You dont have javascript enabled! Please enable it! क्या ये गलत है? – Update 13 | Pariwarik Chudai Ki Kahani - KamKatha
क्या ये गलत है - Pariwarik Kamuk Chudai Ki Kahani

क्या ये गलत है? – Update 13 | Pariwarik Chudai Ki Kahani

जय लेट गया, और कविता उसके चेहरे के दोनों तरफ टांगे रखके, उसके मुंह पर अपनी पहाड़ जैसे गाँड़ टिका दिया। जय की नाक कविता के गाँड़ के छेद और मुंह उसकी बुर पर टिक गए। जय ने कविता को अपने चूत्तर हल्के ऊपर उठाने का इशारा किया। कविता जैसे उठी, जय ने बोला अब अपनी
गाँड़ को हमारे मुंह पर रगड़ो। कविता बोली,” ठीक है, पर वजन तो ज़्यादा नही है। तुम जब गाँड़ में जीभ घसाके चूस रहे थे, तब बड़ा मजा आ रहा था।
जय ने उसकी गाँड़ में उंगली घुसा दी, ” अभी और मज़ा आएगा तुमको, जब गाँड़ हिला हिलाके रगड़ोगी। तुम्हारे बुर और गाँड़ को एक साथ मज़ा आएगा।
कविता ने फिर गाँड़ आगे पीछे हिला हिलाके जय के चेहरे में रगड़ने लगी। कविता को इसमें सच में बड़ा आनंद आ रहा था। जय के मुंह पर रिसती हुई बुर और भूरी गाँड़ भी टकड़ा रही थी। कविता के आनंद का ठिकाना ना था।
वो जोर ज़ोर से सीत्कारे मार रही थी। बुर की लंबी चिराई जब जय के नाक को रगड़ खाती हुई, उसके मुंह से टकराती तो जय उसे चूसने लगता। फिर गाँड़ की बारी आ जाती। जिसमे जय की उंगली पहले से घुसी थी, और जय उसके सामने आते ही उंगली निकाल देता और गाँड़ चूसने लगता। फिर जैसे ही गाँड़ पीछे होती तो उसमें उंगली घुसा देता। फिर बुर की चुसाई होती। कविता ये बड़े आराम से कर रही थी। उसे इसमें बहुत मज़ा जो आ रहा था। ऐसे ही दोनों आहें और सीत्कारें भरते हुए इस आसन में आनंद के गोतें लगा रहे थे। थोड़ी देर इस तरह चुसाई के बाद जय का लौड़ा कड़क हो उठा था, और कविता भी बेहद कामुक हो उठी थी।
जय ने कविता को उठने का इशारा किया, कविता अपने बालों को दोनों हाथों से उठाते हुए खड़ी हुई । उसकी आंखों में चुदने की प्यास साफ झलक रही थी।
जय – कविता दीदी, तुम सोफे पर झुक जाओ। हम तुम्हारे गाँड़ पर तेल लगाते हैं।
कविता- जो हुकुम मेरे आका। और अपनी गाँड़ को उठाके बाहर निकाली। उसने सोफे का किनारा पकड़ रखा था। जय ने फौरन तेल की बोतल लेकर उसकी गाँड़ और अपने लण्ड पर आधी बोतल खाली कर दी। जय ने खूब सारा तेल कविता की गाँड़ के छेद और बोतल के आगे का हिस्सा संकडा होने की वजह से उसमें घुसाके उसके अंदर डाल दिया। उसने लण्ड पर भी ढेर सारा तेल लगाया था। फिर उसने कविता की गाँड़ में एक साथ दो उंगलिया घुसा दी, ताकि तेल अंदर की त्वचा पर भी अच्छे से लग जाये। अंदर तेल लगने की वजह से जय की उंगलियां आराम से अंदर बाहर कर रही थी।
जय- तुमको दर्द तो नहीं हो रहा है?
कविता- नहीं, अभी नहीं हो रहा है।

