You dont have javascript enabled! Please enable it! कर्ज और फर्ज | एक कश्मकश - Update 10 - KamKatha
कर्ज और फर्ज एक कश्मकश - Erotic Family Sex Story

कर्ज और फर्ज | एक कश्मकश – Update 10

घर पे दस्तक

देते ही हमारे सामने अपने गीले बालों को तोलियाँ से लपेटे हुए, और बालों की दो लटो से टपकती हुई पानी की छोटी छोटी बूंदे जो सीधे गोरे गोरे मुलायम गालो को चूम रही थी, माथे पर छोटी सी चमकती हुई पीली रंग की बिंदी, कानों में छोटे छोटे पीले रंग की झुमकी, आँखों में हल्का काजल, तोते जैसी छोटी सी नाक में सोने की छोटी सी rounded nose ring. होंठो पर हल्की होंठो के रंग से मैच करती हुई गुलाबी रंग की लिपिस्टक लगाए पीली साड़ी और बिना बाह वाले ब्लाउस के clevage में दिख रहे स्तनों की घाटी में मुसुकरति हुयी कुसुम ने दरवाजा खोला।

‘आ गये वापस आख़िर तुम दोनों…’ कुसुम ने मुस्कुरा कर कहा, लेकिन उसकी आवाज़ में ताना या हल्का सा व्यंग्य भी था, ज़ाहिर था कि कुसुम फोन पर रिंकी का व्यवहार भूली नहीं थी.

फिर रिंकी थोड़ा सकुचा कर अपनी मम्मी की तरफ़ बढ़ी, और कुसुम के गले लग गयी,

कुसुम फिर से रिंकी से ताना मारते हुए बोली क्यो फोन पर तो मेरी मम्मी बन रही थी अब क्या हुआ।

‘ओह, मम्मा…’ उसने अपने माँ को बाँहों में भरते हुए कहा, ‘आइ एम सो सॉरी…’

‘अरे…’ कुसुम उसके बदले स्वरूप से अचंभे में थी, फिर संभल कर मुस्कुराई और उसे फिर से गले लगाते हुए बोली, ‘कोई बात नहीं…कोई बात नहीं, चलो भी अब, अंदर नहीं चलना?’ और हम घर के अंदर पहुँच कर अपने अपने रूम में चले गए। मैने अपने सारे कपड़े उतारे और चड्डी बनियान में बिस्तर पर लेट कर ट्रेन के कांड के बारे में सोचने लगा। और सोचते हुए ही एक गहरी नींद के आगोश में चला गया।

जब मेरी आंख खुली तो घड़ी की सुई 9 बजा रही थी, मैने अपने आस पास नज़र दौड़ाई तो कुसुम बेडरूम मै नही थी, मै फ्रेश होने के लिए बाथरूम में गया और लगभग 1 घण्टे में कॉलेज जाने के लिए बिल्कुल रेडी हो गया ,अब सिर्फ नाश्ता करना ही बाकी रह गया था।

मै ब्रेकफास्ट करने के लिए हॉल में गया और कुर्सी पर बैठ गया पास ही मेरे पापा अखबार पढ़ रहे थे। मैने पापा को गुड मॉर्निंग विश किया तो पापा ने अखबार लपेटते हुए मुझसे पूछा अरुण मेरी प्यारी नातिनि रिंकी के साथ क्या किया है तुमने। मै पापा का सवाल सुनकर डर गया।

मुझे लगा है रिंकी ने ट्रेन कांड के बारे में सबको सबकुछ तो नही बता दिया।
मेरा दिल धक धक करने लगा….. मेरे हाथ पांव फूलने लगे…… मैने अटकते हुए कहा नही तो, क्यो क्या हुआ उसने कुछ कहा है क्या।

मैने सोचा कि रिंकी अपने कमरे में से बाहर आये इससे पहले मैं रिंकी से नज़र बचाकर सीधा कॉलेज के लिए निकल लेता हूँ इसलिए मै दबे पांव दरवाज़े की ओर बढ़ने लगा

“अरे, आप कहाँ जा रहे है, नाश्ता तो कर लीजिए” कुसुम किचन से निकलती हुई मुझको बाहर जाता देख बोली

“क क क …….कुसुम……वो वो….म…..कॉलेज में ही कर लूंगा नाश्ता……तुमम्म चिंता मत करो” मै घबराता हुआ बोला

