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कैसे कैसे परिवार - Erotic Family Sex Story

कैसे कैसे परिवार – Update 28 | Erotic Incest Family Story

अध्याय २८: दूसरा घर – सुनीति और आशीष राणा ४

 

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सुनीति का घर :

जीवन अपने कमरे में गया और फोन लगाया, “हैलो, गिरिधारी लाल जी? मैं आशीष का पिता जीवन बात कर रहा हूँ. नमस्कार.”

जीवन ने गिरिधारी लाल जी से कुछ दस मिनट बात की और इतने में ही वे उन्हें गिरि के नाम से सम्बोधित करने लगे. दोनों नए मित्रों में कुछ बात हुई और जीवन ने उनसे कहा कि वे शाम को मिलने आएंगे और आगे का कार्यक्रम तभी तय करते हुए अन्य परिवारजनों को भी बता देंगे. फिर उन्होंने एक और फोन मिलाया और वहां भी कोई दस मिनट बात की.

नीचे लौटे तो देखा कि सलोनी काम कर रही थी और भाग्या उसका हाथ बँटा रही थी. भाग्या का पेट अब निकलने लगा था और उसे कुछ कठिनाई भी अनुभव होने लगी थी. इसीलिए सलोनी उसे अब अधिक कुछ भी करने नहीं देती थी. सुनीति ने भाग्या की सास से बात की थी और उन्हें समझाया था कि प्रसव तक वो भाग्या को उसकी माँ के ही साथ रहने दे जैसा कि अधिकतर परिवारों में परम्परा है. उसे ये भी बताया कि सूरज और वो जब भी चाहे दोनों यहाँ रह सकते हैं और उसका यथोचित सत्कार और ध्यान रखा जायेगा. अब भाग्या आनंद से अपने माँ बाप के साथ रह रही थी.

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मधु जी का घर:

शाम जीवन मधु जी के घर के लिए निकले और साढ़े पांच बजे पहुंचे. इस समय गिरि अकेले थे पर छह बजते बजते लोकेश और चारु के सिवाय सब आ चुके थे. मान्या ने चाय पिलाई और फिर उन दोनों को बैठक में बैठा कर सब अपने काम में व्यस्त हो गए. जीवन ने अपना कार्यक्रम गिरि को बताया और गिरि उस पर सहर्ष ही तैयार हो गए. उन्होंने फिर मधु जी को बुलाया और बताया।

मधुजी, “तो आप इन्हें अपने साथ अपने पैतृक गांव ले जाना चाहते हैं?”

जीवन: “जी हाँ. मुझे जाना ही है, तो मैंने सोचा कि इनका साथ होगा तो दोनों का मन लगा रहेगा.” जीवन ने कुछ झूठ बोलते हुए कहा. वो अभी तो लौट कर ही आया था, पर उसे इसमें कोई संकोच नहीं हुआ.

मधुजी: “आप कितने दिनों के लिए जा रहे हैं? कब लौटेंगे?”

जीवन: “पांच छह दिन के लिए. सम्भव है कि लौटते हुए सुनीति के माता पिता भी साथ ही आ जाएँ. चिंता न करें, चालक हमारे विश्वास का है, और गाड़ी भी हम दूसरी लेकर जायेंगे जो इस यात्रा के लिए अनुकूल रहेगी. पर इसके सिवाय भी मैं आपसे कुछ कहना चाहता हूँ.”

मधुजी: “अवश्य. आप तो हमारे समुदाय के सदस्य हैं तो मुझे आप पर विश्वास है.”

जीवन: “मैं चाहता था कि अगर आप अनुमति दें तो लौटने के पश्चात् मैं गिरिधारी जी को एक और सप्ताह के लिए हमारे ही साथ रहने के लिए निवेदन कर रहा था. क्या हैं कि हम कुछ इस आयु के मित्रों का एक क्लब बनाये हैं, जिसमे आने से इनका भी कुछ मन बहलेगा और स्वास्थ्य लाभ भी होगा. मुझे विश्वास है की इनकी पताका पहले जैसे ही फिर से फहराने लगेगी.” जीवन ने द्विअर्थी संवाद से मधुजी को सत्य से पहचान करा दी. मधुजी इस कारण के विरुद्ध कुछ भी न कह पायीं.

मधु जी: “अगर इन्हें कोई समस्या नहीं है तो मुझे भी कोई आपत्ति नहीं. और इस कारण हमें भी आपके घर आने का अतिरिक्त कारण मिलेगा.”

गिरि इस बात को सुनकर बहुत प्रसन्न हो गए.

मधुजी: “आप लोग कब निकलना चाहेंगे?”

जीवन: “कल सुबह, ५ बजे.”

मधुजी: “ठीक है, मैं इनके एक सप्ताह के लिए बैग लगा देती हूँ. कुणाल से इनकी दवाइयां भी मंगवा देती हूँ. लौटने पर मैं इन्हें एक और सप्ताह के कपड़े आप के घर पर देने आ जाऊँगी.”

इस के बाद जीवन अपने घर के लिए निकल गए.

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सुनीति का घर:

घर पर उन्होंने मिशन की सफलता की घोषणा की और बताया कि कल सुबह पाँच बजे निकलेंगे. आशीष ने अपने ड्राइवर करतार सिंह से कहा कि कल उन्हें जाना है और वो गाड़ी में डीज़ल और आयल इत्यादि जाँच ले. करतार गाड़ी ले कर निकल गया. शाम को सबने आगे आने वाले समय के बारे में बात की. सुनीति ने अपनी माँ से बात की और उन्हें इस बार साथ ही आने की विनती की. गीता ने भी इस बार साथ आने के लिए अपनी सहमति दी. सब लोग एक प्रसन्नता के साथ सोने चले गए.

अगले दिन सुबह जीवन घर से रास्ते के लिए नाश्ता एवं खाना बंधवाकर कुछ हल्का सा खाने के बाद पाँच बजे निकले और गिरि को साथ लिया. मधुजी ने गिरि और जीवन दोनों को गले लगाकर सावधानी रखने के लिए कहते हुए यात्रा की शुभकामना दी. उन्होंने ने भी खाने का बहुत सारा सामान दिया। इसके बाद वो यात्रा पर निकल पड़े.

हँसते, बोलते, खाते, पीते जब वे जीवन के गाँव से पहले पड़ने वाले एक शहर पहुंचे तो करतार ने गाड़ी उनकी पहचान की शराब की दुकान पर रोक दी. जीवन ने करतार को पैसे दिए और कुछ ही देर में करतार ने एक महंगी शराब की दो पेटियां गाड़ी में रख लीं.

“इतनी?” गिरि ने आश्चर्य किया.

“मैं जब पाँच दिन के लिए जाता हूँ तो एक पेटी लेकर जाता हूँ. ये केवल पीने के लिए नहीं बल्कि देने के लिए भी हैं. और इस बार आप भी साथ हो, तो कुछ अतिरिक्त तो लेना बनता ही है.” जीवन ने बताया.

करतार फिर गाड़ी दौड़ने लगा और लगभग तीन बजे वे बलवंत के घर पहुंच गए. बलवंत और गीता ने अत्यंत प्रसन्नता से उन दोनों का स्वागत किया और सभी एक दूसरे के गले मिले. गीता जिस प्रकार से जीवन से मिली उसे देखकर गिरि के मन में ईर्ष्या हुई, पर जब गीता ने वही आलिंगन उन्हें दिया तो उनकी शिकायत दूर हो गई. उन्हें न जाने क्यों ऐसा लगा कि गीता ने हटने के पहले उनके लंड को सहलाया हो. पर उन्होंने इसे निरी कल्पना मानकर भुला दिया. सब घर के अंदर गए. और उन दोनों की आवभगत आरम्भ हो गयी. उनके आने के कुछ ही देर में उनके अन्य तीन मित्रों की पत्नियां भी आ गयीं और चारों मिलकर बतियाते हुए खाने का प्रबंध करने में व्यस्त हो गयीं.

जीवन और गिरि कुछ देर सोने के लिए अपने लिए निर्धारित कमरे में चले गए और पाँच बजे उठकर तैयार होकर बाहर आ गए. अब तक उन सबके बैठने का घर के अंदर के ही आंगन में प्रबंध हो चुका था. पुराने घरों में जैसा होता था, एक ओर प्रवेश था, फिर बड़ा सा आंगन। एक ओर रसोई और अन्न घर इत्यादि. और दो ओर कमरे थे. दो तले के घर में ऊपर तीन कमरे थे तो नीचे एक बैठक और एक कमरा. पिछली बार नीचे के कमरे में चले सम्भोग की याद करके जीवन का लंड अकड़ने लगा. पर उन्हें उनके यहाँ आने का मुख्य प्रयोजन याद आया और उन्होंने गिरि की ओर देखा जो घर का निरीक्षण कर रहे थे.

“मेरा बचपन भी इसी प्रकार के घर में पल बढ़ के निकला था. न जाने समय कहाँ चला गया.”

जीवन ने उनकी बात समझ कर कहा, “मैं इसीलिए आपको यहाँ लाया हूँ. आपको अपने बचपन और जवानी में लौटने के लिए. अब बस हमारे खेल में साथ रहिये, आप मस्त हो जायेंगे. आपको कोई दवाई तो नहीं लेनी.”

“मैं कोई दवाई लाया ही नहीं. मुझे ऐसी कोई बीमारी नहीं जिसके लिए मुझे कोई दवाई नित प्रतिदिन लेनी पड़े. मैं उन सबको वहीँ छोड़ आया हूँ. नाम हैं मेरे पास, अगर अत्यधिक आवश्यकता हुई, तो यहाँ से ले लेंगे.”

जीवन: “ये हुई न बात. थोड़ी देर में मेरे बचपन के साथी भी आने वाले हैं. आप उन्हें बिलकुल अपना भी मित्र समझें, अगर कोई बात बुरी लगे तो मुझे संकेत कर दें, मैं संभाल लूंगा. पर अब आप पूरा खुल के एन्जॉय कीजिये. समझिये कि आप २० – २२ साल के हैं.”

गिरि के मुंह से निकली उन्मुक्त हंसी ने जीवन का मन जीत लिया और उसे विश्वास हो गया कि आशीष और उसकी योजना सफल होगी.

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कुछ ही देर में जीवन के अन्य मित्र भी आ गए और सभी लोग एक दूसरे के गले लगकर मिले.

“क्यों बेटीचोद जीवन, इस बार बड़ी जल्दी लौट आया. लगता है गीता भाभी की याद खींच लायी तुझे.” कँवल ने कहा.

जीवन हंस के बोला, “बेटी होती तो तेरी बात सही बैठती. सच बोलूं तो तेरी बीवी की याद ले आयी, पिछली बार बच जो गयी थी मुझसे.”

इतने में कँवल की पत्नी बबिता पकोड़े लेकर आयी. “मैं तो बड़ी आस से आपकी राह देख रही थी, पर आप न जाने किसकी याद में खोये थे जो मेरे पास फटके भी नहीं.”

“तो आज की रात आ जाऊँगा, तेरे पति से तो तेरी चुदाई होती नहीं है ठीक से.”

“अरे नहीं भाईसाहब, आज भी हर रात मेरी हड्डियां चटखा देते हैं. पर क्या है न कि आपके दोनों के साथ कुछ अलग ही आनंद है.”

गिरि समझ गए कि ये सब भी सामूहिक चुदाई के पक्षधर हैं. पर इतना खुलेपन की उन्होंने गांव में अपेक्षा नहीं की थी. उनके अन्य मित्र सुशील ने तब तक एक बोतल में से सबके लिए पेग बनाये और एक बोतल पत्नियों को दे दी. उसे लेकर बबिता चली गयी. सबने चियर्स करते हुए अपने पेग से पीना शुरू किया.

“गिरि मेरे मित्र हैं. इन्हें कुछ स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याएँ हो गयीं थीं. तो मैंने सोचा कि सबसे अच्छे वैद्य तो मेरे ये मित्र ही हैं. तो इन्हें भी साथ ले आया. और ये भी जान लो, कि इन्होने भी अपने परिवार की हर महिला को चोदा हुआ है. न केवल उन्हें, बल्कि और न जाने कितनी महिलाओं की चुदाई की है. स्वास्थ्य के कारण कुछ कमी आ गयी है, तो मुझे आशा है कि तुम्हारी पत्नियां उस समस्या को दूर कर देंगी.”

गिरि को कुछ असहजता लगी कि उनके बारे में ऐसा बताया, पर फिर सोचा कि अगर उनकी सेक्स की इच्छा और शक्ति लौट आयी तो इसमें कोई भी आपत्ति नहीं होने चाहिए. इतने में महिलाएं, अपने ग्लास में पेग बनाकर कुछ मुर्गा और मीट के खाने का भी सामान ले आयीं और अपने अपने पति के साथ बैठ गयीं. गांव के बारे में बातें होने लगीं और गिरि को जैसे अपने जवानी के दिन याद आ गए.

दूसरा पेग जल्दी ही बना लिया गया.

दूसरे पेग का घूंट लेते हुए जीवन ने कहा, “अब गिरि अपने घरेलू चुदाई के बारे में बताएँगे.”

सब चुप हो गए.

गिरि: “मैं और मेरी पत्नी बचपन से ही साथ थे. हम पडोसी थे और कभी भी किसी के मन में ये विचार ही नहीं आया कि हमारा विवाह नहीं होगा. मैं मधु से दो वर्ष बड़ा था. जब मैं अठारह वर्ष का हुआ तो मधु की माँ ने मुझे एक दिन अपने घर पर बुलाया. तब तक मुझे सेक्स के विषय में अधिक ज्ञान नहीं था. हम सब जानते हैं कि उस समय इसके बारे में बात भी करना अनुचित समझा जाता था. मुझे मेरी माँ ने ही बताया की आंटी ने किसी कार्य के लिए मुझे बुलाया है. मुझे आज भी उनकी वो मुस्कराहट नहीं भूलती, जब वो मुझे ये बता रही थीं. तो मैं बिना किसी सोच के उनके घर चला गया.”

