61 पूर्वाभ्यास
नवयुवक जय के लम्बे फड़कते लिंगस्तम्भ को घुरते-घूरते सोनिया के ज्वर-तप्त मस्तिष्क में जंगली विचार पनप रहे थे। वो स्वयं को जय की जाँघों के बीच बैठी, उसके अद्भुत लिंग को मुँह में लिये हुए चूसता, और उसके लिंग से गाढ़े वीर्य के प्रचुर प्रवाह का पान करता हूआ कल्पित कर रही थी। विश्वास के साथ कह सकती थी कि उसके चूसते मुख में वीर्य भर जायेगा, तो उसके गरम नमकीन व मलाईदार स्वाद का भरपूर आनन्द लेगी। उसने जय को अपने दानवाकार, कड़क लिंग को रगड़ते हुए देखा, तो डॉली की कल्पनाएं और भी अधिक भ्रष्ट व कमीनगी से परिपूर्ण होती चली गयीं, और उसने स्वयं को यौन तृप्ति की आकांक्षा और काम की लोलुपता में खो डाला। वो स्वयं को उसके लिंग के ऊपर अपनी जाँघं फैला कर योनि में ग्रहण करते, उसके फूले हुए बैंगनी रंग के सुपाड़े को उसकी योनि की कोपलों को पाटते , जैसे कुशल तैराक जल की लहरों को पाट लेता है, कल्पित कर रही थी।
डॉली ने उसे स्वयं से संभोग करते हुए कल्पित किया, वो अपने लम्बे, स्थूलाकार लिंग को उसकी तप्त, गीली योनि की संकराहट में डाले हए था और अपने कठोर, फड़कते लिंग से उसकी योनि को भर रखे था। ‘हाँ मेरे प्यारे ऊपर वाले, अब तो लौन्डे से चुदे बगैर रहा नहीं जाता !’, उसका तड़पता मस्तिष्क चीख चीख कर कह रहा था। डॉली अब अपने ऑरगैस्म के इतने निकट थी, कि उसे शटर का सहारा लेकर खड़ा होना पड़ा। वो अपनी पलकें खोले हुए, वासना-विह्वल नेत्रों से जय के फड़कते कठोर लिंग को एकटक देखती जा रही थी।
उसने जय को ऊंचे स्वर में हुंकार भरते हुए और अपने लिंग से हवा में वीर्य की मोटी फुहार फेंकते देखा, जो ‘छप्प’ के तेज स्वर के साथ टॉयलेट के फ़र्श पर जा गिरी। इस अति रोमांचक दृष्य को देखकर डॉली की इंद्रियों में कामतृप्ति की अनुभूतियाँ फूट पड़ीं, मुख से सहसा निकल पड़ी आनन्द भरी चीख, जो उसके भेद को खोल सकती थी, को रोकने के लिये उसने अपने मुंह पर हाथ दबा लिया।
जब उसके फड़कते लिंग के शीर्ष से वीर्य की बौछार के बाद बौछार निकलती गयी, डॉली उसे खेद और सराहना के सम्मिश्र भाव से देखती गयी। उसे लगा कि हाथ से मलाईदार वीर्यपान का अवसर निकल गया। ठंडी टाइलों के फ़र्श पर निरर्थक व्यय होने से तो बेहतर होता कि वीर्य उसके मुँह अथवा योनि में स्खलित होता। डॉली ने अपनी उंगलियाँ अपनी कुलबुलाती योनि में से निकालीं और बाथरूम से निकल बाहर हुई। यह सोचकर उसे सांत्वना हुई की इस आयु में जय को अपनी कामतत्परता की पुनस्र्थापना अधिक समय नहीं लगना चाहिये। यही नहीं, यदि सब कुछ उसकी योजनानुसार होता रहा, तो रात होते होते, उसे अपनी यौन तृप्ति के लिये इतने ही कामतत्पर, दो और लिंग उपलब्ध हो जायेंगे।
फ़िलहाल अपनी कामेच्छा को शांत कर लेने के पश्चात, जय अपनी सरगर्मियों के सुबूत मिटाने लगा, टिशू पेपर से फ़र्श पर गिरे वीर्य को पोंछ कर कमोड में फ़्लश किया, और इससे पहले कि दूसरों को उसपर संदेह होता, एक तौलिये को कंधे पर डालकर स्विमिंग पूल की दिशा में चल पड़ा।
