पूर्णिमा की रात्रि – Update 2

हमारे नई घर में रहते हुए अब हमे कुछ साल बीत गई बस्ती में रहने से मेरी दोस्ती यारी अब यहां के दूसरे बच्चों के साथ होने लगी.. मां के काम से सभी उनकी बहोत ही आदर सम्मान करते मां के रूप को देख हर मर्द का लिंग भले ही खड़ा हो जाता हो लेकिन मां की सभी इतनी इज्जत करते थे की उनकी कोई छेड़ छाड़ किरने का चाहते ही नही थे या उन्हें एक डर भी लगता था कि किसी को पता चला तो इनकी क्या हालत होगी..
वही दादाजी बड़े दुखी और परेशान रहने लगे अपनी आखों से अपने दो बेटे को यू लड़ता देख ही वो खून के आशु रोने लगे थे और अब अपने बड़े बेटे पोते और बेटी जैसी बहू से दूर होके वो ज्यादा दिन तक अपनी धड़कन चला नही पाई.. आखिर कब तक वो टूटे दिल के साथ जिंदा रह भी पाते..
और लोग बाते भी खूब बना रहे थे की मां और दादाजी के भी संबंध सही नही थे.. लोगो की ऐसी बाते सुन सुन के भी दादाजी के दिल को तोड़ के रख दिया करती…
दादाजी के जाने के बाद जैसे हमारा पुराने घर से पूरी तरह से रिश्ता टूट चुका था..
कुछ साल में सोचने समझने लगा लोगो की बातो को उनकी नियत को और बस्ती के दूसरे दोस्तो की बदौलत ही मुझे यौन शिक्षा मिलने लगी…
समय के साथ मां की जवानी और उभान मार रही थी और अब पापा की उम्र इतनी हो चुकी थी की उन्हे मां की जरूरतें दिखाने नही देती थी या फिर देखने के बावजूत वो मां को नजर अंदाज करते थे…
में उनकी इकलौती संतान था और घर में कोई नहीं था दूसरा इस वजह से में उन के साथ ही सोया करता था.. अकसर रात को नींद खुलती तब मुझे मां का अर्ध नग्न जिस्म दिख जाता और में अपनी आंखे बंद किए मां की सिसकरिया सुनता.. जैसे जैसे मां को समझ आया की में उन्हें चुप के से पापा के साथ संभोग क्रिया करते देख लेता हु.. मां अपनी चूदाई दूसरे कमरे में कराने लगी लेकिन कभी मुझे खुद से दूर नही की… वो दुसरे कमरे में जाते और भरपूर आनंद लेकर वापस लौट आते.. धीरे धीरे ऐसा होने लगा कि पापा मां की गरमी को शांत कर वही सो जाते थक के लेकिन मां मेरे पास आकर लेट जाती…
समय के साथ पापा अब मां को पूरी तरह से ठंडी नहीं कर पाते थे.. मां अब अपनी यौन उत्तेजना को अपनी उंगली से ही शांत किया करती थी..
पापा अब मां को बहुत ही कम समय देते और यौन संबंध तो मां के लाख मानने पर ही बनाते.. मां को भी समझ आने लगा था की अब उन्हें यू परेशान कर कोई फायदा नही होगा..
मां अब 47 साल की हो गई थी और पापा 60 के लेकिन मां की काम आग दिन प्रति दिन और बड़ रही थी.. मां को अब अपने जिस्म में कुछ खास बदलाव भी दिख रहे थे जिन्हे देख वो बड़ी ही कामुक हो जाती मां ने पूरे एक साल से अपनी योनि में लिंग नही लिया था वही उनके गोरे कसे बदन को एक साल से उनके हाथो के अलावा किसी भी मर्द न छुआ तक नहीं था.. अब ये मत सोचना की में कहा था में अब मां को मेरा भी स्पर्श नहीं मिल रहा था नही तो कुछ घरेलू महिलाएं अपने बेटे के स्पर्श और आलिंगन से ही उत्तेजित होकर रात में बेटे को बाहों में लेकर उंगली कर अपनी काम आग को भुजा लिया करती है.. लेकिन में पिछने एक साल से घर नही आया था मेरे काम की वजह से में अब 26 साल का हो चुका था.. जो अपनी मां के जिस्म का दीवाना बन बैठा था जाने या अनजाने में एक साल मां से दूर रह के दिन रात मां को सोचता की घर पे होता तो मां के साथ क्या क्या करता…
हा दोस्ती में और मां काफी करीब आ गई है.. मां को अपनी बाहों में लेकर सोना उनको चूमना उन्हें घूमने के जाना सब में करने ही लगा था.. बस नही हुआ था तो हमारा मिलन.. मुझे पता था कि मां इतनी पड़ी लिखी थी की उनके लिए बेटे को चूमना कोई बड़ी बात नहीं थी और साथ में तो हम कब से सो रहे थे.. और उन्हे थोड़ा बहुत तो इंटिमेसी अच्छा ही लगता था और ये उनके विचारों से विपरीत नही था क्यों कि वो देखती थी की आज कल ये सब आम है…
लेकिन संभोग और अपने बेटे के साथ ये तो वो अपने सब से पूरे जीवन ने न कभी सुनी थी ना कभी सोचा था.. वो तो बस एक खुले विचार की नई जमाने की मां थी जिसे थोड़ी बहुत नजदीकिया से कोई आपत्ति नही थी उल्टा वो खुद ही मेरे साथ देर तक आलिंगन में पड़ी हुई बाते करने लगती और बेटे से इतना प्यार मिलने से सारा दिन खुस रहती..

आज मुझे मां के साथ किए हुए मजाक मस्ती बड़ी याद आती है जब में उतना दूर हु पूरे एक साल से…वो बड़ी सी मुस्कान छोटे छोटे गुलाबी होठ जैसे गुलाब की पंखुड़ी हो.. खुले घने बाल.. पतली कमर जो हर दम पल्लू हटने से मेरी आखों के सामने आ जाती उनकी एक एक अंग मुझे बड़ा तक करता है खास कर है मेरा लिंग को एक साल से मां की पहनी हुई ब्रा पेंटी में अपना गाड़ा माल छोड़ने को बेताब खड़ा है