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दृश्य ५: सुजाता:
“ये निश्चित है न कि तुम्हें कोई आपत्ति नहीं है?” अविरल ने सुजाता के सिर पर हाथ घुमाते हुए पूछा.
सुजाता जो इस समय सूजी डार्लिंग की भूमिका में थी उसने अपना सिर उठाया और अविरल ले पैरों के अंगूठे को अपने मुंह से निकालते हु स्वीकृति में सिर हिलाया.
“ये समझती हो न कि एक बार ये तीर कमान से निकला तो लौटेगा नहीं.” अविरल जानता था कि सूजी डार्लिंग अब किसी भी मूल्य पर उसकी बात अब नहीं टालेगी, परन्तु पूछना उसका कर्तव्य था.
“जी, जानती हूँ. पर आपके लिए मुझे ये स्वीकार है.”
अविरल समझ गया कि सुजाता जानती है कि उसकी ये इच्छा है.
“पर तुम्हारी अपनी क्या इच्छा है? वो भी तो बताओ.” अविरल ने हठ किया.
सुजाता ने एक गहरी श्वास ली.
“मुझे ये भूमिका में आनंद आ रहा है. न जाने क्यों, मुझे इस प्रकार के तिरस्कार इत्यादि से अधिकाधिक उत्तेजना होती है. इस भूमिका में जिस प्रकार से मुझे असीम संतुष्टि मिलती है, उतनी मुझे पहले कभी अनुभव नहीं हुई. तो मेरा उत्तर है, कि मुझे ये बहुत रुचिकर लग रहा है. मेहुल ने मानो मेरी कोई दबी ग्रंथि को मुक्त कर दिया. और आपने उसमें और वृद्धि कर दी. इसीलिए आगे से आपको मुझसे पूछने की आवश्यकता नहीं है. अगर आपको ठीक लगे तो बस मुझे आज्ञा दीजिये.”
“ओके. परन्तु कुछ लीलाएँ मात्र मेरे और मेहुल के लिए ही संरक्षित रहेंगी. वैसे तो अपने लिए ही उन्हें सुरक्षित रखता, पर मेहुल के योगदान के कारण उसे निषेध करना उचित नहीं है.”
“जी, जैसा आप ठीक समझें.”
इतना कहकर अविरल खड़ा हुआ और सूजी डार्लिंग उसके पीछे घुटनों पर चल पड़ी. वो जानती थी कि अब उससे क्या अपेक्षित है और उसे पूरा करने के लिए वो भी उत्साहित थी. एक माह पहले की सुजाता से आज की सूजी डार्लिंग की की तुलना नहीं थी. जहाँ पर सुजाता एक अकड़ू और स्वार्थी स्त्री थी, तो सूजी डार्लिंग के प्रारूप में वो अत्यंत डब्बू, आज्ञाकारी और निस्वार्थ महिला बन जाती थी.
बाथरूम में जाकर सूजी डार्लिंग एक स्थान पर घुटनों के बल बैठ गई. सामने अविरल खड़ा था और उसका तमतमाया हुआ लौड़ा भयावह लग रहा था. पर सूजी डार्लिंग उसे सम्मोहित दृष्टि से देख रही थी.
“ये उनमें से पहला कर्म है जो केवल मुझे और मेहुल को ही प्राप्त है. हम दोनों के सिवाय कभी भी किसी और के साथ ये क्रीड़ा वर्जित है. अगर हम भी कभी नशे इत्यादि में बोल दें तो तुम्हें मना करना होगा.”
“जी, स्वामी.” ये कहते हुए सूजी डार्लिंग ने मुंह खोल दिया और अविरल ने लंड को साधते हुए उसके मुंह में मूत्र विसर्जन करना आरम्भ किया. कुछ मुंह में डालकर फिर उसके चेहरे और वक्ष पर भी डाला. सिर एवं बालों को बचाते हुए इस कार्य को समाप्त किया.
“मेहुल का मूत्र पीने से मना कर सकती हो, चाहो तो. पर मेरा कभी नहीं.”
“जी स्वामी.”
“गुड गर्ल सूजी डार्लिंग, अब स्नान करो और जिस विषय पर हमने बात की है उसके लिए उचित वेश भूषा धारण करो. मैं कमरे से बाहर जा रहा हूँ. आधे घण्टे में आऊँ तो तुम्हें उचित अवस्था में पाऊँ। अन्यथा…..”
ये चेतावनी सुनकर सूजी डार्लिंग के शरीर में कँपकँपी हो उठी. पर वो जानती थी कि वो इस समय सीमा में कार्य सम्पन्न कर लेगी.
