अदिति का कमरा:
अदिति उड़ती हुई अपने कमरे में गयी जहाँ अजीत पहले ही जा चुका था. और उसने कमरा बंद किया और पीछे मुड़ी तो अजीत को नंगा खड़ा पाया.
“वापसी पर स्वागत है.” अजीत ने अपने लंड को हाथ से हिलाते हुए मुस्कुराकर कहा. “तुमने कुछ कपड़े अधिक नहीं पहने हुए हैं?”
अदिति ने आनन फानन कपड़े फेंके और जाकर अजीत से लिपट गयी.
अजीत ने उसे बाँहों में लिया और चुम्बनों की झड़ी लगा दी. उसका प्रतिउत्तर अदिति ने उसे उल्टा चूम चूमकर दिया. दोनों एक दूसरे में मानो समाहित होना चाहते हों. कमरे का तापमान कई डिग्री ऊपर जा चुका था, पर उन दोनों को इसका भान भी नहीं था.
अदिति ने अजीत के हाथ अपनी चूत पर लगाया तो उसका हाथ भीग गया.
“ओह! लगता है बहुत उत्सुक है. लाओ पहले चख लूँ।” अजित ने कहा.
“नहीं, वो सब रहने दो. आज पहले चुदाई करो फिर कुछ और. इतने दिनों से इसमें एक ऊँगली भी नहीं गई है तो अब इसे खोल दे एक बार फिर से.” अदिति ने विनती की.
अजीत उसकी भावना को समझ गया और अदिति के होंठों को चूमते हुए उसे पलंग पर लिटा दिया.
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शालिनी का कमरा:
शालिनी अपने पोते पोती को देख रही थी कि वे इस समाचार से कितने उत्साहित थे. गौतम का कारण वो समझ सकती थी पर अनन्या को देखकर उसे अधिक सुख हुआ क्योंकि वो अपनी माँ के सुख से आनंदित थी.
“हम्म्म, अब वो दोनों अगर व्यस्त हैं तो क्यों न हम भी इस समय का सदुपयोग करें?” शालिनी से सुझाव दिया.
“बिल्कुल दादी, बोलो क्या करना है? कहीं चलना है क्या?” अनन्या ने पूछा.
उसके भोलेपन पर शालिनी न्योछावर हो गई, पर गौतम ने उसकी दादी का अर्थ समझ लिया था. अवश्य दादी आज अनन्या का रस पीने की इच्छुक थीं.
“दादी, चलो फिर!” उसने अनन्या का हाथ लिया और शालिनी को आगे चलने का संकेत किया.
शालिनी ने रसोई से झाँकती हुई राधा को देखा तो उसे भी आने का संकेत दिया. राधा ने कुछ समय में आने का विश्वास दिलाया.
कुछ ही पलों में जब तीनों ने शालिनी के कमरे में प्रवेश किया तो अनन्या को भी उद्देश्य समझ आ गया. परन्तु वो अभी अपनी दादी से उस प्रकार से खुली नहीं थी जैसे कि गौतम. और तो और अपनी माँ की अनुपस्थिति में उसे अधिक संकोच हो रहा था. शालिनी ने उसकी इस भावना को पढ़ लिया. आगे बढ़कर उसने अनन्या को बाँहों में लिया.
“शर्माना और घबराना छोड़ मेरी गुड्डो. अपने पिता को उनकी पत्नी के लिए छोड़ दे. एक दो दिन उन दोनों को एक दूसरे को फिर से पा लेने दे. फिर तुझे कोई नहीं रोकेगा. तब तक अपनी दादी को भी अवसर दे दे. तेरे भाई को तो अभी रुकना होगा. पहले उसे अदिति के चढ़ावा चढ़ाना होगा. इतने दिन तूने संयम रखा है. चार दिन और सही. आ मैं तुझे कुछ सिखाती हूँ.”
अनन्या ने शर्माते हुए अपना सिर झुका लिया. शालिनी ने उसकी ठुड्डी पकड़ी और उसके चेहरे को ऊपर उठाकर उसके होंठ चूम लिए. गौतम ये देखकर उत्तेजित होने लगा. उसने कभी दो स्त्रियों को एक दूसरे से संसर्ग करते हुए जो नहीं देखा था. उसने पैंट के ऊपर से ही अपने लंड को मसला जो अब टनटना रहा था.
शालिनी तो अदिति और राधा के साथ लेस्बियन सुख पाने में अभ्यस्त थी. अनन्या अभी इस क्रीड़ा की नयी शिष्या थी. और उसने अब तक केवल अपनी माँ से ही बस एक बार संसर्ग किया था. शालिनी ने उसकी कमर पकड़कर उसे अपनी ओर खींचा और होंठों को चूसने की गहनता बढ़ा दी. कुछ ही पलों में अनन्या उनका साथ देने लगी. दोनों की जीभें एक दूसरे से लड़ने लगीं. शालिनी ने ताड़ लिया कि उनकी पोती अब उनके रंग में रंग गई है.
अपने होठों को हटाए बिना ही उन्होंने अनन्या के वस्त्रों को निकालने का उपक्रम किया और ऊपर के कपड़ों को उतारने में सफल रहीं। उन्होंने अनन्या के छोटे स्तनों को अपने हाथ से सहलाया और फिर चुंबन तोड़ते हुए उसे हटाकर देखने लगी.
“हम्म्म, माँ पर गई है सुंदरता में. तेरी माँ भी ऐसी ही दिखती थी तेरी आयु में. एकदम छुईमुई सी, मलाई सी कोमल.” ये कहते कहते उन्होनें अनन्या के नीचे पहने हुए सलवार को भी खोल दिया. फिर बिना ठहरे हुए उसकी पैंटी को दो ओर से पकड़ा और नीचे सरका दिया. अनन्या ने पैरों को ऊपर नीचे करके उन्हें हटा दिया.
गौतम अनन्या के अनन्य और अलौकिक सौंदर्य से मानो वशीभूत हो गया.