निर्मला (सुशील की पत्नी) बोल उठी: “तो भेड़ को शेरनी की मांद में भेज दिया.”

गिरि: “जी, कुछ ऐसा ही था. जब मैं वहां पहुंचा तो पूछा कि क्या काम था. तो आंटी जिन्हे मैं बाद में माँ ही बोलने लगा था, बोलीं कि काम है भी और नहीं भी. मुझे कुछ समझ नहीं आया. तब उन्होंने कहा कि क्या मैं मधु से विवाह करना चाहता हूँ? तो मैंने कहा कि इस प्रश्न का कोई औचित्य ही नहीं है क्योंकि ऐसा तो वर्षों से निर्धारित है.”

“उन्होंने पूछा कि क्या मैं विवाह के बाद मधु को संतुष्ट करने में सक्षम हूँ. मुझे अभी भी ज्ञात नहीं था कि हो क्या रहा था तो मैंने सहजता से कहा कि अवश्य. इस पर उन्होंने कहा कि मुझे इसका प्रमाण देना होगा. मैंने कहा कि कहिये क्या करना होगा? इस पर वो कुछ मुस्करायीं और कहा कि मैं अंदर कमरे में जा रही हूँ, और जब बुलाऊँ तब मैं भी पहुँच जाऊं. कोई दस मिनट बाद उन्होंने मुझे पुकारा तो मैं उनके कमरे में गया. तो देखा कि वे बिस्तर पर नंगी लेटी थीं. उन्होंने कहा कि सफल विवाह के लिए सेक्स में पारंगत होना आवश्यक है. और मैं देखना चाहती हूँ कि तुम इसमें किस स्तर पर हो.”

“इसके बाद उन्होंने मुझे लगभग हर दिन बुलाकर चुदाई के कई गुर सिखाये. जब उन्होंने मुझे उत्तीर्ण किया तो कहा कि कल तुझे अपनी माँ को ये सिद्ध करना हैं कि तू सच में विवाह के योग्य है. इस प्रकार मेरे चुदाई जीवन का आरम्भ हुआ. बाद में मुझे पता लगा कि इसी परीक्षा से मधु भी निकली थी और इसमें मेरे और उसके पिता का योगदान था. हमारे वैवाहिक जीवन में कभी कोई भी कठिनाई नहीं आयी. बच्चे आने के बाद भी कोई विशेष कमी नहीं हुई. जब मेरा पुत्र अठारह वर्ष का हुआ तब मेरी सास, जो तब जीवित थीं, ने उसे भी प्रवीण करने का बीड़ा उठाया, पर इस बार उन्होंने अपने साथ मधु और मेरी माँ को भी लिया. लोकेश ने अपनी शिक्षा उत्तम प्रकार से पूरी की और आठ वर्ष बाद उसका विवाह चारु से हुआ.”

“मेरी सास को कैसे ये पता था कि चारु के परिवार में भी हमारी शैली है, ये तो मुझे नहीं पता, पर विवाह के बाद चारु की चुदाई का अवसर मुझे सुहागरात के अगले दिन ही मिल गया. जीवन अनवरत चलता रहा. फिर मधु और चारु की माँ ने हमारे जैसे परिवारों का एक समुदाय बनाने का निर्णय लिया और बारह वर्ष पहले इसको नींव रखी गई. जीवन और उनका परिवार उस समुदाय के नवीनतम सदस्य हैं. ये भी बता दूँ की मेरी पोती की चूत और गांड दोनों की सील मैंने ही तोड़ी थी. और पिछले वर्ष मेरे कठिन समय में वह एक है जो सदैव मेरे साथ खड़ी रही है.”

उनकी संक्षिप्त कथा सुनते हुए दूसरा पेग भी समाप्त हो चूका था, महिलाएं भी अपने लिए नया पेग बना चुकी थीं. तीसरा पेग लगाया गया. पर इस बार सब खुल के बात कर रहे थे. जीवन की मंडली में तो ये सामान्य बात थी पर गिरि को इस परवाह में आने में समय लगा. पर अब वो अपने आपको मुक्त अनुभव कर रहे थे.

इसके पहले कि हम आगे बढ़ें, जीवन के मित्रों का परिचय हो जाये:

बलवंत और उसकी पत्नी गीता. ये सुनीति की माता पिता हैं.

कँवल और उसी पत्नी बबिता.

सुशील और उसकी पत्नी निर्मला.

जस्सी (जसवंत) और उसकी पत्नी पूनम.

ये सभी एक साथ पले बढे और बचपन के साथी हैं. जवानी में गाँव की न जाने कितनी विवाहित और कुंवारी औरतों ने इनके लौडों का आनंद लिया है. पर विवाह के बाद इन्होने केवल अपने ही मित्र मंडल में अपनी चुदाई को सीमित रखा था. लगभग यही कथा इनकी पत्नियों की भी थी. इनसे कम आयु की होने के कारण साथ तो नहीं पढ़ीं पर उसी स्कूल में रहीं. कभी कभार ऐसा हुआ कि अलग स्वाद लेने का अवसर मिला, परन्तु उनमे से कोई भी इस गांव का नहीं था. इस गाँव में इतने वर्ष बाद भी किसी को इनके अंदरूनी रहस्य की भनक भी नहीं थी. इसका कारण ये था कि वे कभी भी ऐसा विदित ही नहीं करते थे कि कुछ भिन्न है. एक दूसरे के घर जाना और वहीँ रुक जाना बचपन से चल रहा था तो किसी को इस बात पर कोई शंका नहीं थी. वैसे भी इनके घर इतने बड़े थे कि बाहर से अंदर की गतिविधियों के बारे में जानना असम्भव था.

तीसरे पेग की समाप्ति के बाद खाने का कार्यक्रम चला. भोजन इतना था कि सबने भरपेट खाया.

फिर बलवंत ने कहा, “यारों, आज अलग होने का मन नहीं कर रहा है. क्यों न अंदर ही बैठें और बातें करें. फिर यहीं सो जाना आज रात।”

ऐसे आवेदन को आज तक कभी भी नकारा नहीं गया था. इसका अर्थ भी सबको विदित था. तो दोनों बोतल, ग्लास इत्यादि के साथ सब पहले तल्ले पर बने हॉल में चले गए.

“लोग कहते हैं की खाने के बाद पीना नहीं चाहिए, पर हमें तो आज तक इससे कोई समस्या नहीं हुई.”

ये कहकर अगले पेग की बात चली तो इस बार पूनम ने आगे बढ़कर सबके लिए पेग बना दिए. बबिता और गीता ने खाने के लिए कुछ और चिकन और मीट के व्यंजन ले आये. बबिता ने जब प्लेट टेबल पर रखी तो जीवन ने उसे अपनी गोद में खींच लिया और उसके मम्मे दबाते हुए बोला, “आज तो आप मेरे साथ रहने वाली थीं न क्या हुआ?”

बबिता: “अगर मैं आपके साथ रहूंगी तो आपके नए मित्र का ध्यान कौन रखेगा?”

जीवन: “अरे भाभी, आज से पहले तो तुमने दो को एक साथ चोदने से कभी दूरी नहीं की, फिर आज क्या हुआ? बुढ़ापा आने लगा है तेरे ऊपर.”

बबिता: “अच्छा जी, मेरे बुढ़ापे में भी इतने इतना दम है, कि आप सबको एक साथ निपटा कर खेतों पर काम करने जा सकती हूँ.”

निर्मला ने इस बात पर ताली बजाकर कहा, “क्या बात कही बबिता. बुढऊ की बोलती बंद कर दी.”

जीवन: “हाथ कंगन को आरसी क्या. आज ही इसका भी निर्णय कर लेंगे कि बबिता खेतों में जाएगी या नहीं.”

निर्मला उठकर कँवल की गोद में जा बैठी और उसके गले में बाहें डालकर बोली, “भाई साहब, लगता है कि आपकी पत्नी आज जीवन भाई साहब और गिरि भाई साहब को निचोड़ने के लिए तत्पर है. तो आपको अगर अपने कसबल निकालने हैं तो मैं आपका साथ दे सकती हूँ.”

कँवल ने उसे चूमकर कहा, “है भाभी, आप न होती तो न जाने आज रात मेरा क्या होता?”

ये सुनकर सब हंस पड़े. गीता जाकर जस्सी की गोद में समा गयी और पूनम ने बलवंत की गोद में शरण ली. बबिता फिर जीवन की गोद से उठी और उसने गिरि की गोद में बैठकर उन्हें चूमना आरम्भ कर दिया.

“भाई साहब, हम सब हर चीज़ मिलकर कहते हैं. तो हम चारों आपसे भी चुदवाएंगी। अब जब तक आप हम चारों की चुदाई नहीं कर लेते गाँव से नहीं जा सकते.”

कमरे में वातावरण गर्माने लगा था. गिरि कुछ असहज हो रहे थे. उन्हें विश्वास नहीं था कि वे इनमे से किसी भी स्त्री को संतुष्ट कर पाएंगे.

बबिता ने अपने होंठ उनके कान के पास लाये और फुसफुसाकर बोली, “जीवन भाईसाहब ने हमें बताया आपके बारे में. उधर आप मेरे पति को देख रहे हैं न, वही जो निर्मला के थन निचोड़ रहा है. चार साल पहले जब हमारी फसल खराब हो गयी थी तो ये बहुत तनाव में थे. तीन चार महीने तक तो इनका लंड खड़ा ही नहीं होता था.”

गिरि ने कंवल कि ओर देखा तो उसने निर्मला की साड़ी और ब्लाउज़ निकाल दिए थे. ब्रा ये महिलाएं पहनती नहीं थीं और वो निर्मला के मम्मे मुंह में लेकर चूस रहा था.

बबिता ने अपनी बात आगे बताई, “एक बार मैंने चुदाई के प्रयास के बाद इन्हें बाथरूम में रोते हुए सुना. मेरा दिल टूट गया. फिर जब जीवन भाईसाहब आये तो मैंने सबको इनको समस्या बताई. भाईसाहब ने बैंक में जाकर इनका ऋण चुकता कर दिया। फिर रात में सबने इन्हे विश्वास दिलाया कि ये दिन भी निकल जायेंगे. फिर भाईसाहब इन्हें अपने साथ ले गए, जैसे आपको यहां लाये हैं. जब दस दिन बाद ये लौटे और बैंक गए तो पता चला कि ऋण समाप्त हो चुका था. ये बात हमें बाद में पता चली कि भाईसाहब ने न केवल ऋण चुकाया था, बल्कि इनके खाते में १ लाख भी जमा कर दिए थे. मेनेजर से पूछने पर उसने कहा कि एक लॉटरी में इनका नाम आया था तो ऋण भी चुक गया और पैसे भी बच गए. इन्हें इस बात पर विश्वास नहीं हुआ.”

“पर इसका ये प्रभाव हुआ कि जैसे इनमे नयी शक्ति आ गयी. और हम चारों औरतों ने मिलकर एक रात इनसे इतना चुदवाया कि उसके बाद से इन्हें कभी समस्या नहीं हुई.”

इसके बाद बबिता ने उनकी आँखों में ऑंखें डालीं, “आपको भी किसी बात से तनाव है. और ये आपको अंदर से ग्रस रहा है. जो कुछ भी है, अगर आप उसकी ओर ध्यान नहीं देकर उसकी उपेक्षा करेंगे तो ये समस्या नहीं रहेगी. आप जितना इस विषय में सोचेंगे, उतना ही डूबेंगे. अगर वो कोई मनुष्य है, तो आप सच मानें अगर वो आपको चाहता है तो इसीलिए नहीं कि आप चोदने में प्रवीण है, बल्कि अन्य हजारों कारणों से. क्या उसे कोई ऐसी बीमारी हो जाती जिसके कारण वो नहीं चुदवा पाती तो क्या आप उसे प्रेम नहीं करते?”

गिरि के मस्तिष्क को एक तीव्र झटका लगा. गांव की एक कम पढ़ी स्त्री ने उन्हें उनकी समस्या और उसका हल कुछ ही शब्दों में बता दिया था. मधु की ठीक से चुदाई न करने के कारण ही उन्हें कुंठा थी. पर क्या मधु उनसे प्यार नहीं करती? ये मानना असम्भव था. जो है, सो है. चुदाई कर पाऊँ तो ठीक नहीं तो माँ चुदाये संसार. इस विचार के मन में आते ही उन्हें अपने लंड में संवेदना अनुभव हुई जिससे वे बहुत दिनों से अनिभिज्ञ थे. बबिता उन्हें ध्यान से देख रही थी.

“आपको मेरी बात बुरी तो नहीं लगी न?”

उसे अपनी बाँहों में भरकर उसके होंठ चूमकर गिरि ने कहा, “नहीं, बल्कि तुमने मेरी समस्या को सुलझा दिया है.” और ये कहते हुए अन्य जोड़ों के समान उन्होंने भी बबिता के साड़ी ब्लाउज़ उतार फेंके.

गिरि ने अन्य सबकी ओर देखा तो पाया कि वे सभी उनकी ही ओर देख रहे थे. जीवन इस समय निर्मला के सामने खड़े थे और मुस्कुराते हुए गिरि को देख रहे थे. सबने उन्हें थम्ब्स अप का संकेत दिया. गिरि ने भी उनको उसी संकेत के साथ उत्तर दिया और अपने मुंह को बबिता के मम्मों के बीच डालकर उन्हें चूसने लगे. उनका लंड धीरे धीरे अपने आक्रोश में आ रहा था. उन्होंने देखा कि गीता और निर्मला ने अपनी साड़ी पूरी उतार दी और फिर पेटीकोट भी उतार फेंके. फिर निर्मला ने पूनम और बबिता को देखा.

“तुम किसकी प्रतीक्षा कर रही हो. सारे लौड़े तैयार हैं और तुम अभी भी आधे कपड़े डाले हुए हो.”

