अध्याय ५९: नायक, शिर्के और शेट्टी मिलन -2
(अध्याय ५८ से आगे )
दृश्य ४:
रजनी और मधुजी ने टीवी पर मेहुल का लंड देखा तो उनकी आँखें खुली रह गयीं. सिद्धार्थ से बीस ही था. और मोटाई भी थी.
मधुजी: “इस माह मिलन समारोह में इसका उद्घाटन होना है. मैं मेहुल और सिद्धार्थ से एक साथ चुदने की योजना बना रही हूँ. लम्बे मोटे दो दो लौड़े चूत और गाँड खंगालेंगे तो क्या आनंद आएगा.”
रजनी: “वचन दे, तू इससे चुदने के बाद मेरे ही पास भेजेगी.”
मधुजी: “उसे ये सुझाव अवश्य दे दूँगी और स्मिता से भी कहलवा दूँगी।”
नीलम ने निर्देशक की भूमिका में फिर घोषणा की कि ये चरण समाप्त हुआ है और कुछ देर के विश्राम के बाद अगले चरण में गाँड मारने का कार्यक्रम चलेगा. ये सुनकर सबकी आँखों में चमक आ गई. महक और श्रेया उठकर सबके लिए पेग बना लायीं और फिर बाथरूम में जाकर सफाई करके लौट आयीं.
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पवन, समीर और विक्रम एक ओर खड़े होकर बातें रहे थे.
पवन: “मैं तो गाँव का रहने वाला हूँ. मुझे इस प्रकार आयोजित ढंग से चुदाई इत्यादि में उतना आनंद नहीं आता। श्रेया अत्यधिक सुंदर है पर इस प्रकार स्वचालित खिलौनों के समान इन खेलों में आनंद नहीं आता.”
विक्रम कुछ सोचते हुए बोला, “आपकी बात सही है, पर किसी भी अन्य रूप में अव्यवस्था सी हो जाएगी.”
“जोड़े बनाने तक ठीक है, पर उन्हें क्या और कितना करना है ये तो उनके ही ऊपर छोड़ देना चाहिए न?”
“हम्म्म” समीर ने सोचते हुए कहा. “इस विषय में अवश्य विचार किया जा सकता है. इस चरण के बाद ही वैसा करना सम्भव होगा.”
“ठीक है, मैं स्मिता से बात करता हूँ.”
“अच्छा होगा कि इसे सबके सामने ही प्रस्तावित किया जाये.”
“ठीक है.” ये कहकर सब अपने पेग पीने में व्यस्त हो गए. कुछ समय में उन्होंने सबका ध्यान अपनी ओर खींचा.
“हमारा ये विचार है कि जोड़े बनाने का कार्य तो जैसे स्मिता और वर्षा कर रही हैं, उसे उसी प्रकार से चलने दिया जाये. परन्तु वो किस क्रम में क्या करना चाहते हैं ये उनके ही ऊपर छोड़ दिया जाये.”
सबने इसके लिए स्वीकृति दी तो समीर, पवन और विक्रम को अचरज हुआ,
फिर वर्षा बोली, “ये अच्छा सुझाव है. मेरा एक और भी सुझाव है.” उसने स्मिता आँख मारते हुए कहा. “जैसे आप मंत्रणा कर रहे थे, वैसे ही हमने भी किया. हम दोनों परिवारों की पर्चियां बनाएँगे। पुरुषों की पर्चियाँ ग्लास में डालेंगे और महिलाओं की कटोरी में. महिलाएं दूसरे परिवार के पुरुषों की पर्ची चुनेंगी.”
“पर इसमें तो एक पुरुष बच जायेगा.”
“हाँ, उस बेचारे का क्या करेंगे?” स्मिता और वर्षा ने खिलखिलाते हुए कहा. फिर हंसी पर लगाम लगाई और बताया, “उस पुरुष को किसी भी जोड़े के साथ जाने की अनुमति होगी.”
“वैरी नाइस आइडिया.” विक्रम ने सराहना में कहा.
“यस, वैरी नाइस.” सबने साथ दिया.
“तो अगले चरण में ऐसा करेंगे. पर अब मेरी गाँड कुलबुला रही है.” स्मिता ने राहुल और जयंत का हाथ पकड़ते हुए कहा.
और इसी के साथ सभी जोड़े अपने पूर्व स्थान पर चले गए.