गौतम ये सब देखकर स्तंभित था तो उसे राधा के आने से और झटका लगा. उसे लगा कि अनन्या अब भागेगी, पर उसे तो दादी से मानो अपने वशीकरण में जकड़ा हुआ था.
“तुझे पता है न कि कल तेरे भाई ने रात भर इसे चोदा था?” शालिनी ने अनन्या के मम्मे सहलाते हुए पूछा.
“देखा था आप तीनों सो रहे थे, फिर मौसी ने भी बताया था जब मैंने इसके लंड को चूसा था तब.” अनन्या ने उत्तर दिया.
“चलो, अच्छा है सबके बीच कोई रहस्य नहीं है.” शालिनी ने कहा तो राधा का मुंह उतर गया, उसके पति से जो ये सब छुपा हुआ था. शालिनी ने उसका चेहरा देखा तो समझ गई. परन्तु उसने राधा से बाद में बात करने में भलाई समझी. उसने राधा को इस आशय से संकेत किया तो राधा ने सिर हिलाकर उसकी बात को स्वीकारा.
“कपड़े क्यों डाले घूम रही है?” शालिनी ने राधा से पूछा. राधा ने देर न की और उसका मांसल गठा हुआ शरीर कमरे के प्रकाश में दमक उठा.
“ चल अब अपने दूल्हे के कपड़े संभाल और फिर उसके लौड़े को चूस. कल तो तेरी चूत की आग मिटाने में ही लगा रहा था. आज उसका स्वाद ले ले.” शालिनी ने निर्देश दिया.
राधा आगे बढ़ी और गौतम को नंगा करने के बाद ही रुकी. उसने गौतम के तने लौड़े को देखा तो कल की चुदाई के स्मरण से उसकी चूत पसीज गई. पर जाने दादी की क्या योजना थी. उसने तो दो गई आज्ञा को ही सर्वोपरि रखते हुए गौतम के सामने घुटने तक दिया और उसके लंड को हाथ में लेकर तौलने लगी. फिर अपनी जीभ निकालकर उसके टोपे को चाट लिया. गौतम की सिसकी निकल गई.
शालिनी ने अनन्या को हाथ पकड़कर लिटाया और उसके साथ लेट गई.
“दादी, आप क्यों कपड़े पहने हो, हम सबके तो उतरवा दिए.” अनन्या ने पूछा तो शालिनी को आभास हुआ.
उसने इस त्रुटि का समाधान तुरंत किया. गौतम अपनी दादी को निर्वस्त्र देखकर और उत्तेजित हो गया और इसका आभास राधा को हुआ जब उसका लंड राधा में मुंह में उछलने का प्रयास करने लगा.
“अब ठीक है?” शालिनी ने अनन्या को पूछा और अब साथ न लेटकर उसके पैरों को फैला दिया. प्रकृति की अनुपम भेंट अब शालिनी के सामने खिल गई. गौतम ने भी अनन्या की चूत को देखा जिस पर कहने के लिए ही मात्र कुछ बाल थे. राधा के मुंह में उसके लंड ने फिर एक झटका मारा. राधा न लंड मुंह से निकालकर चूमा और शालिनी से बोली.
“गुड्डू बहुत नटखट है माँ जी. मेरे मुंह में भी उछले जा रहा है.” गुड्डू गौतम के बचपन का नाम था जिसका उपयोग कई वर्षों से बंद हो गया था. पर आज राधा मौसी ने फिर उसे जीवित कर दिया.
“तो तेरी कमी है न. क्यों उसे ठीक से नहीं पकड़ रही है. गले में फँसा ले तो भागेगा नहीं!” शालिनी ने सुझाव दिया और अपनी पोती के पैरों के बीच में बैठ गई. “मैं अपनी गुड्डो का अमृत पी लूँ, तो मेरी आयु बढ़ जाये.”
शालिनी ने अनन्या की चूत की फाँकों को फैलाया और अपने होंठों पर जीभ फिराई। उसकी नाक में अनन्या की बुर की महक समा गई, और मुंह में पानी भर आया.
“माँ जी, बाद में मुझे भी चखाना अन्नू बिटिया का मधु. बहुत मीठा होगा.” राधा ने गौतम के लंड को मुंह में लेने से पहले अपना आवेदन लगाया.
शालिनी ने अपनी जीभ को अनन्या की चूत पर घुमाया और चाटना आरम्भ किया. अनन्या सुखद अनुभूति से सिसक पड़ी. शालिनी जिसने कभी युवा चूत का सेवन नहीं किया था, नशे में आ गई. राधा और अदिति की चूतों से स्वाद और सुगंध भिन्न जो थी. और तो और बुर अभी भी कसी और बंद थी और जीभ समान कोमल अंग के भेदने का प्रतिरोध करने में सक्षम थी. शालिनी ने इस विषय पर बाद में चिंतन करना श्रेष्ठ समझा.
चूत पर जीभ से चाटते हुए उसे आभास हुआ कि अनन्या की चूत न केवल पानी छोड़ रही थी, बल्कि शनैः शनैः एक फूल के समान खुल भी रही थी. शालिनी ने उँगलियों से उसे छेड़ा तो अनन्या काँप उठी और उसकी चूत की फाँकें फ़ैल गयीं. समय उपयुक्त था, और शालिनी किसी भी मूल्य पर इसे गँवाना नहीं चाहती थी. उसने अपनी छोटी ऊँगली को अनन्या की चूत में धीरे से डाला और फिर अपनी जीभ से बाहर चाटने लगी.
“ओह! दादी!” अनन्या ने सिसकी ली. शालिनी को मानो जड़ी गई, उसने पूरे सामर्थ्य से अनन्या की चूत के अंदर ऊँगली और बाहर जीभ से आक्रमण कर दिया. बेचारी अनन्या बस सिसकियाँ लेती कंपकँपा रही थी. उसकी माँ के साथ इतना समय नहीं मिला था, और उसकी माँ के सीमित संचालन के कारण भी अदिति अपनी बेटी को संतुष्टि से भोग नहीं पाई थी. आज अनन्या को स्त्री सुख का सच्चा अनुभव हो रहा था. और ये अलौकिक था.
