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दृश्य २: जीवन के गाँव में शालिनी:
कुछ ही देर में द्वार पर किसी ने खटखटाया और बिना प्रतीक्षा किये हुए खोलकर खड़ा हो गया.
“क्या मैं अंदर आ सकता हूँ?”
शालिनी खिलखिलाई, “अवश्य, जितना चाहें और जहाँ चाहें.”
ये सुनकर जीवन के चेहरे पर मुस्कान आ गई. उसने द्वार बंद किया तो उसके दूसरी ओर से कुछ स्त्रियों की दबी हंसी की ध्वनि और दब गई.
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पसीने से लथपथ दोनों गहरी साँसे ले रहे थे. जीवन के कमरे में आने के कुछ ही पलों में दोनों के होंठ मिले थे और चुदाई का संग्राम आरम्भ हो गया था. कामाग्नि की ज्वाला इतनी प्रचंड थी कि न लौड़ा ही चूसा गया और न चूत ही चाटी गई. बस सीधा आक्रमण हुआ. ये द्वन्द लगभग पंद्रह मिनट चला और शालिनी जीवन की इस आयु में भी क्षमता से प्रभावित हुए बिना न रह सकी। अब दोनों हाँफते हुए सीधे लेटे पंखे को ताक रहे थे. दोनों शांत थे, मानो स्वरों की आवश्यकता ही समाप्त हो चुकी हो.
“मैंने ऐसा कभी अनुभव नहीं किया.” शालिनी ने धीरे से कहा.
“हाँ, मेरी पत्नी के जाने के बाद तो कभी नहीं.” जीवन ने उत्तर दिया.
“मेरा यही कहना था, पर उनकी स्मृति को धूमिल नहीं करना चाहती.”
“वो सम्भव नहीं. पर आज वो दोनों नहीं हैं और हम अब भी यहीं हैं. क्या पता दोनों हमें ऊपर से देख रहे हों.” जीवन ने कहा, “और हमारे लिए प्रसन्न हों.”
“क्या जाने.” शालिनी बोली फिर शांत हो गई.
कुछ देर की शांति के बाद शालिनी ने ही उसे तोड़ा, “आपके मित्र क्या कर रहे होंगे?”
जीवन ने गहरी श्वास लेते हुए कहा, “आप सम्भवतः अनुमान लगा चुकी हैं. तो पूछना क्यों?”
शालिनी ने उसके लंड को हाथ में लेकर कहा, “आपके पोते भी हैं, इसीलिए मुझे कुछ उत्कंठा है.”
जीवन उसका तात्पर्य समझ गया.
“आप जानना चाहती हो न कि क्या चल रहा है? अगर विस्मित और क्रोधित न हों तो चलिए आपको उनसे मिलवा देता हूँ. वैसे उन्हें विश्वास है कि आप उनसे मिलने आओगी।”
“ओह!” शालिनी के मुंह से निकला, “तो चलिए.”
“एक बात पूछनी है, अगर आपको बुरा न लगे तो.” शालिनी ने कहा.
जीवन ने उसकी आँखों में झाँका और समझ गया कि प्रश्न क्या है. एक गहरी श्वास लेते हुए उसने पूछा, “मेरे पोते, मेरे मित्रों और उनकी पत्नियों के संबंध में?”
शालिनी ने स्वीकृति में सिर हिलाया.
जीवन, “मैं और मेरे मित्र हम सब साथ खेले और बड़े हुए. और हमारी पत्नियाँ भी इसी गाओं की हैं, वो हमसे दो तीन वर्ष छोटी थीं. हम चारों के सेक्स केपहले अनुभव भी लगभग एक ही साथ हुए थे. फिर कुछ समय बीता और विवाह हुए. हम मित्रों ने एक वचन लिया था कि सब मिलकर ही रहेंगे जीवन पर्यन्त. मिल कर रहने का जो अर्थ बना वो आरम्भ के अर्थ से भिन्न था, परन्तु हम सब मदिरा के नशे में एक दूसरे की पत्नियों के साथ चुदाई करने लगे. फिर ये एक सामान्य बात ही बन गई.”
“बलवंत का घर सबसे बड़ा था तो यही हमारे सामूहिक सम्भोग का केंद्र बन गया. आज भी है.”
