You dont have javascript enabled! Please enable it! कैसे कैसे परिवार – Update 35 | Erotic Incest Family Story - KamKatha
कैसे कैसे परिवार - Erotic Family Sex Story

कैसे कैसे परिवार – Update 35 | Erotic Incest Family Story

अध्याय ३५: आठवाँ घर – स्मिता और विक्रम शेट्टी ६

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नूतन और मेहुल:

नूतन को जैसे ही पता चला कि मेहुल आज रात उसके साथ ही रुकने वाला है, इसकी प्रसन्नता की सीमा नहीं रही. वो मेहुल के तगड़े लंड को, जिसे वो अब तक प्रेम से चूस रही थी, नए जोश के साथ चूसने लगी.

दोपहर को जब वो नूतन के घर पहुंचे थे तो नूतन ने खाना बाहर से ही मंगा लिया था. घर में जाकर दोनों ने स्नान किया, हालाँकि मेहुल को अपने वही वस्त्र पहनने पड़े. तब तक खाना भी आ गया और हल्का खाना खाने के बाद नूतन मेहुल को अपने शयनकक्ष में ले गई. बहुत सुंदर सजा हुआ था परन्तु किसी भी प्रकार की अतिश्योक्ति नहीं थी. नूतन ने तुरंत अपने कपड़े निकाल फेंके. वो इस समय के लिए बहुत समय से प्रतीक्षारत थी. मेहुल के लंड को नापने के बाद उससे चुदे बिना नूतन को शांति नहीं मिलनी थी. वो तो शोनाली की कृपा थी जो मेहुल को उसने नूतन के साथ भेजा, अन्यथा ऐसा कम ही होता था.

नूतन को नंगा होते देखने के बाद मेहुल ने उसके शरीर को जांचा. नूतन अवश्य अपना ध्यान रखती थी, क्योंकि कुछ हल्की रेखाओं के सिवाय उसका शरीर बहुत गठा हुआ था. नूतन ने अब आशा से मेहुल को देखा तो मेहुल ने भी अपने कपड़े निकाल ही दिए. उसका लम्बा मोटा लंड उछलकर व्यायाम करने लगा. नूतन ने उसे अपने हाथ में लिया और सहलाने लगी.

“अगर शोनाली न होती तो मुझे न जाने कब इस लंड से चुदाई का अवसर मिलता कहना सम्भव नहीं है. सच में तुम्हारे लंड में इतनी शक्ति है कि तुम किसी भी स्त्री को संतुष्ट कर सकते हो.”

मेहुल ने कुछ भी कहना उचित न समझा. कुछ समय तक सहलाने के बाद नूतन घुटनों के बल बैठ गई और उसने लंड को सूँघा। फिर जीभ निकालकर टोपे को चाटा और कुछ समय तक यूँ ही चाटती रही. मेहुल के लंड से उसे शोनाली की गांड का स्वाद भी कहने मिल गया, परन्तु उसने कोई संकोच नहीं किया. लंड की गोलाई को चाटने में उसे अच्छा समय बिताना पड़ा. जब उसने लंड के बाहर के हर भाग से अपनी पहचान कर ली तो फिर उसे मुंह में लिया और चूसने लगी.

लंड पूरा तो मुंह में लेना सम्भव था नहीं, उसकी चौड़ी मात्र से ही नूतन के गाल फूल रहे थे, परन्तु उसने पूरी श्रद्धा के साथ जितना सम्भव हो पाया उतना लंड मुंह में लिया और बहुत प्रेम से उसे चूसा. कुछ ही मिनटों में उसे ये पता चल गया कि इस प्रकार से तो उसके मुंह का आकार ही बदल जायेगा. तो उसने लंड को मुंह से निकाला और उसे चूमते हुए चाटने से ही संतोष कर लिया. अब तक मेहुल के लंड में इतना तनाव आ चुका था कि उसके लिए रुकना कठिन हो रहा था. उसने नूतन के सिर पर हाथ फेरा. नूतन भी लंड की स्थिति देखकर समझ चुकी थी कि अब अपनी चूत का संहार करवाने का समय आ ही चुका है.

वो खड़ी हुई और बिस्तर पर जाकर लेट गई और अपने पैर फैला लिए. मेहुल ने उसकी चूत को देखा तो कुछ समय के लिए अपने लंड की इच्छा को दबाकर अपने जीभ की इच्छा को चुना. नूतन की बहती चूत के आगे जाकर उसने अपने मुंह को उसकी चूत में डाला और उसके रस को चाटने के बाद उसकी चूत और उसके आसपास के अंग को भी चाटने लगा. नूतन की सिसकारी निकली और उसने कुछ और रस मेहुल को अर्पण कर दिया. मेहुल ने उसे भी पी लिया और अब अपनी जीभ से नूतन की चूत को टटोलने लगा. चूत में जीभ जाते ही नूतन के शरीर ने अंगड़ाई ली और फिर उसकी चूत ने रस की फुहार छोड़ दी. मेहुल समझ गया की नूतन अब चुदास से भरपूर है और उसने अपनी जीभ को कुछ और अंदर चलने के बाद बाहर निकाला। नूतन ने एक गहरी साँस भरी और संतुष्टि की भावना व्यक्त की.

“मेहुल, मैं चाहती हूँ कि अगर हो सके तो तुम आज रात मेरे पास ही रुक जाओ.”

“ऐसा सम्भव नहीं लगता. पर देखते हैं.”

परन्तु फिर नूतन ने एक भीषण गलती भी कर दी.

“अगर रुक नहीं सकते तो मुझे आज पटक पटक कर चोदो। ऐसे चोदो कि मेरी आत्मा काँप जाये. बहुत दिन हो गए ऐसी चुदाई किये हुए. क्लब की अंतिम पार्टी के बाद मेरी अच्छी चुदाई नहीं हुई है, तो प्लीज मेरी माँ चोद दो. ऐसे चोदो कि मैं दया की भीख माँगू पर दया करना नहीं.”

नूतन ने ये कह तो दिया पर उसने मेहुल के चेहरे के बदलते भाव नहीं देखे. मेहुल अपने पाशविक व्यक्तित्व की ओर जा रहा था.

“अगर तुम ऐसे चोदोगे तो मैं तुमसे गांड भी मरवाऊँगी, आज नहीं तो कुछ ही दिन में.”

मेहुल अब अपने पाशविक रूप के निकट था. उसने नूतन को एक अवसर दिया अपने वक्तव्य को बदलने का.

“आप सच में ऐसी चुदाई ही चाहती हैं. क्योंकि अगर मैंने आरम्भ कर दिया तो फिर मैं रुकुंगा नहीं.”

नूतन तो अपनी ही कल्पना में खोई थी, उसने मेहुल की चेतावनी और उसके बदले हुए स्वर पर कोई अधिक ध्यान नहीं दिया. और ये उसके लिए एक अत्यंत कष्टकारी अनुभव होने वाला था. अंत में संतुष्टि के पहले उसे पीड़ा का सामना करना था. पर अब उसने अपने पत्ते फेंक दिए थे और मेहुल के हाथ में बाजी थमा दी थी. मेहुल ने नूतन की चूत पर एक दृष्टि डाली. उत्तेजना से चूत कुछ फूल सी गई थी और पंखुड़ियाँ अलग हो गई थीं. चूत चुदने के लिए आतुर थी और मेहुल चोदने के लिए. मेहुल ने अपने शक्तिशाली लंड को नूतन की चूत पर कुछ देर तक रगड़ा जिसके कारण चूत और गीली हो गई. फिर धीरे से उसने अपने लंड को अंदर डालना आरम्भ किया. नूतन उसकी ओर प्रेम से देख रही थी. शनैः शनैः मेहुल ने लगभग आधे से अधिक लंड को चूत में डाला और रुक गया.

उसने नूतन की तरसती हुई आँखों में देखा। आगे झुकते हुए उसने नूतन के होंठों से होंठ मिला दिए और चूसने लगा. नूतन ने भी उसका पूरा साथ दिया. चुंबन को तोड़ते हुए मेहुल ने नूतन के मम्मों पर अपने हाथ रखे और उन्हें पहले तो प्यार से सहलाया पर धीरे धीरे उन्हें मसलने लगा. चुदाई की आग में जल रही नूतन को ये भी अच्छा ही लगा. दोनों मम्मों को अपने हाथों से मसलते हुए इस बार मेहुल ने लंड बाहर निकाला तो नूतन की आँखें जैसे बुझ गयीं. इससे पहले कि वो कुछ कह पाती मेहुल ने एक शक्तिशाली धक्का मारा और नूतन की भयावह चीख के साथ उसका लंड नूतन की चूत में समा गया. नूतन के चेहरे के भाव अब प्रेम से बदलकर पीड़ा के हो गए. उसकी आँखों में आँसू आ गए. पर वो कुछ बोल न पाई और उसके होंठ केवल कुछ कहने को कांप कर रह गए.

मेहुल ने जैसा कहा था, वही किया. अपने लंड को वो लगभग पूरा निकालता और फिर पूरा ही अंदर डालता. कुछ समय तक तो उसने इस क्रिया को एक धीमी गति से ही किया, परन्तु फिर उसकी गति बढ़ने लगी. और एक समय के बाद उसके कूल्हे इस तीव्रता से चल रहे थे कि नूतन को पटक पटक के चुदने की जो इच्छा थी वो पूरी होने लगी. पर मेहुल को सिखाने वाली अनुभवी स्त्रियों ने उसे और भी बहुत कुछ सिखाया था. और उसका अनुशरण करते हुए कुछ ही देर में मेहुल ने अपनी गति कम कर दी. फिर बढ़ाई फिर मध्यम की और इस प्रकार एक अनियमित गति से नूतन की चुदाई में जुट गया.

मेहुल की शिक्षिका ने समझाया था कि मस्तिष्क कुछ ही समय में एक गति से अभ्यस्त हो जाता है और उसके अनुसार स्वयं को ढाल लेता है. अगर गति और गहराई बदलती रहे तो उसे समझ नहीं आता कि हो क्या रहा है और वो शिखर पर ही झूमता रहता है, क्योंकि उसे इस बात का ज्ञान नहीं होता कि अब क्या होगा. इस ज्ञान का उपयोग मेहुल कई बार अनन्य स्त्रियों पर कर चुका था. आज इसका लाभ नूतन को मिल रहा था. अंतर ये था कि जहाँ नूतन को इस समय इस बात का भान नहीं था,वहीँ वो बाद में इस चुदाई का जीवन भर स्मरण करने वाली थी.

मेहुल के शक्तिशाली लंड के धक्कों से नूतन अब कई बार झड़ चुकी थी. उसे समय का ज्ञान और ध्यान ही नहीं था. बस उसकी चूत की जो कुटाई हो रही थी उसके कारण उसका शरीर मानो संकुचित होकर उसकी चूत की नसों में समा गया था, हर संवेदन अब उसी में केंद्रित था. पीड़ा ने अब आनंद का रूप ले लिया था. चूत ने भी अपने आक्रमणकारी से समझौता कर लिया था और अपने भीतर उसके हर धक्के का स्वागत कर रही थी. बदलती गति और धक्कों की आकस्मिकता के कारण नूतन भी जैसे किसी आनंद के समुद्र में तैर रही थी. कभी वो लहरों में ऊपर जाती, तो कभी शीघ्र गति ने नीचे डूबने लगती, और फिर ऊपर चल देती.

उसे जीवन का एक नया और अविस्मरणीय अनुभव हो रहा था. वो वस्तुतः इस अनुभव को दोबारा कभी नहीं पाने वाली थी. नीचे डूबते हुए उसे लगता की उसकी लीला समाप्त हो रही हो तो ऊपर जाते हुए एक जीवनदान का आभास होता. मेहुल उसके चेहरे के बदलते हुए भावों पर पैनी दृष्टि रखे हुए था. और कुछ देर की और चुदाई के बाद उसे आभास हुआ कि अब नूतन ढीली पड़ चुकी है, अर्थात वो अचेत हो गई थी. मेहुल ने अपनी गति कम की और कुछ देर की और चुदाई के बाद नूतन ने आँखें खोली दीं। इस बार उसकी आँखों में समर्पण था. अब मेहुल उसे जिस प्रकार से भी चाहता भोग सकता था.