कमरे के दूसरी ओर राधा भी अपनी योग्यता दिखाने का पूरा प्रयत्न कर रही थी. गोकुल के साथ जो सम्भव न था, वो आज गौतम के साथ करने की चेष्टा कर रही थी. गोकुल उसे अधिक देर तक लंड चूसने से रोकता था, और न जाने क्यों, राधा को लंड की महक बहुत प्रिय थी. उसे लंड चाटने से जो स्वाद मिलता था वो भी उसे अनूठा लगता था. पर गोकुल उसे चोदने की लालसा में उसे कभी लंड चूसने का अवसर नहीं देता था. जब राधा ने उस दिन अजीत का लंड देखा था तो चुदने से अधिक उसकी इच्छा उसे चूसने की हुई थी. कल रात को शालिनी के कमरे में भी उसकी ये प्यास अधूरी ही रह गई थी. गौतम कल उसे चोदने के लिए इतना उत्सुक था कि लंड अधिक देर तक चूसने ही नहीं दिया था. पर आज उसका समय था और गौतम उसे रोकने का इच्छुक भी नहीं था.
गौतम भी मौसी को अपनी ओर से उत्साहित कर रहा था.
“वाह मौसी, क्या चूसती हो. बहुत आनंद आ रहा है मौसी. सच में मौसी, क्या गाल हैं. क्या बात है मौसी!”
अपनी प्रशंसा सुनकर कौन नहीं प्रसन्न होता. यही राधा के साथ भी था. वो और अधिक आतुरता से चूसने में लग गई और गौतम भी इसका लाभ लेने लगा. राधा आज गौतम का वीर्य उसके लंड से सीधे पीने की इच्छा रखती थी. और उसने प्रण लिया कि जब तक वो इस लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर लेती, चाहे जो हो, गौतम के गुड्डू को मुंह से नहीं निकालेगी.
“मौसी, बिस्तर पर चलो. मैं भी आपकी चूत का रस लेना चाहता हूँ. वहां आप लंड चूसती रहना.” गौतम के इस सुझाव को राधा ने तुरंत माना और पलक झपकते ही वो नीचे थे और गौतम उसके ऊपर. गौतम ने अपना मुंह उसकी चूत में घुसाया और लंड उसके मुंह में. राधा के जीवन का एक लक्ष्य पूर्ण हो गया था. अब उसे गौतम के रस अवश्य मिलने वाला था.
शालिनी अपनी पोती अनन्या का रस यूँ पिए जा रही थी मानो किसी भोज में आई हो. अनन्या भी उसे अपने रस से एक क्षण के लिए भी वंचित नहीं कर रही थी. शालिनी की अपनी चूत से भी इतना पानी बह चुका था कि उसके बैठने का स्थान गीला हो चुका था.
“दादी!” अनन्या ने धीमे से कहा, “अब और नहीं दादी! अब रुक जाओ.” शालिनी ने मुंह उठाकर देखा तो अनन्या के मुख पर एक असीम संतुष्टि की मुस्कराहट थी. उसने ऑंखें खोलकर दादी को देखा. शालिनी के पूरे चेहरे पर उसकी चूत का रस लगा हुआ था. भीगे हुए चेहरे को देखकर अनन्या भी मुस्कुराई.
“दादी आपका पूरा मुंह गीला है!”
“मेरी लाडो का रस है. ये सुगंध और स्वाद मैं अगर सम्भव हो तो जीवन भर यूँ ही रख सकती हूँ.” फिर उसने राधा की ओर देखा.
“राधा, गौतम का रस पी ले जी भर के. फिर मेरी लाडो का भी पीने मिलेगा.”
राधा ने उनकी ओर देखा और उनके नीचे जमा होते रस को भी.
“माँ जी, उसका रस तो मिलेगा ही, पर आपका रस भी बहे जा रहा है. गुड्डू भैया के बाद दोनों का स्वाद लूँगी।” ये कहते हुए वो फिर से गौतम के लंड को चूसने लगी.
“दादी!”
“हाँ, गुड्डो!”
“मैं, मैं, मैं…….. चख लूँ?”
“सच?”
“हाँ.”
“आ जा फिर.”
शालिनी बिस्तर पर पसर गई और अपनी चूत खोल दी. पैरों को फैलाते हुए अनन्या का स्वागत किया. अनन्या ने अपना स्थान लिया और दादी की चूत चाटने में जुट गई. अब तक उसका अनुभव नगण्य ही था, पर इच्छा अपनी दादी को सुख देने की बलवती थी. इसी कारण शालिनी को उसके चाटने में अनोखा सुख मिल रहा था. अदिति और राधा के बाद ये तीसरी थी जिसका आनंद लेने का शालिनी को सौभाग्य मिला था. अनन्या अपने कार्य को पूरी श्रद्धा से कर रही थी तो राधा पीछे कैसे रह सकती थी?
राधा गौतम को उस अवस्था में ला चुकी थी जहाँ वो अपना पानी छोड़ने वाला था.
“मौसी, निकलने वाला है.” उसने सचेत किया. इसके उत्तर में राधा ने लंड को और जोर से चूसा और सिर हिलाकर बताया कि वो यही चाहती है.
“ओह मौसी!!!” गौतम ने हुंकार भरी और राधा मौसी के मुंह में अपने पानी की धार छोड़ने लगा.
राधा ने उसे पीने में कोई संकोच नहीं किया. वो आज एक विशेष तृप्ति का अनुभव कर रही थी. उसकी इच्छा जो पूर्ण हुई थी. चटखारे लेते हुए वो हर बूँद का स्वाद लेना चाहती थी. जब गौतम स्खलित हो चुका तो राधा ने उसके लंड को चूमा और एक ऊँगली से उसके वीर्य को अपने दाँतों पर मल दिया. उसके मुंह में अब ये स्वाद और सुगंध देर तक रहने वाली थी.
