*************************
तनाव
पटेल परिवार में कुछ दिनों से लगातार तनाव का वातावरण था. आकार को ये बात बिलकुल भी रास नहीं आयी थी कि नीलम ने उनका बंगला अफ्रीकी लोगों से चुदवाने के लिए प्रयोग में लाया था. अधिक गंभीर विषय ये था कि उसने ये बात घर में सबसे छुपा कर भी रखी थी. उनका परिवार इस प्रकार के संबंधों पर कोई आपत्ति अधिकतर नहीं करता था, परन्तु नीलम जिस प्रकार इसे छुपाया था, वो किसी को भी ठीक नहीं लगा था. आकार निशा पर भी कुपित था और उसे दो सप्ताह के लिए छुट्टी पर भेज दिया था. पीठ पीछे इस प्रकार का स्वांग उसे बिलकुल नहीं भाया था.
नीलम ने सबसे अपनी गलती का पछतावा किया था पर न जाने क्यों कोई उसे क्षमा करने के लिए लालायित नहीं था. और इसी कारण जहां घर के अन्य लोग अपना जीवन सामान्य रूप से व्यतीत कर रहे थे, नीलम दूर एक ओर पड़ी थी. हाँ, वो शारीरिक रूप से वहीँ रह रही थी पर मानो अकेले. हितेश और दर्शन भी, जो सदा ही उसे चोदने के लिए लालायित रहते थे, उससे कन्नी काट रहे थे. अंततः उसने हार मानकर बाहरी सहायता लेने का निर्णय किया. उसने एक बार फिर आकार से क्षमा याचना की और उससे विनती की कि क्या वो दो तीन दिनों के लिए बाहर जा सकती है. उसे विश्वास था कि उसके न रहने से परिवार वालों के मन में कुछ दयाभाव जागृत हो जाये.
आकार ने उसे अनुमति दे दी और वो अगले दिन सुबह निकल गयी. इस बार भी उसने एक गलती की थी. उसने इस बार भी किसी को नहीं बताया कि वो कहाँ जा रही थी. पर इस समय वो निराश थी और उस व्यक्ति से मिलने जा रही थी जो घर के एक या दो सदस्यों को मना सकता था. अपनी गाड़ी स्वयं चलाते हुए वो उस नगर में पहुंची जहाँ उसे एक आशा की किरण दिख रही थी. पर उसे ये भी दुविधा थी कि वो व्यक्ति मिलेगा भी या नहीं. सुबह छह बजे की निकली हुई वो एक बार रुकी जहाँ उसने कुछ जलपान किया। फिर साढ़े दस बजे वो एक घर के सामने अपनी कार खड़ी कर रही थी.
घंटी बजाने के बाद वो बहुत उत्तेजित हो गयी. उसे समझ नहीं पड़ रहा था कि उसका ये कदम उसकी कठिनाई दूर करेगा या और बढ़ा देगा. घर के दरवाजे के खुलते ही सामने वाले की आँखें उसे देखकर आश्चर्य से खुली रह गयीं.
“नीलम तुम! यहाँ कैसे?” उसने पूछा.
नीलम से अब रुका नहीं गया. वो उसके गले से लिपट गयी और फूट फूट कर रोने लगी. उसे अपनी बाँहों में लेकर अंदर ले जाकर द्वार बंद कर दिया. नीलम को सोफे पर बैठाकर उसके लिए पानी लाया और उसे पिलाया. नीलम अब कुछ संयत हुई.
“नीलम, अब बताओ, ऐसा क्या हुआ कि तुम चार घंटे गाड़ी चलाकर मुझे मिलने आयी हो. और इतनी द्रवित हो.”
“दीदी, मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गयी.” ये कहते हुए नीलम ने बिना रुके पूरा वृत्तांत सुना दिया.
“गलती तो है पर आकार तुम्हे क्षमा नहीं कर रहा ये भी बड़ी बात है. दिया क्या कहती है?”
“मुझसे कोई भी बात नहीं कर रहा. हितेश भी नहीं. मैं कहाँ जाऊँ दीदी, मैं क्या करूं. बस मेरा अब एकमात्र आप ही सहारा हैं.”
“कब जाना है तुम्हें वापिस?”
“मैं दो तीन दिन का बोल कर आयी हूँ.”
“ठीक है, हम कुछ न कुछ सोच लेंगे. इनकी भी सलाह लेंगे कि क्या किया जा सकता है. तुम अपना सामान निकालो और अथिति कक्ष में रख लो. फिर नहा धोकर नाश्ता करो. फिर बात करेंगे. चिंता न करो, सब ठीक हो जायेगा.”
नीलम ने अपना सामान रखा और नहाकर बाहर आ गयी. सामने खड़ी स्त्री को देखकर उसे अचरज होता था कि उनके परिवार वाले उन्हें और उनकी बहन में अंतर कैसे कर लेते थे. क्योंकि जिसकी शरण में नीलम आयी थी वो और कोई नहीं दिया की बहन सिया थी.
******************
मंत्रणा:
जब नीलम गयी हुई थी तब नाश्ते के बाद घर के सभी सदस्य बैठे हुए पिछले दिनों की घटना पर मंत्रणा कर रहे थे. आकार इस पूरी चर्चा का मुख्य बिंदु था.
दिया: “भाई, हम सब आपके साथ हैं और समझते हैं कि नीलम ने जो किया वो अनुचित था. और वो भी इसके लिए कई बार क्षमा मांग चुकी है. एक बात और, ऐसा नहीं है कि ऐसा पहली बार हुआ हो. अपने पहले कभी भी कोई आपत्ति नहीं की, फिर इस बार क्यों?”
आकार: “बात सीधी सी है, भाभी. हम सब किसी से भी कोई बात नहीं छुपाते. अगर वो हमें बताकर जाती तो कोई आपत्ति नहीं थी. पर उसने ऐसा हमारे पीठ पीछे किया जो गलत है.”
कनिका: “पापा, मॉम इसके लिए बहुत ही लज्जित हैं. और मुझे लगता है कि वे आगे ऐसा कुछ न करेंगी. इसीलिए, हम सब आपसे विनती कर रहे हैं, उन्हें इस बार क्षमा कर दीजिये.”
आकार: “अभी कहाँ गयी है, किसी को पता है?”
दिया: “नहीं, पर जिस मनस्थिति में वो गयी है, मैं अनुमान अवश्य ही लगा सकती हूँ.” उसने हितेश की ओर देखकर कहा.
आकार ने हितेश से पूछा, “तुम्हें पता है?”
हितेश हड़बड़ा गया. “नहीं, मुझे नहीं पता, मौसाजी.”
दिया: “सिया से मिलने गयी होगी. मेरे बाद वो उसके ही सबसे निकट है. उस बेचारी के परिवार में तो कोई है नहीं हमारे सिवाय. और कहाँ जाएगी.”
आकार का हृदय द्रवित हो गया. नीलम के परिवार में अब कोई नहीं था. उसके माता पिता को एक एक्सीडेंट में खोने के बाद अब नीलम का उन सबके सिवाय और कोई न था. उसे ग्लानि हुई कि उसने नीलम से इस प्रकार का व्यव्हार किया. उसने आकाश की ओर देखा तो आकाश ने सिर हिलाकर अपनी सहमति व्यक्त की. एक गहरी साँस लेते हुए आकार ने दिया को देखा.
“भाभी, ठीक है. आप सब से मैं अलग नहीं सोच सकता. मैं नीलम को क्षमा करता हूँ. और अगर सिया जी का फोन आये तो उन्हें भी बता देना. नीलम दो चार दिन वहाँ रह ले, उसका मन भी लग जायेगा और कुछ चिंतन भी कर लेगी.”
“और चुदाई भी. बेचारी इतने दिनों की प्यासी है. ये बात सुनकर मुझे नहीं लगता कि जीजाजी और देवर जी को आज रात सोने को मिलने वाला है.”
सब हंसने लगे तो हितेश ने भी साथ दिया, “अगर मुझे पता होता तो मैं भी चला जाता.”
आकाश: “अब चला जा, उसे साथ लिवा लाना लौटने में. हाँ अपने आप जाना होगा, गाड़ी तो नीलम ले गयी है.”
हितेश: “सच! मैं अभी बस से निकल जाता हूँ.”
आकाश ने दिया को देखा, “तब तक तुम ये समाचार अपने तक ही रखो. जब हितेश पहुंचे तब ही सिया को बताना.”
दिया: “आप बहुत कुटिल हैं. पर इसीलिए मैं आपसे इतना प्यार करती हूँ. दर्शन जाकर हितेश को बस अड्डे तक छोड़ आ. समय नहीं खोना चाहिए.”
कुछ ही देर में दर्शन हितेश के साथ निकल गया. हितेश शाम तक ही पहुंच सकता था. दर्शन लौटा तो प्रसन्न था.
“पापा, एक टैक्सी वाला जा रहा था, तो हितेश को उसने ले लिया. दोपहर के खाने तक पहुंच जायेगा.”
“जैसे खाना खाने वाला हो वो. चलो अब हम सब अपने काम पर लगें. दिया, बताना क्या हुआ.” ये कहते हुए आकाश ने मंत्रणा समाप्त कर दी.
******************
योजना:
नीलम बाहर निकली तो सिया किसी से बात कर रही थी. उसने नीलम को बैठने का संकेत किया और बात करती रही. उसकी बातों से ये पता चल ही गया कि वो अपने पति से बात कर रही थी और उसे सारी स्थिति से अवगत करा रही थी. नीलम के मन में हूक सी उठी. अगर उसने भी आकार से छुपाया न होता तो आज इस स्थिति ने न होती. पर अब केवल सिया ही उसकी सहायता कर सकती थी. पर क्या उतना पर्याप्त होगा? ये तो केवल समय ही बता सकता था. पर सिया के पास आने से उसे एक आशा अवश्य थी.
सिया ने फोन रखा और नीलम की ओर देखा. “इनका कहना है कि समस्या इतनी गंभीर नहीं है. और तुम्हारे यहाँ रहने से सम्भव है कि आकार का मन शीघ्र द्रवित भी हो जाये. तुमने जो तीन चार दिन के बारे में सोचा है वो सही है. अब अगर चाहो तो तुम कुछ समय के लिए सो जाओ. इन्होनें कहा है कि ये और मेरा देवर आज समय पूर्व ही आ जायेंगे.” फिर नटखट मुस्कान के साथ बोली, “कोई विशेष कारण ही होगा, मेरे लिए तो ये कभी ऐसा नहीं कहते।”
नीलम शर्मा गयी. “दीदी, मैं उन सब विषयों के बारे में जब से ये हुआ है सोच भी नहीं पा रही हूँ. और कोई समय होता तो मुझे बहुत प्रसन्न होती.”
सिया: “मैं समझती हूँ, पर इस प्रकार से तुम्हारा मन कभी शांत नहीं होगा और तुम्हें कोई रास्ता भी नहीं मिलेगा.”
नीलम ने कहा कि वो कुछ देर सो लेती है, उसे कुछ थकान तो थी ही, शारीरिक और मानसिक दोनों. सिया ने उसे आश्वासन दिया कि अब वो दिया से बात करने वाली है, परन्तु उसका न रहना ही अच्छा होगा. नीलम अपने दिए हुए कमरे में गयी और छत की ओर देखते हुए न जाने कब नींद में चली गयी. सिया ने दिया को फोन लगाकर बताया कि नीलम आयी है तो दिया ने कहा कि उसे यही अनुमान था. उसके बाद दोनों बहनें दो घंटे तक बात करती रहीं. बातों में हर विषय था, सखी सहेलियों से लेकर चुदाई तक. जब फोन काटा तो सिया को आश्चर्य हुआ कि इतना समय निकल गया. उसने तुरंत ही खाने का प्रबंध करने के लिए किचन में कदम रखा.
दिया ने सिया से बात करके फोन रखा तो कनिका ने पूछा क्या हुआ. दिया ने संक्षेप में पूरी बात सुनाई और फिर खाने की तैयारी में जुट गयी. खाना बनाकर जैसे ही दिया बैठक में आयी हितेश का फोन आया और उसने बताया कि वो अपने शहर पहुंच गया है और बीस मिनट में घर भी पहुंच जायेगा. दिया ने आकार को बताया और फिर अगले फोन की प्रतीक्षा में टीवी लगाकर बैठक में बैठ गयी.
******************
सिया को भी जब समय का पता लगा तो उसे भी आश्चर्य ही हुआ. उसने सोचा कि अब नीलम को जगा देना ही अच्छा होगा क्योंकि अधिक सोने से सुस्ती चढ़ेगी. वो उठे इसके पहले ही घर की घंटी बज उठी. अब इस समय कौन आ गया? ये सोचते हुए उसने द्वार खोला तो आश्चर्य से जैसे चीख ही पड़ी.
“हितेश, बेटा तू? हाय मेरा बच्चा. कैसे आया? अंदर आ. खाना खाया?” सिया के प्रश्न जैसे अंत ही नहीं हो रहे थे.
“अरे रे रे मॉम, थोड़ी साँस तो ले लो. सब बताता हूँ. पहले ये बताओ मेरी मिठाई कहाँ है?” हितेश ने अंदर आकर घर लॉक करके पूछा.
“जहाँ हमेशा रही है.” सिया ने उसे जकड़ लिया.
हितेश ने उसके होंठों पर होंठ रखे और गहरा चुंबन लिया।
“इस मिठाई का स्वाद हर मिठाई से अधिक मीठा है. पर ये बताओ मौसी कहाँ हैं?”
“अंदर सो रही है.”
“ठीक है, आपके कमरे में चलो, मैं बताता हूँ मैं क्यों आया.”
सिया के कमरे में जाकर हितेश ने उसे अपने आने का कारण बताया. सिया को ख़ुशी हुई कि नीलम की समस्या सुलझ गयी.
“और मॉम, आपका कैसा चल रहा है. पापा और चाचा आपका ध्यान रखते तो हैं न?”
“हाँ, पर तेरी कमी हमेशा खलती है.”
“चाचा को कोई चाची मिली?”
“उन्हें न मिलने की. वो सबमे मुझे और दिया को ढूंढते हैं, और वैसी मिलने वाली नहीं.”
हितेश कुछ सोचने लगा. “मॉम, मुझे कुछ अधिक तो नहीं पता पर मौसा के मोहल्ले में एक विधवा स्त्री है, बंगाली है और उनका मेरी आयु का एक लड़का भी है. बहुत सुंदर भी है. और न जाने जब जब मैं उन्हें देखता हूँ, मुझे लगता है कि वो बहुत चुदक्क्ड़ भी है. चाचा के लिए मुझे सही लगती हैं, पर आगे आप लोगों को देखना पड़ेगा.”
“फोटो या कुछ है?”
“नहीं, पर आप मौसी से कहोगी तो वो भेज सकती हैं. उनके व्हाट्सएप्प ग्रुप में हैं.”
“पर हमारे परिवार के जिस प्रकार के सम्बन्ध हैं वो समस्या बन सकते हैं.”
“हाँ, पर आगे की जानकारी के बिना आगे बढ़ना ठीक नहीं है.”
“जब तू आया तो मैं नीलम को जगाने जा रही थी. पर अब मुझे लगता है कि ये काम तू अच्छे से कर सकता है.” इस बार सिया के चेहरे पर मुस्कान थी.
“मैंने उन्हें पहले भी कई बार जगाया है, मुझे पता है उन्हें कैसे जगाते हैं. वैसे आपको भी वैसी ही जागना पसंद है.”
“फिर जल्दी कर, अगर स्वयं जाग गयी तो हमारा सरप्राइज़ व्यर्थ हो जायेगा.”
हितेश उठकर जाने लगा तो सिया ने उसे रोका. “कपड़े यहीं छोड़ जा.”
हितेश ने आनन फानन कपड़े उतारे तो सिया ने उसे पास बुलाया और उसके लंड को चूमकर थोड़ा चाटा और चूसने के बाद उसे जाने के लिए कहा.
“बड़े दिन बाद तेरे लंड का स्वाद लिया है. बिना नीलम की चूत के रस के बिना एक बार चाटना चाहती थी. अब जा और बजा दे अपना डंका।”
हितेश उस कमरे में चला गया जहाँ नीलम अभी तक सोई पड़ी थी.
******************
घर की बात:
सिया के फोन का उत्तर देने में दिया ने देर नहीं की. कुछ देर की हल्की फुलकी बातों के बाद सिया ने धमाका किया. उसने हितेश के द्वारा अपने देवर के लिए किसी विधवा बंगाली महिला के बारे में पूछा. दिया सोच में पड़ गयी. सुमति से वो कई बार मिली थी परन्तु इतनी घनिष्टता भी नहीं थी कि आगे बात की जा सके. फिर उनके परिवार की जीवन शैली का भी अंतर था. अगर सुमति को ये सब रास न आया तो क्या होगा? फिर ये बात भी थी कि क्या वो अपने भाई जॉय से दूर जाना चाहेगी? जहाँ तक उसे पता था उसका बेटा पार्थ का भी अपना काम था. उसने अपनी राय सिया को दी.
