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शोनाली और सागरिका:
सजल ने आज पहली बार ट्रिपल चुदाई में भाग लिया था और उसका उत्साह देखते ही बनता था. अभी तक तो उसके चूत में रहकर ऐसी चुदाई की थी, पर अब उसे सागरिका की गांड मारने का अवसर मिलने वाला था. निखिल ने उसे ट्रिपल चुदाई में गांड मारने के गुर सिखाये. सजल का लंड में ये सुनकर ही कड़क हो गया. सागरिका उसे ही देख रही थी. और उसने भी सजल के लंड को देखा और समझ गयी कि वो रुकने की स्थिति में नहीं है. उसने निखिल को पुकारा और उसे सजल की स्थिति से अवगत कराया. निखिल ने उसे अपनी बाँहों में ले लिया.
“तो मेरी होने वाली बीवी अब अपनी सवारी के लिए मन बना चुकी है.”
“और नहीं तो क्या, पूरा मजा केवल मम्मी के ही लिए है क्या?”
“नितिन, आ जा भाई, अपनी भाभी की चुदाई करने के लिए.”
नितिन ने बिस्तर पर लेटकर अपने लंड को पकड़ा और सागरिका ने उसके ऊपर चढ़कर अपनी चूत उसपर लगाकर बैठ गयी. लंड पूरा अंदर लेते ही वो उछलते हुए नितिन को चोदने लगी. निखिल ने अपना स्थान लिया और सागरिका के आगे खड़ा होकर उसे अपना लंड प्रस्तुत किया. सागरिका ने ताल तोड़े बिना ही निखिल के लंड को मुंह में लिया और पूरी गहराई तक चूसने लगी. उसे इस बात का गर्व था कि उसका होने वाला पति इतने तगड़े लंड का स्वामी है. और उसे इस बात से कोई आपत्ति नहीं थी कि सागरिका अन्य लोगों से भी चुदवाती थी. और चुदवाती रहेगी. वैसे भी निखिल स्वयं भी दूसरों की चुदाई के लिए उन्मुक्त था. अपने गले तक प्रहार करते हुए लंड के साथ उसकी चूत में पेले हुए अपने देवर के लंड से भी वो पूर्णतया संतुष्ट थी. पर अब उसके छोटे देवर सजल को एक नया अनुभव देने का समय था.
निखिल के लंड को मुंह से निकालकर उसने आगे झुकते हुए स्वयं को नितिन के समतल कर दिया. इस आसन में उसकी गांड अब ऊपर आ गयी. फिर उसने सजल को कहा कि वो अब उसकी गांड मार सकता है. नितिन ने अपने धक्के रोक दिए जिससे कि उसके भाई को सरलता हो. सजल सागरिका की सुंदर मांसल गांड देखकर बहुत ही उत्तेजित था. फिर उसने निखिल द्वारा बताई रीति को दुहराया और काँपते हुए अपने लंड को सागरिका की गांड पर लगाया. निखिल उसे देख रहा था और सजल ने उसे देखा तो निखिल ने उसे अँगूठा ऊपर करते हुए आगे बढ़ने के लिए कहा. सजल ने सागरिका की मखमली गांड में बहुत ध्यान से लंड डालना प्रारम्भ किया. सागरिका साँस रोके उसके इस पराक्रम को अनुभव कर रही थी. कुछ ही देर में सजल ने उसकी गांड की अँधेरी गुफा में अपने लंड को पूरा डाल दिया. फिर उसने विजयी मुस्कान के साथ निखिल को देखा. निखिल ने अपने हाथ को ऊँचा उठाते हुए अपने भाई के हाथ पर हाई-फाइव किया.
“अब मार ले अपनी भाभी की गांड, जैसे मैंने समझाया था. नितिन, तुम भी ध्यान रखना.” इसके बाद उसने सागरिका के मासूम चेहरे को ठोढ़ी से उठाया और अपने लंड को उसके मुंह में डाल दिया.
“अब तुम्हें भी हम तीनों भाइयों से चुदवाने का सुख मिलने वाला है. और हम तुम्हारे ऊपर कोई दया नहीं दिखाने वाले हैं. ओके, बेबी?”
सागरिका क्या कहती, उसके मुंह, चूत और गांड तीनों में लंड ठुंसे हुए थे. उसने निखिल के लंड पर अंदर ही अंदर जीभ चलाकर अपनी स्वीकृति दे दी.
“चलो भाइयों, अब अपनी भाभी की मस्त चुदाई करो.”
सजल अभी तेज और धुरंधर चुदाई के बारे में अधिक तो नहीं जानता था, पर उसे ये अवश्य समझ आ गया कि उससे बिना रुके सागरिका की गांड मारने की अपेक्षा है. उसने लंड को पिस्टन के समान सागरिका की कोमल गांड में चलाना आरम्भ ही किया था कि उसे आभास हुआ कि ये उसकी पिछली डबल चुदाई से बहुत भिन्न थी. जहाँ चूत में उसके लंड को कुछ खुलापन और कोमलता का अनुभव हुआ था, गांड में अधिक कसाव और कठोरता सी थी. और नीचे से उसे नितिन के लंड के साथ घर्षण का जो अनुभव हो रहा था वो उसके सेक्स जीवन का अनूठा अनुभव था.
शोनाली बड़े प्रेम से अपनी बेटी को अपने दामाद और उसके भाइयों से चुदवाती देख रही थी और उसे इस बात से बहुत सांत्वना थी कि उसकी बेटी को इतना अच्छा वर और परिवार मिला है, जो उन सबकी इस जीवन शैली में उनसे भी अधिक संलग्न है. अपनी चूत में ऊँगली डालकर वो अपनी बेटी की दमदार चुदाई देख रही थी. निखिल ने सागरिका के सिर को अपने हाथ में थामा हुआ था और सागरिका के सामने उसके लंड को चूसने के सिवाय और कोई प्रकल्प नहीं था. उसे अपनी चूत और गांड में चलते मोटे लम्बे लंड जो सुख दे रहे थे उसका प्रदर्शन करने में वो असमर्थ थी. उसने न जाने कितनी बार इस प्रकार की चुदाई की इच्छा की थी, पर केवल पार्थ और जॉय के होने के कारण उसे कभी ऐसा सुनहरा अवसर नहीं मिल पाया था. अब तक.
और उसे अपनी गांड में सजल के लंड से अधिक ही आनंद आ रहा था. कारण ये था कि उसकी ताल असम्मिलित सी थी और सागरिका की गांड को समझ नहीं पड़ रहा था कि उसका अगला धक्का कैसा होगा. पहले सजल नितिन के साथ ताल मिलकर उसकी गांड मार रहा था, पर तेजी दिखने के कारण ये क्रम बहुत जल्दी ही ध्वस्त हो गया था. यही कारण था कि नितिन और सजल की ताल बेताल थी. और इसका सबसे अधिक आनंद सागरिका को ही प्राप्त हो रहा था. नितिन तो अपनी भाभी की चुदाई पहले भी कर चुका था और डबलिंग भी कर चुका था, पर उसे आज सजल के उत्साह के कारण अलग मजा आ रहा था. उसके लंड पर घर्षण का कोण बदलते रहने के कारण उसे भी एक नया सुख मिल रहा था. उसे विश्वास था कि अब उसे ये प्रक्रिया अपनी माँ और नानी पर भी अपनानी होगी.
सागरिका की चूत से जहाँ पानी की धार छूट कर नितिन की जांघों को गीला कर रही थी वहीं उसके मुंह से गिरती लार नितिन के चेहरे को. नितिन चाहकर भी इन दोनों से स्वयं को दूर नहीं कर सकता था. वो केवल अपने हाथ से चेहरे और जांघों को पोंछ कर साफ कर रहा था. सजल को इस प्रकार की कोई दुविधा नहीं थी. वो तो एक स्कूल के शरारती बच्चे के समान पूरी तन्मयता के साथ उस खेल में जुटा था जैसे किसी बच्चे को खिलौनों से भरे कमरे में छोड़ दिया गया हो. और उसकी यही उमंग सागरिका और नितिन को भी आनंद की पराकाष्ठा पर ले जा रही थी.
निखिल को इस नए समीकरण का ज्ञात नहीं था, अन्यथा वो भी सजल के इस रूप से प्रभावित हुए बिना न रहता. वो तो अपने दोनों भाइयों को अपनी होने वाली पत्नी की भीषण चुदाई करते हुए ही संतुष्ट और आनंदित था. सागरिका अब उसके लंड को अपने मुंह में अधिक देर तक नहीं रख पा रही थी और उसकी इस कठिनाई को समझते हुए निखिल ने उसके सिर को छोड़ दिया. इसके साथ ही सागरिका ने लंड को मुंह से निकाला और खांसने लगी. फिर मुंह में लेकर निखिल के लंड को चाटने लगी. उसकी चूत भी अब अधिक चुदने से मना कर रही थी. झड़ते हुए सागरिका अब तक चुकी थी.
बैठक में सुमति अपने आप को बहुत देर तक रोके रही फिर समर्थ की मूक स्वीकृति पाकर उस कमरे में चली गयी. आज उसे एक नए लंड से निकले वीर्य का स्वाद जो मिलना था. और वो भी उसकी प्यारी सागरिका की गांड में से. ओह, क्या उसे और कुछ भी चाहिए? कमरे में धीरे से कदम रखकर वो शोनाली को अपनी चूत में ऊँगली चलते हुए देखी और अपने कपड़े गिरा दिए. सजल को सागरिका की गांड के कसाव के कारण अब रुका नहीं गया और वो भरभराते हुए सागरिका की गांड में अपने वीर्य को छोड़ने लगा. पूरा स्खलित होते ही उसे आभास हुआ कि वो अब तक स्वचालित सी चुदाई कर रहा था.
सागरिका की लाल हुई गांड के छेद से अपने रस को बहता देख उसे गर्व अनुभव हो रहा था. वो एक ओर हटा ही था कि सुमति से जा टकराया जो सागरिका की गांड की ओर चली आ रही थी. दोनों डगमगा गए पर सुमति की गति अगर तेज होती तो गिरना तय था. सुमति ने क्षमा की दृष्टि से सजल को देखा और फिर अपने मुंह को सागरिका की गांड से लगते हुए रस का सेवन करने लगी. सजल उसकी उठी हुई गांड देखकर बहुत आकर्षित हुआ और उसने सुमति की गांड पर अपना हाथ फेरा. सुमति इस क्रिया से झड़ गयी और तेजी से सागरिका की गांड में से अपने पेय को खींचकर पीने लगी. हटते हुए उसने अपने होंठों पर जीभ फिराई और सजल के लंड पर अपनी दृष्टि डाली. घुटनों पर गिरते हुए उसे सजल के लंड को मुंह में लेकर चाटकर साफ कर दिया.
फिर उठी और एक बार पीछे मुड़कर शोनाली को देखते हुए उसने कपड़े पहने और बैठक में लौट गयी. नितिन और निखिल भी अब झड़ रहे थे. नितिन ने सागरिका की चूत को भरा तो निखिल ने उसके मुंह को. निखिल झड़कर अलग हट गया. और फिर सागरिका भी नितिन के ऊपर से हटकर बिस्तर पर ढेर हो गयी. शोनाली ने अपनी बेटी की चूत से बहते हुए रस को देखा तो उठी और सागरिका की चूत को चाटकर उसे इस रस से मुक्ति दिला दी.
सब अब संतुष्ट थे. एक दूसरे को प्रेम से देखते हुए उन्होंने कपड़े पहने, हालाँकि सागरिका अभी भी लेटी थी. शोनाली से सागरिका का माथा चूमा और उसे जब सम्भव हो बैठक में आने के लिए कहकर अन्य चारों निकल गए. सागरिका चुदाई के संस्मरण लिए हुए बहुत देर तक लेटी हुई मुस्कराती रही और फिर कपड़े पहन कर बैठक में चली गयी.
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कुछ ही समय में सागरिका भी बैठक में आ गयी. समर्थ के निर्देश पर सबको उनकी रूचि का ड्रिंक दिया गया था. समर्थ के मन में एक प्रश्न था.
समर्थ: “पार्थ, तुमने अपने उस नए अनुबंध के बारे में कुछ बताया नहीं, जिसके लिए तुम और रूचि गए थे.”
पार्थ कुछ देर सोचकर बोला, “नाना जी, सबसे पहले मैं ये बता दूँ कि ये बात इस कमरे के बाहर नहीं जाना चाहिए, क्योंकि जिनके साथ हमारा अनुबंध हुआ है वो अपनी प्रतिष्ठा के लिए कुछ भी कर सकते हैं.”
समर्थ ने अपने परिवार की ओर देखा. सबने इसे गोपनीय रखने का वचन दिया. समर्थ ने पार्थ को वो बता सकता है.
पार्थ: “पहली बात तो ये जिसे आप सुनकर आश्चर्य में पड़ जायेंगे वो ये है की चार नंबर वाले डिसूजा भी हमारे ही समान पारिवारिक सम्भोग में लिप्त है. मुझे वो लोग वहीं मिले थे. आंटी के भाई आजकल अफ्रीका से आये हुए हैं और उन सभी के आपसी संबंध हैं.”
“वाओ!” ये पारुल ने कहा था. “डेविड इस सो हॉट!”
उसकी इस बात पर सब हंस पड़े.
“पर जो मैं अब बताने जा रहा हूँ, उसे किसी भी स्थिति में बाहर नहीं जाना चाहिए.” पार्थ रुका और फिर आगे बताने लगा, “जिनके साथ हमारा अनुबंध हुआ है वो इस प्रदेश के जाने माने मंत्री श्रीमान ____ हैं.” इस बार सभी चौंक गए. समर्थ के चहरे पर भी अविश्वास के भाव थे.