चारों इस समय भिन्न भिन्न रूप से संतुष्ट थे. शालिनी की चूत में अभी तक अनन्या की जीभ घूम रही थी, और शालिनी इसका आनंद उठा रही थी. गौतम एक बार झड़ने के बाद प्रसन्न था. और राधा इतने समय बाद सीधे वीर्य के पी पाने के कारण आनंदतीत थी. शालिनी ने कुछ देर में अनन्या को हटा दिया और सब बैठ गए. सब शालिनी को ही देख रहे थे कि वो आगे क्या निर्णय लेती है. गौतम की आशाभरी दृष्टि को देखते ही उसका निर्णय अंतिम हो गया.
“कैसा लगा मेरे पोते का रस, राधा?”
“बहुत स्वादिष्ट है माँ जी. सच में मैं आपको आभारी हूँ जो अपने मुझे बिना किसी और स्वाद और गंध के उसे मुझे चूसने दिया.”
“चल आगे तुझे और ऐसे अवसर मिलेंगे. चली जाया कर जब जी करे इसके कमरे में. चूस भी लिया कर और चुद भी लिया कर. अब कौन रोकने वाला है.” शालिनी ने उसे ढाढ़स बँधाया, “अब रही बात तेरी तो कुछ देर रुककर मेरी पोती का भी स्वाद ले ही ले. तब तक मैं इसे ठंडा करुँगी.”
शालिनी ने ये कहा और गौतम को संकेत दिया कि वो इस बार गांड मरवाने का मन बनाये हुए है. गौतम की बाँछे खिल गयीं.
“मेरी लाडो चाहेगी तो वो मुझे चाट कर सुख दे सकती है.” शालिनी किसी भी शंका को दूर करते हुए कहा.
अनन्या को पहले समझ न आया कि ये कैसे होगा, पर फिर उसकी बत्ती जली और उसने शालिनी को अचरज भरी आँखों से देखा.
“दादी! आप क्या?”
“हाँ लाडो। ये मेरी गांड मारेगा, कल रात भी मारी है. और कुछ दिन रुक, देखना तेरा बाप भी तेरी इस कोमल गांड को अपने लंड से खोलेगा। फिर तेरे भाई को भी मिलेगी।” शालिनी अनन्या के नितम्बों पर हाथ फिराते हुए बोली तो अनन्या की गांड में सुरसुरी होने लगी.
“माँ जी, क्यों फूल सी बच्ची को दहला रही हो. उसे बैठने दो. मैं चाटूँगी न आपकी चूत और आप मरवाओ अपने नवासे से गांड अच्छे से. इसे भी देखने दो कितना आनंद है इसमें.”
“जैसे गोकुल तेरी हर दिन गांड ही मारा करता है.” शालिनी ने छेड़ा.
राधा का चेहरा लाल हो गया.
“माँ जी आप तो जानती ही हो. जो चूत की आग भी ठीक से ठंडी नहीं कर पाता वो गांड को क्या छुएगा.” राधा ने कह तो दिया पर उसे अपनी भूल का आभास हो गया कि उसने बच्चों के सामने ये राज खोल दिया. उसने बात संभाली, “पर इस बार खूब जम कर चोदकर गए हैं. अगली बार गांड भी मारने के लिए कहूँगी।”
“जैसे तब तक गौतम और अजीत तेरी गांड छोड़ने वाले हैं. उसे अपनी ओर से बोलने देना नहीं तो उसे कोई शंका हो गई तो कठिनाई हो जाएगी. उसे पहले पटरी पर ले आएं फिर बोलना. मेरे गाँव में एक वैद्य जी हैं, उनसे बात करवा दूँगी या तू ही बात करवा देना, किसी बहाने। वैद्य जी को हम पहले समझा देंगे कि समस्या क्या है.”
ये सुनकर राधा प्रसन्न हो गई. उसने गौतम को देखा जिसका लौड़ा ये बातें सुनकर फिर से झंडा रोहण के लिए उत्सुक हो गया था. राधा ने उसे चूमा और उसे शालिनी की ओर जाने का संकेत किया.
“अनन्या बिटिया, तुम इधर बैठो. देखो हम क्या कर रहे हैं.” उसने अनन्या को अपने पास बुलाया.
अनन्या के बैठने के बाद, उसने गौतम को शालिनी के सामने खड़ा कर दिया और स्वयं शालिनी के पीछे चली गई. शालिनी ने एक ओर से गौतम के तने लंड को मुंह में लिया और दूसरी ओर से राधा ने उसकी गांड को खोलते हुए उसे चाटने का कार्यक्रम आरम्भ कर दिया. अनन्या सब देख कर आश्चर्य कर रही थी.
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अदिति का कमरा:
“देखिये, पहले आप मुझे एक बार चोद दीजिये. उसके बाद ये सब करेंगे. मैं इतने दिनों से प्यासी हूँ कि एक मिनट भी रुकना एक दण्ड है.” अदिति की बेचैनी देखते ही बनती थी. अजीत इसे समझ रहा था. वो स्वयं भी अपनी पत्नी से समागम के लिए व्याकुल था. अपनी सेक्रेटरी की चुदाई तो वो पहले भी करता था, पर अपनी माँ शालिनी की चुदाई जो अभी आरम्भ की थी, उससे उसके व्यथित लौड़े को कुछ शांति मिल गई ही. अपनी बेटी की चुदाई करने के बाद वो और भी अधिक संतुष्ट था. परन्तु उसका मन सदा ही अदिति के ही लिए तड़पता था.
अदिति पलंग पर लेटी तो अजीत ने भी देर न की. उसका लंड भी तमतमाया हुआ था, इतने दिन के बाद अपनी पत्नी की चुदाई का अवसर जो मिल रहा था. एक बार उसने अदिति की चूत को देखा जो रस की बूंदों से चमचमा रही थी. अपने लंड को पकड़कर उसने अदिति की चूत पर लगाया और बहुत संयम के साथ अंदर डालना आरम्भ कर दिया. अदिति को चुदाई का लाइसेंस अवश्य मिला था परन्तु वो उसे किसी भी प्रकार से चोट नहीं पहुंचना चाहता था. कुछ दिनों प्रेमपूर्वक चुदाई का आनंद लेने का प्रण जो किया था. अदिति ने एक गहरी साँस भरी और मीठी सिसकी के साथ पति का स्वागत किया.