सिया ने कहा कि इसका एक ही उपाय है, कि किसी प्रकार से उसके देवर प्रकाश से सुमति को मिलाया जाये और फिर देखा जाये कि आगे क्या होता है. अचानक ही दिया को एक कड़ी का ध्यान आया जो उन्हें जोड़ती थी. उसका नाम था रमोना. रमोना पार्थ को जानती थी. कैसे? ये तो उसे पता नहीं था. पर रमोना उससे चुदी न हो इसकी संभावना कम ही थी. सिया के कहने पर उसने सुमति का एक फोटो अपने व्हाट्सएप्प ग्रुप से उसे भेज दिया. जब बात समाप्त हुई तो उसने रमोना को फोन लगाया और मिलने की इच्छा की.
रमोना ने उसे कल आने के लिए कहा और इसी के साथ इस नए समीकरण की नींव पड़ गयी. अब आगे क्या होना है ये तो किसी को पता न था. दिया ने सिया को फोन पर कहा कि वो प्रकाश को नीलम और हितेश के साथ यहाँ आने के लिए कहे, पर उसका अभिप्राय न बताये। अब चूँकि दिया के पास तीन दिन का समय था तो वो अपनी योजना को सफल बनाने के लिए जुट गयी. शाम को उसे ये बात परिवार के अन्य सदस्यों से साझा करनी होंगी. इसके बाद दिया ने खाना खाया और कुछ देर टीवी देखकर सोने के लिए चली गयी.
******************
भारमुक्ति:
हितेश कमरे में गया तो नीलम अभी भी बेसुध सोई पड़ी थी. उसके चेहरे पर एक चिंता का भाव था जिसे हितेश ने भलीभांति पढ़ लिया था. एक हल्की नाइटी में नीलम सीधी ही लेटी हुई थी पर उसकी गर्दन एक ओर ढुलकी हुई थी. नाइटी उसके घुटनों तक मुड़ी हुई थी और अगर हितेश का अनुमान सही था तो अंदर पैंटी नहीं थी. उसने परिवार की किसी स्त्री को पैंटी पहने नहीं देखा था. अगर वो बाहर जाते समय पहनती थीं तो इसका उसे ज्ञान नहीं था. हितेश ने आगे बढ़ते हुए नीलम की नाइटी को ऊपर उठाया और उसे अपने अनुमान पर गर्व हुआ. नीलम की चूत उसके सामने खुली पड़ी थी.
हल्के से उसने बिस्तर पर कोहनी रखी और नीलम की टाँगो को फैलाया और उसकी चूत को देखा. कई दिन की बिना चुदी चूत को देखकर उसके मुंह में पानी आ गया. अपनी जीभ से उसने नीलम की चूत की फांकों को चाटा। नीलम सिहर उठी, पर जागी नहीं. हितेश अपने गंतव्य पर आगे बढ़ता रहा और कुछ ही देर में उसकी लपलपाती जीभ नीलम की चूत के आसपास के हिस्से पर लहराने लगी. नीलम स्वप्न समझकर इस आनंद में डूबी रही. हालाँकि वो अब नींद से बाहर आ रही थी, परन्तु उसकी आँखें अभी भी बंद ही थीं. जब वो जाग भी गयी तो इस डर से आँखें नहीं खोलीं कि कहीं सपना टूट न जाये.
पर उसे तब आश्चर्य हुआ जब उसके भग्नाशे को उसके स्वप्न के पुरुष ने मसला और काटा। उसकी आँखें खुल गयीं. ये स्वप्न नहीं हो सकता. उसने अपनी टांगों के बीच में एक सिर को घुसा पाया, पर वो पहचान न पायी. उसे लगा कि सिया के पति चंद्रेश जिन्हें सब चंदू पुकारते थे, वो उसकी चूत चाट रहे थे. उसने आँखें बंद कर लीं. पर उसे कुछ ठीक नहीं लग रहा था. चंदू के सिर पर तो इतने बाल नहीं थे, और वो भी कुछ कुछ सफेदी ले चुके थे. पर उसकी चूत चाटते हुए पुरुष के बाल घने और काले थे. तो क्या सिया ने भी कोई और चोदू पाला हुआ है? उसने अपनी चूत में घुसे सिर पर एक थपकी दी तो वो रुक गया. पल भर में ही उसका सर उठा और उसकी ऑंखों से आँख मिला बैठा.
“हितेश, तू? यहाँ क्या कर रहा है. अब तो मेरी समस्या और बढ़ गयी. किसी को न कहना बेटा कि मैं यहाँ हूँ.” नीलम ने गिड़गिड़ाते हुए कहा.
हितेश: “अरे मौसी, सबको पता है कि आप यहाँ हो. और मौसा ने ही मुझे यहाँ भेजा है. ये कहकर कि आपको लौटने में अकेले गाड़ी न चलने दूँ और साथ लेकर आऊँ.”
नीलम के मन से एक बड़ा बोझ जैसे हट गया. “और क्या कहा तेरे मौसा ने?”
“यही कि आप निश्चिन्त होकर अपने मन के अनुसार यहाँ रहो और आनंद करो. जब लौटने का मन करे तब मेरे साथ चलना .”
“तो तू मुझे आनंद देने आया है.”
“बिलकुल, पापा और चाचा भी आते ही हैं.” ये कहते हुए हितेश ने अपना मुंह नीलम की चूत पर वापिस लगा दिया.
******************
दिया के घर अब वातावरण सामान्य हो चला था. वैसे तो सभी नीलम और हितेश की कमी अनुभव कर रहे थे, पर ये जानकर संतुष्ट थे कि सब कुछ ठीक ही है और रहेगा. दिया ने सुमति के बारे में बात चलाई तो सब एक दूसरे की ओर देखने लगे. फिर दिया ने बताया कि वो कल रमोना से मिलने जा रही है क्योंकि रमोना उनके परिवार से परिचित है. वो जानने का प्रयास करेगी कि क्या ये संबंध सम्भव है? आकाश ने उसे सतर्क रहने का सुझाव दिया. इसके बाद सभी अपने अपने कमरों में चले गए. चुदाई का ऐसा किसी का कोई विशेष मूड नहीं था और जल्दी ही सब नींद में खो गए.
अगले दिन दिया घर से दस बजे रमोना के घर पहुंची. रमोना ने उसे बताया था कि उसके पति पाँच छह दिनों के लिए बाहर गए हैं और वो आराम से बातें कर सकती हैं. रमोना ने जब द्वार खोला तो ये विदित हो गया कि उसकी अभी अभी चुदाई हुई है. यही नहीं उसके होंठों के एक कोने में एक सफेद द्रव्य का थक्का था जो निश्चित रूप से वीर्य ही था. दिया रमोना की चुदाई की भूख को जानती थी, पर उसे भी इतनी सुबह चुदने में आश्चर्य हुआ.
“अरे, मैंने तुम्हारे कार्यक्रम में व्यवधान तो नहीं डाला?” दिया ने औपचारिक रूप से पूछा.
“नहीं नहीं. अभी एक ही राउंड हुआ है. आगे तुम्हारे जाने के बाद खेलेंगे.” रमोना ने बेझिझक और बेशर्मी से कंधे उचकाते हुए कहा.
“कौन है?” दिया की जिज्ञासा ने उसे पूछने पर विवश कर दिया.
“सचिन ही है, और कौन आएगा इतनी सुबह मुझे चोदने?”
रमोना ने अपने बेटे सचिन के बारे में कहा और दिया का हाथ पकड़कर उसे बैठक में ले गयी और सोफे पर बैठाया. फिर वो किचन से पानी और कुछ अल्पाहार लायी और बीच टेबल पर रखा और दिया के सामने के सोफे पर बैठ गयी. उसका गाउन ढलक गया और उसके स्तन बाहर झलक पड़े. रमोना ने उन्हें छुपाने का कोई प्रयास नहीं किया. ये साफ था कि वो गाउन के नीचे नंगी ही थी.
“क्या बात है, कुछ विशेष बात करनी थी क्या?” रमोना ने समय व्यर्थ न करना ही उचित समझा.
दिया ने एक गहरी साँस ली और फिर अपनी बहन के देवर और सुमति के बारे में बात की. उसने बताया कि उसका देवर विवाह तो करना चाहता है, परन्तु वो अपनी भाभी सिया को भी नहीं छोड़ना चाहता. बात जब समाप्त हुई तो रमोना के चेहरे पर मुस्कान थी.
“तो मुझसे क्या चाहती हो?” रमोना ने पूछा.
“मुझे पता है कि तुम भी उस परिवार को जानती हो, विशेषकर शोनाली को. मैं ये जानना चाहती हूँ कि क्या सुमति हमारी जीवनशैली में स्थापित हो पायेगी?” दिया ने अपना प्रयोजन बताया.
रमोना का अट्टहास ने उसे डरा ही दिया. जब रमोना की हंसी रुकी तो उसकी आँखों में आँसू थे.
उसने कहा, “वैसे इसका उत्तर मैं दे सकती हूँ, पर मैं चाहूँगी कि सचिन तुम्हारी ये दुविधा दूर करे.” रमोना ने सचिन को पुकारा और कहा कि दिया आंटी आयी हैं.
दिया अपनी आपत्ति भी न जता पायी कि इस संदर्भ में सचिन को न बुलाया जाये. पर अब देर हो चुकी थी. सचिन कमरे में आया तो उसने भी एक गाउन ही पहना हुआ था और उसके लंड का उभार साफ दिख रहा था.
वो दिया के पास गया और उसके गाल चूमे, “हैलो आंटी।”
“हैलो सचिन. मम्मी ने तुम्हे बेकार ही बुला भेजा.” दिया ने बोला।
“नो प्रॉब्लम आंटी, आपसे मिलकर हमेशा अच्छा ही लगता है.” सचिन ने मक्खन लगाया.
रमोना ने बात को आगे चलाया, “आंटी जानना चाहती हैं कि सुमति के लिए अगर कोई विवाह का संबंध आये और वो भी ऐसे घर से जहाँ पारिवारिक चुदाई चलती हो तो क्या ये ठीक होगा?”
सचिन अचम्भे से कभी दिया को तो कभी अपनी माँ को देखने लगा.
“इसका उत्तर तो आप भी दे सकती थीं, मुझे क्यों बुलाया?” सचिन थोड़ी खीझ के साथ बोला।
“क्योंकि तुम सागरिका और निखिल के विवाह के तय करने वाली पार्टी में सम्मिलित थे, मैं नहीं.”
दिया का सिर घूम रहा था. अब ये नया मोड़ कहाँ से आ गया.
सचिन: “ओके मॉम. अब अपने मुझे बुलाया ही है तो ठीक है, पर इसके लिए आपको मुझे विशेष पुरुस्कार देना होगा.”
रमोना की आँखों की चमक बढ़ गयी, “जो मेरा बेटा चाहे.”
सचिन: “आंटी, आपको बता दूँ की पार्थ के घर में भी इसी प्रकार की जीवन शैली है. पार्थ अपनी माँ, बुआ और अपनी दोनों बहनों को चोदता है. इसीलिए, इस मापदंड पर कोई भी समस्या नहीं है. और तो और पार्थ की बहन सागरिका का विवाह जो निखिल के साथ तय हुआ है, उसके पहले उन्होंने दोनों परिवारों के मिलन की एक पार्टी रखी थी, जिसमे मैं और कुछ अन्य मित्र भी बुलाये गए थे पार्थ के द्वारा. सौ बात की एक बात निखिल के परिवार में भी यही प्रचलन है. तो आप बिना चिंता के इस संबंध के बारे में आगे बढ़ सकती है. आपको मेरी शुभकामनायें हैं.”
दिया को अभी तक विश्वास ही नहीं हुआ था.
“मतलब, शोनाली और शीला के परिवार भी…”
“आपका मोहल्ला आठ बंगलों का ही है, पर वहाँ क्या क्या होता है, ये अभी भी आपको नहीं पता. बस ये जानिए की स्मिता (शेट्टी) का परिवार भी ऐसी ही जीवन शैली में लिप्त है.”
“और कोई?”
“समय के साथ सब जान जाइएगा. ओके मॉम मैंने अपना वादा पूरा किया अब मेरा पुरुस्कार दो.”
“हट बदमाश, घर पर अथिति है और मुझसे मांग रहा है. दिया, क्या तुम सचिन से चुदवाने की इच्छुक हो?”
तभी सचिन बोल पड़ा, “आंटी आप चाहो तो मैं पार्थ से चार बजे आने का अनुरोध कर सकता हूँ. आप उससे अन्य प्रश्न भी पूछ सकती हैं. और चाहे तो हम दोनों को भी ट्राई कर सकती हैं.”
दिया ने बिना सोचे ही उत्तर दे दिया, “ठीक है, बुला लो.”
सचिन ने पार्थ को फोन किया तो पार्थ ने चार बजे आने में असमर्थता जताई पर पाँच बजे के लिए स्वीकृति दे दी. फोन रखकर सचिन ने दिया को देखा, “पाँच बजे.”
“ठीक है.” ये कहते हुए दिया उठने लगी तो रमोना ने टोका, “पक्का तुम्हें सचिन से नहीं चुदना है अभी?”
“हाँ. मुझे कुछ सोचना है और सिया से भी बात करनी है.”
“ये अच्छा ही है. क्योंकि अब मैं सचिन से गांड मरवाकर उसे उसका पुरुस्कार दूँगी।”
ये कहते हुए रमोना उठी और अपना गाउन हटाकर सचिन के गाउन को एक ओर किया और सचिन के पहले से तने लंड को अपनी गांड के छेद पर रखा और उसपर बैठती चली गयी. दिया ने रमोना को देखा और फिर घर से बाहर निकल गयी. द्वार स्वतः उसके पीछे बंद हुआ और लॉक भी हो गया.
******************
दिया घर जाते हुए दुविधा में थी. किसे पहले बताये? आकाश को? या सिया को? उसने जो आज जाना था वो बहुत विस्फोटक था. उसने कभी ये सोचा भी न था कि शोनाली, शीला और स्मिता के परिवार इस प्रकार से लिप्त होंगे. फिर उसके चेहरे पर मुस्कान आ गयी. यही बात अगर लोगों को उनके बारे में पता चली तो वो भी यही सोचेंगे. ऐसा नहीं था कि संबंध तय होना ही था. कई अड़चनें थीं. क्या सुमति अपने परिवार को इस आयु में छोड़कर जाना चाहेगी? फिर पार्थ का या उसके व्यवसाय का क्या होगा? अगर ये न हुआ तो क्या प्रकाश यहाँ आना चाहेगा? कुछ चिंतन के बाद उसे लगा कि प्रकाश को यहाँ आने में कोई अधिक आपत्ति या समस्या नहीं होगी.
घर पहुंचने पर उसने देखा कि सब जा चुके थे. उसने अपने लिए कॉफी बनाई और सोफे पर बैठ गयी. पहले उसने आकाश को फोन किया.
“हैलो, हाँ मैं रमोना से मिलने गयी थी. समाचार अच्छा ही है. शाम आप जब आओगे तब बताती हूँ. और हाँ, मैं रमोना के पास शाम पाँच बजे फिर जाऊँगी, कुछ और जानकारी लेने और किसी से मिलने.”
“,”
“ शाम सब बता ही दूंगी, अधिक उत्सुक मत हो जाइये अभी से. हो सकता है कि बात उलटी ही निकले.”
“बाय, लव यू।”
कॉफी पीते हुए उसने इस बार सिया को फोन किया. फिर काट दिया. “खाने के बाद करूंगी नहीं तो लम्बा समय निकल जायेगा।” ये सोचकर कॉफी समाप्त करने के बाद उसने खाना बनाने का काम आरम्भ किया.
जब तक खाना बना तो एक बजे से ऊपर हो चुका था और कनिका भी आ गयी.
“हैलो मॉम, क्या बनाया है? अपने खाया?’
दिया ने उसे बताया और कहा कि वो भी अब खाने ही जा रही है.
“फिर आप बस दस मिनट रुको, मैं भी साथ में खा लेती हूँ. ओके?”
दिया ने खाना टेबल पर लगाया और कनिका की राह देखने लगी. कनिका कहे अनुसार दस मिनट में ही आ गयी. और माँ बेटी गपशप करते हुए खाना खाती रहीं. इसके बाद कनिका अपने कमरे में चली गयी और दिया ने भी सोचा आधे घंटे सोने के बाद सिया से बात करुँगी. आधे घंटे की नींद के बाद उसने अपने कमरे में से ही लेटे हुए सिया को फोन लगाया.
******************
जब सिया का फोन बजा तो वो फोन उठाने की स्थिति में ही नहीं थी. उसने अपने फोन को टेबल पर बजते हुए देखा और कुछ न कर पायी. करती भी कैसे. उसका पति चंद्रेश और देवर प्रकाश अपने कहे अनुसार जल्दी आ गए थे. ये जानकर भी कि नीलम घर में है, प्रकाश ने सिया को अपनी गोद में उठाया और उसके कमरे में ले गया. उसका पति चंद्रू भी हँसता हुआ उनके पीछे हो लिया. सिया उन्हें ये तक न बता पायी कि हितेश भी आया है. आननफानन में उसके कपड़े उतारकर उन्होंने सिया को नंगा किया और चंद्रेश नीचे लेटे और सिया को अपने लंड पर चढ़ा लिया. पीछे से प्रकाश ने भी आव देखा न ताव और अपना लंड उसकी गांड में ठूंस दिया. दोनों भाई सिया की ताबड़तोड़ चुदाई में व्यस्त हो गए.