कुछ देर और धक्के लगाने के बाद मेहुल जब झड़ने के निकट हुआ तो उसने अपने लंड को बाहर खींचा और फिर नूतन के सिर के पास जाकर रुक गया. नूतन ने उसका अभिप्राय समझ लिया और सिर ऊँचा करते हुए लंड को चाटा और फिर चूसने लगी. कुछ ही देर में मेहुल ने उसके मुंह में अपने रस की वृष्टि कर दी और नूतन ने बिना संकोच हर बूँद को पी कर अपनी प्यास को बुझाया. मेहुल हट गया और नूतन वहीँ पसर गई और आँखें बंद किये हुए अपने शरीर में उठ रही आनंद की संवेदनाओं का आभास करती रही. उसके चेहरे पर संतुष्टि की एक मुस्कराहट थी.

मेहुल बैठा हुआ नूतन को देखता रहा जो आँखें बंद किये मुस्कुरा रही थी. जिन अन्य स्त्रियों को उसने चोदा था और जिन्होंने उसे बहुत कुछ सिखाया भी था उनमें और नूतन में अंतर था. उन स्त्रियों ने उसका उपयोग अपने स्वार्थ और वासना मात्र के लिए किया था. और वो नूतन के समान भाग्य की सताई हुई भी नहीं थीं. हालाँकि नूतन ने भी उसे अपनी वासना मिटाने के लिए प्रयोग किया था, परन्तु उसकी इसमें कोई अन्य लालसा नहीं थी. और वो अपने स्वर्गीय पति के कार्य को भी संभाल रही थी, जो प्रशंसनीय था.

नूतन ने आँखें खोलीं और फिर मेहुल की ओर देखा.

“मुझे बीच में लगा था कि मैंने तुम्हें पटक कर चोदने का आमंत्रण देकर गलती कर दी. पर अब लग रहा है जैसे मेरी वर्षों की प्यास बुझ गई है. आत्मा और शरीर दोनों तृप्त हो गये हों जैसे. सच में तुम कुछ ही दिनों में क्लब के सबसे प्रचलित रोमियो बन जाओगे. तुम्हारा कार्ड सदा बुक रहेगा. मैं इसके बाद कब तुमसे मिल पाऊँगी इसका मुझे कोई अनुमान नहीं है.”

“आप इतना चिंतन न करें. मैं आपसे अत्यंत आकृष्ट हूँ और किसी न किसी अवसर पर आकर आपका साथ पाना चाहूँगा।”

“काश तुम रुक पाते।”

मेहुल फिर चुप ही रहा.

“चलो अब कुछ खाना पीना नहाना धोना भी हो जाये. फिर तुम्हें जाना भी होगा.” नूतन ने कहा और उठकर बाथरूम में चली गई. इसके बाद मेहुल गया और फिर दोनों ने यूँ नंगे खाना खाया.

“जाने के पहले एक बार मैं तुम्हारा लंड चूस कर उसका रस पीना चाहती हूँ.”

“बिलकुल.”

ये कहते हुए मेहुल बिस्तर पर लेट गया और नूतन उसके लंड को चूसने और चाटने लगी. कुछ ही देर हुई थी कि मेहुल का फोन बजा और उसे स्मिता ने रात में बाहर रखने के लिए कहा. नूतन उसके लंड को और अधिक परिश्रम के साथ चूसने लगी. कुछ और देर में मेहुल ने अपने वीर्य से उसका मुंह भर दिया जिसे नूतन ने पी लिया और फिर उसके पास आकर बैठ गई.

“मेरे घर के पास एक कपड़े की दुकान है, रात और कल सुबह के लिए कुछ ले आओ. तब तक मैं खाने पीने के लिए प्रबंध करती हूँ. व्हिस्की पीते हो या बियर?”

“दोनों ही ठीक हैं, जो आपको प्रिय हो वही पी लूँगा।”

“तो फिर व्हिस्की ही रहेगी।”

“तो मैं कपड़े लेकर आता हूँ, दुकान कहाँ है?”

नूतन ने उसे दिशा बताई और मेहुल कपड़े पहनकर चला गया. आधे घंटे बाद वो अपने लिए कपड़े लेकर आ गया. नूतन ने तब तक सारा प्रबंध भी कर लिया था. व्हिस्की, चिकन और अन्य अल्पाहार से टेबल सुसज्जित थी.

“क्यों न आपके कमरे में ही बैठें, यहाँ कुछ आनंद नहीं आएगा.”

“ओके, पर तुम्हें ये सब ले चलने में मेरी सहायता करनी होगी.”

“इसमें कहने वाली बात ही नहीं, मैं वैसे भी करता. क्यों न आप जाकर कमरे में व्यवस्था कीजिये, मैं ये सब लेकर आता हूँ.”

कुछ ही देर में कमरे में पूरा प्रबंध हो गया. मेहुल ने कुछ खोदने का भी निणर्य लिया। उसे विश्वास था कि शोनाली के बारे में वो अवश्य कुछ बता पायेगी. और अभी तक उसे ये पता भी नहीं था कि शोनाली और वो पड़ोसी हैं. तो बता भी देगी. मेहुल और नूतन दोनों बिस्तर पर ही अधलेटे अपनी ड्रिंक पीने लगे और बीच बीच में एक दूसरे को चूम लेते.

“आपको याद है न अपने क्या कहा था अगर मैं रात को रुका तो?” मेहुल ने कहा.

नूतन: “हाँ याद है, अच्छे से. मेरी गांड मारोगे। है न?”

मेहुल: “अगर मन न हो तो मुझे कोई आपत्ति नहीं है.”

नूतन: “नहीं, अगर मन न होता तो मैं बोलती ही नहीं. पर दो मिनट रुको मैं गांड में कुछ लगा लूँ, जिससे बाद में सरलता हो.”

मेहुल: “ठीक है, पर जो भी हो मेरे सामने ही करो, मैं भी तो देखूँ क्या लगा रही हैं आप?”

नूतन उठी और बाथरूम में जाकर एक ट्यूब और एक गांड का प्लग ले आई, जिस प्रकार का शोनाली ने लगाया था. फिर उसने एक ऊँगली से गांड में ट्यूब से जैल लगाई और फिर आगे झुककर मेहुल को अपनी गांड दिखाते हुए उसमें वो प्लग धीरे से अंदर डाल दिया. थोड़ा अंदर बाहर करते हुए ठीक से बैठाया और फिर सीधे होकर मेहुल की ओर मुड़ गई. बिस्तर में लौटकर वो मेहुल से चिपक गई.

नूतन: “शोनाली ने दिया था मुझे, ऐसे ही समय के लिए. कम ही उपयोग में लेती हूँ.”

मेहुल को जो प्रश्न पूछना था उसके लिए नूतन ने अनजाने में ही अवसर दे दिया था.

मेहुल: “हाँ, मुझे याद आया. शोनाली मैडम ने मुझसे गांड मरवाने के बाद मेरा वीर्य ऐसे ही प्लग से अपनी गांड में सहेज लिया था, जैसे किसी के लिए हो. ये क्या रहस्य है? अगर आप बता सकती हो तो बताओ, मैं किसी से न कहूँगा।”

नूतन: “नहीं, ये कोई ऐसा बड़ा राज नहीं है क्लब में. शोनाली की नन्द और पार्थ की माँ को गांड में से निकला वीर्य पीने का व्यसन है. जितनी देर गांड में रुका हो, उन्हें उतना ही स्वादिष्ट लगता है. इसीलिए हर बार जब शोनाली किसी नए रोमियो की परीक्षा लेती है तो सुमति, उसकी नन्द के लिए उस रोमियो का वीर्य भी ले जाती है. घर पहुंचते तक वो उसकी गांड में एक घण्टे से अधिक घूमते रहता है.”

मेहुल: “ओह!” उसका अनुमान सही था परन्तु अधिक जानने के लिए उसने अचरज जताया.

नूतन: “हाँ, वैसे वो हर मासिक पार्टी में विशेष अतिथि के रूप में आती हैं. पहले तो वो अकेली ही हर गांड से रस पी जाती थीं, परन्तु पिछले आठ नौ मास पूर्व एक नयी सदस्या आयी हैं जो गांड के साथ साथ चूत से भी रस पीने का व्यसन रखती हैं. तो अब दोनों ही इस कार्य में व्यस्त रहती हैं.”

मेहुल: “ओह!”

नूतन ने किसी अच्छे भेदिए के समान और कुछ भी बताना चाहा.

नूतन: “मुझे पता है कि सुमति तो सबसे अधिक आनंद उसके बेटे पार्थ के रस को पीने में ही आता है, इसीलिए क्लब की समस्त महिलाएं पार्थ से जब गांड मरवाती हैं तो सुमति को ही वो रस अर्पण करती हैं.”

मेहुल और खोदते हुए: “यानि माँ और बेटा?”

नूतन: “हाँ, वैसे सुमति अपने भाई से भी चुदवाती है, ये मुझे लगता है. पर पक्का नहीं है. पर तुम्हें क्लब में लाने वाले सचिन और उसकी माँ रमोना इस खेल में खुलेआम लिप्त रहते हैं. यहाँ तक कि रमोना ने ही सचिन को क्लब में प्रवेश दिलवाया था.”

मेहुल ने अपने बाएं हाथ से नूतन के एक मम्मे की घुंडी को मसला और दूसरे से उसकी चूत के भग्नाशे को. फिर उसे चूमते हुए बोला, “क्लब बहुत रोमांचक स्थान लगता है.”

नूतन: “तुम देखना इस माह की पार्टी में संभ्रांत महिलाएं, जिनमें मैं भी एक हूँ, किस प्रकार से अपनी वासना और शारीरिक भूख की तृप्ति करती हैं. कुछ कृत्य तो ऐसे होते हैं कि तुम्हें विचलित कर सकते हैं.”

मेहुल: “वो जब होगा तब देखेंगे. अब तो मैं आपकी गांड की सेवा करना चाहता हूँ.”

नूतन: “कुछ देर और ठहर जाओ. फिर. पर पटक पटक के मत मारना। चूत थी तो मैं सहन कर पाई, पर गांड तो फट ही जाएगी.”

मेहुल: “जैसे आप कहेंगी, वैसे ही मारूंगा। आप निश्चिन्त रहिये.”

अब मेहुल उस समय की प्रतीक्षा करते हुए अपनी ड्रिंक पीने लगा जब नूतन उसे अपनी गांड मारने के लिए हरी झंडी दिखाएगी.

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सुजाता का घर:

सुजाता के शयनकक्ष में सामूहिक चुदाई का वातावरण बन चुका था. सुजाता, अविरल, श्रेया और मोहन विवाहित जोड़े थे तो स्नेहा और विवेक अविवाहित. इस प्रकार से सामूहिक सम्भोग के कम ही अवसर मिलते थे. स्नेहा भी अब अधिकतर श्रेया के घर चली जाती थी और सुजाता के लिए अविरल और विवेक ही बचते थे. अब दोनों उसकी भरपूर चुदाई करते थे इसमें कोई संशय नहीं था, परन्तु इस प्रकार सम्पूर्ण परिवार एक साथ कम ही मिलता था. और इसीलिए अधिक ही अधीरता थी सबके मन में.

जब ये ध्यान आया कि एक बाथरूम में इतने लोग कैसे नहाएंगे तो सबको शीघ्र नहाकर लौटने के लिए कहा गया. श्रेया और मोहन उसके कमरे में गए तो स्नेहा और विवेक अपने में. दस ही मिनट में सभी नहाकर हल्के वस्त्रों में कमरे में लौट आये. पर अंदर आये तो पाया कि सुजाता और अविरल केवल अंगवस्त्रों में ही थे. अन्य सबके लिए ये समस्या बन गई क्योंकि वे केवल ऊपर ही वस्त्र डालकर आ गए थे. सुजाता ने भाँप लिया और हाथ पीछे करते हुए अपनी ब्रा खोल दी और फिर हाथों से अपनी पैंटी भी उतार दी. अविरल ने भी अपना अंडरवियर उतार दिया तो देखा देखी अन्य सब भी अपने वस्त्रों से वंचित हो गए. ऐ-सी की ढंडी हवा में चूचियाँ और लंड अकड़ने लगे. सभी सुजाता की ओर देख रहे थे.

“अरे मुझे क्यों ताक रहे हो सब?”

