सुरेखा सिंह बहुत उदास थी. वो अपने पति को विमानतल छोड़कर घर वापिस जा रही थी. उसके पति नागेश को अपने काम से १ महीने के लिए विदेश जाना था. उसकी उदासी का कारण ये था कि उन दोनों के बीच में पिछले दो महीनों से कोई शारीरिक संबंध नहीं हुआ था. वो आज अपनी २० साल की शादी से पूरी तरह से असंतुष्ट थी. पर उसे इस समस्या के हल के लिए कोई और राह भी नहीं दिख रही थी. उसके दोनों बच्चे सजल और संजना अब बड़े हो चुके थे और कॉलेज में थे.
सुरेखा जानती थी की इस आयु में भी वो इतनी आकर्षक थी कि पुरुषों को आकृष्ट करती थी. पुरुष अक्सर उसके नितंब निहारा करते थे. पर अगर कोई आँख गढ़ाकर देखता था तो वो थी उसकी सुडोल और भारी चुचियाँ. अपने कार्यालय के पुरुषों को वो किसी भी तरह का भाव नहीं देती थी. उसने कभी भी अपने पति से विश्वासघात नहीं किया था. पर अब वो अपने पति के व्यवहार से उचट चुकी थी. उसे कोई न कोई समाधान निकालना ही था.
वो अपने माता पिता को देखकर आश्चर्य करती थी की वो आज तक एक दूसरे से कितना प्यार करते थे. दोनों की शादी उस समय के अनुसार बहुत छोटी आयु में ही हो गई थी. वो दोनों अभी भी स्वस्थ और सक्रिय थे. उसकी बड़ी बहन सुप्रिया का विवाह बहुत दिन नहीं चल पाया था. दो बच्चे होने के कुछ ही वर्षों में उसका तलाक़ हो गया था. पर सुरेखा ने तलाक़ के बाद भी कभी सुप्रिया को दुखी नहीं देखा. उसने अपना सारा समय अपने कार्य और बच्चों के पालन पोषण में लगा दिया था. आज उन दोनों के बच्चे बड़े हो चुके थे और कॉलेज से निकलने के निकट थे.
इसी चिंतन में उसने अपनी कार अपने घर को अपने घर की ओर से अपने पिता के घर संभ्रांत नगर मोड़ दी. उसके घर पर कोई था नहीं और वो बहुत बेचैन थी. सम्भवतः उसकी माँ उसकी इस समस्या के लिए कोई सुझाव दे पाएंगी. उसे ये देखकर खुशी हुई की सुप्रिया की कार भी वहीं थी. अब वो अपनी माँ और बहन से सलाह लेने का मन बना चुकी थी. ये तो अच्छा ही हुआ कि दोनों एक ही दिन एक ही साथ मिल गयीं. उसने घंटी बजाई, पर कोई उत्तर न मिलने पर अपनी चाबी से दरवाजा खोला और अंदर चली गयी. वो अपनी माँ को पुकारने ही वाली थी कि उसे ऊपर के कमरे से सिसकारियाँ सुनाई दीं. उत्सुकतावश वो दबे पाँव ऊपर की ओर बढ़ने लगी और अपने माता पिता के कमरे को ओर जाने लगी.
“उूउउह, और अंदर, और ज़ोर से.” सुरेखा ने अपनी माँ की आवाज़ को पहचान लिया. वो अपनी हँसी दबाते हुए सोचने लगी कि उसके माता पिता दोनों दोपहर में चुदाई कर रहे हैं. उसकी बहन अपने पुराने कमरे में सम्भवतः सो रही होगी.
“मैं बाद में आ जाऊंगी, अभी इन्हे आनंद लेने दूँ .” सोचकर वो पलटी। फिर ये सोचकर की थोड़ी जासूसी की जाए, वो बढ़ी तो देखा कि द्वार पूरा बंद नहीं था. बचपन की शरारत याद करते हुए उसने पल्ला थोड़ा सा खोला और अंदर झाँका.