सिया भी अब सब कुछ भूलकर अपनी इस अकस्मात चुदाई का आनंद लेने लगी. हालाँकि ये इन दोनों का लगभग प्रतिदिन की दिनचर्या बन गई थी. दोनों जब भी लौटते थे तो पहले सिया को चोदते फिर कुछ और बात करते. बस कौन किस छेद को पेलता था यही बदलता था. जैसे आज प्रकाश को उसकी गांड मारने का अवसर मिला था. इस घनघोर चुदाई के बीच में ही सिया का फोन बजा था और फिर शांत हो गया था. दोनों भाई पूरी शक्ति के साथ सिया को चोदने के बाद जब झड़े तब उन्होंने ने चैन की साँस ली. तीनों हाँफते हुए बिस्तर पर लुढ़क गए.
“हितेश भी आया है.” सिया ने साँसे समान्य होने पर कहा.
“अरे! तो बताया क्यों नहीं. तुम्हारा मुंह व्यर्थ ही में खाली रह गया.” चंद्रेश ने हंस कर कहा.
“आपको इसके सिवाय कुछ सूझता भी है. मुझे अपने एक पल का भी समय नहीं दिया और पेल दिया.”
“क्या करें भाभी, आपको देखने की चाह में ही लंड खड़ा हो जाता है और चोदे बिना नहीं बैठता.”
“अब नीलम भी आ गयी है, तो मुझे कुछ विश्राम मिलेगा.”
“हितेश कहाँ गया?” इस बार चंद्रेश ने पूछा.
“नीलम को जगाने गया था जब आप लोग आये थे, अब तक तो चोद रहा होगा.” सिया ने कहा.
“चलो अच्छा है, आज रात मजे आएंगे.” चंद्रेश ने कहा और बाथरूम में घुस गया.
बाहर आया तो कपड़े पहने फिर सिया से पूछा कि नीलम किस कमरे में ठहरी है. सिया ने बताया कि हितेश के कमरे में ही है, और वो भी बाथरूम में घुस गयी. प्रकाश कपड़े हाथ में लिए अपने कमरे में चला गया. चंद्रेश हितेश के कमरे की ओर चल दिया.
******************
सिया ने भी बाथरूम जाने के बाद कपड़े बदले और फिर अपना फोन देखा तो दिया का फोन आया था. उसने दिया को फोन लगाया.
सिया: “हाँ, फोन किया था?”
दिया: “कहाँ थी”
सिया: “ये दोनों जल्दी आने को कहे थे न, तो जल्दी आ टपके. और चढ़ गए मेरे ऊपर. तुम्हारा फोन आया तो दोनों चोद रहे थे. ये चूत में थे तो प्रकाश गांड मार रहा था. कैसे उठाती फोन?”
दिया: “वैसे तुम्हारी चाँदी है. तीन तीन के बीच में अकेली हो, खूब चुदती हो.”
सिया: “जिसकी फटती है उसे ही पता रहता है. ये तो अच्छा है हितेश तुम्हारे घर पर है नहीं तो तीनों मेरी गांड फाड़ देते थे. कहाँ से इनमे इतना दम है?”
दिया: “तुम्हें देखते ही दम आ जाता है. पर क्या तुम आपत्ति कर रही हो?”
सिया: “अरे बिलकुल नहीं. पर कभी थोड़ा विश्राम भी तो चाहिए होता है. वैसे आज मुझे नीलम की चिंता हो रही है. ये तीनों आज उसका माँ चोद देंगे. मुझे दो तीन दिन का विश्राम मिल जायेगा. और बताओ फोन क्यों किया था?”
दिया ने रमोना से मिली हुई जानकारी सिया को दी. सिया ने उसकी पूरी बात सुनी.
सिया: “वैसे ये प्रकाश से सांकेतिक भाषा में कह चुके हैं कि वो इनका काम किसी और शहर में भी फैलाये. इनका स्वयं जाना सम्भव नहीं है, और प्रकाश अभी अकेला है तो जा सकता है. तो एक समस्या का तो हल है. अब रही बात कि ये दोनों एक दूसरे को लाइक करेंगे या नहीं, इसका केवल यही उपाय है कि उन्हें साथ लाया जाये. अगर बात बनी तो ठीक, नहीं तो कोई बात नहीं.”
दिया: “वैसे मैं सुमति के बेटे से मिलने वाली हूँ शाम पाँच बजे. टटोल कर देखती हूँ, कि वो क्या इसके पक्ष में है. अगर उसने सहमति दी तो संभावना बढ़ जाएँगी. पर बेचारा प्रकाश तुमसे दूर रह भी पायेगा?”
सिया: “अरे रह लेगा. सिया नहीं तो दिया सही. और उसे तो इतनी और स्त्रियां मिल जाएँगी. पागल ही होगा जो नहीं मानेगा.”
दिया और सिया ने कुछ देर और बातें के बाद फोन काट दिया. सिया बाहर गयी तो घर शांत था. प्रकाश का तो समझा जा सकता था कि वो अपने कमरे में होगा, पर चंद्रेश को देखने के लिए वो हितेश के कमरे में गयी. देखा तो चंद्रेश नीलम से बात कर रहा था और हितेश नीलम के पास बैठा था. नीलम की चूत से पानी बह रहा था जो हितेश का ही था. तीनों बड़े सामान्य रूप से बातें कर रहे थे. जब सिया अंदर गयी तो नीलम की आँखें भीग गयीं.
“दीदी, अपने मुझे बचा लिया.”
सिया: “ऐसा कुछ नहीं है, अब आराम से तीन चार दिन रहो फिर जाना.” फिर चंद्रेश को देखते हुए बोली, “तुम रहोगी तो ये दोनों भाई मुझे थोड़ा छोड़ देंगे. और मैं भी अपने बच्चे के साथ कुछ रातें बिता पाऊँगी.”
चंद्रेश को ख़ुशी हुई कि अब तीन चार दिन के लिए उसे नीलम की चुदाई का लाइसेंस मिल गया. प्रकाश भी खुश ही होगा. अब चूँकि प्रकाश नहीं था तो उसने दिया से की हुई बात को संक्षेप में बताया. नीलम को भी आश्चर्य हुआ पर उसने कहा कि उसे लगता है कि पार्थ सुमति को मना लेगा. कोई भी बेटा अपनी माँ को यूँ अकेला नहीं देखना चाहेगा. इस सकारात्मक सोच के साथ मंत्रणा हुई कि प्रकाश को कैसे मनाया जाये.
नीलम: “ऐसा करते हैं कि दीदी और हितेश को किसी बहाने से बाहर भेज देते हैं और जीजाजी प्रकाश को मुझे छोड़कर आने के लिए कहेंगे. आगे का पूरा कार्यक्रम मैं और दिया भाभी संभाल लेंगे. हमसे बच कर कहाँ भागेगा?”
सब इस षड्यंत्र पर हंस पड़े.
“पर मैं जाऊँगी कहाँ?”
‘अपनी बहन के घर, और कहाँ? जब मैं प्रकाश को लेकर पहुँचूँ बस उस समय आप दोनों वहाँ मत रहना.”
चंद्रेश ने दुखी चेहरा बनाकर कहा, “यानि मुझे अकेले छोड़ दोगे?”
नीलम, “जीजाजी, आप भी चलो न. बिलकुल आखिरी समय पर बोलना कि आप भी चलोगे. तब तक प्रकाश भी वचनबद्ध होगा.”
“हम्म्म, स्त्रियों के षड्यंत्रों के सामने हम भोले भले पुरुष कहाँ टिक सकते हैं. समझे हितेश?”
“बिलकुल पापा.”
सब हँसते हुए अपनी योजना पर खुश हो गए. नीलम और हितेश ने बाथरूम में जाने के बाद कपड़े पहने और फिर सबके साथ बैठक में चले गए.
******************
जब दिया रमोना के घर की ओर चली तब उसे इस पूरी योजना के सफल होने की भरपूर आशा थी. देखना ये था कि पार्थ क्या निर्णय करता है. अब जब ये भी तय हो गया था कि प्रकाश यहाँ कम्पनी का नया ऑफिस खोल सकता है, तो उसे अधिक कठिनाई नहीं दिख रही थी. परन्तु पहले पार्थ और फिर सुमति क्या निर्णय लेगी ये अभी तक पता नहीं था. और तो और प्रकाश को अभी भी उनकी इस योजना की भनक नहीं थी. पर सिया विश्वस्त थी कि उसकी ओर से कोई विशेष प्रतिरोध नहीं होगा.
पाँच बजने के कुछ पूर्व ही दिया ने रमोना के घर की घंटी बजे और सजी संवरी रमोना ने उसे घर में आने के लिए कहा. रमोना ने कोई इत्र लगाया था जो बहुत ही आकर्षक था. सचिन भी यथोचित वस्तओं में था. उन्हें देखकर सुबह के दृश्य की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी. रमोना और दिया बातें करने के लिए अभी बैठे ही थे कि फिर से घंटी बजी और इस बार सचिन पार्थ को लेकर अंदर आया. पार्थ दिया को देखकर भौंचक्का सा रह गया, परन्तु उसने अपने आपको तुरंत संभाला.
“हैलो, दिया आंटी। आप रमोना जी को जानती हो?”
दिया को दोनों सम्बोधनों के अंतर का कारण समझ आ गया. उसने हामी भरी और फिर रमोना उठकर पार्थ के पास गयी.
“बहुत व्यस्त हो गए हो जो मुझे समय ही नहीं देते. कितने दिनों से तुम्हारी राह देख रही हूँ, पर…”
इससे पहले कि रमोना कुछ राज खोल पाती पार्थ ने उसे चुप करा दिया.
“ऐसा नहीं है, आपने भी तो याद नहीं किया. और देखो, सचिन ने मुझे बुलाया और मैं चला आया.”
रमोना भी समझ गयी कि क्लब की बात दिया के सामने बोलते बोलते उसे पार्थ ने रोका था. उसने पार्थ को बैठाया और फिर बात आरम्भ की.
“पार्थ, मैं दिया को बहुत समय से जानती हूँ. हम दोनों एक साथ खेलते भी हैं कभी कभी.” इस बात पर पार्थ ने दिया को देखा तो दिया ने उसे मुस्कुराकर देखा.
“बात ये है, और मैं सीधे असली बात पर आ रही हूँ, कि दिया की बहन सिया है जो दूसरे शहर में रहती हैं, उनका एक देवर है. आयु कोई चालीस के लगभग होगी. परन्तु उन्होंने आज तक विवाह नहीं किया. मुख्यतः क्योंकि वो सदा से सिया जैसी लड़की ढूंढते रहे और दूसरे उन्हें सिया का साथ भी मिला हुआ था. तीसरी बात ये थी कि उन्हें भी ऐसा परिवार चाहिए था जो परिवारिक सम्भोग को बुरा न मानता हो, या उसमे लीन हो. पर कल ही हितेश ने बिना ये जाने कि तुम्हारा परिवार भी इस प्रकार के संबंधों का अनुगमन करता है, सिया से सुमति के बारे में कहा.”
पार्थ के चेहरे के भाव पढ़ने की चेष्टा करते हुए रमोना आगे बोली, “दिया सुबह मेरे पास आयी थी और मैंने उसे विश्वास दिलाया कि ये जीवन शैली रुकावट नहीं है. अब हम ये जानना चाहते हैं कि क्या तुम अपनी माँ के लिए प्रकाश को पति के रूप में और अपने पिता के रूप में स्वीकार करोगे.”
पार्थ सोच रहा था. उसने दिया को देखा जो आशापूर्ण आँखों से उसे देख रही थी. वो खड़ा हुआ और कुछ देर यूँ ही कमरे में घूमता रहा. कमरे का वातावरण तनावपूर्ण हो चला.
फिर वो बैठा और पहले रमोना को देखा और फिर दिया से बोला, “वैसे मुझे पिता की आवश्यकता तो नहीं है, परन्तु माँ को एक पति की कमी कई बार खलती है. वो हम सबसे अपना प्यार बाँट तो लेती हैं, पर पापा के गुजरने के बाद उनके मन में एक विषाद अवश्य है. तो मुझे इस प्रस्ताव में कोई बुराई नहीं लगती. और आवश्यकता हो न हो, अगर मुझे एक पिता भी इसमें मिल जाएँ तो सोने पर सुहागा.”
दिया से अब रुका नहीं गया वो उठी और पार्थ से चिपक गयी.
“मुझे तुम्हारी यही बात सुननी थी, पार्थ. अब हमें आगे क्या करना है ये भी बताओ. वैसे नीलम तीन चार दिनों में प्रकाश के साथ आ रही है. उन दोनों को मिलाना और फिर आगे ले जाना, ये कैसे हो पायेगा?”
पार्थ: “इस सारे का उत्तरायित्व अच्छा हो अगर हम शोनाली बुआ, और परिवार की स्त्रियों पर छोड़ दें. ये मेरे अकेले के बस की बात नहीं है. मैं अपनी स्वीकृति देकर उन्हें ये काम सौंपना ही ठीक समझता हूँ.”
रमोना: “देखा दिया, मैंने कहा था न, लड़का बहुत समझदार है.”
पार्थ: “तो सचिन अगर और कुछ न हो तो मैं चलूँ. मैं बुआ से बात करके उन्हें इस कार्य पर लगा देता हूँ. वैसे शीला नानी भी सहायता कर सकती हैं.”
रमोना के स्वर में वासना भर गयी, “पार्थ, इतने दिनों में मिले हो और बिना कुछ किये चले जाओगे क्या?”
पार्थ हंस पड़ा, “आप बताओ, क्या करना है.”
“तुमसे गांड मरवाये हुए बहुत दिन हो गए. तो क्यों नहीं तुम और सचिन पहले जैसे मेरी डबल चुदाई करते?”
“और दिया आंटी क्या करेंगी?”
“अरे उसे भी आज अपने लंड का स्वाद दो, तभी तो वो तुम्हारी माँ की सहायता पूरे मन से करेगी. पर मेरे बाद. क्यों दिया, तुम्हें कोई आपत्ति तो नहीं?”
“नहीं, वैसे मैं इसके लिए तैयार ही होकर आयी थी.”
“तो चलो फिर शयनकक्ष में, यहाँ समय व्यर्थ करने से क्या मिलना है.”
चारों उठकर रमोना के शयनकक्ष में चले गए.
******************
शतरंज के मोहरे बिछ चुके थे. पर एक ओर के राजा और दूसरी ओर की रानी की अभी इसकी भनक भी न थी. वे दोनों अपनी जीवनचर्या में व्यस्त थे. प्रकाश अपनी भाभी की गांड मारने के बाद उनके जैसी ही कोई और चुदक्क्ड़ स्त्री को अपनी पत्नी बनाने के सपने में खोया हुआ था. पर अब इस आयु में उसे इसकी संभावना धूमिल ही लगती थी.
सुमति अपने सर्वाधिक प्रिय कार्य में व्यस्त थी. वो सागरिका की गांड से बहते हुए नितिन के वीर्य को पीने में व्यस्त थी. ये बात अलग थी कि अभी उसे अपनी गांड में से भी निखिल के वीर्य को पीने का अवसर मिलने वाला था. निखिल उसकी गांड मारकर अब झड़ने के निकट था. वो अपनी इस स्वप्निल जीवन के लिए अपने भाई को धन्य करती थी. हालाँकि, उसके मन में रह रह कर एक हूक सी उठती थी कि कोई उसका अपना भी हो. पर उसकी आयु की विधवा से विवाह करने के लिए कोई भी नहीं मानेगा. उसने सागरिका की गांड साफ की और निखिल के निस्तार होने की राह देखने लगी.
बिस्तर पर लेटी हितेश से चुदवाती हुई नीलम भी अपने भाग्य को धन्य कर रही थी. उसकी एक गलती ने जीवन भर का श्राप न बनकर उस पर एक कर्ज सा चढ़ा दिया था. सिया ने उसकी जितना सहायता की थी, वो अपूर्व थी. सिया के बेटे हितेश की पीठ पर अपनी टाँगें जकड़ते हुए वो अपर्याय रूप से उसे धन्यवाद करने लगी. सिया अपनी चुदाई से संतुष्ट होकर अब दिया के फोन की प्रतीक्षा में थी. उसे आशा थी कि चंद्रेश और प्रकाश चाहे दोनों नीलम को रात भर चोदे पर उसके लिए उसके बेटे को छोड़ दें.
पटेल परिवार के अन्य सदस्य घर जाने के लिए निकल चुके थे. आकार ने निशा को क्षमा करते हुए काम पर वापिस बुला लिया था, जिसका आभार उसने अपनी गांड में आकार के लंड को लेकर व्यक्त किया था.
दिया रमोना को चुदाई के लिए तैयार होते देख रही थी और अपनी बारी की प्रतीक्षा कर रही थी.
शाम सात बजे दिया को छोड़कर सभी घर पहुंच चुके थे.
******************
सिया का घर:
जब चंद्रेश और प्रकाश सिया की चुदाई में व्यस्त थे, हितेश नीलम की सवारी कर रहा था. नीलम की चूत को मन भर के चाटने के बाद जब उसने नीलम की चूत से छूटा हुआ रस पी लिया तो उसने अपने लंड पर ध्यान दिया. लंड कड़क हो चुका था, और सामने चूत खुली हुई थी. नीलम ने आँखें खोलकर उसे आगे बढ़ने का निमंत्रण भी दे डाला और हितेश को कोई संकोच नहीं हुआ. उसने नीलम के फैले हुए पैरों के बीच में यथावत स्थान बनाया और फिर अपने लंड को नीलम की चूत पर रगड़ने लगा. नीलम कुनमुनाई.