जय ने तीसरी फिर चौथी उंगली घुसा दी। कविता को दर्द महसूस हुआ,” ऊईईईई माआआआ दर्द हो रहा है।
जय ने और तेल डाला, फिर धीरे से आगे पीछे करके तेल को गाँड़ के अंदर तक पहुंचाया। कविता की गाँड़ तब रिलैक्स हुई।
जय – अब तुम अपनी गाँड़ मरवाने के लिए तैयार हो, दीदी।
कविता- हां भाई, गाँड़ में तुम्हारी चारो उंगलियां हमको महसूस हो रही है। और दर्द भी ना के बराबर है। लगता है तुम्हारा लौड़ा अब गाँड़ में घुस जाएगा।
जय- तो तैयार रहो, दीदी, अब तक बुर की सवारी की थी लण्ड ने अब तुम्हारी गाँड़ की सवारी करेगा।
जय ने उंगलियां निकाल ली, तो कविता ने जय की ओर देखके बोला,” तुमने कहा था कि हमारी गाँड़ का टेस्ट तुमको बड़ा अच्छा लगता है। हम भी टेस्ट करे ले क्या?
जय- नेकी और पूछ पूछ, ये लो दीदी चखो अपनी गाँड़ का स्वाद। ताज़ी ताज़ी उंगलियाँ, तुम्हारी गाँड़ की भट्टी से।
कविता ने जय की एक उंगली चाटी, और जीभ पर उस टेस्ट को महसूस किया। कविता ने फिर दूसरी चखी, और इस तरह सब चाट गयी। कविता फिर बोली- गाँड़ का स्वाद इतना बुरा भी नही है। इसे चूसने में मज़ा आ रहा है।
जय- ये कुछ भी नहीं है, तुमको और मज़ा आएगा, जब तुमको इसकी आदत लग जायेगी। तुम बस किसी भी चीज़ में हिचकिचाना नहीं। जो भी करने का मन हो बोल देना।
फिर जय उसके गाँड़ पर लौड़ा को सेट कर दिया। ” तुम तैयार हो दीदी, घुसा दूं लौड़ा। जय बोला।
कविता- तैयार हूं डालो अब।

जय ने लौड़ा उसकी गाँड़ के प्रवेश द्वार पर रखके ज़ोर लगाया, तो सुपाडे का आधा हिस्सा ही घुसा। अभी सब ठीक था, कविता की गाँड़ की छेद जय के सुपाडे की आकार में चिपक कर खुल रही थी। जय ने फिर ज़ोर लगाया तो कविता की चीख इस बार दर्द के मारे फूट पड़ी। उसकी गाँड़ में जय का सुपाड़ा प्रवेश कर चुका था। पर वो चिल्लाए जा रही थी। ऊउईईई, ऊऊईईईईईईईई मा माआआआ हआईईईईई रे गाँड़ फट गईईईईई, उ उ ऊऊ हहदहम्ममम्म
जय उसकी पीठ को सहला रहा था, और उसे सांत्वना दी रहा था, ” घबराओ मत दीदी थोड़ी देर में ठीक हो जाएगा, बस थोड़ा बर्दाश्त करो।
कविता- बहुत दर्द हो रहा है, ऐसा लगता है गाँड़ फट गईईईईई है।
जय- अपनी गाँड़ को रिलैक्स करो, कसो मत, ढीला छोरो और सांस लो। कविता वैसा करने लगी जैसा जय बोल रहा था। थोड़ी देर बाद कविता को आराम मिला। जय ने पूछा- ठीक लग रहा है। कविता- हाँ, पहले से बेहतर अब ठीक है।
जय- देखो हम धीरे से पूरा लण्ड उतारेंगे, अब तुम्हारी गाँड़ में।
कविता- ठीक है, घुसाओ ना।

