समुदाय का मिलन समारोह
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समुदाय का मिलन समारोह
आज सुबह :
समुदाय के कार्यक्रमों के आयोजन नगर के बाहर एक रिसोर्ट में होते थे. कुल मिलकर लगभग सौ से एक सौ बीस लोग भाग लेते थे और इसके लिए कोई भी और स्थान उपयुक्त नहीं था. रिसोर्ट के स्वामी समुदाय के सदस्य थे और वे सारा आयोजन बहुत गोपनीय रखते थे. जिस समय ये आयोजन होता था रिसोर्ट में समुदाय के सिवाय कोई नहीं होता था. सभी कर्मचारियों को छुट्टी दे दी जाती थी. सारे सदस्यों के आने के पश्चात् रिसोर्ट को बंद कर दिया जाता था. पूरे रिसोर्ट में CCTV लगे थे और किसी एक परिवार को लॉटरी द्वारा इन्हें देखने के लिए चुना जाता था. परिवार के एक सदस्य को सदैव कण्ट्रोल रूम में कैमरों द्वारा निगरानी रखनी होती थी.
समुदाय की सबसे वरिष्ठ सदस्या रिसोर्ट मालिक की माँ मधुलिका चड्ढा (मधु जी) थीं, प्रबंधन समिति की मुखिया थीं. ये कहा जाता है कि इस समुदाय की नींव इन्होने अपने पति के साथ रखी थी. प्रबंधन समिति में केवल वही एकमात्र थीं जिनके पास वीटो था, अर्थात वे किसी भी निर्णय को नकार सकती थीं, हालाँकि अकेले निर्णय लेने का अधिकार उन्हें भी नहीं था. प्रबंधन समिति के अन्य चार सदस्यों में दो पुरुष और दो महिलाएं थीं. कोई भी सदस्य एक परिवार से नहीं था. प्रति वर्ष अन्य चार सदस्य नए चुने जाते थे और इसके लिए भी एक निर्धारित पद्दति बनाई हुई थी. ये समुदाय का १२वां वर्ष था और आज तक इसे छोड़कर कोई भी नहीं गया था.
समुदाय में विवाह अंदर ही करने का प्रचलन था, हालाँकि अगर बाहर विवाह होता था तो परिवार को एक वर्ष के लिए अस्थायी रूप से निष्काषित किया जाता था जिससे वे नए वर या वधु को अपने रंग में ढाल सकें. अगर वे इसमें सफल होते थे तो एक वर्ष या उसके बाद वे समुदाय में लौट सकते थे. और जैसा कि बताया गया है, आज तक किसी को ये समुदाय छोड़ना नहीं पड़ा था.
प्रबंधन समिति की चर्चा प्रारम्भ हो चुकी थी. आर्थिक स्थिति को जांचने के पश्चात समुदाय के मासिक शुल्क में २०% की बढ़ोत्तरी का निर्णय हुआ. ये शुल्क प्रति सदस्य होता था, और स्त्रियों को इसमें १०% की छूट दी जाती थी. इसके बाद उन प्रस्तावों पर विचार किया गया जिसमें सदस्य अपने पुत्र या पुत्री को अगले महीने सम्मिलित करने के इच्छुक थे. इस बार कुल तीन नए प्रस्ताव थे. तीनों परिवार के सदस्यों को बुलाया गया और उनसे इस बात की पुनः पुष्टि की गयी. तदोपरांत उनके प्रस्ताव स्वीकार होने पर नए आने वाले सदस्य का पंजीकरण शुल्क एवं अगले वर्ष का शुल्क ले लिया गया. उन्हें बधाई देकर, आगे के कार्यक्रम के लिए सभा चलती रही.
एक नए सदस्य परिवार का आज परिचय दिया जाना था. और इस समय तक प्रबंधन समिति के पांच सदस्यों और उस परिवार के प्रायोजक के सिवाय किसी को भी इनके बारे में कुछ भी नहीं पता था. ये बताया गया कि परिवार के छह सदस्य रिसोर्ट में पहुँच चुके थे और वे अपने उद्घाटन के लिए उत्सुक थे. अन्य कई और विषयों पर चर्चा करने के बाद सभा समाप्त हुई. बाहर देखा तो समुदाय के अधिकतर लोग आ चुके थे और लॉन में होकर चाय या जूस पी रहे थे. समुदाय के आयोजनों में शराब पर कठोर पाबन्दी थी. आयोजन १२ बजे प्रारम्भ होता था और १.३० पर खाने का समय होता था. चूँकि अभी समय शेष था तो पांचों आगे बढ़कर अन्य सदस्यों से मिलने में व्यस्त हो गए. कुछ देर में ११.३० बजने को आये और सभी लोग सभागृह में चले गए.
सभी लोगों ने जाकर समुदाय की पोषक पहनी, जो एक चोगा और जो केवल एक डोर से बंधा हुआ था. ये रेशम के धागे से बने हुए थे और पुरुषों के गाउन नीले और स्त्रियों के लाल रंग के थे. अन्य किसी भी प्रकार के वस्त्र या आभूषण की अनुमति नहीं थी. स्त्रियां नाक और कान के आभूषण पहन सकती थीं, और कोई भी आभूषण, घडी, मोबाइल इत्यादि अपने लॉकर में ही छोड़ना था. गाउन में कोई जेब नहीं थी. वस्त्र परिवर्तन के पश्चात् सभी सभागृह में प्रविष्ट हो गए.
सभागृह में प्रवेश करने के बाद सभी दरवाजे बंद कर दिए गए, और रिसोर्ट में लगे कैमरों से ये स्थापित किया गया कि समुदाय के सिवाय वहां कोई और नहीं है. कैमरों की निगरानी के लिए मधुजी ने एक बड़े काँच के कटोरे में से एक पर्ची निकाली. जिस परिवार को कैमरों की निगरानी का दायित्व मिला, उस परिवार के लड़के ने, जो उनमे सबसे छोटा था जाकर मोर्चा संभाला. इसके बाद सभी लोग अपने परिवार के साथ ही बैठ गए. प्रबंधन समिति के सदस्य सामने बने स्टेज पर एक ओर जाकर बैठे.
आज उस स्टेज के दो छोर पर दो पलंग लगे हुए थे जो नए परिवार के सदस्यों के लिए थे. इस कमरे के पलंग केवल छह इंच ऊंचे थे, यानि बहुत ही कम ऊंचाई के थे. समय के साथ समुदाय ने सामान्य पलंग बदल कर उन्हें छोटा कर दिया था. इन्हें देखने के बाद सदस्यों में एक उत्साह की लहर दौड़ गई. सभी नए सदस्यों का दर्शन करने के लिए लालायित थे.
समिति की मुखिया श्रीमती मधुलिका चड्ढा (मधु) खड़ी हुईं और माइक पकड़ लिया. मधु जी इस समय ६५ वर्ष की आयु पार कर चुकी थीं पर उनके चेहरे की कांति और शरीर का स्वरूप आज भी लोगों को आकर्षित करता था. उनके पति, बेटा, बहू अपने बच्चों के साथ नियत स्थान पर बैठे थे.
मधु: “साथियों आज हम फिर अपने मासिक समारोह के लिए एकत्रित हुए है. आप सबका स्वागत है.”
सभी ने तालियां बजाकर उनका उत्तर दिया.
“मुझे ये घोषणा करते हुए अत्यंत प्रसन्नता हो रही है कि हमारे समुदाय में एक और विवाह तय हुआ है और उसे सम्पन्न किया जायेगा. मैं चाहूंगी कि भावी पति और पत्नी सामने आएं और आप सबका आशीर्वाद लें.” एक लड़का और एक लड़की निकल कर आये और स्टेज पर खड़े हो गए.