मोहन तो पहले से ही वर्षा पर आसक्त था तो उसका मन तो बल्लियों उछल रहा था कि उसे अपनी स्वप्न सुंदरी की गाँड मारने का सुअवसर प्राप्त हो ही गया था. वर्षा मन ही मन मुस्कुरा रही थी और जानती थी कि मोहन के मन में क्या है.
उसे स्वयं भी मोहन के प्रति आकर्षण था और उसे इस बात का दुःख था कि अंजलि का विवाह उससे न हो पाया था. पर उसके दामाद राहुल ने अब उसे अपनी आकांक्षा पूरी न होने का खेद दूर कर दिया था. सच तो ये था कि राहुल सम्भवतः मोहन से कई गुना अच्छा दामाद सिद्ध हुआ था. जिस प्रकार से उसने अपने माता पिता के साथ घर और व्यवसाय को संभाला था वो मोहन करने में सक्षम था या नहीं इसमें संदेह था. राहुल की गाँव का लालन पालन उनके अपने कृषि व्यापार में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा था. और फिर उसकी चुदाई की अपार क्षमता भी उसके पक्ष में ही बैठती थी.
“जब से मैंने चुदाई सीखी है, कोई ही दिन रहा होगा जब आपको देखा हो और चोदने का मन न किया हो. गाँड मारने का तो मेरा दिवा स्वप्न जैसा हो गया था.”
“और अगर मैं नहीं दिखती थी तो भूल जाते थे?” वर्षा ने उसे छेड़ा.
“भूलता तो नहीं था पर पीछे अवश्य धकेल देता था. मम्मी, श्रेया और चारु ही मुझे सम्पूर्ण रूप से बाँधे रखती थीं.”
वर्षा ने पासा फेँका, “स्नेहा और सुजाता को क्यों भूल रहे हो?”
मोहन ने उसे सकपका कर देखा तो वर्षा ने उसके लंड को पकड़ा और हथेली में सहलाते हुए बोली, “इतना समझती हूँ, अगर श्रेया इसमें संलिप्त है तो उसका परिवार भी होगा ही. पर चिंता न करो मुझे कोई आपत्ति नहीं है. मुझे गाँड मरवाने में बहुत आनंद आता है. परिवार के चारों पुरुषों में से कोई भी जब चाहे मेरी गाँड मार सकता है. इट इज़ ऑल्वेज़ ओपन फॉर ए गुड़ फक!” ये कहकर वर्ष हंस दी.
“तो फिर आपको निराशा नहीं होगी. मुझे भी गाँड मारने में अधिक आनंद आता है.” मोहन ने कहा. वर्षा बिस्तर पर जाकर घोड़ी के आसन में आ गई और पीछे मुड़कर बोली, “मुझे आज तक ऐसा कोई पुरुष नहीं मिला जिसे गाँड मारने में आनंद न आता हो. पर मुझे प्रेम से गाँड मारने वाले अच्छे नहीं लगते. तुम समझ गए न?” वर्षा ने अपनी गाँड मटकाते हुए कहा.
गोल पलंग के बीच की टेबल से मोहन ने जैल की ट्यूब की और किंचित मात्रा में वर्षा की गाँड में लगाई. और उतनी ही अपने लंड पर. अगर वर्षा को निर्मम गाँड मराई सुहाती थी तो इसका उपयोग केवल आरम्भिक प्रवेश के ही लिए आवश्यक था. घोड़ी अपनी गाँड हिला रही थी और घोड़ा सवारी के लिए उद्द्यत.
मेहुल सुलभा के साथ आगे बढ़ा तो उसका लौड़ा फनफना रहा था. उसे मध्यम आयु की स्त्रियों को चोदने में अत्यधिक आनंद आता था. इसका एक कारण ये भी था कि उसके लम्बे मोटे लौड़े को देखकर उसकी आयु की लड़कियों की गाँड फट जाती थी. पर अधिक आयु की महिलाएं उसके लौड़े से चुदने में कोई झिझक नहीं दिखाती थीं. और अब तो उसकी सूची में ऐसी कई वरिष्ठ स्त्रियाँ जुडी हुई थीं. उसकी प्रिंसिपल मैरी और मैरी की माँ मरियम तो उसके लौड़े पर इतनी आसक्त थीं कि उनके वश में होता तो उसे अपने ही घर में रोक लेतीं।
आज उसका संगम ऐसी ही एक भरे शरीर की अत्यधिक मादक महिला से होने वाला था. उसकी पहली चुदाई में ही मेहुल को उसकी वासना की प्रबलता का अनुमान हो गया था. अब गाँड मारने में और अधिक आनंद आने वाला था. सुलभा भी गाँड मरवाने में दक्ष थी. और उसकी ही चीखों ने आज इन तीन परिवारों को मिलाया था. और मेहुल की इच्छा थी कि आज फिर वैसी ही चीखें फिर निकलें.