कोई कुछ न बोला तो सुजाता समझ गई.

“देखो, मुझे तो मोहन से ही पहले चुदवाने की इच्छा है. तुम सब अपना देख लो. जब मोहन और मेरा हो जायेगा तब आगे अन्य मिश्रण देखेंगे.”

“मुझे श्रेया दीदी…” विवेक ने कहा.

“चलो स्नेहा, अब मेरी लाड़ली ही मेरा प्यार पायेगी.” अविरल ने स्नेहा को बाँहों में भरते हुए कहा.

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स्मिता का घर:

स्मिता और विक्रम एक दूसरे के साथ बैठे बातें कर रहे थे. पूरा दिन साथ बिताने के बाद अब बैठकर अपने जीवन पर चिंतन कर रहे थे.

“समय न जाने कैसे पंख लगाकर उड़ गया न? जैसे कुछ ही दिन हुए हों जब हम मेहुल और महक की आयु में थे. आज पीछे देखो तो सब कुछ धुंधला सा लगता है.” विक्रम भावुक हो रहा था.

स्मिता: “ऐसा नहीं है. मुझे आज भी सब कल के समान ही याद है. हमारा विवाह, फिर सुहागरात, फिर बच्चे, आपके व्यवसाय में हानि के बाद फिर से उठने का परिश्रम, सब याद है.”

“परिवार में उन्मुक्त चुदाई का आरम्भ, मोहन से पहली चुदाई, समुदाय में प्रवेश, मोहन का विवाह और उसकी घोषणा के बाद मेरी, सुजाता और श्रेया की सामूहिक चुदाई, सब याद है.”

विक्रम उसे देख रहा था, स्मिता ने दो तीन वाक्यों में ही जीवन का सारांश व्यक्त कर दिया था.

“हाँ, सच है. याद मुझे भी है. मोहन को गोद में लेना। फिर महक और मेहुल का आगमन. महक के साथ मेरी पहली चुदाई, गौड़ा परिवार से भेंट और फिर संबंध. वैसे देखो तो याद सब है. पर कुछ यादें धुंधला भी गई हैं.”

स्मिता उसके सीने से चिपकते हुए, “वो अच्छी यादें नहीं होंगी. भूल भी जाओगे तो कुछ न होगा.”

विक्रम ने उसके सिर को चूमा.

“हमें सच में अब अपने लिए हर माह कुछ समय निकालना होगा. आज बहुत अच्छा दिन रहा.”

“वैसे और कुछ भी है जो इस दिन को इससे भी अच्छा बना सकता है.”

विक्रम मुस्कुराते हुए, “ऐसा क्या हो सकता है?”

“चलिए अपने कमरे में वहाँ दिखती हूँ.”

“अब आपकी तो बात माननी ही होगी, चलो.”

स्मिता और विक्रम अपने कमरे में गए तो स्मिता विक्रम की ओर मुड़ी और बोली, “चलो कुछ देर डांस करते हैं.”

विक्रम स्मिता के आज के मूड से बहुत प्रसन्न था. आज वो किसी अलग ही रंग में दिख रही थी. विक्रम ने तुरंत अपनी स्वीकृति दे दी और स्मिता ने अपने कमरे में रखे स्टीरिओ पर एक हल्का सा संगीत चला दिया जो नृत्य के लिए अनुकूल था. संगीत आरम्भ करते ही स्मिता विक्रम की बाँहों में सिमट गई और दोनों उस संगीत पर नृत्य करने लगे. यूँ ही एक दूसरे से लिपटे हुए न जाने कितनी ही देर तक नाचते रहे. एक के बाद एक संगीत बदलते रहे पर दोनों पति पत्नी एक दूसरे के साथ यूँ ही नृत्य करते रहे. एक बार नृत्य समाप्त हुआ तो दोनों उत्तेजित हो चुके थे और अब ये समझा जा सकता था कि इस खेल के अगले चरण में क्या होने वाला है.

“कुछ गर्मी लग रही है, मैं नहाने जा रही हूँ.” स्मिता ने इठलाते हुए कहा. उसका संकेत विक्रम ने समझ लिया.

“हमें पानी बचाने का प्रयास करना चाहिए, मैं भी साथ चलता हूँ.”

“ओह, नहीं! आप मुझे स्नान करते हुए देखना चाहते हो?” स्मिता ने नखरे दिखाए.

“हम्म, मैं ऐसा कैसा कर सकता हूँ? मैं तो कितना सीधा हूँ आप तो जानती ही होंगी.”

“हाँ हाँ, सब जानती हूँ. देखा है आपको समुदाय के मिलन समारोह में जब आप लड़कियों और स्त्रियों को कैसे ताड़ते हैं.”

“ओहो, तो ये आपकी सोच है. वैसे मैंने भी आपको जवान जवान लड़कों को नापते हुए देखा है.”

अब चूँकि स्मिता फंसने लगी तो उसने तुरंत बात को बदला.

“चलिए, अब स्नान कर लेते हैं फिर देखते हैं आज क्या करना शेष है.”

दोनों स्नान करने के लिए बाथरूम में शेष रात्रि के बारे में सोचते हुए चले गए.

रात अभी शेष थी.

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सुजाता का घर:

ये तय हुआ कि इस चुदाई के बाद जिसे भी जिसके साथ मन करे वो चुदाई कर सकता है. सुजाता ने मोहन को आगे बढ़कर हाथ में हाथ दिया. अनजाने ही उसका ध्यान मोहन के लंड पर गया. अब मोहन किसी भी रूप से कम नहीं था पर न जाने क्यों कर सुजाता ने उसकी तुलना मेहुल से कर ही ली. उसकी आँखों ने श्रेया को देखा जो उसे ही देख रही थी. माँ बेटी में एक मूक सहमति बनी. श्रेया भी जानती थी कि मेहुल के लंड का आकार उन सबसे बड़ा तो है ही, उसकी चुदाई करने की क्षमता भी अधिक है. श्रेया ने सिर हिलाकर अपनी माँ को समझाया कि वो इस तुलना में न पड़े.

सुजाता ने अपना चेहरा मोहन के सीने में छुपा लिया, वो संयत होने के बाद ही उससे आँख मिलाने वाली थी. मोहन के कोमल स्पर्श ने उसकी पीठ को सहलाया तो सुजाता को इस बात का आभास हुआ कि जो भी है, सम्भवतः उसकी बेटी को श्रेष्ठतर भाई ही मिला है. मोहन मन से बहुत ही सरल और सुशील था. उसने अपने सिर को ऊपर उठाया तो मोहन ने उसका माथा चूमा और फिर होंठों से होंठ मिला दिए. एक गहरे चुंबन में सास और दामाद डूब गए. श्रेया और विवेक भी एक दूसरे के आलिंगन में चुंबनरत थे. दोनों कई दिन बाद जो मिले थे. वैसे स्नेहा श्रेया के घर चली जाती थी, पर परिवार के अन्य लोग इतना नहीं जाते थे. श्रेया का भी आना कुछ समय से कम हो गया था और इसी कारण भाई बहन का प्रेम उफान पर था.

“कोई लड़की मिली भाई, आपको मेरी भाभी के लिए?” श्रेया ने पूछा.

“कहाँ दीदी, आप तो जानती ही हो. समुदाय में जब तक किसी लड़की की माँ की ओर से बात नहीं बढ़ेगी, तब तक अपना सिग्नल डाउन ही रहेगा.” विवेक ने कुछ असंतोष से कहा.

“अगले कुछ महीनों में इस समस्या का भी समाधान होने वाला है. तुम्हें पता है न कि इस बार के चुनाव में मम्मी और मेरी सासू माँ दोनों के नाम प्रस्तावित किये गए हैं. सासू माँ ने तो आवेदन डाला है, मम्मी ने कुछ किया क्या?”

“कह तो रही थीं, पापा से बात हुई थी हो सकता है डाला हो. वैसे दोनों में से एक को तो हटना होगा. दोनों तो नहीं चुनी जा सकतीं.”

“हाँ, पर मैं चाहूंगी कि मम्मी बनें, सासू माँ को मैं मना लूँगी हटने के लिए. और वैसे तुम्हारा सिग्नल डाउन नहीं बल्कि अप ही लग रहा है मुझे तो.” श्रेया ने विवेक के लंड को हाथ में लेकर सहलाते हुए कहा.

“वो आपके लिए ही है. नहीं तो..”

“छोड़ ये सब. आज बस प्रेम की बात कर.” ये कहकर दोनों के होंठ फिर जुड़ गए.

स्नेहा के साथ अविरल अब तक इन सब से आगे निकल चुका था. वो स्नेहा को लिटाकर उसकी चूत चाटने में व्यस्त था. स्नेहा की चूत के आसपास के हर भाग को चाटने के बाद अब वो उसकी चूत के अंदर का रस ले रहा था. स्नेहा भी अपने पिता के इस अद्भुत और अपार प्रेम से विव्हल उनका सिर हल्के से पकड़े हुए उन्हें उत्साहित कर रही थी. उसकी हल्की सिसकारियां अविरल को भी उत्साहित कर रही थीं और वो भी अपनी पूरी जीभ को अंदर डालने का भरसक प्रयत्न कर रहा था. इस चूत के रस से उसका कभी मन नहीं भरता था.

हाँ जब स्नेहा का विवाह हो जायेगा, तब न जाने अविरल क्या करेगा. एक बात थी कि स्नेहा रहेगी इसी नगर में तो इतनी दूरी नहीं होगी. पर फिर भी अब जैसी बात भी नहीं रहेगी. सुजाता कुछ दिन से समुदाय में उसके विवाह का प्रस्ताव देने के लिए उत्सुक थी. पर अविरल चाहता था कि उसके ब्यूटी पार्लर का काम और सुचारु रूप से चल निकले तभी इस ओर विचार किया जाये.

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स्मिता का घर:

स्मिता और विक्रम दोनों स्नान करने के लिए गए और वहां भी दोनों की अठखेलियाँ रुकी नहीं. एक दूसरे को छेड़ते हुए, गुदगुदाते हुए, सहलाते हुए, चूमते हुए दोनों लम्बे समय तक पानी की बौछार से भीगते रहे. नहाना तो एक बहाना मात्र था, उन्हें एक दूसरे का सानिध्य इतना प्रसन्न कर रहा था कि वे एक दूसरे से एक पल भी दूर नहीं रहना चाह रहे थे. कल समीकरण फिर बदल जायेंगे, और आज ही उनका था और इसका वो सम्पूर्ण लाभ उठाना चाह रहे थे. स्नान होते होते दोनों के शरीर कामाग्नि से जल रहे थे. पानी की शीतलता भी उनकी इस अग्नि को शांत करने में असमर्थ थी. दोनों ने बिना अपने शरीर को पोंछे हुए ही कमरे में प्रवेश किया. पानी चू कर नीचे गिर रहा था पर उन्हें इसका भान भी न था. वे केवल एक दूसरे में ही खोये हुए थे.

बिस्तर पर स्मिता को बैठाकर विक्रम उसके साथ बैठा और फिर चुंबनों का आदान प्रदान आरम्भ हो गया. परन्तु इस बार इसके साथ ही उनके हाथ एक दूसरे के शरीर पर भी रेंग रहे थे. पर वे और कितनी देर तक संयम रखते. विक्रम ने धीरे से स्मिता को बिस्तर पर सीधा लिटाया और फिर उसके साथ लेटे हुए उसे चूमता रहा. फिर वो उठा और उसने स्मिता की याचना भरी आँखों में झाँका और उसके पैरों के बीच में आकर उन्हें फैलाया और चूत में दो उँगलियाँ डालकर उन्हें अंदर बाहर करने लगा. स्मिता ने एक झुरझुरी ली और ऐसा प्रतीत हुआ मानो वो झड़ गई हो. पर विक्रम बिना रुके अपनी अपनी उँगलियों से उसकी चूत से खेलता रहा और स्मिता की आँखों में झांकता रहा.

उसने अपनी जीभ से स्मिता के भग्नाशे को छेड़ा और इस बार स्मिता का शरीर ऐंठ गया और रस की एक फुहार छूट गई. इसके बाद विक्रम ने अपनी उँगलियों निकालीं और अपनी जीभ से स्मिता के चूत के आसपास चाटते हुए उसकी चूत की पंखुड़ियों को भी चाटा। भगनाशे पर अधिक ध्यान रखते हुए वो केवल जीभ मात्र से स्मिता के साथ खेल रहा था. स्मिता की सिसकारियां और हाथों के सिर पर दबाव से विक्रम को समझ आ रहा था कि स्मिता भी पूरा आनंद ले रही है.

