You dont have javascript enabled! Please enable it! क्या ये गलत है? – Update 21 | Pariwarik Chudai Ki Kahani - KamKatha
क्या ये गलत है - Pariwarik Kamuk Chudai Ki Kahani

क्या ये गलत है? – Update 21 | Pariwarik Chudai Ki Kahani

उधर दिल्ली के दूसरे ओर प्रीत विहार में ममता अपने छोटे भाई सत्यप्रकाश के साथ रक्षाबंधन मना चुकी थी। सत्यप्रकाश और ममता दोनों बातें कर रहे थे, और पुराने दिन याद कर रहे थे। हालांकि ममता और सत्यप्रकाश भाई बहन थे, पर वो ममता से उम्र में काफी छोटा था।कविता से सिर्फ 1 साल बड़ा था। ममता ने सत्य एक माँ की तरह ही प्यार करती थी और उसका ध्यान रखती थी। सत्यप्रकाश की शादी अभी तक नहीं हुई थी। ममता और माया दोनों इस बात पर उसको बहुत समझाती थी, पर वो अभी शादी के मूड में नहीं था। आज भी वो यही कोशिश कर रही थी।

ममता- तुमको इतना बार बोले हैं, शादी कर लो ना। घर पर पत्नी रहेगी तो सब संवारेगी। तुम्हारा ख्याल रखेगी। अब तुम ये मत कह देना कि, औरत ही ये सब कर सकती है, तुम अपना ख्याल खुद रख सकते हो। ये सुनके हमारे कान पक गए हैं। अब कब शादी करोगे। उम्र निकल जायेगी तब। हहम्मम्म।

सत्य- दीदी तुमको तो सब पता ही है। हम अभी शादी के मूड में नहीं है। क्यों ये सवाल करती हो। तुम तो जानती हो फुलवरिया( ममता का मायका) में अपना घर बनाने है। यहां भी अभी एकदम से सेटल नहीं हुए हैं। ये सब कर लेंगे तभी अपना घर बसायेंगे। और हम सबकुछ तो कर ही लेते हैं।कोई दिक्कत नहीं हमको। माया दीदी भी जब फोन करती है, तब यही बात सब बोलते रहती है।

ममता- हमारा मन है कि तुम्हारे बच्चों को भी गोदी में खिलाऊँ रे। हमको बुआ बना दो ना। कोई पसंद है तो बता दो। उसको ही तुम्हारी दुल्हन बना देंगे।

सत्य शर्माते हुए- नहीं दीदी ऐसी कोई बात नहीं है।

तभी उसका फोन बजता है। कॉल उसके आफिस से था। वहां कुछ जरूरी काम आ गया था। और छुट्टी होने के बावजूद उसको बुला लिया गया। सत्य बोलके निकल गया कि वो 2 3 घंटे में आ जायेगा। वो बोला कि दीदी तुमको शाम में हम ही छोड़ देंगे। तुम यहीं रहना।

ममता किचन में जाकर बर्तन साफ करने लगी। साफ करने के बाद घर को थोड़ा व्यवस्थित करने लगी। वो सत्य के कमरे में गयी तो वहां उसे एक पुरानी अटैची मिली। उसने उस अटैची खोली। उसमे कुछ पुराने कागज़ वैगरह रखे हुए थे। उसमे एक एल्बम था जिसमे उसकी माँ कावेरी की पुरानी ब्लैक वाइट तस्वीर थी।

कावेरी की मंगलसूत्र और कमरबंद था। गांव के ज़मीन के कागजात। सब देखने के बाद ममता सब वापिस रखने लगी। तभी उसकी नज़र एक पुराने डायरी पर पड़ी। उसके अंदर एक पुरानी चिट्ठी परी हुई थी। वो उसे जैसे ही पढ़ने वाली थी, की तभी उसका फोन बज उठा। ममता ने वो चिट्ठी वैसे ही मोड़ दी, और फोन उठायी। वो फोन में व्यस्त हो गयी। तभी सत्य भी वापिस आ गया। ममता बाहर बालकनी में बाते कर रही थी। वो अंदर अपने कमरे में गया और देखा सब कुछ खुला। उसने झट उठा के सब बंद कर दिया। उसे डर था कि ममता ने कहीं वो चिट्ठी ना पढ़ ली हो।पर फोन काटने के बाद ममता का कोई सवाल उस चिट्ठी के बारे में नहीं था, तो वो रिलैक्स हो गया।

खाना खाने के बाद जय और कविता, कविता के बिस्तर पर फिर चुदाई के खेल में भिरे हुए थे। कविता इस वक़्त जय के लण्ड को बुर में घुसाकर तेजी से उछल रही थी। उसकी चुच्चियाँ ऊपर नीचे होते हुए मस्त हिलोडे मार रही थी। कविता अपने बाल पकड़े हुए हाथ उठाये हुई थी। वो इस वक़्त तीसरी बार चुद रही थी।

जय- आआहहहहहहह….अरे बुरचोदी भोंसड़ी साली, लण्ड कौन चूसेगा तेरी माँ। चल बीच बीच में उतरकर लण्ड से अपने बुर का पानी चाटा करो। वैसे भी तेरे बाप बन गए हैं हम।

कविता- सही बोले, लेकिन एक बात बताओ। तुम हमारे भाई भी हो, अब पति हो और बाप भी बन गए हो। कैसी रिश्तों की उलझन है। हा… हा…. हा

कविता लण्ड बुर से निकालती है, और जय की ओर देखते हुए, लण्ड चूसने लगी। जय उसके माथे को सहलाने लगा।

” आह आज ना तुम और ना हम रिलैक्स करेंगे, आज ये लौड़ा तुम्हारे हर छेद की खबर ले रहा है।

जय- वाह क्या मज़ा दे रही हो, बहुत मन से चूस रही हो लण्ड को। अच्छा लगता है ना? कविता लण्ड मुंह मे लिए भोला सा चेहरा बनाके सर हिलाई।

जय कविता की गाँड़ को सहला रहा था।

जय- तुम्हारी पैंटी कहाँ गयी। बचा हुआ हलवा निकाल दिया क्या अपनी गाँड़ से?

कविता लण्ड चूसते हुए सर हिलाई। फिर बोली, उसको फ्रीज में रख दिये हैं। आराम से खाएंगे।

जय- ठीक है, कोई बात नही। लेकिन हम चाहते थे कि वो तुम्हारे गाँड़ के ओवन में ही रहे। मज़ा आ रहा था।

कविता- हम उससे भी मज़ेेदार चीज़ लेेंगे, तुमको और मज़ा आएगा।

जय- क्या?