शालिनी सुन रही थी एक ऐसा कथानक जो उसके लिए अप्रतिम था.
“बच्चे हुए, वो सब भी साथ ही खेले. पर अब तक गाँव में स्कूल पहले से अच्छा हो चला था. हमारे खेतों से कुछ अच्छी आय हुई तो हमने उन्हें नगर के स्कूल भेजना आरम्भ किया. इसमें हमारे यहाँ के विधायक ने भी बहुत योगदान किया. एक बस उन्हें स्कूल के लिए दे दी. पुरानी थी, पर हमारे लिए बी एम डब्लू से कम न थी. बच्चे पढ़ने में अच्छे थे तो समय आने पर उन्हें कॉलेज में भी प्रवेश मिल गया. छात्रवृत्ति के कारण व्यय कम ही रहा. कहीं कम पड़ता तो चारों किसी प्रकार से आयोजन कर लेते. आशीष इंजीनयरिंग के बाद नौकरी में लगा और अन्य सबके बेटे और बेटियां भी नगर में ही कार्यरत हो गए.”
“पर उसके पहले एक घटना घटी. एक रात वो सब बिना पूर्व समाचार के घर आ गए. हम सब बलवंत के घर में ही थे. तो सब ढूँढ़ते हुए वहीँ पहुंचे. हम नहीं जानते थे कि हमारे बच्चे भी हमारे ही समान उन्मुक्त सेक्स जीवन बिता रहे थे. हालाँकि सुनीति अधिकतर आशीष के ही साथ रहती थी, परन्तु अन्य के साथ भी दोनों संसर्ग करते थे. उस रात एक नया अध्याय आरम्भ हुआ. और उस रात्रि की घटनाओं का अंत उन सबके नगर लौटने तक चला. हम सबका एक नया जीवन आरम्भ हो गया था. विधि का विधान भी देखो. हम सबको एक ही संतान का सुख मिला. और दो लड़के हुए तो दो लड़कियाँ। आशीष और सुनीति का विवाह हुआ और उधर उदय और सुरभि का. हम मित्रों से संबंधी बन गए.”
“और अब आपके प्रश्न का उत्तर. आज पोते पोती या नाती नातिन भी हमारे साथ चुदाई करते हैं. असीम और कुमार इसी प्रयोजन से आये हैं. वैसे गीता को निराशा होगी, पर वो अपनी अन्य तीनों नानियों को चोदने हेतु ही आये हैं.”
शालिनी ने कहा, “एक बात कहूँ?”
जीवन ने सिर हिलाया. उसे विश्वास था कि जिस संबंध को वो आगे बढ़ाना चाहता था उसका विच्छेद हो चुका है.
“मैं इतनी तो स्वतंत्र नहीं रही, पर अजीत के साथ मैं चुदाई करती रही हूँ. उसके विवाह के बाद रुक गई थी. पर यहाँ आने के बाद अभी कुछ ही दिनों से फिर आरम्भ कर दी है. और इस बार गौतम और अदिति से भी चुदवा चुकी हूँ. तो मैं भी कोई पवित्रा नहीं हूँ. अब चलिए आपके मित्रों को अधिक प्रतीक्षा करना ठीक नहीं है.”
जीवन के चेहरे से तनाव दूर होने का संकेत मिला. वो तपाक से उठा और अपनी लुंगी पहन ली. फिर उसने शालिनी को देखा जो अपना गाउन पहन रही थी.
“इसकी आवश्यकता नहीं है, बस चादर बांध लीजिये वहाँ तक पहुंचने के लिए.”
शालिनी ने वैसा ही किया और दोनों सामूहिक चुदाई के ओलिंपिक में भाग लेने के लिए चल दिए.
दोनों चलते हुए उस हॉल के बाहर पहुंचे जहाँ अन्य सब जमा थे. शालिनी के ह्रदय की गति बढ़ती जा रही थी. उत्सुकता और उत्तेजना से उसका शरीर और मन दोनों काँप रहे थे. हॉल पहुंचने को ही थे परन्तु उसके कुछ ही पहले जीवन ने शालिनी के कंधे पर हाथ रखा और उसे रोका. और उसके सामने आ खड़े हुए. शालिनी का कम्पन और बढ़ गया.