“हम तेरे जैसी बेशर्म नहीं हैं. पर अब कहती है तो ये लो.” बस आंख झपकते ही बबिता और पूनम भी नंगी खड़ी हो गयीं.

“गांव में तुम चारों जैसी कोई और नहीं है, न सुंदरता में न चुदाई में.” जस्सी ने कहा.

“कितनो को चोदा है तुमने.” उसकी पत्नी ने पूछा.

“जबसे शादी हुई है तब से चोदा तो नहीं, पर मुझे विश्वास अवश्य है कि तुम जितनी चुड़क्कड़ कोई और नहीं होगी गाँव में.”

अब तक गिरि के सिवाय अन्य सभी आदमी अपने ऊपर के कपड़े उतार चुके थे. गिरि ने उनके बलिष्ठ शरीर देखे तो उसे गाँव की मेहनत का लाभ समझ आया. बबिता ने उनकी ओर बढ़कर उनकी शर्ट उतार दी और खड़ा होने के लिए कहा. उनके साथ बाकी चार पुरुष भी खड़े हो गए. चारों पत्नियों ने सबके पाजामे उतारे और उसमे से सबके उफनते हुए लौड़े छिटक कर खड़े हो गए. केवल गिरि ने कच्छा पहना था जिसे अधिक देर तक शरीर पर ठहरने नहीं दिया गया. जैसे ही उनका लंड बाहर निकला तो चारों महिलाओं की आह निकल गयी.

जीवन ने भी जब गिरि के लंड को देखा तो बोल पड़े, “मैं समझ सकता हूँ कि ऐसे हथियार के होते हुए भी अगर आप चुदाई नहीं कर पते थे तो तनाव होना सुनिश्चित था. पर अब आप चिंता छोड़कर इन सुंदरियों का जी भर कर भोग करें इन छुट्टियों में. इनके जिस छेद में जब मन चाहे लंड पेल देना. यहाँ आपको हर प्रकार से सुख दिया जायेगा. मुझे नहीं लगता कि लौटने के बाद आपके लंड को चूतों की कमी पड़ेगी.”

गिरि आश्चर्य और कृतग्नता से उनकी ओर देख रहे थे, “आप सच में बहुत भले आदमी हैं. मुझे आज वो सारी संवेदना अनुभव हो रही हैं जो मुझे मेरी बीमारी के पहले होती थी. आपका ये परोपकार मैं जीवनपर्यन्त नहीं भूलूंगा.”

“इसकी कोई आवश्यकता नहीं है. अगर मित्र ही मित्र के काम न आये तो बेकार है. अब मजा करो और बिलकुल तनाव मत लो.”

बबिता ने झुककर घुटने टेके और उनके लंड को मुंह में ले लिया.

गिरि ने बबिता से पूछा, “भाईसाहब किसे चोदेगे?”

बबिता, “उनकी चिंता न करो, जिस छेद में मन करेगा वहां लौड़ा टिका देंगे. वैसे हम में से किसी एक की गांड की आज शामत आने वाली है.”

ये सुनकर गिरि के लंड ने झटका लिया.

“मुझे भी गांड मारने का बहुत शौक है.”

“वो भी मिलेगी, जिसकी चाहोगे. पर पहले मेरी चूत की आग बुझा दीजिये.” ये कहते हुए बबिता उनके लंड को अपने गले की गहराई तक ले जाकर चूसने लगी.

गिरि अपने लंड पर चल रहे उस आघात से ऑंखें बंद करने ही लगे थे कि उन्हें लगा कि आसपास की गतिविधि भी देख ली जाये. कंवल के लंड को निर्मला चूस रही थी और जस्सी के लंड को गीता. पूनम ने बलवंत के लंड को अपने मुंह में लिया हुआ था. जीवन एक ओर खड़े होकर अपना पेग लगा रहे थे. पर उन्होंने भी अपने कपड़े त्याग दिए थे और उनका लंड भी अपने पूरे यौवन पर था. गिरि ने ऑंखें बंद करके बबिता के लंड चूसने के आनंद में स्वयं को झोंक दिया. कुछ ही देर में बबिता ने उनके लंड को मुंह से निकाला।

“भाईसाहब, अब थोड़ा मेरी चूत को भी चाट दो.”

गिरि ने आव देखा न ताव और बबिता को एक ही झटके में नीचे किया और उसकी चूत में मुंह लगाकर ऐसे चाटने लगे जैसे कि रसमलाई खा रहे हों. बबिता भी उन्हें उत्साहित कर रही थी. अन्य जोड़े भी अब इसी प्रकार से चूत चाटने के कार्यक्रम में व्यस्त हो गए. गिरि ने ये आभास किया कि बबिता की आहें दब गयी हैं और उसने ऊपर देखा तो जीवन ने अपने लंड को बबिता के मुंह में डाल रखा था और इसी कारण बबिता कुछ कह नहीं पा रही थी. उन्होंने अपना ध्यान वापिस बबिता की बहती हुई चूत पर लगाया और उसे चाटते हुए जीभ से कुरेदने लगे. बबिता की सिसकियाँ सुनकर उन्हें ज्ञान हो गया कि जीवन अगले जोड़े को ओर जा चुके थे.

जब तक महिलाओं ने अपना पहला पानी अपने साथी के मुंह में छोड़ा तब तक जीवन अपने लंड को उन सबसे चुसवाने में सफल रहे थे. बबिता ने गिरि को बिस्तर पर लिटाया और उसके लंड को पकड़ते हुए अपनी चूत को उस पर रखा और एक ही बार में पूरे लंड को अंदर ले लिया. गिरि को ये आनंद बहुत समय के पश्चात मिला था. पहले उन्हें ये डर लगा कि कहीं वे जल्दी न झड़ जाएँ, फिर उन्होंने इस विचार को त्यागा और बबिता की चूत में अपनी ओर से भी धक्के लगाने लगे.

कमरे में अब यही दृश्य था, हर महिला अपने साथी के लंड पर चढ़कर चुदवा रही थी. आहों, सीत्कारों और कराहों से कमरा गूंज रहा था. गिरि को आभास हुआ कि बबिता कुछ अधिक ही आगे झुक गयी है. उसने अपनी आँखें खोलीं तो बबिता का चेहरा दिखा और उसके पीछे जीवन का. जीवन ने उन्हें आंख मारी और फिर उन्हें अपने लंड पर एक नए दबाव का आभास हुआ. जीवन अपने लंड को बबिता की गांड में डाल रहे थे. और फिर दोनों लौड़े एक दूसरे से एक पतली झिल्ली के माध्यम से पृथक थे पर एक दूसरे की उपस्थिति को अनुभव कर सकते थे.

“मेरे विचार से मधु को भी ऐसे ही चुदवाने में आनंद आता होगा. वापिस लौटने पर हम दोनों उसकी ऐसे ही चुदाई करेंगे. ठीक है न?” ये कहते हुए जीवन अपने पूरे लंड को बबिता की गांड में डालकर चलाने लगे.

“भाईसाहब, गांड तुम मादरचोद मेरी मार रहे हो और सपने इनकी पत्नी के देख रहे हो. क्या कमीने आदमी हो.”

“मैं तुझे बताता हूँ बबिता भाभी कि मैं कितना कमीना हूँ. गिरि भाई, थोड़ा तेज चलाओ अपने लंड को. मेरी भाभी को दिखाना है कमीनापन किसे कहते हैं.”

इतना कहना था कि जीवन बबिता की गांड में अपने मूसल को तेजी से अंदर बाहर करने लगे. अपने नए मित्र को निराश न करने की इच्छा से गिरि ने भी अपने पूरे सामर्थ्य से बबिता कि चूत की धज्जियाँ उड़ाने का प्रयास किया. बबिता की हृदय विदारक चीखें उसके आनंद की साक्षी थीं. अन्य स्त्रियां उसके इस आनंद से ईर्ष्या करने लगीं. उन्हें सबको जीवन से गांड मरवाने में जो सुख मिलता था वो अद्वितीय था. पर आज बबिता जीती थी. उन्हें विश्वास था कि आने वाले दिनों में उनकी गांड भी उस लंड की भेंट चढ़ेगी.

कोई दस मिनट की इस तीखी डबल चुदाई के बाद जब गिरि को लगने लगा कि वे झड़ने वाले हैं तो उन्हें अपने लंड पर दबाव कम होता हुआ अनुभव हुआ तो उन्होंने पाया कि जीवन ने अपने लंड को निकाल लिया है और वो अब पूनम की ओर जा रहे थे. उन्होंने अपने लंड से बबिता की चूत की चुदाई चालू रखी और देखा कि इस बार जीवन ने अपने लौड़े को पूनम की गांड में जड़ दिया। पूनम की चीख ने कमरे को फिर से हिला दिया, पर बलवंत और जीवन ने उसकी चुदाई में कोई कमी नहीं की. चारों मित्रों का ये सबसे प्रिय खेल और आसन था. न जाने कितनी बार इस कमरे में चुद रही स्त्रियों की ऐसी डबल चुदाई कर चुके थे. और जब जीवन की पत्नी जीवित थीं तो उन्हें भी इन दोनों से यूँ चुदवाने में बहुत आनंद आता था.

गिरि अब दोबारे झड़ने के निकट थे. और उन्होंने अपने माल को बबिता की चूत में भरने के बाद ही साँस ली. झड़ने के तुरंत ही बाद बबिता उनके लंड पर से उतरी और उनकें लंड को मुंह में लेकर रस को पीकर साफ कर दिया. इसके बाद ही गिरी को ये आभास हुआ कि लगभग एक वर्ष के बाद किसी चूत में स्खलित हुए हैं. उनकी पोती कई बार उन्हें चूसकर झडा दिया करती थी, पर चूत में जाकर इतनी देर तक चोदना उन्होंने एक समय से सम्पन्न नहीं किया था. इस विचार से उनकी आँखों से आंसू बहने लगे. पर चूँकि सब अपने खेल में व्यस्त थे तो किसी का ध्यान इस ओर नहीं गया. अपितु, बबिता ने ये देख लिया था पर चुप्पी साधे रखी. वो इस प्रकार की भावनाओं को समझते थी.

जब उसने चोरी से देखा कि गिरि सामान्य हो गए हैं तो वो उठी और गिरि के पास बैठ गयी.

“मैंने कहा था न, आपको कुछ नहीं हुआ है, आपके मन में एक मानसिक ग्रंथि थी जिसने आपको इस समस्या में डुबाये रखा. अब आप इसी प्रकार से खुश और आश्वस्त रहिये. आपके लिए यहां चार चूत और गांड हमेशा चुदवाने के लिए उपलब्ध हैं.”

गिरि ने खुश होकर बबिता को चूम लिया. जीवन अपने लंड को अब पूनम की गांड से निकाल रहे थे. पर आज के लिए अन्य जोड़े झड़ चुके थे और इसी कारण उन्होंने अपने लंड की मलाई को पूनम की ही गांड में छोड़ दिया था. सब संतुष्टि से एक दूसरे को देखते हुए हंस रहे थे. बलवंत ने उठकर सबके लिए फिर पेग बनाये और सब यूँ ही हँसते बोलते और चुहल करते हुए उन्होंने अपनी ड्रिंक समाप्त की और वहीँ सो गए.

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सुनीति का घर :

जब तक जीवन अपने गाँव पहुंचे, सुनीति के पास स्मिता (शेट्टी महक की माँ विला ८ वाली) का फोन आया. स्मिता ने कल उसे और असीम को और केवल उन दोनों को साढ़े दस बजे अपने घर पर चाय के लिए बुलाया था. उन्होंने ये भी बता दिया था कि असीम को उनके ही पास रुकना होगा. सुनीति ने स्वीकृति दी और असीम को बताया कि वो कल किसी और स्थान पर न जाये. असीम ने भी सहर्ष स्वीकार कर लिया.

अगले दिन, जीवन का गाँव:

सभी तड़के सुबह उठ गए और पुरुष अपने व्यायाम में व्यस्त हो गए और महिलाएं खाने और अन्य घरेलु कार्यों में. ये पहले ही निश्चित कर लिया था कि जीवन के इस पूरे समय सब एक ही घर में रहेंगे, चाहे जिसका भी हो. आज बलवंत के ही रुकना श्रेयस्कर था. सुबह के कार्य समाप्त करने के बाद सब बैठ कर सामान्य बातें करते रहे और अपने बच्चों के बारे में सूचना साझा की. सभी के बच्चे और नाती पोते अच्छे से अपना जीवन व्यतीत कर रहे थे. हालाँकि, सभी उतने सफल नहीं थे जितना कि आशीष, पर संतुष्ट थे और खुश थे.

जीवन ने ये सुझाया कि अगर हो सके तो सबको एक ही समय गाँव में बुलाया जाये. उनके बच्चों को एक दूसरे से मिले एक लम्बा समय निकल चुका था. और नाती पोते तो एक दूसरे को पहचानते भी नहीं थे ठीक से. सबने इस बात के लिए स्वीकृति दी और अपने बच्चों से बात करने का आश्वासन दिया. जीवन के लौटने के पहले समय निर्धारित करने का विश्वास दिलाया.

गिरि ने फोन पर मधु से बात की तो मधु ने पूछा कि वे अपनी दवाइयां क्यों नहीं ले गए. गिरि के पूछने पर कि उन्हें कैसे पता, मधु ने कहा कि वो कल उनके ही कमरे में सोई थी. और जब तक वे नहीं लौटते वहीँ रहेगी. गिरि को बबिता की बात सही सिद्ध होती लगी. पर उन्होंने मधु को ये नहीं बताया कि उन्होंने कल रात सफलता पूर्वक चुदाई की थी और आगे भी करने वाले हैं. हालाँकि इस बात से उनके संबंधों में कोई अंतर नहीं आता पर वे मधु को चकित करना चाहते थे.