“हाँ, उनका बाहर का रूप और अंदर का रूप बहुत भिन्न हैं. मुझे जहाँ तक समझ आया है, वो भी अपनी बेटी की चुदाई करते हैं, हालाँकि मैंने देखा नहीं. वो और उनकी पत्नी अन्य लोगों से चुदाई करने में कोई बुराई नहीं समझते. जहाँ तक मैं समझता हूँ, अभिनेत्री केके की भी वो चुदाई कर चुके हैं.”
“पार्थ, उस दिन क्या हुआ ये बताओ, आगे की बात समझने में हम स्वयं ही सक्षम हैं.” समर्थ ने कहा. अन्य सभी लोग भी इस कथानक के बारे में जानना कहते थे.
पार्थ ने बताना आरम्भ किया.
“रूचि और मुझे एक अलग कार में ले जाया गया था. और हम दोनों उनके ही बंगले पर रुके थे. उस रिसोर्ट में उनका अलग बंगला है, जिसे हर प्रकार से सुरक्षित किया गया है. उनकी अनुमति के बिना रिसोर्ट के मैनेजर इवान स्टोन भी वहां नहीं आ सकते.”
पार्थ के शब्दों में अगले भाग में पूर्ण विवरण प्रकाशित किया जायेगा. इस भाग में उसके आगे क्या हुआ ये जानिए.
पार्थ की पूरी बात सुनकर परिवार वाले अत्यंत आश्चर्य में थे. उनके कभी स्वप्न में भी भान नहीं हुआ था कि उक्त मंत्री इस प्रकार का व्यभिचारी भी हो सकता है. यही नहीं उसने इस सबके लिए एक रिसोर्ट भी बनाया है जिसमे अन्य प्रसिद्द और मान्य व्यक्तिगण को भी सम्मिलित किया था. कुछ लोगों के बारे में जानकर उन्हें और भी अधिक अचरज हुआ. सच में हाथी के दाँत दिखाने के और तथा खाने के और होते हैं. जिनके बारे में पार्थ ने बताया था उन पर तो यही चरितार्थ होता था. पर इन दोनों परिवारों के बारे में भी यही कहा जा सकता था. किसे पता था कि बाहर के समाज में सौम्य और चरित्रवान बने ये सभी अंदर से किस प्रकार से लिप्त हैं. समर्थ कुछ सोच में डूबे थे. उनके मन में कुछ चल रहा था. उन्होंने सुप्रिया को देखा तो वो भी उन्हें ही देख रही थी. आँखों का एक और जोड़ा उन्हें देख रहा था, वो थी सुमति.
सुप्रिया: “पापा, क्या आप भी वही सोच रहे हैं, जो मैं?”
समर्थ मुस्कुराते हुए बोला, “तुम जानती हो कि ये सच है, क्या करना चाहती हो?”
सुप्रिया: “अगर देखा जाये तो अभी हमें कुछ नहीं करना होगा. श्रेयकर यही होगा कि शोनाली इस संदर्भ में आगे बढ़े. अभी उन्हें हमारे विषय में अधिक नहीं पता है. उन्हें अनुमान अवश्य है, पर…..,”
पार्थ बोल उठा: “नहीं अनुमान नहीं, मैंने डेविड को बताया था, तो उन्हें पता है.”
सुप्रिया ने उसे देखा, उसे किसी का बीच में बोलना अच्छा नहीं लगा था, पर ये जानकर कि उसने गलत अनुमान किया था, अपनी बात को आगे बढ़ाया.
सुप्रिया: “मैंने गलत समझा था, परन्तु फिर भी मैं चाहूँगी कि इसके संबंध में शोनाली और सुमति अगला कदम लें. पारुल भी डेविड से बात कर सकती है. डेविड से उसे अधिक जानकारी भी प्राप्त हो सकेगी. शोनाली और सुमति मिशेल के साथ मिलकर कुछ आयोजन कर सकती हैं. पापा आप का क्या सोचना है.”
समर्थ: “मुझे ये सही लग रहा है, इस प्रकार से शीला की जो उस समाज में जुड़ने की इच्छा थी, कुछ रूप में पूर्ण हो जाएगी. मेरे विचार से जब तक हम लौटेंगे, हमारे तीन परिवार तो कम से कम मिल चुके होंगे.”
पार्थ: “नाना जी, आप शेट्टी परिवार को भूल गए.”
समर्थ: “भूला नहीं, पार्थ. पर अधिक शीघ्रता विनाश का कारण बनती है. पहले इस परिवार से घनिष्ठता बना लो, उसके बाद ही आगे कुछ सोचो.”
पार्थ: “जी नाना जी, आप ने सही कहा.”
शीला: “डेविड और रिचर्ड के बारे में सोचकर ही मेरी चूत पनिया रही है.”
पार्थ: “नानी, आप भूल गयीं. मार्क भी अब यहीं पढ़ने वाला है, तो आपको उसके विषय में भी सोचना होगा.”
ये सुनकर सब हंस पड़े तो शीला शर्मा गयी.
शीला: “बहुत दुष्ट हो गया है तू पार्थ, इधर आ, तेरी चालाकी को चूसकर निकालती हूँ.”
पार्थ शीला के सामने खड़ा हुआ तो शीला ने उसका लोअर सरकाकर नीचे खींचा और उसके लंड पर अपनी जीभ चलाने लगी.
“अब हो चुकी बात, चलो कुछ देर बाद आगे की बातें करेंगे. मैं भी अपनी नातिन की चूत का रस पीने के लिए लालायित हूँ. सुना है बहुत मीठा है उसका पानी.”
संजना ये सुनकर शर्मा उठी. सुप्रिया ने सजल को अपने पास बुलाया और सजल वशीभूत होकर उसके पास आ गया.
“बहुत बड़ा हो गया है रे मेरा बेटा। सुना हैं अपनी माँ को भी चोदता है अब तू. मौसी का ध्यान नहीं आया कभी?”
“मौसी, अब तो हर दिन.”
ये सुनकर सब हंस पड़े कि इसका कारण एक ही हो सकता है.
“तो दूर क्यों रहता है? माँ ने मना तो किया नहीं होगा?”
“नहीं. बस समय नहीं मिल पाया.”
“चल आज तू अपनी मौसी की भी चुदाई करना. अपनी भाभी और उसकी माँ को तो चोद ही चुका है तू आज.”
सजल मौसी के मुंह से ऐसी भाषा सुनकर कुछ अचम्भे में था, परन्तु जल्दी ही समझ गया कि इस खेल में शर्म का कोई स्थान नहीं है.
“माँ, मैं सजल को अपने कमरे में ले जा रही हूँ. तुम चाहो तो बाद में वहीं आ जाना.” शीला को बताकर वो जाते हुए मुड़ी और सुमति को आंख मारते हुए बोली, “आप भी तैयार रहना अपनी औषधि के लिए.”
सुमति के चेहरे के उद्गार देखने योग्य थे. उसने निखिल को देखा तो निखिल भी उसे ही देख रहा था. आँखों के संकेत दोनों के लिए पर्याप्त थे.
निखिल ने सुमति को साथ लेकर पूछा, “कहाँ चलें?”
सुमति के शरीर ने झुरझुरी ली, “जहाँ तेरा मन हो.”
निखिल उसे लेकर सुप्रिया वाले कमरे में ही चला गया. नितिन ने सोचा कि कहीं उसे अवसर न मिले, तो तपाक से उसने पारुल को पकड़ा और चल दिया. पारुल भी उसके इस व्यवहार पर हंस पड़ी. कमरे में समर्थ, शोनाली, सुरेखा, सागरिका और जॉय ही बचे थे.
शोनाली ने सुझाया. “ हम तीनों एक दूसरे को सुख दे सकती हैं और हम तीनों तो आप एक एक करके चोदो।”
जॉय की तो बांछे खिल गयीं, एक साथ तीन तीन सुंदरियों की चुदाई. उसकी ख़ुशी का ठिकाना ही नहीं था. उन्होंने वहीं बैठक में ही समर्थ और संजना के निकट ही अपने प्रेमालाप का निर्णय लिया. शीला पार्थ को लेकर अपने कमरे में जा चुकी थी. सुप्रिया सजल के साथ थी. सुमति ने निखिल को घेरा हुआ था. पारुल को नितिन ले गया था. अगले चरण के खेल के लिए बिसात बिछ चुकी थी और सभी खिलाड़ी खुलकर खेलने को आतुर थे.
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सुप्रिया और सजल:
सुप्रिया सजल को अपने निर्धारित कमरे में ले आई और समय व्यर्थ न करते हुए अपने कपड़े यूँ ही आनन फानन फेंके और सजल के सामने कुछ ही देर में वो प्राकृतिक अवस्था में खड़ी थी. सजल भी अपने कपड़े निकाल चुका था पर मौसी को नंगा देखकर उसका मुंह खुला रह गया. वो इस समय एक परी के समान सुंदर लग रही थी. हाँ, आयु का दंश उन्हें अवश्य कुछ काट रहा था, परन्तु आज भी वो अनंत सुंदरी थीं.
“क्या देख रहा है?”
“आ आ आप बहुत सुंदर हो, मौसी.”
“तेरी माँ से भी अधिक?” सुप्रिया ने उसे छेड़ा.
सजल ने कुछ नहीं कहा फिर धीमे स्वर में बोला, “नहीं.”
सुप्रिया एक पल के लिए चौंकी, फिर मुस्कुराकर सजल की ओर बढ़ी.
“जानता है, तेरा ये सीधापन ही मुझे हमेशा रास आता है. तुम अपनी मौसी को नंगा देखकर उसकी चुदाई से पहले भी अपनी माँ को ही उससे श्रेष्ठ मानता है. सच मैं, मैं तेरी इस सच्चाई से बहुत ही प्रभावित हूँ. क्या करना चाहता है तू अपनी मौसी के साथ?”
सुप्रिया ने उसके खड़े होते हुए लंड को अपने हाथ में लेकर सहलाते हुए पूछा.
“सब कुछ. मम्मी ने कहा था कि आप मुझे बहुत कुछ सीखा सकती हो.”
“सीखा दूँगी समय आने पर, लेकिन आज जो तू चाहता है, वो करुँगी। बता न?”
“कहा न मौसी सब कुछ. आपका मुंह, चूत और गांड सब कुछ.”
“हम्म, और मेरे हाथ?” सुप्रिया ने सजल के लंड को अपने हाथ से दबाते हुए ठिठोली की.
“वो भी.”
सुप्रिया ने सजल के चेहरे को अपने दूसरे हाथ से सहलाया और फिर उसकी गर्दन पकड़कर उसे अपनी ओर खींचते हुए अपने जलते हुए होंठ सजल के होंठों से मिला दिया. सजल मौसी के चुंबन में खो गया और साथ देने लगा. न जाने कितनी देर दोनों एक दूसरे के आलिंगन में चुंबन में बंधे रहे. फिर सुप्रिया ने हाँफते हुए उसे अलग किया और उसे बिस्तर पर बैठा दिया. अब तक सजल का लंड अपने पूरे जोश में आ चुका था. और सुप्रिया उसके आकार से प्रभावित हुए बिना न रह सकी. अपने घुटनों पर बैठकर सजल के लंड को अपने मुंह में लिया और उसे प्रेम से चूसने लगी.
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सुमति और निखिल:
सुमति संभल ही नहीं पा रही थी. समर्थ से चुदने और गांड मरवाने से उसकी प्यास कम होने के स्थान पर और बढ़ गयी थी. चार लौंड़ों का रस गांड से पीने से भी उसे संतुष्टि नहीं हुई थी. आज उसने प्रण किया हुआ था कि परिवार के हर लंड का रस जिस भी गांड में जायेगा उसे पीने के बाद ही वो घर लौटेगी. समर्थ, निखिल, सजल और जॉय का रस पी चुकी थी. अभी नितिन और पार्थ शेष थे. उसे ये भी विश्वास हो गया था कि हो न हो नितिन आज पारुल की गांड मारने में सफलता पायेगा और उसे नितिन का पानी पारुल की गांड से पीने का सौभाग्य मिलेगा.
और पार्थ! शीला पार्थ को गांड मरवाये बिना तो छोड़ने से रही. तो उसका आज का प्रण पूरा होने की पूरी संभावना थी. बस एक अड़चन थी, कि उसे पता कैसे चलेगा. वो नहीं जानती थी की समर्थ ने इसका पूरा प्रबंध किया हुआ है. अब बात ये भी थी कि अगर उसकी चुदाई चल रही होगी तो वो जाएगी कैसे? फिर उसने ऐसे सभी प्रश्नों को ताक में रखा और निखिल के साथ कमरे में जाते ही तुरंत अपने कपड़े उतार फेंके और निखिल को भी जल्दी से नंगा कर दिया. निखिल के बलशाली लंड को अपने मुंह से चाटते हुए वो अपनी चूत को सहलाने लगी. निखिल उसकी इस उत्सुकता को समझ रहा था और उसे डर था कि कहीं उन दोनों की चुदाई में व्यवधान न पड़े.
“बुआ, आप आराम से रहो. नानाजी से सब प्रबंध कर दिया है. पारुल और नानी गांड मरवा कर हमारे ही पास आएँगी। और आपको उनके गांड खाली करने का पूरा अवसर दिया जायेगा. इसीलिए, अब अपनी चुदाई पर ध्यान दो और आनंद उठाओ.”
सुमति ने निखिल की बात सुनी तो वो समर्थ की ऋणी हो गयी. कितना ध्यान और मान रखते हैं उसका. उसकी लंड चाटने की गति सामान्य हो चली पर अपनी चूत से उँगलियों को छेड़ना उसने बंद नहीं किया.