“अब समय मत व्यर्थ कर. चोद दे, इतने दिनों से तुम सबने मुझे जो अलग किया हुआ था मेरी तो चूत सिकुड़ ही गयी होगी. अब देर न कर. चोद डाल अपनी मौसी को.” नीलम ने विनती की.
हितेश ने अपने लंड को अब सीधा किया और एक तगड़े धक्के के साथ नीलम की प्यासी चूत में उतार दिया. चूत सम्भवतः सच में सिकुड़ गयी थी, क्योंकि हितेश के इस धक्के से जहाँ पहले पूरा लंड अंदर चला जाता था, आज आधा या उससे कुछ ही अधिक जा पाया था.
“सच में मौसी, आपकी चूत तो तंग हो गयी है. लगता है इस प्रकार का सन्यास थोड़े थोड़े दिनों में अच्छा रहेगा आप सबके लिए.”
“गांड मार दूँगी भोसड़ी के अगर ऐसी बकवास की तो. मादरचोद अपनी माँ को सन्यास दिलवाना, जिसकी गांड और चूत में दिन रात लौड़े जाते हैं.” नीलम तिलमिला गयी.
“अरे मौसी, गुस्सा क्यों कर रही हो. मैंने तो बस यूँ ही कहा था.” हितेश डर के बोला।
“ठीक है. पर ऐसी बात फिर मत करना. तुम सबसे से चुदने में ही तो मेरे जीवन का आनंद है. कैसे तड़पी हूँ मैं इतने दिन, तू क्या जाने. अब अच्छे से चुदाई कर और ढीली कर दे मेरी चूत को फिर से. रात में न जाने कौन पेलने वाला है आज.”
हितेश को पता था कि आज नीलम की रात में भयंकर चुदाई होगी. उसके पिता और चाचा उन्हें छोड़ने वाले नहीं थे. वो तो उसकी माँ न होती तो उसे भी साथ ले लेते. पर सिया की चुदाई किये भी हितेश को एक लम्बा समय हो चला था और वो आज की रात अपनी माँ की चुदाई करना चाहता था. हितेश अब पूरे लंड से नीलम की चुदाई कर रहा था. नीलम भी इतने दिनों के बाद चुदाई होने से आनंद के महासागर में गोते लगा रही थी. अपनी गांड उछाल कर वो भी हितेश के शक्तिशाली धक्कों का पूरा प्रतिउत्तर दे रही थी. चुदाई की थापों ने कमरे में शोर मचाया हुआ था. नीलम की चूत से इतना पानी झरने के समान बह रहा था कि चुदाई की ध्वनि भी थप थप से बदल कर छप छप हो चली थी.
हितेश अपने पूर्ण सामर्थ्य से नीलम को चोद रहा था और नीलम भी बिना पीछे हटे अपनी कमर और गांड उठा उठा कर चुदवा रही थी. नीलम की एक तेज चीख ने कमरे को हिला दिया. उसका शरीर ढीला पड़ गया और वो शांत हो गयी. हितेश अभी भी अपने लंड से उसे चोद रहा था, पर अब वो भी रुक न पाया और नीलम की चूत में अपने लंड के रस की वृष्टि करने लगा. पूरा झड़ने के बाद वो नीलम के ऊपर से हटा और उसके साथ ही लेट गया. दोनों एक दूसरे को चूमने लगे.
“मुझे इसकी बहुत आवश्यकता थी. मेरी एक गलती के कारण मेरा इतने दिनों का उपवास जो हो गया था.” नीलम ने संतुष्टि की साँस लेकर हितेश को चूमते हुए कहा.
“आपका उपवास टूटा है अभी तो, रात को देखिये क्या होता है. मुझे पूरा विश्वास है कि आज की रात आपको पापा और चाचा एक साथ चोदने वाले हैं.” हितेश ने उसे अपने विचार बताये.
“मुझे भी यही आशा है. पर अब मैं कुछ देर के लिए सोना चाहती हूँ. तुम भी मेरे साथ ही लेटो, कहीं जाना मत. किसी की बाँहों में सोये हुए बहुत दिन निकल गए.” नीलम ने कहा. “और फिर रात में न जाने कितनी देर जागना पड़े.”
हितेश ने उसे अपनी बाँहों में लिया और कुछ ही देर में नीलम सो गयी. कोई आधा घंटा ही हुआ था कि कमरे का द्वार खुला और चंद्रेश ने प्रवेश किया. नीलम और हितेश को आया देखकर उसने कुछ न कहा. पर नीलम के नंगे शरीर को देखकर उसका लंड फिर से अंगड़ाई लेने लगा. आज की रात इसे अच्छे से चोदुँगा ये सोचते हुए उसने उनके ऊपर एक चादर डाली और कमरे से निकल गया. प्रकाश अपने कमरे में था. कुछ सोचकर वो दोबारा नीलम के कमरे में गया तो देखा कि हितेश जागा हुआ था और नीलम का हाथ पकड़कर बैठा था. नीलम भी जाग गयी थी. चंद्रेश को देखकर वो बैठ गयी और चादर नीचे सरक गयी. नीलम ने अपने शरीर को छुपाने का कोई प्रयास नहीं किया. बल्कि उसने चादर हटा दी.
चंद्रेश और नीलम बात करने लगे और तभी सिया अंदर आयी और नीलम की चूत से हितेश के रस को बहते हुए और अपने पति की नीलम से बात करते हुए देखा. फिर वे चारों प्रकाश और सुमति के लिए अपनी योजना को पक्का करने में जुट गए.
******************
दिया का घर:
सब लोग दिया को ही देख रहे थे. और फिर दिया ने बताना आरम्भ किया.
“जैसा कि मैंने बताया, पार्थ को ये संबंध स्वीकार है और वो शोनाली और शीला को इसके लिए पहल करने की विनती करेगा. हम चारों रमोना के शयनकक्ष में चले गए. रमोना और सचिन के साथ तो आप सब जानते ही हो मैं चुदाई पहले भी कर चुकी हूँ. पर पार्थ के बारे में मैं उत्सुक थी. रमोना ने ही पहल की और अपने कपड़े निकालने में अधिक देर न लगाई. मैं भी यही कर रही थी. सचिन को भी नंगा होने में अधिक समय नहीं लगा. उसका मोटा लंड खड़ा हो चुका था. पार्थ कुछ अधिक ही समय ले रहा था. पर अंततः जब वो नंगा हुआ तो मैं उसे देखकर आकर्षित हुए बिना नहीं रह पायी.”
“ये कोई नयी बात नहीं है. आप हर नए लंड को देखकर आकर्षित ही होती हो, मॉम.” दर्शन के इस कथन पर सब हंस पड़े और दिया शर्मा सी गयी.
“बात ये है कि पार्थ का लंड सचिन से भी अधिक लम्बा और मोटा दिख रहा था, और अभी भी वो अपने पूरे जोश में नहीं था. मैं रमोना की क्षमता से प्रभावित हो गयी क्योंकि उसके कहे अनुसार वो पार्थ से गांड भी मरवा चुकी थी. पार्थ अपने लंड को झुलाता हुआ मेरे सामने आ खड़ा हुआ.”
“आंटी, आप इसे प्यार करो तो इसे बहुत ख़ुशी होगी.”
“मैंने रमोना को देखा जिसने सिर हिलाकर सहमति दिखाई और स्वयं सचिन के लंड को अपने मुंह में लेकर चाटने लगी. मैंने भी पार्थ के लंड को हाथ में लिया तो वो बहुत ही भारी लगा. कुछ देर तक उसे यूँ सहलाते हुए मैं उसे बढ़ता हुआ देखती रही. पार्थ में संयम बहुत है. उसने इस पूरे समय एक बार भी किसी प्रकार से मुझे नहीं छुआ. पर जब उसके लंड पर मैंने मदन रस की बून्द को चमकते हुए देखा तो रुकना मेरे लिए सम्भव न हुआ. मैंने उसके लंड को मुंह में लिया और चाटने लगी. इस बार पार्थ ने मेरे सिर को अपने हाथ से हल्के से पकड़ा और अपनी ओर से भी लंड मुंह में डालने का प्रयास करने लगा.”
परिवार के सदस्य दिया की इस कहानी को बड़े ध्यान से सुन रहे थे.
“कुछ देर के बाद पार्थ ने कहा कि क्यों न हम बिस्तर पर चलें जिससे कि वो भी कुछ स्वाद ले पाए. हम दोनों उठे और बिस्तर पर गए. सचिन और रमोना पहले ही वहाँ जमे हुए थे और रमोना लेटी थी और सचिन उसके ऊपर चढ़ा हुआ अपने लंड से उसका मुंह चोद रहा था. साथ ही साथ उसका मुंह रमोना की चूत में घुसा हुआ था. पार्थ ने कहा कि वो नीचे रहेगा जिससे कि मैं अपने अनुसार उसके लंड को चूस सकूँ। मुझे भी ये सुझाव सही लगा और मैंने पार्थ को लेटने दिया. लेटने के बाद उसके लंड के आकार को देखकर मुझे थोड़ा डर सा लगा. मोटा अजगर की तरह लम्बा लंड है उसका. मैंने साहस बांधकर उसके मुंह पर अपनी चूत रखी और फिर आगे झुकते हुए उसके लंड को चाटा। फिर धीरे धीरे अपने मुंह में लिया. जब मुझे लगा कि और लेना मेरे लिए सम्भव नहीं है तो मैं उतने ही लंड को चूसने लगी. चूसने से मुझे लगा कि उसका लंड और कड़ा और बड़ा हो गया. पर अब मैं भी रुकने वाली तो थी नहीं. मन लगाकर उसके लंड को चूस रही थी. कुछ और लंड भी इस प्रक्रिया में अंदर गया पर अधिक नहीं.”
“बिस्तर के दूसरी ओर कुछ गतिविधि हुई तो मैंने सिर घुमाकर देखा तो अब सचिन रमोना की टाँगों के बीच बैठा अपने लंड को उसकी चूत पर घिस रहा था. रमोना की सिसकारियां उसके अंदर भड़कते ज्वालामुखी को दर्शा रही थीं. आप लोग तो जानते ही हो, रमोना चुदवाती है तो कितना चिल्लाती है. और उसकी सीत्कार निकली जब सचिन ने अपना लंड अंदर डाला. मेरा ध्यान उचट गया था, पर मैंने पार्थ के हाथ को अपने सिर पर अनुभव किया और अपने लंड पर दबा दिया. इसके कारण मेरे मुंह से लंड गले में चला गया और मैं साँस लेने के लिए व्याकुल हो उठी. पार्थ ने तुरंत ही अपना हाथ हटाया और मैंने भी लंड को मुंह से निकाला और फिर से मुंह डालकर चूसा..”
“अब हम चुदाई कर सकते हैं, आंटी।”
“पार्थ ने जब कहा तो मेरी चूत जो उसके मुंह पर थी भकभकाकर झड़ गयी. मुझे ऐसी गुदगुदी सी हुई कि मुझे कुछ क्षणों के लिए कुछ समझ ही नहीं पड़ा. पर जब मैं चेतना में आयी तो इस बार मैं बिस्तर पर लेटी थी और पार्थ मुस्कुरा रहा था. मैंने नीचे देखा तो उसका लंड मेरी चूत के मुहाने पर था और हल्के हल्के से मेरी चूत को रगड़ रहा था. मैंने पार्थ को देखा तो उसे सम्भवतः कुछ भी दिखा होगा. उसने मुझे विश्वास दिलाया कि वो मेरी इच्छा और मांग के अनुसार ही चोदेगा और मैं भी उसकी बात से आश्वस्त हो गयी. मैंने एक तकिया अपने सिर के नीचे लगाई और अपनी चूत को देखने के लिए सिर उठा लिया. पार्थ का लंड मेरी चूत के अंदर अपनी लम्बी यात्रा आरम्भ कर चुका था.”
दिया कुछ ठहरी और उसने दर्शन को देखा तो दर्शन समझ गया और अपनी माँ के लिए एक और पेग बना लाया. फिर कीर्तिका भी उठी और दोनों भाई बहन सबके लिए पेग बनाकर ले आये. दो घूंट लेकर दिया ने सबको देखा और अपनी कथा आगे बढ़ाई।
“पार्थ ने अपने लंड को जब मेरी चूत में डालना आरम्भ किया तो मुझे लगा कि न जाने कैसे मैं पूरा लंड ले पायूँगी। परन्तु पार्थ सम्भवतः ऐसी परिस्थितियों से अवगत था, उसने लगभग आधे लंड को डालने के बाद ही मुझे धीरे धीरे चोदना आरम्भ कर दिया. उसके मौखिक प्रेम के कारण मेरी चूत भी पर्याप्त मात्रा में गीली थी और उसे अधिक कठिनाई नहीं हुई, न ही मुझे. पर पास में मानो रण छिड़ चुका था. सचिन अपनी माँ रमोना को पूरे लंड से भीषण गति से चोद रहा था. हम दोनों जोड़ों में कितना अंतर था ये विदित था. जहाँ सचिन और रमोना चुदाई को एक युद्ध के स्तर पर ले रहे थे वहीं पार्थ और मेरी चुदाई प्रेम पूर्वक और अत्यंत शालीनता से चल रही थी. मुझे पार्थ के इस संयम पर बहुत गर्व हुआ.”
“पार्थ ने मुझे चोदते हुए कुछ ही देर में कुछ और गहराई तक अपने लंड को डाला. सच तो ये है, कि मुझे पता भी नहीं चला. मेरी भी चूत उसके लंड से अब अभ्यस्त हो गयी थी और अब मैं भी अपनी कमर उछालते हुए उसके लंड को और अंदर तक लेने का प्रयास कर रही थी. और तभी मुझे आभास हुआ कि अब मेरी और पार्थ की जाँघें एक दूसरे को छू रही हैं. मैंने नीचे देखा तो मेरी चूत में अब पार्थ का लंड पूरी गहराई तक समाया हुआ था. मैंने एक गहरी साँस ली और स्वयं को बधाई दी कि मैं बिना चोटिल हुए उस लंड से चुदवा रही हूँ.”
कनिका बोल पड़ी, “ताईजी, आप लोग बुरा न मानो तो एक बात पूछूँ?”
“हाँ”
“मॉम ने क्या गलत किया था अगर वो भी बड़े लौंड़ों से चुदवाने गयी थी तो?”
“केवल ये कि उन्होंने हम सब से छुपकर ये किया था. अन्यथा हमारे घर में किसी प्रकार की कोई रोक टोक नहीं है. समझीं?”
“हाँ, मेरा भी यही सोचना था. आप आगे सुनाओ.”
“मैं कहाँ थी?” दिया ने पूछा.
आकार ने बताया तो दिया आगे बताने लगी.
“जैसा कि मैंने कहा कि न केवल मैं पार्थ के धैर्य बल्कि उसकी कला से भी अचम्भित हुए बिना न रह सकी. उसने जिस संतोष और संयम से मेरी चूत में अपना पूरा लंड पेला था उसकी प्रशंसा करनी होगी. उधर दूसरी ओर रमोना की चीख चिल्लाहट कमरे के वातावरण को अशांत करने के लिए पर्याप्त थी. पर इसका कारण ये भी था कि सचिन भी उसे अपनी माँ न समझते हुए किसी सस्ती रंडी के समान चोद रहा था. बिस्तर पर उसकी शक्तिशाली थापों के कारण जो कम्पन हो रहा था वो अगर मैं और पार्थ भी उसी लय में चोदते तो टूट ही जाता. पार्थ अपनी गति बढ़ा रहा था, मैं और मेरी चूत दोनों अब उसका पूरा साथ दे रही थीं. मैं कुछ बार झड़ चुकी थी, पर वो शिखर अभी भी दूर था जहां जाना और नीचे गिरना ही चुदाई का मुख्य आकर्षण है.”
“पार्थ मेरे मन को पढ़ सक रहा था या उसे इतना अनुभव था कि वो जान गया कि मैं अभी उस ज्वालामुखी के समान बिखरने के लिए लालायित हूँ. उसने मेरे मम्मे अपने हाथों में लेकर उन्हें मसलते हुए अपने धक्कों को और गतिशील कर दिया. मेरे मम्मे जैसे निचोड़ ही दे रहा था, पर मुझे उसमें कितना आनंद आता है ये आप सब जानते ही हो. फिर उसने अपना एक हाथ हटाया और मेरे भग्नाशे को छेड़ने लगा. कुछ देर तो मुझे संज्ञान ही नहीं हुआ कि क्या हुआ पर जब उसने उसे मसला तो मेरा शरीर बिखर ही गया. मेरी कमर ऊपर उठी ही थी कि पार्थ ने एक भीषण धक्के के साथ मुझे बिस्तर पर चिपका दिया. उसकी उँगलियों ने मेरे भग्न को मसलने में कोई कोताही नहीं की, न ही उसके धक्के धीमे पड़े और उसका दूसरा हाथ मेरे एक मम्मे को अब निर्ममता से निचोड़ रहा था. वो एक से दूसरे पर जाता पर गति न कम पड़ती न ही मेरे भग्न पर उसकी उँगलियों का दबाव.”
“मेरा शरीर मेरा साथ छोड़ चुका था, पूरा शरीर काँप रहा था और चूत में वही संवेदना थी जो मुझे चेता रही थी कि वो भी इस समय अपने आनंद में लीन है. शिखर दिखा और मैं बहुत समय तक वहीँ ठहरी सी रही, जैसे एक लहर थी जो मुझे नीचे ही नहीं आने दे रही थी. पर फिर न जाने क्या हुआ मुझे अपनी ही चीखें सुनाई पड़ीं. और फिर ऐसा लगा जैसे मैं डूब रही हूँ. और फिर सब कुछ अँधेरे में डूब गया.”