लगभग यही कामना सुलभा के भी मन में थी, पर उसे ज्ञात था कि उसकी चीखें निकालने के लिए मेहुल अकेला पर्याप्त नहीं था. और इसीलिए अगले किसी चरण में उसे इसका अवसर मिलने की संभावना थी. इन तीन दिनों में तो अवश्य ऐसा अवसर आना ही था. गोल पलंग पर गाँड ऊँची करके वो घोड़ी बनी और मेहुल ने कूद कर मध्य टेबल से जैल लिया और अपने भाई के ही समान लेश मात्र ही उपयोग में लाया. अब वो भी मोहन के साथ गाँड मारने के लिए उपयुक्त स्थिति में आ गया.
पवन का लौड़ा श्रेया की गाँड देखकर ही टनटना चुका था. अंजलि के सिवाय उसने अब तक कम आयु की किसी और लड़की की गाँड नहीं मारी थी. कुसुम की बेटी काम्या की गाँड में उसके लौड़े को जाने का अब तक अवसर नहीं मिला था. परिवार में मात्र वही एक था जिसके लंड ने काम्या की गाँड को भेदा न था. अब उसे अपनी बहू की आयु की एक और महिला की गाँड मारने का सुअवसर मिल रहा था और इसके लिए वो अपनी पत्नी का कृतज्ञ था जिसकी उस रात की चीखों ने ये नए द्वार खोले थे. और अगर उनका अनुमान सही था तो अब उसके लंड को ऐसी कई गाण्डों को मारने का भविष्य में सुयोग मिलेगा.
श्रेया पवन के भारी हथियार से प्रभावित थी और अब उसे अपनी गाँड में अपने देवर मेहुल की तुलना के लंड को लेने की ललक थी. उसने भी सुलभा के साथ वाले स्थान में घोड़ी का आसन बनाया. पवन ने ट्यूब से उसकी गाँड को भर दिया, क्योंकि वो नहीं चाहता था कि श्रेया को किसी भी प्रकार का कष्ट या पीड़ा हो. अपने लंड पर भी लेप करने के बाद वो श्रेया की गाँड मारने की स्थिति में आ गया.
जो स्थिति पवन की थी, लगभग वही समीर की थी. हालाँकि उसे काम्या की गाँड मारने का आनंद प्राप्त हो चुका था और अब महक, एक अविवाहित (चाहे कितनी भी चुदी हो) कन्या, की गाँड मारने का सुख मिलने वाला था. और इस आभास ने उसके लौड़े को तान कर लोहा बना दिया था.
महक ने उनकी इस भावना को समझा और उन्हें चूमकर कहा, “आप अपने समय और ढँग से मारिये मेरी गाँड! मुझे आपसे चुदवा कर बहुत आनंद आया है. तो इस बार भी ऐसा ही होगा, मुझे विश्वास है.” महक ने अपना आसन लिया और समीर के हाथों में ट्यूब आई और महक की गाँड को उसने जैल से पूरा भर दिया और अपने लंड पर भी जैल लगाकर स्मिता की घोषणा की प्रतीक्षा करने लगा.
विक्रम के लिए इस आयु की लड़की को चोदना कोई नया अनुभव नहीं था. समुदाय से जुड़ने वाली लगभग सभी लड़कियों को वो चोद चुका था. पर जैसी मनुष्य की प्रवत्ति होती है, एक और नई कन्या की गाँड मारने का सुख अलौकिक होता है. इसी कारण उसके लंड में भी नए रक्त का संचार हो चला था. अंजलि ने गोल पलंग पर अपना स्थान लिया और अपने पिता को देखा जो अब उसकी सखी महक की गाँड मारने को लालायित थे. दोनों की आँखों में एक मूक स्वीकृति हुई और विक्रम की उँगलियों को समीर ने अपनी बेटी की गाँड में जैल का सम्पादन करने का दृश्य देखा और फिर विक्रम को अपने लंड पर भी जैल लगाते हुए देखा. इस बार दोनों पिताओं ने एक दूसरे को देखकर मुस्कुराया और स्मिता के बुलावे के लिए ठहर गए.