जब जय फ़ार्महाउस के पिछवाड़े स्विमिंग पूल पहुंचा, तो उसके पिता और रजनी जी पूल के समीप की मेज पर हाथों में जाम थामे बैठे थे।
“किधर फंस गये थे बेटे ?”, मिस्टर शर्मा चिल्लाये, “तुम्हारी रजनी आँटी तो समझ रही थीं कि नन्हें नवाब शरमा कर मैदान छोड़ भाग खड़े हुए।” जय ने रजनी जी की ओर देखा, और निर्भीकता से उनके आकर्षक वक्षस्थल को निहारने लगा।
“अमः::, डैडी, बस स्विमिंग टूक ढूंढ रहा था।”, उसने झूठ कहा, प्रार्थना कर रहा था कि रजनी शर्मा जी के छरहरे बदन को देखते ही उसके पेड़ पर जो उभार होने लगा था, उसे कोई देख न ले। अपने मन से वो उनकी नग्न योनि की छवि नहीं निकाल पा रहा था।
“स्विमिंग ट्रैक की क्या जरूरत थी जय बेटा, यूं ही चले आते, अपनी आँटी से भला क्या शर्माना ?”, रजनी जी मुस्कुरायीं, और उसकी जाँघों के बीच के फुलाव को एकटक देखकर बोलीं, “हम कोई पराये तो नहीं, जो हमें साथ-साथ तैरने के लिये पर्दा करना पड़े !” मिस्टर शर्मा ठहाका लगा हँस पड़े।
जय ने अपने शुष्क कंठ को थूक गटक कर भिगाया। असीम सौन्दर्य व छरहरे बदन की स्वामिनि रजनी जी को अपने स्विमिंग पूल में नग्नावस्था में तैरता हूआ कल्पित कर उसका लिंग आकार में और भी बड़ा हो चला ! वो हड़बड़ा कर कुर्सी पर बैठा, और अपनी टूक के भीत तेजी से फूलते उभार को छुपाने के लिये अपनी जंघा पर तौलिया रख लिया।
रजनी जी उसे देख कर मुस्कायीं। ‘या ऊपर वाले, कैसा दिलकश छोकरा है!’, उन्होंने सोचा। उसकी हट्टी-कट्टी देह का भोग करने को बेसब्र हो रही थीं वे। और उसके स्विमिंग ट्रंक में फूलते उभार को देखकर वे दावे के साथ कह सकती थीं, कि ये उनके बायें हाथ का खेल होगा, निश्चय ही उनकी देह जय की कामोत्तेजना को प्रबल कर रही थी। रजनी जी अपनी टांगे तनिक अलग कर के और अपने स्तनों को कुछ आगे खींच कर बैठी हुई थीं, वे जान बूझ कर अपने अंग-अंग को उसके कमलोलुप नेत्रों के समक्ष प्रदर्शित कर रही थीं। ‘मादरचोद, देखती हूँ अब मुस्टंडे का लन्ड कैसे नहीं उछलता!’, वे सोच रही थीं, और कुर्सी पर बैठी अपने नितम्बों को इस प्रकार कसमसा रही थीं, कि उनकी जाँघिया का वस्त्र उनकी नम योनि के द्वार में गड़-गड़ पर कसने लगा।
जय उनकी योनि के आकार को उसपर कसी हुई जाँघिया के महीन पारदर्शी वस्त्र के पार से देख पा रहा था। वो उनके कड़े हुए चोंचले के उभार को भी साफ़ देख पा रहा था, जो उनकी योनि के द्वार के शीर्ष पर सुसज्जित था। शिष्टाचारवश वो अत्याधिक रुचि प्रकट करने से कतरा रहा था, पर किसी चुम्बक की तरह रजनी जी की देह के निर्लज्जता से प्रदर्शित अतिमोहक अंग उसकी दृष्टि को बार-बार आकृष्ट कर ही लेते थे!
बाकी लोग कहाँ रह गये, जय?”, मिस्टर शर्मा ने उसे जाम थमाते हुए पूछा। “अरे.. शायद कपड़े बदल रहे होंगे।”, सावधानी से जाम का एक घूट लेकर वो बोला। “लगता है माँ बेटी अंदर बैठकर मार रहे हैं … ?” उसका वाक्य पुरा होने से पहले ही रजनी जी खिलखिला कर हँस पड़ीं, जय अपने अधूरे वाक्य का अन्य अर्थ समझ कर सकपकाया और स्पष्टीकरण किया, ६ .. अब::: गप्पें ।” उसने विश्वास भरी मुस्कान देने की चेष्टा की पर एक झेपी हुई हँसी ही निकल पायी।