उसकी माँ निर्वस्त्र थी और अपने लाल होठों से अपने पति की लंबा और मोटा लंड चूस रही थी. सुरेखा ने ये देखकर अपने सूखे होठों पर जीभ फिराई. उसके पिता के लंड को देखकर सुरेखा विस्मित हो गई. उसकी माँ पिता के अंडकोष हल्के हाथों से दबा रही थी. उसके पिता का सिर ऊपर पीछे था और चेहरा आनंद विभोर था. अपनी माँ को लंड चूसते हुए देखकर सुरेखा को कोई आश्चर्य नहीं हुआ. पर उसे जिस दृश्य ने आतंकित किया वो ये था कि वो दोनों अकेले नहीं थे. एक और आदमी था जो उसकी माँ शीला की पीछे से चुदाई कर रहा था.
और वो कोई और नहीं, सुप्रिया का बड़ा बेटा निखिल था!
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निखिल का बांया हाथ उसकी नानी के नितम्ब पर था, और दाएं से वो उनका भग्नासा निचोट रहा था. शीला ने अपने मुंह को समर्थ ने लंड से हटाया और पीछे मुड़कर निखिल की ओर वासना से देखा.
“नानी की चूत को ऐसे ही अच्छे से धीरे धीरे पेल.” उन्होंने आज्ञा दी.
“सच तो ये है, कि इस चूत में आज तक न जाने इतने लंड गए हैं, पर तेरे मूसल को लेने में अभी भी थोड़ी हिम्मत चाहिए.” शीला बोले जा रही थी, “हाँ ऐसे ही,ऐसे ही. किसी घोड़ी को भी तेरा लंड लेने में कष्ट होगा, पर आनंद भी भरपूर आएगा.”
निखिल अपनी प्रशंसा सुनकर गर्व से फूल गया. “नानी आप भी बहुत मस्त चुड़क्कड़ हो, मैं सिर्फ एक ही और स्त्री को जानता हूँ जो मेरे पूरा लौड़ा बिना दुविधा के ले पाती है. और उन्हें भी इससे अत्यंत प्रेम है.”
“प्रेम? मैं न्योछावर हूँ इस पर.” शीला बोली, “मुझे दो लोगों से एक साथ चुदवाने से अधिक कोई कार्य आनंद नहीं देता. और तुम्हारा तो ये ११ इंच का मूसल तो जैसे मेरे ही लिया बना था.”
“११ इंच ?” सुरेखा के मुंह से अनजाने ही एक आश्चर्य भरी सिसकारी निकल गई.
तीन सिर कमरे के द्वार की ओर मुड़े। उनकी ऑंखें सुरेखा की आँखों से जा टकराईं, जो इस कौटुम्बिक व्यभिचार के कृत्य की जीती जागती साक्षी थी.
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सुरेखा जड़वत खड़ी थी, वो डर और शर्म से हतप्रभ थी. पर चुदाई में व्यस्त वो तिकड़ी न गुस्सा लग रही थी न ही दोषी. निखिल ने एक हलकी सी मुस्कान के साथ अपनी मौसी की आँखों में डालते हुए अपनी नानी की चूत में अपने लंड का आवागमन बनाये रखा. शीला ने अपना सिर मोड़कर सुरेखा की ओर देखा। उसके मुंह से समर्थ का लंड बाहर निकल गया.
उसने बेशर्मी की एक कुटिल मुस्कान से व्यंग्य किया,”ओह हो, मेरी मासूम बेटी, सुरेखा”
वो खिलखिलाई, “देखने आयी है कि उसके बूढ़े माँ बाप अपनी दवाइयाँ ले रहे हैं या नहीं? है न?”
समर्थ के थूक से लिपटे हुए लंड को अपने हाथ से हलके से सहलाते हुए आगे बोली,” मैं तो अवश्य ले रही हूँ. मेरी सर्वप्रिय प्रोटीन शेक का डबल डोज़ जो लेने वाली हूँ.”
“माँ, तुम ऐसा भद्दा मजाक कैसे कर सकती हो?” सुरेखा चिल्लाई, “दो दो पुरुषों आदमियों के साथ एक साथ ऐसा काम, और उसमे से एक तुम्हारा नाती है. ये इन्सेस्ट है.”
“बिलकुल, और इसीलिए इतना अद्भुत है,” शीला ने वासना से भरी आवाज़ में कहा, “और पुरुष इसीलिए क्योंकि कोई स्त्री उपलब्ध नहीं है, अन्यथा मुझे उसका स्वाद भी उतना ही प्रिय है..”
“और ये दोनों घोड़े भी कोई आपत्ति नहीं कर रहे.” अपने नितम्बों को घुमाते हुए बोली. “ऐ लड़के, मुझे चोदना बंद मत कर.”