अंत में स्मिता जो इस पूरे व्यवस्था की अग्रणी थी राहुल और जयंत के साथ अपने स्थान पर पहुंची. अन्य सबको ओर देखकर उसे हंसी से आ गयी. सारे लौड़े गाँड भेदने के लिए उत्सुक थे. बस उसके संकेत के लिए रुके हुए थे.
“आप सब आगे बढ़ो, मुझे इन दोनों लौंड़ों को चूसने में कुछ समय लगेगा.” उसने कहा ही था कि कमरे में जैसे चक्रवात आ गया. इससे पहले कि उसका कथन समाप्त होता मोहन का लौड़ा वर्षा की गाँड भेदकर अंदर जा चुका था. लगभग यही स्थिति सुलभा की गाँड की भी थी, पर मेहुल के लंड की गोलाई और लम्बाई के कारण वो इतनी बार मारी हुई गाँड को एक बार में नहीं जीत सका. समीर और विक्रम ने अपने मित्र की बेटियों की गाँड में लंड डालने में पूरे संयम का परिचय दिया.
स्मिता ने पहले जयंत और फिर राहुल के लंड को चूसा पर वो इसमें समय व्यर्थ नहीं करना चाहती थी. उसने घोड़ी का आसन बनाया और जयंत को गाँड में आमंत्रित किया. एक कुशल संचालिका होने के कारण राहुल को अपने आगे बुलाया और उसके लंड को चूसने लगी. जब तक जयंत के लंड ने उसकी गाँड में अपनी यात्रा पूरी की, तब तक अभी सन्नारियों की गाँड में लौड़े अपना स्थान बना चुके थे और धक्कों की प्रतियोगिता आरम्भ हो चुकी थी.
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“वाह! क्या दृश्य है! काश अगर उस पलंग के ऊपर भी कैमरा होता तो और भी अच्छा होता! लोकेश से कहूँगी मैं.” मधुजी ने टीवी पर दिख रही गाँड मारो प्रतियोगिता पर अपने विचार रखे.
“सच कह रही है मधु, और मुझे तो ये देखकर उस समय की स्मृति हो रही है जब मैं स्मिता की आयु की थी. अपने पति और बेटों से चुदवाने का वो सुख आज भी नहीं भूलता.” रजनी ने आह भरी.
“अरे कौन सी हम अभी कम हैं? देख कैसे मोटे लम्बे वाले इन लड़कों से चुदवा रही हैं अब भी. हाँ, पहले जैसी शक्ति नहीं है, पर इनकी चुदाई में पूरा साथ देती हैं अभी भी, क्यों बच्चों?”
“जी मैम,”” “जी दादी जी” के साथ उन युवा लड़कों ने उनकी बात पर सहमति जताई.
उन सबका ध्यान अब टीवी पर ही था. लड़कों के लौड़े अंगड़ाई लेने लगे थे, पर उन्हें पता था कि अभी उनकी सेवा के आदेश में कुछ देर है.
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“आह!, वाह, ऊई माँ!” महिलाओं के स्वरों के बीच पुरुषों के “हम्म्फ उफ्फ आह” मिलकर नया संगीत बना रहे थे. वर्षा और मोहन की चुदाई में एक अधीरता थी. मोहन वर्षा की गाँड पूरी शक्ति के साथ मार रहा था जैसी इच्छा वर्षा ने की थी, और मेहुल तो इसमें पारंगत था तो सुलभा की चीखें निकलने लगी थीं, हालाँकि अब तक वो उस सीमा तक नहीं पहुंची थीं जिसने इस मिलन में योगदान किया था. पवन, समीर और विक्रम श्रेया, महक और अंजलि की गाँड अपनी विशिष्ट शैली में मार रहे थे जिसमे स्फूर्ति और कोमलता का संतुलित मिश्रण था. श्रेया, महक और अंजलि इसका आनंद उठाते हुए अनुभवी पुरुषों के सान्निध्य का लाभ ले रही थीं. और स्मिता तो जयंत के लंड को अपनी गाँड में चलते हुए राहुल के लंड को चूसते हुए स्वर्ग का अनुभव कर रही थी.
