You dont have javascript enabled! Please enable it! पापी परिवार की पापी वासना - Update 76 | Incest Story - KamKatha
पापी परिवार की पापी वासना – Dirty Incest Sex Story

पापी परिवार की पापी वासना – Update 76 | Incest Story

76 अंतिम अध्याय

टीना जी स्वयं अपने ऑरगैस्म की प्राप्ति के निकट थीं। जिस कोण से जय का लिंग उनकी गुदा में प्रविष्ट हुआ था, और उनके पुत्र के पुरुषांग की विलक्षण मोटाई के फलस्वरूप उनके चोंचले पर बेहतरीन मालिश जारी थी। शीघ्र ही, पापमय लैंगिक आनन्द की लहरों पर लहरें उनके तन बदन में उमड़ने लगीं। जैसे-जैसे उनका बलिष्ठ पुत्र उनकी संकरी जकड़ती गुदा के भीतर और अधिक बलपूर्वक तथ अधिक गहरा ठेलता जाता, टीना जी अपने स्नायुओं में तीव्र कामोन्माद के गुबार को पनपता हुआ महसूस करने लगी थीं।।

“हरामजादी, जय हाँफ़ कर बोला, उसका लिंग माता की गुदा को छेदता जा रहा था। “आज तो गजब की टाइट हो मम्मी !

“जानती हूँ जानेमन वे खिलखिलायीं। “पर तू अपनी बेचारी माँ की गाँड की अच्छी खींचतान कर रहा है, क्यों बे, माँ के बड़वे ?”

टीना जी ऊत्तेजित होकर अपनी टुंसी हई गुदा को उचका-उचका कर पुत्र की रौन्दती छड़ के विपरीत झटकने लगीं। उनके वासना से ओतप्रोत बदन के रोम-रोम में पाप भरा दैहिक आनन्दप्रवाह होने लगा। जब-जब वे अपने कुलबुलाते नितम्बों को पुत्र के ठेलते लिंग पर दे पीटतीं, उनके परालौकिक आनन्द की तीक्षणता बढ़ती जाती।

“ऊ ऊ ऊ ऊह, जय, मेरे लाल !” वे हाँफ़ीं, और बेक़रारी से अपनी गुदा को पुत्र के कौन्धते लिंग पर घुमाने लगीं। “हे ईश्वर, कितना मोटा, कितना सॉलिड है तेरा ये लौड़ा :: ऊ ऊहहहहहहह! मादरचोद, मैं झड़ने वाली हूँ! ::: मैं झड़ने वाली हूँ! चोद साले! चोद कस के रन्डी की औलाद !” ।
जय माँ के तन पर आगे हाथ बढ़ाकर उनके सुडौल गोलाकार स्तनों को दबोचा और गुदामैथुन की गति को और अधिक कर दिया।

ओहहह, सदके जावाँ! ओ ओहहह, मादरचोद! उहहहहहह! चोद अपनी माँ को !” टीना जी निर्लज्जता से अपने नितम्बों को फटकती हुई बिलबिलायीं।।

जय अपना एक हाथ माँ के स्तनों पर से हटा कर उनकी टाँगों के बीच डाला और उनके फड़कते हुए चोंचले को अपनी उंगलियों से रगड़ता हुआ उन्हें चरम लैंगिक आनन्द देने लगा। | माता की वासना लिप्त चीखों से उत्साहित होकर, और अपनी देह की अति – तीव्र क्षुधा से पागल होता हुआ जय उनकी कोमल कुलबुलाती गुदा में निर्दयतापूर्वक लम्बे सशक्त झटके मार-मार कर प्रहार कर रहा था, जिनके कारणवश उसकी माँ की सुडौल छरहरी देह थरथरा उठती थी, उनकी सम्मिश्र काम-क्रीड़ा के प्रभाव से माता-पुत्र की देह झकझोर रही थीं। | टीना जी के बलशाली ऑरगैस्म के कुछ ही सैकन्ड के अंतराल बाद उनकी कस के जकड़ती गुदा की माँसपेशियों ने जय को भी सैक्स तृप्ति के शिखर पर ला दिया और वो भी एक पाश्विक नाद करता हुआ उनकी गुदा में वीर्य स्खलन करने लगा।

। “आहहहहहहहह! रन्डी मम्मी! देख मैं तेरी गाँड में झड़ रहा हूँ! ले अपनी औलाद का वीर्य अपनी गाँड में ! ले चुकाया मैने तेरे दूध का कर्ज !”