ये सुनते ही निखिल ने फिर गति पकड़ ली और लम्बे और ताकतवर धक्कों से अपनी नानी को चोदने लगा.
शीला ने सुरेखा को कहा,” अब टेंशन छोड़कर शांत हो जा और इस शो का आनंद ले.”
“आनंद लूँ !” सुरेखा ने आश्चर्य से कहा, “माँ तुम मानसिक रोगी हो. तुमने सोचा भी कैसे कि मैं इसका आनंद लूंगी। ”
उसके शब्द तो उसे इस दृश्य से दूर कर रहे थे, पर वो खुले हुए मुंह से अवाक् अपने भांजे को ताक रही थी जो हर धक्के में और गहरा जाता प्रतीत हो रहा था. निखिल ने अपनी शक्ति दिखाते हुए अपने दोनों घुटनों को और फैलाया, शीला के भी पैरों को और फैलाते हुए जोरदार धक्के लगाने लगा. शीला अपने बिस्तर पर सिसकती और कराहती हुई पेट के बल फ़ैल गई. समर्थ ने अपने लंड से शीला के चेहरे और होठों को हलके हलके पीटने लगा. शीला अभी भी उसे पकड़ने का प्रयास कर रही थी पर निखिल की गति से वो इतना हिल रही थी की असमर्थ थी.
“ठहरो सब! ठहर जाओ! माँ तुम छिनाल हो.” सुरेखा ने फिर आपत्ति की.
शीला किसी प्रकार से बोलती रही, “और मुझे इस पर गर्व है. तुम ज्यादा पाखंडी न बनो, तुम्हारी पैंट क्यों गीली है? तुम्हारी चूत पानी छोड़ रही है न?”
सुरेखा का हाथ अपनी पैंट के सामने गया. उसे आभास हुआ कि उसकी माँ सच कह रही थी. उसका सिर झुक गया और वो शर्म से लाल हो गई.
“सुरेखा, गुड़िया, आराम से.” उसके पिता ने पहली बार कुछ बोला। उसके लंड को इतने में शीला ने अपने मुंह में डाल लिया. “क्षमा करना, कि तुम्हें इस प्रकार पता चला. पर पता तो लगना ही था एक दिन. मैं तो कब से इस दिन की प्रतीक्षा कर रहा था.”
एक रहस्यमई मुस्कान से उसने आगे बोला “बहुत सारी नयी संभावनाएं खुल जाती हैं इस तरह, क्यों शीला?”
“बिलकुल” एक स्त्री के पीछे से आते हुए स्वर ने सुरेखा को सनसना दिया.
दो छोटे कोमल हाथ उसके वक्ष के ऊपर आये, उसकी शर्ट के अंदर गए और आगे से उसके ब्लाउज के हुक खोल दिए. उन दोनों कोमल हथेलियों ने उसके स्तनों को मसलना और सहलाना प्रारम्भ कर दिया. सुरेखा डर और अचम्भे से पीछे मुड़ी तो उसने अपनी बड़ी बहन सुप्रिया को मुस्कुराता पाया. सुप्रिया भी पूरी नंगी ही थी और उसके बड़े बड़े स्तन सुरेखा के स्तनों से मेल जोल कर रहे थे.
सुरेखा ने विरोध करने के लिए मुंह खोला परन्तु सुप्रिया ने इसका लाभ उठाकर अपनी बहन को पास खींचा और गहरा चुम्बन लिया. सुप्रिया ने वासनामय आँखों से सुरेखा की आँखों में देखा और अपनी जीभ उसके मुंह में डालकर प्रगाढ़ चुम्बन लेने लगी. सुरेखा को ये जानने में अधिक देर नहीं लगी कि सुप्रिया के मुंह से वीर्य का स्वाद आ रहा था. पर किसका? अपने हाथों से सुप्रिया सुरेखा के माँसल स्तनों को भींचने लगी. अपने अनुभवी उँगलियों से वो सुरेखा की चूचियों को बिलकुल सही मात्रा में मसल रही थी.
सुरेखा का मनोबल टूट रहा था, “नहीं, नहीं, मुझे इसमें आनंद नहीं आना चाहिए, मेरी बहन गलत कर रही है. जैसे मैं गलत थी अपने भांजे से अपनी माँ की चुदाई देखकर.”
