अब तक:
वर्षा और समीर के परिवार में सब कुछ अच्छा चल रहा है. उनका कृषि का काम अच्छा लाभ दे रहा है. जयंत और राहुल संतोष के साथ मिलकर पूरे काम को सुचरु रूप से चला रहे हैं. परिवार ने कुसुम और संतोष को भी अपने परिवार का ही अंग माना हुआ है. कुछ मर्यादाओं को छोड़ दें तो उनके मध्य में कुछ भी छुपा नहीं है. कुसुम और संतोष के बेटे कमलेश और बेटी काम्या को भी अपनी पढ़ाई समाप्त करने के बाद इसी नगर में नौकरी भी मिल चुकी है. राहुल और जयंत ने भी संतोष का वेतन बढ़ाने का निश्चय किया और इसके कारण संतोष के परिवार में समृद्धि का आनंद फ़ैल गया.
राहुल क्लब में अपने स्कूल की एक शिक्षिका से मिला. उनका उसके जीवन की सफलता में बहुत बड़ा योगदान था. उन्होंने तो राहुल को नहीं पहचाना, परन्तु राहुल ने उन्हें पहचान लिया और घर पर आमंत्रित किया. परिवार वाले भी उसके इस निर्णय का स्वागत किये. उधर कमलेश और काम्या बेंगलोर से घर आ चुके थे और रात और दिन सभी संभोगरत रहे थे. अगले दिन कमलेश और काम्या वर्षा और समीर से आशीर्वाद लेने गए और फिर उनके ही कमरे में दोनों वर्षा की चुदाई कमलेश और काम्या की चुदाई समीर ने की.
नायक परिवार में एक और आनंद से भरपूर सामान्य दिन का आरम्भ हो चुका था.
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अब आगे:
वर्षा का घर:
कुछ ही दिन में शनिवार भी आ ही गया. राहुल ने शुक्रवार को ही अपनी पूर्व शिक्षिका से मिलने का कार्यक्रम पक्का कर लिया था. परन्तु उन्होंने घर आने में आनाकानी की तो राहुल ने उन्हें नगर के एक बड़े होटल में दोपहर के भोजन के लिए आमंत्रित किया, जिसे उन्होंने स्वीकार भी कर लिया.
निर्धारित समयानुसार राहुल होटल पहुँचा जहाँ पर उसे उसके द्वारा आरक्षित टेबल पर बैठा दिया गया. ये टेबल भीड़भाड़ से कुछ अलग थी और यहाँ पर शांति के साथ बात की जा सकती थी. उसने मेसेज के माध्यम से उसकी टेबल के बारे में बता भेजा. कुछ ही देर की प्रतीक्षा के बाद उसने अपनी पूर्व शिक्षिका को अंदर आते हुए देखा और उसने खड़े होकर अपनी उपस्थिति दर्शाई. गरिमा मैडम ने एक सादी परन्तु लुभावनी पोषक पहनी थी. उन्हें देखकर राहुल उनके प्रति फिर आकर्षित हुए बिना न रह सका. टेबल पर आने पर वेटर ने उनकी कुर्सी बाहर खींची और उन्हें बैठाया.
“गुड आफ्टरनून.” राहुल ने कहा.
“गुड आफ्टरनून.” मैडम ने उत्तर दिया.
“आप क्या लेना चाहेंगी? कोई पेय? या सीधे भोजन का ही मन है.”
मैडम सोचने लगीं तो राहुल बोला, “वैसे मैं बियर ले रहा हूँ, आप भी चाहें तो ले सकती हैं.”
मैडम ने भी हाँ कहा तो वेटर को बुलाकर राहुल ने उसे बियर लाने का निर्देश दिया.
“आप सोच रही होंगी कि ऐसा क्या है कि मैंने आपको अलग से बुलाया है. इसके दो तात्पर्य हैं. और मैं कुछ विगत बातें बताना चाहता हूँ.” इतने में वेटर ने बियर को दे ग्लास में डाला और कुछ अल्पाहार सामने रखकर चला गया.”
“मैडम, मैं %^*( स्कूल में पढ़ा हूँ.”
ये सुनते ही मैडम के चेहरे का रंग उड़ गया.
“मैं उस आयु में भी आपको बहुत चाहता था, और आज भी उतना ही चाहता हूँ. मेरे जीवन की सफलता का अधिकांश श्रेय में आपके प्रोत्साहन को देता हूँ.”
“शिर्के,…. राहुल शिर्के, क्या तुम राहुल शिर्के हो? मैडम ने पूछा.
“जी, अपने सही पहचाना.”
“आप सोचेंगी कि मैंने उस दिन आपका चयन क्यों किया? तो सच ये है कि मेरी पूर्ण भावनाएं आपको देखकर जाग्रत हो गयी थीं. यही नहीं मैं ये भी जानना चाहता था कि आप इस व्यवसाय में कैसे आ गयीं. मुझे स्पष्ट याद है कि आप गणित की बहुत अच्छी शिक्षिका थीं. अगर आप मुझे बताना चाहेंगी और उस स्थान से निकलना चाहेंगी तो मैं आपकी सहायता करना चाहूँगा।”
मैडम सोच में पड़ गयीं. फिर धीरे धीरे उन्होंने बताना आरम्भ किया.
“तुम्हें अगर याद हो तो मेरे पति भी उसी स्कूल में पढ़ाते थे. हमारी एक बेटी थी और हम सब बहुत खुश थे. परन्तु विधि को ये स्वीकार नहीं था. चार वर्ष पहले मेरे पति का एक दुर्घटना में देहांत हो गया. बीमा से कुछ राशि अवश्य मिली, पर पर्याप्त नहीं थी. मैंने घर में ट्यूशन लेना आरम्भ किया. मेरी बेटी कॉलेज में थी और उसकी पढ़ाई का व्यय वहन करना केवल मेरे वेतन से सम्भव नहीं था. इस वर्ष उसकी पढ़ाई पूरी हो जाएगी.”
बियर के दो घूँट लेने के बाद उन्होंने आगे बताना आरम्भ किया, “पर मेरे ट्यूशन लेने के कारण स्कूल ने मुझे चेतावनी भी दी, परन्तु मेरे कारण बताने से उन्होंने मुझे कुछ समय दिया और फिर बंद करने के लिए कहा. प्रिंसिपल मेरी परिस्थिति समझते थे और उन्होंने वेतन बढ़ाने का अनुरोध भी प्रबंधन को दिया. परन्तु हुआ उल्टा ही. प्रबंधन ने वेतन बढ़ाना तो दूर, मेरे ट्यूशन लेने के कारण मुझे स्कूल से ही निकाल दिया. हमारी यूनियन ने कुछ आपत्ति की, पर फिर इस पूरे प्रकरण को मानो भूल ही गए. मेरी स्थिति अब विषम हो गयी.”
“मेरी एक सहेली ने मुझे इस क्लब के बारे में बताया और समझाया कि अपनी बेटी के भविष्य के लिए मुझे अपने शरीर और आत्मा का होम लगाना ही होगा. परन्तु उसने ये भी बताया कि इसमें मुझे मेरे पूर्व वेतन से कई गुना अधिक आय हो सकती है और आगे की भी कठिनाइयां दूर हो जाएँगी. कुछ दिन के चिंतन के बाद मैंने उसे अपनी स्वीकृति दी और उसने मुझे क्लब में काम दिलवा दिया. आज लगभग साढ़े तीन वर्षों से मैं वहाँ काम कर रही हूँ. आप जिस दिन आये थे वो मेरा अवकाश होता है, पर उस दिन मुझे बुलाया गया था क्योंकि दो और महिलाएं नहीं आ रही थीं. सम्भव है कि आप उसी वार को क्लब जाते होंगे इसीलिए अब तक मुझे नहीं देखा.”
“हाँ, ये सच है. अब आप क्या चाहती हैं?”
“अगर सम्भव हो तो निकलना, मेरी बेटी की पढ़ाई के लिए मैंने पर्याप्त धन एकत्रित कर लिया है. अगर कोई अच्छा काम मिल जाये तो मैं इस कार्य से निवृत्त होना चाहूँगी।”
“क्या आप किसी अन्य नगर जाने के लिए भी मानेंगी?”
“हाँ, मुझे इसमें कोई आपत्ति नहीं होगी. क्यों? क्या तुम्हारे पास कोई काम है?”
राहुल सोच में पड़ गया.
“हमारा कृषि का बहुत अच्छा काम है. जिसे हमारे परिवार के समान ही एक व्यक्ति देखते हैं. वे हमारे सगे तो नहीं हैं, परन्तु उन्हें हमारे परिवार का ही अंग माना जाता है. और यही रहेगा भी. वे खेतों और अन्य काम तो अच्छे से देख लेते हैं, परन्तु जो हमारा लेखा जोखा देखता है, वो भी इतना निपुण नहीं है. अगर आप चाहें तो हम आपको इस कार्य के लिए नियुक्त कर सकते हैं. आपका वेतन ५० हजार होगा, रहने और भोजन इत्यादि का प्रबंध हमारा ही होगा. संतोष, जिनके बारे में मैंने आपको बताया, आपके मैनेजर होंगे. वर्ष में दो महीने को छुट्टी मिलती है. आपको अगर यहाँ आना हो तो वो भी सम्भव है. अगर आप संतोष के साथ आएंगी तो उसे छुट्टी नहीं माना जायेगा.”
“मुझे तो ये सपने जैसा लग रहा है. मुझे स्वीकार है.”
उसके बाद राहुल ने कुछ और बातें बतायीं और गरिमा संतुष्ट हो गयी. राहुल ने अपने फोन से किसी को मेसेज किया और फिर खाने के लिए वेटर को बुलाकर खाने का ऑडर दे दिया. भोजन समाप्त हुआ ही था कि राहुल को एक मेसेज मिला. उसने द्वार पर देखा तो संतोष था. उसे संकेत करके राहुल ने बुलाया. संतोष के आने पर राहुल ने सरककर उसे अपने साथ बैठाया.
“मैडम, ये हैं संतोष जी, जिनके विषय में मैंने आपको बताया था. संतोष जी, ये गरिमा मैडम हैं और इन्होने मुझे पढ़ाया है. मैंने जयंत और पापा से बात कर ली है और गरिमाजी हमारे कृषि के अकॉउंट को संभालने के लिए मान गई हैं. ये आज से ही काम आरम्भ कर रही हैं और इसके लिए अब आपको इन्हें प्रशिक्षण देना होगा.”
राहुल ने आगे कहा, “ये भी आपके साथ ही हमारे गेस्ट हाउस में रहेंगी, इनका कमरा अलग होगा, पर ये चाहे जिस कमरे में सो सकती हैं.” राहुल की इस बात पर गरिमा का चेहरा लाल हो गया.
“संतोष को भी इस बात की अनुमति है और आपको भी रहेगी. वैसे हम भी जब जाते हैं तो संतोष हमारे लिए भी हर प्रकार का प्रबंध करते हैं. अगर आप एक दूसरे के साथ संबंध बनाना चाहेंगे तो हमें किसी प्रकार की आपत्ति नहीं है. वैसे इनकी पत्नी भी बीच बीच में आती हैं वहाँ और आप तीनों क्या निर्णय लेंगे ये आप पर निर्भर है.”
गरिमा के सामने नए नए विकल्प खुल रहे थे. उसके मन में इस क्लब को छोड़ने के समय एक ही विचार आया था कि उसकी चुदाई का क्या होगा, क्योंकि अब वो उसकी अभ्यस्त ह चुकी थी. पर अब लगता था कि इसकी भी कोई समस्या नहीं होगी.
राहुल: “मुझे कुछ समय के लिए एक अन्य कार्य है, होटल में ये कमरा अपने लिए बुक है, और आप दोनों वहाँ जाकर एक दूसरे से पहचान बढ़ाइए, मैं कार्य समाप्त होते ही आ जाऊँगा। और आप दो पुरुषों को संभालने का पूरा सामर्थय रखती ही हैं तो कोई कठिनाई नहीं होगी.”
ये कहते हुए राहुल ने कमरे का कार्ड संतोष को दिया और फिर बिल के लिए वेटर को बुलाया. बिल देकर वो शीघ्र लौटने के लिए कहकर निकल गया. संतोष और गरिमा भी उठे और लिफ्ट की और अग्रसर हो गए. कमरे में पहुंचकर उन्होंने कमरे को बंद किया और फिर एक दूसरे को देखने लगे.
“तो आप यहाँ मेरा इंटरव्यू लेंगे?” गरिमा ने कुछ इठलाते हुए पूछा.
“आपकी शैक्षणिक योग्यता का तो परिचय राहुल भैया दे ही चुके हैं, मुझे अन्य योग्यता के बारे में जानने की उत्सुकता है.”
“आपको विश्वास दिलाती हूँ कि उसमें भी मैं कम नहीं हूँ.” ये कहते हुए गरिमा अपने वस्त्र उतारने लगी.
उसे संतोष के बलिष्ठ शरीर को देखकर अपनी चूत में पानी बहता हुआ अनुभव जो होने लगा था. संतोष ने भी समय का सदुपयोग करते हुए अपने कपड़े उतार फेंके. कुछ ही देर में दोनों एक दूसरे के सामने नंगे खड़े थे.
“आपकी पत्नी को आपत्ति नहीं है आपके इस प्रकार के व्यवहार से?”
संतोष हंसने लगा, “अभी आपको कुछ पता नहीं है और अभी के लिए यही सही भी है, पर सीधी बात ये है कि क्योंकि हम बहुत समय तक अलग रहते हैं तो मुझे और उसे अन्य लोगों के साथ सहवास की अनुमति है. हम दोनों एक दूसरे की इस आवश्यकता को समझते हैं और इसे अनावश्यक रूप से अपने बीच में नहीं लाते हैं.”
“बहुत सुलझी हुई सोच है आप दोनों की.” ये कहकर संतोष को बिस्तर पर लिटाकर गरिमा उसके लंड को मुंह में लेकर चूसने लगी.
संतोष को आश्चर्य हुआ कि वो इतनी शीघ्र ही इस कार्य में जुट गई थी, पर उसे गरिमा के वर्तमान कार्य के बारे में पता जो नहीं था. संतोष के लंड ने गरिमा के अनुभवी मुंह में अकड़ना आरम्भ किया और गरिमा ने भी उसके लंड को अपने मुंह में संभावित रूप तक अंदर लेते हुए उसे चूसने में कोई कमी नहीं की. संतोष का लंड अब फटने जैसी स्थिति में आ रहा था और गरिमा को इस बात का ज्ञान हो गया था.
उसने लंड को मुंह से निकाला और फिर उसे थूक से पूरा गीला कर दिया. फिर उसने अपनी चूत पर कुछ थूक लगाया, हालाँकि इसकी आवश्यकता नहीं थी. उसने संतोष की ओर देखा और फिर उसके दोनों ओर पैर करते हुए उसके लंड पर बैठ गई. संतोष के लंड को पूरा अंदर लेने में उसे कोई कठिनाई नहीं हुई और वो उछल उछल कर उसे चोदने लगी. संतोष इस बात से चकित था कि अभी उन्हें कमरे में आये हुए कुल पंद्रह मिनट ही हुए थे और उसका लंड इस सुंदर शिक्षित स्त्री की चूत को मथ रहा था. उसने भी अब अपनी कमर उछालते हुए गरिमा को चोदने के लिए परिश्रम आरम्भ कर दिया. स्थिति तनावपूर्ण अवश्य थी, पर पूर्ण नियंत्रण में थी. दोनों मानो जल्दी से जल्दी अपने लक्ष्य को पाने के लिए व्याकुल थे.
कुछ देर इस आसन में चुदाई करने के बाद गरिमा उतर गई और वो लेटकर अपने पांवों को फैला दी. संतोष ने अपने लंड को उसकी चूत में पेलकर इस बार अधिक शक्ति के साथ उसकी चुदाई आरम्भ कर दी. गरिमा को भी इसमें आनंद अधिक मिल रहा था क्योंकि संतोष का कसा हुआ शरीर जिस कर्मठता से उसे चोद रहा था वो उसके ऊपर वाले आसन में सम्भव नहीं था. संतोष का आंतरिक बल भी अधिक था और वो इस आसन में भी गरिमा को दस मिनट से अधिक तक चोदता रहा.