अचानक अपनी कुलबुलाती गुदा में जय के गरम वीर्य की बौछारों का आभास पाकर टीना जी ने अपने नितम्बों को और भी अधिक बलपूर्वक उसके विस्फुटित होते लिंग पर फटकना शुरू कर दिया। वो कामुक माता अपनी लिंग से ठुसी हुई गुदा के भीतर भरती हुई लुभावनी ऊष्मा का पूरा-पूरा आनन्द उठा रही थी क्योंकि उनके सगे पुत्र का वीर्य उनकी गुदगुदाती गुदा को सराबोर कर रहा था। । “ओहहहह, जय !” उन्होंने लम्बी साँस ली। “मार अपने वीर्य की पिचकारी, मेरे लाल। भर दे माँ की गाँड अपने वीर्य से बेटा। दिखा अपने बाप को कि तू भी अब माँ की गाँड मार सकता है! दीपक इसे आशीर्वाद दो !”

हाँ हाँ टीना जरूर! हमारे लड़के ने कितना अच्छा काम किया है आज! बेटा वीर्य बहाओ, चूतों को चोदो! आज तुझे मालूम नहीं, कि मैं और तेरी मम्मी कितनी खुश हैं !” मिस्टर शर्मा ने टिप्पणी की।

जय तो आनन्द के मारे सर से पाँव तक काँप रहा था, वो अपने वीर्य से लबालब अण्डकोष को टीना जी की गुदा के भीतर लगातार खाली करता गया। और जब वीर्य की अंतिम बून्द उसके लिंग के सिरे से टपक गयी, तो लड़के ने अफ़सोसपूर्वक अपने लिंग को माता के वीर्य-भरे गुदा छिद्र से खींच निकाला।

पूरा कमरा सैक्स-क्रीड़ा के अनेक स्वरों से गुंजायमान हो रहा था। सोनिया कुतिया के समान राज के लिंग को पृष्ठ दिशा से ग्रहण किये हुए थी, और मिस्टर शर्मा उसी मुद्रा में डॉली के संग व्यस्त थे, जो अपनी मम्मी की वीर्य से लबालब योनि पर मुखमैथुन कर रही थी। | भोर के पहर तक ऐसी रंगरेलियाँ जारी रहीं, हर संभव मुद्रा में, और हर संभव जोड़े के दरम्यान। और दोनो पापी परिवारों ने उस फ़ार्महाउस को अगले दिल शाम तक नहीं छोड़ा। कभी जोड़े बनाकर चोदते -चाटते , तो कभी त्रिकोणीय सम्भोग करते, और यहाँ तक की कभी-कभी तो चार-चार लोग इकट्ठे सैक्स का आनन्द भी लेते। उन्होंने कामशास्त्र में वर्णित हर सम्भव मुद्रा का उपयोग किया, जिसकी कल्पना उनके वासना से पागल मस्तिष्क कर सकते थे।

जब उनमे से एक थक कर ढेर हो जाता, तो कोई अन्य उसका स्थान ग्रहण कर लेता। उन्हें अपने सैक्स जीवन में एक नवीन स्वतंत्रता का अनुभव हो रहा था, और हर एक को ज्ञात हो गया था कि उनकी जीवन शैली में एक बड़ा परिवर्तन आ चुका है। बिना समाज के बंधनों की परवाह किये, बिना किसी शर्म, ग्लानि अथवा ईष्र्या का अनुभव किये, वे परस्पर अपनी देहों का आनन्द लेने लगे थे। जिसे हमारा समाज पाप की संज्ञा देता है, वह इन दो पापी परिवारों के लिये निष्पाप आनन्द का स्रोत बन चुका था।

समाप्त समाप्त समाप्त समाप्त समाप्त समाप्त समाप्त समाप्त

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