“उस अंधकार में भी मैंने अपनी चूत में से कुछ बाहर निकलने का अनुभव किया. फिर ऐसा लगा जैसे कुछ ठंडा सा उसके भीतर गया और कुछ गर्म सा बाहर बहा. बस चेतना इतनी ही थी. तारे मेरी आँखों के सामने घूम रहे थे. मैंने अपने होंठों पर किसी के होंठों का स्पर्श अनुभव किया। बिस्तर अभी भी हिल रहा था या मैं ही लहरों में तैर रही थी ये तो नहीं पता. पर जब मैंने कुछ देर बाद आँख खोली तो सब कुछ शांत था. मैं अकेली पड़ी हुई थी. मेरी चूत में से पार्थ का रस बह रहा था. आँखें मीचते हुए मैं भी उठी, तो देखा कमरे में कोई न था. मैंने कपड़े डाले और बाहर आयी तो देखा की वे तीनों अभी भी नंगे ही थे और कुछ पी रहे थे.”
“पार्थ ने मुझे देखा तो मुझे भी एक ग्लास दिया. उसमे जूस था, जो मैंने पिया और पार्थ को देखा. “आपको अच्छा तो लगा न आंटीजी.” मैं केवल सिर ही हिला पायी.”
“समय देखा तो देर हो रही थी. मैंने रमोना को कहा तो उसने कहा कि अगली बार कुछ अधिक समय लेकर जाऊँ ताकि पार्थ मेरी गांड का भी आनंद ले पाए. फिर उसने बताया कि अब वो सचिन और पार्थ से डबल चुदाई करवाने वाली है. और मुझे आँख मारते हुए बोली कि पार्थ का लंड उसकी गांड में बहुत खलबली मचाता है. मैंने उन तीनों से विदा ली और फिर अपना मेकअप ठीक किया और घर चली आयी.”
“वावो, मॉम. काफी मस्त रही आपकी शाम तो.”
“और रात और भी मस्त होने वाली है. भाई आज तो गांड पहले मैं ही मारूँगा।” आकाश ने अपने पति होने का हक जताया.
“अरे भैया, पूरी रात है. पहले आप मार लेना, बाद में मैं. बाद में मत कहना जब नीलम लौट आये तो.” आकार ने कहा तो सभी हंस पड़े.
******************
रात हो चुकी थी और आज की रात पटेल परिवार की दोनों बहुओं के लिए स्मरणीय होने वाली थी. बड़ी बहू दिया को उसके पति और देवर के साथ एक साथ चुदाई का एक और अवसर मिला था. वहीं दूर घर की छोटी बहु भी अपनी जेठानी की बहन के पति और उनके भाई से साथ एक साथ चुदने के लिए व्याकुल थी. दर्शन और कनिका ने भी अपना प्लान बना लिया था और दोनों एक दूसरे के साथ अकेले समय बिताने के लिए खुश थे. हितेश को आज कई दिनों के बाद अपनी माँ का संसर्ग मिला था और सिया भी अपने बेटे से चुदने के लिए लालायित थी. प्रकाश इस बात से अनिभज्ञ था कि उसके जीवन में कितना बड़ा बदलाव उसकी प्रतीक्षा कर रहा था. उसे तो केवल इस समय नीलम की गांड का ही ध्यान आ रहा था.
सभी अपने अपने साथियों के साथ खाने के बाद निर्धारित कमरों में चल पड़े. आज की रात दो घरों के चार कमरों में चुदाई का निरंतर संगीत बजने वाला था. कुछ ही देर में चारों कमरों के द्वार बंद हो गए.
******************
दिया का घर:
दर्शन और कनिका:
दर्शन कनिका के साथ अपने कमरे में चला गया. कनिका ने भी उसका कमरा ही अधिक उपयुक्त समझा, कारण था कि वो एक कोने में था और शांति से वे चुदाई कर सकते थे.
कनिका: “तुम्हें नहीं लगता कि जिस प्रकार से सब मौसा और सुमति आंटी को मिलाने का षड्यंत्र रच रहे हैं वो सही है?”
दर्शन: “नहीं. प्रकाश मौसा के साथ मेरी जब भी बात हुई उनके मन में कहीं न कहीं एक फ़ांस सी अनुभव हुई कि वे अकेले ही रह गए. ठीक है, मौसी के कारण उन्हें इतना अकेलापन न लगा हो, पर मौसी रात में तो उनके साथ रहती नहीं हैं. वो अकेले ही सोते हैं. ऐसा मुझे उनकी बातों से लगा है. जहां तक सुमति आंटी की बात है, मैं अधिक कुछ नहीं कह पायूँगा, क्योंकि मुझे उनके बारे में कुछ पता ही नहीं है. पर इतने वर्ष पूर्व विधवा होने के बाद अगर वो आज अपने भाई के परिवार के साथ संलग्न हैं, तो उन्हें भी वही अकेलापन सताता तो होगा. देखो न मम्मी ने बताया नहीं कि पार्थ कितनी सरलता से इसके लिए मान गया.”
कनिका: “हाँ, बात तो सही है. मम्मी के अनुसार पार्थ भी अपने जीवन में इस पिता स्वरूप की इच्छा रखता है. संभवतः ये समाधान सबके लिए ठीक ही रहेगा. पर मेरे प्यारे भाई, अब अपनी भी बात कर लो कुछ.” ये कहकर कनिका दर्शन के पास गयी और उसके सीने से चपक गयी.
दर्शन ने उसका चेहरा उठाया और चूमते हुए कहा, “मैं भी यही सोच रहा था. आज इतने समय बाद हम दोनों को अलग मिलने का अवसर जो मिला है. नहीं तो पापा या चाचा तुम्हे छोड़ते ही नहीं हैं.”
“बोल तो ऐसे रहे हो जैसे स्वयं ताई या मम्मी के पल्लू को छोड़ते हो. वो तो भला हो कि ताईजी आज व्यस्त हैं नहीं तो उनके ही पिछवाड़े में घुसे रहते.”
“वैसे उनका पिछवाड़ा है मस्त, और मम्मी को भी गांड मरवाने में बहुत मजा आता है.”
“तो मेरा कैसा है?”
दर्शन ने अपने हाथों से कनिका की गांड दबाई, “तुम्हारे पिछवाड़े का स्वाद और तंगी बहुत मस्त हैं. माँ की गांड तो अब वैसे कुछ चौड़ी भी हो गयी है.”
“समझ गयी, आज मेरी गांड मारनी है तो मुझे मस्का मार रहे हो. कल जाकर अपनी मम्मी की गांड चाटोगे.”
“अरे क्यों जल रही है? हम सबने कब से इन बातों में जलना सीख लिया?”
ये कहकर दर्शन ने उसके मुंह को अपने मुँह से बंद किया और दोनों गहरे चुंबन में लीन हो गए. इसी प्रकार एक दूसरे में समय हुए उन्होंने एक हाथ से अपने कपड़ों को अलग किया और चूमते हुए एक दूसरे को नंगा करने में सफल हो गए. अब दोनों एक दूसरे के शरीर पर अपने हाथ सहला रहे थे. धीरे चलते हुए दर्शन ने कनिका को बिस्तर पर लिटाया और फिर उसकी चूत में अपना मुंह डालकर उसे चाटने लगा.
दिया, आकाश और आकार:
दिया के साथ आकाश और आकार उसके कमरे में चले आये थे. हल्की फुल्की बातों में ही आकार ने दिया को छेड़ा.
“भाभी, ये तो आपके लिए अच्छा है कि नीलम नहीं हैं नहीं तो आपको हम दोनों के साथ चुदाई का ये अवसर नहीं मिलता.”
दिया को ये बात कुछ ठीक नहीं लगी. उनके परिवार में इतना सामंजस्य था कि अगर वो भी नीलम से कहती तो नीलम भी इसके लिए उसे कदापि मना नहीं करती.
“देवरजी ऐसी बात मत करिये. क्या नीलम मुझे मना करती? या मैं नीलम को? और ये मत भूलिए कि उसकी सेवा मैं भी मेरे जीजा और उनके भाई उन्नत हैं. आज उसकी भी मन भरके चुदाई होने वाली है. आप दोनों भाई सौभाग्यशाली हैं कि आज आपकी पत्नियां दो दो लौंडों से चुदाई का आनंद लेने वाली हैं.”
“हाँ, भाभी. मैंने तो बस यूँ ही कहा था. आप लगता है बुरा मान गयीं. वैसे भी आप दोनों की दिन में एक चुदाई हो ही चुकी है. बताइये मैं क्या करूं कि आप मुझे क्षमा कर दें.” आकार ने भोला सा चेहरा बनाकर कहा.
“हम्म्म, ये सोचने वाली बात है. क्यों न आप आज मेरे पॉँव से लेकर ऊपर तक अपनी जीभ से चाटकर अपनी गलती का प्रायश्चित करते?” दिया ने एक शरारती स्वर में कहा.
इस बात पर आकाश हंस पड़ा और अपने भाई से बोला, “फंस गया न बच्चू? अब चाट इसके तलवे. मैं उधर बैठकर देखता हूँ कि कैसे तू अपनी भाभी की सेवा करता है.”
“क्या भाई, आप भी?” आकार ने कहा और फिर दिया की ओर मुड़ा।
“भाभी, आपकी सेवा करने में मुझे कोई हिचक नहीं है. अब आप कपड़े निकाल दो और फिर देखो अपने देवर का कमाल।”
दिया तुरंत ही नंगी हो गयी और आकार ने उसे सोफे पर बैठने का आग्रह किया।
दिया बोली, “ठहरो, मैं पहले हाथ पाँव धो लेती हूँ. न जाने क्या क्या लगा होगा.” ये कहकर वो बाथरूम में गयी और कुछ ही देर में लौट आयी और सोफे पर पसर गयी.
आकार उसके सामने बैठा और उसके एक पांव को उठाकर उसकी उँगलियाँ चाटने लगा. फिर दूसरे पैर की चाटीं। उसके बाद तलवे और इस प्रकार से नीचे के हर अंग प्रत्यंग को चाटते हुए वो ऊपर की ओर बढ़ता चला गया. दिया को इस प्रकार का अनुभव नहीं था. वैसे तो आकार को भी नहीं था पर वो अपनी लग्न और परिश्रम से दिया को सुख देने का पूर्ण प्रयत्न कर रहा था.
और जब तक आकार दिया की जांघों तक पहुँचा दिया का शरीर काँप रहा था. ऐसी सुखद अनुभूति उसे पहले कभी नहीं हुई थी. जैसे ही आकार की जीभ ने उसकी जाँघों के अंदर के भाग को चाटा दिया की चूत ने आकार के मुंह पर ढेर सारा रस छोड़ दिया. आकार सकपका के पीछे हटा पर उसके पूरे चेहरे से वो रस टपक रहा था. उसे हटा जानकर दिया ने उसकी ओर देखा तो उसकी स्थिति देख कर आकाश और दिया हँस पड़े.
“देवर जी, मेरी उँगलियाँ और तलवे और चाटो न, बहुत अलग भावना आयी थी उसमें.”
आकार ने अपने चेहरे को हाथों से पोंछा और दिया की पांवों को चाटने में जुट गया. परन्तु इस समय उसने अधिक समय नहीं व्यर्थ किया. उसका लंड भी अब अकड़ा हुआ था और उसे भी शांति की आस थी. उसने इस बार सीधे दिया की चूत पर ही हमला किया और दिया खिलखिलाते हुए उसके सिर को अपनी चूत पर दबाने लगी. लपलपाते हुए आकार ने पहले मन भर के दिया की चूत को चाटा और फिर उसने अपना ध्यान दिया की गांड के छेद की ओर किया. अब तक आकाश भी नँगा हो चुका था और उसने अपने पत्नी के मुंह में अपने लंड को डाला जिसे दिया सप्रेम चूसने लगी.
आकार दिया की चूत को उँगलियों से सहलाते हुए उसकी गांड को अपनी जीभ से कुरेद रहा था. उसका पर्याय केवल दिया की गांड को पर्याप्त रूप से ढीला करना था जिससे कि उसे दो दो लंड से चुदने में अधिक कठिनाई न हो. वैसे दिया अब इसमें पारंगत हो चुकी थी, परन्तु दोनों भाई एक दूसरे की पत्नियों का बहुत ही ध्यान रखते थे.
दिया की गांड और चूत अब आवश्यक रूप से चुदाई के लिए अनुकूल ही चुके थे. आकार ने उठकर इस बार अपने कपड़े उतारे हुए नंगा हुआ ही था कि आकाश ने अपने लंड को दिया के मुंह से निकाल लिया और अपने भाई को उस रिक्त स्थान को भरने के लिए आमंत्रित किया. दिया ने उसी प्रेम से आकार के भी लंड को चूसा जिस प्रेम से उसने अपने पति का लंड चूसा था. कुछ ही क्षण में अब दोनों लंड उसकी सेवा करने के लिए उपयुक्त हो चुके थे.
******************
सिया का घर:
सिया और हितेश:
उधर कुछ मील दूर माँ बेटे का मिलन एक लम्बे समय के बाद हो रहा था. हितेश बिस्तर पर लेटा हुआ था और सिया की चूत उसके मुंह पर थी, जिसे वो चाशनी समझ कर चाटे जा रहा था. सिया भी उसके मुंह में रस की धारा छोड़ने में कोई कसर नहीं रख रही थी. और साथ ही साथ वो आने बेटे के लंड को भी चाट कर उसके स्वाद से स्वयं को तृप्त करना चाहती थी. टोपे को भली भांति चाट लेने के बाद उसने हितेश के लंड को मुंह में लेकर चूसने की प्रक्रिया भी आरम्भ कर दी थी. वो तो भला हो नीलम का जिसने दिन में हितेश को दो बार झाड़ दिया था नहीं तो जिस लालसा से सिया उसे चूस रही थी, वो अब तक झड़ ही चुका होता.
पर अब माँ और बेटा एक दूसरे के साथ मिलन के लिए बेचैन हो रहे थे. मुंह से सुख मिलता तो है, पर जो सुख लंड के चूत में जाने पर मिलता है, उसका कोई और पर्याय तो है नहीं। और यही सत्य गांड में लंड के लिए भी उपयुक्त है. दोनों एक दूसरे की भावनाओं से अवगत थे और हितेश के लंड के सिया के मुंह में उछाल से सिया भी जान चुकी थी कि लौड़ा अब उसकी चूत के लिए लालायित है. और यही संदेश उसकी कुलबुलाती चूत भी हितेश को दे रही थी, जो इस अल्प आयु में भी स्त्री के अंगों की सांकेतिक भाषा पढ़ने में निपुण हो चला था.
******************
नीलम, चंद्रेश और प्रकाश:
उनके कमरे से कुछ ही दूर एक दूसरे कमरे में नीलम भी दो भाइयों के साथ गुत्थम गुत्था थी. जहां प्रकाश उसकी चूत और गांड को तर कर रहा था वहीँ नीलम भी चंद्रेश के लंड को मुंह में निगले हुए पूरी श्रद्धा से चूस रही थी. दिन की चुदाई ने उसकी कामाग्नि को और बढ़ा दिया था. इतने दिन का उपवास तो उसने जीवन में अपनी माहवारी के समय भी नहीं किया था, जब वो अपनी गांड मरवाकर संतोष करती थी. और आज हितेश से उसकी गांड बची रह गयी थी, पर उसकी भरपाई इन दोनों भाइयों में से एक ने करनी ही थी, और अगर सम्भव हो पाया तो दूसरा भी उसकी गांड पर हाथ साफ कर ही लेगा.
इन्ही सब विचारों ने उसकी उत्तेजना को बहुत बढ़ा दिया था. और अगर उसने सही समझा था तो आज परिवार के सभी सदस्य सम्भोग में व्यस्त होंगे. उसे अपने घर के बारे में अभी अधिक सूचना नहीं थी, पर ये जानती थी कि सूखा तो वहां भी कोई नहीं सोयेगा. नीलम चंद्रेश के लंड पर थूक थूक कर उसे चिकना करने में जुटी थी, अपने मुंह में लेकर चाटती और फिर उसे निकलकर थूक से सना देती. चंद्रेश भी नीलम की इस कला से बहुत प्रभावित था, और समझ रहा था कि नीलम चुदाई के लिए तरसी एक प्यासी स्त्री है. और उसे गर्व था कि ऐसी दुखिया का दुःख दूर करने हेतु वो दोनों भाई उपस्थित थे.
प्रकाश भी अब ये अनुभव कर रहा था कि नीलम अब चुदने के लिए तैयार हो चुकी है, उसने सिर उठाकर प्रकाश को देखा जिसने संकेत किया कि लोहा पर्याप्त मात्रा में गर्म हो चुका है, और अब उसे अपने अनुसार ढालने में समय नहीं लगाना चाहिए. दोनों भाइयों ने ये तय किया कि नीलम को आज अकेले नहीं चोदा जायेगा. हर समय उसकी चूत और गांड में लौड़ा रहेगा. जब तक दोनों भाइयों के लौड़े खड़े रह पाए तब तक नीलम के भी दोनों छेद रिक्त नहीं रहेंगे. और रस का अनुदान नीलम के मुंह में ही किया जायेगा.