कविता- अभी नहीं डार्लिंग भाई, बाद में बताएंगे। तुमको अगर गाँड़ चाटनी है तो चाट लो, बाद में ये तुम्हारे चाटने लायक नहीं बस हमारे लिए रहेगी।

ये बोलना था कि जय ने कविता को घोड़ी बना दिया और उसकी चिकनी चूतड़ को फैला दिया। इसके बाद उसकी सावली भूरी गाँड़ की छेद जो हल्की खुली हुई थी, उसमे अपनी जीभ लगा दिया। कविता के होंठों पर कामुक मुस्कान थी। जय उसकी मस्त सुंदर चिकनी गाँड़ का स्वाद चख रहा था। कविता के चुत्तर मस्ती में हिल रहे थे। जय कभी कविता की गाँड़ तो कभी बुर चाट रहा था। कभी उसके बुर में उंगली डालता तो कभी उसकी गाँड़ में।थोड़ी देर बाद कविता झड़ गयी और जय के मुंह पर बुर का रस मूत की तरह बहा दी।जय उसे पागलों की तरह पी रहा था। पूरा बिस्तर गीला हो चुका था। जय उसकी आखरी बूंद तक चाट गया। कविता थकी सी मुस्कान दिये जय का सर पकड़ अपना बुर चटवा रही थी।

कविता- ऐसा लग रहा है कि हमारे शरीर को निचोड़ लिए हो, और सारा रस निकालकर पी गए हो। उफ़्फ़फ़

जय उसकी ओर लपका और कविता को बालों से पकड़ा और अपनी ओर खींचा। उसकी आँखों मे आंखें डालकर बोला,” अभी से थकना मत और ना ही रिलैक्स करने देंगे, कविता दीदी। तुमको अभी और पेलना है।

कविता उसके लण्ड को पकड़ते हुए बोली- हम कब बोले कि रिलैक्स करो, बल्कि तुमको वियाग्रा खिलाये हैं। देखो लण्ड खड़ा ही है, और बुर भी फिर चुदने को तैयार है।काश आज माँ नहीं आये, और तुम सुबह तक हमको खूब पेलो।” कविता कामुकता से लबरेज़ थी।

जय ने फिर कविता को बिस्तर पर गिराया और खुद उसके ऊपर चढ़ गया। उसके बुर को चूमते हुए धीरे से उसकी नाभि,पेट और चुच्ची के रास्ते ऊपर चेहरे तक चुम्मा लिया। चुम्मा कम चाटा ज्यादे। फिर उसकी बुर में लण्ड घुसाकर पेलना शुरू कर दिया। कविता पीछे हटने वाली कहां थी। उसने जय के पीठ को कसके पकड़ा था, साथ ही अपनी टांगे जय के कमर के इर्द गिर्द फंसा रखी थी। जय उसकी बुर की रिंग देख और उत्साहित था। वो बार बार लण्ड निकालकर उसकी बुर की रिंग पर पटकता था, और जोश में आकर खूब कसके चोद रहा था। कमरे के अंदर सिर्फ चोदने और चुदने की थाप, आवाज़ें गूंज रही थी। आआहहहहहहह, ओऊऊऊच्च, ओह्ह हहहहहहह, आ आ आ आ , उफ़्फ़फ़फ़फ़ , ऊईई माँ, मर गई ईईईईई, हाये, ओऊऊऊ, हे भगवान, ईशशशशश ऐसी आवाज़ें आ रही थी। जय ने फिर उसको गोद मे बैठाकर चोदा, जिसमे कविता जय के लण्ड पर बैठी थी, और जय भी उसको अपनी बाहों में पकड़कर बैठा था। सोनो एक दूसरे में चिपके हुए थे। कविता उसके माथे को चूम रही थी। दोनों भाई बहन उछल उछल कर चुदाई कर रहे थे। उस तरह करीब 10 मिनट चोदने के बाद कविता को जय ने करवट लिए लिटाया। फिर वो उसकी टांगों के बीच आकर, उसकी एक टांग अपने कंधे पर रख लिया। और कविता की गाँड़ में लण्ड घुसा दिया। और कविता गाँड़ मरवाने लगी। कविता ने देखा कि जय उसे इस वक़्त सिर्फ चोदना चाहता था। उसे फर्क नहीं पड़ रहा था, की वो उसकी गाँड़ चोदे या बुर। वो भी बस चुदना चाहती थी। जय ने उसकी चुच्ची को एक हाथ से कसके पकड़ा था। जय थोड़ी गाँड़ मारने के बाद, कविता के बुर में लण्ड घुसाके चोदता। फिर लण्ड निकाल वापिस गाँड़ मारने लगता। कविता लगातार अपने मटर के दाने को मसल रही थी। और इस क्रम में दो बार अब तक झड़ भी चुकी थी। एकदम धुवांधार चुदाई चल रही थी। कविता की गाँड़ काफी खुल चुकी थी, लगातार हो रही चुदाई से। जब भी जय लण्ड निकालता तो 10 के सिक्के जितना बड़ा छेद खुला रह जाता था। जय पिछले आधे घंटे से ज्यादा से कविता को चोद रहा था, पर वो अभी तक झड़ने का नाम नहीं ले रहा था। कविता- आआहहहहहह, ओऊऊऊ जय ययय…ययय ओह्ह लगता है तुम आज रुकोगे नही क्या जानेमन भैया। बहन की बुर इतनी मस्त है क्या? हाये हमारा राजा भैय्य्या। अपना मूठ लेकिन हमारे मुंह मे ही देना, प्लीज।” कविता अपनी जीभ दिखाते हुए बोली।

जय ने उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया, बल्कि उसकी बेदर्दी से चुदाई चालू रखा। उसपर वियाग्रा सर चढ़ कर बोल रही थी। जय की कमर तेज़ी से हिल रही थी। और कविता उसके धक्कों को अपने ऊपर समाहित कर रही थी। कविता की मधुर आनंदमयी चीखें पूरे कमरे का माहौल और अधिक कामुक बना रही थी। उसने कविता को अलग अलग पोज़ में खूब चोदा। आखिरकार करीब एक घंटे चोदने के बाद जय का निकलने वाला था। जय- इधर आओ कविता दीदी, ये लो अब निकलने वाला है। आआहह

कविता फुर्ती से उठकर उसके लण्ड को चाटने लगी और हिलाने लगी। तभी मूठ की तेज और गहरी धार उसके गले से टकराई। कोई 7 8 लंबी धार निकली जय के लण्ड से। उसकी कमर हर झटके के साथ कविता के मुंह मे लण्ड पेल देती थी। सुपाड़ा लगातार हिल रहा था। कविता ने सारा मूठ मुंह मे ले लिया, उसने एक बूंद भी बाहर गिरने नहीं दिया। जय उसके बालों को पकड़कर अपने लण्ड पर दबा भी रहा था। जय पूरा गिराने के बाद लण्ड को बाहर निकाल कविता के गालों पर रगड़ दिया। कविता हसने लगी।उसने अपने गालों से उसके लण्ड को सहलाया और उसपर राखी के धागे को चूमा।

