#71
रमा पर शक करने का मेरे पास ठोस कारण था . कुछ ही मुलाकातों में मैंने उसे इतना तो समझा था की उसे पैसो को कोई भूख नहीं थी फिर वो मेरे नोटो की खातिर मेरी मदद क्यों कर रही थी . उसका सिर्फ ये कहना की वो सूरजभान का अंत चाहती थी एक हद तक ठीक थी पर जो सवाल मेरे मन में खटक रहा था वो ये था की उसे गाँव क्यों छोड़ना पड़ा.
सरला के अनुसार उसकी एकमात्र सहेली कविता थी .वो कविता जिसके अवैध सम्बन्ध राय साहब से थे. तो क्या रमा को भी राय साहब की वजह से ही गाँव छोड़ना पड़ा. इस ख्याल में दम था क्योंकि किसकी इतनी मजाल जो उनके आगे सर उठा सके. पर क्या रमा को भी चोदा था मेरे बाप ने .
सोचने को बहुत कुछ था पर साबित करने को कुछ नहीं था . मुझे वैध मिल गया तो मैं थोड़ी देर उसके पास रुक गया .
मैं- कैसे है आप
वैध- बस जी रहा हूँ कुवर.
मैं- कोई परेशानी हो तो मुझसे कह सकते है
वैध- नहीं कुवर , कोई परेशानी नहीं बस ये खाली घर काटने को दौड़ता है .
मैं- रोहताश को सुचना भिजवा दीजिये . और फिर ऐसी कमाई का क्या ही फायदा जिसके लिए अपनों से दूर रहना पड़े.
वैध- पहले तो वो यही खेती करता था बेटा . वो तो राय साहब का भला हो जिन्होंने उसे सहर में काम दिलवा कर उसकी जिन्दगी संवार दी.
तो रोहताश को शहर में नौकरी पिताजी की देंन थी . उसे गाँव से दूर शायद इसलिए ही भेजा गया हो ताकि पिताजी कविता के करीब रह सके.
मैं- आपको कोई भी जरुरत हो तो बेहिचक मुझसे कहना
उसके बाद मैं जोहड़ की तरफ चल दिया. पहले तो इस जोहड़ पर बहुत चहल पहल रहती थी . पशु क्या आदमी क्या सब यही पानी पीते. कपडे धोते पर जब से गाँव में नयी टंकी बनी थी इधर से मोह टूट गया था लोगो का. अब तो कोई सुध भी नहीं लेता था इसकी. जोहड़ किनारे की झाड़ियो को पार करते हुए मैं पेड़ो के पास से होते हुए उस तरफ चले जा रहा था जो सरला ने मुझे बताया था . कंटीली झाड़ियो से होते हुए मैं बंजर जमीन पर जा पहुंचा चलते चलते मैं थकने लगा था .
झुरमुट में काफी आगे जाने पर मुझे बेहद खस्ताहाल दीवारे दिखी. जगह जगह से चुना झड़ रहा था. दरवाजे के नाम पर लकड़ी झूल रही थी . दो कमरे थे . किसी दौर में किसी के अरमानो का घर रहा होगा ये पर आज वक्त से जूझ रहा था . अन्दर मिटटी का फर्श था . कड़ीयो की छत थी कुछ कडिया सील कर फूल गयी थी .सामान के नाम पर एक पलंग पड़ा था . आलो में बर्तन थे जो अब किसी काम के नहीं थे. दुसरे कमरे में भी एक चारपाई पड़ी थी धुल से सनी हुईउसके निचे एक संदूक पड़ा था जिस पर ताला था.
पत्थर का सिर्फ एक वार झेल पाया वो ताला मैंने संदूक खोली . कुछ कपडे थे . उनके निचे रंग बिरंगी कच्छी का ढेर . पर जिस चीज ने मुझे सबसे ज्यादा हैरान किया वो थी वो किताबे जिन पर आदमी और औरतो की नंगी तस्वीरे थी. चुदाई की तस्वीरे . रमा के घर में ये होना मुझे बता रहा था की कविता की चुदाई वाली बात में रमा भी पूरी पूरी हिस्सेदार थी .