“आपकी बातों से लगता है कि आपका अनुभव सीमित है. इस कारण सम्भव है कि जो आप देखें आपके लिए कुत्सित और घ्रणित हो. पर हमारे लिए ये एक सामान्य गतिविधि है. अगर विचलित हो जाएँ तो बताना, हम कमरे में लौट चलेंगे. अकेले मत जाइएगा. पर मैं चाहूँगा कि आप इस सब आसनों और सम्मिश्रणों से भी अवगत हो जाएँ. संभोगऔर जीवन का अपार आनंद इनमें ही निहित है.”
अब शालिनी की उत्तेजना कई गुना बढ़ गई. उसे विश्वास हो चला था कि अंदर चल रही गतिविधि अत्यंत भिन्न होने वाली है. जीवन ने द्वार खोला और शालिनी ने अंदर झाँका और उसकी शंका का निवारण हो गया.
अंदर का दृश्य उसकी कल्पना से परे था. असीम और कुमार के बीच में बबिता पिस रही थी. असीम नीचे से उसकी चूत में लंड पेल रहा था तो कुमार के लम्बे मोटे लंड का आवागमन उसकी गांड में होता हुआ दिखाई दे रहा था. उधर बबिता और पूनम के पति गीता पर इसी प्रकार से चढ़े हुए थे. जस्सी गीता के नीचे था तो कँवल उसकी गांड मार रहा था. पूनम और निर्मला की चुदाई सुशील और बलवंत कर रहे थे. उनके समूह को शालिनी इतना दूर से साफ नहीं देख पा रही थी. चुदाई की गूँज कमरे से अब बाहर निकल पड़ी और थप थप ने उसमें एक और ताल जोड़ दी. 123
“आह!”,
“ओह!”
“मर गई, रे !”
“उह नानी!”
इस प्रकार की विभिन्न ध्वनियोँ ने शालिनी का मन झकझोर दिया. सच में उसने जो अब तक चुदाई की थी वो इसके सामने क्षीण थी. उसकी चूत ने पानी छोड़ा ही था कि शीतल पवन ने उसके शरीर पर प्रहार किया. उसे सामने चल रही चुदाई की गति में कुछ शिथिलता का आभास हुआ. उसने देखा कि अब सब आँखें उसे ही देख रही हैं. चुदाई इस प्रकार के आसन में हो रही थी कि लगभग सभी का मुंह उनकी ओर था. उसे ये भी आभास हुआ कि उसके शरीर पर पवन का झोंका इसीलिए अनुभव हुआ था क्योंकि पवन ने बहुत चतुराई से उसके चादर को निकाल दिया था और वो अब उन सबके सामने नितांत नँगी ही खड़ी थी.
पल भर की शर्म और संकोच के बाद उसने पवन को देखा जिनकी लुँगी न जाने कहाँ खो गई थी और लंड पूर्ण रूप से तना हुआ था.
“आज शालिनी जी भी हमारे इस खेल में सम्मिलित होना चाहती हैं, तो क्या आप सब उनका स्वागत नहीं करोगे?”
शालिनी का मन भर आया. और उसकी आँखों के आंसुओं ने उसकी दृष्टि बाधित कर दी. जब आँखों से आँसू हटे तो उसके सामने जीवन के मित्र और परिवार खड़े उसे देख रहे थे. डबडबाई आँखों से उसने उन्हें देखा तो उनके चेहरे पर चिंता की चिन्ह थे. ऑंखें पोंछते हुए उसने मुस्कुराने का प्रयास किया. सहसा चार कोमल बाँहों ने उसे समेट लिया.
“बस बस, दीदी, अब रोना का कोई कारण नहीं है. आओ और हम सबके साथ आनंद उठाओ. जीवन जितना भी है, उसे अपने ढंग से जियो.” निर्मला ने उसे समझाया.
शालिनी ने रुंधे स्वर में उत्तर दिया, “मैं रो थोड़े ही रही हूँ. मैं तो समझ रही थी कि मैं ही पापिन हूँ जो अपने बेटे और उसके परिवार के साथ चुदाई करती हूँ. पर आप सबको देखकर मुझे अब स्वयं से घृणा नहीं रही है. मई भी आपके ही समान जीवन का जीवन के साथ आनंद उठाना चाहती हूँ.”