अगले दिन, स्मिता का घर:

निर्धारित समय पर सुनीति और असीम आठ नंबर विला में स्मिता से मिलने के लिए पहुंचे. आज सुबह मधुजी का फोन आया था और उन्होंने इस मिलन का उद्देश्य समझाया था. उन्होंने दो लड़को के नाम स्मिता को दिए थे. जिसमे से एक से वो कल मिल चुकी थी और आज असीम से मिलना था. महक भी उस लड़के से मिली थी और असीम से भी मिलेगी. परन्तु मधु जी ने ये भी चेताया कि जिस भी लड़के को स्मिता और महक पसंद करेंगी, वो लड़का विवाह के पहले महक से किसी प्रकार का शारीरिक संबंध नहीं रख सकेगा. परिवार के अन्य लोगों के लिए बाध्यता नहीं थी.

स्मिता ने उनका स्वागत किया और फिर महक और असीम को दूसरे कमरे में भेज दिया बातचीत करने के लिए. ये बातचीत स्वाभाविक थी और इसमें चुदाई का लेशमात्र भी पुट नहीं था. दोनों एक दूसरे के बारे में जानने के लिए उत्सुक थे और एक दूसरे की रुचियों और अरुचियों को भी समझना चाहते थे. एक घंटे की गहन बातचीत से असीम को लगा कि महक उसके लिए एक उत्तम पत्नी सिद्ध हो सकती है. हालाँकि वो ये नहीं जानता था कि महक के भी उसके किये यही विचार थे. असीम को इसके बारे में समुदाय के माध्यम से ही पता लगना था.

जब दोनों बाहर आये तो स्मिता और सुनीति भी गहन वार्तालाप में लीन थीं. स्मिता ने महक की ओर देखा तो उसने बहुत हल्के से सर हिलाकर सकारात्मक उत्तर दिया. इसका अर्थ था कि अब असीम का चयन पूरे रूप से स्मिता के ही हाथ में था. कल वाले लड़के ने अपनी चुदाई से स्मिता को बहुत संतुष्ट किया था, परन्तु महक को वो लड़का अपने लिए उपयुक्त नहीं लगा था. अगर असीम भी चुदाई में पारंगत हुआ तो ये सम्बन्ध पक्का होने की संभावना बहुत अच्छी थी.

सुनीति ने उठकर दोनों को गले से लगाया और महक के माथे को चूमकर उसे आशीर्वाद दिया. इसके बाद महक अपने काम से निकल गयी. सुनीति ने भी स्मिता से प्रस्थान की अनुमति ली और फिर असीम को वहीँ छोड़कर अपने घर लौट गयी.

सुनीति का घर :

सुनीति घर पहुंची तो उसे ये देखकर आश्चर्य हुआ कि कुमार घर पर ही है.

“क्या हुआ, तुम गए नहीं?”

“माँ, मैंने सोचा कि जब आज सब लोग बाहर हैं, तो क्यों न हम मिलकर कुछ आनंद उठायें. आपका क्या विचार है?”

सुनीति ने कुछ नहीं कहा, और अपने कमरे की ओर बढ़ गयी. कुमार वहीं खिसियाया सा खड़ा रह गया.

कमरे में जाने से पहले सुनीति ने कुमार की ओर देखा और फिर मुस्कुराकर बोली, “वैसे आइडिया बुरा नहीं है.”

ये कहते हुए उसने अपनी गांड मटकायी और कमरे में घुस गयी. कुमार दौड़ता हुआ उसके पीछे गया और अंदर जाकर कमरा लॉक कर लिया. सुनीति को अपनी बाँहों में लेकर चुम्बनों की झड़ी लगा दी.

“बड़ा उतावला हो रहा है.” सुनीति बोली.

“चार दिन हो गए मॉम, उतावला तो होना ही है.”

“चल तू कपडे उतार मैं बाथरूम से अभी आयी.”

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स्मिता का घर:

स्मिता ने पैनी दृष्टि से असीम को देखा जो अभी भी खड़ा ही हुआ था.

“बैठो.”

असीम के बैठने के बाद स्मिता ने उससे कई प्रश्न किये जो किसी भी लड़की की माँ उस लड़के से करती है जिसके साथ उसके विवाह की संभावना हो. असीम के उत्तरों से वो संतुष्ट प्रतीत हो रही थी.

“क्या तुम जानते हो कि आज तुम्हारे यहाँ आने का क्या प्रयोजन है?”

“जी, मुझे अपनी संभावित पत्नी की माँ के मापदंड पर खरा उतरने का प्रयास करना है.”

“और ये मापदंड क्या हैं? तुम खुल के बात कर सकते हो, हम सब एक ऐसे समुदाय के सदस्य हैं जहां किसी भी प्रकार की भाषा अवैध नहीं है.”

असीम ने मुस्कुराकर कहा, “मुझे आपकी ऐसी चुदाई करनी है जससे आपको ये विश्वास हो जाये कि आपकी बेटी महक किसी भी प्रकार के सुख से वंचित नहीं रहेगी.”

स्मिता उसके इस उत्तर पर हंस पड़ी, “और तुम्हे लगता है कि तुम इसमें सक्षम हो?”

असीम: “मुझे विश्वास है कि आपको हर मापदंड पर मैं उच्च ही सिद्ध होकर दिखाऊंगा.”

स्मिता: “समुदाय में तुम्हारी आयु के कई लड़के हैं जिन्होंने मुझे चोदा है, पर उनमे से कम ही हैं जो मुझे पूर्ण रूप से तृप्त कर पाए.”

असीम: “जो कर पाए, आज उनमे आप मुझे भी जोड़ सकेंगी. पर क्या हम बातें ही चोदते रहेंगे या फिर कुछ असली में भी करना है.”

स्मिता खिलखिला पड़ी, “आई लाइक इट. आई लाइक इट ए लॉट. चलो मेरे बेडरूम में चलते हैं.”

स्मिता अपने कमरे की ओर चल पड़ी और असीम उसके पीछे हो लिया. स्मिता ने असीम के अंदर आने के बाद कमरा बंद किया.

स्मिता: “क्या पीना चाहोगे?”

असीम: “आपके होठों का रस और आपकी चूत का रस.”

स्मिता खिलखिला पड़ी, “आई लाइक इट. आई लाइक इट ए लॉट. तो फिर देर किस बात की है?”

असीम ने आगे बढ़कर स्मिता को बाँहों में लिए और अपने होंठ उसके होंठों से मिलकर उसका चुंबन लिया तो स्मिता का शरीर झन्ना गया. उसने सोचा कि अगर ये लड़का चुदाई भी वैसे करेगा जैसे चूम रहा है तो दामाद बनना तय ही है. असीम अपने शरीर को स्मिता के शरीर में मानो मिला देना चाहता हो. उसके हाथ पीछे पीठ पर गए और उसने सधे हाथों से स्मिता का ब्लाउज़ खोल दिया और उसे निकाल फेंका. उसने बिना चुंबन को तोड़े हुए ब्रा को भी अलग किया और अपने होंठ स्मिता के होंठों से हटाकर उसके मम्मों पर रख दिए. चुंबन इतना गहरा था की स्मिता अभी भी साँस संयत करने का प्रयास कर रही थी. एक मम्मे को मुंहे से चूसते हुए दूसरे पर असीम ने अपने हाथ जमाये और उन्हें मसलने लगा. स्मिता का शरीर इतनी जल्दी से इस आक्रमण के लिए तैयार नहीं था और उसके पैर कांपने लगे.

“मेरे विचार से हमें बिस्तर पर ही चलना चाहिए.” असीम ने कहा तो स्मिता शांति से बिस्तर पर जाकर बैठने ही वाली थी कि असीम ने उसे रोका।

“आप के कपड़े अनावश्यक ही बाधा उत्पन्न करेंगे, इन्हें निकाल ही दें तो ठीक होगा.”

और उसने स्मिता के उत्तर की प्रतीक्षा किये बिना ही उसके पेटीकोट का नाड़ा खोला और पेटीकोट सरकते हुए नीचे गिर गया. फिर उसने स्मिता के सामने घुटनों के बल बैठकर उसकी पैंटी भी निकाल दी. स्मिता कमरे में आने के कुछ ही मिनट में असीम के सामने नंगी खड़ी थी.

“तुम्हारे कपड़े ?”

“आपको नहीं लगता कि ये कार्य आपको करना चाहिए?” असीम ने छेड़ते हुए कहा.

स्मिता: “आई लाइक इट. आई लाइक इट ए लॉट.”

ये कहकर स्मिता अपने कार्य में जुट गयी और चंद ही सेकंड में असीम भी उसके सामने नंगा खड़ा था. उसका लंड अब तक तक आधा खड़ा हो चूका था और उसे देखकर स्मिता की चूत पनिया गयी. उसे विश्वास हो चला था कि आज उसकी भरपूर चुदाई होने वाली है.

स्मिता, “आई लाइक इट. आई लाइक इट ए लॉट.”

असीम: “लगता है ये आपका प्रिय वाक्य है. अब क्यों न आप लेट जातीं जिससे कि मैं आपकी इस चमचमाती चूत के रस से अपनी प्यास मिटा लूँ.”

स्मिता पैर फैलाकर बिस्तर पर लेट गयी और असीम ने अपना चेहरा उसकी चूत में डाल दिया.

असीम जब चूत चाटने लगा तो स्मिता की शरीर में कंपकपी दौड़ गयी. इस लड़के को पता है की चूत चाटने का गुर, लगता है सुनीति ने इसे अच्छी शिक्षा दी है. असीम की लपलपाती जीभ अब स्मिता की बहती चूत में नर्तन कर रही थी. स्मिता ने सोचा कि ये लड़का अभी दस मिनट पहले ही कमरे में आया है और आआआह मुझे एक बार झाड़ भी दिया. कल वाला लड़का चुदाई में तो निपुण था पर चूत चूसने में इतना गुणी नहीं था. असीम स्मिता की चूत में इतना खोया हुआ था कि उसे ये विदित नहीं हुआ कि स्मिता ने उसे मन में अपना दामाद मान लिया है, बस अगर वो उसे अच्छे से चोद पाए तो.

स्मिता जब दो बार झड़ गयी तो उसने असीम के लंड को चूसने की इच्छा की. असीम ने बेमन से अपना मुंह स्मिता की चूत से निकाला और अपने लंड को स्मिता के लिए प्रस्तुत कर दिया. स्मिता ने बैठते हुए उसे अपने मुंह में लिया और ऐसे चूसा कि असीम की नसें हिल गयीं. उसकी माँ इस कला की पारखी थी पर स्मिता के लंड चूसने की कला एकदम भिन्न थी. वो अपने गले से उसके लंड की मुठ मार रही थी जो असीम के जीवन का पहला अनुभव था. कुछ ही देर में उसका लंड अपने विकराल रूप में आ गया. और स्मिता ने उसे अपने मुंह से निकाला।

“मेरे विचार से अब इसकी असली परीक्षा मेरी चूत ही लेगी.” स्मिता बोली.

“क्यों क्या आपकी गांड इतने बड़े लंड को लेने की सक्षम नहीं है?”

स्मिता: “मेरे अर्थ ये नहीं था, अवश्य ही गांड में भी लूंगी , पर परीक्षा में उत्तीर्ण मेरी चूत ही करेगी.”

असीम: :जैसा आप उचित समझें।”

स्मिता ने अपने पैर दोबारा फैलाये और लेट गयी. असीम जानता था कि ये बहुत चुदी हुई है और इसीलिए उसने समय व्यर्थ न करते हुए अपने लंड को लक्ष्य पर लगाया और एक ही बार में पूरा अंदर उतार दिया. स्मिता कुछ चिहुँकि पर उसने किसी प्रकार का प्रतिरोध नहीं किया. असीम ने अपने पूरे सामर्थ्य और शक्ति से स्मिता की चूत के छक्के छुड़ाने आरम्भ किये. स्मिता भी आनंद के सागर में गोते लगाते हुए इस तेज और निर्मम चुदाई का आनंद ले रही थी. उसे पता था की सम्बन्ध होने के पश्चात उन्हें प्यार और संयम से चुदाई के अनेक अवसर मिलेंगे. आज केवल ट्रेलर था, पिक्चर आनी अभी शेष थी.

असीम ने तेज और गहरी चुदाई करते हुए स्मिता को दो या तीन बार और स्खलित किया, पर जब उसके लंड से रस निकलने ही वाला था तो स्मिता की एक लम्बी चीख ने उसे चौंका दिया. स्मिता के काँपते तड़पते हुए शरीर को छटपटाते हुए देख वो समझ गया कि वो परीक्षा में उत्तीर्ण हो गया है. स्मिता जब इस ऊंचाई से उतरने लगी तो असीम के लंड की पिचकारियों ने उसकी चूत को जैसे ही सींचना शुरू किया तो वो लौट कर उस ऊंचाई को फिर छूने लगी. जब दोनों शांत हुए तो एक गहरे चुंबन में बंध गए.

स्मिता: “सुनीति ने तुम्हे बहुत अच्छा सिखाया है. वो बहुत भाग्यशाली है.”

असीम: “धन्यवाद. उनके जैसी माँ सबको मिले.”

दोनों एक दूसरे की बाँहों में यूँ ही लेटे हुए एक दूसरे को चूमते रहे. पर असीम अधीर हो रहा था. उसे पता था कि परीक्षा समय बद्ध होती है. और वो स्मिता की गांड की यात्रा के बिना लौटना नहीं चाहता था.

“तो अब ये भी देख लें कि आपकी गांड मेरे लंड को ले पाएगी या नहीं.”

“इसमें कोई भी शक नहीं, तुम्हारा लंड मेरे बेटे के लंड से बहुत बड़ा नहीं है, तो ये मत सोचना कि गांड नहीं ले पायेगी. पर ये अवश्य है कि मैं गांड मरवाये बिना तुम्हें छोड़ने वाली भी नहीं.”

