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क्या ये गलत है - Pariwarik Kamuk Chudai Ki Kahani

क्या ये गलत है? – Update 2 | Pariwarik Chudai Ki Kahani

जय की नींद तब खुली जब शाम के 6 बजे थे। वो जब अपने कमरे से बाहर निकला तब कविता हॉल में गुब्बारे लगा रही थी । वह एक हाफ टॉप और नीचे शलवार पहनी हुई थी। जय अपने दरवाजे पर खड़ा होकर सब देख रहा था। ममता उसकी मदद कर रही थी। ममता ने साड़ी पहन रखी थी जो कि हल्के पीले रंग की थी।जो कि कॉटन की थी।गर्मी का मौसम था इसीलिए उसने भी बस कंधों तक आनेवाली ब्लाउज पहनी हुई थी जिसमें उसकी काँखों के हल्के छोटे बाल साफ दिखाई दे रहे थे। वहां की चमड़ी भी सावली थी। कहने को वो हॉल था पर जगह ज़्यादा बड़ी नही थी। तभी ममता की नज़र अपने लाडले पर गयी।
ममता बोली – उठ गया तुम? जाओ जाके मूंह हाथ धोओ। कविता ने बहुत तैयारी की है तुम्हारे लिए।
कविता ने जय की ओर देखा और मुस्कुराई।
जय ने दोनों की ओर एक बार देखा और बाथरूम की ओर चल दिया। बाथरूम में घुसके उसने अपना लण्ड बाहर निकाला और मूतने लगा । तभी उसकी नज़र कविता की कच्छी पर गयी। जो उसने अभी थोड़ी देर पहले उतारी थी। कच्छी लाल रंग की थी जिसपे उजले रंग की छोटे फूल बने हुए थे। उसने जब देखा तो उसे छुए बिना ना रह सका, उसने झट से वो पैंटी उठा ली। उसे हाथों में मसला और नाक के करीब लाकर सूँघा। उसे सूंघने से उसके दिमाग पर वो असर पड़ा जैसे वियाग्रा खाने से लण्ड पर पड़ता है।
अपनी सगी बहन की पैंटी उसे वो सुकून दे रही थी जो उसे ब्लू फिल्म से भी नही मिल रही थी। उस पैंटी को उसने अपने लण्ड पर रख लिया और कविता के बुर के बारे में सोचने लगा। उसने अभी तक ब्लू फिल्मों में विदेशी चूतों को देख था पर कभी देशी बुर के दर्शन नहीं किये थे। जय तो बस कविता की पैंटी को ऐसे मसल रहा था जैसे कविता की बुर को ही मसल रहा था। अपने लण्ड को पैंटी की कोमल फैब्रिक पर रगड़ता हुआ ना जाने कब उसका मूठ निकल गया और उस पैंटी को सरोबार कर गया। जय को होश आया तब उसने पैंटी को वहीं गंदे कपड़ो के बीच घुसा दिया। और हाथ मूंह धोके बाहर आ गया। तब उसने कविता को देखा कि कविता केक पर कैंडल्स लगा रही थी। ममता किचन में खाना बना रही थी। वो अपने कमरे में जाके बैठ गया। करीब आधे घंटे बाद कविता और ममता ने जय को आवाज़ लगाई बाहर आने के लिए। पर वो बाहर नही आया। दोनों उसके कमरे में आई। और ममता बोली कि बेटा चल बाहर आ देख तो दीदी ने तेरे जन्मदिन की क्या क्या तैयारी की है। चल आजा ।
कविता बोली भाई आओ ना बाहर चलो केक काटते हैं। आज मेरे दोस्त मेरे भाई का जन्मदिन जो है।
आओ ना बाहर प्लीज भैया।
जय को अपने जन्मदिन से कुछ खास लगाव नहीं था। क्योंकि ये वही दिन था जिस दिन उसके बाबूजी की मृत्यु हुई थी।
उसनेअपनी माँ की ओर देखा और कहा, किस बात की खुशी मनाये हम माँ। आज का दिन शायद आप लोग भूल रहे हैं।इसी दिन मेरे बाबूजी मरे थे, और आपके भी कविता दीदी। मुझे इस दिन कोई खास खुशी नही होती। काश मेरे बाबूजी अभी होते तो और वो रोने लगा।जोर जोर से।
ममता की आंखों से तो आँशु की धाराएं बहने लगी। उसने अपने बेटे को सीने से लगा लिया और कविता भी उठकर बगल में रखे अपने बाप की फोटो को देखने लगी। उसकी आँखों से भी आंशु बह रहे थे। ममता फफक फफक कर रो पड़ी। कुछ बोलने चाहती थी पर बस इतना ही बोल पाई की …. तेरे बाबूजी……तेरे बाबूजी…….. फिर दौड़कर कमरे से बाहर भाग गई और हॉल में बैठ गयी ।