जय और वो दोनों हसने लगे।

जय- लण्ड पर बंधी तुम्हारी राखी आज तुम्हारी इज़्ज़त की धज्जियां उड़ा रही है। जिस राखी को भाई हाथ पर पहन कर बहनों की रक्षा करते हैं, आज एक बहन ने उसी राखी को भाई के लण्ड पर बांध, रिश्तों की मर्यादा ताक पर रख, उस लण्ड से खूब चुद रही है। हा… हा हा…..हा…

कविता- उम्म्ममम्ममम्म… जय तुमको मज़ा नहीं आया क्या? अपनी सगी बड़ी बहन को राखी के दिन इतनी बुरी तरह चोदे हो तो।हम तो तुम्हारे लिए घर की इज़्ज़त, मान मर्यादा, रिश्तों की परवाह किये बगैर खुदको तुम्हारे हवाले कर दिए जान।

जय- तुम तो आज हमारा दिल जीत ली हो कविता रानी। आज तो मन कर रहा है, माँ से तुम्हारा हाथ मांग ले और तुमको हमेशा के लिए इस समाज की रिवाज़ के खिलाफ बीवी बना ले।

कविता – मांग लो ना माँ से हमको, किसने रोका है। माँ अब मना नहीं कर पायेगी। वो फिर से सुहागन बनकर घूमना चाहती है। तुम उसके सुहाग हो और हमारे भी। हम दोनों माँ बेटी को अपना लो, और इस घर में दोनों को पत्नी बनाकर रखो। हमको कोई एतराज़ नहीं है।

जय- तुम ठीक कह रही हो। वक़्त आ गया है, कि अब हम इस घर के मुखिया बने और तुम दोनों की जिम्मेदारी पति बनके उठाये। तुमको पता है, ममता को बच्चा चाहिए। और उसकी उम्र भी हो गयी है। जल्द ही उसकी कोख भरनी होगी, और उसके लिए हम तीनों के बीच शर्म की दीवार गिरानी होगी।

कविता जय को चुम्मा लिए जा रही थी। इस वक़्त शाम के 7 बज रहे थे। तभी आसमान में काले घने बादल आ गए। बिल्कुल अंधेरा सा हो गया। कविता जय के जिस्म से चिपकी हुई थी। बाहर आंधी तूफान जोर से चलने लगे। जय और कविता दोनों उठ बैठे। बिजली ज़ोर से कड़क उठी, तो कविता सहम कर जय के सीने से चिपक गयी। जय उसके चेहरे को उठाके चूमने वाला था, कि ममता का फोन आ गया। ममता ,” जय हम अभी नहीं आ पाएंगे। बहुत जोर की बारिश हो रही है। तुम दोनों ठीक से रहना। सत्य हमको सुबह आफिस के समय ले आएगा।”

जय- ठीक है, तुम अपना ध्यान रखना।”

कविता आंखों से इशारा करते हुए पूछी,” क्या हुआ? क्या बोल रही थी माँ?

जय- वो सुबह तक नहीं आएगी।

कविता- ओह्ह, तो फिर वो मामाजी के यहां आज रात रुकेगी।

जय कविता के होंठों को छूकर बोला,” तुम तो आज की रात का फायदा उठाओगी ना?

कविता- इस रक्षाबंधन के दिन बहन भाई के साथ सुहागरात मनाएगी।” उसकी आँखों मे एक शैतानी प्यास और होंठों पर नटखट हंसी थी। वो जय को लिटाकर फिर उसके ऊपर चढ़ गई। और चादर ओढ़ ली। उस रात दोनों ने 4 से 5 बार चुदाई की। और सुबह 5 बजे सोए। दोनों एक दूसरे की बाहों में नंगे ही सोए थे। कविता की सुबह जब आंख खुली, तो बाहर से तेज धूप आ रही थी। उसने आंख मलते हुए घड़ी देखी तो 10 बज चुके थे। उसका पूरा बदन टूट रहा था। वो उठी पर चल नही पा रही थी। किसी तरह दीवार पकड़ते हुए बाथरूम पहुंचना चाहती थी। तभी वो गिर पड़ी और साथ मे कुर्सी भी गिर पड़ी। जय की नींद गिरने की आवाज़ से खुल गयी। जय ने कविता को पड़े हुए देखा, तो उठकर कविता को सहारा देकर उठाया। पर वो ठीक से चल नही पा रही थी। जय ने ये देखा तो कविता को अपनी गोद मे उठा लिया, जैसे फिल्मों में हीरो हीरोइन को उठा लेता है। जय,” बहुत दर्द हो रहा है क्या कविता दीदी? कविता उसके गालों को सहला कर बोली,” नहीं, ये तो कल रात जो तुमने हमको जी भरके प्यार किया है ना उसी का असर है। ये दर्द बहुत मीठा है। इसकी आदत पड़ जाएगी।” और उसको चूम ली। जय फिर उसको बाथरूम तक ले गया, और गोद से उताड़ दिया।वो बाथरूम के अंदर चली गयी। खुद को आईने में देखा। उसके गर्दन और गालों पर लव बाइट्स थे। फिर उसने पूरे शरीर मे कई जगह जय के काटने के निशान पाए। चूतड़, पेट, कमर, चुच्ची सब जगह। वो ये देख, मुस्कुराई। उसकी बुर और गाँड़ चुद चुदकर दुख रही थी। वो हिम्मत जुटाकर फ्रेश होने लगी। तभी घर की घंटी बजी। ये और कोई नही ममता थी। कविता बाथरूम में थी, तो उसने सुना नही। जय ने एक तौलिया पहन लिया और दरवाज़ा खोला, सामने ममता थी। वो एक सेकंड के लिए अवाक रह गया, उसने सोचा ही नहीं, की ममता हो सकती है। फिर खुदको संभालते हुए बोला,” मामाजी कहां है?

ममता- वो तो हमको नीचे छोड़ के चला गया। कविता ऑफिस गयी क्या?

जय- पता नहीं, शायद बाथरूम में है। क्यों?

ममता उसको गले लगाके बोली,” जब वो सामने नहीं तो, हम तुम्हारी माँ नहीं, बल्कि पत्नी हैं।” और जय को चूमने लगी।

जय – दरवाज़ा तो बंद कर लो।”

ममता- तुमको दरवाज़ा का पड़ा है, थोड़ा हमारा चेहरा को देखो, हमारे प्यासे होंठ, मुरझाई आंखें, जो तुम्हारे प्यार के लिए तड़प रहे हैं। और ममता जय के सीने को किस करते हुए नीचे आने लगी, और उसका तौलिया उतारने लगी। तभी जय ने ममता को बोला,” फिर तो हमको अपनी पत्नी की प्यास बुझानी होगी। चलो हमारे कमरे में।” मन ही मन वो किसी तरह ममता को हॉल से कमरे में ले जाना चाहता था। ममता के होंठों को किस करते हुए, अपने कमरे में ले गया।