“नहीं कोई जरूरत नही है आफिस में नाश्ता करने की , आप यही नाश्ता करके जाओ, बाहर की चीज़ें ज्यादा नही खानी चाहिए वरना बीमार पड़ जाओगे, चलिए आइए इधर, मैं अभी आपके लिए प्लेट लगाती हूँ…..” कुसुम ने लगभग आर्डर देते हुए अंदाज़ में कहा

अब मेरे पास भी कोई चारा नहीं था…. इसलिए मै हारकर वापस टेबल की तरफ बढ़ने लगा……एक बार फिर मेरा दिल धक धक करने लगा….. मेरे हाथ पांव फूलने लगे…… मै धीरे धीरे चलता हुआ टेबल की तरफ आया और जाकर अपनी सीट पर बैठ गया……मेरी नज़र अभी भी नीचे की ओर झुकी हुई थी……

मेरे पापा फिर से बोले अरुण मेरे सवाल का जबाब नही दिया तुमने। मैने कुसुम की ओर देखा और एक लंबी सांस लेते हुए बोला पापा आप अपनी लाडली नातिनि को बुलाये फिर मै बताता हूँ।

पापा बोले वो तो स्कूल चली गयी है और मै इसलिए तुमसे पूछ रहा हूँ कि जब से आई है तब से उदास है।

कुसुम पापा की बात कट करते हुए बोली अरे पापा जब रिंकी का कोई पेपर या टेस्ट बिगड़ जाए तो वो एक दिन तक ऐसे ही उदास रहती है, रिंकी की ये शुरू से आदत है। वो हर काम को कुछ ज्यादा ही दिल से
लगा लेती है और काम बिगड़ जाए तो उसकी यही नौटंकी शुरू हो जाती है।

मुझे कुसुम की बात सुनकर मेरी जान में जान आ गयी।

और मै नास्ता खतम करके कॉलेज के लिए निकलने लगा तो कुसुम बोली आज बड़ी ही जल्दी में हो। मै भी चल रही हूँ ना साथ में, मुझे आगनबाड़ी केंद्र छोड़ने में क्या आपको शर्म आती है। मैने कहा तो फिर चलो ना बातें क्यो बना रही हो।

मै और कुसुम बाइक पर बैठकर चल दिये। उसके बदन से निकलने वाली perfume की खुशबू और कुसुम के ब्लाउस में कसे हुए स्तनों का अहसास मुझे अपनी पीठ पर होने लगा। कुसुम ने अपने मुह को मेरी गर्दन के पास लाकर मुझसे बोली आपको क्या हो गया है मैने कहा मुझे क्या हुआ है।

कुसुम बोली बात बात पर ऐसे react कर रहे हो जैसे कोई कांड कर दिया हो और मुझसे छिपा रहे हो। मैने कहा अटकते हुए कहा क क कैसा कांड मेरी हालत देखकर कुसुम जोर से हस्ती हुई बोली हाहाहा हाहाहा अरुण जी मै मजाक कर रही हूँ, इतने चुप और शांत मत रहो, बेटी के पेपर बिगड़ने की टेंशन मत लो। और बेटी को भूलकर जरा बाइक पर बैठी खूबसूरत बीवी पर ध्यान दो।

मैने कहा कुसुम मैडम खूबसूरत बीवी पर रात को बेड पर ध्यान दिया जाता है दिन में नही। वैसे भी तीन दिन हो गये है धमाल किये हुए। कुसुम मुझसे चिड़ते हुए बोली मुझे आपकी की यही बात पसन्द नही है हर बात सीधे बिस्तर पर क्यो ले जाते है। आपके दिमाग मे हमेशा बस बिस्तर की ही बात आती है। आप तो पढे लिखे हैं, आपको ये भी नही पता बेडरूम की बातें बेड पर अच्छी लगती है।

मै मजाक में कुछ बोली आप क्या बोल रहे हो। आपकी पत्नी हू मै और पत्नी सिर्फ पति का बिस्तर गरम करने के लिए नही होती है। सुबह से आपका चेहरा उतरा हुआ देखकर थोड़ा हँसाने की कोशिश कर रही थी मै।