“ओह! माँ! कितनी तरसी हूँ इसके लिए. पर अब नहीं.” अदिति बोली.
“और मैं भी तुम्हें तरसने नहीं दूँगा, तुम नहीं जानतीं कि तुम्हारी कमी कोई भी और पूरा नहीं कर सकता.” अजीत ने अपनी भावना का प्रदर्शन किया.
इसके बाद दोनों एक दूसरे से लिपटे, एक दूसरे को प्रेम से चूमते हुए, यूँ ही सम्भोग करते रहे. न जाने किस सकती अजीत को ठहरने की असीमित क्षमता प्रदान कर दी थी आज के मिलन के लिए. कमरा में व्याप्त सुगंध इन दोनों के प्रेम मिलन की साक्षी थी.
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शालिनी का कमरा:
अनन्या अचरज से सामने चल रहे चलचित्र को देख रही थी. उसने स्वप्न में भी कल्पना नहीं की थी कि उसकी दादी गांड मरवाती हैं और राधा मौसी गांड चाट सकती हैं. उसे इस बात का ध्यान ही नहीं आया कि अचेतन मन ने उसकी उँगलियों को उसकी गांड को छेड़ने में लगा दिया था. दादी की बात कि उसके प्यारे पापा उसकी गांड भी मारेंगे उसे कुछ अधिक ही उत्सुक कर रही थी. राधा मौसी की चेतावनी भी उसके कानों में गूंज रही थी. क्या चूत फटने से भी अधिक कष्ट होगा? उस दर्द की स्मृति से ही वो काँप उठी. परन्तु, उसके बाद मिले अदम्य सुख का भी उसे स्मरण था. क्या गांड में भी उतनी ही संवेदना होती है? उसे अपने पापा पर पूरा विश्वास था कि वो जब भी उसकी गांड का उद्घाटन करेंगे, पूरे ध्यान और संयम से करेंगे.
राधा अपनी जीभ को शालिनी की गांड में डालकर उसे लौड़े के उपयुक्त बना रही थी. उसे इसका अनुभव तो न था कि इसके लिए क्या किया जाता है, अपितु कल गौतम के लौड़े को चूत में लेने से कुछ अनुमान अवश्य था कि माँ जी को किस शत्रु का सामना करना है. और वो शत्रु इस समय गांड की स्वामिनी के मुंह में हिचकोले ले रहा था. शालिनी भाँप गई कि अब अगर और चूसा तो गांड की खुजली मिटने में विलम्ब हो जायेगा. अपने मुंह से गौतम के लौड़े को निकालकर उसकी ओर देखा तो गौतम भी समझ गया कि चढ़ाई का समय आ चुका है.
राधा ने हटते हुए धीमे से गौतम को समझाया, “अधिक उत्साह मत दिखाना, कहीं अन्नू बिटिया डर न जाये. प्यार से मारना।”
“जी मौसी, फिर आज रात आप दोगी न?” गौतम ने पूछा.
“रात की बात भी कर लेना,अभी सूख जाएगी तो फिर समय व्यर्थ करना पड़ेगा.” राधा ने कहा.
गौतम के लौड़े को शालिनी की गांड पर लगा दिया और स्वयं वहां से हटकर शालिनी के नीचे जा लेटी। नीचे उसने शालिनी की चूत पर जीभ चलाई, और तभी अपने चेहरे पर दबाव का अनुभव किया. गौतम ने शालिनी की गांड में लंड का हमला आरम्भ कर दिया था. उसकी प्रगति की गति धीमी ही थी, क्योंकि उसकी एक आँख अपनी बहन अनन्या की प्रतिक्रिया भी देख रही थी. अनन्या की आँखें फ़टी हुई थीं. उसके सामने उसकी दादी की गांड में उसके भाई का लंड जा रहा था और दादी की चूत में उसकी मौसी की जीभ घुसी पड़ी थी. बेचारी का दो ही दिनों में पूरा संसार ही परिवर्तित हो गया था.
“आह, क्या लंड है मेरे लाल का. चला गया क्या पूरा अंदर?” शालिनी ने पूछा.
“बस दादी, हो गया.” गौतम ने अंतिम भाग को भी अंदर धकेलते हुए उत्तर दिया.
“आज कुछ अधिक बड़ा हो गया है क्या?” शालिनी ने प्रहसन किया.
उसे पता था कि आज धीमी गति के कारण ही समय लगा था, और अनन्या की उपस्थिति के कारण भी सम्भवतः लंड अधिक अकड़ा हुआ था.
“अब मार ले बेटा अपनी दादी की गांड। बड़ी देर से खुजला रही है.” शालिनी ने उत्साह बढ़ाया.
गौतम अपनी दादी की बात कैसे टाल सकता था. उसे राधा मौसी का निर्देश भी ध्यान में था. तो उसने बड़ी सावधानी और प्रेम के साथ शालिनी की गांड मारने का कार्यक्रम आरम्भ किया. उसे अनन्या को भी दर्शाना था कि वो बहुत अनुभवी चोदू है. शालिनी भी उसकी इस भावना को भली भांति समझ रही थी. उसने ही मटकाते, उछालते हुए लंड को और शीघ्रता से अंदर लेने की चेष्टा की. अनन्या को छोड़कर सबको इसका अभिप्राय समझ में आ गया. शालिनी ये दिखाने का प्रयास कर रही थी कि गांड मरवाने वाली महिला ही अधिक आनंद प्राप्त कर रही होती है और पुरुष साधन मात्र ही होता है.
“थोड़ा तेजी से कर ले, मुझे कुछ नहीं होगा. इन दोनों की मारते हुए ध्यान रखना.” शालिनी ने कहा तो राधा और अनन्या आश्वस्त हो गए कि उनका नंबर लगेगा, और उसके लिए अधिक चिंता करने की आवश्यकता नहीं होगी.