वहां ममता का पल्लू, ब्लाउज और ब्रा तुरंत फर्श पर गिर गए। जय ममता को बेतहाशा चूम रहा था। और ममता भी छोटे समय मे मज़े ले लेना चाहती थी। क्या कहने इस घरके की जय की बहन छुड़ाकर बक़तरूम में थी, और जय अब अपनी माँ को प्यार कर रहा था। ममता जय के खड़े लण्ड को तौलिए के ऊपर से सहला रही थी। ममता बिना देर किए, घुटनो पर बैठ गयी, और तौलिया हटा दी। जय का लण्ड खड़ा था, पर उसपर राखी बंधी देख ममता आश्चर्य में पड़ गयी। वो जय की ओर प्रश्नवाचक दृष्टि से देखते हुए कुछ बोलने ही वाली थी कि, बाथरूम का दरवाजा खुला और कविता नंगी ही बाहर आ गयी। कविता ने महसूस किया कि जय अपने कमरे में कुछ कर रहा है। वो वहीं नंगी पहुंच गई, क्योंकि उसे पता नहीं था, की ममता आ चुकी है और वो अभी उस कमरे में जय का लण्ड चूस रही है। कविता कमरे में घुसी, तो ममता जय का लण्ड पकड़ खुद अधनंगी हुई घुटनो पर बैठी है। जय पूरा नंगा, कविता पूरी नंगी और ममता अधनंगी। ममता और कविता ने अपनी आंखें हाथों से ढक ली। दोनों के मुंह से एक चीख निकल गयी।

अब आगे क्या होगा? कैसे ये रिश्ता आगे बढ़ेगा? देखते हैं आगे।

एक खामोशी थी कमरे में, ठीक वैसे जैसे तूफान के आने से पहले होती है। ये तूफान या तो सब उजाड़ देगा या फिर इनकी ज़िंदगी और रिश्ते हमेशा के लिए बदल जाएंगे। ममता अपनी साड़ी से चुच्चियाँ ढक अपनी ब्लाउज और ब्रा फर्श से उठाने लगी। कविता बुत बनी खड़ी थी अपने मुंह को छुपाए। जय ने खुदको छोड़ पहले कविता को तौलिये से ढकने बढ़ चला। वो खुद पूरा नंगा था। जय ने कविता को ढक दिया और कविता ने फौरन उस तौलिये को लपेट लिया। ममता अभी अपनी ब्रा छोड़ ब्लाउज पहनने की कोशिश कर रही थी। पर वो जल्दबाज़ी में ठीक से पहन ही नही पा रही थी। कविता और ममता एक दूसरे की ओर नहीं देख रहीं थी। जय ने अपनी बॉक्सर जल्दी से पहन ली। ममता ने जल्दबाज़ी में अपनी ब्लाउज फाड़ ली। वो फिर कमरे से निकलकर अपने कमरे में ब्लाउज पहनने चली गयी। ममता जैसे गयी कविता भी निकलना चाहती थी, पर जय ने उसके हाथ को पकड़ लिया। कविता जय की ओर देखकर बोली,” जय अभी हमको जाने दो, प्लीज।“ वो लगभग भीख मांगते हुए बोली। जय,” क्या हुआ दीदी डर गयी? बस हो गया,कल तक तो बोल रही थी कि माँ से हम तुमको मांग ले। कविता की आंखों में आंसू आ गए थे,” हां, हम डर गए हैं। पता नहीं अब क्या होगा? कहीं हम तुमको खो ना बैठे?

जय- अभी तो शुरुवात हुई है ज़माने से लड़ने की, तुम्हारा प्यार इतना कमजोर नहीं हो सकता कि, अभी से डगमगाने लगे। अरे दीदी तुम साथ रहोगी तभी तो इस ज़माने से हम दोनों के लिए लड़ेंगे। ये रास्ता आसान नहीं होगा, ये तो तुमको भी पता था।

कविता- पर…

जय- पर वर कुछ नहीं तुम हमारे साथ निडर होकर रहो।”

जय उसे अपनी ओर खींच लिया और गले से लगा लिया। कविता उसके गाल सहलाते हुए बोली,” पर जय कैसे होगा? तुम खुद सोचो एक बहन अपनी माँ से खुद के सगे भाई से शादी की बात कैसे करेगी? इसके लिए बहुत हिम्मत चाहिए।

जय- अरे कविता दीदी, तुम वो बहादुर लड़की हो,जिसने हमको और माँ को तब संभाला जब पिताजी नहीं थे। तुमसे ज्यादा बहादुर लड़की हम नहीं देखे हैं। अगर ये हिम्मत तुममें नहीं हो सकती, तो इस दुनिया में कोई लड़की ऐसा नहीं कर सकती।” जय के इन शब्दों से कविता का भरोसा बढ़ा, और उसकी आँखों में देख दृढ़ निश्चय के साथ बोली,”हम थोड़ा देर के लिए घबरा गए थे। हमको माफ कर दो। भगवान जानते हैं कि हम तुम्हारे लिए अपनी जान दे सकते हैं जानू भैया। खुद खत्म हो जाएंगे, पर तुम्हारा साथ नहीं छोड़ेंगे।”

“लेकिन अभी हमको कपड़े बदलने दो। क्योंकि अब हमको लड़ाई के साथ साथ माँ को इस रिश्ते के लिए मनाना भी है और उनको भी इसमें शामिल करना होगा।” कविता ये बोलते हुए दरवाज़े से निकल गयी। वो अपने कमरे में पहुंची और शलवार सूट पहनने लगी। उसने जैसे ही कपड़े पहने,की हॉल से ममता ने कविता को आवाज़ लगाई।

कविता….कविता… बाहर आओ।”

कविता बाल खुले, पीला सूट पहनकर बाहर आई। जय अपने कमरे से सब देख रहा था। ममता नाइटी पहनी थी, मैरून रंग का। कविता बाहर आकर, सीधा ममता के पास गई,” बोलो माँ।”

ममता- क्या कर रही थी, तुम नंगी होकर जय के कमरे में। कबसे चल रहा है ये सब? हम घर पर नहीं रहते तो तुम दोनों आपस में ही….। अरे भाई बहन हो तुम दोनों, और ये घिनौना काम करते हो। अरे निर्लज… कहीं की।

कविता- माँ, हम आराम से बात करते हैं, आओ कमरे में चले। हम सब समझाते हैं तुमको।तुम गुस्सा मत हो।

ममता- क्या समझाएगी हमको। अरे हमारी आधी उम्र निकल गयी, समझ तो तेरी गंदगी से भरी पड़ी है। ऐसी कुलक्षिणी बेटी हुई है, की अपने सगे भाई से चुदवाती है। ज्यादे आग लगी थी, जवानी में शादी तक बर्दाश्त नहीं कर सकती थी।

कविता – माँ, यहां नहीं, प्लीज कमरे में चलो वहां बात करते हैं। यहां ठीक नहीं है।

ममता- आये हाये भाई के सामने नंगी घूम रही थी, तो ठीक था अब बात करना भी ठीक नहीं लग रहा। बेशर्म कहीं की राखी लण्ड पर नहीं कलाई पर बांधी जाती है। सारे जहां में भाई ही मिल था, रंगरेलियाँ मनाने। भाई बहन के पवित्र रिश्ते को कलंकित कर दिए हो दोनों। जो भाई तुम्हारे मंडप को सजता तुम, उसके साथ बिस्तर सजा ली। तुम दोनों को अंदाजा भी है, की क्या किया है तुम लोगों ने। सच कहते हैं, लड़की की जल्दी शादी कर देनी चाहिए, काम से कम मुंह तो काला नहीं करवाएगी। ठहर जा तेरी शादी इसी महीने कर दूंगी। अबसे तुम, अपने मामा के पास जाकर रहोगी, जब तक तुम्हारी शादी नही हो जाए। कम से कम अपने भाई के साथ ये काम तो नहीं करोगी, बेशर्म लड़की।

कविता- खुद तुमको शर्म आता है। जो हमको बेशर्म बोल रही हो।

ममता,” क्या कहा?

