62 आँखमिचौली
“शर्मा जी, आपका बेटा तो बड़ा शर्मीला है। इसके बारे में तुम्हारा क्या खयाल है बेटा ?”, रजनी जी ने अपनी बाहें खोलकर फैलायीं और पूछा। जब उसने देखा की रजनी जी के स्तन लगभग उछल कर उनकी बिकीनी के बाहर ही कूद पड़े थे, तो जय ने गले में थूक को गटका और चौंक कर उनकी ओर देखा। जाम उसकी साँस की नली में जाते-जाते बचा।
“अ :: : अम ::: मैं समझा नहीं आँटी ?”, वो हकला कर बोला। रजनी जी फिर मुस्कायीं।
“अरे बुडू, तुम्हारे डैडी मुझे बता रहे थे कि हमारी पिछली मुलाकात के बाद इस फ़ार्म हाउस में उन्होंने कैसे ऐश-ओ-आराम के साधन जुटाये हैं ?”
सुनकर उसकी हड़बड़ाहट कुछ कम हुई, किन्तु जय उत्तर देते हुए अब भी उनके वक्षस्थल की ओर निगाहें एकटक गाड़े हुए था।
“अरे::: हा! डैडी ने तो सुनसान जगह में महल खड़ा कर दिया है आँटी ::: आप बेफ़िक्र होकर जंगल में मंगल कर सकती हैं।” जय बोला, उसका ध्यान अब भी सौन्दर्या की सुडौल लम्बी टांगों के मध्य स्थित उष्मित मांद पर केन्द्रित था।
“अरे अब बन्द भी करो मुझे आँटी कहना। क्या मैं इतनी बूढ़ी हो गयी हूँ?” अपने काजल भरे नैनों को देह की दिशा में मटका कर वे बोलीं।
“ठीक है आं ::: मेरा मतलब है रजनी जी ।” वो बोला।
मेहमान नवाजी हो तो ऐसी, शहर की घुटन भरी जिंदगी से दूर इस खुशगवार जगह और कुदरती माहौल में आकर तो हमें बड़ा सुकून, एक नयी आजादी महसूस होती है। इस जंगल में तो हम दोनों के परिवार मिलकर सचमुच मंगल करेंगे! है ना जय बेटा ?”
“अम्म ::: हाँ, हा! जरूर रजनी जी !”
तुम्हारे डैडी कह रहे थे कि पिछले महीने ही उन्होंने स्टीम-बाथ और जैकूजी भी बनाया है।”, रजनी जी ने ऐसा कहकर और अपनी जाँघों को तनिक और फैलाया। बाद में मुझे दिखाओगे ना बेटा ?”
रजनी जी ने हाथ बढ़ाकर जय की जाँघ पर रखा, और एक बार फिर, उनके मादा स्पर्श ने युवा जय के बदन में कामेच्छा की आग की गरम लपटें उठा दीं।
जय ने अपने गिलास से एक लम्बा घूट लिया और झेप कर पिता की दिशा में देखने लगा। मिस्टर शर्मा मुस्कुराते हुए सराहनात्मक भाव में सर हिलाते हुए उसका उत्साह वर्धन कर रहे थे।
जरूर, रजनी जी !”, जय ने उत्तर दिया। जब आपका मन करे, मुझे कहियेगा !” जय फूला नहीं समा रहा था यह सोचकर की रजनी जी अपना पूरा ध्यान उसपर दे रही थीं। जिस प्रत्यक्षता से वो उसमें असाधारण रुचि ले रही थीं, वो अत्यन्त रोमांचित हो रहा था, और अपनी पहले की झेप को भूल चुका था। वो अपनी जाँघों पर से तौलिया हटा कर आराम से पीठ को कुर्सी पर टेककर मदिरा का आनन्द ले रहा था, और उनके भावों को देख रहा था। रजनी जी भी खुल्लम-खुला उसकी जाँघों के बीच घूरे जा रही थीं, और उसके लिंग के अति-उग्र उभार को, जो अब अत्यंत प्रत्यक्ष रूप से दिखलायी दे रहा था, सराहती जा रही थीं।
“बड़ी सैक्सी स्विमिंग टूक पहन रखी है, जय बेटा।” रजनी जी ने गिलास से मदिरा का घुट लेकर धीमे स्वर में कहा, उनकी मादक हरी आँखें कभी उसकी जाँघों के बीच, कभी उसके चेहरे को देखतीं। “आपकी बिकीनी भी ग़जब की मस्त है, रजनी जी !”, जय मुस्कुराया, और शब्दों के द्वन्द्व का मजा लेने लगा।
रजनी जी ने झट से नवयुवक जय के बर्ताव में आये बदलाव को पहचान लिया और बड़ी प्रसन्न हुई कि किस शीघ्रता से उन्होंने उनके बीच में शिष्टाचार के बंधनों को तोड़ दिया था। उनकी अभिरुचि के उत्तर में उसका पहले-पहल का संकुचित बर्ताव उन्हें अरुचि का संकेत देता था, पर जय ने शीघ्र ही अपनी गर्मजोशी भरे व्यवहार द्वारा उनमें नयी आशा जगा दी थी। अब उन्हें लगने लगा था कि बात आसानी से जम जायेगी!
