You dont have javascript enabled! Please enable it! कैसे कैसे परिवार – Update 51 | Erotic Incest Family Story - KamKatha
कैसे कैसे परिवार - Erotic Family Sex Story

कैसे कैसे परिवार – Update 51 | Erotic Incest Family Story

अध्याय ५१जीवन के गाँव में शालिनी
*************************

दृश्य २: जीवन के गाँव में शालिनी:

“भाई मुझे तो लगता है की शालिनीजी हमारी समधन बनने के लिए उत्सुक और सहमत हैं?” बलवंत ने दूसरा पेग समाप्त करते हुए कहा.

“क्योंकि, अब मैं चाहूँगी कि आप सब देखें और होने वाले समधीजी मेरी गांड मारकर मुझे अपने गुट में सम्मिलित करें.” शालिनी ने कहा तो सब ने आनंद से चिल्लाया और फिर तालियाँ बजाईं.

और इन सबके बीच में शालिनी गांड मटकाती हुई कमरे के बीच में जाकर खड़ी हो गई और बलवंत को ऊँगली के संकेत से बुलाया. दर्शकों ने अपने लिए एक और पेग बनाया.

************************

अब आगे:

जीवन ने गीता से कहा, “जाओ, जाकर उसकी सहायता कर दो.”

गीता को जीवन का अभिप्राय समझ आ गया और उसने निर्मला को भी बुला लिया. निर्मला ने बलवंत के लंड पर धावा बोला तो गीता ने शालिनी को बिस्तर पर घोड़ी बनाकर उसकी गाँड से खेलना आरम्भ किया. कुछ देर यूँ ही छेड़ने के बाद उसने जीवन को संकेत किया तो जीवन ने एक ओर रखी तेल की शीशी उसे लाकर दे दी.

जीवन: “मेरे कहने का अर्थ कुछ और था.”

गीता: “चिंता न करो. अपने काम से काम रखो.”

इससे पहले कि जीवन उत्तर देता गीता शालिनी की गाँड पर अपनी जीभ घुमाने लगी और फिर आँखों से जीवन को देखा. जीवन मुस्कुराया और सिर हिलाता हुआ हट कर अपने पोतों के पास जा खड़ा हुआ.

“दादा जी , आपने दादी के लिए मस्त आइटम ढूँढा है. आपको मानना पड़ेगा.”

“नहीं, ऐसा कुछ नहीं है. मानो मेरी झोली में आ गिरी है. न जाने मुझे लगता है कि ये मेरी स्वर्गीय पत्नी और उसके स्वर्गीय पति के आशीर्वाद से ही हुआ है. पलक झपकते ही हम यहाँ तक पहुंच गए. अन्यथा ऐसा कैसे सम्भव है?”

“हाँ, दादा जी, ये हो सकता है.” असीम ने कहा, फिर कुछ सोचकर बोला, “निर्मला नानी की विशेष डबलिंग करने का मन है. मम्मी को भी वैसे चोदे हुए बहुत दिन हो गए हैं.”

जीवन ने घूरकर उन दोनों को देखा, “जो भी करना नाना लोगों के सहमति से करना. नानियाँ तो तुम्हें कुछ मना नहीं करने वालीं, पर इन सब की सहमति भी ले लेना.”

कुमार: “आपका अर्थ है कि हम अन्य नानियों की भी विशेष डबलिंग कर सकते हैं?” उसके चेहरे पर प्रसन्नता छा गई.

जीवन: “तुम क्या सोचते हो निर्मला के देखने के बाद ये दोनों रुकने वाली हैं? और गीता नानी को तो उनकी सामने चोदना।”

कुमार: “दादा जी, यू आर ग्रेट. मैं सुशील नाना से पूछ कर आता हूँ.”

असीम: “अभी संयम रख, उधर देख नई दादी की गाँड को गीता नानी कैसे चाट रही हैं.”

सबका ध्यान उस ओर ही चला गया.

गीता बहुत मन लगाकर शालिनी की गाँड चाट रही थी. शालिनी आहें भरे जा रही थी. निर्मला ने बलवंत के लौड़े को अच्छे से चाटकर उसे चिकना और कठोर कर दिया था. गाँड मारने के लिए लौड़े का अधिकतम कठोरता पाना अनिवार्य होता है. गाँड में जीभ डाल डाल कर गीता ने भी शालिनी की गाँड को अपने पति के लौड़े के लिए उपयुक्त बना दिया था. फिर उसने तेल लिया और शालिनी की खुली गाँड में डाल दिया. शालिनी की गाँड बंद होने लगी तो कुछ तेल बाहर निकल आया जिसे गीता ने उँगलियों से फिर गाँड में डाल दिया. उसके हाथों पर लगे तेल को उसने अपने पति के लंड पर लगाने के पहले उसे चूमा.