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नूतन और मेहुल:

अब मेहुल उस समय की प्रतीक्षा करते हुए अपनी ड्रिंक पीने लगा जब नूतन उसे अपनी गांड मारने के लिए हरी झंडी दिखाएगी. तभी उसके मन में एक विचार आया कि इस समय का वो सदुपयोग कर सकता है, शोनाली के परिवार और क्लब के बारे में जानने के लिए. एक हाथ से नूतन के मम्मे को सहलाते हुए उसने ड्रिंक को एक ओर रखा और दूसरे मम्मे को अपने मुंह में लेकर चूसने लगा. नूतन भी इस रंग में रंग गई और उसने भी अपना ग्लास एक और रख दिया.

जहाँ एक ओर मेहुल क्लब के बारे में जानने के लिए उत्सुक था, वहीँ दूसरी ओर मेहुल के बाहर जाने के समय नूतन ने शोनाली से बात की थी. शोनाली ने उसे क्लब के बारे में अधिक से अधिक जानकारी देने के लिए कहा. विशेषकर कुछ सदस्यों के बारे में. नूतन को ये समझने में देर न लगी कि शोनाली ये जानना चाहती है कि क्या मेहुल इस प्रकार के संबंधों से हतोत्साहित या विचलित होता है, या उत्तेजित अथवा सामान्य रहता है. मेहुल ये नहीं जानता था कि उसके पीछे ये बात हो चुकी है. वो स्वयं क्लब के बारे में जानने के लिए उत्सुक था, और शोनाली के बारे में भी. दोनों एक दूसरे के रहस्य जानने के लिए आतुर थे.

“क्लब के बारे में कुछ और बताइये न? मेरी उत्सुकता बहुत बढ़ गई है?” मेहुल ने पूछा तो नूतन को पंछी जाल में फंसता हुआ प्रतीत हुआ.

“बहुत कुछ है. हर सदस्या के अपने स्वाद हैं. हालाँकि कुछ एक अनुपात में सीधी भी हैं. परन्तु क्लब की कुछ पार्टियों के बाद वे भी अपने नए अनुभवों के आधार पर नए स्वाद ढूंढ़ लेती हैं. इस माह की पार्टी में तुम्हें ये पता चल ही जायेगा. वैसे हर पार्टी की एक थीम होती है.”

मेहुल बड़े ध्यान से सुन भी रहा था और नूतन के मम्मों से भी खेल रहा था. नूतन को शोनाली की बात याद थी. उसने पहले उसी दिशा में बात करने की ठानी. उसके बाद वो अधिक विकृत कृत्यों पर प्रकाश डालेगी.

मेहुल, “तो इस बार की पार्टी की थीम क्या है?”

नूतन ने मेहुल के होंठ चूमे, “परिवार.”

मेहुल चौंका फिर उसने भी नूतन के होंठ चूमे. “ये कैसी थीम है?”

“थीम के आधार पर एक शो होता है. तुमने अभी क्लब का हॉल नहीं देखा है जहाँ पार्टियां होती हैं. वहाँ इस प्रयोजन के हेतु एक मंच है. क्लब में कुछ सदस्याएं और रोमियो एक ही परिवार से हैं. वैसे तुम पार्थ और शोनाली के बारे में जान ही चुके हो. शोनाली पार्थ की बुआ है. सचिन जिसने तुम्हें परिचित कराया है, उसकी माँ रमोना भी क्लब की सदस्या है. एक नानी नाती की जोड़ी है, हालाँकि नानी अभी बाहर जाने वाली हैं तो इस पार्टी में नहीं आएंगी. शोनाली के ही निकट में रहती हैं वो.”

“कुछ सदस्याओं ने अपने विस्तृत परिवार के लड़कों को रोमियो बनवाया है. मामी, चाची, बुआ, मौसी इत्यादि ने रोमियो बनवाये हैं. दूसरी और यही कार्य कुछ रोमियो ने भी किया है. हालाँकि ये कम है क्योंकि क्लब की फीस सबके सामर्थ्य की नहीं है. इसमें गोपनीयता भी नितांत आवश्यक है.”

मेहुल सुन रहा था और नूतन उसके चेहरे के भाव पढ़ रही थी. मेहुल के आरम्भिक आश्चर्य के बाद उसने कोई विरोधी भाव नहीं दर्शाया तो नूतन को शोनाली के लिए एक समाचार मिल गया. मेहुल भी समझ गया था कि नूतन उसे देख रही है तो उसने अपनी भावनाओं को छुपा लिया. पर शोनाली के मोहल्ले की नानी से उसका ध्यान अन्य सात घरों पर गया. उसे ये समझ आ गया कि इसका भेद अगली पार्टी में अवश्य खुल जायेगा. नानी न भी आये पर नाती तो आएगा ही.

“तो इस प्रकार के छह जोड़े इस बार अपना कार्यक्रम प्रस्तुत करेंगे और फिर पार्टी आरम्भ हो जाएगी.”

“और अगर आप बता सकें तो कुछ बताएंगी कि किस महिला को क्या रास आता है जिससे कि मैं उनके सुख के लिए सही रास्ता अपनाऊँ।” मेहुल ने घुमाकर बोला पर नूतन समझ गई कि अब उसे मेहुल को उन विकृत कृत्यों से परिचित करवाने का उपयुक्त समय है.

“हम्म. वैसे कुछ महिलाएं कभी कभी क्लब न जाकर मेरे या मंजुला के घर आना रुचिकर समझती हैं. इसका कारण होता है कि रोमियो और प्रबंधकों के सिवाय कोई और पुरुष या स्त्री का क्लब में प्रवेश वर्जित है. इसी कारण वे हम दोनों में से किसी एक के घर का उपयोग करती हैं. उनके द्वारा इसके लिए विशेष प्रयोजन किया जाता है, और उनके द्वारा चुने हुए रोमियो भी उनकी सेवा के लिए आते हैं.”

मेहुल कुछ कुछ समझ रहा था. उसे अपनी प्रिंसिपल मैडम के घर की सच्चाई जो पता थी. फिर भी उसने आगे कुरेदना चाहा और नूतन ने उसका हाथ पकड़ा.

“चलो, मैं तुम्हें वो कमरा दिखती हूँ जहाँ उन की सेवा की जाती है.”

नूतन मेहुल को अगले कमरे में ले गई जो उसके शयनकक्ष से बड़ा था. इसका पूरा व्यय क्लब ने ही दिया है. कमरे में एक बड़ी सी अलमारी थी, एक बड़ा विशाल बिस्तर, चार एक सीट के सोफे भी रखे हुए थे. कमरे को देखकर मेहुल को ये भी समझ आ गया कि इसमें वीडियो रिकॉर्ड करने का भी प्रावधान होगा, पर उसने कुछ कहा नहीं. कमरे के साथ एक स्नानघर भी था. एक और अलमारी भी थी. नूतन ने अब तक कुछ नहीं कहा था.

“इसका उपयोग कब होता है? मुझे इसका कोई आशय नहीं दिखता।” मेहुल ने कहा.

नूतन ने उसे एक सोफे पर बैठाया और बड़ी अलमारी खोली. उसमे अनेकानेक प्रकार के सेक्स से संबंधित खिलौने थे. उन्हें बहुत व्यवस्थित रूप से रखा गया था. पर मेहुल ने एक ऐसा उपकरण देखा जिससे उसे इस कमरे का प्रयोजन समझ में आ गया. हुक में कुछ पिंजड़े रूपी यंत्र थे, जो पुरुष के लिंग के रूप के थे. अर्थात इनका प्रयोग किसी पुरुष के लंड को बंदी बनाने के लिए होता था. पाँच या छह विभिन्न आकार के पिंजड़े थे. नूतन ने अब तक उसकी ओर देखा नहीं था. इसी के साथ उसमे बड़े आकार के दो-मुंहे नकली लंड भी रखे हुए थे. वो उस अलमारी को दिखाकर कुछ समझाने वाली नहीं थी. उसे आशा थी कि मेहुल स्वयं इनका उपयोग समझे. और पूछने पर ही वो उत्तर देगी.

“मुझे कुछ कुछ समझ आ रहा है. कुछ सदस्याएं लेस्बियन संबंध भी रखती हैं परन्तु दूसरी महिला क्लब की सदस्या नहीं हैं. इसीलिए यहाँ आती हैं. उन्हें क्लब के रोमियो भी प्राप्त हो जाते हैं और लेस्बियन सुख भी.”

“सही समझे हो. और कुछ?”

“जो पिंजड़े हैं उनका प्रयोग सम्भवतः उन सदस्यों के पति या अन्य व्यक्ति द्वारा किया जाता है. हमारे रोमियो से चुदवाती हैं और उन्हें इनमे बंद करके उन्हें प्रताड़ित करती हैं. पर कोई भी पुरुष ऐसे व्यवहार को कैसे सहन करता है?”

“मनुष्य की मानसिक विकृतियों को समझना आज तक सम्भव नहीं हो पाया है. हमारे क्लब में ऐसी दो सदस्याएं हैं, एक के पति बहुत आयु प्राप्त कर चुके हैं और अब उन्हें केवल अपनी पत्नी, जो उनसे अधिक छोटी नहीं हैं, को जवान लड़कों से चुदवाते हुए देखकर ही आनंद आता है. वो पिंजड़ा नहीं पहनते, क्योंकि उनका लंड कुछ ही देर में स्खलित हो जाता है. पर दूसरी के पति मध्यम आयु के हैं और प्रतिष्ठित व्यक्ति हैं. उन्हें इसमें बंद रखा जाता है. और जब रोमियो उनकी चुदाई कर चुके होते हैं तब वो अपनी पत्नी को चोदते हैं.”

मेहुल समझ रहा था कि नूतन के इस कमरे का क्या महत्व है.

अनायास ही उसके मुंह से निकल पड़ा, “इनके वीडियो कहाँ रखती हो आप?”

इस बार चौंकने की बारी नूतन की थी.

“तुम्हें, तुम्हें कैसे पता कि वीडियो भी हैं?”

“कमरे की बनावट, सजावट और प्रकाश का वितरण इस बात को दर्शाता है कि इस कमरे में कैमरे लगे हैं. कितने ये तो आप जानती होगी, पर चार या अधिक हैं.”

“तुम सच में बुद्धिमान हो. हाँ इनकी रिकॉर्डिंग हैं. देखना चाहोगे?”

“हाँ पता तो चले कि मुझे किस प्रकार की सेवा के लिए चुना जायेगा?”

“ठीक है. पर ये बात हम दोनों के सिवाय किसी को ज्ञात नहीं होनी चाहिए.”

“ये मेरा वचन है.”

इसके बाद उसी अलमारी के अंदर एक बक्से में से नूतन ने एक यू एस बी की हार्ड डिस्क निकाली.

“चलो मेरे ही कमरे में देखेंगे. इसमें अन्य दृश्य भी हैं.”

दोनों कमरे में लौट गए. नूतन ने देखा कि ड्रिंक्स अब पीने योग्य नहीं थीं तो उसने उन्हें फेंककर नए पेग बनाये और डिस्क को अपने टीवी से जोड़ा और टीवी पर उस डिस्क के अध्याय दिखने लगे.

“क्या देखोगे?”

“जो आप दिखाओगी. मेरे लिए तो सब कुछ नया ही है.”

नूतन बिस्तर पर ड्रिंक ले कर बैठ गई, मेहुल ने भी वही किया. फिर नूतन कुछ देर तक उन अध्यायों को छानती रही. अंत में उसने एक अध्याय चुना.

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सुजाता का घर:

मोहन और सुजाता का चुंबन और भी प्रगाढ़ हो गया था. अपनी सास को चोदे हुए मोहन को भी कुछ अधिक ही समय हो गया था. उसका गदराया मांसल शरीर किसी को भी चुदाई के लिए उद्यत करने का सक्षम था. सुजाता इसका पूरा लाभ भी उठाती थी. समुदाय के कई लड़के उसके बिस्तर की शोभा बढ़ा चुके थे. कई बार तो उसने अपनी सिखाये गए तीन चार लड़कों को भी एक साथ आमंत्रित किया था. पर उसने ये पाया कि उसे अधिक के साथ चुदाई करने में कोई विशेष आनंद नहीं आता था. इसी कारण से उसने इस प्रकार के सामूहिक चुदाई को विशेष दिनों के लिए ही सीमित कर दिया था. परन्तु उन दिनों की कोई परिभाषा नहीं की थी.