जय धीरे से प्रेशर बढ़ाता है, और धीरे से इंच भर उसकी गाँड़ में ठेलता है। कविता की गाँड़ की छेद, उसकी लण्ड की गोलाई के अनुसार ढल रही थी। इस बार उसे उतना दर्द नहीं महसूस हुआ। धीरे धीरे इंच दर इंच जय ने अपना लंड आखिरकार कविता की गाँड़ में उतार ही दिया। अब उसके आंड कविता की बुर से टकड़ा रहे थे। उसने कविता की गाँड़ में लगभग आठ इंच लंबी और तीन इंच मोटी जगह कब्ज़ा कर ली। जय अभी भी स्थिर था, वो हड़बड़ा नहीं रहा था। वो कविता के मूड में आने का वेट कर रहा था। कविता थोड़ी देर बाद पूरी तरीके से दर्दरहित होक मस्ती में आ गयी। उसने जय की ओर मुड़के बोला- जय अब तुम्हारा लण्ड गाँड़ से तालमेल बिठा चुका है। हमारे गाँड़ ने लण्ड को जगह दे दी है। तुम अब गाँड़ मारना शुरू करो।
जय- बिल्कुल दीदी, हम इसका वेट कर रहे थे कि कब तुम बोलोगी। आजके बाद देखना तुमको गाँड़ चुदाई में ही खूब मन लगेगा। तुम खुद गाँड़ मरवाने आओगी।
कविता- तो ठीक है, पर पहले गाँड़ मरवाने तो दो।
जय- ये लो। जय ने गलके हल्के धक्के लगाने शुरू किए। कविता आगे को भागी तो जय ने उसे पकड़ लिया, और खींच लिया। और फिर धक्के मारने लगा। कविता की गाँड़ जय के लण्ड को पूरा अंदर ले रही थी। कविता बीच बीच में, ऊफ़्फ़फ़, हाय ऊउईईई जैसी आवाज़ें निकाल रही थी। कविता को अब मस्ती पूरी तरह चढ़ गई थी। वो अब अपनी कमर पीछे करके धक्के ले रही थी। उसके चूत्तर भी खूब मटक रहे थे, जय के धक्कों से।
जय- अब बोलो दीदी खूब मजा आ रहा है ना, कैसा लग रहा है गाँड़ में अपने भाई का लौड़ा?
कविता- हमको पता नहीं था कि गाँड़ मरवाने में इतना मज़ा आता है, हमारे राजा भैया। क्या बात है, ऊफ़्फ़फ़?
जय- दरअसल गाँड़ में नर्व एन्डिंग्स होती है जिस वजह से गाँड़ बहुत सेंसिटिव होती है। इसलिए इसमें बुर चुदाई से भी ज़्यादा मज़ा आता है। तुमको इसीलिए अच्छा लग रहा है, हमारी रानी दीदी।
कविता- ओह्ह, अच्छा तुमको तो सब पता है। अपनी बहन की गाँड़ मारने का भी तो मज़ा दुगना होता है ना। कविता खिलखिलाकर बोली।
जय धक्के लगाते हुए बोला- वो तो है ही, तुमको भी तो मज़ा आ रहा है ना अपने छोटे भाई से गाँड़ मरवाने में।” उसकी आवाज़ में धक्के मारने की वजह से कंपन थी।

जय अब कविता के गाँड़ को पूरी रफ्तार से चोद रहा था। वो उसके चुतरो को कसके दोनों हाथों से भींच रहा था। कविता की चुच्चियाँ भी धक्कों के साथ ज़ोर से हिल रही थी।
जय- क्या मस्त चीज़ होती है, औरत की गाँड़ चलती है तो मर्दों को लुभाने का काम करती है और चुदती है तो बुर से भी ज्यादा मज़ा देती है। लण्ड को पूरे गिरफ्त में ले लेती है ये गाँड़ महारानी। हमको औरत का यही हिस्सा मस्त लगता है।
कविता- इसका मज़ा तो हर औरत को लेना चाहिए, आखिर इसमें इतना मजा जो आ रहा है।
जय- सही कहा कविता रानी, तुमको भी ये बहुत अच्छा लग रहा है। मर्दों को औरतों की गाँड़ मारने में मजा आता है और औरतों को मरवाने में।
कविता- ऊफ़्फ़फ़फ़, आआहह सही कह रहे हो भैया, उम्म्म्म्ममम्ममम्म हम लगता है झड़ने वाले हैं, कितना मज़ा आ रहा है, हाय 10 मिनट में ही झड़ जाऊंगी। आआहह ऊउईईई झाड़ गई रे ओह्ह।
जय- हां दीदी तुम्हारी गाँड़ भी बहुत कसी हुई है। हम भी ज़्यादा देर नही टिक पाएंगे। पर तुम्हारी गाँड़ को अच्छे से चोद के फैला देंगे। आज के बाद तुम अपनी गाँड़ की साइज बढ़ते हुए महसूस करोगी। दीदीssss हम झड़ने वाले हैं, आआहह…. मुंह इधर करो अपना, तुमको मूठ पीना है ना।
कवीता- हाँ, भाई हमको मूठ पिलाओ अपना, तुम्हारा ताज़ा ताज़ा मूठ। हमको वही पीना है। अपनी प्यासी बहन को पिला दो ना।” कहते हुए कविता घुटनो पर बैठ गयी।और अपना मुंह खोलके बैठ गयी, जैसे कोई कुतिया खाने के लिए मुंह खोलके जीभ बाहर लटकाती है। जय ने कविता के खुले मुंह मे उसकी गाँड़ से निकला लण्ड दे दिया। कविता को जैसे इसीकी प्रतीक्षा थी। उसने लण्ड को बिना छुए, पहले उसे खूब चूसा, जिसमे उसकी गाँड़ का स्वाद भरा रस लगा हुआ था। उसे खुद की गाँड़ का रस खूब अच्छा लग रहा था। जय के लण्ड पर लगा उसकी गाँड़ का रस गाड़ियों में इस्तेमाल होनेवाले ग्रीज़ की तरह मुलायम और चिपचिपा था। कविता उसे पूरा मज़ा लेके चुस रही थी। जय ने देखा उसकी बहन बिल्कुल पोर्नस्टार्स की तरह बेहिचक, चूस रही है तो, उसने कविता के चेहरे पर ही मूठ निकाल दिया। जय ,” आआहह आ गया दीदी ये लो, बुझाओ अपनी प्यास।”

