You dont have javascript enabled! Please enable it! पापी परिवार की पापी वासना - Update 51 | Incest Story - KamKatha
पापी परिवार की पापी वासना – Dirty Incest Sex Story

पापी परिवार की पापी वासना – Update 51 | Incest Story

51 दीक्षा

 

मुझे तो लगता है तू अपने सारे कपड़े उतार कर बिस्तर पर लेटती होगी और टांगें फैला कर अपनी गरम-गरम चूत को अपनी उंगलियाँ घुसेड़-घुसेड़ कर चोदती होगी! बोल मेरी रन्डी माँ, करती है ना ऐसे ही ?” टीना जी ने स्वीकृति में सर हिलाया, और अपने चौड़े कूल्हों को उसके मालिश करते हाथों पर रगड़ने लगीं।

“हाँ, बेटा! ऐसा ही करती हूँ!’, उन्होंने स्वीकारा, अब करू भी तो क्या, तेरा मुआ बाप तो तेरी बेचारी माँ की प्यास भर नहीं पाता! जय ::: तेरी माँ बड़ी हरामजादी औरत है, अब भगवान ने मुझे रन्डियों वाली चूत दे दी तो मैं क्या करूं, साली जितना भी चुदवाओ, और लन्ड की माँग करती है, एक मर्द से तो जी ही नहीं भरता !”

“मम्मी, मैं तेरी चूत की प्यास बुझाऊंगा! तेरा जब भी चुदने का मन करे, तू मुझे कहना, मेरा लन्ड तो मादरचुदाई के लिये हर वक़्त रैडी है! प्रौमिस !” ऐसा कहकर जय ने अपनी मध्य वाली उंगली अपनी माँ की मुँह बाती योनि में साफ़ उतार दी। जैसे उंगली उनकी योनि में प्रविष्ट हुई, वे बिस्तर से अपने नितम्बों को उचका कर कंठ के भीतर ही भीतर हुंकार उठीं !

“फिर तेरी बहन का क्या होगा ?”, मिसेज शर्मा ने एक लम्बी आह भरी, और उसके मुख पर प्रेम से चुम्बन किया, “उसे भी तो तेरा लन्ड पसन्द है। क्या वो बेचारी घरेलू सैक्स की मस्ती की हक़दार नहीं ?” टीना जी ने अपनी अनुभवी योनि की मासपेशियों को पुत्र की टटोलती उंगली पर कसमसाया।

“हरामजादी की चूत का खयाल तो डैडी रखेंगे, मैं तो पहले मम्मी को चोदूंगा, अगर सोनिया को मुझसे चुदना है तो करे इंतजार अपनी बारी का । है ना मम्मी ?” जय ने सर झुकाया, और अपनी माँ के बायें स्तन को मुँह में चूसने की चेष्टा की। टीना जी ने मातृ प्रेम भरी एक कराह निकाली, और स्तनपान की मुद्रा में सुप्त अपने पुत्र के सर को प्यार से थपथपाया। ‘अब तो जिंदगी एक सिलसिला बन जायेगी, चुदाई और सैक्स का!’, उन्होंने सोचा। जय नटखट भरे अंदाज में उनके निप्पलों को हलके से काट रहा था, जिसे पिल्ले कुतिया के थनों से दूध पीते हुए काट देते हैं। पाश्विक वासना व ममता का कैसा बेजोड़ सम्मिश्रण था :: : कैसा मर्मस्पर्शी दृश्य!

उनके उभरे स्तनों से अपने सर को अलग उठा कर, जय ने अपनी माँ को अंगार उगलते नेत्रों से देखा। उसके वासना-ज्वर से ग्रस्त दिमाग में एक खौफ़नाक विचार अंकुरित हुआ था
“मम्मी, क्या तू मुझसे गाँड मरवाना चाहेगी ?”, किसी सर्प जैसे हुंकार कर जय ने माँ के समक्ष बेशर्मी से अपना अश्लील प्रस्ताव प्रस्तुत किया, और संकेतत्मक रूप में अपनी माँ के गुदा द्वार पर एक उंगली को दबाया।