गरिमा की चूत से बहते हुए पानी से होटल का गद्देदार बिस्तर भीग चुका था. संतोष ने भी अपने झड़ने की घोषणा की तो गरिमा ने उसे मुंह में ही झड़ने के लिए कहा. संतोष ने कोई आनाकानी नहीं की और जैसे ही झड़ने को हुआ उसने अपना लंड गरिमा के मुंह को सौंप दिया. गरिमा के मुंह में जाते ही उसके लंड से रस की फुहारें छूटने लगीं जिसे गरिमा ने निसंकोच पी लिया. झड़ते ही संतोष उसे साथ लेट गया.
“तो मेरा इंटरव्यू कैसा रहा सर?” गरिमा के प्रश्न में वही इठलाहट थी.
“आप नीचे और ऊपर के काम अच्छे से संभाल सकती है. अभी ये देखना है कि आप पीछे के काम में कितनी अनुभवी हैं.” संतोष ने भी उसे प्रकार से उत्तर दिया.
दोनों हंस पड़े और तभी कमरे का दरवाजा खुला और कमरे में राहुल ने प्रवेश किया. राहुल को देखकर गरिमा कुछ शर्मा गई क्योंकि वो अभी ऐसी अवस्था में थी. राहुल आगे बढ़ा और उसके बढ़ते ही गरिमा और संतोष ने उसके पीछे खड़ी एक सांवली सलोनी स्त्री को देखा. गरिमा अपनी अवस्था पर अब और भी शर्मा गई. पर संतोष का चेहरा खिल उठा.
“अरे कुसुम, तू यहाँ कैसे?”
“भैया जी ले आये. बोले आपके साथ के लिए किसी को नियुक्त किये हैं और मुझे मिलवाने ले आये. तो ये हैं गरिमा दीदी.” कुसुम ने आगे बढ़कर कुछ बताया और कुछ पूछा.
“हाँ, यही हैं गरिमा मैडम.”
“आपकी पसंद बहुत अच्छी है भैया जी.” कुसुम ने कहा, “अब हम भी चख के देख लेते हैं कितनी मिठास है इनमें.”
कुसुम ने अपने वस्त्र उतारने में अधिक समय नहीं खोया और राहुल भी अपने कपड़े निकालकर सोफे पर जा बैठा. उसे अब कोई जल्दी नहीं थी. ये खेल अब लम्बा चलने वाला था.
कुसुम ने बिस्तर पर लेटी हुई गरिमा को देखा. वो इस समय अत्यधिक सुंदर दिख रही थी.
“कैसी रही मैडम के साथ चुदाई?” उसने अपने पति से पूछा जो एक मुस्कराहट के साथ उसे ही देख रहा था. कुसुम को उसकी आँखों में अपने प्रति अपार स्नेह और प्रेम दिखाई पड़ा. कुसुम संतोष के चौड़े सीने से लग गई. फिर उसने संतोष को चूमा, “आपने बताया नहीं.”
“मैं तुम्हें ही देख रहा था. बहुत अच्छी रही. मैडम सच में बहुत उत्साह से चुदाई करती हैं.”
“चलिए, अब आपको मुझसे दूर रहने पर अधिक कठिनाई नहीं होगी.”
“ऐसा क्यों बोल रही हो? तुमसे दूर रहना मेरे वश में नहीं है. पर मैडम का साथ अवश्य इसे कुछ सरल बना देगा.”
“चलो मैं भी मैडम का स्वाद चख लूँ.” ये कहकर कुसुम संतोष से अलग हुई और गरिमा को देखा जिसने अपने घुटने मोड़े हुए थे.
गरिमा के पास जाकर कुसुम ने उसके पैर अलग किये और उसमे से झाँकती हुई चूत को देखा जो इस समय कुछ लालिमा लिए हुए थी. कुसुम आगे झुकी और गरिमा की चूत पर अपनी उँगलियाँ फिराईं. गरिमा सिहर उठी. कुसुम बिस्तर पर चढ़ी और गरिमा के पैरों के बीच बैठ गई.
“अपने कभी किसी स्त्री से चूत चटवाई है?”
गरिमा ने हामी में सिर हिलाया। कुसुम अभी भी उसकी चूत सहला रही थी. फिर उसने एक ऊँगली अंदर डाली और घुमाकर बाहर निकाली और उसे अपने मुंह में लेकर चखा.
“आपने मेरे लिए मैडम के अंदर कुछ नहीं छोड़ा?” उसने संतोष से रूठे हुए स्वर में कहा.
“मुझे क्या पता था कि तुम आने वाली हो. वैसे भी मैडम ने मुंह में ही छोड़ने के लिए कहा था.” संतोष ने बताया.
कुसुम: “अच्छा स्वाद है न मेरे पति का मैडमजी?”
गरिमा: “हाँ, सच में. अब अगर आप चाहो तो मैं आपका भी स्वाद लेना चाहूँगी।”
कुसुम ये सुनकर चहक उठी. फिर बोली, “आप मुझे आप आप कहकर मत पुकारो. आपकी छोटी बहन हूँ.”
“ठीक है कुसुम, अब हम दोनों बहनें एक दूसरे का स्वाद लें?”
“पहले मुझे अपना मुंह मीठा कर लेने दो, फिर.” ये कहकर कुसुम ने अपने मुंह को गरिमा की चूत पर रखा और चाटने लगी. संतोष ने देखा कि कुसुम की गांड कुछ खुली हुई थी और सम्भवतः उसमे से वीर्य बाहर निकलने का प्रयास कर रहा था.
“गांड मरवाकर आई हो क्या?” उसने पूछ ही लिया.
“हाँ, कमलेश माना ही नहीं. बहुत जोर से मारी मेरी गांड उसने, हड्डियां हिला कर रख दीं आज तो. पर आप चिंता न करो, आपके लंड के लिए अभी भी लालायित है.”
“ए छोटी बहन, अभी मेरी गांड की बारी है तेरे पति के लंड से चुदने की.”
“तो मैं किस खेत की मूली हूँ, कुसुम, मैं तेरी गांड मारूंगा जब संतोष मैडम की मार रहे होंगे.” राहुल ने उसे ढाढ़स बँधाया।
“ये हुई न बात भैया जी. तो दीदी चलो अब हमें एक दूसरे की चूत को ही नहीं बल्कि गांड को भी उन दोनों के लौंड़ों के लिए उपयुक्त बनाना है.”
कुसुम ने पलटकर अपनी चूत को गरिमा के मुंह पर रखा और दोनों एक दूसरे के साथ समलैंगी चटाई में व्यस्त हो गयीं. राहुल और संतोष सोफे पर बैठे उन दोनों के इस प्रेम प्रसंग को देख रहे थे.
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राहुल, संतोष और कुसुम लगभग पाँच बजे अपने घर पहुंचे. घर में शांति थी. कुसुम और संतोष अपने घर में चले गए और राहुल ने अपने कमरे की राह पकड़ी. उसे स्नान करने की इच्छा थी. होटल से निकलते समय उसने स्नान नहीं किया था. संतोष और राहुल ने गरिमा की इच्छानुसार ही चुदाई की थी. संतोष को गरिमा की गांड मारकर उसके इंटरव्यू को पूरा करने का अवसर मिला तो कुसुम की गांड ने राहुल के लंड को ठंडा किया. लौटते हुए कुसुम ने हंसकर बोला कि आज उसकी चूत की ओर तो किसी ने देखा ही नहीं, बस सुबह से सब उसकी गांड ही मार रहे हैं. संतोष के याद दिलाने पर कि गरिमा ने उसकी चूत से प्रेम किया था कुसुम बोली कि आप जानते हो मुझे चूत में लौड़ा अधिक प्रिय है, जीभ से. संतोष ने रात में उसकी इस इच्छा को पूरा करने का वचन दिया.
राहुल ने जब अपने कमरे में प्रवेश किया तो बिस्तर पर जयंत को लेटा हुआ पाया. वो इस समय नंगा लेटा अपने लंड को सहला रहा था. राहुल को देखने पर भी उसने अपनी गतिविधि को न रोका न ही किसी प्रकार से घबराया.
“दे दिया मैडम को उनका नियुक्ति पत्र, जीजाजी?” जयंत ने मुस्कुराकर पूछा.
हुआ ये था कि गरिमा ने जब उसके प्रस्ताव को स्वीकारा तो संतोष के आने के बाद उसने आज ही गरिमा का नियुक्ति पत्र देकर विषय को निर्णायक रूप देने का संकल्प लिया. इसी कारण वो गरिमा को संतोष के साथ छोड़कर घर आया और जयंत को अपने कमरे में बुलाकर अंजलि और जयंत को पूर्ण विवरण दिया. उसके बाद जीजा साले ने मिलकर गरिमा का नियुक्ति पत्र बनाया, और फिर जयंत ने उसपर हस्ताक्षर कर के उसे राहुल को सौंप दिया था. जब वो बाहर निकला तो कुसुम दिख गई जो अब अपने घर से आ रही थी. राहुल ने कुसुम को बुलाया और पूछा कि क्या वो उसके साथ संतोष के पास चलना चाहेगी? कुसुम तुरंत मान गई. उसने कमलेश को फोन से बताया और राहुल के साथ होटल चली गई थी.
“हाँ, ये कार्य भी सम्पन्न हुआ. और लगता है तुम भाई बहन भी मजे लेने में व्यस्त थे मुझे काम पर लगाने के बाद.” राहुल ने हँसते हुए कहा और वो भी अपने कपड़े उतारने लगा.
“अगर आपको इसमें कोई आपत्ति थी तो मुझे कह देते, मैं चला जाता, मैडम के पास. वैसे मैडम के साथ कुछ मजा आया?” जयंत ने चुटकी ली.
तभी बाथरूम में से अंजलि निकली उसके बाल भीगे हुए थे और उसका नंगा शरीर पानी की बूंदों से चमक रहा था. उसने अपने शरीर को पोंछने का कष्ट नहीं उठाया था. राहुल अंजलि की सौंदर्य को देखकर ठगा सा रह गया. वो सच में किसी अप्सरा जैसी लग रही थी. अंजलि ने जयंत की बात भी सुन ली थी.
“भैया, तुम्हारे जीजा ने मैडम की चुदाई न की हो ये सम्भव ही नहीं है. हैं न पतिदेव?” अंजलि राहुल के पास पहुंची और उसके शेष वस्त्र उतारने में उसकी सहायता करने लगी.
“नहीं, आज मैंने उन्हें छुआ भी नहीं. उनका पूरा आनंद संतोष और कुसुम ने ही उठाया.”
“अरे रे रे रे, मेरा बेचारे पतिदेव. आप तो यूँ ही सूखे रह गए.”
राहुल ने अंजलि के होंठ चूमे, “मैंने ऐसा भी नहीं कहा. कुसुम जो थी.”
“ओह तो आप होटल में जाकर कुसुम को चोदकर चले आये?”
“हाँ, मैंने यही उचित समझा, वैसे कुसुम को भी चोदा नहीं, केवल उसकी गांड ही मारी।”
“बताओ भैया, अब क्या करें. मेरा मन था इनसे गांड मरवाने का और ये पहले ही कुसुम को मार आये.”
“अरे तो क्या हुआ, जीजा है मेरा, अब मार लेंगे तुम्हारी गांड। इसमें इतना आहत होने की क्या आवश्यकता है.”
“बिलकुल, तुम्हारी गांड तो मैं मरते समय भी मारकर ही जाऊँगा.” राहुल ने अंजलि से कहा.
अंजलि ने राहुल के मुंह पर हाथ रखा और बोल पड़ी, “मरने की बात मत करना मेरे सामने कभी. समझे?” उसकी आँखों से आंसू छलक पड़े. राहुल ने उसे बाँहों में लिया और कहा कि वो आगे से ऐसा नहीं बोलेगा.
“ठीक है, नहीं तो…” इस बार राहुल ने उसका मुंह बंद कर दिया.
“अब भैया जब यहाँ हैं ही, और आप मेरी गांड मरोगे ही, तो क्यों न आप दोनों मुझे एक साथ चोदो? मैं वैसे भी भैया से एक बार और चुदने के लिए आतुर थी.”
राहुल और जयंत उसकी बात को टालने की स्थिति में नहीं थे. राहुल ने अंजलि का हाथ पकड़ा और बिस्तर की ओर ले गया. बिस्तर पर से उठकर जयंत ने अंजलि का स्वागत किया.
“ऐसा है, मुझे अब बस चोद दो आप दोनों. शक्तिपूर्वक और तेज चुदाई चाहिए मुझे. उसके बाद रात में देखेंगे प्यार वाली चुदाई.” अंजलि ने बिस्तर पर बैठकर कहा और जयंत के लंड को मुंह में लिया और कुछ समय चूसा और फिर राहुल के लंड को भी चूसकर खड़ा कर दिया. इसके बाद उसने समय नष्ट न करते हुए जयंत को फिर से लिटाया और उसके लंड पर थूका और फिर अपनी चूत पर लगाया.
“चलो भैया, आपकी सवारी चढ़ रही है.”
ये कहते हुए उसने अपनी चूत को जयंत के लंड पर उतार दिया. लंड पूरा अंदर जाने के बाद उसने उछलना आरम्भ कर दिया. फिर राहुल को पास बुलाया और जयंत के लंड पर उछलते हुए उसके लंड को मुंह में लेकर फिर से चूसने लगी. राहुल का लंड था भी बड़ा और जाना भी था उसकी गांड में, तो वो सावधानी के लिए उसे पर्याप्त गीला कर रही थी. संतुष्ट होते ही उसने राहुल से अब गांड मारने का अनुरोध किया. राहुल अपनी सुंदर पत्नी के पीछे गया और उसकी उछलती हुई गांड को प्रेम से देखने लगा. फिर उसने हाथ बढ़कर उसकी गांड में अंगूठा डाला और कुछ अंदर बाहर किया. इस पूरे समय अंजलि जयंत के लंड पर कूदे जा रही थी. अंगूठे को बाहर निकालकर राहुल ने दो उँगलियों को मुंह से गीला किया और अंजलि की गांड में दो तीन मिनट तक घुमाया.
जब उसे विश्वास हो गया कि गांड अब मारने की उचित स्थिति में आ चुकी है तो उसने अंजलि के पीछे जाकर घुटने टेककर अपने लंड को उसकी गांड के छेद पर लगाया. अंजलि रुक गई और पीछे मुड़कर उसने राहुल को अपनी चिर परिचित मुस्कान दी जिसका अर्थ था कि अब उसे प्रतीक्षा नहीं करनी है. राहुल अंजलि के इस मूड को भली भांति पहचानता था. माँ बेटी की इस समानता के बारे में सोचकर उसे अपने भाग्य पर गर्व हुआ. फिर उसने हल्के हल्के से अपने लंड को अंजलि की गांड में घुसना आरम्भ किया. अंजलि और जयंत इस आक्रमण के समाप्त होने के लिए रुक गए.
अंजलि का मुंह दूसरी ओर होने के कारण राहुल को उसके भाव नहीं दिख रहे थे. परन्तु अगर देख सकता तो उसे दिखता कि अंजलि को कुछ असहजता अवश्य थी पर उसके भाव किसी प्रकार से भी पीड़ायुक्त नहीं थे. राहुल के मोटे लंड ने अपनी मद्धम गति के साथ अंजलि की गांड की यात्रा को पूरा किया और अपने पूरे लौड़े को गांड में स्थापित कर लिया. अंजलि को अब अपने भाई और पति के लंड एक दूसरे से भिड़ते हुए अनुभव हो रहे थे. दोनों के बीच में एक पतली सी चमड़ी की दीवार थी जिसके दोनों ओर दो मोटे लंड साँस भर रहे थे. अभी तक किसी ने भी हिलना आरम्भ नहीं किया था, पर अंजलि को इस स्थगित अवस्था में भी आनंद की अनुभूति हो रही थी. उसकी चूत और गांड आने वाले अनंत सुख की कल्पना से ही उत्तेजित हो रहे थे. चूत रस से चूने लगी थी तो गांड अपने ढंग से सिकुड़ कर लंड को अंदर समाने का प्रयास कर रही थी.