“बुआ, चलो लेटो, लंड बाद में चाटने का भी समय रहेगा. आपकी चूत और गांड के स्वाद के साथ मिलेगा. अभी क्या रखा है इसमें?”
सुमति निर्विरोध बिस्तर पर लेट गयी और निखिल के चेहरे को लालायित दृष्टि से देखने लगी. निखिल उँगलियों के माध्यम से निखिल सुमति की चूत और गांड को चाटने, सहलाने, कुरेदने और छेड़ने में व्यस्त हो गया. उसका कौन सा अंग कब क्या कर रहा था इसमें कोई नियम नहीं था और सुमति का कामोन्मादित शरीर इन बदलते हुए आघातों को समझने में असमर्थ था और निखिल के उँगलियों पर नाच रहा था. तड़पती, लरजती, सिसकारियां लेती हुई सुमति सागरिका के भाग्य को धन्य मान रही थी जिसे ऐसा विलक्षण चुड़क्कड़ पति मिलने जा रहा था. और ये उनके परिवार के लिए भी शुभ था. दोनों परिवारों के बढ़ते हुए घनिष्ठ सम्बन्ध अब जीवन पर्यन्त रहने वाले थे.
सुमति की चूत के रस से अब निखिल की उँगलियाँ भीग चुकी थीं. परन्तु उसने अपने आक्रमण में कोई कमी नहीं की थी. बल्कि अब उसने सुमति की गांड पर अधिक ध्यान दिया और जैसा कि सुमति की इच्छा थी उसकी गांड को भी उँगलियों से छेड़ते हुए सुमति को अनन्य बार झाड़ दिया. जब निखिल ने सुमति एक नशे जैसी स्थिति में ऑंखें बंद किये हुए पड़ी देखा, तो उसने दुष्ट मुस्कराहट के साथ सोचा कि चुदने के लिए लालायित है, और ऐसी चुदाई के लिए कि उसका रोम रोम काँप जाये. निखिल ने आज सुमति के साथ एक नया प्रयोग करने का निर्णय लिया. उसने सुमति को घोड़ी का आसन लेने के लिए आग्रह किया. सुमति ने पलटते हुए अपनी गांड उठाकर आसन ले लिया. अब वो अपनी चूत की खुजली दूर होने की आशा कर रही थी.
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पारुल और नितिन:
पारुल मन ही मन नितिन की इस लालसा पर प्रसन्न थी. वो जानती थी कि नितिन उस पर आसक्त है और ये नहीं दिखाना चाहती थी कि उसके मन में भी नितिन के प्रति वही भावना थी. नितिन कमरे में पारुल के साथ जाते ही उससे लिपट गया. पारुल के हाथ उसकी पीठ पर गए और पारुल ने अपने होंठ नितिन के होंठों से जोड़ दिए. नितिन कई स्त्रियों की चुदाई कर चुका था, पर उसे जो आकर्षण पारुल में दिखा था वो किसी और में नहीं. मन की बातें मन ही जाने. दोनों एक दूसरे से लिपटे हुए चुंबनों का आदान प्रदान करते रहे और फिर जब हटे तो उनके चेहरे लाल थे. पारुल ने पहल करते हुए नितिन के कपड़े निकाले और फिर नितिन की ओर देखा तो नितिन सचेत हुआ और पारुल को उसके कपड़ों से मुक्त कर दिया. दोनों प्रेमी एक दूसरे को देखते हुए अपने भाग्य को धन्य कर रहे थे.
कुछ देर तो दोनों एक दूसरे को केवल देखते ही रहे. एक दूसरे में उन्हें एक अनजाना आकर्षण दिख रहा था. फिर नितिन पहल की और पारुल को बिस्तर पर लिटा दिया और उसे ऊपर से नीचे था चूमने और चाटने लगा. उसकी चूत पर पहुंचते ही उसे पारुल की सुगंध ने मुग्ध कर दिया. अपनी जीभ से उसकी चूत को चाटते ही उसे विश्वास हो गया कि वे दोनों भी एक दूसरे के लिए ही बने हैं. और इसी आशय से उसने पारुल को अपने मुंह से सुख देना आरम्भ किया. पारुल मौखिक सहवास से परिचित थी, और वैसे तो नितिन कुछ भी अलग नहीं कर रहा था, पर पारुल का रोम रोम उसे पुकार रहा था और उसमे एक ऐसी भावना जागृत कर रहा था जिससे वो अब तक अनिभिज्ञ थी. क्या ये प्यार है?
नितिन और पारुल दोनों के मन में समान भावनाएं थीं. पारुल ने अपना ढेर सारा रस नितिन के मुंह में उढ़ेल दिया. नितिन को इस रस में जो स्वाद आया वो अलग था. क्या ये प्यार है?
नितिन के मुंह में झड़ने के साथ ही पारुल ने उसे कहा कि वो भी उसके लंड को चूसने की इच्छुक है. नितिन कब मना करने वाला था. उसने तुरंत ही अपने लंड को पारुल के मुंह के समीप कर दिया जिसे पारुल ने पूरे प्रेम के साथ चाटा और चूसने में लग गयी. नितिन के लंड को न जाने कितनी ही बार चूसा गया था, पर उसे पारुल के मुंह में एक अलग ही आनंद मिल रहा था. क्या ये प्यार है?
पारुल स्वयं भी इन्हीं विचारों में खोई थी. लौड़े तो उसने भी चूसे थे, कई तो नहीं पर पर्याप्त. पर उसे जो अनुभूति उसे नितिन के लंड को चूसने में हो रही वो नई थी. क्या ये प्यार है?
जब नितिन झड़ने को हुआ तो उसने पारुल को चेताया, पर पारुल ने उसके लंड को मुंह से निकालने में कोई रूचि नहीं दिखाई. और नितिन ने उसके मुंह में ही अपना पानी छोड़ दिया. पारुल ने ख़ुशी से उसके पूरे रस को पी लिया और नितिन की ओर प्रेम भरी दृष्टि से देखा. दोनों एक दूसरे को देखकर अब ये समझ गए थे कि उनके बीच केवल चुदाई का ही संबंध नहीं रहेगा. ये सम्भवतः उनके प्रेम की पहली सीढ़ी थी. वैसे भी वो दोनों विवाह के लिए इतनी शीघ्र तैयार नहीं थे, पर भविष्य में इसकी संभावना उन्हें उज्ज्वल दिख रही थीं. एक दूसरे को फिर से चूमते हुए दोनों लेट गए.
“मुझे कुछ अलग सी अनुभूति हुई आज, मैं समझा तो नहीं सकता, पर जीवन में ऐसा भाव पहली बार आया है मेरे मन में.” नितिन ने पारुल को चूमते हुए बताया.
“मुझे भी, कुछ अलग ही लगा आज. क्यों? मुझे भी नहीं पता पर तुम्हारे साथ एक अलग ही जुड़ाव अनुभव हुआ. ” पारुल ने भी उसे चूमते हुए कहा.
“क्या ये प्यार है?” दोनों ने एक साथ पूछा और फिर हंसने लगे.
“देखा न हम दोनों एक ही जैसा सोचते हैं.” पारुल बोली.
“हम्म मुझे नानी और मम्मी से बात करनी होगी.” नितिन ने कहा.
“और मुझे भी, नहीं तो वो मेरे लिए लड़का ढूंढने में लग जाएँगी दीदी के विवाह के बाद.”
“पर अभी मैं विवाह नहीं कर सकता.” नितिन ने सफाई दी.
“मैं भी. अभी दो वर्ष तक तो नहीं.” पारुल ने सहमति जताई.
“तो क्या सगाई कर लें और दो साल बाद?”
“देखो मम्मियाँ क्या कहती हैं. सगाई हो या नहीं, हम एक दूसरे के तो साथी बन ही सकते हैं. सगाई तो केवल औपचरिकता ही है.” पारुल ने कहा.
अब तक नितिन का लंड खड़ा हो चुका था और अपनी संभावित पत्नी की चुदाई के लिए तत्पर था.
“तो सुहागरात मना लेते हैं?” नितिन ने कहा.
“बिलकुल. नेकी और पूछ पूछ.” पारुल ने ये कहते हुए अपने पैर फैला दिए.
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शीला और पार्थ:
शीला सुमति की चुदाई देखकर बहुत उत्तेजित थी. उसके ऊपर पार्थ ने अपने नए अनुभव के बारे में सुनकर उसकी आग और भड़का दी थी. अब अगर उसकी भरपूर चुदाई जल्दी न हुई तो वो न जाने क्या करने वाली थी. पहले उसने सोचा था कि समर्थ उसकी चुदाई करेंगे पर सुमति की गांड मारने के बाद वो बैठक में चले गए थे. संजना की जीभ में वो आनंद नहीं था जो किसी लंड के चूत में घुसने का होता है. और गांड के बारे में तो सोचना भी नहीं चाहिए क्योंकि गांड में जब लंड जाता है तब आनंद की पराकाष्ठा होती है. जब गांड में लौड़ा जाता है, सुख से तन-मन भर जाता है. शीला को इस बात पर हँसी आ गई. कमरे में घुसे ही थे तो शीला को हँसते देख पार्थ पूछ बैठा कि क्या बात है?
शीला: “मैंने दो पंक्ति की कविता बनाई है: जब गांड में लौड़ा जाता है, सुख से तन-मन भर जाता है. कैसी है?”
अब हंसने की बारी पार्थ की थी.
“नानी, आपका सच में कोई पर्याय नहीं. आप इतने दिनों तक एक लंड से काम चला लेंगी? टूर पर क्या करेंगी?”
“चिंता न करो, नाती जी. ये टूर का उद्देश्य ही ये है. ये विशेष टूर है. इसके बारे में बाद में बताएँगे. पर ये जान लो कि न मुझे कोई कमी होगी न नाना जी को.”
पार्थ नानी की इस बात पर सोचता ही रह गया.
फिर बोला, “नानी, वैसे विचार उत्तम है. मैं रूचि से पूछूँगा कि हम भी क्लब के लिए ऐसा ही टूर बनाएँ।”
“बना ले, तेरी क्लब की औरतें तो तुझे मालामाल कर देंगी अगर ये टूर बना तो. और तुम्हें बहुत लम्बे टूर जाने की आवश्यकता भी नहीं है. बस एक सप्ताह का टूर बना, इतने में ही वो चुद चुद कर निहाल हो जाएँगी. पर वो सब बाद में, पहले मेरी चुदाई कर डाल. संजना से चूत चटवा कर और तेरी माँ की चुदाई देखने के बाद बेचारी को कोई भी संतोष नहीं मिला है. ”
कपड़े फेंककर शीला बिस्तर पर लेटी और अपने पाँव फैलाकर पार्थ को आशा से देखने लगी. पार्थ ने भी सोचा कि क्या बिगड़ता है, चोदकर इनको शांत कर ही देता हूँ. उसने भी तत्काल कपड़े उतारे और अब तक खड़े हुए लंड को शीला की चूत पर रखा और एक भारी धक्के के साथ अंदर पेल दिया. शीला ने आनंद भरी सिसकारी ली और अपने पाँव कैंची के समान पार्थ की कमर पर लपेट दिए. और पार्थ ने भी अपनी चिर परिचित चुदाई का परिचय दिया और अपने जवान लौड़े से शीला की बूढी चूत में आतंक मचा दिया. शीला भी खेली खिलाई थी. पार्थ उसके चुदाई के सामर्थ्य से अपरिचित तो नहीं था, परन्तु अगर उसने ये सोचा था कि शीला उसके सामने कुछ दया की भीख माँगेगी, तो हुआ कुछ उल्टा ही.
शीला इतनी अधिक उत्साहित और उत्तेजित थी कि पार्थ की इस शक्तिशाली चुदाई को भी वो बड़ी ही आसानी से झेल रही थी हुए उसका आनंद भी ले रही थी. न जाने सच में या पार्थ को छेड़ने के उद्देश्य से शीला उसे और भी तेजी से चोदने के लिए उलाहना देनी लगी. अब अपने लंड पर गर्व करने वाले पार्थ के तन बदन में आग सी लग गयी. वो और तेज गति से शीला को चोदने में जुट गया और शीला भी उसे और अधिक कोसते हुए उकसा रही थी. ऐसा नहीं था कि शीला नहीं समझ रही थी कि वो भी आग से खेल रही है, पर जो आग उसकी चूत में भड़की हुई थी उसका ऐसी भीषण चुदाई के सिवाय कोई और उपचार भी नहीं था. पार्थ को लग रहा था कि वो नानी से हारने वाला है. वो चाहे जितने भी तेज और गहरे धक्के लगाता शीला उन्हें आसानी से झेल रही थी. और इसका और भी एक कारण था, शीला की चूत अब इतना पानी छोड़ चुकी थी कि उसमे लंड तैर रहा था और पार्थ को अब कोई भी आनंद नहीं मिल रहा था.
“नानी, आपकी चूत पूरी गीली हो चुकी है, पता भी नहीं चल रहा है मेरे लंड को. रुको मैं उसे पोंछ दूँ. ”
“कर जो करना है, पर जल्दी कर. आज मुझे अच्छे से चोद कर खुश कर दे, बस.” शीला ने कुछ खीझ के साथ कहा.
पार्थ ने अपनी शर्ट से शीला की चूत को पोंछा और अपने लंड को एक ही धक्के ने अंदर डाल दिया. पोंछने का काम कुछ अच्छे से ही हुआ था क्योंकि इस बार शीला की चीख निकल गयी. अब उसे लगने लगा कि उसने पार्थ को छेड़कर गलती की क्योंकि पार्थ पूरे नियंत्रण में था और शीला की चूत की धज्जियाँ उड़ा रहा था. इस आयु में शीला कितना पानी छोड़ती, उसकी चूत में पार्थ अब एक वहशी रूप में लंड की पिलाई कर रहा था. शीला को अपनी नानी याद आ गयी.