पर उसका शरीर अब उसका साथ नहीं दे रहा था. महीनों से सेक्स से वंचित भूखा शरीर इस आक्रमण का प्रतिरोध करने में अक्षम था. अपनी जीत का अनुभव करते हुए सुप्रिया ने अपनी नंगी जांघों को सुरेखा की जांघों से सटा दिया। सुरेखा ने देखा की सुप्रिया की चूत बिलकुल चिकनी थी, और गीली भी.
“मत करो ऐसा, प्लीज.”
पर अब सुप्रिया कहाँ रुकने वाली थी, उसने अपना पराक्रम और बढ़ा दिया.
“सही जा रही हो, मॉम.” ये एक नए पुरुष के स्वर ने प्रोत्साहन दिया, “खेलो इन चूचियों से.”
ये नितिन था, सुप्रिया का दूसरा बेटा, जो सुप्रिया से कुछ ही दूर खड़ा था. अन्य लोगों की तरह वो भी इस समय नंगा ही था और उसके गीले लंड से कुछ रस गिर रहा था. ये लंड भी निखिल से किसी तुलना में उन्नीस नहीं था.
नितिन चलकर सुरेखा के पीछे आया और उसने अपने बड़े हाथों से सुरेखा की पैंट के बटन और ज़िप खोली और बड़ी सादगी से उसे सुरेखा के लम्बे सुडौल पैरों से नीचे उतार दिया. सुरेखा तो मानो एक तन्द्रा में थी. उसने एक एक कर के अपने पाँव उठाये और पैंट निकल जाने दी. सुप्रिया भी सुरेखा के ब्लाउज निकालने में सफल हो चुकी थी. एक बार निर्वस्त्र होने पर सुप्रिया ने सुरेखा को फिर अपनी बाँहों में भर लिया. सुप्रिया उसे चुम्बनों से ओतप्रोत कर रही थी और उसके नितम्ब जोर जोर से मसल रही थी. सुरेखा ने अपने पीछे नितिन के लंड का स्पर्श महसूस किया जो उसकी गांड के ऊपर दस्तक दे रहा था. सुप्रिया ने एक हाथ सुरेखा की चूत पर लगा दिया और उसे सहलाने और मसलने लगी. सुरेखा इस समय अपने भतीजे और बहन के बीच फंसी हुई थी और उसे बहुत आनंद आ रहा था.
“ओह, मैं झड़ रही हूं !” शीला चीखी, “और जोर से चोद मुझे! फाड़ दे मेरी चूत अपने मूसल से! फक मी! समर्थ, समर्थ, अपना पानी मेरे मुंह में छोड़ दो.”
“नहीं!” समर्थ ने अपना विशाल लंड शीला के मुंह से निकलते हुए कहा.
शीला अपने स्खलन के उत्कर्ष पर थी और निखिल ने भी अपने अण्डों में कसाव महसूस किया और अपनी गति और तेज कर दी.
“मैं भी गया नानी!” निखिल चीखा और अपने लंड को शीला की चूत की गहराई में जाकर जड़ कर दिया. “तुम्हारी चूत में झड़ रहा हूँ, मेरी प्यारी नानी! आआह!”
अंततः निखिल और शीला शांत होकर हाँफते हुए लेट गए. सुरेखा स्वयं सांसे रोके हुए थी सामने के दृश्य को देखकर. निखिल ने धीरे से अपना लंड अपनी नानी की बहती चूत से निकला.
“मुझे तेरा रस पीना है, इधर आ.” निखिल ने अपना लंड नानी के मुंह में डाल दिया जिसे बहुत प्यार से शीला ने चाट चाट कर साफ किया. “तू अच्छा है, तेरे नाना ने तो मुझे अपना पानी पिलाने से मना कर दिया.”
“मैं किसी और के लिए बचाकर रखा हूँ.” समर्थ ने कहा.
ये सुनकर सुप्रिया और नितिन ने सुरेखा को छोड़ दिया.
“तुम्हें आज बहुत धक्का लगा है, है न?” समर्थ ने सुरेखा से पूछा.
सुरेखा ने हामी भरी.
“इधर आओ, मेरे पास, हमें बाप बेटी के बीच कुछ बात करनी है.”
सुरेखा हलके क़दमों से अपने पिता के तने हुए लंड पर नज़र गढ़ाए हुए, समर्थ के पास बैठ गई.