“पर परीक्षा की कोई समय सीमा नहीं है क्या?”

“है, पर उसमे अभी भी बहुत समय शेष है. चलो तुम्हें अपनी गांड चाटने का अवसर देती हूँ. और फिर उसे चोदने का भी मिलेगा.”

स्मिता ने घोड़ी का आसन लिया और असीम की ओर आशा से देखा. असीम को कोई निमंत्रण नहीं चाहिए था. उसने स्मिता की सुंदर सुडोल गांड के पाटों पर दृष्टि डाली तो उसके मुंह में स्वयं ही पानी आ गया. स्मिता की गांड भी उसकी माँ के समान बिलकुल गोलाकार थी. उसके उसके बीच में लुपलुपता हुआ भूरा छेद उसे अपनी ओर स्वतः ही खींच रहा था. स्मिता ने असीम की आँखों में वो देखा जिससे कि उसका मन प्रफुल्लित हो गया. असीम ने झुकते हुए स्मिता के दोनों नितम्बों को चूमा और फिर उनपर जीभ से थूक की रेखा खींचते हुए उसकी गांड के बहरी खुरदुरे छेद पर जीभ चलाने लगा. स्मिता एक बार फिर सिहर उठी. चाटते हुए असीम उसके दोनों नितम्बों को जोर जोर से मसल रहा था. फिर उसने ऐसा कुछ किया जो अप्रत्याशित था.

असीम ने स्मिता की गांड को चाटते हुए उसके दोनों नितम्बों पर थप्पड़ लगाने आरम्भ कर दिए. हालाँकि इसकी तीव्रता नगण्य के बराबर थी, पर इस आकस्मक आक्रमण ने स्मिता की वासना को कई गुना बढ़ा दिया. नितम्बों पर हल्के हल्के थप्पड़ लगते हुए असीम ने स्मिता की खुलती हुई गांड में अपनी जीभ डाली और उसके अंदर विचरण करने लगा. वो रुक रुक कर स्मिता की गांड को फैलता और स्थान मिलते ही जीभ को और अंदर डाल देता. स्मिता अब आपे से बाहर हो रही थी. उसकी चूत फिर नदी के समान बहने लगी थी. और अब उसे अपनी गांड में कुछ मोटा और लम्बा हथियार चाहिए था.

स्मिता: “अब और मत तड़पा, मेरी गांड में पेल दे अपना लौड़ा और फाड़ दे इसे. इसकी खुजली अब रुकने वाली नहीं तेरे लंड को खाये बिना.”

असीम उसकी इस प्रतिक्रिया के लिए तैयार था. उसकी माँ भी आज तक उसके इस पराक्रम के आगे विवश थी तो स्मिता तो क्या थी? उसने अपने तने लंड को स्मिता की गांड की छेद पर रखा. और स्मिता ने उसे पीछे मुड़ते हुए कामांध दृष्टि से देखा. असीम ने एक प्यारी सी मुस्कुराहट दी जिसे देखते हुए स्मिता भी मुस्कुरा उठी. पर तत्क्षण उसके चेहरे के भाव बदल गए. असीम ने एक ही तगड़े झटके में स्मिता की अनन्य बार चौड़ी की गयी गांड में अपना लौड़ा पेल दिया. स्मिता के भाव बदल कर कुछ क्षण के लिए पीड़ा के हुए पर उसे जब अपनी गांड पूरी पैक हुई अनुभव हुई तो आनंद ने उसे अपने वशीभूत कर लिया.

असीम समय का सदुपयोग करना चाह रहा था और उसे विश्वास था कि आज की चुदाई के बाद वो इस घर का दामाद बनेगा और इस गांड में कई बार उसके लंड को प्यार से जाने का अवसर मिलेगा. पर आज इसे फाड़कर सारे कसबल निकालने का समय था. स्मिता को भी गांड तेज और कर्कश तरीके से ही मरवाना अच्छा लगता था. गांड मरवाना ही हो तो ऐसे मरवाओ कि दो दिन तक याद रहे. ये उसके जीवन का सार था. चूत चाहे प्यार से चोदो पर गांड पर दया नहीं करनी चाहिए.

असीम उसकी इस इच्छा से अनिभिज्ञ अपने ही अंदाज में स्मिता की गांड को जैसे फाड़ने के लिए ही चोद रहा था. उसके भीषण लम्बे और तीव्र धक्के स्मिता जैसी खेली खिलाई स्त्री ही झेल सकती थी. और तो और स्मिता अब उसे उकसाते हुए और भी तेज और गहराई तक लंड पेलने के लिए प्रोत्साहित कर रही थी. स्मिता की चूत से रस की धार ने बिस्तर को इतना गीला कर दिया था की अब उसके घुटने फिसलने लगे थे. पर असीम अनियंत्रित अबाधित गति से उसकी गांड में लौड़ा पेले जा रहा था.

आठ दस मिनट की इस वीभत्स चुदाई के बाद स्मिता ने हार मान ली और उसकी चूत ने एक अंतिम धार फेंकी और उसे निश्चल कर दिया. असीम भी अब अपने लक्ष्य को पा चुका था. उसने स्मिता के मरणासन्न शरीर को अपने बलिष्ठ हाथों से पकड़कर अंतिम धक्कों के साथ स्मिता की गांड में अपनी मलाई डाल दी और फिर उसके ऊपर हाँफते हुए गिर पड़ा. स्मिता और असीम कुछ देर के लिए जैसे अचेत थे. जब दोनों अपनी मूर्छा से निकले तो एक दूसरे को चूमने में व्यस्त हो गए.

स्मिता: “तुम सच में चुदाई में निपुण हो. हालाँकि मुझे ये बताने का अधिकार नहीं है, पर मैं तुम्हें दामाद के रूप में स्वीकार करती हूँ. पर ये बात तुम्हे समुदाय के माध्यम से ही पता लगेगी. इसीलिए, कृपा करके इसे हम दोनों के सिवाय किसी और को न पता लगे इसका आश्वासन देना होगा. वैसे, कल तक तुम्हारी माँ को इसके बारे में सूचना दे दी जाएगी. और अब से महक तुम्हारे लिए अछूत है. जब तक विवाह सम्पन्न नहीं होता तुम दोनों एक दूसरे के साथ चुदाई नहीं कर सकते. घूमो फिरो , सब मान्य है, पर चुदाई किसी भी स्थिति में नहीं होनी चाहिए. मैं महक को भी ये समझा दूंगी.”

इसके बाद स्मिता और असीम एक दूसरे को न जाने कितनी देर तक चूमते रहे. फिर घर लौटने के पहले असीम ने स्मिता की एक बार प्यार से चुदाई की, जिसके कारण वो उसकी और भी प्रशंसक बन गयी. चार बजे के लगभग असीम अपने घर लौट गया.

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सुनीति का घर :

सुनीति और कुमार एक दूसरे के आलिंगन में बद्ध क्रमशः बिस्तर की ओर चल पड़े.

जीवन का गाँव:

गिरि को घर पर ही छोड़कर जीवन और उसके मित्र बलवंत के खेत पर चले गए. जीवन ने अपने मैनेजर को भी बुला लिया था और उसे बलवंत के खेतों का दायित्व भी दिया जा रहा था. चूँकि उनका मैनेजर एक बहुत ही शालीन और सुलझी बुद्धि का मध्यम आयु का आदमी था, तो जाते हुए जीवन ने कँवल, जस्सी और सुशील से कहा कि क्यों न वे भी उसे अपने खेतों के रख रखाव का दायित्व दे देते.

जीवन: “उसकी मंडियों और अन्य बाजारों में अच्छी पहचान और पहुँच है. मेरे विचार से वो तुम सबको अबसे अच्छा दाम दिलवा पायेगा. और उसके वेतन की तुम सब चिंता न करो. मैं जो उसे देता हूँ, उसमे ही बढ़ोत्तरी कर दूंगा. और इसमें कोई आपत्ति मत करना. तुम लोगों के सिवाय मेरा कोई अभिन्न मित्र नहीं है. तुम सब अपने घर, परिवार पर ध्यान दो. अपने बच्चों के पास जाओ और आनंद से रहो.”

जीवन की बात को नकारने का कोई औचित्य नहीं था. सब उसकी बात मान गए. और फिर पूरे दिन वे सब अपने अपने खेतों पर जाकर नए मेनेजर को उसका काम सौंपने में व्यस्त रहे. चूँकि अब मैनेजर का काम बढ़ गया था तो जीवन से उससे बात करके उसे हर खेत के लिए उसके वेतन का ३५% अतिरिक्त देना का वचन दिया. चार खेत और मिल जाने से उसे अब अपनी पुरानी कमाई से १४०% अधिक मिलने लगा. वो बहुत प्रसन्न हो गया और उसने जीवन का मन से धन्यवाद किया. जीवन ने उसे एक नया ट्रेक्टर और मोटर साइकिल भी बुक करने के लिए कहा और बोला कि उसका पैसा वो ही दे देगा, और ट्रेक्टर उसके तीन मित्रों की पत्नियों के नाम से लिया जायेगा। मोटरसाइकिल वो बलवंत के नाम से ले ले. क्योंकि बाइक अगले दिन ही मिल सकती थी तो बलवंत के जाने से पहले ये कार्य सम्पन्न हो सकेगा.

सब कार्य अच्छे से सम्पन्न करने के बाद पाँचों मित्र बलवंत के घर लौट आये जहाँ उनका खाने की मनमोहक सुगंध ने स्वागत किया. नहाने के बाद सब यार फिर से आंगन में बैठे और शराब की बोतल फिर खुल गयी. सुशील ने महिलाओं को खेतों के आगे के प्रबंध के बारे में बताया तो सबने जीवन के गले लगकर उसका धन्यवाद किया. गिरि ने भी जीवन को गले से लगाकर उसे धन्यवाद किया. उसे इस आदमी के बड़प्पन पर विश्वास नहीं हो रहा था. कितने निश्छल मन से वो सबके भले के लिए प्रयत्न करता है.

जीवन ने गिरी से पूछा: “फिर क्या किया आज दिन भर.”

इसके पहले कि गिरी उत्तर देता गीता बोल पड़ी, “आज सच में भाई साहब ने इतना मजा करवाया कि कभी नहीं भूल पाएंगे.”

“ऐसा क्या किया, भाई.”

गीता ने कहा, “मैं बताती हूँ.”

गिरी को छोड़कर सब चले गए तो उन्हें घर में चार महिलाओं के साथ अकेले रहना कुछ खेलने लगा. घर में टीवी भी नहीं था. जीवन के किसी भी मित्र ने अपने घर में टीवी नहीं लगवाया था. उनका मानना था कि ऐसा करने से एक दूसरे से सम्पर्क टूट जाता है. और जब संगी साथी हों तो टीवी का क्या काम. कुछ देर समाचार पत्र पढ़ने के बाद गिरी ऊबने से लगे. तभी गीता उनके पास आयी और उनके पास बैठ गयी.

गीता: “आपको ऊब हो रही है न? पर हम भी अपने काम में व्यस्त होने के कारण आप की ओर ध्यान नहीं दे पाए.”

गिरी: “नहीं, ऐसा कुछ नहीं है.”

गीता: “शर्माइये नहीं भाईसाहब. हम भी समझते हैं. पर अब हम अपने काम समाप्त कर चुकी हैं और आपके कमरे में निर्मला आपकी राह देख रही है. बहुत अधीर हो रही है वो आपसे चुदने के लिए. तो अब मन मत मसोसिये और जाकर उसे अच्छे से रगड़िये। कल बेचारी की गांड अनचुदी रह गयी थी तो बहुत खुजला रही है. पहले वहीँ लगाना दाँव। वैसे आपको गाँव के बारे में और कुछ भी पता लग जायेगा उसके पास जाने पर.”

गिरी का लंड ये सुनकर अकड़ गया और वे उठे और अपने कमरे में चल दिए.

“गीता, पूनम कहाँ है?” बबिता ने पूछा.

“भाईसाहब को गाँव के बारे में समझने के लिए निर्मला के ही साथ है.”

‘गीता, तुम बहुत हरामी हो.”

“वो तो है. चल हम झरोखे से उनकी मस्ती का खेल देखते हैं.”

ये कहकर दोनों गिरी के कमरे के झरोखे से अंदर के दृश्य का अवलोकन करने लगीं. गिरी जब कमरे में पहुंचे तो देखा कि वहां कोई नहीं दिखा. फिर पायल की छम चम सुनाई दी तो देखा कि निर्मला एक कोने में झाड़ू लगा रही है.

“किसी को ढूंढ रहें हैं क्या भाई साहब.” ये पूनम थी जो कमरे के दूसरी ओर झाड़ू लगा रहे थी.

गिरी को कुछ सुझा नहीं, “वो गीता भाभी ने भेजा था कि आपने मुझे बुलाया है.” निर्मला को देखकर वो बोले.

निर्मला: “अब भला आपके कमरे में मैं आपको क्यों बुलाऊंगी भला.” उसने ऑंखें मटकाकर पूछा.

पूनम: “अरे दीदी, क्या पता किसी काम से भेजा हो आपके पास. क्या कहा था गीता दीदी ने आपसे?”

अब गिरी को काटो तो खून नहीं.

“वो वो वो.. मेरे सुनने में ही कुछ गलती हो गयी होगी. मैं चलता हूँ.”

पर अब तक निर्मला और पूनम उनके बहुत निकट आ चुकी थीं.

निर्मला: “गलत तो नहीं सुना भाई साहब, हमने भी यहां से उनकी बात पूउउउउउरि सुन ली थी.”

पूनम: “अब क्या है न भाई साहब, न आपने गलत सुना न दीदी ने गलत कहा.” फिर अपने चेहरे को गिरी के बिलकुल समीप लेकर कामुक स्वर में बोली, “खुजली ही तो है, और आपके पास वो हथियार भी जो उसे मिटा सके. तो आप कहाँ जाने की सोचने लगे.” पूनम ने गिरी के पीछे जाकर दरवाजा बंद कर दिया।

फिर दोनों जोर जोर से खिलखिला कर हंस पड़ीं.