जीवन ने अपने नाम का ये द्विअर्थी प्रयोग सुना तो अट्ठास लगाने लगा.
फिर बोला, “अब ये आपका दायित्व है कि इन्हें हर आनंद से परिचित कराएं. बस एक अनुरोध है.”
निर्मला ने छेड़ते हुए कहा, “अब बोल भी दीजिये भाईसाहब कि इनकी गांड सबसे पहले आप ही मारेंगे!” फिर शालिनी को देखते हुए बोली, “हम सबकी गांड का उद्घाटन हमारे पतियों ने नहीं किया था. तो अगर आप इस संबंध को आगे बढ़ाना चाहती हो तो इन्हें गांड मारने से वंचित करना होगा और हमारे पतियों में से किसी एक को चुनना होगा. बोलो दीदी?”
शालिनी सोच में पड़ गई. फिर बलवंत की ओर देखते हुए बोली, “इन्हें अवसर देना चाहूँगी।”
जीवन के मुंह से निकला, “क्या यार!”
“पर आप दूसरे होंगे, ये वचन है.”
अन्य सभी पुरुषों ने एक दुखद आह भरी, तो कमरे में हंसी गूँज उठी. असीम और कुमार भी आगे आये और बोले, “आंटीजी, हमें मत भूलना.”
“अरे नहीं मेरे पड़ोस के नटखट बच्चों, तुम्हें तो मैं भरपूर अवसर दूँगी।”
वातावरण अब बहुत सामान्य और हल्का हो गया था, पूर्व चल रही चुदाई को बीच में छोड़ने का दुःख किसी को भी न था. निर्मला और गीता कुछ बात कर रही थीं और उन्होंने शीघ्र ही अपना निर्णय सुना दिया. उन्होंने विचार किया कि इस समय किसी अन्य जोड़ी से छेड़ना ठीक नहीं होगा. केवल बलवंत शालिनी के साथ हो जाये और जीवन निर्मला के साथ तो सब सही रहेगा. किसी को इसमें कोई आपत्ति भी नहीं थी. और बलवंत शालिनी की ओर बढ़ा तो उसने जीवन की ओर देखा. जीवन मुस्कुराया और निर्मला को अपनी बाँहों में लेकर चूमने लगा.
उसका संकेत यही था कि मैं भी उन्मुक्त हूँ, तो उस पर भी कोई बंधन न था. और बलवंत ने उसे अपनी बाँहों में समेटा और चूमने लगा. बलवंत का शरीर जीवन से अधिक सुगठित था. प्रतिदिन का खेतों का व्यायाम उसे शक्तिशाली बना चुका था. शालिनी ने चोरी से देखा तो अन्य दोनों मित्र भी इसी श्रेणी में थे. जीवन के नगर निवास ने उसे कुछ सीमा तक उन सब से कम कर दिया था. उसने स्वयं को मन ही मन झिड़का और बलवंत के बलशाली सीने में समा गई.
शालिनी अन्य सभी की उपस्थिति से मानो अनिभिज्ञ थी. अपने जीवन में पहली बार इस प्रकार के वातावरण में आई थी और कुछ ही पलों में मानो उसमें मिल गई थी. उसे इस बात का अनुमान नहीं था कि उसके आने के समय से जिस प्रकार की बातें इत्यादि हो रही थीं वो उसे इसके लिए इच्छुक बना रहे थे. जीवन उसके प्रति आकृष्ट था परन्तु वो अपनी जीवनशैली को परिवर्तित भी नहीं करना चाहता था. और इसके लिए शालिनी की स्वीकृति और जुड़ाव नितांत आवश्यक था.
कुमार और असीम ने फिर से बबिता को पकड़ लिया था और बबिता उनसे बचने का स्वांग कर रही थी. कुमार ने उसकी कमर में हाथ डाला और अपने ऊपर पलट लिया. उसके ऊपर लेटी बबिता ने अपने होंठ उसके होंठ पर रखे और चूसने लगी. कुमार ने अपने लंड को पकड़ा और बबिता की चूत पर लगाते हुए एक झटके में अंदर डाल दिया. अब उसने असीम का स्थान ले लिया था तो असीम ने बबिता की गांड पर हाथ फिराया.