अविरल बाहर बैठक में जाकर सोफे पर बिठा. विवेक और स्नेहा बैठे थे.
“डैड, हम जा रहें हैं रिसोर्ट पर.?”
“अभी नहीं.”
दोनों के मुंह उतर गए.
“अभी नहीं का अर्थ कभी नहीं नहीं होता. चलेंगे. पर पहले तुम दोनों से एक विषय पर बात करनी है.”
अविरल अपने पुत्र और पुत्री को घर के नए नियम और चरित्र के बारे में समझाने लगा. दोनों हतप्रभ से उसकी बात सुन रहे थे. जब अविरल ने अपनी बात समाप्त की तो दोनों सन्न थे.
“आपका अर्थ है कि मॉम आपकी स्लेव यानि दासी के रूप में रहना चाहती हैं?’
“हाँ. और जैसा मैंने कहा उस द्वार के पीछे अर्थात हमारे कमरे में वो आज से सबके लिए सूजी डार्लिंग रहेगी, और कमरे के बाहर वो सुजाता गौड़ा हो जाएगी. उस कमरे के बाहर वो मात्र मेरे लिए ही सूजी डार्लिंग रहेगी. और एक व्यक्ति भी है जिसे ये अधिकार है, पर अभी उसका नाम उजागर करना उचित नहीं है. समय आने पर वो भी पता चल ही जायेगा.” अविरल ने उन्हें सुजाता के रूपांतरण के पीछे के रहस्य को नहीं बताया था. उसे विश्वास था कि समय के साथ इसे बताना उचित होगा. उसने समय देखा तो आधा घण्टा हो चुका था. उसने विवेक और स्नेहा की ओर देखा.
“मेरे विचार से अब तुम दोनों का सूजी डार्लिंग से मिलने का समय हो गया है. मेरे पीछे आओ. और ध्यान रहे उस द्वार के पीछे तुम्हारी माँ नहीं बल्कि सूजी डार्लिंग है और उससे उसी प्रकार से व्यवहार करना होगा. स्नेहा तुम्हारे लिए ये सरल है, तुम मेहुल से जो व्यवहार करती थीं वो भी इसके सामने क्षीण होना चाहिए.”
स्नेहा ने सिर झुकाया और फिर हिलाकर स्वीकारा.
“आओ.”
आगे बढ़ते हुए अविरल ने कमरे को खोला और अंदर प्रवेश किया. अंदर मद्धम प्रकाश था. विवेक उसके पीछे आये. उनके सामने घुटनों के बल एक महिला बैठी हुई थी. उसके गले में कुत्ते का पट्टा बंधा था जिसमें एक चेन लगी थी. उसे देखकर ये प्रतीत हो रहा था मानो उसकी पूँछ भी हो. उसका सिर झुका हुआ था.
“सूजी डार्लिंग, देखो तुम्हें मिलने कौन आया है?” अविरल ने बोला।
सूजी डार्लिंग ने सिर उठाकर देखा और स्नेहा और विवेक को देखकर उसकी आँखों में चमक आ गई. परन्तु उसने अपने मुंह से कुछ न बोला। अविरल सोफे पर जाकर बैठा और स्नेहा और विवेक को भी बैठने को कहा. वो दोनों तो अपनी माँ के इस नए स्वरूप से चकित थे और अपने पिता की बात मानते हुए सोफे पर जा बैठे.
“सूजी डार्लिंग, हम सबके पाँव बहुत गंदे हो गए हैं. क्यों नहीं तुम उधर से आरम्भ करते हुए उन्हें साफ कर दो.” अविरल ने निर्देश दिया.
सूजी डार्लिंग घुटनों के बल चलकर विवेक के पास गई और उसकी चप्पल उतार दी. फिर उनके पैरों को अपने मुंह में लेकर चाटकर साफ करने लगी. विवेक को तो समझ ही नहीं आया कि ये क्या हो रहा है. अविरल मुस्कुरा रहा था कि विवेक के मुँह से निकला, “मॉम!”
ये सुनते ही सूजी डार्लिंग ने अपने मुंह से उसके पैर को निकाल दिया. विवेक को अपनी भूल का आभास हो गया. उसने तुरंत सुधार करते हुए कहा, “सूजी डार्लिंग, मैंने तुम्हें ऐसा करने के लिए नहीं कहा. चलो, मेरे पैर साफ करो. और फिर लौटकर आना तो मेरे लंड पर भी कुछ गंदगी लगी है, उसे भी तुम्हें ह निकालना है.”
सूजी डार्लिंग की आँखों की चमक लौट आई और वो अपने कार्य में लग गई. विवेक के बाद स्नेहा और उसके उपरांत अविरल के पैरों को उसने उचित रूप ने मलयुक्त कर दिया और विवेक के निर्देशानुसार उसकी लंड को साफ करने चली गई. अविरल ने उसके इस कृत्य से संतुष्टि जताई.