“आपसे चुहल करने में बहुत मजा आया. आप सच में ये समझे न की गीता ने आपको बुद्धू बनाया है.”

गिरी ने हामी भरी और फिर वो भी उनकी हंसी में सम्मिलित हो गए. दूर झरोखे से झांकती हुई गीता और बबिता अपनी साड़ी के मुंह में ठूंस कर हंसी दबाने का प्रयास कर रही थीं.

निर्मला: “भाई साहब, हम गाँव वाले भी हंसी मजाक करना जानते हैं.”

गिरी: “सच भाभी, आप लोगों ने तो मेरे तोते ही उड़ा दिए थे. मुझे समझ ही नहीं आ रहा था कि हुआ क्या?”

निर्मला: “भाईसाहब तोते को उड़ने मत देना, उसे कहीं की खुजली मिटानी है.” और पूनम और निर्मला फिर से खिलखिलाने लगीं.

अब तक गिरी भी अपने आपको संयत कर चुके थे.

“खुजली जहाँ भी हो, जितनी भी भीतर हो, मेरा तोता अपनी चोंच से उसे मिटा देगा. अब आप जरा वैद्य गिरिधारी के सामने रोगी को लेकर आओ। “

ये कहकर गिरी एक कुर्सी पर बैठ गए और ऐसा दिखने लगे जैसे वो कोई वैद्य हैं. पूनम और निर्मला भी इस खेल में मिल गए और गीता और बबिता दूर से इस रोमांचक खेल को देख रहे थे. पूनम निर्मला को सहारा देती हुई उनके पास ले आई। निर्मला ऐसे चल रही थी जैसे लंगड़ा रही हो.

गिरी: “क्या हुआ भाभी, ये लंगड़ा क्यों रही हैं?”

पूनम: “वैद्य जी, इन्हे खुजली हो रही है, बहुत अंदर तक. इसी कारण इनसे ठीक से चला नहीं जा रहा.”

गिरी: “अरे रे रे रे, ये तो बहुत गंभीर रोग के लक्षण हैं. इनकी खुजली को अगर तुरंत नहीं मिटाया गया तो इनकी जान पर बन सकती है.”

पूनम और निर्मला ने अपने मुंह पर हाथ रखकर चौंकने का अभिनय किया, “हाय दैया ! वैद्य जी, अब आप ही इनको ठीक कर सकते हो.” पूनम बोली.

निर्मला ने हाँ में हाँ मिलायी, “हाँ वैद्य जी, मैं अभी मरना नहीं चाहती. मुझे बचा लीजिये.”

उधर गीता और बबिता खुसुर पुसुर कर रही थीं, “इसकी गांड में खुजली हो रही है या मिर्ची लगी है जो मर जाएगी. वैसे नौटंकी दोनों कमाल की करती हैं.”

गिरी: “नहीं भाभी, जब तक वैद्य गिरिधारी हैं मैं आपको मरने नहीं दूंगा. पूनम भाभी, आप इन्हे बिस्तर पर ले जाइये और जहां खुजली है उस स्थान को खोल दीजिये. इसका तो उपचार मेरा तोता ही कर सकता है.”

पूनम: “उइ माँ, वैद्य जी. दवाई से नहीं जाएगी क्या ये खुजली.”

गिरी: “दवा से ही जाएगी, पर वो दवा तोता अपनी चोंच से डालेगा तब.”

पूनम: “आप बहुत ही उच्च कोटि के वैद्य हैं. हम तो ये सब समझते नहीं. चलो भाभी, दिखाओ तो वैद्य जी को कहाँ खुजली है.”

ये कहकर पूनम ने निर्मला को बिस्तर पर घोड़ी के आसन में किया और एक ही झटके में उसकी साड़ी और पेटीकोट ऊपर करते हुए उसकी गांड को नंगा कर दिया.

फिर निर्मला की गांड के चारों ओर ऊँगली घुमाती हुई बोली, “खुजली अंदर है. पर तोते के जाने के लिए सुरंग की राह को पहले कुछ खोलना होगा.”

गिरी, “हम्म्म. समस्या गहरी है, मुझे अपने विशेष तोते की सहायता लेनी होगी. मैं उसे निकलता हूँ. आप ऐसा करो कि अन्य वस्त्र भी निकाल दो, अगर दवा उन पर लगी तो व्यर्थ में ही गंदे हो जायेंगे.”

किसी का भी मन इस खेल से हटने का नहीं था. तो पूनम अपने कपड़े निकालने लगी.

गिरी, “आप क्यों कपड़े उतार रही ही?”

पूनम: “वैद्य जी, आप ऑपरेशन करोगे तो नर्स भी तो लगेगी. और नर्स के कपड़े गंदे करके आप को क्या मिलेगा.”

गिरी, “आप बहुत बुद्धिमान हैं. बिलकुल सही कह रही हैं.”

गिरी अपने कपड़े निकालने लगे और पूनम अपने और फिर निर्मला के कपड़े उतार कर नंगी हो गयीं.

पूनम: “वैद्य जी, अगर आप आज्ञा दें तो मैं खुजली के स्थान को ऑपरेशन के लिए तैयार कर दूँ.” फिर आंखे झपकते हुए, “फिर आपके तोते को कर दूंगी.”

गिरी: “बिलकुल, नर्स को यही करना चाहिए.”

पूनम ने निर्मला को फिर घोड़ी बनाया और उसकी गांड चाटने में व्यस्त हो गयी. कुछ देर अपनी जीभ और उँगलियों के प्रयोग से निर्मला की गांड को लौड़े के लिए उपयुक्त जानकर पूनम ने गिरी से कहा.

“वैद्य जी, एक बार देखिये क्या अब आपका तोता इसके भीतर जाकर खुजली मिटा पायेगा?”

गिरी किसी अनुभवी डॉक्टर के समान पास गया और निर्मला की गांड का निरीक्षण किया और उसे भी लगा कि गांड अब तैयार है.

“नर्स पूनम, हम तुम्हारे काम से बहुत प्रसन्न हैं. पर अब तुम्हें मेरे तोते में वो दवा भरनी है जो इनकी खुजली का अंत कर पाए.”

ये कहते हुए गिरी ने पास पड़े एक ग्लास को लिया और लंड उसमे डालकर ऐसा दर्शाया जैसे इंजेक्शन भर रहे हों.

“अब दवा भर दी गई है.” गिरी ने कहा, “नर्स, अब आप मेरे तोते को अंदर जाने के लिए तैयार करें जिससे कि भाभी को किसी प्रकार की कठिनाई न हो.”

“जी वैद्य जी.” ये कहकर पूनम पूरे मन से गिरी के लंड को चूसने लगी और कुछ ही देर में उसे लोहे के समान कड़ा पाया. “वैद्य जी, आपका तोता ऑपरेशन के लिए तैयार है.”

“ठीक है, नर्स. पर आप भाभीजी को थोड़ा संभालिएगा क्योंकि आरम्भ में तोते के प्रवेश में उन्हें कुछ कष्ट हो सकता है.”

“अवश्य, वैद्यजी.” पूनम ने मुस्कुराकर उत्तर दिया और निर्मला के सामने बैठकर हंसती हुई उसके मुंह को अपनी चूत में दबा दिया. ‘अब आप ऑपरेशन आरम्भ करिये, वैद्य जी. खुजली का निवारण नितांत आवश्यक है.”

गिरी ने अपने लंड को निर्मला की फूली हुई गांड पर रखते हुए एक लम्बे धक्के के साथ पूरे लंड को अंदर डाल दिया. निर्मला कुछ कसमसाई, पर उसे गांड में लेने का लम्बा अनुभव था. पूनम ने गिरी का उत्साह बढ़ाने के लिए कहा, “वैद्य जी, मरीज की प्रतिक्रिया से लग रहा है कि तोते की चोंच सही स्थान पर गयी है. अब आप देर न करें और शीघ्र अति शीघ्र दवा से खुजली मिटायें.”

गिरी भी अब कुछ रुकने की स्थिति में नहीं था. उसने लम्बे और तेज धक्कों से निर्मला की गांड को चरमरा दिया. अगर पूनम से उसका मुंह अपनी चूत में न दबाया होता तो अवश्य वो चीख चीखकर और लौड़े की मांग करती. दस पंद्रह मिनट गांड मारने के बाद गिरी ने अपना रस निर्मला की गांड में छोड़ दिया. निर्मला इस समय में तीन बार झड़ी थी और बिस्तर को समुचित रूप से गीला कर चुकी थी. गांड से लंड निकालने के बाद गिरी ने पूनम की ओर देखा.

“नर्स पूनम, तोते ने दवा अंदर डाल दी है, मुझे लगता है कि इनकी खुजली मिट गयी होगी. आप एक बार देखिये और तोते को फिर से अपने यथावत रूप में करने का कष्ट करें.”

पूनम तुरंत उठी और गिरी के लंड को चाटकर उसे साफ कर दिया. लंड अब मुरझा भी गया था.

“वैद्य जी, तोता अपने सामान्य रूप में जा चुका है. अब आप इसे वापिस पिंजड़े में डाल सकते हैं. तब तक मैं भाभी का निरीक्षण करती हूँ. खुजली आगे के रास्ते पानी के रूप में निकली होने चाहिए.”

ये कहकर उसने हँसते हुए निर्मला को सीधा किया और देखा कि बिस्तर पूरा गीला है. उसने निर्मला की चूत को कुछ देर यूँ ही चाटा और फिर दोनों हँसते हुए बैठ गयीं.

पूनम: “वैद्य जी, खुजली पूरी मिट गयी है, देखिये बिस्तर पर कितना पानी पड़ा है. आपके तोते ने इनको नया जीवन दिया है.”

तीनों हँसते हुए लोटपोट हो गए. झरोखे में खड़ी गीता और बबिता भी हंस हंस कर पागल हो गयीं.

“सच में भाई साहब, इस खेल में अपने चार चाँद लगा दिए. जब ये सब सुनेंगे तो बहुत हँसेंगे”

सबने अपने कपड़े पहने और आंगन में लौट गए. गीता और बबिता भी आंगन में आ गए और सब हँसते खेलते हुए खाने के लिए बैठ गए.

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पूरा सुनते सुनते सभी हंस हंस कर लोटपोट हो रहे थे. हँसते हँसते सारे पुरुषों ने आकर गिरी की पीठ थपथपाई.

जीवन: “अरे पूनम, अगर मुझे पता होता कि तुम इतनी अच्छी नर्स हो तो मैं अपनी हर चोट तुम्हें ही दिखाता।”

पूनम: “आपको कभी किसी चोट के लिए मेरी याद ही नहीं आयी. पहले भाभी ….” कहते हुए पूनम ने अपने मुंह पर हाथ रख लिया. “मुझे क्षमा करना भाई साहब, मैंने भाभी का नाम ले लिया.”

जीवन को आघात तो लगा था पर उसे भी ये समझ थी कि पूनम ने ये अबोध मन से कहा था. “कोई बात नहीं, पूनम. उसे गए तो अब वर्षों हो गए. तुम कुछ कह रही थीं न, बोलो.”

पूनम: “मेरा कहना था भाईसाहब कि आपको नर्स की याद तभी आती है जब आपके लंड को इसकी याद आती है.”

जीवन: “नहीं. मैं दिन में अनगिनत बार तुम सबको याद करता हूँ. तभी तो हर बार खिंचा चला आता हूँ.”

सुशील: “तो वैद्यजी, अपने मेरी पत्नी की सही सही चिकित्सा तो की है न? या फिर ऐसी समस्या फिर आ सकती है.?”

गिरी: “समस्या का अस्थायी निदान ही हुआ है. ये ऐसा गंभीर रोग है जिसका कोई और स्थाई उपचार नहीं है. जब भी ऐसी परिस्थिति दोबारा बने तो आपमें से किसी के तोते को इन्हें दवा देने का कार्यभार संभालना होगा. वैसे नर्स पूनम की भी आप सहायता ले सकते हैं. इनके अनुभव का आपको भी अवश्य लाभ होगा.”

सुशील: “ठीक है वैद्यजी. तो क्यों न मैं आज नर्स पूनम का निरीक्षण करूँ और ये निश्चित करूँ कि वे इस कार्य के लिए उपयुक्त हैं. जस्सी, तुझे कोई आपत्ति तो नहीं है?”

“अरे मुझे कोई आपत्ति नहीं. मुझे तो बबिता भाभी से समझना है वैद्यजी के गुण जो उन्होंने कल रात जाने होंगे.

जीवन: “मुझे तो लगता है कि निर्मला का ठीक उपचार करने के लिए बलवंत और मैं उसका निरीक्षण करना चाहेंगे.” निर्मला की चूत ये सुनकर बह निकली. वो तुरंत उठकर जीवन के गले लग गयी.

फिर सुशील ने पूनम को साथ लिया, जीवन और बलवंत ने निर्मला को, जस्सी बबिता के साथ तो गिरी गीता के साथ कल वाले कक्ष में चले गए.

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सुनीति का घर :

जब गिरी निर्मला का उपचार कर रहे थे, तब सुनीति के कमरे में सुनीति और कुमार आलिंगनबद्ध थे.

सुनीति: “कुमार बेटा, मेरी एक बात मानेगा?”

कुमार: “बिल्कुल, बोलो तो सही.”

सुनीति: “आज बस मेरी गांड मार ले. कल तेरे पापा और लोकेश भाईसाहब ने मेरी चूत की दो लौडों से चुदाई की थी, तो आज के लिए उसे छोड़ दे.”

कुमार: “अरे मॉम, मुझे तो आपकी गांड मारने में वैसे भी अधिक आनंद आता है, तो भला मैं क्यों आपकी बात नहीं मानूंगा.” कुमार ने सुनीति के होंठों को चूमकर उत्तर दिया.