“तुम जानती ही हो कि हम ऐसा कुछ नहीं करेंगे जिससे तुम्हें आपत्ति हो. तुम ये भी जानती हो कि मैंने दो साल पहले पूरे घर को उच्च स्तर के CCTV से सुरक्षित किया था.” समर्थ ने सुरेखा की चिकनी जांघ पर हाथ फिरते हुए कहा.
“जब तुम आयीं तब मैंने और नितिन ने तुम्हें CCTV पर देख लिया था। ” सुप्रिया ने बीच में बताया. “मुझे TV पर दूसरों की चुदाई देखकर चुदने में बहुत मजा आता है.”
समर्थ ने उसकी बात काटते हुए सुरेखा कहा, “पिछली बार जब तुम आयीं थीं तब हमने देखा था तुम्हे नागेश से चुदवाने की असफल कोशिश करते हुए.” कहते हुए समर्थ ने सुरेखा का हाथ अपने लंड पर रख दिया. सुरेखा सिहर उठी. वो अचेतन मन से हलके हलके उसे मुठियाने लगी.
“आपने हमें देखा था?”
“हाँ, बिलकुल.” शीला ने निखिल के लंड को मुठियाते हुए कहा. “और हमें बहुत दुःख भी हुआ था ये देखकर कि उसने तुम्हें एक प्रकार से झिड़क दिया था. पर अब तुम सही जगह आयी हो. यहाँ हमेशा खड़े हुए हलब्बी लौंड़ों से तुम्हे दोबारा कभी सेक्स से वंचित नहीं रहना होगा.” निखिल के लंड को अपने मुंह में लेते हुए उसकी माँ बोली.
फिर समर्थ और निखिल के लंडों को अपने हाथ में लेकर बोली, “जो तुम्हारी प्यास मिटा सकें वो सब यहाँ है. बस आँखों से पट्टी हटा कर देखो. और ये सब अपने ही हैं. कहीं बाहर जाने की आवश्यकता ही नहीं है.” फिर हँसते हुए बोली, “हालाँकि उसमें भी कोई बुराई नहीं है.”
“मैं समझ नहीं पा रही हूँ. ऐसा कैसे कर सकती हूँ? सुप्रिया तुम अपने ही बेटों से चुदवाती हो? क्या ये पाप नहीं है?”
“सम्भव है. पर मैं पाप और पुण्य की परिभाषा में नहीं पढ़ना चाहती. अपनी सोच बदल.” सुप्रिया ने डाँटते हुए कहा, “देख मेरे बेटों के लंड! मैं एक सदा चुदासी स्त्री हूँ, और मैं ढोंगी नहीं हूँ. मुझे जब लंड चाहिए तब मिलते हैं. ये तीनों मेरी चूत में उतने ही अच्छे से फिट बैठते हैं जैसे कोई और. असली पाप तो ये होगा कि ऐसे घोड़ों के साथ रहना और इनसे बिना चुदे जीवन बिताना. और क्योंकि ये मेरी ही संतान हैं, या मैं पापा की, इससे पूरे व्यभिचार का आनंद कई गुना बढ़ जाता है.” ये कहकर सुप्रिया झुकी और सुरेखा की चूत को ऊपर से नीचे तक चाट लिया. फिर उसने सुरेखा का भग्नासा अपने होठों में लेकर दबा दिया.
सुरेखा बेबस हो गई और ऐसा लगे जैसे वो झड़ने वाली ही है. वो अब झड़ना चाहती थी, कई दिनों की प्यासी जो थी.
“देखो पापा, कैसे लुपलुपा रही है इसकी चूत, कितनी गीली हो गई है, देखो छूकर।” सुप्रिया ने समर्थ का हाथ पकड़कर सुरेखा की चूत पर रख दिया. समर्थ ने उसे थोड़ा सहलाया और अपनी एक उंगली अंदर डाल दी.
“ओह हाँ, ओह” सुरेखा सिसक उठी, “मेरा मतलब, नहीं नहीं.”
पर अब देर हो चुकी थी. उसका शरीर उससे छल कर रहा था. उसने फिर अपने पिता के लंड की ओर हाथ बढ़ाया, पर वापिस खींच लिया. वो अपनी अनियंत्रित होती वासना पर कुछ अंकुश लगाना चाहती थी. सम्भव था कि वो स्वयं को इस भंवर में जाने से रोक सके.