कुछ देर समान्य, कुछ देर तीव्र चुदाई का कार्यक्रम चल रहा था. अपने पौरुष की छाप छोड़ने की कोई लालसा नहीं थी, बल्कि अपने साथी की संतुष्टि ही एकमात्र लक्ष्य थी. और उनके इस परिश्रम का फल प्राप्त करने वाली स्त्रियाँ भी अपनी गाँड को कभी ढीला तो कभी संकुचित करते हुए अपने पुरुष साथियों के आनंद को बढ़ाने का प्रयास कर रही थीं.
आसन बदले गए पर गाँड मारने का कार्यक्रम निरंतर चलता रहा. बस स्मिता ने एक परिवर्तन किया. उसने जयंत को लिटाया और अपनी चूत में उसके लंड को लेकर राहुल को गाँड मारने का न्योता दिया. और जब राहुल के लंड ने जयंत के साथ उसकी चुदाई आरम्भ की तो स्मिता स्वर्ग के साक्षात दर्शन करने में सफल हुई. जयंत और राहुल की जोड़ी वर्षा, सुलभा, अंजलि और कुसुम को ये सुख कई बार प्रदान कर चुके थे. उनका ऐसा अनूठा तालमेल था कि स्मिता के आनंद में कई गुना वृद्धि हो गई. और उसकी चीखें उस कमरे में अपने सुख की पराकाष्ठा की घोषणा करने लगीं. नायक परिवार में ये सामान्य ध्वनि थी, पर शेट्टियों ने उसे इतना मुखर होते हुए कम ही सुना था.
कई मिनटों तक इस प्रकार से रण चलता रहा. भिन्न भिन्न आसनों में गाँड मारने का ये प्रकरण चलता रहा. कुछ बार महिलाएं ऊपर चढ़कर गाँड मरवाते हुए दिखाई पड़ीं तो कुछ बार गोद में बैठकर. स्मिता भी अनेक आसनों में अपनी चूत और गाँड में जयंत और राहुल के लौड़े बदल बदल कर चुदवाती रही. अंततः इसका समापन होना ही था. और एक एक करके सभी झड़ते गए और एक दूसरे के पास लेट गए. हाँफते हुए पुरुष और थरथराती हुई महिलाएं अपनी साँसे संभालते रहे. कुछ देर यूँ ही लेटे रहने के बाद सब उठकर खड़े हुए और बाथरूम का उपयोग करने के लिए चले गए.
उसके बाद वहाँ उपस्थित सोफे पर बैठ गए. कुछ समय सुस्ताने के बाद सबने स्वयं अपनी रूचि का पेग बनाया. कुछ ने बियर ली तो महिलाओं ने वाइन चुनी. कुछ देर की शांति के बाद समीर ने ही चुप्पी तोड़ी.
“समझ नहीं आ रहा कि क्या कहूँ. इतने वर्षों से हम पड़ोसी हैं और अचानक एक ही सप्ताह में इस प्रकार से सम्भोग में लिप्त हो गए हैं. दोनों परिवारों में ये रहस्य गुप्त रहा ये एक अचम्भा ही है.”
“हाँ. उस रात अगर मेरी पत्नी इतना न चीखती, तो आज भी ये राज ही रहता.” पवन ने हंसकर कहा.
“आप दोनों ने उस दिन जितनी निर्ममता दिखाई थी कोई भी होती यूँ ही चीखती. बड़े आये मुझे दोष देने वाले!” सुलभा ने मुँह बनाकर बोला।
“अरे तुझे कौन दोष दे रहा है. तुझे तो आभार दिखा रहे हैं. देख हममें सो किसी को भी इस राज के खुलने का दुःख है. सब तेरे ऋणी हैं. क्यों मैं सही कह रहा हूँ न?” पवन के पूछने पर सबने सहमति सुलभा का चेहरा खिल उठा.
समीर अब गंभीर हो गया.
“अगर मेरा संदेह सही है तो राणा परिवार भी हमारी जीवन शैली अपनाता है? अन्यथा महक का विवाह असीम से कैसे तय हुआ?”
विक्रम और स्मिता ने एक दूसरे को देख.
विक्रम: “हाँ. पर इस विषय में हम कल बात करेंगे. अभी हम इस समूह तक ही सीमित रहेंगे.”