इस समीकरण को किसी न किसी ने तो तोड़ना ही था. और ये शुभ कार्य जयंत ने किया. उसने अपने लंड से अंजलि को चोदना आरम्भ किया और ये धक्के हल्के हल्के ही थे. उसके कुछ ही धक्के लगे होंगे कि राहुल ने भी उसी लय में अंजलि की गांड में अपने लंड की आवाजाही आरम्भ की. अंजलि को जिस सुख की प्रतीक्षा थी उसका शुभारम्भ हो चुका था, और अब इसे सुख में बढ़ोत्तरी ही होने थी. जयंत और राहुल अपने अपने निर्धारित लक्ष्य को अब एक लय से भेद रहे थे. अंजलि आनंद सागर में हिलोरे ले रही थी. उसने पीछे मुड़ते हुए राहुल को आँख मारी और फिर झुकते हुए जयंत के होंठों से होंठ मिला दिए.
ये मानो एक संकेत था. जयंत और राहुल ने अपनी गति बढ़ा दी. अंजलि जयंत के होंठ चूस रही थी. साथ साथ अब उसने भी अपनी गांड हिलाना आरम्भ कर दिया था. अब तीनों अपनी अपनी दिशा में गतिविधि कर रहे थे. जयंत और राहुल को अपने लंड परस्पर एक दूसरे से घिसते हुए अनुभव हो रहे थे और इस कारण उन्हें भी इस चुदाई का पूर्ण आनंद आ रहा था. और अंजलि. उसकी तो बात ही और थी. उसके दोनों छेदों में चल रहे लौड़े उसके आनंद को चरम सीमा तक ले जा रहे थे. यही कारण था कि उसने भी अपनी गांड अब जयंत के लंड पर पटकनी आरम्भ कर दी थी.
राहुल को अपनी पत्नी की गांड मारते हुए जो सुख मिल रहा था वो इस समय के लिए अकल्पनीय था. वैसे ये सुख अपनी माँ और सास के साथ भी कई बार ले चुका था तो ये कहना कि ये उनसे अपेक्षाकृत अधिक आनंददाई था अनुचित था. पर जिस गांड में लौड़ा हो वही सबसे प्रिय लगती है. जयंत और राहुल आप अपने शीर्ष पर पहुंच चुके थे. अंजलि ने कुछ बताया नहीं था कि वो क्या चाहती है और इसीलिए राहुल ने उसकी गांड में ही अपना पानी छोड़ने का निर्णय ले लिया था. चुदाई की गति तीव्र हो चुकी थी. तीनों अब शीघ्रतिशीघ्र झड़ने की लालसा रखते थे. और अंजलि ने इसका शुभारम्भ किया. उसने जयंत के होंठ छोड़े और एक किलकारी या कामोदमक चीख के साथ जयंत के शरीर पर शिथिल हो गई. जयंत और राहुल अपने लंड फिर भी उसकी चूत और लंड में पेलते रहे. अंततः राहुल ने अपने लंड की वर्षा से अंजलि की गांड को सींच दिया. जयंत भी पीछे न था और उसके रस की फुहार अंजलि की चूत में बह चली थी.
राहुल ने अपने लंड को अंजलि की गांड से निकाला तो उसे एक सुखद आश्चर्य हुआ. अभी लंड अंजलि की गांड से बाहर निकला ही था कि उसे आभास हुआ कि किसी ने उसके लंड को पकड़ा और मुंह में ले लिया. उसने नीचे देखा तो उसकी माँ सुलभा अब उसके लंड को चूसकर साफ कर रही थी. राहुल ने देखा कि वो भी नंगी ही थी. वो कुछ बोलने को हुआ ही था कि सुलभा ने उसे अपने होंठों पर ऊँगली रखकर चुप रहने का संकेत किया. राहुल ने सिर हिलाया और अपनी माँ से अपने लंड को साफ करवा लिया.
अब सुलभा का लक्ष्य था अंजलि की गांड जो इस समय भी उठी हुई थी और जिसमें से उसके बेटे राहुल का गाढ़ा वीर्य चू रहा था. अपनी जीभ से बाहर बहते हुए रस को एक ही बार में सुलभा ने चाटा और फिर अंजलि की गांड में ऊँगली डालकर और वीर्य को बाहर प्रेषित किया. गांड में ऊँगली डाल कर अंजलि की गांड से निकलते रस को सुलभा बड़े चाव से चाट रही थी. फिर उसने अपनी जीभ अंदर की और एक बार घुमाकर रहा सहा रस भी चाट लिया. अंजलि को ये तो समझ आ गया था कि कोई और ही उसे चाट रहा था पर उसे ये न पता था कि वो कौन थी.
सुलभा ने अंजलि के कूल्हे को पकड़कर उसे पलट दिया. ऐसा करते ही अंजलि की चूत से जयंत का लंड मुक्त हो गया. सुलभा ने झपट कर जयंत के लंड को मुंह में लिया और चूसने लगी. अंजलि अब अपनी सास के इस क्रियाकलाप को देख रही थी. उसके मुख पर एक संतुष्टि की मुस्कान थी. जयंत के लंड को चाटने के बाद सुलभा अपनी बहू अंजलि की चूत पर टूट पड़ी और उसे कुतिया के समान चाटने लगी. अंजलि सिहर उठी. अंजलि की चूत से जयंत के वीर्य और अंजलि के स्खलन के मिश्रण को पीने के बाद ही सुलभा ने अपना मुंह हटाया.
“हो गया?” राहुल ने व्यंग्य से पूछा.
सुलभा भी उसकी माँ थी, तो वो कैसे पीछे रहती, “हाँ अभी के लिए इतना पर्याप्त है.” ये कहने के बाद सुलभा ने उठकर अंजलि के मुंह से मुंह जोड़ दिया और सास बहू रस का आदान प्रदान करने लगीं.
फिर सुलभा हटी और सबको देखते हुए बोली, “मैं अंजलि को बुलाने आई थी किसी काम से, देखा तो तुम सबकी चुदाई अंतिम चरण में थी तो सोचा कि और नहीं तो तुम सबका रस ही पी लेती हूँ. तुम सब इतना व्यस्त थे कि मेरी उपस्थिति का आभास भी न कर पाए.”
“कैसा लगा माँ जी स्वाद.” अंजलि ने उन्हें बाँहों में लेकर चूमते हुए पूछा.
“सदैव जैसा स्वादिष्ट. अब तो ये अपनी माँ को भूल ही गया है. कितने दिन हो गए इसे मेरी चुदाई किये हुए, कुछ याद भी है?” सुलभा ने राहुल पर अभियोग लगाया.
“माँ…” राहुल को अंजलि ने बीच में ही टोक दिया.
अंजलि, “कैसे बेटे हो आप, अपनी माँ का भी ध्यान नहीं रख सकते? चलिए आज आप माँ बाबूजी के साथ रहिये रात में.” फिर सुलभा की ओर देखकर, “माँ जी, मुझे क्षमा करना, मैं स्वार्थी हो चली थी. अब से ऐसा नहीं करुँगी. हम सबका इन पर बराबर अधिकार है.”
सुलभा अपनी बहू की बात सुनकर भावुक हो गई.
“अंजलि तुम जितनी सुन्दर बाहर से हो, अंदर से उससे भी अधिक हो. मेरा सौभाग्य है जो मुझे तुम जैसे बहू मिली.”
“माँ जी, हम सब भाग्यशाली हैं जो हम एक दूसरे को मिल पाए. अब आज आप अपने बेटे के साथ आनंद लें. और जयंत भैया, आप भी मम्मी पापा के ही पास जाओ आज रात.”
“और तू क्या करेगी अकेली?”
राहुल बोल पड़ा, “ओह, उसके लिए मेरे पास एक सुझाव है.”
“वो क्या?” तीनों के मुंह से एक साथ निकला.
राहुल ने अपना सुझाव दिया तो सब सोच में पड़ गए. फिर राहुल ने अपने कारण गिनाये तो सबको उचित लगा. अंजलि ने अपने पति के होंठ चूमे और फिर बाथरूम में चली गयी. सुलभा ने भी अपने कपड़े पहने और फिर बाहर निकल गई, उसके साथ में जयंत भी चला गया. अंजलि के बाहर आते ही राहुल भी बाथरूम में गया और स्नान करने के बाद बाहर निकला तो अंजलि वस्त्र पहन चुकी थी. राहुल ने भी घर वाले कपड़े पहने और दोनों बैठक में चले गए. और यहाँ सब पहले से ही उपस्थित थे. वर्षा और सुलभा के चेहरे खिले हुए थे. समीर ने वर्षा से सबके लिए पेग बनाने का आग्रह किया तो सुलभा और अंजलि भी उसके साथ चले गए. कुछ ही समय में टेबल पर अल्पाहार सजे हुए थे और सबके हाथों में उनका पेय था.
कुछ समय की गपशप के बीच में ही कुसुम भी आ गई और खाना बनाने में व्यस्त हो गई. अंजलि और सुलभा भी जाकर उसका साथ देने लगे. साथ साथ उसे छेड़ भी रहे थे. और कुसुम इसका पूरा आनंद ले रही थी. इतने दिनों के बाद उनका पूरा परिवार एक साथ था और कोई भी एक दूसरे से अलग नहीं होना चाहता था.
“सुना इन्होनें आज तेरी गांड फिर से बजा दी होटल में.” अंजलि छेड़ते हुए बोली.
“बिटिया, मुंह मत खुलवाओ, आपकी चाल से तो लग रहा है कि आपकी भी बजाई गई है.” कुसुम ने भी हंस कर कहा.
“हाँ, सच कह रही हो मौसी, और कल सुबह माँ जी की चाल भी बदली हुई होगी.” अंजलि ने कहा तो सुलभा शर्मा गई.
“सच, दीदी. तब तो आपकी अच्छी चुदाई होगी रात भर. राहुल बेटे को चूत जो नहीं मिली आज, बस गांड ही मारने का अवसर मिला है.”
“देखती हूँ, क्या करते हैं ये बाप बेटा रात में. मेरी तो चूत और गांड में अभी से गुदगुदी हो रही है.”
“अरे दीदी, ठहरो फिर जो मजा आएगा उन दो दो लौडों के साथ कि गुदगुदी भूल जाओगी.”
“अच्छा सुन, तुझसे कुछ कहना था.” सुलभा ने कुसुम से कहा.
“बोलो दीदी.”
तब तक वर्षा भी आ गई और सुलभा अपनी बात किसी प्रकार ही समाप्त कर पाई. अंजलि और वर्षा खाना टेबल पर लगा रहे थे. कुसुम ने सुलभा को विश्वास दिलाया कि उनकी इच्छा पूरी होगी. फिर वे दोनों भी खाना टेबल पर लगाने लगीं. इसके बाद कुसुम अपने घर को चली गई और परिवार वाले अपनी अपनी ड्रिंक का आनंद लेने लगे. फिर खाना खाया गया और पूर्वनियोजित योजना के अनुसार सभी अपने कमरों में चले गए.
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वर्षा का कमरा:
जयंत समीर और वर्षा के साथ उनके कमरे में गया. आज वो कुछ समय बाद आया था, पर कुछ भिन्नता लग रही थी. उसने समीर की ओर प्रश्न भरी दृष्टि से देखा तो समीर ने बताया कि दो नए चित्र लगाने के लिए कमरे में कुछ फेर बदल किया गया था.
“नहाना है या नहीं?” समीर ने जयंत से पूछा.
“नहीं डैड, अंजलि के कमरे से आकर नहा चुका हूँ.”
“ठीक है, मैं तो नहाने जाऊँगा एक बार तुम्हारी मम्मी बाहर आ जाये तो.”
“आप भी घुस जाओ, ऐसा कौन सा नियम है कि साथ नहीं नहा सकते?:
समीर ने जयंत को देखा और फिर मुस्कुराया, “गुड आइडिया.”
ये कहकर उसने फटाफट कपड़े उतारे और बाथरूम में घुस गया. वहाँ से जयंत ने अपनी माँ की हल्की सी चीख सुनी और फिर खिलखिलाहट. अपना सिर हिलाते हुए जयंत ने अपने कपड़े निकाले और अपने पिता के बार से एक छोटा पेग बनाया. आज उसे कई दिन बाद अपने पिता के साथ अपनी माँ की चुदाई का अवसर मिल रहा था. और वो अपनी माँ को पूर्ण सुख देना चाहता था. बाथरूम से अपने माता पिता की हंसी और खिलखिलाहट सुनकर जयंत बहुत प्रसन्न हुआ. उसके लंड ने भी इसका स्वागत किया और शीघ्र ही अपनी पूरी प्रतिष्ठा को प्राप्त कर लिया। बाथरूम से पानी चलने की ध्वनि बंद हुई तो जयंत ने उस ओर देखा.
कुछ ही पलों में समीर और वर्षा बाहर आ गए. इस बार दोनों नंगे ही बाहर निकले थे और जयंत को ये देखकर आश्चर्य हुआ कि सम्भवतः उन्होंने अपने शरीर पोंछे नहीं थे. उसकी माँ के बालों से पानी चू रहा था और बाल आगे को ढले हुए थे. उसका एक स्तन इन बालों के कारण छुपा हुआ था और इस दृश्य को देखते ही जयंत का मुंह सूख गया. उसकी माँ इस समय एक अप्सरा सी लग रही थी. समीर ने वर्षा को पीछे से पकड़ा और उसकी गर्दन चूमने लगा. एक स्तन को पकड़ कर हल्के से दबाते हुए वो वर्षा की गर्दन और कान चूम रहा था. जयंत समझ गया कि उसे कोई विशेष आमंत्रण नहीं मिलेगा. उसने अपने पेग को समाप्त किया और अपने माँ बाप की ओर बढ़ा. वर्षा उसे आता देखकर मुस्कुरा दी, पर कुछ बोली नहीं.
उसने केवल अपनी गर्दन से संकेत किया जिसे जयंत समझ गया. अपनी माँ के सामने जाकर जयंत घुटनों के बल बैठ गया और उसने वर्षा की चूत पर अपना मुंह लगा दिया. वर्षा ने अपनी मुद्रा को ठीक किया और पैर थोड़े फैला दिए. अब जयंत के लिए उसकी चूत का लक्ष्य सुलभ हो गया. जहाँ उसके पीछे उसके पति उसे चूम रहा था वहीँ अब उसके बेटे ने उसकी चूत पर अपना अधिकार बना लिया था. वर्षा ने संतुष्टि की एक गहरी साँस ली. आज रात बहुत कामोन्मद और संतोषप्रद होने वाली थी.
समीर ने जब जयंत को वर्षा की चूत पर आक्रमण करते हुए पाया तो उसने वर्षा के दोनों स्तनों को अपने हाथों में जकड़ लिया और उन्हें भींचने लगा. वर्षा की कामोत्तेजक आहों और कराहों ने जयंत को और गहराई तक अपनी जीभ को अंदर डालने के लिए प्रेरित किया. वर्षा ने भी अपने पाँव कुछ और फैलाये. परन्तु कुछ ही देर में ये विदित हो गया कि ये आसन अत्यंत कष्टदायक और कठिन है. समीर ने वर्षा को बिस्तर के कोने पर बैठा दिया और उसके पीछे जाकर उसके मम्मों का दबाना और उसे चूमने का कार्य पुनः आरम्भ कर दिया. जयंत को भी अब वर्षा की चूत में अपनी जीभ डालने में सरलता होने लगी और वर्षा ने अपने कूल्हे आगे कर दिए.
आज वर्षा की चुदाई में बाप बेटे कोई कमी नहीं रखना चाहते थे. और इसके लिए वर्षा भी अपेक्षित थी.
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सुलभा का कमरा:
राहुल ने अपनी माँ के पीछे उनके कमरे में प्रवेश किया तो उसके पिता जीवन ने उससे कहा, “अगर इतने दिन बाहर रहते हो तो आने के बाद कभी माँ बाप की भी सुध ले लिया करो.”
राहुल अपने पिता की बात को समझ गया. ये सच था कि अधिक व्यस्तता के कारण वो उनके साथ अधिक समय नहीं बिता पा रहा था.