मोहन उसे उसी दिन से अच्छा लगा था जब उसने समुदाय में प्रवेश लिया था. उस दिन तो मोहन से चुदने का अवसर नहीं मिल पाया था, परन्तु जब उसे कामक्रीड़ा सीखने के लिए चुना गया तब उसने मोहन के व्यक्तित्व में एक आकर्षण पाया था. सौभाग्य से उसने श्रेया के विवाह का जब आवेदन दिया तो उसमें से एक मोहन भी था. दो अन्य प्रत्याशी भी थे, पर उन्हें सुजाता ने औपचारिकता के लिए ही चोदा था. अंत में मोहन को जब चुना गया तो श्रेया भी प्रसन्न हुई थी. पर उसे मोहन से चुदने का केवल एक बार ही अवसर मिला था इसके पहले कि विवाह तय हुआ. फिर तो विवाह होने तक दोनों केवल चूमा चाटी से ही एक दूसरे को संतुष्ट करते रहे.

न जाने क्यों सुजाता स्वयं को स्मिता से श्रेष्ठ मान बैठी. उसे पता था कि ऐसा व्यवहार उचित नहीं है और अविरल ने भी उसे समझाया था. पर सुजाता रुक नहीं पाती थी. स्मिता ने समुदाय में इस बात को नहीं बताया अन्यथा सुजाता के लिए समस्या खड़ी हो सकती थी. पर मेहुल ने उसे ऐसा पाठ पढ़ाया कि उसकी सारी अकड़ निकल गई. उसने स्मिता से क्षमा भी मांगी. आज वही मोहन उसके शरीर से फिर एक बार खेल रहा था. उसने सुजाता को स्मिता के बगल में ही लिटाया और फिर अपने ससुर की ओर एक बार देखते हुए सुजाता की चूत में अपना मुंह लगा दिया और उसकी रसीली चूत को चाटने लगा. सुजाता ने अपना हाथ उसके सिर पर रखा और आनंद से आँखें मींच लीं.

स्नेहा भी अब तक अपने पिता की चूत चुसाई से उत्तेजित हो चुकी थी और इसके आगे बढ़ना चाहती थी. उसने अपने पिता अविरल के सिर को हटाने का प्रयास किया तो अविरल समझ गया कि अब उसकी बेटी चुदने के लिए उत्सुक है. एक अच्छे पिता के समान उसने स्नेहा की चूत में से अपना मुंह हटाया और खड़ा होकर स्नेहा को सही स्थिति में आने के लिए कहा. स्नेहा बिस्तर पर पीछे की ओर चली गई और अपने पैरों को फैला लिया. अविरल ने स्नेहा की खिली चूत को एक बार देखा और अपने फनफनाते लौड़े को चूत पर लगाकर एक धक्का लगाया. लंड चूत की गहराइयों में समाता चला गया. बाप बेटी दोनों ने एक आनंद भरी आह भरी. स्नेहा ने अपने दोनों पैरों की कैंची बनाकर अपने पिता की कमर को कस लिया.

अविरल ने धक्के लगाने आरम्भ किये और कुछ ही देर में एक अच्छी गति पा ली. स्नेहा भी कमर उछालते हुए अपने पिता के लंड को अपनी पूरी गहराई में उतारने का प्रयास कर रही थी. अविरल ने आगे झुकते हुए स्नेहा के होंठों से होंठ मिला लिए. बिना अपनी लय को तोड़े हुए दोनों चुंबन में लीन हो गए. कुछ देर में अविरल ने अपने होंठ अलग किये और इस बार उन्हें स्नेहा के मम्मों को चूसने के लिए उपयोग किया. स्नेहा की आनंद भरी सिसकारी निकली और उसने अविरल के सिर को अपने स्तन पर दबा लिया. श्रेया और विवेक भी पीछे नहीं थे. श्रेया ने विवेक के लंड को चूसकर उसे इतना उत्तेजित कर दिया था कि अब विवेक रुकने की स्थिति में नहीं था. उसने श्रेया को बिस्तर पर धकेला और उसके ऊपर चढ़कर उसकी चूत में एक ही बार में पूरा लंड पेल दिया.

“उउउह, लगता है मेरा भाई उफ्फ्फ…” श्रेया अपनी बात पूरी भी न कर पाई थी कि विवेक ने उसका मुंह अपने मुंह से बंद कर दिया. विवेक को इस बात से बिलकुल आपत्ति नहीं थी कि श्रेया अभी अपने मुंह से उसके ही लंड को चूस चुकी थी. कामांध विवेक ने उसे चूमते हुए तीव्र गति से चुदाई आरम्भ कर दी. श्रेया भी अपने भाई के उत्साह से अछूती न रही और उसने भी अपनी कमर उछालते हुए उसका साथ दिया. दोनों बहनें एक साथ कमर उछालते हुए अपने पिता और भाई के लंड का आनंद ले रही थीं.

तो उनकी माँ कैसे पीछे रहती. पर सुजाता ने मोहन से अपनी गांड मरवाने की इच्छा की तो मोहन ने भी इसमें सम्मति जताई. तो सुजाता घोड़ी के आसन में आ गई. सुजाता की गांड के छेद को थूक और उँगलियों से कुछ देर तक खोलने के बाद मोहन ने अपने लंड से उसकी गांड की गहराई नाप दी. श्रेया मोहन के पास विवेक से चुद रही थी और उसके पास स्नेहा अपने पिता से. इस समय किसी को प्रेम से चोदने या चुदने की इच्छा नहीं थी. इस चुदाई में केवल शरीर की भूख को मिटाना था और उसमे तीनों जोड़े बढ़ चढ़कर अपनी शक्ति और उत्साह का प्रदर्शन कर रहे थे.

कमरे में आहों, कराहों और सिसकारियों की ऊष्मा थी. चुदाई की सुगंध से कमरा महक रहा था. शरीर पसीने से लथपथ होने लगे थे. और तीनों जोड़े पूरी त्वरता और गति से चुदाई का आनंद ले रहे थे. इस समय कमरे का वातावरण ऐसा था मानो यहां कोई युद्ध लड़ा जा रहा हो. योद्धा अपनी अपनी शक्ति के प्रदर्शन में लगे हुए थे. ये किसी भी प्रकार से प्रेम नहीं था. केवल वासना और शरीर की संतुष्टि ही एकमात्र उद्देश्य था. दोनों प्रतिद्वंदी अपने विरोधी को हराने का प्रयास कर रहे थे. परन्तु सफल कोई न हो रहा था. कोई अस्त्र त्यागने के बारे में सोच नहीं रहा था.

परन्तु प्रकृति के अपने नियम हैं और किसी को भी असीम शक्ति अथवा बल प्रदान नहीं किया जाता. इसी कारण एक लम्बे समय के बात गति शिथिल होने लगी. महिलाएं अब अपने रस का निस्तारण कर चुकी थीं और केवल पुरुष ही शेष थे. मोहन ने सुजाता की गांड मारते हुए उसके नितम्बो को इतनी शक्ति से पकड़ा हुआ था कि वो लाल हो चुके थे. उसके धक्कों ने भी इसमें अपना यथोचित योगदान किया था. सुजाता को आज की मोहन की ये शक्तिशाली चुदाई बहुत रास आई थी. मोहन अधिकतर गांड भी प्रेम से ही मारता था. परन्तु आसपास चल रहे दृश्य ने उसे भी उद्वेलित कर दिया था.

मोहन ही पहले झड़ा भी और उसके पीछे पीछे अविरल ने अपनी बेटी की चूत भर दी. अंत में विवेक के रस की प्यासी श्रेया की भी चूत को उसका प्रिय रस मिल ही गया. तीनों जोड़े एक दूसरे को चूमते हुए एक दूसरे से लिपटे रहे. समय जैसे थमा हुआ था. उन्हें पता था कि आज रात हर मिश्रण में चुदाई का आनंद मिलेगा और इसके लिए वे पूर्ण रूप से तत्पर थे.

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सुनीति का घर:

सुनीति ने उन दोनों को देखा तो कुछ शर्मा सी गई. विशेषकर महक की आँखों की चमक और लालसा देखकर. आज उसे अपनी भावी बहू के सानिध्य का आनंद मिलने वाला था और महक को देखकर वो समझ गई कि उसे दोनों प्रकार के सुख का अनुभव है. महक की झिझक देखते हुए सुनीति ने ही आगे बढ़ने का बीड़ा उठाया. आगे बढ़कर उसने महको को अपनी बाँहों में भर लिया. महक भी सिकुड़कर उससे लिपट गई.

“शर्मा रही हो? तुम तो समुदाय में बहुत समय से सक्रिय हो, तो शर्म कैसी?”

“जी मम्मी जी, वो मेरे सास ससुर नहीं थे न. न कोई संबंधी ही थे. तो वहाँ इतना संकोच नहीं था. अब बात कुछ और है.”

“मैं समझ सकती हूँ. पर हमारा भी परिवार तुम्हारी ही जीवन शैली में लिप्त है. तो शीघ्र ही इस संकोच को दूर करो और सम्मिलित हो जाओ.”

ये कहते हुए सुनीति ने महक के चेहरे को उठाया और उसके होंठ चूम लिए. मानो एक बाँध रुका था, जैसे ही दोनों के होंठ मिले तो टूट गया और एक दूसरे के चुंबन में दोनों लीन हो गयीं. और इस बात का ध्यान ही नहीं रहा कि दोनों के तौलिये उनका शरीर छोड़कर गिर चुके थे. आशीष इस लुभावने दृश्य को देखकर अद्भुत आनंद का अनुभव कर रहा था. सुनीत के सौंदर्य से वो अनिभिज्ञ नहीं था पर महक ने भी उसे आकर्षित किया. उसके लंड ने इस बात का सम्मान किया और उठकर अपना प्रयोजन दर्शाया.

महक को चूमते हुए सुनीत उसे बिस्तर की ओर ले चली और उसे बिस्तर पर लिटाकर उसके होंठों से स्वयं को हटाते हुए नीचे उसकी चूत को अपने होंठों से चूमने लगी. उसके बाद अपनी जीभ और उँगलियों से अपनी भावी बहू की चूत का अवलोकन करने में व्यस्त हो गई. अचानक उसे ध्यान आया कि उसके पति भी वहीं उपस्थित हैं. उसने सर उठाकर देखा तो आशीष अभी भी तौलिये में ही थे, हालाँकि उनका लंड उसमे भी टैंट बनाये हुए था.

“आइये, न मेरे साथ अपनी बहू की चूत का स्वाद लीजिये. और वो तौलिये हटा दीजिये, आप उसमे बहुत अटपटे दिख रहे हैं.”

आशीष ने तौलिया हटाया तो महक ने उनके लंड को देखकर संतोष की साँस ली. हालाँकि वो उन्हें समुदाय में प्रवेश के समय देख चुकी थी, पर अब निकट के दर्शन थे. आशीष सुनीति के साथ बैठ गया और अपने सामने परोसी हुई चिकनी चूत को देखने लगा. सुनीति ने महक की चूत से मुंह और जीभ हटाई और एक ओर होकर अपने पति को स्थान दिया. आशीष ने महक की गीली चूत पर चमकती अपनी पत्नी के द्वारा चाटी हुई चूत को देखा और फिर फाँकों को फैलाकर अपनी जीभ से उसे चाटने लगा. महक अब एक भिन्न ही अनुभति कर रही थी. इस प्रकार उसकी चूत को एक साथ दो लोगों ने कभी नहीं चाटा था. अब आशीष और सुनीति एक एक करके उसकी चूत के रस को पी रहे थे.

सुनीति: “मैं अपनी बहूरानी को भी अपना स्वाद दे देती हूँ. तब तक आप उसकी गांड का भी स्वाद ले लो. आज उसका भी आपको उद्धार जो करना है.”