“मुझे छोड़ दे बेटा, मुझसे गलती हो गयी जो मैंने तुझे इतना कुछ कहा. अपनी नानी पर दया कर, मेरी चूत फट गयी है. क्यों जानवर के समान चोद रहा है?”
पर ये बाजी अब पार्थ के हाथ में थी और इस बार उसने अपनी भड़ास निकाली। शिला की बूढी चूत उस जवान मोटे लौड़े के सामने पस्त हो चुकी थी. और अभी पार्थ झड़ने से बहुत दूर था. और इसी कारण पार्थ ने एक निर्णय किया.
“ठीक है, नानी. अगर चूत फट गयी है तो मुझे अपनी गांड मारने दो.”
इससे पहले कि शीला कुछ कह पाती पार्थ ने अपने मोटे लम्बे लंड को शीला की चूत से निकाला और गांड में थोक दिया. शीला की चीख बैठक में चल रहे टीवी पर गूंज गयी. समर्थ ने संजना की चूत में से अपने मुंह को हटाकर देखा तो शीला की गांड में पार्थ का लंड फँसा हुआ था.
“इसे मैंने कई बार समझाया है कि जवान लौंडों को मत छेड़ा कर. इतनी बुढ़ा गयी पर बुद्धि नहीं आयी. चूत का सत्यानाश करवाकर अब गांड भी फड़वा लेगी माँ की लौड़ी.” समर्थ शीला के इस व्यव्हार पर अपने विचार रखते हुए संजना की चूत में फिर से अपनी जीभ चलाने लगा.
शीला को सच में अब कुछ कुछ समझ आने लगा था. उसकी विनती कोई सुनने के लिए नहीं था. जिस पार्थ को वो उलाहना देकर उकसा रही थी वो अब उसकी चूत फाड़ने के बाद गांड का भी बैंड बजा रहा था. उसकी दया की भीख ने कुछ देर में पार्थ को भी विचलित कर दिया. उसने अपनी गति कुछ कम की और शीला की चूत को अपनी उँगलियों से छेड़ने लगा. गति कम होने से शीला को कुछ आराम मिला और पार्थ की उँगलियों ने उसकी चूत को कुछ सीमा तक फिर से सामान्य कर दिया.
ऐसी धुआंधार चुदाई के कारण शीला की नसें ढीली हो गयीं थीं और हड्डियां चटक रही थीं. पर पार्थ का भी अब संयम समाप्त हो चूका था. इस गति और कठोरता से चोदने से वो भी अब झड़ रहा था. उसने शीला की गांड में अपना माल भर दिया. शीला कुछ कुनमुनाई पर पार्थ ने उसे वैसे ही रुकने के लिए कहा. फिर उसने अपनी पैंट में से शीला की गांड बंद करने के लिए एक प्लग निकाला और बड़े प्रेम से उसकी गांड में डालकर उसे बंद कर दिया.
“अपनी माँ का बहुत ध्यान रखता है. सच में तेरे जैसा बेटा भाग्य वालों को ही मिलता है. अब क्या करूं.”
“माँ के कमरे में जाओ, और उन्हें वहीँ ये जूस पिला कर आ जाओ.” पार्थ ने उन्हें समझाया.
शीला ने कपड़े पहनने की आवश्यकता नहीं समझी और उस कमरे की ओर बढ़ चली जहाँ वो निखिल से चुद रही थी. कमरे में जाकर देखा तो सुमति अपनी गांड उठाकर लेटी थी और निखिल अपने लंड से उसकी चुदाई करने ही वाला था. कमरे के खुलने से निखिल रुक गया और सुमति ने भी उस ओर देखा. शीला को अपनी ओर आते देख वो समझ गयी कि उनका प्रयोजन क्या है. उसने निखिल से कहा कि उसे कुछ मिनट का समय चाहिए. और फिर वो पलटी और सीधे लेट गयी. शीला ने उसे इस स्थिति में देखा तो वो भी जान गयी कि सुमति क्या चाहती है. उसने सुमति के मुंह के दोनों ओर पैर किये और अपनी गांड को उसके मुंह पर लगा दिया. सुमति ने अपना मुंह पूरा खोला और बहुत धीरे से शीला की गांड में से प्लग निकाला।
प्लग के निकलते ही वीर्य के मोटे मोटे थक्के सुमति के खुले मुंह में जा गिरे. जब उनके स्वतः गिरने का क्रम रुका तो सुमति ने शीला की जांघ के ऊपर हाथ रखकर दबाया. शीला की गांड अब सुमति के मुंह पर लग गयी. जैसे कोल्ड ड्रिंक को स्ट्रॉ से खींचकर पीते हैं वैसे ही सुमति ने शीला की गांड में से पूरा रस सोख लिया.
सुमति के कार्य सम्पन्न करने के बाद शीला उठी और सुमति के होंठ चूमकर निखिल को बोली, “अच्छे से चोदना अपनी बुआ सास को. और अपना पानी पिलाना मत भूलना.”
ये कहकर उसने निखिल के हाथ में वो प्लग थमाया और चल दी. द्वार पर जाकर मुड़ी तो देखा कि सुमति अपनी गांड उठाकर उसी आसन में आने लगी थी जिस आसन में वो शीला के आने के समय थी. शीला प्रसन्न मन से पार्थ के पास लौट गयी.
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संजना, सुरेखा, सागरिका, समर्थ और जॉय:
बैठक में वातावरण भिन्न था. समर्थ संजना की चूत चाट रहा था और सुरेखा एवं सागरिका जॉय के लंड को चूस रही थीं. संजना आज पहली बार अपनी मम्मी को सजल के अतिरिक्त किसी के लंड को चूसते हुए देख रही थी. पर उसे जो सबसे अजीब संवेदन था वो अपने नाना के खुरदुरे हाथों को अपने शरीर पर चलने का था. नाना के हाथों का स्पर्श और उनकी उसकी चूत पर लपलपाती हुई जीभ उसे एक अन्य ही लोक में ले जा चुके थे. नाना की चूत चाटने का ढंग परिवार की स्त्रियों से बिलकुल ही अलग था. जहाँ परिवार की स्त्रियों के स्पर्श में एक कोमलता थी, वहीं समर्थ के स्पर्श में कुछ कठोरता सी थी.
समर्थ संजना के रस की गंध और स्वाद में खो चुका था. जिस प्रकार वो संजना की चूत में अपनी जीभ डाल डाल कर उसके रस को चाट रहा था उससे ये सिद्ध होता था कि उसे ये अमृत के समान ऊर्जावान लग रहा था. और संजना केवल इन विचारों में खोई थी कि कब उसकी सील टूटेगी और चुदाई का आनंद ले पायेगी. उसके शरीर इस कल्पना से ही काँप उठा. समर्थ बिना रुके उसकी चूत में अपने मुंह लगाए हुए चाटता रहा.
जॉय के लंड को चूस कर सुरेखा और सागरिका ने बिलकुल अच्छे से खड़ा और गीला कर दिया था. अब प्रश्न ये था कि आगे क्या करना है.
“मौसी, आप पहले अपनी चुदाई करो, आप दोनों कभी मिले नहीं हो न.” सागरिका ने सुरेखा से कहा तो सुरेखा को सागरिका कि इस भावना पर बहुत अपनत्व आया.
“ऐसा कुछ नहीं है, मैं बाद में भी….”
“नहीं, मौसी, पहले आप.”
ये कहकर उसने सुरेखा को सोफे पर लिटा दिया और अपने पिता से कहा कि वे अब मौसी की चुदाई करें. जॉय सुरेखा की चूत पर लंड लगाकर अंदर करने लगा. उधर सागरिका ने देखा कि समर्थ का लंड भी खड़ा है, पर उसका कुछ होना नहीं है क्योंकि संजना की तो चुदाई होने नहीं थी. उसने समर्थ के नीचे जाकर उसके लंड को अपने मुंह में लिया और चूसने लगी. समर्थ ने अपना आसन बदल कर दोनों के लिए कुछ आसानी कर दी, पर उसका मुंह संजना की चूत से हटा नहीं.
सागरिका समर्थ का लंड चूस रही थी जो संजना की चूत चाट रहा था, जॉय ने सुरेखा की चुदाई में अपना ध्यान लगाया हुआ था और बैठक में एक बड़ी शांतिमय ढंग से सब कुछ हो रहा था. जॉय के पूछने पर सुरेखा ने कुछ तेज चुदाई के लिए कहा. तो जॉय ने एक अच्छी लय में मद्धम गति से सुरेखा की चुदाई करना आरम्भ कर दिया।
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सुप्रिया और सजल:
“ओह, मौसी!” सजल के मुंह से निकला. “ओह, मौसी.”
सुप्रिया बिना विश्राम के सजल के लंड पर अपनी जीभ और होंठों का जादू बिखेरती रही. वैसे अब तक सजल तीन स्त्रियों से लंड चुसवा चूका था, पर जो सुप्रिया का ढंग था उसने उसे मंत्रमुग्ध कर दिया था.
“मम्मी ने कहा था कि आप सबसे अच्छी हो और मुझे सिखाओगी भी, तब मैंने सोचा था कि वो यूँ ही बोल रही है, पर आप सच में विलक्षण हो, मौसी.”
“तेरी माँ से अच्छी?” सुप्रिया ने फिर उसे छेड़ा.
आदमी सामान्य परिस्थिति में जो उत्तर देता है वो लंड किसी स्त्री के मुंह में होने पर नहीं देता. पर सजल अभी भी चौकन्ना था.
“इस मामले में तो आप उनसे आगे हो.”
“हम्म्म, स्मार्ट बॉय.” सुप्रिया ने उसके लंड पर थूका और फिर अपने मुंह में लेकर चूसने लगी.
सजल का लंड अब उतावला हो चला था, और सुप्रिया अभी उससे चूत नहीं चटवाना चाहती थी क्योंकि उसमे अभी भी वीर्य के अवशेष सम्भव थे. इसीलिए उसने सजल से कहा कि वो उसकी चूत को केवल ऊपर से चाटे और चोदने के लिए गीला भर कर दे. सजल ने उसकी इस बात को समझा और उसकी चूत को ऊपर से चाटा और उँगलियों से चूत के अंदर कुछ देर तक हलचल की. अब समय आ गया था मौसी को चोदने का. सजल की तो जैसे आज लॉटरी लगी हुई थी. शोनाली, सागरिका और अब सुप्रिया, एक से बढ़कर एक सुंदर और चुड़क्कड़ परिवार की महिलाओं का जो उसे साथ मिल रहा था.
सुप्रिया ने उसे पूछा कि ऊपर रहना चाहता है या नीचे? सजल को शोनाली के साथ चुदाई में अलग आनंद आया था सो उसने फिर वही आसन के लिए कहा. सुप्रिया ने उसे लेटने के लिए कहा और उसके लेटते ही एक बार फिर लंड को चाटा और थूक से गीला करते हुए उसके दोनों ओर पांव किया और उसके लंड पर बैठ गयी. सजल तो जैसे स्वर्ग में चला गया हो. सुप्रिया ने इतनी जल्दी उसके लंड को अंदर लिया कि पलभर में ही सजल का लंड उसकी बच्चेदानी से जा टकराया.
“लंड मस्त है तेरा. अपने भाइयों को टक्कर देता है और नाना को भी. बहुत मस्त।” सुप्रिया फिर झुकी और उसने अपने मम्मे सजल के वक्ष से सटाये और उसके होंठ चूमते हुए अपने कूल्हे चलने लगी. ये ऐसा आसन है जिसमे शरीर का पूर्ण व्यायाम हो जाता है, और सुप्रिया के शरीर की लचक ही थी जो इसे सम्भव बना रही थी. हल्के धक्कों के साथ सुप्रिया सजल के लंड पर उछलती रही. पर ये आसन सरल आसान नहीं था इसी कारण उसने अपने मम्मे सजल की छाती से हटा लिए. आसन बदलने से सुप्रिया अपनी गति बढ़ाने में भी सफल हो गयी.
सजल ने अपने सामने झूलते हुए सुघड़ मम्मों को देखा तो उससे रहा नहीं गया और उसने अपने हाथों से उन्हें दबोच लिया और निचोड़ने लगा. सुप्रिया तो जैसे पागल ही हो गयी और तेज गति से उछलने लगी. सजल ने उसके दूधिया मम्मों को दबाना और निचोड़ना बंद नहीं किया. सुप्रिया के मुंह से अब आनंद भरी सिसकारियां निकल रही थीं. फिर उसने अपने दोनों हाथ सजल के दो ओर किया और अपनी गति और भी तीव्र कर दी. सहारा मिल जाने से उसे अब उछल कूद में कोई भी कठिनाई नहीं हो रही थी. सुप्रिया अचानक ही रुक गयी और उसका शरीर एक बिन जल की मछली के समान फड़कने लगा.
सजल को तो समझ ही नहीं पड़ा कि हुआ क्या। पर तभी सुप्रिया जोर से चीखी और धम्म से सजल की छाती पर गिर पड़ी. सजल अब घबराने लगा कि मौसी को कुछ हुआ तो नहीं. वो क्या करे इस बारे में सोच ही रहा था कि सुप्रिया कुनमुनाई और फिर उसकी छाती से लग गयी. उसने धीरे से अपने चेहरे को ऊपर किया और सजल को देखा.
“तूने तो कमाल कर दिया, बेटा। मुझे इतनी जल्दी झड़ा दिया. पर तेरा नहीं हुआ न?”
