13 माता-पुत्र मिलन
जय के हाथ अब मिसेज शर्मा के नितंबों पर थे। उनके स्तनों को के बाद अब उनकी छिकनी गोल गाँड के माँस को निचोड़ कर दबाने का मजा वो ले रहा था। उसका लन्ड टिन्ना जी की पैन्टी लिप्त चूत पर और भी टाईट रगड़ रहा था। अपनी माँ की मटकेदार गाँड को हाथों में भर कर अपने तने लन्ड को उनकी चूत पर ठेलते हुए उसके जिस्म में जानवरों सी सैक्सोत्तेजना जाग रहीं थी।
गाँड़ पर जय के हाथ पाकर टीना जी के मुँह से दबी सी चीख निकल गई और वो पीछे बिस्तर कि तरफ़ जय को अपनी तरफ़ खेंचते हुए ले गयीं। जैसे ही टीना जी के तलुवे बिस्तर के किनारे को छुए तो वे पीठ के बल बिस्तर पर गिर पड़ी और जय को अपनी देह के करीब झुकाते हुए नीचे को खींच दिया। औरत जैसे ही ताकतवर पुरुष को जांगों के बीच पाती है तो खुद-ब-खुद टांगें खोल देती है। लिहाजा बेटे के लिये टीना जी ने मचलते हुए जाँघों को चौड़ा कर चूत के कपाट का ताला जय के दनदनाते लन्ड के लिये खोल दिया।
जय ने गर्व से अपने विशाल लन्ड के साये में अपनी माँ के मचलते जिस्म को, जिसे आज उसके लन्ड ने फ़तह किया था, एक नज़र देखा। उनका सल्वार सूट कमर पर इकट्ठा हुआ पड़ा था, गोरे-गोरे मम्मे उसके निचोड़ने से लाल होकर दो रसीले खरबूजों की तरह बाहर झांक रहे थे। अपने सर को माँम की छुहाति पर झुका कर निप्पलों को चूसता हुआ मातृ प्रेम का रसास्वादन करने लगा। । “ओह ! जय चूस ले मम्मी के स्तन। मुझे निहाल कर दे मेरे लाल ।” टीना जी ने जंगली लहजे में अपने कुल्हों को बेटे के घोड़े जैसे लन्ड पर रगड़ते हुए कहा।
जय का लन्ड ने साँप की तरह अपने बिल की टोह खुद ही ले रहा था। और इस बार लन्ड से चूत के अलौकिक स्पर्श के दैवी आनन्द ने कामोत्तेजित जय के सब्र का बाँध ही तोड़ दिया। वो अपनी माँम की पैन्टी से लिपटी चूत पर दे लगा मारने अपना लन्ड। टीना जी ने पैन्टी के महीण सैटिन के कपड़े से अपनी चूत के चोचले पर अपने बेटे के शक्तिशाली लन्ड के प्रहारों को पड़ते हुए महसुस्स किया।
“मादरचोद ने बैल जैसा ताकत्वार लन्ड पाया है! पैन्टी को चीर कर जैसे अभी चूत में घुसा जाता है !” इस बेहयाई से भरे खयाल ने उसके सब्र के बाँध को भी तोड़ दिया।
“ऊह्ह जय !!” अपनी चूत की गहरयीं मे अब मस्ती की लहरें उछलती महसूस कर रही थी।
“जय बेटे! हे ईश्वर! मैं तो ..! जय! मम्मी अब झड़ रही है !”
माँ के कुल्हे उचक उचक कर जय के लन्ड को टक्कर दे रहे थे। जैसे जैसे उसका जिस्म जय के नीचे मचल रहा था, वैसे वैसे उसका मुँह मस्ती एक निःशब्द चीख में खुला हुआ था। जय ने और जोर से अपने लन्ड को टीना जी की फुदकती चूत पर दनादन मारा। उसके टट्टे वासनना की आग में उबलते वीर्या से लबालब को कर ऐंथ रहे थे। उसने आज तक किसी स्त्री को सैक्स के चरम आनन्द (ऑरगैसम) में मचलते हुए नहीं देखा था। और उसके किशोर मन को इस बात ने और भी चौंका दिया था कि बिना लन्ड के चूत में डाले ही कैसे वो झर कर ऑरगैसम प्राप्त चुकी थी।
| और ऑरगैसम भी क्या धड़ाके का। कमाल का पन्च था इस ऑरगैसम में। सच कहते हैं। सैक्स – संतुष्टी शारीरिक से अधिक एक मानसिक स्तिथी है। सैक्स – सतुष्टी प कर वो कंपकंपा गई थी और आंखें मूंछ कर निर्जीव सी वहीं लेट गयी थी। बिस्तर पर अपने ही बेटे के सामने नन्गी पसरी हुई थी – उसका लन्ड अब भी उसकी चूत से सटा हुआ और गाँड आधी बिस्तर से बाहर। अपने जिस्म पर आच्छादित हौली-हौली कोमल अनुभुतियों से ओत-प्रोत हो कर उसने जय के हाथ अपनी कमर को जकड़ते महसूस किये। वो उसकी गीली पैन्टी को उसकी कंपकंपाती जाँघों के ऊपर से सरका रहा था। सैक्स – संतुष्टी मिल जाने के बाद उसे बाकायदा बेटे से सैक्स क्रीड़ा कर के इस रिश्ते की आखिरि हद को तोड़ने में अब एक झिझक लग रही थी।
बेटे के लन्ड से हस्तमैथुन करना एक बात थी, और पुर्णतयः सैक्स सम्बंध स्थापित करना दूसरी बात। । बहरहाल, जय ने मिसेज शर्मा के सूट को उनके सिर के ऊपर निकाल कर उतार डाला था। अब उनका पूरी तरह से नण्गा, हाँफ़ता जिस्म अपने बेटे के सामने पड़ा था। उसका लन्ड फूँकारता हुआ पाप का डंक मारने को बेकरार हो रहा था। माँ के कमजोर से विरोध को नजरअंदाज कर के जय उनकी खुली हुई जाँघों के बीच लपका और हाथों से पकड़ कर अपने लन्ड के लाल बल्बनुमा सिरे को कोख़ के द्वार पर टेक दिया। |
उसी कोख़ पर जिससे उसने शिशु रूप में जनम लिया था। और आज वो पुरुष रूप में अपनी जन्मजाता कोख में वापस घुसने आया था। क्या वो घुस कर अपना जीवन -बीज वीर्य उस कोख में उडेलेगा ? स्वयं के जनन और इस सैक्स क्रिया के बीच के अलौकिक सम्बंध के बारे में इस विचार ने उसे सर से पाँव तक सिहरा दिया।
एक पल उसने घने झांटों के बीच से झांकती लालिमा से भरी चूत को देखा। अब भी जैसे कांपती सी उसके आधे गड़े फूले हुए सुपाड़े को चपड़-चपड़ चूम चूम कर चूसती हुई अपने अन्दर लेना चाह रही हो।