तेल लगाकर अपनी पति को देखते हुए बोली, “अच्छे से गाँड मारना समधन जी की. मेरा और हम सब का सम्मान बनाये रखना.”

“उसे कभी भी कम नहीं होने दूँगा, भागवान.” बलवंत ने गर्व से कहा.

तभी जीवन आगे आकर शालिनी के सामने आ खड़े हुए. उन्होंने शालिनी के सिर को उठाया और आँखों में आँखें डालकर कहा, “हम जिस सम्मान की बात कर रहे हैं वो ये है कि……” उसने देखा बलवंत अपने लंड को शालिनी की गाँड पर रख चुका है, “…. गाँड मारने में कोई कोताही और कमी नहीं होनी चाहिए. इन सबकी गाँड जब पहली बार मारी गई थी तब ये युवा लड़कियाँ थीं और गाँड भी कोरी थीं. पर हमने कोई दया नहीं की थी.”

शालिनी की आँखों में उतपन्न हो रहे वासना और भय के मिलेजुले भाव देखते हुए उसने आगे कहा, “और न आज ही करने वाले हैं. पर आपकी गाँड खुली हुई है तो आपको उतना कष्ट नहीं होगा.”

बलवंत का लंड अब शालिनी की गाँड में अग्रसर हो चुका था. गीता ने जीवन के पास खड़े होते हुए उसे झिड़का.

“क्यों डरा रहे हो बेचारी को. गाँड मरवाना आता है इन्हें और बड़े आनंद के साथ मरवाएँगी. हैं न समधन जी.”

अब गाँड में लौड़ा हो तो कोई क्या ही बोल सकता है. शालिनी ने स्वीकार किया तो गीता ने बलवंत को हरी झंडी दिखा दी. शालिनी को बलवंत का लंड बाहर निकलता हुआ अनुभव हुआ और फिर उसका शरीर एक झटके के साथ आगे की ओर चला गया. बलवंत के लंड ने अपना आधा लक्ष्य एक धक्के में प्राप्त कर लिया था. शालिनी की गाँड में एक तीव्र जलन हुई और उसकी आँखों में आँसू आ गए. वो पीछे को हुई ही थी कि फिर आगे धकेल दी गई. इस बार उसकी गाँड में मानो आग लग गई. वो चीखने को हुई तो उसके खुले मुँह पर किसी ने हाथ रख दिया. कोई उसकी पीठ भी सहला रहा था.

“बस हो गया. पूरा लंड अंदर चला गया है. बस अब कुछ ही देर में पीड़ा भी कम हो जाएगी. परन्तु हमारी यही परम्परा है और आज आप भी उसकी भागीदार हैं.”

शालिनी को जीवन की बातें सुनाई तो दे रही थीं पर उसके कानों में सीटियाँ भी बज रही थीं. आँसुओं ने उसके गलों को गीला कर दिया था. उसने सिर उठाकर जीवन को देखते हुए मुस्कुराने का असफल प्रयत्न किया. जीवन ने उसके आँसू पोंछे.

“अब मेरा यहाँ रुकना ठीक नहीं होगा. गीता और निर्मला आपकी सहायता करेंगी.” ये कहकर जीवन हट गया. वो स्वयं भी शालिनी की होने वाली दुर्दशा से आहत होने वाला था. परन्तु उन सबका एक नियम था तो उसे तोड़ना उसके लिए सम्भव न था.

असीम ने उसे एक पेग दिया, “रिलैक्स दादू. दादी सम्भाल लेंगी. अपन व्यथित न हों.”

जीवन ने डबडबाई आँखों से उसे देखा और सिर हिला दिया. अन्य सभी जीवन को देख रहे थे. बलवंत के मन में कुछ दया आने लगी तो निर्मला ने उसे चेताया कि वो नियम के विरुद्ध नहीं जा सकता. जीवन हट कर ऐसे स्थान पर चला गया जहाँ बलवंत उसे देख न सके. बलवंत ने एक गहरी श्वास भरी और अपने लंड को देखा जो शालिनी की गाँड में खो चुका था. अब इस चरण को पूरा करने का आव्हान शालिनी की गाँड कर रही थी.

बलवंत को बलिष्ठ शरीर के ही अनुपात में लंड भी प्रकृति ने दान किया था. और उसके उपयोग की क्षमता भी दी थी. उसे गाँड मारने से अत्यन्त प्रेम था पर जीवन के समान उसके गाँड मारने का ढँग भी निर्ममता से भरा हुआ था. शालिनी अगर सुशील, कँवल या जस्सी को चुनती तो सम्भवतः उसकी गाँड में भूचाल उस तीव्रता से न आता जितना अब आने वाला था. स्त्रियाँ एक ओर से श्वास रोके देख रही थीं. और दूसरी ओर से पुरुषगण. जीवन देखने में असमर्थ था पर उसके पोते पूर्ण रूप से इस क्रीड़ा को देख रहे थे. वे दोनों भी निर्दयता से चुदाई करते थे और उनके नीचे से निकली हुई स्त्री उनके इस रूप से या तो सदा के लिए उनसे दूर हो जाती थी, या उनकी चुदाई की आसक्त. ऐसी महिलाएं उन्हें निरंतर बुलाती रहती थीं और दोनों भाई समय समय पर उनकी इच्छा भी पूरी करते थे.