कविता- वही जो तुम सुनी हो। हमको शर्म मत सिखाओ। खुद तो अपने बेटे का लण्ड चूस रही थी। माँ होकर बेटे के साथ ऐसा रिश्ता तुम बना सकती हो, तो भाई बहन के बीच रिश्ता बन गया तो तुमको मिर्ची काहे लग गया। हम जय को बहुत चाहते हैं। और उससे ही शादी करेंगे। रही बात शादी की तुम को अंदाज़ नहीं था, कि हमारा उम्र कितना हो गया है। हमारी उम्र की लड़कियों के दो दो बच्चे हो गए हैं। और हमारे नसीब में ये सब तो दूर, ज़िंदगी की परेशानियां, ही लिखी थी। हर लड़की चाहती है समय से उसकी शादी हो, बच्चे हो। उसके कुछ अरमान होते हैं। पर हम तो घर की खातिर अपने अरमान भुला बैठे। ये भूल ही गए थे कि हम एक लड़की भी हैं। ना किसी से मिलना, ना किसी से बात करना। पिछले कितने सालों से यही कर रही थे हम। तुम भी स्वार्थी निकली, घर चलाने के चक्कर मे भूल गयी कि लड़की की शादी समय पर की जाती है। नहीं तो जवानी में कदम बहक जाते हैं। फिर जय ने हमको आखिर ये एहसास दिलाया कि हम एक लड़की भी हैं। जो खुद को जिम्मेदारियों में खो चुकी है। तुम खुद तो शादी 18 साल मे की थी, पर यहां तो 26 हो गया है। कब तक खुद को संभालते। बाहर किसी और के साथ ये सब करते तो तुम्हारा नाम होता क्या? अरे और बेइज़्ज़ती होता। और मुंह मत खुलवाओ हमारा। तुम क्या क्या गुल खिलाई हो, हमको सब पता है।

ममता अवाक थी,” तुम पगला गयी हो क्या? तुमको तो …. ये बोलकर वो कविता को मारने के लिए आगे बढ़ी। और दो थप्पड़ मारा। कविता के गाल लाल हो गए।

ममता- तुझ जैसी बेटी से अच्छा होता कि बांझन होती। ये दिन तो नहीं देखना पड़ता। तू तो एक नंबर की रंडी निकली, छिनाल कहीं की।

कविता गाल सहलाते हुए- जैसी माँ वैसी बेटी। तुम हमसे बड़ी रांड हो जो तीन तीन मर्दों से चुदवाई हो। पहले बाबूजी से फिर, उस हरामी चाचा से और अब अपने बेटे से। तुम तो एक मिशाल हो रंडीपन के इतिहास में।

ममता- चुप कर छिनाल, तुझे कुछ पता नहीं है। उसकी वजह कुछ और थी।

कविता- तुम जैसी औरत वजहें ढूंढती है। देखो हमको सब पता है। हमने ही तुमको और जय को खजुराहो भेजा था। क्योंकि वो तुमको पसंद करता था। तुम भी एक प्यासी विधवा थी। जय ने वहां तुम्हारे अंदर की दबी प्यास उजागर कर दी। तुम दोनों ने वहाँ मंदिर कम घूमे, और हनीमून ज्यादा मनाया है। तुम उसके साथ शादी कर चुकी हो, ये हमको पता है। हमको इससे कोई एतराज़ नहीं। लेकिन फिर हमें पता चला कि हर साल तुम गांव बहाने से क्यों जाती थी। उस हरामी शशिकांत चाचा से चुदवाने। कंचन ने तुम दोनों को देख लिया था, जिसकी खबर उसने हमको दी और हम जय को बता दिए। पर उसने तुमको ये बात तुमको चोदने के बाद बताई। क्योंकि वो तुमको हासिल नहीं पाना चाहता था। इतना अच्छा लड़का है वो।

ममता चुपचाप खड़ी थी। उसने अपनी ज़िंदगी में किसीके मुँह से इतने कड़े शब्द नहीं सुने थे। और आज अपनी ही बेटी उसको सब सुना रही थी, और ये सारी बातें, सच थी।

कविता- क्यों माँ, हम सच बोल रहे है ना? जब तुम ऐसी हो तो अपनी बेटी से क्या उम्मीद करती हो। हम तो स्वीकारते हैं, की जय के साथ हम चुदाई किये है। पर तुम तो पता नहीं किस किस का बिस्तर गरम की हो। हम इस घर का इज़्ज़त बाहर नहीं उछाले हैं। और तुम ही तो कहती हो कि बाहर, की बिरयानी खाने से अच्छा घर की दाल खाओ। और यहां तो शाही बिरयानी घर मे थी। किसी चीज़ का डर भी नहीं था। घर की चीज़ घर मे ही रहेगी।

ममता नज़रें चुरा रही थी। कविता उसके करीब आयी और बोली,” क्या हुआ शर्म आ रही है। शर्माओ मत, क्योंकि हम दोनों की किस्मत इस घर के मर्द के साथ जुड़ी हुई है। हम तुम्हारे और जय के रिश्ते को स्वीकारते हैं, बदले में तुमको भी इस रिश्ते को स्वीकारना होगा।

ममता – चुप हो जा बेशर्म लड़की, अपनी माँ से ऐसी बात करती हो। सौ रंडियाँ मरी होगी, तो तू पैदा हुई होगी। भोंसड़ीवाली शर्म को अपने भाई के लण्ड पर राखी पर छोड़ दी हो क्या। और उसे मारने के लिए फिर हाथ उठायी। इस बार कविता ने उसका हाथ रोक लिया।

कविता- बस बहुत हो गया। तबसे तुमको माँ बोल रहे हैं, इसलिए चढ़ रही हो। साली कुतिया, बेटे को मादरचोद बनाई हो। खुद को तो शर्म आती नही। और एक बात ज्यादा आग है ना तो तुम सड़क पर जाकर धंधा कर लो, क्योंकि हम तो जय के साथ ही रहेंगे उसके कमरे में।

ममता के अंदर आग लग गयी और वो चिल्ला कर बोली,” हम जय को बहुत प्यार करते हैं। हम दोनों शादी कर चुके हैं।

कविता- वो हमको प्यार करता है समझी। और उसने हमारी मांग भी भड़ी है। हम दोनों ही उसकी बीवियां हैं।

ममता- झूठ बोलती है हरामज़्यादी, बुरचोदी छिनरी कहीं की।

कविता- तुम तो सब अपना आंख से देखी हो, चुद्दक्कड़ बुढ़िया।

ममता- अरे भाईचोदी, बुर में आग लगी थी, तो भाई का लण्ड ही ले ली।

कविता- भाई का ही लिए हैं, ना कि तुम्हारे जैसे बेटे का। मादरचोद बना दी हो बेटे को। खूब पसंद है उसका लौड़ा। बुर तो पहले से ही भोंसड़ा होगा, कुआँ बनवाएगी क्या?