क्योंकि गति मद्धम थी तो गौतम को झड़ने में भी अधिक समय लगा. इस पूरी अवधि में शालिनी उसे प्रोत्साहित करती रही. ये गौतम से अधिक अनन्या के लिए था, जिससे कि उसे आगे कोई डर न रहे. कुछ समय बाद वो अपनी गति स्वयं ही निर्धारित कर सकेगी. गौतम के झड़ने के बाद वो हट गया और शालिनी ने जाकर बाथरूम में सफाई इत्यादि की. इसके बाद जब वो लौटी तो सबको भूख लगी थी. तो वो बैठक में गए. राधा रसोई में गई और शालिनी उसका हाथ बाँटने के लिए साथ चल दी.
कुछ ही पलों में अदिति और अजीत भी आ गए. अदिति के चेहरे की आभा उसके अंतर्मन की प्रसन्नता को दर्शा रही थी. अनन्या ने उठकर उसे आलिंगन में लिया. शालिनी ने रसोई से झाँककर देखा तो वो भी आ गई और अदिति को चूमने लगी. पूरा वातावरण हर्ष से भर उठा.
भोजन के बाद सबने विश्राम करने का निर्णय लिया. गौतम राधा मौसी को बार बार देख कर उन्हें कुछ संकेत करना चाहता था, पर उसने ध्यान नहीं दिया. राधा कनखियों से उसे देख रही थी परन्तु कुछ कहना नहीं चाहती थी. बाद में रसोई में शालिनी ने उसे छेड़ा कि अगर अभी राधा सताएगी, तो रात को गौतम सताने में संकोच नहीं करेगा.
राधा, “तो माँ जी, सबके सामने कैसे कह दूँ कि रात आउंगी गांड मरवाने?”
शालिनी: “देख, मैं तो आज सोऊँगी। तू ही चली जाना उसे कमरे में.”
राधा, “ठीक है माँ जी.”
******************
रात्रि साढ़े नौ बजे.
गौतम का कमरा:
गौतम अपने बिस्तर पर बैठा हुआ राधा की राह देख रहा था. आधे घण्टे पहले भोजन के बाद उन दोनों के बीच मूक संकेत हुआ था जिसमें राधा ने शीघ्र आने का वचन दिया था. गौतम राधा मौसी की गांड मारने के लिए उत्सुक था. दादी की गांड मारने में तो आनंद आता ही है, परन्तु राधा मौसी की लगभग कोरी गांड मारने का सुख ही अपार होगा. अब तक उसे चुदाई के अवसर कई मिले थे पर गांड मारने का सौभाग्य उसकी दादी ने ही दिया था. और आज उनके आशीर्वाद से ही राधा मौसी की गांड मारने का भी मुहूर्त निकला था. उसने अपने लंड पर जम कर तेल की मालिश की थी. साथ में ही उस तेल की भरी हुई कटोरी भी रखी थी. अब वो नंगा बिस्तर पर अपने लंड को मुठियाते हुए प्रतीक्षा में था.
कमरे में जब राधा ने प्रवेश किया तो वहाँ की सुगंध ने उसका मन मोह लिया. गौतम ने एक मनोहारी इत्र का छिड़काव किया था. राधा का मन गौतम के इस भाव से गदगद हो गया. उसने देखा कि गौतम नंगा ही बैठा है तो मुस्कुरा उठी.
“क्या हुआ गुड्डू? क्यों ऐसे बैठे हो?”
“आपके लिए, मौसी.” गौतम ने बेझिझक उत्तर दिया.
“हम्म्म, बड़ा आतुर हो रहा है तेरा ये गुड्डू भी, इतना चमक कैसे रहा है?“ राधा ने छेड़ा.
“तेल लगाए बैठा हूँ मौसी. दादी ने बोला था कि आपको कष्ट न हो.” गौतम ने बताया.
“माँ जी की भी कुछ और ही बात है. एक ओर मेरी गांड भी फड़वाने का षड्यंत्र रचाती हैं और दूसरी ओर मुझे कष्ट न हो ये भी विचार करती हैं.” राधा ने इतराते हुए बोला और अपने कपड़े उतारने लगी. कुछ ही पल में उसका सुडोल शरीर कमरे के मद्धम प्रकाश में चमकने लगा. गौतम का लंड और कड़क हो गया. राधा कमर लहराती हुई गौतम के पास खड़ी हो गयी. गौतम को एक भीनी भीनी सुगंध की अनुभूति हुई.
“माँ जी ने मुझे भी सिखा कर और तैयार करके भेजा है.” उसने बताया.
“क क क कैसे?” गौतम हकलाते हुए बोला। मौसी इस समय पूर्ण रूप से कामदेवी की प्रतिमा लग रही थी. उसका शरीर दमक रहा था और सुगन्धि ने कमरा महका दिया था.
राधा पलटी और आगे झुक गई. गौतम को उसकी गांड दिखाई दे गई और वो भी सपाचट्ट थी पर अंदर कुछ गीलापन प्रदर्शित हो रहा था. गौतम ने छुआ तो समझ गया कि दादी ने मौसी की गांड भी तेल लगाकर भेजी है. उसका लंड अगर और अधिक तन सकने की स्थिति में होता तो तन जाता. उसके मुंह से एक आह अवश्य निकली.
“इसी कारण देरी हो गई. पर अब मैं हर रूप से तुम्हारी हूँ इस रात. बस ध्यान से चोदना, मैं इतने बड़े लौड़े से चुदने की अभ्यस्त नहीं हूँ. पर साथ पूरा दूंगी. वैसे तो मैं लंड चूसती तुम्हारा, पर इतना तेल लगा है कि पूरा मुंह का स्वाद बिगड़ जायेगा.”
“मौसी, आप अपने मन से चुदाई करो. आगे या पीछे, जो इच्छा हो वही करुँगा। अगर गांड नहीं मरवानी है तो भी कोई बात नहीं है.” गौतम ने उसे विश्वास दिलाया.