“ह्म्म्मम्म, लगभग तैयार हो, है न? चलो तुम्हें सहमत करने के लिए एक और प्रलोभन देती हूँ.” सुप्रिया ने नितिन को इशारा किया. नितिन अपने खड़े लंड को लेकर सुरेखा के चेहरे के पास खड़ा हो गया.
“मौसी, लगता है काफी दिन हो गए तुम्हें लंड चूसे हुए.” उसने छेड़ते हुए बोला और अपना लंड सुरेखा के होठों से सटा दिया और रुक गया.
सुरेखा ने जीभ से टोपा चाटा और स्वाद और सुगंध से उत्तेजित हो गई. उसके मुंह में पानी आ गया.
“मेरे अण्डों से खेलो मौसी, मैं न तुम्हारा पिता हूँ न बेटा। इसे गलत मत समझो.” नितिन ने चाल चली.
सुरेखा की आँखों में एक नयी चमक आई जैसे कि उसे नया उद्बोध हुआ हो. उसने मुंह खोला और नितिन का लंड निगल लिया. उसने नितिन को अपनी ओर खींचा. नितिन उसके रेशमी बालों को सहलाते हुए धीरे धीरे अपना लंड उसको खिलाने लगा. लंड चूसने में उसे अत्यधिक आनंद आता था परन्तु उसके पति ने उसे वर्षों से लंड चूसने का अवसर ही नहीं दिया था. और उसका लंड भी इस स्तर का नहीं था. उसने शर्म ताक में रखकर नितिन के लंड को संभव स्तर तक मुंह में ले लिया.
“ये हुई न बात!” उसके पिता ने उसका उत्साहवर्धन किया. “अब नितिन को अपने मुंह से चोदो। ”
उसे अपने पीछे “स्लर्प स्लर्प” की ध्वनि आ रही थी और निखिल की आहें भी सुनाई दे रही थीं. उसकी माँ वाकई बहुत ऊँचे स्तर की चुड़क्कड़ है, ये सोचते हुए उसने नितिन के भारी लंड पर अपना आक्रमण तीव्र कर दिया. आज वो अपनी कई दिनों की प्यास बुझाने वाली थी. नितिन ने भी हलके हलके अपने लंड का दबाव बढ़ाया, फिर हलके से सिर पकड़कर थोड़ा तेजी से मुंह चोदने लगा.
अचानक नितिन ने अपना लंड एक ही झटके से निकला और छिटककर दूर चला गया. उसने अपनी माँ के कन्धों पर हाथ रखा और उसे भी हटा दिया.
सुरेखा निराशा से चिल्ला पड़ी, “नहीं नितिन, यहाँ आओ, मुझे इतने दिन हो गए, मुझे लंड पीना है.”
“सॉरी मौसी” नितिन ने हलके मन से कहा, “मुझे लगता है कि ये नाना का अधिकार है. अच्छा नहीं लगेगा अगर मैं सबसे पहले आपको पानी पिलाऊँ.” कहते हुए उसने अपनी माँ सुप्रिया के होंठ चूमे और मम्मे मसल दिए.
“चलो मम्मी, हमारा खेल बीच में रुक गया था. अब उसे आगे ले चलते हैं. यहाँ स्थान नहीं है इसीलिए नीचे लेटो और मुझे चोदने दो.”
“देखा सुरेखा, मेरा राजा बेटा अपनी माँ का कितना ध्यान रखता है.” वो नीचे कालीन पर लेटकर अपने पैर फैलाती हुई चिहुंक पड़ी. “मेरी चूत लबलबा रही है कर मेरी सवारी मेरे घोड़े. तेज और कठोर सवारी.”
“जैसी आज्ञा, मॉम.” नितिन ने कहा.
सुरेखा अब बेचैन हो रही थी चुदने के लिए. उसने ललचाई आँखों से नितिन को अपने घुटनों के बल बैठकर सुप्रिया की चूत पर लंड रखते देखा. और तब नितिन ने एक ही झटके में अपना खूंटा सुप्रिया के पनियाई हुई चूत में पेल दिया.
“आईईई!” सुप्रिया चीख पड़ी, और अपने कूल्हे मटका कर नितिन को प्रोत्साहित करने लगी. “मार डाल मुझे चोद चोद कर, और जोर से दबा दबा के चोद. अपनी मम्मी को चोद मेरे बेटे. मेरी प्यास बुझा दे रे, चीर दे इसे.”