“जी बाबूजी, अंजलि ने भी आज मुझे यही कहा है. आगे से मैं ध्यान रखूँगा।”
“सच कहती हूँ, अंजलि बहू नहीं है, हीरा है हीरा। हम सबके लिए कितना चिंतन करती है. उसने ही आज राहुल को मेरे पास भेजा।”
“हमारे पास.” जीवन ने उसकी बात की सही करते हुए कहा.
“जी.”
“तेरे बाबूजी सच कह रहे हैं. हमारी आँखें तरस जाती हैं तुझे देखने को.”
“अरे माँ, जब कहता हूँ कि हमारे साथ चलो तो मना करती हो. काम तो करना ही होगा न.”
“चल अगली बार चलती हूँ तेरे साथ.”
“धन्य भाग्य.” जीवन ने हंस कर कहा.
“हाँ हाँ आपको तो यही चाहिए न कि मैं आपके रास्ते से हटूँ तो आप गुलछर्रे उड़ाओ।” सुलभा ने भी हँसते हुए कहा.
“तू कौन सा रोकती है, या रूकती है. ठीक है, अगली बार इसके साथ चली जाना. दो दो जवान लौंडे तेरी दिन रात सेवा करेंगे.”
“और क्या, करेंगे ही, है न बेटा।”
“बिलकुल माँ, वैसे आज भी सेवा करने ही आया हूँ.”
“जाकर मुंह हाथ धो ले, तब तक मैं भी आती हूँ.”
राहुल बाथरूम में चला गया. राहुल बाथरूम से बाहर आया तो देखा उसकी माँ नंगी खड़ी हुई है.
“क्या हुआ माँ, तुम तो तैयार होने के लिए कह रही थीं.”
“चुदाई के लिए तैयार हो रही थी, तुमने क्या समझा था?” जीवन ने ठहाका मारते हुए कहा तो माँ बेटे की भी हंसी छूट गई.
“क्या माँ, तुम अभी तक वैसी ही शरारती हो.”
“क्यों न रहूँ, तुम सबने मुझे इतना सुख दिया है कि मुझे अब अपनी जवानी का समय याद आ जाता है.”
“जवान तू अभी भी है, सुलभा. बस देखने वाले को आँखें चाहिए.” जीवन ने अपनी पत्नी की प्रशंसा करते हुए कहा.
अब तक जीवन भी अपने वस्त्र उतार चुका था और उसका लंड खड़ा हुआ था. राहुल भी अपने कपड़े उतारने लगा और कुछ ही पलों में तीनों नंगे हो गए. राहुल और जीवन के लंड लगभग एक जैसे ही थे. मोटे और लम्बे. और ये दोनों जब किसी स्त्री को एक साथ चोदते थे तो उस स्त्री को स्वर्ग का सुख इस धरती पर ही मिल जाता था. सुलभा, वर्षा, अंजलि और कुसुम इसकी पुष्टि कर सकते थे. वैसे अब इन बाप बेटों की दृष्टि कुसुम की बेटी काम्या पर थी. जिस दिन से उसे देखा था उसकी चुदाई के बारे में सोच रहे थे. जिस दिन वो बेचारी इनके हत्थे चढ़ेगी उसका क्या हाल होगा इसकी कल्पना अभी करना सम्भव नहीं था.
सुलभा ने दोनों लंड अपने हाथ में लिए.
“मेरे सबसे प्रिय यही दो हैं, और मुझे इनसे इतने दिन दूर रहना अच्छा नहीं लगता. यही कारण है कि मैं और ये तुम्हारे साथ रह रहे हैं.”
“ठीक है माँ, आगे से तुम्हें भी उचित समय दूंगा।”
“बस सप्ताह में एक बार आकर अपनी माँ को चोद जाया कर, इससे अधिक मैं तुझसे कुछ नहीं चाहती.”
“कहा न माँ, अब यही करूँगा। और इस बार तुझे भी साथ ले चलूँगा. अब दुखी मत हो.”
“सच कहा न तूने. बस मुझे यही तो चाहिए.”
ये कहते हुए सुलभा जीवन और राहुल को उनके लंड पकड़कर बिस्तर की ओर ले गई. वहां बिस्तर पर बैठकर उसने राहुल के लंड को चाटा फिर कुछ देर बाद अपने पति जीवन के लंड को. आज की रात न केवल उसकी तगड़ी चुदाई होनी थी, बल्कि उसके बेटे ने भी उसे नियमित चोदने का संकल्प भी ले लिया था. अब उसे मन की शांति मिल चुकी थी. तन की शांति के लिए उसके हाथ में दो हथियार थे जो उसकी चूत और गांड की भरपूर कुटाई करने वाले थे.
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अंजलि का कमरा:
अंजलि अपने कमरे में बैठी अपना मेकअप ठीक कर रही थी जब उसके कमरे पर किसी ने खटखटाया.
“अंदर आ जाओ.” उसने कहा. वो जानती कि कौन आया है.
कमरे में कमलेश और काम्या ने प्रवेश किया. काम्या ने आज लहँगा चोली पहना हुआ था और बहुत सजी हुई भी थी.
“वाह काम्या, तू तो बड़ी प्यारी लग रही है. इधर आ.”
काम्या कुछ शर्माती हुई अंजलि के पास गई तो अंजलि ने अपने श्रृंगारदान से काजल निकाला और उसके माथे के एक कोने पर लगा दिया.
“इतनी सुंदर लग रही है कि मेरी ही दृष्टि लग जाती तुझे.” फिर उसने काम्या को भरपूर देखा और फिर उसे घुमाकर भी देखा.
“बहुत सुंदर हो गई तू तो. उस दिन लगता है थकी हुई थी. आज तो सच में अप्सरा लग रही है.”
“हट दीदी, आपके सामने मेरी क्या बिसात. आप तो जहाँ जाती हो वहाँ प्रकाश की आवश्यकता भी नहीं रहती.”
“हम्म्म, बातें करना भी सीख गई है अच्छी अच्छी. और क्या क्या सीखा है?”
“चुदाई.” कमलेश ने इस बार अपनी उपस्थिति बताने के उद्देश्य से कहा.
“तू चुप कर दुष्ट!” अंजलि ने उसे प्यार भरी झिड़की दी. “जब दो लड़कियाँ बात कर रही हों तो बीच में नहीं बोलते.”
कमलेश चुप हुआ तो काम्या खिलखिला पड़ी. “मजा आया, दीदी की डांट से?”
“अरे दीदी की डाँट भी प्यार से भरी है. है न दीदी?”
“बिलकुल। अब मुझे बताओ कि तुम्हारे जीवन में चल क्या रहा है?” फिर उसने कमलेश को देखकर कहा, “चुदाई के अलावा.”
“अभी तो दीदी छुट्टी है न, इसीलिए बस वही चल रही है.”
इसके बाद कमलेश और काम्या ने अपनी पढ़ाई के बारे में बताया और नई नौकरी के बारे में भी अंजलि को बताया. कुछ देर तक यूँ ही बातें हुईं.
“तुम लोग बियर पियोगे?”
दोनों ने सिर हिलाया.
“कमलेश, जाकर बाहर के फ्रिज से बियर और ग्लास ले आ.”
कमलेश जब बियर लेकर लौटा तो उसकी आँखें चौड़ी हो गयीं. अंजलि दीदी और काम्या एक दूसरे से लिपटी हुई चूमा चाटी कर रही थीं. उसे अंदर आते देखकर अंजलि ने उसे भी पास बुला लिया और कुछ ही पलों में अब तीनों एक दूसरे को चूम रहे थे. अंजलि ने ही इसे विराम दिया और बियर पीने का आव्हान किया. अब तक तीनों की कामपिपासा बढ़ चुकी थी और बियर पीने का कोई मन नहीं था. बियर आधी होते होते अंजलि ने काम्या के वस्त्र उतारने का कार्य आरम्भ कर दिया था. कमलेश को समझ आ गया कि उसे अपना काम स्वयं ही करना होगा. अतः उसने अपने कपड़े उतारे और बियर पीते हुए अपनी बहन और अंजलि दीदी को देखने लगा.
अंजलि ने काम्या की चोली ही खोली थी और उसके सुंदर सुडौल स्तन बाहर निकल चुके थे. अंजलि ने उन्हें अपने हाथों में थामा।
“क्यों री लड़की, इतने बड़े कैसे कर लिए अपने मम्मे तूने?” अंजलि ने पूछा.
“ये जो बैठा है न दीदी, जब भी मन करता है, दबाने लगता है. इतने बड़े कर दिए.”
“अरे तुझे तो खुश होना चाहिए. तेरा पति बहुत आनंद लेगा. पुरुषों को मम्मे दबाने में बहुत आनंद आता है. वैसे कोई लड़का है? कोई बॉयफ्रेंड?”
“नहीं दीदी. अभी नहीं.” काम्या ने बात छुपाते हुए कहा.
“तब तो बस कमलेश ही तेरी जवानी लूट रहा है. किसी और को भी अवसर दे.”
“पापा भी.”
“फिर भी. एक आधा लौड़ा घर के बाहर वाला भी होना चाहिए, स्वाद बदलने के लिए.”
“क्या आपके भी?”
“हाँ एक दो हैं, पर राहुल जैसी चुदाई कोई नहीं कर पाता इसीलिए ये जब जाते हैं और दोनों पापा व्यस्त हों, तभी उनके पास जाती हूँ.”
“और जीजाजी?”
“उनके भी साथ यही है. अब छोड़ ये बात, तेरे मम्मों का स्वाद ले लूँ.” ये कहते हुए अंजलि काम्या के मम्मों को चाटने लगी. काम्या आनंद से लेने सीत्कारें लगी.
अंजलि ने अपने मुंह को काम्या के मम्मों से हटाया और कमलेश की ओर देखा, “तू वहाँ क्या बैठा ताक रहा है? इधर आ न.”
कमलेश झट से उठा और अंजलि के सामने जा खड़ा हुआ. अंजलि ने उसके टनटनाये लंड को देखा तो हंसने लगी.
“लगता है तुझे भी अब संयम नहीं हो रहा है. चिंता न कर आज तुझे दो दो चूतों का स्वाद मिलेगा. पर पहले अपनी बहन के कपड़े उतार मुझे भी तो दिखे कि जवानी कहाँ कहाँ इसे कचोट रही है.”
कमलेश ने काम्या के लहंगे का नाड़ा खोला और उसे निकालने का प्रयास करने लगा. काम्या के न हिलने से ये कार्य सम्भव न हो पाया.
“भाई की सहायता कर, क्यों गांड अड़ा कर बैठी है?”
ये सुनकर काम्या खड़ी हो गई और लहंगा लहराकर नीचे गिर गया. उसने पैंटी नहीं पहनी थी इसीलिए अब वो नंगी हो गई थी. भाई बहन नंगे थे पर अंजलि अभी तक अपने वस्त्रों में ही थी. काम्या बैठने को हुई तो अंजलि ने उसे रोका और खड़ी होकर उसका हाथ लेकर बिस्तर पर ले गई. कमलेश उनके पीछे चल रहा था और काम्या की मटकती गांड से उसकी आँखें ही नहीं हट रही थीं. अंजलि ने काम्या को बिस्तर पर लिटाया और फिर अपने कपड़े उतार कर उसे साथ लेट गई. उसके होंठ काम्या के मम्मों को फिर से चूसने लगे. कमलेश ने बिना कुछ बोले काम्या की चूत पर अपना मुंह लगाया और उसे चूसने में जुट गया.
कुछ देर तक काम्या की रसीली चूत को चाटने के बाद कमलेश ने अपना ध्यान अंजलि की ओर किया. उसने अंजलि की टाँगें फैलायीं और अपना मुंह इस बार अंजलि की चूत में डाल दिया. इस बार अंजलि की आनंद भरी सिसकारी ने उसका स्वागत किया. कमलेश के सामने अब दो दो चिकनी चूत खिली हुई थीं और वो बारी बारी से उन्हें चाटने और चूसने में व्यस्त हो गया.
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कुसुम:
कुसुम का मन आज अत्यंत प्रसन्न था. पिछले कुछ दिनों की घटनाओं के कारण उसे एक असीम शाँति प्रतीत हो रही थी. उसके पति के बढ़े वेतन, उसकी बेटी और बेटे का उसके ही नगर में नौकरी लग जाना. इन सब के कारण अब उसके पाँव जैसे धरती पर ही नहीं पड़ रहे थे. पूरे परिवार को साथ देखकर उसे अपने जीवन में छाई नई सम्पन्नता की आशा उसे प्रफुल्लित किये थे. फिर न जाने कैसे आज काम्या और कमलेश को अंजलि ने बुला लिया और वो अपने पति के साथ कई दिनों के बाद अकेली थी.
पिछली बार भी जब संतोष आया था तो उन्हें एक दूसरे के साथ अच्छा समय मिला था. पर जब भी कुसुम संतोष के कार्य स्थल पर जाती तो उन दोनों के एकांत नहीं मिलता था. जयंत या राहुल भी उनके साथ ही रहते थे. वैसे कुसुम को इसमें कोई आपत्ति नहीं थी, पर अपने पति के साथ उसका समय क्षणिक ही रह पता था. और अब ये गरिमा आने वाली थी तो पता नहीं क्या होना था. वैसे अब उसके साथ वर्षा भी जाने वाली थी, तो सम्भव था कि संतोष के साथ उसे अधिक समय मिल पाए. पति पत्नी एक दूसरे से लिपटे हुए लेटे थे. बातें जो मानो समाप्त ही नहीं हो रही थीं. खाना खाने के बाद से ही दोनों पहले बैठे हुए बात करते रहे और फिर लेट गए थे.
“गरिमा बहुत सुंदर है न? आपको अच्छी लगी न?” उसने काँपते स्वर में पूछा.
“हाँ सुंदर तो है. क्या तुझे कोई ईर्ष्या हो रही है?”
“कुछ कुछ. अब तक जिन्हें आप चोदते थे उनके साथ आपका कोई अधिक संबंध नहीं रहता था. पर इसके साथ तो दिन रात का साथ रहेगा.”
“ये सच है, पर तुम्हें इस बात से ईर्ष्या करने का कारण नहीं है.” संतोष ने उसके होंठ चूमकर कहा.
“जानती हूँ. देखा जाये तो मैं कौन सी यहाँ सूखी रहती हूँ. हर रात कोई न कोई मुझे चोदता ही है. नहीं, मुझे ईर्ष्या नहीं होने चाहिए.”
“स्त्री में ईर्ष्या न हो तो उसके स्त्रीत्व पर संदेह होने लगता है.”
ये कहते हुए दोनों हंस पड़े.
“वैसे आज बंगले में चुदाई का वातावरण छाया हुआ है. वर्षा और सुलभा दीदी अपने कैसे रोकेंगी जब वहां आएँगी? गरिमा को पता लग ही जायेगा.”
“मैं राहुल से बात करूँगा, और उन्हें धीरे धीरे इस बारे में अवगत करा दूँगा। मुझे तो लगता है कि उन्हें कुछ तो ज्ञान होगा, क्योंकि क्लब में चारों साथ गए थे और उनके बाप बेटे होने का तो छुपाना असम्भव ही है, इतने मिलते हैं चेहरे.”
“हाँ, आप बात कर लो.” ये कहते हुए कुसुम ने संतोष को उठाया और उसकी शर्ट उतार दी. संकेत समझते हुए कुछ ही देर में दोनों नंगे हो गए और 69 के आसन में चूत और लंड की चुसाई आरम्भ कर दी.
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वर्षा:
समीर ने वर्षा को पलंग के कोने पर बैठा दिया और उसके पीछे जाकर उसके मम्मों का दबाना और उसे चूमने का कार्य पुनः आरम्भ कर दिया. जयंत को भी अब वर्षा की चूत में अपनी जीभ डालने में सरलता होने लगी और वर्षा ने अपने कूल्हे आगे कर दिए. आज वर्षा की चुदाई में बाप बेटे कोई कमी नहीं रखना चाहते थे. और इसके लिए वर्षा भी अपेक्षित थी.