“जैसा कि हमारा प्रचलन है, हम सामाजिक विवाह को एक औपचारिकता मानते हैं. हम प्रबंधन समिति, आप सबकी अनुमति से, इन्हें आज ही विवाह सूत्र में बांध रहे हैं. अगर किसी को भी आपत्ति हो तो वो आज और इसी समय बोले, या जीवन पर्यन्त शांत रहने का निर्णय ले.”
कुछ समय तक किसी की आपत्ति की प्रतीक्षा करने के उपरान्त उन्होंने आगे बोलना आरम्भ किया, “इसके बाद सामाजिक विवाह अपने समय अनुसार होगा, पर हमारी दृष्टि में ये आज ही पति-पत्नी माने जायेंगे. इनके माता-पिता से भी यहाँ आने की विनती है.”
दोनों के माता पिता भी आकर खड़े हो गए. इसके बाद समिति के अन्य चार सदस्य मधु जी के साथ खड़े हो गए. लड़की के पिता ने अपनी बेटी के शरीर के चोगे की डोर खींची और उसके चोगे को निकाल कर उसकी माँ को दे दिया. उधर लड़के की माँ ने उसका चोगा निकाला और उसके पिता को दे दिया. भावी वर वधू सबके सामने खड़े हो गए. लड़के की माँ ने फिर उसका चोगा लड़की की माँ को सौंप दिया. वहीँ लड़की के पिता ने उसका चोगा लड़के के पिता को दे दिया.
“समुदाय के इस प्रतीक के एक परिवार से दूसरे परिवार में देने से अब ये परिवार एक हो गए हैं. वधू की सभी खुशियों और इच्छाओं का उत्तरदायित्व अब वर के परिवार का है.”
वर-वधू ने अपने माता-पिता और फिर पांचों समिति के सदस्यों का आशीर्वाद लिया.
मधु जी: “अब इनका सामाजिक विवाह २ महीने बाद है. समाज के नियमों के अनुसार ये तब तक साथ नहीं रह सकते और जैसा कि हमारी परम्परा है, समुदाय अपने व्यय पर इन्हें एक सप्ताह के लिए बाहर भेज रहा है. अब आप इन दोनों परिवारों के एकीकरण के लिए इन्हें बधाई दें. वर और वधू आयोजन के समापन के पश्चात् आप सबको एक साथ विदा करेंगे.”
ये कहकर मधुजी ने कार्यक्रम के इस चरण का समापन किया.
मधुजी: “मेरे प्यारे साथियों, जैसा आप जानते हैं अगले चरण के लिए, आपको किसी अन्य परिवार के साथ बैठना है. इसके लिए हमारी पर्चियां बनी हुई हैं. जैसा आप जानते हैं, पर्चियों पर स्त्रियों के नाम हैं. अगर पर्ची आपके ही परिवार के सदस्य की होगी तो अंत में आप उसे बक्से में डालकर नई पर्ची निकाल सकते हैं. अगर ऐसा होगा तो आपको उस कोने में जाकर खड़ा होना होगा. हर स्त्री की पर्ची पर एक का नंबर है, पर्ची निकलने के बाद उन्हें अपने साथी के साथ उस निर्धारित पलंग पर जाना है. क्योंकि आज मिलन में पुरुष अधिक हैं तो उनके साथी का निर्णय बाद में एक लॉटरी से होगा.”
इसके बाद उन्होंने एक लड़के को बुलाया और उसे पर्चियों से भरा एक कांच का बक्सा दिया. साथ में एक लड़की भी थी जो एक खाली कांच का बक्सा लिए हुए थी. इस बक्से में पढ़ने के पश्चात् स्त्रियों ने पर्ची लौटानी थी.
लड़के ने सबसे पहले समिति के पुरुष सदस्यों को अपनी पर्ची निकालने का आग्रह किया. पर्ची पर नाम देखकर वे अपनी साथी स्त्री के पास गए और निर्धारित स्थान पर बैठ गए. लड़के ने लगभग दस मिनट में सभी पर्चियां बाँट दीं. पर अभी भी ६ पुरुष शेष थे जिन्हें कोई साथी नहीं मिला था. और ४ पुरुष ऐसे थे जिन्हें उनके ही परिवार की सदस्य मिली थी. ये दस पुरुष एक ओर खड़े हो गए. चारों पर्चियां बक्से में लौटा दी गयीं और पहले उन ६ पुरुषों को निकालने के लिए दी गयीं. इस बार सबको सही साथी मिले और वे अपने साथी के साथ निर्धारित पलंग पर बैठ गए. लड़की के हाथ के बक्से में अब सारी पर्चियाँ थीं और लड़के के हाथ का बक्सा अब खाली था.
कुल आठ पुरुष (बक्से वाले लड़के और निगरानी पर लगे को मिलाकर) बिना साथी के थे. लड़की ने सबसे पहले लड़के की और बक्सा बढ़ाया. यही प्रक्रिया उसने उपस्थित अन्य पांच पुरुषों के साथ भी की. छटवें पुरुष को लड़की ने अपनी पर्ची सौंप दी. फिर उसने निगरानी पर लगे लड़के के लिए एक पर्ची निकाली और उसकी घोषणा कर दी. इसके बाद उसने अपनी पर्ची को बक्से में डाला और अपने साथी के साथ अपन बेड पर चली गई. इस पूरे आयोजन में लगभग ३० मिनट निकल गए थे.
इस पूरी गतिविधि पर छह जोड़े ऑंखें गढ़ाकर देख रही थीं. ये वो परिवार था जिसे आज सम्मिलित किया जाना था. वो पूरे आयोजन के सञ्चालन से बहुत प्रभावित हुए थे. और अब समय था उनके स्टेज पर बुलाये जाने का. मधुजी, जो स्वयं एक पलंग पर बैठी हुई थीं खड़ी हो गयीं और प्रबंधन समिति के सदस्यों के साथ स्टेज पर लौट गयीं.
“अब आप सबको अपने साथी मिल चुके हैं. आशा है आप सब लगे हुए पलंग पर सुखद अनुभव कर रहे होंगे. मैं देख रही हूँ आज की उन सौभाग्यशाली महिलाओं को जिन्हें आज दो दो पुरुष साथियों का सान्निध्य प्राप्त हुआ है. मुझे विश्वास है कि इन सभी को आनंद आएगा. अब हम अपने अगले चरण के लिए अग्रसर होंगे. आज का दोपहर का खाना देर से होगा, क्योंकि आज एक विवाह संपन्न करने और अब एक नए परिवार को परिचित करते हुए उन्हें समुदाय में सम्मिलित करने के कारण समय अधिक व्यतीत होगा. पर मुझे नहीं लगता कि किसी को खाने की इतनी तीव्र इच्छा होगी जब पकवान आपके साथ ही होगें.” इस बात पर सब खुल के हँसे और कुछ लोगों ने ताली भी बजाई।
“अब इस दूसरे चरण की समाप्ति के साथ हम आपको अपने से आज जुड़ने वाले एक नए परिवार से परिचय करवाते हैं. मैं समझती हूँ कि आपमें से कुछ उनके साथ के लिए उत्सुक होंगे.” ये कहते हुए मधुजी ने सभी परिवारजनों का बिना नाम लिए हुए परिचय कराया.
सभी लोग अपने स्थान पर खड़े हो गए स्वागत के लिए.
“तो आइये मिलते हैं हमारे समुदाय के नए सदस्य परिवार से: राणा परिवार”
सभी लोग तालियां बजाने लगे.
सबसे पहले घर के मुखिया श्री जीवन राणा.
जीवन ने प्रवेश किया.
उनके बाद उनके बेटे श्री आशीष राणा.
आशीष स्टेज पर आ गया.
आशीष की पत्नी श्रीमती सुनीति राणा।
सुनीति स्टेज पर आयी.
आशीष और सुनीति की पुत्री अग्रिमा.
अग्रिमा ने स्टेज पर कदम रखे.
आशीष और सुनीति का बड़ा पुत्र असीम.
असीम स्टेज पर आया.