कविता के खूबसूरत चेहरे पर, जय के लण्ड से निकल सफेद चिपचिपा मूठ पहले उसकी आँखों और पलको पर जा गिरा। अगला उसके होंठो पर, फिर, उसके गालों पर ढेर सारा मूठ चिपक गया। जय की जाँघे कांप रही थी। कविता उसके लण्ड को चूसकर उसमे बचा मूठ निकाल ली। फिर उसके लण्ड से अपने चेहरे पर फैला मूठ, पूरा रगड़ने लगी।
जय – ये क्या कर रही हो?
कविता- हम इसको पहले पूरे चेहरे पर मलेंगे, फिर इकठा करके पी लेंगे। चेहरे की खूबसूरती बढ़ती है मूठ लगाने से और पीकर भी।
जय हँसकर- अच्छा है, फिर तो पी जाओ।
कविता ने पूरा मूठ मलने के बाद इकठ्ठा किया और जितना मिला उसे मुंह मे रख ली। कविता अपना मुंह खोलके जय को दिखाने लगी। फिर अपने मुंह से बुलबुले बनाने लगी।
जय- तुम तो बिल्कुल पोर्नस्टार जैसे कर रही हो।
कविता एक घूंट में पूरा पी गयी, और बोली,” हम किसी से कम थोड़े ही हैं। और खिलखिलाकर हंसने लगी।
जय- चल अपनी गाँड़ तो दिखाओ की क्या हाल है उसका?
कविता पीछे मुड़ गयी, और चूतड़ फैलाके दिखाई,” हमको तो दिख नहीं रहा है, कैसी लग रही है हमारी चुदी हुई गाँड़, जय।
जय- वाह…… कितनी खूबसूरत लग रही है। चुदके पूरी खुल गयी है। अंदर का गुलाबी हिस्सा अभी दिख रहा है। हमारे लण्ड ने इसकी खूब खबर ले ली, 10 मिनट में ही। जय उसकी गाँड़ में उंगली घुसाके बोला।
कविता- एक तस्वीर ले लो, अच्छा रहेगा।
जय ने फौरन कैमरे से उसकी गाँड़ की तस्वीर ले ली। उसने कविता की गाँड़ को फैलाने को कहा, फिर कभी करवट लेके तो कभी पेट के बल लेटके तस्वीर निकली।
जय ने फिर कविता को बोला- खाना लगा दो। दीदी भूख लगी है।
कविता उठके बोली- अभी लगा देती हूँ। फिर बैंक भी जाना है, इस ढाई करोड़ को जमा भी तो करना है।
कविता गाँड़ मटकाते हुए, खाना लगाने चली गयी।

 

Please complete the required fields.




Leave a Comment

Scroll to Top