समीर वर्षा के मम्मों को मसलते हुए उसके कान और गर्दन को चूम रहा था. उसका अपनी पत्नी के कामाँगो से परिचय पुराना था और वर्षा भी उसके इस उपक्रम से उत्तेजित हो रही थी. उसने अपनी गर्दन को पीछे मोड़कर समीर के मुंह को चूमने का प्रयास किया पर सफल न हो पाई. उसने निराश होकर अपनी गर्दन सामने कर ली और अपनी पाँवों के बीच उसकी चूत में मुंह घुसाए अपने बेटे के सिर को देखा. जयंत पूरी तन्मयता के साथ उसकी चूत को चाटे जा रहा था. ऊपर पति के द्वारा मम्मों और अन्य स्थलों पर चल रहे होंठ और जीभ और नीचे उसके पुत्र की अनुभवी जीभ उसे कामोत्तेजना के शिखर पर अति शीघ्र ले जा रही थी.
जयंत ने अपनी एक ऊँगली को अपनी माँ की चूत में डाला और अंगूठे से उसके भग्न को सहलाया तो वर्षा के मुंह से आनंद की सीत्कार निकल गई. उसके पैर काँप उठे और उसके शरीर में ही एक चिर परिचित सिहरन सी उठी. उसके अपने बेटे के सिर को अपने पांवों के बीच दबा लिया.
“जयंत अब बहुत निपुण हो गया है, है न?” समीर ने वर्षा के मम्मों को अब कुछ अधिक कठोरता से दबाते हुए पूछा. वर्षा ने अपने सिर से उसके साथ सहमति व्यक्त की.
फिर वर्षा बोली, “मुझे आपका लंड चूसने के लिए दो. मेरा मुंह मुझसे कुछ माँग रहा है चूसने के लिए.”
समीर वर्षा के पीछे से हटा और उसे अपने हाथों का सहारा देकर लिटा दिया। फिर एक तकिया अपनी पत्नी के सिर के नीचे लगा दी. उसके चेहरे के पास अपना तना हुआ लंड किया तो वर्षा ने झपट कर उसे अपने मुंह में ले लिया. वर्षा के इस उपक्रम से नीचे जयंत का अंगूठा वर्षा के भग्न पर कुछ अधिक जोर से दब गया और वर्षा के मुंह से एक आनंदकारी कराह निकली. पर उसने समीर के लंड को अपने मुंह से बाहर नहीं आने दिया. वर्षा इस आसन में अपने हाथ को जयंत के सिर पर अधिक देर तक नहीं रख सकी और उसने उस हाथ से समीर के नितम्ब अपने और निकट लाने का प्रयास किया.
समीर ने भी उसकी इस चेष्टा के लिए अपने कूल्हे आगे किये जिससे वर्षा को अब लंड चूसने में कुछ सरलता हुई. जयंत के सिर से हाथ हटते ही जयंत जैसे उन्मुक्त हो गया. उसने दो उँगलियों से अपनी माँ की चूत के पटल खोले और अपनी जीभ के अंदर डाला. वर्षा ने समीर के लंड पर अपना दबाव बढ़ा दिया. बेटे के प्रयास का फल पति और पति के प्रयास का फल अब बेटा पा रहा था. यही इस प्रकार की चुदाई का आनंद था. तीनों एक दूसरे के आनंद में भागीदार थे. न केवल स्वयं का सुख बल्कि अन्य दोनों का सुख भी मन में सर्वोपरि था.
जयंत की जीभ अपनी माँ की चूत में अपनी क्षमता के अनुसार विचरण कर रही थी. उसकी चूत के अंदर के गुलाबी त्वचा को चाटने में जो आनंद जयंत को मिल रहा था उतना ही सुख उसकी माँ भी अनुभव कर रही थी. जयंत इस राह पर अब तक अनगिनत बार चल चुका था. परन्तु उसे हर बार इसमें कुछ न कुछ भिन्न प्रतीत होता था. उसे हर बार एक नए स्वाद और एक नई सुगंध का आभास होता था. ऐसा क्यों था उसने कभी जानने या समझने का प्रयास नहीं किया.
उसे ये अवश्य ग्लानि हुई कि वो अपने कार्य और अन्य कलापों पर अधिक केंद्रित होने के कारण इस भोग से न केवल स्वयं वंचित रहा था, परन्तु उसने अपनी माँ के प्रति प्रेम में भी कुछ कमी कर दी थी. पर अब ऐसा होने की संभावना कम हो चली थी. वैसे भी अब उसकी और राहुल की माँ उनके बाहर जाने पर उनके साथ जो रहने वाली थीं. अपनी सोच को एक झटके से दूर करते हुए जयंत ने अपनी माँ की चूत में अपनी जीभ से अपने प्रहार और परिश्रम को बढ़ा दिया.
वर्षा के लंड चूसने में समीर को आज एक नया ही आनंद प्राप्त हो रहा था. बहुत समय के बाद वर्षा उसके लंड को एक प्रेम और समर्पण की भावना के साथ चूस रही थी. समीर ने अपनी पत्नी के सिर पर हाथ रखा और उसके मुलायम बालों में अपना हाथ फिराने लगा. वर्षा ने सिर उठाकर अपने पति को देखा और दोनों की एक दूसरे से जब आँख मिली तो उसमे प्रेम की वर्षा का अनुभव हुआ. वर्षा ने लंड पर अपना ध्यान लौटाया और अपनी चूत में चल रही जीभ का भी आभास किया. उसके शरीर में एक सिहरन सी हुई.
जयंत अपनी माँ की चूत को चाटते हुए शनैः शनैः उसकी गांड की ओर बढ़ रहा था. वो जानता था कि उसकी माँ को न केवल गांड मरवाने में आनंद आता है, बल्कि उसे गांड चटवाने में भी उतना ही सुख मिलता है. और वो अपनी माँ को किसी भी सुख से वंचित नहीं रखना चाहता था. विशेषकर आज, जब वो इतने दिनों के पश्चात अपने माँ बाप के बिस्तर में उनके साथ था. जयंत ने अपनी एक ऊँगली को वर्षा की चूत में डाला और उसे अंदर बाहर करने लगा. वर्षा का शरीर अभी जिस कोण में था उसके कारण जयंत के लिए उसकी गांड तक पहुंचना सरल नहीं था. इसी कारण उसने हल्के हाथों से वर्षा के कूल्हों को पकड़कर वर्षा को उपयुक्त आसन में मोड़ दिया. वर्षा ने कोई आपत्ति नहीं की और वो अपने पति के लंड को चूसती रही.
वर्षा को सही आसन में लाने से अब जयंत के लिए उसकी गांड के छेद तक पहुंचना सरल हो गया. अपनी ऊँगली को वर्षा की भीगी चूत में से निकालकर उसने अपनी माँ की गांड के द्वार पर घिसा. वर्षा के शरीर में जैसे बिजली दौड़ गई. उसने समीर के लंड पर अपने मुंह का दबाव बढ़ा दिया. समीर भी समझ गया कि जयंत ने वर्षा की गांड से खेलना आरम्भ किया होगा. वो अपनी पत्नी को भली भांति जानता जो था. उसने वर्षा के बालों में अपने हाथ चलाते हुए उसे प्रोत्साहित किया. वर्षा के उठे घुटनों के कारण वो जयंत को देख नहीं सकता था, पर उसे अपने अनुमान पर विश्वास था.
जयंत ने वर्षा की गांड के खुरदुरी भूरी त्वचा को वर्षा के चूत के रस से गीला करने के बाद अपनी ऊँगली को वर्षा की शहद भरी चूत में डालकर कुछ और रस एकत्रित किया और इस बार उसने गांड के अंदर उस ऊँगली को डाला. वर्षा के मुंह से एक दबी हुई सिसकी निकली. पर उसने समीर के लंड को नहीं छोड़ा. अपनी ऊँगली से अपनी माँ की गांड को कुछ देर चोदने के बाद जयंत ने यही प्रक्रिया कुछ देर और दोहराई. इस पूरे प्रकरण में जयंत का लंड भी अब फूल कर तन चुका था. इस बार जब जयंत ने अपनी ऊँगली को वर्षा की चूत में डाला तो निकाला नहीं, बल्कि उस ऊँगली से ही हल्की गति से उसकी चूत को चोदने लगा.
फिर उसने अपनी जीभ से वर्षा की गांड की भूरी खुरदुरी बाहरी त्वचा को चाटा। वर्षा की सीत्कार को सुनने के बाद उसने वर्षा की कुछ सीमा तक खुली गांड में अपनी जीभ डाल दी. जीभ से वो जितना भीतर तक जा सकता था उतना गया और अंदर जीभ को घुमाने लगा. वर्षा के जिस भी अंश को जयंत को जीभ स्पर्श करती, वही अंश जैसे सिकुड़ जाता और स्पंदन करने लगता. वर्षा को अपने बेटे से गांड चटवाने में अब अत्यधिक आनंद आ रहा था और उसका ध्यान अपने मुंह में अपने पति के अधिक अपनी गांड में अपने बेटे की जीभ पर चला गया.
समीर ने हल्के हाथ से वर्षा के मुंह को अपने लंड से हटाया और स्थान बदलते हुए अपना मुंह वर्षा को चूत की ओर किया. जयंत के हाथ को हटाकर उसने अपना मुंह अपनी पत्नी को चूत में डाल दिया. अब वर्षा के पति उसकी चूत चाट रहे थे और बेटा गांड. मुंह से लंड निकलने से अब वर्षा अपनी भावना व्यक्त करने के लिए उन्मुक्त थी. और उसकी सीत्कार और कामोन्मादक चीखें कमरे में गूंज उठीं. अब दृश्य यूँ था कि वर्षा अपने पति का लंड चूस रही थी, उसका पति उसकी चूत चूस रहा था और उनका बेटा अपनी माँ की गांड चाट रहा था. वर्षा अब चुदाई के लिए अत्यधिक उत्सुक हो चुकी थी. उसने समीर के लंड को मुंह से निकाला।
वर्षा, “अब मुझसे रहा नहीं जा रहा. अब दोनों मिलकर मुझे चोद दो नहीं तो मैं पागल हो जाऊँगी।”
समीर बैठ गया और जयंत ने भी अपनी जीभ को वर्षा की गांड से बाहर निकाला। बाप बेटा अब वर्षा को देख रहे थे कि वो क्या चाहती है. वर्षा ने जब जयंत के लंड को देखा तो उसने निर्णय ले लिया.
“आप लेट जाएँ. आपको इस बार मेरी चूत मिलनी है. और जयंत, बेटा तुम्हारे लंड को तो मैंने अब तक चखा ही नहीं तो जब मैं तुम्हारे पापा पर चढ़ जाऊँ तो मेरे सामने आकर चूसने के लिए देना…..”
जयंत सुन रहा था. क्योंकि अभी बात समाप्त नहीं हुई थी.
“फिर तुम मेरी गांड मार सकते हो.”
“ये हुई न बात, मॉम! आई लव यू.”
“तो चलो, आ जाओ अपने अपने स्थान पर.”
समीर लेट गया. उसके लंड पर अभी भी वर्षा का थूक चमक रहा था. वर्षा ने उसके ऊपर जाकर लंड को अपनी चूत पर लगाया और बैठ गई. जयंत उसके सामने था, पर जब तक वर्षा ने लंड को सही रूप से चूत में जमा नहीं लिया तब तक उसे छुआ भी नहीं. एक बार सही सवारी गाँठ लेने के बाद उसने अपनी गांड उछालनी आरम्भ की और जब लंड अंदर बाहर होने लगा तो जयंत के लंड को अपने मुंह में लेकर चूसने लगी.
जयंत अपनी माँ के मुंह में अपने लंड के प्रवाह को देख रहा था. इस समय उसके लौड़े की नसें फट रही थीं और वो चाहता था कि वर्षा कुछ गहराई से उसके लंड को चूसे. परन्तु वो उन्हें किसी प्रकार से भी दबाव नहीं देना चाहता था, तो उसने जो मिला उसे ही सहर्ष स्वीकारा. वर्षा ने उसके लंड को कुछ ही देर में अपने मुंह से निकाला और उस पर थूका और उसे अच्छे से लंड मला.
“तेरा लौड़ा बाद में चूस लूँगी चुदाई के बाद. अभी जाकर मेरी गांड मार. तूने इतना चाटा है की निगोड़ी लौड़े के लिए लुपलुप कर रही है.”
जयंत के मन में लड्डू फूट पड़े. उसने संभलकर बिस्तर पर चलते हुए अपनी माँ के पीछे का स्थान लिया. वर्षा अभी भी समीर के तगड़े लंड पर उछले जा रही थी और समीर भी उसे नीचे से अच्छे लम्बे धक्कों के साथ उत्तर दे रहा था. जयंत उनके मिलन स्थान से बह रही रस की धार देख रहा था. उसने अपने आप को सही स्थिति में स्थापित किया और वर्षा की नितम्बों पर हाथ रखा. वर्षा ने उछलना रोक दिया और समीर ने भी समय की आवश्यकता को देखते हुए धक्के रोक दिए.
जयंत की आँखें अपने पिता से मिलीं तो समीर ने उसे आँख मार कर आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया. जयंत के लंड पर थूक तो लगा ही था और उसने अपनी माँ की गांड को चाटने में जो परिश्रम किया था उसके कारण वर्षा की भी गांड अब लौड़ा खाने के लिए तत्पर थी. जयंत ने लंड वर्षा की गांड पर रखा और धीरे से अंदर डाल दिया. वर्षा की गांड के पेंच तो उसके दामाद राहुल और राहुल के पिता के महाकाय लौड़े इतने ढीले कर चुके थे कि जयंत के लंड को पूरा अंदर जाने में कुछ ही पल लगे.
समीर तो मानो इसीलिए रुका था. जयंत के लंड के अंदर ही, उसने अपने वर्षा की चूत चोदना आरम्भ कर दिया. जयंत कुछ समय रुका और अपने पिता की ताल को नापा। फिर उसी ताल में उसने वर्षा की गांड मारनी आरम्भ कर दी. अपने बेटे के लंड के गांड में प्रवेश करते ही वर्षा की चूत ने रस की फुहार छोड़ दी. इतने समय बाद उसका लंड आज उसकी गांड की गहराइयों को जो नाप रहा था. उसकी चूत से झरते रस से समीर का लंड भीग गया और उसकी जांघों से निकलता हुआ बिस्तर को गीला करने लगा. समीर के लिए अब अपने लंड के प्रहार करना कुछ सरल हो गया क्योंकि चूत ने अपना मुंह जो खोल दिया था.
उसने भी अपनी पत्नी के इस आनंद को बढ़ाने के लिए अपने धक्कों की गति को कुछ और बढ़ाया. वर्षा इस बढ़ी गति से और आनंदित हो गई. जब जयंत ने अपने पिता के गति में परिवर्तन देखा तो उसने भी गति को उनके ही समीप लाने के लिए अधिक परिश्रम करने लगा. बाप बेटे के इस अथक परिश्रम का फल ये हुआ कि वर्षा की आनंदमई चीखों से कमरा काँप गया. पिता पुत्र ने इसे अपनी विजय या सफलता का सम्मान समझा और दोनों वर्षा के दोनों छेदों की निर्ममता से चुदाई करने लगे. वर्षा का आनंद अब बढ़ता जा रहा था और उसकी चूत लगातार अपना पानी बहा रही थी. समीर को घर्षण कम होने के कारण और चूत के अत्यंत चिपचिपे होने के कारण अपने लंड से मथने में अब कठिनाई होने लगी. उसने गति कुछ कम की, पर अब वर्षा उस आयाम में थी जहां उसे ये स्वीकार्य नहीं था.
वर्षा ने स्वयं ही अपनी चूत की चुदाई करवाने का बीड़ा उठाया और समीर के सीने पर हाथ रखते हुए अपनी गांड उसके लंड पर पटकने लगी. लय बदलने से जयंत कुछ समय के लिए विचलित हुआ फिर उसने अपनी माँ की गति को नापते हुए अपने लंड के धक्के भी उसके अनुसार बदल दिए. गांड में चलते लंड से अब वर्षा इतनी कामोत्तेजित थी कि वो शीघ्र ही अपने शीर्ष पर पहुंच गई. एक ह्रदय विदारक चीख, जो उसके असीम आनंद की परिचायक थी, के साथ ही वर्षा अपने पति के सीने पर ढह गई. उसकी चूत ने पानी छोड़ने में अभी भी कोई कमी नहीं की. जयंत को अब अपने धक्के अपने मन के अनुसार मारने का सुअवसर प्राप्त हुआ तो उसने कभी तेज तो कभी धीमे, कभी गहरे तो कभी हल्के धक्कों के साथ अपनी माँ की गांड मारता रहा.
