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कच्चा फर्श रक्त से नहाया हुआ था चंदा की लाश पड़ी थी छाती को चीर दिया गया था पर उसकी आंखे खुली थी और उनमे हैरत अभी भी मोजूद थी . जाहिर था कातिल को खूब जानती थी वो और अजित या चांदनी कातिल हो नहीं सकते थे क्योंकि वो कहीं और थे. मैंने चंदा के बदन को छू कर देखा उसमे ताप नहीं था उसे काफी समय पहले मार दिया गया था पर किसलिए ….. सोचते सोचते मैं पागल होने लगा था .
वक्त बहुत भारी हो गया था मेरे लिए मैंने चंदा की लाश को समेटा, लकडिया इकठ्ठा की और उसे नए सफ़र के लिए विदा किया बेशक कुछ भी तो नहीं लगती थी वो मेरी पर फिर भी आँखों में आंसू थे . एक बार फिर मैं लाल मंदिर पहुँच गया पर वहां भी चैन नहीं मिला मुझे क्योंकि एक नया तमाशा मेरा इंतज़ार कर रहा था पद्मिनी खून से लथपथ मंदिर में बैठी थी और बहुत सारे नाहार्वीर घायल अवस्था में पड़े थे क्या मालूम उनमे कितनी सांसे बची हुई थी .
“ये ठीक नहीं , ये नहीं करना था तुझे ” मैंने कहा
पद्मिनी- अर्जुन मैंने जीत लिया मैंने साध लिया इनको
पद्मिनी की आवाज में खनक थी पर मुझे वो वेदना लगी
मैं-क्या मिला तुझे ये करके पगली
पद्मिनी- आ मेरे साथ और देख खुद
पद्मिनी ने मेरा हाथ पकड़ा और पानी की गहराई में उतर गयी . मैं समझ नहीं पा रहा था उसकी मुर्खता को , वो मुझे सोने का अकूत भंडार दिखा रही थी. मैंने उसे खींचा और वापिस धरा पर ले आया .
मैं- तो मोह के लालच में फंस गयी तू भी
पद्मिनी- मेरे बाबा ने जान दी इसके लिए
मैं- इसे पा भी लिया तो क्या पाया
पद्मिनी- समझी नहीं
मैं- सोच तेरे बाबा ने इस मोह को यहाँ छिपाया , ये पुख्ता किया की कोई भी इसे न पा सके तो कोई कारन जरुर रहा होगा उनके मन में वो चाहते तो डेरे में भी रख सकते थे इसे इसलिए नहीं छपाया गया की भविष्य में उनका कोई वारिस इस सोने को प्राप्त करे दरसल वो चाहते थे की इसकी वजह से आगे और कोई खून खराबा न हो . मैं तुझे बता दू की तेरे बाबा कभी भी इस सोने को नहीं छिपा रहे थे उनका मकसद तो था ही नहीं ये सब
पद्मिनी- तो क्या था उनका मकसद
मैं- खुद को उनका वारिस मानती है न तो अपनी आँखों से मोह की पट्टी हटा मुझे यकीं है तू उनके दिखाए रास्ते पर जरुर चल पड़ेगी
पद्मिनी- ऐसा क्या है तुझमे जो तू उस रस्ते पर चल दिया और मैं नहीं
मैं- शायद तू कभी उनकी वारिस थी ही नहीं
पद्मिनी- तो क्या तू है वो वारिस
मैं- नहीं, मैं तो खुद अपने अस्तित्व की तलाश में हु पर इस तलाश में मैंने इतना जरुर जान लिया है की दुनिया में सबसे बड़ी कोई शक्ति है तो वो है विस्वास , इस दुनिया में सब कुछ है बस आँखों से मोह की पट्टी हटाने की जरुरत है , ये सोना मोह की वो ही पट्टी है .