वो गुस्से के अंदाज से बोली
चलो उतारो मुझे मेरा केंद्र आ गया, जाते जाते वो फिर मेरी तरफ देखने लगी और रुक गयी मैने कहा अब क्या हुआ तो वो बोली sorry. मै कुछ ज्यादा ही बोल गयी।अरुण सुनो अगर रिंकी के पेपर की वजह से आपका मूड खराब मत करो। Next time वो जरूर पास कर लेगी, बाय और हा थोड़ा हस भी लो।

मै कुसुम को ड्रॉप करने के बाद अपने कॉलेज में चला गया।

मेरा कॉलेज में पढ़ने पढाने का मन नही कर रहा था।

जब से रिंकी के साथ मेरा वो ट्रेन वाला कांड हुआ था, मुझे घर और बाहर मे किसी से ज्यादा बात करने का मन नही था। मुझे रिंकी की पीड़ा और ग्लानि मन ही मन खाये जा रही थी।

इसलिए जल्दी छुट्टी लेकर मै शहर से दूर एकांत में बैठकर सोच रहा था।

पूरा दिन हो गया था और शाम होने वाली थी। बड़े बुरे बुरे ख्याल आ रही थे अगर रिंकी और मेरे बीच हुए कांड की बात कुसुम को पता चल गयी तो क्या होगा। मै अपनी पत्नी कुसुम के गुस्से को भी जानता था। मुझको पता था कि शायद कुसुम कभी माफ न करे। और माफ तो छोड़ो वो मुझे साफ ना कर दे। कभी कभी मै सोचता कि मुझे रिंकी के साथ दिमापुर जाना ही नहीं चाहिए था। ना मै दिमापुर जाता और ना मेरे मन मे अपनी बेटी रिंकी के लिए कोई बुरा ख्याल आता।

पर होनी को कौन टाल सकता था। जो हुआ सो हुआ। पर अब मैने मन ही मन ये निश्चय कर लिया कि मै अपनी गलती का पश्चाताप करूँगा। मै रिंकी से जितना दूर हो सकता है, रहने की कोशिश करूँगा।

शाम के 7:00 बजने वाले थे, मैने सोचा कि कुसुम को फ़ोन करके आज टाइम पर घर ना आने की कह देता हूँ, वरना वो मुझसे गुस्सा होगी, ये सोचकर मैने अपना मोबाइल निकाला और कुसुम को कॉल लगा दिया।

कुसुमु – हेलो

मै – हेलो, हाँ कुसुम क्या कर रही हो

कुसुम – कुछ नहीं बस खाना बना रही हूं

मै – अच्छा सुनो, मैने इसलिए फ़ोन किया था कि तुम्हे बता दूँ , आज मैं जल्दी घर नही आ पाऊंगा,

कुसुम- अरे क्यो कुछ काम है क्या,
मै- नही ऐसी बात नही है।

कुसुम– थोड़ी प्यारी सी आवाज में ऐसा है अरुण सर जब कोई काम नही है तो फिर घर जल्दी आना चाहिए और वैसे भी मैने आपके पंसंद की डिश बनाई है। समझ रहे हो ना।

मै – अरे वाह आज सूरज पश्चिम से उग आया क्या, जो इतने प्यार से घर आने की बात कर रही हो।

कुसुम — खींजते हुए बस हो गया शुरू आपका।
मै कितने प्यार से बात कर रही हूँ और आप डाइलोग मार रहे हो, ये अपनी कॉलेज की टीचरि मुझ पर मत झाड़ा करो।

मै – अरे कुसुम ऐसी बात नहीं, अच्छा सुनो मैं 8:00 बजे तक आ जाऊंगा

कुसुम – चलो ठीक है, बाय
मै – बाय

“”मुझे कुसुम का स्वभाव आज तक समझ नही आया था कि हाल ही उसका पारा गरम हो जाता है और हाल ही नरम “”

मै अब घर जाने के लिए निकल पड़ा पर मेरे मन मे हल्का हल्का डर तो था पर मेरे पास और कोई विकल्प भी नहीं था, आज नहीं तो कल मुझे अपनी बेटी रिंकी का सामना करना ही पड़ेगा, इसी उधेड़बुन में लगा मै जल्दी ही अपने घर पहुंच गया, मैने अपनी गाड़ी खड़ी की ओर घर के अंदर आ गया,