वर्षा का शरीर अब न केवल उसके निस्तार के कारण काँप रहा था बल्कि जयंत के धक्के भी इसमें अपना योगदान कर रहे थे. समीर ने पत्नी के चेहरे को उठाया और उसके होंठों से अपने होंठ जोड़ दिए. पति पत्नी चुंबन में खो गए और उनका पुत्र माँ की गांड में झड़ने के निकट पहुंच गया और उसने वर्षा को बताया. वर्षा ने उसे लंड बाहर निकालकर उसके सामने आने का अनुरोध किया. जयंत ने बहुत सावधानी से अपने लंड को बाहर खींचा और वर्षा की गांड के छेद को लुपलुपाते हुए बंद होते हुए देखने लगा.
वर्षा समीर के ऊपर से हटी और बैठ गई. जयंत ने उसके मुंह के सामने अपना लंड किया जिसे चाटने में वर्षा ने कोई झिझक नहीं दिखाई. लंड को चाटकर उसने मुंह में लिया ही था कि जयंत के लंड ने अपनी फुहार छोड़ दी. वर्षा पूरा रस गटक गई और फिर लंड को मुंह से निकालकर चाटी और उसके टोपे पर एक चुंबन लेकर अपने बेटे की ओर कृतग्न भाव से देखने लगी. जयंत हट गया. फिर वर्षा ने समीर के लंड को देखा.
“आपका नहीं हुआ न?”
समीर ने बताया कि नहीं. तो वर्षा ने कहा की लाइए मैं मुंह से आपका रस निकल दूँ. पर समीर ने मना किया.
“नहीं, मैं भी चाहूंगा कि तुम मेरे भी लंड को चाटकर रस पियो जब मैं तुम्हारी गांड मार चुका होऊं.”
वर्षा ने मुस्कुराकर उसे देखा, “उसके लिए कुछ समय रुकना होगा. अभी जयंत ने मेरी गांड पूरी खोल जो दी है.”
“कोई बात नहीं, मुझे कहीं नहीं जाना है. अब जाओ और सफाई कर लो. मैं भी ये चादर बदल दूँ बहुत गीली हो गई है.”
वर्षा बाथरूम में चली गई और बाप बेटे ने चादर बदली और फिर सोफे पर बैठकर वर्षा के आने की राह देखने लगे.
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सुलभा:
सुलभा इन दोनों लौडों से पूर्व परिचित थी. और उनके विशाल आकार से भी. आज दोनों को चूसने में उसे आनंद तो आ ही रहा था, पर कठिनाई भी हो रही थी. उसने दोनों लंड एक साथ मुंह में लेने के एक दो प्रयास किये, पर दोनों की चौड़ाई अधिक होने के कारण उसने हार मान ली. पवन और राहुल ने एक दूसरे को देखा और मुस्कुरा पड़े. सुलभा अब एक लंड को चूसती तो दूसरे को अपनी हथेली से मुठियाती, फिर यही प्रक्रिया वो दूसरे के साथ भी करती. दोनों लौड़े अब अपने पूरे आक्रोश में आ चुके थे. सुलभा ने अपने पति को देखा तो सांकेतिक भाषा में दोनों के बीच में कुछ वार्तालाप हुआ.
पवन: “मेरे विचार से अब हमें आगे बढ़ना चाहिए। मैं तुम्हारे मुंह में झड़ने की इच्छा नहीं रखता, सुलभा.”
राहुल: “और मैं भी.”
सुलभा: “हम्म्म।” सुलभा ने एक एक बार फिर दोनों लौड़े अपने मुंह में लिए और फिर बाहर निकाले।
“राहुल बेटा, क्या तेरा लौड़ा अब कुछ और बड़ा हो गया है?” सुलभा ने राहुल के लंड को अपने हाथ से तौलते हुए पूछा.
राहुल: “मुझे तो नहीं लगता माँ, पर सम्भव है कि आपको इतने दिनों बाद चोदने की इच्छा से बढ़ गया हो.”
सुलभा, “अपना वचन याद रखना, अब मुझसे इतने दिनों दूर मत रहना. ये ऐसे बढ़ता रहा तो मेरी गांड फाड़ देगा.”
पवन, राहुल हंसने लगे तो सुलभा भी हंस पड़ी.
“सच बच्चे, तेरे लंड को गांड में लेने में पहले भी कठिनाई ही होती थी, पर आज लगता है कुछ अधिक होगी.”
“क्यों माँ, बाबूजी ठीक से नहीं मारते क्या आपकी गांड?”
“ऐसा कभी हुआ है कि तेरे बाबूजी मेरी गांड छोड़ दें. पर आज तेरा लौड़ा उनसे बड़ा लग रहा है.”
“तो भागवान, इसे अपनी गांड में लेकर भी देख लो कितना बढ़ा है. वैसे अंजलि और वर्षा तो सरलता से ले पा रही हैं.” पवन ने उसे छेड़ने के उद्देश्य से कहा.
“और कुसुम भी.” राहुल ने जोड़ा.
“और कुसुम भी.” पवन ने दोहराया.
“तो आप क्या समझते हो, मैं इसका लंड अपनी गांड में नहीं ले पाऊँगी? माँ हूँ इसकी।”
“ठीक है, तो चलो बिस्तर पर. तेरी चूत चाटे हुए बहुत समय हो गया.” पवन ने कहा.
“क्यों, आज ही तो दोपहर में चाटे और चोदे थे.”
“क्या करूँ, मन नहीं भरता.”
सुलभा इस बात से बहुत प्रसन्न हो गई. वो बिस्तर पर लेट गई और अपने पाँव फैला लिए. राहुल ने पवन को संकेत किया तो उसने सुलभा को उठाया और उसके नीचे लेट गया. सुलभा ने अपनी बहती चूत को अपने पति के मुंह पर लगाया। पवन की जीभ ने सुलभा के भग्न को छेड़ा तो सुलभा सिसक पड़ी. फिर पवन ने अपनी जीभ का इंद्रजाल बुना और सुलभा की सिसकारियाँ कमरे में गूँज उठीं. कुछ समय तक अपने माता पिता के इस प्रेमालाप को देखने के बाद राहुल ने अपनी माँ की गांड पर अपनी जीभ फिराई। सुलभा जो पहले ही पवन की जीभ के सम्मोहन में थी, इस नए आक्रमण से चिहुंक पड़ी. राहुल अपनी माँ की गांड के छल्ले को अपनी जीभ से हल्के हल्के चाटता रहा. सुलभा की कामुकता उसी अनुपात में बढ़ती रही. फिर राहुल ने अपनी माँ की गांड के दोनों पाटों को खोला तो सुलभा की गांड का छेद खुल गया.
राहुल ने अब अपनी जीभ को गांड में डाला और अंदर चाटने लगा. सुलभा का शरीर कम्पन करने लगा. बाप बेटे स्त्रियों को चोदने में निपुण थे और वो इसका प्रमाण सुलभा को दे रहे थे. उन दोनों के मुंह और जीभ सुलभा के दोनों छेदों में चल रही थीं और सुलभा मानो स्वर्ग का अनुभव कर रही थी. राहुल झुके हुए अपनी माँ की गांड चाट रहा था. बैठने का स्थान था नहीं, इसी कारण उसने अपनी माँ की गांड में दो उंगलिया डाल दीं और सीधे खड़े होकर उँगलियों से ही उसकी गांड मारने लगा. सम्भवतः सुलभा को आभास हो गया कि क्या हो रहा है, परन्तु इस समय वो अपने पति के मुंह में झड़ रही थी तो न कुछ कह पाई न कर पाई. पर एक बार जब उसका स्त्राव समाप्त हुआ तो उसने मुड़कर राहुल को देखा. फिर पवन से बोली.
“सुनिए, आप नीचे से हटिये, राहुल को मेरे पीछे आने दीजिये.” पवन किसी आज्ञाकारी पति के समान हट गया और सुलभा ने बिस्तर पर आगे होते हुए अपनी गांड को ऊँचा उठा दिया. फिर राहुल से बोली.
“आजा बेटा, अब अच्छे से चाट ले अपनी माँ की गांड. बेचारा बहुत दिनों का भूखा है.”
राहुल ने माँ की ममता को समझा और इस बार बिस्तर पर चढ़ गया और लपलप करके अपनी माँ की गांड को चाटने लगा. सुलभा फिर एक बार आनंद के सागर में गोते लगाने लगी. कोई दस मिनट सुलभा की गांड चाटकर राहुल हट गया.
“मन भर गया तेरा?”
“कभी नहीं, पर गांड मारने का भी तो आनंद लेना है, माँ.”
“कितना सयाना है मेरा बेटा, देखा आपने?” सुलभा ने पवन को सम्बोधित किया, “अपनी माँ का कितना ध्यान रखता है.”
“हाँ हाँ, वही ध्यान रखता है, मैं तो कुछ करता ही नहीं.” पवन ने हंसकर कहा तो माँ बेटे ने भी उसका साथ दिया.
“तो क्या चाहती हो अब?” पवन ने अपनी पत्नी से पूछा.
“गांड तो राहुल से ही मरवानी है पहले, पर आप इतनी देर नीचे थे तो इस बार राहुल को नीचे से गांड मारने दो और ऊपर चढ़ जाओ.”
पवन के चेहरे पर मुस्कराहट छा गई. उसने राहुल को देखा तो उसके चेहरे पर आनंद के भाव थे. होते क्यों न. नीचे से गांड में लंड डालने में गहराई और अच्छे से नपती है और गांड का कसाव भी अधिक रहा है. और अगर दूसरी ओर से चूत में लौड़ा हो तो गांड मारने का आनंद दस गुना हो जाता है. राहुल ने देर न की और तुरंत ही बिस्तर पर जा लेटा। अपने लंड को कुछ सहलाया और थूक लगाकर उसे कुछ चिकना किया. सुलभा की गांड अभी तक उसके चाटने और ऊँगली से मैथुन के कारण खुली थी तो सुलभा उसके सिर के ओर पीठ करते हुए उसके ऊपर आई. फिर उसने राहुल के विशाल लौड़े को अपने हाथ में लिया और अपनी गांड के छेद पर रखा.
“अच्छे से चोदना तुम दोनों, ठीक है. ऐसी चुदाई करो कि युग युग तक याद रहे.” सुलभा ने उन्हें निर्देश दिया.
बाप बेटे को ये समझ गए कि सुलभा पलंगतोड़ चुदाई चाहती है. और दोनों उसकी इच्छा पूरी करने में सक्षम थे. सुलभा ने राहुल के लंड पर बैठते हुए कुछ समय लिया. उसका लंड पवन से कुछ अधिक मोटा था और सुलभा की गांड को फैलने में कुछ कष्ट हुआ. पर अपने बेटे से अपनी गांड मरवाने के लिए वो इतनी आतुर थी कि इस दर्द को सहर्ष सह रही थी. कुछ पल तक पवन अपनी पत्नी को अपने बेटे के लंड पर उतरते देखता रहा. लंड अंततः सुलभा की गांड की गहराइयों में खो गया. सुलभा ने एक ठंडी गहरी साँस ली.
“बहुत मोटा है तेरा लंड, मेरी गांड को पूरा फैला दिया. न जाने अंजलि और वर्षा कैसे सहती हैं.”
“अरे वो भी तुझसे कम चुदक्क्ड़ नहीं हैं. वर्षा को तो राहुल के लंड से इतना प्रेम है कि वो हर समय इसे अपनी गांड में लेने के लिए आतुर रहती है.” पवन ने उसे समझाया.
सुलभा ने अब अपने दोनों हाथ पीछे कर के अपने शरीर को आगे की ओर धकेला. अब उसकी चूत सामने आ गई. उसने पवन को प्यासी दृष्टि से देखा. जब राहुल का लंड उसकी माँ की गांड में सही से बैठ गया तो राहुल ने अपने हाथ ऊपर करते हुए अपनी माँ के दोनों मम्मे अपने हाथों में भर लिए और उन्हें मसलने लगा.
“अब आ जाओ, और चोद लो अपनी पत्नी को अपने बेटे के साथ.”
पवन ने आसन जमाया और उसकी खुली उभरी चूत पर लंड लगाया. अपनी पत्नी की आँखों में झांकते हुए उसने अपने लंड को धीरे से अंदर डाला, और एक बार टोपे के अंदर जाते ही लम्बे धक्के के साथ पूरा लौड़ा पेल दिया. सुलभा की आँखों के भाव बदले परन्तु कुछ ही देर के लिए. उसकी आँखों में पीड़ा की एक झलक सी दिखी जो तुरंत ही लुप्त हो गई. उसका स्थान संतुष्ट और कामोन्माद ने ले लिया. आँसू की दो बूंदें अवश्य उसकी आँखों से गिरीं। अब सुलभा की गांड में नीचे से और चूत में ऊपर से लंड डला हुआ था. सब ठहरे हुए थे. एक दूसरे के शरीर के अंदरूनी भागों का आभास हो रहा था. चूत और गांड के बीच की पतली झिल्ली के दोनों और दो शक्तिशाली लंड एक दूसरे के स्पंदन को अनुभव कर रहे थे.
सुलभा की चूत और गांड सुकड़ कर उन्हें जैसे अंदर समा लेना चाहती थीं. सुलभा ने अपनी आँखें बंद कर लीं और इस सम्भोग का आनंद लेने लगी. उसके सर्वप्रिय दोनों पुरुष इस समय उसके शरीर के साथ आत्मसात थे. पर यहाँ ठहरने का कोई तात्पर्य नहीं था. उसने आँखें खोलीं तो अपने पति के अपनी ओर देखता पाया. उसके मुंह से शब्द तो नहीं निकले पर होंठों से दिख गया कि उसने कहा था “चोदो।”
“राहुल, तेरी माँ अब चुदने के लिए कह रही है. तो बेटा अपना वही फार्मूला अपनाते हैं. क्या कहता है?”
“बिलकुल, माँ को भी उसमे बहुत आनंद आता है.”
बाप बेटे ने अपनी एक ताल बनाई हुई थी दुहरी चुदाई के लिए. इसका आकर्षण ये था कि हालाँकि उन्हें इस ताल का सम्पूर्ण ज्ञान था पर उनसे चुद रही स्त्री कुछ ही समय में इतनी विवश हो जाती थी कि वो उसे याद नहीं रख पाती थी. तो पवन और राहुल ने अपने मंत्र अब सुलभा पर छोड़ा. दोनों की ताल कुछ इस प्रकार से सम्मिलित थी कि सुलभा कुछ ही समय में झड़ने लगी. गांड में चल रहे लम्बे मोटे लौड़े ने उसकी गांड की खुजली को पूरा मिटा दिया था और उसकी गांड में अब एक नया ही अनुभव हो रहा था. जैसे कीड़े चल रहे हों. वहीँ उसकी चूत में भी जो लंड था वो उसके बेटे के लंड से बस कुछ ही कम था पर चूत से बहते रस के कारण उसे उसकी कठोरता का पूरा अनुभव नहीं हो रहा था. पर जो अनुभव हो रहा था वो स्वर्गिक था. दो दो मोटे तगड़े लौड़े उसके शरीर पर जैसे कोई संगीत वाद्य के समान खेल रहे थे. उन दोनों के बीच में पिसते हुए जिस सुख की अनुभूति हो रही थी वो अकल्पनीय थी.
इन आनंद के क्षणों में उसे उस दिन की याद आयी जिस दिन राहुल ने उसे पहली बार चोदा था, वो भी उसके पति के सामने जो उस दिन दर्शक मात्र थे. इस मधुर स्मृति ने उसके शरीर में एक कम्पन उत्पन्न किया और साथ ही उसकी चूत से ढेर सारा पानी उढेल दिया. पवन के लंड के ऊपर वो धार गिरी और फिर उसकी चूत से होती हुई राहुल के लंड पर बहने लगी. राहुल को इस पानी के कारण अब सुलभा की गांड मारने में और सरलता हो गई और उसने अपनी गति की बढ़ा दिया.