सुरेखा के पिता समर्थ ने सुरेखा की चूत की पंखुड़ियों को सहलाते हुए दो उंगलियां अंदर डाल दीं और अंदर बाहर करने लगे. अब सुरेखा की मोटर ऑन हो चुकी थी, उसके शरीर ने उसके मन में चल रहे नैतिक विचारों को पीछे धकेल दिया था. अब उसे उँगलियों नहीं, बल्कि किसी और हथियार की आवश्यकता थी.
उसने अपने पिता की ओर मुंह करते हुए बोलै, “पापा, प्लीज़। आप मुझे चोदोगे? प्लीज, पापा. चोद दो मुझे.”
“क्या सच में?” समर्थ ने उसे छेड़ा, “क्या तुम्हें ये पाप नहीं लगता?” कहते हुए दो उँगलियों से भगनासे को मसल दिया.
“मुझे कोई अंतर नहीं पड़ता. मुझे अपनी आत्मा को तृप्त करना है. मेरी चूत अब और सहन नहीं कर सकती. मुझे आपका लंड चाहिए पापा! प्लीज मुझे मत तरसाओ!” सुरेखा ने विनती की.
समर्थ ने अपनी बेटी की याचना सुनी और उसे हलके से बिस्तर पर लिटा दिया. अपने लंड को सुरेखा की चूत पर रखा ही था कि सुरेखा कमर उचकाने लगी. समर्थ ने उसके पेट पर हाथ रखा और उसे संयत लिया. फिर धीरे धीरे अपने लंड को अंदर उतारने लगा.
“पापा, डाल दो अंदर” सुप्रिया ने नितिन के नीचे धक्के खाते हुए कहा. फिर उसने घोड़ी का आसन लिया और नितिन को पीछे से चोदने को कहा. “ऐसे अच्छे से दिखाई देगा. मौसी भी नाना के लंड की दीवानी होने वाली है.”
ये यही सत्य भी था. सुरेखा अपने पांव इधर उधर फेंक रही थी. समर्थ ने बहुत संयम के साथ अपना पूरा लंड अंततः अंदर घुसा ही दिया. सुरेखा को अपनी चूत इससे अधिक भरी हुई कभी अनुभव नहीं हुई थी. उसने ये भी समझ लिया कि अब वो कभी भी अपने पिता को चोदने से मना नहीं कर पायेगी. इतना पूरी रूप उसकी पूरी गहराई तक छूने वाले लंड को छोड़ना असंभव था. उसे अपनी माँ और बहन का इन तीनों से अथाह प्रेम का कारण समझ में आ गया. समर्थ ने हलके हलके धक्के लगाने शुरू किये. उसे नागेश के लंड आकार पता था, और उसकी बेटी कई दिनों से चुदी भी नहीं थी. सुरेखा ने नीचे देखा और अचरज किया कि वो कैसे ऐसे मूसल को ले पाई. फिर चिंता छोड़ आंखे बंद कर सुख के सागर में गोते लगाने लगी.
“नानी देखो!” निखिल ने शीला का ध्यान आकर्षित किया. “नाना मौसी को चोद रहे है! और मैं झड़ने वाला हूँ!”
शीला ने सुरेखा से ऑंखें मिलायीं और एक संतुष्ट मुस्कान के साथ निखिल के रस का पान करने लगी.
“उह्ह्ह! हाय पापा, पहले क्यों नहीं क्या मुझे आप सबने अपने खेल में सम्मिलित?” सुरेखा ने अपने कूल्हों को ऊपर नीचे करते हुए पूछा. “मेरे अंदर ही झड़ना पापा. मुझे आपका पूरा पानी अंदर लेना है.”
समर्थ इस बार अधिक समय तक नहीं रुक सकता था. वो पिछले दो घंटों से चुदाई कर रहा था और अब तो उसने अपनी छोटी बेटी को पहली बार चोदा था. समर्थ ने अपनी गति और तेज कर दी. वो सुरेखा की चूत से बहते हुए पानी में अपना चप्पू चलाये जा रहा था. सुरेखा झड़ती जा रही थी और समर्थ इस आयु में भी पूरी शक्ति के साथ उसे चोदे जा रहा था.
“सुरेखा, मैं झड़ने वाला हूँ. देख शीला, मैं अपनी बेटी की चूत में झड़ रहा हूँ.”
“देख रही हूँ. भर दे उसकी चूत. मिटा दे अपनी बेटी की प्यास.”