और उनका छोटा पुत्र कुमार.
कुमार भी स्टेज पर आ गया.
राणा परिवार ने समुदाय के चोगे पहने हुए थे. और जैसा कि उन्हें समझाया गया था. सबसे पहले जीवन आगे बढ़ा और उसने अपने चोगे को उतार कर एक ओर पड़ी कुर्सी पर डाल दिया. उसके बाद वो सबकी ओर मुंह करके खड़ा हो गया. अब आशीष आगे बढ़ा और उसने भी अपने चोगे को निकाला और कुर्सी पर डाल दिया और अपने पिता के साथ खड़ा हो गया. सुनीति ने जैसे ही अपना चोगा उतारा तो कई सारी “आह” की आवाज़ें सुनाई दीं. सुनीति ने मुस्कुराते हुए अपने चोगे को कुर्सी पर रखते हुए आशीष के साथ का स्थान ले लिया. इसी प्रकार अग्रिमा, असीम और कुमार ने भी किया और समस्त परिवारजन पूरे समुदाय के समक्ष नंगे खड़े हुए थे. औरतों की चूतें पसीजने लगीं थीं तो वहीँ पुरुषों के लौड़े खड़े हो चुके थे.
इसके बाद मधुजी ने आगे बढ़कर सभी को समुदाय की शपथ दिलाई.
मधुजी: “मैं आज आप सबकी ओर से अपने नए सदस्यों का स्वागत करती हूँ. अब जैसा कि हमारा नियम है, ये हमारे समक्ष अपने पारिवारिक सम्भोग का प्रदर्शन करेंगे. मैं जीवन जी से पूछना चाहूंगी कि वो ये किस प्रकार से प्रस्तुत करेंगे. आप किसी भी भाषा में इसे समझा सकते हैं. अर्थात अगर आप सम्भोग के स्थान पर चुदाई शब्द का उपयोग करेंगे तो भी इसे उपयुक्त ही माना जायेगा.”
जीवन: “आप सभी को मेरा नमस्कार. मैं अपने परिवार की ओर से आप सबका धन्यवाद करता हूँ जो अपने हमें अपने समुदाय में स्थान दिया. हम समुदाय के सभी नियमों का पालन करेंगे और किसी भी प्रकार से आपको गलत सिद्ध नहीं होने देंगे. आज मैं और मेरा बेटा आशीष, मेरी पोती अग्रिमा की चुदाई करेंगे और मेरे दोनों पोते मेरी बहू और उनकी माँ सुनीति की. मुझे आशा है कि आपको हमारा ये प्रदर्शन आपको आनंदित करेगा.”
ये कहते समय आशीष अग्रिमा को लेकर जीवन के साथ खड़ा हो गया और असीम और कुमार सुनीति के दोनों ओर खड़े हो गए. पर इन सबसे अलग कुछ लोग सुखद आश्चर्य से उन्हें देख रहे थे. ये कोई और नहीं बल्कि शेट्टी परिवार के पांचों सदस्य थे, जो राणा परिवार के पड़ोसी थे और उनके समधी परिवार के चार सदस्य, जो उन सबसे पहले मिले हुए थे.
मधुजी: “मैं जानती हूँ, कि आपमें से कुछ इन्हें पहचानते होंगे, परन्तु इस जान पहचान को स्वयं तक ही सीमित रखें. समुदाय में सभी से एक ही व्यवहार किया जाता है. अब हम अपने मिलन समारोह का तीसरा चरण आरम्भ करेंगे. कृपया आनंद लें. हमारे सुमदाय का लक्ष्य यही है. मैं जीवन जी के परिवार को आमंत्रित करूंगी कि वे अपने पारिवारिक प्रेम का लीला का शुभारम्भ करें.”
जीवन और आशीष अग्रिमा के साथ एक ओर पड़े पलंग की ओर चले गए और सुनीति, असीम और कुमार के साथ दूसरी ओर।
मधुजी: “मैं आशा करूंगी कि सभी सदस्य इस प्रदर्शन पर ध्यान देंगे और अपनी भावनाओं पर अंकुश लगाएंगे और स्वयं सम्भोग में लिप्त नहीं होंगे. आप जानते हैं की इस परिवार के ऐसे प्रदर्शन का ये एकमात्र अवसर है और ये हमारे मिलन में कभी दोबारा इस प्रकार से नहीं मिलेंगे.”
सभी सदस्यों ने इस बात पर स्वीकृति दी. ये उनके संयम की भी परीक्षा थी. उनके अपने शारीरिक उत्सव में अभी देरी थी पर वे जानते थे कि ये समय और दृष्टान्त उन्हें दोबारा कभी भी देखने को प्राप्त नहीं होगा.
जीवन और आशीष, अग्रिमा को अपनी बाँहों में लेकर चूम रहे थे. जहाँ जीवन उसके होंठों का स्वाद ले रहा था, वहीँ आशीष उसके पीछे से उसकी गर्दन और कानों में अपने होठों से मिश्री घोल रहा था. सुनीति को भी उसके दोनों पुत्र अपने बाहुपाश में बाँधे हुए थे पर उनकी होंठों का लक्ष्य सुनीति के तने हुए स्तन थे. दोनों ने एक एक स्तन को अपने होंठों में लिया हुआ था. वहीँ जहाँ असीम के हाथ सुनीति की चूत को छेड़ रहे थे, कुमार ने अपने हाथ को सुनीति के नितम्बों पर रखा हुआ था और संभवतः उसकी एक या दो उँगलियाँ उसकी गांड को छेड़ रही थीं.
सुनीति पलंग पर बैठी और अपने दोनों बेटों के लौड़े अपने मुंह में लेकर चाटने लगी. दर्शक दीर्घा उस दोनों के लंड देखकर बहुत प्रभावित थी. औरतें अपनी चूतें सहला रही थीं और लड़के सुनीति के हिलते मम्मों में खोये हुए थे. पुरुषों का ध्यान दूसरी ओर चल रहे समागम पर था जहाँ अब अग्रिमा भी पलंग पर बैठी अपने नाना और पिता के लौड़े चूस रही थी. जब ये निश्चित हो गया कि लंड अपने सबसे कड़े स्तर पर पहुँच गए हैं तो अग्रिमा पलंग पर लेट गयी. जीवन उसके आगे झुका और उसकी चूत में अपना मुंह डालकर उसे चूसने लगा. दर्शकों को दूरी के कारण अधिक कुछ दिख नहीं रहा था, परन्तु उन्हें इस प्रेमालाप की भावना अधिक प्रिय थी.
सुनीति भी लेट गई और उसकी चूत में कुमार ने अपना मुंह डाल दिया.
आशीष ने ऊपर होते हुए अपने लंड को अग्रिमा के मुंह में डाल दिया जिसे वो बहुत प्रेम से चूस रही थी. असीम ने अपने लंड को सुनीति के मुंह में डाला हुआ था और सुनीति के बड़े बड़े मम्मे दबाने लगा. हालाँकि दर्शक सूक्ष्मता से कुछ भी नहीं देख रहे थे परन्तु उन्हें ये अवश्य चकित कर रहा था कि इस परिवार को इतने लोगों के सामने अपने प्रदर्शन में कोई भी कठिनाई नहीं हो रही थी. कई लोग अपने पहले प्रदर्शन की याद करके अचंभित थे, क्योंकि उन्हें बहुत ही कठिनाई हुई थी.
अब चूँकि समय सीमित था, इसलिए जीवन ने उठकर अपने लंड को अग्रिम की चूत में लगाकर अंदर धकेल दिया. जैसे ही उसका लंड अंदर प्रवेश किया हॉल तालियों की ध्वनि से गूँज उठा. और ये तालियाँ रुक नहीं पायीं क्योंकि कुमार ने भी अपने लंड को सुनीति की योनि में डाल दिया था. कुछ समय पश्चात् तालियॉँ थम गयीं, परन्तु चुदाई अभी प्रारम्भ ही हुई थी.