ममता- पसंद है तो, डायन कहीं की। और हम बुर का भोंसड़ा बनवाये या गाँड़ का गड्ढा। ये जय और हमारा मामला है।

कविता- डायन हम नहीं तुम हो। बेटे से पेलवती हो और खुद को सती सावित्री समझती है। हरामी कुत्ती साली।

ममता- अरे हराम की जनी तुम हो, हम नहीं।हम तो अपने बाप की पैदाइश हैं। तुम दोनों को तो पता भी नहीं है कि तुम्हारा बाप कौन है?

कविता- जा जा कुछ भी बक रही है।

ममता- जानना चाहती है, तुम दोनों शशिकांत की औलाद हो। तेरे बाप का तो खड़ा भी नहीं होता था। शशिकांत के साथ तेरी दादी ने हमको बच्चा पैदा करवाया। वो कंचन भी हमारी बेटी ही है। हम दोनों के तीन बच्चे हुए। माया ने कंचन को हमसे बचपन मे ही मांग लिया था। जिस शशिकांत को गाली देती है ना, उसीकी बेटी हो तुम। क्या हुआ? सांप सूंघ गया क्या? तुमलोगों ने साबित कर दिया कि हराम की औलाद, आखिर हरामी ही निकलती है। हो भले ही एक बाप के, पर हो तो हरामी ही ना। अब जिन बच्चों की नींव ही नाजायज रिश्ते पर पड़ी हो, वे तो ऐसी हरक़तें करेंगे ही।

कविता- कुछ भी मत बोल, अनाप शनाप बकती जा रही हो। वो हमारा बाप नहीं हो सकता। हमारा बाप अमरकांत झा हैं।

ममता को तब समझ आया कि वो क्या बोल गई, उसने सोचा कि उसे ये बात कविता को नहीं बतानी चाहिए थी। पर अब वो शब्द मुंह से निकल निकल चुके थे, और वापिस आ नहीं सकते थे।

तभी जय आ गया और बोला,” ये सब क्या चल रहा है? आपस मे लड़ाई बंद करो। चुपचाप होकर दोनों बैठ जाओ। ये बिल्लियों की तरह लड़ना बंद करो।”

कविता के मुंह से निकला,” देखो ना ये क्या बोल रही है?”

जय खुद शॉक में था,” माँ, सच बताओ। कह दो की ये सब झूठ है। तुम हमारी माँ हो और अमरकांत हमारे बाबूजी।”

ममता- हम तुम्हारी माँ हैं, पर अमरकांत नही शशीजी तुम दोनों के पिता हैं।

कविता- नहीं, उसने तो हमको, वहां से निकाल दिया था। कोई बाप ऐसा नहीं कर सकता।

ममता- 2.55 करोड़ का चेक भेज सकता है ना। तुम दोनों को वो बहुत याद करते हैं। गांव में लोगों को शक हो गया था, कि तुम दोनों उनके बच्चे हो। तुम दोनों को यहां भेजने के बाद भी, अपनी वसीयत में तुमलोगों को ही उत्तराधिकारी बनाये हैं।

कविता- अच्छा मतलब वो सब एक ड्रामा था। फिर भी हम अमरकांत झा को ही बाप मानेंगे। उस आदमी के प्रति अब हमारे दिल मे कोई इज़्ज़त नहीं।

जय- हम दोनों उसकी औलाद हैं। पर उससे ये सच्चाई नहीं बदलती की हम और कविता एक दूसरे से प्यार करते हैं। हमारे भूतकाल से हमारे वर्तमान पर कोई प्रभाव नहीं पर सकता। हम तुमको भी बहुत प्यार करते हैं ममता। तुम दोनों ही हमारे जीवन की सच्चाई हो।

जय दोनों के बीच बैठते हुए बोला,” ममता, तुम अब शशिकांत का चैप्टर यहीं बंद करो। तुम अब हमारी हो और कविता तुम भी। अबसे उस आदमी को कोई जिक्र नहीं होगा। हम तुम दोनों का बात सुनें हैं। माँ, कविता सब सच बोल रही है। इसको सजा मत दो, जो कुछ किया है, हम दोनों ने साथ मे किया है। हम ही इसकी जवानी को लूटे हैं। ये बेचारी तो, सोच सोचकर मरी जा रही थी। बाद में हम इसको बताए कि, प्यार तो अंधा होता है। जैसे तुम्हारा और हमारा है। हम तुम दोनों को बेहद चाहते हैं और तुम दोनों को हमेशा के लिए अपनी बनाकर रखना चाहते हैं।

ममता- कैसे होगा माँ बेटी, एक ही मर्द के साथ। ये अजीब है।

कविता- इन्हीं अजीब बातों में तो मज़ा है।

जय- सही बोल रही है, कविता। ममता तुम शुरू में भी झिझकी थी, हम दोनों के बीच जब खजुराहो में संबंध बने थे। अब इसको भी स्वीकार करो। देखो कविता में तुमको एक अच्छी बेटी के साथ साथ बहु भी मिलेगी। और हम तुम्हारे बेटे भी और जमाई भी। तुम्हारी नज़र में कविता से अछि लड़की नहीं हो सकती और हमसे अच्छा लड़का नहीं। क्यों ना हम इसी घर मे अपनी छोटी सी दुनिया बसा लें। जहां तुमको नाती पोते एक साथ मिले।

ममता- हमको अभी कुछ समझ नहीं आ रहा। हम अभी कुछ नहीं कह सकते। अब हमारा सर दर्द कर रहा है। हम आराम करने जा रहे हैं।

जय- कविता जाओ, अपनी सासू माँ का सर दबा दो।

ममता- उसकी कोई जरूरत नहीं है। और अभी हमने इसको अपनी बहू नहीं स्वीकार किया है। तो ये अभी हमारी बेटी ही है।

जय- ठीक है जैसा तुमको सही लगे। लेकिन उम्मीद है कि तुम हमारे प्यार को समझोगी।

ममता अपने कमरे में चली गयी। जय और कविता एक दूसरे की बाहों में बाहें डाले, जय के कमरे में चले गए। अब शायद इस घर मे पहले से कुछ नहीं था। कम से कम घर के सारे राज़ पर्दे से बाहर आ चुके थे।

ममता अपने कमरे में लेटी थी, तभी उसे एक चिर परिचित आवाज़ सुनाई दी। सामने उसका अक्स फिर खड़ा था। इस बार वो एक सुहागन की तरह सजी थी।

ममता- तुम फिर आ गयी?