इसी रूप रेखा के अनुसार चंद्रु ने अपना लंड नीलम के मुंह से निकाला और नीचे प्रकाश ने अपना मुंह उसकी चूत और गांड से हटा लिया. नीलम समझ गयी कि एक लम्बी रात का आरम्भ हो चुका है. और उसके मुंह से एक कामुक सीत्कार निकली जिसका अर्थ था कि वो भी अब इस रण के लिए आतुर है.
******************
दिया का घर:
दर्शन और कनिका:
कनिका ने भी अपनी टाँगे फैलते हुए दर्शन के लिए अपनी चूत का रास्ता सुलभ कर दिया. दर्शन का लंड भी अब तन चुका था पर वो कनिका की चूत को पहले भली भांति चाटना चाहता था. चाटते हुए उसने अपनी एक ऊँगली कनिका की चूत में डाली और अपनी जीभ और ऊँगली के समंजस्य से कनिका को जल्दी ही कामोत्तेजित कर दिया. अपने मुंह को हटाने से पहले दर्शन ने कनिका के भग्न को अपनी उँगलियों से मसला तो कनिका की आनंदकारी सिसकारी ने उसका मन मोह लिया. उसने कनिका को बिस्तर पर सही रूप से लिटाया और फिर अपने लंड को उसकी चूत के मुहाने पर रखा.
“भैया, आज मुझे अच्छे से चोदना और फिर मेरी गांड भी मारना। ताईजी की तो डबल चुदाई हो रही होगी, उस दिन पापा और ताऊजी ने मेरी भी डबल चुदाई की थी. सच में बहुत मजा आया था. उसके बारे में सोचकर ही मेरी गांड में फुरफुरी होने लगती है. इसीलिए गांड में भी मुझे तुम्हारा लंड चाहिए.” कनिका बोले जा रही थी.
दर्शन ने उसका मुंह अपने मुंह से बंद कर दिया और कनिका की आँखों में आँखें डालकर उसे चूमने लगा.
“हितेश भी आने ही वाला है दो चार दिन में. फिर उसके साथ मैं तेरी इस डबल चुदाई की इच्छा भी पूरी कर दूंगा. और ऐसा सोचना भी मत कि आज तेरी गांड बचने वाली है. तेरी गांड मारे बिना मुझे भी चैन नहीं मिलने वाला.”
इतना कहते हुए दर्शन ने एक धक्का लगाया और उसके लंड ने कनिका की चूत में अपना पदापर्ण किया. कनिका ने अपनी टाँगे जोड़कर अपनी चूत को और तंग कर दिया. दर्शन को उसकी कसी चूत में अब लंड पेलने में कुछ अधिक घर्षण मिलने लगा. उसने लंड को कुछ देर अंदर बाहर किया और फिर एक तीव्र झटके के साथ पूरा लंड अंदर पेल दिया. कनिका की टाँगे खुल गयीं और उसकी आँखें भी. पर उन आँखों में वासना की डोरियाँ लहरा रही थीं. पूरा लंड अंदर जाने के बाद दर्शन ने कनिका की चुदाई करनी आरम्भ की और कनिका ने अपनी टाँगों को कभी खोलकर तो कभी बंद करते हुए दर्शन को अपनी फैलती सिकुड़ती चूत के द्वारा एक नया ही अनुभव कराया.
दर्शन ने भी अपनी ओर से परिश्रम में कोई कमी नहीं की और वो भी पूरी शक्ति और सामर्थ्य के साथ कनिका को चोदने लगा. दोनों एक दूसरे को देखते हुए एक दूसरे में खोने का प्रयास कर रहे थे. दोनों के जुड़े हुए शरीर क्षण भर के ही लिए पृथक होते और फिर नयी शक्ति के साथ फिर मिल जाते. कमरे में चुदाई का संगीत बज रहा था और दोनों की आहों और सिसकारियों ने उस संगीत में नए सुर जोड़ दिए थे.
कोई दस मिनट की इस चुदाई के बाद दोनों एक दूसरे को देखकर झड़ने लगे. दर्शन ने कनिका की चूत में ही अपना रस छोड़ दिया और फिर उसे चूमते हुए उसके ऊपर ही लेट गया. कनिका और दर्शन के मिलन का रस अब बिस्तर को गीला कर चुका था. कनिका ने धीरे से दर्शन को ऊपर से हटाया और अपनी चूत में उँगलियों से मिलन रस को लिया और अपने मुंह में डाल लिया. दर्शन उसके पास में लेटे हुए ये देख रहा था. कनिका ने फिर उठकर दर्शन के मुरझाते हुए लंड को मुंह में लिया और उसपर लगे प्रेम रस के मिश्रण को चाट लिया.
“इसका स्वाद अलग ही होता है. और सुगंध भी.” कनिका ने संतुष्टि से आह भरते हुए कहा.
कनिका दर्शन के पास लेट गयी और दोनों अन्य बातों में व्यस्त हो गए. पर दर्शन और कनिका को अपने प्रेम का अगला चरण भी याद था. कनिका की गांड मारने का. पर उसके लिए दोनों ने कुछ देर विश्राम करना उपयुक्त समझा था.
******************
दिया, आकाश और आकार:
दिया ने दोनों लौंड़ों को देखा और फिर आकाश की ओर देखा. पति होने के कारण वो किस छेद में जाना चाहता था इस पर उसका पहला अधिकार था. आकाश भी उसकी इस बात को समझ गया.
“आकार, जिस प्रकार से तुमने आज अपनी भाभी की सेवा की है, उसके लिए मैं तुम्हें उनकी गांड पहले मारने का न्योता देता हूँ. वैसे तुम्हारी क्या इच्छा है?”
“भाई, आपने जैसा कहा है, बस वही मेरी भी इच्छा बन गई है.” आकार ने चतुराई से उत्तर दिया.
दिया: “आप दोनों ही तय करोगे या मुझसे भी कुछ पूछोगे?”
आकाश: “ये तो मैंने सोचा नहीं था. तुम्हारी क्या इच्छा है दिया?”
दिया हंसकर बोली, “जो आपकी है. हालाँकि मुझे इतना कोई भेदभाव नहीं करना है. मैं जानती हूँ कि आप भी मेरी गांड अवश्य ही मारने वाले हैं. बस अपने भाई को पहला अवसर दे रहे हैं.”
“बिल्कुल, अब ये बेचारा अपनी बीवी के बिना इतने दिनों से कितना तड़प रहा है.” आकाश ने कहा.
दिया: “ऐसा तो नहीं लगता. ऑफिस में तो आज अपनी सेक्रेटरी की गांड मारी ही होगी। है न देवर जी?”
आकार: “और क्या, उसे वापिस काम पर बुलाया तो वो मुझे धन्यवाद करने की इच्छुक थी. मैं भला कैसे मना करता?”
आकाश बिस्तर पर लेट गया, “अब बातें बंद करो, देखो मेरा लंड अब चुदाई के लिए कैसे तड़प रहा है.”
दिया ने उसे देखा और अपने मुंह में लेकर कुछ क्षणों के लिए चूसा और फिर उसके ऊपर चूत रखकर बैठती चली गयी. पूरे लंड को अंदर लेकर उसने कुछ देर उछलकूद की और फिर आगे झुकते हुए अपनी गांड को दोनों हाथों से फैला लिया. आकार के लिए ये खुला निमंत्रण था और वो इस अस्वीकार नहीं करने वाला था. उसने अपने लंड के ऊपर थूक लगाया और उसे सहलाते हुए दिया की गांड के छेद पर लगा दिया. दिया ने उसे मुड़कर देखा और सहमति में सिर हिलाया. आकार ने एक तगड़ा धक्का लगाया और अपने पूरे लंड को दिया की गांड में अंत तक गाड़ दिया. दिया की पीड़ा और आनंद से मिश्रित चीख ने कमरे को थर्रा दिया.
दोनों भाइयों के बीच में दिया इस समय एक गुड़िया ही बनी हुई थी. दिन में हुई चुदाई से उसकी वासना और भड़की हुई थी और इसका ही प्रभाव था कि उसे आज दो दो लौड़े एक साथ लेने का मन था. उसे ये भी पता था कि उसके घर आने के पश्चात् रमोना की भी ऐसी ही घनघोर चुदाई की गई होगी. पर अभी जो लौड़े उसकी चूत और गांड को खंगाल रहे थे वे भी कम नहीं थे. दोनों भाइयों की इस प्रकार की चुदाई का अनुभव उन्हें दिया की हर इच्छा को पूर्ण करने के लिए समर्थ था.
पहले तो आकाश बिना कुछ किये हुए यूँ ही लंड उसकी चूत में पेल कर पड़ा रहा था, पर जब आकार ने उसकी गांड में अपने लंड से लम्बे धक्के लगाने आरम्भ किये तो आकाश ने भी उसमे ताल मिलाकर नीचे से उसकी चूत में भी उसी गति से धक्के दे मारे। दिया अब सातवें आकाश पर थी, उसकी आँखों के सामने तारे नाच रहे थे. उसके दोनों छेद इस समय तीव्र और बलशाली धक्कों की आपदा का सामना कर रहे थे परन्तु इसमें भी वे आनंद का अनुभव कर रहे थे.
धक्कों की बढ़ती शक्ति और गति के आगे दिया अब बेबस थी. उसकी चूत से अवश्य पानी बहा जा रहा था, और गांड में एक पूर्व परिचित सी खुजली भी होने लगी थी. और उसे मिटाने का एक ही उपाय था. गांड की और भीषण चुदाई. और उसने चिल्लाकर आकार को अपनी इच्छा बताई। आकार ने अपनी स्थिति कुछ बदली और वो पीछे के स्थान पर दिया की गांड के ठीक ऊपर आ गया. इस स्थिति में उसके लंड के आघात अब और लम्बे और गहरे हो गए क्योंकि अब लंड के नीचे का हिस्सा निर्विरोध हो गया था.
दिया अब आकाश के सीने से चिपकी हुई थी और आकाश भी अपनी पत्नी की निर्ममता से चूत को चोद रहा था. नीचे से वो इतनी शक्ति के साथ चुदाई कर पा रहा था वो यही दर्शाता था कि वो शारीरिक रूप से कितना सक्षम था. उसके धक्कों की गति बढ़ने का एक कारण और भी था. आकार के नए आसान को लेने के कारण उसके ऊपर से बोझ कम हो गया था और वो अब अपनी कमर को अधिक तीव्रता से चला पा रहा था. और इसका पूरा आनंद उन दोनों के बीच में सैंडविच के समान फंसी हुई दिया ले रही थी. आकार के लंड से जहां एक ओर उसकी गांड की गहराई नपी जा रही थी, वहीं उसके पति ने उसकी चूत की दुर्गति करने में भी कोई कमी नहीं छोड़ी थी.
कमरा बंद होने के बाद भी उसकी चीखें बाहर तक सुनी दे रही थीं, परन्तु उन्हें सुनने वाला कोई न था. और सुनता थो भी आश्चर्य ही करता कि ये पीड़ा से उभरी हैं या आनंद से. दोनों भाई अपनी पूरी शक्ति के साथ दिया को चोदते हुए अब कुछ थकने से लगे थे. एक दूसरे के लंड के कारण कसे हुए छेद अब उन्हें अपने गंतव्य की और शीघ्रता से ले जा रहे थे. और जैसा कि होता है, गांड मारने वाला पहले झड़ता है. आकार ने भी अपने स्खलन की घोषणा की और फिर बिना कुछ और कहे उसका शरीर जड़ हो गया. शरीर तो जड़ था पर उसकी कमर अप्राकृतिक रूप से हिल रही थी. और उसके लंड से वीर्य की धार उसकी भाभी दिया की गांड की तंग गली को सींच रही थी.
उसके इस प्रकार से रुकने के कारण आकाश की भी ताल टूट गयी और साथ ही साथ दिया का हिलना भी कुछ असामान्य हो गया. इसी कारण उसके लंड ने भी अपने रस से दिया की चूत के भीतर अपना फौवारा छोड़ा और उसकी अंदरूनी घाटी को ओतप्रोत कर दिया. उसके ठहरते ही दिया उसपर निढाल सी होकर लेट गयी. आकार ने अपना लंड बाहर खींचा और हट गया. दिया आकाश के ऊपर से हटती हुई एक ओर ढुलक गयी. उसका शरीर थका था पर आत्मा तृप्त थी.
कुछ देर बाद उठकर दिया ने दोनों लौंड़ों को चाटकर साफ किया. फिर बाथरूम में जाकर अपनी चूत और गांड को भी अच्छे से स्प्रे के द्वारा अंदर से साफ किया। अपने मुंह को धोकर वो कमरे में लौटी तो आकार ने सबके लिए पेग बना रखे थे. उसके बाद आकाश फिर आकार भी बाथरूम में जाकर साफ सफाई किये और फिर बैठकर अपने पेग पीने लगे.
और अभी रात शेष थी.
******************
सिया का घर:
सिया और हितेश:
सिया की कुलबुलाती चूत भी हितेश को संदेश दे रही थी, जो इस अल्प आयु में भी स्त्री के अंगों की सांकेतिक भाषा पढ़ने में निपुण हो चला था. कुछ समय तक अपनी माँ की चूत को प्रेम से देखने के बाद हितेश ने अपने लंड को पकड़ा और सिया की चूत पर लगाया. सिया ने एक गहरी साँस ली और बिना कुछ बोले अपने होंठों से कहा “डाल दे.”
हितेश वैसे भी अब रुकने वाला तो था नहीं, पर सिया के इस निशब्द संकेत ने उसे अपने लंड को अंदर डालते हुए अनुभव किया. माँ बेटे के आनंद का इस समय कोई पर्याय नहीं था. अभी लंड का केवल टोपा ही अंदर गया था, पर दोनों एक शांति का अनुभव कर रहे थे. एक अवधि के बाद के मिलाप से दोनों आनंदित थे. हितेश का लंड एक धीमी गति के साथ सिया की चूत को बेधता चला गया. सिया उसे प्रेम भरी दृष्टि से देखती रही और अपनी चूत में उसके लंड का आव्हान करती रही. हितेश जब रुका तो उसका लंड उसकी माँ की चूत में पूरा समाया हुआ था.
हितेश रुक गया और दोनों एक दूसरे के गुप्तांगों के स्पंदन का आभास करते रहे. कोई शीघ्रता नहीं थी. न किसी ने आना था, न किसी ने टोकना, न उन्हें कहीं जाना ही था आज की रात. एक दूसरे की आँखों में देखते हुए हितेश का अपनी माँ के प्रति प्रेम उमड़ पड़ा. वो आगे झुका और उसने सिया के होंठों से अपने होंठ मिला लिए. लंड को चूत में डाले हुए दोनों एक दूसरे को चूमने में व्यस्त हो गए. अचानक ही हितेश ने अपने लंड को बाहर खींचा और सिया के होंठों को चूमते हुए एक लम्बे धक्के के साथ उसे फिर अंदर पेल दिया.
हितेश को सिया के होंठों का कम्पन अपने होंठों पर अनुभूत हुआ. उसने अपनी जीभ को सिया के मुंह में डाला और अब उनका चुंबन माँ बेटे से अधिक प्रेमियों की श्रेणी में स्थापित हो गया. सिया ने भी हितेश की जीभ को चूसते हुए अपनी स्वीकृति दर्शाई. हितेश अब सिया की लम्बे पर धीमे और सधे हुए धक्कों से कर रहा था. सिया ने अपने दोनों मम्मों को अपने हाथों से ही मसलना आरम्भ कर दिया. हितेश दुविधा में पड़ गया. अगर वो अपनी माँ के मम्मों पर ध्यान देता तो अवश्य ही चुंबन तोड़ना पड़ता. वो इतना अनुभवी भी नहीं था कि चुदाई और चुम्बन के साथ सिया के मम्मे मसल सकता.
सिया ने उसकी इस दुविधा को स्वयं ही दूर कर दिया. उसने हितेश के बाएँ हाथ को अपने स्तन पर रखा और अपना हाथ हटाकर उसके सिर पर रख दिया. अब सिया हितेश के सिर को पकड़े थी और उनके होंठ अभी भी जुड़े हुए थे. हितेश दाएँ हाथ के सहारे उसकी चुदाई कर रहा था और बाएँ हाथ से उसके मम्मों को मसल रहा था. पर इस कारण चुदाई की गति क्षीण हो चली थी. कुछ देर तक यही स्थिति बनी रही.
सिया ने ये समझते हुए कि ऐसा आसन अनुपयोगी है, अपना हाथ हितेश के सिर से हटाया और उसे बोली कि मेरे मम्मे निचोड़ दो. हितेश के चेहरे के आनंद को देखकर सिया को भी लगा कि हितेश भी यही चाहता था. हितेश ने अपने दोनों हाथ सिया के मम्मों पर जमाये और उन्हें मसलते हुए अपनी चुदाई की गति तीव्र कर दी. अब सिया को सच्चा सुख मिल रहा था. एक ओर उसकी चूचियों पर आक्रमण हो रहा था वहीं दूसरी ओर उसकी चूत को भी अपने बेटे के लंड का सुख मिल रहा था.
