67 तारीफ़
रजनी जी आगे की तरफ़ गिरीं और अपने सर को उसके कन्धे का सहारा देकर जय की बाँहों में सिमटने लगीं। उनके स्तनों के दोनो निप्पल किशोर जय के मजबूत सीने के पुट्ठों में गड़ रहे थे।
“तू भी खासा अच्छा चोद रहा था, जय मादरचोद !”, रजनी जी ने उत्तर दिया, वे जय की बात का अर्थ ठीक प्रकार से समझी नहीं थीं, “अम्म्म्म :: अपनी माँ को चोद – चोद कर तुझे बड़ी उमर की औरतों को खुश कराने के सारे गुरों में उस्तादी हासिल हो गयी है!” ।
सैक्स पश्चात तृप्ति के आनन्द में विलिप्त होकर वे जय के बदन से लिपटती जा रही थीं, और अपनी योनि को उसके फड़कते युवा लिंग पर कसमसाती जा रही थीं।
“मेरा मतलब है कि आप गजब की सैक्सी लग रही हैं !”, वो अपने चेहरे को उनके चेहरे के एकदम करीब लाकर बोला। “सच रजनी आंटी, आप इस वक़्त अपनी उमर से कहीं ज्यादा जवाँ लग रहीं हैं। आपको ऐसा बला का खूबसूरत मैंने पहले तो कभी नहीं देखा।”
रजनी जी उसे देख कर मुस्कुरायीं।। “अरे मुस्टंडे, आज से पहले तूने मुझे कभी चोदा भी है?”
“चोदा तो पहले कभी नहीं पर … पर उम्मीद करता हूँ आगे भी ऐसी सेवा का मौक़ा मिलता रहेगा !”, उसने पूछा।
“क्यों नहीं बेटा, पब्लिक का माल है, जब दिल करे बेधड़क होकर मेरी चूत को चूस लेना, ठीक है ना ?”
रजनी जी ने किशोर जय को अपनी बाँहों में भरा और तन्मयता से चुम्बन लिया, उसके गरम जवाँ होठों से अपने स्वयं के योनि द्रवों के रोमांचक स्वाद का रसास्वादन किया। उन्होंने अपने स्तनों को उसके सीने पर दबाया, और जैसे जैसे उत्तेजना बढ़ी, शीघ्र ही उनके कोमल चुम्बन की तपन में वृद्धि होने लगी। जय अपनी सौन्दर्यवान सैक्सी पड़ोसन आँटी के साथ संभोग क्रिया करने की संभावना पाकर अविश्वस्नीय रूप से रोमांचित होकर सर से पैर तक कांपने लगा था। उसकी अनेक काम कल्पनाओं की नायिका थीं वे, और उनकी गरम टपकती योनि पर मुख मैथुन मात्र से उस कामुक किशोर लड़के की अतृप्त कामवासना तीव्र हो चली थी।
जय का युवा लिंग वज्र सा कठोर हो चला था, और रजनी जी की कुलबुलाती योनि पर पीड़ादायक रूप में फड़क – फड़क कर दस्तक कर रहा था। शीतल जल के अंदर भी, वो अपने लिंग पर उनकी योनि की ऊष्मा का अनुभव कर सकता था। जय ने अपने मुँह को उनके चिपटते नम होठों से जुदा करा और उनके रौशन नेत्रों में झाँक कर देखा। जय के आकर्षक युवा चेहरे पर वासना का स्पष्ट भाव तैर रहा था।
“रजनी आँटी, अब मैं आपको चोद सकता हूँ?, निर्भीकता से उसने पूछा। “आपने वादा किया था कि मुझे चोदने देंगी, और मेरा लन्ड ऐसा फूल गया है, कि बड़ा दर्द कर रहा है!::: देखिये, आप छू कर देखिये ना कैसा मोटा और सॉलिड हो चला है।” जय ने रजनी जी का हाथ अपने हाथों में लेकर जल के नीचे अपने लिंग पर दबा डाला।
हाय ऊपर वाले! ::: इसे कहते हैं लन्ड, बेटा!” रजनी जी के मुंह से सहसा निकला जब उन्होंने अपनी लम्बी पतली उंगलियों को किशोर जय के तने हुए लिंग पर पूरी तरह से लपेट लेने का विफल प्रयत्न किया।
वे उसके आकार को देख बड़ी विस्मित थीं। लगता था इन्सान का नहीं किसी मुए घोड़े का हो! जय उनके स्तनों की मालिश करने लगा।
“रजनी आँटी, मुझे चोदने का एक मौक़ा तो दीजिये !”, जय ने गुजारिश की। “बड़ा मस्त चोदता हूँ, दावे के साथ कह सकता हूँ आपको मेरे लन्ड सा मज़ा और कोई मर्द नहीं दे सकता! एक बार अपनी चूत में मेरे लन्ड को आने तो दीजिये :: बस एक बार, प्लीज? आप जो कहेंगी मैं करूंगा!::: जब कहेंगी, आपकी चूत चाटुंगा और … और … और आपकी इच्छा हो तो गाँड भी मार दूंगा! :: बस रजनी आँटी समझिये कि आपका जैसा हुक्म हुआ, मैं बजा लाउंगा !”