सजल ने नकारा तो सुप्रिया बोली, कुछ देर रुक. मुझे साँस लेने दे.” पर वो न सजल के सीने से उठी, न ही उसके लंड को अपनी चूत से निकाला। सजल का लंड उसकी चूत में अभी भी फड़फड़ा रहा था. न जाने कितनी देर तक यूँ ही स्थिति बनी रही. फिर सुप्रिया उठी, सजल के लंड को बाहर किया और उसे चाटा। फिर घोड़ी का आसन ले लिया.
“मौसी की गांड मारेगा?” अपनी गांड हिलाकर सुप्रिया ने सजल को निमंत्रण दिया.
“हाँ, हाँ, हाँ.” सजल एक ही बार में कह गया.
“तो चढ़ जा पीछे से. और अच्छे से मारना। तेज तेज, अंदर तक. कर लेगा?”
“हाँ हाँ, अभी भाभी की ऐसे ही मारी थी.” सजल ने गर्व से कहा.
“तो चढ़ जा मेरे घोड़े.”
सजल के तो भाग्य ही खुल गए. आज दो दो महिलाओं की गांड मरने का सौभाग्य जो मिल रहा था. पर निखिल ने जो उसे सिखाया था सागरिका की गांड मारने के समय अब सजल उनकी माँ के ही ऊपर प्रयोग करने जा रहा था. उसने सुप्रिया की ऊँची उठी हुई गांड को देखा और अपने लंड को पकड़ कर उसके मुहाने रखा.
“डर मत, घुसा दे. डरेगा तो आगे क्या करेगा?” सुप्रिया ने उसे समझाया.
सजल ने लंड के टोपे को अंदर धकेला और उसके अंदर जाने के बाद एक लम्बा धक्का लगाया जिससे उसके लंड ने पूरी दूरी तय कर ली.
“शाबास! अब मार मेरी गांड!!”
सजल अब एक स्वचालित मशीन समान सुप्रिया की गांड मारने लगा. भाभी की गांड कुछ अधिक कसी थी और उसके साथ ही एक और लंड उनकी चूत में होने से बहुत ही अधिक तंग थी. पर मौसी की गांड खुली हुई थी और उसे दोनों के बीच का अंतर समझ आ रहा था. दोनों का अलग सुख था. मौसी की गांड में लंड आसानी से चल रहा था पर गर्मी अधिक थी. और उस गर्मी में उसे अपना लंड भी गर्माते हुए अनुभव हो रहा था. और मौसी की गांड की एक खूबी थी. सुप्रिया इतनी बार गांड मरवा चुकी थी कि वो गांड मरवाते समय अपनी गांड की मांसपेशियों को इस प्रकार से संकुचित करती थी कि लंड पर अतिरिक्त तनाव आता था.
“अरे रे!” सुप्रिया अचानक से बोली.
“क्या हुआ मौसी?”
“सुमति के लिए कैसे रोकेंगे मेरी गांड में तेरा पानी?” सुप्रिया ने दुविधा से पूछा.
“आप गांड ऊपर किये रखना, मैं कुछ लेकर इसे बंद कर दूंगा. अभी आप टेंशन मत लो.”
“ठीक है, तो चलने दे.”
सजल की आँखें अब कमरे में घूम रही थीं और उसे उपयुक्त वास्तु दिखाई दे गयी. एक लम्बी मोटी मोमबत्ती टेबल पर रखी थी. मोटी यानि मोटी, और उसके अगले उपयोग के बारे में सोचते हुए सजल ने अपने धक्कों की गति और गहराई बढ़ा दी. सजल ने कोई दस से पंद्रह मिनट तक अपनी मौसी की गांड को ठोका और सुप्रिया ने भी पूरा आनंद लेकर गांड मरवाई. फिर अंत में सजल ने गांड में अपना पानी छोड़ ही दिया. लंड से पूरा रस निकलने के पश्चात् उसने सुप्रिया से उसी आसन में बने रहने का आग्रह किया. अपने लंड को निकालकर वो टेबल के पास गए और मोमबत्ती लेकर लौटा. सुप्रिया ने देखा तो हंस पड़ी.
“बंद कर मेरी गांड और चल सुमति के पास मेरे साथ. मोमबत्ती से तूने मुझे अपनी जवानी याद करा दी.”
सजल ने बहुत संभाल कर मोमबत्ती को सुप्रिया की गांड में डाला और फिर उसे सहारा देकर खड़ा किया. फिर दोनों सुमति के कमरे की ओर कल पड़े. कपड़े पहनने की दोनों ने इस बार कोई आवश्यकता नहीं समझी.
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सुमति और निखिल:
निखिल ने आज सुमति के साथ एक नया प्रयोग करने का निश्चय किया. उसके अनुरोध पर सुमति घोड़ी के आसन में आ गयी और अब वो आशा कर रही थी कि निखिल उसकी चूत में जलती हुई आग को बुझायेगा. निखिल ने अपने लंड को सुमति की चूत पर लगाते ही एक धक्का दिया और सुमति की चूत में उसका लंड समा गया. सुमति को कुछ शांति मिली. उसकी दहकती हुई चूत ने निखिल के लंड को जकड़ लिया और निखिल को भी उस गर्मी का आभास हुआ. इस आग को बुझाने का एक ही उपाय था, और वो था सुमति की कमरतोड़ चुदाई. परन्तु निखिल इस कार्य में तुरंत नहीं लगना चाहता था.
पर उसने सुमति की चूत को कोई दो तीन मिनट ही चोदा और फिर एक ही बार में अपने लंड को बाहर खींच लिया. सुमति सकपका गयी. उसे अपनी चूत का खालीपन तनिक भी रास नहीं आया. वो कुछ कह पाती इसके पहले ही निखिल ने लंड को उसकी गांड पर रखा और इस बार गांड को चीरते हुए अपने लंड को अंदर पेल दिया. गांड मरवाने की अभ्यस्त सुमति भी इस अप्रत्याशित प्रहार से धराशाई हो गई. और निखिल को लगा जैसे उसने अपने लंड को कड़ाही से निकालकर नंगी आग पर रख दिया हो. गांड की असहनीय गर्मी उसके लंड को तपाने लगी.
निखिल ने रुकना सही नहीं समझा, अन्यथा उसके लंड के जलने की आशंका थी. और उसने सुमति की गांड में लंड की यात्रा आरम्भ की. जैसे जैसे लंड अंदर से बाहर और बाहर से अंदर होता रहा, अंदर की गर्मी भी उसी अनुपात में घटने लगी. सुमति को तो गांड मरवाने में आनंद आना ही था तो वो अपनी गांड उछालकर निखिल के लंड के थपेड़ों का प्रतिउत्तर देने लगी. पर निखिल यहाँ भी अधिक देर तक रुकने के मूड में नहीं था. इस बार भी जब दो तीन मिनट हुए तो उसने लंड को बाहर निकाला और इस बार फिर से सुमति की चूत में जड़ दिया.
सुमति समझ गयी कि निखिल आज उसकी चूत और गांड एक साथ मरेगा और एक छेद के रस को दूसरे में मिलाता रहेगा. फिर उसने सोचा कि इस प्रकार से तो उसे न केवल उसे अपनी गांड में से निखिल का रस पीने मिलेगा, बल्कि अपनी चूत के रस के साथ इस मिश्रण का भरपूर आनंद मिलेगा. उसे निखिल के इस नए ढंग का परिणाम अत्यंत सुखद और स्वादिष्ट लग रहा था. उसने इस प्रकार से अपने बेटे पार्थ और भाई जॉय से भी चुदने का निर्णय लिया.
निखिल दोनों छेदों में पर्याप्त समय दे रहा था और उसके चूत से गांड और वापिस चूत में लंड को बदलते रहने का क्रम सटीक और अटूट था. सुमति के दोनों छेदों के खुले होने से भी उसे इस लुका छिपी में अधिक कठिनाई नहीं हो रही थी. सुमति की आनंद से भरी सिसकारियां अब हल्की चीखों में परिवर्तित हो चुकी थीं. पूरी डबल चुदाई का आनंद न सही पर निखिल उसे एक नए प्रकार से ही उसका आनंद दे रहा था. सुमति की चूत से झरता रस बिस्तर को इतना गीला कर चुका था कि उसे बदलना नितांत आवश्यक था.
निखिल उसकी गांड मार ही रहा था कि कमरे में सुप्रिया ने सजल के साथ प्रवेश किया. सुप्रिया ने पीछे मुड़कर अपनी गांड से बाहर निकली हुई मोमबत्ती को दिखाया तो सुमति एक बार फिर झड़ गयी.
“वाओ, मॉम, क्या आइडिआ लगाया है.” निखिल ने देखा तो हंसकर बोला।
“ये सजल की तीव्र बुद्धि का काम है.” सुप्रिया ने सजल को पूरा श्रेय दिया. “अब थोड़ा हटो मैं सुमति के आगे आ जाऊँ फिर अपना खेल चालू कर देना.”
निखिल ने अपने लंड को सुमति की गांड से निकाला और सुमति को सीधे लेटने के लिया कहा और उसके सीधे होते ही उसके मुंह पर आ गयी. सुमति ने मोमबत्ती को निकाला और उसके मुंह में सजल और सुप्रिया की चुदाई का मिश्रण गिरने लगा. स्वाभाविक रूप से जब गांड से पानी निकलना बंद हुआ तो सुमति ने सुप्रिया को नीचे खींचा और उसकी गांड पर मुंह लगाकर, जोर से बचा हुआ माल भी पी लिया. निखिल ने इसी आसन में सुमति की गांड में अपना लंड पेल दिया और फिर उसकी गांड मारने लगा.
“मॉम, ये मोमबत्ती यहां छोड़ दो. हमारे काम आएगी.” निखिल ने अपने धक्कों पर बिना अंकुश लगाए अपनी माँ से कहा. सुप्रिया ने मोमबत्ती उठाई और सुमति से कहा कि उसे साफ कर दे. सुमति के लिए तो जैसे हर अंश टॉनिक था तो उसने चाटकर उसे साफ कर दिया. सुप्रिया उठी और मोमबत्ती निखिल को सौंपकर सजल के साथ कमरे से चली गयी.
निखिल को हंसी आ आ गयी.
“देखा बुआ, नानी प्लग दे गयी और मम्मी मोमबत्ती. सब आपको कितना चाहते हैं, कि आपकी मन की इच्छा पूरी करने के लिए हर सम्भव उपाय करते हैं.” निखिल इस समय सुमति की गांड में लंड पेल रहा था. और अब दोनों झड़ने के निकट थे.
जब निखिल निलजील सुमति की चूत में लंड डाला तब सुमति ने उत्तर दिया, “सच है. सबने मुझे कितनी सरलता और भेदभाव के स्वीकार किया है. मुझे नहीं लगता कि मुझे कभी इससे अधिक प्यार मिला हो.”
अब सुमति झड़ रही थी. निखिल का लंड भी अब झड़ने की कगार पर था, इसीलिए उसने चूत में से लंड निकाला और सुमति की गांड में फिर से डाला और तेज धक्कों से उसकी गांड को पेलने लगा. उसके लंड से वीर्य का स्त्राव भी उसके धक्कों को धीमा न कर पाया. पर जब उसे आभास हुआ कि उसका वीर्य अब सुमति की गांड से झाग के साथ बाहर निकल रहा है तो उसने धक्के हल्के किये और अपने झड़े हुए लंड को बाहर निकालते हुए नानी द्वारा दिए प्लग से सुमति की गांड बंद कर दी. अब उसे एक ग्लास की आवश्यकता थी. जो उसे मिल गया.
अपने लंड को सुमति के मुंह के पास ले जाने पर सुमति ने पूरे प्यार से उसे चाटा और कुछ देर मुंह में लेकर चूसा. सुमति आनंदित थी. निखिल ने उसे सीधे लिटाया और ग्लास उसकी गांड के नीचे लगाते हुए प्लग को निकाल बाहर किया. ग्लास लगभग आधा भर गया तो उसने उसे सुमति को दिया. सुमति अपने कोहनी के बल बैठकर स्वाद लेते हुए उसे पीने लगी. निखिल विस्मृत आँखों से उसे देख रहा था. आखिरी घूंट को अपने मुंह में घुमाते हुए सुमति ने उसे निगल लिया.
“बहुत अलग स्वाद था आज. चूत और गांड की गंध से तुम्हारे रस के स्वाद में अलग ही बात थी. मुझे लगता है कि मुझे अब इसे अपनी नियमित डोज़ में जोड़ लेना चाहिए, पर किसी और की चूत और गांड से निकले तो पता लगेगा कि सच में इतना ही स्वादिष्ट है या नहीं.” सुमति ने अपने विचार रखे.
निखिल हंस कर बोला, “मुझे नहीं लगता कि आपको इस के कोई विशेष कठिनाई होगी. चलिए अब चलते हैं. लोगों के मन मैं उस रिसोर्ट के बारे में जो प्रश्न हैं, उन्हें तो मैंने अभी तक सुना भी नहीं.”
“बिलकुल, चलो.” सुमति और निखिल ने भी अब कुछ पहनने पर ध्यान नहीं दिया और दोनों नग्नावस्था में ही बैठक को चले गए.
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पारुल और नितिन:
नितिन और पारुल अपनी अनौपचारिक सुहागरात मना रहे थे. पारुल ने अपने पाँव फैलाये और नितिन ने अपने लंड को उसकी चूत में डाल दिया. वो इस कमसिन कोमल लड़की को प्रेम से ही चोदने का पक्षधर था. वैसे पारुल पार्थ के मोटे लम्बे लंड को भी ले चुकी थी, और नितिन का लंड भी पार्थ से अधिक भिन्न नहीं था, पर वो इस चुदाई को अपने और पारुल के लम्बे और उज्ज्वल भविष्य के लिए स्मरणीय बनाने वाला था. एक मद्धम गति से चुदाई करते हुए दोनों प्रेमी एक दूसरे के चुंबन में लीन थे. नितिन की जीभ पारुल के मुंह में थी जिसे पारुल अपनी जीभ से लड़ा रही थी. पर इस लड़ाई में ज्वर नहीं था, प्रेम था.