बहुत समय तक हितेश सिया की इसी आसन में चुदाई करता रहा. दोनों को मानो थकान का बोध भी नहीं था. सिया की चूत अब पानी से लबालब हो चुकी थी और हितेश के लंड के अंदर बाहर होने उसे उसकी थापों की ध्वनि भी बदल चुकी थी. हितेश ने आसन बदलने के लिए सिया से आग्रह किया और सिया ने उसकी बात को मानते हुए तुरंत ही घोड़ी का आसन ले किया. हितेश ने पास पड़े अपने अंडरवियर से सिया की चूत को पोंछा और फिर अपने लंड को उसकी चूत में फिर से पेल दिया। चूत पोंछने के कारण कुछ सीमा तक फिर से तंग लग रही थी और हितेश को चुदाई का आनंद फिर से प्राप्त होने लगा.
इस आसन में वैसे भी वो अधिक नियंत्रण में था और उसका लाभ उठाते हुए वो अपने धक्कों को प्रभावशाली रूप से मारने में सफल हो रहा था. सिया को भी इस आसन में अधिक आनंद मिल रहा था क्योंकि पिछले आसन में पाँवों को फ़ैलाने से उसे थकान सी हो चली थी. वो रह रह कर पीछे देखती और हितेश से और गहरी चुदाई करने के लिए आग्रह करती. हितेश अपनी गति और धक्कों की लम्बाई को संभावित रूप से बढ़ा रहा था, पर उसकी सीमा अब समाप्त हो चुकी थी. सिया की भी चूत का रस एक बार फिर से उसी तेजी से निकल रहा था और उन दोनों के संसर्ग मार्ग से गिरता हुआ बिस्तर को गीला कर रहा था.
हितेश से अब और रुका न गया और उसने एक चिंघाड़ के साथ सिया की चूत को अपने वीर्य से भर दिया. सिया भी बिस्तर पर लुढ़क गयी और उसके ऊपर ही हितेश भी जा गिरा.
“तुम्हारा हुआ न, मम्मी?’ हितेश ने पूछा.
“मेरा तो पहले ही हो चुका था, वो तो तेरे लिए ही इतनी देर तक टिकी रही, नहीं तो तू फिर मुझे अलग हो जाता.”
हितेश ने सिया की गर्दन को चूमा और फिर उसके साथ ही लेट गया.
“मैं अलग नहीं हूँ, पर पढ़ाई पूरी किये बिना भी अब नहीं आ सकता. बस अब कुछ और महीनों की ही तो बात है, फिर यहीं लौट आयूंगा और पापा का बिज़नेस में हाथ बाटूंगा.” दोनों यूँ ही लेटे हुए बात कर रहे थे.
“हाँ, उन्हें भी अब तेरी आवश्यकता पड़ेगी, अगर तेरे चाचा चले गए तो. अब तक उनका बहुत सहारा था.”
“मैं समझता हूँ, पर मुझे लगता है कि चाचा के जाने और मेरे आने के मध्य अधिक समय नहीं रहेगा. कुछ दिन तक तो पापा को कठिनाई होगी, पर एक बात और भी है जो अपने अब तक नहीं सोची.” हितेश ने मुस्कुराकर कहा.
“क्या नहीं सोचा, बदमाश!”
“यही कि न जाने कितने वर्षों बाद उस अवधि में आप और पापा अकेले रहेंगे. उस समय का सदुपयोग करना. अब तक हम सबके लिए आप दोनों त्याग करते रहे, अब किसी को बीच में मत आने देना.”
सिया सोच में पड़ गयी. ये सच था. हितेश के जन्म के दो वर्ष बाद से वो और चंद्रेश कभी अकेले नहीं रहे थे. चंद्रेश के पिता की मृत्यु के बाद प्रकाश उनके ही पास जो आ गया था. उसने अपने बेटे को देखा.
“सच कह रहा है, तेरी बात से तो लगता है की तेरे चाचा को शीघ्रातिशीघ्र भगा देना चाहिए. और मैं स्वयं इनके काम में साथ दूंगी. कुछ तो कर ही लूँगी.”
“मम्मी, आप बहुत कुछ कर लोगी. सबसे बड़ी बात ये होगी कि पापा को किसी भी समस्या या कठिनाई में उनके सबसे घनिष्ठ मित्र का साथ रहेगा. ये और भी अच्छा होगा.”
“बेटा, सच में तू बहुत बुद्धिमान है. और हम दोनों के लिए इतना चिंतन करता है. तो इसी बात पर अब मेरी गांड को भी ठोक डाल. तेरी प्रतीक्षा में बहुत व्याकुल सी हो गयी है.”
“हाँ हाँ, जैसे आज चाचा ने नहीं मारी हो. पर सच में मुझे भी इसकी बहुत याद आती है.”
“तो चल फिर पहले इसे चाटकर अपने अनुकूल बना और फिर पेल दे.” सिया ने वही घोड़ी का आसन फिर से ले लिया और अपनी गांड को लहराकर हितेश को आमंत्रित किया.
हितेश ने अपनी माँ की आँखों में मंडराती वासना और प्रेम की छाया देखी और उसके होंठों को चूमकर उठा और सिया की गांड के पीछे आ गया. सिया की गांड दोपहर की चुदाई के कारण अभी भी कुछ खुली हुई थी पर हितेश को इससे कोई अरुचि नहीं हुई. उसने सिया के नितंबों पर अपनी जीभ से वार किया और एक गोलाकार आकृति में उसकी गांड के छल्ले तक पहुंच गया. सिया ने एक आह भरी और हितेश ने अपने हाथों से उसकी गांड को फैलाते हुए अपनी जीभ से उसे छेड़ दिया.
कुछ ही पल में उसकी जीभ सिया की गांड के भीतर थी और सिया की सिसकियाँ तेज हो रही थीं. अपनी माँ की गांड को कुछ समय तक अपनी जीभ से अनुकूल करने के पश्चात् हितेश ने अपने लंड को सहलाया. उसका लंड आने वाले सुख की कामना से तना हुआ था और फिर थूक निकालकर अपने लंड के टोपे पर लगाया. सिया अब उसके लंड की प्रतीक्षा में थी. और हितेश ने उसकी कामना पूरा करते हुए अपने लंड को उसकी मखमल जैसी गांड पर लगा दिया.
“कैसे मरवाना है अपनी गांड मम्मी?”
“जोर से. नहीं तो दोपहर की चुदाई की खुजली मिटेगी नहीं.”
“जैसा आप कहो.”
और इसी के साथ हितेश ने एक शानदार धक्का मारा और उसका लंड सिया की गांड को चीरता हुआ अंदर चला गया. सिया कुलबुलाकर रह गई. फिर हितेश ने उसकी गांड को बिना दया भावना के पूरी शक्ति के साथ छेदना आरम्भ कर दिया. सिया की खुजली का उपचार अब उसका बेटा उसी रूप में कर रहा था जैसा उसकी इच्छा थी. हितेश की चक्रवाती गति के आगे सिया ने हाथ डाल दिए और वो भी अपनी गांड का सत्यानाश करने में हितेश का साथ देने लगी. अपनी गांड को पीछे उछालते हुए वो अब हितेश के हर धक्के का बराबर उत्तर दे रही थी. हितेश को अपनी माँ की गांड मारने का अवसर बहुत दिनों के बाद मिला था. उसकी इच्छा तो थी कि वो इसे प्रेम पूर्वक चोदे पर दोपहर की चुदाई के कारण सिया की वासना चरम पर थी.
हितेश किसी भी आज्ञाकारी पुत्र के समान अपनी माँ की इच्छा के सामने नतमस्तक था और उसकी गांड को सम्पूर्ण मनोबल और शक्ति के साथ चोद रहा था. सिया की सिसकारियां अब चीखों में परिवर्तित हो चुकी थीं और हितेश को उनसे और भी अधिक प्रोत्साहन मिल रहा था. अपनी अनियमित और प्रचंड गति से उसने सिया की गांड के तार खोल दिए थे. सिया की इस प्रकार से गांड मारते हुए हितेश ने कोई दस मिनट और लिए. और उसके बाद उसके शरीर ने भी उसे उत्तर दे दिया. उसका लंड सिया की गांड में फूलने लगा और सिया भी जान गई कि अब हितेश झड़ने के निकट पहुंच गया है.
“मुझे अपने लंड का रस का स्वाद देना अब. अंदर मत छोड़ देना.”
“ओके, मम्मी.”
हितेश इसके बाद कोई चार मिनट ही और टिक पाया फिर उसने गति तोड़कर अपने लंड को सिया की गांड में से बाहर निकाल लिया. सिया के सामने जब तक पहुंचता, सिया ने एक पलटी ली और फिर सीधी होते हुए बैठ गई. उसके सामने हितेश का सना हुआ लंड नाच रहा था. उसे बिना हाथ से छुए सिया ने जीभ से चाटा और साफ होने के बाद हाथ में लेकर अपने मुंह में लेकर चूसने लगी. हितेश का लंड फिर से फूलने पिचकने लगा और फिर उसे अपना लावा सिया के मुंह में छोड़ दिया. एक बार झड़ चुकने के कारण इस बार मात्रा इतनी ही थी कि सिया सरलता से पी सके और उसने पूरा स्वाद लेकर अपने पुत्र के वीर्य को ग्रहण किया. लंड के शांत होने के बाद उसने एक बार उसे चूमा और चाटकर हितेश को प्रेम से देखा.
“बहुत अच्छा किया जो तू घर आ गया. आज पूरी रात अपनी माँ को चोदकर निहाल कर देना.”
“इसमें कोई शंका ही नहीं कि ऐसा ही होगा. अगर कल आप सीधी चल पायीं तो मेरे लिए शर्म की बात होगी.”
“मुझे भी यही आशा है. वैसे नीलम की स्थिति तो और भी बुरी होने के संभावना है. तेरे चाचा आज कुछ अलग मूड में हैं.”
“फिर तो उनकी खैर नहीं.”
दोनों माँ बेटे इस बात पर हंस पड़े और फिर उठकर बाथरूम में चले गए.
******************
सिया का घर:
नीलम, चंद्रेश और प्रकाश:
सिया और हितेश नीलम के बारे में बात करके कुछ देर तक बैठे हुए सोचते रहे. उनके मन में एक ही विचार थे. बात ये थी कि प्रकाश अकेलेपन से अब कुछ खिन्न रहने लगा था. और इसी कारण कुछ सीमा तक उसका व्यक्तित्व भी अब कुछ कठोर और आक्रोशित सा हो चला था. सिया के साथ भी वो कई बार कुछ अधिक निर्मम चुदाई करता था, परन्तु चंद्रेश उस पर कुछ अंकुश रखता था. सिया का पति होने के कारण वो सिया की रक्षा के लिए वचनबद्ध जो था. परन्तु आज नीलम उनके साथ थी. और जहाँ तक सिया ने सही समझा था उसका मुख्य कारण यही था कि चंद्रेश प्रकाश को नीलम के साथ अकेला नहीं छोड़ना चाहता था.
और हितेश अभी उस स्थिति में नहीं था कि प्रकाश को कुछ भी करने से रोक सके. चंद्रेश ने प्रकाश को भी ये बात समझाई कि नीलम घर की अथिति है और प्रकाश को स्वयं पर अंकुश रखना होगा. चंद्रेश ने समझाया कि वो उसे एक सीमा तक नहीं रोकेगा, परन्तु अगर उसके कहने पर भी प्रकाश नहीं रुका तो वो उसी समय इस कार्यक्रम को समाप्त कर देगा. प्रकाश ने अपने बड़े भाई की बात को स्वीकार किया और उसे विश्वास दिलाया कि वो उसकी आज्ञा का उल्लंघन कदापि नहीं करेगा.
इस सहमति के पश्चात चंद्रेश और प्रकाश उस कमरे में चले गए जहाँ नीलम रुकी थी. नीलम सम्भवतः अभी बाथरूम में थी, क्योंकि कमरा खाली था. चंद्रेश ने देखा कि टेबल पर एक बोतल और तीन ग्लास रखे थे. एक में कुछ पेय शेष था पर अन्य दो ग्लास उलटे थे. उसने प्रकाश को देखा और प्रकाश ने आगे बढ़कर तीनों ग्लास में नए पेग बना दिए. नीलम के ग्लास में कम शराब डाली थी क्योंकि उसे पता नहीं था कि उसकी क्षमता कितनी है और वो अब तक कितना पी चुकी थी. उसी समय बाथरूम के द्वार के खुलने की आहट हुई और नीलम बाहर निकली. उसने स्नान किया था और मात्र एक तौलिये में ही लिपटी हुई थी. उसे किसी और के कमरे में होने का ज्ञान नहीं था और उन दोनों को देखकर वो हतप्रभ रह गयी.
“हमने समय नष्ट न करने का निर्णय लिया और जल्दी आ गए. तुम्हें कोई आपत्ति तो नहीं है न?” चंद्रेश ने पूछा.
“नहीं भाईसाहब, बस थोड़ा चौंक गई. आपने नई ड्रिंक बना ली है. ये अच्छा किया. अब ये बताइये कि मैं कपड़े पहनूँ या ये तौलिया ही पर्याप्त है.”
“मैं इसे तुम्हारे ऊपर छोड़ता हूँ, जिसमे तुम्हें सुविधा लगे. हाँ अगर तुम इस तौलिये में रहना चाहती हो तो हम भी वैसे ही रहना चाहेंगे.”
“तब तो आप लोग भी बाथरूम में जाकर यही पहन लीजिये. दीदी ने बड़े सारे तौलिये रख छोड़े हैं.”
चंद्रेश और प्रकाश भी कुछ देर में तौलिये पहनकर आ गए और तीनों ने बैठते हुए चीयर्स किया और अपने पेग की चुस्की लेने लगे. चंद्रेश ने प्रकाश पर अपना ध्यान लगाया हुआ था. आज उसे प्रकाश कुछ अधिक उत्तेजित लग रहा था. पर उसने आरम्भ में कुछ न करने का निर्णय लिया. उसे पूर्ण ज्ञान नहीं था कि नीलम किस प्रकार के व्यभिचार से संतुष्ट होती है. स्वाभाविक दिखने वाले लोग भी चुदाई के समय कई बार अलग ही रूप धारण कर लेते हैं, इसीलिए उसने प्रतीक्षा करने में ही भलाई समझी. दो पेग पी लेने के बाद दोनों भाई अपने बीच में बैठी नीलम के शरीर से खेलने लगे.
जहाँ चंद्रेश ने उसके मम्मों को अपने हाथों में लिया वहीं प्रकाश के हाथ नीलम के तौलिये को हटाकर उसकी चूत को रगड़ रहे थे. नीलम भी इसके कारण अब चुदासी हो उठी थी और वो अपनी गांड मटका रही थी. चंद्रेश ने नीलम के तौलिये को अलग किया और अपने मुंह से उसके मम्मों को चूसने लगा. नीलम ने एक हाथ से उसके सिर को दबा लिया, पर बहुत हल्के से, इसी कारण चंद्रेश एक एक करके दोनों चूचियों को चूसने में लगा रहा. वहीं अब प्रकाश की ऊँगली नीलम की चूत चोद रही थी. नीलम की चूत की सुगंध से कमरा महक उठा था. प्रकाश ने अपने भाई को देखा और फिर खड़ा हो गया. उसके अपना तौलिया हटा दिया और उसका लंड उछलकर सामने आ गया. नीलम ने अपने मुंह के सामने लंड देखा तो उसकी लार टपक गई, पर चंद्रेश के बीच में रहते हुए वो कुछ कर नहीं सकती थी. चंद्रेश ने इस समस्या का समाधान किया और वो भी उठ गया और तौलिया हटाकर नंगा हो गया. अब नीलम के सामने दो लौड़े झूल रहे थे.
दोनों भाई उसके दो ओर खड़े हो गए और नीलम ने उनके लौंड़ों को चाटकर उनका स्वाद लिया. इस स्वाद से वो भलीभांति परिचित थी. कुछ देर तक यूँ ही चाटने के बाद वो एक एक करके दोनों लौंड़ों को अपने मुंह में लेकर चूसने लगी. पहले एक को चूसती फिर दूसरे को. उसकी इस क्रिया में धीरे धीरे गति बढ़ रही थी और उसके साथ ही दोनों लौंड़ों का तनाव भी. अचानक जैसे ही उसने प्रकाश के लंड को मुंह में लिया, प्रकाश ने उसके सिर को पकड़ा और अपना पूरा लंड उसके मुंह में घुसा दिया. इस कारण नीलम की साँस रुक सी गई, परन्तु वो इस प्रकार से भी लंड चूस चुकी थी, इसीलिए आरम्भिक आश्चर्य के बाद उसने अपने गले को खोला और प्रकाश के लंड का स्वागत किया. चंद्रेश के लंड को उसने अब हाथों से सहलाना आरम्भ किया.
प्रकाश नीलम के मुंह को अब तीव्रता से चोद रहा था, पर उसका आक्रोश इस बात पर बढ़ रहा था कि नीलम किसी प्रकार से भी आहत नहीं लग रही थी, बल्कि वो इसे बड़ी सरलता से झेल रही थी. प्रकाश ने नीलम के बालों को पकड़ा और इस बार अपना लंड स्थाई रखते हुए उसके बालों से पकड़कर नीलम के मुंह को अपने लंड पर बाहर अंदर करने लगा. इस बार नीलम को कुछ असुविधा हुई और उसकी गुं गुं की ध्वनि ने चेताया कि उसे कठिनाई हो रही है. प्रकाश के आक्रोश में कुछ कमी हुई, पर वो बिना रुके नीलम के चेहरे की चुदाई करता रहा. जब चंद्रेश को लगा कि इतना बहुत है तो उसने प्रकाश को कहा कि उसे भी अपना लंड चुसवाना है.