आशिष ने ये सुना तो उसका लंड फड़क उठा. अपने हाथों से महक के नितम्बों को उठाकर उसने अपनी जीभ से उसकी गांड को हल्के से चाटा तो महक की सिसकारी निकल गई. अब आशीष उसकी चूत के ऊपर के भाग से गांड के निचले भाग तक अपनी जीभ से चाटने लगा. बीच में वो चूत में भी जीभ डाल देता और कभी गांड में भी. महक के मुंह पर अब सुनीति ने अपनी चूत लगा दी थी तो महक कुछ भी कहने की स्थिति में नहीं थी.

सुनीति: “सुनिए. मैं लेटकर महक से अपनी चूत चुसवाती हूँ. आपको इस प्रकार उसकी चूत और गांड तक पहुंचने में सरलता होगी.”

आशीष हटा, सुनीति लेटी और इस बार महक उसकी चूत में मुंह डालकर ये सिद्ध करने में जुट गई कि वो एक आदर्श बहू की भूमिका में सटीक बैठेगी. उसके पीछे उसके भावी ससुर ने फिर से उसकी चूत और गांड चाटने का कार्यक्रम आरम्भ कर दिया. आशीष से अब रुका नहीं जा रहा था. उसने सर हटाकर महक के आगे सुनीति को देखा और आँखों से विनती की कि उसे भी कुछ ध्यान चाहिए.

सुनीति: “महक बेटी. अब अपने पापाजी के लंड को भी चुदाई के उपयुक्त कर दो. बहुत देर से रुके हुए हैं वो भी.”

महक ने इस बार पहली बार अपना सुझाव दिया.

महक: “मम्मीजी, चलिए हम दोनों इस कार्य को करते हैं.”

आशीष प्रसन्न हो गया और लेट गया. उसके एक ओर सुनीति आ गई और दूसरी ओर महक. दोनों सुंदरियों के बीच आशीष स्वयं को भाग्यशाली समझ रहा था. सुनीति ने लंड को पकड़ा और महक की ओर किया.

“पहले तुम, नहीं तो स्वाद और सुगंध कम हो जाएगी.”

महक ने अपने भावी ससुर के लंड को प्रेम से चाटा और फिर मुंह में लेकर चूसने लगी. आशीष उसके सिर पर हाथ फेरने लगा. कुछ समय बाद महक ने लंड को छोड़ा और अपनी भावी सास की ओर कर दिया.

“धन्यवाद मम्मीजी. स्वाद और सुगंध बहुत अच्छी है. आप बहुत भाग्यशाली हैं.”

“वो तो हूँ.” ये कहते हुए आशीष के लंड को मुंह में लेकर सुनीति चूसने लगी.

कुछ समय तक इसी प्रकार से भावी सास बहू भावी ससुर के लंड को चूसती चाटती रहीं. अब आशीष चुदाई के लिए तत्पर था और महक और सुनीति भी.

“महक, आओ, अब पहले तुम्हारी चूत का ही आनंद दे दो इनको.”

रात अभी शेष थी

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सुजाता का घर:

सभी कुछ देर तक यूँ ही शांति से लेटे रहे. फिर विवेक उठा और सबके लिए नए पेग बनाये. श्रेया उठी और उसकी सहायता करने लगी. फिर स्नेहा भी आ गई और तीनों ने मिलकर सबके पेग बनाये. उधर सुजाता, अविरल और मोहन बैठे हुए थे. सुजाता दोनों के बीच में स्थापित हो गई. स्नेहा और श्रेया ने आकर उन्हें उनके पेग दिए और फिर तीनों भाई बहन अपने पेग लेकर उनके सामने बैठ गए.

“तुम दोनों सप्ताह में एक दिन आ ही जाया करो. देखो कितना अच्छा लग रहा है, सब ऐसे बैठे हुए हैं.” सुजाता ने कहा. अविरल ने भी उसका समर्थन किया.

मोहन: “ठीक है, हम दोनों हर शुक्रवार आ जाया करेंगे. अन्य किसी दिन सम्भव नहीं है.”

श्रेया और स्नेहा एक दूसरे से लिपट गयीं. सुजाता भी अपनी इच्छा पूरी होते देख प्रसन्न हो गई. सबके चेहरों पर एक प्रसन्नता थी. अपने पेग के घूँट लेते हुए अन्य बातें चलती रहीं. सुजाता चुदाई के लिए आतुर हो रही थी और अपने दोनों ओर बैठे लौडों को सहला रही थी.

“लगता है मम्मी को अब इन दोनों से एक साथ चुदना है. है न मम्मी?” श्रेया ने सुजाता की इच्छा का अनुमान लगाया.

“हाँ पर….” सुजाता कुछ बोलती इसके पहले ही स्नेहा बोल उठी.

स्नेहा: “मम्मी, आप हम तीनों भाई बहन को आनंद लेने दो, आप पापा और जीजू से चुदवाओ। अगर हुआ तो दादा को भी भेज देंगे आपकी सेवा में.”

“कितनी प्यारी बच्ची है. ठीक है. विवेक को भी भेज ही देना, जब मन करे.”

सुजाता ने झुकते हुए मोहन के लंड को मुंह में लिया और कुछ देर चूसकर अविरल की ओर मुड़ गई. बड़ी सरलता से वो एक एक करके दोनों लंड चूस रही थी. स्नेहा ने विवेक के लंड को कुछ देर चूसा और फिर लेट गई. श्रेया ने उसके मुंह पर अपनी चूत लगाई और झुकते हुए अपने मुंह से स्नेहा की चूत को चाटना आरम्भ कर दिया. विवेक ने अपने सामने परोसी हुई अपनी दीदी श्रेया की सुडोल गांड को देखा तो उसे अपना लक्ष्य दिख गया.

विवेक ने अपनी माँ की ओर एक बार देखा जो अब तक दोनों लौड़ों को चूसने में ही व्यस्त थी. उसके एक एक मम्मे पर उनके पति और एक पर दामाद के हाथ थे और उनकी चूत में अविरल की उँगलियाँ चल रही थीं. विवेक को पता था कि अब शीघ्र ही उसकी माँ चुदने के लिए व्याकुल होने वाली है. उसने अपने सामने खिली हुई गांड को देखा और आगे बढ़कर उस पर थूक लगाया. अंगूठे की सहायता से थूक को अंदर धकेला. श्रेया ने विवेक का तात्पर्य समझा अपनी गांड को ढीला किया तो विवेक का अंगूठा सरलता से अंदर प्रवेश कर गया.

अपने लंड को अपनी दीदी की गांड पर रखते हुए उसने इस बात पर ध्यान नहीं दिया कि उसकी दोनों बहनें एक दूसरे की चूत चाटने में कितनी मग्न थीं. हल्के दबाव के साथ उसके सुपाड़े ने श्रेया की मखमल सी कोमल गांड में अपना स्थान बना ही लिया.

“शाबास! विवेक. अपनी दीदी की गांड अच्छे से मारना। बेचारी तुम्हारे लंड के लिए बहुत तरसती है.” मोहन ने उसे उत्साहित किया.

श्रेया ने अपना मुंह स्नेहा की चूत से हटाया, “तो आप अब हर सप्ताह आने के लिए स्वीकृति दे ही दीजिये.”

“अरे, जब मम्मीजी ने कह दिया तो मैं कैसे मना कर सकता हूँ? हैं न मम्मीजी?” मोहन ने बोला।

इस बात से वातावरण कुछ हल्का हो गया. पर सुजाता की प्यास भड़क गई.

“तो फिर आ जाओ और मेरी गांड मार लो, दामादजी.” सुजाता ने अपने मुंह से लंड निकाले और अविरल की ओर देखा.

“मुझे क्या देख रही हो, इधर चढ़ जाओ और मोहन तुम्हारी गांड मार लेगा पीछे से.” अविरल ने सुजाता को अपने लौड़े पर चढ़ने का आमंत्रण दिया.

मोहन भी अब सास की गांड मारने के लिए उत्सुक था. जब तक उसने अपने लंड पर थूक लगाया, तब तक सुजाता अविरल के लंड पर चढ़ाई कर चुकी थी और पूरे लंड को उसकी चूत निगल गई थी. मोहन ने आव देखा न ताव और अपने लंड को सुजाता की गांड पर लगाया और एक झटके से सुपाड़े को अंदर डाल दिया. सुजाता के मुंह से एक आनंद भरी सिसकारी निकली. उधर विवेक भी श्रेया की गांड में अपने लंड पर दबाव बनाये हुए उसे और अंदर धकेल रहा था. श्रेया की जीभ स्नेहा की चूत में अंदर जाकर अपनी छोटी बहन का रस पीने में व्यस्त थी.

सुजाता को मोहन ने सम्भलने का अवसर नहीं दिया. उसे अपनी सास की अनंत कामपिपासा का ज्ञान था और वो जानता था कि सुजाता दुहरी चुदाई में किसी भी प्रकार की कोताही सहन नहीं करती थी. विवाह के पहले भी वो अपने समुदाय के अन्य लड़कों के साथ उसकी कई बार चुदाई कर चुका था. वो सुजाता को वैसे ही चोदता था जैसे कि वो चाहती थी. अपने लंड को कुछ बाहर खींचकर एक लम्बे धक्के के साथ उसने लंड को लगभग पूरा गांड में डाल दिया. अपने ससुर के लंड का अनुभव उसे उस महीन झिल्ली के उस पर हो रहा था. एक बार फिर लंड को बाहर निकालकर इस बार और अधिक शक्ति के साथ उसने धक्का लगाया और लंड को पूरा गांड में पेल ही दिया.

“आहा मोहन, क्या पेला है बेटा। अब तुम दोनों मेरी तगड़ी चुदाई करो. मेरी आत्मा तृप्त कर दो.” सुजाता ने कहा और अविरल के होंठ चूसने लगी.

अविरल ने कमर उठाकर धक्के लगाने आरम्भ किये और मोहन ने भी उसकी ताल में ताल मिलाकर सुजाता की चूत और गांड में लंड के हमले करते हुए सुजाता के मम्मों को अपने हाथों से मसलने लगा. मोहन वैसे तो बहुत शांत स्वभाव का था और उसकी चुदाई भी उसी प्रकार से होती थी, परन्तु अपनी सास के साथ वो एक नए ही रूप में दिखता था. ससुर और दामाद मिलकर सुजाता को निर्ममता से चुदाई कर रहे थे.

विवेक के लंड ने अब अपना पूरा मार्ग सरल कर लिया था और अब वो बड़ी सतर्कता के साथ अपनी बड़ी बहन की गांड मार रहा था. स्नेहा उसी चूत से बहते रस को छप छप कर पी रही थी और स्नेहा की चूत का रस श्रेया पी रही थी. विवेक के लंड की गति उतनी द्रुत नहीं थी जितनी उनके पास में चल रही चुदाई में थी. वो श्रेया की गांड का पूरा आनंद लेकर उसे मंथर गति से ही चोद रहा था.

विवेक के मन में एक नया विचार आया तो उसने अपनी गति बढ़ाई. श्रेया चाहकर भी अपनी गांड उछालकर उसके लंड का साथ नहीं दे सकती थी, क्योंकि उसकी चूत से स्नेहा की जीभ निकल जाती. पर वो अपने भाई और बहन के इस दोहरे हमले का आनंद पूर्ण रूप से ले रही थी. विवेक का ध्यान इस समय बँटा हुआ था, एक ओर वो श्रेया की गांड मरने में व्यस्त था और अपने लंड को अंदर बाहर होते देख रहा था, वहीं दूसरी ओर उसका ध्यान अपनी माँ की ओर भी था जिसे उसके पापा और जीजा चोद रहे थे. मोहन और अविरल की तीव्र और शक्तिशाली चुदाई से उसकी माँ के मुंह से निकलती हुई कामोत्तेजक चीखें उसे और भी प्रेरित कर रही थीं.

वो आगे झुका और उसने श्रेया के कान में कुछ कहा. श्रेया ने बिना कुछ कहे सिर हिलाया. तो विवेक ने अपनी गति कुछ और बढ़ाई और फिर रुक गया. स्नेहा को भी इस बात का भान हुआ.