श्रेया: “जी, अंकल. पापा जी ठीक कह रहे हैं. वैसे मेरे परिवार में भी यही चलन है. पर इसे कल के लिए रहने दीजिये.”
पवन और समीर ने एक दूसरे को देखा और समझ गए कि कल उनकी शंकाओं का निवारण हो जायेगा. बात को अधिक न खींचते हुए समीर ने वर्षा को देखा.
“अब क्या प्लान है?”
वर्षा ने स्मिता को देखा और फिर पुरुषों की पर्चियों का गिलास और महिलाओं की कटोरी आगे कर दी.
“ये.”
सबके चेहरों पर मुस्कुराहट आ गई. वर्षा आगे बढ़ी और उसने कटोरी में से एक पर्ची निकाली और फिर दूसरे हाथ से गिलास में से एक. उन्हें खोला और चुप रही. सबके ह्रदय धड़क रहे थे. फिर उसने पुरुष वाली पर्ची लौटाई और दूसरी निकाली.
सुलभा और विक्रम.
सबने इसका स्वागत किया और विक्रम जाकर सुलभा के पास बैठ गया. पर सुलभा खड़ी हो गई और उसने जाकर अगली दो पर्चियाँ निकालीं.
श्रेया और राहुल ये कहकर वो अपने स्थान पर जा बैठी और श्रेया ने आकर अगली पर्चियाँ निकालीं.
स्मिता और पवन. स्मिता उठी और उसने अगली पर्चियाँ निकालीं.
अंजलि और मोहन। अंजलि ने अगली पर्ची निकाली।
महक और जयंत. अब बिना कहे ही अगला जोड़ा बन गया था.
वर्षा और मेहुल. समीर छूट गया था और अब उसे किस जोड़े के साथ जाना था ये निर्णय लेना था.
उसने श्रेया और स्मिता को देखा. फिर सोचा कि स्मिता पहले ही दुहरी चुदाई का आनंद उठा चुकी है और श्रेया के सौंदर्य ने उसका निर्णय सरल कर दिया.
श्रेया और राहुल, उसने घोषणा की और उनकी ओर चल दिया.
स्मिता खड़ी हुई और बोली.
“इस बार कोई बंधन नहीं है. जिसको जैसे मन चाहे वैसे चुदाई करे. जितनी देर तक चाहे तब तक चुदाई करे. ये आज रात्रि का अंतिम सत्र है. इसके बाद हम सोने जायेंगे. और यहाँ भी जो जिसके साथ चाहे जा सकता है. किसी को कोई आपत्ति?”
फिर उसने पुरुषों को सम्बोधित किया, “आप जिसके साथ जाना चाहें उसका नाम अपने नाम की पर्ची पर अभी लिख दीजिये. मैं, वर्षा और सुलभा देखेंगी कि कोई छूट न जाये. कहीं ऐसा न हो कि सारे वोट श्रेया, महक और अंजलि को ही मिल जाएँ और हम तीनों रात भर बस इनकी चुदाई की चीखें ही सुनते रहें.”
सब हंस पड़े पर अपनी नाम की पर्ची पर नाम लिख दिए. वर्षा, सुलभा और स्मिता ने एक ओर बैठकर उनका सत्यापन किया और कुछ परिवर्तन भी किये. उनका अनुमान सही था. तीनों युवतियों को अधिक वोट मिले थे जिन्हें उनकी माँ या सास को हस्तांतरित कर दिया गया. तीनों ये करते हुए खिलखिला रही थीं. एक वोट सुलभा को हस्तांतरित किया और फिर सूची बंद कर दी गई.
लौटने पर सबकी आँखें उनकी ओर ही थीं.
“पहले अब का खेल खेलते हैं. उसके बाद पर्ची खोलेंगे. ओके?” वर्षा ने उत्सुक दर्शकों को बताया.
सारे जोड़े अब अपने साथी के साथ सोफे पर ही बैठे रहे. अब कोई शीघ्रता नहीं थी. जिसका जब मन करना था तब वो जाकर चुदाई कर सकता था. एक बहुत ही आत्मीय वातावरण था.