प्रकाश ने संकेत समझा और अपने लंड को नीलम के मुंह से निकाला और उसके दोनों गालों पर थप्पड़ के समान मारा और हट गया. चंद्रेश ने नीलम को देखा तो उसकी आँखों में आँसू थे, पर ये उसकी साँस रुकने के कारण निकले थे. नीलम ने पलटते हुए चंद्रेश के लंड को मुंह में लिया और चूसने लगी.
पर अभी नीलम को चूसते हुए कुछ ही देर हुई थी कि प्रकाश बोल उठा, “बिस्तर पर चलते हैं.”
नीलम ने जैसे ही अपने मुंह से चंद्रेश का लंड निकाला उसे अपने बालों में एक झटका सा लगा और प्रकाश उसे बालों से खींचकर बिस्तर को ओर ले गया. हालाँकि नीलम ने बहुत शीघ्र वस्तुस्थिति को समझ लिया था और वो तुरंत ही घुटनों के बल बिस्तर की ओर चल दी थी, पर उस झटके के कारण उसे कुछ दर्द हुआ और अब इस प्रकार खींचे जाने पर भी हो रहा था. सौभाग्य से बिस्तर पास में था और नीलम की ये दुर्दशा शीघ्र ही दूर हो गयी. वो बिस्तर पर चढ़ी ही थी कि प्रकाश ने उसे घोड़ी बनने का आदेश दिया. नीलम ने बिना आपत्ति किये हुए आसन लिया.
चंद्रेश समझ गया था कि क्या होने वाला है, पर वो भी नीलम की सहनशीलता को देखना चाहता था. अभी तक नीलम ने ऐसा कुछ नहीं दर्शाया था कि उसे किसी भी कृत्य में आपत्ति है. वो बिस्तर पर चढ़ा और नीलम के सामने बैठ गया. नीलम ने उसके लंड को अपने मुंह में लिया और अपना पूर्व बाधित कार्य को फिर आरम्भ कर दिया. उसे अभी भी अपने बालों में हल्का सा दर्द था, पर इससे पहले कि वो इसके लिए चिंतन करती उसे अपनी गांड के छेद पर कुछ छूता हुआ अनुभव हुआ. उसे ये समझने में देर नहीं लगी कि प्रकाश उसकी गांड को चाट रहा है. और इस आनंद से उसकी गांड लुप लुप करने लगी और प्रकाश ने भी अपनी जीभ के प्रहार को तेज कर दिया.
चंद्रेश ने नीलम के सिर पर हाथ रखा और उसे अपने लंड पर केंद्रित किया. नीलम के पीछे प्रकाश खड़ा हुआ और नीलम को इस बात की भनक भी न लग पाई. प्रकाश ने अपने लंड पर थोड़ा थूक लगाया पर नीलम की गांड को यूँ ही रहने दिया. उसे सुखी गांड मारने में अधिक आनंद आता था, हालाँकि गांड मरवाने वाली स्त्री को कई बार इसमें अत्यधिक कष्ट होता था. पर प्रकाश इस बात से अनिभिज्ञ रहता था या यूँ समझें कि वो इसका नाटक करता था. प्रकाश ने नीलम की गांड पर अपने लंड को लगाया ही था कि चंद्रेश ने अपने लंड को नीलम के मुंह से निकाला और नीलम के सिर को कुछ और जोर से पकड़ लिया.
नीलम को अब कुछ कुछ समझ आने लगा था कि क्या हो रहा है. उसने अपनी गांड को हटाने का प्रयास किया पर प्रकाश ने उसकी गांड में अपने लंड को डाल दिया था. अभी क्योंकि केवल सुपाड़ा ही प्रविष्ट हुआ था तो नीलम को कुछ असहजता अवश्य हुई, पर उसने समय की गंभीरता को देखते हुए अपनी गांड को बिलकुल ढीला छोड़ दिया. ये उसकी बुद्धिमता ही थी कि उसने समय से इस कार्य को सम्पूर्ण किया क्योंकि अगले ही पल प्रकाश ने लंड को कुछ बाहर खींचते हुए एक दुर्दांत धक्का मारा और उसके आधे से अधिक लंड ने नीलम की गांड को चीरते हुए अंदर प्रवेश कर लिया.
नीलम ने अपने होंठ भींच लिए और इस दर्द को सहन करने की चेष्टा करने लगी. चंद्रेश ने भी नीलम के मुंह से अपने लंड को निकलकर बुद्दिमानी की थी अन्यथा उसका लंड नीलम के दाँतों से दबकर चोटिल हो सकता था. चंद्रेश नीलम से किसी प्रकार की याचना की अपेक्षा कर रहा था, पर ऐसा कुछ नहीं हुआ था. दूसरी ओर प्रकाश ने फिर अपने लंड को बाहर निकालते हुए एक और शक्तिशाली धक्का मारा और इस बार उसका लंड नीलम की गांड में पूरा बैठ गया. नीलम की गांड में एक तेज जलन सी हुई और पीड़ा से उसका शरीर ऐंठ गया. उसके दाँत अब तक भींचे ही हुए थे और वो स्वयं को संयत करने का प्रयास कर रही थी.
पर गांड से उठती हुई पीड़ा की लहरें और एक तीव्र जलन उसके मन मस्तिष्क के ऊपर अब एक अँधेरे का आवरण पहना रही थी. उसने फिर से अपनी गांड को हटाने का प्रयास किया, पर इसका अब कोई लाभ नहीं था. उसकी गांड में प्रकाश का लंड जमा हुआ था और निकलने की कोई आशा भी नहीं थी. उसके दाँत अब ठिठुरते हुए से बज रहे थे. प्रकाश ने अपने लंड को बिना हिलाये इसी अवस्था में कुछ तक रहने दिया. नीलम की पीड़ा कुछ कम हुई और उसे अपने आसपास का ज्ञान हुआ. उसे एक अत्यंत सुखद सी सांत्वना देती हुई ध्वनि सुनाई दी.
“बस हो गया, नीलम. बस हो गया.” ये चंद्रेश का स्वर था और इसे सुनकर नीलम को भी कुछ सांत्वना मिली.
उसकी गांड की जलन और पीड़ा अब सहने के स्थिति में थी. उसके मुंह से एक कराह सी निकली और उसकी साँस धीरे धीरे सामान्य हो चली. प्रकाश ने नीलम की स्थिति को समझा और फिर अपने लंड को बाहर निकाला और एक ही धक्के में फिर अंदर कर दिया. नीलम की चीख ने इस बार कमरे को हिला दिया। पर प्रकाश अब पाशविक रूप ले चुका था और वो अपने लंड की पूरी लम्बाई और चौड़ाई से नीलम की आहत गांड पर आघात पर आघात किये जा रहा था. नीलम अब पीड़ा की पराकाष्ठा पर कर चुकी थी और शनैः शनैः आनंद के सागर में प्रवेश कर रही थी. इस समय वो ऐसी स्थिति में थी जहाँ पर पीड़ा और आनंद का समागम होता है. कभी सुख कभी पीड़ा.
नीलम ने कुछ देर बाद चंद्रेश के लंड को ढूंढा और फिर से उसे चूसने लगी. प्रकाश का लंड अब उसकी गांड में उतनी पीड़ा नहीं दे रहा था और उसे अब कुछ कुछ आनंद की अनुभूति भी हो रही थी. चंद्रेश के लंड को चूसने से उसे जो रही सही पीड़ा थी उसका भी भान नहीं रहा. प्रकाश ने जब देखा कि नीलम उसके लंड से व्यथित नहीं है तो उसने इस खेल को अगले चरण में ले जाने का निर्णय लिया.
“भैया, आप भी आ जाओ, नीलम की चूत भी तो सुलग रही होगी चुदाई के लिए. उसे क्यों नहीं चोदते आप?” प्रकाश ने चंद्रेश से कहा.
चंद्रेश ने नीलम के मुंह से अपने लंड को निकाला. नीलम ने भी कोई आनाकानी नहीं की. चंद्रेश ने प्रकाश को संकेत किया तो प्रकाश ने अपने लंड को नीलम की गांड से निकाला और नीलम को उठने के लिए कहा. नीलम उठी तो चंद्रेश लेट गया और फिर नीलम ने अपनी चूत को चंद्रेश के लंड के ऊपर साधा और बैठ गई. उसे चंद्रेश के पूरे लंड को अंदर लेने में कोई दुविधा नहीं हुई. नीलम ने चंद्रेश के लंड पर कुछ देर उछलकर जब उसे अपनी चूत में सही से बैठा लिया तो वो आगे झुक गई. वो जानती थी कि प्रकाश की इच्छा क्या थी और वो स्वयं इन दोनों भाइयों से दोहरी चुदाई करना चाह रही थी. कई दिनों के सन्यास ने उसकी कामोत्तेजना को भड़का दिया था और दोपहर में हितेश से चुदने के बाद भी उसके शरीर की आग ठंडी नहीं हुई थी.
“जैसे ये कभी ठंडी होगी भी.” उसने मन ही मन सोचा और प्रकाश के आक्रमण प्रतीक्षा करने लगी. प्रकाश के साथ ऐसा कम ही होता था कि एक ही दिन में उसे दो दो स्त्रियों के साथ दोहरी चुदाई का अवसर मिले और उसमे भी उसे दोनों बार गांड मारने मिले. उसने अपने लंड को नीलम की खुली हुई गांड पर रखा और इस बार भी एक तगड़े झटके के साथ ही पूरे लौड़े को गांड में उतार दिया. नीलम अब उसकी इस पाशविक सोच को समझ चुकी थी और उसने एक चीख के साथ उसके लंड का स्वागत किया.
“चोदो अब मुझे तुम दोनों मादरचोद. फाड़ दो मेरी चूत और गांड. देखूं तो क्या सोचकर सिया दीदी तुम दोनों से हर दिन मरवाती हैं.”
उसने दोनों को छेड़ने के उद्देश्य से ये सब कहा था. और जैसी अपेक्षा थी उसका परिणाम भी वही हुआ. चंद्रेश जो अब तक उसका सहायक था इस बात से वो भी चिढ़ गया. उसने अपने लंड को उसकी चूत में तीव्रता से अंदर बाहर करना आरम्भ किया. प्रकाश तो पहले से ही आक्रोशित था तो उसपर इस कथन ने आग में घी डालने का काम किया. अब नीलम की चूत और गांड की दोनों ओर से भयंकर धुनाई हो रही थी. उसकी चीखों ने कमरे में आतंक सा मचाया हुआ था. उसकी चीखें इतनी तेज थीं कि घर के दूसरे कोने में भी उनका रुदन सुनाई दे रहा था.
हितेश और सिया ने एक दूसरे को देखा और सिया ने बोला कि लगता है तेरी नीलम मौसी की आज पलंग तोड़ चुदाई हो रही है. हितेश ने भी उसकी हाँ में हाँ मिलाई पर सिया की चूत में हल चलाने में कोई कमी नहीं की. नीलम को कुछ क्षणों के लिए लगा था कि उसने इन दोनों को चिढ़ा कर गलती कर दी है. पर फिर उसके शरीर ने इस निर्मम चुदाई से आनंद के अवशेष निकाल लिए. और धीरे धीरे वो अवशेष बढ़ते गए और उसके पूरे व्यक्तित्व को आनंद के महासागर में ले गए. नीलम की चीखों ने अब आनंद की सिसकारियों और किलकारियों को स्थान दे दिया था. दोनों भाई एक सधी ताल में उसे चोद रहे थे और नीलम उस बहाव में बह रही थी.
आनंद की पराकाष्ठा अगर किसी स्त्री को अर्जित करनी हो तो उसे अपनी चूत और गांड में एक साथ लौंडों से चुदाई करवानी चाहिए. आरम्भ में इसमें अवश्य कठिनाई हो सकती है, परन्तु इसका अंत केवल चूत या गांड मरवाने से कहीं अधिक होता है. यही नीलम को अब अनुभव हो रहा था. उसकी चूत और गांड के बीच की झिल्ली जिसे अकेला लौड़ा कभी उस प्रकार नहीं घिस सकता था, दो लौंड़ों के उसके दोनों ओर होने के कारण पूरा ध्यान मिल रहा था. चंद्रेश और प्रकाश भी एक दूसरे के लौड़े के साथ अंदर मिलाप कर रहे थे और उन्हें भी अत्यधिक आनंद मिल रहा था.
प्रकाश चूँकि बहुत समय से चुदाई कर रहा था तो उससे अब रुका नहीं जा रहा था. उसने तेज धक्कों के साथ नीलम की गांड में अपना पानी छोड़ ही दिया. उसके बाद भी वो उसकी गांड में लंड चलाता रहा जिसके कारण उसका रस झाग के रूप में नीलम की गांड के बाहर निकलने लगा. जब तक उसके लंड में शक्ति रही उसने धक्के लगाए पर उसके बाद अपने सिकुड़ते लंड को बाहर निकाल कर हट गया.
उसके हटते ही चंद्रेश ने नीलम की कमर को पकड़ कर बिना अपने लंड को बाहर निकाले पलटी मारी और अब नीलम नीचे थी और वो ऊपर. इस आसन में वो तीव्र चुदाई कर सकता था और नीलम की चूत को अपने जीजा की शक्ति का फिर से उदाहरण मिला. चंद्रेश के लंड ने नीलम के कई ऐसे स्थानों को छुआ जो उसे ज्ञात भी नहीं था कि उसकी चूत में उपस्थित थे. चंद्रेश का लंड बहुत अधिक बड़ा नहीं था, परन्तु उसकी चुदाई की कला का ही ये जादू था कि उससे चुदने वाली हर स्त्री को यही अनुभव होता थे. कला, शक्ति और गहराई से चुदाई करने में चंद्रेश का कोई पर्याय नहीं था. नीलम थक चुकी थी, पर उसे अपनी चूत की गर्मी को दूर करने के लिए भीतर सिंचाई भी करवानी थी. उसने भी अपनी कमर उछालकर चंद्रेश का साथ दिया. इसके फलस्वरूप, इस चुदाई का अंत अगले दस मिनट में हुआ जब चंद्रेश के लंड के रस ने नीलम की प्यासी चूत की धरती पर वर्षा की और उसे ठंडा कर दिया.
झड़ने के उपरांत चंद्रेश भी हट गया और सोफे पर प्रकाश के पास जाकर बैठ गया. नीलम बहुत देर तक यूँ ही पड़ी रही और अपने दोनों छेदों से उठ रही आनंद की लहरों का सुख लेती रही. फिर वो भी उठी और दोनों चुड़क्कड़ भाइयों को देखा जो अब सोफे पर बैठे पेग मार रहे थे. उसने उनके मुरझाये लौंड़ों को देखा जो अब भी उसके रस से चमक रहे थे. वो उठी और उनके सामने बैठकर उनके लौंडों को चाटने लगी. अपने दोनों छेदों के स्वाद पाने के बाद उसने सिर ऊपर उठाकर उन्हें देखा. चंद्रेश के हाथ में उसके लिए एक पेग था. नीलम ने उसे लिया और एक ही घूँट में समाप्त कर दिया।
चंद्रेश उसके लिए एक और पेग बनाने लगा, नीलम उठकर उन दोनों को सरका कर उनके बीच में बैठ गई.
“बहुत दिन बाद ऐसी चुदाई हुई है. बहुत मजा आया आप दोनों के साथ.” अपने अगले पेग को लेते हुए उसने कहा.
“हम दोनों को भी.”
“अब अगले राउंड के लिए आपको कितना समय चाहिए” नीलम ने उनसे हँसते हुए पूछा.
“लालची.” चंद्रेश ने कहा, “बस कुछ ही देर ठहरो फिर तुम्हारी माँ चोद देंगे.”
******************
इस प्रकार से दो नगरों के चार कमरों में चुदाई की शृंखला पूर्ण हुई. अगले तीन दिनों तक नीलम और सिया की चंद्रेश, प्रकाश और हितेश ने भरपूर चुदाई की. उसके बार वो योजना के अनुसार नीलम को लेकर उसके घर के लिए निकल पड़े. प्रकाश को अभी ज्ञात नहीं था पर उसके जीवन में एक बड़ा परिवर्तन आने वाला था. उसने नए नगर में व्यवसाय को स्थापित करने की योजना को सहर्ष स्वीकार कर लिया था. उसके मन में ये भी विचार था कि अब सिया अगर छूट भी गई तो दिया और कनिका तो मिल जाएँगी. फिर उसका ध्यान आकाश और आकार की सेक्रेटरी की ओर भी गया. उसे विश्वास था कि उसे उन दोनों के साथ भी चुदाई का अवसर अवश्य मिल जायेगा.
“वैसे भी मैंने भाई भाभी को कभी अकेले नहीं रहने दिया. अब ये दोनों भी एक दूसरे के साथ मन लगाकर रह पाएंगे.” उसे मन में एक विचित्र सी शांति का अनुभव हुआ. “काश मेरा भी कोई साथी होता जिसके लिए मेरा भी जीवन समर्पित होता.”
उसके मन की इच्छा कितने शीघ्र पूर्ण होने वाली थी अगर उसे इसका आभास होता तो उसकी मन की शांति में संतुष्टि भी जुड़ जाती.
चार घंटे बाद पाँचों संभ्रांत नगर में नीलम के बंगले पर पहुंच गए.