विवेक ने बहुत सावधानी के साथ अपने लंड को श्रेया की गांड से निकाला और फिर उठकर अपनी माँ सुजाता के सामने बिस्तर पर जा खड़ा हुआ. अविरल ने नीचे से उसे देखा और मुस्करा पड़ा, वहीँ जब मोहन ने ये देखा तो अपनी गति और बढ़ा दी. एक अच्छे दामाद का ये कर्तव्य है कि वो अपनी सास के सुख के लिए हर प्रकार का प्रयास करे. इस समय श्रेया ने भी अपने भाई के तने लंड को देखा जिसपर उसकी गांड का रस चिपका हुआ था. सुजाता की गांड पर जब मोहन ने हल्की सी चपत लगाई तो उसने अपनी आँखें खोलीं और सामने अपने बेटे के लंड को लहराते हुए देखा.

उसकी आँखों में एक नई चमक आ गई और उसके शरीर में एक नए आनंद का संचार हुआ. तीन तीन पारिवारिक लौडों से चुदने का ये स्वर्णिम अवसर उसके उन्माद को और भी बढ़ाने में सफल हुआ. बिना हाथों से छुए उसने अपना मुंह खोला और विवेक के लंड पर जीभ फिराई. फिर अपनी जीभ के द्वारा ही उसने लंड को अपने मुंह में लेने का प्रयास किया, पर सफल न हो सकी. विवेक ने अपनी माँ की सहायता के लिए उसका सिर अपने हाथों से पकड़ा और थोड़ा लंड को मुंह में डाल दिया. सुजाता उसे इतने में ही चाटने लगी और फिर धीरे धीरे अंदर अपने मुंह में लेने लगी.

लंड के पर्याप्त मात्रा में अंदर जाने के बाद ही उसने अपने हाथों का प्रयोग किया और विवेक के लंड को चूसने लगी.

“मॉम, अधिक नहीं. मैं तो दीदी की गांड का स्वाद दिलाने के लिए आया हूँ. और हर कुछ मिनटों में आता रहूँगा।”

“ये तो बहुत अच्छी बात है.” सुजाता ने मुंह से लंड निकाला और कहने के बाद फिर से चूसने लगी.

जब श्रेया ने ये बात सुनी तो उसने अपने मुंह को स्नेहा की चूत से हटाया.

“तब तो हमें अपनी स्थिति बदल लेनी चाहिए. स्नेहा तुम पलट कर दूसरी ओर हो जाओ, और मैं इस ओर हो जाती हूँ, जिससे की विवेक भैया को हर बार चलकर इतनी दूर न जाना पड़े. बस गांड से लंड निकालें और माँ से चुसवा लें.”

श्रेया के सुझाव में तर्क था और तत्क्षण ही ये परिवर्तन भी कर लिया गया. विवेक ने अपने लंड को सुजाता के मुंह से निकाला.

“बस मॉम, मैं यूँ गया और यूँ आया.” विवेक ने श्रेया की गांड के पीछे आते हुए कहा.

सुजाता ने अपने होंठों पर जीभ फिराई, “जब मन करे सो आ. वैसे तेरे पापा और जीजा भी ठोक कर चोद रहे हैं आज.”

विवेक ने अपने लंड को श्रेया की गांड में डाला और इस बार गति कम नहीं रखी. श्रेया समझ गई कि उसकी गांड की अब घनघोर चुदाई भी होगी और उसकी माँ का भी उसकी गांड के स्वाद से कई बार परिचय होगा। उसने स्नेहा की चूत को चाटने पर और उत्साह दिखाया. स्नेहा कुछ व्यथित थी. ऊपर श्रेया के सिर के होने से उसे अधिक कुछ दिख नहीं रहा था और सुनाई सब दे रहा था. उसने सोचा कि ऐसे तो उसे केवल रेडियो की ही कमेंट्री सुनने मिलेगी, दूरदर्शन का आँखों देखा हाल नहीं. श्रेया की चूत को चाटते हुए वो इसका तोड़ सोच रही थी. कुछ ही धक्कों के बाद विवेक अपनी माँ के सामने लौट गया. स्नेहा ने श्रेया की गांड पर थपकी दी. श्रेया ने अपनी चूत को उसके मुंह से हटाया.

“दीदी, दादा को बोलो मुझे भी आपकी गांड का स्वाद लेना है. एक बार मुझे और फिर एक बार मॉम को.”

श्रेया ने तो सुना ही, विवेक ने भी सुन लिया. दोनों बहनें एक दूसरे की चूत पर फिर से टूट पड़ीं. इस बार विवेक ने वही किया, श्रेया की गांड कुछ देर मारकर श्रेया को आगे किया और स्नेहा को लंड सौंप दिया. दो तीन बार इसी चक्र के बाद अब उसके अंडकोष रिक्त होने की अर्चना करने लगे. दूसरी ओर भी अब चुदाई समाप्त होने में अधिक देर न थी. मोहन और अविरल अपनी पूरी शक्ति सुजाता की चुदाई में झोंक रहे थे और सुजाता की चीखें धीरे धीरे क्षीण हो रही थीं. अब उसके मुंह से सिसकारियां ही निकल रही थीं.

अविरल ने अपने रस की फुहार सुजाता की चूत में उढेली तो सुजाता की चूत को ठंडक पड़ी. गांड की जलन को ठंडा करने के लिए एक अच्छे दामाद का कर्तव्य पूरा करते हुए मोहन ने अपने रस से अपनी सास की गांड भरने में अधिक समय नहीं लिया. साथ ही अब विवेक भी सुजाता से अपने लंड के अंतिम पड़ाव के लिए लंड चुसवा ही रहा था. चूत और गांड को ठंडक मिली ही थी कि विवेक ने अपने रस से सुजाता के मुंह में वीर्यपात कर दिया. सुजाता निःसंकोच उस रस को पी गई.

अब सुजाता के मन को शांति मिली, जब तीनों छेदों में उसके परिवार के पुरुषों ने अपने रस का योगदान दे दिया. स्नेहा और श्रेया भी अपने चरम पर पहुंचकर एक दूसरे से लिपटी हुई थीं. मोहन और विवेक अपने कृत्य के समापन के बाद हट गए और सुजाता को सहारा देकर अविरल के ऊपर से हटाया. सुजाता के चेहरे पर एक संतुष्टि थी और चेहरे पर एक चमक.

“क्यों मॉम, कैसा रहा?” श्रेया ने पूछा.

“अरे तू तो जानती ही है. इससे अधिक आनंद कभी मिल ही नहीं सकता. चलो अब मैं थोड़ा सफाई कर के आती हूँ फिर सोचेंगे कि सोना है या चुदना।”

**********************

नूतन और मेहुल:

नूतन मेहुल के साथ बिस्तर पर ड्रिंक ले कर बैठ गई. फिर नूतन ने अंत में उसने एक अध्याय चुना जो उसे उपयुक्त लगा. टीवी पर एक सुंदर महिला के दर्शन हुए. उसके पीछे नूतन आई और फिर एक अन्य महिला. उन दोनों को देखकर मेहुल अचरज में पड़ गया. प्रथम महिला टीवी की एक प्रसिद्ध कलाकार थी जो अधिकतर माँ अथवा और प्रेममई सास की भूमिका के लिए जानी जाती थी. उसके साथ वाली महिला भी उनके साथ एक धारावाहिक में कार्य कर रही थी और उसमें वो दोनों प्रतिद्वंदी थीं. पहली स्त्री कमल रंधावा थी और दूसरी जो विलेन थी उसका नाम दर्शा था. नूतन ने उन्हें कमरे में छोड़ा और बाहर चली गई.

नूतन ने शांति तोड़ी, “कमल क्लब की सदस्या है, पर दर्शा नहीं है. इसीलिए उन्हें यहाँ आना पड़ता है. दोनों को स्त्रियों से भी सेक्स करना अच्छा लगता है. जहाँ तक कमल की बात है, तो वो हर प्रकार की चुदाई में सम्मिलित होती है, पर दर्शा अन्य पुरुषों से केवल गांड ही मरवाती है. वैसे इस वीडियो में उसका कारण भी पता चल जायेगा.”

मेहुल ने सिर हिलाया पर अपनी आंखें टीवी से हटाई नहीं. अब तक कमल और दर्शा एक दूसरे को चूमने में व्यस्त हो चुके थे और फिर उन्होंने अपने कपड़े उतार दिए और संभाल कर अलमारी में टाँग दिए.

दर्शा: “तो आज क्या सोचा है?’

कमल: “वही हर बार के समान इस बार भी तीन लड़के आने वाले हैं. दो मेरे लिए तो एक तेरी गांड के लिए. क्यों नहीं चुदवा लेती सच में मन संतुष्ट हो जायेगा.”

दर्शा: “नहीं कमल, तू तो मेरे पति और मेरे समझौते के बार में जानती ही. मेरी चूत केवल उनके लिए है और वो भी किसी और की चूत में अपना लंड नहीं डालते. हाँ, हम दोनों को गांड मरवाने और मारने की पूरी स्वंत्रता है.”

“मैं सच में तुम दोनों के इस समीकरण पर अचम्भित हूँ. पर जैसा तुम चाहो.” दोनों बाथरूम में जाकर बाहर निकली ही थीं कि कमरे में तीन रोमियो अंदर आ गए.

नूतन में मेहुल को समझाया, “मैं तुम्हें ये सब दूसरों की चुदाई दिखाने के लिए नहीं दिखा रही हूँ, बल्कि किस प्रकार की कामक्रीड़ाएं चलती हैं ये बताना चाहती हूँ. तो आगे बढ़ा देती हूँ.”

इसके बाद कुछ आगे बढ़कर कुछ और दृश्य दिखाए जिसमें कमल की डबल चुदाई और दर्शा की गांड की चुदाई थे. मेहुल ने इतना तो देख ही लाया कि कमल को तीनों लड़कों ने हर छेद में चोदा और तीनों ने ही दर्शा की गांड भी मारी। इसके बाद नूतन ने अगले वीडियो को लगाया. हालाँकि नूतन ये दर्शा रही थी कि वो अपने मन से वीडियो का चयन कर रही थी, परन्तु ऐसा नहीं था. वो शोनाली के द्वारा दिए गए निर्देशों के अनुसार ही उन्हें चुन रही थी. नूतन को कुछ वीडियो के बारे में तो समझ आया था परन्तु एक ऐसा वीडियो था जिसके बारे में उसे कुछ दुविधा थी. अगले वीडियो को चलाते हुए उसने मेहुल को कुछ और बताया.

“इस सदस्या के पति स्वास्थ्य कारणों से अब सम्भोग नहीं पाते। उनकी दवाइयों के कारण अब उनके लंड में इतनी शक्ति नहीं है. अधिक वृद्ध तो नहीं हुए हैं परन्तु उनका लंड खड़ा होता भी है देर के लिए और उतनी देर में वे इन्हें संतुष्ट नहीं कर पाते। क्लब में तो ये महिला आती ही हैं, परन्तु कभी कभी उनके पति भी उनकी चुदाई देखने में रूचि दिखाते हैं. मेरे विचार से तुम उन दोनों को देखकर पहचान भी जाओगे.”

इतनी बात बताई ही थी कि टीवी पर नूतन ने आगमन किया और उसके पीछे एक महिला और पुरुष भी आ गए. मेहुल उन्हें देखकर पहचान गया. वे नगर के एक प्रतिष्ठित व्यवसाई थे और उन्हें उसके पिता के द्वारा आयोजित कुछ पार्टियों में देखा था. उनकी पत्नी उनसे अधिक छोटी नहीं थीं और वो उसकी माँ की घनिष्ट मित्र थी. भरा पूरा शरीर, जिसे देखकर मेहुल का मन कई बार मचला था पर परिवार की प्रतिष्ठा के कारण कभी अपनी रूचि पर कोई कार्यवाही नहीं की.

परन्तु अब उसे लगता था कि आंटी भी कुछ ही समय में उसके नीचे होंगी. मोहनी सच में मोहनी ही थी, पार्टियों में उनके आसपास भँवरे घूमते थे पर उन्होंने कभी किसी को भी भाव नहीं दिया. आज मेहुल को उसका कारण समझ आ गया था. उनके पति सोहनलाल को तीन या चार वर्ष पहले ह्रदय आघात हुआ था, और सम्भवतः इसी कारण उनकी कामशक्ति क्षीण हो गई थी. नूतन ने उन्हें पूरे सम्मान से कमरे में लेकर छोड़ा और फिर सोहनलाल को कुछ कहते हुए बाहर चली गई. नूतन की ओर मेहुल देखा तो उसने बताया कि उन्हें कुछ समय के लिए रुकने के लिए कहा था क्योंकि कोई भी रोमियो आया नहीं था. मोहिनी ने अपने वस्त्र उतार कर अलमारी में रखे और यही सोहनलाल ने भी किया. दोनों ने हल्के फुल्के गाउन पहन लिए थे. मोहिनी को चूमते हुए सोहनलाल ने उसे विश्वास दिया. और फिर एक ओर रखे हुए सोफे पर जाकर बैठ गए.