अपने पृष्ठ द्वार पर अचानक दबाव और अप्रत्याशित आनन्द का अनुभव कर टीना जी चौंक गयीं और बिलबिला उठीं। गुदा-मैथुन सदैव से उनके सैक्स – अनुभवों के तरकश में एक विशिष्ट स्थान रखता था, और अपने नौजवान पुत्र के द्वारा उनके मलद्वार में उसका मोटा तगड़ा लिंग घुसेड़ दिये जाने की कल्पना भर से वे मारे प्रसन्नता के झूम उठीं। जय ने उनकी प्रतिक्रिया भांप ली तो और अधिक दबाया, अपनी उंगली टेढ़ी कर उसे सहजता से उनकी मक्खन सी चिकनी गुदा के भीतर उतार दिया। टीना जी उसके तन पर सिमट गयीं और उमड़ते आनन्द के प्रभाववश ऊंचे स्वर में कराहने लगीं।

“अहा! मेरी माँ को पसन्द आया, हैं ना मम्मी ?”, जय ने आह भरी। अपनी माँ की प्रतिक्रिया के उतावलेपन और ऊर्जा ने उसे विस्मित कर दिया था। सोलह आने सत्य वचन कहे थे जय ने, वो अति-उत्तेजित स्त्री अपने संकरे गुदा मार्ग में उसकी उंगली के आभास से अत्यंत संतोष पा रही थीं। उनके पुत्र ने उन्हें इस कदर उत्तेजित कर दिया कि उनकी सुलगती योनि मैथुन के लिये बेताब हो गयी थी।

“ऊ ऊहहह, जय! गाँड बाद में मार लेना !”, वे चीखीं, “पहले मेरी चूत का तो कुछ बन्दोबस्त कर! मेरे लाल, चोद मुझे ! इस काले मुस्टंडे साँप को, जिसे तू लन्ड बोलता है, माँ की चूत में पेल दे, मेरे लाल, और मुझे कस के चोद दे !”

जय जानता था कि मंगल वेला आ गयी है। उसकी माँ पागलों जैसे अपनी योनि को फुदकाती हुई उसके लिंग को जोरदार झटके देती जा रही थीं … दुनिया और दीन से बेपरवाह होकर वे अपना सम्पूर्ण ध्यान को केवल अपनी भूखी और कभी तृप्त न होने वाली योनि द्वारा सैक्स क्रिया करने पर केंद्रित कर चुकी थीं।

“जैसी तेरी इच्छा, माँ! पाट दे जाँघे पट्टे दे वास्ते, लौन्डिया !”, जय ने आदेश दिया, और अपने लिंग को माता की छलकती योनि के द्वार पर साधा। “चौड़ी खोल दे अपनी चूत की खिड़की, आ रहा है तेरी कोख का लाल अपना दनादन लन्ड लिये, मम्मी। आज तो दिल खोल के तेरा बेटा तेरी चूत को चोदेगा, जिससे तूने उसे जना था! साली रन्डी मम्मी, तेरी चूत को चोद – चोद कर गर्मी नहीं निकाली, तो नाम नहीं जय !”

टीना जी मारे आनन्द के बिलबिलायीं, और अपने एक हाथ को नीचे लेजाकर अपनी योनि के द्वार को पाट दिया। दूसरे हाथ में पुत्र के विकराल और खौफ़नाक तरह से फूल चुके लिंगस्तम्भ को लेकर, ना आव देखा, ना ताव, ढूंस दिया अपनी गरम-गरम रिसती योनि में !

जैसे उसका लिंग भीतर प्रविष्ट हुआ, जय ने आगे को ठेला, और एक ही बलशाली झटके समेत , उसे जाहिलों जैसे पेल दिया माँ की कस कर खिंची हुए योनि-छिद्र में ::. उसके अण्डकोष थप्प’ के जोरदार स्वर से टीना जी के तन पर जा टकराये।

“ऊ ऊहह हे मादरचोद! क्या लन्ड पाया है जय!” , टीना जी चीखीं, कितना लम्बा … कितना तगड़ा! ओहह, डार्लिंग! ::: कितना बड़ा है तेरा पहलवान लन्ड! मुस्टंडा मेरी कोख में घुस गया है! ओह साले! शाबाश जय! :::: माँ को चोद !!” ।

“श्श्श : भगवान के लिये मम्मी! इतना जोर से मत चीख !”, जय ने आह भरी, “पूरा मादरचोद मोहल्ला जान जायेगा कि कोई रन्डी चुद रही है!”