“नानी, जो भी कहो. आपकी गांड है बहुत मस्त. बिलकुल गोलगप्पा.” असीम ने कहा तो दूसरी ओर से निर्मला बोल पड़ी, “गोलगप्पा समझ कर खा मत लेना, नहीं तो हम सब क्या करेंगे?”
“अरे नहीं नानी. मैं तो इसमें पानी भरने वाला हूँ. फिर आपमें से जो चाहे पी सकेगा.”
“बदमाश! देख गीता. तेरा नाती मुझे अपना पानी बबिता की गांड से पीने के लिए कह रहा है.”
“अरे तो पी लेना. वो भी तो तेरे लिए ये सब करती है.”
शालिनी ने ये सब सुना तो उसकी गांड फट गई. पर बलवंत उसके कानों में बोला, “ये सब ऐसे ही बातें करती हैं. आप ध्यान मत देना. आप मेरा लंड चूसोगी न?”
शालिनी ने स्वीकृति दी तो बलवंत ने शालिनी को एक कुर्सी पर बैठाया और उसके सामने लंड झूलने लगा. शालिनी ने निसंकोच उसे चाटना आरम्भ कर दिया. पूनम और निर्मला उन दोनों के पास आईं और निर्मला ने नीचे बैठकर शालिनी की चूत का निरीक्षण किया।
“हम्म, भाईसाहब का पानी अभी भी अंदर है.” ये कहते हुए उसने चूत पर मुंह लगाया और चूसने का सफल प्रयास किया. जब वो हटी तो पूनम ने अपना भाग्य को परखा और जो शेष रज था उसे सोख लिया.
“ओके, दीदी. आप अब भैयाजी से आराम से चुदवाओ, हम चलीं.” ये कहते हुए वो हट गयीं.
शालिनी को कुर्सी पर बैठाने का एक और उद्देश्य था. इस स्थान से वो अन्य सबको भी देख सकती थी. और शालिनी को इसका लाभ भी मिला.
उसने असीम को अपने लंड को बबिता की गांड पर लगाकर हल्के धक्के के साथ अंदर डालते हुए देखा. कुमार का लंड पहले ही बबिता की चूत में था. शालिनी को बबिता की क्षमता देखकर आश्चर्य हुआ. कितनी सरलता से उसने दूसरे लंड को भी ले लिया था. असीम निर्बाध अपने लंड को उसकी गांड में डालता रहा और पूरा अंदर डालने के पश्चात ही उसने विश्राम लिया. शालिनी ने अब लंड चाटना बंद किया और चूसने के पहले अन्य जोड़ों पर दृष्टि दौड़ाई.
गीता के दृश्य में भी परिवर्तन था.अब कँवल नीचे लेटकर चूत में लंड डाले हुए था तो इस बार गांड का आनंद जस्सी के भाग में आया था. और वो दोनों एक सधी ताल में गीता की मस्त चुदाई कर रहे थे.
पूनम दिन में कुमार और असीम के मोटे लौंड़ों का आनंद ले चुकी थी. और निर्मला की भी इच्छा पूरी हो गई थी और उसे जीवन से चुदवाने का सुअवसर मिला था. सुशील पूनम की चुदाई आरम्भ करने को था तो जीवन निर्मला की. बस उन दोनों के लौंड़ों को चूस कर उचित स्थिति में लाने के लिए पूनम और निर्मला परिश्रम कर रही थीं. दोनों लौड़े अब कठोरतम स्थिति में आ चुके थे और किले भेदने के लिए उत्सुक थे. चारों ओर फिर से आनंद की सीत्कारें और आह, ऊह इत्यादि का स्वर सुनाई दे रहा था.
और कुछ ही समय में सुशील और जीवन पूनम और निर्मला की चुदाई में जुत गए. बलवंत के लंड को चूसते हुएभी शालिनी का सारा ध्यान जीवन पर ही था. और उसकी चुदाई की गति और कठोरता को जब उसने देखा तब उसे आभास हुआ कि जीवन ने उसकी चुदाई में कितना संयम रखा था. निर्मला नीचे थी और जीवन के पुट्ठे जिस तीव्रता से ऊपर नीचे हो रहे थे उससे ये विदित था कि उसकी क्षमता बहुत है. और निर्मला की उसके लंड को झेलने की भी. दोनों जिस गति के साथ एक दूसरे में समाने का प्रयास कर रहे थे वो अपर्याय था.
