You dont have javascript enabled! Please enable it! बहन के साथ यादगार यात्रा - Update 14 | Incest Sex Story - KamKatha
बहन के साथ यादगार यात्रा - Incest Sex Story

बहन के साथ यादगार यात्रा – Update 14 | Incest Sex Story

भाग 14

यह कहते हुए संगीता दीदी ने मुझे उठाया और सीट पर बैठा दिया । फिर वो भी मेरे पास बैठ गई और फिर से मेरे हाथ को उठाते हुए मेरी कांख को चाटने लगी | चाटने के साथ-२ वो अपनी हथेली को मेरे सीने पर घुमा भी रही थी | कभी वो अपना हाथ मेरे पेट पर ले आती और फिर से ऊपर उठाते हुए मेरे सीने के बालों से खेलने लगती | अपनी जवान बहन के हाथ के स्पर्श से मैं बहुत ही कामुक हो गया था। मेरा सख्त लंड मेरी पैंट के ऊपर से साफ़ दिख रहा था । अगर संगीता दीदी देख लेती तो उससे तुरंत पता चल जाता की उसका भाई कितना उत्तेजित हो रखा है | लेकिन मुझे अब कोई परवाह नहीं थी । बल्कि इसके विपरीत मैं तो चाहता था की वो अपने भाई के विशाल लंड को देखे इसलिए मैंने अपने उभार को छिपाने की कोई कोशिश नहीं की ।

एक बार फिर से संगीता दीदी अपना हाथ घुमाते हुए नीचे ले गयी | इस बार उसका हाथ थोड़ा ज़्यादा की नीचे चला गया और मेरे लंड से छू गया । मुझे एक दम से 440 वोल्ट का झटका लगा और मस्ती से मेरी आँखें बंद हो गयी | उसने अपना हाथ वापिस ऊपर कर लिया और छाती पे फिराने लगी | कुछ ही पलों में उसका हाथ वापिस से नीचे खिसक गया और अब दीदी मेरे लंड पे अपना हाथ फिराने लगी | मैंने धीरे से अपनी आँखें खोलीं और उसकी तरफ देखा । संगीता दीदी मुस्कुराते हुए मुझे ही देख रही थी | उसका हाथ धीरे धीरे मेरे लंड को पैंट के ऊपर से सहला रहा था जैसे की मेरे लंड के साइज को कड़कपन का अंदाजा लगा रही हो |

दीदी: ओह भाई, तुम तो बहुत उत्तेजित हो रखे हो |

मैं (शरमाते हुए): वो तो ….. दीदी बस ऐसे ही |

दीदी: अरे .. शर्माने की क्या बात है …अच्छा खासा तो है तुम्हारा लंड | ऐसे लंड की तो लोग नुमाइश करते हैं, और तुम हो की शर्मा रहे हो |

संगीताई के उन शब्दों ने मुझे भोचक्का कर दिया था | दीदी मेरे खड़े लंड को देख के गुस्सा नहीं हुई उल्टा उसे सहला रही थी | मैं आश्चर्यचकित था कि वह कितनी आसानी से ‘लंड’ जैसे शब्द को बोल रही थी । उसके मुंह से ऐसे शब्द मैंने पहले कभी नहीं सुने थे | मैं उसके इस खुलेपन से हैरान था । माना की मैं उसके खुलेपन से हैरान हो गया था लेकिन लंड की तो शायद अपनी ही अलग दुनिया था | उसके मुंह से लंड सुन के, मेरे लोडे ने भी एक झटका मारा | दीदी का हाथ अब भी मेरे लंड पर घूम रहा था ।

“यह … अब मैं क्या कहूं दीदी” मैं आगे कुछ नहीं कह सका।

दीदी: भाई, इसमें शर्म की बात है | मैं समझ सकती हूँ | इतना कुछ हो रहा है तो तेरा लंड टाइट नहीं होगा क्या।

ओह, तो ये बात | उसके ये बात सुन के मैंने मन बना लिया था की अगर दीदी इतना खुलकर के पेश आएगी तो मैं भी पीछे नहीं हटूंगा, मैं भी खुल के पेश आऊंगा |

दीदी: अच्छा भाई … एक बात बता … तू मेरे चाटने से ज़्यादा उत्तेजित हुआ है या मेरे बोबों को देख कर ?

मैं (बिना हिचकिचाहट के, पूरी बेशर्मी से): दोनों से, दीदी

दीदी (सेक्सी लहजे में): ओहो …. तब तो तुम्हारे लंड का कुछ करना पड़ेगा … नहीं तो खड़ा-२ कहीं दर्द न करने लग जाये बेचारा ।

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