टीना जी ने बात अनसुनी कर दी, वे तो पूरी तरह से अपने पुत्र के विलक्षण लिंगोभार को यथासंभव अपनी योनि में ठूस लेने में तल्लीन थीं। उनकी योनि की मासपेशियाँ जय के दीर्घाकार और धड़कते लिंग पर अपना शिकंजा जमाये हुए थीं, बड़ी पुखतगी से उसे अपनी पाश्विक गिरफ़्त में दबोचे हुए थीं। । “माँ के बड़वे , गाँड उचका !”, टीना जी ने ऐड़ दी, “ऊह, येह बात मर्दो वाली! अब ऐसे ही उचका उचका के चोद! चोद मम्मी की गरम चूत, रन्डी वाली चूत है ये, तू ठीक से नहीं चोदेगा तो मोहल्ले के मर्द चोदेंगे! चोद! ऊहहहह अंहहह! भोंसड़चोद, लगा अपने टट्टों का जोर, नहीं तो सड़क पर चुदवाऊंगी !”
जय ने कोहनी का बिस्तर पर सहारा लेकर अपने बदन को ऊपर उठाया और अपने कूल्हे उचका दिये, फिर माँ की मांद में अपने लिंग को आगे और पीछे ठेलता हूअ, लम्बे, दमदार झटकों के साथ पाप संभोग करने लगा। टीना जी ने सर उठाया और उनकी पसीने से सनी देहों के बीच झांककर, बड़ी उतावली से अपने पुत्र के पौरुषयुक्त लिंग को उत्कृष्टता से उनकी योनि के भीतर फिसलते हुए देखा। जय ने माँ को ऐसा करते देखा और उनके नम माथे को चूम लिया।

“मम्मी, देखें कैसे मेरा मोटा-मोटा लन्ड तेरी झांटेदार चूत को चोद रहा है, देख रही है मम्मी ???, उसने पूछा। टीना जी की आँखें फटी की फटी रह गैई, उनकी निगाहें पुत्र के काले-काले और मोटी-मोटी हरे रंग की नसों वाले लिंग को अपनी टपकती योनि में प्रहार करते देख रही थीं। जैसे जय ने आगे को झटका दिया, उन्होंने अपने हाथों को उसके कंधों पर सहारे के लिये रखा, फिर भी जय के बलशाली ठेले के कारण उनका सर बिस्तर के सिरहाने टकराने लगा।

“ठीक है, ठीक है, लवड़े की मोटाई दिखाना अपने बाप को! साला कुतिया की औलाद लन्ड काला-काला तो है, पर कुछ दमखम भी है या, मुठ मार मार के अब सिरफ़ पेशाब ही निकालता है ?” मिसेज शर्मा ने व्यंग्य बाण फेंका।

“देख रन्डी, भड़का मत मुझे !”, जय ने हंकार कर कहा। “देसी माँ के देसी दूध को पी-पी कर मेरा देसी लन्ड मोटा-तगड़ा हुआ है, और मेरे टट्टे भी कम मादरचोद नहीं, साले रात भर वीर्य बना रहे थे। कि बेटा सुबह उठकर माँ को चोदना है ना। एक बार तेरे पाँव भारी कर दिये, फिर नौ महीने तेरी चुदने की छुट्टी! देख हरामजादी, देख अपने बेटे के चोदते लन्ड को !” ।

उसकी माँ का पेड़ उसपर ऊपर नीचे फुदक रहा था, और उसके चमचमाते काले लिंग को यथासंभव गहरा खींचे चले जा रहा था। अन्दर ठेलता हुआ जय अपने कूल्हों को घुमा-घुमा कर बलखा रहा था, और अपने पेड़ को पटक-पटक कर उनके अकड़े और धड़कते हुए चोंचले पर मसले जा रहा था।

“ओहहह, जय! मादरचोद, कितना बदमाश हो गया है! साले, पता नहीं तेरी मम्मी तेरी बातें सुनकर कितनी गर्मा रही है! :::

