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दृश्य ७: सुरेखा:
सुरेखा सोफे पर बैठी गर्व से अपने पुत्र सजल को अपनी माँ की सेवा करते हुए देख रही थी. आज अचानक शीला ही उनके घर पर आ गई थी. वो ये अनुरोध लेकर आई थी कि शीघ्रतिशीघ्र सुरेखा सपरिवार उनके संभ्रांत नगर के बंगले में चले आएँ. इससे उनके क्रूस पर जाने के पहले सभी मिलकर रह लेंगे। उनके जाने में अब अधिक समय शेष न था. सुरेखा उनका गुप्त मंतव्य भी समझ रही थी. उसके माता पिता को सम्भवतः ये डर था कि कहीं सजल ही संजना का कौमार्य भंग न कर बैठे. अब जब संजना को यौन सुख मिल गया था वो अधिक समय तक कली बनकर नहीं रहना चाहती थी.
सुरेखा ने अपनी माँ को समझाया, “मॉम , कौमार्य की भेंट तो संजना अपने नाना को ही देगी, परन्तु गांड मारने का पहला अवसर सजल को ही मिलेगा.”
शीला अपनी बेटी की भावना को समझती थी परन्तु इसके बाद जो सुरेखा ने कहा उसे सुनकर सभी चौंक गए.
“हालाँकि अब इस प्रकार की जीवन शैली अपनाने के बाद इसका सबसे उचित प्रत्याशी उसके पिता नागेश ही हैं. परन्तु अब न जाने वो हमारे जीवन में लौटना भी चाहेंगे या नहीं.”
सबको पता था कि नागेश किस जाल में फंसकर उन सबसे दूर हुआ था. उसका सुरेखा से सम्भोग न करना वस्तुतः उसको किसी भो रोग से बचाना था. और इसका पूरा मूल्य केवल उसने ही चुकाया था. अन्य सभी सुख से जीवन व्यतीत कर रहे थे, बस यही अकेला था.
“मुझे पता है डैड कहाँ रहते हैं.” संजना बोली. “मेरी उनसे बात होती रहती है.”
ये सबके लिए सुखद आश्चर्य था।
“वो भी हम सबको बहुत मिस करते हैं. मॉम, क्या डैड हमारे साथ आकर रह सकते हैं?”
ये बहुत बड़ा प्रश्न था और इसके लिए पूरे परिवार की स्वीकृति आवश्यक थी. आज रात ही इसका उत्तर ढूँढना होगा. परन्तु अगर शीला आई थी तो कुछ लेकर ही वाली थी, और इसके लिए सजल भी उद्द्यत था. और इसका प्रमाण देने में वो कोई भी कमी नहीं कर रहा था. शीला की चुदाई के लिए उपयुक्त परिश्रम करने में उसे कोई संकोच न था. नानी नाती एक दूसरे को सुख देने में व्यस्त हुए तो संजना अपनी माँ के सामने बैठी और फिर उसके निचले वस्त्र को हटाकर उसकी चूत चाटने लगी. सुरेखा इस आनंद को भोगते हुए अपनी माँ को अपने बेटे से चुदते देख रही थी. संजना के कोमल बालों में उसकी उँगलियाँ प्रेम से घूम रही थीं.
इन सबके साथ उसे अपने पूर्व पति का भी स्मरण हो रहा था. उसे अपने पिता पर भी कुछ आक्रोश था जिन्होंने समस्या की जड़ देखे बिना ही उसका तलाक करवा दिया था. आज संजना के कथन ने उसके चेतन को झकझोर दिया था. बच्चों के लिए वो अपने पति से पुनर्मिलन के लिए सहमत थी. और सम्भवतः अपने लिए भी.
संजना को अपने पिता से अथाह प्रेम था और नागेश भी संजना पर न्यौछावर था. इसीलिए अगर वो दोनों सम्पर्क में थे तो इसमें आश्चर्य नहीं होना चाहिए था. उसे अपने ऊपर भी ग्लानि हुई और संजना के अनुरोध को पूरा करने का निश्चय किया. अपने माता पिता के क्रूस पर जाने के बाद वो नागेश से बात करके उससे पूछेगी कि क्या वो घर लौटना चाहता है?
सजल और शीला की चुदाई समापन पर थी. अपने विचारों में डूबी होने के कारण संजना के अथक परिश्रम का भी कोई प्रभाव नहीं पड़ा था. संजना ने हार कर उसकी ओर देखा तो सुरेखा की दूर देखती आँखों को देखकर वो जान गई कि उसकी माँ भी उसके पिता के ही विषय में विचारमग्न है. उसे इससे संतुष्टि मिली कि उसकी प्रार्थना स्वीकार होने की संभावना है.
सजल ने अपना कार्य सम्पन्न कर लिया था और अपने लंड से रस शीला के मुंह में उढ़ेल रहा था. शीला ने रस पीने के पश्चात सजल के लंड को चाटकर साफ किया. शीला ने उठकर अपने कपड़े पहने और सामान्य रूप से बैठी.