कुछ देर में तीन रोमियो अंदर आये और मेहुल को आश्चर्य इस बात पर हुआ कि उन्होंने पहले झुककर सोहनलाल के पाँव छुआ और आशीर्वाद लिया। इसके बाद वे मोहिनी के पास गए और उसके भी पाँव छुए. मोहिनी की आयु पचास वर्ष से अधिक थी. पर उसने स्वयं को बहुत सहेज कर रखा था. और उसके शरीर में कहीं भी झुर्री इत्यादि नहीं थीं. इसके बाद तीनों रोमियो ने भी अपने कपड़े उतार कर अलमारी में टाँगे पर उन्होंने कोई कपड़ा नहीं डाला. मेहुल को भी उनके लंड के आकार को देखकर समझ में आया कि इस क्लब का नाम दिंची क्लब क्यों है.

एक और बात जिसे मेहुल ने विशेष रूप से समझा कि सम्भवतः इन तीनों रोमियो से इस जोड़े की पहचान भी थी. उसने नूतन से पूछा कि क्या हर बार इन्हीं को बुलाया जाता है? इस पर नूतन ने मना किया, परन्तु ये भी बताया कि अधिकतर रोमियो से सोहनलाल मिल चुके हैं और इसीलिए ऐसा प्रतीत होता है. मेहुल को अभी भी कुछ संदेह था, पर वो चुप ही रहा. तीनों रोमियो ने मोहिनी को घेर लिया और उसके शरीर से खेलने लगे. मोहिनी भी उनका पूरा साथ दे रही थी. सोहनलाल भी उन सबको उत्साहित कर रहे थे.

अचानक मोहिनी ने उन्हें हटाया और सोहनलाल के पास जाकर उन्हें अपनी बाँहों में ले लिया. सोहनलाल ने उसे चूमा और कहा कि वो आनंद ले, वो इसकी अधिकारी है. फिर उसने उन तीनों रोमियो को कहा कि वे तीनों मिलकर मोहिनी की हर प्रकार से प्यास बुझाएं. महिनी तीनों के बीच में लौट गई और फिर आगे का खेल आरम्भ हो गया.

नूतन ने इसके बाद पिछले वीडियो के समान ही इस वीडियो के मुख्य आकर्षण दिखाए. इसमें भी मोहिनी की एकल, दुहरी और तीनों छेदों में एक साथ चुदाई के दृश्य थे. वीडियो की कुल अवधि लगभग तीन घंटे की थी और उसके अंत में मोहिनी के शरीर पर लालिमा छाई हुई थी. उसकी चूत और गांड से रस बह रहा था और वो बेसुध सी लेटी हुई थी. तीनों रोमियो अपने कार्य सम्पन्न करने के बाद बाथरूम से नहाकर निकले और अपने कपड़े पहने. इसके बाद उन्होंने सोहनलाल के पाँव छुए. सोहनलाल ने उन्हें अच्छे प्रदर्शन के लिए धन्यवाद दिया और फिर वो तीनों चले गए.

इसके बाद नूतन दिखाई दी जिसने मोहिनी को बाथरूम में नहलाया और उसे उसके वस्त्र पहनने में सहायता की. तब तक मोहिनी भी अपने पूर्व स्वरूप में आ चुकी थी. उसने नूतन को धन्यवाद किया और उचित रोमियो के चयन के लिए भी धन्यवाद किया. सोहनलाल ने भी नूतन को धन्यवाद किया और फिर कुछ देर तक तीनों ने बैठकर अन्य विषयों पर बात की जिसमे से कुछ संबंध नूतन के व्यवसाय से भी था. इसके बाद वो भी चले गए.

नूतन ने मेहुल को समझाया, “हमारे यहाँ सदस्य बनने वाली लगभग हर महिला को अपने पति की प्रत्यक्ष या परोक्ष सहमति प्राप्त है. सोहनलाल जी अपने स्वास्थ्य बिगड़ने के पहले मोहिनी जी को रगड़ कर चोदते थे, इसीलिए वो कभी कभी यहाँ आकर ये निश्चित करते हैं कि अब भी मोहिनी की उसी प्रकार से चुदाई की जा रही है. हाँ ये डबल ट्रिपल चुदाई पहले कभी नहीं की गई थी, पर अब नियमित हो चुकी है.”

“सेक्स का विषय ही अनोखा है. इसमें जितनी प्रकार की लीलाएं हैं वो किसी और क्रीड़ा में नहीं. और विकृतियां भी उतनी ही है. परन्तु जिसे जिस में सुख मिले, बिना किसी दूसरे को कष्ट दिए हुए या उसकी स्वीकृति के बिना तो सब चंगा है.”

“तुम सच कह रहे हो.”

************

सुनीति का घर:

कुछ समय तक इसी प्रकार से भावी सास बहू भावी ससुर के लंड को चूसती चाटती रहीं. अब आशीष चुदाई के लिए तत्पर था और महक और सुनीति भी.

“महक, आओ, अब पहले तुम्हारी चूत का ही आनंद दे दो इनको.”

सुनीति ने महक को अपने साथ बिस्तर पर लिटा लिया और उसके होंठ चूमने लगी. एक हाथ से उसके मम्मों को भी सहला रही थी. फिर दूसरे हाथ से महक के पैरों को खोला. दो उँगलियाँ उसकी चूत में डालकर कुरेदा तो महक चिंहुक पड़ी. महक को अपनी जांघों पर कुछ आभास हुआ तो उसने नीचे देखा. आशीष का मुंह उसकी चूत के निकट था और उसकी जांघों पर आशीष की साँसों की ऊष्मा का आभास था. आशीष ने अपनी जीभ से महक की जाँघों पर चाटना आरम्भ किया तो महक की तो जैसे धड़कन ही रुक सी गई.

आशीष ने चूत तक पहुंचने में कुछ देर लगाई और इस पूरी अवधि में सुनीति महक के होंठ चूसती रही, स्तन मसलती रही और अपनी उँगलियाँ महक की चूत में डाले रही. जब आशीष की जीभ ने महक की चूत को स्पर्श किया तो सुनीति ने अपनी ऊँगली निकाली और आशीष के मुंह में डाल दी. आशीष ने उसे चाट कर साफ किया. उसके नथुनों में महक की चूत की लुभावनी सुगंध समा गई. अपनी जीभ से उसने महक की चूत को चाटना आरम्भ कर दिया.

महक अब कामपिपासा से परिपूर्ण हो चुकी थी. वो चाहती तो थी कि अब ये अठखेलियाँ बंद हों और उसकी असली चुदाई की जाये, पर वो अपने भावी सास ससुर से ये कह नहीं सकती थी. दूसरी ओर सुनीति और आशीष उससे यही सुनना चाहते थे और इसीलिए वो उसे इतना छेड़ रहे थे. सुनीति ने अपनी उँगलियों से महक के भग्नाशे को जब दबाया तो महक से रुका नहीं गया. उसने ढेर सा रस आशिष के मुंह में छोड़ा।

फिर कराहते हुए बोल पड़ी, “पापाजी, अब और मत सताओ, प्लीज. मम्मीजी, प्लीज पापा को बोलो न कि अब चोद डालें मुझे. पापाजी प्लीज, मम्मीजी प्लीज. प्लीज.”

आशीष और सुनीति इसी प्रतिक्रिया के लिए आतुर थे. आशीष ने एक बार फिर महक की चूत पर जीभ फिराई और उठकर अपने लंड को उसकी रस भरी चूत पर रख दिया.

“आपकी होने वाली पहली बहू है, अच्छे से चोदना इसे.” सुनीति ने आशीष ने कहा और महक के स्तन दबाकर उसे चाटने लगी. आशीष ने अपने लंड को महक की चूत पर रखते हुए एक अच्छा शक्तिशाली झटका दिया तो महक की चूत में उसके लंड ने आधा रास्ता तय कर लिया. पाँच सेकण्ड रुकने के को बाहर खींचा और इस बार के धक्के ने उसके लंड को अपनी भावी बहू की चूत में पूर्ण रूप से स्थापित कर लिया.

“बहुत तंग है क्या? सुनीति ने पूछा.

“हाँ, और गर्म भी बहुत है.”

“होगी ही.”

इसके साथ ही सुनीति ने अपने एक हाथ को नीचे किया और महक के भग्नाशे से खेलने लगी. एक मम्मे को चाटते हुए, भग्न से खेलते हुए वो अपने पति को प्रोत्साहित करने में जुट गई. महक इस आनंद से अछूती न थी. इस प्रकार की चुदाई उसके अपने परिवार के बाहर पहली बार हो रही थी. अन्य हर बार एक शारीरिक भूख को ही मिटाया जाता था, और इस बार उसे सच में प्रेम की अनुभूति हो रही थी. आशीष ने जैसे ही अपने लंड को अंदर बाहर अंदर करना आरम्भ किया महक का शरीर आनंद से भर उठा.

“ओह! पापाजी. चोदो मुझे। बहुत अच्छा लग रहा है. मैं आपकी बड़ी बहू जो बनने वाली हूँ, अच्छे से स्वागत करिये मेरा.” महक के मुंह सी यूँ ही निकल गया.

सुनीति ने उसकी चूची और चूत से खेलते हुए उसे सांत्वना दी, “तेरा भाग्य अच्छा है बहू, न केवल तेरे ससुर तुझे अच्छे से चोदेेंगे, पर तेरा देवर, पति, इनके पिताजी और मेरे पिताजी भी तेरी भरपूर चुदाई करके तुझे सदा सुहागन और सुखी रखने वाले हैं. जितने भाग्यशाली हम हैं तेरे जैसी बहू और परिवार को पाकर उतनी ही तुम भी हो. अभी अपने ससुर से चुदाई का आनंद लो. तेरी नन्द भी कुछ कम नहीं है, न माँ, सब तुझे पूरा प्यार देंगे.”

महक ये सब सुनकर भावुक हो गई. आशीष ने अपने लंड को उसकी कमसिन चूत में गहराई तक उतारकर चोदना चालू रखा और सुनीति उसके शरीर के अन्य अंगों से खेलती रही. आशीष भी इस चुदाई का पूरा आनंद ले रहा था और ये भी सोच रहा था कि किस दिन वो अपनी समधन पर चढ़ पायेगा. महक और वो एक दूसरे की चुदाई में खोये हुए अवश्य थे पर एक दूसरे के परिवारों के बारे में भी रह रह कर सोच रहे थे. अब ऐसा तो हो नहीं सकता था कि सुनीति ऐसा न करती.

पंद्रह मिनट की इस प्रेमपूर्वक चुदाई के बाद आशीष और महक झड़ गए. सुनीति ने भी ये जान लिया कि आशीष ने ये मात्र स्वागत के लिए ऐसी चुदाई की है. अगली चुदाई में वो महक की माँ चोद देगा. आशीष ने अपने लंड को बाहर निकाला तो सुनीति ने महक की ओर संकेत किया.

“बहू, अपने पापाजी के लंड को साफ कर दो, पहली बार तुम्हारी चूत का रस पिया है इसने.” सुनीति ने कहा.

महक कोहनी के बल बैठी और आशीष ने उसके मुंह में अपना लंड दे दिया. महक ने सप्रेम उसे चाटा। नीचे उसकी चूत पर उसकी सास का मुंह लगा हुआ था. सुनीति ने उसकी चूत में से अपने पति का रस एकत्रित किया और रुक गई. आशीष के लंड को जब महक ने हटाया तो सुनीति ने उसके मुंह से मुंह मिलाया और महक को उसके और आशीष के रस का मिश्रण पिला दिया. सास बहू कुछ देर यूँ ही एक दूसरे को चूमते रहे. आशीष ने अगले पेग बनाये.

रात अभी शेष थी.

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