नजर न लगे मेरे लाल के चिकने लन्ड को, क्या लौड़ा है, भगवान !”, वे चीखीं, “हाँ बेटा लगे रह! चोद मुझे! तेरी कुतिया माँ की चूत में आग लगी है आग! अब बस तू ही इसे बुझा सकता है! साले तू नहीं होता, तो कबकी कोठे पर जाकर बैठ गयी होती! तेरा हरामी बाप तो साला सिरफ़ जवान लड़कियों में दिलचस्पी लेता है! मेरे लाल, चोद! चोद मेरे देसी मादरचोद !” | हाँफ़ते उन्माद से, वे अपने नितम्बों और और अधिक गती से उचकाती गयीं, वे जय के बलवान लिंग प्रहारों का कन्ढे से कन्ढा मिला कर मुक़ाबला कर रही थीं। उनका पुत्र किसी उपजाऊ बैल के जैसा सैक्स क्रीड़ा कर रहा था, और टीना जी उसका यथासंभव आनन्द उठाना चाहती थीं ::: हमेशा, हमेशा के लिये! जय ने अपने हाथों को उनकी सनसनाती त्वचा पर फेर रहा था, और उनके खरबूजों जैसे, झूलते स्तनों और मक्खन सी चिकनी जाँघों को दबाता जा रहा था। माँ को संतुष्ट करने के लिये ऐसा उतावला हुए जाता था कि जय किसी छोटे राक्षस जैसा माँ के संग प्रणय लीला कर रहा था। वो अपने दोनो हाथों में उनके तने हुए नितम्बों पर दबोच कर, उनकी भूखी योनि को अपने धड़कते हुए, नौ इन्ची लिंग से भरे जा रहा था।

“दे मार मेरे अन्दर, डार्लिंग ::: झड़ा अपनी माँ को! दम लगा के चोद मुझे बेटा ::: समझ तेरी माँ तेरे घर की भंगिन है, चोद साले जैसे भंगिन कमलाबाई को चोदता है! अहहहह, और अन्दर! तेरे बाप से भी गहरा !” ।

जय माँ को देह-तृप्ति की भिक्षा मांगते सुनकर बड़ा प्रसन्न हुआ। जब उसकी माता उसके कान में निर्लज्जता से गन्दे – गन्दे उद्गार कह कर उकसातीं, तो उसे लगता था कि लिंग ने अतिरिक्त दीर्घता प्राप्त कर ली हो। जय का वीर्य से लबालब अण्डकोष थपथपाता हुआ टीना जी की गुदा के मध्य स्थित दरार पर टकराये जा रहा था, उधर उनकी योनि की सिकोड़ती माँसपेशियाँ उसके ताबड़तोड़ लिंग को कस के जकड़े हुए थीं। हर बार जब वो उसे बाहर खींचता, लगता था जैसे उसका लिंग उखड़ कर तन से अलग हो जायेगा। जय दो इन्च आगे को खिसका, और लिंग के योनि में प्रविष्टि के कोण को बदल कर, अपना लिंग इतना गहरा घोंप डाला, कि टीना जी को कभी कभी ऐसा लगता कि सुपाड़ा उनके गर्भाशय के मुख में घुस रहा है!

“अब इतना :… अंहह! ::: गहरा काफ़ी है, मम्मी!”, जय हाँफ़ता हुआ बोला, और अपने ठेलों की लय और लम्बाई को बढ़ा दिया। उसका स्वर अब भर्रा गया था, और शब्दों के बीच दैहिक परिश्रम के मारे अनेक हुंकारें निकलती थीं।

“ममम! रन्डी की औलाद ! ओह, मेरे लाल ! मादरचोद लवड़ा खूब अंदर घुस रहा है! ::: ऊँहह … आँह ::: ऊँहह … आँह अब किसी सैकन्ड भी झड़ सकती हैं। रुकना मत, मादरचोद, जरा भी रुका, तो लन्ड चबा जाऊंगी! :: आँह ::: ऊहहहह ::: बस, मम्मी झड़ी समझ !”

जय ने उनके गोलमटोल स्तनों को दोनो हाथों में दबोच कर, अपने क्रुद्ध लिंग को माँ की उचके हई योनि में अपने पूरे सामर्थ्य से संभोगशील किया, जिससे उनकी गिड़गिड़ाती आवाज एक स्वरहीन बुदबुदाहट में कहीं गुम हो गयी। जय की पीठ और जाँघों की मासपेशियाँ उसके परिश्रम के कारणवश उभर कर फड़क रही थीं। जी हाँ पाठकों, जय को उस कामोन्मादित पापी नारी की मनचाही मुराद पूरी करने के लिये अभूतपूर्व परिश्रम और पौरुष बल का व्यय करना पड़ रहा था!