जीवन और कुमार अपनी समुदाय की अन्य स्त्रियों को अपनी शक्ति का प्रदर्शन करने के लिए अच्छी गति से लम्बी और गहरी चुदाई कर रहे थे. और सच ये था कि उनके इस कौशल पर समुदाय की अधिकतर स्त्रियां अपनी चूत से बहते हुए पानी को रोक नहीं पा रही थीं. परन्तु इसका अर्थ ये नहीं था कि पुरुष वर्ग किसी भी प्रकार की ईर्ष्या से उद्विग्न था. सभी यहाँ पर सम्भोग को प्रेम का पर्याय मानते थे और जहाँ शक्तिशाली चुदाई अच्छी लगती थी, वहीँ प्रेम का सम्भोग ही इस पूरे समुदाय की नींव थी.
कुछ समय के बाद जीवन और आशीष ने अपने स्थान परिवर्तित किये और अब आशीष अपनी बेटी की चुदाई में व्यस्त हो गया वहीँ अग्रिमा अपने नाना के लंड पर से अपनी चूत के रस को चाटने के बाद चूसने लगी. परिवार के सामंजस्य की ये अति थी कि जहाँ एक ओर कुछ भी परिवर्तन होता कुछ ही समय में बिना किसी आग्रह के दूसरी ओर वही होता था. असीम अब अपनी माँ सुनीति की चुदाई कर रहा था और कुमार सुनीति को उसकी ही चूत के रस से लथपथ लंड चूसने के लिए प्रस्तुत कर रहा था. सुनीति ने उसे अपने मुंह में लेने में एक क्षण की भी देरी नहीं की.
हॉल का वातावरण अत्यंत वासनामयी हो चूका था. सभी बहुत कामातुर हो चुके थे परन्तु सामने चल रहे दृश्य पर से वे आंख नहीं हटा पा रहे थे. कुछ स्त्रियों अपने साथी के लंड अपने हाथ में लेकर हिला अवश्य रही थीं पर उनका पूरा ध्यान सामने चल रही चुदाई पर ही था. चूँकि प्रदर्शनी के लिए मात्र २० मिनट ही नियुक्त थे, एक घंटी ने खिलाडियों को सूचित किया कि अब केवल ५ ही मिनट बचे हैं. परन्तु इस सूचना की आवश्यकता नहीं थी, सुनीति और अग्रिमा की आनंदकारी सिसकारियां हॉल में गूंज रही थीं. और चारों पुरुष भी अपने चरम पर पहुँच चुके थे. कुछ ही क्षणों में प्रेम के लावे ने सुनीति और अग्रिमा की चूतों को भर दिया। दूसरे छोर पर भी कुमार और जीवन ने अपने रस से दोनों के मुंह भर दिए.
जीवन, आशीष, कुमार और असीम उठकर खड़े हुए और सबके सामने झुकते हुए तालियों का अभिनन्दन किया. अग्रिमा उठी और उसने अपनी माँ के मुंह पर अपनी चूत रखते हुए 69 की मुद्रा में सुनीति की चूत में अपना मुंह डाल दिया. माँ बेटी ने एक दूसरे की चूतों से बह रहे रस को चाटकर और चूसकर ग्रहण किया. हॉल में तालियां अब रुक नहीं रही थीं. जब अग्रिमा ने अपने चेहरे को ऊपर किया तो सभी उसके चेहरे पर चमक रहे कामरस को देख पा रहे थे. इस बार अग्रिमा उठ गयी और उसने झुकते हुए अभिनन्दन किया और उसके पीछे पीछे सुनीति ने भी आकर यही कार्य सम्पन्न किया. इसके बाद सबने अपने चोगे पहने और एक ओर खड़े हो गए.
इसके बाद मधुजी ने घोषणा की, “इसके साथ ही वो सारे कार्यक्रम जो आवश्यक तो हैं पर जिनसे आप सबके मिलन समारोह में रुकावट आती है, समाप्त हुए.”
पूरा हॉल इस टिप्पणी पर हंसने लगा.
“अब हम भोजन के लिए एक घंटे का विराम लेंगे. भोजन सदैव के समान उसी स्थान पर है. मैं प्रबंधन समिति के सदस्यों से आग्रह करूंगी कि वे आगे आएं और हमारे नए परिवार को भोजन के लिए ले चलें.”
भोजन भी एक प्रकार का मिलन समारोह ही था. सभी एक दूसरे के साथ मिल रहे थे. सबसे अधिक उत्सुकता राणा परिवार से मिलने की थी और उनके पास बहुत लोग जमा थे. एक दूसरे से परिचय हो रहा था पर चूँकि फोन या और कुछ भी उपलब्ध नहीं था तो सभी समुदाय की प्रकाशित होने वाली मासिक पत्रिका की प्रतीक्षा कर रहे थे, जो समारोह के अंत में मिलती है. इसका प्रकाशन गुप्त रखा जाता था, हालाँकि इसमें ऐसा कुछ भी नहीं होता था जो आपत्तिजनक हो.
भोजन समाप्त होने में एक घंटा निकल गया और सभी लौट कर अपने निर्धारित स्थानों पर लौट गए. राणा परिवार भी स्टेज पर अपने पहले वाले स्थान पर पहुँच कर अगले कार्यक्रम की प्रतीक्षा करने लगा. हॉल को लॉक करने के पश्चात् मधुजी ने फिर से माइक संभाला, पर इस बार उनके साथ उनका साथी भी था जो २०-२२ वर्ष का लड़का था. घुंघराले बालों और लम्बे चौड़े व्यक्तित्व के उस लड़के की आभा बहुत आकर्षक थी. सुनीति के मुंह में पानी आ गया. परन्तु उसे अभी समुदाय के नियम ठीक से पता नहीं थे और इसीलिए उसने अपनी भावनाओं को संयत किया. और मधुजी की घोषणा सुनने लगी.
मधुजी: “मित्रों, आज मुझे बहुत प्रसन्नता है कि हमारा ये समुदाय अब २५ सदस्यों को छू चुका है. मैं ये भी बड़े गर्व से कहती हूँ, कि हमारे समुदाय से इन बारह वर्षों में आज तक कोई छोड़कर नहीं गया है. हम सब परिवार में स्वेच्छिक और बिना सीमा या ईर्ष्या के संबंधों में विश्वास रखते हैं. ये भी प्रसन्नता का विषय है कि आज हमारे दसवें जोड़े का विवाह संपन्न हुआ है. अर्थ ये है कि हमारे बीच में २० परिवार हैं जो अब सम्बन्धी भी बन चुके है.”
“इससे हमारा समुदाय और भी निकट आएगा और आशा है कि हम सब एक दूसरे को इसी प्रकार से प्रेम करते रहेंगे. क्योंकि आगे चलकर और विवाह भी होने हैं और उन्हें हमें यथोचित मधुमास के लिए भेजना है, तो जैसा हमारा पूर्व निर्णय था, हमारा मासिक शुल्क २० प्रतिशत से बढ़ाया जा रहा है. इसके साथ ही कुछ और भी परिवर्तन के सुझाव हैं जिन पर विचार किया जा रहा है, और उन्हें नई समिति के समक्ष हम अपनी टिप्पणियों के साथ रखेंगे. इस पर वे ही आगे निर्णय लेंगे.”