जय बोल उठा कि कविता दीदी तुम खुद बोलो की हम कैसे ये दिन की खुशी मनाये …. हा…. हा।। कविता कुछ बोले बिना अपने भाई को अपने सीने से लगा लिया। हमारे नन्हे भैया हम जानते हैं कि तुम और हम सब बाबूजी को कितना याद करते हैं। पर मेरी एक बात का जवाब दो अगर बाबूजी होते तो क्या वो आज तुम्हारा जन्मदिन नही मनाते। वो भी तो यही करते। और इस खुशी को हम पुराने दुःख से क्यों ढकने दे। ये छोटी खुशी में हम उस गम को भुला देंगे। तुम मेरे राजा भैया हो और बहादुर भी हो। बाबूजी की तरह मज़बूत बनो। आओ देखो मैंने और माँ ने तुम्हारे लिए क्या क्या किया है। चलो चलो।
जय अपनी बहन की चुचियों पर सर रखे हुए था। उसने तो जान बूझकर ये रोना धोना किया था ताकि अपनी बहन के करीब चिपक सके। और उसे ये मौका मिल गया था। उसने कविता की नंगी कमर को पकड़ रखा था उसके टॉप के अंदर घुसाके। फिर दोनों बाहर आये। तो देखा कि माँ भी संभल चुकी थी। जय ने ममता के पास जाके बोला कि आओ माँ केक काटते हैं।फिर जय ने केक पर पड़े कैंडल्स बुझाये। और केक काटने को हुआ तभी उसके मामा आ गए। अरे मेरे लिए तो रुको। तभी ममता बोली आइये भैया आइये ना। फिर सबने मिलके केक काटा और खाना खाया।
ममता और उसका भाई फिर बाहर कुर्सी पे बैठके बातें करने लगे। तभी कविता हाथ मे गिफ्ट लेके अपने भाई के पास पहुंची। कविता ने उसे एक स्मार्टफोन गिफ्ट किया । जय ने गिफ्ट तो ले लिया पर मन मे
कि असल गिफ्ट कब दोगी मेरी जान कविता।
कविता मुस्कुराके बाहर चली गयी।

