You dont have javascript enabled! Please enable it! हवेली – Update 43 | Adultery Story - KamKatha
दिलजले - Adultery Story by FrankanstienTheKount

हवेली – Update 43 | Adultery Story

#43

निर्मला की आँखों में हैरानी थी पर होंठो पर कोई बात नहीं थी , खाना पीना करके मैंने गाड़ी निकाली और हम उस मंजिल की तरफ चल दिए जहाँ बरसो से इंतज़ार करते करते खुद इंतज़ार भी थक गया . मैंने देखा की निर्मला साइड में लगे शीशे से बाहर निहार रही थी .

मैं- ठीक हो

उसने हाँ में सर हिलाया और जल्दी ही हम हवेली के सामने थे .

“ये तो ,,,,,,, ”

मैंने उसकी बात काटी और बोला- ये , मेरा नया घर है ये हवेली अब मेरी है

निर्मला मुस्कुराई .

मैं -अन्दर चलते है

गाड़ी से उतरने के बाद मैंने उसका हाथ पकड़ा और हवेली में ले आया उसे ,खामोश हवेली में निर्मला की पायल शोर मचा रही थी . वो हवेली को घुर घुर कर देख रही थी . कभी आबाद रही हवेली अपनी बिखरी हुई दास्ताँ वक्त के थपेड़ो से झुझते हुए शायद निर्मला को बताना चाहती थी . मैं उसे रुपाली के कमरे में ले आया . कुछ देर हम एक दुसरे को देखते रहे और फिर मैंने निर्मला के होंठो को अपने होंठो से सटा दिया, जीवन में शायद ये पहली बार था जब मैंने इतनी हिम्मत की थी . सुर्ख लबो को जी भर कर चूमा मैंने

“माफ करना पर मैं तुमको देखते ही आपा खोने लगता हूँ.बहुत कोशिश करता हूँ तुमसे दूर रहने की पर जिस पल तुम मेरे सामने आती हो इस हुस्न की तपिश में खुद को जलता हुआ महसूस करता हूँ सुबह भी जब तुम्हे आते देखा , रश्क होने लगा था मुझे तुम्हारे गालो से टपकती पानी की बूंदों से . पता नहीं ये सही या गलत है पर भाभी मैं तुम्हे पसंद करने लगा हूँ मैं तुम्हारे आगोश में समाना चाहता हूँ ” निर्मला से ये शब्द कहते हुए मेरे होंठ बहुत कांप रहे थे .

उसने मुझसे कुछ नहीं कहा वो मेरे पास आई और उसने अपने लब मेरे लबो से जोड़ लिए. जैसे किसी ने पिघलता हुआ मक्खन मेरे होंठो पर घोल दिया हो उफ़ इतनी मादकता लबो में इतना जादू था तो जांघो के बीच क्या ही होगा मैंने सोचते हुए अपने दोनों हाथ निर्मला के नितम्बो पर रख दिए और उनको सहलाने लगा. निर्मला एक हाथ से मेरी गर्दन को सहला रही थी और दुसरे हाथ से मेरी पीठ को रगड़ रही थी . जैसे ही होंठो ने एक दुसरे को आजाद किया मैंने उसे पलट दिया अब उसकी गर्दन को चूमते हुए मैं अपने हाथो में उसके उभारो को थामे हुए था उफ्फ्फ इतनी नरमी जैसे की रुई के गोले हो ब्लाउज को उतारते ही मेरे हाथो ने ब्रा को छुआ और मेरे तन में आग लग गयी

“सीईई ” निर्मला के मांसल कंधे पर अपने दांत गडाते हुए मैंने उसकी ब्रा की डोरी खोलते हुए बेहद शानदार चुचियो को आजाद कर दिया . अपनी छातियो को मसलवाते हुए निर्मला अपना हाथ पीछे ले गयी और मेरी पेंट के ऊपर से ही मेरे लंड को रगड़ने लगी, हवस की आग हम दोनों को झुलसाने लगी थी शायद ये इस हवेली का ही असर था जिसकी हवाओ तक में काम वासना दौड़ती थी . मेरे हाथ अब निचे को चलने लगे थे उंगलिया निर्मला की नाभि से छेड़खानी कर रही थी तभी मैंने निर्मला को बेड के सिराहने झुकाया और उसके पेटीकोट को कमर तक चढ़ा दिया यकीन मानिए उसके बेहद खूबसूरत नितम्बो में फंसी वो नीले रंग की कच्छी जिस पर मछली बनी हुई थी क्या ही शानदार लग रही थी घुटनों के बल बैठते हुए मैंने हलके से दोनों नितम्बो को चौड़ा किया और चूम लिया