बलवंत ने अपने लंड को धीमी गति से शालिनी की गाँड में चलाना आरम्भ किया. शालिनी कुछ आश्वस्त हुई कि उसकी गाँड का विनाश नहीं होगा. मन में ये भाव आते ही उसकी गाँड स्वतः ही कुछ ढीली हो गई और बलवंत का कार्य सरल हो गया. एक स्थिर वृद्धि के साथ उसने गति बढ़ाई पर इसका आभास शालिनी को नहीं हुआ क्योंकि उसका मन और तन दोनों शांत थे. बेचारी को प्रलय के पूर्व की शांति छल रही थी. उसकी गाँड खुलते हुए बलवंत के आक्रांता लौड़े को समाहित करने में स्वयं को समर्थ मान रही थी. बलवंत भी उसे कुछ और समय इस भुलावे में रहने देना चाहता था. उसका पूरा ध्यान इस समय उसके लंड और शालिनी के गाँड के संगमस्थल पर केंद्रित था.

जिस प्रकार से वो अपने लंड को उस गहरी अँधेरी खाई में लुप्त होते और फिर बाहर आते देख रहा था उसे अपने परममित्र और संबंधी जीवन के लिए एक प्रसन्नता का भाव था. अगर जो शालिनी और जीवन में मध्य में चल रहा था वो फलीभूत हुआ तो उन सबको अत्यंत संतुष्टि होगी. और इसके हेतु शालिनी की गाँड नियमानुसार मारकर उसे जीवन के लिए प्रस्तुत करना उसका कर्तव्य था. खुलती गाँड, मन में हर्ष की भावना के कारण शालिनी सोच कि इस गाँड मरवानी हो तो डरना किस बात का. बलवंत ने अब गियर बदलने का निर्णय लिया और एक बार जीवन को ढूँढा नहीं तो उसके मन को शांति मिली.

अपने पूरे लौड़े को बाहर निकालकर वो ठहर गया. लंड का टोपा अब गाँड के छेद पर जब चुदाई आरम्भ हुई थी उसी अवस्था में था. उसने शालिनी की कमर पर हाथ रखकर उसे थोड़ा आगे झुकाया. फिर लंड को एक दो बार बहुत धीमे से अंदर बाहर किया और फिर एक शक्तिशाली धक्के के साथ पूरा एक बार में गाँड में पेल दिया. समधन का परिवार में जुड़ने का अनुष्ठान आरम्भ हुआ. शालिनी की एक तीखी चीख ने कमरे को हिला दिया. असीम और कुमार ने अपने दादा के हाथों को पकड़कर उन्हें कुछ भी करने से रोक लिया. जीवन की आँखों में भी आँसू थे जो शालिनी की आँखों से बहते आँसुओं के साथ भावनात्मक रूप से जुड़ रहे थे.

बलवंत अब न तो रुकने वाला था और न ही किसी भी प्रकार की दया दिखाने वाला था. शालिनी की चीखें उपस्थित स्त्रियों को भी दहला रही थीं, परन्तु वो स्वयं इस कर्मकाण्ड की भुक्तभोगी थीं. और जानती थीं कि शालिनी का मन अब से निरंतर इस प्रकार से गाँड मरवाने के लिए उत्सुक रहेगा. बलवंत गाँड में पूरी शक्ति के साथ लंड पेले जा रहा था. शालिनी की चीखें अब घुट गयी थीं. गाँड में जलन और पीड़ा कम होने लगी थी. बलवंत अभी भी किसी प्रकार से उस पर कोई ममता नहीं दिखा रहा था. उसका लंड विद्युत गति के साथ शालिनी की गाँड में आतंक मचाये हुए था. बलवंत इस नयी गाँड मारकर बहुत प्रसन्न था. बहुत दिनों बाद उसे एक नई गांड का आनंद जो मिला था.