पारुल को ये आभास हुआ कि नितिन उसे उसी प्रेम और कोमलता से चोद रहा है जैसे उसके पिता जॉय चोदते हैं. और इस निष्कर्ष ने उसे नितिन से और भी अधिक निकट आने में सहायता की. उसे अब विश्वास हो गया कि नितिन उसे न केवल प्रेम से परिपूर्ण करेगा, परन्तु समय आने पर उसकी रक्षा में भी आगे रहेगा. पारुल और नितिन के तन जुड़ने के साथ अब मन भी एक थे. पहले नितिन का मन पारुल की गांड मारने का था, परन्तु उसने उसे आज के लिए त्याग दिया. समय आने पर उसे पारुल की मुलायम और संकरी गांड मारने के अनगिनत अवसर मिलेंगे. पर आज उसे केवल चूत से ही संतुष्टि थी.
जब नितिन ने अपनी भावना पारुल को बताई तो उसकी आँखें आंसुओं से भर उठीं, पर स्वयं को संभालते हुए उसे कहा, “बुआ बेचारी दुःखी होंगी, उनकी इच्छा थी मेरी गांड से तुम्हारा पानी पीने की.”
“कोई बात नहीं, जब भी हम इसके बारे में निर्णय लेंगे उन्हें पहले पेय के लिए अवश्य आमंत्रित कर लेंगे.” नितिन ने कहा.
“बिल्कुल नहीं. मैं मम्मी से प्लग ले लूँगी जो तुम्हारा पानी गांड में रोक कर रखेगा. घर पर पिला दूंगी. पहली बार गांड मारोगे तब हम अकेले ही रहेंगे. बल्कि मैं आज ही मम्मी से प्लग लेकर अपने पर्स में रख लेती हूँ.”
नितिन ने इस बात पर पारुल के होंठ चूम लिए. पारुल और नितिन के इस समागम को चुदाई कहना अनुचित होगा. वो दो प्रेमियों की रासलीला थी. दोनों जानते थे कि उनका ये समय कितना बहुमूल्य है. अन्य समय वो दूसरों के साथ चुदाई में लीन रहते थे. पर एक दूसरे के साथ अब उनका इस प्रकार से ही मिलन होगा, ये लगभग निश्चित था. हाँ, ऐसा नहीं कि उचित समय पर वे तेज और व्यग्र चुदाई नहीं करेंगे, पर उनका मुख्य आकर्षण इसी प्रकार से सम्भोग के होंगे.
पारुल की जीभ को अपने मुंह में लिए हुए नितिन उसे चूस रहा था. पारुल अपनी जीभ को उसके मुंह में घुमा रही थी और इसी के साथ नितिन का लंड भी पारुल की चूत में अपनी यात्रा में मग्न था. न जाने कितनी देर तक यूँ ही दोनों प्रेमी एक दूसरे से जुड़े रहे. परन्तु शारीरक और प्राकृतिक सीमाओं के कारण अब दोनों उबाल पर आ रहे थे. नितिन ने अब अपनी गति बढ़ाई और पारुल ने उसका साथ देते हुए अपनी कमर को उछालते हुए उसके हर धक्के का साथ दिया. इसी गति से कुछ देर के संसर्ग के बाद जब नितिन को लगा कि वो अब झड़ने वाला है, तो उसने पारुल को बताया. पारुल ने इच्छा जताई कि वो नितिन के रस को पीने की इच्छुक है. नितिन जब झड़ने लगा उसने अपना लंड पारुल को प्रस्तुत किया. पारुल ने उसे मुंह में लेकर चूसना आरम्भ किया ही था कि नितिन के लंड से रस की धार उसके मुंह में गिरने लगीं. पारुल ने एक बून्द भी व्यर्थ न जाने दी. जब उसने नितिन के सम्पूर्ण रस को पी लिया तो उसके लंड को चाटते हुए उसे साफ किया और चूमते हुए नितिन को प्रेम भरी दृष्टि से देखा.
“तुम्हारा हुआ या नहीं?” नितिन ने पारुल से पूछा.
“पूरा नहीं” पारुल ने उत्तर दिया.
ये सुनते ही नितिन नीचे की ओर गया और अपने मुंह से उसे चाटने लगा.
“ये क्या कर रहे हो? पारुल ने आश्चर्य से कहा, क्योंकि अभी नितिन का लंड उसकी चूत से निकले हुए देर नहीं हुई थी.
“अपनी भावी पत्नी का स्वाद ले रहा हूँ, चुदाई के बाद कैसी लगती है. पर मुझे कोई विशेष अंतर नहीं लगा.” नितिन अपने कार्य में जुट गया.
पारुल के लिए ये एकदम नया अनुभव था. उसकी माँ और बुआ उसकी चूत चुदाई के बाद चाटकर कई बार साफ कर चुकी थीं, पर किसी पुरुष ने ये अब तक नहीं किया था. फिर उसने विचार किया कि झड़ा तो नितिन भी नहीं है. उसकी चूत की कुलबुलाहट ने उसे चेतावनी दी कि वो अब झड़ने वाली है. नितिन को बताने से भी नितिन ने अपनी जीभ और मुंह को हटाया नहीं और पारुल के झड़ते ही उसके सारा रस पी किया. पारुल और नितिन फिर आलिंगनबद्ध हो गए और एक दूसरे को चूमते हुए कुछ देर यूँ ही लेटे रहे. फिर उन्होंने कपड़े पहने और बैठक की ओर चल दिए. दोनों ने एक दूसरे का हाथ थामा हुआ था. और उनके बैठक में पहुंचने पर सबने इसे देखा. प्रश्नभरी आँखों ने दोनों को देखा.
नितिन ने कहा, “हम आप लोगों को बाद में कुछ बताना चाहते हैं.”
अनुभवी सुप्रिया और शोनाली समझ गए और एक दूसरे को देखकर मुस्कुरा पड़े.
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संजना, सुरेखा, सागरिका, समर्थ और जॉय:
संजना के अनूठे स्वाद और सुगंध से अचम्भित समर्थ एक नशे की अवस्था में थे. संजना भी निरंतर उन्हें अपने अमृत से विव्हल कर रही थी. समर्थ अपनी बेटियों का तो अक्षत अमृत नहीं पी पाए थे, परन्तु अपनी नातिन के रस का पान करने में वो कोई कमी नहीं करना चाहते थे. जॉय उनके ही बगल में उनकी छोटी बेटी सुरेखा की चुदाई कर रहा था और समर्थ सुरेखा की बेटी का रस पीने में व्यस्त थे. संजना भी पहले पुरुष संसर्ग से इतनी उत्तेजित थी कि उसका शरीर उसकी भावनाओं के वश में आकर कभी जलता तो कभी ठंडा पड़ जाता.
समर्थ जब अपने घुटनों पर बैठे हुए थक गए तो उन्होंने निणर्य लिया कि आज के लिए अमृत कलश को छोड़ना ही श्रेयस्कर है. संजना की चूत तो बहती नदी के समान अविरल जल का निस्तारण किये जा रही थी. उन्होंने संजना के भग्नाशे को चाटा और अपनी उँगलियों में लेकर हल्के से मसक दिया. यही वो शिखर था जिसे छूने के प्रयास में संजना इतनी देर से व्याकुल थी. उसकी चीख सुनकर सभी सहम गए. सुरेखा तो समझी कि उसके पिता ने संजना को चोद दिया है.
परन्तु स्थिति के आकलन से ज्ञात हुआ कि संजना का कौमार्य सुरक्षित था और वो बुरी तरह से कांप रही थी और समर्थ होनी उँगलियों में लेकर उसके भग्न को मसल रहे थे.
अंततः, संजना शांत पड़ गयी. फिर उसने अपनी आँखों को आधा खोला और धीमे स्वर में कहा, “थैंक यू, नानू।”
समर्थ ने उसकी चूत पर एक चुंबन लिया और सागरिका से पूछा, “कुछ सहायता करूँ क्या, बहू?”
सागरिका ने उनकी ओर देखा और मुस्कुराई, “नाना जी, इसमें पूछने कि कोई आवश्यकता है ही नहीं. सब आपका ही है, जो चाहे ले लीजिये.”
समर्थ खड़े हो गए और उनके विशाल मोटे और लम्बे लंड को देखकर सागरिका के मुंह में पानी आ गया. पर समर्थ अब बहुत देर से अपने लंड को संभाले हुए था तो उसे चुदाई की इच्छा था. उसकी आँखों से झलकती वासना को देखकर सागरिका समझ गयी कि चूसने का अवसर उसे बाद में ही मिलेगा. अब तक परिवार के सदस्य एक एक करके बैठक में जमा हो रहे थे. सबकी आँखें अब जॉय के ऊपर ही थीं जो चुदाई के अपने अंतिम पड़ाव पर था. सुप्रिया, सुमति और पारुल चल रहे चुदाई के खेल को देखते रहे पर कुछ बोले नहीं. पारुल और नितिन अभी भी कपड़े पहने थे और एक दूसरे का हाथ पकड़े थे. सुमति ने देखा कि किसी की गांड नहीं मारी जा रही तो कुछ उदास सी हो गयी. पर समर्थ ने उसके भावों को पढ़ लिया. सागरिका उसके लंड पर आँखें गढ़ाए थी.
समर्थ: “बहू, मैं तुम्हारी बुआ के लिए कुछ। …”
समर्थ की बात अभी पूरी भी नहीं हुई थी कि सागरिका झट से घोड़ी के आसन में आ गयी और अपनी गांड हिलाकर समर्थ को ललचाने लगी. समर्थ ने आव देखा न ताव उसके पीछे जाकर उसकी गांड में अपना लंड पेल दिया. लौड़ा सागरिका की गांड में गया, पर दर्द निखिल को हुई. पर उसने अपनी भांवनाओं को संयत किया और समर्थ द्वारा अपनी भावी पत्नी की गांड मारते देखने लगा. सुप्रिया ने संजना के पास जाकर उसे उठाया और फिर सोफे पर बैठा दिया. उसकी आँखों में अभी भी एक नशा सा था. सुप्रिया ने उसे पानी लेकर दिया.
पानी पीकर संजना बोली, “नानू सच में बहुत अच्छे है,”
सुप्रिया ने मुस्कुराते हुए उसे अपने सीने से लगा लिया. “तुम भी बहुत अच्छी हो, वेरी वेरी स्वीट.”
जॉय झड़ रहा था और सुरेखा उसके वीर्य को अपनी चूत में सहेजने का प्रयास कर रही थी. जब जॉय अपने रस से उसकी चूत को भर चुका तो वो एक और हट के खड़ा हो गया, और फिर सोफे पर ढह गया. और कोई समय होता तो पारुल अपने पिता का रस चाटने में देर न लगती. पर आज कुछ अंतर था. इसीलिए वो खड़ी रही. सुमति का ध्यान सागरिका की गांड में चल रहे समर्थ के लंड पर था और उससे ये आशा करना कि वो सुरेखा को चाटेगी व्यर्थ था. सुप्रिया ने ये कार्य अपने ऊपर लिया.
सुरेखा की चूत के आगे झुकते हुए उसने उसे चाटते हुए पूरा साफ कर दिया. फिर अपनी जीभ से उसके अंदर बचे हुए वीर्य को भी खींचकर पी किया. सुरेखा अब धीरे धीरे सामान्य हो रही थी. उसने आँख खोली तो देखा कि उसके बच्चे सजल और संजना भी उसे ही देख रहे हैं. उसे कुछ क्षण के लिए शर्म आयी, पर जब देखा कि वो दोनों भी नंगे ही हैं, तो उसने एक संतुष्ट मुस्कुराहट के साथ अपनी आँखें बंद कर लीं और सुप्रिया को उसकी चूत को चाटकर साफ करने के लिए छोड़ दिया.
निखिल ने नितिन और सुमति को देखा. जहाँ सुमति की आँखों में उसे एक भूख दिखाई दी, जो अवश्य ही उसकी भावी पत्नी की गांड से रस पीने के लिए थी, उसे नितिन को देखकर आश्चर्य हुआ. उसने पारुल का हाथ जोर से पकड़ा हुआ था, जैसे छोड़ने वाला न हो. पर उसकी आँखें उनकी माँ सुप्रिया पर थीं जो अब उनकी मौसी की चूत साफ करके हटी थीं. निखिल मुस्कुराया. प्रेम हो या नहीं, ये मादरचोद का मादरचोद ही रहेगा।
समर्थ के मुंह से अब जो ध्वनि आ रही थी, उसे सुनकर सभी ने ये अनुमान लगा लिया कि उसका पानी अब छूटने ही वाला है. सुमति की आँखें चमक रही थीं. और उसकी जीभ लपलपा रही थी. और जब समर्थ ने एक हुंकार के साथ अपना रस सुमति की गांड में गिराया तो सुमति तुरंत उनके पास जा पहुंची. हालाँकि गांड में कुछ देर तक पका हुआ माल उसे अधिक स्वादिष्ट लगता था, परन्तु गर्मागर्म माल खाने का ये स्वर्णिम अवसर वो कैसे छोड़ सकती थी. समर्थ ने उसे देखा और फिर झड़ने के बाद अपने लंड को सागरिका की गांड से निकाल कर सुमति के मुंह के आगे कर दिया. सुमति ने उसके लंड को चाटकर साफ तो किया पर उसकी आंखें सागरिका की गांड पर टिकी रहीं. वो तो अच्छा हुआ कि गांड से रस बाहर नहीं बहा अन्यथा सुमति क्या करती बताना सम्भव नहीं है.