राधा गौतम के इस प्रेम से विव्हल हो गयी. उसके शरीर से लिपटते हुए उसे चूमने लगी. गौतम इस अकस्मात प्रेम के दर्शन से स्वयं भी उत्साहित हो गया और दोनों एक दूसरे को चूमने लगे. कई मिनटों की चूमा-चाटी के बाद जब हटे तो दोनों की साँसे फूली हुई थीं.
“माँ जी ने बताया है, कि पहले गांड मरवा लूँ. एक बार खुल जाएगी तो फिर रात भर जैसे मन हो वैसे चोदना अपनी राधा मौसी को.”
“ममममौसी.”
राधा ने कुछ न कहकर घोड़ी का आसन ग्रहण कर लिया. इस समय उसका शरीर गौतम के समानांतर था. गौतम ने संकेत समझा और राधा के पीछे चला गया. इस आसन में राधा की गांड ऊपर उठी थी और तेल से भीगी हुई चमक रही थी. अतिरिक्त तेल जो गौतम रसोई से चुराकर लाया था व्यर्थ ही जाने वाला था.
शालिनी ने अपने पोते के लिए जिस प्रकार से राधा को भेजा था, उसमें उसका ऐसी प्रेम निहित था. गौतम ने राधा की गांड में एक ऊँगली डाली तो तेल की चिकनाई के कारण पक्क से चली गई. राधा के मुंह से एक सिसकी निकली और शरीर ऐंठा, फिर सामान्य हो गया. गौतम ने ऊँगली से गांड को छेड़ना सतत रखा और राधा के मुंह से सिसकियाँ भी तीव्र होने लगीं. परन्तु युवा जोश अपने लौड़े की पुकार से भी अनिभिज्ञ न था. जब उसे लगा कि लंड सुचारु रूप से गांड का भेदन कर सकता है और अधिक प्रतिरोध का सामना भी नहीं करना होगा तो उसने अपनी ऊँगली निकाल ली. राधा को गांड में हल्की ठण्डी वायु के आने का आभास हुआ. गांड स्वतः ही सिकुड़ गई.
गौतम ने बंद होती गांड के ऊपर लगाया.
“धीरे करना बेटा, अपनी मौसी की फाड़ न देना गांड.” राधा ने अंतिम अनुरोध किया.
गौतम ने कुछ न कहा, पर अपने लंड का दबाव बनाया और पक्क की ध्वनि के साथ इस बार उसके लौड़े ने गांड में प्रवेश कर लिया. गौतम रुक गया. ऊँगली और लंड में अंतर होता है, और टोपा वैसे भी चौड़ा होता है. राधा की भी श्वास रुकी हुई थी. उसे भी अपनी गांड के भरने का अनुभव हो रहा था, परन्तु मात्र प्रवेश द्वार पर. उसकी गांड मि माँस पेशियों ने कुछ छद्म विरोध किया, पर फिर राह सुगम करने के लिए शिथिल हो गयीं.
गौतम ने इस प्रारम्भिक विश्राम के बाद फिर दबाव डाला और लंड की यात्रा राधा मौसी की गांड में प्रारम्भ हो गई.
राधा ने जितनी पीड़ा का अनुमान किया था उससे कई अंश कम पीड़ा थी. सत्य तो ये था कि अब तक उसे एक विचित्रता का आभास अवश्य हो रहा था परन्तु पीड़ा नहीं थी. इसके लिए दादी का तेल भी उतना ही उत्तरदाई था जितना गौतम का संयम. गौतम का लंड अब तक अपनी आधी यात्रा कर चुका था. आगे की राह संकरी, अँधेरी और कठिन थी. बिना कठोर प्रयास के लक्ष्य को पाना सम्भव न था.
“मौसी, कैसा लग रहा है? दर्द तो नहीं है न?” गौतम में पूछा.
“अब तक तो नहीं है, पहले अवश्य हुआ था पर अब ठीक है. पर पूरी गांड भरी भरी लग रही है.” राधा ने उत्तर दिया.
“मौसी, अब थोड़ा दर्द होगा, पर मैं धीमे धीमे ही आगे बढूँगा।” ये कहते हुए गौतम अपना लंड अंदर बाहर करने लगा. कुछ देर तक सुचारु चलने के बाद उसने गांड में लंड की लम्बाई को बढ़ाया. आरम्भ में राधा को इसका आभास नहीं हुआ परन्तु फिर उसे हल्की जलन का अनुभव हुआ. फिर जैसे जैसे गौतम के लंड की पहुंच बढ़ने लग, जलन में भी बढ़ोत्तरी होने लगी. उसके मुंह से कुछ कराहें निकलीं तो गौतम ने गांड मारना धीमा कर दिया. कुछ ही देर में जलन कम हो गई और गौतम ने फिर से नयी गहराइयों को नापा।
इसी प्रकार रुकते चलते गौतम ने राधा मौसी की गांड में अपने लौड़े का झंडा गाढ़ ही दिया. अपने इस पराक्रम को पूरा करने के बाद ही उसने चैन की सांस ली. राधा भी समझ रही थी कि गौतम ने कितना बड़ा त्याग किया है. इस अल्प आयु में भी उसने कई वयस्कों से भी अधिक संयम और चतुराई का प्रमाण दिया था. गौतम ने कुछ समय विश्राम के बाद गांड में लंड चलाना आरम्भ किया. गांड अब खुल चुकी थी और इसीलिए ये कार्य कुछ सीमा तक सहजता से सम्भव हो रहा था. घर्षण चूत की तुलना में कई गुना अधिक था. तेल की प्रचुर मात्रा भी चूत के प्राकृतिक रस को हरा नहीं सकती थी.
गौतम को भी मौसी की गांड मारने में अधिक आनंद आ रहा था. हालाँकि दादी उसका पहला प्रेम थीं परन्तु मौसी की गांड की गली उनसे तंग थी, जिसके कारण आनंद भी अधिक था. मौसी को भी अनूठा सुखद अनुभव हो रहा था और अब वो भी गांड पीछे धकेलकर अपनी अधीरता दर्शा रही थीं. आधे घण्टे के गहन परिश्रम के बाद गौतम ने अपने रस का अर्पण कर दिया। राधा वहीं ढेर हो गई. उसे इस चुदाई से अवर्णनीय आनंद मिला था. वो जानती थी कि अब वो बिना गांड मरवाये अपना जीवन नहीं जियेगी. उसकी आँखों के सामने फिर से अजीत का मोटा लौड़ा लहराया और वो कांपते हुए कल्पना मात्र से ही झड़ गई.