जैसे ही रिंकी ने घर के बाहर गाड़ी की आवाज़ सुनी, उसका दिल जोरो से धड़कने लगा, उसके शरीर मे हज़ारो चींटिया सी रेंगने लगी, वो धड़कते दिल के साथ अपने कमरे से बाहर निकली, और सीढ़ियों से नीचे उतरते हुए हॉल की तरफ बढ़ने लगी,

मै सोफे पर सीढ़ियों की तरफ मुंह करके बैठा था, मेरी नजरे भी सीढ़ियों की तरफ थी, इसलिए मै रिंकी को आते हुए देख पा रहा था, मेरे पापा मम्मी भी साथ बैठकर अपनी इधर उधर की बाते बता रहे थे,

रिंकी शर्म के मारे आंखे झुकाए हुए स्लो मोशन में ऐसे आगे बढ़ रही थी कि मानो वो अपनी सुहागरात की सेज की तरफ बढ़ रही हो, जैसे जैसे वो नज़दीक जा रही थी उसे अपनी सांसे भारी होती महसूस हो रही थी,
अब वो सोफे के बिल्कुल पास आ गई ।

“पापाआआआ…………..” रिंकी ने कांपते होठों से मुझ को पुकारा

मेरे सामने रिंकी अपनी पलके झुकाए खड़ी थी,

“आज उसकी सुंदरता में चार चांद लग गए थे, उसकी काली झील जैसी आंखे , तीखे नैन नक्श, पतले गुलाबी होंठ जिनका मै दीवाना बन चुका हूँ , वो ऐसे खड़ी थी मानो अजंता की कोई मूरत ” मैने रिंकी को देखा तो देखता ही रह गया, मेरे मुंह से शब्द ही नही निकल रहे थे,

अभी थोड़ी देर पहले जिस रिंकी से मै दूर रहने की सोच रहे था उसके चांदी जैसे खूबसूरत बदन को देखकर मेरा मन एक पल के लिए डोल गया पर दूसरे पल ही मुझे अपने से किया हुआ वादा याद आ गया कि अब मै रिंकी से जितना दूर हो सके रहूँगा, और मैने तुरंत अपनी धोखेबाज़ नज़रो को रिंकी पर से हटा लिया,

“पापाआआआ……आप कैसे हो…………???? ” रिंकी ने दोबारा अपनी पलके झुकाए ही पूछा

“ममम्मम मैं……ठीक हूँ…. रिंकी……तुम्म्म्म्म कैसी हो…..” मैने अपनी पूरी हिम्मत समेटकर पूछा

“मैं भी ठिक्क हूं… पापा” रिंकी ने जवाब दिया

“तुम्म्म्म्म बैठो, मैं थोड़ा हाथ…मुंह धोकर आता हूँ रिंकी …….” मैने कांपते हुए कहा और बिना नज़रे फेरे ही सीधा अपने रूम में चला गया।

अंदर कमरे मे आकर मै सीधा बाथरूम में घुस गया…..और हथेलियों से पानी अपने मुंह पर मारने लगा, मुझे ऐसा महसूस हो रहा था मानो कहीं दूर से भागकर आ रहा हूँ, मेरी हार्ट बीट तेज़ हो गई थी, मुझे पसीना आने लगा, मैने तुरंत अपने कपड़े निकाले और शावर के नीचे आकर खड़ा हो गया।

शावर से निकलती पानी की बूंदे जब मेरे शरीर को भिगोने लगी तो मुझको कुछ रिलैक्स महसूस होने लगा

मै अपनी ख्यालो की सवालों वाली दुनिया में अपने आपसे बात करने लगा।

” चिंता मत कर अरुण, सब ठीक हो जाएगा…. देख रिंकी ने खुद तेरे से आकर बात की, इसका मतलब शायद वो मुझे माफ कर चुकी है…… हो सकता है समय के साथ उसकी नफरत कम हो गई हो……..तू बस उससे आराम से बात कर…… जितना कम हो सके उतनी ही बात कर ….हो सकता है वो मुझे एक और मौका दे दे अपनी गलती सुधारने का…..

नहीं नहीं वो अपनी मम्मी कुसुम की तरह गुस्सेल है…. वो मुझे कभी माफ नही करेगी…..अगर उसने कुसुम को बता दिया तो……..

नहीं वो कुसुम को नही बताएगी….अगर बताना होता तो अब तक बता चुकी होती…..शायद वो तुझे सुधरने का एक मौका दे रही है….इस मौके को मत गंवाना …..”