अन्य पुरुष बलवंत की शक्तिशाली चुदाई को देखकर उससे प्रभावित थे. वो वर्षों से बलवंत की चुदाई की भीषणता और तीव्रता देख रहे थे. परन्तु आज ऐसा लगता था कि इस बलवंत में किसी की आत्मा प्रवेश कर गईं हो. एक क्षण के लिए भी उसके धक्कों में कोई कमी नहीं आई थी. चुदाई के खेल में जीवन और बलवंत इस गुट के प्रतिष्ठित खिलाड़ी थे. उनकी पत्नियाँ भी उनसे सहवास में अत्यंत सुख पाती थीं. ऐसा न था कि वे किसी भी प्रकार से कम थे, परन्तु उनमे वो निर्दयता का आभाव था जो कभी कभी स्त्रियों को रास आता है.

बलवंत के कूल्हे जिस गति से चल रहे थे वो विद्युत् को भी मात देने का प्रयास कर रहे थे. हर धक्के में बलवंत पूरा लंड अंदर डालता और लगभग पूरा ही बाहर निकालता था. इस गति में वो कैसे इतना सुचारु रूप से ये कर पा रहा था ये विस्मय का विषय था. शालिनी की गाँड अब पूर्ण रूप से खुलकर उसके लंड को झेल रही थी. शालिनी के मुंह से अब केवल उत्साह देने वाले शब्द फूट फुटकर निकल रहे थे. धक्कों की भीषणता के कारण उसका शरीर इतना झूल रहा था कि कुछ भी बोलना असम्भव था. पर उसके मन ने अवश्य ये प्रतिज्ञा ले ली थी कि वो इस प्रकार की चुदाई अंतिम बार नहीं कर रही है. अगर जीवन के बारे में बताई हुई बातें सही थीं तो उसकी इस प्रकार की नियमित चुदाई की सम्भावनाएँ अनंत थीं.

अपने पति के चेहरे पर पड़ते बल और भिंचते हुए जबड़ों के गीता को चेता दिया कि वो अब झड़ने के निकट है. वो जाकर उसकी पीठ सहलाने लगी जिससे कि वो कुछ शांत होकर आगे की चुदाई करे. उसके इस कार्य से बलवंत कुछ शांत हुआ और उसकी गति में कुछ कमी आ गई. हालाँकि उसने लंड के आघात की लम्बाई और गहराई को कम न किया. इस कारण शालिनी अब बोलने की स्थिति में आ गई.

“आह, समधीजी. सच में आपने तो मेरी गाँड फाड़ ही दी. पर अब खुल गई है तो हर दिन यूँ ही मरवाया करुँगी. मेरा बेटा और पोता भी अच्छी गाँड मारते हैं, पर बड़े प्रेम से. उन्हें समझाऊँगी कि मुझे यूँ ही चोदा करें.”

जीवन जो दूर खड़ा बिना देखे बस सुन रहा था इस कथन से प्रफुल्लित हो गया. वो आगे आकर खड़ा हुआ.

“उनसे भी कहना और मैं भी तुम्हारी गाँड को हर दिन मारा करूँगा. और हमारे मिलन के बाद तुम्हें चोदने और गाँड मारने वालों की कमी न होगी. मेरा बेटा और मेरे पोते भी ऐसे ही चुदाई करते हैं.”

“अच्छा है. अब तो मैं आपकी होने का नियम भी पूरा कर चुकी हूँ.”

बलवंत ये सुनते ही चिंघाड़ मारकर झड़ने लगा. पर उसने अपना लंड बाहर निकाल लिया जिससे कि वीर्यपात शालिनी की गाँड के भीतर न होकर ऊपर और पीठ पर हुआ. दो मिनट तक बलवंत कांप काँप कर अपना रस छोड़ता रहा. गीता इस मात्रा को देखकर अचम्भित हो गई. निर्मला, पूनम और बबिता भी उसके पास आकर खड़ी हो गयीं. जब बलवंत का झड़ना रुका तो बबिता ने उसके लंड को चाटकर उसे धन्यवाद दिया. वहीँ पूनम और निर्मला शालिनी के शरीर पर बिखरे वीर्य को चाट गयीं. जब तीनों ने गीता को देखा तो उन्हें ग्लानि हुई कि उसे छोड़ दिया.

पर गीता मुस्कुराई और शैली की गांड को खोलकर उसे अंदर से चाटने लगी. शालिनी अब ढेर हो चुकी थी. उसकी आँखें बंद थीं और वो जीवन से गाँड मरवाने की कल्पना में खो गई थी. कुछ देर बाद शालिनी को उठाया गया और वो लड़खड़ाती हुई जीवन के सीने से लग गई.

“अब हमें एक दूसरे से दूर रखने का अंतिम कारण भी समाप्त हो चुका है.”

“सच में. अब हमें एक होने से कोई नहीं रोक सकता.” जीवन ने कहा तो वहां उपस्थित सब तालियाँ बजाने लगे.

सुशील ने असीम और कुमार को इसे उत्सव बनाने के लिए मदिरा पिलाने की आज्ञा दी.

Please complete the required fields.




Leave a Comment

Scroll to Top