“तो?”
“अभी साथ चलते हैं. बाकि वस्त्र इत्यादि बाद में ले जायेंगे.” सुरेखा ने कहा तो सबके चेहरे खिल उठे.
“अच्छा है. सुप्रिया भी आज से वहीँ रहने वाली है.” शीला ने कहा, “ले आओ जो लेकर चलना है.”
सुरेखा, संजना और सजल अपने बैग बांधने चले गए. शीला ने समर्थ को फोन किया और संजना और नागेश वाली बात बताई. समर्थ भी सन्न रह गया. उसे भी अपनी भूल का आभास हुआ कि उसने इतना त्वरित कार्यवाई की कि नागेश के पक्ष को समझने का भी प्रयास नहीं किया. उसने कहा कि हम आज ही इसका उपाय खोजेंगे.
आधे घंटे में अपने बैग लेकर तीनों आ गए और समर्थ के घर के लिए निकल गए. वहाँ पर संस्र्थ ने आज उनका स्वागत भिन्न रूप से किया. उसे अपने किये पर प्रायश्चित था. पर आगे क्या करना था? कई बिंदुओं पर विचार हुआ पर सुप्रिया की प्रतीक्षा में निर्णय नहीं लिया गया. सुप्रिया एक घंटे बाद आई और देखकर समझ गई कि स्थिति तनावपूर्ण है. समर्थ और सुरेखा ने उसे पूरी बात समझाई।
सुरेखा बोली, “मैं किस मुंह से जाऊँ उनके पास? मैं तो क्षमा के भी योग्य नहीं हूँ.”
सुप्रिया: “ऐसा नहीं है. पर क्यों न मैं और पापा जाएँ. साथ में संजना को भी ले जाएँगे अन्यथा नागेश हमें दौड़ा सकता है.”
संजना का चेहरा खिल गया.
सुप्रिया ने आगे बोला, “परन्तु संजना को अंतिम अस्त्र के ही रूप में उपयोग किया जायेगा. हाँ, बात पूरी होने पर संजना अवश्य उनसे मिल सकती है.”
“मैं भी जाऊँगा।” सजल ने कहा. सब उसकी ओर देखने लगे.
“आप क्या सोचते हो, केवल संजना ही पापा को प्यार करती है? मैं भी उतना ही करता हूँ. और मैं भी जाऊँगा उनसे क्षमा माँगने।”
“ठीक है. तो शनिवार को चलेंगे.” समर्थ ने कहा तो सुरेखा की आँखों से आँसू बह निकले.
शनिवार:
शनिवार को सिंह परिवार में एक कौतुहल का वातावरण था. किसी को नहीं पता था कि नागेश कैसे प्रतिक्रिया करेगा. समर्थ ने नागेश के घर का पता लगा लिया था. वो अभी उसी घर में था जहाँ सुरेखा उससे अंतिम बार मिलने गई थी. सुबह दस बजे घर से निकलकर वे उस अपार्टमेंट में पहुँचे जहाँ उसका निवास था. संजना और सजल कार में ही बैठे रहे. समर्थ और सुप्रिया साहस करके अंदर गए और नागेश के फ्लैट की घंटी बजाई। समर्थ पीछे हो गया. कुछ समय में द्वार खुला.
“अरे सुप्रिया दी! आप? यहाँ?” नागेश ने ये कहा ही था कि समर्थ भी आगे आ गया.
“बाबूजी? आप भी?” अचानक उसके चेहरे पर भय दिखा, “क्या हुआ? संजू ठीक है न? सजल? सुरेखा, क्या हुआ उनको?” वो घबरा गया.
“सब ठीक हैं. पर क्या हम अंदर आ सकते हैं. वहीँ बात करते हैं.”
ये सुनकर कि सब ठीक हैं नागेश के चेहरे से तनाव दूर हो गया और वो एक ओर हो गया और संस्र्थ और सुप्रिया अंदर चले गए. घर साधारण रूप से सजा था, एक एकल पुरुष के घर समान. परन्तु साफ सुथरा था. नागेश ने उन्हें बैठाया और पानी लेकर टेबल पर रखा. अब तक सब असहज थे.
अंत में सुप्रिया ने ही चुप्पी तोड़ी. “हम क्षमा मांगने आये हैं.”
“किसलिए?” नागेश ने पूछा तो समर्थ और सुप्रिया एक दूसरे को देखने लगे.
समर्थ, “तुम्हारे और सुरेखा के तलाक के लिए. इसमें मेरी भूल थी. बिना ये जाने समझे कि तुम किस दबाव में वो सब कर रहे थे हमनें सुरेखा को तुमसे तलाक लेने का सुझाव दिया था.”
नागेश कुछ देर सोचता रहा. उसकी आँखें नम हो गयीं.