मै अपने अन्तर्मन से बाते कर रहा था।

नहाने के बाद मैने अपना पजामा पहना ओर ऊपर टीशर्ट डालकर वापस हॉल की तरफ बढ़ने लगा, कुसुम ने अब तक खाना लगा दिया था, सभी लोग मेरा ही इंतेज़ार कर रहे थे,

मै आकर सीधा अपनी कुर्सी पर बैठ गया मेरे एक तरफ कुसुम और पापा थे तो दूसरी तरफ रिंकी और मम्मी।

कुसुम ने सबकी प्लेट्स में खाना सर्व किया, सबने खाना खाना शुरू कर दिया….रिंकी और मै दोनों ही बिल्कुल धीरे धीरे खाना खा रहे थे, मेरे तो निवाला बड़ी मुश्किल से गले से नीचे उतर रहा था…

रिंकी अपने पापा के इतने पास बैठकर मेरे जिस्म से निकलती गर्मी को महसूस करने की कोशिश कर रही थी, रिंकी मुझको अपने नज़दीक पाकर उसके बदन में हल्की हल्की चिंगारियां सी फुट रही थी …वो प्यासी निगाहों से बस मुझको ही देख रही थी,

अजीब सी विडंबना थी आज रिंकी मुझे कुछ ज्यादा ही प्यासी निगाहों से देख रही थी और मै उससे बचने की कोशिश कर था।

सही बात ही है ” जैसा बाप वैसी बेटी”

अरे तुम दोनों इतने चुप क्यों हो, कोई झगड़ा हुआ है क्या तुम दोनों का” मेरी मम्मी ने मेरी और रिंकी को इशारा करते हुए कहा

” नहीं….तो दादी ….. ऐसी तो कोई बात नही” रिंकी झिझकते हुए बोली

“हां मम्मी ऐसी कोई बात नही है” मै भी लगभग रिंकी के साथ ही बोल पड़ा

कुसुम ने मुझे चिढ़ाते हुए कहा
“तो फिर इतनी चुप्पी क्यों है , कल तक तो आप दोनों की चपर चपर बन्द ही नही होती थी और अब देखो जैसे एक दूसरे को जानते ही नही हो”

मै तो बिल्कुल सुन्न हो चुका था, मुझे समझ नही आ रहा था कि क्या बोलू, पर इससे पहले की मै कुछ बोलू, रिंकी बीच मे बोल पड़ी

” अरे मम्मी, हमेशा आप ही बोलती हो खाते टाइम ज्यादा बात नहीं करनी चाहिए, आप चिंता मत करो, मैं पापा को इतना सताऊंगी, इतनी बाते करूंगी कि इन्हें खुद मुझे चुप कराना पड़ेगा” रिंकी ने बात सम्भालते हुए बड़े ही शातिर तरीके से जवाब दिया और मेरी तरफ तिरछी नज़रो से देखने लगी।

रिंकी की बात सुनकर बाकी लोग तो हसने लगे पर मेरी हालत खराब हो गई, मुझे समझ नही आ रहा था कि मै क्या करू इसलिए मै भी बेमन से थोड़ा सा मुस्कुरा दिया, पर मेरे माथे पर शिकन की लकीरें उभर आई,

मै रिंकी के इस बदले हुए रूप से फिर हैरान हो गया।

मैने खाना खा लिया, ऐसे भी मै अक्सर कम ही खाता हू, सो मै उठकर किचन की तरफ हाथ धोने बढ़ा, पर इससे पहले की मै आगे बढ़ पाता रिंकी ने भी उठकर बोला कि उसका खाना हो गया है और वो तेज़ तेज़ कदमों से चलते हुए मुझसे पहले ही किचन में घुस गई,

उसे किचन में जाता देख एक बार तो मै ठिठका पर मुझे हाथ तो धोने ही थे सो मै भी अंदर की ओर चल पड़ा,

रिंकी किचन में हाथ धो रही थी, मै उससे थोड़ा दूर जाकर ही खड़ा हो गया
रिंकी ने वाशबेसिन में हाथ धोने से पहले अपनी कुर्ती को साइड में कर लिया , जिससे उसकी सुंदर सी गांड उभरकर सामने आ रही थी, मेरी धोकेबाज़ नज़रे तुरंत रिंकी की ठुमकती गांड की तरफ उठ गई, मुझ पर जैसे बिजली सी गिर पड़ी,
उधर रिंकी जान बूझकर हाथ धोते समय अपनी कमर और गांड को होले होले हिला रही थी,