वहीँ अब पवन भी अपने पूरे जोश में आ चुके थे और अब दोनों बाप बेटे जिस प्रकार से सुलभा के दोनों छेदों को चोद रहे थे वो किसी भी सामान्य स्त्री के सहनशक्ति के परे थी. उनकी ताल और गहरे लम्बे धक्के बिस्तर को हिला रहे थे. सुलभा की चीखें अब कमरे के बाहर तक सुनाई दे रही थीं. अगर परिवार के अन्य सदस्य अपने खेल में व्यस्त न होते तो सम्भवतः उनका ह्रदय काँप जाता. राहुल और पवन सुलभा की चीख पुकार से पूर्ण रूप से परिचित थे और जानते थे कि ये चीखें उसके अनंत आनंद की साक्षी हैं.
“मार दिया आज तुम दोनों ने मुझे. फाड़ दी क्या मेरी चूत और गांड. हाय हाय क्या मजा है. चोदो मुझे और जोर से चोदो। बेटा मेरी गांड का फालूदा बना ही दे अब. तेरे लौड़े के लिए बहुत तरसती है. और आप भी आज मेरी चूत की माँ चोद दो. अब दोनों से चुदने के लिए मैं इतने दिन नहीं रुकने वाली. अधिक हुआ तो वहीँ बैठक में चुदवा लूँगी। और चोदो। हाय मेरी माँ. उह उउउह ईईई!”
सुलभा का अब निरंतर पतन हो रहा था. पवन भी अब झड़ने के निकट था और राहुल तो तंग गांड में झड़ने के लिए आतुर था. पर उसका कर्तव्य था कि अपनी माँ से पूछे कि वो उसके रस को कहाँ छोड़ना चाहती थी.
“माँ, पानी कहाँ छोड़ूँ?”
“क्या तू अभी से?”
“नहीं अभी नहीं, पर..”
“मेरे मुंह में ही छोड़ना. और आप भी. समझे?”
“समझ गया” इस बार राहुल और पवन ने एक स्वर में कहा और फिर तीव्र गति से सुलभा को मथने लगे.
सुलभा की चीखें अब विकराल हो चुकी थीं, पर बाप बेटे उसे पूरी निर्ममता से चोदे जा रहे थे. राहुल ने अपने पिता को संकेत किया कि उसका रस निकलने वाला ही है. इसके बाद दोनों ने अपनी गति धीरे धीरे कम की और फिर पवन ने अपना लंड सुलभा की चूत में से निकाल लिया.
“माँ उतरो नीचे. मेरा भी होने वाला है.” राहुल ने अपनी माँ के मम्मों को निचोड़ते हुए कहा.
पवन ने देखा कि उसकी पत्नी के दोनों मम्मे पूरे लाल हो चुके थे. नीचे उसकी जांघ भी ताबड़तोड़ चुदाई के कारण लाल थी और चूत खुली हुई अपनी गुलाबी छटा बिखेर रही थी. सुलभा ने बहुत सम्भलते हुए राहुल का लंड अपनी गांड से निकाला और फिर हट गई. उसने दो बार कुलाटी ली और बिस्तर के कोने पर जा पहुंची. वहाँ जाकर वो बैठ गई. बाप बेटे के लिए ये निमंत्रण था. पवन तुरंत उसके सामने आ गया. सुलभा ने उसके लंड पर बिखरे अपने रस को चाटा और फिर उसे मुंह में लेकर चूसने लगी. राहुल ने जब देखा कि उसका क्रम आने में समय लगेगा तो वो सुलभा के पीछे ही बैठ गया और फिर से उसके मम्मों को मसलने लगा.
“अपनी माँ के मम्मे उखाड़े बिना नहीं मानेगा क्या?” पवन ने पूछा। तभी सुलभा ने अपने मुंह से उसका लंड निकाला।
“आप चुप रहो जी. मसलने दो मेरे लाड़ले को. दबा ले बेटा जितना मन करे.” सुलभा ये कहकर फिर से पवन का लंड चूसने लगी.
पवन और राहुल एक दूसरे की ओर देखकर मुस्कुरा पड़े. कुछ ही देर में पवन ने अपना रस सुलभा के मुंह में उढेल दिया. जिसे सुलभा ने पीने में कोई संकोच नहीं किया.
पवन: “अब जा तू भी अपनी माँ को अपना पानी पिला दे, तब तक इसके पपीतों को मैं संभालता हूँ.”
राहुल उठा और अपनी माँ के आगे खड़ा हो गया. इस देरी के कारण अब उसका झड़ना थम गया था. सुलभा ने बड़े ही प्रेम से उसके लंड पर जमा अपनी गांड के रस का स्वाद लिया और उसे अच्छे से चाटा। फिर मुंह में लेकर पूरी तन्मयता से चूसने लगी. उसके पीछे पवन अब उनके मम्मे दुह रहा था. फिर पवन ने अपना दायाँ हाथ हटाया और सुलभा की चूत को सहलाने लगा. राहुल इस पूरे दृश्य को देखकर अत्यंत उत्साहित हो गया. उसका लंड फड़फड़ाने लगा और अनुमान से पहले ही उसने अपना रस अपनी माँ के मुंह में छोड़ दिया.
उसके रस का स्वाद, नीचे से खिलवाड़ और मम्मे पर उसके पति के हाथ उसे एक बार फिर से चरम पर ले गए और वो फिर से झड़ गई. अपने बेटे के रस को मुंह में लिए हुए वो वहीँ पर लेट गई और फिर मुंह खोलकर उन दोनों को दिखते हुए गटक गई.
चुदाई के संग्राम का पहला अध्याय समाप्त हो चुका था. पारिवारिक व्यभिचार के अभी अन्य कई अध्याय शेष थे और रात भी.
अनुलेख:
सुलभा की चीखें आज कुछ अधिक ही तेज थीं. बंगला नंबर आठ में श्रेया और मोहन के कमरे तक उसकी ध्वनि पहुंची थी. हालाँकि स्वर बहुत सीमा तक दब गया था, पर सुनाई दे ही गया. श्रेया ने अपना मुंह महक की चूत से हटाया और पीछे अपने पति मोहन को देखा जो इस समय उसकी गांड मार रहा था.
“मुझे लगता है सात नंबर में अवश्य किसी की डबल या ट्रिपल चुदाई हो रही है.”
मोहन ने अपने धक्के रोके और सुना.
“हाँ, लगता तो है.”
“तो क्या इसका अर्थ है कि वे सब भी हमारे जैसे…….?”
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अंजलि:
अंजलि की चूत पर अपनी जीभ लगते हुए ही कमलेश को ऐसा अनुभव हुआ जैसे वो किसी सुगंधित बगीचे में आ गया हो. चूत से उठती भीनी गंध का उसे पहली बार आभास हुआ था. वर्षा और अपनी माँ कुसुम की चूत में से उसे इस प्रकार की सुगंध की अनुभूति नहीं हुई थी. काम्या की चूत से अवश्य उसे सदा एक प्रकार की महक आती थी, पर ये महक कुछ अलग ही थी. उसने अपनी नाक को चूत पर रगड़ा और फिर एक गहरी श्वास भरी. उसके नथुनों से होते हुए उसके सीने में अंजलि की सुगंध समा गई. उसने लपलप करते हुए अंजलि की चूत में अपनी जीभ चलनी आरम्भ कर दी.
अंजलि भी इस सम्भोग का पूरा आनंद ले रही थी. काम्या उसके स्तन दबाते हुए उसके होंठ चूस रही थी. दोनों की जीभ एक दूसरे से अंजलि के मुंह के अंदर भिड़ी हुई थीं. ये समझना सरल नहीं होगा कि अंजलि जैसी धनी और सुंदर स्त्री इस समय अपने नौकरों के बच्चों के साथ कामक्रीड़ा में मग्न थी. परन्तु, कुसुम और उसके परिवार को कभी उस तराजू में तौला भी नहीं गया था. ये सच है कि उसके विवाह के बाद अंजलि और वर्षा की संतोष के साथ चुदाई में बहुत कमी हो गई थी. एक कारण ये भी था कि संतोष भी अब आठ नौ महीने बाहर ही रहता था. इसी कारण अब उसका मन भी उसके स्वयं के परिवार को समर्पित रहता था.
आज भी कुसुम और संतोष अगर इच्छुक होते तो नायक परिवार उन्हें अवश्य किसी न किसी रूप में सम्मिलित कर लेता. पर उन दोनों ने एक दूसरे का साथ अधिक उपयुक्त लगा था. वैसे कुसुम की चुदाई में परिवार वाले कोई कमी नहीं रखते थे. वहीँ संतोष को भी गाँव में नई नई महिलाएँ उपलब्ध थीं, जो उसकी चुदाई के असीम अनुभव से तृप्त होने के लिए लालायित रहती थीं. कभी कभी तो वो कमसिन कलियाँ भी संतोष के भोगने के लिए उसे अर्पण करती थीं. अंजलि का एक हाथ अब काम्या की चूत को स्पर्श कर रहा था. काम्या भी अब अंजलि के बाहुपाश में पूर्ण रूप से समर्पित थी.
कमलेश अपने पूरे मन के साथ अंजलि की चूत को चाट रहा था और अंजलि इस प्रकार से भाई बहन के साथ बहुत आनंदित थी. उसके मन में कमलेश के लिए एक अन्य ही योजना थी. वो उसे कुछ देर और तड़पाना चाहती थी. उसे विश्वास था कि उसके बाद कमलेश उन दोनों की समुचित चुदाई करेगा.
“काम्या, तेरे भाई ने तो मेरी चूत का रस चख लिया. अब क्यों न हम भी एक दूसरे का स्वाद ले लें.” उसने काम्या के कान में धीरे से कहा. काम्या भी समझ गई कि अंजलि दीदी कमलेश को सताने का मन बना चुकी हैं. उसे अपने भाई पर दया आई.
“चिंता न कर उसके बाद हम दोनों उससे गांड मरवाएँगी. उसे बिना पुरुस्कृत किये नहीं छोडूंगी. पर तुझे मेरा साथ देना होगा.” धीमे स्वर में बात करते हुए भी अंजलि ने सावधानी का ध्यान रखते हुए अपनी दोनों जांघों से कमलेश के सिर को जकड़ लिया था.
कमलेश के कान बंद होने के कारण उसे अपने विरुद्ध चल रहे षड्यंत्र का ज्ञान नहीं था. वो बेचारा तो पूरी श्रध्दा से अंजलि दीदी की चूत में खोया हुआ था. काम्या के स्वीकार करते ही अंजलि ने अपनी जांघों की पकड़ हटा दी. कमलेश ने अपने मुंह को उठाकर देखा तो अंजलि उसे देखकर मुस्कुरा रही थी.
“जा उधर जाकर बैठ थोड़ी देर. बियर वियर पीनी हो तो ले ले. हम बहनें एक दूसरे के साथ थोड़ी चूत चटाई कर लें, फिर देखेंगे तेरा क्या करना है.” अंजलि ने कमलेश को कहा तो कमलेश का मुंह उतर गया.
पर उसने उठकर अंजलि के कमरे के मिनी फ्रिज से बियर ले ली. उसके लंड की शोभा देखते ही बन रही थी. अंजलि और काम्या को एक पल के लिए लगा कि क्यों न चुदवा ही लिया जाये. फिर उन्होंने अपनी योजना पर ही तथस्ट रहने का निर्णय लिया. काम्या का मन अपने भाई को देखकर पिघल गया. जब कमलेश ने मायूसी से उसकी ओर देखा तो उसने पलकें झपक कर उसे समझा दिया कि सब ठीक है, तेरा नंबर आएगा. कमलेश के चेहरे के भाव बदल गए. वो तो भला हो जो अंजलि उसे देख नहीं रही थी अन्यथा भाई बहन का खेल समझ जाती.
अंजलि इस समय लेटी हुई थी और उसने ये आसन ही चुना था. अब काम्या को उसके ऊपर आना था. काम्या ने कमलेश को संकेत करने के बाद अंजलि के मुंह पर अपनी चूत को रखा. अंजलि ने उसकी गांड को पकड़कर उसकी चूत को अपने मुंह पर उचित स्थित पर लाया और फिर काम्या के भग्न को अपने होंठों में लेकर मसल दिया. काम्या अभी अंजलि की चूत पर झुकी ही थी और इस आक्रमण से उसका शरीर सिहर उठा और उसका मुंह अंजलि की चूत से जा टकराया. काँपते शरीर को संतुलित करते हुए उसने अपने लक्ष्य पर अपने होंठ लगाए और उसने भी अंजलि के भग्नाशे को मसल दिया. इस बार अंजलि का शरीर काँप उठा.
पर इसके साथ ही एक नई लय बनी और अद्भुत ऊर्जा का संचार हो गया. दोनों एक दूसरे की चूत पर मानो टूट पड़ीं. होंठ, जीभ, उँगलियाँ हर संभावित क्षेत्र को चाट, चूम और छेद रही थीं. कमलेश बैठा हुआ बियर पीते हुए सामने चल रहे प्रेमालाप को देख रहा था. उसने कभी काम्या और अपनी माँ को इस प्रकार से इतनी तत्परता के साथ नहीं देखा था. सम्भवतः आगे देखने को मिलेगा. ये सोचकर वो अपने तने लौड़े को हाथ में लेकर धीरे से सहलाने लगा.
एक दूसरे में समाई हुई दोनों बहनें आनंद से झूम रही थीं. काम्या की चूत को किसी ने ऐसे कभी चूसा नहीं था और जैसा अंजलि उसके साथ करती काम्या भी उसका प्रत्युत्तर उसी रूप में देती. एक प्रकार से देखा जाये तो अंजलि काम्या को सीखा रही थी और जो वो काम्या से अपेक्षा कर रही थी उसी को काम्या पर भी उपयोग कर रही थी. काम्या को भी आनंद की सुखद अनुभूति हो रही थी और वो भी अपना रस रह रह कर अंजलि के मुंह में छोड़ दे रही थी. अंजलि का रस पीने के लिए काम्या को अधिक कार्य करना पड़ रहा था क्योंकि ऊपर होने के कारण उसे अंजलि की चूत में डूब कर रस को सोखना पड़ रहा था. अंजलि ने अपना मुंह काम्या की चूत से हटाया और उसके नितम्ब पकड़कर उसे ऊपर किया. काम्या को समझ नहीं आया.
“अब तू नीचे आ जा. मुझे ऊपर आने दे.” अंजलि ने कहा.
एक पलटी के साथ ही अब उनकी स्थिति बदल गई. अब काम्या के मुंह के ऊपर अंजलि की चूत थी और जो रस वो सोख कर न पी पाई थी अचानक ही उसके मुंह में भर गया. अंजलि के इस रस को पीने में काम्या को कोई हिचक नहीं हुई. पर अंजलि का तात्पर्य कुछ और ही था. उसने इस बार कमलेश को देखा. कमलेश के मन में एक हलचल हुई.
“बियर पी ली?”
“जी दीदी.”
“चल तो यहाँ आ और मेरी गांड मार.”
कमलेश की बांछें खिल उठीं. उसे समझ आ गया कि काम्या ने उसे क्यों संकेत किया था. वो इतनी तेजी से उठा कि बियर उसके हाथ से छिटक गई. अंजलि जो उसका उतावलापन देख रही थी खिलखिला कर हंस पड़ी और फिर अपना मुंह काम्या की चूत में डाल दिया. कमलेश अंजलि के पीछे आया तो उसने सोचा कि अगर सूखी गांड में लंड डालूँगा तो कहीं दीदी को दर्द न हो जाये. वो दौड़ कर उनके बाथरूम में गया और क्रीम की ट्यूब ले आया. अंजलि की सुंदर मखमली गांड देखकर अब उसका लंड और अधिक कड़क हो गया था. उसने अंजलि की गांड में क्रीम लगाई और कुछ देर तक अपनी उँगलियों से उसे अंदर डालता रहा. जब उसे लगा कि गांड उपयुक्त रूप से खुल गई है तो कुछ क्रीम उसने अपने लंड पर लगाई और फिर अंजलि की गांड के छेद पर लंड लगाया.
“डरना मत, अच्छे से मार. तेरे जीजाजी का लौड़ा खाती है ये तेरा भी खा लेगी.”