सुशील और पूनम की चुदाई में एक ठहराव था. सम्भवतः क्योंकि वे अधिक नियमितता से चुदाई करते थे. जीवन कभी कभी ही आते थे तो उनसे मिलन में एक स्फूर्ति रहती थी. शालिनी ने चारों जोड़ियों की चुदाई की भिन्नता को अनुभव किया और बलवंत का लंड अपने मुंह से निकाला और उसकी ओर देखा.
“अब रुकने का अर्थ नहीं है. चलिए हम भी उनके साथ मिल जाते हैं.” बलवंत ने उसके भाव समझ कर बोला।
शालिनी ने स्वीकृति दी और खड़ी हो गई. दोनों उस समूह की ओर बड़े.
सबके बीच पहुंचकर शालिनी ने बलवंत की ओर देखा, “भाईसाहब, एक बात कहूँ ?”
बलवंत ने सिर हिलाया. शालिनी ने जीवन और निर्मला की ओर संकेत करते हुए कहा, “मुझे भी इसी प्रकार चुदवाने की इच्छा है. परन्तु, आरम्भ धीमे ही कीजियेगा.”
बलवंत ने आश्वासन दिया कि वो ऐसा ही करेगा. ये कहते हुए उसने शालिनी को धीरे से नीचे लिटाया. शालिनी ने फिर एक बार जीवन की ओर देखा जो उससे अनिभिज्ञ निर्मला की चुदाई में जी तोड़ परिश्रम कर रहा था. अचानक ही जीवन ने उनकी ओर देखा और दोनों आँखें मिलीं. जीवन ने एक मूक स्वीकृति दी और शालिनी ने मुस्कुराकर उसका उत्तर दिया. बलवंत ने जब देखा कि दोनों प्रेमियों की आंख-मिचौली समाप्त हो रही है तो उसने शालिनी की चूत पर अपना लंड रगड़ा.
शालिनी का ध्यान जीवन से हटकर बलवंत की ओर आ गया और उसने बलवंत के लंड को अपनी चूत में उतरते हुए अनुभव किया. एक ही दिन में दो विभिन्न पुरुषों से चुदने का ये उसका दुर्लभ अनुभव था. और इसके आनंद में वो पूर्णतः डूबना चाहती थी. और सम्भव था कि आज उसे एक से अधिक पुरुषों से चुदने का भी अवसर मिल जाये. बलवंत उसे देख रहा था और उसके चेहरे के भावों को पढ़ने का प्रयास कर रहा था.
शालिनी बोली, “सोचिये, लोग हम सबको बूढ़ा समझते हैं. और हम सब जो कर रहे हैं वो कइयों ने तो स्वप्न में भी कल्पना नहीं की होगी.”
बलवंत मुस्कुराया और अपने लंड को पूरा जड़ तक गाढ़ने के बाद रुका, “अभी तो अपने कुछ भी नहीं देखा है. आज तो अपने आरम्भ किया है. एक सप्ताह रुकिए, फिर देखिये क्या क्या अनुभव करने मिलेगा. पास इस पगले को ठहरने के लिए मना लेना. चार दिन बाद भी चले गए तो क्या हानि होगी?”
शालिनी ने उत्तर दिया, “मैं प्रयास करुँगी पर अभी आप ये सब बातें न करें बल्कि अपने कार्य पर ध्यान दें.”
जीवन उनकी बातें सुन चुका था और उसकी योजना सफल हो रही थी. वो शालिनी को ये आभास कराना चाहता था कि वो उसकी बातें एक अच्छे होने वाले पति के समान मानेगा. उनके मिलन की राह में ये एक और पग होगा.
असीम और कुमार अपने वास्तविक रूप में आ चुके थे. अब जिस पाशविक गति और शक्ति से वो बबिता की चूत और गांड मार रहे थे वो मन को विचलित करने के लिए पर्याप्त था. परन्तु बबिता तो उल्टा उन्हें और गालियाँ दे देकर उकसा रही थी. उसकी चीखों को बंद करने के लिए कुमार ने उसके मुंह में साड़ी का एक गुच्छा बनाकर डाल दिया और उसके मम्मों को अपने हाथों से भींचने लगा.