समर्थ के लंड को चाटने के बाद सुमति के अपने होंठ सागरिका की गांड पर लगा दिया और खींच खींच कर उसे खाली करने लगी. सागरिका अपनी बुआ के इस व्यसन से भली भांति परिचित थी, पर इस प्रक्रिया से उसे गांड में गुदगुदी हो रही थी इसीलिए वो हंसने लगी. सुमति ने अपने खुराक लेने के बाद सिर उठाया तो देखा कि सब उसे ही देख रहे है. पर उनकी आँखों में उसे प्यार के सिवाय और कुछ न दिखा. उसने अपने होंठ चाटे और जाकर सोफे पर बैठ गयी.
अब पार्थ द्वारा मंत्रीजी के रिसोर्ट की सम्पूर्ण कथा को सुनने का समय था.
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पार्थ द्वारा मंत्रीजी के रिसोर्ट की कथा:
समस्त परिवारगण पार्थ के अनुभव का श्रवण कर रहे थे. पार्थ ने जो बताया उसे सुनकर उनके आश्चर्य की कोई सीमा ही नहीं रही. उन्होंने कभी कल्पना भी नहीं की थी कि इस देश में ऐसा भी कुछ सम्भव है. पर जब समर्थ ने उन्हें याद दिलाया कि पार्थ का दिंची क्लब स्वयं इसका उदाहरण है तो उन्हें विश्चास हो ही गया.
पार्थ ने बताना आरम्भ किया.
रूचि और मुझे एक ही कार में ले जाया गया था. और हम दोनों उनके ही बंगले पर रुके थे. उस रिसोर्ट में उनका बंगला या महल है, जिसे हर प्रकार से सुरक्षित किया गया है. उनके सरकारी सुरक्षा कर्मी उस बंगले के एक गेट पर ही पहरा देते हैं और उन्हें भी अंदर आने की अनुमति नहीं है. इसका अर्थ ये है कि उन्हें भी उनके क्रियाकलापों का ज्ञान नहीं है. अंदर उनकी अपने सुरक्षाकर्मी रहते हैं और दूसरा गेट रिसोर्ट में खुलता है. उनकी अनुमति के बिना रिसोर्ट के मैनेजर इवान स्टोन भी वहां नहीं आ सकते.
किसी ने कभी स्वप्न में भी ये कल्पना नहीं की थी कि उक्त मंत्री इस प्रकार का व्यभिचारी भी हो सकता है. यही नहीं उसने इस सबके लिए एक रिसोर्ट भी बनाया है जिसमे अन्य प्रसिद्द और मान्य व्यक्तिगण भी सम्मिलित थे. कुछ लोगों के बारे में जानकर उन्हें और भी अधिक अचरज हुआ. सच में हाथी के दाँत दिखाने के और तथा खाने के और होते हैं. जिनके बारे में पार्थ ने बताया था उन पर तो यही चरितार्थ होता था. पर इन दोनों परिवारों के बारे में भी यही कहा जा सकता था. किसे पता था कि बाहर के समाज में सौम्य और चरित्रवान बने ये सभी अंदर से किस प्रकार से लिप्त हैं.
मंत्रीजी जिन्हें सभी नेताजी कहते हैं अपनी सुरक्षा के साथ अपने परिवार के साथ हमारे आगे जा रहे थे. मैं और रूचि अपनी गाड़ी में उनके पीछे थे. हमारे पीछे केके का परिवार था. और उनके पीछे हमारे क्लब के नौ रोमियो दो गाड़ियों में थे. इस लम्बी पंक्ति में हम सभी लगभग दो बजे नेताजी के रिसोर्ट पर पहुंचे थे. हमारी जाँच के बाद हम सभी को नेताजी के बंगले में जाने की अनुमति मिली. अंदर जाने के बाद उस बंगले की विराटता देखकर ही मन प्रफुल्लित हो गया. नेताजी की पत्नी शिखा और पुत्री मनीषा अपने कमरे में चले गए. रूचि और मुझे एक कमरा दिया गया था जिसमे हमें पहुंचाया गया. केके अपनी पति और बेटे के साथ एक कमरे में चले गए थे. कुछ देर में हम सब नहा धोकर उनकी बैठक में पहुंच गए. नेताजी की सेवा में रिसोर्ट की लड़कियाँ और लड़के लगे हुए थे. वे एक बहुत ही मासूम दिखने वाली लड़की को कुछ समझा रहे थे.
“और तुम उसकी बेटी का पात्र निभाओगी. इसके आगे की बात तुम जाकर केके से समझ लो. बस ये जानो कि मैंने तुम्हारी विकृति के अनुसार ही तुम्हें उनके लिए चुना है. मुझे निराश मत करना.”
“नहीं, सर. आप जानते हैं कि इस प्रकार की भूमिका मैं कितने अच्छे से निभाती हूँ. और अगर वो ऐसे प्रसिद्ध लोगों के साथ हो तो सोने पर सुहागा. मैं आपका धन्यवाद करना चाहूँगी.”
“उसके भी तुम्हें अवसर मिलेगा अगर तुम अपने काम में सफल हुईं और वे प्रसन्न हुए. अब तुम जाकर केके से मिलो और उससे समझो कि तुमसे क्या अपेक्षा है.” नेताजी ने उसे जाने के लिए संकेत किया.
नेताजी की पत्नी शिखा और बेटी मनीषा इस समय तक बैठक में आ चुकी थीं और दोनों निर्वस्त्र थीं. रूचि और मैं अभी अपने कपड़े पहने हुए थे.
शिखा: “पार्थ और रूचि. आप दोनों को इस वर्ष की पोशाक का बताया गया था, तो आप भी जाकर उचित प्रकार से लौटें.”
उनके कथन में निवेदन कम और आज्ञा अधिक थी. रूचि और मैं अपने कमरे में गए और नंगे होकर बैठक में लौट आये. अब तक नेताजी भी नंगे हो चुके थे और मनीषा उनकी गोद में बैठी हुई थी.
नेताजी: “पार्थ और रूचि को मुझसे कुछ व्यवसाय संबंधित बातें करनी हैं, तो हम तीनों मेरे ऑफिस में जा रहे हैं. मनीषा तुम जाकर केके को पूछो अगर उन्हें कुछ चाहिए. शिखा आप जाकर रूचि के रोमियो से मिलें और उन्हें एक बार फिर रिसोर्ट के नियम समझा दें. लड़के हैं, कोई कोताही न कर बैठें।”
पार्थ: “नेताजी, मैंने उन्हें सब कुछ समझा दिया है.”
नेताजी: “कोई बात नहीं, शिखा फिर से एक बार समझा देगी.”
नेताजी के साथ रूचि और मैं ऑफिस में गए और लगभग एक घंटे के विचार विमर्श के बाद हम एक सहमति पर पहुंचे. इसके बाद नेताजी ने एक सहमतिपत्र बनाया जिस पर हम तीनों से हस्ताक्षर किये.
नेताजी: “इसका अनुबंध शिखा के नाम से बनाया जायेगा. उसके पूरे होने के बाद आपको देने के लिए वो स्वयं ही आएगी, क्योंकि लिखित पत्र है और मैं इसे किसी और माध्यम से नहीं भेज सकता.”
रूचि: “अगर ऐसा है तो वो मेरे घर पर ही आएं जिससे कोई अफवाह भी नहीं उठेगी.”
नेताजी: “आपकी सुझाव उचित है. आप शिखा को अपने घर का पता दे दीजिएगा. चलिए अब देखें क्या कुछ चल रहा है.”
तभी नेताजी का फोन बजा और बताया गया कि रिसोर्ट के मैनेजर इवान स्टोन आये हैं.
नेताजी: “मेरे रिसोर्ट के मैनेजर इवान आ रहे हैं. मैं उनसे आपको मिलता हूँ और हमारे अनुबंध के बारे में बताता हूँ. उन्हें अधिक विस्तार में मैं आगे उन्हें रात में समझा दूंगा.”
इसके बाद हम बैठक में गए और इवान से मिले. इवान से बातें करने के बाद जब हम चलने को हुए तो इवान केके से मिलने का इच्छुक दिखा. नेताजी ने तो कुछ नहीं कहा पर बाद में पता लगा कि शिखा ने उसे समझाया था. जो उसने देखा उसे देखकर उसके मन में केके और उसके पति के लिए कोई भी आदर था वो समाप्त हो गया. रूचि ने भी उसे समझाया था. रूचि को कैसे पता था कि क्या हुआ है वो मुझे नहीं पता, पर उसने उस रात मुझे बताया। मुझे इसमें कोई आश्चर्य नहीं हुआ क्योंकि मैं क्लब में केके के कारनामे देख चुका था. हाँ मुझे उस मासूम दिखने वाली लड़की पर अवश्य अचरज हुआ कि नेताजी ने उसे इसीलिए चुना था क्योंकि वो इस प्रकार के खेलों में निपुण थी.
जब हम रेस्त्रां पहुंचे तो मेरी भेंट डेविड के परिवार से हुई, जैसा कि मैंने आपको बताया था. मुझे इस बात पर सुखद आश्चर्य हुआ कि हमारे आठ घरों के छोटे से द्वीप में चार परिवार हमारी ही जीवन शैली में लिप्त हैं. डेविड को विश्वास दिलाकर कि उन्हें हमसे कोई डर नहीं है, मैं और रूचि एक ओर बैठकर चल रही गतिविधियों को देखते रहे. ये साफ दिख रहा था कि ये रिसोर्ट सदस्यों की सभी विकृतियों को पूरा करने का माध्यम है. जो परिवार या लोग हमारे सामने शीशे के समान साफ दिखते हैं, उनके अंदर कितना मैल है ये देखकर आश्चर्य भी हुआ दुःख भी.
एक प्रसिद्ध समाज सेविका जो नैतिक मूल्यों के लिए कई भाषण दे चुकी है, एक प्रसिद्ध डॉक्टर जिनको जीवनदाता माना जाता है, एक मुख्य व्यवसाई जिनके सच्चाई और स्वच्छ व्यक्तित्व को अनूठा समझा जाता है. इसी प्रकार से अन्य लोग जो आये थे सभी अपने व्यवसाय में अग्रणी थे. पर वहाँ न किसी के शरीर पर कोई वस्त्र था, न चेहरे पर कोई मुखौटा. ये भी दिख रहा था कि वे सब किसी न किसी प्रकार से नेताजी के ऋणी थे. पर उनमे से कोई भी किसी भी सरकारी पद पर नहीं था. नेताजी ने चुन चुन कर अपने इस समूह को बनाया था. पार्थ कुछ देर के लिए रुका और सजल ने उसे ग्लास में ड्रिंक थमा दी. इससे पहले कि वो कुछ बोलता शोनाली बोल पड़ी.
“मैं अभी मिशेल से मिलने गयी थी. उसे भी बहुत ख़ुशी हुई मुझसे मिलकर. हमने मिलकर एक पार्टी करने का निश्चय किया है. देखना ये है कि माँ बाबूजी के जाने के पहले सम्भव होगी या नहीं.”
“पार्थ.” ये समर्थ थे जिन्हें पार्थ के कुछ भावुक होने का आभास हो रहा था. “कौन अपने जीवन को किस प्रकार से जीता है, इसपर टिप्पणी करना या कोई विचार बनाना गलत है. समाज की कई सीमाएं हैं, परन्तु वे सामाजिक परिवेश को प्रदूषण से बचाने के लिए हैं. हमारे परिवार में जो हम कर रहे हैं, इससे समाज के किसी भी और व्यक्ति पर कोई विपरीत प्रभाव नहीं है. इसी प्रकार से अगर वहाँ आये लोग अपने अंतर की वासना को इस रूप में पूरा करते हैं तो समाज पर कोई अंतर नहीं पड़ता. क्या वो समाज सेविका, या डॉक्टर या व्यवसाई अपने कार्यों में किसी प्रकार से भी कमी करते हैं, क्या उन्होंने किसी की हानि की है? अगर तुम्हें उनके ऊपर क्रोध है तो हम सब पर क्यों नहीं. यहाँ हम सबको देखकर बताओ कि हम उनसे किस प्रकार से भिन्न हैं, और अगर नहीं तो तुम्हारी भावनाएं उनके और हमारे प्रति भिन्न क्यों हैं?”
पार्थ अपनी ड्रिंक पीते हुए समर्थ की बात पर चिंतन करता रहा.
“आप सच कह रहे हैं नानाजी. मैं समझ गया.” पार्थ ने कहा, “नहीं तो मेरा तो सन्यास ही आरम्भ हो जायेगा.”
सब हंस पड़े और पार्थ ने ड्रिंक समाप्त करते हुए आगे की कथा सुनाना आरम्भ किया. सजल उठकर उसके ग्लास को फिर भर लाया. खाने के बाद परिवार एक दूसरे को आमंत्रित कर रहे थे, कुछ पूरे परिवार आमंत्रित थे पर अधिकांश में चुने हुए लोग ही थे. सम्भवतः इस प्रकार का आयोजन बुरा नहीं माना जाता था क्योंकि किसी ने इस पर आपत्ति नहीं की थी. हमें बाद में समझ में आया कि अधिकांश आमंत्रण लड़को और लड़कियों को ही दिए गए थे. और रिसोर्ट ने उनके बदले में अपने लड़कों और लड़कियों को निर्धारित किया था. मतलब अगर किसी परिवार का एक लड़का अकेला आमंत्रित किया गया था तो उस परिवार को रिसोर्ट से अन्य लड़के को लेने की छूट थी. इसके बाद भी अगर कोई रिसोर्ट का लड़का या लड़की बचते थे तो वो अपने मन से किसी भी परिवार के साथ जा सकते थे.