“सूजी डार्लिंग, यू आर बीइंग ए गुड गर्ल.”
सूजी डार्लिंग उसकी बात सुनकर विवेक के लंड को चाटने में जुट गई.
दृश्य ६: मिशेल:
मिशेल अपने तलघर के तरणताल में बैठी अंदर देख रही थी जहाँ ईव की भयंकर चुदाई चल रही थी. पार्थ और नितिन ने ईव को दोनों ओर से सैंडविच बनाया हुआ था. पार्थ नीचे लेटे हुए ईव की चूत चोद रहा था तो नितिन उसकी गांड मार रहा था. मिशेल स्वयं इस समय अकेली बैठी हुई बियर के घूँट ले रही थी. इन दोनों युवकों से वो कुछ देर ही पहले इसी प्रकार से चुदी थी, बस लंड और छेद भिन्न थे. पार्थ के लंड ने उसकी गांड में बहुत तहलका मचाया था.
एक मुस्कान के साथ वो उस समय को स्मरण करने लगी जब वो नए वर्ष के समारोह में मंत्रीजी के रिसोर्ट में गई थी. और उनके कौटुम्बिक व्यभिचार का रहस्य पार्थ पर खुल गया था.
मिशेल का परिवार इवान के निमंत्रण पर मंत्रीजी के रिसोर्ट पर गया था.
तीस दिसंबर को रिसोर्ट पहुँचा था. नए वर्ष का समारोह कल था, परन्तु उसमे मुख्य आकर्षण क्या था, इस पर रोमांच था. शाम को सब रेस्त्रां में ही एकत्रित हुए थे. यही रिसोर्ट का मिलन बिंदु था. रेस्त्रां के ही साथ में एक विशाल हॉल (बैंक्वेट) था और वहाँ भी बैठने का प्रबंध था. देखकर लगता था कि उस स्थान का उपयोग मंत्रणा इत्यादि के लिए किया जाता था. मिशेल का परिवार वहाँ उचित समय पर पहुंच गया था. रेस्त्रां में कुल ५० लोग थे. २४ पुरुष और अन्य स्त्रियां. पुरुषों में ८ लड़के थे और १० लड़कियां थीं.
मंत्रीजी के साथ कई स्त्रियों ने आकर उन्हें लुभाने का प्रयास किया परन्तु उनकी आज की रात तो केके के साथ निर्धारित थी. मंत्रीजी के लंड के आकार को देखकर उन स्त्रियों का दुखी होना उचित ही लगता था. नगर के प्रसिद्ध व्यवसाई पारस जी मंत्रीजी की ही टेबल पर बैठे थे. उनकी पत्नी सुधा उनके साथ थी. उनके पुत्र, बहू, पुत्री और दामाद अन्य स्थान पर बैठे हुए थे जहाँ उनकी आयु के चार अन्य लोग भी थे.
मिशेल और उनका परिवार इस पूरे वातावरण को अचरज से देख रहा था. इवान उनके पास आकर उन्हें अन्य अतिथियों से मिलवाने ले जाता था और कुछ अतिथि स्वयं भी उनके पास आते थे. उनका अफ़्रीकी रंग रूप भी एक आकर्षण था. पुरुषों के लौड़े देखकर महिलाएं उनसे संसर्ग के लिए उद्यत थीं तो पुरुष इन स्त्रियों को भोगने को आतुर.
सब कुछ शांति के वातावरण में चल रहा था और सब अपने प्रिय पेय पीते हुए एक दूसरे से बातें कर रहे थे. कहीं कहीं बीच में कुछ चुंबनों का आदान प्रदान हो जाता था. परन्तु अधिकांश मेजों पर नग्नता के पश्चात भी कोई फूहड़ता इत्यादि का प्रदर्शन नहीं हो रहा था.
इस वातावरण में अशांति का प्रवेश हुआ. और ये कोई अल्पायु का बालक या बालिका नहीं थी. ये एक आदेश आयु की स्त्री थी जिन्हें लेकर क्लब के ही दो सहायक आये थे. वो आकर सबसे पहले सुधा के पास गयीं और उन्हें अपनी चूत से बहता हुआ रस दिखाया. फिर एक ऊँगली निकालकर सुधा के होंठों पर मल दिया. सुधा ने निःसंकोच उसे चाट लिया.
“कैसा है?” महिला ने पूछा.
“मस्त है माँ जी. जहाँ से निकला है उसका भी अमृत मिला हुआ है.” सुधा ने चाटुकारिता से उत्तर दिया.
