर दोनों ममता और कविता ने घर के बाहर हाथों के छाप लगाए। फिर वैसा ही बैडरूम और किचन में भी किया। दोनों फिर बैडरूम में चली गयी। और जय के हाथों में चाभी देकर सत्यप्रकाश बोला,” ये लीजिए घर की चाबी। आपलोग अब यहां निश्चिन्त होकर रहिए। हम रोज़ 5 बजे शाम में आएंगे और रात का खाना पहुंचाएंगे। सुबह और दोपहर का खाना आपलोगों के पास पहुंच जाया करेगा। हमने पास से ही बोल दिया है। और किसी चीज़ की जरूरत पड़े तो हमको जरूर बताइएगा।”
जय- मामाजी, ये सब क्या हुआ कैसे हुआ हमको कुछ समझ मे नहीं आया?
सत्य- अब अपनी बीवियों से पूछिए, जाइये आपका इंतजार कर रही हैं। इन दोनों का ख्याल रखियेगा। हमको इज़ाज़त दीजिये। काफी लेट हो गया है। हम कल आते हैं।” और वो पलटकर जाने लगा।
जय- आप हमको आप आप क्यों बोल रहे हैं?
सत्य- साला हैं हम, आप हमारी बड़ी दीदी के पति। तो फिर आपको आप ही बोलेंगे ना।” मुस्कुराके बोला ” ये दरवाज़ा बंद कर लीजिए।” और वो दरवाज़ा सटाकर चला गया। बाहर गाड़ी चालू होने की आवाज़ हुई और वो डोर होती चली गई।
जय अचंभित था, की आखिर ये सब कौसे हुआ? उसने दरवाज़ा बंद किया। और अपने सवालों के जवाब ढूंढने, अपनी सुहागरात की सेज की ओर जाने लगा। इस सवाल का जवाब उसकी दो नई नवेली दुल्हन के पास था। उसके कदम दरवाज़े के पास पहुंचे। और उसने दरवाज़ा खोला। उसकी आँखों के सामने एक दिलकश नज़ारा था।