माँ बेटे बिस्तर की ओर बढे और सुनीति ने अपने कपड़े उतारे तो कुमार ने अपने. पलक झपकते ही दोनों एक दूसरे के सामने नंगे खड़े थे.

“मुझे तो विश्वास ही नहीं हो रहा है कि असीम का विवाह होने की संभावना है. पता नहीं क्या कर रही होगी स्मिता उसके साथ.”

“अरे मॉम, भाई की चिंता छोड़ो. अगर मेरा आकलन सही है, तो आपकी बहू के रूप में महक का घर में आना निश्चित ही है.”

“पर समुदाय के नियम क्या करते हैं, ये भी निर्भर करता है.”

“क्या आपको लगता है कि आपने कोई नियम तोड़ा है? नहीं न. तो भाई आपके लिए बहू लेकर आएंगे. अब उनकी चिंता न करते हुए, स्मिता आंटी की चिंता करो तो फिर भी समझ में आये.”

“तुम दोनों अपने आपको बड़ा महारथी मानते हो न चुदाई में?”

“आप नहीं मानती?”

सुनीति कुमार के पास जाकर उसके होंठों को चूसने लगी. फिर जब अलग हुई तो बोली, “न मानती होती तो तुमसे कभी न चुदवाती.”

“मॉम आप अब घोड़ी बन जाओ. मैं आपकी गांड को चाटकर उसे लंड के लिए खोल देता हूँ.”

सुनीति ने अपेक्षित आसन लिया और अपनी गांड ऊपर उठा दी. कुमार ने भूखी दृष्टि से अपनी माँ की उभरी हुई गांड को देखा और उसके बीच के भरे सितारे को देखकर उसके मुंह में पानी आ गया. अपना आसन बनाया और सुनीति की गांड को चाटने लगा. जीभ से कुरेदते हुए सुनीति का सितारा कुछ देर तक तो अवरोध करता रहा पर जब देखा की आक्रमणकारी नहीं मानेगा तो उसके लिए स्थान बना दिया. गांड के खुलते छेद में कुमार ने अपनी जीभ को अंदर डाला और पूरी श्रद्धा से सुनीति की गांड का सेवन करने लगा. सुनीति को अपने परिवार के हर सदस्य का गांड चाटने का व्यसन अत्यंत प्रिय था.

अगर गांड मारने से पहले कोई उसे इस प्रकार से प्यार करता है, तो वो गांड मारने का सच्चा अधिकार रखता है. कुमार इस विचार को पूर्णतया सिद्ध कर रहा था. जिस प्रेम और अनुराग से वो सुनीति की गांड चाट रहा था, उसे देखकर ही उसका अपनी माँ के प्रति अथाह प्रेम का ज्ञान होता था. सरपट चलती जीभ ने गांड को अंदर से भी अपने थूक से चिकना कर दिया था. समय था अब किसी मासपिंड से उसके हनन का. पर अगर माँ की चुदाई कल धड़ल्ले से हुई थी तो आज उसकी गांड को प्यार की आवश्यकता थी. कुमार उसे इस प्यार से अवगत कराने का इच्छुक था.

“मॉम, अगर आप कहो तो अंदर डालूं लंड.”

“हाँ, बेटा। अब मार ही ले मेरी गांड. पता नहीं असीम स्मिता की गांड भी मरेगा या यूँ ही भेज देगी वो उसे घर.”

“अरे मॉम, उनकी चिंता आप न करो. भाई ने उनकी गांड बजाए बिना लौटना नहीं है. इस बात की सौ प्रतिशत गारंटी है. आप अपनी गांड की बात करो.”

“कहा तो तुझे, मार मेरी गांड।”

कुमार ने लंड साधा और पहले धक्के में तीन चार इंच अंदर पेल दिया. फिर उसने हल्की गति से बाकी के लंड को अंदर किया और सुनीति की गांड को बहुत प्यार से मारने में व्यस्त हो गया.

सुनीति उसके दोनों बेटों से तीव्र और निर्मम चुदाई की इतनी अभ्यस्त हो गयी थी कि उसे कुमार का ये रूप बहुत भा रहा था. उसे उनके संसर्ग के आरम्भ के दिन याद आ गए जब दोनों बेटे उसे बहुत प्यार से चोदते थे. पर जब वे बाहर की औरतों को चोदने लगे तो धीरे धीरे उनका अपनी माँ के प्रति भी चुदाई का ढंग बदल गया. ये इतना शनैः शनैः हुआ कि सुनीति को भनक भी न लगी और वो उसे भी ऐसी ही चुदाई की लत लग गयी. पर आज उसकी गांड में मंथर गति से चलता हुआ लंड उसके रोम रोम को जैसे चूमते हुए चल रहा था. उसे इस प्रकार की चुदाई में आज विशेष ही आनंद आ रहा था.

“कुमार, आज तुम जैसे मेरी गांड मार रहे हो न, समय समय पर ऐसे ही किया करो. तुम दोनों भाई इतना जोर से चोदते हो कि उसमे अब प्यार कम लगता है.”

“मॉम, मैं आपको वचन देता हूँ और भाई को भी समझा दूंगा. आपकी गांड तो हमारे लिए पूज्यनीय है. इसे अवश्य ही हम अब पूरे प्यार से मारा करेंगे. पर दादाजी का कुछ नहीं कर सकते.”

“उनकी छोड़, तुम दोनों ने ही अगर मुझपर दया की तो भी ये परोपकार ही होगा.”

गांड कि इस गति से चुदाई में आनंद से सुनीति की भी तृप्ति हो रही थी. उसने कुमार से कहा कि इसी प्रकार से वो कुछ गति बढ़ाते हुए गांड मारे। कुमार ने उसकी बात सुनकर अपनी गति कुछ कुछ बढ़ाई, पर इतनी नहीं कि सुनीति को कठिनाई हो. और चूँकि दोनों इसका आनंद ले रहे थे तो कोई बीस मिनट के बाद कुमार ने अपना माल सुनीति की गांड में छोड़ दिया. इसके बाद माँ बेटे वहीँ नंगे एक दूसरे से लिपट कर चूमा चाटी करते रहे और न जाने कब सो भी गए.

शाम को दोनों की आंख तब खुली जब कमरे को किसी ने खटखटाया. पूछने पर सलोनी थी. कुमार ने उठकर नंगे ही कमरा खोला और सलोनी चाय लेकर अंदर आ गयी. उसे माँ बेटे को इस अवस्था में देखकर कोई अचरज नहीं हुआ. उसने चाय को सोफे के पास पड़ी टेबल पर रखा और सुनीति को गांड से निकलते रस को देखकर पूछा कि अगर सुनीति चाहे तो वो उसे साफ कर दे. सुनीति ने स्वीकृति दी तो सलोनी ने उसकी गांड चाटकर स्वच्छ कर दी और बड़ी प्रेम भरी दृष्टि से कुमार के लंड को देखा.

“मौसी, संकोच मत करो. चाट कर अपना मन संतुष्ट कर लो.” कुमार ने हंसकर कहा तो सलोनी ने इस कार्य को भी पूरा किया और कमरा बंद करके चली गयी.

“आज खाना देर से बनेगा.” सुनीति ने उठाते हुए कहा.

“क्यों, क्या हुआ. मॉम.”

“अभी जाकर ये शंकर पर चढ़ेगी. तो फिर खाना तो देर ही से चढ़ायेगी न.”

इस बात पर सुनीति और कुमार हंस पड़े और चाय की चुस्कियां लेने लगे. फिर दोनों ने कपड़े पहने और बैठक में टीवी देखते हुए अन्य परिवार जनों की प्रतीक्षा करने लगे.

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सबसे पहले असीम ही आया, और उसके चेहरे पर एक बड़ी मुस्कान थी. सुनीति को एक क्षण के लिए जलन हुई पर तुरंत ही स्वयं को मनाया.

सुनीति: “क्या हुआ, सब ठीक रहा?”

असीम: “जी मॉम, पूछ रही थी, नहीं बता रही थी कि आपने मुझे बहुत अच्छा सिखाया है.”

सुनीति: “तो तुमने क्या कहा?” सुनीति के स्वर में गर्व छलक रहा था.

असीम: “क्या कहता, बस उन्हें संतुष्ट कर दिया.”

सुनीति: “क्या तुम सच में विवाह के लिए तैयार हो? समुदाय के प्रस्ताव के बाद हमें एक अवसर रहेगा मना करने का.”

असीम: “मेरी जो बातें महक से हुई हैं, उनको ध्यान में रखकर मैं कह सकता हूँ, कि मुझे इस विवाह में कोई आपत्ति नहीं है.”

सुनीति: “अगर स्मिता और समुदाय ने स्वीकृति दी तो.”

असीम: “हाँ वो एक अड़चन है, पर देखते हैं क्या होता है.” असीम से स्मिता के कहे अनुसार बात को छुपा लिया.

आशीष के आने के बाद सब बैठक में बैठे और सुनीति ने आशीष को उसकी ड्रिंक दी और अपने भी लिए एक ले ली.

आशीष, “असीम का क्या रहा?”

सुनीता ने बताया और गर्व से ये भी बताया कि स्मिता ने सुनीति की शिक्षा की बधाई दी है.

आशीष, “अरे जानेमन, तुम्हारे सिखाये हुए तो हम सब हैं.”

सुनीति, “धत, मसखरी मत करिये. आपने ही मुझे सब सिखाया है.”

दूसरी ड्रिंक अभी बनी ही थी कि सलोनी आ गयी.

सुनीति ने मसखरी से पूछा, “कुछ देर कर दी, लगता है शंकर तेरी गर्मी निकाल रहा था.”

सलोनी, “जी दीदी, आप दोनों को देखकर आग जो लगी थी.”

आशीष: “भाग्या कैसी है, उसे कोई परेशानी तो नहीं है. डॉक्टर से कब मिलना है?”

सलोनी: “तीन दिन बाद, वैसे अभी तक मुझे कोई समस्या नहीं लग रही.”

सुनीति: “शंकर से कहना थोड़ा प्यार से चुदाई करे, ज्यादा हीरो न बने.”

सलोनी: “नहीं दीदी, वे तो बहुत ध्यान रख रहे हैं, पर भाग्या का ही दिन रात चुदवाने का मन करता है. तो ये और मैं दोनों एक एक बार उसे ठंडा कर देते हैं.”

असीम: “मौसी, कभी हमें भी अवसर दे दीजिये, अगर आप दोनों से नहीं सम्भल रही.”

सलोनी: “आप जानते हैं भैयाजी, उसका विचार इस पर. पर मैं उससे कह अवश्य दूंगी. सम्भव है इस कारण आपको उसकी चुदाई का अवसर मिल ही जाये.”

आशीष: “सलोनी, खाना बना दो, मुझे आज कुछ जल्दी है. कल सुबह बाहर जाना है.”

सुनीति चौंक गयी, “कहाँ जा रहे हो.”

आशीष: “बाद में बताता हूँ.”

तभी अग्रिमा ने घर में प्रवेश किया. उसका चेहरा कुछ तमतमाया हुआ सा था. वो सीधे बार पर गयी और अपने लिए एक ड्रिंक बनाई. उसे एक ही साँस में समाप्त करके एक और ड्रिंक बनाई और इस बार सुनीति के पास आकर बैठ गई. इसके पहले कि कोई कुछ बोल पता, उसने असीम और कुमार की ओर ऊँगली से संकेत किया.

“आप और आप, दोनों, आज रात मेरे साथ रहोगे. और मुझे अच्छे से रगड़कर चोदोगे।”

दोनों भाइयों ने सिर हिलाकर कर हामी भरी.

सुनीति: “वो तो ठीक है, पर तुझे चुदवाने की इतनी आग कैसे लग गयी, वो भी इन दोनों दुष्टों से?”

असीम: “मॉम, आप हमें दुष्ट कह रही हो?”

सुनीति: “ध्यान रहे, दोनों इसे चोदोगे आज, पर फूल जैसी बच्ची है मेरी, थोड़ा प्यार से चोदना, मेरी चुदाई जैसे करते हो वैसे नहीं.”

असीम: “अरे माँ, हमारी भी बहन ही है, इसे पता भी नहीं लगेगा कि दो दो लौड़े इसकी बजा रहे हैं.”

सुनीति: “हाँ तो ऐसी गर्मी कैसे चढ़ गयी.”

आशीष: “तुम लोग मजे करना. मुझे सुबह जल्दी निकलना है काम के लिए. एक नया अनुबंध होने की संभावना है. पर शाम तक लौट आऊंगा.”

सलोनी ने खाने के लिए सबको पुकारा और सब खाना खाकर साथ न बैठकर अपने कमरों में जाने लगे. असीम ने अग्रिमा से कहा कि वे दोनों आधे घंटे में उसके कमरे में आएंगे. सुनीति आशीष के साथ अपने कमरे में गयी. आशीष ने बताया कि कल उसे उसी रिसोर्ट में नए काम के लिए जाना है. ये अनुबंध मिलने से उन्हें लगभग २० लाख का लाभ होने की संभावना है. पर ये बात पूरा होने तक गुप्त रहनी चाहिए. इसके बाद सुनीति ने आशीष और अपने लिए एक ड्रिंक बनाई और कुछ देर बाद वे सोने चले गए.

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अग्रिमा का कमरा:

अग्रिमा अपने कमरे में जाकर बाथरूम में घुस गयी और नहाकर तौलिया लपेटे हुए बाहर आयी और अपने भाइयों की प्रतीक्षा करने लगी. कुछ ही समय में असीम और कुमार भी आ गए. अग्रिमा अब सोच रही थी कि उसने जोश में अधिक ही मांग लिया. पर अब तीर चल चुका था और दोनों भी कमरे में भी आ चुके थे. अग्रिमा के चेहरे के भाव असीम ने पढ़ लिए.