“मैं आपको दोषी नहीं मानता, न सुरेखा को. समय और परिस्थितियाँ अवश्य दोषी हैं. पर अब इस विषय में दुखी होने का कोई अर्थ नहीं है. अब हमारी राह पृथक हो चुकी हैं.”
“वो फिर जुड़ सकती हैं.” सुप्रिया ने तपाक से बोला तो नागेश चौंक गया.
“हाँ, नागेश. हम चाहते हैं कि तुम घर लौट चलो. बच्चे भी यही चाहते हैं और सुरेखा भी. हम सबको क्षमा करो और लौट चलो. पुनर्विवाह करके सुख से रहो.” सुप्रिया तो मानो अवसर देख रही थी, उसने दो वाक्यों में ही अपनी बात कह दी.
“मुझे सुरेखा और बच्चों से ये सुनना है. परन्तु मुझे अभी समय लगेगा. सोमवार को मैं दो महीने के लिए बाहर जा रहा हूँ. एक नई फैक्टरी को आरम्भ करना है. अगर सब ठीक रहा तो लौटने के बाद इस पर विचार करूँगा।”
“बच्चे तो कार में ही हैं, अभी बुलाती हूँ. और पापा आप निखिल या नितिन को कहो वो सुरेखा को ले आयें अभी.”
“वो नहीं हैं. हम चलते हैं. नागेश भी बच्चों के साथ समय बिता सकेगा.”
सुप्रिया के फोन के कारण संजना और सजल आ गए. वो नागेश के सीने से लग गए. संजना का रोना तो स्वाभाविक था पर सजल को रोता देख समर्थ का मन चीत्कार उठा. न जाने क्यों, वो आगे बढ़ा और नागेश के पैरों को पकड़कर बैठ गया.
“मुझे क्षमा कर दो, बेटा।”
नागेश भी भावुक था, उसने समर्थ को उठाया और उन्हें भी गले से लगा लिया.
“सब ठीक है बाबूजी. आप जाइये और मेरी सुरेखा को ले आइये. और इन दोनों को मेरे साथ छोड़ने के लिए धन्यवाद.”
कुछ और भावनात्मक पलों के बाद सुप्रिया और समर्थ चले गए. सुप्रिया की आँखों में आँसू थे. उसे अचानक ही अपने अकेले होने का आभास हुआ और एक पति की कमी का अनुभव हुआ. सुरेखा को समर्थ ने नागेश के पास छोड़ा तो कुछ देर और अश्रु-मिश्रित मिलन हुआ. फिर शनैः शनैः एक सामान्यता आ गई और मानो वो परिवार अपने पूर्व की स्थिति में आ गया.
दृश्य ८: अन्य स्थानों पर:
जहाँ एक ओर मेहुल और पार्थ रूचि मैडम के घर व्यस्त हैं. वहीँ मेहुल के लिए व्यस्तता और बढ़ गई है. इसके तीन कारण थे. एक इस माह के समुदाय मिलन में उसका उद्घाटन होना था. दूसरा दिंची क्लब में भी विशेष मासिक पार्टी रखी गई थी. और तीसरा उसे अपने और नायक परिवार के साथ प्राइवेट पार्टी के लिए रिसोर्ट जाना था. और इस कारण उसका अपने घर में महक और स्नेहा की चुदाई का कार्यक्रम पिछले दो ही दिनों में सम्पन्न करना पड़ा था.
पार्थ भी दिंची क्लब की पार्टी के कारण अब व्यस्त होने वाला था. वहीं उसकी माँ और प्रकाश का मिलन भी एक बड़ी चुनौती और कार्य था.
शीला और समर्थ अपने क्रूज़ पर जाने के लिए उत्सुक थे और सुरेखा के कारण एक नया मोड़ आ गया था.
पटेल परिवार भी प्रकाश के विवाह की योजना में लगा हुआ था और आशा कर रहा था कि इसमें सफलता मिलेगी. वर्तमान के संकेत बहुत प्रोत्साहन बढ़ाने वाले थे, परन्तु इन्हें अंतिम परिणीति तक पहुंचाना भी आवश्यक था. डिसूजा परिवार का अब तक सिंह परिवार से पूर्ण मिलन नहीं हुआ था. इसमें कुछ और समय लगने की आशंका थी. बजाज और राणा परिवार का मिलन अब निश्चित था. पर एक ही समस्या थी. बजाज परिवार के समुदाय में सम्मिलित हुए बिना शालिनी और जीवन एक नहीं हो सकते थे.
इसके अतिरिक्त केके के जीवन में एक नया मोड़ आने वाला था. सचिन ने भी एक नयी सदस्या के लिए पार्थ से बात की थी जिसके साथ उसने दो रात पहले ही ये सुझाव दिया था. और उसे कुछ नए और विस्फोटक तथ्य भी पता चले थे.