रजनी जी के मन में अपना हाथ बढ़ा कर लड़के के स्पष्ट रूप से उत्तेजित लिंग पर फेरने जैसे अनेक दुष्ट विचार आ ही रहे थे कि, डॉली और सोनिया ने वहाँ पदार्पण किया। दोनों सूक्ष्म बिकीनी पहने अत्यंत आकर्षक प्रतीत हो रही थीं। मिस्टर शर्मा और जय मुंह स्तब्ध होकर अपने समक्ष प्रस्तुत लुभावने यौवन और छरहरी मादा देह की प्रचुर माँसलाता को देख रहे है। मिस्टर शर्मा ने दोनो के लिये एक- एक जाम बनाया, उनकी गिद्ध निगाहें डॉली की बिकीनी पहनी असाधारण रूपवान देह पर दौड़ रही थीं।
जैसे डॉली ने आगे झुक कर मिस्टर शर्मा के हाथों से मदिरा छलकाते जाम को लिया, उसके स्तन जैसे बिकीनी के टॉप से बाहर उछल पड़े। मिस्टर शर्मा के हाथों से तो गिलास गिरते-गिरते बचा, और जय का लिंग और भी कस के उसकी ट्रंक में तनने लगा। दोनो वासना-लिप्त नरों की आँखें डॉली के परिपक्व स्तनों पर गड़ी हुई थीं। रजनी जी मुस्कुरायीं, बाप-बेटा ऐसे लगते थे मानो दो कुत्ते एक मस्त कुतिया के इर्द-गिर्द चक्कर लगाकर उसके गुप्तांगों को सुंघ-सूंघ कर यौन क्रीड़ा का पूर्वाभ्यास कर रहे हों, “हम्म, देखो तो, कैसे दोनो लन्डबाज जीभ निकाले मेरी गुड़िया को घूर रहे हैं; लगता है डॉली के एक इशारे भर की देर है, और ये घुटनों के बल चले आयेंगे इसकी चूत को चाटने!’, उन्होंने कुटिलता से मुस्कुराते हुए सोचा।।
जल्द ही राज और सोनिया भी वहाँ चले आये और सब मिलकर इधर-उधर की गप्पें लड़ाने लगे, और हर एक शख्स पर शैम्पेन का सुरूर छाने लगा। डॉली ने सहसा अपनी दृष्टि को मिस्टर शर्मा की जाँघों के बीच की दिशा में फिसलता हुआ पाया। वो उनके भरपूर लिंग की बनावट को उनके ट्रैक के भीतर साफ़-साफ़ देख सकती थी, जो उसे रोमांचित कर रही थी। कामेच्छा की नम ऊष्मा के मारे उसकी योनि बेचैन होने लगी। वो आत्मनियंत्रण त्याग कर, खुल्लम-खुल्ला मिस्टर शर्मा के पेड़ पर निकले उभार को एकटक निहारने लगी, सोच रही थी, ये जय के लिंग से • या फिर उसके भाई के लिंग से, तो बड़ा ही होगा :: और उसकी गरमा-गरम योनि में ठेलता हुआ कैसा लगेगा।
जब शैम्पेन की बोतल खाली हो गयी, तो मिस्टर शर्मा कहीं से एक हवा से भरी और पानी पर तैरने वाली बड़ी गेंद उठा लाये।
“अरे भई, तुम सब तो बूढ़ों की तरह बैठ कर गप्पें मार रहे हो। चलो कुछ स्विमिंग पूल में मौज-मस्ती हो जाये। उन्होंने प्रस्ताव रखा, “मैं भी देखें आजकल के जवान बच्चों में कितना दम है !” उन्होंने जल में छलांग लगायी, और अपने पीछे पूल में कूद पड़ने वालों पर पानी फेंकने लगे। लोग उत्साह से चिल्ला-चिल्ला कर पूल में तैरते हुए गेंद से खेलने लगे