कँवल और जस्सी ने भी गीता को चोदने में कोई कमी नहीं रखी थी और उसके दोनों छेदों को भली प्रकार से रौंद रहे थे. गीता जिसकी इच्छा तो अपने पोतों से चुदने की थी, इन दोनों की चुदाई से भी आनंद से दूभर हो कर उन्हें उत्साहित कर रही थी. जीवन जिस शक्ति से निर्मला को चोद रहे थे उसके लिए ही निर्मला व्याकुल रहती थी. पूनम को चोदते हुए सुशील ने उसके कान में कुछ बोला और उसकी सहमति पाकर उसे घोड़ी बनने के लिए छोड़ा.इस आसन में आते ही फिर से कुछ पल चुदाई की और फिर लंड निकालकर पूनम की गांड में डाला तो पूनम की आनंद से सिसकारी निकल गई.
“क्यों बे? गांड मारे बिना तुझे चैन नहीं है?” जीवन ने कहा.
“तो तुझे किसने रोका है? निर्मला तो कितने दिनों से कह रही है कि जीवन से गांड मरवानी है. आज न जाने क्यों नहीं बोली.”
“क्यों भाभी, सच कह रहा है क्या ये लँगूर?”
“हाँ बिलकुल, वैसे चूत में भी उतना ही आनंद आ रहा है. अब जब जान ही गए हो तो मार ही दो गांड भी.” निर्मला ने बोला तो जीवन ने उसे भी घोड़ी बनने की आज्ञा दी.
सुशील अपनी पत्नी को घोड़ी बनते हुए देख रहा था पर उसका ध्यान जस्सी की पत्नी पूनम की गांड पर अधिक था जिसमें उसका लंड पूर्ण वेग के साथ आवागमन कर रहा था. और पूनम का पति जस्सी और बबिता का पति कँवल बलवंत की पत्नी गीता की घनघोर दुहरी चुदाई कर रहे थे. और अंत में कँवल की पत्नी बबिता की भीषण चुदाई करने के लिए गीता और बलवंत के नाती और जीवन के पोते जुटे हुए थे. हर ओर चुदाई का मनभावन संगीत सुनाई दे रहा था. जीवन भी अब निर्मला की गांड मारने में पूरा परिश्रम कर रहा था. बलवंत की चुदाई तीव्र हो चली थी. उसने कुछ धीमे होते हुए शालिनी से पूछा.
“सारी सहेलियाँ गांड मरवा रही हैं, आप कहो तो आपका भी उद्घाटन कर दूँ.”
“नहीं, इन सबके झड़ने के बाद आप सबके सामने मारना गांड, नहीं तो किसी को क्या पता चलेगा.” शालिनी ने उत्तर दिया तो बलवंत समझ गया कि शालिनी उसकी समधन बने बिना नहीं मानेगी. कुछ देर भिन्न भिन्न आसनों में चुदाई करने के बाद सब झड़ने लगे और फिर शिथिल पड़ गए. सुशील ने पूनम की गांड में रस छोड़ा और फिर उससे हटकर लेट गया. दोनों हाँफ रहे थे.
“लगता है निर्मला की चुदाई देखकर आपका जोश दोगुना हो गया.” पूनम ने कहा तो सुशील ने हामी भरी.
“हाँ, जब जीवन उसे चोदता है तो मुझे अधिक रोष आ जाता है. पर उसका लाभ होता ही है.”
“सच कहते हो.” ये कहते हुए वो उठकर बाथरूम की ओर चली गई.
निर्मला की गांड में रस छोड़ने के बाद भी जीवन उसकी गांड में कई पलों तक अपने लंड को गाड़े रहा. अंततः निर्मला को उसे बोलना पड़ा और तब जीवन ने अपना लंड बाहर निकाला.
“क्या हुआ? कहीं खो गए थे क्या.” निर्मला ने उठते हुए पूछा.
“हाँ कुछ ऐसा ही समझो.” ये कहकर जीवन बलवंत और शालिनी की समाप्त होती चुदाई को देखने लगा. निर्मला चली गई और जीवन बैठा देखता ही रहा. जब बलवंत ने शालिनी की चूत को अपने रस से भर दिया तब जाकर जीवन ने उन पर से आँखें हटाई. उसका मन उनके संतुष्ट भाव देखकर स्वयं भी प्रफुल्लित हो गया.