सुलभा ने पहल की और वो विक्रम के सामने बैठी और उसके लंड को कुछ देर सहलाने के बाद चूसने लगी. श्रेया राहुल और समीर के लौड़े सहला रही थी और वो दोनों उसकी चुचियाँ दबा रहे थे. समीर की ऊँगली भी श्रेया की चूत से खेल रही थी. स्मिता ने पवन के लंड को कुछ देर तक सहलाया और फिर वहीँ झुककर उसे मुँह में ले लिया. अंजलि ने मोहन के कान में कुछ कहा जिसे सुनकर उसका लंड तन गया. महक जयंत के साथ उठी और गोल पलंग पर चली गई जहाँ उन दोनों ने बिना किसी अवरोध चुदाई आरम्भ कर दी. वर्षा मेहुल के लंड से अपने दामाद के लंड की तुलना कर रही थी और उसे अपनी गाँड में लेकर अपनी इच्छा पूरी करने का मन बना चुकी थी.
अंजलि मोहन को लेकर जब पलंग पर पहुंची तब भी मोहन के कानों में अंजलि की बात गूंज रही थी. “अगर अपने मुझे अवसर दिया होता तो मैं आपकी पत्नी बनने की प्रबल इच्छा रखती थी. पर अब राहुल मुझे तन मन से जीत चुके हैं. आज मैं अपने उस स्वप्न को पूरा करना चाहती हूँ, केवल एक बार. पर अब मेरा सब कुछ राहुल का ही है. आप समझ रहे हैं न?”
मोहन को एक बार समुदाय से जुड़ने की हानि का अनुमान हुआ पर श्रेया किसी भी तुलना में अंजलि से कम न थी. और उसने भी इसे एक बार के संसर्ग को मान कर समाप्त किया.
धीरे धीरे जोड़े पलंग पर चले गए और विभिन्न आसनों में रात्रि की सामूहिक चुदाई का ये अंतिम चरण भी आरम्भ हो गया.
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वहीँ मधुजी के कमरे में भी चुदाई का अंतिम चरण आरम्भ हो गया था. मधुजी और रजनी दोनों की चूत और गाँड में लौड़े थे और एक लंड उनके मुँह में कुछ समय के लिए आता और चला जाता. दोनों की चुदाई करने वाले लड़के बदलते रहे और वो वरिष्ठ और वयोवृद्ध महिलाओं ने उनसे चुदवाने में कोई कमी न की. उनके मुँह, चूत और गाँड में वीर्य भरता तो वो उसे अपनी सखी से बाँट लेतीं। चूत और गाँड को उनकी सखी चूस कर खाली करती और दोनों उसे मिल बाँट कर पी लेतीं। उनकी चुदवाने की सहनशक्ति अपार थी. जब पाँचों लड़के ध्वस्त हो गए तब भी उन दोनों ने एक दूसरे की चूत को चाट और चूस कर ही विश्राम लिया.
अब वो लेटी हुई थीं. मधुजी ने समुदाय के नियमों में कुछ वृद्धि करने का निर्णय लिया. प्रबंधन समिति में इन पर विचार करने के पश्चात इस माह के मिलन में इसकी घोषणा की जाएगी. उन्हें विश्वास थे कि उनके सुझाव को सर्वसम्मति से पारित कर दिया जायेगा.
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अगले दिन सुबह आठ बजे के लगभग धीरे धीरे एक एक कमरा खुला और उनसे सब बाहर निकलने लगे. सब हल्के वस्त्र पहने हुए थे. मोहन सुलभा का हाथ थामे हुए था. श्रेया जयंत के साथ बाहर निकली. कुछ समय में समीर और स्मिता हँसते हुए आये और अंजलि मेहुल की बाँह पकड़े हुए थी. महक के दोनों ओर पिता पुत्र पवन और राहुल थे और महक का चेहरा खिला हुआ था. विक्रम अपनी बेटी को संतुष्ट देखकर वर्षा के साथ बैठक में आ गया. सब एक ओर बैठे और सुबह का नाश्ते पर जाने की योजना बनी.
अपने कमरों में जाकर सबने उचित वस्त्र पहने और रेस्ट्राँ में चले गए. वैसे आज उनका दोपहर का भोजन रिसोर्ट के स्वामी लोकेश की माता जी मधुजी के साथ था. वहाँ वो मिलीं और उन्होंने उन्हें फिर आमंत्रित किया. उनके साथ एक और वृद्धा थी जिसका परिचय मधुजी ने रजनी नाम से कराया. नाश्ता करने के बाद सब अपने आवास में लौटे.