ये कहते हुए मधुजी ने अपने साथ खड़े लड़के की ओर देखकर सिर हिलाया और स्वयं माइक पर बोलती रहीं. लड़के ने उनके चोगे की डोर खोली और उसे उतारकर एक ओर रख दिया. लड़के ने भी अपना चोगा निकाला और मधुजी के चोगे के साथ रख दिया. सभी स्त्रियां उस कामदेव जैसे मोहक लड़के के देखकर आहें भरने लगीं. लड़का जिसने नाम सिद्धार्थ था मधुजी के पीछे खड़ा होकर उनके स्तन दबा रहा था. उसके पीछे खड़े होने के कारण उसका पूरा शरीर सबको दिख नहीं रहा था, पर जो औरतें उसके साथ समागम कर चुकी थीं वो जानती थीं कि वो एक पारंगत प्रेमी है और उन्हें मधुजी से जलन हो रही थी कि उन्हें आज उसका सामंजस्य प्राप्त हुआ है. मधुजी के लिए ये नया नहीं था, वे बिना रुके अपनी बात कहे जा रही थीं, और अब उनकी बातें समाजिक परिपेक्ष में अश्लील होने लगी थीं.
“हमारा ये चरण सदैव के समान सवा घंटे का होगा। मुझे आशा है कि ये समय एक बार चूत चुदवाने और एक बार गांड मरवाने के लिए पर्याप्त होगा. और आप में से कोई भी इस आनंद से वंचित नहीं रहेगा. मैं उन सदस्य महिलाओं को बधाई देती हूँ जिन्हे आज दो पुरुषों का संसर्ग प्राप्त हुआ है. मुझे आशा है कि वे इस अवसर का पूरा लाभ उठाएंगी और अपनी चूत और गांड दोनों में लौड़े लेकर अपनी शरीर और आत्मा की तृप्ति करेंगी. इसके बाद ३० मिनट का एक और विराम होगा. उसके बाद विवाह का कार्य पूर्ण किया जायेगा. तो आइये, अब इस परस्पर प्रेम का आनंद उठायें.”
ये कहते हुए मधुजी ने माइक बंद किया और मुड़कर सिद्दार्थ के बाँहों में लेकर उसे चूम लिया. और ये चुम्बन चलता रहा और एक दूसरे को चूमते हुए वे अपने निर्धारित पलंग पर पहुँच गए. अन्य पलंगों पर भी यही गतिविधि चल रही थी. राणा परिवार जो ऊपर स्टेज पर बैठा था उसे सामने का पूरा सामूहिक चुदाई का दृश्य दिख रहा था. उन्हें आज मात्र देखने की ही अनुमति थी, जिससे वो जान सकें कि समुदाय में किस प्रकार की क्रीड़ाएं इन मिलन के समय होती हैं. वे आज मात्र अपने परिवार में ही सहवास कर सकते थे.
इस सबसे अलग एक महिला निकल कर उस कक्ष में गयी जहां पर निगरानी पर लगा हुआ लड़का CCTV देख रहा था. कमरा बंद करते हुए उसने अपना चोगा निकाला और फिर उस लड़के को अपनी बाँहों में लेकर उसके चोगे को भी अलग कर दिया और उसके लंड को चूसने लगी.
मुख्य हॉल में वासना का तांडव हो रहा था. हर पलंग पर जोड़े एक दूसरे को संतुष्ट करने का पूर्ण प्रयास कर रहे थे. मधुजी की चूत में इस समय उस लड़के का मुंह था और उनके चेहरे के भावों से वो उन्हें सुख देने में उत्तीर्ण होता प्रतीत हो रहा था. किसी पलंग पर चूत चाटी जा रही थी, तो कहीं पर लंड. कहीं गांड में मुंह डाले हुए आदमी अपनी साथिन को सुख दे रहा था तो कहीं स्त्रियां अपने पुरुष साथी के लंड चूस रही थीं.
राणा परिवार ये सब देखते हुए स्वयं भी उत्तेजित हो रहा था. फिर जीवन ने अपना चोगा उतारा और सुनीति के सामने अपने लंड को हिलाया. परिवार के लिए ये संकेत पर्याप्त था. चंद पलों में ही सबके चोगे धूल चाट रहे थे. सुनीति के सामने चार लौड़े झूल रहे थे क्योंकि अग्रिमा तो सामने चल रही कामलीला से स्वयं को पृथक करने में असफल रही थी.
सुजाता के साथ उनकी ही आयु का एक पुरुष था जो उसकी चूत चाटने के बाद अब उसके मुंह में अपना लंड पेल रहा था. सुजाता अपनी चूत अपने ही हाथों से मसल रही थी. विवेक को आज एक ५६ वर्ष की स्त्री का संसर्ग प्राप्त हुआ था जो उसके लंड पर न्योछावर थी, और उसने चूत से पहले अपनी गांड मरवाने की इच्छा की थी. विवेक को एक भले मानुस होने के कारण इसमें कोई आपत्ति नहीं थी. मोहन जिस स्त्री के साथ था उसकी आयु ४५ वर्ष के निकट थी और वो उन सौभाग्यशाली महिलाओं में थी जिन्हें दो पुरुष साथी लॉटरी में मिले थे. और वो मधुजी के सुझाव अनुसार इसका पूरा लाभ उठा रही थी. जहाँ उसने मोहन के लंड को अपने मुंह में लिया हुआ था वहीँ एक ५० वर्ष का पुरुष उसकी चूत और गांड चाटने में व्यस्त था. इन सज्जन से वो पहले भी कई बार चुद चुकी थी और वो चूत को केवल चाटने और गांड को मारने के ही इच्छार्थी थे. चूत पर वो कम ही ध्यान देते थे. इसी कारण आज वो दोनों ओर से चुदवाने की इच्छुक थी.
अग्रिमा के ध्यान को न बाँटते हुए सुनीति ने चारों को स्वयं ही संतुष्ट करने का निश्चय किया. उसने जीवन को लिटाते हुए उनके लंड को अपनी चूत में सरकाया और अच्छी सवारी गांठ ली. इस ताल में आने के बाद जब उसे लगा की लंड सही बैठ गया है वो आगे की और झुकी. असीम ऐसी ही स्थिति के लिए आतुर था और उसने कुमार से बाजी मारते हुए, अपने लंड को सुनीति की गांड में पेल दिया. सुनीति की आनंद भरी कराह निकल गयी. पर उसे सोचने के लिए अधिक समय नहीं मिला क्योंकि इस बार कुमार ने अपने पिता को हराते हुए अपनी माँ के मुंह में लंड पेल दिया. आशीष मन मसोस कर रह गया. पर सुनीति ने उसे पास बुलाया और वो कुमार और आशीष के लंड एक एक करके चूसने लगी. माँ, पत्नी और बहू का ये दायित्व वो बिना किसी कठिनाई के निभा रही थी. जीवन अब उसकी चूत पेल रहा था और असीम गांड. मुंह में दो दो लंड गोचर कर रहे थे. इससे अधिक किसी भी स्त्री को जीवन में और क्या चाहिए भला?
स्मिता के हाथ आज कुछ निराशा हाथ लगी थी. मधुजी के पति उसके साथी थे और ये विदित था कि वे अब इस मिलन में समय निकालने हेतु ही आते थे. वो चुदाई तो करने में सक्षम थे, परन्तु उनमे इतना बल नहीं था कि वे सुनीति या समुदाय की अन्य चुड़क्कड़ औरतों को संतोष कर पाते। इसकी कमी वे चूत और गांड चाटकर पूरी करने का प्रयास करते थे, पर जो औरत लौड़ा खाने के लिए आयी हो, उसे मुंह से वो सुख नहीं मिलता था.
यही कारण था कि मधुजी के बिस्तर में उनका बेटा और बहू और उनके दो लड़के सोते थे. पलंग को इतना बड़ा बनवा लिया था कि सभी आसानी से उसमे समा जाते थे. सप्ताह में एक दो दिन मधुजी समुदाय के किसी लड़के या लड़की को बुला लेती थीं. उनके पति अब अलग कमरे में ही सोते थे. दोनों कमरों को कांच की दीवार से बाँटा था और वो जब तक इच्छा होती चुदाई देखते और सो जाते. उन्हें किसी भी प्रकार की कोई भी आपत्ति नहीं थी और वे अपने जीवन से संतुष्ट थे.