” हाँ, ममता हम तो ऐसे ही आते हैं। जब भी तुम्हारे मन मे कोई द्वंद्व होगा, तुम हमको अपने सामने पाओगी। कैसी लग रही हूँ, इस लाल जोड़े में? अच्छी है ना। तुम खुद को भी तो ऐसे ही देखना चाहती हो। जय की सुहागन बन इस घर को नया चिराग देना चाहती हो।”

ममता- हां, सही कहा। पर कविता हमारी बेटी भी जय को प्यार करती है। ये अजीब लग रहा है हमको। हम माँ बेटी कैसे घर के एकलौते मर्द को अपना पति बना ले?

” हहम्मम्म, लेकिन इसमें हर्ज क्या है? जय तो तुमको दिलो जान से प्यार करता है। वो कविता को प्यार करता भी है, तो इसमें तुम्हारा कोई नुकसान नही है। क्योंकि कविता तुम्हारी इज़्ज़त करती है। वो तुम्हारे और जय के बीच कभी कोई दीवार नहीं बनेगी। ज़रा सोचो उसीने जय और तुमको खजुराहो भेजा और तुम दोनों करीब आये। कौन लड़की ऐसा करती है? याद है तुमको उस रात जब हम मिले थे, तो हजम सफेद कपड़ों में थे। पर आज इस लाल जोड़े में सिर्फ कविता की वजह से है। तुम सुहागन होकर भी सूनी मांग लेकर घूम रही हो। जय के नाम की सिंदूर क्यों नहीं लगाती हो? तुमको डर लगता था। पर अब इस घर में तुम ये कर पाओगी अगर तुम उन दोनों के रिश्ते को मंजूरी दे दो। दोनों तुमको बहुत खुश रखेंगे। और ये देखो।”

ममता के अक्स ने अपनी साड़ी पेट से उठायी तो, उसका पेट फूला हुआ था, जैसे सात आठ महीने का बच्चा हो। ममता वो देखी और पूछ उठी,” ये जय का बच्चा है।”

“ममता तुमने ठीक समझा। ये जय का बच्चा है, जो तुम्हारे पेट मे होगा। तुम दोनों के प्यार की निशानी। जय तुमको बहुत जल्दी फिर से माँ बना देगा, पर इस बार अपनी नहीं, बल्कि अपने बच्चे की। तुम भी तो यही चाहती हो। लेकिन इसके लिए तुमको कविता को समझाना होगा। और अगर तुम उनके रिश्ते को स्वीकार लोगों, तो फिर कविता इन दिनों में बहुत खयाल भी रखेगी। ये बच्चा तुम तीनों के रिश्ते के लिए अहम होगा। तुमने अगर ज़्यादा वक़्त लगाया तो, शायद तुम माँ ना बन पाओ। क्योंकि तुम्हारी उम्र भी ढल रही है। तुम चाहो तो, इसको इस साल हक़ीक़त में बदल सकती हो।”

ममता- पर…..

” पर वर क्या? तुम खुद सोचो कि इससे हसीन मौका अब नही आएगा। हा… हा.. हा”

और वो गायब हो गयी। ममता सोच में पड़ गयी।

” आखिर अगर बच्चे खुश हैं, तो इसीमें हम भी खुश हैं। वो दोनों हमेशा हमारे पास ही रहेंगे। अगर कविता की शादी दूसरे से हो जाएगी, और हम जय के साथ रहेंगे शुरू में तो ठीक रहेगा। पर हमारे मरने के बाद जय अकेला हो जाएगा। हम अपना सुख तो भोग लेंगे, पर जय की जवानी की प्यास अधूरी रह जायेगी। उधर कविता की भी चिंता लगी रहेगी। ये ठीक रहेगा अगर कविता जय की बीवी बैंकर इसी घर मे रहे, वो उसका खूब ख्याल रखेगी। दोनों के बीच प्यार भी गहरा है। हम माँ होकर उन दोनों के बीच की दीवार नहीं बन सकते। उन दोनों नहीं हजम तीनों को एक होकर इस घर में रहना होगा।”

ये सोच ममता की नज़र घड़ी पर गयी, इस वक़्त शाम के सात बजे रहे थे। वो करीब 6 घंटो से सो रही थी। तभी उसको बुर से कुछ रिसता हुआ प्रतीत हुआ। उसने छुवा तो देखा कि खून लगा था। उसकी माहवारी शुरू हो गयी थी। वो बाथरूम गयी, और पैंटी बदली। फिर पैड लगाया और साफ सुथरी पैंटी पहन ली। मन मे खुश थी कि उसकी माहवारी चल रही है, क्योंकि बहुत जल्द नौ महीनों के लिए बंद हो जाएगी।

वो बेधड़क जय के कमरे की ओर बढ़ रही थी।

जय और कविता कमरे में बैठे एक दूसरे से बातें कर रहे थे। कविता बोल रही थी,” तुम बहुत भाग्यशाली हो जो ममता दीदी का प्यार तुमको मिला। वो तुम्हारा बहुत ध्यान रखेगी। ऐसी औरतें बहुत कम होती हैं।”

ममता घुसते ही बोली,” तुम्हारे जैसी लड़की भी तो कम होती हैं, जो अपने होने वाले पति को एक अधेड़ महिला के साथ बाटने को तैयार हो। आजकल ऐसी लड़कियां कहाँ करती है!

जय और कविता खड़े हो गए,” माँ आओ ना। बैठो।”

ममता कविता के गाल पर हाथ फेरती हुई बोलती है,” अरे हमारी बच्ची, हमारा बात का बुरा मत मानना। हमने जो कहा था, गुस्से में। तुम दोनों अगर आपस में खुश हो तो एक माँ होने के नाते उसी में हमारी भी खुशी है।”

और आप जय साहब हम दोनों को संभाल लेंगे ना। दो बीवी में परेशान तो नहीं होंगे।”

कविता- मतलब?