गौतम भी पूर्ण रूप से संतोष था. और रात भर मौसी की चूत और गांड की कई परिक्रमाएं करने के लिए आतुर था.
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अदिति का कमरा:
दो बार चुदाई के बाद अजीत और अदिति शांत होकर लेटे हुए थे.
अदिति ने अपना चेहरा अजीत की ओर मोड़ा, “मुझे इसकी कमी बहुत सता रही थी. आज कुछ शांति मिली है. बस अब एक और इच्छा है.”
अजीत: “क्या?”
अदिति ने अजीत के लंड को सहलाया, “कल आप मेरी गांड को भी कृतार्थ कर दो.”
अजीत के चेहरे पर ४४० वाट की मुस्कराहट छा गई.
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अगले दिन सुबह ५ बजे:
सुबह सवेरे शालिनी की नींद पहले ही खुल गई. यहाँ आने के बाद वो अधिकतर छह बजे उठने लगी थी. परन्तु आज अपने पुराने समयानुसार पाँच बजे ही खुल गई. क्या करे क्या न करे की दुविधा के बाद शालिनी घूमने निकल गई. वैसे तो उसका घूमने का समय छह बजे का था, पर आज उसकी नींद भी शीघ्र खुली और मन भी अति प्रसन्न था. कुछ ही दूर चली थी कि पीछे से किसी ने अभिवादन किया.
“शुभ प्रातः, शालिनी जी. आज आप पाँच बजे ही घूमने निकल आयीं?” ये उसके पड़ोसी जीवन थे.
शालिनी ने जीवन के साथ आने तक कोई उत्तर न दिया. जब वो निकट आ गए तब बोलीं, “हाँ, आज नींद पहले खुल गई. आप?”
“मैं तो इसी समय निकलता हूँ, गाँव का अभ्यास जो है. वहाँ तो चार बजे ही खेतों में चले जाया करते थे पानी देने के लिए. अब यहाँ तो पाँच भी लोगों को रात लगती है.”
शालिनी ने उत्तर दिया, “सच में. वो समय तो जैसे कहाँ निकल गया. आप कह रहे हो तो मुझे भी इतनी देर से उठने का स्वभाव यहाँ आकर ही हुआ है. परन्तु अब आप मिले हो तो प्रतिदिन इसी समय निकला करुँगी.”
“बहुत भली बात है, परन्तु मैं कुछ दिन के लिए गाँव जा रहा हूँ. फिर सुनीति के माता पिता के साथ लौटूँगा।” जीवन ने बताया.
“ओह!” शालिनी के मुंह से निकला.
कुछ दूर तक दोनों यूँ ही शांत चलते रहे.
“शालिनी जी, एक बात कहूँ?”
“जी.” शालिनी भी कुछ सोच रही थी.
“क्यों न आप मेरे साथ गाँव चलो. आपका भी कुछ दिनों के लिए दृश्य परिवर्तन हो जायेगा।”
शालिनी भी यही सोच रही थी. अब जब अदिति स्वस्थ हो गयी थी तो वो कुछ दिनों के लिए विश्राम कर सकती थी.
“कब जाने वाले हो आप?”
“कल या परसों इसी समय.”
“ठीक है, दिनों के लिए?”
“चार या अधिकतम पाँच।”
“ठीक है, मैं अदिति को बता दूँगी। चलती हूँ. पर आप….”
“मैं सज्जन पुरुष हूँ. किसी भी स्त्री की इच्छा के विरुद्ध कुछ नहीं करता.” जीवन के उत्तर में निहित भावार्थ को शालिनी ने समझ लिया. अगर उसकी इच्छा होगी तो जीवन आगे बढ़ेंगे.
पर क्या वो भी यही चाहती थी?
उसने कनखियों से जीवन को देखा. रोबदार व्यक्तित्व, गठीला शरीर और स्फूर्ति भरी चाल देखकर शालिनी के मन में पहली बार अपने स्वर्गवासी पति के बाद किसी अन्य पुरुष के प्रति आकर्षण ने सिर उठाया. अब तक वो अपने परिवार के साथ ही सम्पन्न थी. परन्तु जीवन को देखकर उसकी चूत में कुनमुनाहट होने लगी, मानो मृदंग बज रहा हो. उसने सिर को झटकाते हुए इन विचारों को मन से दूर किया. परन्तु आग लग चुकी थी. जीवन ने भी शालिनी को चुपचाप देखा और उसके प्रति आकर्षित हो गया. उसे भी अपनी दिवंगत के बाद किसी स्त्री ने मोहित किया था. दोनों एक दूसरे के बारे में विचार करते हुए घूमते रहे.
टहलना समाप्त होने पर जीवन ने कल ही जाने का निश्चय किया. वो अब शालिनी के साथ अधिक समय बिताना चाहता था. उधर असीम और कुमार भी गाँव जाने का हठ किये हुए थे. उसने घर पर इस विषय में चर्चा करने का निर्णय लिया. जब उसने शालिनी को कहा कि क्या वो कल प्रातः चल सकती है तो वो तत्काल मान गई. दोनों ने अपने परिवार वालों को बताकर कल ही जाने का निर्णय ले लिया.
जीवन चिंतन करता हुआ घर जाने लगा. समस्या एक ही थी. अगर असीम, कुमार और सलोनी तीनों गए तो लौटने में बलवंत और गीता के लिए स्थान ही नहीं बचेगा. गाड़ियां दो ले जानी होंगी, एक में वो और शालिनी ड्राइवर के साथ चले जायेंगे और दूसरी में असीम और कुमार सलोनी को ले जायेंगे. शालिनी इन सबसे अनजान अपने घर चली गई.