गीता की चुदाई भी समाप्त हो चुकी थी और जस्सी और कँवल उस पर से हट गए थे. तीनों पास लेटे गहरी श्वासों को संयत कर रहे थे. तभी बलवंत ने पुकारा.
“अरे भागवान, इधर आओ. तुम्हारे लिए कुछ भोग है यहाँ।”
गीता साहस कर के उठी तो जस्सी ने उसे सहारा दिया. गीता बलवंत के पास गई. “अब क्यों पुकार लिया। कुछ देर तो लेटने देते. दो दो चढ़े थे मेरे ऊपर.”
बलवंत मुस्कुराया, “अरे मैंने सोचा कि समधन और मेरे रस का स्वाद तुम्हें ही पहले मिलना चाहिए.”
गीता का चेहरा खिल उठा. “क्या सच?”
“लगता तो है.”
गीता ने आव देखा न ताव झपट कर शालिनी की चूत में मुंह लगाया और चाटने में जुट गई और पलक झपकते ही पूरी मलाई चट कर गई. इस पूरे समय शालिनी केवल कसमसा ही रही थी.
गीता ने अपना मुंह उसकी चूत से निकाला और बोली, “अब आपको भी हम दोनों अपना रस पिलायेंगे, दीदी.”
फिर कुछ सोचकर चुप हो गई कि शालिनी ऐसा करेगी या नहीं.
“मैं आभारी रहूँगी।” शालिनी के मुंह से ये सुनकर उसे शांति मिली.
“वाह नानी. आनंद आ गया आज तो.” असीम का ये कथन सुनकर ओर ध्यान गया. असीम अपने लंड को बबिता की गांड से निकाल रहा था और फिर वो खड़ा हो गया. हाथ देकर उसने बबिता को कुमार के लंड से उठाया और बबिता एक ओर जाकर लुढ़क गई.
“अरे बुढ़िया चल फिर तो पायेगी न?” कँवल ने अपनी पत्नी पर उपहास किया.
“आप चिंता न करो. दस मिनट बाद मैं दो तीन और को निपटा सकती हूँ.” बबिता ने हाँफते हुए कहा.
“तब ठीक है. नहीं तो मैं तो निराश होने लगा था.” जीवन ने कहा तो सब हंस पड़े.
“दुष्ट!” बबिता ने हंसकर कहा.
जीवन ने कुमार और असीम को पीने की व्यवस्था करने की आज्ञा दी और कुछ ही देर में सब मदिरा के घूँट ले रहे थे.
“आज कुछ नया आनंद आया है.” गीता ने कहा।
“हाँ इन तीनो के आने से सच में आनंद कई गुना बढ़ गया.” जस्सी ने कहा.
“दादाजी” असीम ने कहा तो सब उसकी ओर देखने लगे.
“चारों परिवारों के मिलन की कोई व्यवस्था कीजिये न?”
जीवन ने कहा, “देखता हूँ. सुबह अपने वैद्यराज गिरिधारी से बात करूँगा। उनके बेटे के रिसोर्ट पर अगर कोई आयोजन हो सके तो.”
सबके मन में हर्ष की लहर दौड़ गई. शालिनी को पता तो नहीं चला कि किसकी बात हो रही है, पर उसने कुछ न कहने में ही भलाई समझी.
“भाई मुझे तो लगता है की शालिनीजी हमारी समधन बनने के लिए उत्सुक और सहमत हैं?” बलवंत ने दूसरा पेग समाप्त करते हुए कहा.
“क्योंकि, अब मैं चाहूँगी कि आप सब देखें और होने वाले समधीजी मेरी गांड मारकर मुझे अपने गुट में सम्मिलित करें.” शालिनी ने कहा तो सब ने आनंद से चिल्लाया और फिर तालियाँ बजाईं.
और इन सबके बीच में शालिनी गांड मटकाती हुई कमरे के बीच में जाकर खड़ी हो गई और बलवंत को ऊँगली के संकेत से बुलाया. दर्शकों ने अपने लिए एक और पेग बनाया.
रात अभी शेष जो थी.