पर स्मिता के लिए ये दिन दुखदायक था. अन्य स्त्रियों का भी यही मत था परन्तु ये कहना नियमों के विरुद्ध था इसीलिए, कोई भी शिकायत नहीं करता था. स्मिता ने आज की रात किसी बहाने मेहुल के साथ बिताने का निश्चय किया. और इस निर्णय से उसकी आत्मा शांत हुई और वो अपनी चूत और गांड पर चलती हुई जीभ का आनंद लेने लगी. फिर उसने अगले आने वाले चरण के बारे में सोचा और एक नयी आशा से उसका मन भर गया.
हर पलंग पर एक नयी कथा लिखी जा रही थी. पर जो स्टेज पर चल रहा था उसका कोई सानी नहीं था. जो भी स्टेज की ओर देख पा रहा था वो सुनीति की क्षमता से प्रभावित हुए बिना नहीं रह पा रहा था. इस समय उसके शरीर में दो बड़े और मोटे लौड़े चूत और गांड की तीव्र और व्यग्र चुदाई कर रहे थे, पर वो इसके पश्चात् भी अपने सामने खड़े दो लौडों को अपने मुंह से समाप्ति की ओर ले जा रही थी.
पूरा हॉल इस समय सिसकारियों, आहों और चीखों से गुंजायमान था. मधुजी की चूत में एक बार रस गिराने के बाद सिद्दार्थ अब उनकी गांड की अच्छी और गहरी चुदाई कर रहा था. मधुजी जो चुदाई की अग्रणी खिलाड़ी थीं चीख चीख कर उसका उत्साह बढ़ा रही थीं. अन्य सभी पलंग से भी अब इसी प्रकार की वासनामयी चीखों की ध्वनि आ रही थी.
जब इस चरण का समय समाप्त होना था उसके १० मिनट पहले एक घंटी बजी. जो लोग अपने चरम पर थे उन्होंने अपने कार्य को शीध्र सम्पन्न किया. जो अभी भी दूर थे उन्होंने चुदाई में व्यग्रता लाई और अंततः सभी समय समाप्ति पर कम से कम दो बार झड़ चुके थे. महिलाओं ने अपने साथी के लंड को मुंह में लेकर साफ किया और फिर सब अपने चोगे पहन कर बाहर जलपान के लिए निकल गए, जैसे ये एक सामान्य थी.
इस बार भी जीवन के परिवार से मिलने कई परिवार पहुंचे। नवविवाहित जोड़े के दोनों परिवारों के पास भी लगभग उतनी ही भीड़ थी. और इसका एक विशेष कारण था. दूल्हे की माँ हर आने वाले पुरुष के हाथ पर कुछ लिख रही थी. वहीँ दुल्हन के पिता आने वाली स्त्रियों के हाथों पर लिख रहे थे. आधा घंटा यूँ ही समाप्त हो गया और सभी लोग अंदर लौट गए.
मधुजी ने फिर से माइक संभाला।
“साथियों, मुझे आशा है कि अपने पिछले चरण की चुदाई में आनंद लिया होगा. मुझे तो सिद्दार्थ ने बहुत दबा कर चोदा है और मेरी गांड में अभी तक सुरसुरी हो रही है. मैं उसकी माँ रुपाली का धन्यवाद करना चाहूँगी जिसने उसे इतनी अच्छी शिक्षा दी है. जिन महिलाओं ने सिद्धार्थ का लौड़ा अपने गांड में नहीं लिया है, मैं उन्हें इस त्रुटि को अति शीघ्र सुधारने का सुझाव देती हूँ.”
“अब जैसा आप सब जानते हैं, अगला चरण खुला चरण है. परन्तु क्योंकि आज हमने एक विवाह प्रमाणित किया है. इस विवाह को सम्पूर्ण करने हेतु अनमोल अर्थात दूल्हे की माँ लिपि जी ने जिन साथी पुरुषों के हाथों पर एक अंक लिखा है, वे सभी अनमोल की माँ लिपि, दुल्हन रेणु की माँ माया और रेणु को चोदने के लिए आमंत्रित हैं. उसी प्रकार से जिन महिलाओं को क्रमांक दिए गए हैं वो अनमोल के पिता विशाल, रेणु के पिता अश्विन और अनमोल से चुदाई करवाने के लिए आमंत्रित हैं.”
“मैं राणा परिवार से अनुरोध करुँगी कि वे स्टेज से नीचे आ जाएँ जिससे कि इन सभी को वहां आने का अवसर मिले.”
जीवन अपने परिवार के साथ नीचे उतर गया. मधुजी ने लड़कों को नीचे से और पलंग उठाकर स्टेज पर लगाने के लिए कहा और ये कार्य तुरंत ही सम्पन्न हो गया. लिपि, माया और रेनू एक एक पलंग से सम्मुख खड़ी हो गयीं. अन्य तीन पलँगो के सामने विशाल, अश्विन और अनमोल खड़े हो गए.
“अन्य कार्यक्रम सदैव के समान रहेगा और अब आप में से कोई भी किसी की भी चुदाई करने के लिए उन्मुक्त है. बस ये ध्यान रहे कि वो अपने परिवार का न हो. इस चरण का समय भी सवा घंटा है. और ये आज का आखिरी कार्यक्रम है. तो जिन्होंने लिपि और अश्विन से नंबर लिया है वो स्टेज पर जाएँ और अन्य सभी एक दूसरे के साथ मनमाना आनंद उठायें.”
ये कहकर उन्होंने माइक नीचे रखा और जीवन की ओर चल पड़ीं.
जीवन के सामने जाकर उन्होंने अपने चोगे को उतार फेंका और उनकी आँखों में आंखे डालकर पूछा, “जीवन साहब, क्या आपमें इस बुढ़िया की नसें ढीली करने का साहस है.”
जीवन मुस्कुराकर अपने चोगे को निकालते हुए बोला, “इसका निर्णय तो आप ही कर सकती हैं, परन्तु मैं प्रयास करने में पीछे नहीं रहूंगा.” ये कहते हुए उसने मधुजी को अपनी बाँहों में लेकर एक प्रगाढ़ चुंबन दिया.
परिवार के अन्य सदस्य ये देखकर कि वे भी अब अन्य लोगों से मिलन कर सकते हैं तितर बितर हो गए. असीम और कुमार दोनों मध्यम आयु की स्त्रियों को ढूंढ रहे थे, क्योंकि उनके आकलन में वही सबसे अधिक आतुरता से चुदवाती हैं. और उनकी ऑंखें स्मिता से मिलीं जो एक व्यक्ति से बात कर रही थी. स्मिता ने आँखों के माध्यम से उन्हें आमंत्रित किया और वे दोनों उसके समीप पहुँच गए. समीप पहुँच कर दोनों ने स्मिता का अभिवादन किया.
असीम: “हैलो आंटीजी, आपको यहाँ देखकर बहुत ख़ुशी हुई.”
स्मिता:”मुझे भी एक सुखद आश्चर्य हुआ. पर हम यहाँ समय व्यर्थ नहीं कर सकते, हम लोग एक दो दिन में मिलते हैं और आगे की बात वहीँ करेंगे. अभी तो मुझे तुम दोनों से वही उपचार चाहिए जो तुमने सुनीति को दिया था. ठीक है?”
ये कहकर स्मिता ने अपना चोगा निकाल फेंका और असीम और कुमार के लौडों को उनके चोगे के बाहर से ही दबा दिया. उसे इस बात से ख़ुशी मिली के ये दोनों मेहुल से बस कुछ ही कम थे. और इनके लंड से गांड मरवाने के बाद रात में मेहुल का लंड झेलना सरल हो जायेगा. असीम और कुमार को अपने चोगे हटाने में अधिक समय नहीं लगा. स्मिता उन दोनों के लंड एक एक हाथ में पकड़कर निकटतम खाली पलंग पर बैठ गयी और उन्हें चूसने लगी.