किशोर जय के शब्दों से जो विलक्षण और अश्लील छवियाँ उनके मस्तिष्क में उभर रही थीं, उनकी कल्पना कर के वे आनन्द के मारे कराह पड़ीं। किसी पिल्ले के समान उतावला हो रहा था जय, अपने ठोस किशोर लिंग को उनकी लिसलिसी टाइट योनि में घोंप डालने को कैसा आतुर हो रहा था। रजनी जी इस अनोखे विचार को सोच कर काँपीं, और उन्हें तुरन्त ज्ञात हुआ कि वे भी उसके जितनी ही कामातुर थीं। एक पल भी और प्रतीक्षा नहीं कर पा रही थीं कि उनका हट्टा-कट्टा जवान आशिक़ कब उनके हाथों में पड़े अपने दानवी माँसलता के स्तम्भ को उनकी तरसती योनि की गहनता में घोंप देगा।
ओहहह, हाँ, जय! ::: मेरे ऊपर वाले, हाँ बेटा !”, रजनी जी फुकार कर बोलीं, और फुर्ती से लपक कर उठ खड़ी हुईं।
वे मुड़ीं और जैकूजी के किनारे पर हाथ टेक कर आगे झुक गयीं, उनकी पीठ जय की ओर थी, और टाँगें अत्यंत बेहूदगी से पसारे हुए, किसी मस्त कुतिया के समान अपने तप्त, खुले प्रजननांगों को उसे भेंट स्वरूप प्रस्तुत किये हुए खड़ी थीं। जैसे जय खड़ा होकर उनके पीछे आ खड़ा हुआ, रजनी जी ने गर्दन घुमायी, और सर पीछे पलट कर अपने कंधों के ऊपर से ऊसकी ओर देखा।
| “मुझे चोद डार्लिंग! :: : मार अपना काला मोटा लन्ड मेरी भीगी चूत के अंदर और चोद इस रन्डी कोः .. आ देखती हूँ तेरे लन्ड में कितना दम है! माँ के बड़वे तुझे आज छठी का दूध याद दिला देंगी !” । ।
“माँ क़सम, आज इस सूअरनी की चूत नहीं बजा दी तो गाँड मरवा दूंगा!”, जय भी आत्मविश्वास से बोला और फुर्ती से उनके पीछे अपना आसन ग्रहण किया। उनकी योनि और गुदा को ऐसा हवा में उठा देखकर उसकी आँखें चमचमा रही थीं। उसने दोनों हाथों से उनके ठोस और गोलाकार नितम्बों को सहलाया, वो उस छरहरे माँस को तब तक दबाता और निचोड़ता रहा जब तक रजनी जी तड़प कर कराह उठीं।।
“मुझे चोद डार्लिंग! :: : मार अपना काला मोटा लन्ड मेरी भीगी चूत के अंदर और चोद इस रन्डी कोः .. आ देखती हूँ तेरे लन्ड में कितना दम है! माँ के बड़वे तुझे आज छठी का दूध याद दिला देंगी !” । ।
“माँ क़सम, आज इस सूअरनी की चूत नहीं बजा दी तो गाँड मरवा दूंगा!”, जय भी आत्मविश्वास से बोला और फुर्ती से उनके पीछे अपना आसन ग्रहण किया। उनकी योनि और गुदा को ऐसा हवा में उठा देखकर उसकी आँखें चमचमा रही थीं। उसने दोनों हाथों से उनके ठोस और गोलाकार नितम्बों को सहलाया, वो उस छरहरे माँस को तब तक दबाता और निचोड़ता रहा जब तक रजनी जी तड़प कर कराह उठीं।।
छू कर देख, जय! मेरी चूत पर अपना हाथ रख और देख वो तेरे लन्ड के लिये कैसी तड़प रही है, बेटा !”
जय ने अपना एक हाथ नीचे की ओर, रजनी जी की चौड़ी पटी जाँघों के बीच , बढ़ाया और उनके आग्नेय योनिस्थल को हथेली में भरा, फिर हौले-हौले रगड़ने लगा, और रजनी जी की तप्त भीगी योनि को अपने हाथों में टपकता हुआ अनुभव करने लगा। “अम्म्म्म, गरम और रसीली! आँटी, ये चूत तो अलाव जैसी तप रही है, फिर भी इतनी लिसलिसी है !”