कमलेश को अब कोई और प्रोत्साहन नहीं चाहिए था. उसने अंजलि की कोमल गांड को बड़ी लालसा से देखा और अपने लंड को उसमे धीरे से डाल दिया. एक बार जब उसके लंड का सुपाड़ा अंदर गया तो अंजलि ने सिर उठाकर उसे मुड़कर देखा
अंजलि, “अब तक तो ठीक था पर अब गांड मारने में कोई दया नहीं दिखानी है. नहीं तो अपने लौड़े को लेकर घर लौट जा और अपनी माँ की गांड मारना प्रेम से.”
कमलेश ऐसा सुनहरा अवसर गँवाने के लिए आतुर न था. उसने एक लम्बे धक्के के साथ अपना लंड अंजलि की गांड में पेल दिया. अंजलि से संतुष्टि भरी आह भरी और फिर काम्या की चूत में घुस गई. काम्या को अंजलि की चूत चाटने के साथ साथ अपने भाई के लंड के भी दर्शन हो रहे थे. ये दृश्य कोई नया नहीं था, पर इस बार गांड उसकी माँ की न होकर अंजलि दीदी की थी. उसने अपने ध्यान को अंजलि की चूत पर ही लगाए रखा और जैसा जैसा अंजलि कर रही थी वो उसी का अनुकरण करते हुए चूत को चूसती और चाटती जा रही थी.
कमलेश के तीव्र धक्कों के कारण काम्या की जीभ बार बार फिसल कर बाहर आ जाती थी. तो उसने अंजलि के दोनों नितम्ब पकड़े जिससे कि अंजलि का हिलना कुछ कम हो गया. अंजलि को गांड मरवाने का पूरा आनंद आ रहा था और साथ में उसे काम्या जैसी कम चुदी लड़की की चूत का भी रस पीने मिल पा रहा था. और इसी कारण उसकी चूत ने भी अपनी रस की बौछार काम्या के मुंह में कर दी. काम्या उसे अमृत के समान गटक गई. कमलेश अपने पूरे सामर्थ्य से अंजलि की गांड मार रहा था.
“बहुत अच्छे, बढ़िया गांड मारता है तू. मौसी की मौज रहती होगी. उन्हें भी ऐसे ही पेलता है क्या?” अंजलि ने काम्या की चूत में से मुंह हटाते हुए कमलेश की प्रशंसा की. उसे सच में कमलेश की स्फूर्ति और जवान लंड की अधीरता रास आ रही थी.
कमलेश ने धक्के लगाते हुए हाँफते स्वर में उत्तर दिया, “हाँ दीदी, माँ की गांड मारने में मुझे बहुत मजा आता है. माँ को भी मेरा लंड अपनी गांड में लेना अच्छा लगता है. वैसे, काम्या भी गांड मरवाने में एक्सपर्ट है पर उसे पापा का लंड अधिक प्यारा है. कभी कभी जो मिलता है.”
अंजलि कमलेश की बात सुनने के बाद काम्या की चूत चाटने लगी पर उसके मन में एक विचार आया, संतोष ने उनके परिवार के लिए बहुत त्याग किये हैं. अपनी पत्नी और बच्चों से दूर रहते हुए भी उसने कभी अपने कार्य से कोताही नहीं की. उनकी आय का एक कारण सम्भवतः संतोष का परिश्रम ही है. हाँ, उसका पति और भाई भी उसमे साझी हैं, पर संतोष को पारिश्रमिक और अभी बढ़े वेतन इत्यादि के ऊपर भी हमारा कोई उत्तरदायित्व बनता है. काम्या की कमसिन चूत को चूसते हुए उसने राहुल से इस बारे में विमर्श करने का मन बनाया.
“ऐ, छुटकी बहन, अब ऐसा कर तू ऊपर आ जा. मेरी गांड तो हमारे भाई ने मार ही ली है, अब तेरी भी इस सुंदर सलोनी गांड भी उसे मारने दे. कमलेश, भैया, मेरी गांड से लंड निकाल. अब तेरी बहना की गांड में ठोक.”
कमलेश ने अपना लंड बाहर निकाला तो अंजलि की गांड का छेद खुला रह गया. धीरे धीरे बंद होता वो छेद कमलेश के मन को लुभा रहा था. उसे एक बात का और आभास हुआ, दीदी ने हमारे भाई कहा था. और आज उसे पहली बार भैया भी पुकारा था, अब तक तो उसे नाम से ही बुलाती थी. उसने इसे शुभ संकेत माना।
“दीदी, आप न आगे हो जाओ. मेरी चूत अब आपकी जीभ की छेड़छाड़ और नहीं सहन कर सकती. आप पेट के बल लेटो, मैं आपकी चाटती हूँ और ये मेरी गांड मार लेगा.” काम्या ने सुझाव दिया.
अंजलि को इसमें कोई आपत्ति नहीं थी. वो औंधे मुंह लेट गई और अपनी गांड ऊपर कर ली जिससे कि काम्या नीचे जा पाए. पर काम्या के मन में कोई और ही इच्छा थी. उसने अंजलि दीदी के गांड के छेद को देखा जिसमें से उसके भाई का लौड़ा अभी भ्रमण करके आया था. छेद अब तक पूरा बंद नहीं हुआ था और उसे उसमें कुछ वीर्य या किसी अन्य रस की बूंदें दिख रही थीं. काम्या उचित स्थिति में आ गई और उसने कमलेश को पीछे देखा जो अब उसकी गांड को ही ताक रहा था.
“अब घूरना बंद कर, अपना लौड़ा पकड़ और मेरी गांड मार.” काम्या ने कमलेश को जैसे नींद से जगाया.
“उह उह.” कमलेश की तंद्रा टूटी और उसने अपने लंड को काम्या की गांड के छेद पर लगाया.
“मुझे प्यार से गांड मरवानी है, तो अधिक तेजी मत दिखाना, भाई.”
“ओके.”
ये कहते हुए कमलेश ने अपने लंड से काम्या की गांड को भेदा और फिर हल्के दबाव के साथ अपने लंड को अंदर डालता रहा. अब तक काम्या ने अंजलि की चूत को छुआ भी न था. पर जब उसकी गांड कमलेश के लंड से भर गई तो उसने अपनी जीभ से अंजलि के छेद को चाटा। अंजलि सिहर उठी, क्योंकि काम्या ने आशा के विरुद्ध उसकी चूत को नहीं उसकी गांड पर अपनी जीभ चलाई थी. कमलेश अपने लंड को काम्या की गांड में डालकर रुक गया और काम्या की गतिविधि देखने लगा. काम्या अंजलि की गांड चाट रही थी, जहाँ से कुछ देर पहले ही उसने अपना लंड निकाला था. ये दृश्य देखकर कमलेश का लंड काम्या की गांड में और भी कड़क हो गया, जिसका आभास काम्या को भी हुआ.
“अच्छा लग रहा है न देखकर?” काम्या ने पूछा और फिर गांड को फैलाकर अपनी जीभ अंदर डाल दी.
कमलेश को लगा मानो उसका लंड फट ही जायेगा. उसने हल्के धक्कों के साथ काम्या की गांड में अपने लंड का भृमण आरम्भ किया. काम्या को अब अपनी गांड में लंड और मुंह में गांड दोनों का आनंद मिल रहा था. कमलेश उसकी गांड में हल्के ही धक्के लगाते हुए सामने का मनोहारी दृश्य देख रहा था. उसकी गति स्वतः ही बढ़ गई, पर इतनी नहीं कि काम्या को कष्ट हो. वो जानता था कि अगर काम्या धीरे गांड मरवाने की इच्छुक है तो वो इसे लम्बा खींचना चाहती है.
कमलेश काम्या की गांड मारता रहा और काम्या अंजलि की गांड और चूत दोनों को चूसती और चाटती रही. अंजलि को आनंद मिल रहा था और उसकी सिसकारियाँ इस की साक्षी थीं. काम्या ने अपनी दो उँगलियों को भी जोड़ लिया था. जब वो गांड चाटती तो वो उँगलियाँ चूत का विचरण करतीं, और जब चूत चाटती तो गांड का. उसने कोई तय लय नहीं बनाई थी और इसीलिए अंजलि को आनंद अधिक मिल रहा था.
“मेरी चूत में अपना मुंह लगा दे, मैं इस बार पूरी झड़ने वाली हूँ.” अंजलि ने काम्या को चेताया.
काम्या ने अपने हाथों से अंजलि के कूल्हे पकड़े और उसे कुछ और उठा दिया और फिर अपनी जीभ उसकी चूत में डालकर खेलने लगी. अंजलि ने सच कहा था पल दो पल में ही जैसे बाँध टूटा और काम्या के मुंह में अंजलि का कामरस झरने लगा. क्योंकि काम्या की स्थिति पूरा रस पीने के लिए उपयुक्त नहीं थी, इसीलिए वो जितना पी सकी उतना पिया और फिर शेष नीचे बिखर गया. झड़ने के बाद अंजलि हट गई और उसने एक बियर ली और सोफे पर जा बैठी और भाई बहन की रासलीला देखने लगी. जिस प्रेम के साथ कमलेश अपनी बहन की गांड मार रहा था, उसे देखकर अंजलि को भी जयंत की याद आ गई.
“आज तो भाई की रात मॉम पूरी रंगीन कर देंगी.” ये सोचकर वो मुस्कुरा दी.
धीमी गति से गांड मारते हुए अब कमलेश थक रहा था तो उसने कुछ और गति बधाई और फिर पाँच सात मिनट में काम्या की गांड में अपना रस छोड़ दिया. फिर वो काम्या के ही ऊपर गिर गया. इसके बाद उसने काम्या को पकड़ कर एक पलटी मारी और दोनों एक दूसरे के साथ लेट गए.
“कैसा रहा भाई?” काम्या ने पूछा.
“अनुपम.”
“ पर अब तक हमारी चूत को लंड नहीं मिला है, क्यों दीदी?”
“और नहीं तो क्या. कुछ देर विश्राम करें फिर अपनी चूत का भी कल्याण करवाते हैं.”
कमलेश की प्रसन्नता से आँखें चमक उठीं और उसने काम्या को उठाया. काम्या बाथरूम में अपनी गांड साफ करने चली गई और कमलेश एक बियर लेकर अंजलि दीदी के साथ बैठ गया.
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अगली सुबह:
परिवार के सदस्य कमरों से निकलकर बैठक में आ रहे थे. स्त्रियों की लड़खड़ाती चाल और चेहरे पर बिखरा संतोष का सौंदर्य उनकी बीती रात्रि की सफलता के साक्षी थे. कुसुम पहले ही आ चुकी थी और चाय बना रही थी. उसने सबकी प्रिय सैंडविच भी बना दिए थे. कमलेश और काम्या अपने कमरे में अभी तक सोये थे. बिना नहाये ही सब लोग खाने पर टूट पड़े और पलक छपकते ही सारा कुछ साफ हो गया. कुसुम ये देखकर मुस्कुरा दी. तभी सुलभा किचन में आ गई.
“दीदी, लगता है रात बहुत मस्त निकली है, सब इतने भूखे जो हैं.” कुसुम ने पूछा.
“अरे इतनी अच्छी चुदाई की है बाप बेटे ने मिलकर कि आत्मा प्रसन्न हो गई.” सुलभा ने कहा.
“देख रही हूँ दीदी, आपके चेहरे पर इतनी चमक और इतनी संतुष्टि कम ही देखी है.”
“चल ये सब छोड़, जल्दी से पकोड़े निकाल देते हैं, सबके पेट में चूहे दौड़ रहे हैं.”
अभी सब लोग खाना समाप्त ही किये थे कि घर की घंटी बजी. कुसुम ने खोला तो सामने श्रेया थी. उसने श्रेया को अंदर बुलाया और फिर अंजलि की ओर देखा.
“अरे श्रेया, माई डॉल. कैसी है. आज कैसे मेरी याद आ गई? मोहन जी ने छोड़ दिया तुझे?” अंजलि ने उसे गले लगाते हुए पूछा.
“बात ही कुछ ऐसी थी कि छोड़ना ही पड़ा. हम कहीं अकेले में बात कर सकते हैं?”
“हाँ हाँ, चल मेरे कमरे में.” अंजलि ने झोंक में बोल दिया और श्रेया को कमरे में ले गई.
अंदर जाते ही उसे अपनी गलती का आभास हो गया. बिस्तर की स्थिति और बियर की बोतलें रात की कथा सुना रही थीं. अंजलि इससे पहले कि कुछ और कहती, श्रेया ने कमरा बंद कर लिया.
“तो मेरी शंका सही है.” श्रेया ने कहा. अंजलि को काटो तो खून नहीं.
“कैसी शंका?” अंजलि का स्वर काँप रहा था.
“कल रात मैंने किसी स्त्री की चीख सुनी थी. हमारे घर की ओर किसका कमरा है?” श्रेया ने अंजलि की आँखों में झांकते हुए पूछा.
“माँ जी का, सासू माँ.”
श्रेया आगे बढ़ी और उसने अंजलि के कंधों पर हाथ रखा. उसकी आँखों से आँख मिलाये हुए बोली, “उनकी चीख से मुझे ऐसा लगा जैसी कि उनकी जोरदार चुदाई हो रही है.”
अंजलि, “हो सकता है. राहुल के पिता हैं तो चुदाई में चीख निकलवा ही देते होंगे.”
श्रेया: “सम्भवतः, पर मैंने ऐसी चीखें पहले भी सुनी हैं, तब जब किसी की चुदाई एक नहीं बल्कि अनेक पुरुष कर रहे हों.”
अंजलि हकलाते हुए, “क्या कह रही हो, तुम जानती भी हो?”
श्रेया: “अंजलि, मैं जानती भी हूँ और समझती भी हूँ. वो चीखें उनसे कोई बहुत भिन्न नहीं थीं जो मैं या मम्मी या सासू माँ निकालते हैं.”
अंजलि का सिर घूम रहा था. वो सहारा लेकर सोफे पर बैठ गई. पर श्रेया खड़ी रही. अंजलि ने श्रेया को देखा. श्रेया मुस्कुरा रही थी.
“अंजलि, अगर मैं गलत नहीं हूँ तो कल सुलभा आंटी को एक नहीं दो दो पुरुष चोद रहे थे. हैं न?”
अंजलि ने सिर हिलाकर स्वीकार किया. उसे इस जाल से निकलने का कोई रास्ता नहीं दिख रहा था. पर श्रेया भी रुकने वाली नहीं थी.
“दूसरा तुम्हारा पति और उनका बेटा राहुल था क्या?”
अंजलि ने सिर हिलाया.
“वाह, वाह, वाह.”
अंजलि अवाक् थी.
श्रेया उसके सामने आकर खड़ी हुई. उसने अंजलि की आँखों में झाँका और उसकी मुस्कान से अंजलि को कुछ शांति मिली.
“बात ये है, अंजू डार्लिंग, कि जो खेल तुम लोग अपने घर में खेलते हो, हमारे घर में भी वही चलता है. मेरा और मेरे पति का परिवार इस प्रकार के सम्भोग में बहुत समय से लिप्त हैं. आज मुझे प्रसन्नता है कि हम एक ही नाव के यात्री हैं. अपने परिवार से बात करो. अगर वो माने तो फिर हम सब मिलकर पार्टी करेंगे. पार्टी का अर्थ समझ रही हो न?”
अंजलि ने मूक रहकर सिर हिलाया.
“तो स्वीटहार्ट, मैं चलती हूँ. तुम्हारे उत्तर की प्रतीक्षा रहेगी.”
ये कहकर श्रेया कमरे से बाहर गई और सबको नमस्ते करने के बाद घर चली गई. कुछ देर में अंजलि कमरे से निकली उसका रंग अभी भी उड़ा हुआ था. राहुल उसके पास गया और पूछा कि क्या हुआ.
अंजलि सोफे पर बैठी और श्रेया से हुई बात बताने लगी. सबकी आँखें आश्चर्य से चौड़ी हो गयीं.
“ओह शिट.” जयंत के मुंह से निकला. अन्य सभी भी सोच में डूबे हुए थे. ये एक नया मोड़ था जिसके लिए कोई भी तैयार न था. चिंतन में डूबे हुए सब अपने कमरों में चले गए.