असीम के लंड को चूसते हुए उसने कहा, “हम्म्म इसमें तो अभी भी सुनीति की गांड की महक आ रही है.”
असीम कुछ झेंप गया, “मैंने उनकी गांड मारने के बाद लंड धोया नहीं. सॉरी आंटी।”
स्मिता: “कोई बात नहीं,मैं भी जल्दी ही सुनीति को अपनी गांड का स्वाद चखाऊँगी. ये बताओ तुममे से कौन गांड मारेगा?”
असीम बोल उठा: “कुमार. मैंने तो अभी ही मॉम की गांड मारी है. अब इसे अवसर मिलना चाहिए.”
स्मिता: “भाई हो तो ऐसा, कुमार?”
कुमार: “जी, आंटीजी. पर अब क्या हम आपकी चूत और गांड का स्वाद ले लें ?”
स्मिता: “वैसे तो मुझे इसमें आनंद आता.” फिर आसपास देखते हुए कि कोई सुने न, “पर मेरा साथी बस मेरी चूत और गांड की चाटता रहा था पीछे चरण में. तो इसीलिए, मैं तो अब असली चुदाई के लिए अधिक उत्सुक हूँ.”
ये कहकर उसने असीम को पलंग पर धक्का देते हुए लिटाया और उसके लंड पर चढ़कर सवारी कर ली. पूरे लंड को अच्छे से घुसा लेने के बाद उसने कुमार को संकेत दिया कि वो भी अब सवार हो जाये.
श्रेया और स्नेहा एक साथ अपने लिए साथी ढूंढ रही थीं. उन दोनों बहनों का ये हर मिलन का नियम था. उनकी ऑंखें दो लोगों पर जाकर रुकी। आशीष हर ओर चल रहे दुराचार को विस्मित आँखों से देख रहा था. और उसके कुछ ही दूर पर मधु जी के पुत्र और रेसोर्ट का स्वामी परख भी किसी को ढूंढ रहे थे. स्नेहा ने श्रेया को कोहनी मारकर उन दोनों की ओर संकेत किया. श्रेया ने तुरंत स्नेहा को परख को पकड़ने के लिए कहा और स्वयं आशीष की ओर चल पड़ी. आशीष ने उसे आते देखा और उसकी आँखों का आश्चर्य और बढ़ गया.
“नमस्ते अंकल, आपको यहाँ देखकर बहुत आश्चर्य हुआ. मैं चाहूंगी कि आपका स्वागत मैं और स्नेहा पूरी रीति के अनुसार करें.”
आशीष को कुछ सूझ नहीं रहा था. उसने श्रेया के बढे हाथ को थमा और श्रेया के पीछे एक पलंग पर जाकर ठहर गया.
“बस अब स्नेहा आ जाये तो स्वागत आरम्भ करेंगे.” ये कहते हुए उसने आशीष के चोगे को खोला और उसे नीचे डाल दिया. “लो, ये स्नेहा भी आ गयी.” स्नेहा परख के साथ आ रही थी.
“परख अंकल, इनसे मिलिए, ये हैं हमारे पडोसी राणा अंकल” श्रेया ने दोनों पुरुषों का परिचय कराया.
“हेलो, परख चड्ढा. मैं मधुजी का पुत्र हूँ.” रेनू के पिता ने आशीष का हाथ मिलते हुए कहा. उसे इस बात से कोई आपत्ति नहीं थी कि आशीष इस समय नंगा खड़ा था. हालाँकि आशीष को इस प्रकार से किसी से पहली बार मिलने में झिझक हो रही थी.
“हेलो, मैं आशीष राणा. मुझे भी आपसे मिलकर ख़ुशी हुई. वैसे इस ख़ुशी को ये दोनों प्यारी बहनें और भी बढ़ाने वाली हैं.”
“वैसे आप चाहें तो इसके बाद ऊपर स्टेज पर जा सकते हैं. मुझे विश्वास है कि लिपि, माया या रेणु आपसे चुदने में कोई आपत्ति नहीं करेंगी, आपका बिना नंबर के भी नंबर लगा देगी.” परख अपने इस परिहास पर हंस पड़ा.
“परख अंकल, आप व्यर्थ में हमारा समय क्यों नष्ट कर रहे हैं. उनके घर तो आज रात भर चुदाई पार्टी है. अभी तो वो केवल मुंह मीठा ही रहे हैं. आप हमारी ओर ध्यान दीजिये.” स्नेहा ने रुष्ट होकर कहा और परख का चोगा निकाल फेंका.
श्रेया और स्नेहा ने अपने चोगे भी उतारे और अपने संगमरमरी शरीरों का उन दोनों को प्रदर्शन किया. आशीष के लिए अब ठहरना असंभव था. उसने श्रेया को अपनी बाँहों में जकड कर उसे चूमते हुए बिस्तर पर लिटा दिया और उसकी चूत में अपना मुंह डाल दिया. ये तो समुदाय के नियमों का ही प्रभाव था कि सभी स्त्रियां पिछले चरण के पश्चात अपनी चूत और गांड को अच्छे से साफ कर चुकी थीं नहीं तो पता नहीं उसके मुंह में किसका रस जाता. स्नेहा ने परख के लंड पर धावा बोला और चाटने में व्यस्त हो गई.
सुजाता बहुत उत्सुक हो रही थी. स्टेज पर कई पुरुषों के चले जाने से वैसे भी हॉल में कमी आ चुकी थी. परन्तु ये हर विवाह कार्यक्रम में होता था तो कोई आपत्ति भी नहीं की जा सकती थी. कुछ पुरुष (अधिकतर युवा) वहाँ से उतरने के बाद भी चुदाई की शक्ति रखते थे और अधिक समय तक टिक पाते थे, पर उसमें कुछ भाग्यशाली स्त्रियों ने अपने साथी भी पा लिए थे. वो अपने चारों ओर चल रहे वासना के नंगे नाच को केवल देख ही पा रही थी क्योंकि उसे कोई नहीं मिला था. जो उपलब्ध थे उसके साथ से भूख शांत होने के स्थान पर और भड़कने की संभावना अधिक थी. समुदाय की स्त्रियों में कुछ महीनों से एक असहजता सी थी. कुछ पुरुष जो समुदाय की उत्पत्ति के समय पुरुषार्थ में उपयुक्त थे, समय के साथ उनकी ये शक्ति क्षीण हो चुकी थी और अपने साथी को संतुष्ट करने में असमर्थ थे. समस्या ये थी कि नियमानुसार किसी भी सदस्य को आने से रोका नहीं जा सकता था. और ये महानुभाव स्वयं रुकने के लिए उत्सुक नहीं थे.
इस समस्या की चर्चा पिछली प्रबंधन समिति में हुई थी और इस विषय पर को गंभीरता से सोचा गया था. समुदाय के इस नियम को परिवर्तित करने के दूरगामी परिणाम होने के कारण इसे न बदलने का निर्णय हुआ था. परन्तु, एक सदस्य ने समुदाय में प्रवेश की आयु को २० वर्ष से घटाकर १९ वर्ष करने का सुझाव दिया था. गणना करने से ये सामने आया था कि इससे ९ लड़के और ४ लड़कियां प्रवेश के लिए योग्य घोषित की जा सकेंगी. एक अन्य सुझाव में समुदाय के बाहर विवाह करने पर पूरे परिवार के स्थान पर केवल उस सदस्य को ही अस्थाई रूप से निलंबित करने का प्रावधान रहना चाहिए था.
परन्तु ये निर्णय केवल समिति नहीं ले सकती थी. इसी कारण आज समापन पर एक प्रश्नावली उन सभी अभिवाहकों को दी जा रही थी जिनकी संतानें इस कारण से समुदाय में शीघ्र जुड़ सकती थीं. प्रश्नावली में उनकी सहमति और आपत्ति का उल्लेख करना था. इसे अगले सप्ताहांत तक समिति के किसी भी सदस्य को सौंपा जाना था जिससे कि समिति अगली चर्चा में इस पर निर्णय ले सके.