हाँ जय बेटा, मेरी चूत में आग लगी है. जबसे तेरे लम्बे और मोटे लौड़े को देखा है मेरी चूत सुलग रही है, मेरे आशिक़ ! देख ना, कैसे रिस रही है, कि कब तेरा काला लन्ड मेरी लाल चूत में हाजिरी दे, और कब अपने टट्टों से वीर्य उगल कर मेरी चूत की आग को शांत करे! देख मादरचोद, मेरी चूत अर्से से अकेले अपने बेटे के लन्ड से ही काम चला रही थी, अब रन्डियों का भला एक मर्द से पेट भरता है ? मुई रोज नवेले लौड़ों की माँग करती है !”
रजनी जी अब नियंत्रण खो चुकी थीं, उनके सामने खड़े युवक के सुविकसित लिंग के अपनी योनि में घुसने की अपेक्षा भर से वे वासना के मारे पागल हुई जाती थीं। वे अपने योनि स्थल को उसके हाथ पर कसमसाने लगीं, किसी भी तरह से उसकी उंगलियों को अपने तरसते कुलुबुलाते योनि मार्ग में घुसा लेना चाहती थीं।
“या ऊपर वाले, अब मुझे चोद ही डाल ! उंहह! अब और नहीं रुका जाता, जय! :: :: प्लीज मुझे चोद! ::: तुझे रब का वास्ता जय, अपने लन्ड को मेरे अंदर घुसेड़ और मुझे चोदः’ इसी वक़्त !”, रजनी जी ने इस प्रकार तजवीज की, और वे दिल थाम कर प्रतीक्षा करने लगीं कि कब वो अपने लिंग को उनकी योनि में घुसेड़े और कामकला में अपने उस विलक्षण कौशल का प्रदर्शन करे, जिसका सामर्थ्य, रजनी जी विश्वास से कह सकती थीं, कि उस हट्टे-कट्टे नौजवान में अवश्य ही था।
जय ने रजनी जी के सुडौल नितम्बों को दबोचा और अपने भरपूर तने लिंग को उनकी लिसलिसी योनि की
खुली कोपलों के बीच साधा। जैसे जय ने अपने फूले हुए लिंग के सिरे से उन्हें छुआ, योनि के गरम माँसल झोल जैसे लिंग को अंदर की ओर चूसने लगे।
रजनी जी के खुले होठों से वासना की एक धीमी आवाज निकली।
“ओहहह, हाँ! ::: तगड़ा और काला! • और लम्बा ::: और मोटा !”, रजनी जी कराहीं, और अपने कूल्हों को उसकी ओर फटका कर बोलीं, “ऊपर वाले, बस ऐसे ही मेरी चूत को जवाँ-मर्दो के लन्ड बख्शता रहना !”
जय ने अपने सुपाड़े को रजनी जी की गुदा के द्वार पर ऊपर और नीचे कईं दफ़े रगड़ा, उनकी भीगी चूत से प्रारम्भ होकर, उनकी गुदा के द्वार पर और पीठ के निचले भाग तक रगड़ता रहा। रजनी जी ने अपनी कोहनियाँ मोड़ीं और अपने सर और कन्धों को जैकूजी के किनारे पर टेक दिया, इस तरह उनकी लुभावनी गुदा और भी ऊंची उठ गयी, गगन की दिशा में उन्मुख उनकी योनि किशोर जय के टटोलते लिंग को ग्रहण करने के लिये सर्वथा तैयार हो चुकी थी।
जय ने आगे की ओर धकेल कर अपने लिंग को उनके भीतर सावधानी से घुसाने का प्रयत्न किया, पर उसे बड़ा आश्चर्य हुआ जब उसका विशालकाय स्तम्भ रजनी जी की तप्त लिसलिसी गहराइयों में बेहद सुगमता से फिसल गया। रजनी जी श्वास थामे हुए किशोर जय के मोटे, जवान लिंग की सम्पूर्ण लम्बाई को अपनी योनि में प्रविष्ट होते देख रही थीं। अपनी योनि में ढूंसे हुए ठोस पुरुष माँसलता के दैत्याकार स्तम्भ की मोटाई के आदी होने में उन्हें कुछ पलों का समय लगा।
“ऊ ऊ, मेरे पहलवान आशिक़ !::. जितना सोचा था, उससे कहीं ज्यादा मोटा-ताजा पाया, बेटा जय !”, रजनी जी धीमे से चीखीं, और अपने नितम्बों को पीछे की ओर झुलाया, जिससे उनकी तंग योनि के भीतर किशोर जय का धड़कता लिंग समाविष्ट होने लगा। ।