उस दिन सूरजभान और भैया भी मुझे जीप से इसी तरफ आते दिखे थे हो सकता है की रमा के इस खाली घर को वो चुदाई के लिए इस्तेमाल करते हो क्योंकि इस तरफ कोई आताजाता ही नहीं था. मेरे तर्क को सिर्फ एक चीज ख़ारिज कर रही थी वो थी कमरों में लगी बेशुमार धुल और जाले यदि कोई चुदाई के लिए आता होगा तो थोड़ी सफाई जरुर मिलती या फिर धुल में निशान पर ऐसा कुछ नहीं था .
कुछ सोच कर मैंने वो कच्छी और वो किताबे अपने पास ही रख ली. रात को एक बार फिर मैं उस तस्वीर को घूर रहा था. कहने को उस तस्वीर में कुछ नहीं था पर उस कमरे में सिर्फ उसका मोजूद होना ये बताने को काफी था की ये बहुत करीब रही होगी अभिमानु ठाकुर के दिल के.
वो चुदाई की तस्वीरों वाली किताबे इस गाँव में क्या आस पास भी किसी के पास नहीं हो सकती थी. क्योंकि ऐसी चीजे बड़े शहरो में ही मिल सकती थी
“तो क्या कविता के साथ साथ रमा को भी राय साहब चोदते थे ” मेरे मन में ये ख्याल इसलिए आया क्योंकि राय साब अक्सर शहर जाते थे . पर अगर रमा चुदती थी तो चुदती रहती राय साहब उसे कोई कमी तो रहने नहीं देते होंगे फिर गाँव क्यों छोड़ा उसने. कल सुबह मुझे दो लोगो से मिलना था एक तो रमा से और दूसरा रुडा की बेटी से.
सुबह कुछ समय खेतो पर बिताने के बाद मैं रमा के ठिकाने पर पहुँच गया .
“तुम इस वक्त ” उसने कहा
मैं-कुछ काम से आया था सोचा तुमसे मिलता चलू
रमा- सही वक्त पर आये हो मैं खाना खाने जा ही रही थी . तुम भी आ जाओ
खाना खाते हुए मेरी नजर उसके जिस्म पर थी इतनी अड़तीस चालीस की होने के बाद भी कटीली औरत थी रमा.
मैं- मुझे मालूम हुआ कविता तुम्हारी बहुत अच्छी दोस्त थी .
रमा- कोई न कोई किसी न किसी का दोस्त होता ही है .
मैं- रमा मैं सीधी बात करूँगा. मैं जानता हु की तुम मेरा साथ सिर्फ पैसो के लिए नहीं दे रही .
रमा- जब जानते हो तो क्यों पूछ रहे हो .
मैं- मैं वो वजह जानना चाहता हूँ जिसके कारण तुझे अपना घर छोड़ कर मलिकपुर में बसना पड़ा.
मैंने वो कच्छी और किताबे रमा के सामने रख दी. रमा ने अपनी थाली सरकाई और उठ कर खड़ी हो गयी.
मैं- मैं ये तो नहीं जानता की तेरे साथ क्या हुआ था पर तू मुझे बताएगी तो मैं तेरी मदद जरुर करूँगा.
रमा- तुम चले जाओ यहाँ से कुंवर और फिर कभी मत लौटना
मैं- तू क्या समझती है मैं मालूम नहीं कर लूँगा. क्योंकि तेरी कहानी से मेरी कहानी भी जुडी है कहीं न कही. माना की मंजिल दूर है पर मेरा साथ दे इस सफ़र को पार कर ही लेंगे हम
रमा- कुछ नहीं कर पाओगे तुम कुछ नहीं .
मैं- जब तक तू मुझे नहीं बताएगी मैं कैसे समझ पाउँगा इस सब को
रमा- ठीक है मेरा साथ देना है तो जाओ और अभिमानु ठाकुर से पूछो की क्यों रमा को बर्बाद होना पड़ा.