“श्ह्ह्ह ” निर्मला अपने होंठो पर आई कामुक आहो को रोक नहीं पा रही थी बड़ी नाजुकता से मैंने उसकी कच्छी को उतारा और मैं एक पल में समझ गया की क्यों लोग चूत के इतने दीवाने होते है गुदा का संकरा छेद और उस से आध या इंच भर निचे गहरी काली रंगत लिए चूत की वो फांके जो किसी चिपचिपे रस से सनी हुई थी . मैंने उसकी गांड को फैलाया और न जाने क्यों मैंने चूत को चूम लिया

“अर्जुन्न्न्नन्न ” निर्मला का पूरा बदन कांप गया

“”सुरूप मैंने अपनी जीभ को चूत पर फिराना शुरू किया निर्मला के पैर अपने आप चौड़े होते गए और मैं कामरस को पीने लगा निर्मला के तन में इतनी आग चढ़ गयी थी की उसका पूरा बदन कांप रहा था , उत्तेजना में मेरी जीभ उसकी गांड के छेद तक पहुँच गयी थी और कांपते होंठो से मैंने उस छेद को चूमा तो निर्मला के साथ साथ मैं भी पागल हो गया . मैंने तुरंत अपना लंड बाहर निकाला और निर्मला की गर्म चूत से सटा दिया अगले ही पल चूत के छेद को खोलते हुए मेरा लंड अन्दर बाहर होने लगा निर्मला थोड़ी और झुक गयी जिस से उसके नितम्ब ऊपर उठ गए उसके कंधो को सहलाते हुए , पूरी पीठ को मसलते हुए मैं अपने धक्को की रफ़्तार बढ़ाने लगा था . मेरी गोलिया उसकी चूत के बहते रस से भीगने लगी थी की मैंने अपने लंड को बाहर खींचा और निर्मला को लेकर बेड पर चढ़ गया . उसकी जांघो को फैलाया और एक बार फिर से हम एक हो गए. एक दुसरे के होंठो में होंठ फ़साये हुए जिस्मो को रोंद रहे थे निर्मला ने अपने बाहुपाश में मुझे जकड़ लिया था बार बार वो अपने कुल्हे ऊपर उठा कर सम्भोग का आनंद ले रही थी और फिर एक पल ऐसा आया की मुझे लगा वो खा जाएगी मुझे , उसके बदन की गर्मी को मैं झेल नहीं पाऊंगा इस से पहले की मैं ठंडा हो जाता उसने अपने नाखून मेरी पीठ पर इतनी तेजी से रगड़े की मैं कराह उठा. उसकी चूत में चिकनाई बहुत बढ़ गयी और वो किसी टूटे पेड़ सी ढह गयी इतनी गर्मी को मैं बर्दाश्त नहीं कर पाया और मेरे बदन से बहता लावा उसकी चूत में गिरने लगा. अचानक से ही बदन बहुत हल्का लगने लगा था और आँखे भारी . उसने मुझे ऊपर से हटाया और उठ कर बैठ गयी पर कपडे पहनने की चेष्टा नहीं की . चुदाई का दौर आकर गुजर गया था और अब मेरी हिम्मत नहीं हो रही थी उस से नजरे मिलाने को

“अब इस ख़ामोशी की जरुरत नहीं अर्जुन हर पर्दा गिर चूका है हमारे बीच का ” उसने बिना मेरी तरफ देखे कहा

मैं बिस्तर से उठा और खिड़की से बाहर देखने लगा की तभी निर्मला पीछे से आकार मुझसे चिपक गयी उसके गर्म बदन से छूते ही न जाने मुझे क्या होने लगा उसकी उंगलिया मेरी गोलियों को मसलने लगी और तुंरत ही एक बार फिर से मैं तनाव से भर चूका था . निर्मला अब आगे को आई और निचे बैठते हुए मेरी आँखों में देखते हुए मेरे लंड को अपने होंठो में दबा कर बैठ गयी, जैसे ही उसने अपनी गर्म जीभ मेरे सुपाडे पर फिराई कसम से मैंने अपने घुटनों को कांपते हुए महसूस किया . मैंने आँखे मूँद ली और खुद को हुस्न के तूफ़ान के हवाले कर दिया. शाम तक मैंने और निर्मला ने चार बार चुदाई की और जब मेरी आँख खुली तो मैंने पाया की वो बिस्तर पर नहीं थी …………………..

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