मैने तुरंत अपनी नज़रे दूसरी तरफ फेरनी चाही पर इससे पहले की मै अपना चेहरा घुमा पाता, मुझ पर एक और गाज गिर पड़ी, रिंकी ने अपना रुमाल नीचे गिरा दिया और अब वो उसे हटाने के लिए झुकी तो

उसकी पतली सी लिंगरी उसकी मांसल जांघो से बिल्कुल चिपक गयी थी, और स्ट्रेच होने की वजह से लिंगरी हल्की सी पारदर्शी हो गयी थी, जिसमे से उसकी ब्लू कलर की छोटी सी खूबसूरत पैंटी मेरी आंखों के सामने आ गयी, उसकी मोटी सी मांसल गदरायी गांड पर उस छोटी सी पैंटी को देखकर मेरी सांसे ऊपर की ऊपर और नीचे की नीचे रह गयी, मेरा चेहरा गरम होने लगा, मुझे अपने लन्ड में तनाव महसूस होने लगा,और जल्द ही लंड विकराल रूप ले लिया जिससे मेरे पाजामे में उभार बन गया,

रिंकी जानबुझकर रुमाल उठाने में ज्यादा वक्त लग रही थी, उसने कनखियों से मेरी ओर देखा तो पाजामे में मेरे लन्ड का उभार उसकी आँखों से छुप नहीं पाया, और उसके चेहरे पर एक शातिर हंसी आ गयी।

मुझ से अब ओर ज्यादा बर्दास्त नही हो रहा था, मेरा लन्ड पूरा उफान पर आ चुका था पर मै ये जनता था कि अगर रिंकी ने मुझे इस हालत में देख लिया तो गज़ब हो जाएगा, और उसकी नफरत जो थोड़ी बहुत कम हुई है वो दोबारा बढ़ जाएगी, इसलिए इससे पहले की रिंकी देखे मै तुरन्त वहां से हटा और अपने लंड के उभार को छुपाते हुए अपने कमरे की तरफ चल पड़ा
कमरे में आते ही मै सीधा बाथरूम में घुस गया, और जल्दी जल्दी अपने हाथ धोने लगा

और अपने आपको कोसने लगा
तू पागल है क्या अरुण, एक बार जो गलती हो चुकी है और अब दोबारा वही गलती करने जा रहा था, अगर रिंकी तेरे लंड का उभार देख लेती तो

” मेरे अन्तर्मन से आवाज़ आई

अब डर के मारे मेरा खड़ा हुआ लन्ड वापस बैठने लगा पर रिंकी के इस गांड दर्शन ने मेरे अंदर के मर्द को जगा दिया था,

मै अपने कमरे में बिस्तर पे आकर लेट गया। कमरे के छत की ओर देखते हुए मुझे बार-बार रिंकी का ध्यान आ रहा था।

मुझे मन ही मन रिंकी के जिस्म की छुअन याद आ रही थी। उसकी मांसल नितंबो पे मेरे हाथ, और उसकी वो नरम कसे हुए स्तनों की हलकी सी झलक।।

मुझको ये सब सोचना अच्छा लग रहा था, रिंकी के बारे में सोचते हुए मैने एक करवट ली और बिस्तर पे रखे तकिये के ऊपर अपनी टाँग चढा ली। अपने कमर से तकिये में दबाव ड़ालने लगा, मुझे तकिये में दबाव डालना अच्छा लग रहा था। कुछ देर तकिये में अपनी कमर का फ्रंट भाग रगडने के बाद मेरा ध्यान गया की मेरे लंड में हलकी-हलकी इरेक्शन आ गई है।
और मुझे मुट्ठ मारने का मन होने लगा। मै पेंट के ऊपर से अपने लंड को पकड़ रगडने लगा, लेकिन अभी उसका इरेक्शन ख़तम हो गया था,

उधर बाकी लोगों ने भी खाना खा लिया था और अपने अपने रूम में चले गए, कुसुम ने बर्तन साफ किये और बाकी छोटा मोटा काम खत्म करके रूम में आ गयी।

जारी है।

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