जय ने माँ के ऑरगैस्म का पूर्वाभास, उनके कंठ से तीखी चीत्कार फूटने से कहीं पहले पा लिया था। टीना जी की चिपचिपी और कंपकंपाती योनि जो उसके लिंगस्तम्भ पर लिपट कर उसके रौन्दते लिंग को किसी भूखे और चूसते मुँह की भांति जकड़ती और खींचती जा रही थी। जय के अण्डकोष भी फूले और सिकुड़े, जब उसने एक जबरदस्त शोर के साथ अपने यौनानन्द को शिखर पर पहुंचते हुए आभास किया।

आहहहह! ऊहहह, जय! बेटा मैं झड़ रही हूँ! ऊहहह देख माँ के बड़वे, तेरा मादरचोद लन्ड कैसे थूक रहा है! कुतिया, की औलाद, तेरा लन्ड थूक रहा है, माँ की चूत में! आँहह !” , इस प्रकार टीना जी चीखीं जब उन्होंने अपने पुत्र के शक्तिशाली वीर्य स्खलन को उसके लिंग के शीर्ष से फूटता हुआ महसूस किया। जय का दुष्ट लिंग माता की फड़कती योनि को उबलते गाढ़े वीर्य से सराबोर कर रहा था। । “ओह, कुतिया! मैं भी, मम्मी! मैं भी झड़ रहा हूँ! ठीक तेरी रन्डी चूत में! अँहहह हरामजादी, ले मेरा वीर्य अपनी चूत में और जन दे मेरे पिल्ले !”

माँ और पुत्र के बदन दो सर्पो जैसे बिजली की गती से बिस्तर पर लहरा रहे थे। वे जहरीले नागों जैसे पाप के दंश मार-मार कर दैहिक आनन्द की प्राप्ति में छटपटा रहे थे। दोनों ने स्वयं को यौन चरमानन्द के थपेड़ों में भुला दिया था। उनके प्रजननांगों द्वारा स्खलित किये द्रव आपसे में घुल मिल गये, और टीना जी की योनि को छलकाने लग्गे, किसी झड़ने की तरह जय के लिंग का अभिषेक करने लगे। जय तब तक टीना जी की देह ठेलता गया, जब तक उनका तन ठन्डा होकर उसके नीचे शीथील न पड़ गया। इस समस्त घटना के दौरान टीना जी की योनि जय के लिंग को पुचकारती रही थी, और अपने पुत्र के वीर्य से लबालब अण्डकोष से वीर की अंतिम बून्द को दुहती रही। जय उनके पास ढेर हो गया और टीना जी को गले लगा कर उनकी पसीने से सनी गरम देह को अपनी देह पर चिपटा कर लेट गया।

“ग्रेट चुदाई मम्मी! सच, मजा आ गया! ऐसी मस्ती से चूत फेक फेंक कर तो प्रोफ़ेशनल रन्डियाँ भी नहीं चुदवा सकतीं !”, जय ने आह भरी, “तुझे मजा आया कि नहीं, मम्मी ?” ।

उसकी माँ उसपर लिपट गयी, और अपनी कंपकंपाती उंगलियों को उसके शीथील होते लिंग पर लिपटा दिया। अब भी खासा मोटा था वो, मातृ योनि के प्रचुर द्रवों से चुपड़ा हुआ कैसे रेस में जीते घोड़े जैसा खुशी से हिनहिना रहा था!

“ओहहह! … मादरचोद ! … बिलकुल आया !”, टीना जी हाँफ़ती हुई बोलीं, “खूब मजा आया, डार्लिंग! मुझे तो अब भी … मम्म्म! :: साले रन्डीचोद जय! … अब भी तेरे मुस्टंड लवड़े का कसाव महसूस हो रहा है ! सैक्स के घुलते आनन्द के प्रभाववश उनकी योनि अब भी कसमसा रही थी और उनकी देह पर रौंगटे खड़े को रहे थी। बिस्तर पर लेटे-लेटे जब दोनो सुस्ता रहे थे, तो अचानक जय को स्मरण हुआ कि जब सुबह वो उसे खोजने निकला था, तो उसकी बहन अपने बिस्तर से नदारद थी। न जाने सोनिया किधर गायब हो गयी ?’, जय ने विचार किया, वो अपनी बहन की शरारती प्रवृत्ति को भली तरह पहचानता था। जय ऐसा सोचते हुए मुस्काने लगा।

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