जय- ममता मान गयी है, कविता। याहू…….. चाहे कोई मुझे जंगली कहे, केहनो दो जी कहता रहे…

ममता और कविता- हम प्यार के तूफानों में घिरे हैं हम क्या करें। जय ने दोनों माँ बेटी को दांये बाएं गले से लगा लिया। तीनों फिर ज़ोर से बोले,” याहू……”

तीनो खूब हँस रहे थे। जय के एक बगल उसकी माँ और दूसरी तरफ उसकी दीदी थी, जो कि अब उसकी प्रेमिकाएं बन चुकी थी।

जय ने ममता को होंठों पर चूमा फिर कविता को भी वैसे ही चूमा। फिर ममता ने उसके गाल पर चुम्मा लिया और फिर कविता ने।

जय- आज तुम दोनों ने हमको बहुत बड़ी खुशी दी है। ममता और कविता तुम दोनों हमारी बीवी हो। ममता हमको तुम्हारे बीते हुए कल में कोई दिलचस्पी नहीं है, तुमने जो भी किया वो सब बीत गया। अबसे तुम एक नई शुरुवात करोगी। इस घर की जिम्मेदारी तुम्हारी होगी। कविता, तुमको तो शुरू से ही, ममता और हमारे रिश्ते से कोई दिक्कत नहीं है। कल हमलोग नए घर देखने जाएंगे और घर फाइनल करने के बाद, हम तुमसे मंदिर में शादी करेंगे। और वहाँ, पर हम तीनों सुख से रहेंगे।”

कविता- हमको तो विश्वास ही नहीं हो रहा है कि तुम मान गयी हो माँ।

ममता- माँ नहीं, अबसे दीदी बुलाओ। अब हम दोनों माँ बेटी नहीं, बहनें हैं। वैसे भी जब बेटी जवान हो जाती है तो वो सहेली बन जाती है।

कविता- सच कहा दीदी। लेकिन जिस दिन शादी होगी उस दिन हमारी सासू माँ बनेंगी या माँ।

ममता- अपनी फूल सी बच्ची को विदाकर माँ का फर्ज पूरा करेंगे। फिर तुम्हारा स्वागत कर सासू माँ। और उसके बाद दोनों इसी घर की बहुएं बन कर रहेगी।

कविता- जय कहीं ये सपना तो नहीं ?

ममता- ये क्या कर रही हो? चलो शादी तक नाम से बुला लो, फिर इनका नाम कभी मत लेना। औरतों को अपने पति का नाम नहीं लेना चाहिए।

जय ने ठीक उसी वक़्त कविता के गाँड़ पर चिकोटी काट ली। कविता- इससशशश, बिट्ठु काहे काट लिए? आहह। कविता चूतड़ सहलाते हुए बोली।

जय- तुमको सपने से जगाने के लिए कविता दीदी।” फिर ममता की ओर मुड़ा और बोला,” दीदी की माँ और सासु माँ दोनों बनोगी, हमको दामाद नहीं बनाओगी।हमको भी ससुराल का मज़ा चाहिए ना।” जय मज़ाक में मुंह बनाकर बोला।

ममता हंसते हुए बोली,” अरे बेटाजी, आप तो सैयांजी और दामादजी दोनों हैं। लेकिन ससुराल का मज़ा तो साली हो तभी आता है।

जय- तुम हो ना। वैसे भी तुम दोनों माँ बेटी कम, और बहनें ज्यादा लगती हो।”

ममता- बातें खूब बनाते हैं, आप भी ना।आप कुछ घर लेने की बात कर रहे थे।

जय- हां हम और कविता वही देख रहे थे, लैपटॉप पर। हमदोनों ने एक घर देखा है। यहाँ से 12 कि मी दूर है। मेट्रो, हॉस्पिटल, मार्किट सब पास में हैं। पचासी लाख में मिल रहा है। कल हम तीनों देखने जाएंगे। वहां फिर कोई अच्छा दिन देख चले जायेंगे।

जय ने उन दोनों को अपने आस पास बिठाया। दोनों उससे चिपकी हुई थी। फिर उसने ममता को लैपटॉप पर वो घर दिखाया। ममता को भी घर पसंद आया।

ममता- पर आप सत्यप्रकाश से सलाह ले लेना। ये घर की बात है। और सत्य यहां बहुत दिनों से है।

जय- ठीक है।

ममता ने फिर घड़ी देखी तो शाम के 7 बज चुके थे। वो उठकर खाना पकाने जाने लेगी। तो जय ने पूछा,” कहां चली?

ममता- खाना पकाने।

जय- आज खाना बाहर से मंगवा लेते हैं। आज तो मस्ती की रात होगी। हम तीनों साथ रहेंगे और मज़े करेंगे।

ममता- हम एक बात बोलना चाहते हैं। भले ही हम दोनों माँ बेटी के बीच रिश्ते बदल गए हैं, पर अभी हम कविता के सामने नंगी होकर चुदाई नहीं कर पाएंगे। इसमें थोड़ा समय लगेगा। आखिर है तो वो हमारी बेटी ना। हम आपको निराश नहीं करना चाहते, आप हमारी स्थिति को समझिए। प्लीज हमको थोड़ा समय दीजिये।

जय- ये क्या कह रही हो तुम? अब तो सब साफ हो गया है। फिर तुमको क्या तकलीफ है।

कविता- जय माँ ठीक कह रही है। हम जानते हैं ये इतना आसान नहीं होगा, की एक माँ अपनी बेटी के सामने अपने ही बेटे से चुदवाए। ये रिश्ता बना ये तो ठीक है, पर अभी तीनों का एक साथ सामूहिक चुदाई में संलग्न होने में समय लगेगा। हम माँ की बात से सहमत हैं।

जय- ठीक है। तो तुम दोनों में से आज की रात हमारे साथ सोएगी। क्योंकि शादी तो तुम दोनों से किये हैं।

ममता ने कविता को उठाया और बोली,” आज की रात तो आपको अकेले सोना होगा क्योंकि, कविता की अभी ठीक से शादी नहीं हुई है आपके साथ। और हमको माहवारी आई है। आज की रात और कविता से शादी के दिन तक अब आपको अकेले रहना होगा।”

जय- ये क्या ज़ुल्म कर रही हो? दो दो बीवियां होते हुए अकेले सोना पड़ेगा।

ममता- कविता से दूर रहोगे कुछ दिन, तब तो आपको सुहागरात के दिन मज़ा आएगा।” कहकर ममता हंसी।

जय- लेकिन जब तुम नहीं रहोगी, तब तो हम इसको चोद लेंगे।

ममता- वो नहीं कर पाओगे, क्योंकि कविता कल से अपने मामा के पास रहेगी और अब शादी के दिन ही यहां आएगी। हम दोनों कुछ दिन वहां रहेंगी।

जय- पर मामा से क्या कहोगी? की तुम दोनों वहां क्यों रहने गयी हो? और शादी के बारे में तो उनको बताना ही पड़ेगा ना?

ममता- इसमें क्या बात है, क्या कोई बहन कुछ दिनों के लिए अपने भाई के यहां नहीं रह सकती? रही बात शादी की तो हम उसको समझ देंगे। और फिर कविता का कन्यादान भी उसीको करना पड़ेगा।

कविता- मामा कैसे मानेंगे माँ, इस रिश्ते के लिए। उनको भनक पड़ेगी तो पूरा भूकंप आया जाएगा। हमको नहीं लगता कि वो मंजूरी देंगे। और तुम तो कह रही हो कि उनसे हमारा कन्यादान करवाओगी। ये असंभव है।”

Please complete the required fields.




Leave a Comment

Scroll to Top