रात के करीब 2 बज रहे थे। जय के मामा जा चुके थे। तभी प्यास की वजह से जय की नींद खुली। थोड़ी देर तो वो अलसा कर लेटा रहा पर जब बर्दाश्त नही हुआ तो उसे झक मारके उठना पड़ा। उसने कदमो को नींद में ही किसी तरह खींचते हुए किचन में घुसा । उसने फिर बिना बत्ती जलाये ही टटोलते हुए फ्रिज का दरवाजा खोला और पानी की बोतल निकालकर पीने लगा। वो अंधेरे में ही खड़ा था। तभी उसे लगा कि किचन में कोई आया है। अचानक आहट सुनने से उसकी नींद काफूर हो गयी। उसने महसूस किया कि आने वाले को उसकी कोई भनक नही है। पहले तो उसे लगा कि कोई चोर है पर जो आया था वो और कोई नहीं उसकी दीदी कविता थी। उसने फ्रिज से खीरा निकाला और बर्फ के टुकड़े और तेजी से बिना देखे अपने कमरे की ओर भागी। जय को लगा कि कुछ तो बात है। जय ने फौरन दरवाज़े पर जाकर देखा कविता सिर्फ ब्लैक पैंटी और हॉफ टॉप पिंक जो कि उसकी नाभि के ऊपर तक ही आ रही थी। कविता अपने कमरे तक पहुँच कर दाएं बाये देखा और कमरे में घुस गई। उसने सोचा कि उसे किसी ने नहीं देखा। जय ने सोचा कि आखिर इस हालत में कविता खीरा और बर्फ लेने क्यों आयी थी। ये जानने के लिए उसके पास एक ही रास्ता था। कविता का कमरा और जय का कमरा साथ मे ही थे और उन दोनों की खिड़की भी एक तरफ ही गली में खुलती थी। जय अपने कमरे की ओर भागा और अपनी खिड़की से कूदकर छज्जी पर खड़ा हुआ और सतर्क होकर कविता के कमरे की खिड़की तक पहुंच गया। खिड़की बंद नहीं थी क्योंकि गर्मी का मौसम था और उधर ही कूलर भी लगा था। जय ने अंदर झांक के देख तो नाईट बल्ब जल रही थी। कुछ समझ में नही आ रहा था। पर कुछ पल बाद उसकी आंखें अभयस्त हो गयी तो सब दिखाई देने लगा।अंदर कविता बिस्तर पर नंगी ही पड़ी हुई थी। और अपने मोबाइल पर ब्लू फिल्म देख रही थी। और वो खीरा जो वो लेके आयी थी उसे अपनी बुर में घुसा कर मूठ मार रही थी। उसने पहले 2 बर्फ के टुकड़े अपनी बुर में घुसा लिया और फिर खीरा घुसाया था। कविता ब्लू फिल्म देखते हुए मूठ मार रही थी। उसकी मुंह से आनंद की किलकारी फुट रही थी। और कुछ कुछ बड़बड़ा भी रही थी। उफ्फ्फ…… आआहह……… हहहम्ममम्म……. ईश श श श…… ये बुर हमको बहुत परेशान करती है….. पर मज़ा भी यही देती है ऊफ़्फ़फ़फ़। हाय ……
कविता अपने होंठों को दांतों में दबाके बुर के ऊपरी हिस्से को मसल भी रही थी। कविता ने मुंह से थूक निकाला और अपने बुर पर मल दी। और ब्लू फिल्म देखने लगी। ब्लू फिल्म में शायद हीरोइन अपनी गाँड़ मरवा रही थी। कविता ने ये देख तो उसने बर्फ का एक टुकड़ा अपनी सिकुड़ी हुई गाँड़ के छेद में घुसानी चाही। उसने थूक हाथ पर निकाला और गाँड़ के छेद पर मल ली। और बर्फ के टुकड़े को गाँड़ में घुसाने लगी। उसकी गाँड़ की छेद थूक की वजह से काफी गीली हो चुकी थी । लेकिन फिर भी बर्फ का टुकड़ा गाँड़ में घुसाने में उसे काफी मशक्कत करनी पड़ी। लेकिन घुसाके ही मानी। फिर बड़बड़ाई की पता नही ये हीरोइन कैसे गाँड़ में इतना बड़ा ले लेती हैं। लेकिन मज़ा बहुत आ रहा है और वो लेने में और भी मज़ा आएगा…. आआहह,,… ऊईई….
उधर बाहर से सारा नज़ारा जय देखकर पागल हो रहा था। अपनी सगी बहन को नंगा बिस्तर पर देख उसका लौड़ा फड़क कर खड़ा हो गया। वो वहीं खड़ा होकर कविता के निजी पलों को देखकर लौड़ा घिस रहा था। उसने मन में सोचा वाह मेरी दीदी तो मेरी ही जैसी कामुक निकली। क्या माल है कविता, बिल्कुल मस्त जवानी है। मेरी बहन हुई तो क्या है तो एक जवान लड़की, आखिर किसी ना किसी को तो जवानी की सौगात देगी ही, क्यों ना वो मैं ही बनू? तभी उसकी नज़र कविता पर पड़ी जो अचानक से मुड़ी तो उसकी नज़र भी जय पर पड़ी।

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