असीम: “देख अगर तुझे लगता है कि कुछ नहीं करना है, तो कोई बात नहीं है. दिल करे तभी कुछ करना. नहीं तो बाद में दुखी हो जाएगी.”

अग्रिमा: “नहीं भाई, चुदवाने का तो मन पूरा है, पर आप दोनों को एक साथ झेलने का बूता अभी मेरा नहीं है.”

असीम: “हमने तो ये सोचा ही नहीं. अधिक से अधिक एक को चूसेगी और एक से चुदेगी। और वो भी प्यार से जैसे मॉम ने कहा है. तेरे भाई हैं शत्रु नहीं.”

अग्रिमा: “तो फिर हमें समय नहीं गँवाना चाहिए.”

कहते हुए अग्रिमा ने अपने तौलिये को ढ़ीला किया तो वो सरककर नीचे गिर गया और अग्रिमा का मनमोहक शरीर दोनों भाइयों के ऑंखें चौंधियाने लगा. असीम और कुमार तुरंत ही अपने कपडे निकालकर नंगे हो गए. अग्रिमा ने उन्हें बिस्तर पर बैठने के लिए कहा और फिर उनके सामने बैठकर उनके लंड चूसने लगी. असीम और कुमार ने उसे अपनी मन भर कर उनके लौडों को चूसने दिया फिर उसे उठाया।

“हमें भी कुछ चखने को दे दो अब तो.”

ये कहकर असीम बिस्तर पर लेटा और अग्रिमा को कुमार ने अपनी चूत असीम के मुंह पर रखने के लिए कहा. अग्रिमा उलटी होकर असीम में मुंह पर बैठी और असीम ने अपनी लपलपाती जीभ को उसकी कमसिन चूत की चाशनी चाटने के लिए अंदर धकेल दिया. अग्रिमा काँप उठी और वो अभी इस अनुभव का आनंद ही ले रही थी कि उसे अपनी गांड के ऊपर कुछ रेंगता हुआ अनुभव हुआ. उसने मुड़कर देखा तो कुमार अपनी जीभ से उसकी गांड कुरेद रहा था. आनंद विभोर होकर अग्रिमा ने एक गहरी साँस ली और अपने शरीर को अपने दोनों भाइयों को सौंप दिया.

असीम और कुमार इस विद्या में प्रवीण थे. उन्हें घर और बाहर दोनों से इन दोनों बिलों को कैसे आनंदित किया जाता है, की भरपूर शिक्षा दीक्षा प्राप्त थी. अग्रिमा को इसका आनंद एक साथ कम ही मिलता था क्योंकि वो जब भी इन्हें अपनी माँ और सलोनी की चुदाई करते देखती थी तो उसे एक भय सताता था कि कहीं उसके साथ ऐसा किया तो क्या होगा. पर आज उसने स्वयं को समर्पित कर दिया था. और दोनों ने उसे विश्वास भी दिलाया था कि वो उसे उतने ही प्यार से चोदेगे जितने प्यार से उसे उसके पिता आशीष और उसके दादा जीवन चोदते हैं.

अपने दोनों छेदों में चल रही जीभ का ही ये प्रभाव था कि अग्रिमा जल्दी ही अपने रस से असीम के चेहरे को भिगाने लगी. उसकी कसी तंग चूत अब अधिकाधिक रस छोड़ रही थी. उसका शरीर भी इस दोहरे प्रहार से अपने आप को प्रफुल्लित अनुभव कर रहा था. जब अग्रिमा दो तीन बार झड़ गयी तो असीम का चेहरा इतना भीग चुका था कि उसके लिए अब और रुकना असंभव था. उसने हाथ के संकेत से कुमार को कहा कि अब बस करो. कुमार ने अग्रिमा की गांड से अपना मुंह हटाया और उसके नितम्बों पर हल्की सी चपत लगाई. अग्रिमा असीम के मुंह से उठ गई.

“अब कुछ चुदाई हो जाये.”

अग्रिमा ने सिर हिलाया.

“तो ऐसा है कि पहले असीम आपकी चुदाई करेंगे और तुम मेरे लंड को चूसोगी और फिर हम दोनों अपने स्थान बदलेंगे.”

“पर आप में से कोई भी मेरी गांड मारने का प्रयास नहीं करेगा.”

असीम हँसते हुए, “पता है, मॉम ने पहले ही तुम्हारी गांड से दूर रहने को कहा है. पर एक बात बताओ, क्यों नहीं तुम पापा से अपनी गांड मरवा ही लेतीं, जिससे हमारे लिए भी ये उपलब्ध हो जाये.”

“पहले भाग्या को चोद लो, फिर मेरी गांड में लंड डालने के बारे में सोचना.”

“अरे, बकरी की माँ कब तक खैर मनाएगी. उसे तो चुदना ही हमसे, बस दिन गिन रहे हैं.”

“तो इसके लिए भी गिनो. अब छोड़ो और जो मिल रहा है उस का ही आनंद लो.”

कुमार बिस्तर पर जा लेटा और अग्रिमा ने उसके लंड को अपने मुंह में लिया और बड़े प्यार से चूसने लगी. असीम ने उसके पीछे जाकर उसकी चूत में अपने लंड को धीरे से डाला और कुछ ही देर में पूरे लंड को अंदर कर दिया. फिर वो हल्के धक्कों के साथ उसकी चुदाई करने लगा. अग्रिमा कुमार के लंड को चूसने में मस्त थी और उसे भी अपनी चूत की ये धीमी चुदाई बहुत सुख दे रही थी. उसे पता था कि अगर उसने गलती से भी थोड़ा तेज चोदने के लिए बोला तो उसके भाई लोग उसकी चूत की धज्जियाँ उड़ा देंगे.

असीम संभालते हुए उसे बड़े प्यार से चोदता रहा. उसने समय देखकर गति कुछ बढ़ाई पर इतनी नहीं कि अग्रिमा को पता चले. इस प्यार भरी चुदाई से अग्रिमा झड़ने लगी और जब वो दो बार झड़ गयी तो उसके भाइयों ने अपने स्थान बदले. कुमार, असीम से कुछ अधिक तीव्रता से चोद रहा था, पर अब तक अग्रिमा की चूत असीम के लंड और अपने स्खलन से उसकी इस चुदाई को सरलता से सहन कर रही थी. उसका शरीर अब उसका साथ छोड़ रहा था. उसकी चूत भी अब बिना रुके रस बहा रही थी.

अंत में अग्रिमा एक और बार झड़ी और फिर निढाल हो गयी. कुमार ने अपने लंड को बाहर निकाला और असीम और वो दोनों मुठ मारने लगे. उन्होंने अग्रिमा को सीधा किया और उसे अपना मुंह खोलने के लिए कहा. जैसे ही रस की फुहार निकलीं तो अग्रिमा के चेहरे पर और मुंह में कामरस की बौछार हो गयी. दोनों भाइयों ने अग्रिमा को वीर्य का स्नान करने के बाद ही अपने लौडों को छोड़ा. अग्रिमा के चेहरे पर सफ़ेद गाढ़ा चिपचिपा वीर्य बह रहा था. उसके चेहरे पर एक असीम संतुष्टि के भाव थे. उसने अपनी उँगलियों से वीर्य को एकत्रित किया और अपने मुंह में डाल लिया.

“सच में आज मुझे आप दोनों ने इतना आनंद दिया है कि इसकी मैं तुलना नहीं कर सकती. मैं व्यर्थ ही आपसे चुदवाने में संकोच कर रही थी. अब आप जब चाहो, तब मेरी इस प्रकार की चुदाई कर सकते हो.”

“जब तक तुम ऐसी चुदाई चाहोगी, ऐसी ही करेंगे. जिस दिन तुम्हारा मन बदला उस दिन भी हम तुम्हें पूरी संतुष्टि देंगे.”

“आज आप दोनों यहीं सो जाओ. आज के लिए इतना ही, पर मैं अकेले नहीं सोना चाहती.”

“ठीक है, चलो अब मुंह धो लो, फिर सोते हैं.”

“नहीं, मुझे इसी प्रकार से सोना है.”

ये सुनकर कुमार ने बत्ती बंद की और दोनों भाई अग्रिमा के अगल बगल लेट गए और कुछ ही देर मैं सब सो गए.

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अगले दिन:

आशीष सुबह तड़के ही निकल गया. असीम और कुमार भी अग्रिमा के कमरे से अपने कमरे में आकर कुछ देर और सो रहे थे. नौ बजे सलोनी ने उन्हें जाकर जगाया और दोनों नाश्ते के लिए आ गए. नाश्ते के बाद सब अपने अपने काम में लग गए. असीम और कुमार दोपहर का खाना खाकर बाहर चले गए. अग्रिमा अपने कमरे में ही रही. शाम होने को थी. सुनीति के पास किसी का फोन आया. बात करने के बाद उसके चेहरे पर एक ख़ुशी छा गयी. छह बजे तक आशीष भी आ गए. और उनके पीछे पीछे असीम और कुमार भी.

सभी लोग बैठक में बैठे तो सुनीति ने कहा, “आज मधुजी का फोन आया था. उन्होंने बताया कि स्मिता ने असीम के लिए स्वीकृति दी है. अब हमारे पास एक सप्ताह का समय है अगर हम मना करना चाहें तो. पर एक बात है, कि जो भी निर्णय हम उन्हें बताएँगे, वो तटस्थ होगा. फिर बदलने की अनुमति नहीं है.”

आशीष: “मेरे विचार से महक और असीम को एक दिन के लिए साथ घूमने के लिए भेजो. हाँ, उन्हें अपनी सीमा में रहना है. और अगर इसके बाद वो दोनों एक दूसरे को ठीक समझते हैं तो हमें भी स्वीकृति दे देनी चाहिए.”

सुनीति: “ये ठीक है, मैं एक बार मधुजी से इसके लिए पूछ लेती हूँ.”

उसने फोन पर बात की और बताया कि इसमें कोई आपत्ति नहीं है. फिर उसने स्मिता से बात की और उसकी स्वीकृति के बाद कहा कि असीम और महक ही ये निश्चित करें कि उन्हें कब जाना है.

अब आशीष बोला: “मैं जिस अनुबंध के लिए गया था वो हमारी खेतों की उपज को सीधे रिसोर्ट को देने का है. मनोहर जी के ऐसे पाँच और रिसोर्ट हैं और हमें उन पाँचों को अपनी उपज देनी होगी.”

सुनीति: “पर इतनी कैसे पूरी पड़ेगी उनके लिए?”

आशीष: “पापा ने उनके चारोँ मित्रों के खेत, जिसमे तुम्हारे पिताजी के खेत भी हैं, एक ही मैनेजर के प्रबंध में दे दिए हैं. मेरे विचार से वे भी इस अनुबंध का अपरोक्ष रूप से भागीदार बन सकेंगे. हम उन सबसे उपज लेकर सीधे रिसोर्ट को देंगे. उन्हें और हमें सबको इसमें लाभ मिलेगा.”

सुनीति: “आपने पापाजी से बात की? या स्वयं ही सब तय कर लिया.”

आशीष: “आज करूंगा. अभी तो स्वयं ही तय किया है. मुझे इसमें सबका लाभ दिख रहा है.”

सुनीति (कुछ चिंता से): आप पापाजी से बात कर लीजिये, अभी.”

आशीष: :ओके, बेबी.”

आशीष ने फिर जीवन से बात की और उसे नए अनुबंध के बारे में बताया और उनके मित्रों की उपज खरीदने का भी प्रयोजन समझाया. जीवन ने कहा कि वो सबसे बात करेगा और कुछ ही देर में बताएगा. जीवन का एक घंटे बाद फोन आया और उसने कहा कि उसके मित्र इस अनुबंध से खुश हैं, परन्तु वो आशीष की कम्पनी को दो प्रतिशत शुल्क देने की जिद किये बैठे हैं. उनका कहना है कि अधिकतर कार्य और आशंका के लिए आशीष को ही उत्तरदायी माना जायेगा. इसीलिए, ये शुल्क उसे लेना चाहिए. अंत में आशीष ने भी स्वीकार किया और सब ने इसे स्वीकृति दे दी.

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जीवन का गाँव, कुछ दिन बाद:

आज जीवन और गिरी अपने शहर लौट रहे थे. बलवंत और गीता भी उनके साथ थे. बलवंत ने भी एक ड्राइवर बुला लिया था जो उसकी गाड़ी शहर छोड़कर लौटेगा. निकलते समय गिरी की आँखों में आंसू थे. वो सबसे गले मिल मिलकर रो रहा था. सभी उसके इस अश्रुपूर्ण आलिंगन का अपनी ओर से भी यथावत उत्तर दे रहे थे. स्त्रियों ने विशेषकर उसके आलिंगन का भरपूर साथ दिया. इन दस दिनों में उसकी सेक्स की ऊर्जा लौट आयी थी और इसके लिए वो इन सबका हमेशा के लिए आभारी था. इन दस दिनों में उसने हर स्त्री के हर अंग को भरपूर भोगा था. उनके पति भी उसे इसके लिए उत्साहित करते रहे थे. मुंह, चूत हो या गांड कोई भी छेद अछूता नहीं रहा था. वो इस समय को कभी नहीं भूल सकते थे.

गिरी: “आपको कभी भी लगे की ऐसी कोई भी समस्या है जिसमे मैं आपकी सहायता कर सकता हूँ तो मुझे अवश्य बताना. आप ने मुझे नया जीवनदान दिया है, और इसके लिए मैं आपका सदैव के लिए ऋणी रहूंगा.”

उन सबको घर आने का निमंत्रण देकर वो गाड़ी में बैठने लगा तो उसे पीछे से निर्मला ने अपनी बाँहों में ले लिया.

“भाईसाहब, आप भी जब चाहें हमारे घर आईये. वैसे भी हमारे गाँव में वैद्य की बड़ी कमी है.”

सब इस बात पर हँसते हुए एक दूसरे से विदा लिए और गाड़ियां शहर की ओर दौड़ पड़ीं.

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