पवन और समीर में एक मूक संकेत हुआ. जब सब सामान्य रूप से बैठ गए तो पवन ने बोलना आरम्भ किया.
“मैं गाँव का रहने वाला हूँ और सीधी बात करता हूँ.” उसने चारों ओर देखा.
“अब आप मुझे बताइये कि हम सब को यहाँ किस उद्देश्य से आमंत्रित किया था. अगर दो परिवारों को ही मिलाना था तो हमारे घर ही इतने बड़े हैं कि यहाँ आने का औचित्य नहीं था. अन्य अतिथियों को मिलकर भी यही लगा कि ये रिसोर्ट किसी विशेष प्रयोजन के लिए बनाया गया है. क्या आप किसी संस्था या समाज का हिस्सा हैं जो हमारी जीवन शैली को अपनाया हुआ है? और क्या आप चाहते हैं कि हम भी उसमें जुड़ें?”
कुछ समय के लिए कमरे में सन्नाटा छा गया. अचानक स्मिता का फोन बजा और उसने देखा कि मधुजी का कॉल है. उसने उठाया और मधुजी ने कहा, “बता दो, और नियम भी बता दो कि इसे पूर्ण रूप से गुप्त रखना है.”
“जी”
स्मिता ने विक्रम को देखा और कहा, “मधुजी का निर्देश है कि इन्हें सब बता दिया जाये.” फिर वर्षा को देखकर बोली, “पर आपको ये वचन देना होगा कि इसे पूर्णतया गुप्त रखेंगी. इसी में हम सबको भलाई है.”
वर्षा ने वचन दिया और सुलभा ने भी उसका साथ दिया. विक्रम ने बताना आरम्भ किया. लगभग आधे घण्टे तक वो समुदाय के नियम, संगठन इत्यादि के विषय में बताता रहा.
“परन्तु, इसमें कौन कौन है, ये मैं नहीं बता सकता. इसका निर्णय समिति ही करेगी या आपको आपके उद्घाटन के समय ही पता चलेगा.”
कुछ देर की शांति बाद विक्रम ने पूछा, “आपका क्या विचार है, समीर और वर्षा?”
समीर और वर्षा ने कुछ देर विचार किया और अपने परिवार के सदस्यों से संकेत में पूछा. सबकी सहमति लग रही थी.
“हम जुड़ना चाहेंगे.”
“वेरी गुड़. ग्रेट न्यूज़.” स्मिता ने कहा.
“पर एक बात और है जो आपको बताना आवश्यक है.” वर्षा ने काँपते स्वर में कहा.
“क्या?” स्मिता ने पूछा.
“हमारे परिवार में हमारे सिवाय भी चार और सदस्य हैं. संबंधी नहीं हैं, पर उन्हें हम परिवार ही मानते हैं.”
“कौन?”
“कुसुम, संतोष, काम्या और कमलेश.”
“ओह!” श्रेया के मुँह से निकला, “क्या वो भी?”
“हाँ.”
स्मिता कुछ देर तक चिंतन करती रही. उन्हें तत्काल रूप से तो नहीं जोड़ सकते, और सम्भवतः बाद में भी नहीं. पर उनके रहने से आपकी सदस्यता बाधित नहीं होना चाहिए. वैसे इस विषय में भोजन के समय मधुजी से भी पूछ लेंगे.”
“ठीक है.”
भोजन के समय मधुजी ने उनका समुदाय में स्वागत किया। रजनी ने भी उनके निर्णय पर उन्हें बधाई दी. कुसुम के परिवार के विषय में जो स्मिता ने कहा था उसे ही माना गया. पर एक वर्ष के समापन पर इस पर पुनर्विचार करने का आश्वासन भी दिया गया. इस बीच मेहुल कुछ समय के लिए सिद्धार्थ, रवि और विलास से मिल लिया. उसने सिद्धार्थ से ढाँपे शब्दों में उसके लौड़े के आकर के विषय में पूछा और उसका नंबर लिया और कहा कि उसके पास एक प्रस्ताव है जिसके विषय में वो घर लौटकर बात करेंगे.
इसके बाद सब अपने आवास पर लौट गए. अब उनके मन में एक उन्मुक्तता थी. और सबसे बड़ी बात.
अभी रिसोर्ट में दो दिन शेष थे.
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क्रमशः
1402400