उस महिला ने मुस्कुराते हुए पारस जी से कहा, “मैं कहती हूँ न, मैंने बहू लाखों में एक ढूँढी है तेरे लिए.”
अब डिसूज़ा परिवार को समझ आया कि ये स्त्री पारसजी की माँ हैं.
“अब तुम कहती हो तो मान लेता हूँ.” पारसजी ने हँसते हुए उत्तर दिया.
“वैसे गांड में भी है माल अगर चखना है तो.” उस महिला ने सुधा से पूछा.
“नहीं माँ जी, अभी नहीं.”
“आंटीजी प्रणाम!” मंत्रीजी की ध्वनि ने उनका ध्यान खींचा.
“अरे ये देखो कौन बैठा है, बॉबी तुझे तो मैंने देखा ही नहीं और शिखा! हाय कितनी सुंदर लग रही है.”
मंत्रीजी बोले, “अरे अपनी बहू से ध्यान हटे तो कोई दिखे. कैसी हो आंटीजी?” वो खड़े हो गए.
वो महिला मंत्रीजी के सीने से लग गई.
“अच्छी हूँ. बस तू क्यों नहीं याद करता अब? बूढ़ी हो गयी इसीलिए न?”
“नहीं नहीं. आप तो जानती हो. कितनी व्यस्तता रहती है. आप मेरे लिए कभी बूढ़ी नहीं हो सकतीं. आप तो मेरा पहला प्रेम हो.”
“चल दुष्ट, मक्खन लगा रहा है. अच्छा सुन अब मिल ही गया है तो.” उन्होंने मंत्रीजी के मोटे भारी लौड़े को हाथ में लेकर बोला, “अब आज की रात मैं तेरे ही साथ रहूंगी.”
मंत्रीजी दुविधा में पड़ गए. कहाँ आज उनका शयन और चुदाई केके के साथ थी और कहाँ आंटीजी ने अपना अधिकार जता दिया. उन्होंने शिखा की ओर देखा तो वो समझ गयी. उसने बात संभाली.
“आंटीजी, ठीक है. पर एक ही स्थिति में आज रात ऐसा हो सकता है.”
“कैसी?”
“आप कल शाम के कार्यक्रम के पहले हमारे बंगले से बाहर नहीं आ सकतीं. आप हमारे साथ ही आ पाएंगी.”
“और मैं पूरे दिन करुँगी क्या मेमसाब?”
“जो मन हो. चुदाई या विश्राम.”
“बॉबी से?”
“इसका मैं विश्वास नहीं दिला सकती, पर आपको लौडों की कमी नहीं होगी.” ये कहते हुए शिखा ने अपने पति मंत्रीजी को देखा. मंत्रीजी अपनी पत्नी के खेल को समझ गए.
“मैं तो रहूँगा ही आंटीजी.”
“फिर ठीक है. कब चलना है?”
“जब सब जाने लगेंगे तब.”
आंटीजी समझ गयीं कि इससे अधिक इस विषय में बात करने से कुछ न मिलेगा. वो शांति से सुधा के पास जा बैठीं और अपने लिए पेग मंगा लिया.
अपने स्तनों पर किसी के हाथों के स्पर्श के आभास से मिशेल की तंद्रा टूटी. देखा तो डेविड था जो उसे जगा रहा था.
“व्हाट हप्पेनेड मॉम, स्लेप्ट? (क्या हुआ माँ, सो गयी थीं?)”
“ओह नो. मैं न्यू ईयर वाले रिसोर्ट के बारे में सोच रही थी. वी हैड सो मच फन.”
“याह, इट वास ग्रेट. मामी इस गेटिंग फक्ड वेल नाउ.” डेविड ने कहा तो मिशेल ने अंदर झाँका जहाँ ईव की चुदाई में कोई कमी नहीं आई थी.”
“जाओ तुम भी चले जाओ. उसका मुंह अभी खाली है.”
“यू आर राइट. ओके. आता हूँ.” ये कहते हुए डेविड ने कपड़े उतार फेंके, “पर मॉम, आप अधिक देर तक अकेले नहीं रहने वाली. मार्क और डैड भी आ चुके हैं पर अभी ऊपर हैं. मामा भी आने ही वाले होने इसीलिए रुके हैं.”
“ओह! गुड. आई वांट टू गेट फक्ड अगेन!” ये कहते हुए मिशेल ने बियर का एक घूँट लिया और डेविड को जाते हुए देखने लगी. और कुछ ही पलों में ईव के सामने जा खड़ा हुआ. ईव ने अपने सामने एक और लौड़ा देखा और बिना आपत्ति के मुंह में ले लिया.