मैंने नाहर वीरो के जख्मो को सहलाया , उनकी आँखे खुली मैंने अपने हाथ उनके आगे जोड़ दिए
“हे वीरो बेशक इस लड़की ने अपने कौशल से आपको पराजित कर दिया हो पर इस भूल के लिए मैं आपसे क्षमा मांगता हूँ , अपनी दृष्टि सदैव हम पर रखना माफ़ी स्वीकार करे ”
उनमे से एक ने अपना हाथ मेरे सर पर रखा और बोला- बेशक हम अपनी सीमओं में बंधे है पर हमें पूर्ण विश्वास है जब तक तुम जैसे है हमारा विश्वास अटल रहेगा पर चूँकि हम आगे के विधान को देख सकते है अर्जुन तुम्हारी और पद्मिनी की संतान को वारिस का हक़ जरुर मिलेगा बेशक तुम दोनों वारिस नहीं हो
ये सुन कर मैं और पद्मिनी हैरान रह गए एक दुसरे का मुह ताकने लगे.
नाहर वीर मुस्कुराये और जल में उतर गए . रह गए हम दोनों
पद्मिनी- ये क्या कहा इन्होने
मैं- सच हो तो कहा जब तू मेरी लुगाई बनेगी तो हमारी औलाद होगी ही
पद्मिनी के कान लाल हो गए मैंने उसे अपनी बाँहों में भर लिया और उसके होंठो को चूम लिया . लाज से दोहरी हो गयी वो. मैंने पद्मिनी को चंदा की मौत से लेकर अजित-चांदनी की साजिश तक सब बता दिया
पद्मिनी- पर वो तुझे क्यों मारना चाहते है और क्या जानते है वो
मैं- यही तो मालूम करना है इसके लिए मुझे कोई योजना बनानी होगी पर फ़िलहाल तुझे मेरे साथ चलना होगा मेरा एक काम कर तू
पद्मिनी- क्या काम
मैं- तुझे एक फ़ोन करना है
पद्मिनी- किसे
मैं- जान जाएगी
पद्मिनी पर इस हाल में मुझे कपडे बदलने होंगे
मैं-ठीक है पहले तेरे डेरे चलते है
पद्मिनी ने नहा कर कपडे बदले और हम लोग मेरे घर आ गए , हमेशा की तरह घर अँधेरे में डूबा तो निर्मला नहीं थी वहां पर . मैंने पद्मिनी को फ़ोन दिया और उसने ठीक वो शब्द कहे जो मैंने उसे बताये थे , “वो जो बरसो से खोया हुआ है मिल गया है ”.
पद्मिनी- अर्जुन क्या है वो जो बरसो से खोया हुआ है
मैं-सोना पगली
सुबह जब मेरी आँख खुली तो मैंने निर्मला को देखा जो नहा कर ही निकली थी उसके बदन पर बस ब्लाउज और पेटीकोट था , पेटीकोट उसकी जांघो से चिपका हुआ था और मुझे पूरा यकीन था की उसने कच्छी नहीं पहनी थी. उसकी फूली हुई चूत जांघो के जोड़ से साफ़ नुमाया हो रही थी , ब्लाउज के बटनों में इतनी शक्ति नहीं थी की उसकी छातियो के बोझ को संभाल सके, मैंने अपने पायजामे में कुछ फूलता हुआ महसूस किया कमर तक आते उसके लम्बे बाल हलकी सी चौड़ी कमर को चूम रहे थे इस से पहले की मैं पिघल जाता मैंने अपनी नजर उसके मादक बदन से हटाई और वापिस कमरे में घुस गया .
कुछ देर बाद वो तैयार होकर मेरे कमरे में आई
“आजकल न जाने कहाँ गायब रहने लगे हो ” उसने कहा
मैं- ये बात तुम पर भी लागु होती है
निर्मला- मैं कहा गायब हु, या तो इस घर या परले घर
मैं- पर आज तुम मेरे साथ कहीं चल रही हो
निर्मला- कहाँ
मैं- खुद ही देख लेना