“उमम्म, म्म्म!::: वाक़ई बड़ा मज़ा आयेगा!::: देखा कैसे तेरा मादरचोद लन्ड आराम से आँटी की रन्डी चूत में घुस आया!::: ऊपर वाले! शाबाश बेटा, मजा आ रहा है ! ::: ऊ ऊ ऊ ऊ!” ।
“उमम्म, म्म्म!::: वाक़ई बड़ा मज़ा आयेगा!::: देखा कैसे तेरा मादरचोद लन्ड आराम से आँटी की रन्डी चूत में घुस आया!::: ऊपर वाले! शाबाश बेटा, मजा आ रहा है ! ::: ऊ ऊ ऊ ऊ!” ।
उनकी योनि की गुलाबी कोपलें जय के अतिक्रमी लिंग के चारों ओर कस के खिंचे हुए थे, और उसके लिंग पर फ़ौलादी पकड़ बनाये हुए थे, साथ ही उनके वक्राकार नितम्ब प्रेम से जय के बदन को छू रहे थे। जय का लिंग रजनी जी की रोमयुक्त योनि में गहरा :: बहुत गहरा उतरा हुआ था, उनकी योनि की सूजी हुई कोपलें चौड़ी खिंची हुई थीं, और उसके लिंग के तने और उनकी मक्खन सी चिकनी अन्दरूनी जाँघों के दरम्यान मसलती जा रही थीं। रजनी जी के नितम्ब थरथराये और वे कुलबुलाने लगीं। जय अपने गहरे गड़े लिंग को हौले-हौले आगे-पीछे हिलाने लगा।
“आहहहह, हाँ बेटा! … शाबाश, ऐसे ही! ::. चोद अपने लन्ड को अन्दर, फिर बाहर, हाँ जय बेटा !”, रजनी जी कराहीं।
• • पर डार्लिंग शुरुआत धीमे-धीमे करना नहीं तो तेरा दो किलो का लन्ड मेरी बेचारी चुतिया को फाड़ ही डालेगा !” | पहले के कुछ ठेलों के पश्चात, रजनी जी ने प्रणय क्रीड़ा का नेतृत्व सम्भाला। उन्होंने अपने नितम्बों को आगे की ओर, जय के लिंग से दूर, खींचा, उनकी योनि की भिंची हुई कोपलें उसके लिंग को किसी चूसते मुँह के समान दबोचे हए थीं। जब केवल उसका सूजा सुपाड़ा योनि के भीतर रह गया, तो उन्होंने अपनी योनि को उसके सुपाड़े पर घुमा-घुमा कर फिर पीछे की ओर पटका। उनकी भूखी ज्वलन्त योनि आतुरता से फिर एक बार उसके रौन्दते लिंग की पूरी लम्बाई को निगल जाती।
“ओहहह, रजनी आँटी:: गजब के चटके मार रही है आपकी चूत !::: और माँ क़सम, मैने सपने में भी नहीं सोचा था इतनी ज्यादा .. ?
टईट होगी। है ना?”, वे मुस्कायीं, जय के वाक्य की पूर्ति उन्होंने कर दी थी। “म्म्म्म! हाँ रन्डी अहहहह, गजब की टाइट! ये मेरी हरामजादी बहन की चूत जितनी ही टाइट है!”, जय
ने अचम्भित होकर कहा, क्योंकि उसी समय रजनी जी अपनी योनि की माँसपेशियों द्वारा उसके गहरे घुपे हुए लिंग को निचोड़े जा रही थीं।
उसने अपेक्षा की थी की दो बच्चे जनने पैदा करने, और उनके बरसों के यौन अनुभव के उपरांत रजनी जी की योनि ढीली और विस्तृत हो चली होती, परन्तु ऐसी कोई बात नहीं थी! अलबत्ता, रजनी जी ने अपने पुश्तैनी हुनर का प्रयोग कर योनि की माँसपेशियों पर ऐसा अद्भुत नियंत्रण क़ायम कर लिया था, कि जो भी पुरुष उनसे संभोग करता, उनकी योनि की लोच और कसाव की प्रशंसा किये बिना नहीं रह पाता था। जय उनकी योनि के उत्कृष्ट कसाव से अचम्भित था, और जब भी अपने लिंग को उनकी लालची योनि के माँस में ठेलता, तो उसकी तरल ऊष्मा से आवृत होकर निहाल हो जाता।
“पसंद आयी ना जय डार्लिंग आयेगी क्यों नहीं, कड़ी मेहनत से जो मेनटेन करा हुआ है मैने ! हम लोगों का खानदानी राज है ये।”
जय ने अपनी पूरी शक्ति लगाकर लिंग को रजनी जी की योनि के भीतर पटका, और रजनी जी अपने अति – संवदनशील चोंचले पर उसके फुले जवान अण्डकोषों के मजबूत प्रहारों का अनुभव कर के कराह उठीं।
ओहहह, जय! माँ के बड़वे, अगर ऐसे ही अपने टट्टे मेरे चोंचले पर मारता रहा तो दो मिनट में झड़ जाऊंगी