मुझे भी आमंत्रण मिला था, परन्तु मैं और रूचि कुछ चर्चा करना चाहते थे और इसीलिए मैंने उसे स्वीकार नहीं किया था. रूचि ने मुझे इस बात के लिए छेड़ा था, पर अधिक कुछ नहीं कहा था. कुल मिलाकर सोलह परिवार थे, इसमें इवान और नेताजी का परिवार भी सम्मिलित था. शिखाजी और डेविड डॉक्टर परिवार में आमंत्रित हुए थे. डॉक्टर की पुत्री को जैसन ने आमंत्रित किया था. डॉक्टर साहब की पत्नी और बेटे को भी आमंत्रण था पर उन्होंने बाद में आने के लिए कहा था. मिशेल ने इवान के साथ जाने की इच्छा की थी और उसे हेलेन ने सहर्ष स्वीकार किया था. कुल मिलाकर सभी एक दूसरे के साथ मिल कर चुदाई करने वाले थे. एक से अधिक परिवारों में भी निमंत्रण थे. मुझे तो समझ ही नहीं पड़ा कि वे ये सब कैसे संभालेंगे. फिर इसके बारे में चिंता न करते हुए हम अपने कमरे में चले गए.
अगले दिन सुबह इवान से जब चर्चा हुई तो उसने हमें अपना cctv वाला कमरा दिखाया और ये भी बताया कि सभी प्रसंग रिकॉर्ड किये गए थे और हम चाहें तो उन्हें अपने कमरे में टीवी पर देख सकते हैं. उसने हमें उन्हें देखने की प्रक्रिया बताई. हमें एक पासवर्ड भी दिया गया. फिर शेष रिसोर्ट के बारे में भी बताया गया.
इवान: “मेरी कल जो नेताजी से बात हुई है उनका सदा से मानना था कि हमारे आयोजनों में अधिकांश लड़कों की कमी हो जाती है. महिलाएं यहाँ आने पर नए नए प्रयोग करना चाहती हैं जो हर बार सम्भव नहीं होता. इस प्रकार के अनुबंध से हमारे लिए ये सम्भव हो सकेगा. जहां तक लड़कियों की कमी का प्रश्न है, तो उसके लिए अभी कोई विशेष आवश्यकता नहीं जान पड़ती है क्योंकि हमारे रिसोर्ट की लड़कियाँ ही नब्बे प्रितशत से अधिक अनुरोध संभाल पाती हैं. मैं ये बता दूँ कि अधिकतर परिवार में ये महिलाओं पर केंद्रित अधिक है क्योंकि उन्हें समाज में अधिक सजग रहना होता है. मेरे विचार से इसीलिए आपके क्लब से ये अनुबंध हम सबके लिए बहुत लाभदायी सिद्ध होगा.”
इसके बाद इवान ने हमे नाश्ता करवाया और फिर हम अपने कमरे में चले आये. सुबह के समय पूरा रिसोर्ट सूना पड़ा था. रात भर चुदाई में संलग्न लोग अभी तक सोये पड़े थे. हम अपने कमरे में गए तो रूचि ने कल की रिकॉर्डिंग देखने की इच्छा व्यक्त की. हमने पासवर्ड का प्रयोग करते हुए इवान द्वारा दिए निर्देशों के अनुसार उनका चैनल लगाया तो हमारे घर के समान अलग अलग कमरों के दृश्य दिखे. रूचि ने रिमोट मेरे हाथ से लिया और सबसे पहले समाज सेविका के कमरे पर केंद्रित कर दिया.
अनुपमा और उसके पति रोहित के कमरे में उनकी पुत्री नहीं थी जो किसी और के कमरे में गयी हुई थी. रिसोर्ट की एक बाला उनके कमरे में थी. वो लड़की अंजलि की चूत चाट रही थी और रोहित उस लड़की के पीछे से उसकी चुदाई कर रहे थे. ये बताना सम्भव नहीं कि उनका लंड चूत में था या गांड में. कुछ देर ये देखने के बाद रूचि ने चैनल बदल दिया। रूचि यही कर रही थीं, चार पांच मिनट के लिए एक कमरे में चल रहे दृश्य को देखतीं और फिर बदल देतीं. मुझे समझ नहीं आया कि वे चाहती क्या थीं. मेरे पूछने पर उसने कहा कि कुछ नया. ये सब तो देखा हुआ है.
मुझे आश्चर्य हुआ कि ऐसा क्या ढूँढ रही है जो देखा न हो, पर मैंने कुछ न पूछने का निश्चय किया. अचानक उसने एक चैनल पर लगाया जिसमे शिखा थी. ये डॉक्टर का कमरा था और डॉक्टर की पत्नी कोमल, डॉक्टर, उनका बेटा रमन और डेविड थे. पर रूचि इस चैनल पर रुक गयी. और मेरे सीने में सिमटते हुए बोली कि आज मुझे यही देखना है. मैंने कोई टिप्पणी नहीं की.
“शिखा मेरे घर पर आने वाली हैं, अनुबंध के साथ, तो मैं जानना चाहती हूँ कि उनकी किस प्रकार से आवभगत करनी चाहिए. अगर शिखा हमसे प्रसन्न रहेगी तो नेताजी भी रहेंगे और कभी कभार अगर कोई उलझन आयी तो सरलता से संभाल ली जाएगी.”
रूचि की बात मुझे भी सही लगी और हम दोनों उस कमरे में चल रहे दृश्य को आगे के लिए देखने लगे. बस एक ही कमी थी इन वीडियो में, वो ये कि इनमें वीडियो मात्र था, कौन क्या कह रहा था ये नहीं पता चल रहा था. और हर कमरे में कवल दो ही कैमरे थे जिसके कारण दृष्टिकोण सीमित था. पर जानने समझने के लिए पर्याप्त था. शिखा और कोमल एक दूसरे के साथ 69 के आसन में थीं और चूत चाटने में व्यस्त थीं. तीनों पुरुष एक ओर थे और कुछ पी रहे थे. उन तीनों के लंड भी खड़े हुए थे और देखने से अच्छे नाप के प्रतीत हो रहे थे. शिखा ऊपर थी और उसने डॉक्टर को देखा और तीनों लौडों पर आँख दौड़ाई. फिर उसने अपना चेहरा कोमल की चूत में डाल दिया.
रूचि क्या देखना चाहती थीं ये मुझे समझ में नहीं आया. मैं उसके साथ देखता रहा. कुछ देर बाद शिखा ने अपना चेहरा उठाया तो वो पूरा गीला था. अपने होंठों पर जीभ फेरते हुए उसने कुछ कहा. फिर उसने तीनों पुरुषों को पास बुलाया. कोई दो दो मिनट तक उसने तीनों के लंड चाटे और फिर उनसे कुछ कहा और वहाँ से हटकर एक सोफे पर बैठ गयी. उसने अपनी उँगलियों से अपनी चूत को छेड़ने में अधिक देर नहीं की. मेरे विचार से वो कोमल की चुदाई देखना चाहती थी.
कोमल के पति ने उससे कुछ पूछा और फिर डेविड और रमन से कुछ कहा. रमन से डेविड की ओर देखकर कुछ पूछा फिर अपने पिता को उत्तर दिया. रमन बिस्तर पर लेट गया और डॉक्टर ने अपनी पत्नी को सहारा देते हुए अपने बेटे के लंड पर बैठा दिया. कोमल अपने बेटे के लंड पर कुछ देर उछली और जब उसे लगा कि लंड अब सही प्रकार से जम गया है तो रुक गयी और डॉक्टर से कुछ कहा. डॉक्टर ने आगे जाकर अपने लंड को उसके मुंह में दे दिया. अचानक देखा तो शिखा खड़ी हुई और उसने एक टेबल के अंदर से कुछ निकाला। ये एक अच्छा लम्बा डिल्डो था. शिखा ने अब उसे डिल्डो से अपनी चूत को चोदना आरम्भ किया.
डेविड कोमल की पीछे गया और हमने उसके लंड को कोमल की गांड में गुम होते देखा. इसके बाद तीनों ने कोमल की लम्बे समय तक चुदाई की और फिर उसके तीनों छेदों में अपना रस भर दिया. शिखा ने उठकर कोमल की चूत से रस को चूसा और फिर कोमल के साथ उसे बाँटा, यही प्रक्रिया उसने कोमल की गांड से बहते हुए रस के साथ भी की. डॉक्टर का तो लंड साफ ही था, शिखा ने अन्य दोनों को साफ किया और फिर कोमल को उठाकर सोफे पर बैठा दिया. कोमल वहीं ढुलक गयी.
शिखा ने तीनों से कुछ पूछा और हमने यही समझा कि वो उनसे उसकी चुदाई के बारे में बात कर रही थी. पर रूचि ने टीवी को बंद कर दिया.
“जब शिखा मुझे अनुबंध देने आये तो तुम्हें क्लब से रोमियो भेजने होंगे. उसे अतृप्त तो नहीं भेज सकते.”
इसके बाद हमने चुदाई की और हम सो गए क्योंकि अगला दिन बहुत महत्वपूर्ण था.
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अगले दिन जब हम उठे तो नहाने के बाद नाश्ते के लिए रेस्त्रां गए. रिसोर्ट में कोई भी नहीं दिखा. रेस्त्रां में हम दोनों ही थे और हमने शांति से खाया और अपने कमरे में लौट गए. दस बजे मैं और रूचि को लेने के लिए इवान आया और हमें उस स्थान पर ले गया जहाँ केके का शो था. अच्छा बड़ा सा हॉल था और एक स्टेज भी था. समस्या थी कि किस प्रकार से सारी सजावट और सेट को लगाया जाये. इसका उपाय इवान ने ही बताया. उसने बताया कि सभी लोगो को कमरे में ही रहने के लिए कहा गया है दो बजे तक. तब तक हमें अपना सारा कार्य समाप्त करना होगा. इस अवधि में सब सामान्य वस्त्रों में रहेंगे.
साढ़े दस बजे के आसपास सेट लगाने वाले आ गए और उन्हें अत्यंत गुप्त रूप से अंदर लाया गया और इस पर विशेष ध्यान दिया गया कि वे इधर उधर न जाएँ न देखें. इसमें CCTV का महत्वपूर्ण योगदान था. उन्होंने ढाई घंटे में ही अपना काम समाप्त किया और उन्हें अगले दिन शाम को आने के लिए कहा गया, जब रिसोर्ट खाली हो चुका होगा. इसके बाद इवान ने कण्ट्रोल रूम में बताया।
इवान: “अब सभी को अपने प्राकृतिक अवस्था में आने के लिए कह दिया है. हम सब भी अपने कमरों में जाकर कपड़े निकालकर रेस्त्रां में मिलते हैं. शाम पाँच बजे से अन्य कार्यक्रम आरम्भ होंगे. केके का शो आठ बजे के आसपास होगा. अन्य कार्यक्रम उसके बाद भी चलते रहेंगे. साढ़े ग्यारह बजे से इस वर्ष की विदाई और नए वर्ष की स्वागत का आयोजन है. तो हम कुछ ही देर में मिलते हैं.”
इसके बाद हम सब अपने कमरे में जाकर नंगे होकर रेस्त्रां में पहुंचे जो पूरा भरा हुआ था. कई लोग जो नाश्ता नहीं कर पाए थे भोजन पर जुटे हुए थे. एक अत्यंत उन्मुक्त वातावरण था. डेविड का परिवार भी अब अन्य लोगों से मिलकर बातों में व्यस्त था. डेविड ने मुझे बताया कि रिचर्ड की नेताजी से चर्चा बहुत लाभकारी रही और उसका पूरा परिवार बहुत प्रसन्न है. मैंने अधिक जानने का प्रयास नहीं किया.
मिशेल आंटी मेरे पास आयीं और कहने लगीं “कल तुम कहाँ थे?
पार्थ: “मैं और रूचि जल्दी सोने चले गए थे.”
मिशेल: “आज हमारे लिए कुछ समय निकाल पाओगे?”
मैंने उनके कान में कहा, “आज तो नहीं, पर बाद में अवश्य. आज दूसरे फल खाने का अवसर जो मिला है.”
मिशेल: “नॉटी बॉय. पर मैं समझ सकती हूँ. ठीक है. हम बाद में वहीं मिलते हैं.”
इसके बाद अन्य महिलाएं भी आकर मुझसे मिलती रहीं और कई पुरुष आकर रूचि पर डोरे डालते रहे. हमारे लिए आज रात साथियों की कोई कमी न थी. खाने के बाद तीन बजे सभी अपने कमरों में चले गए. आज की रात लम्बी थी और सभी उसके लिए विश्राम करना चाहते थे. आज नेताजी नहीं आये थे. न ही शिखा और मनीषा। वे अपने कमरे में ही खाना खा रहे होंगे केके के परिवार के साथ. हमारे रोमियो भी नहीं आये थे. हम भी आकर सो गए और साढ़े चार बजे ही उठे.
पाँच बजे के पहले हम दोनों हॉल में पहुंच गए, जहाँ इवान ने हमारा स्वागत किया और सामने की दो सीटों पर बैठने के लिए आमंत्रित किया. अन्य अथिति भी आने लगे थे. कुछ ही देर में हॉल में सभी लोग आ गए. रिसोर्ट के अन्य कर्मी भी आ गए. और हॉल को बंद कर दिया गया. नेताजी और उनका परिवार भी आगे की सीटों पर ही बैठा हुआ था. हॉल की बत्तियां धीमी कर दी गयीं और इवान और हेलेन स्टेज पर पहुंचे. मैं और रूचि विस्मयता से देख रहे थे कि आगे क्या होना है.
कार्यक्रम अब आरम्भ होने वाला था.