“बेटा क्यों न तुम भी नाना के साथ ही झड़कर हम दोनों बहनों को एक साथ तर कर दो.” सुप्रिया ने नितिन से कहा.
नितिन ने बिना कुछ बोले अपने धक्को को अति तीव्र कर दिया. सुरेखा ने अपने पिता का बीज अपनी चूत को सींचते हुए महसूस किया. वो इस पूरे समय में तीन बार झड़ चुकी थी. उधर सुरेखा ने नितिन को भी सुप्रिया के अंदर झड़ते हुए देखा. उसने अपनी चूत पर हाथ रखा और उसे छूते ही एक बार और उसका पानी छूट गया. वो निढाल हो कर पड़ गई. समर्थ उसके ऊपर से हलके से हटा और लेट गया. सुरेखा ने सोचा न था कि उसे एक ही दिन में इतने चौंकाने वाले वृत्तांत देखने और खेलने के लिए मिलेंगे. वो स्वप्निल आँखों से एक मुस्कान लेकर अपनी सांसे संभाल रही थी.
उसकी आँखें बंद थीं और उसे ऐसा आभास हुआ जैसे कोई उसकी टाँगों को फैला रहा है. फिर अपनी चूत पर किसी की जीभ का अनुभव हुआ. इस बार उसने आँखें खोलीं. उसके पिता उसके साथ लेटे हुए उसे प्रेम से निहार रहे थे. और नीचे देखने पर उसे अपनी माँ का सिर दिखाई पड़ा.
“तेरी माँ ऐसे नहीं छोड़ने वाली. मेरा रस उसके मुंह में जाना था जब तुम आयी थी. तो वहीँ जा रहा है, बस उसका श्रोत इस बार तुम्हारी चूत के द्वारा है.” उसके पिता ने उसे समझाया.
सुरेखा के लिए ये एक नया अनुभव था. उसकी माँ उसकी चूत को मानो खोल कर उसमें से अपनी जीभ के माध्यम से पूरा रस पीने की इच्छुक थी. किसी स्त्री के द्वारा ऐसा कृत्य उसके साथ पहली बार हो रहा था. और इसका आनंद भी अत्यंत सुखद था. उसने आँखें फिर बंद कर ली.
कुछ ही पलों की देरी के बाद उसके दूसरी ओर का बिस्तर दबा और उसे अपनी बहन सुप्रिया की सुगंध आई. आँखों को खोलने पर उसने भी सुप्रिया को प्रेम से देखते हुए पाया.
“तुम बहुत सुंदर हो.” ये कहते हुए सुप्रिया ने उसके होंठों से फिर होंठ जोड़ लिए और दोनों बहनें चुंबन में लीन हो गयीं.
सुरेखा भाव विभोर थी, उसकी बहन उसे चूम रही थी और उसकी माँ उसकी चूत चाट रही थी.
“बहुत मीठी है मेरी बेटी, और आपके रस से मिलकर तो इसका स्वाद ही विलक्षण है.” शीला ने अपना कार्य समाप्त करने के बाद बोला।
“मॉम. मेरे लिए कुछ बचा या नहीं?” सुप्रिया ने प्रश्न किया.
“नहीं! परन्तु अब कोई बाधा नहीं है. जब चाहे पी लेना. अब तो ये भी हममें जुड़ गयी है.” शीला ने उत्तर दिया.
“मम्मम।” सुरेखा ने अपनी सहमति दर्शाई.
“मुझे आशा है कि ये सब वीडियो में ठीक से रिकॉर्ड हो गया होगा.” उसने अपने पिता की आवाज़ सुनी.
ये सुनकर उसकी आँखें खुल गयीं और उसे अपने सामने उसकी माँ का हँसता हुआ चेहरा दिखा।
“रिकॉर्ड?
“और क्या, तुम्हारी पहली चुदाई की स्मृति तो रखनी है होगी न?” उसकी माँ ने उसे समझाया और फिर उठकर अपने पति के पास जाकर खड़ी हो गईं।
सुरेखा ने अपने परिवार को देखा तो उसका मन उदास न रहा. यहाँ आने से पहले उसे उसके जीवन में जो भी कमियाँ दिख रही थीं, वो मानो दूर हो चुकी थीं. वो अपने घर लौट आई थी. इस आभास के साथ उसने अपनी आँखों को फिर से बंद किया और शांति से सो गई.