पर सुजाता को तो आज के लिए लौड़े की खोज थी. अंततः उसने स्टेज के नीचे प्रतीक्षा करने का निर्णय लिया. उसके विचार से ऊपर से उतरते किसी जवान लौंडे को वो पकड़कर अपनी प्यास बुझा लेगी. और अगर उसके भाग्य ने साथ दिया तो दो भी मिल सकते हैं. तभी उसके कंधे पर किसी ने हाथ रखा. पीछे मुड़ी तो महक थी और उसके साथ में सिद्दार्थ था (जिसने मधुजी की पहली चुदाई की थी).
“आंटीजी, चलिए, सिद्धार्थ और मैं आपके अकेलेपन को दूर कर देंगे. और अगर मधुजी का सुझाव मानेंगी तो आपकी गांड की खुजली इसका लौड़ा मिटा देगा.”
महक उसके हाथ को थामकर सिद्धार्थ के साथ निकट खाली पलंग की ओर ले गयी. सुजाता ने पीछे मुड़कर स्टेज पर चल रहे चुदाई के खेल पर एक दृष्टि डाली और महक के साथ चल पड़ी.
स्टेज पर जो देखकर सुजाता मुड़ी थी वो वासना का नंगा नाच था. स्टेज पर कई पुरुष खड़े हुए अपने क्रम की प्रतीक्षा कर रहे थे. इस समय स्टेज पर दोनों परिवारों की बेटियां भी इस सामूहिक सम्भोग में सम्मिलित हो गयी थीं, परन्तु वे चुदाई नहीं करवा रही थीं. उन्होंने परिवार की चुदी हुई तीनों स्त्रियों की चूत और गांड को स्वच्छ रखने का बीड़ा उठाया था. वे शांति से एक ओर खड़ी हुई थीं. अभी उनके कार्य स्थगित था. इस समय लिपि, माया और रेनू तीनों को तीन तीन आदमी चोद रहे थे. हर एक चूत, गांड और मुंह में लौड़े लेकर चुदवा रही थीं. ऐसा दृश्य समुदाय के इतिहास में केवल विवाह के समय ही देखने मिलता था और हॉल में उपस्थित सभी लोग बीच बीच में उस ओर अवश्य देख रहे थे.
तीनों की आनंदकारी चीत्कारें हॉल में गूंज रही थीं. ये एक देखने वाली बात थी कि माया और लिपि की ओर लड़के आकर्षित थे जबकि अधेड़ पुरुष रेनू पर अधिक आसक्त थे. इसी प्रकार का चयन विशाल, अश्विन और अनमोल के लिए भी था. अब तक तीनों स्त्रियां न जाने कितने लौड़े झड़ा चुकी थीं. रेनू की गांड में पानी छोड़ते हुए एक पुरुष खड़ा हुआ और अपने आधे मुरझाये लंड को झुलाते हुए स्टेज से उतर गया. रेनू की बड़ी बहन जिसका पति नीचे हॉल में किसी की चुदाई कर रहा था आगे बढ़ी और उसने रेनू की उछलती गांड में अपना मुंह डाला और उससे बहता हुआ वीर्य चाट कर साफ किया और अंदर भी सफाई कर दी. रेनू की गांड अगले लौड़े के लिए प्रस्तुत थी, परन्तु उसकी बहन ने किसी को भी आगे बढ़ने से रोक दिया. जब रेनू की चूत में अपना रस छोड़कर उसके नीचे का आदमी हटा तब उसकी बहन ने उसकी चूत को भी उसी प्रकार से साफ किया और फिर अगले दो पुरुषों को आमंत्रित किया.
दूसरी और माया की भी गांड में पानी छोड़कर एक लड़का खड़ा हुआ और स्टेज से उतर गया. इस बार दूल्हे की बहन ने सफाई की और फिर उसी प्रकार से चूत की बारी आने पर उसे भी साफ किया और दो और सदस्यों को आमंत्रित कर लिया. यही क्रम वहां पर निर्बाध चलता रहा. स्मिता अब असीम और कुमार से एक साथ चुदवाकर आनंद विभोर हो रही थी. उसकी चूत और गांड में एक एक लंड था और उसे दोनों बहुत जोरदार और शक्ति के साथ चोद रहे थे. स्मिता के मन से आज की रात मेहुल के साथ बिताने का कार्यक्रम स्थगित कर दिया क्योंकि उसकी वर्तमान की डबल चुदाई उसके तन और मन दोनों को तृप्त कर रही थी.
श्रेया और स्नेहा भी अपने हिस्से की चुदाई से आनंदित थीं. आशीष और परख उनकी मस्त चुदाई कर रहे थे. उधर सुजाता की दर्द और आनंद की चीखें निकल नहीं पा रही थीं क्यूंकि महक ने उनके मुंह को अपनी चूत में दबाया हुआ था. सिद्धार्थ के मोटा लम्बा लौड़ा सुजाता की गांड का वही हाल कर रहा था जो मधुजी ने सुझाया था. सुजाता ये सोचकर कि पिछले दिनों में उसकी गांड में ऐसे मोटे तगड़े दो लंड गए हैं कि उसका जीवन सार्थक हो गया था. जीवन ने अपने वचन को पूरा करते हुए जब मधुजी की चूत की गांठें खोल दीं तो उन्होंने लगे हाथ गांड को भी ढीला कराने का निश्चय किया.
स्टेज पर चल रहा रति कर्म भी अब समाप्ति की ओर था और अंतिम टोली चुदाई कर रही थी. समय समाप्ति की घंटी ने सबको चौंका दिया. मधुजी जो इस समय सीधे लेती हुई थीं और जीवन उनकी गांड की कसावट को ढीला कर रहे थे किसी प्रकार दोबारा माइक को पकड़ीं.
गांड मरवाते हुए ये उनके जीवन की पहली घोषणा थी, “मेर्रे साथियोऊं आज की घघोषणा विशेष्ष है क्योंकिकी अभी भीई मेरीइ इ गांड में लंड है. परर्र मैं ईसीई अवस्था में आज के कार्यक्रम्म की समाप्ति कीईई घघ्घोषणा करररती हूँ. आअह.”
अन्य जुड़े हुए जोड़े भी धीरे धीरे एक दूसरे से अलग हुए. कुछ समय तक लोग अपने स्थान पर ही बैठे रहे और फिर अपने चोगे पहनते हुए एक एक करके स्नानघर की ओर चल दिए. स्टेज पर दोनों बेटियों ने माया, लिपि और रेनू को सहारा देकर उठाया और उनके चोगे पहनकर उन्हें भी स्नानघर की ओर ले गयीं. स्नान करते हुए लोगों ने अपने परस्पर मिलने के कार्यक्रम तय किया।
मधु जी ने अंतिम घोषणा की, “विवाहित दम्पत्ति के घर पर आज से कल सांयकाल तक खुला खेल है. आपमें से जो भी चाहे लिपि के घर जाकर चुदाई में सम्मिलित हो सकता है. आशा है आप सब जाकर वर वधु को अपना आशीर्वाद अवश्य देंगे. ”
फिर सभी सदस्य अपने कपड़े पहनकर नयी प्रकाशित पत्रिका लेकर बाहर लॉन में चले गए. लॉन में रेनू और दूल्हे के पिता ने सभी को रात की चुदाई पार्टी का औपचारिक निमंत्रण दिया। सबने उन्हें आकर वर वधू को आशीर्वाद देने का वचन दिया. दोनों समधियों ने विचार विमर्श करने के बाद दो सप्ताह बाद एक और पार्टी का आयोजन करने की घोषणा की क्योंकि नव-विवाहित जोड़ा परसों प्रातः एक सप्ताह के लिए मधुमास पर जा रहा था. इसके बाद कुछ और औपचारिकताओं के पश्चात् सब अपने घरों के लिए निकल पड़े.